एक और दर्दनाक चीख complete

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kunal
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एक और दर्दनाक चीख complete

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एक और दर्दनाक चीख

वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी में करीब सुबह ७ बजे से ही चीफ के केबिन में बैठा....उसका सबसे काबिल और सीनियर डिटेक्टिव अरुण बक्शी था l उसे कल रात को ही चीफ का कॉल आया था जिस बिनाह पे उसे अगले दिन ही हाज़िरी देनी थी l अरुण बक्शी वक़्त का पाबंद था और साथ ही साथ पुलिस के कई पेचीदा केसेस को भी उसने अबतक सॉल्व कर दिखाया था जिस वजह से वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी में उसका रुतबा चीफ के बाद सेकंड हेड के तौर पे था....उम्र लगभग ३० साल थी और चेहरे पे एक अलग ही रौब उभरा हुआ हमेशा रहता था....कॉफ़ी का कप जैसे ही खाली हुआ था I उसी पल चीफ ने अपने कदम केबिन द्वार से अंदर रखे....अरुण ने उठते ही उन्हें गुडमॉर्निंग कहा तो चीफ ने उसे हाथ दिखाके बैठ जाने का इशारा किया और मुस्कुराते हुए अपने चेयर पे विराजमान होता तत्काल सिगरेट सुलगाया उसने एक बार पलटकर अरुण की ओर देखा और सिगरेट उसे ऑफर करने के लहज़े से सवालात किया...जिसके जवाब में अरुण ने शुक्रिया जताते हुए ना में हाथ हिलाया।

"कहिये सर ऐसी क्या वजह आयी की आज आपको मेरी याद आयी इस फर्म में तो मेरी जगह लेने वाले और भी कई काबिल डिटेक्टिव्स हो चुके"........मुस्कुराते हुए अरुण ने चीफ से कहा।

"हाहाहा देखो अरुण मैं जनता हूँ तुम्हारे काम करने का तरीका अलग है जो मुझे हमेशा से इम्प्रेस करते आया है...और अभी तुम्हारे आगे फर्म के बाकी डिटेक्टिव्स इतने एडवांस नहीं हुए उन्हें भी बहुत केसेस को सॉल्व करना है तब जाके उनमें से कोई तुम्हारी जगह ले पायेगा".....चीफ ने भी मुस्कुराते हुए कहा जिसे सुन अपनी तारीफ में अरुण फूलो न समाया उसे फक्र था अपने पेशे और अपने तजुर्बे पर और उससे भी ज़्यादा वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी का हिस्सा होने पर।

"कल आप मुझे कोई केस के बाबत कुछ बता रहे थे आखिर ऐसी क्या वजह है? जो मेरा इस केस को हैंडल करना इतना जरुरी हो गया।"

"देखो अरुण क्या तुम मेरे इस सवाल का जवाब देना बेहतर समझोगे की क्या तुम्हें भूत प्रेत पिसाच शैतान चुड़ैल इनसब पे यकीन है तुम्हें लगेगा तुम्हारा ये चीफ तुमसे क्या अजीब सा सवालात कर रहा है पर मैं ये जवाब तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूँ।"

"सर,पहली बात पुलिस और डिटेक्टिव की इन्वेस्टीगेशन में कानून,इन्साफ और इंसानी साजिश को छोड़कर किसी भी चीज़ो पे विश्वास नहीं किया जाता भूत प्रेत हाहाहा मैं इनपे कत्तई यकीन नहीं करता और न ही मानता हूँ ये होती है तो क्या मेरे नए केस में कुछ ऐसा ही मसला है".........अरुण ने दिलचस्पी से चीफ की तरफ देखते हुए कहा

"नहीं अरुण ये मैं नहीं कहता ये केस कहता है....दरअसल ये केस काफी कॉम्प्लिकेटेड है और अभी हाल ही में हुए मर्डर ने इसका अट्रैक्शन हमारे नज़रो में किया है...अगर ये केस सॉल्व हो गया तोह मान जाना की वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी की लोकप्रियता और भी बढ़ जायेगी और ये एजेंसी ओवर टॉप पर होगी"

"मैं तो हमेशा से इस एजेंसी के लिए यही उम्मीद करता रहता हूँ सर"

"उम्मीद नहीं अरुण आई वांट रिजल्ट्स खैर केस की तरफ ध्यान देते हुए मैं तुम्हें इस केस के बारें में कुछ चंद बातें बताना चाहता हूँ....डेड लेक का नाम तो सुना ही होगा तुमने".........अरुण ने गौर करते हुए जैसे अध्यन किया

