आग के बेटे / complete

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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

सभी इस लडके की शातिराना चाल पर आश्चर्यचक्ति रह गए । सविता तो मानो स्वप्न देख रही थी ।


व्रिगेजा अब भी आखे फाड़े उस खतरनाक लडके को देख रहा था ।


अचानक विकास ने उन सभी को आश्वर्य के सागर में डूबने से बचाया ।
" मैं आप लोगों को एक दिलज़ली सुनाने यहां आया हू।" उसके बोलने से वह बाहर आए ।



_ सभी चौंके, किंतु तभी नकाबपोश बोला.…'"आप आमने सामने बैठे इन दो विकासों को देखकर शायद हैरत में पड गए हैं । अत्त: मैं आपको बता दू कि वास्तव में विकास इतना खतरनाक लडका. है कि इसने इस षडयत्र में सिर्फ मुझे ही नहीं, बल्कि हमारी उस शक्ति को भी धोखा दिया है जिसके हम तुच्छ सेवक हैं।" वह सांस लेने के लिए थमा और फिर बोला-" हमने इस लडके के अपहरण की योजना बनाई, किंतु न जाने कैसे इस खतरनाक लडके, क्रो उसका ज्ञान हो गया इसने. एक शातिराना चाल चलते हुए अपने एक बिशेष दोस्त को सब कुछ बताकर अपना मेकअप अपने उस दोस्त पर कर दिया…जो अभी तक दूसरी कुर्सी पर बैठा हुआ है । विकास स्वयं काले कपडे पहनकर जासूसी करने लगा ।”


विकास चुप था-किन्तु समस्त हाँल आश्चर्य के सागर में गोते लगा रहा था ।


ब्रिगेंजा आगे बढकर बोला ।


"लेकिन क्या कोई लडका इस अल्पायु मेँ इतना खतरनाक और चालाक हो सकता है या इतना सुंदर मेकअप कर सकता है ?"



" उदाहरण तुम्हारे सामने है ब्रिगेंजा ।" नकाबपोश बोला…"वास्तव में अभी बिकास की आयु सिर्फ ग्यारह वर्ष है, किंतु वह इतनी. कुशाग्र बुद्धि. रखता हे, न सिर्फ बुद्धि रखता है----बल्कि अनेक. हुनर भी । जैसे तुम उसका जीता जागता हुनर मेकअप देख रहें हो । नकली विकास कही से भी नकली नहीं नजर आता !"



"असंभब महान स्वामी.. असंभव...!” बिगेंजा बोला----" इस अल्पायू में न तो कोई लडका. इतना खतरनाक हो सकता है और न इतने हुनर रख सकता है ।”

" किसी हद तक तुम ठीक भी कह रहे हो ब्रिगेंजा !" नकाबपोश बोला…"किन्तु विकास के विषय में प्रसिद्ध है कि इन सभी कामों मे इसे अंतर्राष्ट्रीय अपराधी अलफासे ने दक्ष किया है । वह इसे आज से एक वर्ष पहले उठाकर ले गया था और इन खतरनाक कामों में इसे दक्ष किया था । सारा विश्व जानता है कि अलफांसे ने इसे खतरनाक-से-खतरनाक कार्य और हुनर में दक्ष करके इतना खतरनाक लडका बना दिया था कि इसने स्पेस में बसे मर्डरतैड को तबाह कर दिया था । प्रिसेज जैक्सन जैसी महान हस्ती भी इससे पराजित हो गई थी । ये ठीक है कि इतने-से लडके, को इतने कार्यों में दक्ष देखकर आश्चर्च होता है…कितु हमें याद रखना चाहिए कि इसका इतना दक्षा होना आश्चर्यजनक निःसदेह है…कितु असभव कदापि नहीं । दक्ष करने से तो बुद्धिहीन जानवर भी दक्ष हो जाते हैं, फिर यह तो , एक विलक्षण बुद्धि वाला बालक है l तुम्हें विकास पर अविश्वास नहीं करना चाहिए, बल्कि उससे कुछ शिक्षा लेनी चाहिए I”


ब्रिगेजा सहित सभी विकास को आश्चर्य से देख रहे थे I फिर नकाबपोश की आवाज़ गूंजी ।




"वेटे विकास, अब तुम्हारी कोई भी चलाकी दिखाने का प्रयास तुम्हारी बुद्धिमत्ता का नहीं बल्कि वुद्धिहीनता का ही परिचय देगा, क्योंकि इस समय तुम कुछ भी करने की स्थिति मेँ नहीं हो ।"



…"मै आप लोगों को एक दिलज़ली सुनाने की स्थिति में अवश्य हूं।" विकास शरारत के साथ मुस्कराकर बोला I



…"'तुम्हारी दिलजली उस समय सुनी जाएगी, जब तुम्हें षड्यंत्र के लिए आग के बेटे सजा देगे…कितु उससे पहले तुम एक खेल और देखो l” कहकर नकाबपोश ने ब्रिगेजा से कहा ।



~…"मिस्टर ब्रिगेंजा…प्रोफेसर को लाया जाए ।"


तब, जबकि ब्रिगेजा अपने चीफ की आज्ञानुसर प्रोफेसर हेमत के साथ हॉल में प्रविष्ट हुआ तो सविता बुरी तरह चीखी और वह दौडकर अभी अपने बाबुल के पास तक पहुचना ही चाहती थी कि दो आग के बेटों ने उसे पकड लिया I प्रोफेसर हेमत भी अनायास ही अपनी' पुत्री को यहां देखकर बुरी तरह चोंक पंडे !!!

