दूध ना बख्शूंगी/ complete

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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

आशा ने सही वक्त पर अपनी टांग उसकी टांगों के बीच उलझा दी थी-------जिसके परिणामस्वरूप वह एक चीख के साथ मुह के बल फर्श पर जा गिरी। विजय चीख पडा… "पकड लो इन्हे !"



रैना विगो-किंकर्तव्यविमूढ़-सी खडी थ्री जबकि विजय के आदेश 'पर आशा और अशरफ फर्श पर पड़े चीख रहे अपने-अपने शिकार की तरफ बढे।



अन्दर की तरफ है रघुनाथ पागलों की तरह दरवाजा पीट रहा था ।



अभी आशा या अशरफ अपने शिकार तक पहुचे भी नहीं सके थे कि--"ये यहाँ क्या हो रहा है!"' इसं प्रभावशाली आवाज को सुनकर विजय के रोंगटे खड़े हो गए ।



आशा और अशरफ कांप गये -उनके हाथ में अभी रिवॉल्वर थे-सभी की दृष्टि दरवाजे की तरफ उठ गई-रैना को जाने क्या हुआ कि 'चाचाजी' कहकर वह बुरी तरह रोती हुई तेजी से दरवाजे की तरफ बडी ।



दरवाजे पर ठाकुर साहब खडे थे । .


रैना उनके सोने से जा लिपटी-वह फूट-फूटकर से रहा थी, जबकि ठाकुर साहब सुर्ख आंखों से विजय को घूर रहे थे-तबस्सुम अपने मुंह से खून को साफ़ करती हुई उठ खडी हुई, जबकि उन्हें देखते ही अहमद चीख पड़ा--------"आई.. जी. साहब-अच्छा हुआ जो आप यहां आ गए---ये ही लोग थे, जो सुबह पुलिस वर्दी में हमसे मिलने आए थे--ये गुण्डे है आई. जी. साहब इनके हाथ में रिवॉल्वर आप देख ही रहे हैं-हमे जान से मार डालने की धमकी देकर ये जाने हमें कहां ले जाना चाहते थे।"



ठाकुर साहब ने विजय, से गुर्राहटदार स्वर में पूछा " विजय क्यों ?"



"हां बापू" ----विजय ने की अटपटे ढंग से ऊंट की तरह गर्दन उठाकर कहा ।




"क्या हो रहा है यहां?"



"र...रिहर्सत्ल-हरिश्चन्द्र तारामती के ड्रामे की रिहर्सल ।"



ठाकुर साहब तिलमिलाकर चीख पडे…"दिज़य !"



"जी…जी !"



" रघुनाथ कहां है?"




अन्दर से बन्द कमरे का दरवाजा पीटते हुए-रघुनाथ ने कहा--"मै यहां हूं ठाकुर साहब !"




" व......वहां…रघुनाथ' को वहां बन्द करके क्यों रखा गया है ?"



"मुझे यहाँ से निकालिए ठाकुर साहब-मैँ आपको सव कुछ बताऊंगा ।"



ठाकुर साहव`ने धीरे से रैना को अपने से अलग किया और दरवाजे की तरफ़ बढ गए…इसमैं कोई शक नहीं कि अचानक ही ठाकुर साहव की मौजूदगी ने विजय को इस कदर बौखलाकर रख दिया था कि कई क्षण तक वह अपना अगला कदम निर्धारित नहीं कर सका-मगर अभी ठाकुर साहब दरबाजे तक पहुचे भी नहीं थे कि विजय ने उनका रास्ता रोक लिया !



ठाकुर साहव ठिठक गए ।

इस वक्त संसार भर की मुर्खता सिर्फ विजय के चेहरे पर नाच रही थी------होंठों पर ऐसी मुस्कान थी, जैसे कोई परले दर्जे का पागल मुस्कराने ही चेष्टा कर रहा हो-उसे घूरते हुए ठाकुर साहब गुर्रा उठे…“इस हरकत का क्या मतलब?”




