दूध ना बख्शूंगी/ complete

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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

"ग. . . गुरू--- गुरू की जगह रहा, लेकिन पैदा करने वालों से वड़ा तो नही है-मुझें ये नहीं सोचना है कि वे मेरे गुरु है---मुझे सिर्फ इतना पता है कि उन्होंने मेरे पिता को मारा है और मुझें जन्म देने वाली मां ने अपने पति के हत्यारे की लाश मांगी है------दूध का वास्ता दिया है मुझे'-इसी दूध की कसम चीफ़, मां कर्ज मांगा नहीं करती, लेकिन जव मागा है तो उसे हर हालत में मिलेगा ।"



"ल. . लेकिन तुम यह क्यों नहीं-सोचते कि रधुनाथ इकबाल बन चुका था।"



"'वह सब नाटक था--एक ड्रामा !'


"लेकिन उन्हें नहीं मालुम था-जिस तरह सव धोखे मे थे------उसी तरह वे भी धोखे मे थे।"




" इसका ये मतलब तो नहीं कि उन्हें गोली ही मार दी जाए?”



"उन्होंने-------।"




“चीफ…!” एकाएक ही विकास का स्वर अत्यन्त ठन्डा हो गया------"मैं किसी बहस में नहीं पड़ना चाहता-मुझें सिर्फ अपने सवाल का जवाब चाहिए---विजय गुरु. कहां हैं?"'



“कह चुका हु कि वे यहां नहीं आए हैं।”




" पुलिस से बचनेके लिए उनके पास इससे बेहतऱ'जग़ह नही है !"




. "फिर भी-वे यहां नहीं आए ।"



“मुझे उम्मीद है कि वे जरूर आए हैं और.यदि वे गुप्त भवन मे कहीं हैं तो मेरी'आवाज़ भी सुन रहे हैं।" कहने के साथ विकास अचानक ही ऊची आवाज चीखा---" यदि यहां कहीं छुपे आप मेरी आवाज सुन रहे है गुरु, तो` सुनो-----------इस तरह मुंह छुपा लेने से आप ज्यादा दिन तक वच नही सकेंगे----" मेरा सामना करना होगा आपको---या तो मैं रहुंगा या आप-सामने आइए-वरना आपको सामने लाने के मैं इस गुप्त भवन को जलाकर राख कर सकता हु-आपकी कोठी में आग लगा सकता हु------सामने आओं गुरू-वरना राजनगर
में तबाही मचा डालंगा में।”



"वे यहां नहीँ है विकास-"




"नहीं हैं तो आऐगे-----आप से सम्बन्ध स्थापित जरूर करेंगे वे------जो आपने सुना है-उनसे कहना-मुझे उनकी लाश चाहिए--बेहतर है कि वे आत्महत्या कर ले ?" कहने के बाद वह मुडा और बाहर निकलने के लिए तेजी से दरवाजे की तरफ बढ गया !!



" बिकास !"



वह ठिठका----घूमा----"कहिए !"



" ये सव कुछ ठीक नहीं हो रहा है-खुद को सम्भालो बेटे…अनर्थ हो जाएगा ।"


" यह सब कुछ तो मेरे डैडी को मारने से पहले विजय गुरू को सोचना चाहिए था !"



"म-----मगर----तुम सिर्फ किसी के बेटे ही नहीं हो.---- भारतीय सीक्रेट सर्विस के सदस्य भी हो तुम----बल्कि सबसे पहले तुम सीक्रेट सर्विस के सदस्य हो-बाद में कुछ और-----मै यानी सीक्रेट सर्विस का चीफ तुम्हें हुक्म देता हू कि तुम विजय पर कोई आक्रमण नहीं करोगे !"




"और मैं-----यानी रैना का बेटा यह आदेश मानने से इंकार करता हूं !"



"विकास !"



" कल शाम तके मेरा इस्तीफा आपकी टेबल पर पहुच जाएगा !" एक झटके के साथ कहने के बाद विकास मुडा फिर तेज कदमो के साथ वहां हो निकल गया !



"मैं आपसे पूछता हू अशरफ अंकल--------------बोलो-----विजय गुरु कहां हैं?"




"मैं नहीं जानता हूं ।"




कठोर स्वर-----"आपको बताना होगा !"



"क्या मतलब-जब मैं कुछ जानता ही नहीं हूं तो बताऊंगा, क्या?"



लम्बे लड़के ने एक कदम बढाया और झपटकर दोनों हाथों से अशरफ का गिरेबान पकड़ लिया, गुर्राया--"आप जानते हैं अंकल, लेकिन आप बता नहीं रहे है ।"



"इस बेहूदगी का क्या मतलब विकास?" अशरफ दहाड़ा ।



"मेरे मस्तक पर लगा टीका देख रहे है आप?"


"हां !"



"काहे का है ?"



" लहु का।"




" नही !" विकास चीख पड़ा----" ये दूध का टीका है----- मां के दूध का !"


