गद्दार देशभक्त complete

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kunal
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Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

"यही कि धनंजय जिंदा है और वह कोई और नहीं, बल्कि वही हिंदुस्तानी है, जिसे आईबी का सीक्रेट कहा जाता है । धनंजय और हिन्दुस्तानी दोनों एक ही शख्स के नाम हैं । उसके और भी कई नाम हो सकते हैं, क्योंकि हिंदुस्तानी के बारे में सारी दुनिया जानती है कि वह नाम और चेहरे बदलने में माहिर है ।"

"होलकर ।" बलवंत राव जैसे न चाहते भी बुरी तरह भड़क उठा था…“तुम जरूर पागल हो गए हो । मेरे ख्याल से मैंने ही तुम्हें मुंह लगाकर गलती की । मुझे एक सस्पेंड कर्मी की वाहियात बातों को तबज्जो नहीं देनी चाहिए थी----खास तौर पर आज़ के उन हालात मे, जबकि यह मुल्क एक अजीबो-गरीब तबाही के मुकाम पर खड़ा है और मुझें फौरन दिल्ली के लिए निकलना है । मगर कोई बात नहीं । मैं अपनी गलती को अभी दुरुस्त किए लेता हूं ! वह पल भर के लिए रुका, फिर होलकर को घूस्ता हुआ बोला------" अब यह बताओ बर्खूंरदार कि खुद जा रहे हो या मैं तुम्हें उठाकर यहाँ से बाहर फेंकने का कोई इंतजाम करूं ?"



"अ. . अजीबो-गरीब तबाही से लपका क्या मतलब है सर ?''



"खामोशां उससे तुम्हारा कोई सरोकार नहीं है ।"


"मैं समझ गया सर कि आप मेरी मदद करना नहीं चाहते ।" होलकर असहाय भाव से बोला------""इसलिए मुझे जाना होगा । लेकिन जाने से पहले एक बात जरूर कहना चाहता हूं !"


"मुझें तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी ।"


"खेल वह नहीं, जो हर किसी को नजर आ रहा है ।" होलकर बोला-------" असल में जो खेल है, वह वहुत गहरा है और हर किसी की सोच से ऊपर है । अब तो मेरा ये दावा भी है कि अाप खुद भी उस खेल के अहम किरदार हैं । यह मेरा आपके साथ-साथ अपने आपसे भी वादा है कि मैं आपको इस खेल की तह तक पहुंचकर दिखाऊँगा । हर राज खुली किताब की तरह दुनिया के सामने रख दूगा और हर चेहरे से नकाब उतारकर, असली चेहरा सामने ले आऊंगा !"



"गेट आउट ।"



होलकर खतरनाक इरादे के साथ सचमुच गेट आउट हो गया ।
भारत में पाकिस्तान के अटार्नी जनरल (राजदूत) का नाम सरफराज अहमद था । वह राजधानी दिल्ली में स्थित पाकिस्तानी एम्बेसी के अंदर मौजूद था और काफी व्याकुल भाव से कालीन पर चहलकदमी कर रहा था । उसके चेहरे पर चिंता तथा आशंकाओं की असंख्य लकीरें खिंची थी ।



तभी एक वर्दीधारी वहां पहुंचा जो कि उसकी एम्बेसी का ही पाकिस्तानी मुलाजिम था ।



"कोई जनाब अखलाक साहब अाए हैं ।" वह सिर झुकाता हुआ अदब से बोला…“आपसे मिलना चाहते हैं ।”

"भेजो ।" सरफराज एकाएक अधीर-सा होकर बोला…"उसे फौरन हमारे पास भेजो । क्विक ।"



अटेंडेंट वापस चला गया ।



दो मिनट बाद एक रहस्यमय शख्स ने वहां कदम रखा ।



उसने घुटनों से नीचे तक लटकता काला ओवरकोट पहन रखा था । पेरों में चमड़े के लांग शू तथा सिर पर काला गोल हैट, जिसे उसने हल्का-सा चेहरे पर झुका रखा था, मगर इतना ज्यादा नहीं कि चेहरा साफ़ दिखाई न दे ।



ओवरकोटधारी को देखकर सरफराज बुरी तरह चौंका । मुंह से तीन शब्द निकले------" कौन हो तुम?"



