दूध ना बख्शूंगी/ complete

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007
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

रैना, विकास और मोन्टो की उत्सुक नजरें रघुनाथ के चेहरे पर चिपक गई, जबकि दिमाग पर जोर डालते हुए रघुनाथ ने कहा-------"मुझें याद नहीं आ रहा ।"



सबकी नजरें मिली ! !



रघुनाथ ने कहा-----“लेकिन-मैं इकबाल नहीं हो सकता।"


"क्यों नहीं हो सकते?" विजय ने पुछा।



"शयद-किसी भी व्यक्ति को अतीत के शुरू के चार-पांच साल याद नहीं रहते…अगर तुमसे पूछा जाए उस वक्त की कोई-धटना सुनाओ जव तुम तीन वर्ष के थे तो शायद तुम्हें भी कुछ याद न आ सके----मुमकिन है कि यह चोट मुझे उस समय लगी हो, जब मेरी आयु एक-से-तीन या सिर्फ चार साल की रही हो ?"


"क्या तुम्हें कोई ऐसी घटना याद है, जब तुम्हारी आयु बारह साल से कम रही हो ? !




" हां ----याद है?”




“सुनाओ ।"



"मुझे याद है उस वक्त मैं आठ साल का था…मुझे पतंग उड़ाने का बहुत शौक था-हम लखनऊ में रहते थे…कटी हुई पतंगों को लूट-लूटकर मैं बसंत पंचमी के लिए जोडा करता था--

एक दिन वहुत बड़ी सफेद रंग की पतंग लूटी और उसे बड़े अरमानों से-सम्मालकर इस मकसद से रखा कि उसे मैं बसंत पंचमी को ही उड़ाऊंगा-बसंत पंचमी की पहली रात को पिताजी अचानक ही मुझसे मजाक करते हुए बोले कि वे पेरी सफेद पतंग को काली कर सकते है…उनकी वात पर मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि मैं नहीं समझ सकता था फि सफेद पतंग भला कैसे हो सकती हे-उन्होने मुझसे काली करने के लिए पतंग मांगी-मैंने दे दी-वे मेरे ही सामने मिट्टी के तेल की जल रही कुप्पी की लो के उपर उठ रहे काले धुएं के उपर पतंग को लहराने लगे !




-----सफेद पतंग. पर धुआं जमा तो वह काली पड़ने लगी----मै हैरत में डूबा दिलचस्प निगाहों ने अपनी सफेद पतंग को काली होते देख रहा था-अचानक जाने कैसे पिताजी का हाथ बहका-----पतंग कुछ नीचे हो गई…पतंग के बारीक कागज ने तुरन्त ही कुप्पी की लो से आग पकड ली---पल भर में फर-फर करके सारी पतंग-जलकर राख हो गई---रो-रोकर मैंने सारा घर. सिर पर उठा लिया, जबकि पिताजी ठहाकों के साथ हंसते हुए जमीन पर पड़े जले हुए कागज की तरफ इशारा करते हुए बार-बार कह रहे धे-"देख रघुनाथ तेरी पंतग काली हो गई हो-जाने क्यों, मैं आज़ तक भी उस घटना को नहीं भूल पाया !"




“तुम यह दावा कैसे कर सकते कि जब यह घटना घटी हैं तब तुम आठ साल के थे !"

" मुझे अच्छी तरह याद है----उस. वक्त मैं सिर्फ चौथी कक्षा में पढ़ता था !"




“उम्र का कक्षा से क्या मतलब?"



"मेरे पिता ने बताया था कि मैं उस वक्त चार साल का था जबकि पढने बैठा और वे हमेशा ही यह कहतें वे कि मैं कभी-भी-किसी कक्षा में फेल नहीं हुआ।”



"क्या तुम उस प्राइमरी स्कूल का नाम बता सकते हो, जिसमें तुम पढ़े ?"



" मुझे अच्छी तरह याद है…लखनऊ में मैं ज्ञान भारती में पढ़ता था !"



विजय ने कहा---"तब तो तुम इकबाल नहीं हो ।"



"म---------मगर ।" विकास बोला…“वैसी स्थितिं में इस फोटो का क्या मतलब है गुरु?"




"मतलब यही है प्यारे दिलजले की यदि बात सिर्फ एकाध खासियत तक ही सीमित होती तो उसे संयोग भी माना जा सकता था, परन्तु चार खासियतें संयोग से नहीं मिल सकती…जरूर इस के पीछे कोई वहुत वडा मकसद छुपा है-----और यदि कोई मकसद नहीं है तो इकबाल को तलाश करना हमारे लिए इस विज्ञापनदाता से भी कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है --------



-------आखिर पता तो लगे कि दुनिया में वह' कौन सी हस्ती है, जिसकी न सिर्फ शक्ल ही बल्कि चोट का निशान----मस्सा---तिल और पैर -कीं उँगलियाँ भी अपने तुलाराशी से मिलती हैं…......हृमारे ख्याल से या तो रघुनाथ ही इकबाल है ओर यदि नहीं है तो इकबाल नाम के किसी आदमी का कहीं अस्तित्व ही नहीं है ओऱ यदि अस्तित्व नहीं है तो निश्चितृ रूप से इस झिज्ञापन के पीछे कोई बहुत बंडा षड्यंत्र पनप रहा है ! "




रैना उछल पडी…“कैसा षड्यंत्र ?"




