आग के बेटे / complete

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आग के बेटे / complete

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आग के बेटे / vedprkash sharma

विजय विकास अलफांसे सीरिज


आतक की छाया ने लगभग. आधे घटे में ही समस्त राजनगर को आगोश में ले लिया ।


भय की लहर राजनगर के निवासियों में कुछ इस तीव्रता और भयानकता के साथ व्याप्त हुईं-मानो प्लेग का रोग रहा हो । जिस चेहरे पर दृष्टि जाती वही पीला नजर आता ।


प्रत्येक मुखडे पर भय एव आश्चर्य के सयुक्त भाव दृष्टिगोचर होते......!!



राजनगर का समस्त कार्य अस्त-व्यस्त हो गया l



लोगों का ध्यान अपने कर्तव्यों से हटकर इस विचित्र-आश्चर्यजनक ओर भयावह घटना की ओर हो गया ।



जहा देखो एक ही चर्चा-जिघर जाओ डरावने चेहरे दीखते ।


स्थान…स्थानं पर लोगों के जत्थे जगह-जगह आदमियों' की भीड भिन्न-मिन्न आयु के बच्चे बूढे ज़बान स्त्री पुरुष बहादुर व कायर इत्यादि सभी इस विचित्र-से चैलेंज के बिषय मेँ सोच रहे थे । तर्क-वितर्क कर रहे थे ।


घडी की सुइया तेजी के साथ बढ रही थीं । साथ ही बढ रही थी लोगों की उत्सुक्ता । साथ ही उनके दिल तीव्र वेग के साथ धडक रहे थे । वे देखना चाहते थे-उस विचित्र और ~ साहसी चैलेंज का परिणाम-चैलेंज समस्त राजनगर को भयानक चेलेंज I

अभी.....!!


अब से ठीक एक घटा पहले-यानी साढे ग्यारह बजे तक तो सब कुछ सामान्य था । उसी प्रकार सामान्य-जैसे प्रतिदिन रहता था । सभी अपने कार्यो मे व्यस्त थे…किन्तु ठीक बारह बजे

आज का बारह बजना मानो कहर था ।


बात का श्रीगणेश भी कम आश्चर्यजनक नहीं था I सर्वप्रथम भय और आतक की इस लहर ने जन्म लिया था स्जिर्व बेक आफ इडिया से । यह बेक राज़नगर का सर्व-सुरक्षित बैंक था और चैलेंज था न सिर्फ उसकी सुरक्षा को…बल्कि समस्त सरकारी अफसरों और राजनगरवासियों को ।


ठीक उस समय-जब रिजर्व बेक का मेनेजर अपने कमरे मे बैठा एक मोटे-से रजिस्टर को ध्यान से देख रहा था कि एक मधुर ध्वनि ने उसकी तद्रा भग की…"मे आई कम इन सर?"




मेनेजर महोदय की "उगलियों में फसा' सिगार का टुकड़ा गिरते-गिरते बचा ।


चोककर उन्होंने दरवाजे पर देखा तो सामने एक हसीन युवती को मुस्कराते हुए पाया ।


उसके मुस्कराने कै अदाज से लगता था.…"मानो वह अब भी अदर आने की आज्ञा चाहती हो । उसकी आयु बीस और बाईस के बीच थी l जिस्म पर एक मिनी स्कर्ट…जिसमें से उसकी गोरी और गोल जधाए स्पष्ट दिखाई दे रही थीं ।


मैनेजर ने स्वय' को सभाला और बोला.…"आइए…आइए...!"


कमर को लचकाती हुई वह कमरे में प्रविष्ट हो गई ।


मैनेजर ने अपनी नाक पर रखे चश्मे को निश्चित स्थान पर जमाते हुए कहा-"वैठिए ।"


वह इठलाती-सी बैठ गई ।।



-…'"कहिए, आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?"


