दूध ना बख्शूंगी/ complete

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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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अगले दिन !



"बोलो-तुम्हें बोलना होगा तबस्सुम?" ठाकुर साहब गुर्राये----" ये सब क्या चक्कर था इकबाल की कहानी किसने गढी…वह कौन है, जिसके इशारे पर तुम और अहमद चचा नाच रहे थे ?"



"हजारबार ,कह चुकी हूं कि मैं कुछ नहीं जानती ।"



"और हम अच्छी तरह जानहे है कि तुम सब कुछ जानती हो…अब तुम्हारी ये बकरे की तीन टांग वाली रट बिल्कुल नहीं ,चलेगी-----------तुम्हें सब कुछ बकना ही होगा ।"





" मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप एक ऐसे व्यक्ति से क्या और कैसे बकवा लेंगे, जिसे कुछ मालूम ही नहीं है !"




ठाकुर साहब का चेहरा कठोर हो गया, बोले------"इसका मतलब तुम इस तरह जवाब नहीं दोगी-----जिस चेयर पर तुम बैठी हो, उसे टार्चर चेयर कहते हैं---------इस पर यदि पत्थर को भी बैठा दिया जाए तो उसे बोलना पडता है------हमें सख्ती से पेश आने के लिए मज़बूर मत करो------यदि तुम्हें इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए तो तुम उसे सह नहीं सकोगी और तब तुम्हें सब कुछ उगलना होगा ।"



"जब मैं कछ जानती ही नहीं हूं तो उगलूगी क्या?"



तबस्सुम की बार-बार की इस एक ही रट ठाकुर साहब का पारा सातवे आसमान पर पहुंचा दिया…उन्होंने झपटकर बाएं हाथ से तबस्सुम के बाल पकडे उन्हे बुरी तरह झंझोड़ते हुए बोले---- मतलब तुम लातों की भूत हो और बिना टार्चर हमारे सवालों का जवाब नहीं दोगी !"

इससे पहले कि तबस्सुम अपना रटा-रटाया वाक्य दोहराए,, टार्चर रूम के बन्द दरवाजे पर दस्तक हुई--ठाकुर साहब ने ऊंची आवाज़ मे पूछा…“कौन है?"




"सर, मैं हूं शर्मा ।"


"क्या बात ?'



"मिस्टर विकास आपसे मिलने आए हैं-उनका कहना है कि उन्हें इसी वक्त आपसे कुछ जरूरी बाते करनी हैँ-हमने कहा कि ठाकुर साहब व्यस्त हैं लेकिन उन्होंने कहा कि मेरा सन्देश पहुचा दो ।"




ठाकुर साहब ने एक क्षण कुछ सोचा ।


फिर एक झटका-सा देने के साथ ही उसके बाल छोडकर दरवाजे की तरफ बढ़ गए…दरवाजा खोला-सामने' डी एस पी शर्मा खड़ा था ।



ठाकुर साहब ने पूछा…कहां है बिकास?"


"वेटिंग रूम में ।"




"दरवाजा बन्द कर लो !” कहकर ठाकुर साहब आगे वढ़ गए…गेलरी में दोनों तरफ सशस्त्र जवान मुस्तेदी के साथ खड़े थे…शर्मा ने टार्चर रूम का दरवाजा बन्द कर दिया ।




उधर वेटिंग हॉल में कदम रखते ही ठाकुर साहब की नजर विकास पर पंडी-सात फुट लम्बे-----------लडके के चेहरे पर इस वक्त हर तरफ़ गम्भीरता छाई हुई थी…खून का टीका अभी तक उसके मस्तक पर मौजूदु था------उन्हें देखते ही वह फुर्ती से उठ खड़ा हुआ-अपनी विशिष्ट कुर्सी की तरफ बढते हुए ठाकुर ~ साहब ने पुछा…" यहां कैसे आना हुआ विकास ?"

“सुना कि चौराहे से भागने` की कोशिश करती हुई तबस्सुम को पुलिस ने पकड लिया।"





"तुमने ठीक सुना है।"



"इस वक्त वह कहां है?"



"टार्चर'रुम में।”



विकास ने पूछा-----"क्या उसने कुछ बताया?"




"अभी तक नहीं-मगर कोशिश कर रहे हैं ।"



"क्या आप मुझे चांस देगे?"



हल्के से चौंककर ठाकुर साहब ने पूछा-----------"क.......क्या मतलब?"



