रहस्य के बीच complete

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Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच

Post by Rohit Kapoor »

“ऐसी बात तुम्हें नहीं सोचनी चाहिए, वैसे तो हत्यारा कोई भी हो सकता है, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि हत्यारे ने अपने कपड़े कमरे मेँ छिपा दिए हों?” बिजय गोल…मोल शब्दों में कहता गया ।



“आप तलाशी ले सकते हैं l” सूभ्रांत ने गम्भीरता से कहा l



"वैसे क्या तुमने कभी कोई लडकी सफेद लिबास में लिपटी देखी है?"



“वह तो अक्सर रात को श्मशानगढ़ की सड़कौं पर देखी जाती है । कहते हैं कि वह कोई भटकती हुई आत्मा है I"



“ क्या तुमने कभी उसे दिन के प्रकाश में नहीं देखा? "



"उसे आज़ तक जिसने भी देखा है पीछे से ही देखा है । रातको भी उसकी सूरत देखने में कोई सफ़ल न हो सका है क्योंकि कोई कोशिश ही नहीं करता ।"



"इसका मतलब तुम उसे नहीं पहचानते? "


"नहीं I"


“हो सकता है कि वह इसी इमारत में रहती हो ।"

"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है । जब मैं कह चुका हू कि वह आत्मा है ।"



"तुम भी जा सकते हो ।"



वह चला गया ।


उसके बाद रहमान ने अमीता को मेजा l


अमीता की आंखों में अभी तक आंसू थे । शायद अपनी मां और भाई की मौत के दुख के आंसू। वह चुपचाप बिजय के सामने आकर बैठ गई ।



"रोइए मत अमीता जी, साहस रखिए! मैं आपके माई के हत्यारे को पकडकर आपके सामने लाने की पूर्ण चेष्टा करूंगा ।" विजय ध्यान से उसका चेहरा देखता हुआ बोला।



"मिस्टर विजय, मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा है कि आखिर यह सब क्या हो रहा है? पहले आत्माओं द्वारा हमेँ धमकियां दी गई कि इस स्टेट के राजा के खानदान के एक…एक व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया जाएगा । फिर राजीव भैया को किसी गोल्डन नकाबपोश ने कत्ल कर दिया l आप कहते हैं कि वह इसी इमारत में मौजूद होना चाहिए और सबसे आश्चर्य की बात तो ये है कि भैया की लाश खडी हो गई और अपनी ही मां को अपना हत्यारा कहकर उनका गला दबाकर हत्या कर दी । यह सब क्या है विजय बाबू? क्या यह सच है कि एक लाश खड्री होकर इस प्रकार कह सकती है? क्या मां राजीव भैया का खून करवा सकती हैं?" बोलती-बोलती अमीता फफक पडी ।



"गुत्थियां तो बहुत हैं अमीता जी, लेकिन क्या आपको किसी पर शक है?"

"अब शक की गुंजाइश कहां रह गई है मिस्टर बिजय, क्या कभी किसी को संदेह हो सकता था कि मां अपने बेटे का खून कर सकती है? मेरा ख्याल है भैया के अन्य खूनी भी वे ही होंगे जिन पर संदेह किया जा सकता । मैं आपसे प्रार्थना करती हू कि आप भैया के हत्यारे को खोज निकालें । हम आपको मुंह-मांगी फीस देगे. . .सच कहती हू अगर आप भैया के खूनी को मेरे सामने खडा कर देगे तो भैया की लाश से पहले मैं उस कमीने का खून पी जाऊंगी. . .चाहे वह खूनी मैं स्वयं ही क्यों न होऊं ।”



अमीता की भावनाओं से परिचित होकर विजय मुस्कराया तथा बोला…"निर्मला कैसी लड़की है?"



“क्या मतलब? "



"मेरा मतलब क्या वह राजीव का खून नहीं कर सकती ?”



"वह चुडैल कुछ भी कर सकती है ।"



विजय ने महसूस किया कि अमीता भी निर्मला से काफी इंष्यों करती है…वह आगे बोला'…"



"क्यों?"



"वह चुड़ेल मेरे भैया से नहीं, बल्कि हमारी दौलत से प्यार करती थी । वह गंदी झोंपडी में रहने वाली लडकी क्या जाने कि मुहब्बत क्या होती है I वह चुडैल तो भैया के ज़रिए हवेली की दौलत हड़पना चाहती होगी ।"



“मिस अनीता?" विजय मुस्कराता हुआ बोला…“किसी से इतनी ईर्ष्या करना ठीक नही होता । आप बिना किसी विशेष प्रमाण के निर्मला को जबर्दस्ती कातिल सिद्ध करने की चेष्टा कर रही हैं । इससे कोई जासूस यह अनुमान लगा सकता है कि आप भी इस केस में कहीं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही--है ।


और स्वयं को बचाने के लिए किसी दूसरे पर बिना किसी प्रमाण के आरोप थोप रहे हैं l”



अमीता एकदम घबरा-सी गई तथा बोली…“आप तो मेरी बातों का गलत अर्थ लगा रहे हैं । क्या यही प्रमाण कम है कि वह मेरे भैया से प्यार करती थी ।"




"मिस अनीता, प्यार भी दो प्रकार का होता है । एक तो होता है किसी से सच्चा प्यार, दिली प्रेम और दूसरा होता है झूठा प्यार यानी किसी के पैसे इत्यादि से प्यार ।।”



“वह भैया की दौलत से प्यार करती थी I"



"तुम्हें कैसे मालूम?"



"वह हर समय दौलत की बात करती रहती थी ।"



“मैं समझता हू कि अगर निर्मला खून कर सकती है तो वह न राजीव की दौलत से प्यार करती होगी और न ही राजीव से, क्योंकि अगर वह राजीव से वास्तव में सच्चा प्यार करती थी तो यह दावे से कहा जा सकता हूं कि कोई भी सच्ची प्रेमिका अपने प्रेमी का खून नही कर सकती और अगर वह राजीव की दौलत से प्यार करती थी तो किसी भी कीमत पर राजीव का खून नहीं कर सकती क्योंकि इस स्थिति मेँ तो उसके धन प्राप्ति फे स्वप्न अधूरे ही रह जाएंगे ।"



"यह आपके सोचने का तरीका हे ।" अमीता की बुद्धि में बिजय की बात कुछ बैठ गई थी ।



"वैसे अमीता जो, एक बात बताइए?"



"पूछिए I"



"निर्मला के परिवार से तुम्हारे परिवार की कोई पुरानी शत्रुता तो नहीं है?"

"वे हमारे कदमों में रहते है, हमसे दुश्मनी करने का साहस उनमें कहां?”



“फिर तो निर्मला का खूनी होना अत्यधिक कठिन है I"



"जासूस आप हैं, आप ही पता लगाएं ।"



“खैर, अब तुम जा सकती हो ।"



वह चली गई तो फिर एक…एक करके सभी नौकरों को भेजा गया-उन सभी के बयान लगभग एक जैसे ही थे । वे अपने मालिक राजीव को चाहते थे । किसके मन में मैल था…विजय उनके चेहरे से भांपने में असफ़ल रहा था ।



सब के बाद में शांति के बयान हुए ।



यूं तो शांति बर्तन माँजने वाली थी लेकिन थी गजब की सुंदर । उसकी बातों से विजय ने भी भांपा कि कहारिन होते हुए भी वह राजीव को 'मुहब्बत' की नजरों से देखती थी l


लेकिन फिर भी इन सबके बयानों के पश्चात भी विजय किसी ठोस निर्णय पर न पहुच सका था ।


अभी वह उठना ही चाहता था कि वह चौंक पडा । बाहर से कुछ ऐसी आवाजें आ रही थी कि जैसे कोई जबर्दस्ती इमारत मेँ घुसना चाह रहा हो तथा उसे बाहर निकालने की चेष्टा की जा रही हो ।



वह शीघ्रता से बाहर आया तो उसने देखा कि एक चालीस वर्ष की आयु का व्यक्ति और एक सुंदर-सी लडकी आना चाहते थे ।


लडकी को वह पहचान चुका था क्योंकि उसका फोटो वह राजीव के कमरे से प्राप्त कर चुका था ।


वह निर्मला थी I निर्मला की आंखों में आंसू थे, वह सिसकारियां ले-लेकर रो रही थी और नौकर उन्हें धक्के दे रहे थे ।



"ठहरो!" विजय बोला I


सबने उसकी ओर देखा तभी निर्मला चीख पडी…“तुम्ही ने मेरे राजीव का खून किया है कमीनी, मैं जासूस को बता दूंगी. . तुम्ही ने मेरे राजीव को मुझसे छीन लिया है ।"



और वह और भी कुछ चीखना चाहती थी कि विजय बोल पडा…"क्या आप निर्मला देवी हैं?”