कहने के साथ ही विकास ने अशरफ के जबड़े पर इतनी जोर से घूंसा मारा कि हवा में उछलकर अशरफ अपने कमरे में पड़े सोफे से उलझकर फर्श पर जा गिरा और कदाचित ऐसा इसलिए हो गया था, क्योंकि अशरफ को उससे इस किस्म की हरकत की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी--इससे पहले कि वह सम्भलता, लम्बे लडके की टांग चली----बूट की एक भरपूर ठोकर पडी ।




एक चीख के साथ अशरफ लुढक गया।



उसके बाद-विकास ने उसे संभलने का एक भी मौका नहीं दिया-------अशरफ यह सोचता-सोचता ही बेहोश हो गया कि विकास को आखिर हो क्या गया है-फ़र्श पर बेहोश पड़े अशरफ घूरता हुआ विकास बोला-----"कुछ भी सही अंकल-----गुरु तुम्हे मेरी कैद छुड़ाने जरूर आएंगे ।"


“अरे !" फर्श पर गिरते ही विक्रम कह उठा---------“तुम पागल हो गए हो क्या विकास?"


"हां ।" कहने के बाद विकास आगे बढा-उसके नजदीक पहुचा-----झुका---एक हाथ से उसका गिरेबान पकड़कर ऊपर उठाता हुआ बोला-----“मैं पागल हो गया अंकल-इसतिए कि मेरे डैडी मरे हैं-------इसलिए कि मेरी मां ने दूध का वास्ता दिया है !"




"म......मगर---!" विकास के घूसे ने उसे पुनः हवा मैं उछाल दिया ॥


विकास ने सुनसान इलाके में स्थित एक पुराने माॅडल की इमारत के पोर्च मे कार रोक दी…कार के रूकते ही चारों तरफ देखेती हुई आशा कह उठी-----ये तुम मुझे कहां ले आए हो विकास ?"




"क्या आपको मुँझ पर यकीन नहीं है आन्टी?"


"अविश्वास का सवाल ही कहां है?"



"तो आइए----' यहां आपको एक तमाशा दिखाने लाया हूं।” कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकलती आशा ने कहा---"यह तो तुम तभी से कह रहे हो, जब मुझसे मिलने मेरे फ्लैट पर पहुंचे-यह कहकर मुझे अपने साथ लाए हो कि मुझे कोई बहुत बड़ा तमाशा दिखाने जा रहे हो, परन्तु एक बार भी इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि आखिर वह तमाशा क्या है ।”



"कुछ ही देर बाद ज़वाब खुद मिल जाएगा-मेरे साथ-चलिए ।" कहने के साथ ही उसने कसकर आशा की कलाई पकडी और इमारत के द्वार की तरफ़ बढ गया------असमंजस में फ्रंसी आशा उसके साथ खिंचती चली गई---------द्वार पर एक मोटा ताला लगा था !



विकास ने उसे जेब से एक चाबी निकालकर खोला । फिर विकास उसे सुनसान पडी एक बारहदरी से गुजारता इमारत के अन्दर ले गया…विकास की पकड इतनी सख्त थी कि आशा को अपनी कलाई किसी फौलादी पंजे में फंसी महसूस हो रही थी------इमारत के विभिन्न हिस्सों में से गुजरते हुए एक कमरे में पहुच गए ।



विकास ने आशा को फर्श के ठीक बीच में खडा किया और बोला------"यहां खडी रहो आन्टी--कुछ ही देर बाद आपको एक दिलचस्प तमाशा देखने को मिलेगा ।"



-उलझन में फंसी आशा उस स्थान पर खडी रही । विकास कमरे की एक दीवार में लगे स्विच बोर्ड की तरफ बढा----इघर उसने एक स्विच आन किया और उधर आशा के पैरों तले का फर्श छोटे-छोटे दो किवाडों की तरह नीचे की तरफ़ खुल गया !"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

एक लम्बी चीख के साथ आशे उसमें समा गई । स्विच आँफ़ करते ही किवाड़ यथा स्थान फिक्स हो गया--विकास के होंठों पर जहरीली मुस्कान नाच रही थी और उसकी आंखों में चमक रही थी-हिंसक चमक ।



सिर्फ एल क्षण तक हवा में लहराने के बाद उसके जिस्म को झटका सा लगा----वह किसी डनलप के गद्दे पर गिरी थी--उसी पर झूलती -सी आशा ने अपने ऊपर, छोटे छोटे दो किवाडों को बन्द होते देखा------ उसके चेहरे पंर हैरत-अविश्वास---- भय एवं उलझन के संयुक्त भाव, थे ।




"वेलकम आशा---- वेलकम !"




नाहर की आवाज सुनकर आशा इस तरह उछल पड्री, जेसे अचानक ही उसे किसी विच्छू ने डंक मार दिया हो-बडी तेजी से उसने आवाज की दिशा देखा------नाहंर पत्थर के वने एक चबूतरे पर लेटा मुस्करा रहा था-अभी आशा ने कुछ कहने के मुंह खोला ही था कि परवेज की आवाज------" यहां पड़े हम यही सोच रहे थे आशा कि आखिर अभी तक तुम यहां क्यों नहीं पहुंची हो?"



