गद्दार देशभक्त complete

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kunal
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Re: गद्दार देशभक्त

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आर्या के हाथ में फौरन उसका सर्विस रिवॉत्वर चमक उठा। उसने रिवॉल्वर अटैच्ड दरवाजे की तरफ़ तान दिया था ।



तभी गिरीश और भल्ला ने वहां कदम रखा । फिर उन दोनों के पीछे जो शख्स नजर आया, उसे देखते ही आर्या यू चौंका जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो ।



वह शख्स उसका एसीपी था ।



आर्या का आला अफसर एसीपी अभिजीत नेगी ।



वह अपनी सख्ती, ईमानदारी और निष्ठा के लिए सारे महकमे में जाना-जाता था और उस वक्त उसकी वहां मौजूदगी कई सवाल खड़े कर रही थी । आर्या जहा-का-जहाँ ठिठककर खडा हो गया ।



"स......सर ।" अक्षर स्वत: जुबान से फिसले-----“अ...आप यहां?"



नेगी के इशारे पर गिरीश आगे बढ़ा और आर्या का सर्विस रिवॉल्वर अपने कब्जे में ले लिया ।



"य. . .यह सब क्या है सर ।" मुजरिमों जैसी उस कार्यवाही ने आर्या की सिट्टी पिट्टीं गुम कर दी । वह हकलाता हुआ सा बोला------" अ.........आपकी मौजूदगी में मेरे साथ यह कैसा सलूक किया जा रहा है? य. . .ये तीनों कौन हैं और वो फोन कॉल. . .



आर्या ने फौरन अपने होंठ भींच लिए ।



" कौन-सी फोन काल आर्या?" नेगी के होंठों पर 'मेद भरी मुस्कान उभरी थी--------" बताऔ मुझे । चुप क्यों हो गए?"


लयों कसमसाया ।


होंठों से बोल न फूट सका ।

वह गलती कर चुका था ।



"कितनी महत्त्वपूर्ण फोन कॉल थी वह?” प्रताप आगे बढ़कर उसके सामने पहुंचता हुआ बोला-------" जो उन दहशतगर्दों से सम्बंध रखती थी, जो निरंजन को खत्म करना चाहते हैं । ऐसी सन्देदनशील खबर के बारे में तो तुम्हें फोरन अपने उच्चाधिकारियों को बताना चाहिए था, मगर तुमने तो लगता है, उस बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताया । अब भी बताना नहीं चाहते थे, मगर जुबान फिसल गई । मैंने कुछ गलत कहा क्या?"



प्रताप के चुप होते ही गिरीश बोला------" बैसे यहाँ अाने से पहले अपने अॉफिशियल रिकार्ड में तो तुमने अपनी रवानगी जरूर ही दर्ज की होगी! रोज़नामचे में लिखा होगा कि तुम कहां जा रहे हो------क्यों जा रहे हो! लिखा है न इंस्पेक्टर साहब या. . .उसमें भी नहीं लिखा?"



"नहीं लिखा ।" एसीपी लेगी उसे घूरता हुआ बोला----“मैंने थाने में फोन करके तस्दीक कर ली है । यह किसी को कुछ भी बताए बगैर चुपचाप यहाँ आया है और बिल्कुल अकेला आया है ।" नेगी ने बेहद कड़ी नजरों से आर्या को देखा-----" बातें तो अभी और भी बहुत है इंस्पेक्टर लेकिन अगर महज इतने की ही बात की जाए तो जानते हो इन सारी बातों का क्या मतलब निकलता है!"



आर्या ने सूखे होंठों पर जुबान फिराई ।



उसे अपना खेल खत्म नजर आने लगा था ।


"यह कि तुम कमीने हो ।" लेगी बिफरकर बोला------“गद्दार हो------देश के दुश्मनों से मिले हुए हो । मुल्क की जान और उसकी सुरक्षा से ही जो सनसनीखेज खबर तुम्हें सबसे पहले अपने महकमे को देनी चाहिए थी, वह तुम देश के दुश्मनों को दे रहे हो ।"



आर्या ने तमककर चेहरा उठाया ।



"सिर नीचे रख जलील इंसान ।" नेगी धिक्कारत्ते हुए नफरत से बोला----------गद्दार और देशद्रोहियों का उठा हुआ सिर अच्छा नहीं लगता । * अजरा बेगम और आसिफ * के घर सबसे पहले तू ही अपनी टीम के साथ पहुंचा था और तूने उनके घर से वे सारे साक्ष्य मिटाने का भरसक प्रयास किया था, जो उन्हें टेरेरिस्ट साबित करते थे । बाद में फरीदाबाद की उस सुनसान जगह पर भी सबसे पहले तेरे ही कदम पड़े थे और तूने वहां भी गुल खिलाया था । तुझे लगा कि तू कामयाब हो गया है------तू जो गुल खिला रहा हैं उस पर किसी को भी शक नहीं हुआ है । बोल यही सोचा था न तू ?

