दूध ना बख्शूंगी/ complete

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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

"बेशक प्यारे!" विजय बोला…“असली मुज़रिम बह है, जिसने रहस्यमय जीप-एक्सीडेण्ट किया अहमद खान की हत्या की…सात फिटा-दस नम्बर के जूते पहनने और सिर में अमेरिकी तेल लगाने बाला ।"



"वह कौन हो सकता है सर?"



" अभी ख्वाब नहीं चमका है-जब चमकेगा तो बताएंगे ।" कहने के बाद विजय बाकायदा मेज पर तबला, बजाने के साथ ही झकझकी गाने लगा।

गुस्से मे तमतमा रहे रघुनाथ ने पूरी ताकत से ब्रेक मारे--------टायरों की तीव्र चीख-चिल्लाहट के साथ ही कोठी के पोर्च में कार रूकी-------रघुनाथ ने एक झटके के साथ दरवाजा खोलकर तबस्सुम का हाथ पकडा ।
लगभग जबरदस्ती उसे-कार से बाहर खीचा ।



तबस्सुम कह रही थी---------------“न...नहीँ इकबाल----रहने दो--------मै कहती हूं------लौट चलो-चलो--------बात बडाने से कोई लाभ नहीं-तुमने रिपोर्ट कर दी है-अब भला रैना से झगड़ने से क्या लाभ?"





" परन्तु----क्रोध में भुनभुना रहे रघुनाथ ने उसकी एक न सुनी और उसकी कलाई पकड़े कमरे की तरफ़ खींचता ही चला गया, फिर किसी जुनूनी की भाँति चीख पड़ा-----------"र...रैना---------रैना!"



उसकी आवाज सारी कोठी में गूंज उठी ।



लगभग दौडती हुई रैना एक कमरे से बाहर निकली---रघुनाथ को देखते ही उसने अपनी साडी की पल्लू सिर ढका और कांपते स्वर में बोती-------"अ.. .आप?"




"हां मैं ।" तबस्तुम का हाथ छोड़कर दहाड़ता हुआ रघुनाथ उसके पास पहुचा----------------"कहां है वह तेरा पिल्ला, अपने-आपको बडा तीसमारखां समझता है वह हरामजादा-निकाल उसे !"




आंसू भरी आंखों से कह उठी रैना-----“आप किसे हरामजादा कह रहे है?"




"तेरे पिल्ले को !"




" वह.. .वह आपंका ही तो. . . ।"

"खामोश-मै कुछ सुनना नहीं चाहता-उसे बाहर निकाल--कहां छुपा-रखा है उसे?"



" मुझे तो खुद नहीं पता नाथ कि विकास कहां है-यह तो सुबह से ही...।"


"हूं-----इतनी भोली है तू-मैं. तेरी सब चाल समझता हू। खुद ही उसे तबस्सुम का कत्ल कर देने के लिए बहाँ भेजा जीरे अव सती सावित्री बनने का नाटक कर रही है!"



""त...तबस्सुम का कत्ल करने?"



"तुम शायद इस खुशफहमी में हो कि यदि तबस्सुम न रही तो मैं तलाक की अर्जी वापस ले लूगा…मगर यह तुम्हारे मन का वहम है-यदि तबस्सुम को कुछ हो गया तो उस पाक परवरदिगार की कसम, तुम सबके जिन्दा जख्मो पर मिटूटी का, तेल छिड़क कर आग लगा दूँगा ।"



"यह.ये आप क्या कह रहे हैं?" रैना कांप गई ।



इस बीच शानदार सूट पहने मोन्टो कमरे से निकलकर एक दीवार पर जा बैठा था---------वह लगातार रघुनाथ को देख रहा था------------अचानक ही फट पडने बाले ज्वालामुखी रूपी उस रघुनाथ को, जिसके मुंह से आग निकल रही थी-------भभकता हुआ लावा निकल रहा था।



इस वक्त रघुनाथ पर पागलपन का जाने कैसा दौरा सवार था कि उसने झपटकर रैना के बाल पकेड़ लिए और गुर्राया-“बोल-कहा है विकास-मैं उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा-----बता कि.......



परन्तु रघुनाथ का वाक्य पूरा नहीं हो सका ।

यह दृश्य देखते ही धनुषटंकार स्वयं को सम्भाल नहीं सका और उसने सीधी जम्प रघुनाथ के सिर पर लगाई-----रघुनाथ एकदम बौखला गया जबकि उसके सिर पर बैठे मोन्टो ने उसके बाल पकडकर झंझोड़ने शुरू कर दिए थे--रघुनाथ ने दोनों हाथ ऊपर करके उसे दबोचा और फिर--------



"फ़ड़ाक' से उसे जमीन में दे मारा ।


मोन्टो के 'कंठ-से एक चीख निकल गई।


रैना चीख पडी…“न.......नहीं--मोन्टो को मत मारिए !"