प्रत्युत्तर-मे उस युवती ने कुछ नहीं कहा…बल्कि चुपचाप, किन्तु लापरवाही का प्रदर्शन करते हुए उसने एक सिगरेट निकाली और अधरों के बीच फंसाकर इस प्रकार मैनेजर से माचिस मांगी । मानो उसने मैनेजर द्वारा पूछे गए प्रश्व को सुना ही न हो ।


मेनेजर ने भी चुपचाप लाइटर उसकी और बढा दिया ।

माचिस के स्थान पर लाइटर देखकर युवती कै अधरों पर एक विचित्र-सी मुस्कान ने जन्म लिया, -किन्तु उसने चुपचाप सिगरेट सुलगाकर लाइटर उसकी ओर बढाया----लाइटर हाथ मे लेते ही मैनेजर चौक पडा । उसके भीतर हल्का सा भय उजागर हुआ ।

लाइटर के चारों ओर एक लाल…सुर्ख कागज लिपटा हुआ था । मैनेजर ने कागज को देखकर प्रश्नवाचक निगाहों से युवती को देखा, किंतु देखते ही उसके… मस्तिष्क मे खतरे की घंटियां घनघनाने लर्गी । वह आश्चर्य के सागर मे गोते लगाने लगा ।


उसने गोर से सामने बैठी युवती को देखा…आश्वर्य से उसकी आखें फैव गई । उसका चेहरा पीला पड गया था।

उसकै सामने कुर्सी पर बैठी युवती के जिस्म के पोर पोर से धुआं निकल रहा था l


नीले और सुनहरे रग का एक विचित्र-सा सयुक्त धुआ --- कुछ इस तरह की धीमी आवाज कमरे मे गूजने लगी…मानो अनेक मक्खियां सयुक्त रूप से भिनभिना रही हो ।



भिनभिनाहट कुछ तेज होती जा रही थी और साथ ही जिस्म से निकलने वाला धुआं भी तेज होता जा रहा था ।
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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

मैनेजर के आश्चर्य की कोई सीमा नही थी । वह अवाक्-सा, जीती-जागती युवती को घुएं मे परिवर्तित होते देख रहा था ।


उसके लिए क्या, वल्कि सारे साधारण मानवों के लिए यह विश्व का महानतम आश्चर्य था ।


मैनेजर के देखते-ही-देखते वह लडकी धुएं मेँ परिवर्तित हो गई I अब उसके सामने वाली कुर्सी पर उसं युवती के स्थान पर धुएं की मानव आकृति विराजमान थी ।



मैनेजर कै मुह से एक आवाज तक न निकली-उसके देखते-ही-देखत्ते विचित्र धुएं की मानव आकृति कुर्सी से उठी और वायु की भाति तैरती-सी दरवाजे की और बढी ।



एकाएक मैनेजर को जैसे होश आया । वह भी तुरत अपनी कुर्सी से उछल पडा. और भयभीत होकर भयानक तरीके से चीखा-"भूत....भूत. ..भूत,..बचाओ...!" वह चीखता हुआ वायु में तैरते धुएं की ओर लपका ।।


तब तक धुआ कमरे से बाहर जा चुका था I मैनेजर की चीख-पुकार सुनकर सारे बैक में हंगामा-सा मच गया ।


बदुकधारी मेनेजर के कमरे की ओर लपके ।


कैशियर के कान खडे हो गए ।


तभी चीखता हुआ मैनेजर अपने कमरे से बाहर आ गया I



उसकी स्थिति पागलों जैसी हो गई थी I वह वायु में तैरते उस घुए को देख कर चीखा…"ये वही लडकी हैं जो अभी मेरे कमरे में आई था…गोली चलाओ I"


बदूकधारी ही नहीं बल्कि सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि किसी ने भी किसी युवती को मेनेजर के कमरे में प्रबिष्ट होते नहीँ देखा था और दुसरी बात ये कि मैनेजर धुएं मे लडकी की सज्ञा दे रहा था । एक बार को तो सबके मस्तिष्क में आया कि कही ये मेनेजर पागल तो नहीँ हो गया है .?


किंतु ये बिचार अधिक समय तक उनके मस्तिष्क मे न रह सका, क्योंकि उस घुए का रग और वायु में तैरने का ढग कुछ बिचित्र-सा था ।


उपस्थित तमाम लोग आश्चर्य के साथ उस धुए को देख रहे थे ।



तभी मैनेजर चीखा…"गोली चलाओ |”


बदूकधारी मानो अभी तक अचेत थे…उनकी चेतना वापस आई, उन्होने बंदूक सीधी की…"घांय . .धाय. . . I.



