गद्दार देशभक्त complete

Post Reply
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

हलक से एक अजीब-सी हुंकार निकली और वह स्प्रिंग लगे किसी खिलौने की मानिन्द कुर्सी से उछलकर खड़ा हो गया ।



उसका इरादा जोर-जोर से चीखकर बाहर मौजूद सिक्योरिटी का ध्यान अपनी तरफ़ खींचने का था ।



बदहवासी के आलम में वह यह भी भूल गया था कि उसका चेम्बर साउंडप्रूफ था, चीखने की तो क्या गोली की आवाज भी वहाँ से बाहर नहीं जा सकती थी । वह उस क्षण यह भी गूल गया था कि ऐसी इमरजेंसी के लिए उसकी विशाल मेज पर एक इमरजेंसी अलार्म का स्विच लगा था, जिसे पुश करते ही चैम्बर के बाहर तीखा अलार्म गूंज सकता था ।



मोहनलाल उर्फ मुस्तफा के हाथ में मौजूद रिवॉल्वर को देखते ही उसकी आवाज हलक में ही घुट गई थी । चेहरा फ़क्क पड़ गया था------आंखें आतंक से फटी रह गई थी ।

यह लिखा जाए तो जरा भी गलत न होगा कि उसकी हालत शेर के सामने खड़े हिरन जैसी हो गई थी । अपनी तरफ तने रिवॉल्वर को देखते हुए उसे महसूस हुआ कि मुस्तफा किसी इंसान का नहीं प्रेत का नाम है । यम का दूत था वह, जिसे दुनिया का कोई भी पहरा रोक नहीं सकता था । उसके सामने गिड़गिड़ाने और जिन्दगी की भीख मांगने तक का होश न रहा । उसे तो बस यह लगा था कि आज उसकी अट्ठावन साला जिदगी का अंत आ पहुचा है और, सच था भी यहीं ।



"धांय . . . .धांय . . . धांय . . . !"




मुस्तफा के रिवॉल्बर ने तीन शोले उगले । पहला चोपड़ा के पेट में जा धंसा । दूसरे ने उसकी छाती में ठीक दिल वाले स्थान पर सुराख कर दिया तीसरा उसके माथे के अार-पार हो गया ।



नीचे गिरने से पहले ही वह लाश में तब्दील हो चुका था ।



सैयद और नियाज़ भाव शून्य चेहरा लिए खडे़ रहे ।



मुस्तफा ने धधकती, सुलगती अंतिम निगाह चोपड़ा पर डाली, फिर उसने नफरत से चोपड़ा की लाश पर थूक दिया ।



रिवॉल्वर वापस सफारी सूट में खोसा, सांसों को व्यवस्थित किया । फिर वे तीनों जैसे वहां आए थे वैसे ही सहज भाव से चलते हुए निर्विघ्न बाहर निकल गए । बाहर कदम-दर-कदम सिक्योरिटी चेन का पूरा अमला मौजूद था लेकिन उन्हें किसी ने नहीं रोका ।



जिन इंटेलीजेंस अफसरों के बारे में गृहमंत्रालय से आदेश मिला था उन्हें रोकने की गुस्ताखी भला कर भी कौन सकता था !



अॉफिस के बाहर उनकी एम्बेरडर तैयार खड़ी थी ।



तीनों के सवार होते ही गाड़ी आगे बढ़ गई ।



जैसे ही मुस्तफा की एम्बेस्डर से हटी, उसी क्षण पीछे से आकर एक अन्य एम्बेस्डर ठीक उसी स्थान पर रुकी, जहाँ एक पल पहले मुस्तफा की एम्बेस्खर खडी़ थी ।



उस एम्बेरुडर से सफारी सूट पहने जो शख्स बाहर निकला उसकी शक्ल मोहनलाल बने मुस्तफा से काफी मिलती थी ।



उसके साथ आए दोनों जूनियरों के साथ भी ऐसा ही था । वह आईबी की तरफ से आई इंटेलीजेंस अफसरों की वास्तविक टीम थी, उन्हें देखते ही चोपड़ा के सिक्योरिटी दस्ते में हड़कम्प मच गया ।


सुअर जैसी थूथनी वाला केंद्रीय रक्षामंत्री अपने पृथ्वीराज रोड स्थित सरकारी आवास में मौजूद था और एक ईजी चेयर पर पसार सुपारी चवा रहा था । उसके सामने रखा विशालकाय बावन इंच वाला एलईडी टेलीविजन अॉन था ।



उस पर थोड़ी देर पहले ही हुए प्रबल कुमार चोपड़ा के कत्ल की सनसनीखेज खबर प्रसारित हो रही थी ।



घटना से जुड़े मौकाए वारदात के बिजुअल्स भी दिखाए जा रहे थे । हंसराज ठकराल काफी संजीदगी तथा दिलचस्पी से वह सारा दृश्य देख और सुन रहा था । उसका निजी सचिव, जयदेव शस्त्री वहां पंहुचा ।



" आ जा शास्त्री ।” ठकराल टीबी का वाल्यूम म्यूट करता हुआ बोला---------"मैं तेरा ही इंतजार कर रहा था ।”



" सॉरी ठकराल साहब! मुझें आने में जरा देर हो गई ।"



" कोई बात नहीं । बैठ ।"


" मैं ऐसे ही ठीक हूं ।"



"क्या खबर लाया ?"



" खबर अच्छी नहीं है ।"


" आंज कमबख्त एक भी अच्छी खबर सुनने को नहीं मिली । चोपड़ा की खबर तो तुझे लग ही चुकी होगी?"



"मुझे यया, सारी दुनिया को लग चुकी है । हाफिज के हथियार ने आखिर अपने दूसरे टार्गेट को हिट कर ही दिया ।"



“हाफिज का हथियार-------यानी मुस्तफा?”



