गद्दार देशभक्त complete

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Re: गद्दार देशभक्त

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अर्जुन अविश्वास से भरी अपनी सुर्ख आंखें उठाकर ठकराल को देखता हुआ बोला-----"त..........तुम ?"





"हां मैं!" ठकराल ने दृढ़तापूर्वक कहा------" कोई एतराज?"





नवाब भी हकबकाया हुआ ठकराल को देख रहा था ।



वह केवल रत्नाकर देशपांडे था जो ठकराल को देखकर जख्मी होने के बावजूद मुस्करा उठा था ।




“अ. . .आप विल्कुल सही वक्त पर आए हैं ठकराल साहब ।" वह होंठों पर जुबान फेरता हुआ बोला था------“देखिए इसने मेरी क्या हालत कर दी है । रहम कमबख्त के खाते में ही नहीं है ।"





" फिक्र मत कर बच्चा, सब ठीक हो जाएगा ।" ठकराल बोला , फिर शास्त्री से मुखातिब हुआ….....जय, उसे फौरन हस्पताल पहुंचाने का बंदोबस्त करो ।काफी काम का आदमी है ।"




शास्वी ने फौरन उसके आदेश का पालन किया यानी रत्नाकर देशपांडे को सहारा देकर बेसमेंट से बाहर ले गया ।


"ये सब क्या है ठकराल? " अर्जुन ने अपनी सुर्ख आंखें उठाकर ठकराल को देखा ।





"ठकराल! . . . .ठकराल !" ठकराल बोला.....…"'तू इस तरह बोलेगा मेरे लिए ! एक 'अदना-सा कमांडो देश के रक्षामंत्री से इस तरह बात करेगा ! माननीय नहीं कहेगा! ठकराल साहब नहीं कह सकता !"





"मैँ तेरी हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ हूँ इसलिए मेरे मुंह से तेरे लिए ठकराल साहब कभी नहीं निकल सकता ।"




"किस हकीकत से वाकिफ है?"
अर्जुन ने कुछ कहने के लिए मुह खोला ही था कि ठकराल कहता चला गया-------"चल । इस बारे में वाद में बात करेगे । फिलहाल मुद्दे पर आ और मुद्दे की बात ये है मेरे बच्चे कि तेरा सवाल भी जायज है और तेरा क्रोध भी । लेकिन यह भी सच्चाई है कि जो मैं कर रहा हूं उसके लिए मुझे तूने ही मज़बूर किया है ।"




"मैंने मज़बूर किया ?"



“मुझे ही नहीं, पूरे मुल्क को मजबूर किया है । न्यूक्लियर स्पेस वेपन मामूली हथियार नहीं है । वह एक निहायत ही दुर्लभ हथियार है, जो आज तक केवल अमरीका और रूस के पास है । जैसे भी हुआ, पर यह इस मुल्क का परम सौभाग्य है कि वह स्पेस वेपन आज हमारे मुल्क के हाथ लगा है । ऐसे में तुझे चाहिए था कि उसे सीधे ले जाकर देश के हबाले कर देता लेकिन तूने ऐसा नहीं किया । तूझे लाख समझाने के बावजूद ऐसा नहीं किया और तू उसका सौदा करने जा रहा है…महज पांच इंसानी जानों के बदले मे जिसके लिए लाखों इंसानी जानों को दांव पर लगाया जा सकता है, उसकी कीमत सिर्फ पल मामूली जानें । आखिर वया हो गया है तुझे मेरे लाल? क्या सचमुच तेरा दिमागी संतुलन बिगड़ गया है?"





"ओहो! तो ये बात है?"




"देखा कितनी जल्दी समझ गया । कितना समझदार है अपना हिंदुस्तानी! ऐसे ही इस पद पर थोडी बैठाया था तुझे!”





" वे पांच इंसानी जाने तेरे लिए मामूली हो सकती हैं ठकराल, मगर मेरे लिए नहीं ।"





" बिल्कुल नहीं । उनमें से एक तेरी महबूबा है । और महबूबा की जान कहां मामूली होती है! महबूबा की खातिर तो मैंने सुना है कि लोग पूरे के पूरे जहान कुर्बान कर देते हैं । रियासतें लुटा देते है ।"





"अरे जलील इंसाना मेरी महबूबा होने से पहले वह इस देश की सच्ची सिपाही है । इसीलिए अपनी जान और अपनी आबरू दांव पर लगाकर दुश्मन की धरती पर गई थी । क्या तेरे कुनबे में कभी किसी ने इस तरह अपनी जान की बाजी लगाई है?"

