आग के बेटे / complete

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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

अंधकार काजल की भाति स्याह हो चला था । समस्त राजनगर गहन निद्रा की गोद में समाया हुआ था । चारों ओर निस्तब्धता अपना प्रभुत्व जमाए थी ।



वह नाटे कद का स्याह पोश था-जो रघुनाथ की कोठी के बगीचे में बिलकुल शात खडा था । अधकार में वह अधक्रार का ही एक भाग नजर आ रहा था । वह बिलकुल शात था , ऐसा प्रतीत होता था मानो वह किसी की प्रतीक्षा कर रहा था l



न जाने क्यों उसकी आखें प्रत्येक क्षण विकास वाले कमरे की ओर लगी थी l उसके चेहरे पर एक स्याह नकाब था l केवल आखों का स्थान रिक्त दिखाई दे रहा था I .


एकाएक वह धीमे से चौंका ।


अगले ही पल उसके अधरों पर विचित्र-सी मुस्कान नृत्य कर उठी । उसकी आखें चमक उठी । अपने नाटे-से जिस्म को समेटकर उसने कोठी में लगे पौधों के मध्य कर दिया और ध्यान से वह उस ओर देखने लगा…जिघर देखकर वह चौका था । उसने गोर से देखा ।


ये लगभग पांच इंसानी छायाएँ थी-स्वयं को अघकार में रखने का प्रयास करते हुए अत्यत सतर्कता के साथ दवे पाव---- --- कोठी में दाखिल हुई थीं । उनके जिस्मो पर भी काले लबादे थे, वह नाटे कद का साया उन्हें स्पष्ट देख पाने मे पूर्ण सफल था ।

वह शात खड़ा उनकी एकाएक हरकत नोट करता रहा ।


दो छायाएं नीचे खड्री हो गई । अन्य तीन पुर्ण सतर्कता के साथ कमरे की और बढ़ रही थीं I देखते-ही-देखते वे छायाएं लेशमात्र की ध्वनि भी न करके अदर गुम हो गई ।


अब नाटे कद का साया उन्हें देख नहीँ सकता था, क्योंकि बीच में बरामदे मेँ लगा एक खंवा था । अत: नाटे कद का वह स्याहपोश तुरत बगीचे में लेट गया और सतर्कता के साथ रेंगता हुआ ऐसे स्थान पर आ गया जहां से वह एक खुली खिडकी. के माध्यम से अदर का दृश्य देख सकता था I अदर का दृश्य देखने मेँ उसे किसी प्रकार की कठिनाई के स्थान पर सललता ही हो रही थी क्योकि' कमरे में एक नीले रग का छोटा-सा बल्ब मुस्करा रहा था ।

उसके धीमे और धुधले प्रकाश में नाटे कद के स्याहपोश ने स्पष्ट देखा कि तीनों छायाए बिकास के पलंग की ओर बढी I


मासूम विकास निद्रारानी की गोद का शरणार्थी बना हुआ था l धुघले प्रकाश में उसका मासूम मुखडा बडा ही भला प्रतीत होता था लगता था मानो वह इन सबसे अनभिज्ञ हो ।


एकाएक न सिर्फ वह नाटे कद की छाया चोक एडी, बल्कि कमरे मे उपस्थित तीन छायाएं भी उछल पडी, क्योकि आशा के विपरीत अचानक विकास बिस्तर से उछल पडा । उसका इरादा खतरनाक था क्योकि एक ही पल में उसके हाथ मे रिवोंत्वर भी चमक उठी I


किन्तु कमाल की फुर्ती और चतुरता हासिल थी इन तीनो छायाओँ को भी l विकास ने तो अपनी तरफ से गजब की फुर्ती का परिचय दिया ही था किंतु इसका क्या किया जाए कि लाख . फुर्ती दिखाने पर भी तीनो छायाए उससे कही अघिक फुर्तीली और शक्तिशाली थीं ।


एक ही पल में तीनों छाएं झपटीं और इससे. पूर्व कि बिकास कुछ कर सकै उन्होंने न सिर्फ विकास को दबोच लिया बल्कि उसके हाथ से रिवॉल्वर छीनकर एक कराटे के जरिए अचेत भी कर दिया।



सभी कुछ बडी शाति के साथ हो रहा था । नाटा साया भी शात खडा सब कुछ देख रहा था। ~



विकास अचेत होकर उनकी बाहो में झूल गया । छायाओं ने एक-दूसरे की ओर देखा । एक ने बिकास के बेहोश जिस्म को कंघे पर लादा और पूर्ण सावधानी के साथ वे वापस लौटे । बाहर खडी दोनो छायाएं किसी भी खतरे का सामना करने लिए पूर्णतया सतर्क थीं किन्तु प्रत्यक्ष रूप से कोई खतरा सामने न आया ।


अत: अग्रिम कुछ ही क्षणों मे वे पाचो छायाएँ शाति के साथ कोठी से बाहर की ओर जा रही थी । नाटे कद का साया उनसे भी अधिक सावधानी का परिचय दे रहा था । वह चुपचाप उनका अनुसरण कर रहा था I



कुछ ही आगे जाकर वे लोग सडक के एक और खडी काली आस्टिन के निकट पहुचे आस्टिन में पहले से ही कोई अन्य इसान उपस्थित था l किन्तु आस्टिन के भीतर की लाइट आफ़ थी इसलिए चमक नहीं रहा था किंतु अधेरे में उसकी भर्राई हुई आबाज अवश्य गूंजी ।


"काम होगया ??"



…"'यस सर I" एक छाया धीमे से फूसफुसाई I


उसके बाद. . . !


सब लोग गाडी मे समा गए I विकास इस बात से पूर्णतया अनभिज्ञ प्रतीत हो रहा था ।



लगभग एक मिनट पश्चात ही इजन स्टार्ट होने की ध्वनि ने सन्नाटे को पराजित कर दिया ।


अगले ही पल काली ऑस्टिन शात सडक के सीने को रौदती हुई आगे बढ गई ।


आस्टिन कठिनाई से तीस कदम. ही चल पाई थी कि एक मोटरसाइकिल उसके पीछे लग गई-मोटरसाइकल पर नाटे कद का साया बैठा था .

ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो उसे इस--- घटना की पूर्व जानकारी अथवा सभाबना हो । तभी तो उसकी मोटरसाइकल पहले से ही झाडियों मे छिपी हुई थी। खैर बहरहाल जो कुछ भी हो रहा हो किन्तु इतना तो निःसदेह कहा जा सकता है कि नाटे कद का वह साया एक निश्चित दूरी निर्धारित करके बडी सतर्कता के साथ आस्टिन का अनुकरण कर रहा था । उसकी मोटरसाइकल की कोई भी लाइट आन नहीं थी । अब तक वे कईं मोड मुड चुके थे किन्तु एक मोड पर नाटे
कद का साया एकाएक बुरी तरह चोंक पडा क्योकि मुडने पर वह जहा तक देख सकता था…साफ सडक ही दीखी । बिलकुल रिक्त सडक l आंस्टिन की तो बात ही छोडिए-बहां आस्टिन… . का नामोनिशान तक नहीं था । नाटे कद के साए की खोपडी. मानो वायु मेँ चक्कर लगा रही थी l आस्टिन को अचानक धरती निगल गई. अथवा आसमान सटक गया ।


कुछ देर तक तो नाटा साया इस उद्देश्य क्रो लिए सडकों पर चकराता रहा कि कही आस्टिन के दर्शन हो जाए किंतु उसे जब सफलता नहीँ मिली तो वह झुझला गया । अब उसने मोटरसाइकिल की हेडलाइट आंन कर दी और अब उसका रूख रघुनाथ की कोठी की और था ~


परेशानी की-सी स्थिति मे वह रघुनाथ की कोठी पर पहुचा । उसकी मोटरसाइकल ठीक वहा स्थिर हुई जहा वह ओँस्टिन खडी थी । उसने मोटरसाइकिल वहीं स्टैंड पर खडी की और जेब से एक पेंसिल टार्च निकालकर वहां का निरीक्षण करने लगा ।


एकाएक. छाया चोकी । उसकी टोर्च का प्रकाश मिटटी में बने कुछ चिहो पर स्थिर हो गया । उसने ध्यान से देखा-वहाँ अनेक जूतों के चिह्न थे कितु' उनके बीच मे कुछ भिन्न प्रकार के चिह्न भी थे, कुछ इस प्रकार के चिह्न…जैसे किसी भारी वस्तु को खदेडा गया हो ।


नाटा साया कुछ देर तक तो उन चिहौं को देखता रहा फिर वह टार्च के प्रकाश को उन्ही चिहों पर उस तरफ़ को चलाने लगा…जिस ओंर कि किसी भारी वस्तु को खदेडकर ले जाया गया था ।

चिह झाडियों की ओर चले गए थे । टार्च के प्रकाश के सहारे वह झाडियों की ओर चला l


और अत में जब उसकी टॉर्च का प्रकाश उस भारी वस्तु पर केद्रित हुआ तो वह चौंके बिना न रह सका । यह एक लाश थी नग्न और जवान युवक की लाश I



~ उसके पेट मे चाकू ठूंस दिया गया या । खून से आसपास की झाडिंया रक्तिम थी । कुछ देर तक वह टार्च के प्रकाश मे लाश का निरीक्षण करता रहा पर उसने उसे हाथ नहीं लगाया ।


उसका दिमाग शायद यह सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है ?? यह लाश किसकी है ?
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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

विकास, विजय को यह बता कर चला गया कि प्रोफेसर हेमत उस स्टार से भयभीत क्यों हो गया था कितु विजय के दिमाग में काफी उथल-पुथल छोड गया I विजय जानता था कि कुछ भी सही लेकिन फिर भी विकास है तो बालक-बुद्धि ही । यह बात तो उसके दिमाग में घर कर ही चुकी थी कि विकास साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा गजब. की कुशाग्रबुद्धि का वारिस है । लेकिन फिर भी विकास है तो बालक ही । यह तो ठीक था कि उसने प्रोफेसर हेमत की एक नस को पकडा था किंतु विजय _ जानता था. कि इसका परिणाम उसे अवश्य भुगतना होगा । अत उसके जाने के पश्चात बिजय चितिंत हो उठा ।।


वेसे अभी बिजय यह निश्चय करने में असफल था कि प्रोफेसर हेमत का भयभीत होना-आग के बेटे वाले कैस से कितना गहरा सबध रखता है ?? अथवा यह एक बिलकुल ही , पृथक घटना है--किन्तु इतना निश्चित था कि विकास खतरे मे है । उसके विचार से प्रोफेसर हैमत या तो विकास की हत्या का प्रयास करेगा अथवा उसका अपहरण किया जाएगा ।।

न जाने क्यो विजय का दिमाग आग के बेटे वाले अभियान से हटकर इधर लग गया I शायद इस कारण कि इस समय विकास की जान खतरे मेँ थी I उसे लग रहा था कि विकास के साथ अवश्य कोई अप्रिय घटना होगी I



अत स्याह रात के आगमन के श्रीगणेश से ही वह गुप्त रूप से विकास की सुरक्षा हेतु उसकी कोठी पर जाकर उसकी निगरानी करने लगा…वह अपनी तरफ से पूर्णतया सतर्क` … और लेस था किंतु फिर भी वह उस नाटे कद के साए को नहीं देख सका क्योकि वह कोठी के सामने की ओर के बगीचे में था और विजय कोठी के पीछे-कितु वह ऐसे स्थान पर था जहा से वह प्रत्येक क्षण विकास के कमरे पर बिना किसी परेशानी के निगाह रख सकता था ।


और वास्तव मे काम उसके सोचने के अनुसार ही हुआ । उस समय वह धीमे से चौंका…जब रात की घनी स्याही में किसी इजन की आवाज निकट आई और स्याही से बाहर निकलती स्याह आँस्टिन को उसने अपनी ओर ही आते महसूस किया, ।



विजय जैसे दक्ष व्यक्ति के लिए यह ऐसी नईं बात नहीं थी । अत धीमे से मुस्कराकर वह फुर्ती और सतर्कता के साथ निकट की झाडियों में रेंग गया । सास रोककर वह ध्यान से उस ओर देखने लगा । यह लिखने की आवश्यकता नहीं है कि विजय के हाथ में उसका रिवाॅल्बर आ चुका था । . स्याह आंस्टिन ठीक वही उन्हीं झाडियों के पास रुकी जिनमे विजय पडा हुआ था I रिवॉल्बर लिए वह शात पडा रहा I तभी आँस्टिन से पाच साऐ बाहर निकले ओंर ओंस्टिन मे शेष छठी छाया बोली ।



"सारा काम सतर्कता के साथ हो ।"



" चिता' न करें ।" पाच छायाओं मे से एक बोली ।।



----"उठाकर लाने में केवल दस मिनट लगने हैं I"