विजय ने से रिवॉल्वर निकालकर उनकी तरफ़ तानते हुए कहा-“इस हरकत्त का मतलब ?"



ठाकुर साहब का सारा चेहरा सुर्ख पढ़ गया…वे तिलमिला उठे असीमित क्रोध के कारण उनका समूचा भारी-भरकम जिस्म कांप उठा .।



वे लगभग चीख ही पड़े----"अपनी सीमा में रहो विज़य !"



"आप वह दरवाजा नहीं खोल सकते ।"



"हम खोलेंगे--तुम हमें रोकने बाले कौन होते हो?”



विजय एकदम किसी झगड़ालू औरत की तरह हाथ नचाकर बोला…"अजी वहुत देखे हैं दरवाजा खोलने वाले…और रही हमारी बात…हम काले चोर होते हैं ।"



"हमारे रास्ते से हटो ।"




“अजी क्यों हटें?"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

गुस्से में भुनभुनाते ठाकुर साहब ने उसे मारने के लिए अभी अपनी छडी हवा ही थी कि दौड़कर रैना उनके बीच में आती बोली-----"नही चाचाजी-नहीं ।"



"र…रैना बेटी !" ठाकुर साहब का हाथ ठिठक गया ।




“बिजय भइया ठीक ही कह रहे हैं-पहले आप हमारी बात सून लीजिए-उसके बाद यदि आपको दरवाजा खोलना उचित लगे तो बेशक खोल दीजिए!"



"क्या मतलब? "



" अ........आपके दामाद बदनसीबी से अपनी याददाश्त गंवा बैठे है !"




दरवाजे को झंझोढ़ने के साथ ही दुसरी तरफ से रघुनाथ ने चीखकर कहा-याददाश्त गंवा नही बैठा हू ,बल्कि मेरी खोई हुइ याददाश्त लौट आई है-मैं इकबाल हू ।"



" इसका मतलब-भटनागर ने ठीक कहा था ।"



"क्या मतलब?”


इस वक्त संसार भर की मुर्खता सिर्फ विजय के चेहरे पर नाच रही थी------होंठों पर ऐसी मुस्कान थी, जैसे कोई परले दर्जे का पागल मुस्कराने ही चेष्टा कर रहा हो-उसे घूरते हुए ठाकुर साहब गुर्रा उठे…“इस हरकत का क्या मतलब?”




विजय ने से रिवॉल्वर निकालकर उनकी तरफ़ तानते हुए कहा-“इस हरकत्त का मतलब ?"



ठाकुर साहब का सारा चेहरा सुर्ख पढ़ गया…वे तिलमिला उठे असीमित क्रोध के कारण उनका समूचा भारी-भरकम जिस्म कांप उठा .।



वे लगभग चीख ही पड़े----"अपनी सीमा में रहो विज़य !"



"आप वह दरवाजा नहीं खोल सकते ।"



"हम खोलेंगे--तुम हमें रोकने बाले कौन होते हो?”



विजय एकदम किसी झगड़ालू औरत की तरह हाथ नचाकर बोला…"अजी वहुत देखे हैं दरवाजा खोलने वाले…और रही हमारी बात…हम काले चोर होते हैं ।"



"हमारे रास्ते से हटो ।"




“अजी क्यों हटें?"




गुस्से में भुनभुनाते ठाकुर साहब ने उसे मारने के लिए अभी अपनी छडी हवा ही थी कि दौड़कर रैना उनके बीच में आती बोली-----"नही चाचाजी-नहीं ।"



"र…रैना बेटी !" ठाकुर साहब का हाथ ठिठक गया ।




“बिजय भइया ठीक ही कह रहे हैं-पहले आप हमारी बात सून लीजिए-उसके बाद यदि आपको दरवाजा खोलना उचित लगे तो बेशक खोल दीजिए!"



"क्या मतलब? "



" अ........आपके दामाद बदनसीबी से अपनी याददाश्त गंवा बैठे है !"