"अखलाक ।" उसके होंठों पर रहस्यमय मुस्कान उभरी ।


"नहीं ।” सरफराज ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया------“तुम अखलाक नहीं हो सकते?"



"बडे आत्मविश्वास से कह रहे हो एम्बेसडर साहब, लगता है अखलाक को अच्छी तरह पहचानते हो । हिंदुस्तान में मौजूद अपने मुल्क का उच्चायुक्त एक वांटेड टेरेरिंस्ट को अच्छी तरह पहचानता है और तभी से उससे मिलने के लिए इतना बेताब है जब से मैंने अखलाक बनकर यहां आने के लिए कहा है!"



सरफराज के जेहन को तीव्र झटका लगा ।



उसके हाव-भाव एकदम से बदल गए ।


आंखों में संदेह के भाव आ गए ।




" कौन हो तुम?” उसने गुर्राकर ओवरकोटधारी से पूछा ।



"मैं भी इसी सवाल का जवाब दूंढ़ रहा हूं !"



" क..........क्या ? "



"कि मैं कौन हूं?”



"बको मत और सीधे-सीधे मेरे सवाल का जवाब दो ।"



"मुझसे जवाबतलबी करने वाला सिकंदर अभी तक दुनिया में पैदा नहीं हुआ है दिले नादां । बैसे भी मैं यहां तुम्हारे सवालों का जवाब देने नहीं बल्कि तुम्हें और तुम्हारे जाहिल मुल्क के खिलाफ सवालों का अंबार खडा़ करने आया हूं ।"


"क. . कैसा अंबार?"


'बिल्कुल वेैसा, जैसा आज तक तुम लोग मेरे मुल्क के खिलाफ खड़ा करते आए हो ।"



"त. . .तुम हमारे दोस्त नहीं, जरूर कोई दुश्मन हो ।"



"मुबारक हो । देर से ही सही, लेकिन तुम समझ गए ।"



"मारे जाओगे । तुम्हारी लाश का भी पता नहीं चलेगा ।"



"यह इतना आसान होता पागल आदमी तो अब तक मैं कई बार मर चुका होता । अजमाना चाहते हो तो मोस्ट वेलकम । करो मुझे मारने की कोशिश । वैसे ही यह जगह केवल कहने को तो पाकिस्तानी दूत्तावास है, मगर हर कोई जानता है कि यह असल मैं टेरेरिस्टों का कंट्रोल रुम है-----एक आंतकी शिविर है । वरना अखलाख जैसे कुख्यात टेरेरिस्ट को यहाँ जाने की हाथोंहाथ इजाजत कैसे मिल जाती । अगर मुस्तफा आया होता तो शायद तुमने खुद बाहर आकर उसका इस्तकबाल किया होता । नहीं?"



सरफ़राज कसमसाया ।



"क्या चाहते हो?"



"काम का सवाल पूछने में इतनी देर लगा दी । लेकिन कोई बात नहीं, तुमने पूछा तो सही । अब सुनो. . .और पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं को भी सुना दो कि मैं क्या चाहता हूं ।"
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Re: गद्दार देशभक्त

Post by 007 »

पाकिस्तान के मुल्तान में स्थित, कोट लखपत जेल में कैद नीलिमा और अंजली अपनी फांसी का इंतजार कर रही थी ।



उन दोनों के अलावा ऐसे तीन और भी हिंदुस्तानी कैदी थे, जिन्हें नीलिमा तथा अंजली के साथ ही फांसी देना तय हुआ था ।



उनके नाम सुबोध, अनिल और समर थे ।



वे लगभग तीन साल पहले तबाह हो चुकी एक खुफिया एजेसी सीक्रेट सेल के पांच जांबाज जासूस थे, जो एक निहायत ही अहम मिशन 'आंपरेशन दुर्ग' पर दुश्मनों की धरती पर आए थे ।



वे दुश्मन के जाल में ऐसे फंसे थे कि बच निकलने के सारे रास्ते बंद हो गए थे । ’आपरेशन के दरम्यान उस पांच सदस्यीय टीम का नेतृत्व नीलिमा कर रही थी ।



पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी और. . .फांसी का दिन भी बस अा ही पहुचा था ।



सुबोध, अनिल और समर को जेल के पुरुष वार्ड में रखा गया था, जबकि नीलिमा तथा अंजली को फीमेल वार्ड की बैरक में ।



अंजली भी नीलिमा की ही तरह हमउम्र और लगभग वैसी ही हसीन तथा अरमानों से भरी नवयौवना थी मगर तीन साल की नारकीय कैद ने उनकी खूबसूरती को ग्रहण लगा दिया था ।




कैदियों की यूनीफार्म में नीलिमा एक दीवार से पीठ टिकाए सीलनयुक्त फर्श पर बैठी थी और काफी देर से एकटक छतः को देखे जा रही थी । वह बेहद थकी-थकी और उकताहट का शिकार लग रही थी !!!!

