रहस्य के बीच complete

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Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच

Post by Rohit Kapoor »

भागता हुआ रहमान इमारत के दूसरी तरफ़ पहुच गया ।


उसने ऊपर तक देखा ।


दैत्याकार इमारत के अंधेरे में डूबी हुई थी, और उसके देखते-देखते इमारत की लाइट जलने लगी ।



इस समय वह इमारत के पिछवाड़े में खडा था । इस तरफ़ घनी झाडियां थी तथा थोडी दूर पर नदी की कल-कल की ध्वनि सुनाई दे रही थी ।


उसके इधर भागकर आने का उद्देश्य सिर्फ यह था कि अगर हत्यारा इमारत के पीछे भागने का प्रयास करे तो वह उसे दबोचे लेकिन अभी तक उसे कोई नजर न आया था ।


सहसा वह चौंका ।


उसके आस-पास कहीं धीमी आहट हुई ।


उसके कान खड़े हो गए ।


उसने उधर देखा तो हैरान रह गया ।


कटीली झाडियों के बीच स्याह लिबास में लिपटा एक व्यक्ति रेग रहा था I
उसके सारे जिस्म पर स्याह लिबास था और चेहरे पर नकाब थी । रहमान ने अपनी सांसें रोक ली तथा अपनी तरफ से बिना आहट किए स्याह व्यक्ति की तरफ़ रेंगा l लेकिन इसका क्या किया जाए कि स्याह व्यक्ति से फिर भी न बच सका ।



वह एकदम रहमान की तरफ़ घूमकर बोला-"कौन हो तुम? "



"मैं मी तुमसे यही प्रश्न कर सकता हू।”



"लगता है तुम रहमान हो I”



"अरे तुम मुझें जानते हो I” रहमान चौंका ।




तभी स्याह व्यक्ति ने एक जोरदार घूंसा उसके जबड़े पर रसीद कर दिया ।


वास्तव मे रहमान को घूसा मारने वाला यह स्याह व्यक्ति शातिरों का शातिर लगता था क्योंकि उसके एक घूसे से वह लड़खड़ाकर पीछे गिरा ।



और इससे पहले कि रहमान सम्भल सके स्याह व्यक्ति ने झाडियों मेँ एक ओर जम्प लगा दी ।



रहमान भी फुर्ती के साथ उसके पीछे लपका तथा उसके पीछे दौड़ता हुआ बोला…"अबे रूक, बताता हू मैं कौन हूं?"



लेकिन वह रूका नहीं, भागता चला गया ।


रहमान ने काफी प्रयास किया कि उसे पक्रड़ ले लेकिन वह सम्भल न सका और अंत मेँ स्याह व्यक्ति ने कुछ ही दूरी पर बहती नदी में जम्प लगा दी तथा उसी में विलुप्त होकर रह गया ।



रहमान बेचारा हाथ मलकर रह गया । जब वह वापस इमारत के निकट पहुचा, विजय चंद्रभान इत्यादि के साथ उसे तलाश कर रहा था ।



उसे देखते ही विजय बोला…"क्रिस चक्कर में लगे हुए हो चेले मियां?"

'गुरू एक काले साए से पाला पड़ गया था ।"



"काला साया?"


"जी हां!"


"क्या वह भी किसी की आत्मा थी?”


"नहीं !”



"धन्य है, तुमने माना तो सही कि चक्कर आत्माओं का नहीं है ।"


"यह मैं नहीं मान सकता ।"


"क्या मतलब? "


"गुरु, यह बात तो रहस्य की परते ही समझाएंगी ।"


"खैर प्यारे, उस काले साये का आकार बताओं ।”


जब रहमान ने काले साये का हुलिया तथा आकार बताया तो विजय जान गया कि वह काला साया वही था जिससे वह स्वयं उस गुफा के मुख पर टकरा चुका था ।


रहस्य की गुत्थियां और भी अधिक उलझती जा रही थी ।


आखिर यह काला साया किस चक्कर में है?

वह सफेदपोश कमसिन लडकी कौन थी?

पीपल के वृक्ष पर नजर आने वाली वह युवती कौन थी?

वह सफेद चोगे वाला व्यक्ति कौन था जिसकी लाश अपने स्थान से गायब हो गई थी?

काला साया उसे मारता क्यों नहीं है?

राजीव का खून किसने और क्यों किया है?

गोल्डन नकाबपोश कहां गायब हो गया?

क्या ये ग्रेतलीलाएं हैं अथवा भयानक अपराधियों का कोई षड्यंत्र?


आखिर श्मशानगढ़ में क्या षड्यंत्र रचा जा रहा है?


वह बिचित्र-विचित्र आत्माओं की खिलखिलाहटें तथा भयानक आवाजें क्या थी?
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Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच

Post by Rohit Kapoor »

विजय को जो पत्र राजनगर मे उसकी कार के स्टेयरिंग से मिला था वह किसने लिखा था तथा क्यों लिखा था?

इनके अतिरिक्त भी उसके दिमाग मेँ न जाने कितने प्रश्च चिन्ह घूम रहे थे, जिनके उत्तर अभी रहस्य की परतों मेँ छुपे पड़े थे । जब तक ये रहस्य की परतें नही खोली जाएंगी तब तक ये प्रश्न इसी प्रकार अडिग रहेंगे I



और विजय यहां इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए आया था, इन रहस्य की परतों को खोलने आया था, लेकिन यहां आकर वह जान गया था कि ये रहस्य की परतें इतनी जटिल हैं कि इन्हे समझाना सरल नहीं, परंतु विजय को तो वही कार्य पसंद था जो कठिन हो, खतरनाक हो तथा असम्भव हो । उसने अपने सिर को झटका दिया तथा रहमान से बोला…"प्यारे मेहमान ।"



" हूं I"



"क्या तुमने किसी सुनहरे लिबास वाले नकाबपोश को इमारत के किसी भाग से निकलते देखा था?"



"नहीँ, गुरु I"


“हूं।” विजय कुछ सोचता हुआ बोला--"तो इसका मतलब ये है कि खूनी भी इसी इमारत में है I"



इधर विजय के मुख से ये शब्द निकले उधर इमारत के लगभग सभी निवासियों की गर्दनें विजय की तरफ़ उठी तथा एक साथ सबके चेहरे पीले पड़ गए ।


फिर सबने एक-दूसरे की तरफ देखा ।


आंखें घबराईं ।
ऐसा लगा जैसे वे आपस में पूछ रहे हों…"क्या राजीब का खून तुमने किया है?