जबकि मोन्टो फुर्ती के साथ न सिर्फ'खड़ा हो गया, बल्कि एक किलकारी के साथ हवा में उछलकर उसने अपने सिर की ठक्कर रघुनाथ के सीने में मारी ।




"रघुनाथ एक चीख के साथ लड़खड़ा गया ।



"न.. .नहीं मोन्टो रुक जाओ------तुम्हें मेरी कसम---!' रैना चीख पडी !


लेकिन मोन्टो को भी जाने क्या हो गया था कि उसने रैना ३की एक न सुनी--इस बार तो रैना की कसम भी उसे न रोक सकी और उधर रघुनाथ पर तो… खून सवार था ही ।



रैना चीखती रही, चिल्लाती रहीँ-मगर उसकी चीख-विल्ताहटो परं कोई ध्यान न देकर दोनों भिड़ गए…किसी बोने व्यक्ति की तरह मोन्टो वार-वार उछलकर अपने सिर की टक्कर का वार रघुनाथ के जिस्म पर कर रहा था ।




रघुनाथ बौखला गया ।

एक बार उसने थनुषटंकार को हवा में उछलते ही लपक लिया, किन्तु धड़कते हुए मोन्टो ने अपने दांत उसके हाथ पर गड़ा दिए-एक चीख के साथ झुंझलाकर उसने मोन्टो को जमीन पे दे मारा।



हालांकि मोन्टो बडी फुर्ती के साथ सम्भलकर अपने नन्हें पैरों पर खड़ा हुआ, लेकिन उससे कहीं ज्यादा फुर्ती का परिचय देते रघुनाथ ने जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया ।



मोन्टो पुन: उस पर झपटा ।



"धांय ।' रघुनाथ का रिवॉल्वर गरजा ।


"न….नहीँ!" रैना चिखी !



सिर में गोली लगते ही मोन्टो के मुह से एक अजीब-सी गुर्राहट निकली और वह रघुनाथ के चरणों में आ निरा----तड़पा-----मचला और फिर एक झटके के बाद शिथिल पड गया ।



उसके सिर पर बने जख्स से गाढा खून बह रहा था ।



रैना मूर्तिवत-सी आंखें फाडे जमीन पर पड़े मोन्टो देखती रहं गई…रघुनाथ ने बड़े ही व्यंग्यात्मक अन्दाज में रिवॉल्वर की नाल से निकलने वाले धुएं में फूक मारी ।



"म. .मोन्टो…मोन्टो !” रैना दोड़कर उसके समीप पहुँची---- बैठी और जब उसने मोन्टो को स्पर्श किया तो उसका बेजान जिस्म एक तरफ लुढ़क गया।




“म. . .मोन्टो!" रैना की इस चीख ने सारी कोठी को हिलाकर रख दिया।
बन्दर का जिस्म लाश में बदल चुका था ।



मोन्टो की लाश को अपने दोनों हाथों में उठाकर रैना उसे छाती में भीचकर बुरी 'तरह रो पडी-अभी वह ठीक से रो भी नहीं पाई थी कि रघुनाथ ने उसके बाल पकडे-बेरहमी के साथ उसे ऊपर उठाता हुआ बोला-“जो अंजाम इस बन्दर का हुआ है-वही तेरे पिल्ले का भी होगा !"



रैना के हाथों से फिसलकर मोन्टो की लाश एक बार फिर जमीन पर गिर गई ।




रैना तड़प-तडपकर कह उठी आपको क्या हो गया है----आपने मोन्टो को मार डाला……मेरे मोन्टो ने आपका क्या बिगाड़ा था बोलिए, क्यों मार डाला आपने इसे ?"





"हू!" इस घृणात्मक हुंकारे के साथ रघुनाथ ने रैना को धक्का दिवा-रैना, लड़खड़ाकर जमीन पर जा निरी, जवकि रघुनाथ ने तबस्सुम का हाथ पकड़कर कहा-"चलो तबस्सुम !"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

जिस वक्त रघुनाथ की कार कोठी का दरवाजा पार करके सड़क पर, पहुंची, उस समय तक रैना मोन्टो की लाश को अपने कलेजे से लगाए इस तरह रो रही थी, जैसे किसी मां का दुघमुह्म बच्चा उसके अपने ही स्तनों से निकलने बाले जहरीले दूध को पीकर मर गया हो ।


ड्राइविंग सीट पर बैठा रघुनाथ कार को आंधी-तूफाऩ की तरह सडक पर भगा रहा था------उसका चेहरा इस वक्त भी किसी पत्थर की तरह सख्त और कठोर था-------जबकि बगल में बैठी तबस्सुम आतंक्रित और घबराई-सी कह रही थी----"ये तुमने नहीं किया इकबाल!"