"सिर नीचे रख जलील इंसान ।" नेगी धिक्कारत्ते हुए नफरत से बोला----------गद्दार और देशद्रोहियों का उठा हुआ सिर अच्छा नहीं लगता । * अजरा बेगम और आसिफ * के घर सबसे पहले तू ही अपनी टीम के साथ पहुंचा था और तूने उनके घर से वे सारे साक्ष्य मिटाने का भरसक प्रयास किया था, जो उन्हें टेरेरिस्ट साबित करते थे । बाद में फरीदाबाद की उस सुनसान जगह पर भी सबसे पहले तेरे ही कदम पड़े थे और तूने वहां भी गुल खिलाया था । तुझे लगा कि तू कामयाब हो गया है------तू जो गुल खिला रहा हैं उस पर किसी को भी शक नहीं हुआ है । बोल यही सोचा था न तू ?


"न. . . . .नही सर ।" आर्या थूक गटककर सूखे होंठों पर जुबान फिराता हुआ बोला-----एेसी कोई बात नहीं है । म......मैं . .



"मिमिया मत आर्या और सच बता ।" नेगी कहर भरे स्वर में गुर्राया था…“केवल सच ।"



'"म.......मैं क्यूल करता हू कि मैंने आसिफ और अजरा बेगम के यहां मौजूद साक्ष्यों से छेड़छाड़ की । वहां फ़र्जी सबूत प्लांट किए ।"



नेगी और प्रताप की निगाहें एक--दूसरे से मिलीं ।



"लेकिन ।" तभी आर्या आगे बोला…“आप उल्टा बोल रहे है । वे सारे साक्ष्य उन दोनों के आतंकी न होने के लिए नहीं, बल्कि आतंकी साबित करने को थे ।"



पहले तो उनमें से किसी की समझ में ही न आया कि आर्या ने क्या कहा था । जब आया तो सभी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे ।



नेगी चिहुंककर आर्या से बोला-----" यह तू क्या बक रहा है? तूने वहां अजरा और आसिफ को आतंकी साबित करने वाले सबूत प्लांट किए थे, उसे आतंकी न साबित करने वाले नहीं?”



"हां । गुलशन राय और उसकी टीम को उन दोनों के आतंकी होने के जो साक्ष्य वहां से बरामद हुए थे, वे सारे के सारे फ़र्जी थे और मेरे द्वारा प्लांट किए हुए थे ।"



"ओह नो !" नेगी एकाएक काफी उत्तेजित हो उठा था । प्रताप, गिरीश और भल्ला का भी वैसा ही हाल था----“तू जानता है इसका क्या मतलब हुआ ?"



" क्या ?"




"इसका सीधा और साफ मतलब यह हुआ कि आसिफ और अजरा बेगम आतंकी नहीं थे और जब वे दोनों आतंकी ही नहीं थे तो फिर उन लोगों के द्वारा मुस्तफा और उसके साथियों को पनाह देने का भी सवाल नहीं उठता?"


"व…वे आतंकी थे या नहीं, मुझे नहीं पता । लेकिन मुस्तफा और उसके चारों साथियों को उन दोनों ने यकीनन अपने यहां पनाह दी थी और उनकी हर मुमकिन मदद भी की थी ।"



"य. . .यह भला कैसे हो सकता है?" प्रताप तीखे स्वर में बोला ।



“मुझें नहीं पता, लेकिन यह सच है---------मुस्तफा और उसके चारों साथियों ने वहां पनाह हासिल की थी । इस वात के साक्ष्य वाकई वहां पर मैजूद थे और उन साक्ष्यों से मैंने कोई छेड़खानी नहीं की थी ।"



" कैसे करता तू उन साक्ष्यों से छेड़खानी? गिरीश बोला-------" वे तो तेरा ही काम आसान वना रहे थे!"



आर्या ने जवाब न दिया ।


"क्या तू सच कह रहा है आर्या ?" नेगी बोला-----'' क्या तेरी बातों पर भरोसा किया जा सकता है?”



" हां ।" आर्या ने मजबूती के साथ सहमति में सिर हिलाया-----"सच कह रहा हूं सर ।"



"यह नामुमकिन है ।" भल्ला प्रतिरोध भरे स्वर में बोला…“अगर अजरा और आसिफ आतंकी नहीं थे, तो उन्होंने मुस्तफा की मदद क्यों की----उसे और उसके साथियों को अपने यहाँ पनाह क्यों दी?"
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Re: गद्दार देशभक्त

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"यह जानबूझकर सीधी-साधी बात में पेंच पैदा कर रहा है सर ।" प्रताप उतिजित्तिसा होकर बोला…“मामले को उलझा रहा है । दोनों खाते पूरी तरह विरोधाभासी हैं ।"



" ऐसा कुछ नहीं है ।” आर्या बोला-“मेरा यकीन करो ।"



"वो बाद में ।" नेगी बोला-----"पहले ये बता, अगर यहाँ तुझे हम न मिले होते । सचमुच कोई ऐसा अादमी मिला होता, जो तुझे ऐसे लोगों का ठिकाना बताता, जिनका मकसद निरंजननाथ का मर्डर करना होता तो उससे मिलने वाली खबर को किसके पास ट्रांसफ़र करता? सीधे दहशतगर्दों को या किसी और को?"



"म…म…मैं ।"



"मिमियाये बगैर बोल…बिना किसी हुज्जत के बोल । फौरन उसका नाम बता? कौन है वह?"



"म..........मैं किसी दहशतगर्द को नहीं जानता ।"



"जिसे जानता है, उसके बारे में बता?"



आर्या ने थूक गटका !