" आपने ठीक समझा । मेरा दावा है कि यह काम मुस्तफा के अलाबा अोर किसी का नहीं हो सकता ।"



" तूं अपनी खबर सुना । क्या राजा चौरसिया हाथ आया ?"



"नहीं ठकराल साहब ।" शास्त्री के स्वर में खेद का पुट आ गया था---------"चौरसिया हमारे हाथ नहीं आया और अब इस बात में मुझें पूरा शक है किं वह हमारे हाथ कभी आएगा भी नहीं !"


"ऐसा क्या हुआ?

"अपना काम करके पंछी फुर्र हो गया है ।”


"फुर्र हो गया है!" ठकराल के चेहरे पर बड़े हाहाकारी भाव उभरे । वह कुर्सी पर सीधा होकर बैठता हुआ बोला…"यानी बीस हजार करोड़ की चाबी नवाब के हाथ में थमाकर वह अपनी राह लग गया । यही कहा न तूने?"



'"ह. . हां । मेरा यही मतलब है ठकराल साहब ।"



ठकराल के हाव-भाबों में अप्रत्याशित परिवर्तन अाया । वहुत ही तल्ख लहजे में बोला वह----"तूने तो कहा था कि मुम्बई का जो तेरा कांटेक्ट है, वह बहुत भरोसे का आदमी है और उसके रहते हमारा मिशन कभी फेल नहीं हो सकता ।"



"मैंने गलत नहीं कहा था ठकराल साहब । मुम्बई का वह कांटेक्ट वाकई बहुत भरोसे का था । यह मुम्बई के अंडरवर्ल्ड डॉन जहांगीर का अादमी था । दिल्ली में उसके जातभाई डबल एस के जरिए मैंने वहां तक पहुंच बनाई थी लेकिन हालात अचानक बदल गए । नवाब को सच मालूम हो गया और मुम्बई के अंडरवर्ल्ड में खून…खराबे के ऐसे हालात पैदा हो गए कि डबल एस के भरोसेमंद कौशिक ने इस काम से अपने हाथ खींच लिए और हमारा मिशन खटाई में पड़ गया ।"



“कौशिक की मां की आंख ।” ठकराल भड़ककर बोला------------"'मैंने तेरे से पहले ही कहा था कि चौरसिया बहुत काबिल हरामजादा है । वह शर्तिया बीस हजार करोड़ की चाबी ढूंढ़ निकालेगा । फिर भी तूने मेरी बात पर तवब्जो नहीं दी और वह मुम्बई से बाहर निकल गया ।"



""म. . मैंने बताया न कि ।" एकाएक शास्त्री थूक गटककर बोला-'"हालात अचानक पलटा खा गए थे । कौशिक ने नबाब के सामने सब कुछ बक दिया था । ऊपर से चौरसिया पहले से ही वहुत ज्यादा सतर्क था । उससे पहले जो तीन-तीन विदेशी हैकर मारे गए थे, उसका सच उसे मालूम हो चुका था ।”


“सत्यानाशा यह तूने वाकई वहुत बुरी खबर सुनाई है ।"



"आ. . आई एम सॉरी ठकराल साहब ।" वह बोला-------"'बीस हजार करोड़ पर अब नवाब काबिज हो चुका होगा ।"


"नवाब के तो फरिश्तों को भी उन बीस हजार करोड़ का राज मालूम नहीं हो सकता । क्या तू भूल गया कि इस दुनिया में केवल चुनिंदा लोग ही हैं जिन्हें उस रकम का रहस्य पता है और जिन्हें रहस्य पता है, उन लोगों में नवाब जैसे लोग कभी शामिल नहीं है सकते । नवाब तो महज बिचौलिया है-------असली खिलाड़ी तो कोई और है और वह रकम उसके कब्जे में पहुंच चुकी होगी !"



" असली खिलाडी है कौन? क्या आप उसे जानते है ?"



"जानता होता तो क्या मैं यहीं बैठा धार है रहा होता! उसकी मुंडी मरोड़कर सारा रुपया अपनी अंटी में नहीं खोंस चुका होता?"



“इसका मतलब वह रुपया आपके हाथ से निकल चुका है?"



"फिलहाल तू ऐसा कह सकता है शास्त्री, लेकिन हंसराज ठकराल की आंख में भी सुअर का बाल है । यह हमारे लिए भले ही वहुत करारी चोट है, लेकिन अभी सारे रास्ते बंद नहीं हुए है ।"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

"यानी अाप अभी वह रुपया प्राप्त कर सकते है?”



"हां । सामने जब दौलत का इतना बड़ा पहाड़ खड़ा हो तो हार मानने बाला दुनिया का सबसे अहमक अादमी होगा । वह दौलत का पहाड़ तो मैं हर हाल में हासिल करके ही रहूंगा ।"



"कैसे ठकराल साहब?" शासत्री के चेहरे पर भी उम्मीद रोशन हो गई थी…"ऐसा आप कैसे करेंगे?"



"बताने का वक्त नहीं आया है शास्त्री पर तू मेरे हर पाप में बराबर का भागीदार है, इसलिए जो कुछ भी होगा, उसमे हमेशा के तरह इस बार भी तेरा अहम रोल होगा ।”



""स. . .सो तो मैं जानता हूं ठकराल साहब, लेकिन. . . . .


“कहां अटक गया?"


"प्रबल कुमार चोपडा का कल्ल कोई मामूली घटना नहीं है, उसके लिए आपको जवाब देना पडे़गा ।"



"बो मैं दे लूंगा । तू चिंता न कर ।” ठकराल धाराप्रवाह अंदाज में कहता चला गया-------"मैंने तिहाड़ जेल से ताल्लुक रखता एक काम सौंपा था तुझे, उसका क्या हुआ"'



“सौरी ठकराल साहब ।" उसके स्वर में फिर खेद का पुट आ गया--“उथर से भी अच्छी खबर नहीं है ।"



"अब क्या हुआ यार?"