और बेटी-वेटी कहते बांहें फैलाते हुए उसकी ओर लपके, किंतु ब्रिगेजा ने उन्हें पकड़ लिया । और उन्हें अपने इरादों में सफल न होने दिया । एक तरफ बेटी का और दूसरी और बाबुल का हृदय. एक-दूसरे के गले मिलने के लिए तडप उटा ।। दोनौ को सख्ती के साथ जकड लिया गया था I चौका सग्राम भी था । वह इसलिए चौंका था, क्योकि ब्रिगेजा ने सविता के मुख से यह सुनकर कि वह हेमत की बेटी है-इस प्रकार रोका था मानो प्रोफेसर हेमत को फ़साने की यह स्कीम अचानक ही उसके दिमाग मे आई हो…जबकि प्रोफेसर हेमत का यहां पूर्व उपस्थित होना नि-सदेह इस बात का प्रमाण था, कि इन लोगों की पहले से ही कोई योजना थी । उसके दिमाग में तुरत आया....कही आग के बेटे उसे भी तो गहरी साजिश मेँ नहीं फसा रहे । किन्तु अभी. ~ वह न जाने क्या सोचकर शात ही रहा और ध्यान से हाल की स्थिति का जायजा लेने लगा…प्रोफेसर हेमत्त बुरी तरह से चीख रहा था ।



" कमीनो, जालिमो, क्या तुम्हारा पेट मेरे ही अपहरण से नहीं भरा…जो मेरी बेटी… को भी ले आए ? तुम लोगों की हमसे क्या दुश्मनी है ? सविता को छोड दो जालिमो-सबिता क्रो छोड दो I”



"घबराओ नहीं प्रोफेसर.....।" रहस्यमय नकाबपोश गुर्राया…"न हम लोगों की तुमसे शत्रुता हैं और न ही तुम्हारी. बेटी से, हम लोग तो जनसेवा के लिए तुम्हारे वेज्ञानिक दिमाग को अपने साथ लाना चाहते हैं…तुम हमारा साथ देने के लिए शायद साधारण ढग से तैयार न हो…इस भय से सविता को उठा लाए है-ताकि अपनी बेटी की अस्मत और जान के मूल्य में तुम हमारा साथ देने के लिए तैयार हो जाओ, बोलो, अपनी बेटी प्यारी है तो तुम्हें हमारा साथ देना होगा I” .

"ओह. . . !" प्रोफेसर हेमत सब समझ गए- " तो तुम बेटी का भय दिखाकर एक वैज्ञानिक को खरीद लेना चाहते हो ताकि तुम लोग जनकल्याण कै नाम पर जनता का शोषण -करते रहो, बैकों को लुटते रहो, बडे-से-बड़ा अपराध करते रहो , दुनिया मे बिज्ञान का दुरुपयोग करके दुनिया को भयभीत कर सको, किंतु याद रखो कि मै भारतीय हूं…भारतिय के लिए सर्वप्रथम देशप्रेम है और उसके बाद कोई अन्य प्रेम, चाहे वह औलाद प्रेम ही क्यों न हो ।"


प्रोफेसर हेमत के चेहरे… पर दृढता. के भाव उभर आए ।



~…"'अपनी बेटी की लुटती अस्मत अपनी आखों के सामने देख सकोगे प्रोफेसर. .?" नकाबपोश भयानक स्वर में गुर्राया l



प्रोफेसर हेमत के मस्तिष्क को नकाबपोश के शब्द सुनकर एक तीव्र झटका लगा ।


उनकी भावनाएं जैसे एकदम उजागर हो गई । उनकी बेटी पर झपटते हुए राक्षस उनकी आखों के सामने घूम गए ।


उफ् ! कितना खौफनाक और घृणात्मक दृश्य ! हेमत कल्पना करके भी कांप उठे ।


अगले ही पल वे गिडगिडाने लगे…"नही . . नहीं, तुम लोग ऐसा नहीं कर सकते । क्या तुम्हारी कोई बेटी नहीँ…क्या सविता तुम्हारी बेटी जैसी नहीं ?"



"'बको मत, प्रोफेसर…बोलो क्या मजूर है ? हमारे लिए काम करना या...!"


सविता सब कुछ सुनकर स्तब्ध…सी रह गई । वह अपने पिता की परेशानी¸ समझती थी…कितु कर क्या सकती थी ?


परिस्थिति वास्तव मे ही विचित्रता के साथ बदली थी । प्यार से वह अपने बाबुल को देख रही थी कि

तभी वह बुरी तरह चौंक पडी, उसकी बड्री-बडी और प्यारी आखे सदेह से सिकुंड गई तथा वह एकदम बोली ।


…"'मैं कुछ कहना चाहती हूं. . . ।"


उसके वाक्य पर सबने उसकी ओर देखा, उसके बाबुल ने भी-फिर सविता बोली ।


"मैं पहले मिस्टर सग्राम से कुछ पूछना चाहती हूं ।"

""इजाजत है ।" नकाबपोश की गुर्राहटे-भरी आबाज गूंजी-तभी सग्राम सविता के निकट आया ओर अपना कान-साबिता के करीब कर दिया ।


सबिता उसके कान मे फुसफसाई......!!