"जो हमारे शहर से १२० किलोमीटर दूर सुनसान जंगल और हाईवे के बीच पड़ता है....उस जगह का नाम डेड लेक आज से नहीं तबसे है जबसे अंग्रेज़ो का मुकम्मल इस शहर में राज था....डेड लेक में एक पुराना झील पड़ता है और ठीक उसके सामने एक पुराना सा वीरान कॉटेज जो कभी उस घर के मालिक और मालकिन का रेजिडेंस होया करता था शहर से दूर उस वीराने में उस कपल ने क्यों घर बनाया ये आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है आज से करीब ३० साल पहले दोनों की एक रहस्मयी तौर से मृत्यु हो गयी थी घर में सिवाए खून के उनकी लाश तक न पायी गयी। लेकिन ये इस केस से जुड़ा दूसरा वाक़्या है उसके बाद वहा इन तीस सालो में कोई नहीं गया लेकिन हाल ही में हुए एक मर्डर ने इस केस को दोबारा रीओपन कर दिया है एक ५० वर्षीय आदमी जिसकी गाड़ी बीच हाईवे पे ख़राब हुयी पनाह के तौर पे उसने उस वीरान कॉटेज में हिम्मत से दस्तक दिया और अगली सुबह किसी हाईवे से गुज़रते मुसाफिर को उसकी गाडी वीरानो में खरी दिखाई दी जब उसने मुयाना किया तो पाया की उस कॉटेज के ठीक सामने बहुत ही बुरी हालत में एक लाश पड़ी हुयी थी उसके ऑर्गन्स बाहर थे जैसे जिस्म को खूब बेदर्दी से किसी धारधार हथ्यारो से फाड़ा हो कॉटेज जिसे मोहरबंद पुलिस ने आज से करीब ३० साल पहले लगाया हुआ था वह दरवाजा खुला था और अंदर जाने की हिम्मत उस मुसाफिर को नहीं हुयी क्यूंकि वो वैसे ही लाश को देखके डर गया था और उसी पल उलटे पाव गाडी में लौटते हुए पुलिस को तुरंत फ़ोन पे सूचित किया ।

"जब आपने कहा दूसरा वाक़्या तो पहले वाक़्या से आपका क्या मतलब?"..........अरुण ने तत्काल सवाल किया
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Re: एक और दर्दनाक चीख

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"वही तो रहस्य बना हुआ है उस कॉटेज को जिन मज़दूरों ने बनवाया था उनमें से एक ने पुलिस को ब्यान दिया जब उसने अखबार में उस लाश की तस्वीर कॉटेज के सामने देखी उसने बताया की उसे और बाकियो मज़दूरों को पैसे दिए गए थे क्यूंकि कॉटेज बनने से पहले खुदवाई के वक़्त वहा कई कई ताज़ी और पुराणी लाशें दफ़न थी। और मजे की बात ये है की उसका कहना है की रात होने से पहले ही वो लोग वहा से रुक्सत हो जाया करते थे जिस आदमी ने वहा कॉटेज बनवाया था वो जैसे सब राज़ो से वाक़िफ़ था लेकिन उसकी बदकिस्मती की वो भी वहाँ का एक राज़ बन गया न उसकी लाश मिली और ना ही उसकी पत्नी की....कॉटेज बनने से पहले करीब कई साल पहले की बात की जाए तो वो जगह वैसे ही सुनसान व्यवाण जंगल ही थी और पीछे तालाब और लाशो का जमीन खोद के मिलना साफ़ ज़ाहिर करता है की शहर में हुयी वारदातों का शिकार ूँ खून किये लाशो का वो जगह ठिकाना बन गयी....पहला वाक़्या से जुड़ा एक और वाक़्या मैं बताता जाऊ तुम्हे अरुण....वहाँ अंग्रेज़ो की बनायीं एक पुराणी सी ब्रिज थी जो किसी दुर्घटना में गिर गयी और आज भी उसके कुछ जर्जर अंश वहाँ मौजूद है सुना गया था की ६० लोगो से ज़्यादा अँगरेज़ मुसाफिरों की उस वक़्त मौत हुयी और वो सब के सब उस दलदल में गिरते चले गए....सुना है की वो दलदल अब वहाँ मौजूद नहीं लेकिन एक भी विक्टिम का पता न चला था सब के सब मारे गए थे"

अरुण ने चीफ के खामोश होते ही बड़ी गौर से सोचते हुए कुछ पल बिताये उसके बाद चीफ के ही कुछ कहने का इंतज़ार किया चीफ ने अरुण की तरफ देखा

"देखो अरुण वैसे तो ये जान जोखिम जैसा केस है मर्डर्स होना किसी साज़िश का अबतक का दावा है जिसपे हम विश्वास करते है लेकिन मुझे क्यों नहीं लगता की ये साज़िश नहीं किसी और वजह से हो रहा कोई ऐसा रहस्य है जिससे हम नावाक़िफ़ है इसलिए मैं चाहता हूँ तुम अपनी पूरी मर्ज़ी से इस केस पे ध्यान दो और पता लगाने की कोशिश करो की आखिर वो क्या रहस्य है पता लगाओ"..........चीफ को इतना किसी केस में दिलचस्पी लेता देख पहली बार अरुण ने देखा था।