“मैं चाहता हू कि आप मुझें तीस मिनट दे, दावा कर सकता हूँ कि उससे सारे रहस्य उगलवा लुंगा-----उसकी जुबान खुलवानी जितनी जरूरी अपके लिए है, उतनी ही मेरे-लिऐ भी . . ।"


“क्या तुम उसे टार्चर करना चाहते हो?.”


"यदि जरूरत पडी तो...!"


"म------मगर---!"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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"आप फिक्र न करें।" विकास उनकी हिचक की बह समझता हुआ बोला…"उसे टार्चर करते समय मै व्यक्तिगत स्तर पर भावुक नहीं होऊंगा-----ऐसा कोई काम नहीं करूगा जिससे पुलिस कस्टडी में उसकी मृत्यु हो जाए और उसकी लाश मरे हुए साप-की तरह पुलिस की गर्दन में पड जाए !"




एक पल ठहरकर ठाकुर साहब ने कहा…“ठीक है, तुम कोशिश कर सकते हो ।"



“थेक्यू सर----और हां, मेरी रिक्वेस्ट है कि उस समय टार्चर रूम में मेरे और तबस्तुम के अलावा और कोई नहीं होगा-आप भी नहीं ।"



" जैसे तुम्हारी मर्जी ।"

दरवाजा अन्दर से बन्द करके जब विकास टार्चर चेयर की तरफ घूमा, तब उस पर कैद तबस्तुम उसी की तरफ देख रही थी…विकास ने अपनी सुर्ख आंखें उसके चेहरे पर टिका दी-------फिर धीरे--धीरे उसकी तरफ बडा---------जाने विकास के चेहरे पर वे कैसे भाव थे, जिन्हे देखकर टार्चर चेयर पर बैठी तबस्सुम का दिल जोर-जोर से धडकने तगा…हलक सूख-सा गया..चेहरा पीला पड गया----आंखों के सामने वह दृश्य चकरा उठा, जबकि विकास ने उसकी गर्दन दबाई थी ।



उसके ठीक सामने बेहद नजदीक पहुंचकर वह बोला…“क्या तुम मुझे जानती हो ?"



वडी मुश्किल से उसने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।


" कौन हू मै ?"




तबस्तुम ने थूक निगला, बोली…“व...विकास ।"



'कड़ाक' से तबस्सुम की नाक परं एक बहुत ही जबरदस्त घूंसा पडा…उसके कंठ से एक चीख उबल पड़ी--------नाक से खून का फव्वारा उबल पड़ा-------हालांक्रि वह बराबर चीख रही थी किन्तु एक के बाद दूसरी चीख उसके कंठ से बाहर न निकल सकी-क्योकि मारने के तुरन्त बाद बिकास ने झपटकर उसकी गर्दन दबोच ली थी !

वही फौलादी पकड ।




तबस्सुम छटपटा गई-----विकास के पंजों का कसाव वढ़ता चला गया !


तबस्सुम की सांस रुकने लगी…नसै उभरी-आंखे उबलने-सी लगीं…बिकास. की तो पहले से ही उसं पर दहशत सवार थी और जिस ढंग से आते ही उसने आक्रामक रुख अपनाया, उसने तो तबस्सुम के तिरपन ही कंपकंपा दिए ।




दांत भीचे विकास पुछ रहा था-----"होटल के उस कमरे में तो तुझे डैडी ने बचा लिया था, लेकिन यहा बचाने कोई नहीं आएगा---- ठाकुर साहब की तरह बहस नहीं किया करता---------- मेरे चंगुल में फंसा शिकारं या तो बकता है या'मर जाता है--------इस वक्त खुद को मेरे सवालों का जवाब देकर तू खुद को बचा सकती है------------या तो मेरे हाथ तेरी गर्दन से तब जब तू लाश में बदल चुकी होगी------------या तब जबकि तू अपने माथे पर बल डाल लेगी, क्योंकि उन बलों को देखकर से ये समझ जाऊंगा कि तू मेरे सवालों का जवाब देने के लिए तैयार है--जिस क्षण इच्छा हो, बल, डाल लेना वरना---।"



" अपना वाक्य अधूरा ही छोड़कर वह गर्दन पर पकड़ सख्त करता चला गया ।




तबस्सुम की जीभ बाहर को लटकने लगी। विकास उसकी गर्दन पर अपने हाथों का कसाव बढ़ाता ही चला गया---------------------उसे इन्तजार था उस क्षण का जबकि तबस्सुम के मस्तक पर बल पड़ जाएंगे, किन्तु वह क्षण नहीं आया, जबकि तबस्सुम का-दम पूरी तरह टूटने लगा…हाथ-पर ढीले पड़ने लगे--जीम और आंखें लटक-सी गई थी ।





अचानक विकास ने उसकी गर्दन से हाथ हटा लिए है वह 'धम्म' से टार्चर चेयर की पुश्तगाह से जा टिकी---आंख बन्द-जिस्म ढीला पड गया था---------उसकी ऐसी अवस्था देखकर विकास घबरा-सा गया ।





उसने जल्दी-जल्दी तबस्सुम के गालो पर तमाचे मारे और बोला…"रेहाना...रेहाना-आंखें खोलो ।"



तबस्सुम ने एक झटके से आंखे खोल दी !