आशा ने चक्ति दृष्टि से उधर देखा ओर फिऱ उसी कमरे में अशरफ और विक्रम को देखकर तो वह चौक ही-पड्री ।


मुह से बरबस ही निकला-----"तुम सब यहां?"



"एक-एक करके सभी पहुच गए हैं ।"



"म...मगर तुम्हें. यहां किसने पहुचाया?"



विक्रम ने बताया---"जिसने तुम्हें पहुचाया हैं !"



" व............विकास ने ?"




उनमें से कोई कुछ ऩही बोला…यह काफी वड़ा और गोल कमरा था-----कमरे का व्यास बीस फुट तो रहा ही होगा । दीवारों के सहारे पत्थर के चबुतरे बने हुए थे….चारों ने एक-एक चबूतरा कब्जा रखा था------सारे कमरे में चार इंच मोटा डनलप का एक गद्दा बिछा हुआ -------उन्हें देखती हुई वह स्वयं ही बोली--------ल.......लेकिन----हम सबको यहाँ एक ही स्थान पर इकट्ठा करने के पीछे विकास का मकसद क्या है?"





" उसने हमे इकट्ठा नहीं-कैद किया है।"



"क्यों ?"
" कमाल है----उसने तुम्हें नही बताया----- वैसे भी तुम होशो हवास में इस तहखाने में गिरी हो, इससे लगता है कि विकास का तुम्हें यहां लाने का तरीका सबसे जरा अलग रहा है !"



"मैं समझी----नहीं!"



“हमारी आपस की बातो से जो निचोड निकला है, वह यह है कि उसने हम सबके पलेटों पर जाकर अलग-अलग सबको बेहोश किया…जब आंखें खुली तो हमने खुद को इसी कैद में पाया, लेकिन तुम अपने होशो-हवास में यहाँ पहुंची हो…जाहिर है कि उसका तुम्हें यहां लाने का तरीका ज़रा अलग रहा ।"



"मुझे तो वह यह कहकर लाया था कि कोई तमाशा दिखाने ले जा रहा है और फिर धोखे से यहाँ फंसा दिया ।"



"इसीलिए तुम्हें नहीं मालूम कि हम सबको कैद करने के पीछे उसका क्या मकसद है !"




" क्या मतलब?"



. "उसे विजय चाहिए आशा…रघुनाथ की हत्या करने के बाद विजय गधे के सींग की तरह गायब हो क्या है------रैना ने दूध का वास्ता देकर बिकास से विजय की लाश मांगी है-विकास पागलों की तरह विजय को दूंढ़ता फिर रहा है-हर्में उसने दो बाते सोचकर कैद किया है, पहली तो .यह है कि यदि हम आजाद रहे तो उसके ख्याल से विजय की मदद कर सकते है-दूसरे उसका अनुमान ये है कि विजय हमे इस कैद से निकालने की कोशिश जरूर करेगा।"



"अजीब घटनाएं घट रही हैं ।" आशा बोली--------" क्या तुम्हारी समझ में कुछ आ रहा है अशरफ-------ये सब क्या चक्कर चल रहा है-पहले रघुनाथ इकबाल बन गया----उसने मोन्टो तक को मार दिया------फिर विजय ने रघुनाथ को ही गोली मार दी-क्यो अशरफ-आखिर क्यों-------उत्तेजित होकर विकास से इस किस्म की हरकत की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन विजय नहीं----उसने ऐसा क्यों कर दिया?"

" मैँ क्या करता गुलफाम--- मैँ क्या करता?" दांत भीचकर कसमसाते विजय ने दो-तीन मुक्के जोर-जोर से दीवर में मारे---मोन्टो की लाश देखकर अपने होशो हवास में न रहा----रघुनाथ से बदला लेने के लिए निकल पड़ा---------फिर भी मैं उसे जान से मारने की बेवकूफी नहीं कर सकता था--------मैं उस पर अपना गुस्सा उतारकर--उसे पुलिस को सौंप देना चाहता था, किन्तु उस कम्बख्त ने रैना बहन पर ही गोलियां चलानी शुरू कर दीं-मै क्या करता गुलफाम--तू ही सोच-जिसने विना हिचक के मोन्टो को मार डाला-उसे भला रैना को मारने में क्या देर लगती-----उस वक्त मैं सिर्फ इतना ही सोच सका क्रि यदि मैं चूक गया तो अगले ही पल मुझे मोन्टो की तरह रैना बहन की लाश भी देखनी होगी।”




"ल.........लेकिन मास्टर-रैना वहन का कहना तो ये है कि रघुनाथ नाटक कर रहा था?"



" यही सुनकर तो मेरे पेरों तले से धरती खिसक गई-----होशो-----हवास उड़ गए-मेरा दिमाग चकरा गया गुलफाम-मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था कि अपना तुलाराशी कोई चाल भी चल सकता है--चाल भी ऐसी…इतनी खतरनाक…उफ् . अपने जीवन में आखिरी क्षणों में कहीं अपने तुलाराशि का दिमाग तो खराब नही हो गया था?"