एक विचित्र-सा तनाव छा गया वहां पर ।


रहमान चेहरे पढ़ने की चेष्टा कर रहा था ।


जबकि विजय के होठों पर भेद-भरी मुस्कान थी ।

राजीव की अर्थी तैयार हो गई l
श्मशानगढ़ के कुछ निवासी उसकी अर्थी मेँ शामिल होने आए थे लेकिन फिर भी भीड़ कम थी ।
अधिकतर तो भय के कारण नहीं आए थे ।
क्योकिं अधिकतर लोगों का यह विश्वास था कि राजीव का खून किसी भूत ने किया है ।


श्मशानगढ़ में चारों तरफ भय और आतंक छाया हुआ था ।


विजय और रहमान चुपचाप थे लेकिन वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति की हरकतो से अनुमान लगाने का प्रयास कर रहे थे ।


लेकिन अभी तक कोई भी किसी भी निर्णय पर पहुचने में असफल था ।


सुबह के लगभग पांच बजे ।


वेसे भी अभी माहौल मेँ अंधकार ही छाया हुआ था ।


राजीव की अर्थी उठा ली गई, और पूर्ण कार्यक्रमों के साथ उसे फूंकने के लिए श्मशान की ओर चले ।


बिजय और रहमान भी उसके साथ ही थे ।


सहसा बिजय और रहमान की दिलचस्पी बढी क्योकि अर्थी को, उसी रास्ते पर ले जाया जा रहा था जिस पर वह उल्टी लाश वाला पीपल का विशाल वृक्ष था ।
रहमान सोच रहा था कि अगर राजीव के खून का सम्बंध किसी भी प्रकार पीपल पर रहने वाली आत्मा से है तो इस समय वह चुप न बैठेगी, अवश्य कुछ होगा…लेकिन क्या?



वैसे न जाने क्यों उसे स्वयं बिश्वास होता जा रहा था कि पेड़ वाली 'चुड़ेल' अवश्य कुछ करेगी ।



उसके दिमाग मेँ इस केस की प्रत्येक घटना सिर्फ एक प्रश्न के रूप मंस चकरा रही थी । किसी भी प्रश्न का उत्तर अभी तक सामने नहीं आया था ।



और फिर वह उस समय सतर्क हो गया जब सामने लगभग बीस गज की दूरी पर वही पीपल का विशाल वृक्ष किसी दानव की भांति हवा के झोंकों मेँ हिल रहा था ।



न जाने क्यों इस समय तो इस विशाल पेड़ को देखकर रहमान और विजय को भी विचित्र-सा भय हुआ ।



रात और सुबह के धीमे प्रकाश मेँ वास्तव मेँ यह वृक्ष बहुत ही डरावना प्रतीत हो रहा था ।


न जाने क्यों यह पेड़ सबसे अलग-सा लगता था ।



तभी विजय ने चलते-चलते ही एक बात और भी महसूस की, वह यह थी कि उस पेड़ को देखकर जनाजे में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का चेहरा पीला पड़ता चला गया ।


धीमी…धीमी-सी खुसर-फुसर होने लगी ।


न जाने क्यों चलते हुए आदमियों के कदम कुछ धीमे पड़ गए, राम नाम की आवाज भी धीमी हो गई । एक अजीब-सा, एक विचित्र-सा आतंक फैलता चला गया ।



प्रत्येक चेहरा पीला पड़ता चला गया ।



कुछ लोग तों उस वृक्ष को देखकर वापिस हो लिए । वापिस जाते एक व्यक्ति को रहमान ने पकड़ लिया तथा बड़े आराम से उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला…“क्यों भाई, कैसे वापिस जा रहे हो?"
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Rohit Kapoor
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राजीव की अर्थी तैयार हो गई l

श्मशानगढ़ के कुछ निवासी उसकी अर्थी मेँ शामिल होने आए थे लेकिन फिर भी भीड़ कम थी ।

अधिकतर तो भय के कारण नहीं आए थे ।
क्योकिं अधिकतर लोगों का यह विश्वास था कि राजीव का खून किसी भूत ने किया है ।


श्मशानगढ़ में चारों तरफ भय और आतंक छाया हुआ था ।


विजय और रहमान चुपचाप थे लेकिन वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति की हरकतो से अनुमान लगाने का प्रयास कर रहे थे ।


लेकिन अभी तक कोई भी किसी भी निर्णय पर पहुचने में असफल था ।


सुबह के लगभग पांच बजे ।


वेसे भी अभी माहौल मेँ अंधकार ही छाया हुआ था ।


राजीव की अर्थी उठा ली गई, और पूर्ण कार्यक्रमों के साथ उसे फूंकने के लिए श्मशान की ओर चले ।


बिजय और रहमान भी उसके साथ ही थे ।


सहसा बिजय और रहमान की दिलचस्पी बढी क्योकि अर्थी को, उसी रास्ते पर ले जाया जा रहा था जिस पर वह उल्टी लाश वाला पीपल का विशाल वृक्ष था ।


रहमान सोच रहा था कि अगर राजीव के खून का सम्बंध किसी भी प्रकार पीपल पर रहने वाली आत्मा से है तो इस समय वह चुप न बैठेगी, अवश्य कुछ होगा…लेकिन क्या?



