विकास दी ग्रेट complete

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विकास दी ग्रेट complete

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विकास दी ग्रेट

मात्र चौदह बर्ष की उम्र के विकास


से ही अपराध जगत का जर्रा जर्रा थर्राने लगा था


और जब उसने चीनी खुफिया विभाग मे घुसकर


मौत का भयानक खेल खेला तो .......



खेलकर वापिस आया तो सभी ने एक ही नाम दिया------
विकास दी ग्रेट
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

विकास . . विकास . . . .विकास!

यहीं एक नाम था जो भयानक जहरीले सर्प की भांति फूचिंग के मस्तिष्क मे रेंग रहा था, जो रह-रहकर उसके दिमाग से किसी हथोड़े की भांति टकरा रहा था । फूचिंग की आंखों से गहरी चिंता के भाव झलक रहे थे । रह-रहकर उसकी आंखों के सामने पंद्रह वर्ष के उस लड़के द्वारा फैलाई गई तबाही उभर गई । शैतान का भयानक रूप ।


प्रतिशोध की आग में जलता हुआ विकास ।


फूचिंग की आंखों के सामने फिंगोरा की लाश घूम गई ।


फिगोरा. . . टारर्च देने वाला भयानक हब्शी जल्लाद ॥. . .उसका अंत. .? उफ् . अच्छे-अच्छों की रूह फ़ना हो जाए ? हब्शी भेडिये भी दहल उठे, क्रूरता और कट्टरता स्वयं भयभीत होकर मुंह फेर ले ।



अभी तक भली प्रकार फूचिंग को यह दृश्य याद था, जब उसने उस कमरे में प्रवेश किया था, जिसमें विकास को कैद किया गया था ।


उस समय फूचिंग चकरा गया था, जब उसने कमरे मे होती हुई खून की वर्षा देखी ।

लहू की बारिश!

वास्तव में उस कमरे में खून बरस रहा था ।


यह देखकर वह दंग रह गया था कि फिंगोरा छत से लगे पंखे पर उल्टा लटका हुआ था ।


अजीब स्थिति में ।


जन्मजात नग्न, कटी हुई जीभ, माथे पर ब्लेड द्वारा गोश्त काटकर लिखा गया "बिकास" !


पंखा तेजी से चल रहा था । साथ ही साथ घूम रहा या फिगोरा का जिस्म । मस्तक पर वने "विकास" रूपी घाव से कमरे में चारों तरफ खून की वर्षा हो रही थी ।


फूचिंग की आंखों के सामने सब कुछ घूम गया ।


फिगोरा के बाद अनेक सैनिकों की लाशें !


सब एक ही हालत में पंखों पर उल्टे लटके हुए घूम रहे वे ।



बिकास की आलपिन का करिश्मा...!


यह भी फूचिंग को अच्छी तरह याद था ।


आलपिन से बिकास ने कितने ही चीनियों की आंखें फोड़ दी थी ।



याद करते-करते फूचिंग की भुजाएं फड़कने लर्गी । दहककर भयानक जासूस की आँखें अंगारों में बदलने लगी । मौत के साए उसकी आंखों में नजर आने लगे ।



उसके कई साथियों को विकास ने बडी निर्ममता व क्रूरता के साथ मौत के घाट उतार दिया था।


उसे प्रतिशोध लेना था…बिकास से भयानक बदला ॥॥॥॥॥


उसे सब कुछ याद था ।


विकास ने चीन का एक महत्वपूर्ण अड्डा समाप्त कर दिया था । उसके देखते-ही-देखते वहां भयानक तबाही फैल गई थी ।



जोरदार विस्फोट हुए थे । भयानक शोले लपलपाए थे ।


खौफ्नाक आग धधकी थी ।


पेट्रोल पर दौडती आग जब तक अड्डे मे रखी विस्फोटक सामग्री तक पहुची तब तक कानों के पर्दो को हिला देने वाले भयानक विस्फोट के साथ वह अड्डा उड़ गया ।



सब कुछ समाप्त हो गया ।



अड्डे में जितने भी जीवित अथवा मृत प्राणी थे, सब धधकती हुई ज्वाला में स्वाह हो गए ।



कीमती यंत्र नष्ट हो गए थे ।



सारा अड्डा खंडहर ने बदल गया था और वह खंडहर भी आग की लपटों में लिपटा हुआ था ।


सैनिकों ने विकास का पीछा भी किया था ।



भागता हुआ बिकास एक पिक्चर हाउस के समीप उसे मात दे गया था । उस पिक्चर हाउस के बाथरूमो में भी उसे देखा गया परंतु शेतान वहां भी नहीं मिला ।



हाल में ढूंढा, वहां भी नहीं!



उस सारी रात चीनी सैनिक समूचे पीकिंग की खाक छानते रहे किन्तु चीनी सरकार को इतना अधिक नुकसान पहुचाने बाला विकास गायब था ।



फूचिंग की दिमागी पेरेशनी और बढ़ गई थी ।




अब विकास के साथ उसके जहन में कुछ अन्य नाम भी उभर आए थे…बिज़य...अलफांसे...और महाबली टुम्बकटू...!

