गद्दार देशभक्त complete

Post Reply
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

"कौन समझाए उसे?''


"तब तो एक ही तरीका बचता है सर ।"


" क्या?"



"उसकी गिरफ्तारी?"



" निजी तौर पर मैं तुमसे सहमत हूं एसीपी । लेकिन यह एक बड़ा मामला है । निरंजननाथ की गिरफ्तारी का फैसला मैं अकेला नहीं ले सकता ! इसके लिए गृहमंत्रालय की परमीशन लेनी होगी !"


" तो लिजिए सर ! उन्हें हालात के बारे में समझाइए ! हमें निरंजननाध को हर हाल में रोकना होगा !"



लूथरा ने अपना मोबाईल निकाल लिया !

बुरी तरह चिंतित नजर आ रहा आईबी का चीफ़, बलवंत राव उस वक्त अपने आँफिस में बैठा सिगार फूक रहा था, जिस वक्त कल्याण होलकर ने अंदर कदम रखा ।



बलवंत ने चौंककर पूछा-------" यहां क्यों आए हो?"




"जरूरी काम था सर ।" होलकर सपाट स्वर में बोला ।



तब भी तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था ।" बलवंत शुष्क स्वर में बोला-------''एक सस्पेंडिड अॉफिसर का मुझसे कोई काम नहीँ हो सकता-----एक ऐसे सस्पेंडिड आफिसर का तो हरगिज नहीं, जिसके खिलाफ जांच भी चल रही हो ।"




"वो अलग विषय है सर, फिलहाल..



"देखो होलकर ।" बलवंत उसकी बात काटकर बोल-----'' पहले ही बहुत परेशान हूं ! अभी मुझें बख्शो ।"



"क्या आपकी परेशानी की वजह जान सकता हूं ?"



"वो तो अंधे को भी दिखाई दे जानी चाहिए । पिछले तीन दिन से मुम्बई से दिल्ली तक जो कुछ हो रहा है, उसने हुकूमत की चूलें हिला दी हैं और देश की बड़ी खुफिया संस्था के कारण आईबी पर भी इसकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है ।"



"जिम्मेदारी थी सर, लेकिन अब नहीं है ।” होलकर अपने एक एक शब्द पर जोर देता बोला ।



"क्या मतलब?" बलवंत ने उसे घूरकर देखा था ।


"में सस्पेंड जरुर हो गया हूं लेकिन अच्छी तरह जानता हूं कि आईबी का क्या काम है ।" होलकर कहता चला गया--"आईंवी का काम है------समय रहते सरकार को अलर्ट कर देना और. ..बो आईबी कर चुकी थी यानी अपना फर्ज निभा चुकी थी ! आईबी ने सरकार को आगाह किया था कि खुला घूम रहा मुस्तफा क्या-क्या क्या कर सकता है ! उसके बाद भी अगर सुरक्षा बल उसे नहीं रोक पा रहे हैं तो इसमें आईबी क्या कर सकती है ?"

"में सस्पेंड जरुर हो गया हूं लेकिन अच्छी तरह जानता हूं कि आईबी का क्या काम है ।" होलकर कहता चला गया--"आईंवी का काम है------समय रहते सरकार को अलर्ट कर देना और. ..बो आईबी कर चुकी थी यानी अपना फर्ज निभा चुकी थी ! आईबी ने सरकार को आगाह किया था कि खुला घूम रहा मुस्तफा क्या-क्या क्या कर सकता है ! उसके बाद भी अगर सुरक्षा बल उसे नहीं रोक पा रहे हैं तो इसमें आईबी क्या कर सकती है ?"



बलवंत राव हैरानी से होलकर को देखता रह गया ।



इज्जात हो तो मैं बैठ जाऊं?" होलकर ने पूछा ।



बलवंत राव ने न इंकार किया, न सहमति जताई ।



होलकर एक विजिटर चेयर पर बैठ गया ।



बलवंत राव ने होलकर को वहुत गौर से देखते हुए, वड़ा अजीब सवाल किया---" तुम क्या मुझे खुश करने आए हो?"



"ज. . .जी!" सकपका गया था ।



सिगार का लम्बा कश लेने के बाद बलवंत राव कुर्सी पर पहलू बदलता हुआ बोला------“पहली बात, मुस्तफा की चांदनी से अदला-बदली में हमने मुंह की खाई । दूसरी बात, आजाद होने के बाद मुस्तफा पाकिस्तान नहीं गया बल्कि हमारे मुल्क में ही दनदनाता घूम रहा है और हम यह पता नहीं लगा पा रहे कि बह कब कहां होगा और क्या करेगा, यह किसकी नाकामयाबी है! हमारी ही ना"



होलकर के मुंह से बोल न फूट सका ।


"इसलिए कहा कि तुम शायद मुझे खुश करने आए हो ।" वह कहता चला गया------“आईबी का चीफ होने के नाते मैं यह सोचकर खुश नहीं हो सकता कि मैंने अपना फर्ज निभा दिया है, अब देश में भले ही चाहे जो होता रहे । दो नाकामियां तो मैं तुम्हें अपनी बता ही चुका हूं लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती ।"



"मैं समझा नहीं सर ।"



"मुस्तफा आज जो कुछ भी कर रहा है, वह हाफिज लुईस के अॉपरेशन औरंगजेब के तहत कर रहा है । उसकी तैयारियों को सालों पहले से अंजाम दिया जा रहा था । चांदनी सिंह के कत्ल से लेकर अोमकार चौधरी के कत्ल तक मुस्तफा को हर जगह मैदान विल्कुल साफ मिला । सुरक्षा की इतनी पुख्ता तैयारियों के बावजूद उसे अपना काम करने में कहीं कोई दिक्कत पेश नहीं आई । तुम खुद इस बात के गवाह हो कि मिशन मुस्तफा में उसने किस सरलता से तुम्हें शिकस्त दे दी । क्या समझते हो तुम? क्यों हुआ ऐसा?"



" क्यों हुआ ?"

"शायद तुम अखलाक, मोहसिन, शमशाद, इस्माइल और सरजाना को भूल गए हो! ये वो दहशतगर्द सरगना हैं, जिन्हें बरसो पहले अलग-अलग मकसदों के साथ हिंदुस्तान भेजा गया था ओऱ आईबी सहित हमारी कोई भी खुफिया एजेसी आज तक उनमे से किसी के भी बारे में पता नहीं लगा पाई कि वे लोग हिंदुस्तान के किस कोने में छुपे बैठे है और क्या कर रहे है । मैं क्या कहना चाहता हूं तुम समझ रहे हो न होलकर? "



"जी हां । समझ रहा हूं ।"



"पाकिस्तान से आए चार दहशतगर्द चांदनी सिंह को किडनैप कर लेते हैं । अभी तक जिन बीबीआईपी के कत्ल हुए, उनकी अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था में रातोंरात इतने अंदर तक सेंध लगा दी जाती है । यह आनन-फानन में नहीं हो गया बल्कि मुस्तफा के लिए ये सारी तैयारियां पहले से ही की जा चुकी थीं । क्या अब तुम्हें यह भी बताना पडे़गा कि उन तैयारियों को किसने अंजाम दिया!"



होलकर को स्वीकार करना पडा़…"इस काम को अंजाम देने वाले जरूर वही पांचों दहशतगर्द हैं, जो सालों से हमारे मुल्क में पैर जमाए हुए हैं ।”



"क्या यह हमारी नाकामी नहीं है कि हम आज तक उन पांचों में से किसी का भी सुराग हासिल नहीं कर सके । अगर हमने यह कर दिखाया होता तो क्या अाज मुस्तफा हमारे मुल्क में यह खूनी खेल खेलने में कामयाब हुआ होता? जवाब दो ।।”



होलकर जवाब न दे सका ।



उसके पास बलवंत राव की बात का जबाब था भी नहीं ।



बलवंत राव ने काफी देर बाद सिगार का कश लिया और फिर कहता चला 'गया-“जाने दो । मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं ये सब बातें तुमसे क्यों डिस्कस कर रहा हूं । खैर, अब जब तुम आ ही गए हो तो बताओ तुम्हें मुझसे क्या जरूरी काम आ पडा?"