और अगला पल I



वास्तव में ही बडा भयानक बडा खौफ़नाक अत्यंत हैरतअगेज़ था इतना आश्चर्यपूर्ण कि ब्रिगेजा भी चौंक पड़ा l



हुआ ये कि सविता के शब्द सुनते ही संग्राम के जिस्म में मानो विद्युत का सचार हुआ ।



भयानक तेजी के साथ वह झपटा ~ और इससे पूर्व कि कोई भी समझ सके…उसने उछलकर ब्रिगेजा की कनपटी पर रिवाल्बर रखा और चीखा---- "अगर कोई भी हिला तो मैं ब्रिगेंजा को गोली मार दूगा I” सभी स्तब्ध रह गए !



स्वयं ब्रिगेजा भी । किसी की समझ में सग्राम का यह परिर्बतन नही आया । अपनी रिवाॅल्बर का दबाव ब्रिगेजा की गर्दन पर बढाकर सग्राम गुर्राया ।



"प्रोफेसर हेमत के हाथ में वह अंगूठी नहीँ है उस पर एक सर्प बना हुआ है । तुम लोग शायद नकली हेमत दिखाकर मुझे और सविता को किसी षड्यंत्र मे फसाना चाहते हो । किंतु तुम मुझे अभी तक नहीं पहचानते प्यारे आग के बेटों और मिस्टर ब्रिगेंजा मेरा वास्तविक नाम सग्रामसिह नहीं बल्कि अलफांसे है ।"


" अलफांसे....ऽऽऽऽऽऽ......!"


लगभग सभी के मुख से आश्चर्य के साथ निकला l सभी लोग हैरत से उसे देख रहे थे l


अलफांसे फिर गुर्राया-" यस बेटे ब्रिगेजा मुझे अलफांसे कहते है । तुम्हें जो कहानी मेने सुनाई वह मेरी काल्पनिक कहानी के अतिरिक्त और भी नहीं थी । वास्तविकता ये है कि रैना भाभी के अपहरण के विषय सुनकर मै वहा पहुचा वहा कुछ भी नहीँ हुआ, फिर होटल सेविना पहुँचा मै जानता था कि यह होटल आग के बेटों का है । तुम्हारी नजरों में आने के लिए जिम्बोरा को परास्त करने का मुझें अच्छा अवसर मिला I आग के स्वामी तक पहुचने के लिए यह नितांत आवश्यक था कि मैं तुम्हें यह न वताऊ कि मै अलफासे हू क्योंकि यह बताने पर आग के बेटों वाले गिरोह मे लेने से इंकार कर देते !~~~~

तुमने सिर्फ ये समझा कि इस अधेड के पीछे वास्तविक चेहरा छुपा है । यह नहीं सोचा कि अधेड के मेकअप के नीचे भी एक मेकअप हैं और उसी मेकअप के पीछे मेरा वास्तविक चेहरा है-जौ अलफासे के अतिरिक्त किसी का नहीं I"


समस्त हाल इस रहस्योंदघाटन से स्तब्ध व सन्न रह गया-कोई कुछ करने को स्थिति मे न था अलफासे अत्यत सतर्क नजर आता था I



वह रिवाल्वर का दबाव बढाकर गुर्राया I



"बोलो कहा है असली प्रोफेसर ।"


सभी लोग स्तब्ध-से इस उल्टती हुई वाजी को देख रहे थे । इस रहस्य पर विकास भी आयर्चचक्ति था कि संग्राम वास्तव में उसके क्राइमर अकल अलफासे है । अभी अलफासे कुछ कहने ही वाला था कि ब्रिगेजा... बड़े रहस्यमय स्वर मे बोला ।



" मिस्टर अलफासे माना कि तुम आग के बेटों के अड्डे पर खडे हो…तुमने इस समय रिवाल्वर ब्रिगेजा की गुद्दी पर लगा रखा है जहा रिवाल्वर बेकार हो जाते हैं I" समस्त हाल इस समय ब्रिगेजा के रहस्यमय वाक्य में उलझकर रह गया…उनकी समझ में नहीं आया कि रिवाल्वर के साए में होने पर भी बिगेजा आखिर इतने दृढ. शब्द की प्रयोग कर रहा है ?


तभी अलफांसे गुर्राया. I


--"अघिक चालाक बनने की चेष्टा मत करो बेटे ब्रिगेजा, वर्ना ये गोली तुम्हें अतरिक्ष की सैर करा देगी I"



"कोशिश करके देख लो I" ब्रिगेजा रहस्यमय स्वर मे बोला…"ब्रिगेजा इतना मूर्ख नहीं कि कोई इस हाँल में पहली बार आए और वह उसके रिवॉल्वर में गोलियां छोड दे ।"



समस्त हाॅल व्रिगेजा की बातो का रहस्य समझ गया I अगले ही पल अलफासे आग के बेटों की कैद मे था I



विकास ने पहली बार अलफांसे को मात खाते देखा था I

और वास्तव मे आले ही पल जो हरकत ब्रिगेजा की वह इतनी आश्चर्यजनक थी कि हाल मे उपस्थित सभी व्यक्ति चोक पड़े-बल्कि इस प्रकार उछले-मानो अपनी आखो के सामने सागर को सूखते देख रहे हो । वास्तव में ब्रिगेंजा द्वारा किया गया यह कार्य अपने अदर इतने आश्चर्य समेटे हुए था कि प्रत्येक व्यक्ति की आखे हेरत से फैल गई । हुआ यह था कि न जाने ब्रिगेंजा ने क्या देखा था कि वह भयानक तेजी कै साथ झपटा इससे पूर्व कि कोई कुछ समझ पाता-ब्रिगेजा ने अपना रिबाल्बर निकालकर सविता के माथे पर लगा दिया और भयानकता के साथ गर्जा ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

"अगर किसी ने भी हिलने की कोशिश की तो मैं इस लडकी को गोली मार दूंगा ।" वास्तव में ब्रिगेजा की हरकत चौंका देने वाली थी-सभी आश्चर्यचकित रह गए । चौंककर आग का स्वामी बोला ।



"ब्रिगेंजा ये क्या पागलपन है इस लडकी से तुम्हारा क्या मतलब है ?”