वैसे न जाने क्यों उसे स्वयं बिश्वास होता जा रहा था कि पेड़ वाली 'चुड़ेल' अवश्य कुछ करेगी ।



उसके दिमाग मेँ इस केस की प्रत्येक घटना सिर्फ एक प्रश्न के रूप में चकरा रही थी । किसी भी प्रश्न का उत्तर अभी तक सामने नहीं आया था ।



और फिर वह उस समय सतर्क हो गया जब सामने लगभग बीस गज की दूरी पर वही पीपल का विशाल वृक्ष किसी दानव की भांति हवा के झोंकों मेँ हिल रहा था ।



न जाने क्यों इस समय तो इस विशाल पेड़ को देखकर रहमान और विजय को भी विचित्र-सा भय हुआ ।



रात और सुबह के धीमे प्रकाश मेँ वास्तव मेँ यह वृक्ष बहुत ही डरावना प्रतीत हो रहा था ।


न जाने क्यों यह पेड़ सबसे अलग-सा लगता था ।



तभी विजय ने चलते-चलते ही एक बात और भी महसूस की, वह यह थी कि उस पेड़ को देखकर जनाजे में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का चेहरा पीला पड़ता चला गया ।


धीमी…धीमी-सी खुसर-फुसर होने लगी ।


न जाने क्यों चलते हुए आदमियों के कदम कुछ धीमे पड़ गए, राम नाम की आवाज भी धीमी हो गई । एक अजीब-सा, एक विचित्र-सा आतंक फैलता चला गया ।



प्रत्येक चेहरा पीला पड़ता चला गया ।



कुछ लोग तों उस वृक्ष को देखकर वापिस हो लिए । वापिस जाते एक व्यक्ति को रहमान ने पकड़ लिया तथा बड़े आराम से उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला…“क्यों भाई, कैसे वापिस जा रहे हो?"

“नहीं. . .नहीं. . . ।" वह व्यक्ति एकदम कांपने लगा चेहरा हल्दी की भांति पीला हो गया, आंखों से भय झांकने लगा । सूखे पत्ते की भांति कांपता हुआ वह बोला-“नहीं . .म., मैं. . .म. . .मरना. . .च. . .चाहता I"


"क्यों. . .मरने की क्या बात है?" रहमान ने उसका कंधा पकड़कर झंझोड़ा ।


“व . .व. .वह. . .पेड़ I" उसने कांपते हुए पीपल के विशाल वृक्ष की ओर संकेत किया ।



“क्यों. . .क्या है. . .उस पेड़ पर?”


"वह.. .प्रेत है... l”


"क्या बकत्ते हो?”


“व . .वह "चुडैल वृक्ष' है ।" उसने इतना कहा और सिर पर पैर रखकर भागता चला गया ।



रहमान के होंठों पर एक मुस्कान-सी आईं और वह कुछ तेजी से चलकर विजय के निकट पहुंचा तथा बोला-“गुरू !”


“हू I"


"यह मैं भी महसूस कर रहा हू प्यारे I” विजय ने कहा तथा फिर चुपचाप चलने लगा ।


जब वे दोनों राजीव की अर्थी के काफी निकट तथा साथ…साथ चल रहे थे दोनों की निगाहें 'चुडैल वृक्ष' पर ज़मी हुई थी जो क्षण…प्रतिक्षण निकट आता जा रहा था ।


ज्यों-ज्यों वे उस चुड़ेल वृक्ष के निकट पहुचते जा रहे थे त्यों…त्यों लोगों के चेहरे हल्दी की तरह पीले पड़ते जा रहे थे l कदमों का कपन बढता जा रहा था ।

और ठीक तब ।

“नहीं. . .नहीं. . . ।" वह व्यक्ति एकदम कांपने लगा चेहरा हल्दी की भांति पीला हो गया, आंखों से भय झांकने लगा । सूखे पत्ते की भांति कांपता हुआ वह बोला-“नहीं . .म., मैं. . .म. . .मरना. . .च. . .चाहता I"


"क्यों. . .मरने की क्या बात है?" रहमान ने उसका कंधा पकड़कर झंझोड़ा ।


“व . .व. .वह. . .पेड़ I" उसने कांपते हुए पीपल के विशाल वृक्ष की ओर संकेत किया ।



“क्यों. . .क्या है. . .उस पेड़ पर?”


"वह.. .प्रेत है... l”


"क्या बकत्ते हो?”


“व . .वह "चुडैल वृक्ष' है ।" उसने इतना कहा और सिर पर पैर रखकर भागता चला गया ।



रहमान के होंठों पर एक मुस्कान-सी आईं और वह कुछ तेजी से चलकर विजय के निकट पहुंचा तथा बोला-“गुरू !”


“हू I"


"यह मैं भी महसूस कर रहा हू प्यारे I” विजय ने कहा तथा फिर चुपचाप चलने लगा ।


जब वे दोनों राजीव की अर्थी के काफी निकट तथा साथ…साथ चल रहे थे दोनों की निगाहें 'चुडैल वृक्ष' पर ज़मी हुई थी जो क्षण…प्रतिक्षण निकट आता जा रहा था ।


ज्यों-ज्यों वे उस चुड़ेल वृक्ष के निकट पहुचते जा रहे थे त्यों…त्यों लोगों के चेहरे हल्दी की तरह पीले पड़ते जा रहे थे l कदमों का कपन बढता जा रहा था ।

और ठीक तब ।

जबकि राजीव की अर्थी ठीक "चुडैल वृक्ष" के नीचे से गुजर रही थी ।


सहसा सब चौंके ।


अर्थी वालों ने अर्थी को कंथों से उतारकर वही पर रख दिया तथा सिर पर पैर रखकर भागे ।


सभी बदहवास हो गए ।


कुछ तो वहीं बेहोश हो गए और कुछ को जिधर जगह मिली उधर भागते चले गए ।


क्षण मात्र में वह स्थान रिक्त हो गया ।



सिर्फ विजय और रहमान वहां थे जो उस भयानक दृश्य और खौफनाक खेल को देख रहे थे ।


हुआ ये था कि जैसे ही लाश पेड़ के ठीक नीचे पहुची, तभी चमगादड़ चिल्लाया, उल्लू अपनी कर्कश ध्वनि मेँ चीखा तथा मनहूस कुत्ता रोने लगा । उसी समय बिल्कुल उसी रूप में जिसमेँ रहमान ने उस चुड़ेल को देखा था नजर आई ।



उसी प्रकार उल्टी लटकी हुई वह अत्यंत खौफ़नाक लग रही थी ।


विजय को अपनी खोपडी घूमती हुई प्रतीत हुई ।


लाश के निकट से सब लोग भाग चुके थे ।


विजय ने घूमकर रहमान की तरफ देखा तो हैरान रह गया । उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गईं । वह रहमान की इस विचित्र हरकत को देखता ही रह गया ।