“मरना और मारना तो सिपाही का पेशा होता है, फिर यह हल्ला किसलिए! और फिर, सिपाही की कुर्बानी कहां बेकार जाती है, उसकी मौत के साथ ही उसके घरवालों को इतनी दौलत दे दी जाती है जो ऐसी तीन-तीन नौकरी करके भी नहीं कमा सकता । तेरी महबूबा के घर वालों को भी ढेर सारा रुपया दे दिया जाएगा । वक्त के साथ सारे गम मिट जाते हैं । तुझे भी कोई और मिल जाएगी । दुनिया हसीनों से भरी पडी है ।"




"तेरी शक्ल ही नहीं, नस्ल भी सुअर वाली है ठकराल । जिसे तू ढेर सारा रुपया देने की बात कर रहा है, उसके पास रुपयों का इतना ऊंचा पहाड़ खड़ा है कि जिसके नीचे तेरी सात पुश्ते दब जाएंगी ।"





ठकराल हड़बड़ाया ।




" ऐसा!" फिर वह आंखें फैलाकर बोला------"फिर भी उसने सीक्रेट कमांडो बनना कबूल किया, जिसकी तनख्वाह मुश्किल से पचास हजार होती है! थोड़े फड-वंड और मिल जाते होंगे ।"




"ऐसी बातें अक्ल के अंधों की समझ में नहीं जाती कुत्ते ।"



"तू तो यार गाली भी देने लगा मुझे । तेरी हिम्मत की वाकई दाद देनी पडेगी । कौन…सी चक्की का पिसा आटा खाता है?"




"सीधे-सीधे बोल हरामी, क्या चाहता है मुझसे?"



. "अरे! अभी तक तू यही नहीं समझा ?"



"मुह फाड़ ।"



" स्पेस वेपन की चाबी चाहता हू हुजूर, बो कंट्रोल किट ।"





" अर्जुन ने जलती नजरों से उसे देखा------------" और?"




"अंधे को भला दो आंखों के अलावा और चाहिए भी क्या! मैं बस वही लेने दिल्ली से यहां तक उड़ा चला आया हू।"




"तू उसे लेकर क्या करेगा?”




"अगर वह अचार होता तो रोटी से खा लेता । मगर ऐसा नहीं है । वह इस मुल्क के काम आने वाली चीज है तो जाहिर है कि उसे ले जाकर मुल्क के ही हवाले करूँगा ।"




"तो इस फैसले में गृहमंत्रालय की भी सहमति है?"




"लो कर तो बात । अरे मैं इस मुल्क का डिफेंस मिनिस्टर हू । ऐसा कोई काम क्या मैं अकेले अपनी मर्जी से कर सकता हूं?”




"तू झूठ बोल रहा है । गृहमंत्रालय ऐसा नहीं कर सकता ।"

"अजीब अहमक आदमी है भई तू। अगर चुपचाप यह सब कर रहा होता तो क्या इस नवाब के अडूडे पर मुझे इतनी सरलता से ऐट्री मिल जाती? इसके डमी आर्गेनाइजेशन में ज्यादातर सीक्रेट सेल के एजेंट हैं, जो होममिनिरट्री के अंडर में आता है-----मेरी डिफेंस मिनिरट्री के अंडर नहीं । उन्हें केवल गृहमंत्रालय ही न्यूट्रल कर सकता है ।"



"इसका मतलव तो यह हुआ कि उन बीस हजार करोड रुपयों को भी तू नहीं, तेरा हाईकमान हासिल करना चाहता था, जिसके लिए तूने भाड़े के मवालियों से हैकर्स के कत्ल कराए?"




"अच्छा । तो तुझें यह भी पता है?”





" बहुत पहले से पता है । और मेरा यकीन कर, अपने कमांडोज को छूडाने के बाद मैं सबसे पहले तेरे ही पास पहुचने वाला था । तभी तो मैं तूझें माननीय नहीं कह सकता । ठकराल साहब नहीं कह सकता । हरामी को मैं कोई सम्मान दे भी कैसे सकता हूं!”




“अब तूझसे क्या छुपाना मेरे बीर सिपाही, बो बहादुर मैं अकेला ही था । हाईकमान या सरकार का कोई दखल नहीं था ।"




"तू क्या सरकार में नहीं है?”



"हू । पर अभी तूने ही तो कहा कि मैं नस्ली सुअर हू । इसीलिए बीस हजार करोड के लालच को अपने दिमाग पर हावी होने से रोक नहीं पाया । लेकिन तू तो मेरा भी बाप निकला । वह रकम गोल करके राजा चौरसिया को मुम्बई से ऐसा गायब कर दिया कि बह मुझें कहीं दूढे न मिला । मेरे सारे प्यादे फेल हो गए ।"



"मगर . .




“बस ।” ठकराल हाथ उठाकर एकाएक सर्द स्वर में कहता चला गया'--" बहुत हो गया । मैं यहाँ तेरे सवालों के जवाब देने नहीं आया हू। स्रीघे--सीधे बता-------जो लेने आया हू वो दे रहा है या नहीं?”




“तेरा निजी खयाल क्या है? क्या ऐसा कर सकता हूं?"




"नहीं करेगा?"