दरवाजे को झंझोढ़ने के साथ ही दुसरी तरफ से रघुनाथ ने चीखकर कहा-याददाश्त गंवा नही बैठा हू ,बल्कि मेरी खोई हुइ याददाश्त लौट आई है-मैं इकबाल हू ।"



" इसका मतलब-भटनागर ने ठीक कहा था ।"



"क्या मतलब?”


“यदि सही काम गलत ढंग से किया जाए तो वह गलत होता है-कानून अपने हाथ में लेने का हक किसी को नहीं है…रिवॉल्यर हाथ में लेकर इन लोगों पर जुल्म करना . . गुण्डागर्दी है…यदि वह सचमुच इनका इकबाल है---तो कानून हमे इनके साथ ऐसा व्यवहार करने की इजाजत बिल्कुल नही देता ।"




""चाचाजी!"




"माफ़ -करना बेटी-हम सब कदम-कदम पर कानून की धाराओं में बंधे हैं और अपने स्वार्थ के लिए हमें किसी के अधिकार छीनने या जुल्म करने का कोई हक नहीं है-इकबाल पर जितना हक इनका है, उतना ही रघुनाथ पर हमारा है… तुम्हारा है-वह तुम्हारा पति है…जब तक अदालतों में इंसाफ हे-तब तक तुम्हारे पति को छीनकर कोई नहीं ले जा सकता ।"



"आप जो चाहे करें चाचाजी ! "




" हम रघुनाथ से बाते करना चाहते हैं !"



रैना उनके सामने से हट गई ।
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

आशा और अशरफ ने इस उम्मीद से विजय की तरफ' देखा कि शायद वह ठाकुर साहब का रास्ता रोके, परन्तु जाने क्या सोचकर विजय ने रिवाॅल्वर जेब में रखा ओर उनके रास्ते से हट गया-----उसे घूरते हुए ठाकुर साहब बन्द दरवाजे के समीप पहुंचे ।




दरवाजा खुलते ही रघुनाथ बाहर-निकल पड़ा ।



सबकी दृष्टि उसी पर केन्दित थी, जबकि वह सिर्फ और सिर्फ विजय को घूर रहा था-उसकी आंखों में ऐसे भाव थे, जैसे अवसर मिलते ही विजय को जान से मार डालेगा । एकाएक ठाकुर साहब ने उसे पुकारा---- "रधुनाथ !"




रघुनाथ ने घूमकर उनकी तरफ़ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा !


"क्या तुम्हें रघुनाथ के रूप में किया गया अपना, ऐक भी काम ध्यान नहीं ?"



"नहीं ।"



"क्या तुम्हें यह भी याद नहीं है कि हम कौन है-तुम्हारा हमसे क्या रिश्ता है?"



"नहीं----लेकिन-----!"



" लेकिन --- ?"




"बेशक मुझे कुछ भी याद नहीं है, परन्तु उस कमरे मे बन्द रहकर मैंने यहा एक-एक बात सुनी है और उन्हीं बातों से सारे अनुमान भी लगा लिए हैं-अव मैं अपने बारे में सव कुछ समझ गया हूं।”




"क्या समझ गए हो?”





" यह कि मेरा नाम इकबाल है…मैं पहचान सकता सकता हू कि वे मेरे अब्बा हैं-तबस्सुम को मैं पहचान तो नहीं सका,किन्तु जान चुका हूँ कि वह तबस्सुम है-----मुझे अच्छी तरह याद है कि कार एक्सीडेण्ट में मैं बेहोश हो गया था-आज होश में आने पर मैं खुद को देखकर चकराया -इन लोगों की बातों से स्पष्ट हुआ कि उस एक्सीडेण्ट के बाद से आज के एक्सीडेण्ट तक रघुनाथ बनकर रहा… पुलिस में सुपरिटेंडेंट हू---- अपना मेरी पत्नी …बिक्रास नामक कोई लड़का भी है मेरा ।"




"गुड !" ठाकुर साहव बोले-“क्या तुम इन लोगों को छोड सकते हो?"



"नहीं !"