"मेरा तो नहीं…कितु तुम्हारा सबध बहुत गहरा है बेटे आग के स्वामी I" ब्रिगेंजा सविता के माथे से रिबाल्बर सटाए चीखा…"बेटे लुमड़ मिया ।" इस बार ब्रिगेजा का स्वर बिलकुल ही परिवर्तित हो चुका था l समस्त हाल एक बार फिर इस नबीन रहस्योंद्घाटन पर आचर्यचकित रह गया । स्वयं अलफासे की आखें आश्चर्य से फैलती चली गई ।



ब्रिगेजा के मेकअप में विजय के अतिरिक्त कोई न था ।



विजय गर्जा-"बेटे लूमड़ मियां ! तुमने यह तो अवश्य देखा कि सामने बैठे प्रोफेसर हेमत की उगली में खानदानी अंगूठी नहीं है…कितु यह नही देखा कि यह अंगूठी स्टेज पर खडे उस नकाबपोश की उगली में है जो स्वय को आग का स्वामी बताता है I"


विजय के द्वारा खोला गया यह नवीन रहस्योंद्घाटन आश्चर्यजनक था । उसके कहते ही हाल मे उपस्थित व्यक्तियों की निगाहें उसकी और घूम गई । वास्तव मे वह अगूठी उसकी एक उंगली मे फंसी थी---जिस पर सर्प बना हुआ था ।

विजय के इस वाक्य पर घबराई-सी सविता भी चौक पडी और स्वामी की उगली मे अगुठी देखते ही बरबस ही उसके मुख से निकला------"डैडी.....ऽ.ऽ.ऽ.ऽ.ऽ.ऽ.ऽ....!"


उस मासूम लडकी. की. आखे आश्चर्य से फैल गई । उसे तो विश्वास ही नही हुआ कि उसके पिता इतना बडा. षड्यंत्र रच सकते हैं I वह फिर बोली…"डैडी आप. . .?"



-…"हा' बेटी, मैं. . !" आग के स्वामी के मुख से वह भर्राहट समाप्त हो गई थी-जो प्राय: रहा करती थी । ये शब्द वास्तव में प्रोफेसर हेमत के थे । समस्त हाल के लिए यह भी एक ऐसा रहस्योंद्घाटन था-जिसके खुलने पर लोग सन्न रह गए । आग के बेटों को भी आज पहली बार मालूम पड़ा कि उनका चीफ प्रोफेसर हेमत है ।




--"धांय...!" अचानक एक फायर की तीव्र ध्वनि ने हाल को न सिर्फ अपनी और आकर्षित कर लिया, बल्कि एक बार फिर सब चोक पड़े । सबने देखा-गोली उस आदमी के सीने में लगीं, थी जो नकली प्रोफेसर हेमत बना बैठा था…फिर सबकी निगाह उसके हत्यारे पर पडी, जो विकास के अतिरिक्त और कोईं न था ।



विकास लापरवाही के साथ… कुछ ऐसे अदाज में बैठा था क्रि मानो वह कोई भयानक शातिर रहा हो l अपने रिवॉल्वर से निकले धुएं पर फूंक मारता बोला ।


--'"ये नादान अपनी जेब से रिवाॅल्बर निकालकर आपकी शान मे गुस्ताखी करने क्री चेष्टा कर रहा था अकल I” कहने का ढग ऐसा था…'मानो विकास कोई बहुत बडा बुजुर्ग शातिर रहा हो और जिसके लिए खून कर देना एक रसमलाई खाने से अधिक महत्व न रखता हो । यहां तक कि स्वयं विजय भी उसके कहने पर मुस्कराया और फिर बोला ।


…"वेरी गुड भतीजे…अन्य सब पर भी निगाहें रखो ।


सिर्फ अपने साथियों को छोडकर तुम जानते हो कि मेरी टोली के कौन-से पाच आदमी हमारे हैं l"


समस्त हॉल इस समय आश्वर्यचकित था ।


स्वयं अलफासे इस बार चकित रह गया कि वह विजय को पहचान न सका । तभी स्वामी ने स्टेज से हिलना चाहा कि विजय गर्जा

"नहीँ प्रोफेसर हेमत-अब अगर कोई भी हरकत की तो अगली गोली तुम्हारी बेटी सविता के जिस्म में होगी I”


वाक्य सुनकर प्रोफेसर जहां-का-तहां रुक क्या l उसके पैरों में मानो बेडिंया पड. गई-विकास. के मेकअप में जो दुसरा साथी था.--वह बिकास का मेकअप उतार चुका था । वह भी एक खूबसूरत लडका था तथा उसके हाथ मेँ भी रिवाल्वर था ।


विकास-और वह पूरी तरह हाल के एक-एक आदमी पर नजर रखे हुए थे…विजय तो था ही पूर्णतया सतर्क ।