"सवाल ही नहीं उठता ।"



"मारा जाएगा ।"



“इतनी कूव्वत तुझमे नहीं है, न ही तेरी हुकूमत मे है ।"



"में तुझे ट्रेलर दिखाता हूं ।"



अर्जुन ने सशंक भाव से उसे देखा ।


ठकराल ने अपने गनधारी आदमियों की तरफ़ देखा ।



"तड़ . .तड़ . . .तड़ . . . "




दुसरे ही पल सैयद, नियाज़, अदील, शफीक और अशरफ नवाब के गोलियों से छलनी जिस्म फर्श पर गिरकर विन जल की मछली की मानिन्द तड़पने लगे ।

ठकराल ने अपने गनधारी आदमियों की तरफ़ देखा ।
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Re: गद्दार देशभक्त

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"तड़ . .तड़ . . .तड़ . . . "





दुसरे ही पल सैयद, नियाज़, अदील, शफीक और अशरफ नवाब के गोलियों से छलनी जिस्म फर्श पर गिरकर विन जल की मछली की मानिन्द तड़पने लगे ।



अर्जुन के छक्के छुट गए ।



सूखे पत्ते की तरह कांप उठा बह ।



जो हुआ, पलक झपकते ही हो गया था ।


ठकराल ने बेरहमी से उन पांचो को मौत के घाट उतार दिया था ।




"हरामजादे!!! कुत्ते!!!!!! कमीने !!! अर्जुन एकाएक ठकराल पर फूट पड़ा-----"ये तूने क्या किया जलील इंसान?"




"जो भी किया, तुझे यह यकीन दिलाने के लिए किया कि न्यूक्लियर वैपन के लिए सरकार कितनी गम्भीर है और उसे हासिल करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है । मुझे पता है ये पांचों सीक्रेट सेल के कमांडो थे लेकिन तू नहीं जानता कि सीक्रेट सेल अब सरकार के गले की फांस वन चुका है । उस पर तेरा गरूर और हठधर्मिता जब-तब उस फांस को और पैनी करती रहती है ।"




"सरकार मुझे बर्खास्त क्यों नहीं कर देती?"




"वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकती । तेरे पास हमारे कई कोवर्ट ऑपरेशंस के इतने सीक्रेट मोजूद हैं, जो अगर तूने फाश कर दिए तो दुनिया को हम मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे ।"



"इसलिए सरकार ने सीक्रेट सेल के साथ-साथ मुझे भी खत्म करने का फैसला किया है?"




“सबकुछ इस तरह होगा कि किसी को भी कानोंकान खबर नहीं हो पाएगी । जैसे एक बार पहले धनंजय जेल में सुसाइड करके मरा था, और उसकी कहानी पर किसी को भी शक नहीं हुआ था, वैसी ही एक पुख्ता कहानी फिर तैयार कर ली जाएगी । मगर. . .




"मगर?"




“अभी तेरे पास बचने का एक रास्ता है ।"




"उसे भी उगल?"

“वही ।. . .कंट्रोल किट ।" ठकराल झटके से बोला------"उसे मेरे हवाले कर दे, और यकीन मान, मैं तेरी जान बख्या दूंगा । तुझे यहाँ से जीवित निकलने का गलियारा दे दूगा ।"




"सीक्रेट सेल के राज कैसे महफूज रहेंगे?"

"न्यूक्लियर स्पेस वैपन की कीमत पर थोडी-सी पेरेशानी हम उठा लेगे । मैं इस पूरी इमारत की तलाशी करवा चुका हूं । यहाँ किट नहीं है । कहाँ छूपाई है तुने? बचना चाहता है तो-बता ।"




" कभी नही।" अर्जुन ने दृढता से इंकार में गरदन हिलाई……"वह किट मैं कभी तेरे हबाले नहीं करूगा ।"




"धांय !"




गोली की आवाज गूंजी और एक दहकता शोला अर्जुन की जांघ में धंस गया । अर्जुन के हलक से पीड़ा भरी चीख निकली । बह बुरी तरह लड़खड़ाया और जांघ पकड़कर झूकता चला गया ।



" पता बोल ।" आपे से बाहर होकर ठकराल हिंसक मेड्रिये की तरह गुर्राया था'-""कहां छुपाई है किट?"




"आख थू !" अर्जुन ने नफरत से ठकराल पर थूक दिया ।



थूक ठकराल के चेहरे पर जाकर निरा ।



ठकराल का चेहरा क्रोध से सुर्ख हो गया ।



उसने अपने चेहरे से थूक पोंछ डाला ।


तभी एक गनघारी ने पीछे से अर्जुन के कूले पर वट की ठोकर जमाई । अर्जुन भरभराकर फर्श पर जा निरा । ठकराल ने आगे बढ़कर उसकी जांघ के जख्म पर अपने जूते का प्रहार किया ।

अर्जुन तड़पकर दोहरा हो गया ।



"तू बोलेगा हिंदुस्तानी । तू जरूर बोलेगा ।" ठकराल क्रूर लहजे में बोला-"मेरी गारंटी है, तू जरूर बोलेगा ।"



"क. . कभी नहीं ।"



"धड़ाक ।"



ठकराल ने पुन: उसके जख्म पर अपने जूते की ठोकर मारी ।



अर्जुन डकरा उठा ।



ठकराल का जूता पुन: हवा में उठा ।।।



" ठकराल साहब ।" तभी पीछे से वहुत ही उद्वेलित-सी आवाज़ उपरी-----"एक मिनट ।"

ठकराल ठिठक गया ।



उसने हवा में उठा पैर फर्श पर रखा, फिर आवाज की दिशा में घूमा !