समस्त वातावरण गोलियों की आवाज से थर्रा उठा ।


किंतु परिणाम देखकर समी लोर्गों की आखे हैरत से फैल गई । चेहरे बर्फ की भाति सफेद पढ़ गए ।


धुएं पर गोलियों का कोई प्रभाव न हुआ था । गोलिया घुए कै बीच से बिना रुकावट के पार हो गई ।


किसी ने छत पर लगी रांड तोडी तो कोई दीवर से लगकर शहीद हो गई । सारे बेक मे हंगामा खड़ा हो गया l


फायरों की आवाज ने सडक पर जाते लोगों के पैरों में बेडिया डाल दी । सभी लोग बदहवास-से हो गए ।


मेनेजर तो पागलों की भांति चीख रहा था ।


आश्चर्य और भय ही व्याप्त रहा और अजीब रग का वह अजीब धुआ बैक के सदर द्धार से यू ही वायु में तैरता हुआ बाहर आ गया I


हजारों लोगों ने हैरत के साथ उस धुंए को देखा ।
कुछ शरारती युवको ने अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए उस धुए पर कुछ पत्थर फेंके किन्तु परिणाम वही ढाक के तीन पात I लोगों के देखते-ही देखते धुआ वायुमडल में ऊचा उठता चला गया और कुछ ही क्षणों मे वह लोगों की आखों से ओझल......हो गया I


अब धुआ नज़र नहीं आ रहा था ।


उपस्थित व्यक्तियों के चेहरे पर हैरत के भाव थे । सब लोगों ने आश्वर्यपूर्ण निगाहों से एक…दूसरे क्रो देखा…मानो एक-दूसरे से पूछ रहे हो कि क्या तुम घुए का मतलब समझते ‘हो ? किंतु प्रत्येक चेहरा सिर्फ पूछ रहा था , उत्तर देना किसी के बस का रोग नही था ।।