"क्या ठीक नहीं किया?"



"मोन्टो को मारकर ।"




"उसे मारता नहीं तो क्या करता-मेरे काबू से बाहर होगया थे !'



"म...मगर-------अब तुम भी गिरफ्तार हो जाओगे-तुम पर उसकी हत्या का मुकदमा चलेगा ।"



उसकी बात सुनकर रघुनाथ ठहाका लगाकर हंस पडा-- बहुत देर तक हंसता रहा वह और जी भरकर हंसने के बाद बोला…"तुम भी रहीं भोली की भोली ही तबस्सुम-------भला कहीं जानवर की हत्या करने तो मुकदमे भी अदालत में चला करते हैं- यदि चलें भी तो उनेमें धारा तीन सौ दो नहीं लगती---मारने वाले को उम्रकैद या फांसी नहीं हो जाती----------थोड़ा-वहुत अर्थिक दण्ड मिलता है !"



"म...मगर-वह जानवर नहीं था इकबाल-"



"खूब-बन्दर को शायद तुम इंसान कहती हो?"



"उफ्फ-तुम समझते क्यों नही इकबाल--वह जानवर नहीं था-इंसान था ।"




रघुनाथ ने व्यंग्यपूर्वक पूछा-"वह कैसे?"





"उसका जिस्म जरूर बन्दर का था-------मगर उसमें दिमाग आदमी का रा-----डाॅ, लाजारूस नाम के एक वैज्ञानिक ने मोन्टो नामक एक जेबक्तरे का दिमाग बन्दर के जिस्म में प्रतिरोपित कर दिया था--------मुकदृमा तीन सौ दो का ही चलेगा इकबाल---वन्दर-के जिस्म वाला वह पोन्टो एक इंसान था।"




"य...ये तुम क्या बच्चों जैसी बाते कर रही हो?" रघुनाथ हड़बड़ा गया ।



"उसके कत्ल के इल्जाम में तुम्हें फांसी तक हो सकती है ।"



" ऐसा भला कैसे हों सकता है…बन्दर के जिस्म में आदमी का दिमाग-ऊंह-बकवास है ।"




“उफ्फ-तुम समझ क्यों नहीं रहे इकबाल---! सच कह रही हू-----तभी तो वह शराब और सिगार पीता था-------डायरी पर लिख सकता था…वह इंसानों की तरह ही सोचता था ।"



‘क्या तुम सच कह रही हो?”




"बिल्कुल सच-तुम्हारी कसम इकबाल !"




"तब तो सचमुच गड़बड़ हो गई ।" रघुनाथ के चेहरे पर पसीना उभर आया-अव क्या होगा तबस्सुम-अनजाने मेंने ये क्या कर दिया-----------वे मुझे पकड़-लेगे-अदालत---------फासी-----!"


हाथ कांपे-गाड्री सड़क पर लहरा उठी ।




तबस्सुम ने जल्दी से कहा------“गाड्री सम्भालो ।"




"अब गाडी सम्भालने से भी क्या होगा----------हम फंस चुके है--------यहा तो हमारा कोई मददगार मी नहीं है-कहा जाएं-किसकी मदद ले?"



"मैं यहाँ एक आदमी को जानती है इकबाल!"


"किसे?"



"म------मास्टर-उसे मास्टर कहते हैं ।"




"क्या नाम है उसका-कहाँ रहता ?"



"मै जानती तो हू, लेकिन .......!"


"लेकिन क्या?"



तबस्तुम ने मीठे स्वर मैं कहा--" दरअसल वह यह नही चाहता इकबाल कि कोई नया आदमी उसका ठिकाना देखे ।"




" फिर रघुनाथ ने पूछा?"



"उसके पास चलने से पहले तुम्हें बेहोश होना होगा ।"



एक पल सोचने. के बाद रघुनाथ ने कहा--------"फिलहाल मजबूरी है तबस्सुम-मैँ बेहोश होने के लिए तैयार हूं।"



इसके बाद तबस्सुम ने क्लोरोफार्म युवत रूमाल सुधाकर उसे बेहोश कर दिया !