"इस बारे में .…अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है !"




"गुरु-----क्यों न हम दिलबहार होटल के ,कमरा नम्बर सात सौ बारहं मे जाकर अहमद खान नाम के इस आदमी से मिलें जिसने यह विज्ञापन दिया हे?"




" मिलना तो, पडेगा ही, लेकिन इस तरह ऩही !”



" फिर किस-तरह! "




विजय धीरे धीरे कुछ कहने लगा !!!!
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

"अहमद खान के चुप होने पर दिलबहार होटल के कमरा नम्बर सात सौ बारह में गहरी खामोशी छा गई------विजय---- विकास…रैना और रधुनाथ की नजरे मिली...........चारों पुलिस वर्दी मे थे।



रोशनदान पर बैठे मोन्टो को भी यह कहानी सुनकर सोचने पर विवश होना पड़ा !



सभी के दिमागों में एक अजीब-सा तनाव उत्पन्न हो गया था ।




सबसे पहले विजय ने ही स्वयं को संभालकर सन्नाटा तोड़ा ।--"इसका मतलब ये कि अमीचन्द और सावित्री इकतीस साल पहले मिस्र मे तुम्हारे पडोसी थे?”




"उस जलजले के वाद आपने जो फोटो दिखाई
देखकर आज पहली वार ही उनकी याद आई है…साथ ही यह याद भी ताजा हो चुकी है कि उनके मकान के मलवे से उनकी लाश नहीं मिली थी ।"




"तुम् यह कहना चाहते हो कि तुम्हारे इकबाल को वे उठा लाए?”



"इस फोटो को देखने के बाद यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हुं ----" वे बेऔलाद थे…इकबाल से उन्हें प्यार भी था-वेसे भी इकबाल की याददाश्त गुम थी--उनके दिमाग में यह बात आ गई होगी कि भविष्य में इकबाल उन्हीं की औलाद कहलाएगी-----खुद इकबाल भी उन्हें ही अपने मां-बाप समझेगा--------- वे मिस्र से इतनी दूर यहां हिन्दुस्तान में आकर बस गए ।"




" इतने भयानक जलजले में से वे उसे निकालकर कैसे लाए ? "



"ये तो वे या उनका खुदा ही जाने ।”

एक क्षण चुप रहा विजय-----फिर अहमद खान को घूरता हुआ बोला---"अब किसी टेपरिकार्डर की तरह एक ही सांस में यह बताते जाओ प्यारे कि इस गढी हुई खूबसूरत कहानी के पीछे तुम्हारा मकसद क्या हैं ?"




" क. . .क्या मतलब-?" अहमद उछल पड़ा-----"अब भी अपको हमारी यह… कहानी झूठी लग रही है !"



"है ही गप ।"




"हरगिज नहीँ----अखिर आप हमारी बातों का यकीन क्यों नहीं करते ?"




"क्योंकि हम जानते हैं कि तुम सफेद झूठ बोल रहे हो….. अमीचन्द और' सावित्री कभी मिस्र से नहीं आए-वे हिन्दुस्तान में ही जन्मे औरं-ज़न्म से यहीं रहते थे।”




"यह झूठ है----!" अहमद चीख पड़ा-“आप मुझे उनके सामने ले चलिए-----वे मुझे देखते ही पहचान लेगे…तब उनका झूठ खुल जाएगा ।"




"वे आज से दस साल पहले स्वर्ग सिधार चुके है ।"





“ओह !" अहमद के मुंह से एक आह-सी निकली---आंखों में जो चमक उत्पन्न थी, वह बुझती चली गई, जबकि तबस्सुम ने पूछा--------इकबाल कहाँ है?"




बिजय उसकी तरफ देखकर धीमे से मुस्कराया और बोला-----“हमेँ अफसोस के साथ कहना पड रहा कि यदि वह हैं तुम्हारा इकबाल ही था तों अब मर चुका है ।"



"क.. .क्या?" एक साथ दोनों उछल पड़े ।




"जी हां…आज से सिर्फ एक महीने पहले हमें रेलवे साइन पर पडी एक व्यक्ति की लाश मिली थी…व्यक्ति ने आत्महत्या की थी-ह्रमने उसकी तंलाशी ली तो जेब से यह फोटो और एक पता मिला,हमने उस पते पर जाकर इस व्यक्ति के बारे में मालूम किया तो पता लगा कि उसका नाम रामनाथ था और वह अमीचन्द और सावित्री का लडका था-----हमने रामनाथ के अतीत तक खोज की----उसमें हम सिर्फ इतना ही पता लगा पाए कि रामनाथ के-माता-पिता राजनगर से पाले लखनऊ में रहते थे और रामनाथ ने प्राइमरी शिक्षा लखनऊ के ज्ञान भारती नामक स्कूल से प्राप्त की थी !"