अब विकास के साथ उसके जहन में कुछ अन्य नाम भी उभर आए थे…बिज़य...अलफांसे...और महाबली टुम्बकटू...!




इन्हें सब बातों को मस्तिष्क में लिए वह तेजी के साथ एलर्ट हो रहा था ।



पच्चीस विशेष चीनी सैनिकों को तैयार होने का उसने आदेश दिया था । स्वयं भी तेजी से तैयार हो रहा था । उसके मजबूत जिस्म पर इस समय भयानक लड़ाकों जैसा लिबास था ।


जेब में भरी हुई गोलियां ।


होलस्टरों में रखे हुए रिवॉल्वर ।


सिर पर कैप । घुटनों तक जूते।


इस समय सुबह के चार बजे थे ।



यह बात सुबह अड्डा समाप्त होने से कुछ ही पल पूर्व उसके द्वारा बनाए गए डुप्लीकेट विकास ने विजय इत्यादि का पता बताया था ।



इस समय फूचिंग उसी अड्डे पर हमला करने जा रहा था । यह अभी तक सीक्रेट था । अभी यह ही हुआ था कि एक नाटे और गोल-मटोल, चीनी ने कमरे में प्रवेश किया और एक जोरदार सैल्यूट मारने के पश्चात् सावधान की स्थिति में अकड़कर खडा हो गया ।



"सब तेयार है?” फूचिंग ने प्रश्न किया ।


" यस कामरेड !' गोल-मटोल चीनी सैनिक बोला ।


“चलो ।" बढते हुए फूचिंग ने अपने लंबे कदम बढा दिए ।




कुछ समय पश्चात् तीन सैनिक-जीपें उस पते की ओर बढ रही थी ।


परंतु विजय पहले से ही पूर्ण सतर्क था । अलफांसे गजब की फुर्ती के साथ विजय पर झपटा था लेकिन विजय ने बड्री चतुराई और फुर्ती के साथ एक झटका खाया और कुर्सी सहित एक तरफ़ जा गिरा । उधर अलफांसे हवा मे तैरता हुआ रिक्त फर्श पर गिरा ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

लगभग एक ही साथ दोनों खडे हो गए ।


डुप्लीकेट विकास यानी चीन का एजेंट डबल क्रास, और वह जासूस लडकी यह नहीं समझ पा रही थी कि विजय और अलफांसे, ये दोनों इंसान आपस मे दोस्त हैं अथवा दूश्मन?



उसे भली प्रकार याद था कि ये दोनों सबसे पहले यहां मिलते ही आपस भयानक दुश्मनों की भाति टकराए थे ।



उसके बाद दोनों ने साथ-साथ काम किया और विकास को जांर्सेंटा से निकाल लाए और अब...!



विजय के हाथ में वही कागज दबा हुआ था जिस पर उसने गुप्तलिपि के आधार पर कुछ लिखकर पढा था ।



गुप्तलिपि मे क्या संदेश छुपा हुआ था यह अभी तक उसने किसी को नहीं बताया था ।



स्वयं विकास और यह जासूस लडकी भी यह जानने के लिए विशेष उत्सुक थे कि संदेश क्या है?


किसने भेजा है?



और अलफांसे ने तो उत्सुक होकर विजय के हाथ में दवे कागज को छीनने के लिए उस पर जाम्प लगा दी थी ।



यह दूसरी बात थी कि वह सफ़ल न हो सका था ।

उसके सामने खड़ा अलफांसे बोला--'"विजय, दिखाओ उसमें क्या लिखा है?"



"ऐसी भी क्या जल्दी है प्यारे लूमड़ मियां?" विजय अपने ही अंदाज में बोला…“तुम जरा आराम से बैठ जाओ, हम जरा अपने इस दिलजले से इश्क लड़ाने के मूड में है ।"



"क्या मतलब? " अलफांसे चकराया ।



"में ठीक कह रहा हूं लूमड़ प्यारे, अब जरा तुम तमाशा देखो ।" कहने के साथ ही विद्युत गति से विजय का हाथ चला और शक्तिशाली घूंसा समीप ही खड़े विकास के जबड़े से टकराया ।




अलफांसे और लडकी की खोपडी उलट गई ।


उनकी समझ में नहीं आया कि विजय को हो क्या गया है? इधर डुप्लीकेट विकास यानी डबलक्रास के जबड़े पर जब जासूस सम्राट का घूंसा पडा तो न चाहते हुए भी उसे फर्श का स्वाद चखना ही पडा,, र्कितु इस बीच वह यह भी समझ गया कि विजय पर यह रहस्य प्रकट हो चुका है कि वह विकास नहीं है अन्यथा विजय कदापि विकास को इस तरह अचानक क्यों मारने लगा ।


यह बात दिमाग में आते ही वह अपने जौहर दिखाने के लिए बाध्य हो गया ।


वह न केवल फुर्ती से उछलकर फर्श पर खड़ा हो गया बल्कि विद्युत गति से उसका जिस्म वायु मे लहराया और ------चमत्कृत करने वाले ढंग से विजय के सीने पर उसके दोनों पैरो की दुलत्ती पडी ।


वह लड़खड़ा गया ।



तभी अलफांसे ने हवा में उछलकर बिकास की दोनों टांगे पकडकर मेज पर दे मारा । विकास के मुँह से भयानक चीख निकल गई ।



जासूस लडकी अवाक्-सी उन तीनों को देखती रह गई । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है?