मैनेजर तो मानो पागल हो गया था । पागलों की भाति दौडता, हुआ वह अपने कमरे मे पहुचा तुरत पुलिस स्टेशन से सबध स्थापित करके हडबडाते हुए दूटे-फूटे शब्दों मेँ समस्त धटना सक्षेप मे बताई!

~~~ दुसरी ओर सुनने वाले रघुनाथ को लगा कि या तो यह मैनेजर पागल हो गया अथवा कोई भयानकतम अपराधी सामने आ रहा है l


खैर मेनेजर को कुछ-सात्वना दी और घटनास्थल पर पहुंचने के लिए कहकर सबध विच्छेद कर दिया ।



मैनेजर को दुसरी ओर से फोन रखने की ध्वनि ऐसी लगी-मानो कहीँ आसपास बम गिरा हो l



तभी उसके कानों में बाहर से तेज शोर की ध्वनि पडी । वह भी फुर्ती के साथ कमरे से बाहर निकालकर सदर दरवाजे की ओर लपका ।



बाहर लोगों की भीड बैक के अदर प्रविष्ट होना चाहती थी, लेकिन बैक कै बंदूकधारी उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे । इस विरोध मे लोगों की भीड एक तेज शोर की उत्पत्ति कर रही थी । मेनेजर का समस्त जिस्म पसीने से लथपथ हौ गया । एक तो वेसे ही युवती के धुए मे परिवर्तित होने वाली घटना से बदहवास था…ऊपर से लोगों की इस बेवकूफी' ने उसकी बदहवासी को यौवन पर पहुचा दिया ।


लोगों का शौर क्षण-प्रतिक्षण तीव्र रुप धारण करता जा रहा था ।
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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

Post by 007 »

घटना के केवल पाच मिनट पश्चात रघुनाथ सज-धज़ कर घटनास्थल पर पहुच गया और उफनती भीड़ पर काबू पाया ।


जब रघुनाथ मैनेजर के पास पहुचा-उस समय उसकी स्थिति पागलों जैसी हो रही थी । रघुनाथ को इस बात में कोई सदेह नही रह गया था कि वास्तव मे यहां वह अनहोनी धटना घटी है ।


मैनेजर उसे अपने कमरे में ले गया । रघुनाथ सामने उसी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, जिस पर वह युवती. आकर बैठी थी…जो बाद में एक आश्चर्य बन गई ।



…"अब आप मुझे सारी घटना विस्तारपूर्वक बताइए ।”


मैनेजर अब तक स्वयं पर सयम पा चुका था । जेब से रूमाल निकालकर उसने -पसीना पोछा और फिर रघुनाथ के प्रश्न के उत्तर में लहजे को सतुलित करने का प्रयास करते हुए बोला…"'मैं बैठा हुआ था कि अचानक वह युवती आई. . .।"



तत्पश्चात मैनेजर ने सपूर्ण घटना विवरण सहित रघुनाथ को सुना दी ।


जिसे सुनकर स्वयं रघुनाथ को ऐसा लगा…जैसे उसकी खोपडी हवा मे चक्कर लगा रही हो ।


साऱी घटना आश्चर्य से परिपूर्ण थी l


समस्त घटना सुनाने के बाद मैनेजर स्वयं ही आश्चर्य के साथ बोला-"लेकिन एक अन्य बात ने मुझे हैरत में डाल दिया I"


" क्या ?" रघुनाथ उसकी ओर देखकर बोला I


"यही कि बैंक कै बदूकघारी ही नहीं, समस्त कर्मचारिर्यों कै बयान ये हैं कि उन्होंने किसी लडकी को मेरे कमरे मे प्रविष्ट होते हुए नहीँ देखा।"


" क्या तुम उस लडकी का हुलिया बता सकते हो ?"


उत्तर में मेनेजर ने हुलिया बताना शुरू किया तो जनाब हुलिए के स्थान पर उसके सौंदर्य का गुणगान अधिक करने लगे ।



जब रघुनाथ ने अनुभव किया कि अगर उसने न टोका तो , मेनेजर महोदय उस लडकीं की इतनी प्रशंसा करेगे कि अगर इस समय वह कहीं भी होगी तो वही बैठी-बैठी पानी दो जाए ।

अत रघुनाथ ने बुरा-सा मुह बनाया और मेनेजर से बोलती पर ढक्कन लगाने के लिए कहा।


मेनेजर की चोंच एकदम बद हो गई I


रघुनाथ ने मैनेजर से अगला प्रश्न किया---"वह लाइटर कहाँ है जिस पर उस लडकी ने लाल कागज लपेटकर तुम्हें वापस किया था ?"