“मगर ।”




"यह तलाश हमने रामनाथ की लाश के किसी वारिस की तलाश में की थी मगर जब उसकी लाश का कोई बारिस न मिला तो हमें खुद ही उसका अन्तिम संस्कार करना पडा------- आज जब हमने अचानक अखबार में रामनाथ के फोटो को देखा तो हम चौंक पुड़े----मजमून में वे ही चार जिस्मानी खासियतें लिखी थीं, जो हमने रामनाथ का अन्तिम संस्कार करने से पहले उसके जिस्म पर से देखकर अपने-रजिस्टर में दर्ज की थी----यह सोचकर हमारा उलझन में पड़ जाना स्वाभाविक ही था कि जिसके किसी वारिस को तलाश करने में हम नाकामयाब रहे, उसका फोटो अखबार में छपा है-उस वक्त तो हैरत से हमारी आंखें` ही फैल गई जब हमने फोटो के नीचे -लिखी यह इबारत पढी ।"




"तो फिर आप हमारी कहानी को झूठी क्यों बता रहे थे?"



"हमें तो अब भी झूठी ही लग रही है, क्योंकि हमने उस प्राइमरी स्कूल तक का पता निकल लिया था, जिसमें रामनाथ पढा था प्राइमरी. स्कूल में बारह साल से कम आयु के ही बच्चे भी पढते हैँ------यदि वह बारह साल की आयु से पहले ज्ञान भारती में पढता था तो वह 'तुम्हारा इकबाल कैसे हो सकता है?"


“म. . मगर ये फोटो और जिस्मानी खासियतें ?"



"इनके आधार पर तो वह इकबाल ही था ।"



"नहीं!" तबस्सुम चीख पडी-“मेरा इकबाल मुझसे बिना मिले नहीं मर सकता-वह कोई और होगा-मेरा, इकबाल जिन्दा है-----वह मुझे ज़रूर मिलेगा ।"


तबस्तुम फूट-फूटकर रो पडी ।


बूढा अहमद खान र्किकर्तव्यविमूढ़-सा खड़ा रह गया ।


" मेरा इकबाल ?" पुलसिया अन्दाज मे ही रैना ने आगे बढ़कर कहा----" इस बुड्ढे का तो इकबाल बेटा है लेकिन वह तुम्हारा कौन है ?"


" तबस्सुम मेरी बहु है !" अहमद कह उठा ।।



रधुनाथ उछल पड़ा-----" क्या मतलब ?"




" इकबाल इस बदनसीब का शौहर है !" अहमद ने कहा ।


जाने क्यों उसके इस जबाब पर वे सभी चुपचाप खड़े रह गये----- बहुत गहरा सन्नाटा खिंच गया वहां ------- सुपर रधुनाथ का दिल तो अजीब से अन्दाज मे धक् धक् कर रहा था ।।।।।।


रघुनाथ के कमरे-में पहुंचते ही वरों थके से सोफ़ो पर गिर पड़े-एक सोफे की पुश्त पर बैठकर घनुषटंकार ने जेब से पव्वा निकालकर ढक्कन _खोला'और' पव्वा मुँह से लगा लिया ।


" अब बोलिए अंकल! " विकास बोला------आपका क्या ख्याल ? "




"अपना तो साला ख्याल ही घास चरने चला गया है प्यारे! हैं !"





रैना है पूछा…"क्या मतलब भइया?"



"उस साले अहमद खान और ~तबस्सुम ने अपनी खोपडी भक्क से उड़ा दी है-------उनकी 'बातों से सीधा मतलब ये निकलता है कि अपना तुलाराशि उसका लडका इकबाल है, जो कि मिस्र में रहता 'था और बारह वर्ष की आयु में जो एक दुर्घटना का शिकार होकर अपनी याददाश्त गंवा बैठा था-----------------------वे अमीवन्द और सावित्री जिन्हें हम और अपना तुलाराशी भी अपने मां-बाप समझते थे, दरअसल मिस्र में पडोसी थे और उस जलजले के बाद इकबाल को उठा लाए थे-यहाँ आकर उन्होंने इकबाल का नाम रघुनाथ रख लिया और अपना तुलाराशि खुद को रघुनाथ और उनका लड़का ही कहता है--- जब इसकी याददा३त ही गुम है तो स्वयं को यहाँ इकबाल कह भी कैसे -सकता' है?”




रधुनाथ झुंझलाकर चीख पड़ा-" मेरी कोई याददाश्त गुम नही है !"



" जिनकी याददाश्त गुम होती है, उसे यह भी याद नहीं रहता प्यारे कि उनकी याददाश्त गुम है ।



रघुनाथ हडवड़ा गया-----"क..... कमाल है------म....मै-यानी कि मैं--रघुनाथ नहीं हूं----------मै कैसे यकीन कर लू--तुमने कैसे यकीन कर लिया…तुम बोलो रैना-तुम कहो विकास कि क्या मैं रधुनाथ नहीं ?"



" क्या तुम रघुनाथ होने का कोई सबूत दे सकते हो ?"



“किस किस्म के सबूत की बात कर रहे हो?"



"क्या आप पहली से आठवी कक्षा के बीच की कोई मार्कशीट' जादि दिखा सकते है ?" विकास ने पूछा ।

"इस आयु तक भला आठवीं तक की मार्कशीट कौन सम्भालकर रखता है…उनकी मान्यता ही क्या होती है…हां, दसवीं की मान्यता होती है-उसकी मार्कशीट और सनद मेरे .. पास होगी ।"



"वह तो आपने चौदह साल की अणु में किया होगा ! " विजय ने पूछा…"आठर्बी कक्षा तक किसी कक्षा का ग्रुप फोटो?"