रैना ने राहत की सांस ती, जबकि अहमद और तबस्सुम के चेहरे फ्क्क पड गए । रघुनाथ ने स्वयं ही आगे कहा-----"मगर मैं अपने अब्बा हुजूर और तबस्सुम को भी नहीं छोड़ सकता ।"




"इसका क्या मतलब?"

"जब मेरी याददाश्त लौटी तो आप लोगों से मेरी कोई सहानुभूति नहीं थी, क्योंकि आप लोगों को मैं जानता ही नहीं था, परन्तु मेरे उस कमरे में बन्द रहते-रहते यहाँ जितनी बातें हुई हैं, उनसे मैं सब कुछ समझ गया हू-हातांकिं मेरी याददाश्त के मुताबिक अब्बा हुजूर और तबस्सुम ही मेरे सब कुछ हैं------मगर,क्योंकि खुद मुझे अपने तीस सालों का पता नहीं है, इसलिए मुझे यह मानना ही पडेगा कि आप लोग भी रघुनाथ के रूप मुझे प्यार करते होगे-----" रैना से मेरा एक लड़का भी है-----यह हकीकत जानने के बाद मैं इसे भी नहीं
छोड सकता तबस्सुम को उसका अधिकार न देना भी मेरे लिए ठीक नही है-मेरी जिन्दगी दुहरी है और मुझे दोनों पार्टियों कै बारे मे सोचना पडेगा ।"



" तो फिर क्या निश्चय किया तुमने ।"



"सोचने के लिए समय चाहिए ।"




" तुम सुबह तक सोच सकते हो ।"




"ठीक है लेकिन।" एकाएक रघुनाथ का लहजा कठोर होगया-----"मिस्टर विजय से कह दीजिए कि यह तबस्सुम और मेरे अब्बाजान को किसो भी तरह परेशान या टॉर्चर न करे… उस कमरे में बंद रहकर जो कुछ मैंने सुना, उससे लगता है कि यह उम्हें जान से भी मार सकता है-यदि इसने उन्हें हाथ भी लगाया तो मैं किसी भी हालत में तबस्सुम या अपने अब्बा के हत्यारों से 'बदला लेकर रहूंगा ।"





"सुन लिया तुमने ?" ठाकुर साहब ने विजय से कहा।


विजय ने किसी भोले-बच्चे की तरह स्वीकृति मे गर्दन हिला दी.. ।




" म.......मगर----. ।"' अहमद बोला-“सुबह तक इकबाल रहेगा किसके पास?"




ठाकुर साहब ने कहा-" यहीं रहेगा ।"




" हरगिज नहीं-----इकबाल की याददाश्त लौटे अभी इतना समय नहीं गुज़रा है-----रात में ये इसे किसी भी तरह से बहका सकते हैं-इससे हमारी बाते भी होनी चाहिए ।"



सबको ध्यान से देखने के बाद रघुनाथ ने कहा-"आप फिक्रमंद न हों अब्बा हुजूर----मै किसी के बहकावे में नहीं आऊंगा----- हां,, ये जरूर चाहुंगा ठाकुर साहब कि कुछ देर के लिए मुझे अब्बा और तबस्सुम साथ कमरे में बन्द कर दिया जाए ताकि अकेले में इंनसे भी कुछ ज़रुरी बाते कर सकू।"


ठाकुर साहब को उसकी यह जायज मांग माननी ही पडी ।

दरबाजा अन्दर से बन्द करते ही रघुनाथ तेजी से तबस्सुम और अहमद की तरफ घूमा-----------उसे देखखर इस बक्त जैसी चमक तबस्सुम की आखो मे थी, बैसी ही रघुनाथ की आखो मे भी थी------


कदाचित बूढे अहमद की मौजूदगी के कारण वे दौड़कर एक दूसरे से न लिपट सके-जबकि अहमद ने बांहें फैलाकर मार्मिक स्वर में उसे पुकारा…"इकबाल! "




“अब्बा !" कहते समय रघुनाथ की आंखें डबडबाती चली गई…अहमद की बूढी आंखों से तो आंसू टपक पड़े थे,.......रघुनाथ दौड़कर उनसे लिपट क्या ।