"यस सर I ” उसी ने उत्तर दिया और पाचो रघुनाथ की कोठी की दीबार की ओर बढ गईं।



बिजय को समझने में देर नहीं लगी कि इनकी योजना , विकास के अपहरण की हे…उसकी, हत्या की नहीं विजय. ने ~ तुरंत निश्चय किया कि उसे क्या करना है और छायाओँ से नज़र हटाकर आंस्टिन की ओर घूरने लगा । वह अभी घूर ही रहा था कि एकाएक अदर बैठी छाया ने लाइटर जलाया और अगले ही पल उसके हाथों के बीच फसी सिगरेट सुलग गई । तीसरे पल लाइटर की लौ बिलुत हो गई…किन्तु इतने समय में विजय अपने मतलब की प्रत्येक स्थिति देख चुका था कि यह स्याह कपडों में लिपटा एक इसान है जिसने सिगरेट पीने हेतु अपनी स्याह नकाब ऊपर कर ली थी तथा वह ओँस्टिन की बाई ओर
की विडों से टेक लगाए वैठा था…जबकि-विजय इस समय आंस्टिन क्री दाई ओर वाली झाडियों में छिपा हुआ था । विजय के होंठों पर एक विचित्र-सी मुस्कान खेल गई । अब वह आंस्टिन के भीतर जलती उस सिगरेट को बडी
सरलता से देख सकता था……जिसमे जब वह छाया कश मारती तो क्षणमात्र के लिए मानो उसका चेहरा भी दमक उठता था ।


विजय जानता था कि उसे अपना कार्य सिर्फ आठ मिनट मे शांति के साथ करना है l अत वह रिवाॅल्बर संभाले झाडियों से बाहर कार की ओर रेंगा ।।


रेंगते हुए आस्टिन का चक्कर लगाकर बाईं ओर पहुचने में मुश्किल से तीन मिनट लगे थे । इन तीन मिनटों के शेष सेकडों में ही वह भयानक फुर्ती के साथ खडा हुआ और इससे पूर्व कि वह छाया कुछ समझ सके अथवा कुछ कर सके, उसने रिबॉंल्बर का पिछला भाग शक्ति से उसकी कनपटी पर रसीद किया । ~


सिगरेट तो उसके हाथ से छूट गई ।
साथ ही उसने चीखना भी चाहा किंतु इसका क्या किया जाए कि उसके मुख पर रखा विजय का दाहिना हाथ उसे चीखने की अनुमति नहीं दे रहा था । वह छाया भी बिजय के हाथों में बुरी तरह मचली. ... . I



किंतु विजय जानता था कि अवसर देना खतरे से खाली नहीं होगा और विजय के यह सोच लेने के पश्चात उस बेचारे की क्या मजाल कि कुछ कर जाए I अतः विधुत गति से विजय. ने रिवॉल्वर वही छोडा और चाकू निकालकर उसके पेट में घोंप दिया l छाया भयानकता के साथ मचली…पूर्ण शक्ति से उस छाया ने चीखना चाहा…किंतु विजय इतना शरीफ कहाँ था कि उसे इस सब में सफल होने देता I अत परिणाम यह हुआ कि चाकू लगते ही उसने खुन की उल्टी कर दी । विजय का हाथ भी खून में सन गया । किंतु वह छाया दुनिया से कूच कर गई । इस बीच विजय ने इतनी सावधानी अवश्य बरती थी कि खून की एक बूद भी ओंस्टिन के अदर न गिरे और वह अपने इस कार्य मेँ सफ़ल भी रहा ।



ठीक सात मिनट में ही विजय उसे खदेडकर झाडियों में डाल आया और उसके… स्याह कपडे विजय के जिस्म पर लगभग फिट ही थे ।


मतलब ये कि आठवें मिनट में वह ओँस्टिन में बैठा उसी ब्राड की सिगरेट फूक रहा था-जिसे वह इंसान फूक रहा था, हालाकि विजय सिगरेट इत्यादि नहीं पीता था, किंतु ऐसो नफरत भी नहीं करता था, क्योंकि उसका काम ही ऐसा था, जिसमे न जाने कब क्या करना पड़े ।



कभी कभी वह सिगरेट मे कश लगाता और किसी झकझकी की एकाध पंक्ति बडवडाकर स्वय ही खुश हो लेता था ।



तब…जबकि पाचो छायाए विकास के बेहोश जिस्म के साथ बिना किसी परेशानी के अपना कार्य पूर्ण करके वहा आई तो उसने लगभग उसी स्वर में कहा ।



"काम हो गया ?”


"......!"


इत्पादि वार्तालाप. के पश्चात आस्टिन आगे बढी ।

विजय ही नहीं बल्कि अन्य पार्चों ने भी चेहरे नकाब से ढक लिए थे ।


ओँस्टिन तीव्र वेग से दौड रही थी I कोई किसी से न बोल रहा था…सभी शांत थे ।।



एकाएक विजय चौंक पडा. ।


आस्टिन मे लगा ट्रासमीटर पिंक पिंक करने लगा । ड्राइवर ने तुरत ट्रांसमीटर ऑन किया…उसमेँ से आवाज आई ।



~.. . "यस .नबर शर्बीला सेशन ?"'


" यस महान आग के स्वामी !" आई एम शर्बीला सेशन सपीकिंग !"


"इतनी बेवकूफी अच्छी नहीं होती ।" दूसरी ओंर के लहजे में तीव्र गुर्राहट थी ।



-""क्या मतलब महान स्वामी ।" वह एकदम चौंका ।



विजय को भय हुआ कि कहीं उसका रहस्य तो नहीं खुल गया , किन्तु फिर भी वह स्वय को सयत्त किए शांति से बैठा रहा। यह एक अन्य बात थी कि उसने किसी खतरे से निबटने के लिए स्वय को पूर्णतया सतर्क कर लिया था । वह ध्यान से सुनने लगा ।



"एक मोटस्सइकिल निरतर तुम्हारा पीछा कर रही हैं और तुम लोग अनभिज्ञ हो l”

_ ---“ क्षमा महान स्वामी क्षमा !" शर्बीला सेशन स्थिति को संभालने का प्रयास करता हुआ बोला…"हम शीघ्र ही उससे पोछा छुडाने में सफल होंगे !"


" उससे पीछा मैं स्वयं छुडा लूगा !" दुसरी ओर से गुर्राया स्वर-"तुम पहले अपने बराबर में बैठे शर्जीला सेशन को गिरफ्तार करो---वो भयानक जासूस विजय के अतिरिक्त कोई नहीं I”


विजय जेसे आकाश से गिरा......!