परन्तु बेहोश होते वक्त रघुनाथ के होंठों पर बडी रहस्यमय मुस्कान थी ।

किराए की कार एक पब्लिक टेलीफोन बूथ के समीप खडी थी-उसकी पिछली गद्दी पर सुपर रघुनाथ का बेहोश जिस्म लुढका पडा था और बूथ के अन्दर किसी से सम्बंन्ध स्थापित करने के बाद तबस्सुम ने कहा----"रेहाना हियर डार्लिंग.. !"




"न-न-न---!" दूसरी तरफ़ से कहा गया-------------"फोन पर मेरा नाम न लेना रेहाना?"



"क्यों डार्लिंग ?"



"विजय और विकास बहुत चालाक हैं ।"



"उनकी सारी चालाकी तुम्हारे प्लान के सामने धरी रह गई ।"



"काम बोलो !"



" तुम से मिलना चाहती हू !"



"क्यों ?"



"समय कम है-----इस वत्त एक प्रकार से मै खतरे मे भी हू------काम जरूरी है-----सुपर रघुनाथ इस वक्त मेरे साथ है------पूरी रिपोर्ट मिलने पर ही दूंगीं ।"




एक पल के लिए दूसरी तरफ़ सन्नाटा छाया रहा, जैसे कुछ सोचा जा रहा हो, फिर आवाज उभरी---तुम जी.टी रोड की तरफ़ चलो-रास्ते में कहीं भी मेरे आदमी मिल जाएगे-वे तुम्हें तुम्हारी आखों पर पट्टी बाधकर मेरे पास ले आएंगे।"



अब भी पट्टी बंधवाने की जरूरत रह गई है ?"



"हां ।"


"क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है ?"



" ऐसा मत कहो रेहाना…तुमसे ज्यादा विश्वास तो मुझे खुद पर भी नहीँ है, लेकिन…!"



" लेकिन क्या?"





" तुम फील्ड में काम कर रही हो और मैं नहीं चाहता कि जितने भी लोग फील्ड मे-काम कर रहे है उन्हें अड्डे का पता रहे…वे बहुत खतरनाक हैं-------विकास किसी से भी वह बात उगलवाने मे माहिर है, जो बात किसी को फ्ता हो--तुम फील्ड में हो…किसी भी समय-उनके चंगुल में कंस सकती हो-तुम जानती हो, मैं रिस्क लेने की स्थिति में नहीं हू।”
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

“जेसी तुम्हारी इच्छा-----पट्टी बांधकर ही सही-कम-से-कम तुमसे मुलाकात तो होगी ।" "


" तुम जी टी रोड की तरफ बढो!"' कहने के साथ ही दूसरी तरफ़ से कनेक्शन कट कर दिया गया-----रिसीवर हेगर पर लटकाकर वह. बूथ से बाहर निकल आई ।

वह ठीक विकास जितना ही लम्बा था, जिसने अपने सामने खडी तबस्सुम से कहा----तुम उसे यहां क्यों ले आई रेहाना?”



" उसने मोन्टो की हत्या कर दी है !'


"मै जानता हूं-पागल हो गया है साला------------मगर मैंने, तुमसे कहा था कि विना मेरे आदेश के तुम्हें कुछ भी नहीं करना है, फिर भी तुम… ।"




" मैं क्या करती डार्लिंग-----"यदि वह सडकों पर घूमता रहता तो गिरफ्तार हो जाता !'



“यही तो-मैँ चाहता हूं।"



"क्या मतलब?"



" अब अगले ही कुछ दृश्यों मैं मेरी योजना का क्लाइमेक्स आने बाला हे…मेरा प्रतिशोध पूरा होने वाला है रेहाना----सॉरी-मैं धोड़ा गलत बोल गया-मुझे ये कहना चाहिए कि मेरे
प्रतिशोध का एक हिस्सा अगले दृश्यों में पूरा होने बाला है ।"




"मैं समझी नहीँ!"



"भूल गई-मैँने कहा था कि मेरा मकसद रघुनाथ को बिजय की गोली से मरवाना है ।"




"याद है-लेकिन. वह होगा कैसे ?"

" जैसे अब तक सिर्फ वही हुआ है, जैसा मैंने चाहा या सोचा है…इस वक्त उसे यहां नहीं, राजनगर की सड़को पर होना चाहिए…वहां बहुत से भूखे दरिन्दे हाथों में रिवॉल्वर लिए उसकी तलाश कऱ रहे होंगे…उन्ही में से एक विजय भी होगा ।"




" म.............मगर-क्या उस वक्त मेरा इसके साथ होना जरूरी है ?"