तबस्सुम के होंठों से सिसकारियां निकल पड़ी ।



कमरे का वातावरण बड़ा ही भावुक बन गया…किंन्तु रघुनाधृ ने शीघ्र ही स्वयं को सम्भाला------उससे अलग होता हुआ बोला--------"फिलहाल हम यहां कोई बात नहीं कर सकते अब्बा हुजूर-----ये लोग मुझे बहुत ताकतवर लगते हैं--वे बाते मैंने उन के सामने सिर्फ इसलिए कही थीं, क्योंकि उस कम्बख्त विजय की आंखों में मैंने आप दोनों के लिए अच्छे भाव नहीं देखे थे !"



"क्या मतलब ?"




"वह मुझे गुण्डा लगता है-शायद वह आपको अपने, और मेरे बीच से हटाने की सोच रहा है !"



" फिर ?"





"उसकी खबर तो मैं बाद में लूंगा…पहले आप दोनो को सुरक्षित कर देना जरूरी है ।"




"केसे?"



रघुनाथ की दृष्टि कोठी के पिछले लाँन में खुलने वाली खिड़की पर जम गई।
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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उन्हें कमरे मे बन्द हुए चालीस मिनट गुजर चूके थे---इस समय में ठाकुर साहब, विजय, आशा और अशरफ बोर से हो गए थे-उन्होंने आपस मैं कोई बात नहीं की थी ।


करते भी क्या?




हां-----अलग-अलग सभी के दिमागो में एक जैसे विचार जरूर चकराते रहे थे-----रिस्टवाॅच पर नजर डालने के बाद ठाकुर साहब बन्द दरबाजे के करीब पहुचे-हल्के से दस्तक
दी ।



अन्दर किसी किस्म की प्रतिक्रिया नहीं हुई।



वे चौंके…दस्तक जोर से दी…जवाब नदारद!



कई बार जोर-जोर से दस्तक देने पर भी अंदर से के कोई ज़वाब नहीं मिला तो बूरी तरह चौंके हुए ठाकुर साहब दरवाजा पीटने के से अन्दाज में चीख पड़े----"रघुनाथ------रघुनाथ... ।"





ढाक के तीन पात !



सभी की आंखें सन्देह से सुकड़ गई-------विजय आंधी-तूफान की तरह इस कमरे से बाहर की तरफ़ लपका,ठाकुर साहब पीछे हटे-फिर गुस्से में थरथराते हुए उन्होंने दौड़कर अपने कंधे का बार दरवाजे पर किया ।




अशरफ ने भी आगे बढ़कर उनकी मदद की ।


उधर, भागते हुए विजय ने कोठी का आधा चक्कर काटा… पीछे पहुंचा और खुली'पड्री खिडकी को देखते ही ठिठक गया…वह सब कुछ.समझ गया था-लपककर वह खिड़की पर चढा-कमरे में पहुंचा ही था कि बन्द दरवाजा दूटकंर भडाक से कमंरे के फर्श पर गिरा ।।


बदहवास से ठाकुर साहब और अशरफ नजर आए-------कमरे में दाखिल होती हुई रैना ने अजीब स्वर में पूछा…"व ..वे कहाँ गए?"



विजय ने अब भी अपने ही अन्दाज में कहा------" चिड्रिया उड चुकी है----खेत खाली पडा है !"

आकाश पर चांदी के थाल-सा चन्द्रमा मुस्करा रहा था--------राजनगर के बाहरी इलाके में स्थित एक उजाड़ और टूटे फूटे खण्डहर में पिघली चांदी के समान चांदनी बिखरी पड़ी थी------उसी खण्डहर की एक टूटी-फूटी छत वाली बारहदरी के फर्श पर बैठे वे तीनों बाते कर रहे थे----उनके ठीक ऊपर बारहदरी की छत में एक बड़ा मोखला बन गया था------------उसी के माध्यम से चांदनी फर्श पर पड रही थी----- वे उसी चांदनी में नहाए हुए थे !!