अभी तक लम्बी-लम्बी सांसे ले रहीं थी

आखो मे भय का साम्राज्य था, किन्तु चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए-अपनी उखड्री हुई सांस पर नियंत्रण पाकर वह बोली---"मेरा नाम तबस्सुम है .......!"




हल्की-सी मुस्कराहट के साथ विकास ने कहा कहा-----" तुम्हारा नाम रेहाना है ।"



"न----नहीं।"




"मैँ विकास नहीं रेहाना-ये मैं हू।” इस बार विकास के मुंह से निकलने वाला स्वर बदल गया !"




" रेहाना उछल पडी…“ह.. .ह.. . ।"




"नहीं । वह जल्दी से बोला----“मेरा नाम मत लेना रेहाना !"



"त.. .तुम'-डार्लिग…तुम यहां?"




“हां वचन दिया था न…पुलिस के चंगुल से निकाल के ले जाने के लिए आया हू मैं।"




“ओह !" गहन आश्चर्य में डूबी रेहाना ने पूछा… "म...मगर तुमने मेरी गर्दन ।"



“माफ़ करना डार्लिग-बिकास के रूप मे इस टार्चर रूम में कदम रखते ही मैंने तुम्हारे चेहरे पर भय और आतंक के कुछ ऐसे भाव देखे, जैसे तुम विकास से बहुत डरी-हुई हो… उसी क्षण मेरे दिमाग ,में यह बात आई कि इसंका मतलब तो ये है कि यदि विकास सचमुच ही तुम्हें टार्चर करने आया होता तो तुम उस पर मेरा एकाएक रहस्य उगल देती--ऐसा होता या नहीं----इसी की जांच करने के लिए मुझे बिकास बनकर यह .कोशिश करनी पडी !"


उसे कातर दृष्टि से देखती हुई रेहाना कह उठी-------इसका मतलब मेरी परीक्षा ले रहे थे ।"


"जिसमे तुम पास हो गई ।"



" यदि फेल होजाती ?"




"तब मुझे तुम्हे यहाँ से निकालने की कोई जरूरत शेष नहीं रहजाती-----गला घोंटकर तुम्हें हमेशा के दिए इसी टार्चर चेयर पर खामोश करके निकल जाता ।"



"अब बातें ही बनाते रहोगे या र्मुझें इस मुसीबत से निकालोगे भी ?"




" " जरूर !" कहकर वह रेहाना को टार्चर चेयर से मुक्त करने लगा !
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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गुंप्त भवन के सीक्रेट कक्ष में इस वक्त ढेर सारा धुआ भरा हुआ था और वह धूआं किसी अन्य वस्तु के जलने का नहीं, बल्कि ब्लेक बॉय द्वारा पिए गए अनगिनत सिगारों का था-मेजं पर रखी ऐश-ट्रे का हैट ऊपर तक लबालब भर चुका था… ब्लैक बॉय की उगलियों के बीच इस वक्त भी एक सिगार सुलग रहा था-गहन चिन्ताओं में लीन वह अपनी कुर्सी पर अधेलेटी-सी अवस्था में पड़ा था ।



एकाएक मेज़ पर रखे फोन फी घण्टी घनघना उठी ।




ब्लैक बॉंय यह सोचकंर एकदम चौक उठा कि शायद बह फौन विजयं का हो, पर रिसीवर कान से लगाते ही बिकास का सपाट स्वंर उभरा----हैलो अकल !*


" व................विकास ?"




"गुरु या उनका कोई सन्देश आया?"