रहमान ने अपनी आंखे मूंद ली थी और वही सडक पर लेट गया था तथा अगले ही पल वह सड़क पर इस प्रकार मचल रहा था मानो बहुत पीड़ा हो रही हो ।


विजय ने यह भी महसूस किया कि होंठों-ही-होंठों में कुछ बड़बड़ा रहा है ।

बिजय को विचित्र-सा लगा यह सब । लेकिन फिर भी उसने न जाने क्या सोचा कि रहमान के कार्य में कोई हस्तक्षेप नहीं किया । आश्चर्य के साथ वह उसकी क्रियाओं को देखता रहा ।


तभी वह चौंका ।


चुडैल यूं ही हवा में उल्टी लटकी उनकी तरफ बढी ।


रहमान उसी तरह बड़बड़ा रहा था l


सहसा वह चुडैल उनके अत्यंत निकट आ गई । तभी विजय गजब की फुर्ती के साथ उछला तथा उसने चुडैल के हवा मेँ उल्टे लटके जिस्म पर जम्प लगा दी लेकिन आश्चर्य यह था कि वह चुडैल के शरीर के बीच से गुजर गया तथा दूसरी तरफ़ जाकर मुंह के बल धरती पर आ गिरा ।


उसके मुंह से खून बहने लगा । वह फिर फुर्ती के साथ खडा हुआ तथा चुडैल को देखा । वह उसी प्रकार वायु मेँ लहरा रही थी । विजय के साथ यह पहली अजीबो गरीब घटना थी जिससे उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गईं ।


उसने चाहा कि वह इस पर दुबारा जम्प लगा दे लेकिन फिर वह स्क गया I वह अब पहले वाली मूर्खता नहीं करना चाहता था ।


लेकिन फिर भी वह कुछ करना चाहता था, परंतु उसे कुछ सूझ ही न रहा था । वह जड़वत-सा खडा चुडैल तथा रहमान का होने वाला अजीबोगरीब युद्ध देख रहा था ।


उसकी समझ मेँ नहीँ आ रहा था कि ये सब क्या चक्कर है ।


उसने देखा ।


चुडैल रहमान पर झपटी l


रहमान तेजी के साथ कुछ बड़बड़ाया और धरती पर एक तरफ़ को लुढ़ककर स्वयं को बचा गया ।


वह फिर बड़बड़ाया, चुड़ेल फिर झपटी, वह फिर बच गया ।



आश्चर्य के सागर में गोते लगाता हुआ विजय रहमान को देख रहा था…वह सोच रहा था कि वास्तव में बीस वर्ष का यह नवयुवक कितना खतरनाक है, क्या-क्या काम जानता है ।



बिजय को लगा कि वह लडका उसका चेला नहीं गुरु है ।



अनेकों बिचार उसके दिमाग में आ रहे थे तथा वह प्रशंसनीय निगाहो से रहमान को देख रहा था ।



लगभग पांच मिनट तक यही क्रम चलता रहा ।


न तो चुडैल ही उसका कुछ बिगाढ़ सकी और न रहमान ही उसे कोई हानि पहुंचा सका ।


लेकिन एकाएक विजय चौंका l


यह रहमान का एक और होलनाक कारनामा था ।


जब कुछ भी बस न चला तो रहमान उछलकर एक झटके के साथ कुछ पीछे हटा तथा अगले ही पल उसने अपने नाखून जांघ के उसी घाव मेँ ठूंस दिए जो उसने स्वयं चाकू मारकर बनाया था ।


उसने अपने नाखून उस घाव में घुसेड़कर जोर से दबा दिया ।


अथाह पीड़ा की लहर से वह स्वयं कांप गया । उसके कंठ से चीख निकल गई लेकिन फिर भी वह एक पल के लिए भी शिथिल नहीं हुआ l

धाव मे पीडा हुई लेकिन फिर भी उसने नाखूनों से अपने घाव को उथेड़ दिया…परिणामस्वरूप गर्म रक्त धारा तेजी के साथ बह निकली ।

रहमान ने फुर्ती के साथ अपनी पीड़ा को भुलाकर अपना खून हाथो में भरा तथा चुडेल पर उछाल दिया ।


खून अपनी तरफ़ उछलता देखकर ही चुडेल चीख पडी…“खून..खून...खून...नही...नहीं... l” और फिर पहले की भांति अदृश्य हो गई l



“बो मारा साले पकडी वाले को I” विजय चुडैल के विलुप्त होते ही चीखा ।



रहमान के होंठों पर एक मुस्कान दौड गई ।


"अरे वाह चेले मियां…तुम तो साले हमारे भी गुरु निकले l" विजय ने कहा तथा रहमान को सीने से लगा लिया ।



रहमान की जांघ से निरंतर खून बह रहा था।


घाव में अथाह पीड़ा हो रही थी लेकिन इस समय प्रसन्नता के वशीभूत होकर वह पीडा क्रो भूल गया था ।


“गुरु, यह चुड़ेल खून से डरती है I"


" क्यों?"


"लगता है इसके पीछे कोई बहुत ही बडा रहस्य है I”


"खैर प्यारे.. . l" विजय कहता-कहता रूपक गया ।



वास्तव मे इस बार का दृश्य और भी अघिक हीलनाक और’ भयावह था । इस बार तो वे दोनों ही कांप गए । उनके चेहरे हल्दी की भांति पीले पड़ गए, उनकी आखों से भी भय झांकने लगा । आज तक उन्होंने कभी ऐसा न देखा था l


कितना आश्चर्यपूर्ण दुश्य था?


कितना भयानक?

उन्हें लगा जैसे वे स्वयं बेहोश होने वाले हों लेकिन फिर मी उन्होंने स्वयं को सम्भाला तथा सामने के भयंकर दृश्य को देखा ।



“नहीं यह नहीं हो सकता, यह सब अविश्वसनीय है ।" दोनों के दिल की आवाज ने कहा ।



लेकिन जो आंखों के सामने हो रहा था उसे झुठलाया कैसे जा सकता था?


यह भयानक और अविश्वसनीय दृश्य साक्षात आंखों के सामने था ।


फिर भी उन्हें विश्वास न हुआ, इसलिए एक-दूसरे की ओर इस प्रकार देखा जैसे पूछ रहे हों I


"जो मैं देख रहा हू. . .क्या तुम भी. . .वही देख रहे हो?