चीफ उर्फ़ प्रकाश वर्मा अपने वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी के हेड थे हर कोई उन्हें सर से ज़्यादा चीफ कहता था...यही नहीं वह कई केसेस में जूनियर्स की हेल्प तक करते आये थे जिन वजह से उन्हें मास्टर चीफ भी कहा जाता था। अरुण बक्शी को दिए उस केस से कई उम्मीदेँ चीफ को अरुण बक्शी से थी। कारण उसके एजेंसी उसके फर्म की नीव इज़्ज़त और कामयाबी का जरिया दूसरी ही ओर अरुण बक्शी जैसे होनहार के आगे एक चैलेंज न कहना जैसे उसके कायदे में नहीं था।

__________________________

पुलिस डिपार्टमेंट को वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी का जब रिक्वेस्ट आया की वो उस डेड लेक केस को हैंडल करना चाहते है तो उन्होने काफी सोच विचार के बाद थक हारके ये केस चीफ के फर्म को सौंप दिया...इस केस को हैंडल करने का एकमात्र भार अरुण बक्शी के कंधो पर दे दिया गया...उस दिन से ही अरुण बक्शी ने डेड लेक जाने का दौरा किया...लेकिन वहाँ सिर्फ मुआना नहीं वहाँ रूककर उस रहस्य को जानने का निश्चय भी कर लिया था। यही उसकी ज़िन्दगी की आखरी भूल थी यूँ तो उसने कई जोखिम कई केसेस में उठाये थे पर उस केस में उठाके उसे जैसे ज़िन्दगी की एक सबसे बरी भूल कर देनी पड़ी थी जब उसे इस बात का अहसास हुआ तबतक देर हो चुकी थी बहुत देर

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Re: एक और दर्दनाक चीख

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एक महीने पहले

रात के उस वक़्त वो गाडी तेज़ी से अपनी गति में चलते हुए हाईवे रास्ते से गुज़र रही थी....गाड़ी में वो अकेला मुसाफिर था खुद अपनी गाड़ी ड्राइव कर रहा था...गाडी शहर से कोसो दूर आ चुकी थी आगे आगे दूर दूर तक उसे नीम अँधेरे और कभी न खत्म होने वाली सड़क ही दिख रही थी....जिसपे हेडलाइट की रौशनी फैकते हुए उसकी कार आगे बढ़ रही थी....इतने में उसे अहसास हुआ की करीब ७ घंटो से वो महज़ गाड़ी ही ड्राइव कर रहा है....उसके हाथ अब स्टीयरिंग व्हील को पकडे दुखने लगे थे...उसने एक बार चारो तरफ देखा और फिर गाडी बीच सड़क पे ही रोक दी...न उस तरफ से कोई वहां उसे आता दिखा और न अपने बैक साइड से....उसने गाडी थामी.....फिर हेडलाइट्स ऑफ किये....गाड़ी से बाहर निकलते ही उसे अहसास हुआ सर्द हवा का...घने जंगल में जैसे हवाएं भी तेज़ हो उठी थी....उसने अपने जैकेट को और सकती से अपने जिस्म से ढांक लिया और अपने दोनों बाज़ुओं को हाथो से सहलाते हुए पॉकेट से एक सिगरेट बाहर निकला....छक्क से लाइटर की आवाज़ हुयी और सिगरेट सुलग गयी..एक-एक कश लेता हुआ धुएं को छोड़ते अपने होंठो के बीच से....वो एक बार चारो तरफ गौर करता है.....अचानक उसे दिखता है।

कि सामने एक पुराण सा कॉटेज है और हलकी सी रौशनी ठीक दरवाजे से सटे खिड़की से बाहर कि ओर पढ़ रही है..."एक सुनसान व्यावान जंगलो के ठीक बीच बना वो कॉटेज उस शख्स को जैसे अपनी तरफ खींच रहा था...शख्स के मैं में यही बात उठी की इतनी शहर से दूर एक सुनसान जंगल और हाईवे के रास्ते कोई रहता भी है। धीरे धीरे वह घडी की तरफ निगाह दौड़ता है जो उसके कलाई पे बंधी होती है......रात बारह बजके पेंतालिस ऐसे में अब उसमें और ड्राइव करने की ताक़त तो न बची थी....सिगरेट का एक लम्बा कश लेते हुए वो आगे बढ़ता है....वो उस शहर से नहीं था अगर होता तो वाक़िफ़ होता की वो कॉटेज कई राज़ो में दफ़न था अगर वो वाक़िफ़ होता तो उस कॉटेज के करीब न बढ़ता बल्कि वहां अपनी गाड़ी तक न रोकता...उसने एक बार कॉटेज के दरवाजे के दो हाथ फासले खड़े होके एक बार उसने कॉटेज का जायज़ा लिया।

उसकी बनावट ही उसकी पुराने होने की गवाही दे रहा था...लकड़ियों से बना वो कॉटेज करीब काफी लम्बाई और चौड़ाई में था....उसका पिछला हिस्सा जंगल की ओर था जिस ओर तालाब था और वही से जंगल शुरू हो रहा था.....रात के उस घने....सिगरेट को उंगलियों में फसाये कई पलो तक अपलक खड़ा वो आदमी धीरे से दरवाजे पे दस्तक देता है....उसके दरवाजे पे दस्तक देने से पहले ही दरवाजा अपने आप चर्चारती आवाज़ के साथ खुलने लगता है....वो आदमी ठिठकते हुए दरवाजे के पुरे खुल जाने तक वैसे ही मूर्ति के भाति खड़ा रहता है....