यह खण्डहर किसी जमाने में एक शिकारगाह रहा था ।




बूढा अहमद कह रहा था…“बस--मुझें तू मिल गया इकबाल-अब कुछ नहीं चाहिए-मेरे दिल की सारी तमन्नाएं पूरी हो गई…अब मरते वक्त मेरे जेहन पर कोई वजन न होगा !"





"ऐसा क्यों कहते हो अब्बा हुजूर ?"


" वही कह रहा हू बेटा जो सच्चाई है !"



"अभी मैं तुम्हें कहां मिला हू-----वे लोग-अपने देश में है----- ताकतवर हैं-ठाकुर साहब आई जी. हैं-वे आखिरी दम तक अपनी ताकत के बूते पर हमेँ जुदा करने की कोशिश करेगे…फिलहाल तो हम उनकी गिरफ्त से निकलकर यहां आ छुपे हैं---मगर हमें खोज निकालने के लिए वे धरती-आसमान एक कर देगे--------हमारां मिलन तो स्थाई तब माना जाए जबकि हम इस नामुराद मुल्क से महफूज निकलकर मिस्रप हुच जाएं ।"




"वे रोक भी कैसे सकते हैं ?"



"उनके पास ताकत है और यह विजय तो मुझे बहुत ही खतरनाक लगा ।"



तबस्तुस कह उठी…"खुदा करे-कम्बख्तो को मौत आ जाए ।"



"खेर-जैसे भी होगा-----कल सुबह से हम इस नामुराद मुल्क से बाहर निकलने की कोशिश करेगे-फिलहाल सो जाना चाहिए----------कम-से-कम आज की रात वे इस खण्डहर तक नहीं पहुच सकेंगे ।"




रघुनाथ के यह कहने के बावजूद भी काफी देर तक उनके बीच बातचीत होती रहीं------फिर रघुनाथ उठकर एक कमरे में चला गया--------------उसके जाने के कुछ बाद अहमद ने तबस्सुम से कहा----"जा वहुरानी----अपने इकबाल को सम्भप्ल-बडी मुश्काल से मिला फिर न खो जाए।"



तबस्सुम का सारा मुखडा लाजवश सुर्ख पड गया ।



अहमद खान छडी टेकता हुआ खण्डहर के एक अन्य टूट फूटे और दरवाजा रहित कमरे की तरफ़ चला गया…तबस्सुम उठी और धड़कते दिल से उस'कमरे की तरफ़ बढ गई, जिसमें रघुनाथ था ।

कमरे की टूटी छत से सुर्य की प्रकाश-किरणे सीघी रघुनाथ के चेहरे पर पड़ी-------- हल्की कुलमुलाहट के साथ उसने आंखें खोल र्दी-घूप की'चोंध लगते ही उसने आंखें फिर बन्द कर ली---एक जोरदार अंगडाई ली और चेहरा धूप से हटाकर आंखें खोल ली ।




दृष्टि तबस्तुम पर पडी ।



उसे देखते--देखते ही तबस्सुम के गुलाबी अधरों पर हल्की-सी मुस्कान बिखर गई-----रघुनाथ मुस्करा उठा--तबस्सुम उसके समीप ही बैठी बलिहाऱी हो जाने वाली दृष्टि से उसे देख रही थी----रघुनाथ ने पुछा----"इस तरह क्या देख रही हो?”


" आपको !"


"म....मुझे…म..मगर क्यों?"



"बहुत देर से देख रहीं हूं-सोते हुए धूप में नहाया आपका चेहरा बडा ही हसीन लग रहा था-----अचानक जागकर आपने मेरा सारा मजा किरकिरा कर दिया ।"



"क्यों?" रघुनाथ ने कातर दृष्टि से उसे देखकर पूछा…"क्या मैं अब प्यारा नहीं लग रहा हु ?"



धीमे से मुस्कराकर तबस्सुम ने शरारत की…"नहीं !"



