मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास

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Ankit
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Re: मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास

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बुंदेलखंड से कूच करके सबसे आगे बाजी राव अपने घोड़े पर जा रहा होता है और उसके पीछे हाथी पर पालकी में मस्तानी जा रही होती है। मस्तानी को जब भी अवसर मिलता है, वह पर्दा हटाकर बाजी राव को देखती हुई अपने सुनहरे भविष्य के सपने देखने लग जाती है। मस्तानी की अल्हड़ अवस्था से ही यह इच्छा रही थी कि उसका जीवनसाथी कोई महान योद्धा हो। पर बाजी राव जैसे चोटी के सूरमे के जीवन में प्रवेश करने के बारे में तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। बाजी राव को देखकर मस्तानी की भूख उतर जाती है। पालकी में सवार मस्तानी के रोम रोम में शरारती गुदगुदी होने लगती है। वह पर्दे की जाली में से बाजी राव को टकटकी लगाकर निहारती हुई मुस्कारने लग पड़ती है।


सफ़र लम्बा होने के कारण बाजी राव उसे शीघ्र समाप्त करने के लिए अपने दस्ते को अधिक स्थानों पर अधिक देर के लिए रुकने नहीं देता। बारी बारी से सभी सैनिक अपनी सवारियों अर्थात हाथी-घोड़ों पर ही आराम कर लेते हैं। यदि थोड़ी-सा वे कहीं विश्राम करते भी हैं तो महज वे अपने जानवरों को आराम देने और थकान उतारने के लिए ही रुकते हैं। कुछ देर दम लेने और थकान उतारने के बाद वे चारा-दाना, पट्ठे आदि से उनका पेट भरकर और घोड़ों की अपनी सेना टुकड़ी को फिर से चलाकर रास्ता कम करने में लग जाते हैं। जैतपुर से पूणे तक का रास्ता भी कौन सा कम है ?

कई दिन आठों पहर निरंतर चलता कारवां पूणे की मंजि़ल के मध्य में पहुँच जाता है। आधे से अधिक रास्ता वह पूरा कर चुके होते हैं। नर्बदा नदी के निकट पहुँचने तक बाजी राव का सारा लश्कर बुरी तरह से थककर शक्तिहीन हो चुका होता है। रात भी सिर पर चढ़ी खड़ी होती है। समझदारी से काम लेते हुए बाजी राव वहीं उसी पड़ाव पर ही विश्राम करने के लिए आदेश दे देता है।
सेना द्वारा नर्बदा नदी के इर्दगिर्द तम्बू तान लिए जाते हैं। करीब के जंगल में से शिकार मारकर उसको भूनने का काम शुरू हो जाता है। शराब का दौर प्रारंभ हो जाता है। बाजी राव मस्तानी के ख़यालों में खोया हुआ नर्बदा नदी में स्नान करने चला जाता है।

स्नान करते हुए बाजी राव मंत्रों को जाप कर रहा होता है। किन्तु पूजा में उसका मन नहीं लगता। उसका ध्यान बार बार न चाहते हुए भी मस्तानी की ओर दौड़ दौड़ जाता है। जल से बाहर निकलने तक बाजी राव मस्तानी को फौरन अंग लगाने के बारे में दृढ निश्चय कर चुका होता है।

मस्तानी अपनी दासियों के साथ पृथक स्त्री शिविर में होती है। खेमे में प्रवेश करते ही बाजी राव, दास को बुलाकर मस्तानी को संदेश भेज देता है।

मस्तानी की प्रतीक्षा में बाजी राव बूँद बूँद करके शराब पीने लग जाता है। बाजी राव की कल्पना में मस्तानी नृत्य करने लगती है। दारू पीते हुए वह मस्तानी के संदर्भ में सोचता हुआ विचारों के चक्रव्यूह में ही घिरा रहता है। वह मस्तानी को भोगने के लिए प्रयोग किए जाने वाले कामक्रीड़ा के आसनों की रूप रेखा अपने जे़हन में बना लेता है। कभी वह गज आसन, कभी अश्वमेध आसन, कमान आसन और कभी ताली क्रीड़ा विधि से मस्तानी को भोगने का विचार बनाता है। फिर वह अपनी कल्पना के माध्यम से इन आसनों में अपने आपको मस्तानी के साथ आलिंगनबद्ध हुआ देखता है और आनन्द अनुभव करने लग जाता है। बाजी राव ज्यूँ ज्यूँ मस्तानी को प्रेम करने की विधियों और तरकीबों के बारे में सोचता है, त्यूँ त्यूँ उसकी बेचैनी और कामचेष्टा बढ़ती जाती है। वह उत्तेजित होता जाता है और संभोग करने के लिए उसका मन उतावला पड़ने लगता है।

प्याला-पर-प्याला पीता हुआ वह एक सुराही खाली करके दूसरी मंगवा लेता है। परंतु मस्तानी नहीं आती। बाजी राव व्याकुल हो उठता है। वह दुबारा मस्तानी को बुलाने का संदेश भेजता है। बाजी राव को अत्यंत कामोत्तेजना के कारण अधीरता हो रही होती है। वह काम लालसाओं का सताया विचलित होकर तड़प रहा होता है। व्याकुलता के कारण उसकी जान मुट्ठी में आई पड़ी होती है।

काफ़ी समय की प्रतीक्षा के बाद मस्तानी बाजी राव के खेमे में आकर ‘आदाब’ अजऱ् करती है तो बाजी राव की जान में जान आती है। बाजी राव, तोप की नली में से निकले बारूद के गोले की भाँति उछलकर अपने आसन पर से उठता है और मस्तानी को अपनी बांहों के घेरे में कस लेता है, “आ आ मेरी जान ! तेरे प्रतीक्षा में मेरी तो जान ही लबों पर आई पड़ी थी। आने में इतना विलम्ब क्यों कर दिया ?“

मस्तानी घबरा जाती है, “वो.... वह जी, बस कुछ नहीं, यूँ ही कपड़े पहनते हुए कुछ अधिक समय लग गया। गुस्ताखी के लिए माफ़ी चाहती हूँ। वो मज़ा विसाले यार में कहाँ, जो इंतज़ार में है।“

“वस्त्र पहनने के लिए इतना समय क्यों नष्ट कर दिया ? तुम्हें पता नहीं था कि इन्हें तो मैं तुम्हारे आते ही उतार देने वाला था ?“ बाजी राव मस्तानी की चुन्नी उसके सिर पर से खींचकर उतार देता है।

बाजी राव का मंतव्य भाँपकर मस्तानी नखरा दिखाती है, “वस्त्र उतारने से पहले पहनने भी आवश्यक हैं। रूह से कपड़े उतारने का आनन्द लेने के लिए इन्हें पहनना भी मिज़ाज के साथ होता है, मेरे हुजूर ! और फिर, आपको पहली बार एकांत में मिलना था। इसलिए विशेष रूप से सजना-संवरना तो था ही।“
बाजी राव मस्तानी को बांहों में ऊपर उठाकर नीचे बिछे बिस्तर पर लिटाते हुए उसके साथ ही लेट जाता है, “भगवत गीता की सौगंध, तेरे हार-शिंगार के चक्कर में मेरा तो डाट निकला पड़ा है। पागल हुआ पड़ा हूँ मैं... बहुत वीरानगी है मेरे दिल में जिसको तेरे प्यार से भरना है। जब से तुझे देखा है, मैं तो शारीरिक संगम के लिए तड़प रहा हूँ। कमबख्त धैर्य ही नहीं होता मुझसे। भविष्य में एक बात का ध्यान रखना...।“

“किस बात का ?“ मस्तानी बीच में टोकती हुई माथे पर बल डाल लेती है।

“तुम मेरे से मिलने आते समय यह हार-शिंगार को तो रहने ही दिया करना। मैं नहंीं चाहता कि तुम्हारे और मेरे बीच गहना-जेवर, कपड़ा-लता या कुछ और हो। बस, तुम्हारा निर्वस्त्र बदन, मेरे नंगे जिस्म से यूँ लिपट जाए जैसे ठंड लगने पर दोनों हाथों की हथेलियाँ एक-दूजे से अपने आप चिपटकर आपस में रगड़ा करती हंै या जैसे रणभूमि में तलवारें आपस में भिड़ा करती हैं।“ बाजी राव एक तरफ करवट लेकर पड़ी मस्तानी की पीठ को सहलाने के लिए अपने हाथ की हथेलियाँ झसने लग जाता है।

बाजी राव के स्पर्श से मस्तानी की देह में प्रेम तरंगें छिड़़ जाती हैं। मस्तानी आँखों में शरारत झलकाती हुई मुस्कराती है, “जो हुक्म मेरे आका ! भविष्य में ऐसा ही होगा। और कोई हुक्म ?“

“चल फिर, अपने नाजुक हाथों से दो जाम बना।... एक हमारे लिए और एक अपने लिए।“

“छी...छी... न बाबा न ! मैं नहीं शराब को हाथ लगाती। मुझे अपना धर्म भ्रष्ट करना है ?... यह क्या ? आप उच्च कुल के ब्राह्मण होकर मांस-मछली खाते और शराब पीते हैं ?“ मस्तानी लाड़ और नखरे दिखाती है।

“क्यों ब्राह्मणों को क्या दारू दांत काटती है ? जब सारी दुनिया पीती है, हमने पी ली तो कौन सा क़हर ढह गया ? निरी भांग जैसी है यह तो। मैं तो इसको भगवान भोले शंकर का प्रसाद समझकर पी लेता हूँ। बाकी ऐ सुंदरी कि मैं हर समय मंत्र पढ़ते रहने और मंदिरों की घंटियाँ बजाने वाले ब्राह्मणों में से नहीं हूँ। रणभूमि में तलवारें खनखनाना मेरी फितरत है। शराब और कबाब से जंगबाज़ों को शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है। मैंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा जंगों-युद्धों में व्यतीत किया है। वहाँ रणभूमि में कौन सी माँ बैठी होती है जो चावल उबालकर बिरयानी और पुलाव बनाकर खिलाये ? रणक्षेत्र में तो शिकार मारकर गुज़ारा करना पड़ता है और थकान मिटाने के लिए दारू भी पी जाती है। शराब, मछली और मांस को हजम करने में सहायक सिद्ध होती है। कबाबों के संग शराबों का बहुत गहरा रिश्ता है। शराब के बग़ैर रूखा गोश्त कहीं हलक से नीचे उतरता है ?“

मस्तानी बाजी राव के गले में पहनी बहुमूल्य मालाओं को छेड़ती है, “नहीं, मेरा अर्थ था, आप मदिरापान न किया करें। यह बहुत बुरी चीज़ होती है।“