""हां।"


" क्यों?"



" ये मैं समझता' हू रेहाना डार्लिंग, और तुम शुरू से अब तक देखती आ रही कि मेरा कहीं भी कुछ व्यर्थ नहीं हुआ है-----डर क्यों रही हो…ओह, समझा------तुम शायद यह रही कि विजय की गोली से उसकी मृत्यु के बाद वहां तुम्हारा क्या होगा?"



"हां ।"




"उसके मरते ही तुम घटनास्थल से खिसकने की चेष्टा करोगी, यदि न खिसक सको, यानी पुलिस के हाथ लग जाओ तब भी फिक्र की कोई बात नहीं है-समय रहते मैं तुम्हें उनके पंजे से निकाल लुगा-----मेरे रहते तुम्हारा कोई बाल भी बांका नही कर सकेगा !"



उसने शंकित स्वर में पूछा-“तुम ठीक कह रहे हो न है डार्लिग ?"



"क्या तुम्हे मुझ पर शक है?"



"न--नहीं----. ।" वह दौडकर लम्बे लडके से लिपट ग़ई, बोली-बस-थोड़ा सा डर लग'रहा है ।"


उसकी पीठ थपथपाते हुए सात फुटे ने कहा-"डरो मत…हौसला रखो ।"
“तुम रघुनाथ के मरने के बाद भारत से निकल चलोगे न ?"



" नहीं तो क्या भारत में रहकर. मुझे मरना है?”



“क्या मतलब?"




उसने कहा…“तुम जानती हो कि जो कुछ हुआ है, वह सब कुछ मैंने किया और मैं दावे के साथ कह सकता हू आगे वही होगा, 'जिसकी पृष्ठभूमि मेने तेयार की है-----

-----------इतने बड़े और दिलचस्प खेल में किसी डायरेक्टर की तरह पर्दे के पीछे रहा हू-----------यह मेरी कार्य…प्रणालो के बिल्कुल विपरीत है रेहाना-मैं खुला खेल फरक्काबादी खेलने का आदी । इस बार भी ऐसा कर सकता था, लेकिन नहीं किया----------कारण एक ही हे…यदि मेरा नाम सामने आ जाए तो वे सतर्क हो जाएंगे और उनके .काम करने का तरीका ही दूसरा हो जाएगा----इस वक्त मेरे बारे में ख्वाब में वे भी नहीं सोच सकत्ते--कामयाब होने के बाद भी मैं ये चाहूगा कि कभी किसी को यह पता न लगे कि यह सब कुछ मैंने किया था, क्योंकि मेरा नाम बाद में खुलने पर भी काफी लफ़ड़े हो सकते हैँ…विजय और विकास बहुत चालाक है । यदि मैं ज्यादा दिन यहाँ "रहा" तो वे नं सिर्फ मेरो नाम जान सकते हैं, बल्कि मुझ तक पहुच भी सकते है । रघुनाथ की मौत के बाद ही मेरा काम खत्म हो जाएगा--वह कत्ल विजय की गोली से होगा और इसी वजह से विजय और विकास में ठन जाएगी---मैं तुम्हें साथ लेकर यहां से निकलुगा------जिन्दगी में कभी कोई सोच भी नहीं सकेगा कि यह सब मैंने किया था ।"

"तब ठीक है मै आगे भी वैसा ही करूंगी-जैसा तुम कहोगे ।"




"उसके दिमाग में 'मास्टर‘ बाली कहानी फिक्स होनी चाहिए ।" उसने कहा-"अतः उसे होश मे लाकर ऐसा ड्रामा किया जाएगा, जैसे उसे यहां आने के कारण मास्टरं तुमसे . . नाराज हो गया है ।"




"मैँ विस्तार से तुम्हारी कि योजना सुनना चाहूंगी ।"




जिसके जिस्म पर चुस्त काले के चमडे की पतलून और जाकेट थी----जिसने आंखों पर काले लैंसों वाला चश्मा लगा रखा था. जिसका बास्तविक चेहरा धनी औऱ नकली दाढी मूछो के नीचे छुपा हुया था-जिसने दस नम्बर के काले चमकदार जूते पहन रखे थे-----------------उसी ने तबस्सुम या रेहाना को धीरे-धीरे वे बाते समझाई, जो रघुनाथ को सुनाने के लिए करनी थीं।


अन्त में रेहाना ने पुछा-"बह कहां है!"




" हाॅल मे…आओं, चले !"



मगर चलने से पहले रेहाना उससे लिपट गई, बोली----" होठ नीचे करो लम्बू !"