आंखों के नीचे स्याह दायरे उभर अाए थे । चेहरे की सुर्खी जर्दी में बदल गई थी । नरगिसी आंखों की चमक गायब थी और उनमें उदासी तथा हसरत के बेशुमार बादल तैेर रहे थे ।



वह लड़की एक ऐसी लकड़ी प्रतीत हो रही थी, जिसे दीमक ने अंदर ही अंदर खोखली कर दिया हो ।



एकाएक अंजली उसके पास पहुंची और उसकी बगल में उसी की तरह फर्श पर बैठती हुई बोली-----“कहीं तुम यह तो नहीं सोच रही नीलू कि जिन्दगी के बाद भी कुछ है?"



नीलिमा ने आह भरी, फिर वह अंजली की तरफ देखे बगैर अवसाद भरे स्वर में कह उठी--------"जिंदगी के बाद भी कुछ है, मुझें इसमें जरा भी यकीन नहीं ।"



“क्या तुम्हें डर लग रहा है?”



"अपनी मौत से?"



"हां ।"



"नहीं ।” वह पूर्ववत शून्य में देखती हुई बोली-----"लेकिन डर तो मुझे फिर भी लग रहा है ।"



"क्रिस बात का डर?"



"एक कहानी के अधूरी रह जाने का ।" कहते वक्त उसकी आंखें गीली हो गई थी------" मुहब्बत के दफन हो जाने का ।"



"तुम्हारी मुहब्बता यानी अर्जुन?"



"यह कैसा सवाल है अंजूं ?" नीलिमा ने शून्य से नजरें हटाकर अंजली को देखा--------" मेरी दुनिया अर्जुन ही तो है । मेरा संसार तो उसी से शुरू होकर उसी पर खत्म हो जाता है । दुनिया कहती है कि मैं देश की खातिर शहीद होने जा रही हूं मगर सच तो यह है कि मैं अपनी मुहब्बत के लिए कुर्बान हो रही हूं-----------------सच्चा प्यार कुर्बानी मांगता है ना उस हाफिज लुईस ने मुझसे अर्जुन के बारे में कितना पूछा, जिसका दावा था कि जब वह टार्चर करता है तो पत्थरों को भी बोलना पड़ता है । पर बो मेरा मुंह नहीं खुलबा पाया ।"
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Re: गद्दार देशभक्त

Post by 007 »

“क्या अर्जुन भी तुम्हें इतना ही चाहता है?”



"इससे भी ज्यादा ।"

"मेरे खयाल से तो वह केवल अपने देश से प्यार करता है और उसके लिए वह हर कुर्बानी दे सकता है------अपने प्यार की भी ।"



“तभी तो गर्व है मुझे उस पे । तभी इतना चाहती हूं मैं उसे । वतन का प्यार इंसानी जन्नत से ऊपर होता है अंजू । तुम मेरे अर्जुन की मुहब्बत पर केवल इसलिए शक कर रही हो क्योंकि तुम्हारी मुहब्बत झूठी निकली थी…तुम्हारा प्रेमी फरेबी निकला था ।”



" शायद तुम ठीक कह रही हो ।" अंजली के होंठों पर एक दर्दभरी मुस्कराहट आ गई-----" मेरी चाहत का दम्भ भरने वाले उस जलील इंसान ने तो मेरी मुहब्बत को रुसवा करके एक अमीर घराने की लड़की को अपनी बीबी वना लिया था । मैं दरिया में छलांग लगा कर खुदकुशी करने जा रही थी मगर तुम्हारे अर्जुन ने बचा लिया था । तुम्हें याद है ना?”