"पिछले दिनों दिल्ली की तिहाड़ जेल में यकीनन कुछ ऐसा हुआ
है जो नहीं होना चाहिए था । यह उड़ती हुई खबर मिली है कि उस घटना में तिहाड़ के एक कैदी की मौत हो गई थी ।"


" कैसे ?"



'"एक भारतीय कैदी ने एक पाकिस्तानी कैदी पर हमला कर दिया था । दावे से तो नहीं कह सकता लेकिन खबर है कि वह कैदी एक ऐसा रिटायर्ड फौजी था, जो पाकिस्तान की जेल में हुई भारतीय कैदी समरजीत की हत्या की खबर पर बुरी तरह भड़क गया था और प्रतिरोधवश आक्रामक होकर पाकिस्तानी टेरेरिस्ट पर हमला कर बैठा था । प्रशासन ने बुरी तरह घायल पाकिस्तानी कैदी को अानन-फानन में अस्पताल पहुंचाया था । सुनने में आया था कि वह मरने से बच गया था, लेकिन असल में यह सच नहीं है ।"



"यानी पाकिस्तानी कैदी बचा नहीं था, मर गया था ?"



"मुझे जो इशारा मिला है, यह तो यहीं कह रहा है । लेकिन फिर कहता हूं यह केवल इशारा भर ही है । इस बारे में कोई भी दावा करने लायक सबूत मेरे पास नहीं है ।”



“पाकिस्तानी कैदी का नाम क्या था?”



"अभी यह भी मालूम नहीं हो सका है लेकिन मेरी कोशिश जारी है । इस सिलसिले में जैसे ही कोई पुख्ता जानकारी मेरे संज्ञान में आएगी, मैं फौरन आपको बताऊंगा ।"



ठकराल ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि मेज पर रखे तीन मोबाइल में से एक बजा ।



ठकराल ने स्कीन पर ब्लिंग करता नम्बर देखा और अनायास ही माथे पर वल पड़ गए । जेहन में सरगोशियां होने लगी । उसने कॉल रिसीव करने के जगह सिर उठाकर शास्त्री को देखा ।



शास्त्री ने इशारा समझा और वहां से चला गया ।



कक्ष का दरवाजा बंद होने पर ठकराल ने काल रिसीव की ।



"आदाब अर्ज है सरकार ।" दूसरी तरफ़ से एक पुख्ता लेकिन खुशामदभरा स्वर ठकराल के कानों में पड़ा ।



"त. . .तुम !" ठकराल गुर्राया-----"फोन क्यों किया?"



"गुस्सा न हों सरकार । वहुत जरूरी हो गया था ।"



"ऐसा क्या हो गया?"

“हुआ नहीं, होने वाला है ।"


"क्या होने वाला है ।"


"पता नहीं । लेकिन कुछ ज़रूर होने वाला है-----कुछ ऐसा, जो नहीं होना चाहिए ।"



"बात क्या है, साफ-साफ बोलो ।"


"उससे पहले सरकार कुछ बता देते तो ज्यादा बेहतर होता?"


"क्या जानना चाहते हो ?"



"क्या बीस हजार करोड़ वाला एकाउंट हैक हो गया है?"



"यह सवाल किसलिए?" ठकराल के कान खड़े हो गए ।



“आप जानते हो सरकार, मेरे सबाल बेवजह नहीं होते । मालूम है तो जबाव दो ।”



"मुझें हुक्म दे रहे हो?”



"अर्ज कर रहा हूं !"



"मेरे पास अभी तक ऐसी कोई इन्फारमेशन नहीं है कि उस एकाउंट को हैक कर लिया गया है ।"




"गुस्ताखी माफ़ करें सरकार ।" दूसरी तरफ़ से उभरता विनम्र स्वर दृढ़ हो गया-------"'आप झूठ बोल रहे है !"



“अच्छा!” ठकराल चिंहुककर बोला-----“मैँ झूठ बोल रहा हूं ! क्या झूठ बोला मैंनें !"'



"आपने एकाउंट के बारे में जो भी बताया, वह सरासर झूठ है !" उभरने वाला स्वर पहले जैसी दृढता से बोला------"'सच यह है कि वह एकाउंट न केवल हैक कर लिया गया है, बल्कि उसमे जमा सारा-का-सारा रुपया निकाल लिया गया है ।"



"यह तुम क्या बकवास कर रहे हो?"



"मैं सच कह रहा हूं सरकार और यह भी सच है कि आप इस सच से बखूबी वाकिफ है !"



“शटअप ठकराल ने उसे डपट भले ही दिया हो मगर सच्चाई ये थी कि वह उसकी सटीक जानकारी पर हैरान हुए बगैर न रह सका था-----"ऐसा कुछ नहीं है । मुझे केवल इतना पता है कि चौरसिया अपने काम में जुटा हुआ है, पर अभी उसे कामयाबी नहीं मिली है !"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

"आपका यह झूठ आपकी नीयत की स्पष्ट चुगली कर रहा है सरकार । आप दाई से पेट छुपाने की कोशिश कर रहे है । आप शायद भूल गए कि आपकी उस बीस हजार करोड़ वाले एकाउंट का राज़ मैंने ही बताया था और इस शर्त के साथ बताया था कि अगर आप उस रकम को हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं तो उन बीस हजार करोड़ रुपयों में से आधे का हकदार मैं होऊंगा और बाकी आधा अपके हिस्से में आएगा । याद है न? "



"याद है । आगे बोलो ।”



“आपकी नीयत में खोट आ गया है ठकराल साहब । आप पूरे बीस हजार करोड़ हथियाने का ख्वाब देखने लगे हैं । आपकी यह इंकारी आपके उसी खोट का सबूत है ।"



"बकवास बंद करों ।”



"बकवास तो कर रहा है साले मोटी चमड़ी वाले गुंडे?" दूसरी तरफ़ मौजूद शख्स धैर्य का बांध जैसे एकाएक टूट गया था और वह बिफर पड़ा था…“इसीलिए तुम खद्दरवालों की नस्ल से भी यह दुनिया नफरत करती है ।”



"ठहर जा स्वामी ।" मारे अपमान के ठकराल का चेहरा सुर्ख हो गया था…“मुझे गाली देता है?"