वह गर्जा ।

" …प्रोफेसर अपने चमचों से कहो कि लूमड़ प्यारे को मुक्त कर दे I" इस समय समस्त डोरियां विजय के हाथ मेँ थी प्रोफेसर हेमत की जान सविता के रूप में विजय की रिवॉल्वर की नोक पर थी । फिर भला वह विजय की आज्ञा का उल्लघन किस प्रकार कर सकता था ? अत: परिणामस्वरूप अलफ़ासे को आजाद कर दिया गया । आग के बेटे कुछ करना चाहते थे, किन्तु कुछ न कर पा रहे थे ।


यहां पर खुलने वाला प्रत्येक रहस्य हैरतअगेज था…अभी तक तो वे यह भी नहीं सोच पाए कि यह सब कैसे और क्या हो रहा है ? अचानक विजय फिर बोला ।



.…"प्यारे झानझरोखे-जरा हेमत मिया को कगन पहना दो ।" आग के बेटे के मेकअप में अशरफ प्रोफेसर के करीब पहुचा और उसका नकाब नोच लिया ।


अगले ही पल ! कोई समझ भी न पाया कि एक अन्य हौलनाक कारनामा । एक अन्य चौका देने वाली घटना. . इस बार विजय, अलफासे', बिकास तथा अन्य सभी धोखा खा गए ।


प्रोफेसर हेमत के निकट ही खड्रा स्वयं अशरफ भी कुछ न समझ पाया कि उसने अपनी बल्बयुक्त पोशाक से एक बल्ब निकालकर हाॅल मेँ फेक दिया । बल्ब के धरती से टकराते ही एक भयानक विस्फोट हुआ और चारों तरफ एक घुध सी छा गई, क्षणमात्र में सारे हाल मे अफरा-तफरी मच गई । अशरफ
फुर्ती से हेमत पर झपटा, किंतु वह खाली फर्श चाटता रह गया I

विजय ने सविता को वहीं छोडा और स्टेज की ओर ज़म्प लगा दी ।



अलफासे ने एक आग के बेटे को पकड़ लिया । विकास का रिबॉंल्बर निरंतर शोले उगल रहा था । तमाम हाँल में गहरी धूंघ व्याप्त हो गई थी


किसी को किसी का फ्ता न था । उसके बाद बल्ब गिरने के और भी धमाके हुए । धुआं और अधिक गहरा हो गया ।



~हेमत के जिस्म पर रोशन बल्ब भी शायद बुझ गए थे तभी तो इस धूंध मे किसी को नजर नहीँ आ रहा था । चारो और भयानक कोलाहल…फायर और चीखों की आबाज I एकदूसरे के खून के प्यासे इंसान-किन्तु भयानक धुएं से सभी परेशान... l कौन कहां है..? किसी को पता नहीं । अभी सविता कुछ समझ भी न पाई थी कि क्या हुआ ?

विजय उसे वही छोडकर धुए में विलुप्त हो गया I चारो ओर भयानक कोलाहल का साम्राज्य था-अचानक किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया और एक तरफ़ को घसीटता हुआ बोला I



…'"इघर आओ ।" सविता तुरत आवाज को पहचान गई, यह आवाज उसीके पिता प्रोफेसर हेमत्त के अतिरिक्त किसी और की न थ्री । वह चाहती तो नहीं थी, किन्तु खिंचती चली गई । खींचते हुए उसके पिता क्रिन्ही बटनों को दबाकर हाल से अलग ले गए-अब यहा धुआं न था । अत: अब अपने पिता को देख रही थी- रह-रहकर चीख रही थी और अपने पिता का विरोध कर रही थी, मगर ऐसा लगता, था जैसे प्रोफेसर हेमत पागल हो गए हे । वह सविता के चीखने पर लेशमात्र भी ध्यान-दिए बिना सिर्फ उसे खींचे लिए जा रहा था । उनके पीछे से अब भी फायर…चीखों और भयानक कोलाहल की आवाजे आ रही थी, इस बात का प्रमाण थी कि हाँल मे निरंतर जग जारी है I एक स्थान पर आकर उसके पिता ने एक बटन दबाया । उसके दबाते ही उस कमरे के बीच का थोड़ा-सा फर्श धीमी जैसी आवाज के साथ एक ओर को हट गया और वहां पर बनी लोहे की सीढिया नजर आने लगीं I सविता ने विरोध किया, किंतु हेमंत उसका हाथ पकड़े निरंतर सीढिया उतरता जा रहा था। लोहे की ये सीढ़ियाँ नीचे गुफा सी मे समाप्त थी । इस गुफा मे पानी भरा था । सीढियों का निचला भाग पानी ने विलुप्त हो रहा था I



पानी क्योंकि खारा था, अत: सविता देखते ही समझ गई कि पानी सागर का है । सीढियों के पास ही पानी पर स्टीमर तैर रहा था । वे दोनों सीढिया तय करके स्टीमर मेँ पहुच गए । स्टीमर में पहुचते ही हेमत ने सविता को छोड दिया और स्वय स्टीमर की रस्सिया खोलने लगे । ऐता प्रतीत होता था कि यह स्टीमर पहले ही सतर्कतावश यहां बाघकर रखा गया हो । सविता निरतऱ प्रत्येक. . . सभव तरीके से अपने पिता का विरोध कर रही थी, किंतु प्रोफेसर तो मानो पागल ही हो गया था । कुछ ही पलो में उसने-बह रस्सा खोल दिया । जिससे स्टीमर सीढियों के साथ बधा था…इघर सविता की निगाह स्टीमर पऱ रखी एक एल एम जी पर पडी । तुरत झपटकर बह उठा ली और जैसे ही प्रोफेसर हेमत रस्सा खोलकर घूमा, तो एकदम स्तब्ध रह गया ।