"अब क्या करने का इरादा है मास्टर?"



विजय घूमा…उसका सारा चेहरा आंसुओं में डूबा हुआ था-----आखे जी भरकर-रोने के कारण बुरी तरह सुर्ख और सूजी हुई थी!

गुलफाम की तरफ़ देखता हुआ वह बोला------वह मेरा दोस्त ही नहीं गुलफाम-मेरी सबसे प्यारी वहन का पति भी था और मैंने उसका सुहाग उजाड़ दिया है-उफ्फ-एकं भाई ने अपनी बहन की माँग में खाक भर दी है…ऐसे भाई को इस दुनिया में रहकर एक भी सांस लेने का हक नहीं है…दूसरी तरफ तुम्हारे आदमियों ने रिपोर्ट दी-है कि रैना ने विकास को दूध का वास्ता देकर मेरी लाश मांगी है-----ऐसे हालातों में जी तो यह चाहता है कि या तो स्वयं ही अपने मस्तक में गोली उतार लूं या उस-सात फूटे के सामने जाकर सीना तान दूं--कह दूं कि…ले-इस सीने के परखच्चे उड़ा दे----दुध की कीमत चुका दे-----विजय नाम के इस कुत्ते की लाश ले जाकर रैना बहन के चरणों में डाल दे।”



"म..मास्टर !" गुलफाम तड़प उठा-----ऐसा मत कहो मास्टर !"



"मैं क्या करूं…मैं क्या करूं गुलफाम?" विजय चीख पड़ा ।



"उस गुजरिम का पता लगाइए मास्टर, जिसकी वजह से यह सब कुछ हुआ है--सुपरिटेंडेंट साहब को गोली आपने नहीं, उसी के फैलाए हुए जाल मे फंसकर आपने------।"



"य...यह भी तो मेरा गुनाह है गुलफाम कि मैं किसी के जाल में फंस गया-मैं-जो यह समझता था कि किसी के जाल में नहीं फंस सकता-उल्टे किसी को जाल में फंसा सकता हू।"




" आप इंसान हैं मास्टर-भगवान तो नहीं, जो कभी धोखा खा नहीं सकता ।"



"मैं तो इंसान भी नहीं रहा गुलफाम !"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

"मास्टर !"




"लेकिन दिल में उसे देखने-उससे टकराने और उसकी लाश बिछा देने की तमन्ता जरूर है, जिसने यह सव कुछ किया है---अपनी-इस आखिरी तमन्ना को पूरी करने के बाद मैं खुद को विकास के हवाले कर दूंगा !"


गुलफाम की आवाज भर्रा गई+----“आप ऐसा क्यों कहते हैं मास्टर?"



"क्या तुम मेरी कुछ मदद नहीं कर सकते गुलफाम?"


रघुनाथ के दाह-संस्कार की तैयारियां चल रही थी ।


सारा शहर मानो उसकी कोठी पर उमड पड़ा-रेना को होश आ चुका था-छाती पीटती हुई वह दहाड़े मार-मारकर रो रही थी---- साथ ही विजय क्रो विभिन्न किस्म की गालियां के भी देती जा रही थी वह॥


उसर्के पास बैठी ढेर सारी औरते उसे सांत्वना देने के स्थान पर स्वयं ही रो रही थी ।


उन्ही में एक विजय की मां थी-टाकुर साहव की धर्मपत्नी ।


विजय की सगी बहन कुसुम भी थीं-उसे 'तार' द्वारा तुरन्त ससुराल से बुलाया गया था।



उन दोनों की अवस्था भी रैना जैसी ही थी-----छाती पीटती हुई वे-विजय को कोस रही थी ।



अर्थी तेयार करने बालों में से एक ठाकुर साहव थे------बुरी तरह रो रहे थे वे-अर्थी तैयार करते वक्त न सिर्फ हाथ ही बल्कि-उनका शरीर कांप रहा था !



कुछ लोग रघुनाथ के शव को अन्तिम स्नान करा रहे थे ।


एक कोने में विकास पत्थर की शिला के समान खड़ा था।


दीवारों में सिर-पटक-पटककर मोन्टो ने खुद क्रो लहूलहान' कर लिया था----उसकी दीवानगी-उसका जुनून और विलाप देखकर देखने वालों के मुहं से-चीत्कारे निकल गई थी------दिल दहल उठे थे ।


अंत में विकास ने ही सम्भाला था उसे । उस वक्त कोठी के चारों और रुदन ही रुदन गूंज गया, जा रघुनाथ अर्थी पर लिटाया गया-…चिरनिद्रा में लीन था वह------चेहरे पर
अजीब- सी पीडा के भाव ।



रोते-बिलखते ठाकुर साहव ने उस पर तिरंगा ढका ॥
फिर…चार कंधों ने अर्थी उठाई-उनमे एक कन्धा विकास का भी था…"राम.नाम…सत्य है का गमगीन स्वर मानव-समूह में गूंज उठा…लोग रोते-बिलखते रह गए ।




एक विशाल जन-समूह श्मशान की ओर चल दिया । उस तरफ़, जो कि सड़को पर घूम रहे प्रत्येक हाड़-मांस के पुतले की अंतिम मंजिल है…रघुनाध की उस अन्तिम यात्रा मे गृहमंत्री और प्रधानमंत्री तक आए थे !