"नहीं ।"


कठोर लहजा------"इस किस्म के झूठ बोलने से वहुत: ज्यादा देर तक काम नहीं चंलेगा अंकल-----जो हालात है, उनमें ऐसा तो ही नहीं सकता कि गुरु या उसका कोई सन्देश आप तक न पहुंचा हो ।"



"उफ्फ । ब्लेक बॉय झुंझला उठा… "आखिर तुम यकीन क्यों नहीं करते बिकास ।"



"यकीन करने का प्रश्न ही कहां है अकंल ।"



“में सच कह रहा है विकास----"स्वयं परेशान हू-पता नहीं, वे कहां गायब हो गये है-------तभी से फोन पर सिर्फ इसलिए चिपका बैठा हू कि शायद उनका फोन आ जाएँ-----उससे भी है ज्यादा हैरत की बात तो ये है कि अपने फोनों पर अशरफ विक्रम, नाहर, परवेज और आशा भी नहीं मिल रहे हैं ।"

"'क्या मतलब?"



" मैंने इस इरादे से उन सभी क्रो फोन किए कि उन्हीं को विजय की. तलाश में लगाऊं, परन्तु मैं यह सोचकर हैरान हूं कि आंखिर उनमें से कोई भी अपने फोन पर क्यों नहीं है ।"




अचानक ही दूसरी तरफ से एक बड़ा ही विचित्र-सा कहकहा सुनाई दिय । "




चौके हुए ब्लैक बॉय ने --“तुम क्यों हंस रहे हो ?" अब उनमें से आपको कोई नहीं मिलेगा चीफ !"



“क...क्या मतलब-क्यों?"




"क्योंकि वे सभी मेरी केद-में हैं ।"




" त . . तुम्हारी कैद मे------म . , , मगर क्यों-----।" उन्हें क्यों पकड रखा है?"




"मैं ये नहीं बताऊंगा चीफ कि मेरे पास वे कहां कैद हैं, हां यह बताने के लिए फोन जरुर किया है कि यदि आज़ रात दस बंजे तक विजय गुरू मुझसे नहीं मिले तो ग्यारह बजे
तक सीक्रेट सर्विस के सदस्यों की लाशे राजनगर विभिन्न सडकों पर पड्री होंगी ।"




"य . . . . . यह तुम क्या कह रहे हो? " ब्लेक वाय के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए…' पागल हो गए हो क्या विकास?"




. "हां------सचमुच मैं पागल हो-गया हूं चीफ, क्योंकि मैंने डैडी की लाश देखी है-----चिंता के साथ जलकर उन्हे राख होते हुए देखा है--यदि यह आपके साथ ही यह सब कुछ होता तो शायद आप भी पागल हो जाते--आप जानते है मैं कभी खोखली धमकी नहीं दिया करत्ता--------मेरी चेतावनी विजय गुरु तक पहुचा दो-आज रात ठीक दस बजे मैं उन्हें पुराने -- शिकारगाह के खण्डहर' में मिलूंगा-यदि आप मेरी चेतावनी उन तक पहुंचाने
में नाकाम रहे - अथवा वे खण्डहर में नहीं आए तो ग्यारह बजे आपको उन सबकी लाशे देखनी होंगी ।




" म म.........मगर बिकास-मुझे सचमुच पता नहीं है कि वे कहाँ हे-मेरी बात तो-उफ्फ !' ब्लेक बाॅय थ्रोड़ा झुंझला-सा उटा-कसमसाकर रह गया वह------दूसरी तरफ से उसकी पूरी बात सुने विना ही सन्वन्थ विच्छेद कर दिया गया था !

कुछ देर वह लाइन पर उबरने बाली क्रिर्र-किर्र की आवाज सुनता रहा…पेशानी पर एक साथ ढेर सारे बल पड़ गए थे ।



उसने रिसीवर क्रंडिल पर रख दिया ।




अभी उसने सिगार में पहला ही कश लिया कि घण्टी पुनः बज उठी------उसने झपटने के से अन्दाज में रिसवीर उठाया भर्राए हुए स्वंर में बोला…“पवन हीयर! ”




“ये हम बोल रहे है प्यारे!"




"स . . . सर-आप मैं आप ही के लिए तो परेशान हूं----आप कहा से बोल रहे हैं !"



"इस बात कों छोडो प्यारे--काम की बात सुनो! "




”जी-कहिए ! !"




"हम तुमसे पहले सीकेट सर्विस के सभी सदस्यों से फोन पर सम्बन्थ स्थापित करने की कोशिश कर चुके है ----- मगर सव - नदारद--लगता है कि सबके सब साले कुम्भकरणी नीद में अंटा गाफिल हैं ।''



"क्या आपको उनसे कुछ काम है सर?"