“तुमने कभी पी है ?“

“नहीं।“

“फिर कैसे कह सकती हो कि शराब बुरी शै है ?“

“लोगों से सुनती हूँ कि इसको पीने से आदमी होश में नहीं रहता और उसकी अक्ल मारी जाती है। एक पीर ने कहा है, ‘जितु पीतै मति दूरि होइ बरलु पवै विचि आइ।। आपणा पराया न पछाणई खसमहु धके खाइ।। जितु पीतै खसमु विसरै दरगह मिलै सजाइ।। झूठा मदु मूलि न पीचई जे का पारि वसाइ।।(गुरू ग्रंथ साहिब, सलोक मः 3, सफ़ा 554) अर्थात जिसके पीने से बुद्धि दूर हो जाती है और पागलपन आ चढ़ता है, अपने पराये की पहचान नहीं रहती, ईश्वर की ओर से धक्के पड़ते हैं। जिसके पीने से खसम बिसरता है और रब की दरगाह में सज़ा मिलती है। ऐसी झूठी शराब कभी नहीं पीनी चाहिए। जहाँ तक वश चले इसको पीने से बचना चाहिए।... आपने देखा नहीं, जंग में शराब में मस्त हुए हाथी बाज़ दफ़ा अपने ही लश्कर को रौंद डालते हैं।“ मस्तानी बाजी राव की आँखों में आँखें डाल लेती है।

“वो हाथी तो शराबी हो जाते हैं क्योंकि उनके सामने हथनियाँ होती हैं, मस्तानी नहीं होती ! तेरे हुस्न के सामने तो शराब कुछ नहीं। तुम्हें देख देने के बाद मुझे तो यह शराब ससुरी चढ़ती ही नहीं। मैं तो तुम्हारी मस्तानी आँखों में एक नज़र देखते ही टल्ली हो जाता हूँ। हमारे लिए तो जि़न्दगी है, दूसरों के लिए खराब बन जाती है। लाख आँसू निचोड़ता है जब आशिक तो एक कतरा शराब बनती है।“ बाजी राव शायराना अंदाज़ में फरमाता है।

मस्तानी प्रत्युतार में बहस करती है, “यह दारू निरी ज़हर है। इससे तो शरबत पी लिया करें। मैं अपने हाथों से बनाया करूँगी आपके लिए मेवे डालकर केसर और कुमकुम वाला शरबत। देखना, मेरा शरबत पीने के बाद आपको कुछ और स्वाद ही नहीं लगेगा।“

“शराब स्वाद के लिए नहीं, सरूर के लिए पी जाती है। शराबी इल्ज़ाम शराब को देते हैं। आशिक तोहमत शराब को देते हैं। कोई अपनी भूल कुबूल नहीं करता, कांटे भी ताने गुलाब को ही देते हैं।... तुम भी क्या याद करोगी, किसी चितपवनी ब्राह्मण मराठों के पेशवा से वास्ता पड़ा था। ले, मेरे कहने पर एकबार घूँटभर देख...आसमान में न उड़ती फिरी तो मेरा नाम बदल देना।“ बाजी राव एक तरफ पड़ा मदिरा वाला प्याला उठाकर मस्तानी को उठाते हुए जबरन मस्तानी के अधरों के साथ लगा देता है।

उठकर बैठती हुई मस्तानी एक सांस में सारा प्याला पीकर हिचकी लेती है और अपने आप झट से दूसरा प्याला भर लेती है, “हाँ...उतनी बुरी भी नहीं, जितनी लोग इसकी निंदा करते हैं।“

“लोग तो कुत्ते हैं और कुत्ते तो भौंका ही करते हैं, जान। किसी की परवाह नहीं करनी चाहिए। जि़न्दगी का लुत्फ़ लो जी भरकर। यूँ ही शराब को बदनाम किया बीसियों लोगों ने।“ बाजी राव मस्तानी की आँखों में झांकता है। वह भी नज़रें मिलाती है। मस्तानी की आँखों में से काम छलक रहा होता है। बाजी राव, मस्तानी को कलाई से पकड़कर अपनी ओर खींचकर दुबारा लिटाते हुए उसके ऊपर झुककर उसकी गर्दन को वेग से चूमना प्रारंभ कर देता है।

नीचे लेटी मस्तानी बाजी राव के गले में बांहें डालकर अपने होंठ हरकत में लाते हुए जवाबी कार्रवाई कर देती है।

बाजी राव का हाथ मस्तानी की जांघों को सहलाने लग जाता है।... मस्तानी सरूर में आकर एकदम उठकर बाजी राव के ऊपर लेटती हुई अचानक किए आक्रमण की तरह ताबड़तोड़ चूमने लग जाती है।... उन दोनों का वेग कुछ ही पलों में तीव्र और प्रचंड हो उठता है। मस्तानी अपने नाड़े का एक सिरा खींचकर अपना लहंगा उतार देती है, “आज मैं आपको ऐसा नशा चढ़ाऊँगी कि आपको सारी दुनिया के नशे भूल जाएँगे।“

“हाँ, पगली, मैं तो खुद तेरे नयनों में से जाम भर भरकर पीने के लिए तरसा पड़ा हूँ।“ बाजी राव अपने अंगवस्त्र को उतारकर मस्तानी की चोली की तनियों की गांठें खोलता है और मस्तानी के नाजुक गोरे बदन को वस्त्रों की हिरासत से मुक्त कर देता है। जैसे कोई मदमस्त हाथी माथे की टक्कर मारकर दुश्मन के किले के दरवाजे़ को तोड़ने के लिए धक्का मारता है, वैसे ही एक झटके के साथ बाजी राव मस्तानी के शीशमहल जैसे गुलबदन में सेंध लगाकर प्रवेश हो जाता है।

बाजी राव और मस्तानी हाँफे हुए ऊँठ की तरह एक दूसरे के साथ लिपट पड़ते हैं। बाजी राव बांहों में कसता हुआ मस्तानी को अपने पेट पर लिटा लेते है, “मस्तानी तेरा असली और पूरा नाम क्या है ?“

मस्तानी धीमे स्वर में बोलने लगती है, “माऊ के लोग मुझे मस्तानी माऊ सहानियाँ के नाम से पुकारते हैं। वैसे असली नाम तो मेरा माहनूर था। पर कभी किसी ने इस नाम से पुकारा ही नहीं। इसलिए यह नाम कोई नहीं जानता। बचपन से ही मुझे नाच गाने का शौक था। बचपन में मेरे संगीत के प्रति शौक को देखते हुए काकाजू महाराजा छत्रसाल जी ने संगीत और नृत्य की शिक्षा दीक्षा के लिए उस्ताद मस्तान जी के पास भेजा तो मैं नाचते-गाते इतनी मस्त हो जाती थी कि मुझे अपने इर्द गिर्द की भी होश नहीं रहती थी। उस्ताद मस्तान जी ने मुझे अपना नाम बख़्शकर मस्तानी कहना प्रारंभ कर दिया। मैं उनकी सबसे चहेती शिष्या थी। मैं नृत्य सीखकर जवान होने लगी तो मेरा नृत्य देखने वाले अपने होश को काबू में न रख पाते और मेरे सौन्दर्य और नृत्य को देख मस्ताने हो जाते। सब मस्तानी मस्तानी पुकारते रहते और इस प्रकार मेरा नाम मस्तानी ही पड़ गया। अब तो मुझे खुद भी भूल चुका है कि मेरा असली नाम क्या था ? आपको नहीं अच्छा लगता तो सरताज आप बदलकर मेरा दूसरा कोई भी मनपसंद नाम रख सकते हैं।“

“नहीं नहीं, मस्तानी से बढि़या नाम क्या हो सकता है ? यह नाम बहुत योग्य है और तुम पर जंचता है। वैसे लाड़ प्यार से मैं कभी कभार तुम्हें नर्बदा पुकार लिया करूँगा। मुझे नर्बदा नदी से बहुत प्रेम है। मस्तानी, मैं तुम्हें इतना प्यार करूँगा कि दुनिया का इतिहास तुम्हें बाजी राव की मस्तानी कहकर याद किया करेगा। जब कभी भी मराठा बाजी राव पेशवा का जिक्र हुआ करेगा या मराठों के इतिहास का कोई पृष्ठ खोला जाएगा तो उस समय भी पेशवा बाजी राव की महबूबा मस्तानी बेगम की बात भी अवश्य हुआ करेगी।“ बाजी राव आवेश में आकर बात करता है।

यह सुनकर मस्तानी स्वप्नमयी संसार में विचरने लग जाती है, “श्रीमंत स्वामी मेरा रोम रोम आपका सदैव ऋणी रहेगा। पर आपके नाम के साथ लगते इस पेशवा उपाधि का क्या अर्थ है ?... शायद सेनापति होता हो ?“