“बच्चों की कक्षा के ग्रुप फोटो खिंचने का फैशन अब चल गया है-पहले नहीं था, बोर्ड में बैठने वाली कक्षा का ग्रुप फोटों जरूर होता था ।"




"'दादा-दादी के साथ इससे पहले का और कोई फोटो ?"




"जहां तक मुझे याद है, इससे पहले मेरा कोई फोटो नहीं है ।"



विजय ने अजीब-सी मुद्रा में कहा-"सारे रास्ते ब्लॉक पड़े हैं प्यारे!”



“सारे कहां गुरु-----इस वक्त हमारे पास कम-से-कम एक रास्ता तो है ही ?"



" कौन सा ?"




"डैडी के पास कोई मार्कशीट न सही, लेकिन रकूलो-मे ये आठवीं तक पढे हैं, उनके रिकार्ड रजिस्टर तो होंगे ही ।"




"जहां इन्होंने अपना बचपन गुजारा था,.वहां के लोगों से भी पूछताछ की जा सकती है।”



"जव कोई रास्ता न बचेगा तो वह सब तो करना ही पडेगा रैना बहन!" विजय बोला-"मेरी केशिश यह थी के हम आपस में विचार करके यहीं बैठे-बैठे, किसी ऐसे तथ्य पर पहुच जाएं जिससे कि उनका बयान गलत साबित कर सके ।"



“गुरू !" कुछ सोचते हुए विकास ने कहा ।"



विजय तपाक से बोला-----" हो जाओ शुरू ।"



"कहीं सचमुच ऐसा तो नहीं है कि यह कोई बहुत् बड़ा षडूयंत्र हो ।"

"हो भी सकता है, लेकिन.. ।"



" लेकिन क्या?"


"लगता नहीं है ।"


" क्यों?"




"सोचो प्यारे-जरा दिमाग का फ्लूदा निकालकर सोचो कि इसमें आखिर उनकी क्या चाल हो सकती हे-----चलो ये मान लिया कि वे अपने तुलाराशि को इकबाल साबित करना चाहते हैं-मान लो कि हो गया---इस-से उन्हें क्या लाभ है--उल्टे अपने तुलाराशि को करोडों की सम्पति मिलेगी-सम्प्रत्ति मिल गई…अब बोलो ,कि उन्हें क्या लाभ हुआ?"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

"मुमकिन है कि सचमुच उन्हें कोई लाभ हो'-ऐसा लाभ जो फिलहाल नजर नहीं आ रहा हो-तब नजर आए, जबकि वे … डैडी को इकबाल साबित कर सके !"




"हम तुम्हारी बात से असहमत नही है प्यारे दिलजले !”



"तो फिर?"



"मगर पूरी तरह सहमत भी नहीं हैं ।"



“औफ्फो-आप पहेलियों क्यों बुझा रहे है अंकल---साफ-साफं क्यों नहीँ कहते-आप इसे किसी षडूयंत्र की शुरुआत मानते हैं या सचमुच डैडी को इकबाल?"




" फिलहाल हमें दोनों ही बातों को अपने दिमाग में रखकर चलना पड़ रहा है प्यारे…इसका भी कारण है-अपने रघु प्यारे को हमें इकबाल मानने में इसलिए हिचक है, क्योंकि यह हमारा
पैन्टिया यार है और हमने यह कभी महसूस नहीं किया कि इसकी याददाश्त गुम हे…मानना इसलिए पड़ रहा है कि फिलहाल हमारे हाथ में ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे अपने मन को ही यह समझा सके कि बारह साल की उम्र से पहले भी यह रघुनाथ ही था !"



"'फिर परिणाम आखिर निकलेगा कैसे?”



" फिलहाल ऐसा करो प्यारे दिलजले कि शाम की गाडी से तुम लखनऊ के लिए रवाना हो जाओ--कल सुवह तक तुम वहां पहुंच जाओगे-सारे दिन तुम्हें वहां तुलाराशी के बचपन की तलाश करनी है…कल शाम की गाडी से वापस बैठ जाना-परसों सुबह …यहां पहुच जाओगे-तब जैसी भी रिपोर्ट हुइ हम उसके आधार पर बैठकर नए सिरे से विचार-विमर्श करेंगे !"




“क्यों न हम डायेरेक्टरी से ज्ञान भारती का फोन नम्बर लेकर---।"



"फोन से काम नहीं चलेगा प्यारे, उस मुहल्ले में जाकर भी पूछताछ करनी है, जहां रधुनाथ का बचपन गुजरा है…जाने से ही बात बनेगी-इधर मेरी नजर दिलबहार के कमरा नम्बर सात सौ बारह पर रहेगी-कम से-कम तुम्हारे लौटने तक मैं उन्हें यहां से खिसकने नहीं दुगा----------मुमकिन है कि उन पर नजर रखने से किसी नई बात का पता लगे ।"




"ठीक है गुरु--मैं शाम को रवाना हो रहा हूं।”

पूरी बात सुनने के बाद ब्लेक व्वाय उर्फ अजय बोला-------"आपने तो सचमुच मुझे भी हैरत में डाल दिया है सर--ऐसा कैसे हो सकता है कि रघुनाथ रघुनाथ नहीं, इकबाल है ।"



"सभी जिस्मानी खसियते यह कहती हैं प्यारे!"