उसने 'हां' मेँ गर्दन हिला दी ।


"रहमान, इन्हें अंदर भेज दो I”


“नही, मिस्टर विजय, इन मनहूसों के कदम अंदर नहीं पड़ेगे I" चंद्रभान आगे बढ़ते हुए बोले ।


"कातिल को गिरफ्तारी के लिए इनके बयान भी आवश्यक हैं । इन्हें आने दो I”



और चंद्रभान जी न जाने क्या सोचकर चुप रह गए ।



कुछ समय पश्चात बिजय निर्मला से पूछ रहा था…"कहो, तुम्हें क्या कहना है?"



"क्या आप जासूस हैं?” वह बोली ।


""हां…लेकिन तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि हवेली मेँ कोई जासूस आया हुआ है?”


"यह खबर तो सारे श्मशानगढ़ में फैली हुई है ।"


“अच्छा.... .खैर अब तुम बताओ क्या कहना चाहती हो?"



"जासूस जी, मेरे राजीव को इन्होंने ही मारा है. . .ये सब मेरे राजीव से मेरे कारण जलते थे । जब मेरा राजीव जीवित था तो मुझे यहां आने से रोकने का साहस किसी मेँ भी न था । मै सारी इमारत में अपने राजीव के साथ घूमा करती थी लेकिन आज. . . I" और फिर वह फफ्क-फ़फ्ककर रो पडी I

“लेकिन तुम्हें राजीव की मौत का इतना दुख क्यों है?" बिजय ने बडा ही अजीब-सा प्रश्न किया ।



"जासूस जी, शायद तुम्हें कोई लडकी प्यार नहीं करती I"



विजय उसकी इस मासूमियत पर मुस्कराया तथा बोला…"मेरां मतलब है तुम किसी और से भी प्यार कर सकती हो-जैसे सुभ्रात से I” विजय इस प्रकार के शब्द कहकर निर्मला के प्यार को परखना चाहता था ।



"गुंडे, लुच्चे I” निर्मला यकायक बिजय पर चढ गई…“तू मेरे देवता राजीव की बराबरी उस हरामी सुभ्रांत से करता है । मुझे वेश्या समझता है जो एक रात के बाद एक. . . ।"


निर्मला के पिता ने उसे रोक लिया वरना निर्मला अपने प्रेम पर उछलती कीचड़ देखकर तो उसे प्रसाद के रूप मेँ एक थप्पड ही रसीद करने जा रही थी ।



उसके बाद निर्मला के पिता निर्मला को ले गए ।



विजय सबके बयानों के साथ रहस्य की परतों में घुसने की वेष्टा कर रहा था ।



”प्यारे मेहमान दी ग्रेट, ये साला केस तो बडा उलझनपूर्ण निकला ।” विजय एक अकेले कमरे में बैठा कह रहा था I


" गुरू , रहस्य की परते उलझती जा रही हैं ।”



"एक बात तो बताओ…मियां पकोंडी मल?"



" पूछो, गुरु I"



“यह साली अपने राजीव की लाश कैसे उठ खडी हुई?"



"ऐसा हो जाता है गुरु ।”

"चुप बे गुरु के वेले, तुम साले फिर किसी आत्मा की बात करोगे ।” विजय ने डांटा ।



"जब बात ही ऐसी है, गुरु l”



"खैर प्यारे हम इस पर शुरू से एक सरसरी नज़र मारते हैं और फिर रहस्यों से उलझने की कोशिश करते हैं । जहां कुछ रह जाए वहां तुम याद दिलाना ।"



"ऐसा ही कीजिए, गुरु I"
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Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच

Post by Rohit Kapoor »

"हां तो प्यारे चेले मियां, बात का श्रीगणेश होता है राजीव कै पत्र से । वह हमेँ बुलाता है । उसके बाद मुझें स्टेयरिंग वाला पत्र मिलता है जिसको लिखने वाला एक रहस्य बनकर अभी तक रहस्य की परतों में छुपा हुआ है ।इसे हम रहस्य की पहली परत समझ सकत्ते हैं l
उसके बाद हम यहां आते हैं, आते ही हमेँ वे खिलखिलाहटें और भयानक आवाजें सुनाई देती हैं जो तुम्हारे कहने के अनुसार किन्ही आत्माओं की हैं, यह है रहस्य की दूसरी परत ।
उसके बाद मेरे साथ यह काले साए और काले चोगे वाले व्यक्ति की वारदातें, वह काला साया कौन है, यह है रहस्य की तीसरी परत ।

वे किस लिए लड़ रहे थे, पांचवीं परत ।
सफेद चोगे वाले का जिस्म कहां गायब हो गया, छठी परत ।
काला साया मुझे फिलहाल मारने के मूड में क्यों नहीं है, सातवीं परत ।
इधर तुम्हारे साथ की घटनाओँ में सफेद लिबास वाली, आठवीं परत ।
वह चुडैल वृक्ष क्या है और वह खून से क्यों डरती है, नवीं परत I
और उसके बाद हमारे पहुंचने से कुछ ही समय पूर्व राजीव का कत्ल मुझे यह सोचने पर मज़बूर करता है कि राजीव शायद मुझें कोई रहस्य बताना चाहता था --लेकिन उससे पूर्व ही अपराधी ने उस रहस्य को हमेशा के लिए दफन कर दिया । अब कहानी आगे बढती है । यानी वह क्या रहस्य था जो राजीव मुझे बताना चाहता था, यह है इस केस की दसवी परत ।
खून क्यों हुआ, परत ग्यारह!
खून किसने किया, परत बारह ।
खूनी क्या चाहता है, परत तेरह I
और फिर एक तरफ़ यह समझ में नहीं आता कि सन् 1955 की घटना का इस केस से कहां तक सम्बंध है, परत चौदह ।
राजीव की लाश खडी कैसे हो गई, इसका नम्बर है पंद्रहवां
और सबसे उलझनपूर्ण और अभी तक की सबसे अंतिम सोलहवीं परत ये है कि राजीव की मां को राजीव के खून से क्या लाभ था तथा उसके साथ मिले हुए वे कौन थे! "



""गुरु, अभी तो ये रहस्य की परतें केवल सोलह ही हुई हैं । न जाने अभी तो कितनी परते और जन्म लेगी ।" रहमान उकडूं होकर बोला ।



"तो मियां मेहमान, अब जरा ध्यान करके ये बताओ कि राजीव के खून में उसकी मां के साथ कौन हो सकता है?"


“गुरु, सुभ्रातं भी हो सकता है I”


"क्यों?"


"दौलत क्रा लालच ।"


"तो फिर वह काला साया वहां क्या कर रहा था?"


"बात तो ये भी सोचने के काबिल है गुरु ।"


"खैर प्यारे, निर्मला के विषय में क्या ख्याल है?"


"गुरु, वह भी हो सकती है ।"


"कारण? "


" सच्चा प्यार !"

"लेकिन मेरे मुन्ने, सच्ची प्रेमिका अपने प्रेमी का खून किसी कीमत पर नहीं कर सकती I”


"कर सकती है I”


" बताओ ?"