"जीं.....!" मैनेजर एकदम चोका-उसे तो बिल्कुल ही भूल गया घबराहट में वह कहीँ गिर गया , यहीँ कही होगा I" मैनेजर कुर्सी से एकदम उठता हुआ बोला ।


रघुनाथ ने भी मेज के नीचे झाका देखा l


तभी उसकी दृष्टि सिगरेट पर पड गई…जो लगभग पूरी थी और अब बुझ चुकी थी ।



रघुनाथ ने उसे सावधानी के साथ रूमाल से उठाया और ध्यान से देखा तो पाया कि सिगरेट के फिल्टर वाले भाग पर लिपस्टिक के चिह्न थे ।


"ये सिगरेट यहा किसने पी ?” रघुनाथ ने पूछा l


"ये उसी लडकी ने पी थी ।" मैनेजर के चेहरे पर सिगरेट को देखते ही फिर पसीने को बूदे उभर आई ।


रघुनाथ ने चुपचाप सिगरेट जेब में रख ली फिर लाइटर की खोज जारी हो गई l


अधिक कठिनाई उठाए बिना ही. दरवाजे कै पास पड़ा लाइटर मिल गया । लाल कागज अभी तक उसके चारों और लिपटा हुआ था I



रघुनाथ ने वह कागज उठाया और पढा ।


पढते-पढते. ही रघूनाथ की आखों मे गहन आश्चर्य उभर आया । ऐसा लगता था वह अत्यंत परेशान हो गया हो । वह… उस पत्र को देखता ही रह गया । सबसे अघिक आश्चर्य उसे पत्र में लिखे नीचे वाले शब्द पर हो रहा था । यह पत्र भेजने वाले का नाम था जो आश्चर्य से परिपूर्ण था I वह उन्ही शब्दों को घूरे जा रहा था और कोई अर्थ निकालने की चेष्टा कर रहा था किन्तु वह कुछ समझ नहीं पा रहा था ।


पत्र मैनेजर ने भी पढ लिया था और उसकी स्थिति तो उस बालक जैसी थी, जिसे किसी हाथी ने सूड से लपेट लिया हो ।।

उसे लगा जैसे यह सब. यथार्थ. नहीं, बल्कि… वह कोई भयानक स्वप्न देख रहा है । उसकी निगाह भी पत्र के अंतिम शब्दों पर ही स्थिर होकर रह गई थी ।


मस्तिष्क में बार-बार वही शब्द टकरा रहे थे, किन्तु उनका अर्थ मीलों दुर था । वास्तव मे शब्द आश्वर्यपूर्ण थे।
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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

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रघुनाथ ने पत्र से दृष्टि हटाकर तुरत घडी पर निगाह मारी और फोन उठा लिया, तुरत शहर के इस्पेक्टर जनरल ठाकुर साहब से संबघ स्थापित. करके उसने उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया और अत में सारा पत्र पढकर सुनाया तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए


और …



उन्होंने तुरन्त रघुनाथ को चेतावनी दी कि वह स्वयं वहीं रहे ।


उसके बाद. . .!


राजनगर के सरकारी महकमों की घंटियां घनघनाने लगी ।



जो सुनता…आश्वर्य के सागर में गोते लगाने लगता-समस्त समाचार प्लेग की भाति ही राजनगर के . कोने कोने में व्याप्त हो गया…


चारो तरफ भय और आतक छा गया । जो पहली बार सुनता-सबसे पहले वह घडी. देखता और फिर रिजर्व बैक की और का रुख करता I

शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा रहा हो जिसने ये समाचार इस एक घंटे के अतर्गत सुन न . लिया हो और ऐसा व्यक्ति भी शायद ही कोई हो जिसने सुनते ही दातों तले उंगली न दबा ली हो ।


समस्त राजनगर बुरी तरह आतकिंत हो गया ।


भय और आतक का साम्राज्य फैल गया । एक बिचित्र-सा आतक छा गया' चारों और ।


राजनगर के समस्त बाजार बद होने लगे थे । लोग वास्तव मे अत्यंत -भयभीत हो चुके थे । सबकी निगाहे घडियों. पर . जमी हुई थी ।


~ फोन की घटिया रग लाई. । देखते-ही देखते सेना के ट्रक राजनगर की सडकों. को रौंदने लगे l सैनिक-हीँ-सैनिक सारे -राजनगर पर छा गए । रिजर्व बैक के चारों ओर सेनिक कुछ इस प्रकार छित्तरे हुए थे....मानो, शहर के चारों और मधुमक्खियाँ बैक के अदर-बाहर चारो ओर सैनिक-ही-सैनिक I