"मगर सर--!"

"जो बात तुम कहोगे प्यारे काले लड़के----उस पर अपने दिमाग में हम सैकडो बार विचार करके दिमाग का तन्दूर बना चुके हैं-----इसमे शक नहीं कि इस बार हमें अपनी खोपडी के
सभी बल्व फ्यूज होते नजर आ रहे हैं----ठीक से निश्चय नहीं कर पा रहे कि क्या सच और क्या झूठ है…साला मामला ही ऐसा सामने आया है कि हम चक्करघिन्नी बनकर रहगए हैं !"



सीक्रेट सर्विस के चीफ़ की सीट पर बैठे ब्लैक बॉय ने एक सिंगार सुलगाया और धुआं हवा उछालता हुआ बोला-----" अब इस बारे में आप क्या कार्यवाही करने जा रहे हैं?"




"देखो प्यारे-----तेल देखो और तेल की धार देखो ।" कहने के साथ ही उसने रिसीवर उठाया और नम्बर डायल किया ।


कुछ देर बाद दूसरी तरफ से रिसीवर उठाया गया, आशा की आबाज------"हैलौ”




" पवन हीयर ।" विजय का थर्राया हुआ स्वर



"य----यस सर !" आशा जैसे हड़बड़ाकर सम्भली हो । विजय ने उसी स्वर में पूछा--------"क्या कर रही थी !"





"आपके आदेश का इन्तजार संर !”


"गुड-काफी स्सार्ट होती जा रही हो ।"



" थ...थेक्यू सर !"




"होटल दिलबहार के रूम नम्बर सात सौ बारह में एक बूढा और खूबसूरत लड़की रह रही है---------" आपस में बहू और ससुर का रिश्ता बताते हैं-----उन पर नजर रखो--कहाँ आते-जाते हैं------क्या करते हैं-या किससे मिलते है-----मुझें पूरी रिपोर्ट चाहिए।"



"यस सर !”




“मदद के लिए अशरफ को साथ ले सकती हो-कल सुबह सात बजे तक तुम दोनों को उन पर नजर रखनी है----उसके बाद स्वयं गुप्त भवन आकर हमें रिपोर्ट दोगी-----अगर बीच में कोई विशेष बात देखो तो फौन पर तुरन्त विजय को रिपोर्ट देना ।"



“ओं.के.सर ! ”



विजय ने रिसीवर क्रेडिल पर पटका और मुर्खों की तरह आंखें मटकने लगा।

यू तो अपने आँफिस में बैठा सुपर रघुनाथ किसी पुराने केस की फाइल में खुद को डुबाने का प्रयास कर रहा था पर डूब नहीं पा रहा था…रह-रहकर उसकी आंखों के सामने बूढ़े अहमद खान और खूबसूरत तबस्सुम का चेहरा नाच उठता।



तोताराम के केस के सम्बन्थ उसे विभिन्न लोगों द्वारा फोन पर बधाइयां दी जाती रहीं, उसके दिमाग में एक बार भी ऐसी भावना न, उभर सकी वह आन्तरिक खुशी का नाम देता-हल्के-फुल्के काम करते हुए ही शाम हो गई---------फोन पर विकास ने बताया कि वह लखनऊ रवाना होने जो रहा है ।



इजाजत देकर उसने रिसीवर रख दिया ।


दिमाग में विचारों की उमड-धुमड कुछ ज्यादा ही तेजी होने लगी-बस सोचने लगा कि अचानक ही यह कैसा मोड़ आया, जिससे उसका व्यक्तित्व ही उलट गया।


वह रघुनाथ से कुछ और बनता जा रहा है ।


क्या वह सचमुच रघुनाथ नहीं है-----सचमुच उसका वह परिचय गलत है, जो वह दुसरों को देता रहा है---जो वह खुद को आज तक समझता रहा है ?


ऐसा कैसे हो सकता है?


उनके पास देश-विदेश के पुराने अखबार हैं-------इस बात के पूरे सबूत हैं उनके पास कि पिछले तीस साल से अपने इकबाल को तलाश कर रहे हैं-----जिस चीज का कोई अस्तित्व ही न हो, उसके लिए कोई तीस साल बरबाद नहीं कर सकता ।



इकबाल का अस्तित्व तो जरूर है।



संयोग से उसकी बचपन की शक्ल इकबाल से मिल गई होगी…इत्तफाक से जिस्मानी खासियतें भी मिल गई हैं…नहीं-नहीं-ये सब तुम क्या बेवकूफी की बाते सोच रहे हो रधुनाथ-----इतना बड़ा इत्तफाक भी कहीं होता है-किर अभीचन्द और सावित्री को भी तो उन्होंने देखते ही पहचान लिया ।



तो कही मैं इकबाल ही तो नही हू !!
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

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नहीं-नहीं-मैं भला इकबाल कैसे सकता हूं-मैं रघुनाथ हू…मुझे अपना पूरा बचपन याद है ।




दिमाग में विचार उठा----क्यों न वह एक बार अहमद और तबस्सुम से मिले !!