“नहीं, रुको। मैं बताता हूँ।“ बाजी राव उठकर बैठते हुए अपना प्याला उठा लेता है और घूंट भरता हुआ बोलता है, “पेशवा, फारसी का शब्द है। इसका अर्थ होता है - ताबिया में हमेशा पेश रहने वाला महामंत्री। महान मराठा शासक पहले छत्रपति शिवाजी भौंसले महाराज 1674 ईसवी में यह पेशवा पद अस्तित्व में लाए थे। लेकिन छत्रपति ने पेशवा को पंथप्रधान की उपाधि देकर शासन करने की छूट दी थी ताकि मराठा साम्राज्य को अधिक दूर तक फैलाया जा सके। पूरे देश में स्वराज अर्थात स्वतंत्र हिंदू राज्य स्थापित करने का छत्रपति शिवाजी ने बीड़ा उठा रखा था। जिज़ोरी (पूणे) के देशाष्ठा वंशी मोरोपंथ तिंबर्क पिंगले को प्रथम पेशवा बनाया गया था। 1689 ई. में मोरोपंथ की मृत्यु के पश्चात दूसरे छत्रपति संभाजी महाराज ने अस्थायी तौर पर तिंबर्क पिंगल के पुत्र मोरेश्वर पिंगले को कुछ समय के लिए पेशवा नियुक्त किया था। पर असली दूसरा पेशवा रामचंद्र नीलकंड पंथ अमात्या(बवाडेकर) उसी साल 1689 ई. में बना था। अमत्या का संस्कृत में भाव निगरान अथवा रखवाला होता है जो घरेलू और सरकारी मामले देखता है। पेशवा रामचन्द्र नीलकंठ को तीसरे छत्रपति राजाराम ने 1689 ई. में महाराष्ट्र छोड़कर झिंजी जाने से पहले ‘हुकूमत पाना’ (शासन करने का राजा वाला अधिकार) देकर हुक्मरान मुकर्रर किया था। पूरे दस वर्ष उसने यह सेवा निभाई। वह कुलकर्णी वंश के साधारण युवक से शिवाजी की प्रेरणा के कारण अष्टप्रधान बना। 1690 ई. से 1694 ई. के वर्षों के दौरान उसने अपनी विलक्षण युद्धनीतियों के साथ मुगलों को भागने पर विवश किए रखा और उनके दक्खिनी महाराष्ट्र में स्थित बहुत सारे किलों पर कब्ज़ा किया। संताजी गोरपड़े और धन्नाजी यादव जैसे योद्धों ने उसका बहुत साथ निभाया था। छत्रपति राजाराम के स्थान पर शासन करते हुए उसने 1698 ई. में अपना पद त्याग कर हुकूमत की बागडोर अपनी पत्नी तारा बाई को सौंप दी थी। परंतु 1708 ई. तक रानी तारा बाई ने उसको कार्यकारी पेशवा ही रहने दिया था। उसने ‘आज्ञापत्र’ नाम की पुस्तक भी लिखी थी जिसमें नवीन युद्ध विधियाँ, शासन करने का ढंग और किलों की देखभाल के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी थी। यह किताब मराठा साम्राज्य की नीवें सुदृढ करने में बहुत सहायक सिद्ध हुई थीं। रामचन्द्र पंत का 1716 ई. में पनहाला किले में स्वर्गवास हो गया था। फिर भाईरोज़ी पिंगले 1708 ई. से 1711 ई. तक पेशवा बना रहा था। उसके बाद आनंद राज के जागीरदार परशुराम तिंबर्क कुलकर्णी ने यह पद संभाला। उसने मीराज, रंगाना किला, भुदारगद, चंदनगढ़, पवनगढ, सतारा और बसंतगढ़ आदि इलाकों को जीता था। यह भी तारा बाई का समर्थन करता था। पाँचवें महाराज शाहू जी ने 1710-14 ई. के दौरान इसको दो बार कै़द में भी रखा था। छत्रपति शाहू जी ने अपनी अपेक्षा उसकी सुहृदयता और वफ़ादारी, तारा रानी के साथ देखते हुए उसको एक कोने में लगाकर पेशवाई हमारे भट्ट परिवार को सौंप दी थी। फिर कोकण के श्रीवर्धन यानी मेरे पिता जी बालाजी विश्वनाथ भट्ट (जन्म 1 जनवरी 1662 ई.) को छत्रपति शाहू जी ने मुनीमी की जिम्मेदारियों से हटाकर पेशवा नियुक्त किया था। परंतु वास्तव में ओहदेदारी बाबा ने (17 नवंबर) 1713 ई. को संभाली थी। ससवाद में (12 अपै्रल) 1720 ई0 को बाबा के निधन के बाद विश्वनाथ (विशाजी) भट्ट के पोते ने केवल उन्नीस वर्ष की आयु में पेशवाई हासिल की थी।“

बाजी राव की बातें बड़े ध्यान और दिलचस्पी से सुनती हुई मस्तानी ने उबासी ली, “मैंने तो पेशवा का अर्थ पूछा था, आपने तो मुझे पेशवाओं का सारा इतिहास ही वर्णन कर दिया।“

“तुम्हारे लिए यह जानना आवश्यक था। इसलिए बताया है ताकि तुम जान जाओ कि हम कौन हैं और हमारा क्या रुतबा है।“ बाजी राव गर्व से गर्दन ऊँची कर लेता है।

मस्तानी अपनी जिज्ञासा प्रगट करती है, “मेरे परिवार के बारे में तो आप जानते ही हैं। मेरी अम्मी जागीरदार दिलावर खान की पुत्री और काकाजू के मित्र अनवर खान की बहन है। आपके घर परिवार में कौन कौन हैं ? मुझे कुछ उनके विषय में बताइये।“

“वैसे तो मेरे दादा विश्वनाथ भट्ट जिनको लोग विशाजी कहकर बुलाते थे, के हम तीन पोते हैं। चिमाजी अप्पा, मैं और मेरा सौतेला भाई भिखूजी शिंदे। पर पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट और माता राधा बाई बरवे के जाये, हम चार बहन भाई हैं। सबसे बड़ा मैं हूँ, चिमाजी अप्पा(चिमाजी अप्पा(1707-1741 ई.) और चिमनाजी अप्पा के बीच भ्रम न खाया जाए क्योंकि चिमाजी अप्पा बाजी राव का भाई था और चिमनाजी अप्पा, रघुनाथ राव और आनंदी बाई (काशी बाई) का बेटा था और बाजी राव का पोता था।) मुझसे सात वर्ष छोटा है। फिर हमारी बहन राव गोरपड़े है। शरारती भिहू बाई का ससुराल बारामती है। अनू बाई इशालकरनजी में ब्याही हुई है। (वनकट राव गोरपड़े के वंशज इशालकरनज़ी में 1847 ई. तक शासन करते रहे थे)। परंतु मेरी दोनों बहनें अपनी ससुराल की बजाय मायके पारिवारिक पेड़ी (चैंकी या निवास स्थान) पूणे में ही रहती हैं। मेरी पत्नी काशी बाई, एक आठ साल का मेरा बेटा नाना साहिब और मेरी भाभी रकमा बाई, चिमाजी अप्पा की पत्नी है। बस, यही हैं मेरे घर के सदस्य।“

“आपका विवाह कब हुआ था ?“ मस्तानी थोड़ा चैंकती है।

“आज से उन्नीस-बीस वर्ष पहले। तब मैं अभी केवल आठ वर्ष का था। मैं और काशी एकसाथ खेला करते थे।“

मस्तानी मजाक करती है, “फिर तो यह प्रेम विवाह हुआ। नहीं ?“

“हाँ, जो चाहे समझ लो। काशी बहुत घरेलू किस्म की स्त्री है। हमारे मराठों की, सारे भारतवर्ष में इसी प्रकार बचपन में ही शादियाँ हो जाती हैं।“

“मुझे डर-सा लगता है। क्या आपका परिवार मुझे स्वीकार कर भी लेगा ? विशेषकर आपकी पत्नी ? कहीं वह मेरे साथ सौतनों वाला व्यवहार तो नहीं करेगी ? कहा करते हैं, सौतन तो मिट्टी की भी बुरी होती है।“ मस्तानी अपना संशय प्रकट करती है।

बाजी राव मस्तानी के मन का डर सुनकर चिंतित हो जाता है, “वही चिंता तो मुझे सताये जा रही है। मेरी माँ दशेस्था कुल में से है, पर अब आई(माता) कट्टर चिपपवनी ब्राह्मण बन चुकी है। मेरे पिता, मेरी माँ से अधिक ध्यान अपनी रखैल यानी दूसरी पत्नी का रखा करते थे। मेरी माँ ने सौतन का दर्द झेला है। इसलिए शायद वह काशी का पक्ष ले। बाकी सब से अधिक चिंता मुझे काशी की है। उसने तो सपने में भी मेरे द्वारा दूसरी स्त्री रखने के बारे में नहीं सोचा होगा। उसको तेरे बारे में जानकर एकबार तो झटका लगेगा। बर्तन में पानी भी डालें, एकबार तो पानी के उछलने से बर्तन भी छलकता है। फिर आहिस्ता आहिस्ता पहले बर्तन और बाद में पानी भी स्थिर हो जाता है। नई बूँदें लबालब भरे बर्तन में अपनी जगह बनाकर समा जाती हैं। वैसे काशी बहुत ठंडे दिमाग की है। धीरे धीरे तुम्हें स्वीकार कर लेगी। पर तुम मेरी पत्नी हो। आज नहीं, कल सही। तुम्हारे पिता की भी अनेक रानियाँ हैं। तुम्हें तो पता है, कैसे इस मामले का सामना करना है। छोटे-मोटे तो बर्तन आपस में बजते ही रहते हैं। आहिस्ता आहिस्ता सब ठीक हो जाएगा। महादेव भली करेंगे। मुझे नहीं लगता, इसकी कोई अधिक समस्या आएगी। लेकिन, तुम चिंता न करो, मैं खुद सब संभाल लूँगा। बाकी मैं तुम्हें भरपूर प्यार दूँगा। तुम्हें मेरे परिवार में बिल्कुल भी परायापन अनुभव नहीं होने दूँगा।“

मस्तानी अपनी बिलांद भर लम्बी गर्दन ऊपर उठाकर बाजी राव के चेहरे को देखती है और फिर नयनों के दरवाजे़ बंद करके उसकी छाती पर अपना सिर पर रख लेती है, “बस स्वामी, अब आपके आसरे ही हूँ। दूसरों की मुझे परवाह नहीं है। आप कृपादृष्टि बनाये रखना।“

“मेरी जान ! बिल्कुल न घबरा। फटाफट उठ और अभी तैयारी कर ले। आज ही हमें पूणा के लिए रवाना होना है।“ बाजी राव उठकर बैठ जाता है।

पेशवा बाजी राव अपने लश्कर के साथ पूणे की ओर चल पड़ता है। जैसे ही वह पूणे के समीप पहुँचता है तो उनके जत्थे के ज्योतिषों के अनुसार सितारों की गति बदलने के कारण गृह-प्रवेश के लिए वह शुभ समय नहीं होता। ग्रहों की स्थिति में परिवर्तन आने की प्रतीक्षा में बाजी राव पूणे के बाहर ही रुककर कुछ दिन के लिए पड़ाव डालने का मन बना लेता है।

सारे सैनिक तम्बू गाड़कर आराम से मौज-मस्ती, नाच, गायन और रंग राव में व्यस्त हो जाते हैं। बाजी राव अपने खेमे में मस्तानी की गज गज लम्बी सुनहरी लटों के कुंडलों में उलझकर भोग-विलास में डूब जाता है।
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अतीत का साया

बाजी राव की तरफ से पूणे के अपने महल में लश्कर के पहुँचने का पैगाम भेज दिया जाता है। इस संदेश में बाजी राव की ओर से गोलमोल ढंग से मस्तानी की मौजूदगी को लेकर इशारा तो किया जाता है, पर खुलकर मस्तानी के साथ हुए उसके विवाह के संदर्भ में कोई खुलासा या वर्णन नहीं किया जाता।


संदेशा मिलते ही चिमाजी अप्पा पूणे के बाहर पड़ाव वाले स्थान पर बाजी राव से मिलने आता है। चिमाजी अप्पा खुशी में उछलकर बाजी राव के गले मिलता है, “शेर-ए-मराठा की जय हो ! दादा (बड़ा भाई), यह जंग भी मराठा जीत ही गए ? वाह मेरे मराठा राणा मर्द ! शत्रु कर दिए खुर्द-बुर्द। जियो ! दादा !“

