गद्दार देशभक्त complete

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kunal
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Re: गद्दार देशभक्त

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चौरसिया गौर से उसकी बात सुन रहा था !



" मगर फिर एक दिन दुर्भाग्य कैंसर के रूप में चुपके से हमारी जिंदगी में दाखिल होगया ! हम दोनों के पेरों तले से जमीन खिसक गई ! ऐसे कैंसर का पता ही तब चलता है कि जब वह खतरनाक स्टेज पर पहुंच जाता है ! हमारे पास जितना पैसा था , मिलन का ईलाज कराया ! कोई फायदा नहीं हुआ और हमारा सारा पैसा चुक गया ! घरबालों से मदद की उम्मीद नहीं कर सकते थे और मैं अपनी आखों के सामने अपने मिलन को कैंसर के भीषण दर्द से तड़प तड़पकर दम तोड़ते नहीं देख सकती थी ! इनकम का कोई और स्रोत हमारे पास नहीं था ! मुझे बड़ी हद तक पंद्रह हजार की कोई छोटी मोटी नौकरी मिल सकती थी , उससे मिलन की दस दिन दवा भी नहीं आसकती थी ! मेरे सामने केवल एक ही रास्ता बचा था !"



चौरसिया अब भी खमोश रहा !



" औरत यदि खूबसूरत हो तो उसका जादू मर्दों के सिर पर चढ़कर बोलता है और सुंदरता के मामले में ऊपर बाले ने मुझे पर खास करम किया था ! मुझे एक रात के बीस से पैंतीस हजार तक मिलने लगे, जिन्हें मैं मिलन की दवाओं पर खर्च करने लगी और यूं खुद को लुटाने का मुझे अफसोस ना हुआ ! मंहगी दबाई मिली तो मिलन का दर्द कम होगया ! फिर एक दिन नवाब के गुर्गे मुझे नवाब के पास ले गये ! उसे अपने कुछ खास क्लाइंटस या गेस्ट के लिए एक रेग्युलर लड़की की जरूरत थी, जो खूबसूरती के सारे पैमाने पूरा करती हो , जो कि मैं थी ! नवाब ने मुझसे कहा कि---- '-यूं बीस बीस हजार रूपयों में मैं ज्यादा दिनों तक अपना धंधा नहीं करती रह सकती थी, बहुत जल्द ही चुक जाने वाली था और मेरा कसा हुआ बदन झूल जाने वाला था ! फिर कोई मेरे बदन के पांच हजार भी नहीं देने वाला था ! पकड़े जाने का खतरा बना रहता था सो अलग-' !"



चौरसिया ने केवल हुंकार भरी !


" मैनें पूछा ---- 'फिर '----- तो वह कहने लगा कि----' मेरे लिए काम करना शुरू कर दो ! काम वही होगा जो अब कर रही हो , मगर करने का तरीका अलग होगा ! रोज रोज हवस के भेड़ियों के नीचे नहीं बिछना पड़ेगा ! यह काम मुझे बड़ी हद तक महीने में चार पांच बार करना पड़ेगा और वह मुझे इतना मेहनताना देगा जितना मैं सोच भी नहीं सकती !"


"क.....कितना ?"


" पांच लाख रूपया महीना !"


" तुम तैयार हो गई ?"
" नहीं होती क्या ? इससे अच्छा अॉफर मुझे भला और कहां मिल सकता था ! तब से आज तक पूरी निष्ठा और ईमानदारी से



नवाब का हुक्म बजा रही हूं----- उसके लिए काम कर रही हूं ! उसने भी अपना वादा निभाया ! जिसका नतिजा यह है कि मेरा मिलन आज पुरा एक साल गुजर जाने के बाद भी जिंदा है और अब वह दर्द से भी उतना नहीं तड़पता है !"


" तुम्हारी कहानी तो सचमुच दर्दनाक है !" चौरसिया अफसोस भरे स्वर में गर्दन हिलाता हुआ बोला !



नगमा खमोश रही !



" नवाब से तुम्हें आज तक कभी शिकायत नहीं हुई ?"



" कैसी शिकायत ! नवाब हुनरमंद लोंगों की कद्र करना जानता है ! जब तक उसके साथ कोई फरेब नहीं करता , वह उसे नुकसान नहीं पहुंचाता ! उसे दुनिया में केवल एक ही शब्द से नफरत है, जिसे धोखा कहते हैं ! धोखेवाज को नवाब बहुत बुरी मौत मारता है !"




" हूं !" चौरसिया ने एक लम्बे हुकारे के बाद बिषय बदला ------" तुम जानती हो , मैं कम्प्यूटर की दुनिया का एक हिस्ट्रीशीटर हूं ----- एक कुख्यात कम्प्यूटर हैकर !"