"अगर वह अपने प्रेमी को किसी गैर की बांहों में देख ले l”



"मेरा ख्याल है प्यारे मेहमान की सच्ची प्रेमिका अगर प्रेमी क्रो किसी अन्य की बांहों में देख लेगी तो निश्चित रूप से वह प्रेमी से नफ़रत करने लगेगी लेकिन अगर वह सच्ची है तो अपने प्रेमी का खून कभी नहीं कर सकती, यानी नौबत सिर्फ नफ़रत तक रहेगी, खून तक नहीं । मैं समझता हू कि अगर उसका प्यार सच्चा है तो अपने प्रेमी से पूर्व अपना खून कर लेगी ।"



"गुरु, तुम ठहरे ब्रह्मचारी, तुम्हें ये प्यार-व्यार के चक्कर क्या मालूम? "



“खैर प्यारे, यह समझ लो कि शादी नहीं की तो क्या बात है, बारातें बहुत की हैं । खैर, अब यह तो बताओ कि चंद्रभान के विषय में क्या ख्याल है?"



"सबकी हालत एक ही जैसी है गुरु! यह समझ मेँ नहीं आता कि कौन…सी घटना की कडी कहां जुड रही है । खूनी चंद्रभान, निर्मला, अमीता, सुभ्रांत, रामू शानू किशन, विशन और शांति में से कोई भी हो सकता है ओर यह भी हो सकता है कि इनमे से कोई न हो, वह कोई और ही हो I”



"खैर प्यारे, इन रहस्यों की परतों ने हमारे दिमाग का दिवाला ही निकालकर रख दिया है । अब सोचना बंद करो क्योंकि जितना सोचते हैं रहस्य गहरा होता चला जाता है I

मैँ समझता हू कि अब तो स्वयं राजीव की लाश ही अपने दूसरे अपराधी को पकड़ेगी, तभी शायद रहस्य की खुली परत सामने आ सके ।"


"इसका मतलब हमेँ सब पर नजर रखनी होगी ।"


"जीते रहो चेले मियां!"



फिनिश


सूरज विश्राम हेतु पश्चिम में डूब गया ।

अंधकार ने प्रकाश पर विजय पाई ।

रात की नीरवता बढी, और फिर मौत जैसा सन्नाटा ।

यह रात भी अन्य रातों की भांति भयावह थी । चारों तरफ वही सन्नाटा, वही शांति, वही नीरवता छाईं थी ।

लेकिन आज की रात श्मशानगढ़ की इस विशाल इमारत में दो जांबाज जासूस अपने दिमाग मेँ दो संदिग्ध व्यक्तियों की निगरानी कर रहे थे । विजय राजा चंद्रभान पर नजर रखे हुए था और रहमान सुभ्रांत को एक पल के लिए भी अपनी आंखों से ओझल न होने दे रहा था ।


ठीक तब ।


जबकि दूर कही बारह का घंटा बज रहा था ।


सहसा रात का सन्नाटा झनझनाया ।


एक ह्रदय-विदारक चीख से वातावरण कांप उठा ।


विजय और रहमान दोनो ही तीव्र गति से चीख की दिशा मे दौडे ।



चीख शत-प्रतिशत अनीता की थी ।



एकाएक सारी इमारत मेँ फिर भगदड मच गई । सबसे पहले अनीता के कमरे में पहुचने वाला विजय था l

कमरे में नाइट बल्ब का मद्धिम प्रकाश था और अनीता घायल अवस्था में कमरे के फर्श पर पडी थी ।



उसको पसलियों में ठीक वेसा ही चाकू धंसा हुआ था जैसा राजीव की पसलियों में था ।


वह फटी…फटी आंखों से कमरे मेँ छत क्रो घूर रही थी तथा पीडा से कराह रही थी ।



दोड़ता हुआ विजय कमरे में दाखिल हुआ तो उसे सिर्फ अमीता कराहती हुई फर्श पर मिली-इसके अतिरिक्त न कोई व्यक्ति और न ही किन्हीं भागते कदमों की आहट ।



विजय के हाथ में रिवॉल्वर आ चुका था लेकिन उसके उपयोग की अभी तक कोई खास आवश्यक्ता नहीं पडी थी ।



दौड़ता हुआ वह अनीता के निकट पहुंचा तथा बोला……"अमीता. . .अमीता. . .तुम पर किसने हमला किया?"


तभी भागते कदमों की आहट के साथ रहमान अंदर आया तथा उसके पीछे अन्य व्यक्ति भी थे । रहमान के हाथ में रिवॉल्वर था ।



अमीता कराह रही थी । बिजय ने उसका सिर अपनी गोद में रखा तथा फिर पूछा…“अमीता...क्या तुमने खूनी को पहचाना?"



अनीता के होंठ फड़फ़डाए तथा धीमे से कंपन के साथ एक शब्द निकला--“गोल्डन नकाबपोश ।”


और यह शब्द उसके होंठों के बीच निकलने वाला अंतिम शब्द था । यह कहते ही उसकी गर्दन एक तरफ़ को झूल गई ।



कमरे में गहरी शांति छा गई ।


एकाएक रहमान बुरी तरह चौंका…“गुरु, सुभ्रांत !"

रहमान ने कहा और फिर आंधी की भांति कमरे से

बाहर भागा । विजय के दिमाग क्रो भी एक झटका-सा लगा क्योंकि यहां सभी मौजूद थे लेकिन संभ्रांत न था । वह भी तेजी से उठा तथा रहमान के पीछे दोड़ा ।



और तब जबकि वे सुआंत के कमरे में पहुचे तो एकदम जड़वत खड़े रह गए ।


धमनियों मेँ रक्त प्रवाह तेज हो गया । आंखें घबराई-सी उसी दृश्य को देख रही थी ।



सुभ्रांत के गले मे रस्सी का एक फ़न्दा था तथा वह कमरे की छत से लटका हुआ था और वह मृत्यु को प्राप्त हो चुका था ।



विजय और रहमान के दिमाग में रहस्य की परते अत्यंत जटिल हो गई I



एक ही रात में ये दो खून हो गए थे ।


फिनिश

बिजय को मानसिक परेशानी बढ गई थी ।


वास्तव मे ये रहस्य की परते अपने अंदर कुछ इस तरह के रहस्य समेटे हुए थी कि विजय कुछ समझ नहीं पा रहा था ।



उसे पहली बार महसुस हुआ कि "रहस्य केस" भी काफी दिलचस्प होते हैं । घटनाएं कुछ इस ढंग तथा तीव्रता से हो रही थी कि समझने का अवसर ही नहीं मिल रहा था ।


केस की प्रत्येक कडी अभी तक अधूरी थी ।


अमीता और सुभ्रांत के कत्ल ने केस को अत्यधिक जटिल वना दिया था ।



बिजय उन दोनों के खून से कोई परिणाम निकालने की चेष्टा कर रहा था लेकिन उल्टा उलझकर रह गया था ।


केस की प्रत्येक घटना अत्यंत रहस्यपूर्ण थी ।


वह सोच रहा था कि यह "गोल्डन नकाबपोश" कौन है---- !!