“कोई शक था, अप्पा ? बाजी राव जब रणभूमि में चला जाए तो विजय स्वयं चलकर हमसे बगलगीर हो जाती है। आज तक कभी हारे हैं जो अब हार जाते। पराजय हमारा खौफ़ खाती है। मैदान-ए-जंग में से मराठा कभी ऐसे नहीं हटा, मरके हटा या मार के हटा !!“

चिमाजी अप्पा के अंदर विजय की खुशी ठाठें मार रही होती है, “इत्मीनान से बैठकर आप से युद्ध का हाल सुनेंगे। हमारे मराठा बहादुरों के वीरतापूर्ण कारनामों की गाथाएँ और जयगान गाकर जश्न मनाएँगे। एकबार पूणे तो पहुँचो।“

“हाँ हाँ, अप्पा। अभी तो थकान उतार रहे हैं। तुम्हें बहुत सारी खुशखबरियाँ सुनानी हैं। यह जंग मराठा इतिहास में एक सुनहरी मोड़ साबित होगी।... आओ तुम्हें किसी से मिलवाऊँ।“ बाजी राव अपने भाई चिमाजी अप्पा को मस्तानी के पास ले जाता है।

“मस्तानी, यह है मेरा छोटा भाई चिमाजी अप्पा और अप्पा, यह है महाराजा छत्रसाल की पुत्री और मेरी महबूबा तुम्हारी नई वाहनी साहिबा, मस्तानी।“

ज्यों ही चिमाजी अप्पा और मस्तानी एक-दूसरे के रू-ब-रू होते हैं तो दोनों आश्चर्यचकित रह जाते हैं। एक-दूसरे को सम्मुख देखकर उन्हें झटका-सा लगता है। उन्हें लगता है मानो अतीत का कोई बिछड़ गया साया आज पुनः उनसे आ जुड़ा हो। दोनों को कुछ वर्ष पहले की एक घटना स्मरण हो आती है। जब एक युद्ध जीतने के बाद चिमाजी अप्पा निजाम शाहजहाँ खान को मारकर उसकी बिल्लौरी आँखों वाली रखैल को उठा लिया था और रास्ते में चालाकी के साथ वह चिमाजी अप्पा की कैद में से भाग गई थी। चिमाजी अप्पा उस हसीन मस्तानी के हुस्न का आनन्द लेने से वंचित रह जाने के कारण कई महीने दुख मनाता रहा था। मस्तानी को अब अचानक अपनी आँखों के आगे देखकर चिमाजी अप्पा को अत्यंत प्रसन्नता और आश्चर्य होता है। मस्तानी भी चिमाजी अप्पा को पहचान लेती है और अपने आने वाले भविष्य को लेकर खामोश और भयभीत हो जाती है।

बाजी राव मस्तानी को आलिंगन में ले लेता है, “क्यों अप्पा, दंग रह गए न मेरी पसंद को देखकर ? मस्तानी को प्राप्त करके मुझे ऐसा लगता है मानो मेरी बरसांे की तलाश और भटकन खत्म हो गई हो।“

चिमाजी अप्पा, मस्तानी को आँख मारता है। मस्तानी भी उसके संकेत को समझ जाती है कि वह बाजी राव को अतीत की घटना के विषय में कुछ नहीं बताएगा। तीनों जन बैठकर बातें करने लग जाते हैं। चिमाजी अप्पा, बाजी राव को कोई बहाना बनाकर बाहर भेज देता है। बाजी राव के बाहर जाने के बाद चिमाजी अप्पा अपने होंठों पर जीभ फेरता हुए लार टपकाता है, “आखि़र, ऊँठ पहाड़ के नीचे आ ही गया ? क्यों मस्तानी जान, देखना भागकर अब भी ? हमें भी पता चले, तू हमसे कहाँ तक, कितनी दूर और कितनी तेज़ भाग सकती है ? अब मराठे करेंगे तेरे दाँत खट्टे।“ चिमाजी अप्पा मस्तानी की कलाई पकड़ लेता है।

मस्तानी एक झटके से अपनी कलाई छुड़ा लेती है और सीना तानकर कहती है, “इसबार मैं भागूँगी नहीं। भगाने आई हूँ मराठा सरदार।“

“ऋषि को तप और तवायफ़ को रूप का अंहकार हो ही जाता है, मस्तानी बाई। यह तो वक्त ही बताएगा, कौन भागता है और कौन भगाता है। पहले जी भरकर मेरे बड़े भाई बाजी राव का दिल बहला। जब पेशवा का मन तेरे से भर जाएगा, फिर मैं अपने दरबार में तेरे मुज़रे देखा करूँगा। सुना है, धरती पर ऐड़ी मारकर तू भूचाल ही ला देती है।“ चिमाजी अप्पा मस्तानी की गाल पर चिकौटी काट लेता है।

मस्तानी अपनी बांह से अप्पा का हाथ दूर झटक देती है, “मैं बाजी राव स्वामी को अपना सबकुछ मान चुकी हूँ। अप्पा, तुम अपनी औकात में रहना ! कहीं यह न हो कि मैं तुम्हारी जि़न्दगी में भूचाल ला दूँ। लगता है, पहले कभी बुंदेलों से वास्ता नहीं पड़ा। मैं तुम्हारे भ्राता पेशवा को पति स्वीकार चुकी हूँ। मैं उनकी वफ़ादार और खिदमतगार बनकर रहूँगी। ऐसी कोई हरकत न करना जो हमारे दोनों के लिए हानिकारक सिद्ध हो। बाजुओं तक सोने की चूडि़यों से भरी मेरी ये कलाइयाँ तलवार चलाना भी जानती हैं। बाकी समझदार को इशारा ही काफ़ी होता है।“

तभी बाजी राव वापस आ जाता है, “क्या गुफ्तगू हो रही है देवर और भाभी में?“

मस्तानी स्थिति को संभालने के लिए बात बदल जाती है, “बस, कुछ नहीं। अप्पा स्वामी आपकी तारीफों के पुल बांध रहे थे।“

चिमाजी अप्पा, मस्तानी को अधिक संजीदगी से नहीं लेता और यह समझ लेता है कि बाजी राव कुछ देर मस्तानी को रखैल बनाकर रखेगा और फिर मन भर जाने पर छोड़ देगा।

चिमाजी अप्पा के साथ एकांत में बातचीत करने के लिए बाजी राव, मस्तानी को जनाना खेमे में भेज देता है। मस्तानी के बाहर निकलते ही चिमाजी अप्पा बाजी राव को कुरेदता है, “यह मस्तानी वाला क्या किस्सा है ? आपको भेजा किसी और उद्देश के लिए था और आप कर कुछ और ही आए ?“

“अप्पा, क्या बताऊँ। गया तो मैं जंग जीतने था, पर दिल हार गया यार। मस्तानी का नृत्य देखते ही मैं मस्तानी को पाने के लिए पागल हो गया था। मैं बहुत चाहने लग गया हूँ इस स्त्री को। अब एक क्षण भी इसके बग़ैर नहीं रह सकता। इसलिए तुमसे प्रार्थना है कि तुम मेरे साले यानी काशी बाई के भाई कृष्णा राव महादेव जोशी को साथ ले जाकर काशी को मस्तानी के बारे में इस ढंग से बताओ कि वह मस्तानी का ज़रा भी विरोध न करे। काशी अपने भाई की बहुत बात मानती है। कुछ ऐसा कर दो कि बाकी परिवार वाले भी हमारे संबंधों को स्वीकार कर लें। जो होना था, वह तो अब हो गया।“ बाजी राव अपनी जुगत समझाता है।

“भाऊ, वह तो ठीक है। पर आप तो जानते ही हो कि आई (माँ) को भिक्खु भाई और काकी (सौतेली माँ) के साथ अब तक नफ़रत है। बाबा (पिता) आई को छोड़कर ज्यादा तवज्जो काकी को दिया करते थे। याद है, अपनी आई (सगी माँ राधा बाई) कैसे आसमान सिर पर उठाकर बर्तन तोड़ा करती थी। थोड़ा बहुत हंगामा तो होगा ही, पर मैं कोशिश करके देख लेता हूँ यदि मामला कुछ ठंडा हो सके तो...।“

“अप्पा, कोशिश नहीं, तुम पूरी शक्ति लगाओ। इस रिश्ते से सारी कौम को लाभ है। हम पूरे भारत में केसरी मराठा परचम लहराकर स्वराज स्थापित देंगे।“

“वह कैसे ?“

“देखो अब तक हमको राजपूतों की निष्ठा को लेकर चित में एक धुकधुकी ही लगी रहती थी। राजपूत गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं। आज वह सिंधिया (हबशिया) के साथ हैं, कल निजामों की ओर, परसों बादशाह कनी और चैथे दिन बागियों का पलड़ा भारी हुआ तो उनके साथ चल पड़े। हवा की तरह अपना रुख बदलते आए हैं ये राजपूत। हमें यह भी पता नहीं होता कि मेवाड़
(Mewar/Mewad, is a region of south-central Rajasthan state in western India. It includes the present-day districts of Bhilwara, Chittorgarh, Rajsamand, Udaipur and some parts of Gujarat and Madhya Pradesh and Haryana) तक हमारी फौज के पहुँचते उनके समर्थन का तराजू किधर झुकेगा। बुंदेलों के साथ यह रिश्ता गांठ कर हम राजपूतों की ओर से निश्ंिचत हो सकते हैं। हम पूर्वी और पश्चिमी घाट के मध्य पड़ते दक्खिनी और मध्य भारत, मावला के सारे इलाकों के हुक्मरानों अर्थात दक्खिन के निजामों का राह काटते हुए दिल्ली आँखें मूंदकर जा सकते हैं। बुंदेलखंड, दिल्ली के बिल्कुल आधे रास्ते में पड़ता है। हमारी वहाँ छावनी बनने से हमारा बहुत लाभ हो सकता है। महाराजा छत्रसाल अपने समय का एक बढि़या योद्धा रहा है। उनके पिता चम्पत राय को आलमगीर औरंगजेब ने अपने दरबार में विशेष स्थान दिया था। पन्ना की हीरों वाली खानों तक हमारी पहुँच होगी। हमारा खजाना खाली है। वह हमें युद्ध लड़ने के लिए मदद और चैथ भी निरंतर देंगे। मस्तानी के साथ उन्होंने मुझे पाँच लाख लूगदा चोली (दहेज), मंहगे उपहार और महाराजा शाहू जी के लिए सवा दो लाख की रकम भी अलग से दी है। हमें पुत्र बनाकर अपनी वसीयत के अनुसार अपने दो पुत्रों के बराबर का तीसरा हिस्सा बुंदेलखंड से दक्खिनी तट तक का क्षेत्र अर्थात नर्बदा की जागीर और पन्ना की हीरों वाली खानों को देने की घोषणा भी की है।“ बाजी राव अपने समस्त देखे हुए सपनों का खुलासा कर देता है।