वहां जयदेव शास्त्री खडा था ।



उसका चेहरा स्तेट की तरह सपाट नजर जा रहा था ।



"क्या है?" ठकराल उखड्री सांसो के बीच बोला-----“तू यहां वयो आया है? तुझे तो मैंने देशपांडे का इलाज कराने के लिए कहा था!"




प्रत्युत्तर में शास्त्री के पीछे, उसकी बगल से झांकती एक एके सैंतालीस की नाल नजर आई ।




“ख. . खतरा ।" यह शब्द तेजी से ठकराल के दिमाग में गूंजा । वह हलक फाड़कर चीखा-" रोको उसे । बहां कोई हैं?”




उसके आदमियों की गने बिजली की फुर्ती से जयदेव की तरफ घूमी लेकिन उन्हें वहां जयदेव के अलावा कोई नजर न आया ।




तभी एकाएक जयदेव मुंह के बल फर्श पर गिरा और फिर जहां का तहां नि१चेष्ट पड़ा रह गया ।




उसकी गोलियों से छलनी पीठ नजर आई । और फिर नजर आया-उसके पीछे खड़ा कल्याण होलकर । इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, होलकर के हाथ में दवे रिवॉल्वर ने आग उगलनी शुरू कर दी ।



"धाय . . . .धांय . . धांय . . . "




उसकी चलाई सारी गोलियों ने गोलियां चलाने को तत्पर गनधारियों को खून से नहला दिया ।




अगले पल, खाली ड्रमों के ढेर को गिराकर प्रताप, शेखरन, भला और गिरीश प्रकट हुए । उनके हाथों में भी रिवॉल्वर थे ।



तहखाने में जैसे कयामत आ गई थी ।


ठकराल के सारे के सारे आदमी लाशों में तब्दील हो गए ।




जबकि ठकराल को खरोंच तक नहीं आई थी ।
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Re: गद्दार देशभक्त

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वह अपनी जगह पर खड़ा थर-यर कांप रहा था और अपने दर्जन भर से ज्यादा आदमियों की खून से सराबोर लाशों को आंखें फाड़-फाड़कर देख रहा था । चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे यकीन न कर पा रहा हो कि बह जो देख रहा था, बो सच था ।


बाजी एकदम से पलट गई थी ।



उस उलट-फेर ने अर्जुन को भी स्तब्ध कर दिया था ।



वह अपनी जांघ की पीड़ा भूल गया था ।


होलकर लपककर उसके करीब पहुंचा । तव उसने होलकर को पहचाना और उसके होठों से निश्वास निकल गई । ।




" अर्जुन...मेरे भाई ।" होलकर तड़पकर बोला------तुम्हरी यह क्या हालत कर दी इस शैतान ने ।"



"म........मुझे सहारा देकर उठाओ होलकर ।” अर्जुन ने उसकी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया ।





" म......मै तुम्हें अस्पताल लेकर चलता हूं।” होलकर उसे उठाकर उसके पैरों पर खडा करता हुआ बोला ।




“शुक्रिया दोस्त ।" अर्जुन अपना वैलेस बनाने की कोशिश मे लड़खड़ा गया था-“लेकिन अभी मुझें अस्पताल नहीं जाना है !"




'"त......तुम्हें गोली लगी है ।"




"पैर में लगी है मूझे कुछ नही होगा।"





उन्हें बातों में उलझा देख ठकराल ने एक गन की तरफ सरकने की कोशिश की ।





प्रताप ने उसे गर्दन से पकड़कर थाम लिया और खींचकर वापस उसी जगह ढकेल दिया, जहां पहले पड़ा था ।





“त...तुम यहां कैसे पहुचे ?" अर्जुन ने होलकर से पूछा !!!




"खुद नहीं पहुंचा, भेजा गया हूं।”



"किसने भेजा?"



"बलवंत राव साहब ने ।”




“लेकिन…




“मे तुम्हारी दुविधा समझ रहा हूं अर्जुन ।” होलकर उसका मंतव्य भांपकर बोला…'डिटेल में बताने का वक्त नहीं है । फिलहाल बस इतना समझ लो कि इस मुल्क की सियासत तुम्हारी दूश्मन हो सकती है, लेकिन यहां की अवाम और इंटेलीजेंस की नजरों में तुम हीरो हो और वह तुम्हें जीतते देखना चाहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत क्यों न चूकानी पड़े । अगर बलवंत साहब की संवैधानिक सीमाएं न होती तो मेरी जगह तुम्हें बचाने और खबरदार करने खूद आते !!!

वैसे मुझे इस बात का सख्त अफसोस है कि मुझे यहां जाने में थोड़ी देर हो गई, व. . .वरना..... . .




उसने अफ़सोस भरी निगाह नवाब, सैयद, नियाज़, अदील और शफीक की लाशो पर डाली ।




फिर बोला----" यह जांबाज मारे नहीं जाते ।"




"सुना तूने!" ठकराल की ओर पलटकर बोता । जो ऊपर से शांत था लेकिन उसकी आंखो से शोले निकल रहे थे ।



"स ॰ ॰ .सुना ।"



"अब क्या कहता है?”