बडा ही भयानक बड़ा ही खौफ़नाक दृश्य था वह ।


हुआ ये कि अचानक ही राजीव वाली अर्थी हिली और अगले ही पल सफेद कफ़न ओढे राजीव का मुर्दा अर्थी से सीधा उठता चला गया और फिर देखते…ही देखते मुर्दा उठ खडा हुआ ।



उफ़! क्तिना खतरनाक लग रहा था इस समय राजीव का मुर्दा!।।

आंखें उसी प्रकार आश्चर्य से फैली हुईं थी जैसे मरते समय थी । चेहरे पर वही भयानकपन, वही क्रूरता l सहसा वह आगे बढा ।


उसके शरीर में चाकू उसी प्रकार धंसा हुआ था । राजीव की वह लाश उन दोनों की तरफ ही बढ रही थी ।



“ये क्या नई मुसीबत हे!" रहमान हक्का-बक्का बोला ।



"अरे ओ...राजीव.. .भाई. . .यार तुम तो मरकर भी जीवित हो गए I" लेकिन लाश पर विजय के शब्दों का कोई प्रभाव न पडा, वह उसी प्रकार बेघड़क उनकी तरफ़ बढती रही ।

तभी बिजय बोला'…"अबे ओ मिस्टर राजीव । क्या हमें पहचानते न ?”



"तुम सब मेरे दुश्मन हो...हा...हा...हा... I" सहसा राजीव की लाश का जबड़ा खुला तथा उसके मुख से इतनी भयानक आवाज निक्ली कि आसपास का माहौल भी कांपता हुआ-सा प्रतीत हुआ । लेकिन उसके भावों में कोई परिवर्तन नही आया । वहां उसी प्रकार पत्थर जैसी कठोरता थी l



विजय और रहमान पीछे हटे ।


“वेटे...मेरे...बेटे... I” सहसा वहां राजीव की मां की आवाज गूंजी, जो अपने बेटे को जीवित देखकर प्रसन्नता में डूबी राजीव की लाश की तरफ आ रही थी ।



राजीव की मां ममता की वशीभूत होकर दौडती हुई लाश के पास आई तथा फिर वह लाश के सीने से लग गई ।



""हा..हा...हा... I” तभी राजीव की लाश ने भयानक तरीके से अट्टहास लगाया l



अट्टहास इतना सर्द और भयानक था कि जर्रा-जर्रा कांप गया । उसने अपनी मां को बांहों में कस लिया तथा फिर जोर से कहकहा लगाया ।



विजय और रहमान को तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था ।


"तुमने मेरा खून करवाया था कमीनी. . . ।” सहसा राजीव की लाश का जबड़ा खुला तथा सारे माहौल में ये आवाज गूंजी-“तुम लोगों से प्रतिशोध लेना आवश्यक है. ..तुम सबका खून होगा? कमीनी, कुतिया, कुतिया तूने ही मेरा खून करवाया था. . .तुम्हें मौत मिलेगी. . .मौत! "



"नहीँ . . .नही I” राजीव की मां ने चीखना चाहा l

विजय और रहमान ने एक-दूसरे को आश्चर्य के साथ देखा ।


यह सब क्या है?


उनको समझ में नहीं आ पा रहा था ।


आंखे फाडे बे सामने के दृश्य को देख रहे थे ।


उनके सामने ये सब हो रहा था लेकिन वे कुछ करने का साहस नहीं कर पा रहे थे । उन्होंने देखा । राजीव की मां चीखी-चिल्लाई…स्वयं को राजीव की लाश से मुक्त करना चाहा लेकिन कसमसाकर रह गई ।



सहसा राजीव की लाश की पतली-पतली बिना खून की उंगलियां अपनी मां की गर्दन पर रुक गई तथा फिर हल पल सख्त होती चली गई । वह छटपटाई, दया की भीख मांगी, करुणापूर्ण ढंग से चोखी लेकिन राजीव की लाश पर कोई प्रभाव न पड़ा ।



उसने सम्पूर्ण शक्ति से गला दबा दिया ।


अगले हो पल वह मर गई । उसकी आंखे फटी की फटी रह गई । विजय और रहमान के देखते-देखते ही ये सब हो गया था ।



"गुरू भागो, बिना बैग के मुकाबला नहीं हो सकता ।" सहसा रहमान चीखा तथा तेजी के साथ भागा ।



विजय को मी न जाने क्या सूझा कि वह भी दुम दबाकर वहां से भाग लिया । उनके दिमार्गों में उपस्थित प्रश्नवाचक चिन्हों में वृद्धि हो गई थी ।



लगता था ये रहस्य की परते कभी नहीं सुलझेगी ।





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Re: रहस्य के बीच

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रहमान ने फुर्ती के साथ अपनी पीड़ा को भुलाकर अपना खून हाथो में भरा तथा चुडेल पर उछाल दिया ।


खून अपनी तरफ़ उछलता देखकर ही चुडेल चीख पडी…“खून..खून...खून...नही...नहीं... l” और फिर पहले की भांति अदृश्य हो गई l



“बो मारा साले पकडी वाले को I” विजय चुडैल के विलुप्त होते ही चीखा ।



रहमान के होंठों पर एक मुस्कान दौड गई ।


"अरे वाह चेले मियां…तुम तो साले हमारे भी गुरु निकले l" विजय ने कहा तथा रहमान को सीने से लगा लिया ।



रहमान की जांघ से निरंतर खून बह रहा था।


घाव में अथाह पीड़ा हो रही थी लेकिन इस समय प्रसन्नता के वशीभूत होकर वह पीडा क्रो भूल गया था ।


“गुरु, यह चुड़ेल खून से डरती है I"


" क्यों?"


"लगता है इसके पीछे कोई बहुत ही बडा रहस्य है I”


"खैर प्यारे.. . l" विजय कहता-कहता रूपक गया ।



वास्तव मे इस बार का दृश्य और भी अघिक हीलनाक और’ भयावह था । इस बार तो वे दोनों ही कांप गए । उनके चेहरे हल्दी की भांति पीले पड़ गए, उनकी आखों से भी भय झांकने लगा । आज तक उन्होंने कभी ऐसा न देखा था l


कितना आश्चर्यपूर्ण दुश्य था?