चिमाजी अप्पा प्रसन्न होकर सिर हिलाता है, “हूँ ! फिर तो हम मराठों के लिए घाटे का सौदा नहीं हंै। अपितु एक राजनीतिक संधि है यह। हमें तो बुंदेलों का धन्यवादी होना चाहिए। राजपूतों पर राज करेंगे ! धन लेंगे!! और उनकी स्त्रियों को दबोचेंगे !!! भाऊ, अपनी तो पौं बारह हो गई। ‘चुपड़ी हुई, उस पर दो दो’ वाली बात है यह तो। लाभ ही लाभ। घाटा किसी तरफ से नहीं दिखाई देता।“

“लाभ हानि तुम विचारते रहो। मेरे लिए तो कुल दुनिया की दौलत और जागीर एक तरफ और मस्तानी दूसरी तरफ। मुझे मस्तानी से प्रेम हो गया है अप्पा, प्यार।“

चिमाजी अप्पा बाजी राव की जांघ पर हाथ मारता है, “दादा, युद्धों में अधिक समय रहने के कारण आप अतृप्त रहते हो। दिमाग खुश्क हो गया लगता है। ठीक है, कुछ देर रंगरास की महफि़लों का आनन्द उठाइये और अपने अंदर भड़कती काम की ज्वाला को शांत करिये। यह जिसे आप प्रेम कह रहे हैं, महज देह आकर्षण और काम लालसा है। ऋषि अगस्त, सोम, इंदर, विश्वामित्र जैसे भी इससे मुक्त नहीं हो सके थे। मैं पूणे जा कर इस मामले से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाता हूँ। चिंता न करें। अपनी तरफ से मैं ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दूँगा। थोड़ी बहुत घरेलू जंग और क्लेश का तो आपको सामना करना ही पड़ेगा। उप-स्त्री का मामला है, कोई छोटी मोटी बात तो नहीं।“

“बाजी राव ने तो जब से होश संभाला है, बस युद्ध ही लड़े हैं। न मैं कभी हारा हूँ और न घबराया हूँ। पर पता नहीं क्यों, इस बार कलेजा-सा कांपता है। खै़र, माँ भवानी की कृपा से मुझे आशा है कि सब ठीक हो जाएगा।“

कुछ अन्य सरदारों के साथ चिमाजी अप्पा वापस घर आकर मस्तानी के विषय में बता देता है और काफ़ी हद तक मस्तानी के लिए अपने परिवार में समाहित होने योग्य जगह भी बना देता है।
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Ankit
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Re: मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास

Post by Ankit »


सुहाग सेज

अगली सुबह बाजी राव नदी में स्नान करके मस्तानी के साथ करीब के मंदिर में जाता है और पूजा करने के पश्चात वहीं मस्तानी की मांग में सिंदूर भर देता है। उसके उपरांत बाजी राव मस्तानी को अपने तम्बू में लौट जाने के लिए कहकर लश्कर का निरीक्षण करने चला जाता है।


फौज का जायज़ा लेकर जब बाजी राव तम्बू में लौटता है तो मस्तानी नमाज़ पढ़ रही होती है। वह मस्तानी के करीब बैठकर नमाज की समाप्ति की प्रतीक्षा करता है। ज्यूँ ही नमाज खत्म होती है तो मस्तानी मुसल्ला इकट्ठा करके बाजी राव को ‘तस्लीमात’ अर्ज़ करती है। बाजी राव को हैरत होती है, “मस्तानी यह क्या ? तुम और नमाज ?“

“हाँ हुजूर ! मैं प्रणानामी हूँ। स्वामी प्राणनाथ का प्रणानाम धर्म, हिंदुत्व और इस्लाम दोनों की अच्छी चीज़ों को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है। इसलिए जहाँ मैं मंदिर में भजन, आरती करती हूँ, वहीं पाँच वक्त की नमाज़ भी अदा करती हूँ।“

“हाँ, बादशाह अकबर ने अपना धर्म ‘दीन-ए-इलाही’ हिंदू और मुसलमानों को एक करने के लिए चलाया था, पर अफसोस वह सफल न हो सका।“

“पर मुझे उम्मीद है कि हमारा प्राणामी धर्म असफल नहीं होगा।“

“क्या है तुम्हारा प्राणामी धर्म ? हमें भी उसके बारे में ज्ञान दो।“

“हमारे धर्म की नींव सिंध, उमरकोट में जन्मे महात्मा श्री देवचंदर महाराज (1581-1655 ई.) ने रखी थी। बचपन से ही वह धार्मिक रुचियों के थे। सोलह वर्ष की आयु में वह सब कुछ त्याग कर ब्रह्मज्ञान की खोज में भुज (कच्छ) और यमना नगर गए। उन्होंने निज आनंद संप्रदाय चलाया। वह यमना नगर में वेद, वैदांतिक, भगवानतम और तंत्र शिक्षा प्रदान करते रहे। उनके शिष्य अपने आप को ‘सुंदर सथ’ या ‘प्राणामी’ कहलाने लग पड़े। यमना नगर के दीवान केशव ठाकुर (1618-1694 ई.) का पुत्र महाराज ठाकुर उनका शिष्य बनकर महात्मा प्राणनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महात्मा प्राणनाथ जी ने प्राणमी धर्म को यात्राएँ करके बहुत फैलाया है। उन्होंने भगवत गीता और कुरान शरीफ पर आधारित छह भाषायी ग्रंथ तैयार किए -कुलसम सरूप। जिसमें गुज़राती, सिंधी, अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी रचनायें संकलित की गई हैं। इसके अतिरिक्त मिहर सागर और तंत्र (तरतम या तंत्रम) सागर हमारे दो अन्य धार्मिक ग्रंथ हैं। मेरे काकाजू महाराज छत्रसाल महात्मा प्राणनाथ जी को 1683 ई. में पन्ना के निकट माऊ में मिले थे। मेरा चचेरा भाई देव करनजी, प्राणनाथ जी को रामनगर में बहुत समय पहले मिल चुका था। उन्होंने ही काकाजू को मुगलों के साथ जंग होने से पूर्व प्राणनाथ जी का आशीर्वाद लेने के लिए भेजा था। स्वामी प्राणनाथ जी ने काकाजू को सरोपा और एक शमशीर देकर आशीष देते हुए कहा था कि जा, तेरी विजय होगी और तुझे हीरों की खानें मिलेंगी। तू महान राजा बनेगा। काकाजू ने पन्ना पर विजय प्राप्त की और वहाँ की हीरों की खानों के बारे में तो आप जानते ही हो। इस प्रकार, काकाजू और हम सब प्राणामी बन गए हैं। हमारा धर्म सर्व सम्प्रदाय का संदेश देता है और कहता है कि भगवान एक है और हर प्राणी में बसता है। आशा करती हूँ कि आप मुझे ऐसा करने से रोकेंगे नहीं।... पर यदि आप कहेंगे तो मैं सबकुछ छोड़ दूँगी।“

सादे वस्त्रों में भी मस्तानी के भर यौवना होने के कारण उसका सौंदर्य शिखर पर होता है। बाजी राव उसके भय से कांपते होंठों की संुदरता को बस देखता रह जाता है और वह स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाता। वह दौड़कर मस्तानी को झपटकर लिपट जाता है और उसके थरथराते अधरों को चूसना प्रारंभ कर देता है।

मस्तानी को नीचे लिटाकर बाजी राव उसके चेहरे पर चुम्बनों की आरती करने लग जाता है। सुरूर में आई मस्तानी बाजी राव को बाहों में कसकर उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए सहलाने लग जाती है। बाजी राव का वेग और अधिक प्रचंड और खूंखार हो जाता है और अगले ही पल दोनों निर्वस्त्र होकर आपस में गुत्थमगुत्था होते हुए संभोग समाधि में एकमेक हो जाते हैं।

कुछ समय के बाद बाजी राव की छाती पर मस्तानी केश बिखेरे गहन सोचों में डूबी पड़ी होती है। चिमाजी अप्पा के साथ सामना होने के बाद वह बहुत डर गई होती है और उसको अपने भविष्य की चिंता सताने लग पड़ती है। इस पल तक बाजी राव के व्यवहार में कोई परिवर्तन न आने के कारण मस्तानी समझ जाती है कि चिमाजी अप्पा ने अभी तक उसके भूतकाल के विषय में बाजी राव को कोई भेद नहीं खोला होगा। लेकिन वह यह भी जानती है कि इस राज को अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता। उसको अंदेशा पैदा हो जाता है कि कभी न कभी तो बाजी राव को वास्तविकता का पता चल ही जाएगा कि वह निजाम शाह जहान खान की रखैल रह चुकी है। इससे पहले कि चिमाजी अप्पा, बाजी राव को कुछ बताये, वह खुद ही अपने ढंग से सबकुछ साफ़ और स्पष्ट शब्दों में बता देने का निर्णय कर लेती है।

बीती पूरी रात मस्तानी अनेक कहानियाँ बुनती रही थी। पर जब वह बताने लगती तो उसको अपनी घड़ी हुई कहानी की पकड़ ढीली प्रतीत होने लगती और वह खामोश रह जाती। फिर वह नई कहानी अपने जे़हन में बुनती और खुद ही उसको नकार देती। बस, इस उधेड़बुन में ही मस्तानी के कल चिमाजी अप्पा के जाने के बाद से दिन और रात कट रहे थे।

बात तो सीधी सी थी कि दिल्ली के बादशाह ने निजाम-उल-मुल्क और राजपूतों को कुचलने के लिए शाह जहाँ खान को भेजा था। बुंदेलखंड पर होने वाले आक्रमण को रोकने के लिए मस्तानी ने शाह जहाँ की रखैल बनना कुबूल कर लिया था। इससे पहले कुछ समय वह एक दो अन्य निजामों के पास भी रह चुकी थी।

बाजी राव मस्तानी के केशों में हाथ फेरता है, “क्या बात है मस्तानी, आज बहुत चुप चुप सी हो ?“