★★★★
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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

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वास्तव मे उस अधेड की हरकत ही ऐसी थी कि उसे रंगीन मिजाज की उपाधि देनी पडती. है । यह वही अधेड. था, जो रघुनाथ की कोठी के पिछबाडे वाली गली में देखा गया था और विकास के जरिए फरार होने के बाद गधे के सींग साबित हुआ था । इस समय वह राजनगर. के प्रसिद्ध होटल सेबिना मे था । वह पहले. भी सेबिना में कई बार दाखिल होने का प्रयास कर चुका था, किंतु इसका क्या किया जाए कि दरबान हर बार उसके चौधरी जैसे परिधान को देखकर उसे वहा से खिसकने पर मजबूर कर देता था । अत परिणामस्वरूप उसके समस्त इरादों पर पानी फिर जाता-किंतु था वह भी कोई रांड का जवाई ही ।



उसने भी शायद निश्चय ही कर लिया था कि उसे 'सेविना' में अवश्य जाना है । तभी तो आज़ उसके शानदार जिस्म पर धोती-कुर्ते के स्थान पर शानदार चमकीला सूट नजर आ रहा था । काउटर से टेक लगाए वह किसी छटे हुए सेठ की भाँति सिगार में कश लगा रहा था ।



हाल मे शायद आज कुछ बिशेष आयोजन था…तभी तो हाँल की लगभग समस्त सीटें भरी थी l बैरे तत्पर्ता के साथ कार्य कर रहे थे । शराब के घुए से वातावरण कुछ रगीन-सा था । इस रंगीनी में शेष कमी पूरी कर रहे थे -पुरुषों के मिश्रित कहकहे l प्रत्येक इसान स्वय में ही मस्त नजर आता था । उस अधेड को भी किसी से कोई मतलब न था, क्योंकि उसके हाथ में एक पेग था , ऊगंलियो में दबा हुआ एक सिगार और बगल में वह जो उसकी गर्म जेब को ठडा करने के इरादे से उससे लिपटी जा रही थी किंतु बिचित्र था वह अधेड भी ।

अगर वह उस कॉलगर्ल को अपने पास से हटा नहीं रहा था था तो उसे अघिक लिफ्ट भी नहीं दे रहा था किंतु कॉलगर्ल को इससे क्या मतलब-उसकी निगाहों, में तो वह आसामी था । . . .


अत पैसे के अनुसार उस पर अपनी अदाओं नजरों इत्यादि के तीर चलाने से नहीँ चूक रही थी । अत वह अपने तन से पूर्णतया अधेड पर न्योछावर थी ।


_ किन्तु अधेड अपने अघरों के बीच नृत्य करती मुस्कान स्थायी रूप से केंद बनाए-उसकी ओर से लापरवाह उस एक पैग को क्षण-भर के लिए घूरता रहा । तभी वह कॉलगर्ल अपनी समस्त अदाओं को एक साथ ही एकत्रित करके बडे रोमाटिक ढग से बोली ।


"ये तुम्हारा दसवा पेग है डार्लिग ।।"



अधेड ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया । किंतु अपनी चमकीली आखों से उसे देखा अवश्य । उसके देखने का ढग भी कुछ विचित्र-सा था । जिसमे छिपी भयानकता भी थी और प्यार…सा भी । न जाने क्यों कॉलगर्ल कुछ काप-सी गई किंतु कापकर भी वह उसके जिस्म से और अघिक सट गई I अधेड की मुस्कराहट में लेशमस्त्र भी अंतर नहीं आया किन्तु शीघ्र ही उसने लडकी के चेहरे से निगाहे हटाकर पैग को घूरा मानो पैग को आखों के रास्ते ही से पेट मेँ पहुचा देगा किंतु कुछ नहीं हुआ, बल्कि एक ही घूट में वह उस पैग को कंठ से नीचे उतार गया।

कर्लगर्ल का काम तो मानो नाजो-अदा ही दिखाना था ।


तभी अधेड ने अपने सें थोडी दूर पर जाते हुए एक बैरे को अपनी ही भाषा में आवाज लगाई ।


"अरे ओछो रे यूह कू सन ।"


बैरा एकदम उसकी और घूम गया फिर मुस्कराता हुआ. उसके निकट आकर बोला ।



“बोलिए साब ।"



"यार यहा यूई रंगीन-सी मिले है-ऊ ना है देस्सी ?"

एक बार को तो बैरे का मन किया कि वह खुलकर कहकहा लगा दे…किन्तु मजबूर था. . .क्योकि अधेड फिर भी ग्राहक ठहरा और वह सिर्फ एक बेरा, अत: स्वय' क्रो कठिनाई.. से रोककर वह बोला------"'नहीँ साब !"



और अभी. शायद वह बेरा आगे भी कुछ कहना चाहता था कि वह थम । समस्त हाल चौंक पड़ा और सभी की नजरें एक और घूम गई ।



कुछ लोगों कै मुख से भयभीत चीखें भी निकल गई । कालगर्ल अधेड से लता की भाति चिपक गई ।



अधेड. के पास जो बैरा खडा, था…उसके, हाथ में एक पानी का . जग .था…जो तुरंत फर्श पर गिर चकना--चूर हो गया ।



उसके पीछे खड़ा-काऊटरमैन सूखे पते की भाति कापने लगा l अपने सूखे अधरों पर जीभ फेरकर वह बहुत ही धीमे स्वर में बडबडाया… I


…"पता नहीं बास ने इस राक्षस क्रो यहां क्यों रखा है ?"" . .

वास्तविकता यह थी कि बैरे के वाक्यो को एक अति सुदर लडकी की चीख ने बीच में ही रोक दिया । समस्त हाल केसाथ अधेड, व्यक्ति की दृष्टि भी एक झटके कै साथ उधर ही उठ गई और वास्तव मे चौंक वह भी पडा. था ।।



वह…एक अत्यत खूबसूस्त लडकी. की चीख थी जिसे एक भयानक नजर आने वाला हट्टा-कट्टा काला नीग्रो लगभग घसीटता हुआ हाँल से गुजारता हुआ सीढियों. की ओर ले जा रहा था । वह लडकी. अपनी शक्ति और' क्षमता के अनुसार निरंतर और पूर्णतया उस नीग्रो का,विरोध कर रही थी, किंतु कहां वह कोमल कली और कहां वह भयानक रूपी नीग्रो ! नीग्रो के भयानक और मजबूत हाथ उस कली की गोरी और नाजुक कलाई को थामे घसीटते ले जा रहे थे ।


--"'बचाओ., बचाओ. . .!" वह लडकी. निरतर अपनी सम्पूर्ण शक्ति से चीख रही थी, किंतु किसी पर उसकी चीखों का कोई असर नहीं हो रहा था…बल्कि इस दृश्य को देखकर सबकी हालत खस्ता हो गई थी । सभी बुरी तरह से आतकित हो चुके थे । मानो वह भयानक शक्तिशाली नीग्रो इंसान न होकर बीसबी सदी का राक्षस रहा हो । सभी भयभीत-से इस दृश्य को देख रहे थे । अधेड ने कापते हुए बैरे और काउटरमैन को देखा । एक क्षण के लिए उसकी दृष्टि कार्लगर्ल पर भी गई फिर भी उसने आतकग्रस्त हाँल को निहारकर अपनी निगाह उस नीग्रो और लडकी पर जमा दी…जो हाल के दूसरे कोने पर पहुच चुके थे । एकाएक अधेड चीखा…"अरे ओ कालिए अरे कहा ले जाय याक्कू ??”