"खैर मना कि तू इस वक्त मेरे सामने नहीं है । होता, तो गाली नहीं देता, सीधे गोली मार देता तुझे । मगर कोई बात नहीं, तेरे जैसे सुअर से हिसाब बराबर करने का मेरे पास बहुत वक्त है । तेरे लिए इस राज का पाश ही कयामत वन सकता कि मुल्क के केद्रीय रक्षामंत्री के ताल्लुकात जैसे लोगों से है । तेरी सरकार के पास इस बात का सबूत पहुंचने की देर है, रक्षामंत्री की कुर्सी कल ही तेरे नीचे से खिसक जाएगी ।"



ठकराल के तेवर तुरंत ढीले पड़ गए ।



"लेकिन घबरा मत कुत्ती नसल के इंसान । फिलहाल मैं ऐसा नहीं करूंगा । जानता है क्यों?"



ठकराल खामोशी से सुनता रहा ।



"क्योकि मुझे पता है कि तेरी इस कमीनगी के बावजूद तेरे हाथ कुछ नहीं अाने वाला । बताऊं क्यों?"

"आपका यह झूठ आपकी नीयत की स्पष्ट चुगली कर रहा है सरकार । आप दाई से पेट छुपाने की कोशिश कर रहे है । आप शायद भूल गए कि आपकी उस बीस हजार करोड़ वाले एकाउंट का राज़ मैंने ही बताया था और इस शर्त के साथ बताया था कि अगर आप उस रकम को हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं तो उन बीस हजार करोड़ रुपयों में से आधे का हकदार मैं होऊंगा और बाकी आधा अपके हिस्से में आएगा । याद है न? "



"याद है । आगे बोलो ।”



“आपकी नीयत में खोट आ गया है ठकराल साहब । आप पूरे बीस हजार करोड़ हथियाने का ख्वाब देखने लगे हैं । आपकी यह इंकारी आपके उसी खोट का सबूत है ।"



"बकवास बंद करों ।”



"बकवास तो कर रहा है साले मोटी चमड़ी वाले गुंडे?" दूसरी तरफ़ मौजूद शख्स धैर्य का बांध जैसे एकाएक टूट गया था और वह बिफर पड़ा था…“इसीलिए तुम खद्दरवालों की नस्ल से भी यह दुनिया नफरत करती है ।”



"ठहर जा स्वामी ।" मारे अपमान के ठकराल का चेहरा सुर्ख हो गया था…“मुझे गाली देता है?"



"खैर मना कि तू इस वक्त मेरे सामने नहीं है । होता, तो गाली नहीं देता, सीधे गोली मार देता तुझे । मगर कोई बात नहीं, तेरे जैसे सुअर से हिसाब बराबर करने का मेरे पास बहुत वक्त है । तेरे लिए इस राज का पाश ही कयामत वन सकता कि मुल्क के केद्रीय रक्षामंत्री के ताल्लुकात जैसे लोगों से है । तेरी सरकार के पास इस बात का सबूत पहुंचने की देर है, रक्षामंत्री की कुर्सी कल ही तेरे नीचे से खिसक जाएगी ।"



ठकराल के तेवर तुरंत ढीले पड़ गए ।



"लेकिन घबरा मत कुत्ती नसल के इंसान । फिलहाल मैं ऐसा नहीं करूंगा । जानता है क्यों?"



ठकराल खामोशी से सुनता रहा ।



"क्योकि मुझे पता है कि तेरी इस कमीनगी के बावजूद तेरे हाथ कुछ नहीं अाने वाला । बताऊं क्यों?"

ठकराल अब भी खामोश रहा ।


“क्योंकि उस रकम में कुछ और रकम जुड़कर आईएसआईएस के हाथ में पहुंच चुकी है ।"



"आईएस के हाथ में! क्यों?”



"एएसबी की कीमत के तौर पर ।”



"एएसवी?" ठकराल चौंक पड़ा…“यह क्या है?”



"एटामिक स्पेस वेपन । यह परमाणु की ताकत से चलने वाला एक ऐसा, वहुत ही विनाशकारी हथियार है, जो ईराक से आईएस को हासिल हुआ है । मगर जिसका ईजाद दूसरे महायुद्ध के वाद अमरीकियों और रशियनों ने किया था ।"



“उसे स्पेस वेपन क्यों कहते हैं !"