श्मशान में चिता सज गई ।


सुपर रघुनाथ के नश्वर शरीर को मोटी-मोटी लकडिर्यों की सेज पर लिटा दिया गया---------पंडित उसकी आत्मा की शांति _हेतु मंत्रो का उच्चारण करने लगा ।



फिर-विकास को पूछा गया ।



सिरे पर से जल रही लकडी उसब हाथ में देकर चिंता मे 'अग्नि' प्रज्वलित करने के लिए कहा गया । आगे बढकर जब विकासं ने ऐसा किया तो उसके जबड़े र्भिचगए ।



आंखों से जलते हुए दो आंसू टपके।



कुछ ही देर बाद चिता आग की लपटों में धिर गई----लकडियों के साथ वह भी जलने लगा, जो विजय की ' झकझकियां सुनकर बोर हो जाया करता था…सुपरिंटेण्डैण्ट जैसे उच्च पद पर आसीन होने के बावजूद भी जो विजय _ की बकवास सुना और सहन किया करता था ।



कपाल-क्रिया का वक्त आ पहुचा । जब विकास के हाथ में लाठी थी और लक्ष्य के रूप में था उसके पिता का सर-तब विकास को यूं लगा कि जैसे वह सिर उसके पिता का नहीं, बल्कि विजय का है । उत्तेजना में झुंझलाकर उसने पूरी ताकत से लाठी मारी ।



सिर खील-खली होकर बिखर गया ।


सब कुछ आग में जलकर भस्म हो गया-लकांड़ेयों की राख में रघुनाथ की राख मिल गई…लकांड़ेयों के सुलगते हुए छोटे-टुकडों के बीच हड्डियां भी पडी थीं।



एक लाठी से उसी राख को कुरेदते हुए बिकास ने एक बार फिर अपनी कसम दोहराई ।

अब विकास ने मोन्टो से सबकुछ 'जानने के लिए प्रश्न किया तो.........!



मोन्टो ने डायरी पर लिखा…“मुझें इससे ज्यादा कुछ मालूम नहीं है कि अचान ही रैना मां'मेरे पास आई और कपडे उतारने का आदेश दिया------उनका आदेश मानते मैंने बहुत पूछा कि यह सब क्यो किया जा रहा है, पर मां ने क्रहाकि इस वक्त पूरी बात बताने का समय नही है, बादमें बताएंगी-----बस यह कहने के बाद रैना मां ने मुझे स्टोंर में बन्द कर दिया और कहा कि मैं तब तक यहां से बाहर निकलने की केशिश न करूं जब तक कि स्वयं न निकाले-उन्होंने निकाला तो रघुनाथ अंकल की मृत्यु हो चुकी थी----ऐसा वातावरण ही न मिल सका कि मैं रैना मां से सवाल कर सकता ।"




पढ़ने के बाद कई क्षण तक विकास जाने किस सोच में डूबा रहा।



ऐकाएक वह उठा और भीतरी कमरे की तरफ वढा-मोन्टो उसके पीछे था।



रैना अब भी अपने कमरे में बैठी रो रही थी-------उसके पास इस वक्त सिर्फ विजय की मां और कुसुम ही थी…वहां पहुंचते ही विकास ने उन दोनों से थोड्री देर लिए बाहर निकल जाने और रैना से अकेले में कुछ बाते करने की इच्छा जाहिर की-----वे बाहर चली गई।




" दरंवाजा अन्दर से बंद कर दो मोन्टो!"



मोन्टो ने तुरन्त आदेश का पालन किया,जबकि बिकासं ने रैना-को पुकारा-----" मां !'
वह कुछ न बोली----रोती रही,, सिसकती रही ।



"पिता की मौत का बदला लेने के लिए मुझे तुमसे चन्द 'सवालो' के जवाब चहिए मां!"


रैना ने'अपना चेहरा ऊंपर उठाया-उसे देखकर विकास के दिल में हाहाकार-सा मच गया---------बिल्लुत्त बुझा हुआ निस्तेज और आंसुओं में डूबा सफेद चेहरा-जहां बिंदिया हुआ करती थी, वहाँ धब्बा-मांग में पिछले दिन लगाए गए सिन्दूर के सिसकते कण ।


सूती सफेद धोती-पहने थी वह ।



जिन कलाइयों में उसने कल तक. चूड्रियां खनखनाते देखी थी, उन्हें सूनी देखकर विकास के मन एक हूक-सी उठी----अपनी विधवा मां को वह देखता ही रह गया--कुछ बोल नहीं सका, जब कि रैना ने पूछा--"क्या पूछना चाहता है?"