"हाँ प्यारे…उन सबकों आदेश दो कि वे रात आठ बज तक. . . ।"



"लेकिन सर---" सव तो इस वक्त विकास की कैद में है ।"



"दिलजले की कैद में-क्यों?" ज़वाब में ब्लैक वाॅय विना किसी प्रकार का कोमा या विराम प्रयोग किए सव कुछ एक ही सांस में बताता चला गया--वात खत्म होने के बाद कुछ देर के लिए लाइन पर खामोशी छा गई----इस खामोशी को तोड़ते हुए ब्लैक व्वाय ने पूछा-'"आप क्या सोचने लगे सर ।"



"कुछ नहीं प्यारे-अपने दिलजले के बारे में ही सोच रहे ।"



"क्या?"


"'जो कुछ बह कह रहा है, उसे गलत भी तो नहीं ठहराया जा सकता------उसका पिता मरा है--दूध का वास्ता देकर मां ने हमारी लाश मांगी है…हम खुद ही स्वयं को उसका मुजरिम समझते है प्यारे !"



"ल . . लेकिन सर-यह सब्र कुछ-इतना अजीब आखिर हो कैसे गया? "




"हम दिलजले क्रो हमेशा समझाया करते थे कि उत्तेजना और क्रोध में पगलाया हुआ व्यक्ति हमेशा कोई अंटशंट मामला करता है-------------यह नहीं जानते थे कि स्वयं हम ही कभी ऐसा कर डालेगे------गुनहगार हम है प्यारे--------------दिलजले के मुजरिम है ।" कहने के साथ ही दुसरी तरफ़ से सम्बन्य विच्छेद कर दिया गया ।





ब्लैक क्षय के दिमाग में अब ही देर सारे प्रश्नवाचक चिन्ह जगमग करते रह गए।

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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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लगातार बज रही फोन की. घण्टी ने अंत में विकास को रिसीवर उठाने पर विवश कर ही दिया--सोफे पऱ अधलेटी भी अवस्था में विकास ने रिसीवर उठाया और बोला---विकास हियर! "





"तुम्हारी याद में यहां बैठे हम पी रहे हैं बीयर ।"




" क . कौन-बिजय गुरु?” बिकास एकदम इस तरह उछलकर खड़ा हो गया, जैसे उसे बिजली का झटका लगा हो--रिसीवर पर पकड सख्त हो गई-यह सुने बिना कि दूसरो तरफ से क्या कहा गया है, भभकते स्वर में विकास कहता ही चला गया-----"आप कहां से बोल रहे हैं----यूं औरतो की तरह मुंह क्यों छुपा लिया है आपने-----समने आओ गुरु…मर्द के बच्चे हो तो सामने आओ---- मां कसम, चीर----फाडकर आपको भी उसी चौराहे पर न डाल दिया, तो मेरा नाम विकास नहीं----मै कहता
हू--सामने आओ ।"



"हमारी बात तो सुनो प्यारे!”



" मै कुछ सुनना नहीं चाहता-आप बुजदिल हैं------कायर और डरपोक है-------मुझसे डर गए हैं आप ।"




"तुम चीज ही ऐसी हो प्यारे! "
"आपका खून सफेद पड़ गया है गुरू---थू! लडके ने सचमुच माउथपीस में थूक दिया…"थू है आप--------आपके बारे में मैं क्या सोचा करता था और आप क्या निकले------------बुजदिल-------अपनी मां का दूघ पिया है तो सामने आओ गुरु… देखू तो सही कि उन हाथों कितनी ताकत है, जिन्होंने डैडी के सीने में गोली उतार दी----------ऐसे कायरपन की उम्मीद तो गीद्ड्रो से भी नहीं की जा सकती आप तो कुत्ते से भी बदतर है ।"



शांत स्वर----" अक्सर तुम ठीक ही कहा करते हो प्यारे !"





"अरे अपनी मां के लाल हो तो बताओ गुरु--इंसी वक्त बताओ कि कहां से बोल -रहे हो-----अगर इसी वक्त वहां पहुचकर अपके परखच्चे न उडा दिए तो मेरा नाम निकास नही------------असली बाप की औलाद हो तो बोलो गुरु-------बताओ कि इस वक्त आपं कहां से बोल -रहै है ?"




"अभी नहीं प्यारे-----यह फोन हमने तुमसे. थोडी मोहलत मागंने के लिए किया है !"



" कैसी मोहलत?"