“क्योंकि वह सचमुच स्पेस वेैपन है । उसका इस्तेमाल केवल स्पेस (अंतरिक्ष) में ही किया जाता है, जमीन पर या समुद्र में नहीं । उसका इस्तेमाल अंतरिक्ष में ऐसी कयामत ला सकता है, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता-तूं भी नहीं । पहली बार हमारे किसी जेहादी संगठन के हाथ कोई इतना विध्वंसक हथियार लगा था मगर अफ़सोस, आईएस का रास्ता हमारे बाकी जेहादी संगठनों से अलग है, इसलिए वह हमें सहयोग करने को तैयार नहीं है । हमें आईएस को उसकी माकूल कीमत चुकाकर ही हासिल हो सकता था और आईएस ने उसकी कीमत बाईस हजार करोड़ रुपए लगा रखी थी…बाइंस हजार करोड़ ।"



ठकराल भौंचवका-सा होकर उसका हर लफ्ज सुन रहा था ।


"इतनी रकम हमारे पास नहीं थी ।" आवाज पुन: उभरी…“इस फ्रंट पर हमारे सरपरस्त मुल्क पाकिस्तान ने भी हाथ रव्रड़े कर दिए थे । परिणामस्वरूप वह वेपन हम सबके लिए एक सपना बनकर ही रह गया था । हम लोग दो-तीन जेहादी संगठन मिलकर भी उसे खरीदने में सक्षम नहीं थे । ऐसे में मुझे उस बीस हजार करोड रुपए की बरबस ही याद हो अाई, जो इतने बरसों से एक बैंक एकाउंट में पड़ा सड़ रहा था । अगर उस बीस हजार करोड़ में से दस हजार करोड़ भी हमारे हाथ लग जाता तो हमारे लिए आईएस को बाईस हजार करोड़ रुपया चुकाना आसान हो जाता ! इसीलिए मैने तेरे साथ यह सौदा किया था और तुझे उस एकाउंट के बारे में बताया था । लेकिन तूं हरामजादा निकला ।"



"एक हरामजादा दूसरे हरामजादे से इस तरह पेश नहीं आता बेवकूफ । वेैसे मैं इस बात पर सख्त हैरान हूं कि मेरे मुल्क के उस फेक एकाउंट के बारे में मुझे तुझसे पता लगा, जिसमें मेरे ही मुल्क के किसी शख्स का इतना बेशुमार वाला धन जमा था ।”



"ऐसा इसलिए हुआ ठकराल क्योंकि उस एकाउंट में जमा सारा बीस हजार करोड़ रुपया मेरे अपने मुल्क पाकिस्तान का है !”



“तो फिर वह रुपया हमारे मुल्क में कैसे आया?"



"रिश्वता बतौर रिश्वत वह रुपया तेरे मुल्क में दिया गया था ।"



“किसको दिया गया था वह रुपया?"


"वह तेरी इंटेलीजेंस का एक बड़ा अधिकारी था । उसकी मौत की वजह अंतत: वह बीस हजार करोड़ की रिश्वत ही वनी !”




"इतनी बड़ीं रिश्वता मुझे यकीन नहीं होता ।"



"जो काम तेरे उस गद्दार अधिकारी ने हमारे लिए किया था, उसके बदले यह कीमत तो बहुत कम थी । वेैसे तेरे यकीन करने या न करने से मेरे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यह रकम तो अब तेरे हाथ भी नहीं आने वाली । वह तो अब बता ही चुका हूं कि आईएसआईएस के हाथों में पहुॉच चुकी है और मेरी यह खबर सौ फीसदी सच है । यह अलग बात है कि यह कारनामा हाफिज लुईस साहब के संगठन ने अंजाम नहीं दिया लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है । जिसने भी किया होगा, हमारी अपनी कौम का ही कोई जांबाज होगा और देख लेना, वह उसका इस्तेमाल बहुत जल्दी तेरे मुल्क के खिलाफ़ ही करेगा । लेकिन असल में तो तरस मुझे तेरे ऊपर अा रहा है ठकराल । तुझे तो न खुदा मिला, न ही बिसाले सनम । आक थू !”



दूसरी तरफ़ से फोन डिस्कनेक्ट हो गया ।

दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमित लूथरा ओमकार चौधरी के फार्म हाउस पर पहुचा । उसके साथ एनएसजी का एक अफ़सर भी था ।



उसका नाम दामोदर था ।



"आओ कमिश्नर पधारो ।" लूथरा को देखते ही चौधरी के चेहरे पर व्यंगात्मक भाव आ गए------"तुम्हारी शक्ल यहाँ देखकर मुझे कितनी खुशी हो रही है, उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता हैं कहते-कहते उसकी नजर दामोदर पर पड़ीं । बोला…“ये रंगरूट कौन है?"



अमित लूथरा ने असीम धैर्य का परिचय देते हुए दामोदर के बारे में बताया…“इन्हें गृहमंत्रालय की तरफ़ से सास आपकी सुरक्षा के लिए भेजा गया है । ये अपनी पूरी टीम के साथ अाये है ।”



"कमाल है ।" चौधरी ने आश्चर्य जताया था…“इसका मतलब सरकार को याद है कि मुझे सुरक्षा की जरूरत है ।”




"चौधरी साहब ।” कमिश्नर लूथरा पूर्ववत धैर्य से बोला----- मैं किसी राजनैतिक दल का आदमी नहीं हूं । सरकारी आदमी हूं और उसी के आदेश पर अपनी डूयूटी निभाने आया हूं ।"




"तुम जैसा ही एक अफ़सर डूयूटी निभाने चोपड़ा के पास पहुंचा था । जानते हो क्या हुआ ?"




"जो हुआ, उसका हम सबको अफ़सोस है ।”



"केवल अफ़सोस है, बस !”