चीन में वह भारत के लिए जासूसी करती थी परंतु यह लोग क्या हैं, यह वह नहीं समझ पाई थी । उसे पता लगा था कि विकास को विजय और अलफांसे बेहद प्यार करते हैं किंतु इस समय वह जो दृश्य देख रही थी वह गजब का हैरतअंगेज था ।


"वेरी गुड लूमड़ प्यारे, साले की हड्डी-पसली तोड़ दो ।" कहते हुए विजय ने अपने हाथ में दबा हुआ कागज का टुकडा अपनी जेब के हवाले किया ।



इस बीच विकास के पीछे छुपे डबलक्रास ने अपना अन्य कोई और जौहर दिखाना चाहा तो अलफांसे ने उसे उठाकर फर्श पर दे मारा ।



फर्श से उठते ही उसके जबड़े पर विजय के बूट की जोरदार ठोकर पडी । उसके मुह से खून बहने लगा और यह दूसरी तरफ उलट गया ।



उसके बाद बेचारा डबलक्रास ।

विजय अत्तफांसे के बीच में फंसकर क्या कर सकता था ।



शीघ्र ही वह बेहोश हो गया ।


"लो प्यारे कमा दिया अपने ही चेले को ।" विजय चहका।



"अब मे धोखा नहीं खा सकता विजय बेटे ।" अलफांसे मुस्कराकर बोला…“यह विकास नकली है ।"



"कैसे पहचाना?"



"वो मेरा चेला है विजय ।" अलफांसे बोला…“मैं जानता हूं कि वह कब, किस अवसर पर, कौन-सा दाव किस ढंग से मार सकता? जिस समय इसने अपने पैरों का प्रहार तुम पर किया, मैं उसी पल भांप गया था कि यह विकास नहीं है और फिर तुम्हारा इस पर हाथ उठाना भी इस बात का ठोस प्रमाण था ।" कहते हुए अलफांसे डबत्तक्रास के चेहरे से विकास के फेसमास्क की झिल्ली नोंच ली ।




फेसमास्क के पीछे एक खूंखार चीनी चेहरा छिपा हुआ था ।



लडकी अवाक्-सी इन खतरनाक लोगों के खेल देख रही थी ।



"बेटा लुमड़ प्यारे? विजय ब्रोला--“यह साला फूचिंग तो हमारा भी गुरु निकला, साले ने हमारे साथ इतनी गहरी चाल चल दी कि हमे चकरघिन्नी बना दिया ।"



"मैं पहले ही सोच रहा था विजय कि हम "जार्सेंटा" जैसे भयानक स्थान से इतनी
सरलता के साथ कैसे निकल आए, हमे रोकने की चीनियों की वह कोशिश केवल दिखावा मात्र थी , जबकि वे हमे निकल भागने का पूर्ण अवसर दे रहे थे ।"


“खैर प्यारे, इस बिषय पर बाते बाद में होंगी, पहले हम अपनी मम्मी से कुछ इश्क की बाते कर ले ।” कहने के साथ ही विजय उस जासूस लड़की की तरफ घूमकर बोला------------“मम्मी जी, सबसे पहले आप अपना नाम बताइए ।”



""संध्या!" उसने बड़ा संक्षिप्त-सा उत्तर दिया ।


“बडा धांसू नाम है ।" विजय तेजी के साथ बोला…"तो ये बताओ कि... ।"



"विजय, बह कागज कहां है?" अलफांसे बीच ही में बोला ।



“बीच में बोलने वाले लोग महामूर्ख होते हैं, लूमड़ प्यारे! " विजय बोला'------"वे बाते बाद की हैं, पहले जरा संध्या देवी से काम की बाते करने दो ।" कहने के बाद यह फिर संध्या की तरफ घूम गया तथा बोला------"हाँ तो देवीजी, मैं यह पूछ रहा था कि इस ठिकाने के अतिरिक्त चीन में तुम्हारा कोई और घोंसला है!"





