गद्दार देशभक्त complete

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Re: गद्दार देशभक्त

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"ज. . .जी हां ।"



"तुरंत काम पर लग जाओ ।" आदेशात्मक अंदाज, कहकर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया गया ।




बलवंत राव ने रिसीवर केडिल पर रख दिया । उस वक्त उसका हाथ ही नहीं सारा जिस्म कांप रहा था ।



दिलोदिमाग में अंधड़-सा चल रहा था ।



तभी वहां कल्याण होलकर ने कदम रखा ।




''त . .तुम?" बलवंत आश्चर्य से बोला------"रात के इस वक्त?"



"इतना हैरान होने की क्या बात है सर ! " होलकर इत्मीनान से बोला------हम एक खुफिया एजेंसी के लोग हैं । हमारे लिए रात-दिन के कोई मायने नहीं । आप भी तो इतनी रात को यहाँ बैठे हैं !"

"क्यों आए हो?”



"क्या मैं बैठ सकता हूं ।"




"हरगिज़ नहीं । मेरे पास इस वक्त जरा भी वक्त नहीं है । मुझे जल्दी कहीं जाना होगा ।"




“तो खड़े-खड़े कह देता हूं ।”




“देखो होलकर...



"माफी चाहता हूं सर । देखने या समझने का वत्त अब निकल चुका है और लगभग सभी राज फाश हो चुके हैं ।"




"कैसे राज ?"




“लगता है आप सब कुछ मेरे ही मुंह से सुनना चाहते हैं । कोई बात नहीं बताता हूं ।" होलकर ने बलवंत राव के सामने कालीन पर चहलकदमी शुरू कर दी थी…“मुम्बई और संसद पर हमले के बाद दुश्मन को उसी की भाषा में ज़वाब देने के लिए जिस सीकेट सेल का गठन हुआ, वह उसके चीफ दिनेश राणावत की गद्दारी और उसकी मौत के साथ खत्म नहीं हुआ था । इतनी व्यापक व मजबूत खुफिया
संस्था का इतना आसान अंत हो भी नहीं सकता----खासतौर पर तब जबकि हिंदुस्तानी के नाम से जाना जाने बाला धनंजय उर्फ अर्जुन जैसा जियाला सीक्रेट सेल में मौजूद था और न ही हिंदुस्तानी जैसे चट्टानी किरदार का दिमाग इतना कमजोर हो सकता था, जो किसी हादसे में अपना दिमागी संतुलन खो बैठता ।"




"तो फिर क्या हुआ था ।" बलवंत न चाहते हुए भी होलकर की बातों में दिलचस्पी के लिए मजबूर हो गया था ।



“जो कुछ दुनिया को मालूम हुआ, वह सब एक झूठ था------पाखंड था----सीक्रेट सेल की बहुत बड़ी प्लानिंग का हिस्सा था ।"




" कैसे ?"




"यह सच है कि बीस हजार करोड की खातिर सीक्रेट सेल और वतन का सौदा कर डालने वाले गद्दार दिनेश राणावत ने सीक्रेट सेल की बुनियादों को हिला दिया था ।" होलकर ने कहा…"लेकिन उसकी गद्दारी की सजा बह अपने बेटे के हाथों पा गया था । सीक्रेट सेल का जो गम्भीर नुकसान वह कर गया था, उसकी भरपाई इतनी आसानी से मुमकिन नहीं थी । राज फाश हो जाने से ज्यादातर सीक्रेट सेलकमांडो या तो मारे गए थे या नीलिमा, अंजली और आपरेशन दुर्ग की मुकम्मल टीम के तौर पर गिरफ्तार हो गए थे । इसके अलावा भारत के सामने अभी एक और चुनौती मुह बाए खडी थी जो पहली चुनौती से कहीं ज्यादा बडी थी ।"



"वह क्या?”



“हाफिज लुईस और आईएसआई का आपरेशन औरंगजेब ।"



“हूं ।"




"जिसके तहत अखलाक, मोहसिन, शमशाद, इस्माइल और सुरजाना नाम के एक नहीं पांच-पांच आतंकी सरगना हिंदुस्तान की सरहद में दाखिल हो चुके थे, उनके इरादे बेहद खूंखार थे । कोई नहीं जानता था कि इस मुल्क की सवा सौ करोड की आबादी में वह कहां छिपे बेठे अपने शैतानी मंसूबों को अंजाम देने की तैयारियां कर रहे थे । उन्हें दूंढ़ निकालना आसान काम नहीं था, लेकिन फिर भी इसे आसान वनाया गया था ।"



""कैसे? किसने आसान बनाया था उसे?"




"हिंदुस्तानी ने । और यह काम उसने दिनेश राणावत को उसकी गद्दारी की सजा देने के बाद किया था । उस वक्त, जबकि इन हलकों से जुड़े लोगों में यह बात आम हो चुकी थी कि सीक्रेट सेल भंग हो चुका था और दिनेश राणावत के कत्ल के जुर्म में धनंजय को गिरफ्तार करके तिहाड़ में डाल दिया गया था , जहां वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठा था और उसने सुसाइड कर लिया था ।"




बलवंत राव हैरानी से उसे देखने लगा था ।




"इन अफवाहों ने धनंजय का काम वहुत आसान कर दिया था ।" होलकर ने कहना जारी रखा…“और ऑपरेशन दुर्ग की नाकामी के बाद उसने फिर से एक नए ऑपरेशन को अंजाम दिया था । जो पूरी तरह से सफ़ल रहा था और धनंजय यह जानने में कामयाब गया था कि वे पांचों आतंकी सरगना भारत में कहां मौजूद थे । यह जानकर धनंजय सन्नाटे में आ गया था कि उन पांचों ने न केवल अपना नाम, चेहरा और पहचान बदल ली थी, बल्कि वे यहां के सियासी तथा गेरसियास्री क्षेत्रों में इतनी जल्दी, इतने ऊंचे मुकाम तक पहुच गए थे, जिसके बारे में एक बारगी यकीन करना मुश्किल था लेकिन धनंजय को इस पर जरा भी हैरानी नहीं हुई थी । अब यह मत पूछने लगना सर कि क्यो?"





"नहीं पूछूंगा । मगर.. .