रघुनाथ एक झटके से उठ बैठा----लपककर उसने तबस्सुम को अपनी बांहों में भरा और अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुका दिया, जबकि धीमे से खिलखिलाती हुई तबस्सुम ने अपना चेहरा दोनों हाथो में ढक लिया-रघुनाथ उसके को चेहरे से हटाने के लिए बल-प्रयोग करने लगा, जबकि तबस्सुम कह रही थी---------"अव रात नहीं है-दिन निकल आया है-अव्वा हुजूर इधर आ निकले तो. . . ।"




तबस्तुम का वाक्य पूरा होने से पहले ही रघुनाथ ने अपने तपते हुए होंठ उसके होंठों पर रख दिए-तबस्सुम ने भी कसकर पकड़ लिया तो-----वे आलिंगनबद्ध हो गए-एक. लम्बे चुम्बन का सिलसिला जारी हो गया-------------फिर सारा कमरा चुम्बन ध्वनि से गूंज उठा ।

चिकनी मछली की तरह तबस्सुम उसकी बांहों से फिसलकर अलग हो गई----------------------खिलखिलाती हौई कमरे से बाहर निकली गई !



हंसता हुआ रघुनाथ भी दौड़कर बारहदरी में आ गया था…मुड़-मुड़कर चिढाती तबस्सुम भागती चली जा रही थी ।



रघुनाथ उसके पीछे दौड़ रहा था ।
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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एक दरवाजे-रहित कमरे के सामने से गुजरती तबस्सुम एकदम ठिठक गइं------कमरे के अन्दर देखते ही उसके कठ से बडी जबरदस्त चीख निकली-उसकी चीख से सारा खण्डहर दहल उठा था।



रघुनाथ भी चौंककर अपने स्थान पर ठिठक गया ।


"इ.. .इकबाल ।" बदहवास-सी तबस्सुम चीखकर वापस भागी--रघुनाथ ने जल्दी से जेब से रिवाॅल्वर निकाल लिया ।।।




तबस्सुम रघुनाथ से आ लिपटी…किसी लता की तरह-रघुनाथ से लिपटी वह थरथर काप रही थी !




"क्या हुआ तबस्सुम-क्या बात है."



"ख...खून !"




"ख.......खून?" रघुनाथ चौक उठा---“किसका?"


"अ.,.अब्बा जान ----"




.जुनून की-सी स्थिति में रघुनाथ ने एक झटके से तबस्सुम को अलग किया और रिवॉल्वर हाथ में लिए तेजी से कमरे की तरफ दौढ़ा-----चौखट पर ठिठक गया वह…स्वयं उसके कंठ से भी एक जबरदस्त चीख निकलते-निकलते रह गई---न सिर्फ उसकी आंखें ही पथरा-सी गई, बल्कि सारा शरीर ही जड होकर रह गया--------किसी पत्थर के स्टैचू की तरह वह अहमद की लाश की देख रहा था !


लाश गर्दयुक्त फर्श पर पडी थी-----चित्त ।।।




सीने में एक खंजर पेवस्त था-----ढेर सारा खुन जम चुका था !

फ़टी आंखों से लाश कमरे की छत को घूर रही थी--------मुह खुला हुआ था…दस-बारह मक्खियां भी लाश-पर भिनभिना रही थी । उस वक्त रघुनाथ अचानक ही उछल-सा पडा, जबकि उसके पीछे पहुंचकर तबस्सुम ने अपना कांपता हुआ हाथ उसके कंधे पर रखा-------------रघुनाथ का चेहरा भभक उठा…ज़बड़े सख्ती के साथ कस गये…रिवॉल्वर जेब में रखकर वह लाश की तरफ़ वढ़ा बढ़ते वक्त वह बड़बड़ा रहा था---"ये काम जरूर उसी हरामजादे विजय ने किया होगा…म...मैं 'उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा।"