वह हंसता हुआ झुका-रेहाऩा पंजों पर खड्री हो गई और फिर उसने होंठों को इस तरह चूमा-जैसे कई जन्मो की मुराद पूरी हुई हो ।
" तबस्सुम ने उस सात फूटे लड़के के साथ हाल मे प्रवेश किया-----हाॅल काफी बड़ा था…भरपूर प्रकाश से जगमगा भी रहा था---------दीवारों के सहारे बहुत-से व्यक्ति हाथों में राइफल लिए सावधान की मुद्रा में खडे थे-लम्बे लड़के को देखकर उनके जिरमों में कुछ और तनाव आ गया ।




हाल के फ़र्श'पर बीचोबीच औंधे मुह रघुनाथ पड़ा था । एक तरफ सनमाइका की चमकदार और वहुत बडी भेज पडी थी और उस मेज के पीछे एक बेहद-ऊंची पुश्तगाह वाली रिवॉल्विंग चेयर थी…उसी कुर्सी की तरफ़ बढते हुए लड़के ने आदेश दिया…सुपर रघुनाथ को होश में लाया जाए ।"



एक डाॅकटर सरीखा व्यक्ति तुरन्त आगे बढा-------रघुनाथ के जिस्म के समीप पहुंचा--------बूट से उसे सीधा किया और जेब से निकालकर जाने क्या सुंघाया कि अगले ही पल रघुनाथ के जिस्म में हरकत हुई----तबस्सुम उसके समीप ही मेज की तरफ़ मुंह किए खडी थी।



लड़का रिवॉरिबा चेयर पर बैठ चुका चुका था ।
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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जब रघुनाथ कुलमुला रहा था, तब लड़के ने ऊंची--और कठोर डांट-भरी आवाज में कहा-हम पूछते हैं कि तुम इसे यहाँ लाई ही क्यों?"


" वो मास्टर-बात यह थी कि... ।"



“हम सिर्फ अपने. सवाल का जवाब चाहते हैं ।"


डाॅकटर सरीखा व्यक्ति अपना काम करके वहाँ से हट चुका था…रघुनाथ की चेतना लौटती हुई-सी महसूस हो रही थी, जबकि तबस्सुम कांपने का सफल अभिनय करती हुई बोली---
'"द. ..दरअसल इंसने मोन्टो की हत्या कर दी थी-----पुलिस भूखे भेडियों की तरह सारे राजनगर में इसे तलाश कर रही थी… . मैंने सोचा कि ये आपके काम का है, कहीं पुलिस के हाथ न लग जाए-बस, यही सोचकर----!"





"'ख. . खामोश !” हलक फाड़कर चिल्लाने के साथ ही लडका एक झटके से कुर्सी से खड़ा हो गया-कुर्सी अपने स्थान पर घूमती रह गई-लड़का गुर्रा रहा था-"भले कैसे भी हालात , मगर हमारी इजाजत के बिना तुमने इसे यहां लाने की हिस्मत कैसे की?"




तब तक रघुनाथ खडा हो चुका था, बोला-------“ज़वाब मैं दूंगा मास्टर"



"त...तुम… क्या जवाब दोगे?"




"दरअसल मुझे नहीं मालूम था कि मोन्टो को मारना किसी जानवर को मारना नहीं, बल्कि किसी इंसान की हत्या करने जैसा-है-ये तो-मुझे तब पता लगा, जब तबस्तुम ने बताया----.मैं चकराकर रह गया-मेरे पास कोई ऐसी जगह नहीं थी, जहाँ मैं पुलिसं की पहुच से दूर और सुरक्षित रहता-मैंने तबस्तुम के सामने समस्या रखी-इसने आपका नाम लिया और यह शर्त लगाई कि यहां आने से पहले मुझे बेहोश होना पडेगा----,मैंने वह' शर्त मानी और... !"




" वैसे भी आपने कहा था कि इकबाल तब आपके काम का है, जबकि किसी तरह उसकी खोई हुई स्मृति लोट आए-और इस वक्त यह रघुनाथ नहीं, इकबाल ही है-----इसे अपने रघुनाथ होने की याद नही जबकि इकबाल से सम्बन्धित एक-एक घटना आप इससे पूछ सकते है !"

“इसका ये मतलब तो नहीं कि तुम हमारी इजाजत कै बिना इसे यहाँ उठा लाओ?"



कांपती हुई तबस्सुम ने कहा'-" भूल हो गई मास्टर !"





" इस भूल को तुम्हें सुधारना होगा-इसी ,वक्त इसे लेकर यहा से निकल जाओ !"