"जो भी कार्यवाई की जा सकती है, की जा रही है । एनएसजी को जांच सौप दी गई है ।"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

"सत्ता में बैठे नेताओं द्वारा बोला जाने वाला यह डायलाग इतना घिस-पिट गया है कमिश्नर कि टीवी पर सुनते-सुनते अब तो जनता भी पक गई है । मैं ही नहीं, सारा देश ऐसी घोषणाओं की सच्चाई से वाकिफ़ है । हकीकत ये है कि यह एक निहायत ही नकारा सरकार है और इसका खुफिया तंत्र भी वेसा ही नकारा है । मैं पूछता हूं चोपड़ा को मारने के लिए जो दहशतगर्द सारे सिक्योरिटी सिस्टम को धता बताकर उसके पास पहुच गए, उन्हें आखिर आईबी का सीक्रेट कैसे मालूम हुआ उन्हें यह राज़ किसने बताया कि आईबी की एक टीम किसी पूछताछ के लिए चोपड़ा के पास जाने वाली है और आफिसर का नाम मोहनलाल है? जबाव दो कमिश्नर ।"

लूथरा के पास कोई जबाब होता तो देता ।



"जाहिर है कि यह राज उसे आईबी से ही मालूम हुआ होगा कुपित चौधरी कहता गया-------"इसका मतलब मुल्क की इंटेलीजेंस ब्यूरो जैसी संस्था के वहुत अंदर तक दहशतगर्दों की पकड़ है । मैं तुमसे सवाल करता दूं कमिश्नर, जो आतंकी आईबी जैसे अभेद्य माने जाने वाले खुफिया संस्थान में घुसपैठ कर सकते हैं, उनके लिए एनएसजी में कर लेना क्या मुश्किल काम होगा? रही बात सिविल पुलिस की, उसके बारे में तो कहने ही क्या!" उसने दामोदर की तरफ देखा…“क्या नाम बताया था तुमने इसका? "



"दामोदर ।” लूथरा ने बताया ।



"यह गूंगा है क्या?"



"नहीं जनाब ।" दामोदर बोला-“मेरा नाम दामोदर है । दामोदर फ्रांम नेशनल सिक्योरिटी गार्ड अॉफ इंडिया ।"

चौधरी ने कहा…“यानी गूंगा नहीं है । लंगडा-लूला, अंधा, बहरा भी नहीं होगा । फिर भी मुझे यह नहीं चाहिए और न ही इसकी टीम की शक्ल देखना चाहता हूं । इसे लेकर लौट जाओ और दोबारा मेरे फार्म हाउस पर मत आना ।"



“चौधरी साहब ।" लूथरा विरोधपूर्ण स्वर में बोला------" आपकी जान को खतरा है । खुफिया एजेंसियां इस बारे से अलर्ट. . ."

"शटअप कमिश्नर ।" चौधरी बिफरकर बोला------"बंद करो अपनी बकवास और जो मैंने कहा है उस पर अमल करो । मुझे न तो तुम्हारी सरकार पर भरोसा है और न ही उसकी मुहैया कराई गई सुरक्षा व्यवस्था पर । मेरी सुरक्षा के लिए पहले से तुम्हारे महकमे और सरकार ने जो लोग लगा रखे हैं, चाहो तो भी ले जा सकते हो । मैंने यह काम एक निजी सिक्योरिटी कम्पनी को सौप दिया है ।"



लूथरा तिलमिलाया !



दामोदर भी तिलमिलाया था लेकिन दोनों ने आपको संयत रखा ।

"अच्छी बात है चौधरी साहब ।" लूथरा बोला------"आपकी यही जिद है तो मैं कुछ नहीं कर सकता।”



चौधरी ने अपना चेहरा दूसरी तरफ़ घुमा लिया ।



लूथरा दामोदर के साथ वापस चला गया ।


तभी यहाँ जसवंत अत्री पहुंचा ।



"क्या खबर है अत्री?” चौधरी ने सवाल किया ।



“खबर अच्छी है ।” अत्री बोला…"हमारे समर्थकों ने काफी भीड़ जुटा ली है । दस हजार से कम नहीं होगी ।"



"निरंजननाथ की क्या पोजीशन है?"



“महारैली के लिए कल रात से ही लोगों का हुजूम दिल्ली में इकट्ठा हो रहा है । ताजा आकड़ों के मुताबिक आधा घंटा पहले तक एक लाख से ज्यादा लोग रामलीला मैदान में इकट्ठा हो चुके थे !! गुलशन और चोपड़ा की हत्या ने सारे मुल्र में उबाल ला दिया है । उसका भी महारैली को पुरा फायदा मिलेगा । निरंजननाथ को पांच लाख लोगों के आने की उम्मीद है, लेकिन मौजूदा हालत में यह भीड छ: लाख भी हो सकती है-------उससे ज्यादा भी ।"



"बहुत खूब !” चौधरी का चेहरा दमक उठा-----" मेरा भी कुछ ऐसा ही ख्याल था । यदि सचमुच ऐसा हो गया अत्री, तो यकीन मानो, यह सरकार अाज ही गिर जाएगी, या आज़ ऐसे हालात बन जाएंगे, जो आने वाले कल में सरकार के पतन का कारण बनेंगे ।"



अत्री खामोश रहा ।



" हम रेैली स्थल के लिए कब रवाना होंगे" उसने पूछा ।



"जब निरंजननाथ मंच पर पंहुच जाएगा ।"



"उसने तो दोपहर दो बजे का वक्त दे रखा है ।"



"मुझे पता है, वह पांच से पहले मंच पर नहीं पहुंचेगा ।"



"सवाल ही नहीं उठता चौधरी साहब ।"



"हम साढे पाच बजे पहुंचेंगे । उसकी मंच पर मौजूदगी में अपने हजारों समर्थकों के साथ पहुचने का अलग ही असर होगा । अभी क्या वत्त हुआ है?"



"एक बजने वाला है ।" अत्री ने रिस्टवॉच देखी !



"अभी वाकी वक्त है । तब तक हमारे समर्थकों की तादाद में और इजाफा करने की कोशिश करो । हम अभी आते हैं ।"


“जी !"