" जानती हूं !"



" मुझसे पहले भी मेरे जैसे तीन हुनरमंद मुम्बई में बुलाए जा चुके हैं और उन तीनों हुनरमंदों को तुम्हीं ने डील किया था , जिनकी लावारिस लाशें मुम्बई की सड़कों पर पाई गई !"



"ओहो ! तो वह सब ----तुम्हें मालूम है !" नगमा फिक्रमन्द हो उठी !



" पहले से मालूम होता तो इस होटल की बात ही बहूत दूर है , मुम्बई तक में कदम ना रखता ! कौन मरना चाहता है !"



नगमा खामोश रही !




" पता तब लगा, जब तुम बाथरूम में थी ! न्यूज चैनल पर सुना और उन तीनों की लाशों के फोटो भी देखे ! अब भला मेरे दिमाग में इस बात को घुसने से कौन रोक सकता था कि मैं उसी सिलसिले का चौथा शिकार हूं !"

" हैरानी है कि फिर भी डटे हुए हो, होटल छोड़कर रफू-चक्कर नहीं हो गये ! उन तीन विदेशी हैकरों में से किसी को भी समय रहते यह सच्चाई मालूम हो जाती तो गांरटी है, यहां से ऐसे गायब होते कि फिर नवाब को उनकी परछाई भी ढूंढे़ नहीं मिलती !"



" कोशिश तो मैंनें भी ऐसी ही की थी !"



" मतलब ?"



" देखो नगमा , तुम भी जानती हो-------दूध का धुला मैं भी नहीं हूं ! क्रिमनल हूं------लेकिन जरा अलग तरीके का क्रिमनल ! नवाब की तरह मैं हाथ पैंरों से काम नहीं लेता , खून खराबा नहीं करता ! दिमाग की दही करता हूं और कम्प्यूटर से खेलता हूं ! खून खराबे के तो नाम तक से मेरा टॉयलेट निकलने को तैयार हो जाता है इसीलिये..........



" इसीलिये ?"



"मैंनें भी भाग निकलने में ही भलाई समझी थी ओर तुम्हारे बाथरूम से बाहर आने से पहले ऐसी कोशिश भी की थी परंतु तुरंत पता लग गया कि बहुत देर हो चुकी है ! चाहूं भी तो........इस होटल की तो बात ही दूर है, सुईट तक से नहीं निकल सकता !"



" ऐसा क्या है ?"



चौरसिया ने उसे बहुत गौर से देखा ! कहा-------" तुम एक्टिंग कर रही हो या वास्तव में अनजान हो !"




" मैं समझी नहीं कि तुम क्या कह रहे हो ?"



" अगर रफू-चक्कर होने की कोशिश की तो किसी हालत में सफल नहीं हो सकूंगा बल्कि शायद वक्त से पहले ही टेंटुवा दबाकर मार दिया जाऊंगा ! नवाब ने ऐसे सारे इंतजाम कर रखे हैं ! होटल के चप्पे चप्पे पर उसके आदमी तैनात है ! जिनका एक ही काम है----मुझे रोकना !"




" क्या बात कर रहे हो !" नगमा के चेहरे पर सचमुच आश्चर्य के भाव उभर आए थे-------" मुझे तो कहीं कोई नजर नहीं आया !"



" नवाब जैसे लोग अपने आदमियों को भी उतनी ही बातें पता लगने देते हैं जितनी उनके मतलब की होती हैं !"



नगमा चुप रह गई !



हकीकत ये है कि कहने के लिए तत्काल कुछ सुझा ही नहीं था ! कुछ देर चुप रहने के बाद बोली----"एक बात पुछूं ?"


" हजार पुछो !"
" जब मैं बाथरूम से निकली थी , तुम आराम से म्युजिक सुन रहे थे ! तुम्हारे चेहरे पर खौफ का एक भी भाव नहीं था बल्कि यह कहूं तब गलत नहीं होगा कि तुम पुरी मस्ती में नजर आ रहे थे ! अगर उससे पहले यह जान चुके थे कि जिस काम के लिए तुम्हें मुम्बई बुलाया गया है, उसी काम पर आए तीन हैकर कत्ल किए जा चुके हैं तो बैसा कैसे था ?"



" मजबूरी !"



" मतलब ?"