अगले ही शरण उसे सामने एक लम्बे डेस्क के पीछे एक कुर्सी पे बैठा आदमी दीखता है जिसने काले रंग की फ्रेम का चश्मा पहना हुआ था....जैसे जैसे वो आदमी अंदर दाखिल होता है....उसे अपने कदमो की आवाज़ खुद उस खामोशी में सुनाई देने लगती है.....एका एक वो बैठा शख्स अपने सर को ऊपर उठाये सामने खड़े आदमी को देख मुस्कुराता है।

"बोलिये सर"...........हैरत से देखता वो आदमी उस शख्स को घुररता है उसके मुस्कुराते चेहरे से वो न जाने क्यों एक पल को अजीब सा महसूस करता है

"जी दरअसल वो क्या ये कोई होटल है? मुझे आज की रात यहाँ रुकना है"........
"जी सर बस आप जैसे ही कुछ मुसाफिर यूँ भटकते हुए या राह गुज़रते हुए बस यहाँ आ जाते है कभी कभार"
"जी चार्जेज?".......आदमी अपने जेब से निकालते नोट देने के लहज़े से कहता है
"जरुरत नहीं पड़ेगी"
"मेरा मतलब है जब आपको यहाँ से जाना होगा तब अदाई कर दीजियेगा यहाँ का यही उसूल है"
"जी बस मुझे एक रात के लिए रुकना है"............जैसे सुन वो बैठा शख्स मुस्कुराता है

"चलिए मैं आपको आपका कमरा दिखा देता हूँ".........बिना कुछ कहे रिसेप्शन से उठते हुए वो शख्स आदमी के साथ साथ चलने लगता है

इस बीच उस आदमी को अजीब लगता है...न कोई कर्मचारी न ही किसी के होने का अहसास ऐसा लगता है जैसे उस गुमनाम कॉटेज में उस घडी सिर्फ वो अकेला ही है....न उसने सवालात किया न कुछ पहचान के तौर पे कोई छानबीन की उससे...उसे ये बर्ताव देख अजीब लगा....लेकिन वह खुद उस घडी काफी थका और बध्यान था। वो शख्स दरवाजा खोलता हुआ मुस्कुराये उसे देख वापिस उलटे पाव जाने लगता है लेकिन दो कदम आगे बढ़ते ही वो रूककर पीछे घूमते हुए फिर उसी मुस्कुराये चेहरे से उस आदमी की ओर देख पूछता है कि "रात का खाना?"........"जी नहीं शुक्रिया वैसे एक बात पूछनी थी आप यहाँ अकेले रहते है? या इस कॉटेज का कोई और भी मालिक है?".........."हाहाहा जी नहीं यहाँ का मैं ही मालिक हूँ मेरा नाम जोसफ मैं अपनी बीवी मैरी के साथ यहाँ रहता हूँ। चलिए आप आराम कीजियेगा और हाँ अगर किसी भी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो आप बस मुझे याद कीजियेगा गुड नाईट "..........इतना कहते हुए वो एक शरण में तेज़ कदमो में जैसे चलते हुए उस गुप् अँधेरे सीढ़ियों में उतारते हुए जैसे गायब हो गया....

सबकुछ जैसे वाक़ई बेहद अजीब था....ज़्यादा दिमाग पे जोर न देते हुए उस आदमी ने दरवाजे को खोला और कमरे के भीतर कदम रखा.....उसने एक बार कमरे का जायज़ा लिया। ऐसा लगता नहीं था की कोई भी चीज़ नयी हो सब बेहद पुराणी थी....बस एक छोटी सी खिड़की थी जो अध्खुली थी...उसे खोलते ही तेज़ सर्द हवा जैसे उसके चेहरे से होके गुज़री...उसका जिस्म काँप उठा और उसने तुरंत खिड़किया और परदे लगाए...बिस्तर पे ढेर होते हुए उसे अहसास हुआ की जैसे नींद उसे अपनी आगोश में खींचना चाह रही थी। उसने उठके अपने कपड़े उतारे वापिस अपने बिस्तर पे आके लेट गया कुछ ही पल हुए थे उसे लेटे हुए की अचानक उसे एक बेहद अजीब सी चीख सुनाई दी...वो इतनी करीब से सुनाई दे रही थी कि एक पल को वो आदमी फ़ौरन बिस्तर पे जैसे एक झटके में उठ बैठा....ख़ामोशी छायी हुयी थी उसे लगा की शायद ये उसका वेहम था लेकिन अभी तो उसने एक दिल को दहला देने वाली चीख सुनी थी.....उसने जैसे ही अभी लेटने का निश्चय किया ही था की एकदम से वो चीख दोबारा गूंज उठी...."आह्ह्ह्हह्ह्हह्हह्ह्ह्ह".....वो आवाज़ किसी औरत की थी किसी के दर्दनाक चीख थी वो आवाज़...."कौंन है?"......जोर से कह उठा और पलंग से उतर खड़ा हुआ वो आदमी।
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Re: एक और दर्दनाक चीख