वाक्य सुनते ही भयानक नीग्रो का खूखार चेहरा एक तीव्र झटके के साथ उसकी और घूम गया और साथ ही घूम गए हाल में उपस्थित समस्त चेहरे । सभी की आखों में जहा महान आश्चर्य उमड रहा था वहीं अधेड के प्रति सहानूभूति के भाव भी थे किंतु अधेड मानो उनसे बिलकुल लापरवाह था ।


. . यह दूसरी बात है कि नीग्रो की भयानक और दहकती लाल आखो के तेवर देखकर अदर-ही-अदर वह भयभीत होकर काप गया हो किंतु प्रत्यक्ष मे वह तनिक भी भयभीत न . हुआ वास्तव मे अधेड भी जान चुका था कि जोश मे आकर आज उसने साक्षात मौत को छेड दिया है ।


उस भयानक नीग्रो को मौत कहा जाए तो अधिक उपयुक्त होगा । नीग्रो के घूमते ही अधेड को अपना ,इरादा कुछ बदलता हुआ महसूस हुआ । उसने मन-ही-मन अपने शब्द वापस लेकर अपनी भूल सुधारने और नीग्रो से न टकराने का निश्चय किया…क्योकि वह भाप गया कि इस खूखार नीग्रो से टकराने का मतलब तो साक्षात मौत है --- अभी वह सोच ही रहा था कि ~


एकाएक न जाने कैसे उस लडकी का हाथ खतरनाक निग्रो की सख्त पकड से मुक्त हो गया । मुक्त होते ही वह पहले थोडी-सी लडखडा गई~~~~ फिर वह सभलकर अधेड की ओर भागी I

भागी तो वह निःसदेह किंतु प्रत्येक कदम पर ऐसा लग रहा था जैसे अब गिरी ~~~ बस अब गिरी ।


भागती भागती ही वह अपनी संपूर्ण शक्ति से चीखी~~~~!!


" भैया---ऽऽऽ---!" यह शब्द चीखती हुई वह बुरी तरह से लडखडाती हुई अधेड की ओर भागी । लडखडाकर वह अथेड़ के कदमों मेँ गिरने ही वाली थी कि न जाने अधेड़ में कौन-सी शक्ति का संचार हुआ? भैया...शब्द ने जाने कौन-सी
शक्ति प्रदान कर ,दी कि एक झटके के साथ उसकी उगलियों के
बीच फसा वह सिगार और छोटा-सा गिलास तो टूट ही गए I


साथ ही उसने स्वयं से लिपटी कालगर्ल को घक्का देकर अलग कर दिया और लडखडाकर… अपने कदमों में गिरती लडकी को अपनी बाहों में सभालकर आलिंगन किया न जाने किन भावनाओं से प्रेरित हो गया वह अधेड कि अगले ही पल उसका हाथ ठीक इस प्रकार स्नेह से उस लडकी के बालों पर घूमा मानो वह वास्तव मे उस लडकी का सगा भाई हो ।


अचानक वह लडकी' बुरी तरह सिसककर अपने भाई के सीने से लग गई ।


अधेडं शायद जान गया कि साधारण-सी वेशभूषा मे नजर आने वाली लडकी मध्यम वर्ग की हे-जिसने कभी होटलों में हंगामे देखे न हो, जो इन रंगनियों से बहुत परे हो, जिसे ये लोग अपनी हवस का शिकार बनाने हेतु यहा उठा लाए हैँ I


वर्ना होटलों की दुनिया में पली लडकी नीग्रो के इस प्रकार ले जाने का न तो विरोध ही करती और अगर किसी कारण विरोध करके वह उसकी सहायता भी चाहती तो 'भैया' जैसा पवित्र शब्द कभी न कहती । वह तो होती उसं कॉलगर्ल` की भाति जो कि अभी कुछ समय पूर्व उसकी, जेब ठडी करने के इरादे से उससे लिपटी खडी. थी ।



सोचते-सोचते उस अधेड की आखों मेँ दृढता उभर आई…एक क्षण पूर्व नीग्रो से टकराने का जो इरादा डगमगा गया था-वह चटटान की भांति अडिग हो गया I उसकी आखों मे भी खून झाकने लगा । उसने भी जलती आखों' से उस भयानक नीग्रो को देखा जो खूंखार ढग से उसी ओंर घूर रहा था I


हाॅल में मोत जैस्रा सन्नाटा था।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

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अब प्रत्येक इसान उन दोनों के मध्य से हट गया था I उपस्थित प्रत्येक इंसान को बिदित था कि महज चद भावनाओं में बहका अधेड ने मोत को ललकारा है…जिसकै फलस्वरूप कुछ ही क्षणों उपरात हाल मे उसकी लाश तडपती नजर आएगी ।


"यह तुम क्या कर रहे हो चौधरी ? वह आज का सबसे खतरनाक आदमी जिम्बोरा है ।" एकाएक अधेड के कानों मे अपने पास खडे काउटरमैन की बडबडाहट टकराई किन्तु उस पर इसका लेश्मात्र भी अतर न पडा । वह उसी प्रकार नीग्रो को धूरता रहा I



अचानक नीग्रो कै मोटे, लटके हुए भद्दे और काले होठों ~ पर एक ऐसी क्रूर और जहरीली मुस्कान नाच उठी…मानो उसने अधेड को उसके इस अपराध के लिए क्षमा कर दिया हो । वह अत्यत भयानक और घरघराती-सी आवाज़ में लडकी से सबोधित होकर बोला l



"ये हिंदोस्तानी मच्छर तेरी क्या रक्षा करेगा छोकरी? अगर जिम्बोरा इसे फूंक भी. मार दे तो रस्सातल में समा जाए ।"



अधेड का उबलता खून मानो उफ़न गया I उफ़नकर मानो समस्त लहू आखों में तैर आया । समस्त जिस्म की नसों मे एकदम तनाव आ गया ।


ज़बडे शक्ति के साथ एकदूसरे पर जम गए । अत्यत खूखार दृष्टि से नीग्रो को घूरता हुआ वह चीखा ।…"कहा कै बे कालिए । मैं तोरी टाग पै टाग धर कै ~ चीर दूगो I"