" बता चुका हूं ! जब पता लगा होश फाख्ता हो गये मेरे बल्कि यह कहूं तब भी गलत न होगा कि मेरी फूंक सरक गई थी ! बस एक ही बात आई दिमाग में कि -------भाग राजा , वरना गया ! मगर जब बैसी कोशिश की तो सारे रास्ते बंद पाये ! पस्त होकर चेयर पर गिर जाने के अलावा कोई चारा ना बचा था ! बहुत देर तक उसी तरह पडा़ रहा और कांपता रहा अपनी मौत के खौफ से ! फिर , लगा-----ऐसे तो काम नहीं चलेगा ! अपनी जान बचाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा ! सोचते सोचते कुछ सूझा और जब सूझा तो सांसें लौट आई । फैसला किया-------- कुछ भी हो , खुद को बचाने के लिए वही करूगां जो सूझा है ! अपने सोचे पर भरोसा हुआ और तब मेरी मस्ती लौट आई जो तुमने देखी !"
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Re: गद्दार देशभक्त

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नगमा की आखों में हैरानी के भाव उभर आए । चौरसिया की तरफ इस तरह देखने लगी वह जैसे चिडियाघर के सबसे बिचित्र जानवर को देख रही हो ! बोली--------" ऐसा क्या सूझ गया तुम्हें ?"



" तुम्हें नहीं उस सूरमा को बताऊंगा !"



" किसे ?"



" तुम्हारे नवाबजादे को !"



" अचानक ही तुम बहुत कांफिडेंस से भरे और रहस्यमय नजर आने लगे हो ! उस चक्रव्यूह में घुसने को पूरी तरह तैयार जिस में फंसकर तुम जैसे तीन हुनरमंद अपनी जान गवां चुके हैं !"




" इसमें कोई शक नहीं कि अब मैं तुम्हारे नवाब से मिलने के लिए बेचैन हूं ! यह अलग बात है कि इसके अलावा मेरे पास कोई चारा भी नहीं है ! भागने के सारे रास्ते उसने बंद कर ही रखे हैं !"

" पता नहीं अचानक ही तुम कौन सी हवा में उड़ने लगे हो फिर भी , मैं एक नेक सलाह देने से खुद को रोक नहीं पा रही हूं !"



" दो !"



" नवाब को धोखा देने की कोशिश मत करना !"



" तो क्या उन तीनों फारेनर हैकर्स ने नवाब को धोखा दिया था, जिन्हें उसने कत्ल कर दिया ?"



" नवाब को धोखा देना इतना आसान नहीं है ! लेकिन वे तीनों विदेशी , नवाब की उम्मीदों से कहीं ज्यादा स्मार्ट बन रहे थे ! उन्होने धोखा देने की कोशिश की और सजा पाई !"




" यानी अगर मैं तुम्हारे कथित नवाब को धोखा देने का इरादा नहीं रखता तो मुझे फिक्र करने की जरूरत नही है ! मेरा हश्र पहले वाले हैकर्स जैसा नहीं होगा ?"



" अपने काम के आदमियों और वफादारों को तो वह सिर आंखों पर बैठा कर रखता है ! तुम्हारे पास भी एक हुनर है , जिसका नवाब इस्तेमाल करना चाहता है , जिसके लिए वह तुम्हें अॉफर करेगा ! मेरी निजी सलाह यही है कि खामोशी से उसका काम कर देना और अपनी कीमत लेकर शहर से निकल जाना ! "



" हूं !" चौरसिया ने सोचपुर्ण भाव से हुकार भरी -----" मेरे एक सवाल का सच सच जबाब दोगी ?"




"पूछो ?"



" क्या तुम्हें नहीं मालुम कि वह मुझ से क्या कराना चाहता है ?"



" नहीं ! यह एक सीक्रेट है , जिसके बारे में नवाब के अलावा और कोई नहीं जानता ! लेकिन यह निश्चित है कि यह कोई कम्प्यूटर की दुनिया से जुड़ा काम ही होगा , जिसके कि तुम एक्सपर्ट हो ! पिछले साल तुमने जिस तरह से मुल्क के बैंक सिस्टम में सेंध लगाकर दिन दहाड़े ढाई सौ करोड़ रूपये लूटे थे, नवाब ने तुम्हारे उसी कारनामे से प्रभावित होकर तुम्हें फोन करके मुम्बई बुलाया है ?"

" अर्थात नवाब का वह कम्प्यूटर हैकिंग के जरिए किसी बैंक को लूटना हो सकता है ?"




" नवाब बैंक रोबर नहीं है, न ही उसने पहले कोई ऐसा ओछा काम किया है ! फिलहाल अपनी जिज्ञासा को शांत रखो !" उसने अपनी रिस्टवॉच देखी ----" नवाब से तुम्हारी मीटिंग का वक्त करीब आ पहुंचा है ! अब केवल बीस मिनट शेष है और हमें ब्रेकफास्ट भी करना है !"