उनकी वेटी सविता उन्ही पर एल.एम.जी. ताने खडी. थी । उसके बाल बिखरे हुए थे…आखों में आसू…किन्तु चेहरे-पर दृढता-ज़बडे शक्ति के साथ एकदूसरे से भिचे हुऐ थे । इस समय वह भयानक बिफरी हुई शेरनी की भांति लग रही थी । उसे इस हालत में देखकर एक बार तो स्वय हेमत भी काप उठे फिर स्वय को सभालकर बोले l



"सविता-ये क्या बेवकूफी है ? यह एल एम जी है…खिलौना नहीं ।"



"यही तो में तुम्हें बताना चाहती हू देशद्रोही I” सविता खूनी निगाहों से अपने पिता को घूरती हुई बोली---"आगे मत बढ़ना--- याद रखना-'यह एल एम जी है कोई खिलौना नहीं । इसकी एक. गोली तुम्हारे लिए काफी होगीं I”


" ये तुम क्या कह रही हो वेटी-कही तुम पागल तो नही ही गई हो ?" चौंककर प्रोफेसर बोले ।

"नहीं...... I" सविता पूर्ण शक्ति के साथ चीखी…"मुझे वेटी मत कहो, मै तुम्हारी बेटी नहीँ हो सकती । तुम मेरे पिता नहीं एक भयानक देशद्रोही हो-ऐसे देशद्रोही जिसने भारत माता की गोद में पलकर उसी के साथ गद्दारी की… तुमसा नीच कोई नहीं हो सकता देशद्राही व्यक्ति I” न जाने कौन सी दुनिया में खोई हुईं सविता चीख रही थी । उसके वाक्य और कटु शब्द सुनकर प्रोफेसर स्तब्ध रह गए -बल्कि उन्हें तीव्र ग्लानि हो गई-किन्तु फिर भी वह स्थिति को सभालने का प्रयास करते हुए बोले ।



"क्यों बेकार की बात कर रही हो । कोई आ जाएगा I" कहते हुए वे आगे बढे ।



~ "वहीँ ठहर जाओ…देश के शत्रु..... !" सविता गुर्राई---"तुम्हें अपना पिता कहते हुए मुझे शर्म आती हे…वही ठहर जाओ देशद्रोही--वर्ना गोली मार दूगी ।"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

"आज तक किसी बेटी ने अपने बाप क्रो मारा है जो तुम मार दोगी I" प्रोफेसर यू ही आगें बढा किन्तु तभी. भयानक शेरनी की भांति सविता थोडी पीछे हटकर गर्जी---- "आज भी एक बेटी आपने बाप को नहीं मारेगी-बल्कि भारत… मां की वीर लाडली भारत मा के उस कपूत को मार देगी…जिसने भारत मा के दूध की कीमत उसी के साथ गद्दारी करके चुकाई है । वहीँ ठहर जाइए डैडी वर्ना ये अंतिम चेतावनी होगी ।"



"बको मत सविता ।” चीखते हुए प्रोफेसर उसकी ओर बढे…कितु I



-धांय ।


क्षणमात्र मे सविता के हाथ मै दबी एल एम जी से निकला एक शोला प्रोफेसर हेमत की छाती में प्रविष्ट हो गया । प्रोफेसर के चेहरे पर मानो समस्त संसार का आश्चर्य सिमट आया था । वास्तव में मरते हुए इस अतिम समय मै भी उन्हें विश्वास नहीँ आ रह्य था कि यह गोली उनकी बेटी सविता ने ही चलाई- हैरत से आखें फाडे वे लहराकर गिरे और उनके मुख से अतिम शब्द निकला---" सविता बेटी !"

उसने आसुओं से भरा चेहरा ऊपर उठाया तो वहा अपने उसी भाई को पाया…जो वास्तव में अलफांसे था । उसे देखते ही सविता ने फिर. एल.. एम जी उठाई और अपने ही माथे से नाल सटाकर बोली…"अपनी बहन को क्षमा करना भैया ।"


और......


--धांय !


"सविता......ऽऽऽऽऽऽ!" अलफांसे शक्ति से चीखा ।



कितु अब तो सविता. इस ससार से बहुत. दूर जा चुकी . थी । उसकी लाश भी उसके पिता के पास ही पडी थी ।


अलफांसे जैसा व्यक्ति भी दहल गया ।



★★★★★

यह. रघुनाथ की कोठी का एक कमरा था । इस कमरे में विजय और विकास के अतिरिक्त. विकास का वह-दोस्त; जो नकली विकास बना था और रघुनाथ के साथ रैना भी बैठी थी । रैना और रघुनाथ विकास के इस प्रकार गायब हो जाने पर परेशान थे । किन्तु इस समय वह सबके बीच बैठा हुआ अपनी कहानी सुना रहा था । ~


…"'हा तो झकझकिए अकल-बात ये थी कि जब मैंने प्रोफेसर क्रो उस स्टार से डराया तो मुझे लगा कि मेरे साथ कोई दुर्घटना होगी । अत सतर्कता के नाते मैंने अपने दोस्त प्रकाश पर अपना मेकअप किया-मैने, प्रकाश से कहा था कि कुछ भी बोलेगा नहीं क्योकि वह मेरी आवाज़ में बोल नहीं सकता था । इसने कैद में सिर्फ मुझसे बातें की ।"