मिलने से लाभ क्या होगा ?



मुमकिन है कि इस बाऱ बातचीत में वे कोई भूल कर जाएं और वह उनकी मंशा भांप ले---- ऐसा हो जाना स्वाभाविक ही है-यदि वह आज ही इस उलझन से निकल जाए तो अच्छा ही हे…रात को वह आराम से सो सकेगा।



एक बार मिल लेने में कोई बुराई नहीं है…यह अच्छा ही है कि वह किसी निष्कर्ष पर पहुच जाए-----विजय इस चक्कर में उलझा हुआ हैं-यदि वह इस बार विजय से पहले मामले की तह में पहुच जाए तो मजा ही आ जाए--फिर कभी विजय को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा कि उसने स्वयं कभी कोई गुत्थी नहीं सुलझाइं है ।




इस गुत्थी को वह ही सुलझाएगा--------------मामले की तह में पहुंचने उसे पूरी कोशिश करनी है-यही सोचकर रघुनाथ एक झटके के साथ कुर्सी से उठ खड़ा हुआ ।

"मैं आशा बोल रंहीँ हू विजय! !"



"हांय…!" विजय ने एकदम ऐसे अन्दाज में कहा, जैसे कोई तीर सीधे उसके सीने में आ धंसा हो, बोला…"मिस गोगिया पाशा-----आजकल तुम कहां बजा रही हो ताशा------------सच, तुम्हारे विना तो हमारा दिल बन गया है पानी का बताशा ।"



“विजय! " आशा का झुंझलाया हुआ स्वर-------"मैंने तुम्हारी बकवास सुनने के लिए-फोन नहीं किया है।"



"तो फिर किसी पार्क में बुलाने के लिए किया होगा ।"



उसकी बात पर कोई ध्यान न देकर दूसरी तरफे से आशा ने कहा…"अब से कोई पन्द्रह मिनट पहले सुपर रघुनाथ कमरा नम्बर सात सौ बारह में गया है ।"



"हांय तुम उस तुलाराशि का पीछा कब से करने लगी मेरी मटर की फली----वह साला तो शादी शुदा है------हमे बताओ…....तुम हमारी इन्तजार का गुड़ कौन से कमरे में बैठकर खा रही हो?"




"मैं तुम्हारी बदतमीजी सहन नहीं कर सकती विजय !"



"कमीज नहीं तो साडी पहनकर आ जाएंगे डार्लिंग, लेकिन तुम…!"



उसकी पूरी बात सुने बिना ही आशा ने कहा…"मुझसे चीफ़ ने कहा था कि यहां कोई विशेष बात देखूं तो तुम्हें फोन पर सुचित कर दू…फ्ता नहीं क्यों मुझे सुपर रधुनाथ का उस कमरे जाना बिशेष बात लगी----सो,फोन कर
दिया है---अब तुम जानो ।" कंहने के साथ ही दूसरी तरफ से विजय की एक भी सुने विना रिसीवर पटक दिया गया ।





"धत्?" कहने के साथ ही विजय ने अपनी गुद्दी पर वहुत जोर से चपत मारी और स्वयं से ही बोला----" तुम साले खुद को वहुत चलतापुर्जा समझते हो बिजय दी ग्रेट-दुनिया साली वहुत आगे निकल गई है-अपनी गोगिया पाशा भी तुम्हारी एक नही सुनती-खैर-अब सोचने की बात तो प्यारे ये हैँ कि अपना तुलाराशि बहां क्यों गया है?"

हालांकि रघुनाथ तेज और लम्बे कदमों के साथ सातवी मंजिल का कांरीडोर पार करता हुआ रूम नम्बर सात सौ बारह की तरफ बढ रहा था, परन्तु जाने क्यों उसे अपने दिल की घड़कने असामान्य रूप से बढी हुई महसूस हो रही थी ।




अभी वह कमरे से कोई बीस कदम इंधर ही था कि ठिठक गया-----एक ट्रै में खाली वर्तन लिए सात सौ बारह में से एक वेटर निक्ला-उसे देखकर एक क्षण के लिए ही ठिठका था । रघुनाथ-फिर सामान्य गति से बढ गया ।



वेटर उसकी तरफ़ विशेष ध्यान दिए विना बगल से गुजर गया ।



रधुनाथ दरवाजे पर पहुचा-दरवाजा सिर्फ थोड़ा सा ढुका हुआ था---------कदाचित वेटर के निकलने के बाद अभी तक दरवाजों अन्दर से बन्द करने की जरूरत नहीं समझी गई थी ।




एकाएक उसने महसूस किया कि कमरे के अन्दर टेलीफोन की घण्टी बज रही है-तिपाई पर रखा फोन उसे स्पष्ट चमक रहा था, कमरे मे उसे कोई नजर नहीं आया ।



अचानक फोन की घण्टी बजनी बन्द हो गई ।


यह सोचकर रघुनाथ हलके से चौका कि विना किसी के द्वारों रिसीवर उठाए ही घण्टी बन्द हो गई है-फिर अचानक ही यह विचार उसके दिमाग में बिजली की तरह कौध गया कि
एक टेलीफोन भीतरी कमरे में भी होगा और यह घण्टी उसी का रिसीवर उठाए जाने पर बन्द हुई है-तुरन्त ही उसके दिमाग में यह विचार भी कौध गया यहाँ जो भी कोई है, भीतर कमरे मे ही है!!!!