उसने बोलने का उपक्रम न किया ।



"मेरे पास जरा भी वक्त नहीं है आर्या ।" नेगी खूंखार स्वर मै बोला--------------अगर तू यह समझता है कि तेरे बच निकलने का कोई रास्ता वाकी बचा तो बाज आ जा । अगर तूं बाज़ नहीं आया ! अपना ही नुकसान करेगा । मेरे पास खडे ये आईबी के जल्लाद । ये तेरी चमडी को रेशा-रेशा करके उघेड़ेगे और इस तरह उधेड़ेगे कि तू अकेला नहीं बल्कि तेरी सात पुश्ते त्राहि-त्राहि कर उठेगी !"




"ब. . .बताता हूं ।” आर्या थूक निगलकर जल्दी से बोला----मैं बताता हूँ । उसका नाम. . .जसवंत है ।”




नेगी की आंखें सिकुड़ी-------“कौंन जसवंत?"



“अ......औमकार चौधरी का पर्सनल असिस्टेंट ।"



"क . . .क्या?" अकेला नेगी ही नहीं, प्रताप भी बूरी तरह चौंक पड़ा था-------“ओमकार चौधरी से तेरा मतलब-बह पोलीटीशियन है ?"



"ह . . .हां ।"



"चौधरी का पीए टेरेरिस्टों से मिला हुआ है?"



"यह सच है ।”



"बगैर किसी सबूत के तेरी लफ्फाजी पर कोई यकीन नहीं करेगा । जसवंत ओमकार चौधरी का खासमखास है, ऐसे में अगर जसवंत पर उंगली उठती है तो वह उंगली सीधे ओंमकार चौधरी पर उठी मानी जाएगी और यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ओमकार चौधरी जैसा नेता कभी दहशतगर्दों से मिला नहीं हो सकता । उसने तो दहशतगर्दों और उनके मुल्क के हुक्मरानों की नीद हराम कर रखी है । इसीलिए हर दहशतगर्द उसके खून का प्यासा है ! तूं सुन रहा है न आर्या?"



"मैं चौधरी की नहीं जसवंत की बात कर रहा हूं । मेरा ओमकार चौधरी से कोई बास्ता नहीं है । मेरा वास्ता केवल जसवंत से है ।"



" अगर जसवंत दहशतगर्दों से मिला हुआ है तो. . . ।" प्रताप बहुत ज्यादा फिक्रमंद हो उठा था-------" यह और भी ज्यादा चिंता की बात है । इन हालात में तो दहशतगर्दों के लिए चौधरी को निशाना बनाना बहुत आसान होगा । हैरानी की बात है कि उन लोगों ने अभी तक चौधरी को कोई नुकसान नहीं पहुचाया ।"


............................

"दहशतगर्दों का सारा ध्यान फिलहाल निरंजननाथ पर है !" नेगी सोच में डूबा हुआ बोला । उसका लहजा भी व्यग्रता से भरा था------" ओंर जसवंत की असली ताकत चौधरी ही है, इसलिए पहले वे ओमकार चौधरी को खत्म करने की बेवकूफी नहीं कर सकते । ईश्वर न करे, कल अगर वे निरंजननाथ को खत्म करने में कामयाब हो गए तो अगला टार्गेट ओमकार चौधरी ही होगा ।"



" ऐसा नहीं होना चाहिए एसीपी साहब ।" प्रताप उत्तेजित होकर बोला------" हमें उसे हर हाल में रोकना होगा ।"



नेगी ने प्रताप से ध्यान हटाकर आर्या पर नजरें केंदित की और सवाल किया…“क्या जसवंत को तेरे यहाँ आने की खबर है !"



“ह. . .हां ! " वह फिर हकबकाया ।



"कैसे?"



"मैंने ही उसे फोन करके, यहाँ से आई कॉल के बारे में बताया था । उसी ने कहा कि मैं फौरन बताए गए पते पर पहुचूं और वहां जो भी बाते हों, उनके बारे में उसे बताऊं ।"



" शाबाश ।" नेगी कड़वे स्वर में बोला । फिर, उसकी आखों में चमक उभरी------" चल तू फौरन जसवंत को फोन कर ।"



"क.. किसलिए?" आर्या ने थूक निगला ।



"उससे मीटिंग फिक्स करा उसे फौरन इमरजेंसी मीटिंग के लिए कहीं बुला ।"



"व. . .वह मेरे बुलाने से आ जाएगा?"



"जरूर आएगा । तू उससे कहेगा कि जिस इंफार्मर से मिलने गया था, उसने कुछ ऐसी सनसनीखेज बाते बताई हैं, जिन्हें तूं फोन पर नहीं बता सकता । उनके लिए तेरा उससे मिलना जरूरी है । वैसी कंडीशन में वह इंकार नहीं कर सकेगा ।"



"अ........आप करना क्या चाहते है सर?"



"तुझे बता दूं! एक बिके हुए करप्ट पुलिसिये को बता दूं-----एक नमकहराम इंसान को बता दूं?"



उसका सिर एक बार फिर झुक गया ।


"फोन निकालकर जसवंत को लगा । और याद रखना जलील इंसान ।" उसके लहजे में चेतावनी का पुट उभर आया था-----''अगर बातों के दरम्यान जसवंत को किसी गुप्त इशारे से सावधान करने का प्रयास किया, या उसने तेरी बातों से सच को भांप लिया तो तेरी लाश यहीं, इसी फ्लेट में गिरेगी ।"



आर्या की हालत मरता क्या न करता वाली थी ।

'कश्मीर केसरी' के ताजा संपादकीय का शीर्षक था------



कहाँ सो रहा है हिंदुस्तानी ?