"वह सब कुछ जो हुआ है, यानी क्या सोचकर क्या कंर रहे थे ?"



"तोताराम दम्पति हत्याकांड हमारे लिए मनहूस _ सावित हुआ है।"



विकास चौंक पड़ा-"त्तोताराम दम्पति हत्याकांड से इस सबका क्या मतलब?"




"उसी हत्याकांड की-बजय से तो आज हमें यह दिन देखना पड़ा है-न वह होता---न तेरे डैडी मदद के लिए विजय के पास जाते-----------न वह कमीना हमारे सामने उन्हें इतनी ऊटपटांग बाते कहकर उनके ज़मीर को .ललकारात हुआ उसे नीचा दिखाता और न ही उनके जेहन में कुछ कर गुजरने की बात घुसती ।"



" मै समझा नहीं?"


" तुम्हे याद होगा कि उस हत्याकांड के सम्बन्थ में विजय ने उसे लत्ताड़ा था----कहा था कि उन्होंने आज तक स्वयं एक केस भी हल नहीं किया है-- एस पी के पद ने लायक ही नहीं हैं-विजय द्वारा वे हम सबके सामने अपना अपमान सहन न कर सके-----तुम्हें यह भी याद होगा कि उस वक्त वे गुस्से में उठकर चले गए थे ।"




"हां,यादहै।"





" उसके अगले ही दिन - अखबार में इकबाल बाला विज्ञापनं पढ़कर वे चौक पड़े उन्होंने मुझे दिखाया-तुमसे होती हुई बात विजय तक पहुच गई-----सब दिलबहारं होटल तबस्सुम और अहमद से मिलने गए------वहाँ जो बाते हुई-उनसे हमें इस सम्भावना पर गौर करने के लिए विवश हो जाना पड़ा कि कहीं वे सचमुच ही तो इकबाल नहीं हे-परन्तु वे अच्छी तरह जानते थे वे इकबाल नहीं रघुनाथ ही हैं-वे आँफिस चले गए, किन्तु उनका दिमाग हम सबसे ज्यादा परेशान रहा…उनकी समझ में नहीं आकर दे रहा था कि आखिर तबस्सुम…अहमद और इकबालं का चक्कर क्या है । उनके दिमाग यह विचार आया कि… हो न हो, तबरसुम और अहमद कोई षड्यंत्रकारी हैं, जो उम्हें किसी षड्यंत्र में उलझाना चाहते हैं-मगर आखिर वह षड्यंत्र क्या है? इसी प्रश्न का जवाब उनके दिमाग में नहीं आ रहा था-उसी की खोज मे वे आँफिस से सीधे दिलबहार होटल पहुच गये-----एकाएक ही उनकें दिमाग में स्वयं ही कुछ कर गुजरने की इच्छा प्रबल हो गई थी-उन्हें मालूम ही था कि विजय भी इस कैस में उलझ चुका है !"



"फिर !"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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अत: उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि इस बार वे इस केस को विजय से पहले हल करके दिखाएंगे-दिलबर होटल में पहुंच कर संयोग कुछ ऐसा बना कि उन्होंने तबस्सुम और अहमद के बीच फोन पर होने वाली वार्ता सुन ली------उन बातो का निचोड़ यह निकलता था कि तबस्सुम और अहमद उन्हें सचमुच इकबाल ही समझते हैं और वे किसी 'मास्टर' नामक अपराधी के चंगुल में फंसे हुए हैं, जो कि सारी दुनिया को तबाह करने बाली किसी स्कीम पर काम कर रहा था--------------------उनकी बातों से ही उन्हें यह भी पता लगा कि मास्टर को उनकी (रघुनाथ की) जरूरत है, किन्तु उस रघुनाथ की, जिसे यह याद हो कि वह कभी इकबाल था…यह सब सुनने के बाद च उन्होंने मास्टर तक पहुचने का निश्चय कर लिया-----उस तक पहुचने के लिए उन्हें सबसे आसान तरकीब अपनी याददाश्त वापस लोट जाने का नाटक करना लगी-----अत्त: जवं वे बेहोश तबस्सुम को जीप: में डालकर ला रहे थे, तभी उन्होंने अपनी स्कीम कार्यान्वित कर दी ।"



"डैडी ने क्या किया?"

"वे यह त्ताड़ चुके थे कि कोई उनका पीछा कर रहा है-----अपने दिमाग से वे यहीं सोच सके कि जरूर र्यह मास्टर या उसका ही कोई आदमी होगा, अत: उन्होंने अपने दिमाग में पनपी योजना को कार्यान्वित करने की शुरुआत यूं की कि जीप की रफ्तार बढाते ही चले गये------वे निश्चय कर चुके थे कि उन्हें एक जबरदस्त जीप एक्सीडेण्ट करना है…जीप को पूरी रफ्तार पर करके उन्होंने तबस्सुम को जीप से बाहर फेक दिया-------कार द्वारा पीछा करने बाले जो कि वास्तव में विजय और अशरफ थे, अंधेरे के कारण तबस्सुम को जीप से बाहर फेका जाता न देख सके…फिर उन्होंने जीप का रुख एक पेड़ की तरफ़ कर दिया और एक्सीडेण्ट होने से एक पल पहले ही जीप से कूद पड़े ।"




"ओह !"