"क्या मतलब?” संध्या उसके बात करने के ढंग को देखकर चकरा गई ।


"मतलब को तो मारो एक मिठाई की गोली ।" विजय बोला…"सवाल यह है कि इस खंडहर के अतिरिक्त पीकिंग में तुम्हारा अन्य कोई स्थान है अथवा नहीं, जहां चीनियों की पहुच न हो ।"




“यहां कोई चीनी नहीं पहुच सकता।” संध्या दृढ़ शब्दों में बोली ।

"हो सकता है संध्या देवी कि आप सही फरमा रही हों किंतु आपको यह पता होना चाहिए कि यहां इस मनहूस लूमड़ के कदम पड़ गए हैं, साथ ही यहां हम यानी विजय दी ग्रेट पहुच गए हैं । यह ठीक है कि जब तक तुम यहां रहती थी कोई यहां तक नहीं पहुचा था किंतु तुम्हें शायद यह नहीं पता कि हमारे जिस्सों में कोई-न-कोई गंध ऐसी अवश्य है जिसकी 'बू' चीनी बडी सरलता से सूंघ लेते है ।"




“क्या तुम्हारा अभिप्राय ये तो नहीं कि चीनियों को इस अड्डे के बारे में जानकारी गई हैं?” इस बार यह प्रश्न अलफांसे ने किया था ।



“तुम्हरि बच्चे राजी रहे लूमड़ प्यारे ।" विजय बोला…“बिल्कुल हमारा अभिप्राय यही था ।"



"ऐसा क्यों? "




"ऐसा लगता है कि अब तुम्हें बद्दुआ देनी होगी ।" विजय बोला…“अच्छा यही है कि तुम दो मिनट के लिए अपनी बोलती पर ढक्कन लगा लगा दो !' कहने के बाद उसने अलफांसे को कुछ भी बोलने का अवसर नहीं दिया बल्कि फिरकनी की भाति संध्या की तरफ घूमकर बोला-------"हां , तो देवीजी अब आप समझ गई होंगी कि यह अड्डा चीनियों की निगाह में आ चुका है और वे लोग अपनी बारात लेकर हमारी शादी करने यहाँ पधार सकते हैं । इसलिए अच्छा है कि हम यहां से प्रस्थान करें ।"



विजय प्रत्येक हरकत्त इस अजीब ढंग और तेजी के साथ कर रहा था कि संध्या कुछ समझ नहीं पाई थी । वह केवल इतना ही कह पाई----" मै समझे नहीं ।"
"समझने की आवश्यक्ता भी नहीं है देवीजी ।" विजय बोला'…"केबल ये बताओ कि इसके अतिरिक्त कोई स्थान है अथवा नहीं?."



"मेरा तो कोई स्थान नहीं है ।"


"मर गए मोहल्ले बाले ।" विजय ने माथा पीटा ।


“मेरे पास है ।"' अलफांसे बोला ।


"जेब से निकल कर बाहर रख दो ।" विजय तपाक से बोला ।



“तुम बकवास कम किया करो तो काफी काम के आदमी बन सकते हो ।" अलफांसे बोला…"तुम्हारे कथनानुसार इस समय यहाँ खतरा है और छुपने के लिए कोई स्थान चाहिए,, मै कह रहा हू कि ऐसा स्थान मेरे पास है, मेरा विचार है हम वहां काफी सुरक्षित भी रहेंगे ।"



" कौन-सा स्थान? "



"जोबांचू के अड्डे पर ।"



"कौन जोबांचू ?"



“फिलहाल इस चक्कर में मत पडो ।" अलफांसे ने कहा-----" इससमय केवल इतना समझ लो कि वह स्थान काफी सुरक्षित है, एक तो बहाँ चीनी सेनिक पहुच ही नहीं सकते और यदि पहुच भी गए तो हम लोग जमकर उनका मुकाबला कर सकते हैं ।"



“तो फिर बातें क्यो मिला रहे हो लूमड़ प्यारे, तुरंत उस साले नकली दिलजले को तो उठाकर इस घोंसले से भाग निकलो, आगे की योजना बाद में सोचेंगे ।"
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

"लेकिन यहाँ कुछ समान है जो चीनियों को हमारे विषय में जानकारी दे देगे ।" संध्या ने बताया !


"उन्हे समेटने का भी समय अब शेष नहीं ।" विजय तेजी के साथ बोला ।




"इस तैम्प में मिट्टी का तेल तो होगा?"



"जी हां ।"


"इसके अतिरिक्त?"


"पूरा एक कनस्तर और है ।"


"वैरी गुड !" विजय बोला- "तो फौरन सारे तहखाने में छिड़क दो ।"



इस वार्तालाप के ठीक पांच मिनट बाद... ।


अचानक वह खंडहर आग की लपटों में धिर गया ।


विजय, अलफांसे और संध्या उस स्थान को छोड़ चुके थे । डबलक्रास का बेहोश जिस्म अलफांसे के कंधे पर पडा था ।


तब जबकि खंडहर में आग की लपटे उठ रहीं थीं, वे तीनों पीकिंग की एक अंधेरी और सुनसान गती में से गुजर रहे थे ।


जिस तेजी के साथ बब्बर शेर का मृत जिस्म करेटयुवत शीशे से टकराया, उसी तेजी से छिटक कर वापस टुम्बकटू के पास आ गिरा ।



शीशे को किसी प्रकार की कोई हानि नहीं पहुंची थी । सभी बेहद आश्चर्य के साथ उस अजीब नमूने दुम्बकटू को देख रहे थे ।