बिजय सोचता गया, रहस्य की परतों में उलझता गया लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात यानी रहस्य ज्यों-के-त्यों अडिग थे । उसने रहमान के साथ अकेले एक कमरे में बैठकर एक वार फिर बिचार-विमर्श किया लेकिन चेला भी गुरु से कम न था, मतलब वह भी कोई निर्णय नहीं कर पाया था I



किराए के आदमी बुलाकर राजीव और अमीता की लाशों का दाह-संस्कार कराने का प्रयास किया गया लेकिन असफ़लता मिली । सबको दृढ विश्वास हो गया था कि वे काम प्रेत आत्माओं के हैं और प्रेतआत्माओं के विरुद्ध कोई आए इतना किसी में साहस न था ।


अत: कोई भी उनकी लाशें उठाने को तैयार न था ।


अंत मेँ दोनों लाशें इमारत के एक आम तहखाने में शीशे के ताबूतों में बंद करके रख दी गई ।


सारा दिन बीत गया ।


रात का आगमन निकट आने लगा ।

जैसे ही स्याह रात का दामन फैला बादलों ने प्रकाश पर अपना प्रभुत्व जमाकर उसके स्याहपन मेँ चार चांद लगा दिए I



हवा के झक्कडों ने भी साथ दिया तथा कुछ ही देर पश्चात मेघों के ब्रीच चमकती बिजली भी अपने साथियों से आ मिली ।



रात अत्यंत भयानक, स्याह और तूफानी हो उठी ।



न जाने क्यों, यह रात 5 जनवरी, सन् 1955 की यादें ताजा कर रही थी ।



वह एक गजब के डील-डौल वाले शरीर का मालिक था ।

चेहरे पर भयानक भाव से, दहकती लाल आंखों से झांकती राक्षसी हवस, उसकी आंखें मानो इंसानी लहू की प्यासी थी . होंठों पर क्रूरतम मुस्कान तथा उसके दाएं हाथ ने एक नंगी तलवार चमचमा रही थी ।


लगता था वह कही खोया हुआ है ।
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Re: रहस्य के बीच

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वह बेखौफ इमारत की गैलरी से होता हुआ तहखाने की और बढ़ रहा था ।


उसके जहन में सिर्फ एक ही बात थी जो हथ्रोड़े की भांति उसके मस्तिष्क पर चोट कर रही थी I खून....खून..इंसानी..खून...लहू...गर्म...लहू... खून. . .ताजा इंसानी खून...खून...खून...खून... I” और बस ।



यही आवाज उसके मस्तिष्क पर बारम्बार हथोड़े मार रही थी । वह खून का प्यासा था, गर्म इंसानी लहू का प्यासा!



लेकिन उसकी खून की प्यास क्षण प्रतिक्षण, निरंतर बढती जा रही थी । उसे लग रहा था कि अगर उसे शीघ्र ही खून नहीं मिला तो वह स्वयं मर जाएगा ।



वह नंगी तलवार हाथ में लिए तेजी के साथ तहखाने की ओर बढता गया ।



और तब । जबकि वह तहखाने में पहुचा ।



तहखाने मेँ पहले एक गलियारा था ।


स्थान-स्थान पर लैम्प रखे हुए थे जो अपनी लो के साथ टिमटिमा रहे थे ।



उनका क्षण मंद पीला प्रकाश गलियारे में फैला हुआ था ।


गलियारे मेँ जगह-जगह मकडी के जाले बने हुए थे ।

भयानक सन्नाटे में यह सब बड़ा रहस्यमय प्रतीत होता था । वह इस गलियारे में आगे बढता जा रहा था । कुछ देर पश्चात वह एक बडे कमरे में पहुचा । इस कमरे मे तीन लेम्प तीन तरफ रखे टिमटिमा रहे थे । क्षीण'-सा मंद पीला प्रकाश फैला हुआ था । दीवार के सहारे दो शीशे के ताबूत रखे हुए थे ।

उनमें सुभ्रांत तथा अमीता की लाशें रखी हुई थीं ।

वह उन लाशों को घूरने लगा l

सहसा उसने एक जोरदार कहकहा लगाया ।

उसके भयानक कहकहे से सारा तहखाना जैसे झनझना उठा हो I कुछ देर तक वह इस्री प्रकार कहकहा लगाता रहा तथा फिर खतरनाक लहजे में बोला…“मैं . . तुम्हारा. . .खून. . . पिऊंगा...हा...हा...हा...।"



वह नंगी तलवार लेकर शीशे के ताबूत की ओर बढा ।


अगले ही पल उसकी तलवार हवा में सनसनाईं झनाक । एक जोरदार ध्वनि के साथ सुभ्रांत वाला ताबूत खील-खील हो गया ।



कमरे के फ़र्श पर कांच बिखर गया ।



उस भयानक राक्षस के मुंह से एक किलकारी निकली, तथा वह हब्शी की भांति तेजी के साथ सुभ्रांत की लाश पर झपटा । सुभ्रांत की लाश बडी भयानक-सी हो गई थी, आंखें उसी
प्रकार फ़टी हुई थी ।


चेहरे पर झुर्रियां पडी हुईं थी, गाल अंदर को धंस गए ये तथा रंग पीला पड़ चुका था ।


आंखों से वह ऊपर की छत को घूर रहा था ।


खून के प्यासे उस राक्षस ने सुभ्रांत की लाश ताबूत के बाहर खीच ली, फिर एक जोरदार कहकहा लगाया तथा फिर उसने बडी निर्ममता से तलवार का वार सुभात की लाश पर किया ।

अगले ही क्षण सुभ्रांत की लाश दो भार्गो में विभक्त होगई।


खून के प्यासे कंठ से एक भयावह किलकारी निकली और वह सुभ्रांत की लाश के कटे भाग पर झपट पड़ा लेकिन अगले ही पल वह ठिठक गया ।


वह ध्यान से सुभ्रांत की लाश के कटे भाग को देख रहा था । जहां से खून के स्थान पर पानी रिस रहा था । कुछ देर तक वह आंखें फाडे पानी क्रो देखता रहा ।



उसकी सांस धोंकनी की भांति चल रही थीं । दहकती आंखें संदेह से सिकुडी तथा फिर अगले ही पल वह किसी भैंस की भांति फुफकारा । खून कै स्थान पर पानी देखकर बुरी तरह चीखा । उसकी स्थिति पागल जैसी हो गई ।

बेचैनी से इधर-उधर मचला, मुट्टिठयां बार-बार खोलने तथा भीचने लगा, मानो वह बहुत क्रोध में था…फिर सहसा उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुचा, अत्यंत भयानक लहजे में वह चीखा-"खून...खून...खून लाओ...नहीँ तो…..मैं मर...जाऊंगा......खून... ।"



सारा तहखाना उसके भयानक शब्दों से गूंज रहा था ।



तभी एक भयानक आवाज आई ।




भयानक और इतनी सर्द आवाज कि वह स्वयं कांपकर गया ।


सारा तहखाना जैसे कांपने लगा ।


जर्रा-जर्रा जैसे भयभीत हो गया था।


मौत जैसे खुद चीख रही थी।

मानो हजारों आत्माएं मिलकर तहखाने में खिलखिला रही हों । लाखों प्रेत जैसे चीख रहे हों, तहखाने का जर्रा-ज़र्रा जैसे इस खून के प्यासे राक्षस की मजबूरी पर कहकहे लगा रहा हो । बडी ही खतरनाक, बडी भयानक आवाजें थी वे I



खून का प्यासा वह राक्षस जैसे कांपकर रह गया था ।



उसने घबराकर इधर-उधर देखा लेकिन उसे कहीं कोई नजर न आया ।



तब खिलखिलाहट कुछ कम हुई तथा फिर ऐसी भिनभिनाहट हुई मानो कहीँ पियानो को अस्त…व्यस्त ढंग से छेड दिया गया हो, लेकिन इस भयानक भिनभिनाहट के शब्द साफ थे, जो इस प्रकार थे…



"खून के प्यासे राक्षस । आज तुझे खून नहीं मिलेगा । आज तक कोई न जान सका कि ऐसी तूफानी रात में ये तेरी खूनी हवस जागती है । तू इंसानों के लहू से अपनी प्यास बुझाता है । आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व तूने अपने बेटे औंर पत्नी के खून से अपनी प्यास बुझाई थी लेकिन आज-आज तेरी यह खून की प्यास नहीं बुझेगी । तू प्यासा ही मरेगा. . .हा. . हा ।"



फिर वही भयानक खिलखिलाहट, भयानक आवाजें तथा प्रेतों की चीखें ।


खून का प्यासा वह राक्षस, जो वास्तव में चंद्रभान ही था ।


चीखा चिल्लाया और भागकर कमरे से निकल जाना चाहा


लेकिन कमरे के दरवाजे पर खडी लाश को देखकर वह चीख पड़ा, फटी-फटी आंखी से वह राजीव की लाश को देख रहा था ।

उफ् !