" वे सचमुच बेहोश हो गए थे---डाक्टर के प्रयास के बाद जब के सचमुच होश में आए तो स्वयं को अपने ही घर में देखकर वे मन-ही-मन चोंक पडे--फिर भी जो निश्चय उन्होंने कर लिया था, उस पर कायम रहे यानी होश में आते ही उन्होंने अपनी याददाश्त लौट आने कां बहुत ही खूबसूरत सफल नाटक किया-मैं-विजय और डॉ. प्रभाकर चकित और भोचक्के रह गए-उन्हे धोखे से कमरे में डालकर विजय मुझसे कुछ देर में वापस आने के लिए कहकर चला गया-जब डॉक्टर प्रभाकर भी चले गए तो उन्होंने कमरे के अन्दर से मुझे आवाज दी--------जब-उन्होंने मुझें यह बताया कि वे रघुनाथ ही हैं और उनकी कोई याददाश्त नहीं लौटी है तो मैं चकित रह गई-पूरा विश्वास आने पर मैंने दरवाजा खोला---वे खुश थे------- बेहद खुश-कई बार ठहाके लगा-लगाकर हंसे थे वे ।"
"क्यों ?"


"अपनी सफलता पर ।"


“कैसी सफ़लता?"



"उन्हें इस वात की सर्वाधिक खुशी थी, कि विजय उनके है चक्कर में फंस गया है-अपने-आपको बहुत बड़ा धुरन्थर समझने वाला विजय भी यह नहीं समझ सका है कि उनकी
याददाश्त नहीं लौटी है, बल्कि वह नाटक कर रहे हैं, है हंस-हंसकर कह रहे थे कि आज उन्होंने विजय क्रो पहली शिकस्त दी है ।"


“ओंह-फिर क्या हुआ''


"मै घबरा गई थी, घबराकर मैंने पूछा कि यह सब नाटक वे क्यों कर रहे हैं--------------------जवाब एक ही था-----मास्टर तक पहुचने और विजय से पहले ही इस केस को हल कर देने के लिए । मैंने उन्हें समझाया-कहा कि वे ऐसा न करें…यह खेल भविष्य में वहुत खतरनाक भी साबित हो सकता है---वे नहीं माने -उनके दिमाग में विजय से पहले ही इस केस को हल करने की जिद बूरी तरह जडे पकड़ चुकी थीं-उन्होंने मुझें अपनी कसम दे दी-जो कुछ वे कर रहे थे, वह मैं किसी को बता नहीं सकती थी----सारी स्कीम को गुप्त रखकर उन्होंने मुझसे मदद मागी----कसम ने मुझे मजबूर कर दिया- अंशरफ----आशा-विजय---तबस्सुम और अहमद के आने तक वे पहले की तरह ही वन्द हो गए थे-----उनके लौटने पर वही नाटक जारी हो गया…कुछ देर बाद वहां ठाकुर चाचा भी पहुंच गए--सभी को पूरा विश्वास हो गया था कि वे इकबाल हैं और, उनकी याददाश्त लौट आई है-------------मुजांरेमों पर अपना बिश्वास जमाने के लिए वे यहाँ से त्तबस्तुम और अहमद को लेकर भाग निकले ।"

रैना सांस लेने के लिए रुकी।




मोन्टो और विकास ध्यान से सुन रहे थे कि रैना ने आगे कहा-----“उसके बाद उन्होंने जितनी भी हंरकते की, उनके पीछे 'मास्टर' के दिमाग में यह बात बैठा देना ही मुख्य मकसद था कि वे सचमुच इकबाल बन चुके हैं…ताकि मास्टर जल्दी-से-जल्दी उसे अपने ठिकाने पर बुलाए-जैसे वे अच्छी तरह जानते थे कि अहमद की हत्या कम-से-कम विजय ने नहीं की है, भले ही चाहे जिसने की हो, मगर, विजय के खिलाफ भड़क उठने का नाटक करते हुए के सीधे गृहमंत्री के पास पहुंच गए------- अनाप-शनाप रिपोर्ट की-ठाकुर साहब से टकराकर पद से इस्तीफा देना और अदालत में मुझसे तलाक की अर्जी देना आदि सभी नाटक था…उनका ख्याल था कि जब वे यह सब कुछ कर लेगे तो 'मास्टर' उनकी याददाश्त लोट आने की घटना पर यकीन कर लेगा----तब भी उनकी मंशा पूरी न हुई तो वे मायूस हो उठे अभी वे सोच ही ,रहे थे कि उन्हें अपना अगला कदम क्या उठाना, है कि तुम सम्राट होटल के कमरा नम्बर पचास में पहुंच गए-यहीं तुमने तबस्सुम को मारने की कोशिश की-तबस्सुम के मरने पर उनका सारा प्लान चौपट हो जाना था, अत: उन्होंने तबस्सुम को तुमसे बचाया------पुलिस को बुलाकर तुम्हें फंसाने वाला बयान दिया----ये सुचना उन्होंने मुझे एक पब्लिक टेलीफोर्न बूथ से फोन पर दी -क्रह्म था कि विकास की इस हरकत के कारण उन्हें एक और खूबसूरत नाटक कंरने का खूबसूरत मौका मिल गया है-मैंने पूछा क्या, तो वे बोले कि इसी समय
चिड़ियाघर से जाकर मोन्टो के बराबर की क्रद-काठी का एक बन्दर ले आऊं-मैंने पूछा कि उसका क्या होगा---उन्होंने यह बताया कि कुछ देर बाद वे तबस्सुम के साथ वहां आएंगे और मुझ पर बरस पड़ेगे---तव तक मोन्टो को कहीं छुपा दूं और चिड्रियाघर'से लाए बन्दर को उसके कपडे पहना दू---- उनके ख्याल से बन्दरों की शक्ल में वहुत ज्यादा फर्क नहीं होता है-मोन्टो के कपडों में यह मोन्टो ही नजर आएगा-यहाँ आकर उन्हें ऐसा नाटक करना था कि बन्दर उन पर हमला कर दे-बस यहां उसे मोन्टो का कत्ल करके तबस्तुम के साथ
भागना था' ।"