. अब आग के बेटे वाला केस समाप्तप्राय हो गया था ।


विजय के निर्देश पर रघुनाथ पहले ही सेविना होटल में उपस्थित था ।


गोलियो की आवाज होते ही रघुनाथ ने विजय के बताए अनुसार सारा काम कर दिया । कुछ आग के बेटे मृत्यु को प्राप्त हुए…कुछ पकडे गए स्टीमर में पडी हेमत और सविता की लाशें मिली…किंतु अलफासे का कहीं पता न था । इस केस में वह आधी की भाति आया और तूफान की भांति गायब हो गया ।


तभी I -



'"खैर प्यारे तुलारशि ।" विजय बोला…" बात ये है कि अब हम भी तुम्हें अपनी हरकतों कीं सक्षिप्त कथा सुनाते हैँ । बात यह हुई कि हम यानी विजय दी ग्रेट को उन . लोगों ने कैद कर लिया । हम वहा सिर्फ एक रात और एक दिन रहे । अक्सर हमारे पास वह ब्रिगेंजा नामक व्यक्ति आया करता था । अतः दूसरी रात का श्रीगणेश होते ही हमने अच्छा अवसर जानकर बेचारे को उस समय धर दबोचा-ज़ब वह हमारे लिए-खाना लाया---अब जनाब, हमने उससे सारी जानकारिंया ले ली l जैसे आग के बेटों' में उसका क्या स्थान और नबर हैं ? यह अड्डा कहा हे इत्यादिं । खैर उसे दुनिया से मोक्ष दिलाकर हमने अपनी गुप्त जेब से मेकअप का पिटारा निकाला और स्वय को ब्रिगेंजा बना लिया । उस समय बिगेजा को अपने कपडे पहनाकर
कोठरी में डाल दिया । उपयुक्त अवसर मिलते ही ब्रिगेंजा की . लाश को लेकर गुप्त रूप से रघु डार्लिग तुम्हारे पास आया और तुम्हें बताया कि आग के बेटों का गुप्त अड्डा सेविना होटल के नीचे है । तुम जानते हो कि सेविना होटल सागरीय तट पर है और. जब उस अघेड़ के मेकअप में हमारे लूमड़ प्यारे ने. उस साले नीग्रो को कमा दिया…ब्रिगेंजा होने के नाते मैंने उसे गिरंफ्तार कर लिया । यहा यह कहने से नहीं चूकूगा कि इस बार यह आचर्य की बात रही कि न तो मैं लूमड को पहचान सका और न लूमड मुझे । उसने मुझे ब्रिगेजा समझकर ऐसी कहानी सुनाई…जिस पर मुझे विश्वास हो गया, किन्तु हमने जो उसे अपने कमरे के बारे में उल्टपटांग बताया तो उसे भी बिश्वास . हो गया; और झूठ भी सफल हो गया । वास्तविकता ये थी कि उस कमरे में कुर्सी के ऊपर उठने के अतिरिक्त कोई विशेषता नहीं थी । खैर उसके बाद तुम जानते हो क्या-क्या पवाडे फैले ।

"लेकिन अकल यह तो आपने बताया ही नहीं कि आपके साथ वे पाच आदमी कौन थे…जो आपके साथ थे ?” विकास बोला ।


"अबे ओ मिया दिलजले जब तुम्हें मालूम है कि वह रिवाल्वर बनाकर हमने तुम्हें सरलता से दे दिया तो पूछ क्यों रहे हो ? रही उन माच आदमियों की बात तो प्यारे वे अपने यार थे जो खुदा को प्यारे हो गए ।" बिजय ने अपने अंतिम शब्द झूठ बोले । वास्तव में वे पार्चों सीक्रेट सर्विस के सदस्य थे जिन्हें पाच आग के बेटे मारकर साथ ले लिया गया था और. अब केस की समाप्ति पर सुरक्षित अपने घर चले गए थे, क्रितु' यह बात वह रघुनाथ इत्यादि के सामने कैसे खोल सकता था ? तभी एक नौकर अदर आया और विजय के हाथ में एक बडा-सा लिफाफा
थमाकर बोला "ये आपके लिए मेमसाब दे गई हैं !"


सबने उत्सुकता से देखा ऊपर लिखा था…मिसेज जैक्सन की और से विजय कै लिए !!


पढकर विजय के होंठ सीटी बजाने के अदाज में सिकड गए…"मुझे पहले ही आशा थी ।" और तब जबकि जैक्सन का वह पत्र खोलकर पढा गया ।

पत्र कुछ इस प्रकार था।


प्यारे दोस्त विजय,


यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ कि तुमने आग के समाप्त कर दिए । किन्तु तुम लोगों के दिमाग में ऐसे कितनै ही रहस्य घूम रहे होगे ~ जिनका उतर तुम्हें नहीं मालुम. . .उन्हीं प्रश्नों के उतर में तुम्हें दै रही हू ।