रघुनाथ एकदम कह उठा----" ऐसा गजब न कीजिए मास्टर---यदि उन लोगों ने मुझे... ।"



" तुम बिल्कुल खामोश रहोगे रघुनाथ !" लडके
ने डाटा ।



"म......मगर मास्टर-अच्छा यही होता कि इस बेचारे को आप यहीं रख लेते-बाहर निक्लते ही यह तो यह मारा जाएगा या पुलिस इसे गिरफ्तार कंर लेनी ।



" ऐसा कूछ नहीं होगा।”



"हम समझे नहीं!-"



" पुलिस से वहुत ज्यादा इकबाल की हमे जरूरत है-हम बचन देते हैं कि पुलिस तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगी-मेरी सम्पूर्ण ताकत हमेशा इसके चारों तरफ़ मोजूद रहकर इसकी मदद करेगी ।"




तबस्सुम ने क्या…"मुझे आपंकी ताकत पर भरोसा है मास्टर !"




"तो जाऔ-हमारे अभी तुम्हारी आंखों पर पट्टी बांधकर यहां से कहीं दूर छोड़ देंगे-तुम्हारी कार भी तुम्हरि साथ ही होगी-अपनी कार के जरिए वहीं से तुम सीधे सम्राट होटल यानी अपने कमरे हैं पहुंचोगे…हमारा अगला संदेश तुम्हें वहीं . टेलीफोन पर मिलेगा !'



"ओ के मास्टर !"


रघुनाथ कुछे नहीं बोला----जैसे मिट्टी का माघो हो ।।
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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रोती हुई रैना ने जो कुछ बताया, उसे सुनकर कर विजय जहा खडा था, वही जड होकंर रह गया-उसकी की एक-एक नस में तनाव उत्पन्न हो गया'-जबड़े कस नगए- मुट्ठीयां खुद-व-खुद ही कसती चली गई…विज़य का चेहरा कठोर हो गया'-आखें दहककर अगारे बन गईं…इस वक्त वह उत्तेजित नजर आ रहा था, जो कभी उत्तेजित नहीं हुआ ।



छोटी…छोटी वातों पर उत्तेजित होना विकास का काम था---

उसी-का खून जब उबाल मारता था तो वह पागल हो जाता था-दीबाना हो जाता था ।




विजय उसे समझाया करता था । यही कि उत्तेजना या क्रोध ठीक नही होता------वैसी मानसिक स्थिति में ऊटपटांग काम ही होते हैं-मगर मोन्टो की हत्या की बात सुनकर!



घनुषटंकार की लाश देखकर वह स्वयं उत्तेजित हो उठा । अपनी शिक्षा खुद ही भूल गया विजय-जो हर मुसीबत मे-----------------हर खतरे में फंसा हंसता था…कहकहे लगाता था, बह इस वक्त गुस्से की ज्यादती के कारण खडा कांप रहा था ।





रैना मोन्टो की लाश को छाती से लगाए रोए जा रहीं थी । एकाएक विजय घूमा-ओँर फिर तेजी के साथ पोर्च में मैं खडी अपनी कार की तरफ़ बढा ।



"विजय भइया!'' पीछे से रैना ने पुकारा।



वह घूमा…बोला कुछ नहीं ।



परन्तु उसके चेहरे पर मौजूद भाव बहुत कुछ कह रहे थे ।


"कहां जा रहे हो?"



गम्भीर एवं सपाट स्वर… "अपने वफादार मोन्टो के हत्यारे की तलाश में ।"




" ब....... बिजय भइया?" रैना कांप गई!

“वह भले ही मेरी वहन की माग का सिन्दूर----------भले हीँ उसके मरने पर मेरी बहन अपने हाथ की सारी चुडियां तोड डाले… मगर-मैं उसे जिन्दा नहीं छोडूगा-मेरे मोन्टो को मारा हे उसने-यदि मैंने अपने बेजबान मोन्टो की मौत का बदला नहीं लिया तो धिक्करार है मुझ पर ।"



"भइया!"