कुछ देर होलकर चुप रहा, जैसे फैसला न कर पा रहा हो कि अपनी बात कहाँ से शुरू करे । फिर बोला…"मेरा सवाल सीक्रेट सेल से सम्बंध रखता है सर । क्या मैं यह उम्मीद करूं कि सीक्रेट सेल से सम्बंध रखने वाले किसी सवाल का मुझे सही जवाब मिलेगा?"



" सीक्रेट सेल !!" बलवंत राव के कान खड़े हो गए । वह सीट पर सीधा होकर बैठ गया…“सीक्रेट सेल से सम्बंध रखने वाले किसी सवाल का तुम्हारे पास क्या काम ? और, सीक्रेट सेल के बारे में तुम जानते ही क्या हो?"




"केवल उतना जानता हूं जितना आमतौर पर जाना जाता है ।”



"क्या ?"



"कारगिल हमले, संसद पर हमले और मुम्बई हमले के बाद भारत की सरकार ने एक नए खुफिया आर्गेनाइजेशन के गठन का फैसला लिया था । उसका नाम "सीक्रेट सेल" रखा गया । वस्तुत: सीक्रेट सेल की स्थापना अमरीका के "सील कमांडो'' की तर्ज पर की गई थी, जो कि दुनिया की सबसे खूंखार कमांडो फोर्स है और जिसके कमांडोज को धरती, आकाश और समुद्र, तीनों जगह युद्ध करने का फौलादी प्रशिक्षण दिया जाता है । सच तो यह है कि सीक्रेट सेल पड़ोसी मुल्क की धूर्तता और दगाबाजी के खिलाफ़ भारत के अब तक के घैर्य का प्रतिफल थी । सीक्रेट सेल का चीफ आईबी के ही एक अधिकारी को बनाया गया था, उसका नाम दिनेश सिंह था ।"



“हुम्म ।" बलवंत राव ने नाक व मुंह से सिगार का ढेर सारा धुआं उगलकर हुंकार भरी । आंखें होलकर पर ही टिकी हुई थी ।




“सीक्रेट सेल में पुरुषों के साथ-साथ महिला एजेंटस भी थी ।" होलकर आगे बोला…“कहते है उनमें से हर सीक्रेट एजेंट के दिल में देशभक्ति का ऐसा जज्बा कूट-कूटकर भरा था जो अपने वतन की अान की खातिर धधकते ज्वालामुखी में भी छलांग लगाने से नहीं हिचकते थे । वह देशप्रेमियों के जुनुन का एक ऐसा उच्व सेन्य प्रशिक्षण प्राप्त संगठन था, जो सील कमांडो की तरह दुश्मन मुल्क के अंदर घुसकर अपने टार्गेट को ध्वस्त करने में यकीन भी रखता था और सक्षम भी था । अपने जन्म के अगले एक साल के अंदर उन सीक्रेट कमांडोज ने दुश्मन मुल्क के खिलाफ एक दर्जन से ज्यादा अभियानों को अंजाम दिया था और सीमा पार बैठे बीस से भी ज्यादा आतंकी सरगनाओं को ओसामा विन लादेन की तरह हलाक किया था और उनकी लाशें भी अपने साथ उठा लाए थे । सीक्रेट सेल की एक्टिविटीज ने समूचे दुश्मन मुल्क में ऐसा हाहाकार मचा दिया था कि दहशत का पर्याय बने आतंकी सरगना रात को अपने घर में सोते हुए भी थरनि लगे थे । उन पर यह दहशत सबार हो गई थी कि उनकी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताकर सीक्रेट काण्डोज पता नहीं कब उनके सिरों पर प्रकट हो जाएंगे और उनकी लाश के साथ प्रेत की तरह गायब हो जाएंगे ।"



'उसके बाद?"



"सीक्रेट कमांडों से बलपूर्वक निबटने के पाकिस्तानी हुकूमत के जब सारे प्रयास बेकार हो गए तो बहां की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसअाई ने अपना शैतानी पंजा फैलाया और फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी ।"



"क्या हुआ था?"




" सीक्रेट सेल का चीफ दिनेश सिंह बिक गया । कहते हैं कि उसने आईएसआई से एक वहुत बड़ी रकम लेकर अपने ईमान और देश की आन का सौदा कर लिया था । उसके बाद सिक्रेट सेल के जांबाज कमांडोज के कत्लेआम का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसने रुकने का नाम ही न लिया । पाकिस्तान में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई । ऐसे गिरफ्तार होने वालों में एक पांच सदस्यीय दल भी शामिल था । कहते है कि वह दल किसी अॉपरेशन दुर्ग के तहत उन दिनों इस्लामाबाद गया हुआ था । बहरहाल, यह देश के लिए किसी सदमे से कम नहीं था । रक्षक ही भक्षक बन गया था-शैतान वन गया था और उसने अपनी ही लगाई बगिया को बडी बेदर्दी से उजाड़ दिया था । लेकिन दिनेश सिंह का यह पाप ज्यादा दिनों तक छुप नहीं सका था । अंतत: वह पकड़ा गया । खास बात यह कि उसे पकड़ने वाला धनंजय नाम का, उसी का एक सीक्रेट कमांडो था ।"



"ओह !"



"धनंजय वह शख्स था सर, जिसका सीक्रेट सेल के निर्माण में वहुत बड़ा योगदान था । धनंजय और सीक्रेट सैल एक दूसरे के वगैर अधूरे थे । उसी ने हर सीक्रेट कमांडो को प्रशिक्षण देकर तैयार किया था, उनके अंदर फौलाद भरा था और हर सीक्रेट कमांडो को वह अपनी संतान समझता था । कहते है कि दिनेश सिंह की गद्दारी ने उसे पागल कर दिया था । जुनूनी तो वह पहले से ही था दिनेश सिंह को उसके आँफिस में घुसकर गोली से उड़ा दिया था और यूं एक व्यापक खुफिया संस्था का दुखद अंत हो गया था ।"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

“तुम तो सीक्रेट सेल के बारे में वहुत कुछ जानते हो ।" बलवंत राव सख्त हैरानी से बोला ।




"इसमे हैरानी की क्या बात है सर! यह खुलासा तो वहुत पहले ही विकीलीक्स के द्वारा किया जा चुका है, जो दुनिया के सभी देशों के ऐसे छुपे सीक्रेटस को सामने लाने के लिए जानी जाती है । आपने मुझसे पूछा कि स्रीक्रेट सेल के बारे में मैं क्या जानता हूं मैंने बता दिया । अब मेहरबानी करके अगर आप मेरे सवाल का जवाब दे दें तो आपका उपकार होगा ।"



"सवाल पूछो ।"



"सवाल धनंजय को लेकर है । सीक्रेट सेल के चीफ़ को कत्ल करने के बाद उसका क्या हुआ ?"





" होना क्या था! उसने अपने एक उच्चाधिकारी का कत्ल किया था । इस इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया । अदालत ने उसे पंद्रह साल कैद की सजा सुनाई और वह तिडाड़ चला गया ।"



"यह तो सरासर नाइंसाफी हुई सर । दिनेश सिंह गद्दार था । देशद्रोही था । उसका जुर्म माफी के लायक नहीं था । उस अकेले इंसान की वजह से सीक्रेट सेल जैसी संस्था इतिहास बन गई थी । धनंजय की जगह मैं होता तो शायद मैंने भी यहीं किया होता ।"



“बेवकूफों वाली बातें मत करो, कानून यह नहीं देखता कि जिसे तुमने मारा हैं वह राम था या रावण । उसकी नजर में कत्ल सिर्फ कत्ल है और वह कोई आम आदमी हो या खास । कानून कातिल को वही सजा देता है, जो उसकी होती है ।"



"तो धनंजय इस वक्त तिहाड़ जेल में है!"