कितनी भयानक, कितनी खतरनाक, कितनी खूंखार थ्री राजीव की लाश । बड़े-से-बड़े दिल वाला भी दहल जाए I पत्थर दिल इंसान भी बेहोश होकर गिर पड़े वास्तव में कमरे के दरवाजे पर खडी राजीव की लाश भयानकता की चरम सीमा तक पहुच गई थी ।



चंद्रभान तो जैसे अपने स्थान पर जड़ हो गया था l


राजीव की लाश मेँ एक बडा परिवर्तन आ गया था l


उफ् !


लाश के सारे शरीर पर मांस के लोथड़े लटक रहे थे, बांहों का सम्पूर्ण मांस गायब हो चुका था, सिर्फ सफेद चमचमाती हड्रिडयां चमक रही थीं । उसकी लाश कोई लाश नहीं रह गई थी बल्कि जीता-जागता कंकाल बन चुकी थी । कही-कही मांस के लोथड़े लटक रहे थे ।



अधिकतर भार्गो पर उसकी हांड्डियां चमक रही थीं । हड्डियों और मांस के बीच हजारों कीड़े-मक्रोड़े रेग रहे थे । जिनमे चींटी, झीगुर जैसे मकोड़े थे । ये सब मक्रोड़े उसकी लाश को नोच रहे थे ।



वह लाश एक कदम आगे बढी…जैसे साक्षात मौत ।


राजीव की लाश का चेहरा ।


उफ्!

“हा. . .हा. . .हा. . . ।'" लाश के जबड़े फिर हिले तथा फिर स्पष्ट भिनभिनाहट…“तुझे खून चाहिए कमीने . . .जब तू अपने बेटे का खून पी सकता है तो अपना क्यों. . .नही. . .पी सकता? वह भी तो तेरा ही खून था । आज तू अपना ही खून पिएगा ।"


“नही-नहीँ, मुझे क्षमा कर दे, राजीव ।"


" हा...ह्य...हा. .. ।" लाश ने फिर कहकहा लगाया तथा भयानक तरीके से चंद्रभान की तरफ बढी ।



चंद्रभान का हलक सूख गया । उसके प्राण कंठ को आ गए ।।



भय से वह पीला पड़ गया तथा क्षमा याचना करता हुआ पीछे हटा । चंद्रभान भयभीत तो हो ही गया था…लेकिन अगले ही पल वह इतनी बुरी तरह चीखा जैसे उसने राजीव की लाश में एक और अनहोनी बात देख ली हो…वह राजीव की लाश की दाईं आंख को निहारे जा रहा था ।



जहां अत्यंत भयावह दृश्य उभरा था । राजीव की लाश के दाईं आंख के गड्ढे से धीरे-धीरे रेंगता हुआ एक जहरीला सर्प बाहर आता जा रहा था, ठीक इस प्रकार जैसे वह अपने बिल से बाहर आ रहा हो और अगले पल उस खतरनाक सर्प का जहरीला फ़न आंख के गड्ढे से बाहर आ गया ।



फन बाहर निकालकर सर्प ने इधर-उधर देखा-फिर खतरनाक ढंग से जीभ लपलपाई…तथा फिर धीरे-धीरे रेगकर आंख से बाहर आने लगा ।



चंद्रभान के कंठ से एक हदय-विदारक चीख निकल गई । भय से वह थर-थर कांपने लगा ।


लाश क्षण-प्रतिक्षण उसी की तरफ बढ रही थी । कमरे मे टिमटिमाते तीन लैम्पो के पीले तथा मद्धिम प्रकाश में यह दृश्य इतना भयावह लग रहा था कि पत्थर दिल इंसान का हार्ट फेल हो जाए ।



चंद्रभान के सामने साक्षात मौत थी । सहसा चंद्रभान के जबड़े भी शक्ति के साथ र्भिचे. .।


मौत के भय ने उसे एक अनजानी शक्ति प्रदान कर दी... आंखों में फिर शैतानी हवस उभर आई. . उनके दिमाग में हथौड़े से पडने लगे थे । उसके मन में विचार आया-“खून... खून. . .राजीव की आंख से निकलते इस सर्प में खून होगा... खून. . .मैं. . अपनी प्यास बुझाऊंगा. . .इस सर्प के खून से . . ."



तलवार उसके हाथ से छूट चुकी थी ।



उसके जिस्म में एक अनजानी शक्ति का संचार हुआ I



अनजानी शक्ति के वशीभूत होकर वह राजीव की जिंदा लाश की ओर बढा, उसके जेहन में सिर्फ एक ही विचार था…उस सर्प के लहू को पीने का बिचार ।



राजीव की लाश तथा चंद्रभान एक-दूसरे की ओर बढ़ रहे थे ।


और फिर तब ।


जबकि वे एक…दूसरे के अत्यंत नजदीक आ गए ।


लाश की हड्रिडयों भरा पंजा चंद्रभान की गर्दन की ओर बढा, तभी चंद्रभान पर जैसे पागलपन सवार हो गया था ।


लाश की आंख से लपलपाता हुआ सर्प उसकी तरफ़ लपका. . और उसी पल एक अनहोनी हौलनाक घटना हुई I



जैसे ही सर्प चंद्रभान की ओर लपका, वैसे ही चंद्रभान ने अपना मुंह खोला और सर्प के फन को अपने मुंह में लेकर क्षण मात्र मेँ अपने दांतों से काट लिया. . .तथा अगले ही पल सर्प का कटा हुआ फन चंद्रभान के कंठ से होता हुआ पेट में चला गया ।



फन कटते ही सर्प बुरी तरह मचला ।


सर्प मर चुका था ।

तभी लाश की हड्डियों भरा पंजा चंद्रभान की गर्दन पर जम गया । चंद्रभान सिर्फ कसमसाकर रह गया लेकिन वह लाश के पंजे से न निकल सका । उसका सारा मुंह खून से सन गया था । लाश ने चंद्रभान का गला दबा दिया ।



चीखता हुआ चंद्रभान कुछ ही देर मेँ मृत अवस्था मेँ लाश के पंजे में झूल गया ।
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Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच

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तभी एक अन्य रहस्य सामने आया, ऐसा लगा जैसे अचानक लाश ने खून देख लिया हो, एकाएक लाश ने चंद्रभान को छोड़ दिया तथा फिर भयभीत स्वर में चीखी-“खून . . खून. . नहीं . नहीं . . . .!"

विजय और रहमान ने तहखाने के उस कमरे में होने वाले खतरनाक और भयावह खेलों को देखा था । वे गलियारे मेँ कमरे के दरवाजे से लगे सब कुछ देख रहे थे ।


वैसे फिलहाल वे कुछ करने की स्थिति में न थे और वे सोच रहे थे कि शायद रहस्य की कोई परत भी उठ सके ।


उनके देखते-देखते चंद्रभान मौत की गोद में सो गया ।


उस समय रहमान बुरी तरह चौंका, जब उसने राजीव की अंतिम प्रतिक्रिया देखी । विजय न समझ सका कि रहमान कै चौकने का कारण क्या है?