"मैं वहीं आ रहा हूं ।" होलकर उसकी बात काटकर कहता चला गया…"उन पांचों से दो तो यहां की धिनोनी सियासत के वे कद्दावर नेता वन गए थे , जिनके नाम की गूंज हर तरफ़ सुनाई देती थी जबकि तीसरा मीडिया में उच्च मुकाम हासिल कर चुका था । चौथा एक पुलिस आंफिसर वन गया था और पांचवीं, विपक्ष के नेता की बीवी बन बैठी थी ।"



"ब. . .बसंत स्वामी?"




" अपने ठीक कहा सर । मैं उसी बसंत स्वामी की बात कर रहा हु, जिसकी बीवी का नाम चांदनी सिंह था । चांदनी सिह असल में कोई और नहीं, सुरजाना थी ।"



“क…क्या बात कर रहे हो?”



" ऐसे चौंककर मत दिखाइए सर, जैसे आपको कुछ पता ही नहीं है । अकेली सुरजाना नहीं, बाकी चारों भी मुसलमान नामों से । हिंदू नामों वाली शख्तीयत वन गए थे । मोहसिन को दिल्ली पुत्तिस के खुर्राट इंस्पेक्टर गुलशन राय के नाम से जाना जाता था । शमशाद एक नई राजनैतिक पार्टी बनाकर उसका मुखिया ओमकार चौधरी बन गया था और सिंध का वह आईएसआई एजेंट इस्माइल प्रबल कुमार चोपडा बन बैठा था ।"



बलवंत हबका-बक्का-सा होकर होलकर को देखने लगा था ।




होलकर उसके रिएक्शन पर ध्यान दिए बगैर बोला------"खास बात यह थी सर कि इन पांचों ने ही न केवल अपनी पहचान बदली थी बल्कि अपनी नई शख्सीयत में अपने ऊपर कट्टर राष्ट्रवाद और हिंदूवाद का ऐसा मजबूत मुलम्मा चढा रखा था, जो किसी को भी धोखा दे सकता था और जो उनके लिए ऐसी मजबूत ढाल बना हुआ था, जो किसी को भी उनकी तरफ़ संदेह की नजरों से देखने की भी इजाजत नहीं देता था । ये लोग बनावटी चोलो के अंदर अपने असली मिशन को दम-खम के साथ अंजाम दे रहे थे ।"



"तो फिर उन्हें गिरफ्तार क्यो नहीं किया गया?"

"हिंदुस्तानी के काम करने का यह तरीका हरगिज नहीं है ।"




"मत्तलब?"




"मैं जानता हू कि वह ऐसे लोगों का गिरफ्तार नहीं करता बल्कि हलाक कर डालता है ।"




“ओह ! "




"पर उन्हें हलाक करना भी इतना आसान नहीं था ।"



“वजह?"




"देशभक्त जो बन बैठे थे वे । आवाम के हीरो । ऐसे में यदि कोई हिंदुस्तानी उसे मारता तो मुत्क में तहलका मच जाता ।"




'"ते फिर हिंदुस्तानी ने क्या किया?"



"मुस्तफा वन गया वह ।"



"क्या यह इतना आसान था! मुस्तफा का क्या हुआ?"



"उसे फांसी की सजा तो पहले ही सुनाई जा चुकी थी ।"



"तुम्हारे खयाल से मुस्तफा को फांसी पर लटका दिया गया?"



"मेरे खयाल से नहीं बल्कि यकीनन ।" होलकर ने अपने हर शब्द पर जोर दिया…“लेकिन यह राज हमेशा राज ही रखा गया ।"



“मुस्तफा की लाश का क्या हुआ ?"




"धनंजय की ब्रॉडी बताकर केसरी नाथ के हवाले कर दी गई ।"



"आई सी!”




" अब मुस्तफा बने धनंजय का अगला मूवमेंट तिहाड़ जेल से आजाद होना था लेकिन सब कुछ इस तरह करना था कि किसी को भी शक न हो सके कि वह आतंकी कार्यवाई नहीं बल्कि भारतीय गृहमंत्रालय और उसके एक खुफिया विभाग के 'क्रोवर्ट ऑपरेशन' का हिस्सा था । धनंजय को तीर तो एक ही छोड़ना था लेकिन उससे शिकार दो होने वाले थे । उसने सूरजाना को पिन प्वाइंट किया, जो चांदनी सिंह वन चुकी थी । उसके जरिए मुस्तफा जेल से आजाद भी हो जाने वाला था और सुरजाना अपने अंजाम को भी पहुंचने वाली थी । यह सारा ड्रामा बेहद सशक्त ढंग से खेला गया । अब अहम बात चांदनी सिंह और मुस्तफा की अदला-बदली थी , जिसमें अगर आईबी के सीनियर और तजुर्बेकार अफ़सर को इन्बाल्व किया जाता तो शायद वह मुस्तफा उर्फ धनंजय के लिए कोई मुश्किल खडी कर सकता था
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Re: गद्दार देशभक्त

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ऐसा न हो सके इसलिए उसने उन सबके रहते हुए भी मुझे-एक जूनियर और इस फ्रटं पर बिल्कुल ही नातजुर्बेकार अफसर को यह जिम्मा सौपा था । इसके बावजूद मैं मुस्तफा वने धनंजय के मिशन में कोई अनचाही मुश्किल खडी न कर दु उसके लिए नेवी का अफसर बनाकर रत्नाकर देशपांडे नाम के शख्स को बहाने से मेरे साथ लगा दिया गया । असल में वह नेवी अफसर था ही नहीं । वह एक ऐसा सीक्रेट कमांडो था, जिसका असली काम धनंजय के माइड गेम की हिफाजत करना था…उसे कवर देना था ।"



" कैसे ?"



"सोचा यह गया था कि अगर मैं भावनाओं में बहकर मुस्तफा को नुक्सान पहुचाने की कोशिश करता हू जो कि मैंने की भी थी, अथवा उसके खिलाफ़ कोई दूसरा षडूयंत्र करता हूं तो रत्नाकर उसे नाकाम कर दे । वही उसने किया भी ।”



“कैसे?"