ओमकार चौधरी वहां से चला गया ।



चौधरी जव दिखाई देना बंद हो गया तो अत्री के हाव-भाव चेंज हो गए । जेब में पड़े मोबाइल पर एक ब्लैंक मैसेज सेंड करके किसी को सिग्नल दिया ।


चौधरी बेडरूम में पहुंचा ।


वहां एक तहखाना था ।


तहखाने के बारे में चौधरी के इक्का-----दुक्का विश्वासपात्रों को छोड़कर अन्य कोई नहीं जानता था ।


यह तो चौधरी के अलावा शायद ही किसी को मालूम था कि तहखाने में सुरंग के रूप में एक खुफिया रास्ता भी था ।


उसके जरिए अपात स्थिति में किसी की नजरों में आए बगैेर फार्म हाउस की इमारत से बाहर निकला जा सकता था या फिर चुपचाप इमारत में प्रवेश किया जा सकता था ।



चौधरी सीढि़यां उतरकर तहखाने में पहुचा ।



वहां हर तरफ़ अंधेरा था ।



ऊपर का प्रवेश द्वार उसने मजबूती के साथ बंद कर दिया था ।



दाई दीवार में लगे कुछ स्विच दबाए, परिणामस्वरूप समूचा बेसमेंट एलईडी की दूधिया रोशनी से जगमगाने लगा ।



चौधरी उस दरवाजे की तरफ़ बढ़ा, जो खुफिया रास्ते के दहाने पर था ।



मगर तभी, ठिठककर रुक गया ।



अपने पीछे उसे किसी आहट का एहसास हुआ था ।


फुर्ती से एडि़यों पर घूमा ।



अगले पल दिलो दिमाग पर विजती--सी गिरी ।


उपर की सांस उपर, नीचे की नीचे ।


उसके सामने मुस्तफा खड़ा था ।



साक्षात मुस्तफा!

हालांकि वह मोहनलाल के भेश में था लेकिन अब सारी दुनिया उसे इसी वेश में तो पहचानती थी क्योंकि चोपड़ा के आँफिस लगे सीसीटीवी की यह फुटेज कई-कई बार देश के सभी न्यूज चैनल्स पर चल चुकी थी जिसमें वह चोपड़ा को गोली मार रहा था ।




ओमकार चौधरी के होश उड़ा देने के लिए इतना काफी था कि वो जल्लाद उसके सामने खड़ा था ।



केरेले पर नीम चढ़ा यह कि उसके हाथ में रिवॉल्वर भी था और जाहिर है कि रिवाल्वर का भाड़-सा मुंह उसे ही घूर रहा था ।



चौधरी की सिट्टीं पिट्टी गुम करने के लिए और क्या चाहिए यहाँ हलक से बदहवास-सा स्वर निकल----"म----------मुस्तफा! तुम यहां?"



"यकीन नहीं हो रहा न चौधरी साहब !" उसे अपने रिवॉल्वर के निशाने पर लिए मुस्तफा कुटिल स्वर में बोला ।



"त. . .तुम यहां कैसे पहुंच गए?"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

"बौखलाहट की ज्यादती के कारण तुम बेवकूफी वाले सवाल पूछ रहे हो चौधरी! यहाँ आने के केवल दो ही तो रास्ते हैँ-एक वह, जिससे तुम यहाँ आए और दूसरा वह, जिससे तुम यहां से बाहर जाना चाहते थे । अपने चारों तरफ़ तुमने जो अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था का जाल फैला रखा है, उसके चलते पहला रास्ता तो मैं इस्तेमाल कर नहीं सकता था । अब कौन---सा बचा?"



"मगर ।" चौधरी के दिल ने वहुत देर बाद धड़कना शुरू किया था । होंठों से फिर भी फंसा हुआ-सा स्वर निकला…"'त...तुम्हें खुफिया रास्ते के बारे में कैसे पता लगा !"



“दिमाग पर जोर डालकर सोचो कैसे पता लगा होगा ?"



"इ. . .इस खुफिया रास्ते के बारे में गिने-चुने लोगों को ही पता है । म.........मेरे साथ धोखा हुआ है । म.. .मेरा कोई अपना गद्दार हो गया ?"



“इस मुल्क का तो इतिहास ही गद्दारों ने लिखा है । जयचंदों की इस दुनिया में किसी वफादार का दगाबाज हो जाना क्या बड़ी बात है! हम तो हमेशा ऐसे ही लोगों का फायदा उठाते रहे हैं ।"



"म. . .मुझे उसका नाम बताओ !"
"क. . .क्या करोगे जानकर चौधरी साहब । हमारी कौम के ऐसे बाशिंदे तो तुम्हारे मुल्क के हर जर्रे पर मिल जाएंगे । तुम तो वहुत छोटे नेता हो, हमारे जांबाज तो पीएमओ के अंदर भी घुसे हुए । किस-किसका नाम पूछोगे?”



"ल. . लेकिन मुझसे तुम्हारी क्या दुश्मनी है?"



"हैरानी है कि तुम मुझसे यह सवाल पूछ रहे हो चौधरी । लगता है मौत के खौफ़ ने तुम्हारा दिमाग हिला दिया है । मुझे इस मुल्क में ऐसे किसी भी सियासत दां को जीते देखना मंजूर नहीं, जिसके अंदर राष्ट्रवाद का कट्टरपंथ हिलोरें मारता हो । सहारे इस कट्टरपंथ ने हमारे जेहाद को बहुत नुकसान पहुंचाया । जिंदा रहे तो और ज्यादा नुकसान पहुचाओगे । तुम्हें देखकर तुम जैसे और कुकुरमुत्ते भी पैदा हो सकते हैं । उनके होने से पहले ही यह नजीर पेश करना जरूरी है कि ऐसे लोगों का हम क्या अंजाम करते है । अपने भगवान को याद कर लो ।”



" न.......नहीं मुस्तफा ।" चौधरी विरोधपूर्ण स्वर में जल्दी से बोला । चेहरा पहले ही पीला ज़र्द पढ़ चुका था-----“गोली मत चलाना । एक मिनट के लिए मेरी बात सुनो । मैं तुम्हें कोई राज. . ."