लेकिन रहमान के जिस्म में तो मानो एकदम बिजली भर गई थी ।



वह गजब क्री फुर्ती के साथ उछला तथा तेजी कै साथ विजय से बोला-""गुरु, मैँ अभी आया l” और कहने के साथ ही रहमान किसी लम्बे भूत की भांति गलियारे में भागता चला गया l


विजय सोचता ही रह गया कि आखिर रहमान को हो क्या गया है लेकिन इतना उसने अनुमान लगा लिया था कि यह लड़का शायद रहस्य की किसी परत की तह तक'पहुच चुका है I



रहमान क्षण मात्र में तहखाने के गलियारे में विलुप्त हो गया ।



तभी कमरे अंदर भयानक खिलखिलाहटें उभरी और उसने झांककर अंदर देखा तो उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गईं । वास्तव में भीतर के दृश्य पर उसे विश्वास ही न आया कि वह सत्य है । आंखे फाड़े वह देख रहा था ।



स्याह व्यक्ति ।


वही स्याह व्यक्ति जो गुफा के द्धार पर बिजय से टकरा चुका था, रहमान को "डाज़' देकर पानी में विलीन हो गया था ।



वह अनीता की लाश वाले ताबूत कै पीछे से निकला था । तथा इस समय राजीव की भयानक लाश कै सामने खड़ा था ।


लाश स्याह व्यक्ति को अपने सामने देखकर खिलखिलाई थी ।


तभी स्याह व्यक्ति ने भयंकर तरीके से लाश पर जम्प लगा दी लेकिन लाश सिर्फ थोडी…सी लड़खड़ाकर रह गई जबकि स्याह व्यक्ति स्वयं कराहकर रह गया क्योंकि उसके शरीर से लाश की हड्रिडयां टकराईं थीं ।


लेकिन स्याह व्यक्ति भी गजब का शातिर था ।



वह भी गजब की फुर्ती के साथ खड़ा हुआ तथा उसने लाश पर जम्प लगा दी ।



इस बार वह बडे ही भयानक ढंग से झपटा था I
एक और आश्चर्यजनक कारनामा हुआ! जैसे ही स्याह व्यक्ति उस पर झपटा, लाश ने अपने दोनों हड्रिडयों भरे पंजे, आगे बढा दिए और स्याह व्यक्ति ने उसका बायां पंजा षकड़कर तीव्र झटका दिया और अगले ही पल वह पंजा लाश से अलग हो गया ।



पंजा अलग होते ही लाश अत्यंत भयानक हो उठी ।



स्याह व्यक्ति के हाथ में लाश का पंजा दबा हुआ था । एकाएक उसके नथुनों में पंजे में से निकलती हुई एक तीव्र दुर्गध पहुंची । बहुत घृणा और अरुचि के भाव उसके हृदय में जागृत हुए तथा उसने शीघ्रता से वह पंजा फेंक दिया ।



पंजा कमरे के एक कोने मेँ जाकर गिरा ।



तभी लाश उस पर झपटी ।



स्याह व्यक्ति ने फुर्ती के साथ स्वयं को बचाया और फिर लाश पर झपटा ।



विजय ने महसूस किया कि स्याह व्यक्ति बार…बार लाश के दाएं कंधे की तरफ झपट रहा है ।



अभी वह इस लडाई में कूदना ठीक नहीं समझ रहा था । उसने सोच लिया था कि इन दोनों में से जो विजयी होगा उसे वह संभालेगा ।



अभी वह इन दोनों की खतरनाक लडाई देख रहा था कि वह चौंका । एकाएक उसके कानों से भागते कदमों की आहट टकराई ।


उसने आहट की तरफ ध्यान दिया ।



ये आहट गलियारे के अग्रिम भाग के दाएं मोड़ से आ रही थी । एक पल उसने सोचा, उसके विचार से रहमान उधर से नहीं आना चाहिए था ।

फिर उधर कौन है?


एक प्रश्न विजय के मस्तिष्क मेँ उभरा ।


अगले ही पल उसके हाथ मेँ रिवॉल्वर था तथा तीव्रता के साथ गलियारे के अग्रिम भाग में वह दौडता चला जा रहा था ।


कुछ ही क्षणों बाद वह अपने प्रतिद्वंद्वी के सामने खडा था ।


उसके सामने "गोल्डन नकाबपोश" खडा था ।


नकाबपोश ठीक बिजय के सामने से दौड़ता हुआ उधर ही आ रहा था । दोनों आमने-सामने आए तथा दोनों ही ठिठक गए । क्षण भर के लिए एक-दूसरे क्रो देखा I


अगले ही पल विजय ने बड़े ही अंदाज के साथ रिवॉल्वर ताना तथा बोला…“आज तो हमारे खिलौने की पकड में आ गए मियां सुनहरे I”


"गोल्डन नकाबपोश" कुछ नही बोला ।



“अबे हमसे गले मिलो, बेटे I” विजय आगे बढते हुए बोला ।


लेकिन तभी 'गोल्डन नकाबपोश' ने असाधारण-सी फुर्ती का परिचय दिया ।


उसके हाथ से निकला सनसनाता हुआ चाकू विजय की तरफ बढा ।



विजय ने बड़े आराम से झुकाई दी तथा स्वयं को बचा गया l और फिर अगले ही पल-



"धांय ।"



विजय के रिवॉल्वर ने एक शोला उगला I


गोली गोल्डन नकाबपोश की टांग में लगी ।



उसके कंठ से चीख निकली । वह त्यौरा कर गिरा ।



विजय को उम्मीद न थी कि इतने रहस्यपूर्ण फेस का अपराधी इतनी सरलता से वश में आ जाएगा ।

इमारत में कोलाहल मच गया ।



प्रेत आत्माओं की भयानक डरावनी घीखे-चिल्लहाटे वातावरण में गूजने लर्गी । हर तरफ मानो मौत नृत्य कर रही थी I



कोठी के नौकर इत्यादि किसी को किसी की होश न रही और तहखाने में…



वहां भी मौत का तांडव-नृत्य जारी था ।


प्रेत तथा इंसानों की टक्करें हो रही थी ।


भयानक संगीत गूंज रहा था ।


किसी भी नौकर ने तहखाने की तरफ मुंह करने की मूर्खता नहीं की ।


और रहमान ।


वह अपने ही चक्कर में लग रहा था । न जाने वह करना क्या चाहता था? उस पर इन भयानक आवाजों, डरावनी चीखों का लेशमात्र भी प्रभाव न था ।



अजीब किस्म का शातिर था वह लडका ।



इस समय वह ऐसा न तग रहा था जैसे वह इंसान हो ।



उसके शरीर मेँ विद्युत जेसी फुर्ती थी ओर चेहरे पर अजीब-सी दृढता थी ।



क्षण मात्र में उसने सूटकेस से कुछ निकाला तथा फिर आंघी-तूफान की भाति दोड़ता हुआ वह तहखाने की ओर बढा।



दौडते-दौडते ही उसने हाथ में दबे कुछ टुकडों को आपस में जोड़ लिया था और उन टुकडों ने एक मशाल का रूप ले जिया था । अत: इस समय रहमान के हाथ में एक

बडी-सी मशाल थी । औंर उस कमरे तक जहां राजीव की लाश थी पहुचते-पहुचते उसने मशाल के मुंह मेँ कुछ विचित्र-सा हरा पदार्थ डाला था ।



यूं तहखाने से भागते समय उसने फायर की आवाज भी सुनी थी, लेकिन लगता था इस समय उसे सिर्फ लाश की चिंता है l



अत: उसे सुनकर भी सब कुछ अनसुना कर दिया था । उसे विश्वास था कि वह आज इस लाश का अंत कर देगा l



ठीक तब । जबकि वह दोड़ता हुआ कमरे में प्रविष्ट हुआ, उसने देखा । राजीव की कंकाल रूपी लाश स्याह व्यक्ति का गला दबा रहीँ थी और लगता था स्याह व्यक्ति संसार से मुक्ति पाने वाला है ।



क्योंकि वह उसके हड्डियों के एक ही पंजे में कैद था । वह लाख प्रयास कर रहा था लेकिन कंकाल में अकूत शक्ति थी I




रहमान के चेहरे पर भयंकरता उजागर हो गई l बीस साल का वह गोरा…चिट्टा, हट्टा-कट्टा नवयुवक अत्यंत खतरनाक नजर आने लगा ।



मशाल हाथ में पकड़े वह भयानक तरीके से आगे बढा ।



"मूर्ख आदमी, तुम आत्मा से नही जीत सकते I” सहसा रहमान उस स्याह व्यक्ति को सम्बोधित करके बोला…ज़बकि स्याह व्यक्ति अभी तक लाश के पंजे मैं था ।



रहमान और आगे बढा तथा बोला…“यह लाश है मूर्ख व्यक्ति! इसे समाप्त करने के लिए मानवी हथियारों की नहीँ बल्कि आत्मीय हथियारों की जरूरत हे ।"

और तभी लाश का डरावना चेहरा रहमान की तरफ घूम गया ।
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Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच

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स्याह व्यक्ति उसके बंधनों से मुक्त होगया ।।


इसके बाद ।



लाश नकाबपोश को भूल गई थी । वह खतरनाक ढग से रहमान की तरफ़ बढी ।


अपनी तरफ बढती देखकर रहमान बिजयात्मक ढंग से मुस्कराया, मानो लाश पर उसने काबू पा लिया हो ।


उसी प्रकार मुस्कराकर वह बोला-"मैं तुम्हें पहचान चुका हूं ।"


लाश खतरनाक तरीके से खिलखिलाइं ।


"मैं जानता हू कि तुम राजीव नहीँ हो ।" रहमान फिर बोला ।


तभी लाश उस पर झपट पडी ।


उसने फुर्ती से स्वयं को बचाया तथा जेब से लाइटर निकालकर मशाल के मुह पर आग लगा दी ।


नीली आग का शोला लपका ।


शोला काफी ऊपर उठ रहा था । अब जलती हुई लम्बी मशाल रहमान के हाथ में थी तथा
वह आगे बढता हुआ कह रहा था--""तुम्हारे प्रतिशोध की ज्वाला शायद अभी तक शांत नहीं हुई है लेकिन ध्यान रखो मुझसे तुम्हारा जीतना असम्भव हे क्योंकि मैँ एक तांत्रिक हू
तुम्हें समाप्त कर दूगा ।"



इधर मशाल की नीली लो देखते ही लाश पीछे हट गई थी ।



भयानक डरावनी आवाजे अब भी उसके जबड़े से बाहर आ रही थी ।।

रहमान तीव्रता से होंठों-ही-होंठों में कुछ बडबड़ाया तथा मशाल सम्भाली ।



तभी लाश उस पर झपटी ।



रहमान ने मशाल आगे कर दी ।


लाश ठिठकुकर पीछे हट गई ।



तभी तहखाने के वातावरण में अनेकों फायरों की आवाजें गूंजने लगीं ।



स्याह व्यक्ति, जो अभी तक लाश और रहमान का खतरनाक खेल देख रहा था, फायरों की आवाजों से चौंका तथा कमरे से बाहर गलियारे की तरफ लपका ।


फिर फायरों की आवाज मेँ वृद्धि हो गई ।


लेकिन रहमान को तो फायरों से जैसे कुछ मतलब ही न था । वह बार-बार होंठों में कुछ बड़बड़ाता तथा मशाल लेकर लाश पर झपटता ।


लाश स्वयं क्रो मशाल से बचाती हुई रहमान को अपनी पक्रड़ में लाने का प्रयास कर रही थी ।


वह भयानक लाश निरंतर चीख रही थी और उसकी डरावनी आवाजों से सम्पूर्ण तहखाना गूंज रहा था ।


अब युद्ध हो रहा था, खूनी युद्ध ।


रहमान का और खूनी लाश का । आत्मा और रहमान का ।


भयानक, डरावनी आवाजों के साथ लाश रहमान पर टूटती और रहमान कुछ बुदबुदाता तथा मशाल आगे कर देता I



क्रम इसी प्रकार चलता रहा ।

गोल्डन नकाबपोश को विजय ने तहखाने के एक कमरे में बंद कर दिया तथा अब फुर्ती के साथ राजीव की लाश वाले कमरे की तरफ बढ रहा था । तभी उस गलियारे की दूसरी ओर कुछ व्यक्ति नजर आए । उन्होंने सफेद-सफेद चोगे पहन रखे थे I ये सभी हड्डियों के ढांचे से लगते थे । एक नजर मेँ उन्हें देखकर कोई बहमी व्यक्ति आत्मा ही समझता ।



लेकिन बिजय ने एक क्षण का भी विलम्ब नहीं किया । क्षण मात्र में उसके हाथ में रिवॉल्वर आ गया तथा उसने शोले उगलने प्रारम्भ कर दिए ।



दो सफेदपोश चीखकर गिरे l अन्य गलियारे में लगे खम्भों की ओट में हो गए I तभी उधर से भी फायर हुए और बिजय भी फुर्ती के साथ एक खम्भे की ओट में हो गया और फिर वहां निरंतर फायर होने लगे ।



अभी इस फायरिंग को हुए अधिक समय व्यतीत नहीं हुआ था कि विजय ने एक चमत्कार और देखा और वह यह था कि सफेदपोशों के पीछे से स्याह लिबास वाला व्यक्ति प्रक्ट हुआ और अभी बिजय कुछ समझ भी न पाया था कि स्याह लिबास वाले के हाथ में दबा रिवॉल्वर शोले उगलने लगा ।



सफेदपोश बेचारे अपने पीछे आने वाली इस मुसीबत को समझ भी न पाए कि मोक्ष को प्राप्त हो गए ।



"वो मारा साले मुर्दों को I" एकाएक विजय अपने स्थान सै उछलकर सामने आता हुआ चीखा और फिर वह एकदम ठिठक गया ।

वह ठीक स्याह व्यक्ति कै सामने खडा था ।।


दोनों आमने-सामने थे ।


दोनों के हाथ में रिवॉल्वर ।।


बिजय ने स्वयं को सम्भाला और बोला…"कहो बेटे कालिए, अब क्या इरादे है?"


“क्यों न दो-दो हाथ हो जाएं?" स्याह व्यक्ति बोला ।


"पहले अपना लेबिल तो बताओ प्यारे!”


“तुम शायद बेचैन हो?” स्याह व्यक्ति ने कहा तथा एक झटके के साथ अपने चेहरे से नकाब नोंच लिया ।


"अबे साले लूमड़ मियां, तुम?” बिजय नकाब कै पीछे अलफांसे को देखकर उछल पड़ा ।


वैसे तो अलफांसे एक ऐसा शातिर था कि जिसका कहीं भी मिलना आश्चर्य की बात न थी लेकिन फिर भी विजय चौंके बिना न रह सका था ।



"बहुत देर से पहचाना बेटे I" अलफांसे मुस्कराकर विजय की तरफ बढ़ता हुआ बोला ।



“तुम्हारी यहां मिलने की उम्मीद कहां थी साले लूमड़ I" विजय अलफांसे की तरफ बढा ।


दोनों एक…दूसरे की आंखों में झांक रहे थे ।



विचित्र थे ये दोनों व्यक्ति!


कभी खतरनाक दुश्मन थे तो कभी वफादार दोस्त ।।


मालूम नहीं अब ये कौन से रूप में मिलने जा रहे थे ।


स्वयं वे भी नहीं जानते थें कि इस समय उन्हें गले मिलना है अथवा रिबॉंल्बरों की गोलियां एक-दूसरे के जिस्मो में उतारनी हैं ।


दोनों के हाथों में रिवॉल्वर थे तथा एक-दूसरे की आंखों मेँ झांक रहे थे ।।

मानो वे एक…दूसरे से पूछ रहे थे कि हमेँ कैसे मिलना चाहिए?



फिर वे आगे बढे, आंखों में प्यार जागा, होंठों पर अपने प्यारे दोस्त को देखकर प्यारभरी मुस्कान उभरी और फिर वे दोनों शातिर एक-दूसरे की बांहों में समा गए ।


दोनों यार गले मिले और प्यार के वशीभूत एक…दूसरे को जकड़ लिया ।


“विजय ।”


“यस प्यारे तूमड़ l”


"तुम्हारा चेला काफी होशियार है I”


"आखिर चेला भी तो हमारा है ।" विजय अकड गया ।


“मानते हैं प्यारे जासूस, मानते हैं ।"


"लेकिन वह है कहां?"


"राजीव की लाश से टकरा रहा है ।"


"अबे तो फिर हम यहां क्या कर रहे हैं?"