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इतने देर में उसे अहसास हुआ की वो आवाज़ करीब क्यों सुनाई दे रही थी? न वो चीख बाहर से आ रही थी और न ही उसके अपने कमरे से बल्कि वो चीख ठीक उसके बाए ओर से आ रही थी...धीरे धीरे लकड़ी के उस दिवार पे हाथ फेरते हुए आदमी ने अपने कानो को जैसे खरा किये उस दिवार से चिपका लिए......आने के वक़्त उसने पाया था की सब दरवाजे बंद थे और उनपे ताले झूल रहे थे....यानी उसी के आने से ये कमरा सिर्फ खुला छोड़ गया था जोसफ.....अभी कुछ शरण उसने सोचा ही था की इतने में फिर एक खौफनाक दर्द से भरी वो दहाड़ वो चीख उसके कानो में जैसे सुनाई दी...."कौंन है?".......उस आदमी ने जोर से हड़बड़ाते बड़ी बड़ी सांस लेते हुए दिवार पे एक लात मारें कहा

उसकी आँखे जैसे बाहर निकलने को आ रही थी......उसका कलेजा काँप उठ रहा था...क्यूंकि सामने की वो लकड़ी की दिवार का एक एक पल्ला अपने आप उसे गिरता दिखाई दे रहा था.......वो अब उसकी कल्पना से कई भयंकर मंज़र में तब्दील होने को थी...और ठीक उसी पल!

"आह्ह्ह्ह ससस उफ्फ्फ क्या भयंकर सपना था?"........उस आदमी ने अपने चेहरे पे आते पसीने को पोंछते हुए पाया की वह एक बुरा ख्वाब दे रहा था...उसके जान में जैसे जान आयी...और जैसे ही उसे अहसास हुआ की वो महज़ सपना नहीं था....वो जिस बिस्तर पे लेटा हुआ था। उसपे धुल जमी हुयी थी सिर्फ वही नहीं उस पुरे कमरे की ऐसी हालत हो राखी थी जैसे कई सालो से वो जगह बंद पड़ी हुयी हो....कमरे के चारो तरफ मकड़ियों के जाली और पुराने उन मूर्तियों पे धुल और मकड़ियों की जाली लगी हुयी थी....कमरे के सब चीज़ो का वही हाल था...स्विच बोर्ड काम नहीं कर रहा था.....एक पल को उस आदमी को अहसास हुआ की जब वो यहाँ आया था तब कॉटेज ऐसा नहीं था सबकुछ सलिहत से था। जबकि जोसफ ने खुद उसके सामने बत्ती जलाई थी जो अब काम नहीं कर रही थी उसने जब सर उठाया तोह पाया की वो लैंप जो न जाने कितने दिनों से दिवार पे लगी हुयी थी आधी टूटी हुयी झूल रही थी।

एक पल को ऐसा लगा जैसे वो कही और पहुंच गया हो वो भागता हुआ दरवाजे खोलके बाहर की ओर निकला उसे अँधेरे में कुछ दिख नहीं रहा था...एक पल को जब वो सीढ़ियों के करीब पंहुचा तो उसे किसी के वहाँ होने की आहट सी हुयी उसने अपना लाइटर जेब से निकला और कांपते हाथो से जैसे जलाया तो उस हाथ ने आगे बड़के उस जलती आग पे अपना हाथ रखते हुए सकती से लाइटर पकड़े उस आदमी के हाथ को जैसे थाम लिया

"नं..नही छोड़ दो मुझे छोड़ दो मुझे बचाओ somebuddy हेल्प"......वो उलटे पाओ भागना चाह रहा था लेकिन तभी उसे सकती से उस हाथ ने जैसे अपनी तरफ खींचा हो और ठीक उसी पल वो आदमी अपना संतुलन खोते हुए सीढ़ियों पे ही लुड़कते हुए नीचे जा गिरा

जब उसे होश आया तो सामने जोसफ खड़ा मजूद था और वो वैसे ही मुस्कुरा रहा था। हड़बड़ाते हुए वो आदमी उठ खरा हुआ "ओह माय गॉड उफ़ ये सब क्या हो रहा है? ये सब ये कॉटेज को क्या हुआ ऐसा लग रहा है जैसे बरसो से यहाँ कोई नहीं आया सबकुछ ऐसे क्यों? मेरी आँखे कॉटेज में घुसते वक़्त धोका नहीं खा सकती वो चीख जो मैंने सुनी वो बगल का वो कमरा"..................