"अच्छी तरह ।"



"उसने मेरी चेतना को झकझोरकर जगाया था । मुझे उसके वे शब्द अाज भी बैसे-के-वैेसे ही याद है । उसने कहा था कि जिंदगी इतनी सस्ती नहीं कि उसे यूं जाया कर दिया जाए । मरना ही है तो किसी मतलब परस्त के लिए नहीं, मकसद के लिए मरो । मरकर भी अमर हो जाओगी और खुद तुम्हारा इष्ट तुम्हें लेने स्वर्ग के दरवाजे तक आएगा । उसने मुझे जीने का मकसद दिया और अपनी सीक्रेट सेल की एक सिपाही वना दिया ।"



"क्या तुम्हें सिपाही बनने पर अफ़सोस है !"



"कैसा अफसोस! यह जिदगी तो तुम्हारे अर्जुन की ही दी हुई थी, मैं आज वह कर्ज चुकाने जा रही हूं ! इसमे कैसा अफसोस? "



"फिर भी मेरी मुहब्बत पर इल्जाम लगा रही थी ?"

" शायद इसलिए, क्योंकि मुझे कभी सच्चा प्यार नहीं मिला । लेकिन फिर भी हम दोनों ही अपनी-अपनी मुहब्बत की खातिर कुर्बान हो रही है । तुम अपनी मुहब्बत की खातिर, मैं अपनी मुहब्बत की वजह से । कमबख्त ने मेरा साथ दिया होता, मुझे छोड़कर किसी और से शादी न की होती तो आज मैं यहां न होती । उसकी लम्बी उम्र के लिए अपनी मांग सजाए उसके आंगन में बैठी होती । खेर ।"



एकाएक यह भावनाओं के भंवर से बाहर आती हुई बोली------" फिर भी मेरा इल्जाम बेवजह नहीं है ।"



नीलिमा ने उसे सवालिया नजरों से देखा ।



"तुम्हें और हम सबको यहां कैद हुए तीन साल ने ऊपर है गए मगर अर्जुन ने एक वार भी तुम्हारी खबर नहीं ली । सुबोध, अनिल समर और मेरी वात अलग है लेकिन तुम्हारे लिए उसे कुछ करना चाहिए था । और भी कुछ नहीं तो एक वार आकर तुमसे मुलाकात तो करनी ही चाहिए थी । भले ही वह हमारे कट्टर दुश्मनों का मुल्क है और ऐसा करना आसान नहीं है लेकिन जहां चाह होती है वहां राह निकल ही आती है और फिर, उसका नाम तो बैसे मी अर्जुन है । कौन…सा काम है ऐसा जिसे वह कर नहीं सकता! मगर उसने नहीं किया । बोलो, क्या मैं गलत कह रही हूं ?"



"एक बात शायद तुम भूल रही हो ।"



"कौन-सी बात ?"



"कभी मत भूलना कि तूफान कभी शोर मचाकर नहीं आता मगर जब जाता है तो उसका शोर कानों को बहरा कर देता है ।"



“मैं इसका क्या मतलब निकालूं ?"




“मेरा मैं अर्जुन मेरे हालात से और मेरे अंजाम से बेखबर नहीं होगा । वह से किसी के भी अंजाम से बेखबर नहीं होगा, न ही हाथ पर हाथ धरे खामोश बैठा होगा । वह कुछ कर रहा होगा ।"



“क्या कर रहा होगा?"

" मुझें नहीं पता । लेकिन जितना अपने अर्जुन को मैं जानती हूं चलते दावे से कह सकती हूं कि वह हम सबके लिए जरूर कुछ कर रहा होगा-कूछ ऐसा, जो हर किसी को चौंका देगा !"



“हमारी फांसी में अब वक्त ही कितना रह गया है नीलू! वेसे भी जिन हालात में और जहाँ हम कैद हैं, यहाँ हमारी मदद कोई नहीं कर सकता----------"यहां तक कि हमारे मुल्क की सरकार भी नहीं । हम कल का सूरज नहीं देख पाएंगे ।"




"दिमाग तो मेरा भी यही कह रहा है पर दिल मानने को तैयार नहीं है अंजू। सरकार का तो मुझें पता नहीं, मगर इतना जानती हूं कि मेरे अर्जुन के लिए दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं है । अर्जुन हमारे मुल्क की सरकार का एक राज है, जिसे केवल उन्हीं कामों को अंजाम के लिए उतारा जाता है, जिन्हें सरकार नहीं कर पाती ।"