"सबसे पहले उसने मुझे भावनाओं बहाकर यह जाना कि मिशन मुस्तफा को लेकर मेरे जेहन में क्या चल रहा है और मैं कबूल करता हूं कि उस वक्त पूरी तरह उसके जाल में फंस गया था । न फंसा होता तो कभी उसे उस चिप के बारे में न बताता जो मैंने मुस्तफा की जेब में छुपाई थी । मेरी सारी प्लानिंग उसी ने मुस्तफा वने धनंजय को बताई । और फिर, धनंजय ने बड्री स्फाई से उसे चांदनी सिंह की जेब में प्लांट करके उसे खत्म कर दिया । यह सब इस ढंग से हुआ कि कोई भी इंक्वायरी कमीशन उसे पकड़ नहीं सकता । मुझे और मेरी पूरी टीम का सस्पेंशन भी एक पाखंड से ज्यादा और कुछ नहीं है, जो सिर्फ इसलिए जरूरी था ताकि मुस्तफा वने धनंजय के मिशन पर जरा-सी भी शक की सूई न उठने पाए । आप समझ सकते है कि अव मुझे मेरे उस सवाल का जवाब भी मिल चुका है, जो उस ववत मैंने आपसे बार-बार पूछा था ।"




"'कौन-सा सवाल?"




“यही कि चांदनी सिंह को किडनेप करने वाले टेरेरिस्टों ने चांदनी और मुस्तफा की अदला-बदली के लिए पाकिस्तान से लगी हिंदुस्तान की समुद्गी सीमा ही क्यों चुनी? उसे लेकर वह सीधे पाकिस्तान क्यों नहीं चले गए या पाकिस्तान के समर्थक किसी ऐसे दूसरे इस्लामिक देश क्यों नहीं चले गए, जहाँ से वह डील उनके लिए आसान हो जाती? और यह कि आजाद होने के बावजूद मुस्तफा पाकिस्तान क्यों नहीं चला गया? वह बापस यहीं क्यो आया? यह सब तो उस वक्त होता डियर सर, जबकि वाकई हालात वही होते, जो नजर आ रहे थे और जरूर होता । चांदनी सिह उर्फ सुरजाना के अपहरणकर्ता यह डील देश से बाहर कैसे कर सकते थे? मुस्तफा बना धनंजय पाकिस्तान कैसे जा सकता था? बहरहाल चांदनी सिंह के रूप में धनंजय ने खतरनाक लेडी टेरेरिस्ट सुरजाना को खाम किया और उसका अगला टार्गेट मोहसिन था ।"



“हूं ।"




“मोहसिन, जो कि कौमी दंगे भड़काने का सोशलिस्ट था, जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक सारे मुल्क के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में दंगा भड़काने की जिम्मेदारी लेकर आया था और मुजफ्फरनगर, सहारनपुर तथा असम जैसे कितने ही भीषण दंगों की बुनियाद रख चुका था । उससे भी बडी बात यह कि कोई नहीं जानता था कि वही एक ऐसा चर्चित सरकारी मुलाजिम था, जिसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट गुलशन राय भी कहा जाता था ।" बलंवत राव ध्यानपूर्वक उसका एक-एक लफ्ज सुन रहा था । होलकर पुन: बोला…“गुलशन राय कैसा एनकाउंटर स्पेशलिस्ट . था, यह आसिफ और उसकी व्याहता बीबी अजरा बेगम की मौत से समझा जा सकता है, जो असल मुस्तफा के कोई टेरेरिस्ट साथी नहीं थे । वे आईबी के एजेंट थे, धनंजय के मिशन में उसकी मदद करने का हुक्म था और जब मुस्तफा वना धनंजय दिल्ली पहुंचा था तो उसने उन्हीं के घर पनाह ली थी । उनके खिलाफ़ महज यही वह इकलौती बात थी, जिसके लिए गुलशन राय उर्फ मोहसिन ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया, बल्कि फरीदाबाद के सुनसान इलाके में ले जाकर बडी बेरहमी से कत्ल कर दिया । धनंजय उसके पीछे था
और उसे मोहसिन के उस मूवमेंट के बारे में पता भी लग गया था ।।। लेकिन उसे फरीदाबाद पहुंचने में जरा देर हो गई । मरते-मरते भी मोहसिन दो और बेगुनाहों का खून वहा गया था ।"

बलवंत राव ने केवल हुंकार भरी ।




"उसके बाद प्रबल कुमार चोपडा वने इस्माइल, ओमकार चौधरी उर्फ शमशाद और निरंज़ननाथ उर्फ अखलाक को भी धनंजय ने उनकी जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद कैसे उनके अंजाम तक पहुचाया, सबको मालूम ही है । यहाँ भी सारी योजना बेहद कसी हुई थी और किसी को कानो-कान सच की भनक भी नहीं लग पाई । मीडिया और सियासत में उन मौतों पर ठीक वैसा ही हो-हला मचा, जो पहले से अपेक्षित था । हालांकि इस सिलसिले के दोरान फिर से दिखावे के लिए पुलिस प्रशासन के कई दिग्गजों को बलि का बकरा भी बनना पड़ा ।"



"तुम्हारा इशारा शायद दिल्ली के पुलिस कमिश्नर लूथरा और एसीपी नेगी की तरफ़ है?” बलवंत राव ने कहा ।



"आपने ठीक कहा । लेकिन इस मिशन में इस्पेक्टर कमल आर्या जैसे छुपे हुए गद्दारों का चेहरा भी बेनकाब हो गया ।"



जसवंत अत्री का नाम नहीं लिया?"