" बहुत हो लिया ।" विजय अचानक फट पढ़ने वाले ज्वालामुखी के समान लावा उगलता ही चला गया… "अब रघुनाथ की बदतमीजियां मैं ज्यादा सहन नहीं कर समता-----अपनी माग का सिर पोछ डालो रैना वहन-गले में पड़े मंगलसुत्र को नोच फेंक दो----------अब जब जब तुम्हारा विजय भइया लौटेगा तो तुम विधवा हो चुकी होगी।"



कहने के बाद विजय जबरदस्त फुर्ती के साथ कार के समीप पहुचा ।




रैना को अचानक ही जाने क्या हुआ कि मोन्टो की लाश को एक तरफ़ फेंककर वह आंधी-तूफाने की तरह विजय के पीछे लपकी-जोर से चीखी----" सुनो विजय भइया-----बात तो सुनी-यदि तुम मेरी बात सुने बिना चले गए तो गजब हो जाएगा-वे तो…



मगर-विजय की कार स्टार्ट होकर एक झटके के साथ पोर्च से बाहर निकल गई-मुह खोले कई पल तक तो रैना अपने स्थान पर हक्की-बक्की खडी रह गई-फिर जैसे उसके मस्तिष्क को कोई झटका लगा है ।




तेजी से दोडी।


गैराज से कार निकाली और ही देर बाद रैना की कार आघी-तूफान के से वेग से उसी तरफ दोड्र रही थी, जिधर विजय गया था, परन्तु सड़क पर दुर:-दुर तक भी कही ह विजय
की कार नहीं चमक रही थी… रैनाके पैरों का दबाव एक्सीलेटर पर बढता ही चला गया

" क्या…?" विकास कुर्सी से उछल पडा।




बलैक बाय ने कहा-----" हा-विक्रम ने यही रिपोर्ट दी है ।"




“न.. .नही!" विकास चीख पडा-----डैडी ऐसा नहीं कर सकते-वे मोन्टो को नहीं, मार सकते अंकल-अभी वे इतने पागल नहीं हुए हैं ।"




"ये सच विकास!"




"ये झूठ है-ये झूठ है?" बिकास इतनी जोर से हलक फाढ़कर चिल्ला उठा यकि वह पूरी इमारत झनझनाकर कांपती हुई भी महसूस हुई, जिसमें भारतीय सीक्रेट सर्विस का आफिस था-----न सिर्फ चेहरा ही, नही बल्कि सात फुटे का समूचा जिस्म पसीने-पसीने हो उठा ।



"काश यह झूठ होता विकास! " ब्लैक बोंय जैसे लोह पुरुष की आवाज भी भर्रा गई ।




"न...नहीं अंकल-प्लीज-इससे आगे एक शब्द भी न कहना ।"



"बात मोन्टो के कत्ल से भी बहुत्त आगे निक्ल चुकी है--विक्रम ने रिपोर्ट दी है कि मोन्टो की लाश को देखकर कभी भावुक न होने वाले विजय भी भावुक हो उठे हैं------रैना बहन,से सब कुछ सुनने के बाद उन पर खून सवार-हो गया है---------मोन्टो की लाश की कसम खाकर वे निकल पड़े हैं-उन्होंने निश्चय कर लिया है तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक कि रघुनाथ से मोन्टो की मौत का बदला नहीं ले लेंगे ।"




"न...नहीं!" विकास हहबड़ा गया ।




चिंतित एवं दुख भरे स्वर में ब्लेक बॉय कह उठा------“भगवान ही जाने कि क्या अनर्थ होने जा रहा है।"



"न...नहीं…कुछ नहीं होगा-मै कुछ नहीं होने दूंगा ।"



कहने के तुरन्त वाद लम्बा लड़का तेजी से बाहर की तरफ़ ब्रढ गया ।



ब्लैक बाॅय ने जल्दी से कहा-" कहां जा रहे हो विकास ?




"किसी अनर्थ को होने से रोकने ।"



"म...मगर अभी तुम्हारी जमानत नहीं… ।"



उसका पूरा वाक्य सुने ही विकास गुप्त भवन के इस साउन्ड प्रूफ आँफिस से बाहर निकल चुका था-ब्लैक बॉय ठगा सा खड़ा रह गया---------उसके मस्तक पर चिंता की ढेर सारी लकीरों ने जाल सा बना दिया था !

विजय के चेहरे पर अजीब-सी कालिमा उभर आई थी !



आंखें दहक रही थी----जिस्म की एक-एक नस में तनाव था.........जबडों के मसल्स रह-रह कर फूल और पिचक रहे थे…गाडी पहले ही बहुत तेज रफ्तार से दौड रही थी, फिर भी एक्सीलेटर पर उसके पैरो का दबाव निरन्तर बढता गया। सडक छोड़कर कार मानो हवा में उड़ने लगी !




उसका रुख 'स्म्राट' होटल की तरफ था-----------एक चौराहे पर पहुंचकर अचानक ही उसे पूरी ताकत से ब्रेक मारने पडे--- चीखती-चिल्लाती हुई कार रूक गई ।



सामने लाल बत्ती चमक रही थी।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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-- 007

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