दर्द भरा, मायूस सा रबर---"जो हमने किया है या जो वक्त ने हमसे करा दिया है; उसका प्रायश्चित इसके अलावा ०कुछ और नहीं है कि खुद को तुम्हारे हवाले कर दे और जानते है कि उस वक्त तुम क्या करोगे----तुम जो भी करोगे ठीक ही करोगे दिलजले------अपनी सफाई मे हमें कुछ नहीं कहना है।"



"कहने के लिये आपके पास है'मी क्या?"



"सव विकास------जो हो गया है, उसके बाद हमारे पास कहने के लिए कुछ भी ऩहों।"



"मुझे आप चाहिए !"



"जानता हूँ प्यारे और वादा करता हूं कि बहुत जल्दी मैं खुदको तुम्हारे हवाले कर दूँगा-------- तुम्हारा मुजरिम हूं;;---तुम्हारे द्वारा निर्धारित की गई हर सजा बिना हिचक के मंजूर होगी--------अपने पिता के हत्यारे से बदला लेने का पूरा तुम्हे हक है,'लेकिन...।




. "लेकिन-----?" भभकता स्वरा !




"अशऱफ आदि ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा उन्हे छोड़ दो !"
"ओह इतनी ज्लदी यह इन्फाॅरमेशन आप तक पहुँच गई ।" बिकास का व्यंयात्म स्वर जहर में बुझ गया-----"इसका मतलब ये कि चीफ़ झूठ बोलते रहे थे, खेर------जब आपको यह पता है तो मेरी चेताबनी भी पता होगी--याद रखिए, आज रात दस बजे ।"




"हम उसी के बारे में बात करना चाहते थे ।"





"कहिए !"




"उन्होंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है गुनहगार हम है ,उन्हे छोड्र दो…हपे सिर्फ कल रात तक मोहलत चाहिए विकास--परसों सूरज निकलते ही हम खुद को तुम्हारे हवाले कर देगे ।"



"मोहलत किसलिए ?"




"हमेँ उस अपराधी तक पहुंचना है, जिसके जाल मे मैं फंसकर हम तुलाराशि की हत्या कर बैठे है! "



" नही मिलेगी।"




"बिकास !"




"मुझे कुछ नहीं सुनना है गुरु--मेरे लिए आपसे वडा अपराधी कोइ नहीं है-कान खोलकर सुन लिजीए -- आजज रात दस बजे तक यदि आप मेरे सामने नही आए तो मैं उनमैं से एक को भी गोली मारने में नहीं हिचकूगा और यदि तव भी तुम सामने न आए--- तुम्हारी कोठी-गुप्त पवन, और सारे राजनगर को जलाकर राख कर दूगा ।"




"उफ्फ !" विजय का कसमसाया हुआ स्वर------तुम समझते क्यों नहीं-दिलजले!"



"आज .रात दस बजे-----पुराने शिकारगाह के खण्डहर में ।" एक झटके तो कहने के बाद उसने रिसीवर केडिल पर इतनी जोर से पटका कि वह 'तड़क' गया ।

ठाकुर साहब वेचैनी के साथ टार्चर रूमके बाहर बाली गैलरी मे चहलकदमी कर रहे थे ---- दीबारो के सहारे दोनों तरफ खड़े सशस्त्र जबान इस वक्त पहले से कही ज्यादा मुसतैद नजर आ रहे थे-----एकाएक ही टार्चर रूम का दरबाजा खुला !



बिकास चमका !


ठाकुर साहब तेजी से उसके नजदीक पहुंचकर 'बोले-"क्या रहा?"




"उसने सब कुछ वक दिया है ।"



"क्या बताया उसने?"



मगर इस बार ज़वाब मुँह से नहीं--बल्कि हाथ से दिया------यानी बिल्कुल अप्रत्याशित ढंग से लम्हें लड़के का घूसा ठाकुर साहव के जवड़े पर पड़ा-प्रहार इतना जोरदार अचानक था कि ठाकुरसाहव का भारी-भरकम जिस्म भी हवा में लहराकर दूर जा गिरा है , सशस्त्र जबान चौंके…पर उनके सम्भलने से पहले ही लड़के ने एक छोटा-सा-बम फर्श पर दे मारा---कमाल की फुर्ती से यानी अगले ही क्षण सारी गैलरी गाढे, सफेद और अपारदर्शी धुएं से भर गई----ठाकुर साहब चीख पडे------"पकडो इन्हें----भागने ना पाएं ।"



परन्तु अगले ही क्षण स्वयं ठाकुर साहब जोर से खिलखिलाकर हंस पडे ।




यही हाल गैलरी मे सशस्त्र जवानों का हुआ, यानी वे सभी जौर-जोर से हंस रहे थे-घुआं इतना तीखा-तीव्र एवं कड़वा था कि आंखों में घूस कर--उसने बडी ही जबरदस्त जलन पैदा की-----आखे मिच गई--धुलने लगी--ढेर सारा पानी निकलने लगा ।