" क्यों?"



"मेरे पूछने पर उन्होंने यहीं बताया कि मोन्टो के कल्ल के बाद सारे राजनगर की पुलिस उसे पकडने के लिए कटिबद्ध हो जाएगी---" वे 'मास्टर' के काम के हैं…मास्टर यह कभी नहीं चाहेगा कि पुलिस के चंगुल में फंसें यानी उस स्थिति में मास्टर उसे अड्डे पर ले जांने के लिए विवश हो जाएगा और उसके अड्डे पर पहुचना ही उनका मकसद था ।"



"तो क्या मरने से पहले वे अपने मकसद मे कामयाब हो गए थे ?"



"इस बारे में मैं कुछ नहीं जानती ।"



“क्यों?"


" “क्योंकि उसके बाद किसी भी माध्यम से उनसे बाते ही न हो सकीं !"



“ओह! ”




"यहां विजय आया…मोन्टो की लाश देखते ही वह पागल हो गया----मैने उसे बताया कि मोन्टो को वे मार गए-----सुनकर वह आपे से बाहर हो गया…कुछ ऐसी मुद्रा में और . कुछ -ऐसे संवाद बोलकर वह यहां से जाने लगा कि मैं डर . गई…मेरे दिमाग में यह विचार उठा कि कहीं सचमुच गलतफ़हमी का शिकार होकर विजय उन्हें मार ही न डाले-----यही सोचकर
मैंने उसे सब कुछ बता देने का निश्चया किया------- उसे रुकने के लिए कहा, मगर उस कमीने पर तो खून सवार हो चुका था------------ 'वह रुका ही नहीं-अनिष्ट की आशंका ने मुझें बुरी तरह डरा दिया था, डुसलिए मैं कार लेकर उसके पीछे दोड्री-जब मैंने उसे पकड़ा तो चौराहे पर उनका खूनी युद्ध हो रहा चा-वहां मैंने चीख-चीख-उनसे कहा कि आखिर वे विजय को सब कुछ बता क्यों नहीं देते-उन्होंने भी मेरी एक न सुनी और उस कमीने ने…।"




कहने के बाद रैना फूट फूटटकर रो पडी ।


कठोर चेहरे वाले विकास ने पूछा-"सुना है कि मरने से पहले डैडी ने आप पर भी गोली चलाई ।”



"वे नाटक कर रहै थे ।"



" ऐसा भी क्या नाटक हुआ कि वे आप ही को मार रहे थे !”




"यदि वे नाटक न कर रहे होते तो क्या सचमुच ही हर बार उनका निशाना चूकता?"



विकास की आंखे सिकुड़ती चली गई !


“सवाल पूछकर कम-से-कम मेरा अपमान करने का' हक तो आपको विल्कुल नहीं है मास्टर !"


"मुझें आदमी चाहिए !"


"गुलफाम के हाथ से आपने चाकु जरूर छीन लिया मास्टर-आपने एक ऐसे गुण्डे को जीने का सही मकसद जरूर बता दिया, जिसके कहर से कभी सारा राजनगर कांपता था, राजनगर में आज भी जरायमपेशा में एक ही आदमी ऐसा नही है, जो गुलफाम की इज्जत न करता हो । आप जितने जितने आदमी चाहेंगे-प्रवन्ध हो जाएगा ।"



" मुझे सिर्फ दो हरफनमौला चाहिए !"



" अभी लो मास्टर !' कहकर गुलफाम ने ऊँची आवाज मे अपने गुर्गो को पुकारा-----" अबे ओ टिंकु और टिंगा----कहां मर गये सालों ?"


दो लड़के सामने आ गये !
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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shabi
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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