कितना भयानक?


उन्हें लगा जैसे वे स्वयं बेहोश होने वाले हों लेकिन फिर मी उन्होंने स्वयं को सम्भाला तथा सामने के भयंकर दृश्य को देखा ।



“नहीं यह नहीं हो सकता, यह सब अविश्वसनीय है ।" दोनों के दिल की आवाज ने कहा ।



लेकिन जो आंखों के सामने हो रहा था उसे झुठलाया कैसे जा सकता था?


यह भयानक और अविश्वसनीय दृश्य साक्षात आंखों के सामने था ।


फिर भी उन्हें विश्वास न हुआ, इसलिए एक-दूसरे की ओर इस प्रकार देखा जैसे पूछ रहे हों I


"जो मैं देख रहा हू. . .क्या तुम भी. . .वही देख रहे हो?


बडा ही भयानक बड़ा ही खौफ़नाक दृश्य था वह ।


हुआ ये कि अचानक ही राजीव वाली अर्थी हिली और अगले ही पल सफेद कफ़न ओढे राजीव का मुर्दा अर्थी से सीधा उठता चला गया और फिर देखते…ही देखते मुर्दा उठ खडा हुआ ।



उफ़! क्तिना खतरनाक लग रहा था इस समय राजीव का मुर्दा!।।

आंखें उसी प्रकार आश्चर्य से फैली हुईं थी जैसे मरते समय थी । चेहरे पर वही भयानकपन, वही क्रूरता l सहसा वह आगे बढा ।


उसके शरीर में चाकू उसी प्रकार धंसा हुआ था । राजीव की वह लाश उन दोनों की तरफ ही बढ रही थी ।



“ये क्या नई मुसीबत हे!" रहमान हक्का-बक्का बोला ।



"अरे ओ...राजीव.. .भाई. . .यार तुम तो मरकर भी जीवित हो गए I" लेकिन लाश पर विजय के शब्दों का कोई प्रभाव न पडा, वह उसी प्रकार बेघड़क उनकी तरफ़ बढती रही ।

तभी बिजय बोला'…"अबे ओ मिस्टर राजीव । क्या हमें पहचानते न ?”



"तुम सब मेरे दुश्मन हो...हा...हा...हा... I" सहसा राजीव की लाश का जबड़ा खुला तथा उसके मुख से इतनी भयानक आवाज निक्ली कि आसपास का माहौल भी कांपता हुआ-सा प्रतीत हुआ । लेकिन उसके भावों में कोई परिवर्तन नही आया । वहां उसी प्रकार पत्थर जैसी कठोरता थी l



विजय और रहमान पीछे हटे ।


“वेटे...मेरे...बेटे... I” सहसा वहां राजीव की मां की आवाज गूंजी, जो अपने बेटे को जीवित देखकर प्रसन्नता में डूबी राजीव की लाश की तरफ आ रही थी ।



राजीव की मां ममता की वशीभूत होकर दौडती हुई लाश के पास आई तथा फिर वह लाश के सीने से लग गई ।



""हा..हा...हा... I” तभी राजीव की लाश ने भयानक तरीके से अट्टहास लगाया l



अट्टहास इतना सर्द और भयानक था कि जर्रा-जर्रा कांप गया । उसने अपनी मां को बांहों में कस लिया तथा फिर जोर से कहकहा लगाया ।



विजय और रहमान को तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था ।


"तुमने मेरा खून करवाया था कमीनी. . . ।” सहसा राजीव की लाश का जबड़ा खुला तथा सारे माहौल में ये आवाज गूंजी-“तुम लोगों से प्रतिशोध लेना आवश्यक है. ..तुम सबका खून होगा? कमीनी, कुतिया, कुतिया तूने ही मेरा खून करवाया था. . .तुम्हें मौत मिलेगी. . .मौत! "



"नहीँ . . .नही I” राजीव की मां ने चीखना चाहा l


विजय और रहमान ने एक-दूसरे को आश्चर्य के साथ देखा ।


यह सब क्या है?


उनको समझ में नहीं आ पा रहा था ।


आंखे फाडे बे सामने के दृश्य को देख रहे थे ।


उनके सामने ये सब हो रहा था लेकिन वे कुछ करने का साहस नहीं कर पा रहे थे । उन्होंने देखा । राजीव की मां चीखी-चिल्लाई…स्वयं को राजीव की लाश से मुक्त करना चाहा लेकिन कसमसाकर रह गई ।



सहसा राजीव की लाश की पतली-पतली बिना खून की उंगलियां अपनी मां की गर्दन पर रुक गई तथा फिर हल पल सख्त होती चली गई । वह छटपटाई, दया की भीख मांगी, करुणापूर्ण ढंग से चोखी लेकिन राजीव की लाश पर कोई प्रभाव न पड़ा ।



उसने सम्पूर्ण शक्ति से गला दबा दिया ।


अगले हो पल वह मर गई । उसकी आंखे फटी की फटी रह गई । विजय और रहमान के देखते-देखते ही ये सब हो गया था ।



"गुरू भागो, बिना बैग के मुकाबला नहीं हो सकता ।" सहसा रहमान चीखा तथा तेजी के साथ भागा ।



विजय को मी न जाने क्या सूझा कि वह भी दुम दबाकर वहां से भाग लिया । उनके दिमार्गों में उपस्थित प्रश्नवाचक चिन्हों में वृद्धि हो गई थी ।



लगता था ये रहस्य की परते कभी नहीं सुलझेगी ।





फिनिश

इस घटना के पश्चात राजीव की लाश नजर नहीं आई थी ।


सारे श्मशानगढ़ मेँ अत्यधिक सनसनी छा गई थी I


किसी मेँ इतना साहस न था जो राजीव की मां की लाश को भी वहां से ले आता ।


वह लाश वहीँ लावारिश की भांति पडी थी ।


बिजय और रहमान रहस्य की पर्तों में उलझे हुए थे तथा अब उन्होंने एक-एक के बयान लेने का निश्चय किया था ।


उन्हें उम्मीद थी कि सम्भव है किसी के बयान से कोई रहस्य की परत सुलझ सके । इस समय विजय एक कमरे में बैठा हुआ था तथा रहमान सबको एक-एक करके अंदर भेज रहा
था ।