चौरसिया ने एक क्षण सोचा फिर सहमति में सिर हिलाता हुआ बोला -------" ठीक है ! मुझे भी भूख लगी है ! चलती हूं ! मगर ........




" फिर अटक गये ?"



" आखरी सबाल ?"



" जल्दी ?"



" मान लिया कि मैं नवाब का काम कर देता हूं ! क्या उसके बाद भी वह मुझे तुमसे मिलने की परमीशन दे सकता है ?"




" बाद तुम मुझसे मिलना क्यों चाहोगें? मैं एक शादी शुदा औरत हूं और अब तो सही मायने में औरत ही नहीं हूं ----औरत के नाम के नाम को धब्बा लगाने बाली एक जिस्मफरोश हूं ! तबायफ हूं !"



" मुझे नहीं पता ! पर सच यह है कि मै तुमसे बार बार मिलना चाहूंगां, और एक बार दुनिया के उस खुशकिस्मत इंसान को भी जरूर मिलना चाहूंगा, जिसे तुम जैसी पत्नी मिली ! जहां तक जिस्मफरोश और कालगर्ल की बात है तो वह अगर तुम जैसी होती है तो मैं अपने बनाने बाले से यही दुआ करूगां कि मुझे हर जन्म में ऐसी ही जिस्मफरोश और कालगर्ल बीबी मिले ! ऐसी तबायफ पर तो हजार जानें कुर्बान की जा सकती हैं !"



" अच्छा !" पहले झटके में नगमा हंसीं ! फिर संजीदा हुई और फिर चौंककर चौरसिया को देखने लगी ! वैसी ही नजरों से जैसे चिडियाघर के सबसे बिचित्र जानवर को देख रही हो !

मिशन मुस्तफा के लिए कल्यान होलकर ने अपनी जो टीम तैयार की, उसमें होलकर के अलावा कुल पांच लोग शामिल थे ! उन पांचों के नाम थे----प्रताप, शेखरन , भल्ला, गिरीश, और अमरीक !



पाचों आईबी के तेजतर्रार , युवा तथा जोशिले एजेंट थे और इससे पहले भी एक अन्य मिशन पर होलकर के साथ कर चुके थे, पिछला तजुर्बा अच्छा रहा था, इसीलिये होलकर ने उन पांचों का चुनाव किया था !



आईबी चीफ बलवंत राव तथा होलकर की मीटिंग के खत्म होने के करीब एक धंटे भर बाद ही टेरेरिस्टों का अगला संदेश वाया गृहमंत्रालय बंलवत के पास पहुंच गया था , जिसमें मुस्तफा तथा चादनी सिंह की अदला बदली का समय , स्थान और शेष तमाम बातें मुकर्रर कर दी गई थी !
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Re: गद्दार देशभक्त

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बलवंत राव ने उस बारे में होलकर को सूचित कर दिया था ! वस्तुतः टेरेरिस्टों की तरफ से सरकार को जरा भी वक्त नहीं दिया गया था ! इसलिये बलवंत ने होलकर के फौरन अपनी तैयारियां मुकम्ल करने तथा मुस्तफा को साथ लेकर बताई गई जगह पर पहुंचने का निर्देश दिया गया !



डील के लिए टेरेरिस्टों ने जो जगह निर्धारित की थी , वह सचमुच चौंकाने वाली थी ! वह जगह मुम्बई के दक्षिणी तट से काफी दूर बीचों--बीच समुंद्र में स्थित थी ! यह वह जगह थी जहां से महज थोड़ा सा आगे बड़ते ही पाकिंस्तान के हिस्से वाली समुद्री सीमा शुरू हो जाती थी और जहां समुंद्र की छाती पर पाकिंस्तान की नेवी के जवान पुरी तैयारी के साथ हर वक्त दनदनाते रहते थे ! फिर भी , वह जगह थी भारत के समुंद्र में !


होलकर ने प्रताप , शेखरन , भल्ला, गिरीश, और अमरीक की वह छोटी सी मीटिंग इसी सिलसिले में तलब की थी ।

इस वक्त वे सभी होलकर के अॉफिस में उसकी में उसकी विशाल मेज के इर्द---गिर्द मौजूद थे ! मेज पर बीचों----बीच भारत का बड़ा सा नक्शा फैला हुआ था , होलकर ने डील वाले समुंद्री स्थान को रेड इंक से मार्क कर दिया था !



" यह जगह !" होलकर अपने हाथ में मौजूद पेन को मार्क वाले स्थान पर रखता बोला------"यहां से पचास नाटिकल मील की दूरी पर है ! सबसे तेज रफ्तार वाले एक्सप्रेस पोत से अगर हम मुस्तफा को लेकर इस जगह के लिए निकलते हैं और बीच में समुंद्री रास्ते की कोई खास दिक्कत नहीं आती है तो हमें यहां पहुचने में पूरे दो घंटे का वक्त लग जाएगा !"