शीशे के पार चीन के बड़े-बड़े अधिकारी उपस्थित थे । सभी के दिमाग में चांद का ये नमूना हव्वा बनकर सवार हो गया था ।



इस मीटिंग के अध्यक्ष मिस्टर योग की आंखें उस समय हैरत से फैलकर दुगनी हो गई जब खंबे जैसे व्यक्ति दुम्बकटू ने खतरनाक और खूनी बब्बर शेर को अपनी गन्ने जैसी पतली कलाइयों मे कसकर मृत्युलोक पहुंचा दिया ।



फूचिंग स्वयं चकराकर रह गया । उसका असिस्टेंट मोंगपा आश्चर्य के गहन सागर में गोता लगा रहा था ।



टुम्बकटू के सामने फूचिंग की बुद्धि भी चकराकर रह गई । सभी लोग आतंक से टुम्वकटू को देख रहे थे ।



अचानक उसने शेर को उठाया और उस समय सारे व्यक्तियों के हलक सूख गए जब उसने अपनी बीसों उगलियों के पांच-पांच इंच लंबे नाखून शेर के पेट में धंसा दिए ।



शेर का गर्म रक्त बाहर उबल पडा ।

उफ् ! चीन के व्यक्तियों ने भी घृणा से मुह फेर लिए । एक झटके के साथ टुम्बकटू ने अपने दोनों हाथों को विपरीत दिशा में खींचा । शेर की मोटी खाल किसी प्याज के छिलके की भांति उतरती चली गई ।


टुम्वकटु, के सारे हाथ खून से सन गए । शेर केवल मांस के लोथड़े के रूप में रह गया ।


टुम्बकटू ने खाल एक तरफ़ उछाल दी । फूचिंग जैसे व्यक्तियों को भी उल्टी होने वाली थी ।



अगले पल टुम्बकटूका जो भयानक रूप सामने आया, उसे देखकर समूचे चीनी अधिकारी दहल उठे ।



सबकी रीढ की हड्डी में मौत की लहर दौड़ गई । उन्होंने देखा कि टुम्बकटू का पतता-दुबला चेहरा एकाएक फूलने लगा ।



ठीक इस प्रकार जैसे नाग अपना फन फैला रहा हो । छोटी-छोटी आंखों में जैसे दो नन्हें-नन्हे लाल बल जल उठे हो । गले के एक-एक नस उभर आई ।



पतले होंठ भयानक तरीके से फेल गए । होठ फैलते ही उसके भयानक नोकीले दांत ठीक किसी राक्षस की भांति चमके ।



लंवे-लंबे कान अजीब ढंग से फड़फ़ड़ाने लगे । जिस्म फूलता चला गया ।

यह था टुम्बकटू नया और खौफ़नाक रूप ।


मानो खूनी दरिंदा!


वहशी नरपिशाच !


गर्म खून की प्यास रखने वाला जंगली भेडिया !! किसी कब्रिस्तान में भटकती हुई खूनी रूह ऐसा लगता था जैसे खून ही प्यास रखने वाला वहशी भेडिया खड़ा हो ।



शेर का मांस और खून देखकर उसकी आंखें खौफ़नाक ढंग से चमक उठी । दांत कच्चे मांस को खाने के लिए मचल उठे । जीभ गर्म खून पीने के लिए लपलपाई ।


टुम्बकटू एक नए अंदाज में सामने था ।



अब यह हंसमुख टुम्बकटू नजर नहीं आ रहा था । अब तो दरिंदा सामने था, रक्त पीने की लालसा रखने वाला टुम्बकटू!

रक्तपिपासु!

खौफ़नाका भयानका डरावना!


फूचिंग भी सब कुछ भूलकर टुम्बकटू के इस खूनी रूप में खो गया ।



अचानक टुम्बकटू के कंठ से एक बेहद डरावनी किलकारी निकली । मानो कोई भयानक प्रेतात्मा अपनी प्रिय बस्तु देखकर प्रसन्नता से चीख उठी हो । ठीक उसी प्रकार टुम्बकटू झपटा और अगले ही पल उसके भयानक नोक्रीले दांत मांस के लोथड़े रूपी शेर के जिस्म में धंस गए ।



लोगों ने घृणा से मुँह फेर लिए ।


शेर का कच्चा गोश्त टुम्बकटू चिंगल चिंगलकर खा रहा था । फर्श पर ढेर सारा खून बह रहा था । टुम्बकटू के कंठ से फिर भयानक प्रेतात्माओं जैसी किलकारी निकली और वह गर्म खून पर झपट पडा ।

टुम्बकटू के कंठ से फिर भयानक प्रेतात्माओं जैसी किलकारी निकली और वह गर्म खून पर झपट पडा ।


नहीं, दुम्बकटू इंसान नहीं हो सकता । या तो वह भयानक वहशी भेडिया है अथवा कोई खौफनाक प्रेतात्मा!