"अ...अभी तो तू केवल सस्पेंड हुआ था कमीने ।" ठकराल अर्जुन की जगह होलकर की तरफ़ पलटकर अपने दांत पीसता हुआ बोला…“जो केवल एक ड्रामा था । वहुत जल्द तू बहाल हो जाता । लेकिन अव तू अपनी नौकरी से नहीं, जिदगी से खलास होने वाला है । त. . .तुझे और उस बलवंत को यह हिमाकत वहुत महंगी पडेगी । म. . .मैं इस मुत्क का डिकेंस मिनिस्टर हू।”



"अब नहीं रहेगा ।" अर्जुन दृढ़तापूर्वक बोला ।



"क . . .क्या?"




"न डिफेंस, न मिनिस्टर ।"



"त. . .तू मुझे नहीं मार सकता अ. . .अर्जुन । मैं. . .



" बैसे तो अगर मैं तेरी कंपलेट पीएम साहब से कर दूं तो तू सारी जिन्दगी जेल में चक्की पीसता रहेगा लेकिन मुझे ये मंजूर नहीं । तेरे जैसे लोगों की मेरी डिक्शनरी में एक ही सजा है ।" कहने के साथ अर्जुन ने होलकर के रिवाल्वर से ठकराल के दिल में गोली उतार दी ।

होलकर ने सवालिया नजरों से अर्जुन को देखा------"अब ?"




"फौरन यहां से निकलना होगा?" अर्जुन बोला ।



"जाना कहां है?"



“जिस टीम के साथ मैंने अपने मिशन को अंजाम दिया था, वह खत्म हो चुकी है । नई टीम तैयार करने में वक्त लगेगा । फिलहाल मैं बिल्कुल अकेला हू और जख्मी हालत में हू ।"




"मेरे रहते अकेले नहीं हो सकते अर्जुन और उपर वाले की दया से मेरी टीम भी महफूज है । अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा हो तो यह बताओ कि हमे करना क्या है?"



"शर्मिंदा मत करो दोस्त । तुमने मेरी जान बचाई है और वैसे भी तुम मेरे आजमाए हुए हो ।"



“तुमने मुझें कब आजमाया ?"




"भूल गए! मिशन मुस्तफा में तुम सब मेरे साथ थे और पोत में सफर के दोरान मैंने जानबूझकर तुम्हारे सामने वह भड़काऊ बातें
कही धी , जो केवल मुस्तफा ही कह सकता था । तब मैंने तुम्हारे अंदर के द्वंद और तुम्हारी छटपटाहट को करीब से देखा था । अपनी नौकरी और जान का जोखिम लेकर मुस्तफा को बम से उड़ाने का इरादा कोई सच्चा देशभक्त ही वना सकता है ।"





"यह तो मैं भूल ही गया था कि तुम उस वक्त मुस्तफा थे!"




“सोकेट सेल के लिए मुझे ऐसे ही जांबाजो की ज़रूरत है । मैंने उसी दिन फैसला कर लिया था कि अब तुम आईबी के लिए नहीं सीक्रेट सेल के लिए काम करोगे ।"




" यह मेरा सौभाग्य होगा । लेकिन सरकार सीक्रेट सेल को खत्म करना चाहती है । ठकराल की जुबानी तुमने खुद सुना ।"




"मेरे रहते सीक्रेट सेल कभी खत्म नहीं हो सकता । आज हमारे सिसकते मुल्क को इसकी जरूरत है ।"




"तुम इसे कैसे बचा सकते हो? अब तुम बागी हो चुके हो । तुम पर रक्षामंत्री के कत्ल का मुकदमा चलेगा । यहाँ बाकी जो लोग मरे , उनके लिए भी तुम्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा ।"
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Re: गद्दार देशभक्त

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" इन में अभी एक इल्जाम का इजाफा और होगा?"



"वह क्या?"



"मालूम हो जाएगा । फिलहाल ये बताओ कि मुम्बई से प्लेन द्वारा दिल्ली पहुचने से कितना वक्त लगता हैं?”




" कैसा सवाल है ये! क्या तुम नहीं जानते----"दो घंटे !"




"गुड !! तुम इतना करो कि दो घंटे तक डिफेंस मिनिस्टर की मौत की खबर आम न हो पाए ।"



“नहीं होंगीं !"

" कुछ देर पहले मैंने खुद बंगाल जाने का प्रोग्राम वनाया था लेकिन अब उसमें तब्दीली करनी होगी ।"




"मैं समझा नहीं ।"




"अपनी टीम के साथ तुम वंगाल जाओगे ।"



"वजह?"



अर्जुन ने वताया कि पाकिस्तानियों से कहां क्या डील करनी है ।



होलकर ने कहा…“यह तो बहुत बड़ी जिम्मेदारी है ।"




"मिशन मुस्तफा से बडी नहीं है । मुझे पूरा यकीन है तुम इस जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाह कर सकोगे ।"



"कंट्रोल किट?"



"मिल जाएगी ।"



“क्या तुम सचमुच स्पेस वेपन को नष्ट करना चाहते हो !."