"नहीं !"



''क्यों ?" होलकर की आंखें बलवंत राव पर टिक गई…“क्या वह जेल से फरार हो गया!''



"ऐसा कुछ भी नहीं है ।"


"फिर? "

"धनंजय वह सदमा बर्दाश्त न कर सका था । उपर से जेल की यातना उस पर बहुत भारी गुजरी थी । परिणामस्वरूप वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठा और एक रोज तिहाड़ जेल के अपने बैरक में ही फांसी लगाकर खुद को खत्म का लिया !"



"मतलब धनंजय मर चुका है?"



“दुर्भाग्य से यह सच है ।"



होलकर अपलक बलवंत राव को देखने लगा ।



उसकी आंखों में उस वक्त ऐसे भाव थे कि बलवंत राव न चाहते हुए भी अाशंकित हो उठा । बोला…“तुम मेरी तरफ़ इस तरह देख रहे हो होलकर?"



होलकर बलवंत को उसी तरह देखता हुआ बोला-"क्या अपको यकीन है सर कि सीक्रेट कमांडो जैसे हाहाकारी लड़ाके तैयार करने वाला शख्स इतना कमजोर हो सकता है, जो जेल की मामूली-सी यातना से अपना दिमागी संतुलन खो बैठा और खुद को खत्म कर लिया?"



"तुम्हारा सवाल मुनासिब है होलकर ।' बलवंत राव भावहीन स्वर में बोला-'"धनंज़य की सुसाइड के वक्त भी या सवाल जोरों से उठा था और उसके सुसाइड केस की बाकायदा जांच भी हुई थी । उसमे धनंजय के सुसाइड किए जाने की पुष्टि हुई थी लेकिन ये सब गुजरी बाते है । यह अध्याय अब पूरी तरह बंद हो चुका है फिर तुम गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहे हो?"



" क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि अाप झूठ बोल रहे है ।" होलकर मुकम्मल दृढता से बोला ।




"क्या?" बलवंत राव ने बेहद सख्त नजरों से होलकर को घूरा था-----“मैं झूठ बोल रहा हूं ? क्या झूठ बोला है मैंने?"



" आपने धनंजय की खुदकुशी बारे में झूठ बोला है सर?" होलकर अपने एक---एक शब्द पर जोर देता बोला------"सच यह है कि धनंजय मरा नहीं बल्कि जिंदा है और वह इसी शहर में है ।"



होलकर के उस रहस्योंदूघाटन पर बलवंत राव बुरी तरह चौंका था--"धनंजय जिंदा है! यह कैसे हो सकता है?"



"मुझे नहीं पता यह कैसे हुआ लेकिन यह सच है कि धनंजय जिंदा है और सही सलामत है ।"

"नामुमकिन !" बलवंत राव के जबड़े कस गए-------"ऐसा हरगिज नहीं हो सकता । धनंजय को मरे पूरा एक साल हो गया है । उसकी लाश मैंने खुद अपनी आंखों से देखी थी ।"



"मेरे पास सबूत हैं ।" होलकर ने एक और 'धमाका' किया ।



‘बलवंत ने चिहुंककर उसे देखा…“धनंजय के जिंदा होने के?”



"हां ।"



''दिखाओ ।"



होलकर ने एक लिफाफा बलवंत की मेज पर सरका दिया ।


”क्या है इसमें?"


" खोलकर देखिए ।"


गहरे सस्पेंस में फंसे बलवंत राव ने लिफाफा खोला ।


उसके हाथों में फिगर प्रिंट के कई सैंपल आ गए ।


वे एक से ज्यादा लोगों के थे ।



हर प्रिंट के सैंपल पर एबीसीडी के रूप में कोडवर्ड दर्ज थे ।



उनके अलावा लिफाफे में और कुछ भी नहीं था ।



"यह सब क्या है होलकर?” बलवंत राव का सस्पेंस वाकी बढ़ गया था-"किसके फिगर प्रिंटस है ये?”



"कई अलग-अलग लोंगों के है सर ।” होलकर पुख्ता स्वर में बोला-------"जिनमें से एक फिगर प्रिंट धनंजय का है । उस पर धनंजय के नाम का पहला अक्षर ही अंकित है ।"


“धनंजय के फिगर प्रिंट तुम्हारे पास कहां से आए?"


"तिहाड़ से ।"


"तुम दिल्ली गये थे ?"



" ऐसा कैसे हो सकता है सर, आपके द्वारा लगाई गई पाबंदी के मुताबिक मैं तो मुम्बई से बाहर ही नहीं जा सकता ।"



"फिर ये फिंगर प्रिंट्स?"



" पेड़ गिनकर क्या करेगे! आम खाइए न ।"



"हूं । ये दूसरा फिगर प्रिंट किसका है, जिस पर एन लिखा है?"



“वह नवाब का फिगर प्रिंट है ।"


"नवाब? वह माफिया डॉन?"


"जी ।"

बलवंत का कौतूहल बढ़ता ही जा रहा था-------------खैर, ये तीसरा किसका है, 'एन' को रिमार्क के साथ रिपीट किया गया है ।"


"वह भी नवाब का ही है?"



“तुम्हारा मतलब है कि इसमें नवाब के दो-दो फिंगर प्रिंट हैं?"



"बच्चा भी जानता है सर कि एक इंसान के दो अलग----अलग फिंगर प्रिंटस नहीं हो सकते ।"



"इसका मतलब ये दोनों प्रिंट नवाब के नहीं हैं । तो फिर ये किसके फिगर प्रिंटूस हैं? और देखो, मुझें किश्तों में मत बताओ, न ही सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश करों । जो भी कहना है बगैर किसी भूमिका के साफ़-साफ कहो ।"



"वही कर रहा हूं सर ।" होलकर सहमति में सिर हिलाता हुआ बोला……""कल मेरी मुलाकात नवाब से हुई थी ।"



" तुम उससे क्यो मिले थे?"



"क्योंकि मिशन मुस्तफा में मुझे नवाब का हाथ होने के स्पष्ट संकेत मिले थे ।"



“कैसे संकेत?"



“जिन दो हैलीकॉप्टर्स का इस्तेमाल दहशतगर्दों ने किया था नवाब के ही थे ।"




"आई सी! इस मामले की जांच कर रही टीम ने तो अभी तक ऐसा कुछ भी जाहिर नहीं किया?"



"आपकी जांच टीम क्या कर रही है, और क्या नहीं, इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता सर, लेकिन मेरी तफ्तीश में नवाब का नाम सबसे अहम सस्पेक्ट के तौर पर सामने आया है । भले ही मेरी तपत्तीश की अधिकारिक तौर पर कोई अहमियत नहीं है लेकिन उससे निकले अहम नतीजे को दरकिनार नहीं किया जा सकता ।"



"आगे बोलो । फिर क्या हुआ ?"



"नवाब से मैं पहले से वाकिफ़ था । जब मैं सस्पेंड नहीं हुआ था, तो किसी केस में मेरी उससे कई मुलाकातें हुई थी । विदेशी कम्यूटर हैकरों के कल वाले मामले में उसका नाम सामने आया था । मतलब यह कि नवाब से मैं बखूबी वाकिफ धा । उसके हाव भाव , उसके बात करने के लहजे वगैेरह को मैं खूब अच्छी तरह पहचानता था !

"नवाब से मैं पहले से वाकिफ़ था । जब मैं सस्पेंड नहीं हुआ था, तो किसी केस में मेरी उससे कई मुलाकातें हुई थी । विदेशी कम्यूटर हैकरों के कल वाले मामले में उसका नाम सामने आया था । मतलब यह कि नवाब से मैं बखूबी वाकिफ धा । उसके हाव भाव , उसके बात करने के लहजे वगैेरह को मैं खूब अच्छी तरह पहचानता था !-----! मगर इस बार जब मैं नवाब से मिला तो वहाँ मुझें वह नवाब नजर नहीं आया, जिससे पहले भी मिल चुका था ।"


"इसका क्या मतलब हुआ ?"