हमेशा की तरह इस संपादकीय को भी, अखबार के मालिक और प्रधान संपादक प्रबल कुमार चोपड़ा ने लिखा था ।


प्रबल कुमार चोपडा का 'संपादकीय' देश में बहुत लोकप्रिय था और ऐसा बेवजह नहीं था । लोकप्रियता का कारण यह था कि प्रबल कुमार चोपडा के हर लेख में तथ्यपूर्ण बातें लिखी होती थी ।




खोजपूर्ण बाते लिखी जाती थी । ऐसी-ऐसी सूचनाएं उजागर की जाती थी जो पाठकों को अन्य किसी अखबार या टीबी चैनल से नहीं मिलती थी । अगर यह भी कहा जाए तो गलत न होगा कि वह अपने एक ही लेख में सत्ता पर भी बरसता था और आतंकवादियों पर भी, और ऐसा वह इतने तर्कपूर्ण तरीके से करता था कि पाठको को उसकी हर बात सच लगती थी ।



लोगों को उसके संपादकीय पढ़कर जोश आ जाता था ।



आज का लेख "कहां सो रहा है हिंदुस्तानी' भी ऐसा ही एक तथ्यात्मक तथा खोजपूर्ण लेख था, जो देश के मौजूदा हालात की सजीव तस्वीर खींचता था । उसमें आज़ वहुत कुछ ऐसा लिखा था, जिसने आम जनों के साथ ही कुछ खास जनों का ध्यान भी खींच लिया था । चोपडा ने लिखा था---------

'कश्मीर केसरी' के हाथ लगे सूत्रों के मुताबिक हाफिस लुईस का अॉपेरेशन औंरगजेब अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर चुका है और जिस बर्बर तरीके से उसने जांबाज पुलिस अॉफिसर गुलशन राय तथा उसके साथियों का सिर कलम किया , वह मुल्क के हुक्मरानों की लंगोटी खोलने के लिए काफी है !

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इससे पहले चींदनी सिंह के साथ हुई क्रूरता का जख्स अभी सूखा भी नहीं था कि भारत माता का सीना फिर छलनी हो गया !!!!




लेकिन यह नशंपिशाचों की प्यास का अंत नहीं हैं, यह तो महज उसका एक पड़ाव है ! अगला नम्बर किसका है, यह समझना मौजूदा हलात में ज्यादा मुश्किल नहीं है !




खुफिया एजेसियों की मानें तो वह शख्स निरंजननाथ भी हो सकता है और ओमकार चौधरी जैसी कद्दावर शख्तीयत भी हो सकती है, खुद मैं भी ही सकता हूं !



ये कैसा सिस्टम है कि यह सब तब हो रहा है जबकि खुफिया एजेंसियां बहुत पहले ही हाफिस द्वारा चलाए जा रहे आँपरेशन औरंगजेब की सच्चाई से हुकूमत को आगाह करा चुकी हैं !



मुझे अपनी मौत के अंदेशे का जरा भी खौफ नहीं हैं, क्योंकि मैंने जो मशाल जला दी है, वह मैरी मौत के बाद भी बुझने वाली नहीं है !
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Re: गद्दार देशभक्त

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आंसू तो मुझे इस मुल्क के दुर्भाग्य पर आते हैं, जहां आज तक एक भी सच्चा देशभक्त सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर नहीं पहुचां !



बोस और पटेल जैसे दीदावरों के इस मुल्क में आज तक एक भी ऐसा दीदावर पैदा नहीं हुआ जिसके लहू में दुश्मनों की जालिमाना कार्यवाहियाँ की देखकर उबाल आता हो और जो जालिमों को उन्हीं की भाषा से जबाब देने के लिए तड़प उठता हो !



वतनपरस्ती का ऐसा डीएनए आज के हुक्मरानों के खुन से पुरी तरह नदारद है और दिल्ली में बैठकर किश्तों से वतन बेचने बाले सियासी दल्लों की सारे मुल्क में पूरी जमात खडी हो चुकी है !




ये कैसा दुर्भाग्य है कि इस मूल्क के लिखे जाने वाले भविष्य की कलम-----दवात उन्हीं सियासी दल्लों की जमात के अघिकार में है और उनसे यह अधिकार छीनने का माद्दा फिलहाल किसी में भी प्रतीत नहीं होता !! शायद इसीलिए पहले से ही खामोश भारत माता और ज्यादा खामोश हो गई है !



ऐसा लगता है उन्होंने हमारी आने वाली बेगुनाह नस्लों के खुन का जलजला देखने के लिए शायद खुद को तैयार कर लिया हैं

जलजला जो आज आईएसआईएस की शक्ल में ईराक, सीरीया और अफगानिस्तान में उठ रहा है !



आज सबसे अहम सबाल यह उठ रहा है कि क्या हमारा सुरक्षा तंत्र हाफिज लुईस के अॉपरेशन औरंगजेब को रोकने में कामयाब हो पाएगा? मुस्तफा जैसै दुर्दांत आंतकी सरगना को ह्माफिज ने जिस मकसद के लिए आजाद कराया है क्या हम उस मुस्तफा के कदमों की रोक पाएंगे, इन सवालों का जवाब तो आने बाला कल ही देगा लेकिन उससे भी बड़ा एक सवाल है, जो रह-----रहक़र हर भारतबासी के अंदर उठ रहा है !