किसी भयानक भेडिए की भाति बह जीभ से बड़े चाव के साथ गर्म खून पी रहा था । किसी प्रेत की भांति रह-रहकर उसके कंठ से किलकारियां निकल रही थी ।


देखते-ही-देखते वह सारा गर्म खून पी गया ।


एक पल भी व्यर्थ किए विना वह फिर शेर के मांस पर झपट पड़ा । वह किसी वहशी दरिंदे की भांति गोश्त निगलने लगा ।



उसका सारा चेहरा गाढे खून से लाल । लहू से सने हाथ । दहकती हुई आंखें । चेहरे पर वहशीपन । रात में देख ले तो खूनी भेड्रिए भी दहल उठे ।


प्रेत भी भय से चीख पड़े ।


भयानकता स्वयं उसका यह भयानक रूप देखकर कांप उठे ।


एकाएक फूचिग को जैसे कुछ होश आया ।



उसे लगा टुम्बकटू इंसान कम और खून का प्यासा खूनी दरिंदा अधिक है । उसने तेजी के साथ एक अन्य बटन दबा दिया । अचानक शीशे के दूसरी तरफ अर्थात् टुम्बकटू की ओर वाले भाग में जहरीली गैस भरने लगी ।

तब तक टुम्बकटू शेर का आधा मांस खा चुका था । अचानक टुम्बकटू ने चेहरा उठाकर समस्त चीनियों की तरफ़ देखा ।



समूचे चीनी कांप उठे ।

उसके भयानक नोकीले दांत चमक उठे । आंखें में जलते बल्ब जैसे रह-रहकर जलने-बुझने लगे । खून से सना हुआ मुह कंपकंपी पैदा कर रहा था ।



"खून. . ऽ .ऽ .ऽ. ऽ . . ।" टुम्बकटू के मुह से भयानक गड़गड़ाती हुई गुर्राहट निकली------------“खून . . .खून . . .खून, लाओ . . .लहू. . .रक्त. . हा. .हा. . .हा. . .खून ।" एकदम जैसे टुम्बकटू पागल हो गया था । वहशी गुर्रा उठा था । रक्तपिपासु टुम्बकटू खून मांग रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे अगर उसे खून नहीं मिला तो यह तढ़प-तढ़पकर जान दे देगा । खून के विना वह मर जाएगा । किसी कुत्ते की भांति उसकी जीभ बाहर निकल गई । बह और भी भयानक लगने लगा । खून की प्यासी जैसे कोई प्रेतात्मा खून के लिए गुर्रा रहीं हो ।



वह पुन: चिंघाड़ उठा-----"खून लाओ, खून. . .खून. . .हा. . .हा. . .हा. . . ।” टुम्बकटू पागल होकर भयानक कहकहे लगा रहा था…“खून दो . . .तुमने मेरी प्यास जगा दी है. . .ह्य. .हा. . .हा. . .मैं तुम्हारे जिस्म का एक कतरा भी नहीं छोडूंगा. . .खून लाओ. .गोश्त. . .खून. . .हा. . .हा. . .हा. . . ।" दुम्बकटू किसी खौफनाक दरिंदे की भांति चिंघाड़ रहा था ।



सब लोगों के दिल बैठते चले गए ।



सबको अपने सिर पर मंडराती मौत नजर आ रही थी । वे ऐसा महसूस कर रहे थे कि टुम्बकटू को छोड़कर बडी भारी गलती की है ।

भयानक तरीके से डकार-डकारकर टुम्बकटू खून मांग रहा था ।
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Re: विकास दी ग्रेट

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इधर गैस की मात्रा बढती जा रही थी ।



इससे पूर्व कि गेस टुम्बकटू पर अपना कुछ करिश्मा दिखाए, उसके जूते से निकलकर एक चमकीला सुनहरा सिक्का हवा में लहराया ।


अगले ही पल सिक्का शीशे से टकराया ।



आश्चर्यजनक परिणाम----सिक्का अपने अध्यतन के बराबर छिद्र बनाता हुआ शीशे के पार निकल गया ।


इस क्षण-प्रतिक्षण गेस में वृद्धि होती जा रही थी । टुम्बकटू के चेहरे पर छाया वहशीपन कम नहीं हो रहा था । अचानक उसके जूते से एक अन्य सिक्का वायु में सनसनाया और फिर शीशे में जा लगा । यह सिक्का पहले वाले सिक्के द्वारा बनाए गए छिद्र को इतना बडा कर गया जितना स्वयं उसका आयतन था । उसके बाद, तेजी के साथ टुम्बकटू के जूते से निरंतर सात सिक्के निकले और शीशे में एक अच्छा-खासा मोखला बना गए ।



यह सब पलक झपकते ही हो गया ।



इससे आगे का दृश्य कोई भी न देख सका ।



किसी की आंखें न देख सकी कि कब टुम्बकटू का गन्ने जैसा जिस्म वायु में लहराकर उस मोखले के माध्यम से बाहर आ गया ।
एक बार पलक झपकने के बाद सबने केवल यही देखा कि टुम्बकटू एक चीनी अधिकारी के बहुत ही समीप खड़ा इस प्रकार लहरा रहा था मानो किसी विशाल खेत में खड़ा इकलौता गन्ना ।