"हाहाहा हाहाहा हाहाहाहा ".........जोसफ एक एक ठहाका लगाए हस्सन लगा
"हस्स क्यों रहे हो? I said why are u laughing ?".....जोर से उसे अपनी ओर खींचते ही जैसे उस आदमी के प्राण सुख गए..क्यूंकि सामने ठहाका लगाए जोसफ जैसे नहीं था उसके दोनों आँखों से खून बह रहा था और उसकी दोनों आँखे जैसे एकदम सुर्ख लाल हो रही थी

ये भयानक मंज़र देख वो कापते हुए पीछे होने लगा..."न..नहीं नहीं नही दूर रहो मुझसे"......वो दरवाजा खोलने के लिए आगे बड़ा की इतने में उसे अपने पाव सुन परे महसूस हुए वो चाहते हुए भी आगे एक कदम और न बढ़ सका

"आज से नहीं कई सालो से ये वीरनियत ये सुनसनीयत छायी हुयी है न कभी बाहर से किसी ने दरवाजे पे दस्तक दी न ही कभी किसी ने यहाँ आने की कोशिशें की कितने खुश थे हम कितने खुश? न जाने क्यों आये थे हम यहाँ? खो दिया मैंने अपना सबकुछ सबकुछ अपनी बीवी मैरी को खुद को और हमारे जिन्दगियो को".........जैसे दहाड़ उठा वो भयानक आवाज़ में तब्दील होता जोसफ

"ये ख्वाब नहीं यही हकीकत है वो आवाज़ किसी और की नहीं मौत की उस दर्दनाक चीख की आवाज़ है जो आज यहाँ फिर गुज़रेगी जो साये इतने सालो से जिस इंसान के इंतज़ार में थे वो अब फिर एक बार सुनने को चाह में है हाहाहा हाहाहाहा ".....एका एक भयंकर होती चली गयी जोसफ की वो हसी और उसी शरण किसी के तेज़ कदम ठक ठक सुनाई देने लगे उस आदमी को

जोसफ के रख्त हीन चेहरे पे जैसे मुस्कराहट छाने लगी उसकी गर्दन अपने आप पीछे की ओर सीढ़ियों से उतरती उस साये की ओर हुयी...एक एक उस आदमी की भी निगाह उस साये की ओर हुयी और जो उसने देखा उससे उसका कलेजा मुंह को आने लगा....एक मैली सी nightie उसने पहनी हुयी थी जिसपे खून के अनगिनत धब्बे लगे हुए थे वो चल ज़रूर रही थी लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे कोई मुर्दा कब्र से उठके उसके सामने आ रहा हो....घसीटते अपने पाव को एक बार जब उसके चेहरे की ओर निगाह हुयी तो अहसास हुआ की उसकी आँखे उसके चेहरे पे दिख ही नहीं रही थी बस उन जगहों से खून का क़तरा बह रहा था...."मिलो इससे मेरी वाइफ माय लवली मैरी"....दोनों साये जैसे एकदूसरे को थामे उसे लगभग बेहोश कर देने वाले थे...

जैसे तैसे हड़बड़ाते खौफ्फ़ में चीखते चिल्लाते हुए उस आदमी ने कॉटेज के दरवाजे को झिंझोड़ डाला उसी शरण दरवाजा खट्ट से खुल गया। वो अंधाधुंध उस नीम अँधेरे में न जाने किस ओर भागे जा रहा था...वो इतना डर गया था की पीछे मुड़के देख भी नहीं सकता था की कब उसके सामने वो दोनों खड़े हो जाये ...और ठीक उसी पल उसे अहसास हुआ की वो घने जंगलो के बीचो बीच था खामोशी छायी हुयी थी अँधेरे में कुछ भी नहीं दिख रहा था उसे ख्याल आया की जलने के लिए उसके पास टोर्च पीछे गाडी में छूट गयी थी उसने जैसे तैसे पेड़ की आड़ में खुद को छुपाते हुए सिगरेट अपने होंठो के बीच फसाया और कांपती हाथो से जब लाइटर तलाशने लगा तो अहसास हुआ की वो पीछे उस कॉटेज में वो छोड़ आया था...उसने घरी पे नज़र दौड़ाई अभी वक़्त कोई ३ बजे ही थे...अचानक उसे किसी की आहट सुनाई दी

और ठीक उसी पल उसे अहसास हुआ कुछ अजीब सा...एका एक वो आहट उसके बेहद करीब सुनाई देने लगी...उसकी अपलक दृष्टि अपने पीछे की ओर थी...और ठीक उसी पल उसने पाया की वहाँ कोई मौजूद नहीं था आहट भी सुनाई अब नहीं दे रही थी....उसने एक लम्बा सांस खींचते हुए अपने आप पर काबू किया...और ठीक उसी पल उसे उस अजीब चीज़ ने जैसे अपनी ओर आकर्षित किया "ये आवाज़ कैसी?"....एका एक उसके कदम उस ओर बढ़ चले....और जैसे ही वो पास आया ठीक उसी पल उसने खदकते उस दलदल की ओर देखा...."नं..नही नही ये नहीं हो सकता नहीं"....कधकते उस दलदल में से एक एक कर बहुत से हाथ निकलने लगे थे....एका एक उसे अहसास हुआ की वो हाथ जैसे इंसानो के नहीं किसी मुर्दा के थे उन हाथो पे ज़ख्म और खून था और तभी उसे किसी ने जोर से धक्का दिया...