"तुम क्या कह रही हो मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा । तुम्हारी बातों से तो ऐसा लगता जैसे कि तुम्हें पूरी उम्मीद है कि हमे कल फांसी नहीं हो पाएगी । उससे पहले ही अर्जुन किसी फरिश्ते की तरह यहां आएगा और तुम्हें बचाकर अपने साथ ले जाएगा ।”



“मुझे नहीं, हम सबको ।"



"तुम ख्वाब देख रही हो नीलू । अब तो कोई करिश्मा ही ऐसा कर सकता है और असल जिन्दगी में करिश्मे नहीं होते ।"



"होते है । और जब होते है तो खूब जमकर होते हैं ।"



"आई एम सॉरी नीलू। मेरे खयाल से तुम्हारी दिमागी हालत ठीक नहीं है । तुम्हारा शरीर भी यातना और थकान से टूटा हुआ है । हालत तो मेरी भी यहीं है लेकिन क्या फर्क पड़ता है । वस कुछ ही घंटों की बात है, सब ठीक हो जाएगा । कल का सूरज निकलने से पहले हमें सारी तकलीफों से छुटकारा मिल जाएगा ।" कहते-कहते अंजली का धैर्य जवाब दे गया और यह फफककर रो पड़ी ।



“मत रो सहेली-मत रो ।" नीलिमा ने उसे ढांढ़स दी----“जानती हूं निश्चित हो चुकी मौत का इंतजार करना आसान नहीं होता, लेकिन जरा संयम से काम लो । कल और अाज के बीच में अभी कई घंटे बाकी हैं । इतने वक्त में तो कयामत भी अा सकती है और अर्जुन का दूसरा नाम कयामत ही तो है!"



नीलिमा की बातों से अंजली जरा भी आश्वस्त न हो सकी । वह सिसकती रही. ..सिसकत्ती रहीं ।


केसरी नाथ जाना-माना टेक्सटाइल कारोबारी था ।
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Re: गद्दार देशभक्त

Post by 007 »

उसका कारोबार मुम्बई से बाहर भी कई शहरों में फैला हुआ था । उसकी कंपनियों का सालाना टर्न ओवर करोडों में नहीं बल्कि अरबों में था । इसलिए, काफी व्यस्त आदमी था वह ।



उसके पर्सनल मैनेजर के मुताबिक, कोई कल्याण होलकर नाम का आदमी कई दिन से उससे मिलना चाहता था ।


आज जब मेनेजर ने उसे यह वात याद दिखाई तो बोला'--“कौन है ये अादमी और क्यों मिलना चाहता है?”



मैनेजर ने कहा…"नाम तो बता ही चुका हूं । कहता है अाईबी का सस्पेंडिड आंफिसर है ।"



"आईबी का सस्पेंडिड आंफिसर?" केसरी नाथ ने इन शब्दों क्रो दोहराने के बाद पूछा था…"ऐसे आदमी को मुझसे क्या काम है?”



"कहता है, वहुत ही पर्सनल काम है ।"



"ओके । भेजो । लेकिन कह देना, मेरे पास दस मिनट से ज्यादा टाईम नहीं है । अगली फ्लाइट से मुझे दिल्ली निकलना है ।"



"जी बेहतर ।" मेनेजर केवल इतना ही कहा था ।



फिर, जब होलकर उसके सामने पहुचा था ।


“आईबी का सस्पेंडिड आंफिसर ।" केसरी नाथ होलकर को बेहद तुच्छ दृष्टि से देखता बोला…“यहां क्यों आए हो? यहां तो सेल…टैक्स, इनकम-टैक्स और बाकी दूसरे टैक्स के महकमे से जुड़े लोग रिश्वत लेने आते हैं । तुम्हें मुझसे क्या काम हो सकता है?”



होलकर सहज भाव से बोता-----"'मैंने आपके मेनेजर को बता दिया था कि मेरे अाने की वजह नितांत निजी है ।"



" बोलो !"



"वजह आपकी बेटी नीलिमा है ।"



"'न...नीतिमा!” केसरी नाथ हड़बड़ाया । चेहरे के भाव बड़ी तेजी से बदले थे------" म......मेरी नीलिमा के बारे में तुम क्या जानते हो? ”



"खडे-खडे बताऊं?"



“ब...बैठो । बैठ जाओ ।" उसके हाव-भाशे में आश्चर्यजनक रूप से तब्दीली अाई थी…“प्लीज !"