“कुछ नहीं। असल में मैं आपको कुछ बताना चाहती थी।“

“बता फिर।“

“समझ में नहीं आ रहा कि कैसे बताऊँ।“

“जैसे सारी दुनिया बताया करती है, अपने मुँह से बता।“

“बात दरअसल इस तरह है कि कुछ साल पहले मैं निजामों की नर्तकियों के पास नृत्य सीखने जाया करती थी। वैसे तो मेरे उस्ताद मस्तान जी ने मुझे बहुत बढि़या ढंग से सिखाया था, पर मैं ग़ज़ल गायन और मुजरा लूटना सीखना चाहती थी। शराब का प्याला रखकर जो नाचना सीख गया, समझो वह नृत्यकला में निपुण और उस्ताद बन गया। शराब का भरा जाम नर्तकी से नाचते समय छलकना या बिखरना नृत्य में गंभीर दोष माना जाता है। मैं बस इसी में परिपक्वता हासिल करने गई थी वहाँ। इसलिए मैं कुछ देर एक दो निजामों के दरबारों में रही और कभी फरमाइश करने पर अपने फन का मुज़ाहरा भी कर दिया करती थी। फिर आपको तो पता ही है कि दिल्ली के बादशाह ने शाह जहाँ खान को बुंदेलों को दबाने और निजाम-उल-मुल्क को खत्म करने के लिए भेजा था। एक जंगी झड़प के दौरान शाह जहाँ खान ने मुझे बंदी बना लिया था। वह मुझे अपनी बेगम बनाना चाहता था। पर मैं नहीं मानी। उसने मुझे अनेक लालच दिए। परंतु मैंने अपनी चतुराई से उससे इस पर विचार करने के लिए कुछ मोहलत मांग ली। इस मिले वक्त में मैं उसकी कैद में से भागने की तरकीबें लड़ाने लग पड़ी।“ इसके बाद की कहानी खत्म हो जाने के कारण मस्तानी चुप हो गई और किस्से का अगला भाग सोचने लग पड़ी।

बाजी राव उसकी राम कहानी बहुत ध्यान से सुन रहा होने के कारण अंजाम जानने के लिए उतावला हो उठता है, “फिर कैसे आज़ाद हुई तुम ?“

इस समय तक मस्तानी अपने दिमाग में किस्से की अगली कड़ी जोड़ चुकी होती है, “बस, फिर क्या था। शाह जहाँ की फौज पर आपके मराठों ने आक्रमण कर दिया और वह मारा गया। उसके सैनिकों और कर्मचारियों को बंदी बना लिया गया। बस, उसी भगदड़ का लाभ उठाकर मैं नर्तकियों के टोले से अलग होकर छिपती छिपाती किसी तरह बुंदेलखंड जा पहुँची।“

बाजी राव ने अपने मस्तक में घूमती शंका को बाहर निकाला, “पर मैंने तो सुना है कि शाह जहाँ खान बहुत ज़ालिम था। उसने तेरे पर अत्याचार या जबरदस्ती नहीं की ?“

“नहीं, बिल्कुल नहीं। अगर वह ज़ोर आजमाई या जबरदस्ती करता तो अपनी इज्ज़त को दाग लगने से पहले ही मैं अपनी अंगूठी का हीरा चाटकर मर जाती। आखिरकार मैं एक बुंदेलन हूँ। आत्म सम्मान हमारे लिए सबसे बड़ी चीज़ है। काकाजू ने जवान होते ही यह अँगूठी मुझे देकर कहा था कि यदि कभी मेरी सुंदरता, मेरे लिए श्राप बन जाए तो मैं अपनी अस्मत लुट जाने से पहले ही इस हीरे का प्रयोग कर लूँ। हमारे पन्ना की खान में से निकला हुआ यह विशेष हीरा है जो आप अंगूठी में जड़ा देख रहे हैं। इसे जीभ पर ज़रा-सा छुआते ही आदमी के प्राण पखेरू पलभर में उड़ जाते हैं।“ मस्तानी अपनी अंगूठी वाली तर्जनी का अगला पोर बाजी राव के होंठों पर फेरने लग जाती है। मस्तानी को यकीन हो जाता है कि बाजी राव ने उसकी सुनाई गाथा पर पूरा विश्वास कर लिया है।
बाजी राव झपट कर उसकी उंगली पकड़ लेता है, “मुझसे दूर रख इसे, कहीं मेरी जान भी न चली जाए।“

“हाय ! यह कैसी बातें करते हैं आप। ईश्वर मेरी आयु भी आपको दे दे।“ मस्तानी मुहब्बत में मस्त हो जाती है।

“बस, मेरी जान ! अब तू मराठों के पेशवा श्रीमंत बाजी राव बलाल बाला जी भट्ट की बायिको (पत्नी) बन गई है। अब कोई तेरे बारे में सपने में भी गलती से सोचने की हिमाकत नहीं करेगा। जानती है, जब मेरे बडील (पिता) की मौत हुई थी तो मैं तब केवल बीस वर्ष का था। छत्रपति को चिंता हो गई कि अगला पेशवा किसको नियुक्त किया जाए। मैंने छत्रपति के दरबार में सीना तानकर कहा था कि मैं यह उŸारदायित्व उठाने का प्रण करता हूँ और मुगलों को उठाकर हिमालय के पार फंेक दूँगा जहाँ से वे आए हैं। हिंदुस्तान हमारा है। मैं अपने भारतवर्ष की पवित्र धरती को गै़र जातियों और बाबरियों से स्वतंत्र करवाऊँगा। औरतबाज मुगल तो अफीमें खा खाकर पहले ही नकारा थे। मैंने कहा, मैं तनों को काटूँगा, फिर पŸो-टहनियाँ तो खुद ब खुद ही झड़ जाएँगे। मैंने शाहू जी को वचन दिया था कि केसरी मराठा परचम कृष्णा नदी से सिंधू दरिया तक और अटक के किले पर फहराकर दिखाऊँगा। दक्खिन का सारा सरमाया हमारा होगा और हम अपनी सरहदों को केन्द्रीय भारत से विस्तार देते हुए पूरे देश में फैला देंगे। शाहू जी महाराज मेरी दिलेरी देखकर प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने मुझे पेशवा बना दिया था। मैंने भी फिर बाधाओं को चुन चुनकर दूर कर दिया। 1723 ई. में मालवा, 1724 ई. में धार और औरंगाबाद, 1728 ई. में पालखेड़ी के मैदानों में शत्रुओं की अच्छी तरह हौसले पस्त कर दिए थे।“

“सिद्धियों से फिर आपका क्या वैर है ? वे भी आपके शत्रु बने हुए हैं ?“ मस्तानी अचानक अपना प्रश्न कर देती है।

“सिद्धी या जिन्हें शीदी भी कहा जाता है, इन हब्शी लोगों को अरबी और पुर्तगाली गुलाम बनाकर इस्तेमाल करने के लए भारत में लेकर आए थे। इसलिए इन्होंने इस्लाम या ईसाई धर्म अपना रखा है। 628 ई. में भारोच तट, गुजरात में आकर सिद्धी बसे थे। बाकी उसके बाद 712 ई. में अरबी लोगों के साथ आए। हिंदुस्तान पर चढ आए प्रथम बाहरी हमलावर मुहम्मद बिन कासिम (31 दिसम्बर 695 - 18 जुलाई 715) की फौज में ही हब्शियों की भारी संख्या थी। वे इन बंनतू बोली बोलने वालों को ‘ज़ीना’ कहा करते थे। हट्टे-कट्टे होने के कारण इन्हें कठिन और भारी मजूदरी वाले कामों में इस्तेमाल किया जाता था। फिर ये अपनी ईमानदारी के कारण अमीरों और रजवाड़ों से उच्च ओहदे प्राप्त करते चले गए और इन्होंने जंजीरा (जफ़राबाद का एक टापू), गुजरात में अपना राज स्थापित कर लिया। भारत की पहली महिला शासक रजि़या सुल्तान उर्फ़ जलालत-उद-दीन रजि़या (1205- 14 अक्तूबर 1240) की एक कमाल-उद-दीन याकूत नाम के हब्शी गुलाम के साथ काफ़ी निकटता थी। कुछ सिद्धी मराठों की फौज में भी भर्ती हो गए थे। अम्बर मलिक जैसे सिद्धियों से मराठों ने युद्ध विद्या भी सीखी थी। उसने खिरकी नाम का नगर बसाया था जिसको औरंगजेब ने अपने नाम पर बाद में औरंगाबाद बना दिया था। अट्ठारहवीं सदी में यह सिद्धी आसिफ़ जाह निजाम के साथ मिलने के बाद मराठों के विरुद्ध हो गए। दरअसल मराठों और सिद्धियों के मध्य स्थिति तब तनावपूर्ण होनी प्रारंभ हो गई थी जब सिद्धी फौजदार, सिद्धी सताल सत ने कोकण के परशुराम मंदिर का अपमान किया और हमारे धर्माध्यक्ष ब्रह्ममहिंदरा स्वामी को अपमानित किया। यह 1729 ई. की बात है। सवनौर के नवाब ने जंजीरा के सिद्धियों को एक हाथी नज़राने के तौर पर दिया था। जब वह हाथी ब्रह्ममहिंदरा के आश्रम के समीप से गुज़र रहा था तो मराठों के एक सरदार कानोजी अंगारे ने उसको कब्जे़ में ले लिया। इसके बाद स्वामी ब्रह्ममहिंदरा की साजि़श समझकर सिद्धी फौजदार ने स्वामी ब्रह्ममहिंदरा का निरादर किया और उसके परशुराम मंदिर को ध्वस्त भी किया। स्वामी ब्रह्ममहिंदरा को मराठे अपना धर्मगुरू मानकर उसका बहुत सत्कार करते थे। इस कारण मराठों और सिद्धियों के बीच झड़पें होनी प्रारंभ हो गईं। उससे थोड़ा अरसा बाद 4 जुलाई 1729 ई. को कानोजी अंगारे का देहांत हो गया और उसके स्थान पर उसका पुत्र सेखोजी अंगारे मराठा सरखेल बन गया। सिद्धी सत को हमारा इतना खौफ था कि उसने लड़े बिना ही हमारी अधीनता स्वीकार कर ली। आज देख, सब तरफ बाजी राव...बाजी राव हुई पड़ी है। यह जैतपुर वाली ताज़ा जंग तो मुझे लड़ते हुए तुमने अपनी आँखों से देखा है।“ बाजी राव पूरी शेखी में आया पड़ा होता है।

मस्तानी बाजी राव को कसकर अपनी बाहों में भींच लेती है, “हूँ ! तभी तो आपकी मर्दानगी पर यह मस्तानी मर मिटी है। हाय ! मरहटा, कमबख्त मारकर ही हटा...।“