“यकीनन । लेकिन...




“लेकिन ?"



"उससे पहले उसके इस्तेमाल की धमकी से............याद रहे, सिर्फ धमकी से हमें अपने पांचों साथियों को पाकिस्तानियों के चंगुल से
निकलना है । उसका इस्तेमाल नहीं करना है और मैं अच्छी तरह जानता हूं कि इस्तेमाल की नौबत आएगी भी नहीं ।"




"उसके बाद?"





"उसे सचमुच नष्ट कर देना है । स्पेस बैपन एक निहायत ही विनाशकारी हथियार है । यह चीज सभ्य समाज में रहने लायक है ही नहीं । इस वास्तकिता को इसे ईजाद करने वालों ने ईजाद करने के बाद मे महसूस किया और तब उन्होंने स्वयं ही लगभग सारे स्पेस वेपन खुद ही नष्ट कर दिए थे । वहुत कम लोग जानते हैं कि यह आखिरी स्पेस वैपन है । हमेँ इसके बारे में देश-विदेश और दोस्त दुश्मन की भावना से ऊपर उठकर सोचना होगा । मानवता के लिए सोचना होगा और मानव जाति के भले के लिए इसका नष्ट होना बेहद जरूरी है । समझ रहे हो ना”




"अच्छी तरह ।"




“तो फिर जाओ और जो काम तुम्हें सौंपा गया है, उसमे कामयाब होकर वापस लोटो ।"



"तुमं !"



"अभी असती दुश्मन जिंदा है ।" अर्जुन की आंखों में जैसे सर्प की जीभ लपलपाई---------------उसे उसके अंजाम तक पहुंचाना जरूरी है !!"



"सबसे पहले तुम्हें अस्पताल जाना चाहिए ।"




"उसके लिए टाइम कहां है दोस्त ?"

होम मिनिस्टर बादल नारंग अपने आँफिस में अकेला था और काफी व्याकुल भाव से कालीन पर चहलकदमी कर रहा था ।



इंटस्काम बजा । उसने झपटने वाले अंदाज में रिसीवर उठाया और व्यग्र भाव से बोला-"हैलो ।”





"जयदेव शास्त्री आए हैं सर ।" दूसरी तरफ़ से उसकी सेकेट्री की आवाज आई------"आपसे मिलना चाहते हैं?"




"भेजो ।" नारंग उतावलेपन से बोला"--------------"फौरन भेजो उसे ।"




" यस सर ।"




नारंग अपनी कुर्सी पर जा बैठा ।




जयदेव शास्त्री ने अंदर कदम रखा । अगर नारंग उस वत्त जरूरत से ज्यादा व्याकुल और अशांत न होता तो जयदेव की चाल में मौजूद मामूली-सी लड़खड़ाहट को जरूर महसूस कर लिया होता ।



जयदेव ने उसका अभिवादन किया ।



"अरे शास्त्री ।" अभिवादन का जवाब देने की जगह नारंग उस पर चढ़ दौड़ा-----------"कहां चले गए थे तुम सबके सब? किसी एक के भी मोबाइल पर जवाब नहीं मिल रहा । मिशन का क्या हुआ?"




"आपने एक ही सांस में ढेर सारे सवाल कर डाले होम मिनिस्टर साहब, मै भी सारे सवालों के जवाब एक साथ ही दूंगा । बैठ जाऊं?"





“ओह यस । सिट डाउन ।" जयदेव एक विजिटर चेयर पर बैठ गया ।



फिर बगैर किसी भूमिका के अर्जुन ने सिर से जयदेव शास्त्री की हेयर स्टाइल वाली 'विग' उतारकर नारंग के सामने मेज पर रख दी और अपने चेहरे से जयदेव का फेस मास्क अलग कर लिया । नारंग कुर्सी से यूं उछला जैसे बिच्छू ने डंक मारा हो ।

“अ.......अ. . .अर्जुन !" होंठों से चीख निकल गई थी------"त........ तुम ?"






"मुझे जिंदा देखकर चक्कर आ गया न मिनिस्टर साहब?" नारंग का हाथ मेज पर मोजूद एक खास बटन की तरफ़ बढ़ा ।




उसे पुश करने से साउंड प्रूफ आँफिस के बाहर खतरे का अलार्म बजता था मगर इससे पहले कि नारंग उस बटन का प्रयोग कर सके, अर्जुन ने जेब से एक चाकू निकालकर मेज पर गाड़ दिया ।



नारंग का हाथ फ्रीज ।




"हाथ पीछे खींच लो ।" अर्जुन ने आदेश दिया ।




"द. . .देखो अर्जुन... ।" हाथ खींचने के साथ नारंग ने सफाई देनी चाही, मगर अर्जुन बीच में ही उसकी बात काटता हुआ, उपर से शांत पर अंदर से धधकते ज्वालामुखी के अंदाज़ में बोला-“आपको याद है न नारंग साहब कि सीक्रेट सेल का पुनर्गठन क्यों किया गया था? इसीलिए न कि निरंजननाथ, ओमकार, प्रवल चोपडा और गुलशन राय जैसी जिन शख्तीयतों के आगे हमारा कानून बेबस है, उसे उनके अंजाम तक पहूचाया जा सके और इस देश के दुश्मनों को ऑपरेशन औरंगजेब जैसे किसी
हाहाकारी मिशन को अंजाम देने से रोका जा सके । आपको याद न! "





""ह. . .हां । याद है । मगर. . ."