वह स्याल उस हसान को लेकर हैं, जिसका नाम अर्जुन राणावत है, मगर जिसे सारे देश में हिंदुस्तानी के नाम से जाना जाता है ।।



याद रहे,, यह हिंदुस्तानी भारतीय इंटेलीजेंस का एक छुपा हुआ राज है जिसे पाकिस्तान की धूर्त खुफिया एजेंसी आईएसआई की मक्कारी का जवाब देने के लिए तैयार किया गया था !!



समुची आईएसआई आज अगर किसी के नाम से थरथराती है तो वह शख्स हिंदुस्तानी है और इसमें कोई शक नहीं कि हिंदुस्तानी आज तक हर इम्तहान में खरा उतरा है !




उसका एक कारनामा----

' अॉपरेशन दुर्ग ' था, जो पाकिस्तान के खिलाफ भारत का सबसे करारा जवाब था ! मगर वह जवाब आज कहीं खो-सा गया लगता है !



मेरा और मेरे इस अखवार के जरिए आज हर भारतवासी का सीधा सबाल उसी हिंदुस्तानी से है !



हम पूरे अधिकार के साथ उससे सबाल कर रहैं हैं कि वह कहाँ सो रहा है ? इस मुल्क में आज इतना कुछ हो रहा है फिर भी वह खामोश क्यों हैं? अगर वह इसी मुल्क में कहीं है तो मुस्तफा की गर्दन मरोड़ने के लिए सामने क्यों नहीं आ रहा ?



वह चुपचाप इतने बेगुनाहों के खुन की होली क्यों देख रहा है?



अगर 'हिंदुस्तानी' की रंगों में सचमुच खून नहीं हिंदुस्तान बहता है तो फिर वह हिंदुस्तान आज नजर क्यों नहीं आ रहा?


आखिर क्यों?

तुम सुन रहे हो न हिंदुस्तानी !



आज एक बार फिर यह मुल्क तुम्हें पुकार रहा है और बहुत आशा भरी नजरों से तुम्हारी तरफ देख रहा है !!



सामने आओ और कुचल दो मां भारती के एक-एक दुश्मन को ।।



वस ! इतना ही लेख था प्रबल कुमार चोपड़ा का ।



आम पाठकों पर तो इस संपादकीय का जो असर हुआ, वह हुआ ही था लेकिन सबसे ज्यादा हलचल केद्रीय गृहमंत्रालय में मची थी । हलचल की शुरुआत उस वक्त हुई, जब गृहमंत्री बादल नारंग सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ने बैठा । उसके सामने मेज पर हिंदी तथा अंग्रेजी के लगभग दस अखबार रखे थे, जिनमें से एक कश्मीर केसरी' भी था । नारंग ने सबसे पहले कश्मीर केसरी का विशेष संपादकीय पढ़ा था और उसे पढ़कर पेशानी पर अाड़ी-तिरछी लकीरें उभर अाई थी । वह चाय का घूंट लेना तक भूल गया था ।



तभी एक अादमी हाट लाइन लिए उसके पास पहुचा !



हाट लाइन पर दूसरी तरफ आईबी चीफ बलवंत राव था ।



“सुबह-सुबह डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहता हूं एचएम साहब ।" बलवंत राव अभिवादन के पश्चात् बोला-----“लेकिन यह बहुत जरूरी था । चीजें ही ऐसी सामने आई हैं ।”



"लगता है कश्मीर केसरी पढ़ लिया है?"



"ओहो ! तो आप भी पढ़ चुके हैं!"



" हां और यकीन मानो राव साहब, आपका फोन नहीं आता तो मैं खुद ही फोन करने वाला था । प्रबल कुमार चोपड़ा एक बहुत जिम्मेदार और काबिल इंसान है । जरा भी उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसी गैरजिम्मेदाराना हरकत करेगा ।"



“मेरा भी यही खयाल है सर, हैरानी की बात है कि अॉपरेशन दुर्ग के बारे में उसे कैसे मालूम हुआ । यह तो हमारी इंटेलीजेंस का हिंदुस्तानी से भी कहीं ज्यादा बड़ा और छुपा हुआ ऐसा राज है, जिसके बारे में केवल गिनती के लोगों को ही मालूम है ।"



"मैं भी यहीं सोच रहा हू चीफ !! कम-से-कम पत्रकारिता की दुनिया से जुड़ा कोई शख्स तो इंटेलीजेंस के ऐसे भेद नहीं मालूम कर सकता । तुम्हारा क्या ख्याल है?"

“सवाल ही नहीं उठता होम मिनिस्टर साहब ।" बलवंत राव दृढता से बोला-------" हम जिन राज की बात कर रहे हैं, उन्हें तो खुद इंटेलीजेंस से जुड़े लोगों के लिए भी मालूम कर पाना आसान नहीं है । और फिर बात यहीं खत्म नहीं हो जाती, अभी अहम सवाल और भी हैं । यह खबर केवल इंटेलीजेंस के पास ही थी कि गुलशन राय के अलावा जिन बाकी लोगों को मुस्तफा टार्गेट बनाने वाला है, वे कौन हैं? ऐसे में चोपड़ा को यह राज मालूम हुआ तो कैसे आखिर क्या स्रोत है उसके पास इन निहायत ही संवेदनशील और खुफिया जानकारियों तक पहुंचने का ?"