ऐसा प्रतीत होता था…मानो किसी भयानक युद्ध की तैयारी चल रही हो । ऐसा लगता था…"जैसे घडी. की सुइयां इस समय निरतर और तीव्र वेग से आगे बढ रही हों । पिछले कुछ ही क्षणों में भयानक कहानी ने जन्म लिया था


_ और आने वाले कुछ ही क्षण मानो मोत का पैगाम देना चाहते थे,,भयानक खतरों कै प्रतीक थे । आने वाले कुछ क्षण मानो भयानकता की चरम सीमा को स्पर्श कर जाएगे l भयानक चेलेंज, किंतु चैलेंज का परिणाम ?


एक प्रश्नचिह्न बनकर सभी के मस्तिष्क पर मानो चिपक गया था I

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" सर, यह है वह लाल कागज-जो उस लडकी ने बैक मेनेजर को लाइटर के ऊपर लपेटकर दिया था ।" सीक्रेट सर्विस के चीफ ब्लैक ब्वाॅय ने वही लाल कागज विजय की ओर बढाते हुए कहा ।



"वो तो ठीक है प्यारे काले लडके लेकिन सवाल ये है कि क्या मामला वास्तव में इतना गभीर हैं कि विजय दी ग्रेट यानी हमारी आवश्यकता आ पडी ?” विजय लाल कागज हाथ
में लेता हुआ बोला ।



--"आप तो सब कुछ जानते ही हैं ।" ब्लैक ब्वाॅय आगे बोला--" अभी केवल एक घटे पूर्व से ही राजनगर में किस प्रकार आतक्र छा गया है ? सर वास्तव मे यह घटना अपने ढग की एकदम नई और अनोखी घटना है । इस पत्र को पढकर आप भी उस अपराधी के साहस की दाद देगे और सबसे अधिक आश्चर्यजनक तो इस पत्र में लिखे अतिम शब्द हैं । इस पत्र कै प्राप्त होते ही समस्त राजनगर में सेनिक तैनात कर दिए गए है । लोग भयभीत हैं l गृह मन्त्रालय से स्वय गृहमत्री ने स्रीक्रेट सर्विस से सबध स्थापित किए और…उन्होने स्पष्ट कहा कि सपूर्ण सीक्रेट सर्विस अपराधी के इस साहसी चैलेंज का मुकाबला करे l विशेषतया यह केस मिस्टर विजय को यानी आपको सौंपा जाए' ।"



--"देखो प्यारे काले लडके. ।" विजय अकडकर सीना फूलाता बोला…"देखो विजय दो ग्रेट की शोहरत-स्वयं गृहमन्त्री ने हमें इस केस पर लगाया है ।"


ब्लैक ब्वाॅय के अधरों पर मुस्कान उभर आई ।


. . विजय ने लाल कागज खोलकर पढना… प्रारम्भ किया । लिखे हुए शब्द कुछ इस प्रकार थे. . . I



" 'प्यारे राजनगर वासियो और पुलिस अधिकारियों....


हमे कुछ इस तरह कै समाचार मिलै हैं कि आजकल रिजर्व वैंक आँफ़ इंडिंया की मुद्रा की सख्या कई करोङ तक पहुच गई है I अधिकारीगण जरा हमारी बात को गहराई से सोचे I वास्तविकता यह है कि हम लोग हमेंशा जनकल्याण के लिए तत्पर रहे हैं । हमारा अभी तक का जीवन जनकल्याण में ही व्यतीत हुआ हैं और उम्मीदें करते हैं कि अगर आप लोगों का सहयोग मिला तो जीवनपर्यत हम लोग इसी प्रकार परहिताय के लिए,प्रयत्नशील रहेगे ,अभी तक हम लोग-जनकल्याण कै छोटे-छोटे कार्य करते रहते थे…किन्तु हमने देखा कि भारत कुछ इतनी परेशानीयो में घिरा है कि अगर हमारी यह जनकल्याण की भावना इतनी धीमी रही तो हम कुछ नहीं कर पाएँगे क्यों और हमारा जीवन एक तरह से निरर्थक -सा ही ही हो जाऐगा । अतः हम लोग खुलकर सामने आ रहे है ।



हाँ तो मै उस विषय पर लिख रहा था जो जनकल्याण का कार्य हम अभी कुछ ही समय बाद करने जा रहे हैं । हम एक बाल फिर कहते हैं कि हमें समझने का प्रयास करे । बात ये हैं कि रिजर्व बैक मे मुद्रा आवश्यकता से अधिक हो गई है ।-