, “क्यों लू? वह तो गद्दार था ही नहीं । वह ओमकार चौधरी उर्फ शमशाद के खेमे में छुपा धनंजय का जासूस था । जिसे चौधरी की सल्लनत में इतने ऊँचे तक कैसे पहुचाया गया होगा, यह तो धनंजय ही जाने । लेकिन यही तो सीक्रेट सेल की खासियत है । उसके जासूसों को दुश्मन के गढ में घुसपैठ करने में महारत हासिल है ।" इतना कहकर होलकर खामोश हो गया । वह कई पलो तक बलवंत के बोलने का इंतजार करता रहा ।




“माई डियर सर ।" जब बलवंत राव काकी देर तक कुछ न बोला तो होलकर ने कहा…“धनंजय और हमारे इस क्रोवर्ट अंर्णिरेशन के बारे में हमारे मुल्क के अलावा हमारा दुश्मन मुल्क ही जानता है, जहां से मुस्तफा आया था । मैं तो यह सोच समझकर रोमांचित हुआ जा रहा हूं कि इस वक्त वह क्या सोच रहा होगा और किस तरह से अपना सिर धून रहा होगा । उसकी बेबसी वाकई देखने लायक होगी । आज सारी दुनिया को पता
है कि हिंदुस्तान में इतना खून-खराबा करने वाला मुल्क का खूंखार दहशतगर्द सरगना मुस्तफा है, जो हमारे मुल्क की प्रतिष्ठित शख्तीयतों को चुन-चुनकर मार रहा है जबकि असल में मरने वाले खुद उसके आदमी हैं और मारने वाला उनका जानी दुश्मन है । अब तो सुना है कि उसने बाईस हजार करोड का एक दुर्लभ हथियार खरीदकर पाकिस्तान को भीगी बिल्ली वना दिया है और ऑपरेशन दुर्ग के जिन सीक्रेट कमांडोज को पाकिस्तान में कल सुबह फांसी दे दी जाने वाली थी, उन्हें भी रिहा कराने का इंतजाम कर लिया है, जिसमें उसकी प्रेमिका भी शामिल है ।" होलकर एकाएक ठिठका और बलवंत राव के चेहरे पर निगाह गड़ाता हुआ व्यंगात्मक भाव से बोला-अरे सर, आप इतने खामोश क्यों है, मेरी बातो का प्रतिवाद क्यों नहीं कर रहे? क्यों नहीं कह रहे कि यह सब झूठ है…मैं बकवास कर रहा हूं !"




"बस करो ऑफिसर----वस करों ।" बलवंत राव के धैर्य का बांध जैसे टूट गया था । वह होलकर को रोकता हुआ बोला------मै अपनी गलती कबूल करता हू ।"




"कौन-सी गलती सर? "



"तुम्हें कम करके आंकने की गलती-तुम्हारी कांबिलीयत पर संदेह करने की गलती । अगर मैंने ऐसा न किया होता तो मिशन मुस्तफा पर तुम्हे न भेजा होता और तब शायद तुम एक निहायत ही अहम क्रोवर्ट आंपरेशन की सच्चाई को जानने में कामयाब न हुए होते । मेरे एक सवाल का जवाब दो आंफिसर ।"




होलकर ने नोट किया…बलवंत राव अब उसे 'होलकर' न कहकर ओंफिसर कह रहा था ।



"जी जरूर ।"



"ये सारे राज अभी केवल तुम ही तक सीमित हैं न! इस बारे में किसी और को तो नहीं बताया?"



"क्या आप मुझे इतना अहमक समझते हैं ।"



"बिल्कुल नही । बहरहाल, शुक्रिया। हालांकि तुमने जो किया, वह नहीं करना चाहिए था, इसके बावजूद मुझे इस बात पर खुशी और गर्व है कि मेरे पास कल्याण होलकर जैसे होनहार आफिसर है । ऐसे ही आईबी को मुल्क की सबसे बडी खुफिया संस्था होने का गौरव हासिल नहीं है ।"


"शुक्रिया सर । थैक्यू फॉर दि कम्प्लीमेट । आपके मुंह से अपने लिए यह अलफाज़ सुनना मेरे लिए गौरव की बात है ।"




“लेकिन यह खुश होने का वक्त नहीं है ऑफिसर ।" बलवंत राव का लहजा एकाएक वहुत ज्यादा गम्भीर हो गया था ।



"क्या मतलब सर?"





" ऑफिसर , यह बताने की न मुझे इजाजत है, न ही वक्त । फिर भी गुस्ताखी कर रहा हू और यह जानते-बुझते कर रहा हूं कि इस गुस्ताखी की मुझे वहुत बडी कीमत चुकानी पड़ सकती है ।"




"आप क्या कह रहे हैं सर, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा?" होलकर के माथे पर वल पड़ते चले गए ।



"सीक्रेट सेल का जांबाज धनंजय, इस मुल्क की धरोहर है------इस देश का ऐसा कोहिनूर है, जिसके लिए हजार जाने भी कुर्बान की जा सकती है लेकिन दुर्भाग्यवश आज उसकी जान खतेरे में है ।"



"क्या कहा सर !!" होलकर बुरी तरह चौका था------“धनंजय की जान खतरे में है?"




"हां । और तुम्हें उसकी जान बचानी है । कहते है समझदार को इशारा काफी होता है, और मैंने ।" उसने एक अर्थपूर्ण निगाह होलकर पर डाली----"समझदार को इशारा कर दिया है । आगे क्या करना है, यह अब तुम्हें सोचना है । नाओ, यू केन गो माई चाइल्ड ।"



होलकर हकबकाकर बलवंत राव का चेहरा देखने लगा ।

नवाब ने फोन डिस्कनेक्ट करके एक तरफ उछाल दिया और आदमकद आईने के सामने जाकर खडा हो गया ।




उसने आईने में गौर से अपने प्रतिबिंब को निहारा, फिर नकली दाढी…मूछो को नोचकर अलग कर दिया । गालों में फंसे पैड निकाल दिए और नथुनों से स्प्रिग अलग कर दिए । पेट पर लिबास के नीचे से फोम का एक तवा भी निकलकर अलग कर दिया ।



अब वहां उम्रदराज नवाब की जगह एक नौजवान नजर आ रहा था, जो कि निश्चय ही धनंजय था ।






धनंजय ने ढीले-दाले लिबास को भी जिस्म से उतार फेका ।


उस लिबास के नीचे उसने जींस और ही शर्ट पहन रखी थी ।



उन कपडों में वह पाँच साल पहले वाला, वह अर्जुन राणावत लग रहा था, जो कभी यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट हुआ करता था ।



तभी वहां नवाब ने काम रखा ।
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Re: गद्दार देशभक्त