“इस सवाल का जबाव तो चोपड़ा ही दे सकता है ।"



"मेरा भी यहीं खयाल है सर, इसीलिए आपको फोन किया है ।"



"किसलिए?"



"चोपडा मामूली हस्ती नहीं है । मीडिया के सय-साथ सत्ता के गलियारों में भी उसकी वहुत मजबूत पकड़ है । बगैर हाई अथारिटी परमीशन के उससे कोई भी कड़ी पूछताछ मुमकिन नहीं है ।"



" तुम्हें परमीशन देता हूं चीफ़ । जैसे चाहो पूछताछ करो । तुम्हें पूरी छूट है । कोई परेशानी आए तो मुझे फोन करना ।"



"पूछताछ में मेरे लोग संतुष्ट न हुए या चोपडा ने सहयोग नहीं दिया तो हमें उसके गिरफ्तारी वारंट की भी जरूरत होगी ।"



"फिक्र न करो, मैं सारे इंतजाम कर दूगा । मुद्दा जब इतना सेंसटिव हो तो मैं किसी भी रुकावट को बीच में नहीं आने देता ।"



"ठीक है सर ! मैं सबसे तेज तर्रार टीम को चोपड़ा के पास भेजता हूं । सुना है उसकी सिक्योरिटी बहुत पुख्ता कर दी गई है?”



"हां । अॉपरेशन औरंगजेब के मद्देनजर यह करना पड़ा है लेकिन चोपड़ा की कड़ी सिक्योरिटी आईबी की टीम के लिए कोई मुश्कि्ल खड़ी नहीं करेगी । इस बारे में उसे पहले से अादेश मिल जाएगा । तुम बेफिक्र होकर अपना काम करों ।"



"थेक्यू सर ।"


"वेलकम चीफ ।"


सम्बंध विच्छेद हो गया ।

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जसवंत अत्री ने मोबाइल कान से हटाया तो चेहरा क्षण-प्रतिक्षण गम्भीर होता चला गया ।



दूसरी तरफ से इंस्पेक्टर कमल आर्या ने जो कहा था, उसने उसके दिलोदिमाग में हलचल मचा दी थी ।

जसवंत काफी देर तक आर्या की बताई बातों पर मनन करता रहा फिर, मोबाइल पर एक खास नम्बर पंच किया ।



काफी देर वेल बजने के बाद कॉल रिसीव हुई और फिर, कान में एक व्यस्त स्वर पड़ता----" यस ।"



"बिग वॉस ।" अत्री बोला…“आपसे एक सलाह लेनी है ।"



"हमे अनुमान है कि तुम क्या सलाह लेना चाहते हो ।"



"ज . . . .जी? ”



"फिर भी बोलो, क्या बात है?"



“जिस पुलिसिये ने मुझें दहशतगर्दों से ताल्लुक रखने वाली सूचना दी थी, वह मुझे मुलाकात के लिए बुला रहा है ।"




"कहां?" थोडा हंसकर पूछा गया……'"क्यो?"




जसवंत अत्री ने इंस्पेक्टर आर्या के बुलावे के बारे में बताया ।



"वह पुलिसिया इस वक्त कहां है?"



"वहीं । जहाँ इंफार्मर ने उसे बुलाया था ।"



“तुमने तस्दीक की?”



“क्रिस बात की? आर्या के उसकी बताई जगह पर होने की?"



"हां ।"



"नहीं ।"


" क्यों?"




“मुझे पुलिसिये के कमीनेपन पर पूरा भरोसा है । वह पैदाइशी हरामजादा हैं दौलत के लिए कुछ भी कर सकता है ।"



"तुम गधे हो अत्री ।"



“क. . .क्या?" अत्री हड़बड़ाया ।

"तुम अपनी आंखें की रख सकते हो मगर हम यह गलती नहीं कर सकते । इस वक्त तुम्हारा वह पुलिसिया दिल्ली पुलिस के एक एसीपी और मुम्बई से अीए कुछ आईबी एजेंटों के कब्जे में है । वह उसे तुम्हारे वारे में सब कुछ बता चुका है । अब वे तुम्हें अपने जाल में फंसाने के लिए उस पुलिसिए को चारे की तरह इस्तेमाल कर रहे है । उसने उनकी देख-रेख में ही तुम्हें फोन किया ।"



"य. . .यह आप क्या कह रहे हैं बिग बॉस ।" अत्री चिहुंककर बोला । मारे अविश्वास के उसकी आंखें फैल गई थी ।

“यह एक ऐसा सच है जिसे तुम्हें बताने के लिए हम फोन करने ही वाले थे कि तुम्हारा फोन आ गया । अगर तुम उस पुलिसिये की बातों में आए तो सीधे पुलिस और इंटेलीजेंस की गोद में गिरोगे ।"



""म. . .मुझें यकीन नहीं हो रहा ।" जसवंत के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थी-----इ. . .इसका मतलब तो ये हुआ कि मैं वहां जाऊं या न जाऊं, एसीपी साहब पर पोल तो मेरी खुल ही चुकी है क्योंकि अपके बताए मुताबिक पुलिसिए ने उनके कहने पर उनके सामने ही मुझसे बातें की थी और मैंने भी खुलकर बातें की क्योंकि इस बात का तो मुझे सपने में भी गुमान न था कि. . ."