"मुझे यकीन करना पड़ा कि वह नवाब का वहुत उम्दा अभिनय कर रहा था । उसका यह अभिनय सारी दुनिया को धोखा दे सकता था लेकिन मुझे धोखा नहीं दे सका । मेरी नजरों में नवाब का किरदार पहले ही संदिग्ध था, अब और ज्यादा संदिग्ध हो उठा । लेकिन मैंने अपना संदेह उस पर जाहिर नहीं किया और पूछताछ की फारमेलिटी पूरी करके वहां से चला अाया ।"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

"फिर? "



"मैं वहां से एक ऐशट्रे चुरा लाया था । वह ऐशट्रै जिसे मेरे सामने नवाब ने छुआ था । मैंने उस ऐशट्रे पर मौजूद फिगर प्रिंट का मिलान मुम्बई के पुलिस रिकार्ड में दर्ज नवाब के फिगर प्रिंट्स से कराया पता लगा कि वे दोनों फिगर प्रिंट्स एक दूसरे से नहीं मिलते थे । यानी मेरा शक सहीं था । अपके हाथ में मौजूदा जिस दूसरे सेंपल में रिमार्क के साथ 'एन' लिखा है, वही असली नवाब के फिगर प्रिंटस हैं, जो केवल एन लिखे यानी मौजूदा नवाब के फिंगर प्रिंटस से मैंच नहीं कर रहे हैं । मतलब साफ है, दोनों अलग अलग शख्स हैं ।"



बलवंत राव तीनों फिगर प्रिंट्स सेंपल को वारी-वारी से देखता हुआ चकित भाव से बोला…“निश्चित रूप से इसका यहीं मतलब निकलता है जो तुम निकाल रहे हो । मैं इन तथ्यों की जांच कराऊंगा । लेकिन होलकर, इन सव बातों से धनंजय का क्या सम्बंध है?”


"बहुत गारा सम्बंध है सर ।" होलकर दूढ़तापूर्वक बोला----"'आप जानते है कि मुल्क के सभी सजायाफ्ता और हिस्ट्रीशीटर क्रिमिनल्स का रिकार्ड आँनलाइन कर दिया गया है । वह अॉनलाइन रिकार्ड मुल्क की सभी खुफिया इकाइयों के साथ-साथ पुलिस मुख्यालयों में भी मौजूद है ।"



"वो तो है लेकिन...



"मैँने जब डुप्लीकेट नवाब के फिंगर प्रिंट्स सेंपल का मिलान आनलाइन डाटा बैंक से किया तो वे प्रिंटस धनंजय के फिगर प्रिंटूस से मैच करते पाए गए जबकि पुलिस और खुफिया, दोनों के ही रिकार्ड में वह मर चुका है- यह नामुमकिन बात थी इसीलिए मुझे भी यकीन नहीं आ रहा था लेकिन जो सबूत सामने था, उसपर अविश्वास भी नहीं कर सकता था । वह सबूत, जो चीख-चीखकर कह रहा है कि धनंजय मरा नहीं बल्कि जिंदा है और इस वक्त नवाब का डुप्लीकेट बना मुम्बई में ही मौजूद है !"




"ऐसा है तो असली नवाब कहां है?”



"इस सवाल का जबाब तो वही दे सकता है, जिसने उसकी जगह ले रखी है । जो माफिया डॉन बना बैठा है ।"



"वह बॉंडी किसकी थी जिसे धनंजय की लाश समझा गया?"



“इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए डुप्लीकेट नवाब उर्फ धनंजय की गिरफ्तारी जरूरी है । नवाब मामूली शख्तीयत होता तो यह काम मैं मुम्बई पुलिस के जरिए करा चुका होता लेकिन मैं जानता हुं, नवाब का गिरफ्तारी वारंट पुलिस इतनी जल्दी हासिल नहीं कर सकती मगर आईबी कर सकती है । खासतौर पर तब तो यह काम और भी जरूरी हो जाता है जबकि उसके देशद्रोही गतिविधियों में शामिल होने के संकेत मिल रहे हैं ।"



"धनंजय के देशद्रोही गतिविधियों में शामिल होने के संकेत मिल रहे हैं!" बलवंत राव हतप्रभ-सा होकर बोला-जिसने देश की खातिर अपनी जिन्दगी होम कर दी, उसके देशद्रोही होने के संकेत मिल रहे हैं! मुर्दा जिंदा हो गया है! कौन यकीन करेगा?”



"जब मर्दा स्वयं जीता जागता खड़ा होगा तो किसी को कुछ भी यकीन की जरूरत नहीं रह जाएगी ।"



"बात तो ठीक है । मैं अभी इंतजाम करता हूं मगर तुम्हें फिगर प्रिंट्स वाला यह लिफाफा मेरे पास छोड़ना होगा ।"



"मुझे इसकी जरूरत नहीं है ।"



"एक घंटे के अंदर वह मेरे सामने बैठा होगा । तब तक तुम्हारी बताई गई बातों की तस्दीक भी हो चुकी होगी । चाहो तो रुक सकते हो या फिर एक घंटे बाद वापस आ सकते हो ।"



"मैं एक घंटे बाद वापस आ जाऊंगा । बहरहाल, सहयोग का बहुत-बहुत शुक्रिया सर ।"


उस वक्त निरंजननाथ अपने समर्थकों के भारी हुजूम के साथ रामलीला मेदान की तरफ रवाना होने की तैयारी कर रहा था जब कमिश्नर लूथरा पुलिस फोर्स के साथ उसके आवास पर पंहुचा ।



आवास के प्रांगण में निरंजननाथ के समर्थकों के साथ जेड प्लस सुरक्षा के गार्ड भी थे और निजी सुरक्षा एजेंसी के गार्ड भी ।




लूथरा के साथ अाए डीसीपी ने जब सुरक्षा गार्डों के इंचार्ज को बताया कि कमिश्नर साहब निरंजननाथ से मिलने आए हैं तो तुरंत निरंजननाथ को सूचना दी गई ।



अंदर से जवाब आया…"जल्दी भेजो ।"



लूथरा डीसीपी रेैंक के दो अफसरों के साथ अंदर पहुचा ।



निरंजननाथ को लूथरा का उस वक्त वहां पंहुचना बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था । उन्हें देखते ही बोला------“बहुत गलत वक्त पर अाए हो कमिश्नर, मुझे अफसोस है कि मैं इस वक्त तुम्हारा स्वागत नहीं कर सकता । बस निकलने ही वाला था । पहले ही लेट हूं ।"



“मुझे लगता है कि मैं यहां सहीं वक्त पर पहुंच गया हूं ।"



"सवाल यह है कमिश्नर कि तुम यहां पहुंचे ही क्यों हो?" वह आंखें निकालता हुआ बोला…“तुम्हें तो इस वत्त रामलीला मैदान में होना चाहिए था । मुझे रिपोर्ट मिली है कि इस वक्त वहां दस लाख लोग इकट्ठा हैं । इतने लोग तो तुम्हारे पीएम को सुनने भी नहीं आते । वहां तुम्हारी ज्यादा जरूरत है ।"



"मेरी जरूरत कब कहां है, इस बारे में मुझसे ज्यादा बेहतर कोई नहीं जान सकता निरंजन साहब ।"



एकाएक निरंजननाथ की आंखें सुकड़कर गोल हुई । लूथरा को बहुत गौर से देखता हुआ बोला-------" कहीं तुम मुझे गिरफ्तार करने का मंसूबा बनाकर तो नहीं अाए हो!"



"इसके अलावा आपने कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा है ।"



"नानसेंस ।" निरंजनदास मुंह बिगाड़कर बोला------इस समय मेरी गिरफ्तारी का मतलब समझते हो?"