बाजी राव मस्तानी का चेहरा अपने हाथों में लेकर कहता है, “यूँ तो कंजरी तू है बहुत सुंदर। नाचती और गाती भी कमाल का है। तलवारबाजी भी कर लेती है। सेज पर भी पटाखे फोड़ती है। दृढ़ता, चतुराई, बहादुरी, सूझबूझ, महत्वाकांक्षी, अल्हड़, अनुभवी और जवान है। वो क्या कहते हैं - अद्भुत बŸाीस लक्षणों वाली महासुंदरी है यार मस्तानी तू तो।“

“लो, जाने भी दो, गप्प मारना भी कोई आप से सीखे। मैं कहाँ से बŸाीस लक्षणी हो गई ? बŸाीस लक्षण तो किसी भी इन्सान में पूरे नहीं होते। मनुष्यों में तो केवल चार-पाँच लक्षण होते हैं। देवताओं में चैदह और शिव भगवान में अट्ठाईस थे। जानते भी हो कि बŸाीस लक्षण कौन से होते हैं ?“ मस्तानी पाज़ी हँसी हँसती है।

“ले, तुमने क्या मुझे क्षत्रिय समझ रखा है। पंडितों का बेटा हूँ मैं। ब्रह्मज्ञान रखने वाला ब्राह्मण। तुझे नहीं पता कि स्कंद पुराण के काशी खंड में नारी और पुरुषों पर बŸाीस लक्षण बताए हुए हैं। उनकी पहचान शारीरिक अंगों की बनावट से की जाती है। वो ईश्वर तेरा भला करे... ऐसा बताते हैं कि पाँच दीर्घ होने चाहिएँ जो कि नेत्र, जबाड़ा(मुख वाक्य), नाक, बगल और बाहें हैं। पाँच सूक्ष्म बढि़या माने जाते हैं जैसे चमड़ी, केश, उंगलियाँ, दाँत, अंगों की गांठें। सात लाल हों तो उŸाम होते हैं जैसे हथेली, पैर के तलुवे, आँखों के कोये, तालुआ, जीभ, होंठ और नाखून। छह ऊँचे हों तो अच्छे होते हैं - रीढ़ की हड्डी, पेट, पसली, कंधे, हाथ के ऊपरी हिस्से, मुख। तीन विस्तार वाले अधिक आकर्षक लगते हैं जैसे मस्तक, छाती, नितम्ब। तीन छोटे हों तो सुंदर माने जाते हैं जैसे गर्दन, जाँघ, गुप्त अंग। अन्तिम तीन गंभीर हों तो अच्छे होते हैं जैसे स्वर, नाभि, स्वभाव।

मस्तानी हैरान होकर पूछती है, “अच्छा जी, आपको लगता है मेरे में ये सब लक्षण हैं ?“

“नहीं होंगे तो तेरे में पैदा कर देंगे, सुंदरी। आसान नहीं है इन बŸाीस लक्षणों का अभ्यास और पालन। दरअसल ये बŸाीस लक्षण होते हैं - सुंदरता, स्वच्छता, लज्जा, चतुराई, विद्या, सेवा, दया, सत्य, प्रियवाणी, प्रसन्नता, नम्रता, निष्कपटता, एकता, धीरज, धर्मनिष्ठा, संयम, उदारता, गंभीरता, उद्यम, शूरवीरता, राग, काव्य, नृत्य, चित्रकला, औषधि उपचार, रसोई, सिलाई-कढ़ाई, घर की वस्तुओं को यथायोग प्रयोग करना और सजाना, खुद और दूसरों का शिंगार करना, बुजुर्गों का सम्मान, अतिथि सत्कार, पतिभक्ति और संतान पालन।“

मस्तानी लाड़ में आकर छेड़ती है, “वाह, मेरे ऋषि वेदव्यास, आपको तो पूरा ज्ञान है। आप मनुष्य हो कि रावण ?“

“रावण ही हूँ जो तुम्हें उठा लाया है।“

“आपकी सोने की लंका की ख़ैर नहीं फिर अब।“

“हाँ, मैं भी वही सोचता हूँ कि कहीं अपने हुस्न के सेक से हमारा पूरा पूणा जलाकर न रख दे। आओ प्रिय, अब कलेजे में मचती अग्नि को ठंडा करें। मैं तुम्हारे साथ दैहिक मिलन के लिए तड़प रहा हूँ।“ बाजी राव मस्तानी को दबोच कर चकौटियाँ काटते हुए कामक्रीड़ा में मगन हो जाता है।
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Re: मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास

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गृह प्रवेश

ज्योतिषियों द्वारा घोषित की गई शुभ घड़ी में बाजी राव अपने लश्कर सहित पूणे में प्रवेश होकर ससवाद अपने गृह स्थान में पहुँच जाता है। महल के प्रांगण में बाजी राव के घोड़े, पीछे हाथी पर आ रही मस्तानी की पालकी का उतारा होता है। बेहद कीमती हीरे, जवाहरात, गहने और बहुमूल्य रेशमी वस्त्र पहने जब मस्तानी पालकी में से बाहर निकलती है तो ऐसा लगता है मानो अँधेरे में किसी ने लाखों करोड़ों चहुंमुखी दीये जला दिए हों। एकबार तो सारे पूना के मराठा साँस रोककर मस्तानी के हुस्न को एकटक देखते रह जाते हैं।


बाजी राव घोड़े से उतरकर अपनी माता राधा बाई के चरण स्पर्श करता है। राधा बाई पूजा वाली थाली में से तिलक लगाकर बाजी राव का स्वागत करती है। फिर वह मस्तानी की ओर पग बढ़ाती है। मस्तानी भी अपनी सास राधा बाई के चरणों को हाथ लगाकर माथा टेकती है।

मस्तानी की सुंदरता देखकर एकबार तो राधा बाई भी पलकें झपकना भूल जाती है। वह मन ही मन सोचती है कि चलो, खूबसूरत और जवान है। मराठा चितपवन शाहूकार ब्राह्मणी न सही, बुंदेलन राजपूतनी ही सही। सबसे बड़ी बात कि खाली पड़े खजाने भर देगी। युद्धों में अधिक व्यय हो जाने के कारण कई सालों से चढ़े कर्जे उतर जाएँगे। राधा बाई बिना हिचकिचाहट के मस्तानी को स्वीकार कर लेती है और उसकी नज़र उतार कर मस्तानी का गृह प्रवेश करवाती है।

बाकी पारिवारिक सदस्यों की नज़रों में मस्तानी का सत्कार पैदा करने के लिए बाजी राव, महाराजा छत्रसाल की ओर से भेजे गए उपहार और दहेज के सामान की प्रदर्शनी लगा देता है। सबके लिए दहेज में कुछ न कुछ अवश्य होता है। स्त्रियों के लिए रेशम और पश्मीने के वस्त्र, लहगें, साडि़याँ। ऊन के शाॅल, तुलसी मालायें, चूडि़याँ, पुखराज, नीलम, माणक जड़े टिक्के, हार और अन्य बहुत से गहनें। पुरुषों के लिए नगों वाले हुक्के, पगडि़याँ, कलगियाँ, मालायें, कंबल, चोले, सोने के कड़े, खंजर, कृपाणें और निजी प्रयोग की अन्य बहुत सारी वस्तुएँ। नित्यप्रति घरेलू प्रयोग की अनेक वस्तुएँ, संद और औजार मस्तानी अपने साथ बुंदेलखंड से लेकर आती है।

दहेज के सामान के साथ ही बाजी राव का भाई चिमाजी अप्पा, भाभियाँ, बहनें आदि सब बहल जाते हैं। यदि कोई नाराज रहता है तो वह केवल बाजी राव की पत्नी काशी बाई और उसका पुत्र नाना साहिब ही होते हैं। बाजी राव समझ रहा होता है कि काशी बाई का रोष उचित है। वह अकेला काशी बाई को जाकर मिलता है, “काशी, मुझे नहीं पता कि यह ठीक है या गलत। पर जि़न्दगी में इन्सान को बहुत सारी बातों का निर्णय भाग्य पर छोड़ना पड़ता है। ऐसे ही यह भी कोई संजोगों का खेल था जो हमारा मस्तानी के साथ मेल हुआ है। वह इस परिवार में नई है और मराठा रीति-रस्मों से अनजान है। मेर अनुरोध है कि तुम उसको अपनी छोटी बहन समझकर प्रेम से रखो। तुम तो जानती ही हो, मैं एक हुक्मरान हूँ। हुक्मरानों को सियासी कारणों से एक से अधिक रिश्ते निभाने पड़ते हैं। बाबा के भी तो दो विवाह हुए थे। शाहू जी की चार पत्नियाँ हैं। छत्रपति शिवाजी ने साई बाई के अलावा सुमन बाई, सोयरा बाई, पुलता बाई, लक्ष्मी बाई, सकवार बाई, काशी बाई और गुणवंतना बाई आदि के साथ भी शादियाँ की थीं। आठ विवाह थे उनके। उनके पिता शाह जी के जीजा बाई, टुका बाई और दासी नरसा बाई आदि के साथ विवाह हुए थे। फिर भी तू मेरी हमजोली है और मैं तेरा गुनहगार हूँ। इसकी जो चाहे सज़ा तू मुझे दे लेना। पर मस्तानी को कभी माथे पर बल डालकर न देखना।“

काशी बाई कुछ नहीं बोलती, बस चुपचाप खड़ी सुनती रहती है। जब बाजी राव बाहर चला जाता है तो काशी सिरहाने में सिर देकर ज़ोर ज़ोर से रोने लग पड़ती है। काशी बाई की समझ में नहीं आता कि वह पति का आदेश मानकर खुशी मनाये अथवा अपने मन के कहने लगकर दुखी हो। एक गुबार जो सीने में उसने संभाल रखा होता है, वह किनारे तोड़ कर बाहर आ जाता है। काशी की आँखों में से आँसुओं की बाढ़ उमड़ पड़ती है। सारा बिस्तर काशी के आँसुओं के सैलाब से भीग जाता है।

बाजी राव को मस्तानी को लेकर जितने घरेलू क्लेश की आशा थी, वह नहीं होता। बल्कि सारे परिवार की ओर से मस्तानी को सहज ही स्वीकार कर लिया जाता है। मस्तानी अपने हंसमुख स्वभाव के कारण बहुत शीघ्र ही समस्त परिवार में घुलमिल जाती है।
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फैसला

बाजी राव और मस्तानी को यह विवाहित जीवन की खुशियाँ अधिक देर नसीब नहीं होतीं। बाजी राव के बेटे नाना साहिब की पूर्व में तय की गई शादी निकट आ जाती है।