"यह तुम्हारी प्राब्तम है ।"



“तो अब मैं क्या कया करूं बॉस । हमारा मकसद तो अभी अधूरा है-शिकार अभी सलामत है । मुझें जरा भी गुमान न था कि हमारी सालों की मेहनत पर अचानक पानी फिर जाएगा और एक ही झटके में सब कुछ खत्म हो जाएगा ।"



"हमारे रहते ऐसा कभी नहीं होगा अत्री । हमारा मकसद हर हाल में पूरा होकर रहेगा ।"



"म . . . . . अगर कैसे? अब तक तो उन लोगों ने चौधरी पर मेरा राज भी फाश कर दिया होगा ।"



'" तुम्हारी खुशकिस्मती से अभी तक ऐसा नहीं हुआ है । वे लोग तुम्हें रंगे हाथों पकड़ना चाहते हैं । उनकी यही होशियारी उनकी करारी शिकस्त की वजह बनेगी ।"



"क्या आपके पास कोई प्लान है बिग बॉस !"

"हम प्लान ए के नाकामयाब होने पर प्लान बी और प्लान बी के नाकामयाब होने पर प्लान सी हमेशा तैयार रखते हैं !"



"मैं समझा नहीं बिग बॉस ।"



"जो कल होने वाला था, वह आज ही बल्कि अभी होगा । बदले हुए हालात में ओमकार चौधरी निरंजननाथ से पहले मरेगा ।"



"क. . कौन मारेगा?"



"हम ।"



“अ...आप ऐसा कैसे करेंगे? वह वहुत कड़े पहरे में रहता है !"



"तुम कब काम आओगे? क्यों बैठे हो वहां?”



" म . . . . मैं ?"



"तुम्हारा काम हमें चौधरी तक पहुचाना होगा ।"
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kunal
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Re: गद्दार देशभक्त

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"ए…ऐसा भला कैसे हो सकता है बिग बॉस! चौधरी बहुत चौकन्ना रहने वाला शख्सं है । चीफ़ मिनिस्टर भी मिलने आता हैं तो वह भी उस सिक्योरिटी सिस्टम को पार किए बगैर चौधरी तक नहीं पहुंच सकता जो उसके चारों तरफ़ फैला रहता है ।"


" तो फिर तुम्हारा क्या फायदा हुआ अत्री ।"



"अब मैं क्या बोलूं बिग बॉस ।”



"बोलो नहीं, सोचो । कोई ऐसी तरकीब सोचो कि हमारा काम मुकम्मल हो जाए और तुम यह कर सकते हो ।”



अत्री सोच में पड़ गया ।



काकी देर तक यूं ही सोच के भंवर में डूबता-उतराता रहा ।




"कुछ सूझा अत्री?" दूसरी तरफ से व्यग्र स्वर में पूछा गया ।



“ह…हां ।" अत्री असमंजस भरे स्वर में बोला…“सूझा तो है कुछ । लेकिन--------लेकिन उसके बेस पर मैं ऐसा कोई मजबूत दावा नहीं कर सकता कि हम जो चाहते है उसमें कामयाब हो ही जाएंगे ।"



"बताओ जसवंत । फौरन से भी पहले बताओ ।" अधीर स्वर में कहा गया-------“सारे पत्ते खुल जाने के बावजूद तुम्हारी समझ में यह बात क्यों नहीं अा रही कि हमारे पास ज़रा भी टाइम नहीं बचा ।"

जसवंत अत्री ने बताना शुरू किया ।
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Re: गद्दार देशभक्त

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कश्मीर केसरी का मालिक और प्रधान संपादक प्रबल कुमार चोपड़ा अट्ठावन साल का एक भारी भरकम शरीर वाला शख्स था ।



उसके गाल सेब की तरह सुर्ख थे ।



आमतौर पर वह नेताओं जैसे सफेद कुर्ता-पाजामा पहनता था और आखों पर नजर का चश्मा लगाता था ।



उसकी कलम में ही नहीं बल्कि समूचे व्यक्तित्व में ऐसा जादुई आकर्षण था, जो सामने वाले को उसकी तरफ़ खींचता था ।



चोपडा वक्त का बहुत पाबंद था और रोजाना सुबह के ठीक दस बजे कश्मीर केसरी अपने मुख्य कार्यालय में पहुच जाता था ।



मौजूदा हालात में इंटेलीजेंस द्वारा जारी किए गए अलर्ट के चलते उसकी अप्वाइंटमेंट लिस्ट वहुत शार्ट हो गई थी ।



आफिस हो अथवा घर, वह बहुत चुनिंदा लोगों से मिलता था ।



चोपड़ा की हिफाजत के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सिक्योरिटी की कमान एसीपी रैंक के अधिकारी के हाथ में थी । पुख्ता इंतजाम के चलते अप्वाइंटमेंट के बावजूद चोपड़ा तक पहुंचने के लिए कई चैंकिंग क्लियरेंस से गुजरना पड़ता था ।