अब जरा आप लोग दिमाग से सोचे कि इतनी बडी रकम चुराने का लालच किस के दिमाग में नहीं आऐगा ? आजकल भारत में भ्रष्टाचार,धोखा चोरी, लूट इत्याद्वि जोरों पर हैं ।अब आप सोचिए कि क्या किसी भी वक्त वे लुटेरे रिजर्व बैक की दस करोड़ की रकम, जो भारतीय प्रजा की है, लूट नही सकते ? ? आपको हो या न हो , हम लोग तो क्योंकि जनक्लाण कै लिए जीतै हैं अत: प्रजा की सुरक्षा का ध्यान लगा रहता है । प्रजा के धन को अत्यंत सुरक्षित रखने कै लिए हम लोग यह धन ले जाऐगे । ताकि इसे अत्यंत सुरक्षा के साथ रखा जा सके । शायद आप लोग हमारे इस काम की निन्दा करे , लेकिन हम फिर भी कहेगे कि हमे समझने का प्रयास किया जाया । अगर यह धन यहां रहा तो हमेंशा चोरी होने का भय लगा रहेगा । संभब है कि इस प्रयास मे किसी की ह्नत्या हो जाए ओर हमारे होते हुए यह सब हो जाए तो हम किस बात के जनकल्याणी है ?

इस बात की संभाबना ही स्माप्त हो जाए, इसलिए हम ठीक दो बजे आऐगे ।


हमने अब बहुत कुछ लिख दिया हैं…
आशा करते है हमारे कार्यो मे बाधा डालने कै स्थान पर हमें सहयोग देंगे।

अंत मे ये लिखना अपना कर्त्तव्य समझते हैं कि अगर हमारे इस कल्याणकार्य में कोई हमारे विरूध आया तो दोस्तो ये याद रखना कि जो कार्य जनकल्याण कै लिए किए जाते हैं, कायंकर्ता उन सभी रोडों को ठिकाने लगाता हुआ अपनी मंजिल तक पहुचता है जो मार्गो में आतै हैं ।

यू तो हमारे द्वारा सुरक्षित रखनै पर भी चोरी होने का भय तो लगा ही रहेगा…स्वयं हमारी जान भी जा सकती है किन्तु हमें अपनी चिंता नहीं नही है---चिंता हैं तो आप लोगों की है ---- कहीं आप लोगों को किसी तरह का कष्ट न हो । अब. हम इस मुसीबत को अपने साथ ले जाने के लिए ठीक दो बजे आ रहे है
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Re: आग के बेटे / vedprkash sharma

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इस धन की सुरक्षा में अगर हम लोगों की जान भी चली जाए तो हम अपूना परहिताय जीवन सफल समझेगे । अच्छा, अब दो. बर्ज मिलेंगे ।।


जनकल्याणकारी , आप ही के दोस्त

आग के बेटे


विजय ने सपूर्ण कागज पढा…बास्तव में सारा पत्र एक विचित्र ढग से लिखा गया था । प्यार भरे शब्दों में ही एक खतरनाक चेलेंज दे दिया था…अतिम शब्दों पर तो वास्तव में उसकी. निगाहे जमकर रह गई ।

उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये 'आग के बेटे' क्या बला हे ?
आग के बेटे कैसे होगे ?

आग के बेटों का आखिर…मतलब क्या है ?

. . उसने चौककर घडी. देखी…जो ठीक सवा बजने का सदेश दे रही थी I घडी देख कर उसने विचित्र ढग' से मुंह बिचकाया और फिर ब्लैक- ब्वाॅय की ओर देखकर बोला ।



"'तो प्यारे चीफ़ मियां, इसमें परेशानी क्या है ? ये साले आग के बेटे तो जनकल्याणकारी हैं । जो कर रहे है जनता के लाभ के लिए ही का रहे हैं । हम क्यों बेकार में इनके रास्ते में रोडे बने ?”


…"सर यह जानते हुए भी कि परिस्थिति कितनी गभीर है-आप मजाक कर रहे है . .शीघ्रता से सोचिए कि हमें करना क्या चाहिए ? समय कम है सर ।" ब्लेक ब्वाॅय चितित स्वर में बोला ।


"खैर प्यारे--अगर तुम कहते हो तो हम इन्है रोकने का प्रयास करेंगे l वेसे हमे लगता हे कि ये साले आग के बेटे किसी हरामी की औलाद हैं हमारे रोकने से रूकेगे नहीं लेकिन बो अगर आग के बेटे हैं तो हम भी ठाकुर के पूत हैं । साले इस तरह नहीं रूके तो दो-चार झकझकिया सुनकर धाराशायी कर देगे ।" विजय सीना फुलाता हुआ बोला l