अभी कोई कुछ समझ नहीं पाया ।



अधिकारी के कंठ से एक भयानक चीख निकली ।



समूचा वातावरण दहल उठा ।



उपस्थित सारे जिस्म सूखे पत्रों की भाति कांपने लगे ।



खूनी नरपिशाच टुम्बकटू के भयानक नोकीले दांत उस चीनी के सिर वाले भाग में धंस गए थे । अधिकारी के कंठ से हदय-विदारक चीख निकल गई थी । रक्तपिपासु टुम्बकटू गर्म खून पी रहा था ।।।



चीनी अधिकारी बुरी तरह चीख-चीखकर मचल रहा था, और साथ-ही-साथ समूचा खून उसके जिस्म से सुतता जा रहा था । चीनी सफेद पड़ता चला गया । चीखता-चीखता वह शक्तिहीन अचेत हो गया । देखते-ही-देखते वह उसका सारा खून पी गया ।


रक्तहीन मानव पिचककर अजीब-भी शक्ल में आ गया । उस पल. . जब गर्म खून के प्यासे टुम्बकटू ने अपने तकुओँ जैसे नोकीले दांत उसके सिर से बाहर निकाले तो भयानकता की भी रूह फना हो गई । टुम्बकटू रूपी खूनी भेडिए की दहकती आंखें बुझने लगीं ।




टुम्बकटू ने रक्तहीन मानव के सिर पर दांतों द्वारा बने घाव में अपने दोनों हाथों की सलाई-सी उंगलियां डाली, लंबे नाखून घाव में समा चुके थे । इससे पूर्व कि कोई कुछ समझे टुम्वकटू ने एक बेहद जोरदार झटका दिया और अगले ही पल. . .!
ख र्र र्र र्र. . के अजीब-सी ध्वनि के साथ उस अधिकारी का जिस्म दो हिस्सों में फटता चला गया । रक्तहीन गोश्त के लोथड़े इधर-उधर बिखर गए।



हड्डियां टूट टूटकर बिखर गिर गई । खून एक बूंद भी नहीं टपका । कुछ अजीब चिपचिपा-सा पदार्थ वहां बिखरकर रह गया । उसके जिस्म का आधा हिस्सा टुम्बकटू के दाएं हाथ में झूल रहा था और बाएं हाथ में दूसरा ।



किसी को जैसे कुछ होश ही नहीं रहा।



सब आतंक से भयभीत होकर टुम्बकटू को देख रहे थे ।



दुम्बकटू की आंखों की वहशी खूनी चमक समाप्त होती जा रही थी । वह तृप्त नजर आ रहा था, मानो उसकी गर्म खून की प्यास बुझ गई हो, इतना खून उसके लिए पर्याप्त हो ।



वहशीपन के भाव उसके चेहरे से खत्म होते जा रहै थे । नाग के फन के भाति फैला हुआ उसके सिर का भाग बैठता जा रहा था । नसों का तनाव समाप्त हो गया था ।



कुछ ही देर में वह वहीं हंसमुख, फुर्तीला, साधारण टुम्बकटू नजर आने लगा ।



उसका वहशीपन न जाने कहाँ गायब हो गया था ।



अगर उसके मुहे-हाथों और जिस्म पर खून न लगा हुआ हो तो कोई यह नहीं कह सकता था कि यह वहीं रक्तपिपासु टुम्बकटू है जो कुछ ही पल पूर्व किसी खूनी भेड्रिये अथवा अतृप्त प्रेतात्मा की भांति खून पी रहा था और मांस खा रहा था ।

"लो . . . ऽऽऽ. . . ।" कहते हुए उसने उस इंसानी जिस्म के दोनों दुकड़े अन्य चीनी अधिकरियों की तरफ़ उछाल दिए । इस समय वह बड़े अराम से खड़ा लहरा रहा था और कहा रहा था---------"सज्जनो, आज मुझे पता लगा है कि इंसानों के अंदर बहने वाला यह लाल खून कितना गर्म और स्वादिष्ट है । आज से मैं इसी खून से अपनी प्यास वुझाऊंगा ।”




इस मीटिंग के अध्यक्ष मि. पोंग इस समय टुम्बकटू के पीछे खड़े थे । उन्होंने अवसर जानकर तेजी के साथ अपनी जेब से रिवॉल्वर निकालकर टुम्वकटू पर फायर कर दिया ।




परन्तु.....उफ्......यह छलावा अपराधी ।




कोई नहीं देख सका कि टुम्बकटू कब अपने स्थान से गायब हो गया ।




एक पल में दो चीखें उभरी ।



एक उसकी जिसे गोली लगी थी और दूसरी स्वयं पोंग की ।




सबने केवल यही देखा कि टुम्बकटू के हाथ का एक जोरदार चपत पोंग के गाल से टकराया । परिणामस्वरूप पोंग अचेत होकर टुम्बकटू की सलाई जैसी बांहों में झूल गया । अगले ही पल पोंग का बेहोश जिस्म टुम्बकटू के कंधे पर पडा था । टुम्बकटू कह रहा था-------"अच्छा सज्जनो, अब मैं चलता हूं ।” आवाज ठीक इस प्रकार निकल रही थी मानो फुल स्पीड पर खुला हुआ रेडियों अचानक खराब हो गया हो------"मैने आप लोगों को कल सुबह तक का समय दे रखा है और अगर तुमने उस समय तक वे अंडे उस पेड़ पर न रखे तो मैं पोंगची की बीबी से तो इश्क लडाऊंगा ही, साथ ही पोंग की लाश किसी वृक्ष की शोभा बढाती पाई जाएगी ।”