वो दलदल में जा गिरा...और ठीक उसी पल उसे उन हाथो ने दबोचा "नहीं न..नहीं नहीं छोड़ दो मुझे जाने दो नही"...वो घुटती आवाज़ में तड़पते हुए चिल्लाये मदद की गुहार लगा रहा था...लेकिन कौन उस वीराने में उसकी सुनता? सामने उसने देखा की जोसफ और उसकी पत्नी मैरी खरे ठहाका लगाए जा रहे थे उनकी हसी पुरे घने वादियों में गूंज रही थी...."नही नहीं नही छोड़ दो मुझे नहीं"......दलदल उसे अपने गिरफ्त में लिए अंदर खींच रहा था उस आदमी ने पूरी कोशिशें की लेकिन उन हाथो ने उसे जैसे कसके थामे रखा था...एक ने उसकी गले को पकड़ा तो एक ने उसकी गर्दन को एक ने उसके सांस घुटते चेहरे को दबोचे रखा हुआ था....और कुछ ही शरण में एक और चीख गूंज उठी एक और दर्दनाक चीख।
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Re: एक और दर्दनाक चीख

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अपने चीफ प्रकाश वर्मा से मिलने के बाद से ही अरुण ने इस केस पे अपना पूरा ध्यान लगा दिया था......वो हाल ही में हुए उस आदमी के ब्रूटल मर्डर और उससे भी ज़्यादा उसके रहसमयी मौत की गुत्थी सुलझाने में लगा हुआ था......केस को हैंडल करते ही चीफ ने केस से जुडी तमाम सबूत अपने डिटेक्टिव अरुण बक्शी के लिए मुहैया करवा दिया था। अरुण ने उन तस्वीरो पे निगाह दौड़ाई तो जैसे उसका जिस्म सिहर गया। उसने आज तक कई केसेस में डेडबॉडी को काफी करीब से देखा था लेकिन कोई भी खून उसने इतनी बेदर्दी से हुयी नहीं देखी थी। तस्वीर में साफ़ लाश की बुरी हालत ब्यान हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी हिंसक जंगली जानवर की ही ये हरकत हो सकती है जिसने इतनी बेदर्दी से लाश को चिर फाड़ा था की उसके शरीर की सभी ऑर्गन्स बाहर निकले हुए थे। न जाने क्यों वो उस रात वहां गया था अपनी मौत के लिए।

सूत्रों के अनुसार वहां लाश को छोड़के किसी भी अन्य शख्स का कोई सुराग न मिला था। पुलिस ने काफी तफ्तीश और जांच पड़ताल के बाद ये शक किया था की जो ३० साल पहले कॉटेज को सील कर गयी थी वो अचानक से कैसे खुली? क्या ये हरकत उस मुसाफिर की थी जिसकी बेदर्दी से वहां मौत हुयी थी या फिर कोई और वजह.......अरुण ने काफी जांच पड़ताल किया और एक चक्कर पुलिस डिपार्टमेंट का भी काट आया जहा उसे मालूम चला की कॉटेज में सबकुछ ऐसे हालातो में था जैसे बरसो से वह कोई न आया हो सभी कमरों में ताले झूल रहे थे कॉटेज जर्जर होने के आलम में था.....कोई भी ऐसा सुराग हाथ न लगा जिससे ये महसूस हो की वहां कोई और भी मौजूद था....बस लाश के ही जूतों के निशान पीछे तालाब के नज़दीक पाए गए थे जैसे उसने भागते हुए जंगलो का ही रुख किया था फिर उसे मार्के उसकी लाश कॉटेज के सामने किसी ने फैक दी पुलिस को यही शक था की मर्डर किसी जंगली जानवर ने किया हो सकता है....

लेकिन अरुण बक्शी पेशेवर डिटेक्टिव था उसने कॉटेज से आज से करीब ३० साल पहले जो मर्डर्स हुए उस कपल के जो उस कॉटेज के मालिक और मालकिन थे उसके बाबत सवाल किया तो उसे मालूम चला की दोनों में से न ही किसी की लाश मिली और ना ही किसी का कोई सुराग ऐसा हुआ जैसे आसमान उन्हें निगल गयी या ज़मीन उन्हें खा गयी उनकी सारी चीज़े वैसे ही वह मौजूद थी जो आज भी वहाँ मौजूद है। अरुण बक्शी ने फिर अंग्रेज दौर में बने उस ब्रिज का ज़िकर किया जो उस कॉटेज से काफी नज़दीक था तो कमिश्नर ने सिर्फ इतना कहा की कोई ख़ास जानकारी तो नहीं पर आप उसे इंटरनेट पे आसानी से उसकी हिस्ट्री निकालके पढ़ सकते है। वो ब्रिज रेलवे की थी और १० साल के अंदर ही वो ठहर न पायी और उस दुर्घटना के बाद फिर किसी ने उस ब्रिज के तरफ ध्यान न दिया वो आधा टुटा ब्रिज आज भी वैसे ही वहाँ मौजूद है उसका रास्ता घने जंगलो से होके जाता है।