"यह काम उसी का है, हमारे बस का उस लाश से टकराना नहीं है क्योंकि उसे समाप्त करने के लिए मानवीय शक्तियों की आवश्यकता नहीं है बल्कि आत्मीय शक्ति की जरूरत है जो सिर्फ रहमान पर है I” अलफांसे बोला ।



"लेकिन प्यारे, लाश के खिलखिलाने की आवाज अब भी आ रही है, इससे साफ जाहिर है कि अभी वह आत्मा को समाप्त नहीं कर सका है । चलकर देखते हैं अपने चेले मियां की करतूत ।।"


"चलो!" अलफांसे ने कहा तथा दोनों उसकी तरफ़ बढ गए ।


तब जबकि वे वहाँ पहुचे, वहां का दृश्य देखकर वे हतप्रभ रह गए I


व्रड़ा ही भयानक और अविश्वसनीय दृश्य था ।



राजीव की सम्पूर्ण लाश में रहमान मशाल से आग लगा चुका था तथा हड्डियां जल रही थी लेकिन रहमान अब भी मुसीबत मेँ था l इस समय रह…रहकर उसकी तरफ हवा में लटका…लटका सिर और धढ़ ( सिर से अलग ) वृक्ष वाली चुडैल झपट रही थी I मशाल बुझने वाली थी । रहमान के चेहरे पर चिंता के भाव थे । पसीनों में वह नहा गया था । लगता था वह किसी बात से चिंतित है ।



"क्या बात है चेले मियां?" विजय कमरे के दरवाजे पर से चीखा ।



“अब हम लोगों की मौत निश्चित हे, गुरु I"


"क्यों?” विजय चौंका ।


“यह चुड़ेल किसी को जीवित नहीं छोड़ेगी?"


“तुम इसे समाप्त क्यों नहीं कर देते?”


"समाप्त तो यह हो जानी चाहिए गुरु, लेकिन लगता है कहीं गलती हो गई है ।" रहमान चुड़ेल के हमले से स्वयं को बचाता हुआ चीखा ।



“क्या कमी रह गई साले चेले दी ग्रेट?”


"गुरु, यह आत्मा राजीव की लाश में आग लगते ही समाप्त हो जानी चाहिए लेकिन लाश का कोई हिस्सा जलने से रह गया है इसीलिए यह समाप्त नहीं हो रही हे और इस मशाल के बुझते ही समझो हम मर जाएंगे I"


बिजय ने चौककर देखा, मशाल बुझने ही जा रही थी ।।


तभी अलफांसे चौंका ।

उसे कुछ ध्यान आया । वह गजब की फुर्ती के साथ झपटा और एक कोने मेँ पडा लाश का हड्डियों से भरा पंजा जो उसके साथ लडाई में लाश से पृथक हो गया था, उठाया तथा फुर्ती के साथ लाश की जलती हुई हड्डियों में डाल दिया l



इधर पंजे में आग लगी, उधर चुड़ेल के मुख से अंतिम चीख निकली तथा वह विलुप्त हो गई ।



“आत्मा समाप्त हो गई, गुरु ।" रहमान चीखा ।



"बोल काली कलकत्ते वाली की ।”


"जय ।” अलफांसे बोला l
सभी कुछ शांत हो गया था ।।

मनहूस रात का प्रात: श्मशानगढ़ में उलझी रहस्य की परतों को खोलकर सामने आया ।


इस समय एक कमरे में विजय, अलफांसे, रहमान, रामु शानू किशन, बिशन, शांति और निर्मला मौजूद थे और विजय निर्मला से कह रहा था…



"मिस निर्मला, यह तो समझ में आ गया कि 'गोल्डन नकाबपोश' आप हैं लेकिन यह समझ में नहीं आया कि तुमने अपने प्रेमी तथा अन्य खून क्यों किए?”



"मिस्टर बिजय, आप जासूस है और आपका पाला बड़े-बड़े खतरनाक अपराधियों से पडा होगा लेकिन मैं कोई ऐसी … अपराधी नहीं हूं । मेरी कहानी कुछ ऐसी है जिस पर तुम शायद बिश्वास भी न करो I”


“क्या है तुम्हारी कहानी?"


"अच्छा खैर सुनो I” निर्मला ने कहानी आरम्भ की ।

" आज से अट्रठारह वर्ष पूर्व, तूफानी रात में मैं अपनी मां के गले से लगी सो रही थी l अब यहां मैँ तुम्हें बता दूं कि तब मैं निर्मला नहीं थी बल्कि चंद्रभान की उस बीवी का लडका थी जिसका खून उस रात चंद्रभान ने किया था I”



"क्या बकबास है?" बिजय उछला l


“मिस्टर विजय, बक्वास नहीं है और न ही कोई अंधविश्वास वाली बात है । आज का विज्ञान भी इस बात को मानता हे कि आदमी का पुनर्जन्म होता है और अब यह समझ लो क्रि यह मेरा पुनर्जन्म है I”


"लेकिन हममें से तो किसी को याद नहीं कि हम पिछले जन्म में क्या थे? फिर तुम्हें क्यों याद है?”



"उसी बात का तो जबाब देने जा रही हू I"


"तो फिर दे डालो I"


"पहले मेरी पूरी कहानी सुन लो तब कोई प्रश्न करना I”


"अच्छा तो सुनाओ ।"


"उस रात पिछले जन्म में जब मैं अपनी मां के पास सो रही थी तो मेरी मां की सौतन यानी मेरे पिता चंद्रभान की दूसरी पत्नी राजीव, सूभ्रांत और अमीता की मां ने मेरे पिता को मेरे विरुद्ध भढ़काया । यहां एक बात और भी है, वह यह कि तूफानी रात में चंद्रभान को खून की प्यास लगती थी और इसी खूनी प्यास मेँ उन्हें ध्यान ही नहीं रहता था कि वे क्या कर रहे हैं? वैसे इससे भी पहले एक बात और बता दूं कि चंद्रभान पहले ही मेरी मां से नफरत करते थे क्योंकि मेरी मां उन्हें संतान का सुख न दे सकी थी इसलिए उनकी दूसरी शादी हो गई और राजीव, सुभ्रांत तथा अनीता का जन्म हुआ । इस बीच भगवान ने कृपा की तथा मेरी मां को एक लडके के रूप में मुझें दे दिया लेकिन राजीव की मां मेरी मां के प्रति चंद्रभान के मन मेँ इतनी नफरत भर चुकी थी कि फिर वह नफरत मेरे पैदा होने पर भी प्यार मेँ न बदल सकी और चंद्रभान ने मुझे और मेरी मां को दासियों की भांति एक कमरे मेँ डाल दिया । कभी मेरी मां को पति का सुख न दिया और हमेशा अपनी दूसरी बीवी के पास पड़े रहते थे ।

उस रात जब दूसरी बीवी के उन्हें मेरी मां के विरुद्ध मडकाया तो उस समय उन पर खून की प्यास सवार थी और उन्होंने हमारा खून पीया !!


फिर जब मेरी आत्मा ने शरीर त्यागा तो मेरे अंदर चंद्रभान, उसकी दूसरी पत्नी, सुभ्रांत और अनीता के प्रति प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी I

भटकती हुई मेरी आत्मा एक झोंपडी में घुस गई तथा दो सम्भोग करते नव-दम्पती जोड़े में से औरत के मुंह में प्रवेश कर गई और उनकें इस संभोग से जिस संतान, जिस शरीर का निर्माण हुआ उसमें मैं प्रवेश कर गई तथा वही आत्मा जो उस रात भटक रही थी फिर निर्मला के रूप मेँ सामने आ गई जो अब तुम्हारे सामने खडी है I"



"अजीब बात है?”


"अब चाहे जैसी भी समझो I”


"लेकिन पिछले जन्म की प्रत्येक घटना तुम्हें ही क्यों याद है हमे क्यों नहीं?"



"इसका कारण यह है कि मेरी आत्मा ने एक शरीर त्यागकर तुरंत ही दुसरा शरीर ग्रहण कर लिया था अत: पिछले जन्म की जो यादे थी वे अभी मेरी आत्मा में ही थी

जबकि आमतौर से जब आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर ने प्रवेश करती है तो इतना समय व्यतीत हो चुका होता है कि वह अपने पिछले शरीर की सब यादें भूल जाती है और नए शरीर में नए रूप में प्रवेश करती है ।”
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