एक ही क्षण में उसने निश्चय कर लिया
टेलीफोन पर होने, वली बाते सुनने का उसके लिए, यह सुनहरा मौका हे।




वह बडी तेजी से, फिन्तु दबे पांव कमरे में दाखिल हुआ ।



कमरा सचमुच खाली था----रधुनाथ ने जल्दी से रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया दूसरी तरफ़ से आवाज सुनाई दी-----"मैं अहमद बोल रहा हू बहुरानी !!"




"कुछ पंता लगा अब्बा हुजूर?" इस तरफ़ से तबस्सुम का स्वर ।



"हमारा इकबाल मरा नहीं, बल्कि जीवितं है ।"


""ज. . जीवित है-----"क. .क. .कहां है वह?” प्रसन्नता में डूबा स्वर । "



दूसरी तरफ़ से कहा गया…"हम उससे मिल -भी चुके हैं।"



"म…मिल चुके हैं?"



“हां !"




"आप ये क्या पहेलियां बुझा रहे हैं अब्बा हुजूर--"साफ़-साफ़ कहिए ना”




"आज सुबह हमारे पास जो चार पुलिस वाले मिलऩे आए थे, उनमें से वह जो उन सबका अफसर यानी जिसके जिस्म पर सुपरिटेंडेंट की वर्दी थी-----वही हमारा इकबाल है ।"




" य....ये आप क्या कह रहे हैं अब्बा हुजूर!"




"सच यही है तबस्सुम! "



“म. . मगर-यह आपको पता कैसे लगा?"


"बहुत लम्बी कहानी है बहूरानी-वड्री मेहनत से पता निकाल सका हूं…बस, मैं कुछ ही देर में होटल पहुंचकर तुझे सब कुछ बताऊंगा-फिलहाल तुम सिर्फ इतना समझ तो कि वह
ही वह व्यक्ति है-जिसकी परवरिश अमीचन्द और सावित्री ने की है-----अपनी खुशी को रोक नहीं सका, इसलिए फोन पर ही खबर दी है !"




"अब्बा हुजूर अपको किसी तरह का धोखा तो नहीं हुआ है?"


"नहीं-तू फिक्र न कर ।"


"लेकिन---सुबह तो उन्होंने खुद ही कहा था कि रामनाथ मारा-जा चुका ।"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma

Post by 007 »

"'उसने झूठ बोला था ।"


"क्यों-----क्या उसे मालूम नहीं था कि हमारे इकबाल वही है ! "



"मालूम था…यदि मालूम न होता तो उन्हे हमारे पास आने की जरूरत ही क्या थी?"




"तो फिर-----सब कुछ मालूम होते भी उन्होंने दिल में हजारों छेद कर देने बाला झूठ क्यों बोला ?"



" अभी वह खुद उलझन मे है बहू!"



“ओह-क्या मे मास्टर को खबर कर दूँ कि इकबाल मिल गया ?"


"नही , तबस्सुम---अभी मास्टर को खबर देनी ठीक नहीं होगी !"


" क्यो?"



"मास्टर ने कहा था कि मुझे वह इकबाल नहीं चाहिए, जिसे अपने शुरू के बारह वर्ष याद न हों…उसे उस इकबाल की जरूरत है, जिसे अपने बारे में सबकुछ याद हो-हम उसके पंजे से तभी आजाद हो सकेंगे, जबकि उसे सबकुछ याद दिला देगे--यदि हम उसको सब कुछ याद दिलाने में नाकामयाब हो गए तो मास्टर सारी दुनिया मे तबाही मचा देगा-मास्टर बहुत जालिम है तबस्सुम-उसके कहर से दुनिया को बचाने के लिए रघुनाथ को सबकुछ याद दिलाना ही होगा----अभी उसे खबर मत करना-मैँ पहुच रहा हूं।"



"जल्दी आइए ।"



दूसरी तरफ़ से सम्बन्धविच्छेद हो गया…रिसीवर हाथ में लिए रघुनाथ हक्का बक्का सा खड़ा रहा-फोन पर होने वाली एक-एक बात उसके जेहन में गंजने लगी--------हर बात का सिर्फ एक ही मतलब निकलता था----यह कि वह इकबाल है ।


मगर-उसके दिमाग में नया विचार उभरा----, मास्टर कौन है?


दुनिया को उससे कैसी तबाही का खतरा है-उसकी याददाश्त से दुनिया की उस तबाही का क्या सम्बन्ध-----ये लोग किस तरह मास्टर के फन्दे में फंसे हुए हैं?



रघुनाथ अभी यह सबकुछ सोच ही रहा था कि एकदम से उछल पडा ।



उसकी समस्त आशाओं के विपरीत भीतरी कमरे से अचानक ही तबस्सुम इस कमरे में आ गई थी…उसे यहां देखकर वह भी चौकी और उंसके मुह से …जैसे बरबस ही निकला------------" अ....आप !"