साथ ही वह सब हँसने लगे ।



स्वयं ठाकुर साहब भी ठहाके लगा-लगाकर हंस रहे थे ।



लडका और रेहाना आंखों पर ऐसे चश्मे लगाए, जिनकी मौजूदगी में धूएं का एक भी कण उनकी आंखों तक नहीं पहुंच पहुँच पा रहा था,गैलरी से गुजरते चले गए-हाँ, खिलखिला वे भी रहे थे । धुएं के अन्तिम सिरे तक पहुंचते ही लडके ने एक और 'बम' फोड दिया--आगे का रास्ता भी धुएं से भर गया-तबस्सुम का हाथ पकडे वह धुएं के बीच से गुजरता ही चला गया ।

दस मिनट के अन्दर उस अपारदर्शी धूए ने समूचे पुलिस हेडक्वार्टर पर कब्जा कर लिया-------हर व्यक्ति की आखो से बेशुमार पानी बह रहा था------हर व्यक्ति बुरी तरह हंस रहा था ।


ठहाके लगा-लगाकर--खिलखिलाकर!
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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टार्चर रूम के बाहर बाली गैलरी से धुआं साफ होने लगा ! अव वहां का दृश्य कुछ-कुछ स्पष्ट होने लगा था-सभी बुरी तरह पेट पकडकर हंसते हुए नजर आ रहे थे-सवकै हथियार फर्श पर इधर-उधर पड़े थे…किसी को हंसने से फुर्सत हो तो हथियारों की तरफ ध्यान भी जाए ।



सबकी हालात बैरंग थी ।



आंखों से पानी बह रहा था…पेट पकडकर हंसते सभी गैलरी में इधर-उधर घूम रहे थे ।


'कई तो हंसते इतने पागल हो गए थे कि वे फर्श पर लेटे-लेटे फिर रहे थे-धुआं छंटा-ठाकुर साहव ने अपने ठहाकों पर काबू पाया-------------दौड़कर टार्चर रूम में गए-टार्चर चेयर खाती देखते तुरन्त लोटे---दरवाजे पर खड़े होकर उन्होंने बेतहाशा हंसते जबानों को देखा और चीख पड़े-“ख...खामोश !'





जवानों ने घबराकर उनकी तरफ देख.----कुछ तो -जड़वत सै खडे रह गए और कुछ ठहाका लगा उठे ।




"मैं कहता हुं, चुप रहो-हसो मत !" ठाकुर साहव हलक फाड़कर चिला उठे-“विकास तबस्सुम को हमारी कैद से निकालकर ले गया है-उसे तलाश करो "



हंसने वाले अब संभलकर अपने-अपने शस्त्रों पर झपट पडे ।

............................

अंगूठी रूपी द्रान्समीटर ऑफ करते समय विजय के चेहरे पर झुझलाहट---उलझन और खीज के से भाव थे !


उसके सामने बैठे गुलफाम ने पूछा-“क्या बात है मास्टर दूसरी तरफ से किसने क्या कहा है, जिसे सुनकर आप बुरी तरह चौंके थे?



“लगता है गुलफाम प्यारे कि ये साला अपना दिलवाला सारा खेल ही चौपट कर देगा ।"



"क्यों-क्या किया है विकास ने?"



" हेडववार्टर से तबस्सुम को ले उड़ा।"




"क . .क्या…-?" गुलफाम इस मैं कद्गर उछल पड़ा---- जैसे अचानक ही बिब्छू ने उसे डंक मारा दिया !! शब्द स्वयं ही उसके मुँह से निकलते चले गए-----"म. . . . मगर आपने तो ........ ।"



" यही तो घपला है प्पारे हैडक्यार्टर पर , तैनात टोडे ने अभी-अभी ट्रान्समीटर पर सुचना दी है कि विकास किसी किस्म की गेस का प्रयोग करके वहाँ से तबस्सुम को निकाल ले गया है ।"




"क्या टोडे विकास का पीछा का रहा है?"



" नही----उसने इजाजत मांगी थी,लेकिन हमने इंकार कर दिया !'



" म-मगर क्यों मास्टर?"



" अभी यह विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि जिसने किडनेप किया है, वह दिलजला ही हे।"




"म...मगर टोडे की रिपोर्ट-----मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रहे है?"