दरवाजे पर खडी कांप रही तबस्सुम उसे देखती रही ।



रघुनांथ ने अपने घुटने मोड़े--लाश के समीप बैठा-----हाथ बडाकर उसने अहमद के सीने में पेवस्त हुए चाकू की मूठ पकडी-पक झटके से चाकू बाहर खीचा-----रूका हुआ गाढा खून बहने लगा । चाकू के रक्त-रंजित फल से खून की बूंदे टपक रहीं थीं-----अपनी लाल आंखें उसी फल पर.गड़ाए रघुनाथ भभकते स्वर में कह उठा------म......म.. मुझे आपकी कसम अब्बाजाना आपकी इस शर्मनाक मौत का बदला मै लेकर रहुगा---विजय को जिन्दा नहीं छोडूगा मै ।। "




"इ. . .इकबाल…!". तबस्सुम का कांपता स्वर ।



रघुनाथ ने मानो कुछ सुना ही नहीं---चाकु के फल से अगूठे के सिरे पर खून लिया---------------अपने मस्तक पर टिका लगा लिया उसने और बोला-----अब मैं इस नामुराद मुल्क को आपकी हत्या का बदला लेने से पहले नहीं छोडूगा-------चाहे कुछ भी हो जाए अब्बाजान-चाहे------।"




“इकबाल ! "



रघुनाथ ने भट्ठी की तरह भभकता अपना चेहरा उसकी तरफ घुमाया तो वह सहम गई, बोला-"मिस्र जाने से पहले हमें अपने अब्बाजान की मौत का बदला लेना है तबस्सुम !"



तबस्तुम फफक पड्री------दौड़कर अहमद की लाश से लिपट गई वह-सारे खण्डहर में उसके दहाड़े मार-मारकर रोने की अबाजे गूंज रही थी----जबकि रघुनाथ किसी' शिला के समान बैठा रह गया ।

काफी देर तक प्रतीक्षा करने के बाद उस सुनसान सडक पर एक टैक्सी आती हुई दिखाई दी तबस्सुम को फुटपाथ पर ही खडी रहने का संकेत करके रघुनाथ सड़क के बीचोबीच पहुंचा और दोनों हाथ हवा में उठाकर खड़ा हो गया।



समीप आने पर ब्रेकों की चरमरहाट के साथ टैक्सी रूकी !!!



रघुनाथ उसकी तरफ लपका…संयोग से टेक्सी खाली ही थी----टैक्सी के अगले दरवाजे के समीप पहुंचते ही रघुनाथ ने एक झटके से रिवॉल्वर निकालकर ड्राइवर की कनपटी पर रख दिया----ओंर गुर्राया--------"दरबाजा खोलकर चुपचाप बाहर निक्ल आ !"





"ज…जी-?" ड्राइवर का चेहरा पीला जर्द ।


"जल्दी करो !" ड्राइवर की सिट्टी--पिट्टी गुम-----इंजन बिना बन्द करे ही वह दरवाजा, खोलकर कांपता हुआ बाहर निकला-बिजली की फुर्ती से रघुनाथ ने उसकी कनपटी पर रिवॉल्वर के दस्ते का वार किया ।



एक चीख के साथ लहराकर ड्राइवर वहीं ढेर हो गया !! "



"आओं तबस्सुम!!!" कहने के साथ ही उसने रिवाॅल्वर जेब में रखा और ड्राइविंग सीट पर बैठकर दरवाजा बन्द कर लिया-तबस्सुम दौडती हुई सडक पार करके टैक्सी के समीप आई---------रघुनाथ ने अन्दर से अगला ही दूसरा दरवाजा खोला----तब तबस्सुम भी टैक्सी में प्रविष्ट हो गई।




अभी वह सम्भल भी नहीं पाई थी कि टेक्सी एक तीव्र झटके के साथ आगे वढ़ गई…तबस्सुम हडवड़ाकरं सीट पर लगभग गिर पडी…पत्थर की तरह सखा चेहरे वाले रघुनाथ ने सपाट स्वर में कहा…"दरवाजा बन्द कर तो तबस्सुम ! उसने ऐसा ही किया।



टेक्सी आश्चर्यजनक गति से दौडती चली गई! !!!!

रघुनाथ का चेहरा इस वक्त एकदम सपाट था…साहस करके तबस्सुम ने पूछा-“हम कहाँ जा रहे है इकबाल?"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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