" ह. ..हां !" बुरी तरह हड़बड़ाए हुए रघुनाथ के हाथ से रिसीवर छुट गया ।



"आप यहां ? "



"म. . .मैं आप लोगों से मिलने आया था कि दरवाजा खुला...।"




रघुनाथ एक शब्द भी आगे नहीं बोल सका….....हलक सूखता चला गया उसका-सूखता भी क्यों नहीं…तबस्तुम उसकी तरफ़ देख ही कुछ ऐसे अन्दाज में रही थी-ऐसी नजरे जैसे वह लाख लाख जान से उस पर कुर्बान हो रहीं हो ।




नीली आंखों में दूर…दूर तक सिर्फ प्यार का सागर ही ठाठे लगा रहा था। "



रघुनाथ जड़ हो गया…जुबान तालु से चिपक गई…आंखें पथरा गई…वह एकटक तबस्सुम को देखता रह गया-उसे, जिसे देखकर स्वयं सौन्दर्यं की देवी भी इंर्ष्या कर उठे----इस वक्त उसके जिस्म पर सिर्फ एक जीना हल्का आसमानी गाउन था-झीने गाउन के पार उसका संगमरमरी जिस्म स्पष्ट चमक रहा था-उरोजों की गोलाइयों को देखकर कर रधुनाथ के सारे जिस्म में चिंट्रियां सी रेग गई-सारा जिस्म पसीने से भरभरा उठा ।



तबरसुम , तो मानो ही गई थी कि वह लगभग नंग्नावस्था में उसके सामने खडी है ।



रघुनाथ का दिलो दिमाग, जाने कौन-सी दुनिया में तैरने लगा…दिल ने मानो धडकना ही बन्द कर दिया!!!! वह किसी गहरे नशे मे डूबता चला गया !!!!

एकाएक तबस्सुम ने उसे पुकारा----" इकबाल-"



“हूं।" उसी नशे में डूबा रधुनाथ कह उठा ।



"म.....मेरे इकबाल!" अधीर मन से कहकर वह उसकी तरफ बढी ।



रघुनाथ के दिलो-दिमाग को एकाएक ही तीव्र झटका लगा…जैसे वह किसी मदहोश कर देने वाले नशे से बाहर निकला हो-----वह एकदम चीख-सा पड़ा---"म. ..मैँ इकबाल नहीं हू ।"




वह ठिठक गई-भोले मुखड़े पर एकाएक ही ऐसे भाव उभरे, जैसे किसी खिलौने से खेल रहे बच्चे का खिलौना छीन लिया गया हो-वह दुढ़तापूर्वक बोली----"आप ही इकबाल है ।"





"नहीं ।" रघुनाथ ने कमजोर-सा विरोध किया-" तुम लोग मुझे इकबाल बनाना चाहते हो!"



"इससे भला हमें क्या लाभ होगा?"




रघुनाथ ने काफी हद तक खुद को सम्भाल लिया था, बोला…"ये मास्टर कौन है?"



"ओह!" तबस्सुम का चेहरा सफेद पड़ गया--------"तो आपने फोन परं होने वाली बाते सुन ली है ?"



"हां ।" कहने के साथ ही रघुनाथ ने चहलकदमी-सी की…अपना अत्मविश्वास उसे लौटता हुआ महसुस हो रहा था…. हालांकि झीने गाउन में से छलक पड रहा यौवन अव भी उसे विचलित किए दे रहा था, पर अपनी आंखे अब वह सिर्फ और सिर्फ तबस्सुम के चेहरे पर चिपकाए ही बोला-----" मै सुन चुका हूं कि मास्टर के लिए तुम मुझे जबरदस्ती इकबाल बना देना चाहती हो ।"




"आपने गलत सुना है-आप इकबाल तो हैं ही-हां, आपको उसके सामने पेश करने से पहले सारी दुनिया को तबाही से बचाने और खुद को उसके फ़न्दे से मुक्त करने के लिए हम आपकी याददाश्त बापस जरूर लाना चाहोते है ।"



"मेरी याददाश्त का दुनिया की तबाही से क्या मतलब?"




" प ..प्लीज इकबाल-यह मत पूछो-------"मैं तुम्हारे इस सवाल का जवाब नहीं दे सकती !"


रघुनाथ ने जेब से रिवॉल्वर निकालकर उसकी तरफ तान दिया बोला----" तुम्हें मेरे हर सवाल का जवाब देना होगा----याद रहे, गोली चलाते वक्त मेरा हाथ बिल्कुल नहीं कांपेगा ।"



आश्चर्यजनक ढंग से तबस्सुम की आंखें भरती चली गई… मुखड़े पर असीमित दर्द के चिन्ह उभरे-------बडे : ही अजीब से स्वर मे उसने कहा----"चला दो इकबाल-गोली चला दो ।"





"क्या मतलब----?" रघुनाथ हड़बड़ा गया !




“बचपन से शायद यहीं दिन देखने के लिए मैं तुम्हारी दीवानी थी-तुम्हारी तलाश मे देश-विदेश की खाक छानती घूम रही थी कि शायद इसीलिए घूम रही थी कि अन्त में तुम्हारी. गोली का शिकार होना है ।”
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