उपरोक्त वाक्य ने मानो एकदमं नीग्रो की मुस्कान छीन ली । उसके भयानक जबडे किसी राक्षस की भांति फैले । भयानक तरीके से वह अधेड की तरफ़ बढा । इस बीच उसकी खतरनाक ~ कटार भी उसके हाथों में दबी थी I अधेड में न जाने कौन सी शक्ति का सचार हो गया था I

उसने भी लड़की को धीरे से स्नेह के साथ स्वयं से अलग किया और मौत बनकर, मौत से टकराने के लिए आगे बढा ।


. . समस्त हाल मे भयानक भय व्याप्त हो गया था । वहा मौत जैसी शाति थी ।


एक मौत दूसरी मौत की मृत्यु हेतु आगे बढ रही थी I

,ट्रांसमीटर पर दूसरी ओर की गुर्राहट सुनकर बिजय. इस. प्रकार सीट से उछल पडा जैसे--अचानक उसे बिच्छु ने डक मार दिया हो । क्षणमात्र के भी हजारवे भाग में वह समय की गभीरता को भाप गया । वह जान गया कि आग के बेर्टों का चीफ़ निहायत ही चालाक हे-उसका राज अब राज न रहा था l विद्युत गति से उसके हाथ अपने रिवाॅल्बर पर पहुच गए । वास्तव मेँ इस मामले में विजय ने अपनी सम्पूर्ण फुत्ती का प्रयोग किया था किन्तु इसका क्या किया जाए कि वह अपने इरादे मेँ असफ़ल रहा l इसके कई कारण थे…पहला ये कि आँस्टिन अत्यत छोटी थी और उसमें छः सात इंसान' बडी. कठिनाई से जमाए हुए थे I इतने छोटै-से स्थान पर इस स्थिति में विजय के लिए उन पाचों से टकराना असभव ही था ।


परिणामस्वरूप जेसे ही उसका हाथ रिवॉल्वर तक पहुचा कि वह सिहर उठा । एक साथ तीन रिबॉंल्वरौ की नालो ने उसके जिस्म के विभिन्न अगो' को स्पर्श किया ।


दो रिबॉंल्बर पीछे बैठी छायाओं ने उसकी गुद्दी से चिपका दिए और तीसरा रिवॉल्वर दाए बैठे एक अन्य नकाबपोश ने उसकी पसलियों से सटा दिया I


उसका हाथ जहां-का तहां ही चिपक गया । तभी उसके कानों मे अपने पीछे वाले के शब्द टकराए


-"'अगर कोई भी चालाकी दिखाने की चेष्ठा की तो खुदागंज पहुचा दिए जाओगे l"

"नहीं नहीं भाई साहब ऐसा बिल्कुल मत करना l"


बिजय चहककर बोला--- "अगर हम खुदागज पहुच गए तो हमारे बीवी-बच्चों का क्या होगा ? बेचारे अनाथ हो जाएगे I अरे वाह अरे वाह वाह I" बिजय ऐसे बोला…मानो स्टेज पर खडा कोई शायर "का" भतीजा-" क्या झकझकी याद आई है I हा तो झकझकी का विषय है अनाथ हो जाएगे । भई वाह हा . . तो प्या…!"


"'बको मत I ” अचानक पीछे वाला खतरनाक स्वर में गुर्राया ।


कारणवश विजय की कैची की भाति चलती जुबान में ब्रेक लग गए । उसकी बोलती पर ढक्कन लग गया किंतु--- वह भी अपने नाम का बस एक ही बिजय था I उसकी बोलती पर तो ढक्कन नि:सदेह लग गया, किंतु अब वह शतुरमुर्ग की भाति अपनी गरदन अकडाए, अपने चेहरे पर मूर्खता के भाव किए बडी विचित्र नजरो से एक…एक को घूर रहा था । तभी पीछे वाला गुर्राया ।

…"अगर बकवास की तो गोली मार दूंगा I”



"'"भाईं साहब आप बुरा न माने तो एक बात कहू।" बिजय के लहजे' से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह पैदाइशी शरीफ रहा हो I उसके बाद कोई शरीफ पैदा ही न हुआ हो I बैसे . इस समय वह अपनी पुरानी चाल चल रहा था । अत बेकार की बकवास. से शत्रु को बोर करके उसे असावधान करने की चाल I उसके उपरोक्त वाक्य से क्योकि शराफत टपकती थी ~ इसलिए पाचो चुप रहे I


विजय फिर बोला I


"हां तो भाई साहब…क्या मैं कहू ?"


"बको क्या बकना चाहते हो ?" पीछे बाला कुछ झुझलाए-से स्वर में बोला । I



"हां ,तो भाई स्राहब बात ये है कि मै आप लोगों को एक झकझकी सुनाना चाहता हूं I वेसे तो मे झकझकी सुनाने का टैक्स लेता हूं किंतु' इस समय क्योकि तुम मेरे बीबी-बच्चों को अनाथ करने का परमिट रखते हो----- --- इसलिए मैं तुम्हें मुफ्त मे एक झकझकी सुनाता हूं ।" विजय लगातार बके जा रहा था और वे पांचो' शात उसकी बात सुन रहे थे । विजय आगे बोला । . .

"हा तो मैं कह रहा था कि झका--- ये हैं एक बार एक बिल्ली और कुत्ते में फ्री स्टाइल कुश्ती हो रही थी बिल्ली मोसी ने कुत्ते मामा के छक्के छुड़ा दिए या यू कहिए कि उसे नाकों चने चबवा रखे थे या यू कहिए कि छठी का दूध याध दिला रखा था या यू कहिए.....!"



"चुप I" पीछे वाला सख्ती के साथ गुर्राया !!

" बंद कर अपनी ये बकवास ।"


एक बार फिर विजय की बोलती पर ढक्कन लग गया ।



--'"अगर अब आगे तुमने एक लफ्ज भी कहा तो मैँ तुम्हारी खोपडी मेँ रोशनदान बना दूगां ।" वह व्यक्ति गुर्राया I



"देखो भाई साहब I" विजय फिर उसी शराफत के साथ बोला…“बात यह है क्रि आप खोपडी में रोशनदान बनाए या चूहेदान लेकिन हम भी अपना झक्का पूरा किए बिना बाज नहीं आएगे । हा तो हम कह रहे थे कि बिल्ली ने कूत्ते मामा की ऐसी-तैस्री कर रखी थी कि तभी चूहा ताऊ उनके बीच में आया और उनका फैसला करने लगा । अब जनाब फैसला तो हो गया किंतु तभी बिल्ली मोसी और कुत्ते मामा चूहे ताऊ पर झपटे ।" इतना कहकर विजय एकदम चूप हो गया मानो लकवा मार गया हो ।


उन पाचो में से किसी के पास बुद्धि का इतना स्टॉक न था कि उसके झक्के के अर्थ को समझ पाते । अत एक-दुसरे की और प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे । मानो एकदूसरे से पूछ रहे हो कि झक्के का अर्थ क्या हुआ? ?