-"सर I" ब्लैक ब्वाॅय उसी प्रकार गभीरता के साथ बोला

"मेरे ख्याल में क्यों न राजनगर मे तीन बजे तक के लिए कर्फ्यू लगा दिया जाए ?”



"नहीं नहीं प्यारे ।।" विजय एकदम सतर्क होकर बोला…" भूलकर भी ऐसा पवित्र कार्य न कर बैठना । इस समय अगर कर्फ्यू लगाया गया तो जनता भडक उठेगी और एक नईं मुसीबत खडी हो जाएगी । इस समय प्रत्येक कदम सोचकर उठाओ ।"


…"तो फिर क्या किया जाए सर ?"


" …"तुम अशरफ इत्यादि सभी को वहा पर भेज दो । तब तक हम भी पहुच रहे है I” विजय ने कहा और घडी को देखता हुआ तुरत सीक्रेटरूम से बाहर निकल आया ।। घड़ी डेढ बजने का सदेष दे रही थी ।


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ठीक पौने दो बजे बिजय रिजर्व बैक पहुचा । वहा उसके पिता राजनगर के आईं जीं के नेतृत्व में काफी भारी सख्या में पीएसी के नौजवान उपस्थित थे जों उमडती भीड पर काबू पाने का प्रयास कर रहे थे । काफी हद तक वे अपने प्रयास मे सफल भी थे । नेतृत्व क्योंकि खुद ठाकुर साहब कर रहे थे अत काफी सुदृढ था l

रिजर्व बैक के चारो और कुछ इस तरह के चक्रव्यूह का निर्माण किया गया था…मानो महाभारत कौ दोहराना हों ।


रघुनाथ ने स्वय एक ओर का मोर्चा सभाल लिया था । विजय ने देखा कि सीक्रेट सर्विस के अन्य सदस्य बिभिन्न. मेकअर्पो में वहा उपस्थितं थे । आशा इस समय किसी चिडचिडी और वदसूरत-सी बुढिया के मेकअप में थी…जिसकै काले भद्दे और चेचक के दाग वाले चेहरे की लम्बी और टैढी-मेढी नाक पर एक ऐनक लगभग लटक-सीं रही थी । उसके मोटे लटके हुए होंठों से पान की पीक बह रही थी । बाल पक चूकें थे

उसके हाथ में एक लठिया थ्री और वह अपने हुलिए के अनुसार कुशल अभिनय करने मेंसफ़ल थी ।



विजय इस समय स्वयं मेकअप में था…ताकिं ठाकुर साहब न पहचान सकै । इस समय वह ऐसे मेकअप में था कि उसे पहचानना कठिन ही नहीं, असभव था । उसको कुछ शरारत सूझी I अत: उसने आशा की ओर देखा और आख मार दी । उत्तर भे जो हरकत आशा ने की उससे वह मान गया कि आशा कमाल का अभिनय करती है । उसके आख मारते ही आशा ने ठीक किसी बुढिया की भाति तेवर बदले और दो-चार गालियों से विभूषित कर दिया ।


यह एक अलग बात है कि इस बीच पान की. पीक ने होंठों के बीच से निकलकर मैली कुचैली धोती पर एक सुंदर-सा प्रिंट बना दिया था । वेसे प्रिंट बनाना भी शायद आशा के अभिनय का एक भाग था I


बिजय तुरत भीड, मे विलुप्त हो गया । वह यह न जान सका कि आशा ने भी उसे पहचाना है अथवा नहीँ । वह भीड मे घुस गया और एक स्थान पर आराम से खडा होकर बैंक के उस चौपले को देखने लगा-जहा सिर्फ सकरारी कर्मचारी ही खड़े थे ।।


अभी वह ध्यान से सब कुछ देख ही रहा था कि वह चौक पड़ा-न सिर्फ चौंक पडा. बल्कि उछल पड़ा, जब भीड में से किसी ने ये बेहूदा हरकत की ।


हुआ ये कि विजय की कमर में किसी ने बहुत जोर की चुंटी काटी । परिणामस्वरूप वह उछल पडा. और अपने चारो और का निरीक्षण किया, किन्तु वह न जान सका कि ये हरकत किसकी है । जब उसे काफी प्रयासों के बाद भी असफलता ही हाथ लगी तो वह शात खडा हो गया और अपना ध्यान 'आग के बेटो' की और लगाने का प्रयास कर ही रहा था कि एक बार वह फिर चौक पडा।



कारण था फिर वही बेहुदा हरकत ।


बिजय को लगा कि कोई शरारार्ती बच्चा उसके साथ शरारत कर रहा है
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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