वैसे विजय ने राजीव के कमरे की तलाशी भी ली थ्री । सर्वप्रथम भेजा गया राजीव के पिता तथा श्मशानगढ़ के राजा चंद्रभान को ।



यूं तो विजय सिगरेट नहीं पीता था लेकिन न जाने आज क्या सोचकर उसने एक सिगरेट सुलगाई तथा एक लम्बा…सा कश लेकर धुंआ छोडता हुआ बोला…“देखिए चंद्रभान जी, मैं आपसे प्रश्न करूंगा । आप जो भी कुछ जानते
हों साफ दिल से बता दें, किसी बात को छुपाने का प्रयास न करें क्योकि केस उलझा हुआ है तथा छोटी-छोटी बात मी काम की बन सकती हैं I”



चंद्रभान जी के चेहरे पर कुछ विचित्र से भाव थे । उनके चेहरे पर कुछ घबराहट भी थी तथा कुछ दुख भी, स्वयं को सम्भालते हुए बोले-“पूछो तुम्हें क्या पूछना है?"



"क्या आप आत्माओं तथा प्रेत लीलाओं में विश्वास करते हैं?" बिजय तीक्ष्ण निगाहों से चंद्रभान के चेहरे के भावों को पढता हुआ बोला ।

“जी हां, बिश्वास करना पडता है I”



"क्या आपको किसी ऐसे आदमी की जानकारी है जो राजीव का खून कर सकता हो, अथवा कोई ऐसा आदमी जिस पर आपको राजीव का हत्यारा होने का संदेह हो?”


"में भला इस बिषय में क्या कह सकता हूं?"


"क्या राजीव की मां राजीव का खून नहीं कर सकती?"


“क्या मतलब?” चंद्रभान जी चौंके ।


"ये जानकर आपको आश्चर्य होगा मिस्टर चंद्रभान कि राजीव की लाश जब उठी और उसने अपनी मां का गला दबाया तो उसने यह कहा था कि तुम्ही ने मेरा खून कराया है…अगर आत्माओं पर विश्यास किया जाए तो यह मानना होगा कि आत्माएं कभी झूठ नहीं बोलती और इस स्थिति में राजीव के शब्दों को ध्यान मेँ रखकर यह विश्वास पक्का हो जाता है कि राजीव के खून मेँ उसकी मां भी हत्यारे से मिली हुई है और ऐसा लगता है कि हत्यारा अभी जीवित है ।"


"यह आप क्या कह रहे हैं मिस्टर विजय?”


"मैं ठीक कह रहा हू मिस्टर चंद्रभान !"



“लेकिन उसकी मां को उसकी हत्या से क्या लाभ हो सकता है? "



"यही तो समझ में नहीं आ रहा ।" बिजय आगे बोला-"अच्छा एक बात बताइए, क्या यह मां राजीव की असली मां थी, मेरा मतलब सौतेली तो नहीं थी?”


यह सुनकर चंद्रभान के चेहरे पर घबराहट उभर आई लेकिन संभलकर बोले…!
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Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच

Post by Rohit Kapoor »

"नहीँ, यह राजीव की वास्तविक मां ही थी। यूं तो मैंने दो शादियां की थी । मेरी पहली बीबी को आज से अठारह वर्ष पूर्व 5 जनवरी, सन् 1955 की सर्द रात में किसी ने बड़े निर्मम ढंग से कत्ल कर दिया था । उसके साथ मेरा एक बच्चा भी था । मेरी पहली शादी उसी से हुई थी लेकिन वह कोई संतान न दे सकी तो मेरे माता…पिता ने मेरी दूसरी शादी राजीव की मां से कर दी थी लेकिन जब मेरी दूसरी शादी हो गई तो पहली ने भी एक लडके को जन्म दिया लेकिन 5 जनवरी की उस सर्द रात मेँ किसी ने उसका खून कर दिया ।"



"क्या आपकी दूसरी बीवी यानी राजीव की मां आपकी बीवी से ईर्ष्या नहीं करती थी?"



"वे दोनों ही एक…दूसरे से काफी ईष्यों करती थीं क्योंकि सबसे बडा संयोग तो ये था कि उनके परिवारों में काफी दिनों से खानदानी खूनी शत्रुता चली आ रही थी I”



"यह भी हो सकता हे कि राजीव की मां ने आपकी पहली बीवी का खून किया हो?"



"सम्भव है I”


"खैर छोडो इसे, ऐसा लगता है हम बिषय से भटक गए हैं, सोचने की बात यह है कि राजीव की मां राजीव का खून कर सकती है अथवा नहीं?"



"मैं भला क्या कह सकता हूं ?"



"क्या सुभ्रात भी आपकी दूसरी बीवी का सगा बेटा तथा राजीव का सगा भाई है?”


"जीं हां I"

"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि विशेष कारण से आपकी बीवी राजीव से कुछ नफरत और सुभ्रांत से कुछ विशेष प्रेम करती ही?”



"मेरी जानकारी में ऐसी कोई बात नहीं है ।"



"अगर ऐसा हुआ तो सम्भव है सारी दौलत सुभ्रांत को दिलवाने कै लालच में आपकी बीवी तथा सुभ्रांत ने आपस मेँ साजिश करके राजीव को रास्ते से हटाया हो ।"



"मेरी तो कुछ समझ मेँ नहीं आता कि मैं किस पर कितना विश्वास करूं I”



"आपके नौकर कितने हैं?"


"चार I"


"नाम?"


"किशन, रामू , बिशन और शानू ।"


"कोई लड़क्री ?"


"जो हां, बर्तन मांजने वाली एक लड़की है, नाम है शांति!"



"क्या इनमें से किसी पर शक है?”


“नही, वैसे तो ये सभी मेरे विश्वासपात्र हैं लेकिन. . . l”



"लेकिन क्या?"



"आजकल क्या पता कौन कब धोखा दे जाए! "


"और यह अनीता कौन है?"


“जी, वह सुभ्रांत और राजीव की बहन है.....सगी बहन !"



" और निर्मला ?"



"जी....!" लेकिन निर्मला का नाम सुनकर चद्रभान कुछ चोंक पड़े ।



फिर सम्भलने का प्रयास करते हुए बोले ---" निर्मला को कैसे जानते हो ?"