सबसे पहले तुम्हें यह बताना अपना फर्ज समझूगी का दहकते शहर वाले अभियान मे अपने मर्डरलैड मे अम्लराज के हौज में कूदने कै पश्चात मैं जीवित कैसे बच गई । बात ये हैं कि तुम्हें याद होगा कि मैंने स्पेस में बसे मर्डरलेंड में कहा था कि धरती पर चाहै वह वस्तु भले ही न हो----जिसे अमलराज न घोल सके किंतु स्पेस में वह धातु' हैं । मैंने उसी धातु का कबच पहन रखा था । सिर्फ आखें ही नंगी थीं तो जब कुदी तो आखों' पर भी वही कबच पहन लिया था ।


खैर, अब मैं तुम्हें आग के बेटे वाले कैस कै विषय मे कुछ बताती हुँ । बात ये है कि आग के बेटे मेरे सेवक थे । प्रोफेसर हेमंत मेरा सेवक था । उसने अपने बैज्ञानिक दिमाग से ही आग के बेटों का निर्माण किया और मेरी सेवा करनै लगा । इस समय मै नये मर्डरलैड की स्थापना कर रही हूं --अतः धन की अवश्यकता है…बैक का खजाना मर्डरलैड पहुच चूका है ।

हेमत जैसै मेरे अनेक सेवक अपने भिन्न भिन्न तरीकों से मर्डरलेंड के लिए समस्त धरती से धन एकत्रित कर रहे है । शीघ्र ही मर्डरलैड तैयार हो जाऐगा , मै वहाँ तुम्हें बुलाऊगी ।


खेर...अब मैं रहस्य खोलने शुरू करती हू । सबने पहली घटना याद करो । बैक मैनेजर कै पास जो लड्डी आई ओर बाद मे धूआ बन गई-वह मैं स्वयं थी । धूआ बनकर कैसे उड गई वो मै तुम्हें अगली मुलाकात मे बताऊगी । खेर. ..आगे बढो । बैक मे विजली के स्विच के पास तुम्हें बेहोश करने वाली मै खुद थी .. .वैसै उस समय मैं अदृश्य थी । रघुनाथ की कोठी कै पीछे वाली गली में अदृश्य होकर बिषैली सुइयाँ सै स्वयं मैंनै ही पाच आग के बेटों को मारा क्योंकि उनका बचकर भागना असंभब हो गया था ।

नाटें के रूप मे विकास डिक्की मे चढ़ा....तब तक मै मर्डरलैड मे रखी स्क्रीन सै देखती रहती थी--- किन्तु जैसे ही मैंने हेमंत को छोड़ दूसरे सेवको का निरिक्षण किया ।
तुम लोगों ने मर्डरलैड की आय का स्त्रोत खत्म कर दिया ।

बैसे ये आग के बेटे कोई बिषेश बात न थी । बे जीवित इंसान होते --- जो बुलेट-प्रूफ कबच पहनकर उपर से @ ऐस्बेस्टाॅस @ के कपडे, पहन लेते थे तथा पैट्रोल छिडकर आग लगा लेते थे ।


ऐस्बेस्टाॅस के कपडे होने के नाते इसानो पर आग का कोई प्रभाव नही पडता था ।


अपना काम खत्म होते ही ये सागर मे उतर जाते थे । जहाँ से इन्हें पनडुब्बियो के जरिए सेविना के नीचे बसे अड्डो पर ले जाया जाता । अड्डे और सागर का वही रास्ता था जहाँ हेमंत और उस लड़की की लाश पाई गई थी ।


अंत मे सिर्फ एक ही बात रह जाती है वह यह है कि विकास द्वारा प्रोफेसर हेमंत को भयभीत करना । इससे यह तो स्पष्ट होगया की विकास को किसी तरह मालूम हो गया था कि हेमंत मर्डरलैड का नागरिक है,
किन्तु इस बात नै मुझे भी चकरा दिया था कि इसे कैसे मालुम हो गया ?? उसे शक हो गया कि कही तुम लोग ये न समझ बैठो कि वास्तव में आग के बेटों का स्वामी वही है इसलिए उसने अपहरण का ये ठोंग रचा, जबकि इसी में वह मारा गया । सिर्फ एक आदमी जानता था कि आग का स्वामी हेमंत है और वह वही था जो नक्ली हेमंत बना था
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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

बिकास का अपहरण भी उसने इसलिए किया था कि आगे उसके मार्ग में न आ सके ।/खैर. . बैसे यह पत्र मैं बहुत जल्दी में लिख रही हू --- वेसै तो मैंनै सब खोल दिया है, कितु जो रह गया है बह अगली मुलाकात मे पूछ सकते हो ।

अच्छा अलविदा --- विकास को मैरी तरफ सै बहुत-बहुत प्यार!!!!



प्रिसेज ऑफ---मर्डरलैड ।।

जैक्सन


""क्यो मियां दिलज़ले !" पत्र पढने के बाद बिजय विकास से बोला.-"तुम्हें कैसे मालूम हुआ था कि हेमत मर्डरलेड का नागरिक है अथवा उससे सबधित है ?"



"जब मैं भी आपके' पीछे गया था अकल तो मैंने की-होल से झांककर कमरे में देखा…उस समय प्रोफेसर , अपनी कमीज पहन रहे थे…अत: मैंने उनकी नयी' पीठ पर बना स्टार देखा था जो मर्डरलैड की नागरिकता का प्रमाण है ।"


अवाक-सा विजय विकास के चेहरे को देखता रहा गया । कदम-कदम पर इस लडके ने उसे हैरत में डाल दिया था ।


समाप्त
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Re: आग के बेटे / complete

Post by shabi »

Bhai Vijay vikas series me kuch aur post kariye
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