"अच्छी तरह से है लेकिन आप उसकी जरा भी फिक्र न करें !"

रामलीला मेदान से लेकर यहां तक हमारी सारी तैयारियां मुकम्मल हो चुकी है । आपके समर्थकों ने कोई उपद्रव करने का प्रयास किया तो संभाल लिया जाएगा ।"



"कुछ नहीं संभाला जाएगा तुमसे?” निरंजननाथ तमककर बोला…"तुम्हारे हुक्मरान सिरे से नाकारा है । संभालना उनके बस में होता तो यह नौबत ही क्यों अाती! आज शहर में चारो तरफ खून-रव्रराबा मचा हुआ है । आतंकी सरेआम खून की होली खेल रहे है ।"



“आप तो वो भाषण यहीं देने लगे निरंजन साहब जिसे शायद रामलीला मैदान में देने के लिए तैयार किया गया था ।"



''मतलब ?"



"आपकी महारैली में इकट्ठा लाखों की भीड़ पर आतंकियों की नजर है । वहां भगदड़र हुई तो हालात कितने भयावह हो सकते है, यह आप समझ नहीं रहे हैं या जानबूझकर समझना नहीं चाहते। खुद होमनिनिस्टर साहब ने आपको समझाने की कोशिश की मगर अाप हठधर्मिता पर आमादा हैं । मुझे दुख है कि आपको इंसानी जानों की जरा भी परवाह नहीं है ।"



"परवाह है । इसीलिए तो हुकूमत को आगाह करने की कोशिश कर रहा हूं । जिन इंसानों की तुम मुझे दुहाई दे रहे हो, मैं उन्हीं की खातिर यह मशाल बुलंद कर रहा हूं ।"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

“आप सिर्फ अपने स्वार्थ की खातिर यह मशाल बुलंद कर रहे हैं । आप अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए. . .



"ओ, शटअप कमिश्नर ।" निरंजननाथ बुरी तरह बिफर पड़ा था------""शटअप । तुम अपने 'मालिक' की भाषा बोल रहे हो ।"



" यू शटअप ! " कमिश्नर लूथरा उससे कहीं ज्यादा तेज स्वर में बोला । उसके सब्र तथा शिष्टाचार का बांध तब जैसे एकाएक टूट गया था----"यू आर अंडर अरेस्ट ।"



अचानक बदले लूथरा के तेवरों ने एक बार को तो निरंजननाथ को बुरी तरह सकपका दिया था । फिर बोला-------"वारंट है?"



लूथरा ने लम्बी सांस छोडी और जेब से निकालकर एक सीलबंद लिफाफा उसे थमा दिया ।

निरंजन ने लिफाफा फाड़कर वारंट का मुआयना किया । चेहरे पर बैचेनी और चिंता के भाव उभर आए । बूरी तरह कसमसाता हुआ बड़बड़ाया था वह-विनाश-काले विपरीत बुद्धि ।"


लूथरा ने बस इतना ही कहा------“चले!”



" मैं फिर कहता हूं ।" निरंजन ने अंतिम कोशिश की------''बाहर जमा लोगों को जैसे ही पता लगेगा कि तुमने मुझे गिरफ्तार.........



"उन्हें पता लगेगा ही क्यों हुजूर?” लूथरा उसकी बात काटी ।



"मतलब? "



"आपके इस आवास का एक दरवाजा पीछे की तरफ भी तो है, उसके बारे में किसी को नहीं पता है इसलिए वहां भीड़ भी नहीं है ।" निरंजननाथ लूथरा को देखता रह गया । लुथरा ने जहरीली मुस्कान के साथ कहा था…“अब आपकी समझ आया होगा कि हम पूरी तैयारी के साथ आए हैं ।" निरंजनचाथ को कुछ कहते न बन पड़ा ।

कमिश्नर लूथरा और एसीपी नेगी गृहमंत्री बादल नारंग के सामने हाथ बांधे, मुजरिमों की मानिन्द खड़े थे ।



चेहरे फ़क्क पड़े हुए थे उनके ।



आंखों में बदहवासी समाई थी और दिल धाड़-घाड़ करके पसलियों पर सिर पटक रहे थे ।



कमरे में रखे टेलीविजन पर निरंजनाथ के दिन दहाड़े हुए अपहरण की सनसनीखेज खबर प्रसारित हो रही थी ।



विस्तार से बताया जा रहा था कि मुस्तफा ने किस तरह दिली पुलिस कमिश्नर लूथरा का हूबहू हमशक्ल बनकर वारदात को अंजाम दिया था ।



उसी से जुड़ी, उससे भी कहीं ज्यादा सनसनीखेज खबर यह थी कि अपहरण के तीस मिनट बाद पटेल नगर इलाके से उसकी लाश बरामद हो गई थी ।



गोली उसकी कनपटी पर मारी गई थी ।



रामलीला मैदान में एकत्रित भीड़ में आक्रोश और गुस्से का-------

Page no 242

---------ऐसा ज्वालामुखी फूटा था जिस पर काबू पाने के लिए वहां तैनात दिल्ली पुलिस के जवानों तथा अर्द्धसैनिक बलों के छक्के छूट गए थे ।



सरकार को अानन-फानन में अर्द्धसैनिक बलों की कई और दुकड्रियां बुलानी पड़ी थी ।



पहले से ही पुख्ता तैयारियों तथा अतिरिक्त सतर्कता के चलते कोई बड़ी अनहोनी टल गई थी लेकिन हर तरफ़ व्याप्त भारी तनाव के कारण अघोषित कफ्यूं जैसे हालात पैदा हो गए थे ।



गृहमंत्री का नजला सबसे पहले कमिश्नर लूथरा पर ही गिरा था । गृहमंत्री नारंग ने बड़ी बेतुकी झुंझलाहट के साथ लूथरा से कहा था…“य. . .यह सब क्या हो रहा है कमिश्नर! मैं पूछता हूं यह सब क्या हो रहा है?”



लूथरा समझ न सका कि नारंग का वह सवाल किस बात को लेकर था । यह अपने स्थान पर र्किकर्तव्यबिमूढ़-सा खड़ा रहा।


"यह सच है कि हालात के चक्रव्यूह में फंसकर हमें निरंजन की गिरफ्तारी का फैसला लेने को मजबूर होना पडा़ था ।" बाल नोचने की-सी अवस्था में वह कहता चला गया था----'"लेकिन अभी तो उसका गिरफ्तारी वारंट भी जारी नहीं हो सका था कि मुस्तफा बाकायदा वारंट के साथ उसे गिरफ्तार करने पहुच गया और इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी के बीच से निकालकर ले गया । दूसरी बात, मीडिया को कैसे पता लगा कि वह मुस्तफा ही था ?"



“अ. . आई एम सॉरी सर ।" लूथरा थूक गटककर अपने खुश्क गले को तर करता हुआ बोला-----" साबित चुका है कि वह मुस्तफा के अलावा और कोई नहीं था । कार से पाए गए फिगर प्रिंट्स मुस्तफा के ही हैं । वे ही फिगर प्रिंटूस गुलशन राय, चोपडा और ओमकार चौधरी की हत्या की जगह पर भी पाए गए थे और मीडिया को तो जाए जानते ही हैं, जहाँ न पहुचे रवि वहाँ पहुचे कवि ।"




"मेरा सवाल यह है लूथरा कि निरंजननाथ की गिरफ्तारी कोई प्रीप्लांड नहीं थी, यह फैसला अचानक लिया गया था और इस बारे में गृहमंत्रालय और दिल्ली पुलिस के चुनिदा लोगों को ही पता था । इसके बावजूद मुस्तफा को हमारे इरादे के बारे में कैसे पता लगा!"'



"जो कुछ हो रहा है, वह यकीनन हैरत अंग्रेज है लेकिन. .. ......

"लेकिन?"