उसकी अाज की पहली अप्वाइंटमेंट मोहनदास नाम के उस शख्स से थी जिसे आईबी का अधिकारी बताया गया था । उसके साथ उसके दो जूनियर भी आने थे, जिनके नाम अप्वाइंटमेंट लिस्ट में दर्ज किए गए ।



सिक्योरिटी इंचार्ज को सीधे गृहमंत्रालय से आदेश दिया गया था कि आईबी की टीम की कोई जांच पड़ताल नहीं होगी इसलिए मोहनदास और उसकी टीम को कोई असुविधा नहीं हुई ।



चोपड़ा को जैसे ही सूचना दी गई कि आईबी की टीम अा चुकी है तो उसने तुरंत तीनों को अपने आँफिस में भेजने के लिए कहा ।



"तुम लोगों में मोहनलाल कौन है?" वह अपने चश्में के पीछे से बारी-वारी तीनों का मुआयना करता हुआ भावहीन स्वर में बोला ।




" मुझे मोहनलाल कहते हैं ।" सफारी सूट वाले ने कहा ।



" बैठो !"

मोहनलाल एक विजिटर चेयर पर बैठ गया ।



"तुम भी बैठो ।" चोपड़ा दोनों एजेंटों से बोला । मगर उन दोनों ने वेसा कोई उपक्रम न किया । वे पूरी मुस्तेदी से अपने अॉफिसर के पीछे दाएं-बाएं खडे़ रहे ।



चोपडा ने उनके अनुशासन को समझा ।



उसने दोबारा उनसे बैठने को नहीं कहा ।



"बोलो ओंफिसर ।" वह मोहनलाल के चेहरे पर निगाह गड़ाता हुआ सहज भाव से बोला-"कैसे आना हुआ? मुल्क की इंटेलीजेंस को हमारी याद केैसे आ गई? और देखो, मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है । मैं तुम्हें केवल पांच मिनट दे सकता हूं ! तुम मेरा मतलब समझ रहे हो ना मुझे कल के लिए संपादकीय लिखना है ।"



“इतने वक्त में मेरा काम हो जाएगा चोपड़ा ।"



“गुड । तो फिर मेरे सवाल का जवाब दो । कैसे आना हुआ ?"



"मुझें तुम्हारे किसी सवाल में कोई दिलचस्पी नहीं है चोपड़ा ।" मोहनलाल सपाट स्वर में बोला----------"मैं यहां तुम्हारे सवाल का जवाब नहीं, तुमसे अपने सवाल का जबाब लेने अाया हूं ! दिलचस्प बात यह है कि तुमसे पूछने के लिए मेरे पास एक ही सवाल है, महज एक सवाल और मुझें पूरी उम्मीद है कि उसका जवाब तुम पूरी ईमानदारी से दोगे ।"



'" कोशिश करूंगा ।"



"मेरी सूरत को जरा गोर से देखो ।" मोहनलाल उसे गहरी नजरों से देखता हुआ बोला…“ओँर फिर याद करके बताओ कि मेरी शक्ल देखकर क्या तुम्हें कुछ याद आ रहा है?"



"क. ..क्या मतलब?" उसके अजीबोगरीब सवाल पर चोपडा अचकचाया । माथे पर अनायास ही वल पड़ गए ।



"मतलब ताजे आईने की तरह साफ़ है मिस्टर खबरनवीश ।" मोहनलाल लगातार उसकी आंखो में देखता हुआ बोला…“पत्रकार की आंखें और उसका दिमाग वहुत पैने होते हैं । मुझे देखकर जरा इमेजन करो कि अगर मेरे इस क्लीन शेव चेहरे पर चौदह इंच लम्बी ओसामा बाली दाढ़ी और लगभग वैसी मूंछे लगा दी जाएं तो क्या मैं तुम्हें मुस्तफा का जुड़वां भाई महसूस नहीं होऊंगा?"

पलक झपकते ही चोपड़ा के दिमाग पर सन्नाटा छा गया ।



आंखों की पुतलियां पथराकर मोहनलाल के चेहरे पर ठहर गई ।



“और मेरे पीछे खड़े मेरे इन दोनों जूनियरों के चेहरों में भी अगर थोड़ी--सी तब्दीली कर दी जाए तो ।" मोहनलाल संतुलित स्वर में कहता चला गया------"तब क्या तुम्हें इन दोनो के शक्ल में सैयद और नियाज़ के चेहरे नजर नहीं आएंगे? वही सैयद और नियाज़, जिन्होंने अपने दो अन्य साथियों के साथ चांदनी सिंह को अगवा करने का कारनामा अंजाम दिया था, जिसके बदले में सरकार को मुस्तफा को रिहा करना पड़ा था । गौर करो, खुद मेरे साथ साथ इन चारों के भी फोटो अपने अखबार में छापे थे ! "




चोपड़ा की पुतलियां हिली । उन्होंने बारी-बारी से मोहनलाल के दाएं-बाएं खड़े दोनों लड़को को देखा । ।



पलक झपकते ही चोपड़ा के जेहन में ऐसी सुनामी उभरी जिसने उसके अंदर भयंकर सनसनी पैदा कर दी थी ।



इस एहसास ने उसके चेहरे पर गहन आतंक के भाव काबिज कर दिए थे कि उसके सामने इस वक्त साक्षात मुस्तफा खडा़ है और वह भी अकेला नहीं बल्कि अपने दो जल्लादों साथ है ।
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