" रास्ते में कोई दिक्कत आती है तो ?" प्रताप ने सवाल किया !




" जाहिर है कि ज्यादा वक्त लगेगा !"




" कितना ज्यादा ?" गिरिश ने पुछा !



" आने बाली दिक्कत की किस्म पर निर्भर करता है ! वैसे समुंद्री सफर में घंटे दो घंटे की देर हो जाना आम बात है !"




शेखरन ने पुछा ---" टेरेरिस्टों ने हमें कितना समय दिया है ?"



" तीन घंटे !"



" सिर्फ तीन घंटे !" अमरीक हैरान होकर बोला ---" उनमें से पंद्रह मिनट तो बीत चुके होंगे ?"



" हां !" होलकर ने सहमति जताई-----"यकीनन ! हमें इतने ही वक्त में अपनी मंजिल पर पहुचना होगा !"



" यह वक्त तो बहुत कम है !" भल्ला रोष में बोला ! " सरकार को टेरेरिस्टों से और ज्यादा वक्त की मांग करनी चाहिए थी ! समुंद्री रास्तों का सफर आसान नहीं होता ! उसमें अप्रत्याशित बाधाएं पेश आ जाती हैं !"



" सरकार ने पुरजोर ऐतराज जताया था लेकिन टेरेरिस्ट नहीं माने ! उनका कहना है रास्ते में कोई दिक्कत पेश नहीं आएगी ! आज समुंद्र बहुत शांत है और शाम तक उसमें कोई भी बदलाव न होने की मौसम विभाग भविष्यवाणी कर चुका है !"



" मौसम की भविष्यवाणी कभी पूरी तरह सटीक नहीं होती !"



होलकर बोला ----" टेरेरिस्टों का कहना है कि उन्होनें इसीलिये एक घंटे का अतिरिक्त समय दिया है !"



" हूं !" प्रताप ने गम्भीरता से हुंकार भरी------" फिर भी...........

" मैं तुम्हारी उलझन समझ सकता हूं प्रताप !" होलकर प्रताप की बात पुरी होने से पहले ही बोला---" लेकिन अफसोस कि टेरेरिस्ट बहुत ज्यादा शातिर है ! उन्होने हमें सोच विचार के लिए जरा भी समय नहीं दिया है ! डील के लिए उन लोंगों ने पाकिस्तान की सीमा से लगी जिस समुंद्री जगह का चुनान किया है, वह सब भी पूरी तरह प्री प्लान है, उसमें मेरे हर उस सवाल का जबाब छिपा है जो मैनें काफी अंसतोष के साथ चीफ से किया था !"



" कौन सा सवाल सर ?"



" यही कि इस डील के लिए हाफिस लुईस ने सीधे पाकिस्तान को ही क्यों नहीं चुन लिया , उनके लिए तो वही जगह सबसे माकूल रहती ! जरा सा भी जोखिम न हेता उन्हें ! मेरे सवाल के जबाब में चीफ ने कहा था कि अगर , टेरेरिस्ट ऐसा करते तो पाकिस्तान दुनिया के सामने एक्सपोज हो जाता-----उसका असली चेहरा दुनिया के सामने आ जाता !"



" चीफ ने गलत नहीं कहा था !"



" अब मेरी समझ में आगया है ! बहरहाल , पाकिस्तान में डील होने में कसर ही क्या रह गई है ! जो जगह टेरेरिस्टों ने मुकर्रर की है , देख ही रहे हो कि वहां पाकिस्तान की समुंद्री सीमा बिल्कुल सटी हुई है ! यानी किसी खतरे या जोखिम की -स्थिति में मुस्तफा या उसके साथी बिना किसी बोट के अगर तैर कर भी जाऐंगे तो दस मिनट में पाकिस्तान की सीमा में दाखिल होजाएगें ! और मेरा दावा है कि वे करेंगे भी यही !"



" मतलब पाकिस्तान में दाखिल हो जाएंगे ?"




" यकीनन ! और अगर ऐसा हुआ तो हम चाहकर भी उन पर गोली नहीं चला सकेंगें !"



" ऐसा क्यों ?"



" क्योंकि हमें सीमा पर गोली चलाने का अधिकार नहीं है ! यदि ऐसा किया तो पाकिस्तान चीख-चीखकर उसे खुद पर हमला करार देगा , जिसके बदले में समुंद्री सीमा पर तैनात पाकिस्तानी नेवी को जबाबी हमला करने का बहाना मिल जाऐगा और समुंद्री सीमा पर युद्ध के हालात पैदा होएंगें !"
" ओह नो !" भल्ला के मुंह से बरबस ही निकल गया !