होलकर एक विजिटर चेयर पर बैठ गया ।

“अब बोलो ।" वह उतावला-सा होकर बोता--"'नीलिमा के बोरे में तुम क्या जानते हो?"



"वहीँ, जो आप जानते है ।" होलकर ने वेहद सपाट लहजे में कहा था…“आपकी बेटी इस वक्त पाकिस्तान की जेल में कैद है और कल उसे फांसी पर लटका दिया जाने वाला है ।"



तब, चट्टान जैसा कठोर दिखने वाला वह अधेड़ इंसान जैसे मोम की तरह पिघल गया । उसने अपना सिर ऊंची बैकेरेस्ट वाली रिवॉल्विंग चेयर की पुश्त से टिका लिया, फिर जाने क्या हुआ, वह अनायास ही से रो पड़ा ।



होलकर ने उसे रोने दिया ।


काफी देर बाद केसरी नाथ चुप हुआ ।



अपने आंसू पोंछता हुआ, भरे कंठ से बोला…“मुझे यह मनहूस खबर मिल चुकी है । दस दिन पहले एक सरकारी कारिंदा आया था । उसने कहा था कि…"यह खबर अापको अनौपचारिक रूप से दी जा रही है क्योंकि भारत सरकार ने यह कबूल नहीं किया है कि नीलिमा इंडियन है और इतना तो अाप समझते ही होंगे कि आपकी बेटी को पाकिस्तान में चाहे जितना टार्चर किया गया हो लेकिन उसने भी उन्हें अपना असली पता नहीं बताया होगा' ।"



"मैं आपका दुख समझ सकता हूं केसरी साहब मगर अफ़सोस है कि इस मामले आपकी कोई मदद नहीं कर सकता ।"'



“अफ़सोस न करो ओंफिसर ।" उसका लहजा :पुनः सामान्य होने लगा था--"मेरी बेटी अपने वतन की खातिर शहीद होने जा रही है । ऐसी मौत तो किस्मतवालों को नसीब होती है ।”



"मैँ अपके हौंसले की दाद देता हूं ।" होलकर ने दिल से उसकी तारीफ की…“आप सचमुच बहुत जिगर वाले इंसान है ।"



“हौंसले और जिगर वाली तो मेरी नाजों से पली वो लाडली बेटी है, जो आज भी कितने साहस से अपनी मौत की राह देख रही है ।"



होलकर केवल इतना ही कह पाया…“हमारे मुल्क का इतिहास ऐसे ही जांबाजों की कहानी से जगमगा रहा है ।"

"आई नो । लेकिन ।" उसने होलकर के चेहरे पर अपनी निगाहे गड़ा दीं…“तुमने मेरी बेटी का जिक्र क्यों किया? बकौल अपने ही, तुम तो एक सस्पेंडिड ओंफिसर हो । इसलिए, मैं यह भी उम्मीद नहीं कर सकता कि मेरे लिए कोई अच्छी खबर लाए होगे ?"



“हौंसला रखिए साहब । उम्मीदों का उजाला तो कहीं से भी फूट सकता है ।"



“तुम मुझें बहलाने की कोशिश कर रहे हो । मेरी बेटी की मौत निश्चित है । तुम केवल अपने यहां आने का मकसद बयान करो ।"



"उसके लिए आपको मेरे एक सवाल का जवाब देना होगा ।"



"केसा सवाल? "



“क्या आपकी बेटी अपनी इच्छा से इंटेलीजेंस में भर्ती हुई थी?”



“यह सवाल किसलिए आफिसर?” उसके दिल में कोई नश्तर चुभा हो-“अब इन सवालों का क्या मतलब रह गया है?”



"मतलब है केसरी साहब, तभी तो सवाल किया है ।" केसरीनाथ ने फौरन कोई जवाब न दिया ।



"नहीं ।” वह कुछ पलों की खामोशी के बाद बोला------" मेरी बेटी इंटेलीजेंस में नहीं जाना चाहती थी । वह तो साइंटिस्ट बनना चाहती थी----बहुत बड़ी साइंटिस्ट ।"




"तो इंटेलीजेंस में क्यों चली गई ?"
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Re: गद्दार देशभक्त

Post by 007 »

“अपने मंगेतर की वजह से-अपनी मुहब्बत की वजह से, जिसके बेइंतहा प्यार में यह पागल थी, मगर वह जिसके प्यार में पागल थी, वह अपने देश के प्यार में पागल था । इसीलिए मेरी बेटी भी वतन पर मरने बालोंं की राह पर चल पडी ।"'




"कौन था वह? उसका नाम?"