"जो इस बार हुआ है, यह पहली वार नहीं हुआ ।" लुथरा अपने एक-एक शब्द पर जोर देता कहता चला गया------“चोपड़ा पूछताछ के लिए आईबी की टीम को भेजने का फैसला भी अचानक ही लिया गया था । मुस्तफा को उस फैसले की जानकारी भी हो गई थी । उसे यह भी मालूम हो गया था कि जो आईबी अफसर इस काम के लिए जा रहा था, उसका नाम मोहनलाल था और वह उसके पहुंचने से ठीक पहले ही आईबी अफ़सर मोहनलाल बनकर चोपड़ा के पास जा धमका था । ओमकार चौधरी का केस जुदा है । इस कड़ी में गुलशन राय का नाम भी लिया जा सकता है । उसके फील्ड मूवमेंट की इतनी सीक्रेट खबर भी मुस्तफा को लग गई थी । तभी तो उसने फरीदाबाद के जंगलों में पहुंचकर उसे हलाक कर दिया था ।"



" इस बहसबाजी का क्या मतलब है कमिश्नर ।"



"माफी चाहता हूं होममिनिस्टर साहब । मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि मुस्तफा का नेटवर्क बहुत अंदर तक फैला हुआ नजर आ रहा है । कल अगर यह पता लगे कि छेद गृहमंत्रालय में भी है, तो मुझे जरा भी हैरानी नहीं होगी ।"




"तुम्हारा दिमाग तो ठीक है कमिश्नर?" नारंग भड़ककर लूथरा को घूरता हुआ बोला------“तुम मुझ पर ऊंगली उठा रहे हो?"



“मैं आप पर नहीं, आपके मंत्रालय पर ऊंगली उठा रहा हूं। चाहे दिल्ली पुलिस हो या आईबी, सभी गृहमंत्रालय से जुड़े है । मुल्क की सुरक्षा से जुड़े सभी सीक्रेटस का डाटा बैंक गृहमंत्रालय में ही है और गृहमंत्रालय में वेशुमार मार लोग काम करते है । 'चेन' लम्बी हो तो उसमें कमजोर कडि़यों के निकलने की सम्भावना भी ज्यादा होती है । पीएमओ तक में घुसा जासूस पकड़ा जा चुका है । फिर गृहमंत्रालय में उनका आदमी क्यो नहीं हो सकता ?"




"शटअप कमिश्नर ।" नारंग खीझकर बोला-“शटअप । अपनी नाकामी का ठीकरा किसी और पर मत फोड़ो ।"



"अगेन सारी सर ।"



"सारे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाएगी । जव तक जांच पूरी नहीं होती, तुम्हें डिसमिस किया जाता है !"

लुथरा का चेहरा उतर गया ।


"और तुम्हें भी एसीपी ।” नारंग नेगी से बोला ।



नेगी के चेहरे पर भी मायूसी छा गई ।



दोनों ने नारंग को सैल्यूट किया और चले गए ।


तभी एक अटेंडेंट वहीं पहुचा ।



उसने बताया--------" डिफेंस मिनिस्टर साहब अाए है ।"




“ओहो !" नारंग के होंठो से निश्वास निकली । बोला-" उन्हें फौरन अंदर भेजो ।"



अटेंडेंट रुखसत हो गया ।



कुछ देर बाद हंसराज ठकराल वहां दाखिल हुआ ।



नारंग ने उसे सोफे पर बैठाया ।



"मैं आपके यहां अाने का मतलब समझ सकता हूं ठकराल साहब ।" नारंग उसके सामने मौजूद सोफा चेयर पर बैठता हुआ गम्भीर स्वर में बोला…“हालात ही कुछ ऐसे हैं ।"



"हालात आपकी सोच से भी बहुत ज्यादा नाजुक हैं गृहमंत्री महोदय ।" ठकराल सपाट स्वर में बोला…" मुम्बई ले लेकर दिली तक जो कयामत अाई हुई है, उससे सारे मुल्क में ऐसा तनाव पैदा हो गया है, जो डराने वाला है । निरंजननाथ की मौत के बाद तो लगता है कि दिल्ली में कर्फ्यूं ही लगाना पड़ेगा ।"



"ऐसा नहीं होगा ठकराल साहब ।" नारंग ने पता नहीं ठकराल को आश्वस्त किया वा, या खुद को…“हमारी तैयारियां बेहद पुख्ता थी । फिलहाल स्थिति पूरी तरह से नियन्त्रण में है । राजधानी में जमा निरंजन के समर्थकों की भारी भीड़ हमारे लिए बहुत बडी समस्या थी लेकिन वह समस्या भी लगभग हल हो चुकी है । उसमें से आधी से ज्यादा भीड़ को राजधानी की सीमा बाहर निकाल दिया गया है और हालात पर बेहद पैनी नजर रखी जा रही है ।''



ठकराल ने सीधे पूछा-“मुस्तफा की क्या खबर है?"



"मुस्तफा के बारे में क्यों पुछ रहे हैं ठकराल साहब?"

"क्या मुझे नहीं पूछना चाहिए? मैं भी आखिर मुल्क का डिफेंस हूं मिनिस्टर और मामला जव देश की सुरक्षा से जुड़ा हो तो मेरी भी कोई जवाबदेही बनती है ।"



"हालात को फेस तो करना ही पड़ेगा ठकराल साहब ।"



"कब तक?"



"जब तक मुस्तफा हाथ नहीं आ जाता ।"



"वह दिन कब जाएगा?''


"बहुत जल्द ।"



" क्या वो जवाब है होम मिनिस्टर साहब, जो हम मीडिया को देते है जबकि मैं वास्तविकता जानना चाहता हूं ! निरंजननाथ की मौत के साथ ही अापरेशन औरंगजेब का दूसरा चरण पूरा हो चुका है और हाफिज ने वह स्पेस वेपन हासिल कर लिया है, जिसकी कीमत आईएसआईएस ने बाईस हजार करोड रुपए लगाई थी । आपको तो मालूम हो ही चुका होगा?"



"हां । मुझे सूचना मिल चुकी है ।” नारंग फिक्रमंद होकर बोला ।


" क्या आपको यह भी मालूम है कि हाफिज उस स्पेस वेपन का इस्तेमाल हमारे मुल्क के खिलाफ़ ही करने वाला है?"


"पता है । मगर ये नहीं पता कि उस स्पेस वेपन का यह हमारे खिलाफ क्या इस्तेमाल कर सकता है और उसके इस्तेमाल से हमारा किस किस्म का और कितना नुकसान हो सकता है! लेकिन, जल्दी ही सबकुछ पता लग जाएगा ।"



"फिर भी आप खामोश बैठे हैं! इस खबर से तो आपके हाथ पांव फूल जाने चाहिए थे । हमारी एजेसियों में भी वह हलचल नहीं मची है, जो इस तरह के सम्वेदनशील समय में मचनी चाहिए थी । अखलाक, मोहसिन, इस्माइल, शमशाद और सुरजाना नाम के पांचों खतरनाक टेरेरिस्टों का अभी तक गिरफ्तार न हो पाना भी आपको रत्ती भर विचलित नहीं कर रहा है?”



" आपके खयाल से मुझे क्या करना चाहिए? अपना कार्यालय छोड़कर मुस्तफा को दूंढ़ने निकल पड़ना चाहिए! खुफिया एजेंसियां चाहे किसी भी मुल्क की हों, उनके अंदर मचने वाली हलचल पर कौन से न्यूज चेनल पर डिबेट की जाती है! क्या मेरे विचलित होने से वे पांचों आतंकी गिरफ्तार हो जाएगें ?"

"आपका जवाब इस बात की स्पष्ट चुगली कर रहा है होम मिनिस्टर साहब कि इस सारे मामले में कहीं कुछ ऐसा है जो मुझसे छुपाया जा रहा है…जो देश के डिफेंस मिनिस्टर से छुपाया जा रहा है । यह ठीक नहीं है ।"



" ऐसी कोई बात नहीं है ठकराल साहब । यह केवल आपका वहम है । और मैं चुप भी नहीं बैठा हूं ! मैं अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाह कर रहा हूं । मुकम्मल हालात पर मेरी नजर है । इसीलिए मैने कहा कि वहुत जल्द सबकुछ मालूम हो जाएगा ।"


"मगर . . .