" इसीलिये तो मैंने कहा कि यह सब प्री प्लान है---- बहुत पहले से सोची समझी गई साजिश है !"



प्रताप बोला----" ऐसा है तो फिर चाहे भले ही टेरेरिस्टों को कोई जोखिम न हो, आखिरकार तो उन्हें पाकिस्तान की सरहद की तरफ जाना ही पड़ेगा! मुस्तफा के साथ वह हमारी अपनी सीमा में सीमा में ही बापस लौटने की मुर्खता तो कर नहीं सकते !"



" तुमने ठीक कहा प्रताप !" होलकर ने कहा -----" उनकी मंजिल तो पाकिस्तान ही होगा ! यहां से आजाद होने के बाद तो मुस्तफा दोबारा हिंदुस्तान का रूख करने की हिमाकत कभी नहीं करेगा, मैं उसे इतना अहमक कभी नहीं समझता !"




" मुस्तफा अहमक हो भी नहीं सकता !" अमरीक दांत पीसता हुआ बोला था-------" कोई शैतान का बीज अहमक होता भी नहीं है ! अहमक तो बस हम ही होते है ! हम हिंदुस्तानी ! जो उनकी हर मांग के सामने अपने घुटने टेक देते हैं !"




" मैं तुम्हारे जज्बातों को समझता हूं अमरीक !" होलकर उसकी बात काटकर बोला------" मैं तुम सबके जज्बातों को समझता हूं ! लेकिन तुम्हें अपनी भावनाओं पर काबू रखना होगा ! अगर अभी से तुम्हारा यह हाल है तो जरा सोचो , मुस्तफा के सामने आने के बाद क्या होगा ? तब तो--- तुम सब उसकी बोटी बोटी चबा जाने को मचल उठोगे और अंततः वह हो जाएगा, जिसके डर से चीफ ने यह मिशन आईबी के हमसे ऊंचे अफसरों के हबाले नहीं किया ! शायद तुम लोग नहीं जानते कि मुस्तफा के लिए यह जहर हमारे उच्चधिकारियों में हमसे कहीं ज्यादा है और चोटी के अफसर होने के नाते चीफ के लिए उनके अंसतोष को दबा पाना आसान नहीं होता ! अगर मुस्तफा को कुछ होगया तो चांदनी को कोई नहीं बचा सकता और चांदनी इस वक्त मुल्क के लिए प्रतिष्ठा का सबाल है !"
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Re: गद्दार देशभक्त

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सभी पाचों की निगाहें आपस में मिली !



आखों ही आखों में सबने एक दूसरे को समझाया, तसल्ली दी !


प्रताप ने सबसे पहले खुद को सहज करते हुए सबाल किया-------" क्या केवल हम छः लोग ही मुस्तफा को लेकर जाएंगे !"
" पोत का स्टाफ भी होगा ! हम लोग तो पोत चलाने से रहे !"



" पोत क्यों ? पनडुब्बी क्यों नहीं ?" गिरीश ने पहलु बदला !



" पनडुब्बी युद्धक आर्म्स की श्रेणी में आती है !"




" पोत भी युद्धक होता है !"



" होता है लेकिन हमें वो नहीं मालवाहक पोत लेजाने की परमीशन है ! सख्त हिदायत है कि उसमें हम छः लोगों तथा केबिन क्रू के तयशुदा स्टाफ के अलावा एक भी फालतु आदमी नहीं होना चाहिए ! अगर टेरेरिस्टों को जरा भी संदेह हुआ तो वे हमारे सामने ही नहीं आएंगे और यह डील रद्द हो जाएगी !"




" डील रद्द हो जाएगी ?"



" हां !" और फिर नये सिरे से डील होगी ! टेरेरिस्टों की तरफ से धमकी तो ये भी दी गई है कि ------ यह भी हो सकता है कि उसके बाद कोई डील हो ही नहीं ! सीधी चांदनी की बॉडी भेज दी जाए !"




" तो ठीक है !" बुरी तरह झल्लाए हुए शेखरन ने कहा-----" हम भी मुस्तफा की बॉडी भेज देंगें !"




" वो जानते है हम ऐसा नहीं कर सकते !"



" जब बो कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते ?"



" क्योंकि हम.......हम है और वे..........वे !"




" हम क्या हिजड़े है जो.......!" भभकते शेखरन को वाक्य बीच में ही छोड़ देना पड़ा --क्योंकि अमरीक ने कंधा थपथपा कर चुप रहने के लिए कहा था !