"अर्जुन-उसका नाम अर्जुन था । वह मेरे ही एक बचपन के दोस्त का इक्लोता बेटा था । उसका नाम दिनेश था । अर्जुन और नीलिमा के प्यार को हम दोनों की रजामंदी हासिल थी ।"



"दिनेश क्या करता था?”

''कौन-सी इंटेलीजेंस में अधिकारी था?"



"वह सीक्रेट सेल का चीफ था ।"



" सीक्रेट सेल?" होलकर चौंककर केसरी नाथ को देखने लगा ।



"हां । देश को हिला देने वाले कई-कई आतंकी हमलों के बाद भारत सरकार ने नए खुफिया सगठन का गठन किया था, जिसका काम करने का ढंग बिल्कुल अलग था ।"



“सीक्रेट सेल का चीफ तो कोई राणावत था?"


"ठीक कहा तुमने । वह यही राणाबत-----दिनेश रणावत !"



होलकर के जेहन में बड़ी तेजी से कुछ चुभने लगा । सवाल किया उसने------"इसका मतलब अर्जुन दिनेश राणावत का बेटा है?”



"हां ।"



"लेकिन दिनेश राणावत के बेटे का नाम तो धनंजय था । और सीक्रेट सेल के रिकार्ड के मुताबिक धनंजय ने ही अपने बाप दिनेश राणावत को शूट किया था, उसके गद्दार हो जाने के कारण ?"



“अर्जून और धनंजय एक ही आदमी के नाम हैं । सीक्रेट सेल के हर ऐंजंट की दोहरी जिन्दगी होती थी । पहली उसकी सामाजिक तथा पारिवारिक जिदगी, दूसरी उसकी व्यावसायिक जिदगी । अाम जिंदगी में लोग उसे अर्जुन के नाम से जानते थे, मगर सीक्रेट सेल में अर्जुन को धनंजय के नाम से जाना जाता था लेकिन इन नामों के सिलसिले की कोई हद नहीं थी । हर सीकेट एजेंट कपड़ों की तरह अपना नाम बदलता था । अर्जुन जब कभी भी नए सीक्रेट मिशन पर जाता था तो हर बार उसका एक नया नाम, नया चेहरा होता था । उसकी पहचान भी बिल्कुल नईं होती थी ।"



"आई सी ।"

"दिनेश राणावत गद्दार हो गया था । उसने बीस हजार करोड़ रुपए लेकर अपने वतन और अपने जमीर का सौदा कर दिया था ।" केसरी नाथ हिकारत भरे स्वर में बोला । उसका चेहरा नफ़रत से सुर्ख हो गया था-----“और दुश्मनो की रूह को थर्रा देने वाली सीक्रेट सेल के सभी सीक्रेटस दुश्मन को 'पास-अान' कर दिए थे । उसका नतीजा बहुत भयानक निकला था । सीक्रेट सेल के विभिन्न मिशनों पर गए ज्यादातर एजेंट चुन चुन कर मारे गए थे या गिरफ्तार कर लिए गए थे, जिस ग्रुप का नेतृत्व मेरी बेटी कर रही थी, उसे भी पूरे ग्रुप सहित इस्लामाबाद में पकड़ लिया गया था । सच तो यह है कि कल का सूरज निकलने से पहले मेरी जो बेटी फांसी के फंदे पर झूल जाएगी उसके इस अंजाम की वजह केवल वह कमीना दिनेश राणावत है । मेरा दोस्त दिनेश रणावत !"



"और अर्जुन रणावत उर्फ धनंजय ने इसी गुनाह की सजा देने के लिए अपने जलील बाप को अपने हाथों से शूट कर दिया था? "



"अर्जुन की रगों में भले ही एक गद्दार का खून दोड़ रहा था मगर वह भारत माता का सच्चा सपूत था । उसका दिल केवल अपने वतन के लिए धडकता था । नीलिमा उसकी मंगेतर न भी होती तो भी मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि उसने राणावत का यही हश्र किया होता । जो किया ।"




"उसके बाद अर्जुन को गिरफ्तार कर लिया गया था और सीक्रेट सेल को भंग कर दिया गया था?”