"और मैंने वेसा किया भी ।” अर्जुन ने पुन: उसे बोलने का मौका दिए बगैर कहा-----" चाहे उसके लिए मुझे मेरे पैदा करने वाले बाप दिनेश राणावत की जान लेनी पड़ी हो या अपनी मंगेतर की जान की बाजी लगानी पडी हो । कितना नाज था मुझें कल तक मुल्क के निजाम पर । क्या कुछ नहीं किया मैंने इसके लिए ! मगर में इस मुल्क ने मुझे क्या दिया, मेरे शूटआउट का ओंर्डर, सीक्रेट सेल को भंग करने का आदेश?”





"न. . .नही । दरअसल वह. . .




"वो भी एक ऐसी चीज के लिए, जो आज देश के पांच सीक्रेट कमांडोज की जान बचा सकती है और जिसे मैंने खुद अपनी स्ट्रेथ से हासिल किया । उसके लिए मैंने बाईस हजार करोड़ रुपए चुकाए,,,,,, मगर अपने मुल्क की एक पाई भी उससे जाया नहीं होने दी । जबकि मैं चाहता तो इस मुल्क को वह पूरा बाईस हजार करोड़ देने के लिए मजबूर कर सकता था । आप जानते हैं कि मैंने ऐसा नहीं किया । फिर भी आपने सीक्रेट सेल को भंग कर दिया और मेरे शूटआउट का आंर्डर जारी कर दिया । आपने ऐसा क्यों किया सर? क्या अपने मुत्क के लिए मर मिटने का यही पुरस्कार होता है?"
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Re: गद्दार देशभक्त

Post by 007 »

" तुम निरंकुश हो गए थे अर्जुन । गद्दार हो गए थे तुम ।" नारंग वहुत हौसला जूटाकर बोल सका……"तुम हाई कमान को बताए बगैर खुद फैसले लेने लगे थे । स्पेस वेपन भी एक ऐसा ही फैसला था । उसके बारे में तुमने हमें बताना जरूरी नहीं समझा ।"




"हमे से क्या समझू मैं?"



"म .......मतलब?"




"क्या पीएम भी इस 'हमेँ' में शामिल हैं ?"



"व. . .वे क्यों शामिल होंगे । वे तो . . ."




"तो इसका मतलब, यह सारा खेल आपने अकेले खेला ।" वह एक--एक शब्द को चबाता कहता चला गया----"ज्यादा से ज्यादा ठकराल के साथ मिलकर खेला । आपसे उपर का कोई व्यक्ति इससे शामिल नहीं था । मतलब आप ही हाईकमान वन बैठे?"



"ह. . .हां ।"




" तो मैं ये क्यों न सोचू कि आप दोनों अर्थात् आप और ठकराल जो बार-बार यह कह रहे कि आप लोग मुल्क को मजबूत बनाने के लिए स्पेस वैपन को हासिल करना चाहते हैं एक बहाना है, वहुत बडी आड़ है । हकीकत ये है कि आप उस हथियार को सरकार या देश के लिए नहीं, अपने लिए हासिल करना चाहते हैं । अपके दिमागों में उसे बेचकर बाईस हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा रुपए कमाने के मंसूबे हैं । इसलिए मेरे शूटआउट का ओंर्डर दिया गया । इसलिए सीक्रेट सेल को भंग करने का हुक्म जारी हुआ । पीएम साहब को यह बताया जाएगा ये सब इसलिए करना पडा क्योंकि मैं बागी हो गया था । किसी की सुननी बंद कर दी थी मैंने ।"

नारंग के चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए जैसे अर्जुन के शब्दों ने उसे नंगा करके खड़ा कर दिया हो । हकलाता हुआ बोला--------------"ए.................ऐसी तो कोई बात नहीं है । तुम हम पर इल्जाम लगा रहे हो !"




"'तो ठीक है । मैं अभी पीएम साहब की हॉट लाइन पर फोन लगाता हूं और तुम्हारे सामने पूछता हूं कि उनके दो वरिष्ठ मंत्री जो कुछ कर रहे हैं, उसके बारे में उन्हें कुछ पता है या नहीं !"




"त. . . . .तुम ऐसा नहीं कर सकते ।"





"क्यों नहीं कर सकता?" अर्जुन ने व्यंग किया------" क्या आपको नहीं मालूम कि मैं जब चाहूं उनसे बात कर सकता हूं !”





" म........मूझे मालूम है । तुम जरूर कर सकते हो ।" नारंग की हालत खराब हो गई बी----" ल......लेकिन बात को समझने की कोशिश करों धनंजय, इससे बर्बादी के अलावा कुछ नहीं होगा जबकि ये स्पेस वेपन हमें. . .हम तीनों को मालामाल कर सकता है ।"




" उतर आए न अपनी औकात पर?" अर्जुन के हलक से जहर निकला-----" चल दिए हिंदुस्तानी को भी अपनी पार्टी में मिलाने !"