किन्तु वे बेचारे क्या अर्थ सोच सकते थे जबकि वास्तविकता यह थी कि विजय खुद इस बकवास का अर्थ नही जानता था । वह तो उन्हे असावधान करने कै लिए, जो उसके दिमाग में आया, बकता चला गया और वास्तव में वह किसी हद' तक उन लोगों को अपनी अटपटी बातो से उलझाकर असाबधान कर भी चुका था---- किन्तु इस छोटी सी आस्टीन मे कुछ करने मे असफल रहा ।

वातावरण अभी स्याह रात के दामन की कैद से मुक्त नहीं हो पाया था । चारों ओर उसी प्रकार का सन्नाटा-
वही नीरवता वही भयानकता व्याप्त. थी ।


प्रोफेसर हेमत की विशाल कोठी अबादी से दूर एकात में स्थित थी । स्याह अंधकार में खडी विशाल इमारत किसी दैत्य की भाति प्रतीत. होती थी कोठी के चारों और दूर-दूर तक का इलाका खेर्तों और मैंदानों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था ।


ऐसा प्रतीत होता था मानो नाटे कद के स्याह साए को आवारागर्दी के अतिरिक्त दूसरा कोई काम ही नहीं आप मानो सारी रात वह इसी प्रकार व्यतीत कर देना चाहता हो । इस समय वह प्रोफेसर हेमत की दैत्याकार कोठी के सामने वाली झाडियों¸ मे चुपचाप पड़ा था।


न जाने किसकी प्रतीक्षा थ्री उसे ? झाडियों में छिपे नाटे स्याह साए की आखें प्रत्येक पल प्रोफेसर हेमत की इमारत पर जमी हुई । उसे आज की रात वहा कुछ होने का सदेह हो ।

कभी कभी वह दूर तक बीरान पडी उस सडक को भी देख लेता था जो शात सोई हुई थी…क्रोठी के बरामदे में निरतर उसे एक जुगनू ऊपर-नीचे होता हुआ चमक रहा था । जब यह जूगनू ऊचा उठता तो क्षणमात्र के लिए प्रोफेसर हेमत के चौकीदार पठान का रोबीला चेहरा दमक उठता । यह जुगनू बीडी के अतिरिक्त कुछ भी न था-जो पठान ने अभी कुछ क्षणों पूर्व ही सुलगाई थी । नाटे कद के साए ने सब कुछ देखा था किन्तु शात था । वह चुपचाप झाडियों मे छुपा रहा l रघुनाथ की कोठी के पास से वह सीधा यही आया ओर उसे झाडियों में पडे लगभग दो घटे व्यतीत हो गए थे । किन्तु उसने अपना धैर्य नहीं खोया था ।

तब से अब तक कोई विशेष घटना भी घटित नहीं हुई थी किंतु उसे शायद पूर्ण आशा थ्री क्रि कोई
घटना अवश्य घटित होगी-तभी तो वह धैर्य के साथ झाडियों, में पडा हेमत की कोठी की निगरानी कर रहा था । निगरानी भी विशेषतया हेमत के कमरे की ।

हेमत का कमरा दुसरी मंजिल पर था । जिसके शीशे युक्त खिडकी से कमरे के भीतर का दृश्य हल्का व नीला घुघयुक्त-सा दीख पडता था क्योकि' कमरे में शायद नीले. रग का नाइट बल्ब हस रहा था । टकटंकी बाधे नांटा साया उसी खिडकी ,को घूर रहा था कभी-कभी उसकी निगाह रिक्त सडक की ओर भी उठ जाती थी । वातावरण यू ही शात रहा…किसी घटना अथवा दुर्घटना ने जन्म नही लिया किंतु कमाल था इस नाटे में भी-उसने भी अपना धैर्य नहीँ खोया था । शात पडा वह किसी बिशेष घटना की प्रतीक्षा कर रहा. था ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

. . इस वार जैसे ही उसकी निगाहे खिडकी से हटकर दाई ओर की रिक्त सडक पर पडी' तो एकाएक उसकी आखें सफ़लता की स्थिति मे चमकने लगीं । उसकी आखे किसी बिजली की भाति चमक उठी ।।



सोई' हुई सडक को रोंदता हुआ कोई वाहन निरतर उसी ओर आ रहा था । इस बात का अनुमान. नाटा साया उसकी चमचमाती हैडलाइटों से लगा चुका था……जो निरंतर तीव्र वेग से निकट आती जा रही थी । नाटा साया सतर्क हो चुका था ।


इतनी देर में यह पहला वाहन था…जिसने सोई सडक की निद्रा को भग कर दिया था और अपनी ध्वनि से सन्नाटे को पराजित कर दिया था । उसने झाडियों मेँ पडे-ही-पडे पहलू बदला और आखे उन चमचमाते बिन्दुओ पर जम गई ।


नाटे कद के स्याह साए कि पिस्तौल उसके हाथ मे आगया ।

जब वे बिदु अत्यत निकट आ गए तो उसने स्पष्ट देखा कि यह वही स्याह आस्टिन थी-जिसने कुछ समय पूर्व विकास का अपहरण किया था । उसके पीछा किए जाने पर वह एक मोड़ पर गधे के सिर से सींग की भाति गायब हो गई थी किन्तु इस समय वह एक बार फिर उसके सामने थी । ~

आँस्टिन हेमत की कोठी के ठीक सामने थमी ।


उससे से पाच साए बाहर निकले । रिवॉल्वर संभाले वह शात पडा सायो की प्रत्येक प्रतिक्रिया देखता रहा I एकाएक आस्टिन के अदर से
थर्राया स्वर


"काम शीघ्रता से हो ।"


"ओके सर !"
पाचों में से एक ने कहा और फिर पाचों कोठी के दरवाजे की ओर बढ गए । तब तक बरामदे ने बैठा पठान चौकीदार दरवाजे तक आया और भारी स्वर में बोला।


"कौनहो तुम ? क्रिससे मिलना है ?"