गिरीश ने अपेक्षाकृत शांत स्वर में पूछा------" जब सरकार ने सरेंडर कर ही दिया है तो टेरेरिस्टों को कोई भी संदेह होगा ही क्यों ?"




" उन्हेॉ होने वाली किसी गलतफहमी को हम नहीं रोक सकते !"




" अगर टेरेरिस्टों ने रास्ते में ही पोत पप हमला करके मुस्तफा को छुड़ा लिया तो हम गिनती के लोग उन्हें कैसे रोकेंगे ?"



"सरकार के प्रतिनिधी ने यह सम्भावना जताई थी !"



" क्या बोले ?"




" टेरेरिस्टों ने उसकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि अगर ऐसा होता है तो इंडियन नेवी को खुदकुशी कर लेनी चाहीए , जो अपनी ही सीमा में अपने पोत की हिफाजत नहीं कर सकती !"

" बहुत लम्बी जुबान है हरामजादों की !" भल्ला कलपकर बोला-----"एक बार हमारी उंगली निकल आई तो ऐसी काटूंगा कि औलादें भी बिना जीभ के पैदा होंगी !"




" पोत पर हमें कोई खतरा नहीं होगा !" होलकर ने भल्ला की बात ध्यान दिए बगैर कहा-----" --क्योंकि वहां मशीनगन से लेकर मिसाईल लांचर तक मौजूद होंगें , जो हवा में उड़ते विमान को भी मार गिरा सकते है !"




" क्या उन्होने इस बारे में मनाही नहीं की ?" गिरीश ने पुछा !



" नहीं !"




" कमाल है !"



" कोई कमाल नहीं है ! वे अच्छी तलर जानते हैं कि वे इस फ्रंट पर हमें रोक नहीं सकते , --क्योंकि उनके पास हमारे पोत के अंदर झांकने का कोई तरीका नहीं है !"




" शायद हो ?"



" नहीं होगा ! वरना इस बारे में भी उन लोगों ने अड़चन जरूर लगाई होती ! और फिर , अपनी सिक्योरिटी के बारे में सोचने का हमें भी अख्तियार है ! सारी मांगें इकतरफा नहीं मानी जा सकती !" कहने के बाद होलकर चुप हुआ तो पल भर के वातावरण में गहरा सन्नाटा छा गया !




" वह पोत कहां है , जिस पर हमें मुस्तफा को डिलीबर करना है ?" फिर शेखरन ने सन्नाटे को भंग किया !




" खुश्की पर खड़ा है ! उसके अंदर सारी तैयारियां मुकम्मल की जा चुकी है और मुस्तफा को भी उसमें शिफ्ट किया जा चुका है !"



" तो फिर हम देर क्यों कर रहे हैं ?"



" देर नहीं रिवीजन कर रहे है-----इस बात को अच्छी तरह से अपने दिमाग में बैठा रहे हैं कि कब , क्या , कैसे करना है !"



" क्यों बैठा रहे हैं ?" गिरीश क्षुब्द होकर बोला-------" जब हमारे अंदर खोट नहीं , कोई कूटनीति नहीं है , तो फिर इसकी जरूरत ही क्या है ? उन्हें मुस्तफा जिंदा चाहीए और हमें चांदनी , फिर समस्या ही क्या है ?"



" समस्या तो है !" होलकर एकाएक अर्थपूर्ण स्वर में बोला !

" क्या ?"



" मेरा जमीर-------मेरी निष्ठा----अपने मुल्क के लिए मेरी तड़प ! मुल्क के दुश्मनों के खिलाफ मेरे अंदर धधकती नफरत !"



" इसका मतलब क्या हुआ बॉस !" प्रताप सहित सभी के चेहरों पर उलझन के भाव उभर आए थे !"



" तुम लोग जानते हो !"



" बॉस !" भल्ला कशमकश में उलझता हुआ बोला-----" कही तुम वहीं तो नहीं कह रहे हो जो हम समझ रहे हैं ?"
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Re: गद्दार देशभक्त

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" मुझे नहीं पता तुम क्या समझ रहे हो !" होलकर भावहीन स्वर में बोला----" मगर हाईकमान ने यह काम हमारे सीनियरों को केवल इसलिए नहीं सौंपा क्योंकि उन्हें डर था कि सीनियरों की नफरत आड़े आ जाएगी ओर मिशन फेल हो जाएगा मगर हमारे अंदर भी कम नफरत नहीं है ! क्या तुम लोगों को रहा है कि मैं यह सब खुशी से कर रहा हूं ?"


"बॉस !" अमरीक सशंक भाव से बोला-----" अगर मैं गलत नहीं सोच रहा तो तुम्हारे अंदर कुछ पक रहा है ! कुछ ऐसा है जो तुम करना चाहते हो लेकिन हम पर जाहिर नहीं कर रहे ?"