नारंग को काटो तो खून नहीं ।



"मुझे गद्दार कहने वाले कुत्ते! गद्दार तो तुम हो । गद्दारी तो तुम कर रहे हो इस देश से । अगर पीएम साहब से शिकायत करूंगा तो वे फौरन तुम्हें मंत्री पद से हटा देते और मुमकिन है कि आखिरी सांस तक के लिए जेल में डाल दिए जाओ नहीं------"मैं ऐसा नहीं करूंगा । मैं ऐसा इसलिए नहीं करूंगा क्योंकि मेरी नजर में तुम जैसे गद्दारों के लिए ये सजा कोई सजा नहीं है ।"

नारंग के मुंह से अब भी बोल न फूट सका ।




" यह इस मुल्क का न जाने कैसा दुर्भाग्य है कि इसे कभी गैंरों ने उतना नुकसान नहीं पहुंचाया, जितना अपनों ने पहुँचाया है ।" अर्जुन कहता चला गया------"इसे जब भी लूटा, अपनों ने ही लूटा , जब भी उजाड़ा, अपनों ने ही उजाड़ा । और अभी पता नहीं कितने दशकों तक इसके दुर्भाग्य की यह दास्तान यूं ही दोहराई जाती रहेगी । वतन से गद्दारी करने वाले को देशद्रोही कहते है । आपको मालूम है न मिनिस्टर साहब?"




"ह . . .हां ।"




"इसका मतलब आप कह कर रहे हैं कि आप देशद्रोही है । और हिंदुस्तानी के कानून की किताब में हर देशद्रोही की केवल एक है सजा --सजाए मौत ।"




"न..........नही ।"




" आई एम सॉरी! मैं बहुत मजबूर हूं । अगर मैंने आपको सजा नहीं है तो इस मुल्क में हिंदुस्तानी पैदा होने बंद हो जाएंगे । कोई भी अर्जुन या धनंजय हिंदुस्तानी बनने से पहले हजार बार सोचेगा । मगर फिक्र न करें, आप वहां अकेले नहीं रहेंगे, आपका जोड्रीदार हंसराज ठकराल वहां पहले ही पहुंच चूका है ।"




" त . .तुमने ठकराल को मार डाला?"




"अब आपकी बारी है ।" दांत भीचकर कहने के साथ अर्जुन ने रिवॉल्वर निकालकर नारंग पर तान दिया ।




नारंग बदहवास-सा हो गया । उसके चेहरे तथा माथे पर एसी चलता होने के बावजूद पसीने की बूंदे उभर आई । उसने किसी मदद की उम्मीद में चारों तरफ़ निगाह दौडाई।। मगर वहां मदद कहां !!!



" म.......मुझे मारकर तुम यहाँ से जिंदा वापस नहीं जा पाओगे ।" वह मुश्किल से थूक गटककर बोला ।




“तू बड़ा नादान है नारंग पहली बात…उसे मौत के खौफ़ से डराने की कोशिश कर रहा है जिससे मौत खुद खौफ़ खाती है । दूसरी वात-----मै यहां आया ही कब था! यहाँ तो जयदेव शास्त्री आया था, जिसे तूने खुद अंदर बुलाया था और वह विना किसी रोक-टोक के बाहर निकल जाएगा ।"




"मगर . . .




अर्जुन ने बस एक बार ट्रेगर दबाया ।



गोली नारंग का भेजा उड़ा गई ।

लहूलुहान शरीर कुर्सी सहित पीछे जा गिरा ।


अर्जुन ने नफरत से उसकी लाश पर थूक दिया । उसके हाव--भावो में ज़रा भी उतावलापन नहीं था ।




रिवॉल्वर की नाल से उठते धुएं की लकीर में फूक मारी । उसे वापस जेब के हवाले किया । जयदेव शारत्री का मास्क अपने चेहरे पर पहन लिया और बालों की विग सिर पर पहले की तरह लगा ली । जैसे आया था, वेसे ही बाहर निकल गया ।





उस वक्त वह वापस एयरपोर्ट की तरफ जा रहा था जब फोन बजा । उसने कॉल रिसीव की । कहा-“बधाई ।"





" किस बात की?” दूसरी तरफ से हडबडाकर पूछा गया !!!






"डील निर्विघ्न निपटने की ।"





"तुम्हें कैसे पता कि डील निर्विघ्न निपट गई है?”




"यह तो मुझे तभी पता था जब तुम्हें यह जिम्मेदारी सौपी थी । लीडर में आदमी को परखने का गुण जरूर होना चाहिए ।"




"नीलिमा से बात करना चाहोगे?”




"अब बात करने से बात नहीं बनेगी । अब तो चूमना चाहूगा मैँ उसे और यह तब होगा जब तुम उसे लेकर मुम्बई पहुंचोगे क्योंकि मैं भी आखिरी काम निपटा चुका हूं और वहीं पहुच रहा हूं।”
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