अरुण बक्शी को घर आते आते शाम हो गया। वो अकेला रहता था उसके परिवार उसके साथ नहीं थे। घर आकर उसने थके हारे महसूस करते ही खुद को.....पास रखी व्हिस्की की वो बोतल निकाली और उसका एक जाम बनाये उसे पीने लगा....आँखों में नींद ना थी उसके जैसे किसी गहरी सोच को बुनता जा रहा था। उसी श्रण उसने अपने लैपटॉप को खोलते हुए उसमे इंटरनेट ऑन किया उसने डैड लेक के पास वाली उस ब्रिज की हिस्ट्री काफी मशक्कत के बाद आखिर निकाल ली....अरुण की आँखे बड़ी ही गौर से उस आर्टिकल को पढ़ रही थी।

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वो रात करीब १० बजे का वक़्त था। 1933 का वो दौर जब अंग्रेजो का मुकम्मल शाशन हिंदुस्तान के सर जमीन पे था। उस रात घने जंगलो से गुज़रती हुयी ईंधन के धुएं को छोड़ती वो ट्रैन बड़ी ही तेज़ी से रेल ट्रैक पे चल रही थी। पेसेंजरो में ज़्यादातर अँगरेज़ थे जिनमें कुछ वृद्ध कुछ व्यापारी तो कुछ अफसर हर कोई अपनी कीमती सूट,कोट और लिबासो में सार्ड उस रात की हवाओ को महसूस करते हुए अपने अपनों में व्यस्त बैठे हुए थे....ट्रैन जैसे ही उस लाल ब्रिज पे चढ़ने लगी तो ट्रैन चालक को अहसास हुआ ट्रैन के ज़्यादा हिलने का उसने पहले तो गौर नहीं किया लेकिन जब ट्रैन बहुत ज़्यादा कांपने लगी तो उसे अहसास हुआ की कोई खतरा था...उसने खिड़की से झाका तो उसके प्राण काँप उठे क्यूंकि कई लम्बी ब्रिज के ऊपर चूँकि ट्रेन गुज़र रही थी और सिर्फ गुज़र नहीं रही थी वो बहुत ज़्यादा हिल रही थी....जल्द ही ट्रैन के हर पैसेंजर्स को समझ आने लगा और वो इस खतरे को भांप गए..........ट्रैन जैसे ही आधे ब्रिज पे आयी होगी की ब्रिज की ईमारत जैसे अब बुरी तरीके से टूटने के कगार पे आ गयी....एक एक इट करीब आती ट्रैन के वजहों से उसके भार को संभाल न पाते हुए टूट टुटके गिरने लगी थी...."ओह गॉड ओह जीसस सेव अस"....पैसेंजर को शान्तना देते हुए ट्रैन में सवार उन कर्मचारियों ने शान्ति बनानी चाही लेकिन जब ट्रैन एकदम बुरी तरीके से हिल उठी तो उनके वो शान्तना भी किसी काम न आ सके

और ठीक उसी पल हड़कंप मच गयी चीख चिल्लाहट और शोर मचने लगा खौफ्फ़ से हर कोई सिहर गया। और ठीक उसी पल ब्रिज एक अजीब सी भयंकर गूंज के साथ टूट गया ट्रैन सीधे उस आधे टूटे ब्रिज के साथ करीब १०० फट निचे गहरी खाई में जा गिरी उसके बाद जो बेहद भयंकर हादसा हुआ उसे ब्यान करना मुश्किल है......मलवो की ढेर आग में लापति पैसेंजर्स की बॉगी और कटी लाशें जैसे बिछी हुयी थी। "आहहह ससस कोई है कोई है आहहह"........उस भीषण एक्सीडेंट के बाद भी जैसे उस बेजान जिस्म से एक घुटती सी चीख निकल उठी....वो घायल लड़की ने अपने आस पास जब नज़र फैरा तो उसे उसी की हालत में कई लाशें और बुरी हालत में दिखी तो कही मलवो का ढेर और उससे उठता धुआँ..उसने निकलना चाहा पर उसे अहसास हुआ की वो एक दलदल में जा फसी थी और सिर्फ वही नहीं जो लाशें जो मलवो का ढेर वहाँ आस पास था हर चीज़ उस गहरे दलदल में डूबती जा रही थी।

एक बार फिर आतंकित भाव से उसने चीखते चिल्लाते हुए मदद की गुहार लगायी..."somebuddy हेल्प somebuddy plss हेल्प me "............वो डूबती चली गयी हर चीख घुटती चली गयी....और ठीक उस दलदल में छटपटाते हुए उसका जिस्म अंदर तक दुब गया सिर्फ बाहर ठहर गया तो सिर्फ उसके खून से सने वो हाथ और उसके बाद जैसे सबकुछ फिर खामोश हो गया

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