"स्टॉप दिस टॉपिक ठकराल साहब ।" नारंग उसकी बात बीच में काटकर दृढ़ता से बोला…"प्लीजा आपने बहुत गलत वक्त पर सरासर गलत बिषय चुना है । यकीन मानिए, यह इन बातों का वक्त नहीं है । टेरेरिस्टों के भयावह इरादों की आपको पहले से खबरहै । अभी देश में कोई कम कोहराम नहीं मचा है और आने वाले वक्त के अंदेशे ने हमें वहत ज्यादा विचलित कर रखा है । मार हम अपनी बेचैनी जाहिर देश के आवाम का और खुफिया एजेंसियों का मनोबल गिराने का काम नहीं कर सकते ।"



ठकराल ने पुन: कुछ कहने के लिए मुह खोला ही था कि नारंग का मोबाइल बजा । यह देखकर नारंग के मस्तक पर बल पड़ गए कि एक खास नम्बर से कॉल आ रही थी ।


" यस ।" नारंग ने कॉल रिसीव की ।


दूसरी तरफ़ से जो कुछ वताया गया, उसे सुनकर नारंग के चेहरे पर तेजी से कई रंग एाए और चले गए । उसके समूचे वजूद में जैसे एक तीखी बेचैनी दौड गई थी ।


काफी देर तक उसकी यही हालत रही ।



कुछ सवाल भी किए उसने जिनका मतलब काफी कोशिश के बावजूद ठकराल की समझ में नहीं अाया ।


नारंग ने काफी देर तक बात की थी ।



जब फोन काटा तो चेहरा धुवां-धुवां हो रहा था ।



मस्तक पर चिंता की इतनी सारी लकीरें खिंची हुई थी कि उन्हें मेग्नीफाइंड ग्लास से भी गिना नहीं जा सकता था । ऐसा लग रहा था--------------जैसे उसके दिमाग पर कोई ऐसी बिजली गिरी हो जिसने उसके समूचे अस्तित्व को जालाकर राख कर दिया था ।



"क्या हुआ होममिनिस्टर साहब?" ठकराल ने उतावलेपन से पूछो-“किसका फोन था?"



कुछ देर तक नारंग ठकराल को ऐसी नजरों से देखता रहा जैसे उसे नहीं, शुन्य को निहार रहा हो । आँखों में ऐसी स्थिरता थी जैसी मुर्दे की आखों में होती है । फिर, धीरे से बोला-------""भीम सिंह का ।"



“हमारा राष्टीय सुरक्षा सलाहकार?"



"हां । वही ।"



" ऐसा क्या बताया है उसने जिसे सुनकर आप इतने परेशान हो गए है । पेरशान ही नहीं, डिस्टर्ब भी ।"



"स्पेस वैेपन का इस्तेमाल और उससे होने बाली तबाही के बारे में पता लग गया है । हाफिज लुईस के अॉपरेशन औरंगजेब का तीसरा चरण उसी के इस्तेमाल से पूरा होने वाला है ।"



“ओहो!” ठकराल संभलकर बैठ गया था । उसके कान खड़े हो गए-----“क्या बला है यह स्पेस वेपन?"



"दरअसल यह स्पेस वेपन सेटेलाइट्स को नष्ट करने वाला एक निहायत ही दुर्लभ किस्म का हथियार है । वह परमाणु की ताकत से संचालित होता है । इसीलिए उसे एटामिक स्पेस वेपन कहते हैं ।"



"सेटेलाइट्स को नष्ट करने वाला हथियार?" ठकराल चौंककर बोला……""ऐसे हथियार के बारे में तो मैं पहली बार सुन रहा हूं!"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: गद्दार देशभक्त

Post by kunal »

"मैं भी पहली बार सुन रहा हूं, लेकिन यह सच है । ऐसा हथियार धरती पर मोजूद है । उसका ईजाद दूसरे विश्वयुद्ध के बाद किया गया था । रूस की क्रांति के बाद यह केवल अमरीका के हाथों में सिमटकर रह गया था लेकिन अमरीका को कभी इसके इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ी ।"



"पर ये इस्तेमाल कैसे होता है? सेटेलाइट तो अंतरिक्ष में बहुत दूर होता है । यहीं किसी आग्नेयास्त्र की पहुंच कैसे हो सकती है?"



"स्पेस वेपन किसी मिसाइल या तोप के गोले की तरह अपने टार्गेट को हिट नहीं करता, न ही उसे ट्रांसपोर्ट करके एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की जरूरत पड़ती है ।"

“फिर? "



"माइक्रोप्रोसेसर से लेस एक डिवाइस को अंतरिक्ष में भेजकऱ उसे एक खास कक्षा में स्थापित कर दिया जाता है । माइक्रोप्रोसेसर और बेशुमार सेंसर के साथ ही उसमें एक पोर्टेबल इंजन विल्ट अप होता है, वह स्लीप मोड में डिवाइस के अंदर पड़ा होता है ।"



"इंजन स्लीप मोड में क्यों होता है?”

"क्योंकि उसकी जरूरत बाद में पड़ती है-डिवाइस के अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद, तब, जबकि एटामिक स्पेस वेपन को उसके टार्गेट पर ले जाना होता है । तव इंजन को चालू किया जाता है, फिर उस इंजन की ताकत से ही स्पेस वैपन को टार्गेट के करीब ले जाया जाता है ।"



“टार्गेट, यानी अंतरिक्ष में चवकर में लगाती सेटेलाइट?"



"जी हां । वह सेटेलाइट चाहे अंतरिक्ष के दूसरे छोर पर ही क्यों न हो । उस इंजन की ताकत से स्पेस में डिवाइस भी किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकती है । टार्गेट जितना दूर होगा, उस तक पहुंचने में उसे उतना ही टाइम लगेगा ।"



" वैपन सेटेलाइट को कैसे हिट करेगा?"



"एटामिक डिवाइस को सेटेलाइट से टकरा दिया जाता है । टवकर होते ही एटामिक डिवाइस ब्लास्ट हो जाती है । वह ब्लास्ट अणुबम के ब्लास्ट जैसा ही प्रलयंकारी होगा । उससे अंतरिक्ष में जो कयामत आएगी, उससे टार्गेट किया जाने वाला इकलौता सेटेलाइट तबाह नहीं होगा, बल्कि उसकी चपेट में आस-पास कई किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी सेटेलाइट्स तबाह हो जाएंगी ।"



"तो क्या मैं यह समझू कि दुश्मन स्पेस वेपन से हमारे मुल्क की किसी सेटेलाइट को नष्ट करना चाहता है?”



“हाफिज हमारे नेवीगेशन सेटेलाइट के पूरे नेटवर्क को ध्वस्त कर देने का मंसूबा बनाए हुए है ।"



"मै इतना पढा़-लिखा नहीं हूं होम मिनिस्टर साहब । मुझे मेरी भाषा में बताओ कि यह नेवीगेशन सेटेलाइट नेटवर्क असल में क्या है और उसके तबाह हो जाने से हमारे मुल्क पर क्या असर पडेगा?"