विवाह की तैयारियों में समस्त परिवार का व्यवहार मस्तानी के साथ यकायक बदल जाता है। काशी बाई का व्यवहार तो पहले दिन से ही मस्तानी के प्रति ईष्र्यालू और झगड़ालू ही रहा होता है। काशी बाई अपने पुत्र नाना साहिब को भड़का कर बाजी राव के साथ लड़वा देती है।

नाना साहिब अपने पिता बाजी राव को घेरकर खड़ा हो जाता है, “मेरी शादी के रंग में भंग डालने के लिए यह कौन है जिसे उठा लाए हो ? आपको शर्म नहीं आई ? एय्यासियाँ करने के लिए यही समय मिला था ? आप मेरे पिता नहीं, शत्रु हो।“

“मुँह संभालकर बात कर नादान लड़के। यह न भूल, मैं केवल तेरा पिता ही नहीं, पेशवा भी हूँ। मस्तानी मेरी स्त्री है। मेरी उनतींस साल की आयु हो गई है। ऐसे तो मैं कभी बड़े बुजुर्ग लोगों से आज तक नहीं बोला, जैसे तू ज़बान चला रहा है। कल का बच्चा है तू। नौ दस साल का है और यह तेवर ? बड़ा होकर क्या रंग लगाएगा ?“ बाजी राव भी पूरे क्रोध में आ जाता है।

इस प्रकार पिता-पुत्र काफ़ी समय तक तू तू, मैं मैं करते लड़ते झगड़ते रहते हैं तो राधा बाई उनको शांत करने के लिए बीच में आ जाती है, “बाजी राव, तू ठंडे दिमाग से सोच... यह गंभीर मामला है। मस्तानी को यहाँ देखकर लोग तरह तरह के सवाल हमसे करेंगे। हम क्या जवाब देंगे ? किस किस का मुँह पकड़ेंगे ? भिहू बाई के पति अभाजी जोशी और बारामती वाले समधी क्या कहेंगे ? वंकटराव गोरपड़े और अनू बाई के ससुराल इशालकरन जी वालों का खानदान हमारे मुँह में हाथ देगा ? तेरे बाबा के भाई नारायण कृष्णा जी, रुद्रा जी विश्वनाथ, विट्ठल जी विश्वनाथ(सभी रिश्तेदारों में लगते चाचा-ताऊ) और सबसे अधिक डर हमें राजमाचीकर वंशियों (बाजी राव के पिता के दूसरे ससुराल वाले) का है। हम किस किस की ज़बान को पकड़ेंगे ? क्या कहेंगेे, हम सबको कि मस्तानी कौन है ?“

बाजी राव तर्क प्रस्तुत करता है, “इसमें बुराई ही क्या है ? कह देना, मस्तानी मेरी दूसरी पत्नी है। मेरे बाबा की भी तो दो पत्नियाँ थीं। महाराज शाहू जी की चार बेगमें हैं। छत्रपति शिवाजी ने आठ विवाह करवाये थे। शहंशाह अकबर ने छŸाीस विवाह करवाये और हरम में तीन सौ स्त्रियाँ रखी थीं। बादशाह शाहजहाँ के तीन निकाह हुए थे। आलमगीर औरंगजेब की पाँच बीवियाँ थीं। निज़ाम और नवाब कितने कितने विवाह करवाते हैं। एक से अधिक स्त्री रखना शासक के लिए गौरव की निशानी है। बहु विवाह रुतबे और शक्ति का संकेत होते हैं।“

“वे मुगल बादशाह थे और तू एक हिंदू पेशवा है। और फिर, मस्तानी तेरी रखैल है। क्या हमारे समाज के सामने तेरा उसके साथ विवाह हुआ है ? बाबा ने मराठी ब्राह्मण स्त्री के साथ शादी की थी। तू एक मुसलमानी, खत्राणी...राजपूतानी या जो भी यह है, जिसको तुम उठा लाए हो। हम चितपवनी उच्च कुल के ब्राह्मण हैं। इसको कैसे स्वीकार कर सकते हैं ?“ चिमाजी अप्पा भी अपनी टांग अड़ा देता है।

बाजी राव जि़रह करता है, “फिर बुंदेलखंड से आया दाज-दहेज़ देखकर तब क्यों आँखें बंद कर ली थीं ? आपको यह सब अब याद आ रहा है ?“

“बाजी राव, आप कोई दूध पीता बच्चा नहीं हो जो तुम्हें हर बात समझानी पड़े। मराठा कौम का मान हो आप और एक पेशवा भी। मौके की नज़ाकत को समझो और कुछ समय के लिए मस्तानी को उसके मायके में भेज दो। फिर शादी के बाद यह वापस आ जाएगी।“ चिमाजी अप्पा अपना सुझाव देता है।
“नहीं। ऐसा कतई नहीं होगा। मस्तानी वहीं रहेगी, जहाँ मैं रहूँगा।“ बाजी राव डट जाता है।

“तेरा बहुत समय तो युद्ध के मैदानों में बीतता है। कल रणभूमि में भी इसको साथ ही लेकर जाएगा ?“ राधा बाई खीझकर बोलती है।

“हाँ, ले जाऊँगा। कान खोलकर सुन लो... मैं मस्तानी के बारे में एक भी शब्द नहीं सुनना चाहता। ऊब गया हूँ, सफाइयाँ देते और समझाते हुए। मैं मस्तानी को लेकर कोथरूड़ (ज्ञवजीतनकए ादवूद ज्ञवजीतनक ठंह पद जीम मतं व िजीम च्मेीूंेए पे जीम ूमेजमतद ेनइनतइ व िजीम बपजल व िच्नदमए डंींतंेीजतं पद प्दकपंण् ैपजनंजमक तमसंजपअमसल दमंत जीम बमदजतम व िंद पदकनेजतपंसप्रमक बपजलण् ज्ञवजीतनक पे दवू वदम व िजीम नचउंतामज ंतमंे व िच्नदम) जा रहा हूँ। आपको शादी की रस्मों में मेरी ज़रूरत हुई तो बुला लेना। विवाह में मैं और मस्तानी शामिल होंगे और एकसाथ रहेंगे। नहीं तो नहीं। बस, यही मेरा अटल फैसला है।“

तैश में आकर बाजी राव ससवाद (ैंेूंक वे ं बपजल ंदक उनदपबपचंस बवनदबपस पद च्नदमए डंींतंेीजतंण् ैंेूंक पे ेपजनंजमक वद जीम इंदो व िज्ञंतीं तपअमत) छोड़कर मस्तानी को साथ लेकर कोथरूड वाडे की ओर चला जाता है। बाजी राव की अनुपस्थिति में शादी की कार्रवाई जारी रहती है। बाजी राव की माँ राधा बाई कुछ आवश्यक रस्मों में अकेले बाजी राव को शामिल होने के लिए मनाने चली जाती है, “बेटा बाजी राव, हमें जग में तमाशा न बना। घर चल और अपने बेटे के शगुन मना।“

“नहीं। मेरा कहा पत्थर की लकीर है। मैं अपना फैसला सुना चुका हूँ। मुझसे रोज रोज कुŸो सा मत भौंकवाओ। जहाँ मस्तानी नहीं जा सकती, वहाँ मैं भी नहीं जाऊँगा।“ बाजी राव आवेश में आ जाता है।

मस्तानी, माँ-बेटे का वार्तालाप ओट मंे खड़ी होकर सुन रही होती है। मस्तानी से प्रभावित तो बाजी राव पहले ही बहुत होता है, लेकिन इस समय मस्तानी को अपनी सूझ बूझ और लियाकत दिखाने का एक और अवसर मिल जाता है। वह पर्दे के पीछे से निकलकर बाहर आती है और राधा बाई के चरण स्पर्श करके बाजी राव को संबोधित होती है, “स्वामी। मुझ नाचीज़ को लेकर आपको घर में क्लेश नहीं डालना चाहिए। आपके परिवार वाले अपनी जगह पर सही हैं। मेरे एकदम आपके पुत्र के विवाह में प्रकट होने से आपके चरित्र पर अनेक प्रश्नचिह्न लग जाएँगे। आपकी अब तक की बनी हुई छवि बिगड़ जाएगी। मेरे विचार में आपको अकेले ही इस खुशी के अवसर में सम्मिलित होकर परिवार की खुशियों को साझा करना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपके परिवार विशेषकर आपका बेटा नाना साहिब और बहू द्वारा मुझे कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा। वह मुझे सदैव बखेड़े खड़े करने वाली कहकर धिक्कारा करेंगे। मेरी आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि आप ससवाद जाकर विवाह में शामिल हों और खुशियों का आनन्द उठायें। बहुत सारी रस्में ऐसी हैं जो आपके कर-कमलों से ही सम्पूर्ण होनी चाहिएँ। जाइये और अपने कर्तव्यों को पूरा करिये।“

“पर तुम्हें यहाँ अकेली छोड़कर मैं कैसे जा सकता हूँ ?“ बाजी राव दहाड़ता है।
मस्तानी बाजी राव की बांह पकड़ लेती है, “मैं कौन सा कहीं भाग चली हूँ ? मैं यहीं हूँ। आपके जाने से मुझे भी आपके परिवार के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने का अवसर मिल जाएगा। विशेषकर मुझे लेकर जो आपकी पत्नी काशी बाई के मन में घृणा और जलन है, वह कषैलापन भी मर जाएगा। माता श्री चलकर आए हैं। बुजु़र्गों का मान रखना हमारा धर्म और कर्तव्य है।“

राधा बाई बीच में बोल पड़ती है, “हाँ, मस्तानी ठीक कह रही है। मेरे सफ़ेद बालों की नहीं तो इसकी ही बात मान ले ? बाजी राव, भट्टों का स्वाभिमान मिट्टी में नष्ट करने का तुझे कोई हक नहीं है। कुछ दिनों की ही तो बात है। और फिर, अपनी इज्ज़त ढकी रह जाएगी। शीघ्र ही सब अतिति अपने अपने घरों को लौट जाएँगे। फिर जो चाहे कंजरियों को नचाते रहना।“

राधा बाई मस्तानी की ओर तिरछी नज़र से देखकर शांत हो जाती है। बाजी राव खामोश खड़ा मस्तानी की ओर देखता है। मस्तानी सिर हिलाकर बाजी राव को चले जाने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस प्रकार मस्तानी बाजी राव के व्यक्तित्व पर अपनी योग्यता का गहरा प्रभाव डाल जाती है। बाजी राव अपना निर्णय बदलकर अनमने-से मन से चला जाता है और अपने कर्तव्य निभाकर शीघ्र ही वापस मस्तानी के पास लौट आता है।
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