"ठीक कहा तुमने । यही हुआ था !"'



"अर्जुन पर उसके बाप के कत्ल का मुकदमा चलाया गया था । उसे तिहाड़ जेल में डाल दिया गया था । बाद में वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठा था और उसने जेल में ही सुसाइड कर ली थी । यही हुआ था न धनंजय के साथ?"



"हां । यहीं हुआ था ।" केसरी नाथ तड़पकर बोला-----ये बूढी़ आंखे बेटी के साथ…साथ, होने वाले दामाद के भी दर्दनाक अंजाम की गवाह हैं । अर्जुन की मौत के बाद उसकी लावारिस लाश का अंतिम संस्कार मैंने ही किया था । वे आंसू आज भी मेरी आंखों में सूखे नहीं हैं लेकिन मैं कर भी क्या सकता हूं !"

"आपकी पीड़ा को मैं समझ सकता हूं केसरी साहब, लेकिन क्या आपकी बेटी को अर्जुन के अंजाम के में पता है?"



"केैसे होगा! यह पता लगने का उसके पास जरिया ही क्या हो सकता है! वेसे भी दुनिया की नजरों में धनंजय मरा है, जो सीक्रेट एजेंट था । अर्जुन के बारे में कौन जानता था कि यह कया था?"


“तब तो नीलिमा आज भी अर्जुन को जिंदा समझ रही होगीं?”



"अब क्या फर्क पड़ता है आफिसर बस आज की ही तो बात है ।" उसका गला फिर रूधंने लगा था, लेकिन उसने सख्ती से अपने जज्वार्तों पर काबू पा लिया और होलकर को देखकर बोता------"तुम भी तो कुछ बताओ । यह पुछताछ क्यों कर रहे हो?"



“केसरी साहब, मेरी बाते बेमकसद नहीं हैं । ऐप नहीं जानते कि आपने मेरी कितनी वड़ी मदद की है ।"



“मैंने भला तुम्हारी क्या मदद की है?”



आपने एक बहुत बडे रहस्य से परदा हटा दिया है ।"



" रहस्य ?" केसरी नाथ ने उसे उलझन भरी नजरों से देखते हुए पूछा था------'"केसा रहस्य?"



"विस्तार से बताने का वक्त नहीं है केसरी साहब । फिलहाल बस इतना समझ लीजिए कि जो नजर आ रहा है और जो कान सुन रहे हैं, वह सच नहीं है ।"



"क...क्या सच नहीं है?"




"न सीकेट सेल खत्म हुई है, न ही धनंजय मरा है ।"



केसरी नाथ उछल पड़ा था----------"य. . तो तुम क्या कह रहे हो? मैं तुम्हें बता चुका हूं उसका अंतिम संस्कार मैंने खुद किया है ।"



"वह धनंजय नहीं, कोई और था ।"



केसरी नाथ का दिमाग नाच गया था------" कौन?"



"अभी मैं इस बारे में कुछ भी नहीं बता सकता लेकिन आपका जी चाहे तो यकीन कर लीजिए, आपकी बेटी का मंगेतर जिंदा है ।"

"आपकी पीड़ा को मैं समझ सकता हूं केसरी साहब, लेकिन क्या आपकी बेटी को अर्जुन के अंजाम के में पता है?"



"केैसे होगा! यह पता लगने का उसके पास जरिया ही क्या हो सकता है! वेसे भी दुनिया की नजरों में धनंजय मरा है, जो सीक्रेट एजेंट था । अर्जुन के बारे में कौन जानता था कि यह कया था?"


“तब तो नीलिमा आज भी अर्जुन को जिंदा समझ रही होगीं?”



"अब क्या फर्क पड़ता है आफिसर बस आज की ही तो बात है ।" उसका गला फिर रूधंने लगा था, लेकिन उसने सख्ती से अपने जज्वार्तों पर काबू पा लिया और होलकर को देखकर बोता------"तुम भी तो कुछ बताओ । यह पुछताछ क्यों कर रहे हो?"



“केसरी साहब, मेरी बाते बेमकसद नहीं हैं । ऐप नहीं जानते कि आपने मेरी कितनी वड़ी मदद की है ।"



“मैंने भला तुम्हारी क्या मदद की है?”



आपने एक बहुत बडे रहस्य से परदा हटा दिया है ।"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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