नारंग ने लम्बी सांस खींची बोला-----

" यह जीपीएस ग्लोबल पोजीशर्निग सिस्टम पर आधारित एक कम्युनिकेशन का हब है । जिसके तबाह होने का मतलब हमारे मुल्क के सभी संचार साधनों का पूरी तरह नष्ट हो जाना होगा । उपग्रह से सिग्नल न मिलने के कारण हमारी सेनाओं की समूची रक्षा प्रणाली तार----तार हो जाएगी और अगर ऐसे में हमारे मुल्क पर कोई हमला होता है तो हम उसका जवाब नहीं दे पाएंगे । बैंकिग, मिसाइल, ऐयरोड्रोम, पनडुब्बी, इलेक्ट्रानिक संचार माध्यमों से जुड़े हमारे सभी सेक्टर पूरी तरह से तबाह हो जाएंगे । उन्हें पुन: ठीक करने में अरबो-खरबों रुपयों का खर्च आएगा और सालों साल लग जाएंगे । दूसरे शब्दों में तो अगर हमारे खिलाफ उस स्पेस वेपन का इस्तेमाल किया गया हमारा मुल्क दस साल पीछे चला जाएगा ।"


ठकराल के नेत्र फैल गए । वह झटका-सा खाकर बोला------ "यह तो बड़ा विनाशकारी हथियार है । म . . .मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि देश में इस तरह भी तबाही मचाई जा सकती है । यह तबाही तो दो सेनाओं की खूनी जंग से कहीं ज्यादा विनाशकारी होगी, लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है?"



"वह कोई ज्यादा मुश्किल काम नहीं है । उसके लिए एक इलेवट्रो मैग्नेटिक कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम होता है, जिसे स्पेस वेपन की चाबी कह सकते है । उस पूरे कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम का वजन मुश्किल से एक टन होता है और उसे दो की क्रेट में पैक करके एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाया जा सकता है और अपने अक्षांश में धरती पर किसी भी जगह ट्रांजिट कंट्रोल रूम बनाकर वहीं स्थापित किया जा सकता है ।"



"यानी कंट्रोल रूम का भारत में होना जरूरी नहीं है?"



"नहीं । उसका केवल अपने अक्षांश में रहना जरूरी है । अक्षांक्ष से बाहर होने पर स्पेस वेपन आउट आंफ़ रेज हो जाएगा और समूचा एशिया एक ही अक्षांश में आता है, यानी स्पेस वेपन को ब्लास्ट करने के लिए दुश्मनों को उसके कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम को भारत में लाने की जरूरत नहीं है । इस काम को वह ईराक, अफगानिस्तान या पाकिस्तान में बैठकर भी अंजाम दे सकता है ।

हमारी खुफिया एजेसियों की खबर के मुताबिक स्पेस वेपन का कंट्रोल
सिस्टम ईराक से पाकिस्तान लाया जा चुका है ।"



"यह तो बहुत पुरी खबर है…बहुत ज्यादा बूरी । हम न तो स्पेस में कहीं भी स्पेस वेपन को नष्ट कर सकते न ही उसके कंट्रोल सिस्टम को । मुश्किल यह है कि दोनों ही चीजे हमारी पहुंच और हमारे मुल्क में नहीं है । वैसे भी जैसा तुम कह रहे हो उसके अनुसार यदि ये चीजे हमारे मुल्क में होती तब भी हम क्या कर सकते थे! यह तो वहुत ही भयावह स्थिति है गृहमंत्री महोदय-बहुत ज्यादा ।”



"मैं ऐसे ही तो इतना फिक्रमंद नहीं हो उठा हूं !"




"सिर्फ फिक्रमंद होने से क्या होगा?"



"आप सलाह दे, क्या करूं ?"




ठकराल गड़बड़ा-सा गया ।




नारंग ही बोला…"पीएम महोदय की गैरमौजूदगी में सारे फैसले मैं ही ले रहा हूं और मैंने एक आपात मीटिंग बुलाई है । उसमें आईटी क्षेत्र के दिग्गज और स्पेस साइंटिस्टों के अलावा ऐसे टेक्निीशिअंस को भी बुलाया है जो इस जटिल समस्या से निपटने के लिए अपनी सलाह दे सकेंगे । रक्षा मंत्री होने के नाते अाप भी आमंत्रित हैं ।"



"लेकिन . . .



" प्लीज ठकराल साहब । यह वक्त बहस में जाया करने का नहीं है, बल्कि कुछ करने का-फौरन कुछ करने का है ।"



ठकराल कसमसाया ।



उसने होंठ भींच लिए, फिर एकाएक उठकर खडा हो गया ।

कल्याण होलकर दोबारा आईबी के आँफिस में पहुचा तो वहां बलवंत राव के साथ नवाब को भी उपस्थित पाया ।



"आने में बड़ी देर कर दी माई सन ।" बलवंत राव होलकर जो देखते ही बोला-------' कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं ।"


" सॉरी सर !"


"डोंट वरी ।" उसने नवाब की तरफ इशारा किया-----" इन्हें तो पहचानते ही होंगे?"



"अच्छी तरह ।" होलकर ने नवाब को देखा-----" यह जनाब भूलने वाली चीज कहां हैं! हल्लो नवाब साहब !"



"हेलो आफिसर ।" नवाब के होंठों पर चिर-परिचित मुस्कराहट उभरी-“मैंने सोचा नहीं था कि हम इतनी जल्दी दोबारा मिलेगे ।"



“इससे पहले हम कब मिले थे?" होलकर ने उसे घूरा ।



“अरे जनाब इतनी जल्दी भूल गए ! " नवाब हैरान होता नजर आया था------" कल ही तो मिले थे । तुम खुद मेरे पास आए थे ।"



होलकर ने पुरजोर स्वर में कहा-----------"मैं कल तुम्हारे ठीकाने पर जाकर जिससे मिला था, तुम वह शख्स नहीं हो ?"



“अरे! तुम्हें क्या हो गया है अॉफिसर नवाब ने सख्त हैरानी के साथ कहा था…"तबीयत तो ठीक है तुम्हारी!"



"में बिल्कुल दुरुस्त हूं लेकिन. . .




" यह शत प्रतिशत वही है ।" इस बार बलवंत राव ने उसकी बात काटते हुए कहा था------"मैं इस बात की तस्दीक कर चुका हूं । इसके फिगर प्रिंटस मुम्बई पुलिस के रिकार्ड में मोजूद नवाब के फिगर प्रिंट्स से मेैच कर रहे हैं, शक की कोई गुंजाइश नहीं है । यह वही नवाब है । तुम चाहो तो खुद तस्दीक कर सकते हो?"

"मैं आपकी तस्दीक को झूठी नहीं कह रहा सर ।" होलकर सपाट स्वर में बोला…“यह शख्स नवाब हो सकता है । वल्कि नवाब ही है लेकिन कल नवाब की शक्ल वाले जिस आदमी से मैं मिला था, वह अादमी यह नहीं था । आप इसके फिंगर प्रिंटस के निशान उन निशानों से मिलाइए जिन्हें मैंने कल ऐशट्रे से उठाया था । मेरा दावा है कि वे दोनों निशान एक नहीं हो सकते ।"



नवाब ने अचक्रचाकर पहले बलवंत, फिर होलकर को देखा, जैसे समझ न पा रहा हो कि वहां क्या चल रहा है ।



" तो फिर वह कौन था?" बलवंत राव ने तल्खी से पूछा…"औंर खबरदार जो तुमने फिर कहा कि वह धनंजय था ।"



"वह शख्स यकीनन धनंजय ही था सर ।"



"ओं शटअप आफिसर ।" बलवंत राव न चाहते हुए भी झुंझला उठा…“आई से शटअप । यह रट लगाना बंद करो । धनंजय को मरे एक अरसा बीत गया है ।"




"धनंजय जिंदा है । यह मैं साबित कर सकता हूं !" होलकर चेलेंज भरे स्वर में बोला ।



"करो ।"


"ऐशट्रे से उठाए गए धनजंय के फिंगर प्रिंटस मेरे पास मौजूद है और हिंदुस्तानी के फिगर प्रिंटस आईबी के पास मोजूद है । आप मुझे आईबी के रिकार्ड से हिंदुस्तानी के फिंगर प्रिंटस उपलब्ध करवा दीजिए,, मैं यहीं बैठे-बैठे साबित कर दूगा ।"



"क. . . क्या साबित कर दोगे?" बलवंत राव ने चिहुंककर पूछा ।
Post Reply