" मै जो पूछ रहा हू आप उसका जबाब देते
रहिए । वैसे मैं आपको बताऊं कि मुझे राजीव के कमरे से एक फोटो मिला है जिस पर निर्मला लिखा हुआ है ।"



"ओह . .!" चंद्रभान जी समझते हुए बोले…"बात ये है मिस्टर बिजय कि निर्मला एक गरीब लड़की है लेकिन जवानी कै जोश में बहकर राजीव उससे प्यार करने लगा था तथा हमने भी उसके प्यार को अटूट मानकर उसे राजीव की मंगेतर बना दिया था ।"



"तो इसका मतलब यह भी हो सकता है कि कोई निर्मला और राजीव के इस सम्बंध से खुश न हो और इस्री कारण से राजीव का...?"


“नहीँ. . .नहीं. . .यह नही हो सकता I"


"क्यों नहीं हो सकता ?"



"ये तो माना मिस्टर विजय कि निर्मला के गरीब होने के कारण कोई भो इस सम्बंध से खुश न था लेकिन अगर हम इस रिश्ते को न होने देना चाहते तो सबसे अच्छा तरीका हत्यारे के लिए यह हो सकता था कि राजीव के स्थान पर निर्मला को रास्ते से हटाया जाता I”


“आपने ऐसा क्यो सोचा?”


“क्योंकि तुम्हारे कहने के अनुसार हत्यारा इसी इमारत में रहता है और अगर हत्यारा इसी इमारत में रहता है तो निश्चित रूप से वह राजीव के निकट होगा और जो हत्यारा इस भावना से खून किया कि राजीव की शादी निर्मला से न हो तो निश्चित रूप से वह राजीव का भला चाहता होगा और जो भला चाहता होगा और इस सम्बंध से खुश भी न होगा तो वह राजीव का नहीं, निर्मला का खून करेगा I”

"आप कहना क्या चाहते हैं?"

"मैं ये कहना चाहता हू कि अगर हत्यारा इसी इमारत में रहता है तो निर्मला और राजीव का प्यार राजीव के खून का कारण नहीं हो सकता ।"


"हत्यारा इप्ती इमारत में रहता है, यह सिर्फ इसलिए कहा क्यूं कि हत्यारा यानी गोल्डन नकाबपोश इस इमारत से बाहर नहीं निकला और इसी इमारत में विलुप्त हो गया था I"



"मेरी समझ में नहीं आता कि इस इमारत में राजीव की हत्या कौन और क्यों कर सकता है?”



“देखिए मिस्टर चंद्रभान । इस बात को तो किसी भी कीमत पर झुठलाया नहीं जा सकता कि हत्या के षडूयंत्र में उसकी मां भी शामिल थी क्योंकि यह तो खुद राजीव की लाश ने कहा है और उसने अपने एक हत्यारे 'अपनी मां' से प्रतिशोध भी ले लिया है । मुझे लगता है कि राजीव की लाश शीघ्र ही अपने उन सभी हत्यारों से प्रतिशोध लेगी जो उसकी हत्या के षडूयंत्र में शामिल थे r”



“ये आप क्या कह रहे हैं? क्या इस प्रकार लाशें अपनी हत्या का प्रतिशोध ले सकती हैं?”


"यू तो बात मेरे कंठ से भी नीचे नहीं उतरती लेकिन आंखों देखा हाल है इसलिए विश्वास करने पर मजबूर हू।”


"अजीब बात है ।”


"हत्यारा इसी इमारत में मौजूद है, इसके दो प्रमाण हैं । पहला तो यह क्रि 'गोल्डन नकाबपोश' जिसे मैंने स्वयं हत्या कस्ते देखा है, इस इमारत से बाहर नहीं गया और दूसरा यह कि इस बात मे कोई संदेह है ही नहीं कि उसकी मां खूनी सेमिली हुई थी । तो जनाब ऐसे संगीन कार्य में वह किसी बिशेष परिचित को ही अपने साथ मिला सकती है और अगर इस इमारत मेँ सबसे अधिक बिशेष आदमी खोजा जाए तो वह सुभ्रांत और आपके अतिरिक्त कोई नहीं हो सकता I"



चंद्रभान तो विजय के इन शब्दों पर बुरी तरह चोंक पड़े ।



उन्हें लग रहा था फि यह खतरनाक जासूस उन्हें शब्द-जाल में फ़ंसाता जा रहा है । यह आदमी उन्हें बहुत ही चालाक तथा बुद्धिमान लगा था । फिर वे स्वयं को सम्भालते हुए ये बोले----" क्यों, हम ही बिशेष क्यों हो सकते हैं?”



"क्योंकि आप दोनों ही उनके सगे हैं I"


“अनीता भी तो उसकी लडकी है I"


"क्या आपके खयाल से अनीता खून कर सक्ली है?”


"तुम हर बात का मतलब खून से ही क्यों लगाते हो?" चंद्रभान झुंझलाए ।



चंद्रभान की झुंझलाहट पर बिजय कै होंठों पर मुस्कान तैर गई l फिर बोला…“अच्छा, अब आप जा सकते है l"


चंद्रभान जी उठकर चले गए । उसके बाद रहमान ने सुभ्रांत को भीतर भेजा ।



सुआंत के चेहरे पर दृष्टि गड़ाकर विजय बोला-" कहो , प्यारे सुभ्रांत , तुम्हारा क्या खयाल है अपने भाई के हत्यारे के के विषय में?”



“आप क्या जानना चाहते हैं?”


"मैं यह जानना चाहता हू कि तुम्हें किसी पर संदेह है?” .


"नहीं ।"


"क्यों ?"
"क्या मतलब?" वह चौंक पड़ा ।



"मेरा मतलब है कि तुम्हारी नजरों में कोई भी नहीं?"


"नहीं ।"



“मैं तुम्हारे कमरे की तलाशी लेनी चाहूगा I" विजय तीक्ष्य दृष्टि से उसे निहारता हुआ बोला l



"क्यों?"



"हो सकता है, सुनहरे कपडे तुम्हारे कमरे में हों?"




"क्या तुम मुझ पर सदेह कर रहे हो?"
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