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वह नवाब, जो मुम्बई के अंडरवर्ल्ड का एक कुख्यात गैंगस्टर था और जिसे आईबी चीफ़ ने होलकर के सामने धनंजय की असलियत छुपाने के लिए पेश किया था । पर असल में जो एक सीक्रेट कमांडो था और सीक्रेट सेल की एक स्ट्रैटजी के तहत बेहद लम्बे समय से खतरनाक गैंगस्टर का चोला पहने हुए था । वह एक झूठ को मजबूती से अमली जामा पहनाने के लिए उन सभी गैरकानूनी कामों को भी अंजाम देता आया था, जो एक आर्गेनाइज्ड क्राइम का रूटीन होते है । जरूरत पडने पर वह खून-खराबे से भी नहीं हिचकता था। शायद इसीलिए आज तक उसकी असलियत पर अंडरवर्ल्ड के किसी खलीफा को शक नहीं हो पाया था ।



सिर्फ कल्याण होलकर के ।



उसका पूरा और असली नाम अशरफ नवाब ही था ।



धनंजय ने उसे आईने में ही देख लिया था ।



वह उसकी तरफ पलटा ।



अशरफ नवाब ठंडी सांस भरता हुआ बोला…"थैक गॉड, आज कितने दिन बाद तुम्हारा असली चेहरा देखा है ।"



"इतने चेहरे बदल चुका हू मैं कि बीच-बीच से अपने असती चेहेरे को हीं भूल जाता हू !" अर्जुन ने वड़े ही अजीब स्वर मे कहा था…"चेहरे और पहचान का यह खेल अभी पता नहीं और कब तक चलता रहेगा? शायद मेरी आखिरी सांस तक ।"




"अफसोस क्यों करते हो दोस्त! अपना यह नसीब खुद तुमने ही तो लिखा है ।" अशरफ नबाब ने कहा-------"किसी और में तुम्हारा
नसीब लिखने की कूव्वत कहां है?"




"जिंदगी रंग बदलती है कैसे-कैसे!"


"आज ये मायूसी भरी बाते मत करों अर्जुन । यह खुशी का लम्हा है । कितने सालों के वाद यह घडी आई है । तुम अपनी महबूबा से मिलने जा रहे हो ।”




"वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए, मिल तो मैं उससे पहले भी चुका हूं । अब तो उसे लेने जा रहा हू ।"



"कहां ? "



अर्जुन ने बता दिया ।



"क्या तुम्हारा यह फैसला ठीक हैं?” नवाब ने असमंजस भरे भाव से पूछा-“खास तौर से तव, जबकि उन लोगों को यहीं आने पर मजबूर किया जा सकता था ।"



"मेरे खयाल से यही ठीक रहेगा ।”



"अगर तुम्हारा फैसला यहीं है तो मै उस पर उंगली उठाने की काबिलीयत नहीं रखता लेकिन कंट्रोल एंड कमांड सिस्टम कोई छोटा-मोटा सामान नहीं है । वह कई-कई क्रेर्टो में है । क्या उसे मुम्बई से ट्रांसपोर्ट करके बंगाल तक ले जाना आसान है?”




"'वेसे तो असान काम करने के लिए धनंजय वना ही नहीं है परंतु यह तुमसे किसने कहा कि कमांड सिस्टम मुम्बई में है?"




'"क. . .क्या मतलब?” नवाब चौंककर अर्जुन को देखने लगा ।




"साफ़ है ।" अर्जुन बोला------""सिस्टम मुम्बई में नहीं है ।"



"'त्तो कहाँ है?”



"जहां भी है, उसे वहां से ट्रांसपोर्ट करके पश्चिम बंगाल ले जाना मेरे लिए बहुत आसान होगा ।"



"ओहो! इसलिए तुमने वहां के लिए फौरन हां कर दी?" अर्जुन के होंठों पर भेद भरी मुस्कराहट उभरी ।




नवाब ने पूछा-“पश्चिम बंगाल में कहां ?"



अर्जुन ने वह बताया जो थोडी देर पहले ही सरफराज ने फोन करके बताया था ।



"हूं।" नवाब हुंकार भरकर बोला--------मतलब, तुमने पवका इरादा कर लिया है? डील पूरी ईमानदारी से होगी?."

"वहां दुश्मन के एक्सपर्ट होंगे, जो इस बात की बहुत बारीकी से पड़ताल करेगे कि सिस्टम असली है या नहीं…उन्हें धोखा नहीं दिया जा सकता । उनकी तरफ़ से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद ही अन्य पाकिस्तानी हमारे लोगों को हमें सौंपेंगे ।"




"क्या सिस्टम को दुश्मनों के हाथ में सौंप दिया जाएगा"'




"तुम कहीं पागल तो नहीं हो! सिस्टम को उनके हाथ में देने का मतलब तो अपने पैरों में कुल्हाडी मारने जैसा होगा ।"



"फिर? "



"मैं कमांड सिस्टम की तीन क्रंट्रे ही उनके हवाले करूंगा । यह तस्दीक के लिहाज से काफी होगा । बाकी तीन मेरे पास रहेगी । डिवाइस को ऑपरेट करने के लिए सभी छ: केटों के सिस्टम क्रो असेम्बल करना जरूरी है । उसके बगैर वह किसी काम का नहीं है । तस्दीक के बाद हमारे लोगों को हमेँ सौंप दिया जाएगा । उन्हें वहां से दूर ले जाने के लिए एक हैलीकॉप्टर पहले से तैयार होगा । उसके बाद उन तीनों क्रेटो को दुश्मन मेरी आंखो के सामने ही नष्ट करेगा और मेरे हिस्से की तीनों क्रेटों को मैं भी उसकी आंखों के सामने ब्लास्ट कर दूगा । इसमें कहीं कोई झोल नहीं है, न ही दोनों तरफ से किसी चालाकी की गूजाइश है ।"



"यानी सारी तैयारियां मुकम्मल हैं?"



"जाहिर है ।”




"हमारा तो यह मुल्क है, हैरत की बात यह है कि हमारा विदेशी दुश्मन हमारे अपने मुल्क के अंदर हमारी बराबरी पर खडा है ओंर हमें इतनी कडी टक्कर दे रहा है ।"




"बंगाल की धरती कई सालों से टेरेरिस्टों का गढ़ वनी हुई है । बदलाव में थोडा वक्त तो लगेगा ही ।"




"यह तो है, लेकिन अर्जुन, स्पेस वेपन जैसे निहायत ही दुर्लभ वेपन की यूं तबाही क्या ठीक होगी?"




"वह वहुत विनाशकारी हथियार है । उसका तो तबाह हो जाना ही मानवता के हक में है ।"




"क्या इसमें हाईकमान की मर्जी शामिल है?"