मुस्तफा उसकी बात सुनने के मूड में नहीं था ।



“धांय. . . धांय . . .धांय !!!"



उसके रिवॉल्वर ने तीन बार आग उगली और तीनों धमाकों की आवाज साउंडप्रूफ़ बेसमेंट में दफन होकर रह गई ।

ओमकार चौधरी के फार्म हाउस से लौटने के बाद कमिश्नर लूथरा ने पुलिस हेडक्वार्टर में स्थित अपने आँफिस में कदम रखा ही था कि उसे चौधरी के कत्ल की सनसनीखेज खबर सुनने को मिली ।



लूथरा सन्नाटे में आ गया ।



उसका रोया-रोया खड़ा हो गया ।



उलटे पांव अॉफिस से बाहर निकला तो एसीपी नेगी को अाते देखा । वह लूथरा को सल्यूट मारने के बाद उखड़ी सांसों के साथ बोला----“चौधरी के बारे में तो अापको पता लग ही गया होगा सर!"


"हां ।" लूथरा ने आंदोलित भाव से कहा-------"‘ मैॉ वही जा रहा था । वैसे मैं अभी वहीं से आ रहा हूं ! कितना समझाया था चौधरी को लेकिन वह नहीं माना । पहले हमारा वह जांबाज इंस्पेक्टर गुलशन राय फिर चोपड़ा और अब ओमकार चौधरी। राजधानी के अंदर यह केैसी कयामत आई हुई है ।" उसने शीघ्र ही खुद को संयत किया फिर नेगी को देखकर सवाल किया----“लेकिन तुम ?"



"मैं भी इसी सिलसिले में आपके पास आया हूँ ।" नेगी ने जल्दी से कहा…“दरअसल मेरे पास एक वहुत अहम खबर है ।"



"जल्दी बताओ?"



“ओमकार चौधरी का एक वहुत खास आदमी टेरेरिस्टों से मिला हुआ है । हमने समय रहते इस सच को भांप लिया था ओंर उस दगाबाज को गिरफ्तार करने के बिल्कुल करीब पहुच गए है, लेकिन मात खा गए थे ।”



“किसकी बात कर रहे हो?”



नेगी ने एक ही सांस में बता दिया कि उसने किस तरह आईबी के निलम्बित एजेंटों पर भरोसा करके आर्या को फ्फड़ा था और फिर आर्या की जुबानी किस तरह जसवंत अत्री के वारे में पता लगा था ।



पहले तो लूथरा भोंचक्क अवस्था में नेगी की तरफ देखता रह गया फिर दांत पीसता बोला--""इंस्पेक्टर आर्य कहां है?”



"कस्टडी में है । हम जसवंत को रंगे हायों गिरफ्तार करना चाहते थे, इसीलिए आर्या के जरिए उसे मुलाकात के लिए बुलाया था और जसवंत ने अनि के लिए कह भी दिया था मगर नहीं आया । हम इंतजार करते रहे । बस । यहीं हम मात खा गए । जसवंत मेरी उम्मीद से ज्यादा शातिर निकला । या फिर शायद उस कमीने आर्या ने ही उसे फोन पर कोई गुप्त इशारा कर दिया था, जिसे हम समझ नहीं पाए और दुश्मन अपना खेल खेलने से कामयाब हो गया ।"



अब तक तो जसवंत अंडरग्राउंड हो गया होगा !



"मैंने अलर्ट जारी कर दिया है । जसवंत जहाँ भी नजर जाएगा, उसे निराकार कर लिया जाएगा ।"



"बाकी बातें बाद में होंगी । फिलहाल मेरा मौकाए वारदात पर पहुंचना जरूरी है । मेरे साथ आओ ।"

"सॉरी सर ।" नेगी ने अपनी जगह से हिलने तक की कोशिश नहीं की । वह दृढ़तापूर्वक बोला-----इस वक्त आपका चौधरी के भी हाउस पर नहीं बल्कि कहीं और पंहुचना बेहद जरूरी है । इसीलिए मैं भागता हुआ अपके अॉफिस की तरफ़ अा रहा था ।"



“कहां?" लूथरा चौंका था ।



“निरंजननाथ के पास । टेरेरिस्टों का अगला निशाना वही होगा । वह महारैली के लिए निकलने ही वाला होगा । हमें हर हाल में निरंजननाथ को वहां जाने से रोकना होगा सर ।"



"यह मुमकिन नहीं है नेगी, ऐसी कोशिश खुद होममिनिस्टर साहब करके देख चुके हैं लेकिन निरंजननाथ नहीं माना ।"



"तब और अब में फ़र्क है । मेरे ख्याल से अगर वर्तमान हालात में समझाया जाए तो यह अपना फैसला बदल सकता है । रामलीला मेैदान में इस वक्त लाखों की भीड़ इकट्ठा है । अाप खुद सोचिए, यदि यहीं निरंजननाथ के साथ कोई अनहोनी होती है तो उसका नतीजा कितना भयानक हो सकता है । बहां मचने बाली भगदड़ हजारों लोगों को मौत के घाट उतार सकती है और मुमकिन है कि टेरेरिस्टों का असली मकसद भी यहीं हो ।"



"यही है ।" लूथरा दल भींचकर कह उठा------"हंड्रेड परसेंट उन शैतानों का मकसद यहीं है लेकिन निरंजन समझे तब ना गृहमंत्रालय की तरफ़ से ऐसी कोशिश दोबारा भी की जा चुकी है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला । वह अपने कदम वापस लेने को तैयार नहीं है । उसे लग रहा है कि सरकार उससे डर गई है । झूठ बोलकर हम रुकवाने की फिराक में है । वैसे भी वह अपनी राजनीति चमकाने का मौका नहीं गंवाना चाहता ।"



"जब वही नहीं रहेगा तो राजनीति का क्या होगा !''
Post Reply