" अमरीक सच कह रहा है !" भल्ला ने समर्थन किया !



" ऐसा कुछ नहीं है !" होलकर ने सपाट स्वर में बोला !



" आप झूठ बोल रहे हो बॉस !"




" शटअप ! स्टाप दिस टॉपिक !"



प्रताप ने विषय चेंज किया------"टार्गेट प्वांइन्ट पर पहुच हमें किसे कांटेक्ट करना होगा ?"



" किसी को भी नहीं !" होलकर ने बताया------" हमें वहां पहुचकर बस लंगर डाल देना है ! टेरेरिस्ट खुद कांटेक्ट करेंगें !"



" अर्थात वे लोग वहां पहले से मौजूद होंगें ?"




" इसमें क्या शक है !" भल्ला का स्वर कड़वा होगया-------"उनके घर की सीमा तो वहां से तो लगी हुई है ! वह तो एक तरह से उन का घर ही है !"



होलकर ने पूछा------"कोई और सबाल ?"



सभी चुप रहे !



जाहिर था कि किसी के पास अब और सबाल नहीं था !



" ठीक है !" कल्यान होलकर गहरी सांस भरकर समापन के अंदाज में बोला-----" अब हमें पोत पर पंहुचना चाहिए !"

नगमा ने राजा चौरसिया की आंखों पर बंधी पट्टी खोल दी ! चौरसिया ने खुद को एक ऐसे हॉल में पाया , जो टयूब्स की दूधिया रोशनी में जगमगा रहा था !


दीबारों के सहारे चारों तरफ किसी डैसबोर्ड जैसी कबर्ड डैस्क लगी थी , उन पर कई कम्प्यूटर रखे थे ! उन कम्प्यूटर्स को एक नजर देखते ही कम्प्यूटर की दुनिया का हुनरमंद चौरसिया भांप गया कि वे आम कम्प्यूटर नहीं थे ! ऐसे खास कम्प्यूटर थे, जिनकी गति आश्चर्यजनक रूप से बेहद तेज थी और उनका इस्तेमाल मुल्क में केवल कुछ खास जगहों पर ही किया जाता था !



वहां मौजूद वाई फाई राउटर इस बात की तरफ स्पष्ट इशारा कर रहा थे कि उन कम्प्यूटर्स में दुनिया का सबसे तेज गति वाला इंटरनेट कनेक्शन मौजूद था ! कम्प्यूटर की दुनिया से सम्बंध रखते और भी दुर्लभ उपकरण मौजूद थे , जिन्हें कोई दुर्लभ शख्सीयत ही हासिल कर सकती थी ! समूचे हाल में एयरकंडीशनिंग की पैऩी खामोशी फैली हुई थी ! नगमा तथा चौरसिया के अलावा वहां अन्य कोई भी मौजूद नहीं था !



चौरसिया आश्चर्य से आखें फाड़ फाड़ हॉल में चारों तरफ निहारने लगा था , वहां मौजूद कम्प्यूटर की दुनिया से सम्बंध रखती एक---एक चीज को परखने लगा ! उस नजारे में वह इतना खो गया कि नगमा से यह शि्कायत करने का भी होश न रहा कि उसे आंखों पर पट्टी बांधकर वहां तक लाया गया था !



होटल में ब्रेकफास्ट के दरम्यान हीं नहीं बल्कि राजा ने हर पल महसूस किया था कि उस पर हर दिशा से नजर रखी जा रही है !

कभी कोई उसे खुद को घूरता नजर आता, कभी कोई !


होटल स्टाफ के लोगों तक को उसने खुद को रहस्यमय अंदाज में मुस्कराते देखा था !


अपनी हालत ऐसी महसूस की उसने जैसे केवल देखने में ही आजाद नजर आ रहा हो जबकि वास्तव में रस्सियों से जकड़ा हो लेकिन जल्दी ही इस बात की किक्र करनी बंद कर दी और नगमा के साथ ब्रेकफास्ट इंज्वॉय करने लगा !



ब्रेकफास्ट से फारिग होते ही नबाब की भेजी कार वहां पहुंच गई थी, उसमें ड्राईवर के अलावा दो अन्य लोग भी मौजूद थे, जो डील डौल में कमांडो जैसे मालूम पड़ते थे !



वे हथियार बंद थे !


उनमें से एक ने चौरसिया को बताया था उसकी आखों पर पट्टी बांधकर ही आगे का सफर करना था और इसमें हुज्जत उसे मंजूर नहीं थी !


चौरसिया ने हुज्जत की भी नहीं !
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