"हमारी बातत बड़े-बड़े बुजुर्गो की समझ मे नहीं आती है प्यारे---- तुम तो अभी बच्चे हो !"


"क्या मतलब मास्टर ?"



-"मुमकिन है कि बह विकास के मेकअप मे तबस्सुम को निकाल ले गया हो?"



गुलफाम का चौका हुआ स्वर----" ऐसा कैसे हो सकता है मास्टर ?"
" तुम टिंकू को भूल रहे हो प्यारे-बह अपने दिलजले की कोठी पर तैनात है--------हमने उससे कहा था कि विकास जैसे ही कोठी से बाहर निकले, हमे ट्रान्समीटर पर सूचना दे--------अभी तक उसकी ऐसी-कोई सूचना नहीं ,आई है, मतलब विकास अभी तक अपने बिल से बाहर नहीं निकला है । जबकि हेडक्वार्टर पर तैनात टोडै की रिपोर्ट है कि तबस्सुम को विकास किडनैप कर ले गया है------क्या इससे नहीं लगता है कि तबस्सुम को किडनैप करने वाला विकास नकली है!"




"मगर-ऐसा भी हो सकता है मास्टर कि टिंकू धोखा' खा हो गया हो------ विकास उसकी तरह नजरों से बचकर कोठी से निकलने में कामयाब हो गया हो?"



किसी बुजुर्ग की तरह गर्दन हिलाते हुए विजय ने कहा------"बिल्कुल हो सकता है-क्यों नहीं हो सकता ?"


"तो फिर ?"


"मामला दोनों तरफ बराबर बराबर है गुलफाम प्यारे----यदि वह विकास ही है सारा मामला सिर के बल लटका रह जाएगा और यदि बह विकास नही है-----यदि यह विकास नहीं है-----कुछ ही देर बाद बापूजान दल-वल सहित बिकास को पकडने कोठी पर जाएंगे-सारी बात सुनकर बिकास चौकैगा-भले ही वह कुछ समझे या न समझे , मगर खुद को पुलिस के चंगुल में कभी नहीं र्फंसने देगा-बह भागेगा ।”



"भागकर वह जाएगा` कहां?"



विजय एकदम उछलकर चीख पड़ा--------------वो मारा साले पापड वाले को?"




"क्या हुआ मास्टर ? "



"पुलिस के चंगुल से निकलकर भागने के बाद फिलहाल अपने दिलजले के पास -कौई जगंह नहीं है- उस जगह को वह सुरक्षित जरूर समझेगा, जहाँ उसने अशरफ आदि को कैद किया होगा !"



"म.....मगर मास्टर----!"



"फिलहाल कुछ देर के लिए तुम अपनी बौलती पर ठक्कन लगा लो प्यारे !" कहने के साथ ही बह अंगुठी रूपी ट्रान्समीटर पर किसी से सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश कर रहा था-------" हैलो टिकु हीयर ओबर !"




"हम है टिकू प्यारे--तुम्हारे उस्ताद के मास्टर !" विजय ने अपने बारे मैं बताने,के बाद पूछा----- " तुम इस वक्त कहां से बोल रहे हो , ओवर !"





"बहीं से -जहां आपने नियुक्त किया था ओवर ।"
विजय ने पूछा…"क्या अभी तक अपना दिलजेला कोठी से बाहर नहीं निकला है, ओवर !”




“नो सर-ओवर !"



"क्या तुम यह रिपोर्ट पूरे विस्वास के साथ दे रहे हो टिंकू प्यारे, ओवर! "




"आप कैसी बात कर रहे है माँस्टर-----मैं कोठी के ठीक सामने सडक के पार बैठा जूते चमका रहा हू----न तो विकास ही बाहर निकला है और न ही उससे मिलने अभी तक कोई यहाँ आया है ।"




"तो अब कुछ ही देर बाद पुलिस उसे गिरफ्तार करने आने वाली है प्यारे-तुम सतर्क हो जाओद------बह किसी भी कीमत पर खुद को पुलिस के चंगुल में नहीं फंसने देगा- वहां से भागना पडेगा-----हालांकि हम स्वयं बहीं आ रहे हैं, पर यदि पुलिस हमसे पहले ही वहां पहुच जाए और बिकास भागे तुम उसका पीछा करना--मगर सावधानी से-अगर उसे अपना पीछा किए जाने का शक हो आया तो सारा गुड़-गोबर समझो !"



"लेकिन मास्टर----आखिर---- ।"




उसकी बात सुने बिना ही विजय ने सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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-- 007

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