"वह वेपन मेरी अपनी मिल्कीयत है । मैंने अपनी कोशिशों से उसे हासिल किया है और उसके लिए जो हजारों करोड की रकम चुकाई गई है, वह भी हमारी सरकार की नहीं थी । एक तरह से मेरी अपनी निजी रकम है क्योंकि उसे मेरे कमीने पिता ने कमाया था और उन्ही लोगो से कमाया था जो उस वेपन को तबाह करने वाले है ।"


“फिर भी. . .




"हमारे पास बरबाद करने के लिए जरा भी वक्त नहीं है । इस । मिशन में तुमने मेरा वहुत साथ दिया और अपने हिस्से के सभी कामों को बहुत अच्छे से अजाम दिया । तुमने भी और तुम्हारे द्वारा उपलब्ध कराए गए उन चारों रंगरूटों ने भी ।"



"सैयद, नियाज़, अदील और शफीक की बात कर रहे हो?"




" हाँ !" अर्जुन हंसा…“चांदनी सिंह के अपहरणकर्ता! पाकिस्तान से आए हाफिज लुईस की ब्रिगेड के टेरेरिस्ट !" वह जरा ठिठका फिर बोला------- " बैसे उन चारों के असली नाम क्या हैं?"



"उनके वही असली नाम हैं ।"
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007
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Re: गद्दार देशभक्त

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“कहां हैं बे ?"



“बुलाऊ ?"



" वे चारों मेरे बाकी बचे हुए मिशन का भी हिस्सा रहेगे । मतलब मेरे साथ बंगाल जाएंगे ।"



" मैं ? "



"तुम्हारा वहां कोई काम नहीं है । वैसे भी तुम्हारी मुम्बई' में ज्यादा जरूरत है, क्योकि तुम्हारे पास दोहरी जिम्मेदारी है । अंडरवर्ल्ड के खलीफा वाली तुम्हारी दूसरी शख्तीयत, भविष्य में भी सीक्रंट सेल के ज्यादा काम आ सकती है । लिहाजा अंडरवर्ल्ड में नवाब के नाम की धमक कभी कमजोर नहीं पड़नी चाहिए ।"




"जैसी तुम्हारी मर्जी ।"



"नवाब और उमर जहांगीर के बीच गैंगवार के हालात हालांकि मैंने पूरी तरह से खत्म कर दिए हैं । मुझें नहीं बता कि बात आगे बढेगी पर अगर बढती है तो तुम्हें उसे अपने विवेक से निपटाना होगा । दोनों के बीच गैंगवार के नौबत नहीं आनी चाहिए ।"



"में ध्यान रखूंगा ।"



"'आलराइट । चलता हूं । उन चारों को बाहर भेज दो ।" नवाब ने सहमति में सिर हिलाया !


अर्जुन के जाने के बाद नवाब काफी देर तक तक जहां-का-तहाँ खड़ा रहा । फिर, जेब से मोबाइल निकाला और किसी से सम्पर्क स्थापित करके बोला------“तुम चारों इमारत के बाहर अर्जुन से मिलो,,,,,,, वह तुम्हें अगले मिशन पर साथ ले जाना चाहता है ।"




दूसरी तरफ़ से बस इतना ही कहा गया…"यस सर ।"




नवाब ने मोबाइल आँफ करके जेब में रखा और इसी के साथ उसके हाव-भावों में परिवर्तन आ गया । उसने अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ा और फिर उन्हें अपने दाढ़ी मूंछ से ढके चेहरे पर फिराया । वह उसी आदमकद आईने के सामने जाकर खड़ा हो गया, जिसके सामने कुछ देर पहले अर्जुन खड़ा था ।





कुछ देर आईने में अपने को निहारता रहा । ड्रेसिंग टेबिल पर रखा एक इम्पोर्टेड एंटी गम उठाकर चेहरे पर सप्रे किया और फिर, अपनी दाढ़ी को एक कोने से पकड़कर खींचा ।




नकली दाढ़ी उखड़कर उसके हाथ में आ गई । मूछों का भी वही हश्र हुआ । फिर उसने बालों की विग तथा गालों में फंसे रबरबैंड भी अलग कर दिए । सबसे अंत में पेट से तवा भी निकाल लिया ।




अब वह अधेड़ नवाब की जगह अर्जुन जैसा ही हट्टा-कट्टा मगर अजनबी नौजवान नजर आ रहा था ।




उसने आईने में एक बार फिर खुद को सिर से पांव तक देखा । होंठों पर कुटिल मुस्कराहट उभर आई ।




आईने में देखकर खुद को आँख मारी, फिर वापस घूमकर एक पेनल डेस्क के पास पहुंचा ।




पैनल पर कुछ बटन दबाए । परिणामस्वरूप हाल के चमचमाते फर्श के बीचोंबीच एक चार बाई चार फुट का चौकोर होल उत्पन्न हो गया । वहां नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ नजर आ रही थी ।




वह शख्स नि:संकोच सीढ़ियों पर उतरता चला गया । सीढ़ियाँ एक ऐसे विशाल बेसमेंट में खत्म हुई जो बड़ा-सा स्टोर रूम लग रहा था । चारों तरफ़ खाली ड्रम और कार्टून-ही-कार्टून
नजर आ रहे थे । समूचा बेसमेंट रोशनी से जगमगा रहा था ।

नौजवान खाली ड्रमों की कतार को पार करके उसके पीछे पहुचा तो वहां एक कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठा एक आदमी नजर आया ।




उसके मुंह पर कपडा बंधा था और हाथ-पेर मजबूती के साथ कुर्सी से ज़कड़े हुए थे । वह अपने जिस्म को जुम्बिश तक देने की स्थिति में नहीं था । केवल गर्दन को हिला सकता था ।




वह नवाब था ।



अशरफ नवाब!




असली अशरफ नवाज !!'