"प्रोफेसर हेमत्त से I" पाचों में से एक बोला और साथ ही वे दरबाजे तक पहुच गए I दूसरी तरफ पठान भी दरवाजे तक पहुचता हुआ बोला ।-"यह कौन सा समय? "



और फिर जो कुछ हुआ…वह पठान के लिए तो आश्चर्य से परिपूर्ण था ही नाटा साया भी चौंक पडा…-सब कुछ देखकर साए की आंखों मे उन सायों के प्रति घृणा के भाव्र उजागर हो गए ।



हुआ यह कि अभी पाठन अपना वाक्य भी पूरा नहीँ कर पाया था कि सार्यो के बीच से 'फिस' की एक घीमी-सी ध्वनि ने ज़न्म लिया और क्षणमात्र के लिए दहकता शोला रिक्त वायुमडल में चमककर सीधा पठान के जिस्म में प्रविष्ट हो गया । पठान के मुख से धीमी-सीं कराह निकली । उसने अपना ~ बल्लम उन सायो की और बढाया. कि तभी "फिस' की एक अन्य धीमी सी ध्वनि के साथ एक और गोला लपका और
सीघा पठान के जिस्म में प्रविष्ट हो गया ।


परिणामस्वरूप पठान के मुख से घुटी…धुटी-स्री चीख निकली उसके हाथ से बल्लम छूट गया । वह धडाम से फर्श पर गिरकर ठडा हो गया ।

दृश्य देखकर नाटे साए की आखों मेँ धीमा-सा क्रोध उजागर हो गया i शायद उसे उनकी यह हरकत अच्छी न लगी थी । उसका. जी चाहा कि वहं अपने रिवॉल्वर से वह सबको एक-एक गोली मारकर पूछे कि अब बताओ कैसी' होती है पीडा? बह जानता था कि दोनों गोलिया उन्होंने साइलेसरयुक्त रिवॉल्वर से चलाई हे-उन्होंने बिना विशेष शोर-शरावे के दरबान को धरती छोडो पत्र थमा दिया था ।


. अपने क्रोध क्रो दबाए वह शात झाडियों में पडा रहा और सायों की प्रत्येक हरकत देखता रहा I सायों ने दरवाजा खोला ।


दो ने पठान के मृत शरीर क्रो उठाकर बगीचे मे फेंक दिया और फिर सभी कोठी के भीतर की और बढ गए ।

" -तुम यहीँ रहो !" एक साए ने दूसरे साए को आदेश दिया ।

"ओके सर I" वह साया बोला -जिसे आदेश दिया गया था-शेषचारों साए कोठी के अदर प्रविष्ट हो गए नाटे साए ने कोई प्रतिक्रिया नही की । वह शात खडा उनके क्रिया कलाप देखता रहा-लगभग पाच मिनट बाद ही हेमत कै कमरे की खिडकी कें शीशे पर उसने उन लोगों को देखा…उसका दिमाग तेजी से कुछ करने के लिए सोच रहा था । एक साया बरामदे में खडा सिगरेट फूक रहा था ।


तभी उसने ~ आंस्टिन की ओंर देखा-वहाँ उपस्थित साया भी सिगरेट पी रहा था ।


नाटे साए ने शीघ्र ही कछ निश्चय किया और किसी दक्ष जासूस की भाति' सतर्कता के साथ झाडियों के बराबर-बराबर ऑस्टिन की ओर बढने लगा । वह प्रत्येक खतरे का सामना करने के लिए पूर्णतया सतर्क था…वह रेंगने में इतनी सावधानी का परिचय दे रहा था कि स्वय उसे रेंगने की ध्वनि नहीं सुनाई पड रही थी । इसी प्रकार रेंगता हुआ वह आंस्टिन तक पहुच
गया I


इससे पूर्व कि कोठी के अदर प्रविष्ट होने वाले चारों साए बाहर आते नाटा साया सतर्कता के साथ बरामदे मे खडे साए और' ऑस्टिन के भीतर बैठे साए की आखो मे धूल झोकता हुआ ऑस्टिन की डिक्की में समा गया ।


वहा उपस्थित किसी अन्य इंसान को इस बात का लेशमात्र भी अहसास न हुआ । यहा तक कि आस्टिन" मेँ बैठा साया भी नाटे की उपस्थिति से पूर्णतया अनभिज्ञ था ।



नाटे साए ने डिक्की मे हल्की-सी दरार उत्पन्न की हुई थी . जिसमेँ से वह बाहर का दृश्य देख रहा था । उसने देखा अगले पाच मिनटों में चारों साए बरामदे में आए l ऑस्टिन के निकट आते-आते वे पाच हो गए'। उनमें से एक के कंधे पर एक अचेत जिस्म पडा था जो निसंदेह हेमत का ही था । वह जान गया कि प्रोफेसर का अपहरण किया जा रहा है l वह चुपचाप सब कुछ देखता रहा ।


कुछ क्षणोपरात ऑस्टिन एक झटके' से आगे' बढ गई और फिर आस्टिन तीव्र वेग से अज्ञात दिशा की और दौडती चली गई । नाटा साया शायद प्रत्येक मार्ग को अपने दिमाग में सुरक्षित करता जा रहा था । वह आग के बेटों को उनके अपराध का मजा चखाने के बिषय मेँ सोच रहा था ।



ऑस्टिन के अदर शाति थी । छहों साए चुपचाप बैठे थे । पिछली गद्दी के आगे प्रोफेसर हेमत का अचेत जिस्म पडा हुआ था । ड्राइवर तीव्र वेग और दक्षता के साथ कार ड्राइव कर रहा था ।



अचानक पिंक. . .पिक की ध्वनि ने 'शात वातावरण को पराजित कर दिया । लगभग सभी लोग चोंकै-ड्राइवर के पास बैठे साए ने कार में लगे ट्रांसमीटर को ऑन किया और ,बोला ।



"यस नबर शर्बीला सेशन स्पीकिंग I"



……""तुम क्या खाक सतर्क रहते हो ?” दूसरी तरफ से भयानक गुर्राहट-भरी आवाज ।



~-“ क्या मतलब सर? ” शर्बीला सेशन बुरी तरह से चौक पडा ।

"तुम पहली वार भी मात खा गए और इस बार भी ।" फिर वही गुर्राहट-भरी आबाज ।


"मैं समझा नहीं सर I”



"तुम क्या खाक समझोगे ?" गुर्राहट अत्यत भयानक थी…"पहली बार जो व्यक्ति मोटरसाइकिल से तुम्हारा पीछा कर रहा था…इस बार वह तुम्हारी आँस्टिन में ही उपस्थित है I”



"कौन है वह? " शर्बीला सेशन के साथ अन्य सभी … साथी चौके । ~


"वह इस तरह नज़र नहीं आएगा बेवकूफो । वह तुम्हारी आँस्टिन की डिक्की में बैठा हे । तुम्हारी ये असावधानी किसी दिन तुम्हारी जान ले लेगी ।"


उपस्थित समस्त साए आश्चर्य के साथ एक दूसरे का मुह ताकने लगे । साथ ही वे सभी अपने चीफ़ की जानकारिर्यो पर हेरान थे । क्या उनका चीफ प्रत्येक मिशन पर उनके साथ रहता है......?


★★★★★
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