कमांडो जैसी चुस्ती-फूर्ती वाले दो सशस्त्र आदमी उसके दाएँ बाएँ मुस्तेदी से खडे थे ।



अजनबी शख्स को वहां पहुचा देखकर दोनों ने उसका अभिवादन किया ।




"शाबाश मेरे शेरों ।" अजनबी शख्स उनके अभिवादन का जवाब देने के बाद बोला…“तुमने अपने काम को वहुत अच्छे से अंजाम दिया । तुम्हें इसके लिए जरूर इनाम मिलेगा ।"




दोनो फूलकर कुप्पा हो गए ।




नवाब ने अपना झुका हुआ चेहरा झटके से उठाया । अजनबी शख्स को अपने सामने देखते ही उसकी आंखों में जैसे ज्वाला भड़की । वह अपने फौलादी बंधनों में जोर से कसमसाया । पुरजोर अंदाज में कुछ कहने की कोशिश की लेकिन मुंह से केवल गो-गो की आवाज निकलकर रह गई ।




"अरे भाई!" अजनबी ने अपने अदमियों की तरफ़ देखते हुए कहा…"नवाब साहब पर इतने जुल्म मत करो । ये कुछ फ़रमाना चाहते है, फरमाने दो ना !"




नवाब के मुंह पर बंधा कपड़ा खोल दिया गया ।




नवाब गहरी गहरी सांसे लेने लगा ।




"देखा नवाब! ” अजनबी शख्स घुटनों के बल उसके सामने बैठता हुआ व्यंगात्मक स्वर में बोला…"देखा तूने!!!!' चेहरों का यह खेल अकेले हिंदुस्तानी को ही नहीं आता, मुझे भी आता है । अगर वो हमारे घर में घुसकर मार सकता है तो हमें भी यह कहर ढाना आता है । तूने मुझसे शर्त लगाई थी कि मेरा मेकअप उसके सामने नहीं चल पाएगा, वह मुझे देखते हो जान जाएगा कि मैं कोई और हूं

मगर ऐसा नहीं हुआ । मैं इतनी देर तक उसके साथ रहा और उससे खूब बाते भी की । लेकिन उसे मुझ पर जरा-सा भी संदेह नहीं हुआ । अब तो वह मुम्बई से निकलने की तैयारी कर रहा होगा । जल्दी में जो है । तू शर्त हार गया नवाब…तू शर्त हार गया ।"





'".य.........यह कभी नहीं हो सकता ।" नवाब गहरी-गहरी सांसें भरता हुआ प्रतिशोध भरे स्वर में बोला--"' तू झूठ बोल रहा है !!!"





"अरे अहमक!!!!!! जिस हालत में तू है, उसमें मुझे भला तुझसे झूठ बोलने की क्या जरूरत है! हिंदुस्तानी अपनी महबूबा और बाकी जोड्रीदारों को आजाद कराने के मिशन पर निकला है लेकिन वह नहीं जानता कि उसका खेल अब खत्म हो चुका है । वह अपनी मौत को गले लगाने जा रहा है ।"




"तुम हरामजादों का यह ख्वाब कभी पूरा नहीं होगा ।"




"हमारा ख्वाब तो वस पूरा होने ही वाला है । लेकिन अफ़सोस है कि तेरा वक्त खत्म हो चुका है । मैं तुझे तेरी सारी तकलीफों से निजात दिलाने ही यहां आया हूं ।”




"म....... मगर तू है कौन और क्या चाहता है?"




“मैं हिंदुस्तानी की मौत चाहता हूं मगर उससे पहले वह कंट्रोल एंड कमांड सिस्टम चाहता हूं जो उसके कब्जे में है और जिसका वह सौदा करने जा रहा है-महज पांच जिंदगियों की खातिर! !'!'!!”




“यह किसी कमांडो की जुबान नहीं हो सकती ।"



“क्या फ़र्क पड़ता है! जव एक सीक्रेट कमाडो मुस्तफा जैसा दहशतगर्द बन सकता है तो एक दहशतगर्द सीक्रेट कमाडो क्यों नहीं वन सकता! बता…क्यों नहीं बन सकता?"



'"..म मैँ कुछ समझा नहीं ।"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: गद्दार देशभक्त

Post by 007 »

"समझने की जरूरत ही कहां है! और अब समझकर करेगा भी क्या? मेरे पास वक्त वहुत कम है और काम वहुत ज्यदा, अभी तो मुझे बहुत लम्बा सफर तय करना है । तेरे हिंदुस्तानी से पहले बंगाल पहुंचना है । लिहाजा मेरा खुदा हाफिज कबूल कर । वहां जाकर दोजख के दारोगा को मेरा सलाम बोलना ।" कहने के साथ उसने नवाब के पीछे खडे अपने आदमियों को इशारा किया ।




उनके पिस्टल फोरन नवाब की खोपडी से सट गए!

नवाब समझ गया-------अंत आ पहुचा है !


उसने कसकर आंखें बंद कर ली ।




अजनबी शैतान का कहकहा फिजां में गूंजा ।



दोनों की उंगलियां उनकी पिस्टल के ट्रिगर पर कस गई ।



मगर, इससे पहले कि नवाब की खोपडी के परखच्चे उड़ जाते, वातावरण में गोलियों की तड़तड़ाहट गूंज उठी ।



गोलियों की वह बोछार विपरीत दिशा से आई थी और असंख्य गोलियां पलक झपकते ही दोनों के जिस्मो को चीरती चली गई ।



जो हुआ, वेहद अप्रत्याशित था । अजनबी शख्स ही नहीं, नवाब भी हक्का-बक्का रह गया ।



अजनबी शख्स फ़टी--फटी आंखों से अपने ही खून से नहाई , फर्श पर पडी अपने आदमिर्यो की लाशों को देखता रह गया था ।



एक ड्रम के पीछे से निक्लकर सैयद और नियाज़ ठीक किसी प्रेत की तरह उसके सामने आ खड़े थे ।




दोनों के हाथों में असाल्ट रायफले थी । उनकी नालों से धुआं निकल रहा था और जिनका`रुख अब अजनबी शख्स की तरफ़ था ।




दूसरे सिरे से अदील और शफीक उनकी बगल में जा खड़े हुए ।



उनके हाथो मे भी गने थी ।




वे चारों दाएं-बाऐ हटे तो बीच की खाली जगह में अर्जुन नजर आया ।




उसके चेहरे पर एक अजीब-सा लावा तमतमा रहा था । अजनबी शैतान के जेहन में विस्फोट-सा हुआ जबकि अर्जुन को वहां पहुचा देखकर नवाब सुखद अनुभूति से भरता चला गया ।



आंखों में शोले लिए अर्जुन मजबूत कदमो से आगे बढा ।



अजनबी शख्स का चेहरा पीला पड़ गया । फिर एकाएक जैसे जादू के जोर से उसके हाथों में रिवॉल्वर प्रकट हुआ ।



"वहीँ रुक जाओ ।" वह रिवॉल्वर अर्जुन की तरफ तानता हुआ चेतावनी भरे स्वर में गुर्राया-------" रूक जाओं वरना मारे जाओगे ।"



नियाज़ के हाथों मोजूद गन एक बार फिर गरजी ।



अजनबी का रिवॉल्वर वाला हाथ कलाई सहित उड़ गया । वह अपनी खून से लिथड्री कलाई पकड़कर हलाल होते भैंसे की तरह डकरा उठा ।

अदील और शफीक ने नवाब को आजाद कर दिया था । ।



"शुक्रिया अर्जुन ।" नवाब कम्पित स्वर में बोला-"बिल्कुल सही वक्त पर आए हो । अगर जरा-सी भी देर कर दी होती तो इस हरामजादे ने मुझे मार ही डाला था ।"



"मेरे रहते ऐसा कभी नहीं हो सकता था ।"



“इसने भले ही बहुत उम्दा मेकअप किया था, लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि तुम इसे पहचान लोगे ।"




"मेने तो इसे देखते ही पहचान लिया था । दुनिया का कोई भी मेकअप मेरी आंखों को धोखा नहीं दे सकता । चाहता तो उसी वक्त इसकी खोपडी उड़ा सकता था लेकिन मेरे लिए यह जानना ज़रूरी था कि तुम कहां थे…किस हाल में थे? थे भी या इसने तुम्हें ठिकाने लगा दिया था । इसलिए इसे थोडी सांसे बख्श दी थी ।"




"तूने सुना कमीने!" नवाब कांपते-कराहते अजनबी शख्स से बोला----" तू कह रहा था कि मै शर्त हार गया !!!!"




"अब इस पर रहम की मेरे पास दूर-दूर तक कोई वजह नहीं है ।" अर्जुन दांत भींचकर गुर्राया था-----"लिहाजा. . . . . .





"नहीं अर्जुन . . नहीं ।" नवाब जल्दी से बोला-"रुक जाओ ।"




अर्जुन ने सवालिया नजरों से उसे देखा ।




"यह तो जान लो कि यह है कौन?” नवाब ने कहा…नवाब के धर में घुसकर उसे बंधक बनाना आसान नहीं है, मगर इसने बडी आसानी से यह कारनामा कर दिखाया । यह नवाब और स्रीकेट सेल के और भी वहुत सारे भेद जानता है, जो किसी बाहर के आदमी के लिए जान पाना नामुमकिन है ।"



"यह बाहर का आदमी है भी नहीं ।"





"त . . .तो?"




“यह हमारे घर का ही आदमी है । यह हमारी इंटेलीजेंस का ही एक एजेंट है और एक बार मेरी टीम में काम कर चुका है ।"




"क्या कहा! यह इंटेलीजेंस का एजेंट है?” नवाब बुरी तरह चौंका था-------" औंर तुम्हारे साथ काम कर चुका है?"



"हां ।" अर्जुन ने दांत पीसते हुए कहा------" आईबी का'कुत्ता रत्नाकर देशपांडे है ! "

"ओह नो! मगर आईबी हमारे खिलाफ़ कैसे हो सकती है?”



" हालाँकि मुझे इसका कुछ-कुछ अंदाजा है, मगर बेहतर जवाब ये ही दे सकत है!! नवाब रत्नाकर देशपांडे की तरफ पलटा और कहर भरे लहजे में गुर्राया-----"ज़वाब दे हरामजादे!"




"इतने उतावले मत हो राजा ।" बेसमेंट में एक नई आवाज गूंजी-------"बताने के लिए मैं हाजिर हू ।" अर्जुन और नवाब एक साथ आवाज की दिशा में पलटे ।



ठीक उसी क्षण धड़धड़ाते हुए आठ-दस आदमी वहां पहुचे ।



सभी के हाथों में आटोमेटिक गने थीं ।



उन्होंने पलक झपकते ही वहां उपस्थित हर शख्स को चारों तरफ़ से कवर कर लिया । वह सब इतना अचानक हुआ था कि कुछ करना तो दूर किसी को कुछ समझने तक का मौका नहीं मिला ।
"डोंट मूव ।" एक गनघारी चेतावनी भरे स्वर में बोला…“कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा ।"




"सब लोग अपनी-अपनी गने फेक दो ।" दूसरे ने हुक्म दिया ।



सैयद, नियाज़, अदील और शफीक की नजरें मिली ।




" सुना नहीं तुम लोगों ने!" तीसरा सर्द स्वर में बोला------"मैने कहा, अपने अपने हथियार फेक दो ।"




चारों ने अर्जुन की तरफ देखा ।




"कौन हो लोग?" अर्जुन गुर्राया ।



"लगता है नहीं मानोगे ।" पहला गनघारी दांत किटकिटाता हुआ बोला, साथ ही उसने अपनी गन का लीवर खींचा ।





"फेंक दो ।" अर्जुन जल्दी से बोला------"गनें फेक दो ।"




सैयद, नियाज़, अदील और शफीक के चेहरों पर बेबसी नाच रही थी मगर अर्जुन का हुक्म मानने के अलावा कोई चारा न था । एक गनघारी आगे बढ़ा और अपनी गन की वट से जमीन पर पडी चारों गनों को दूर सरका दिया । सबकी तलाशी ली गई ।



नवाब को छोड़कर सभी के पास रिवॉल्वर सहित कुछ छोटे हथियार मिले । उसे जब्त कर लिया गया ।





फिर, ड्रामे के अहम किरदार की तरह एक सूटबूटधारी शख्स ने वहां कदम रखा । उसके होंठों पर मक्कारी भरी कुटिल मुस्कराहट थिरक रही थी । सुअर जैसी थूथनी वाला वह शख्स कोई नहीं, बल्कि हंसराज ठकराल था ।




रक्षामंत्री!!!!!!!!!!!!!!!



उसका पीए, जयदेव शास्वी भी था ।
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