अभी फूचिंग कुछ कहना ही चाहता था कि टुम्बकटू पोंग को सम्हाले उस हाल के द्वार से लहराता हुआ बाहर निकल गया ।



उसके बाद उसे समूचे 'हार्बिन' में तलाश किया गया किंतु वह टुम्बकटू था!


कोई इंसान होता तो शायद चमकता अथवा हाथ ही जाता परंतु पता नहीं टुम्बकटू तो था ही क्या?

बिकास सतर्क हो गया ।

वह समझ गया कि वह रहस्यमय चीनी अधिकारी सांकेतिक भाषा में उसे कुछ भी कर गुजरने के लिए कह रहा है ।


वह मोंगपा की तरफ़ देखकर गुर्राया-----“तुम्हें मैं सूअर की मौत मारूंगा फूचिंग के कुत्ते!”


पहले अपनी चिन्ता करो, हिंदुस्तानी पिल्ले !" वह कुटिलता के साथ बोला।


"तुम्हारे देश में आया हुआ हूं कुत्ते!" विकास क्रोधित स्वर में गुर्राया-----"अच्छी तरह समझ लो कि पीकिंग में वो तबाही फैला दूगा कि सारा संसार कांप उठेगा ।"



“आयु इतनी छोटी और जुबान इतनी लंबी ।" कुटिलता के साथ कहता हुआ वह उसके पास आ गया । विकास उससे आयु के हिसाब से उसके लड़के के बराबर था परंतु लंबाई में उससे दो-तीन इंच लंबा ही था । सेहत भी उसके मुकाबले अच्छी थी । बिकास उसकी आंखों में आंखें डाले गुर्राया--- -"उस समय तुम्हें मेरी आयु का पता लगेगा जब मेरा ब्लेड तुम्हारी आंखों के सामने होगा ।"



"तुम बोलते बहुत हो कुत्ते...!" कहने के साथ ही मोंगपा का एक थप्पड़ विकास के गाल पर पड़ा परंतु तभी एकदम जैसे बिजली चमकी । विद्युत गति से एक थप्पड़ मोगपा के गाल से टकराया । इस नाजुक समय में किसी को विकास से यह उम्मीद नहीं थी पर, यह लडका तो हमेशा ही ऐसा काम करता था जिसकी कमी किसी को आशा नहीं होती ।

पलक झपकते ही लड़के का जिस्म कमान से निकले तीर की तरह हवा में लहराता चला गया ।



इधर मोंगया एक ही थप्पड में चकरा गया था ।


रेट. . .रेट. . .रेट. . . ।


रायफ़तों की भयानक गर्जना से हाँल दहल उठा । अनगिनत गोलियां उस लड़के के 'चारों तरफ छितरा गई परंतु उसने तो हमेशा सनसनाती गोलियों के बीच ही खेलना सीखा था ।


वह भला गोलियों से क्या डरता । विधुत गति से सनसनाता हुआ वह वहीं खडे हुए एक खाली ड्रम में जा पहुचा जिस पर उसकी नजर ही पड़ चुकी थी ।


वह वहुत बुर्तीला था ।


उसके ड्राम में पहुचते ही खडा हुआ ड्रम गिर गया ।गोलियाँ ड्रम ब्रॉडी से टकराकर विना किसी प्रकार का करिश्मा दिखाए बेकार हो गई । पलक झपकते ही ड्रम तेजी के साथ लुढका और मोंगपा अभी संभल भी नहीं पाया था कि तेजी से लुढ़कता हुआ ड्रम उसके पेरों से जा टकराया । कुछ समझता तो कुछ करता भी । यह सब विकास ने इस फुर्ती के साथ किया था कि कोई समझ तक नहीं पाया । वह घड़ाम से फर्श पर गिरा, गिरते ही ड्रम के अंदर से लड़के ने हाथ निकालकर, मोंगपा का कालर पकड़कर अंदर खीच लिया ।


इस समय किसी ने फायर नहीं किया क्योंकि इस समय उनका चीफ मोंगपा भी बही था !

इधर बिकास ने एक झटके के साथ र्मोंगपा के होलेस्टर से रिवॉल्वर खींच लिया और उसकी कनपटी से सटाकर धीमे किंतु सर्प की तरह फुंफ़कारा----" कहो हरामजादे, पहुचा दूं खुदागंज?"


र्मोंगपा चुप ! . .सिट्टी-पिट्टी गुम !



“ये फायरिंग रोक दो चीनी सूअरों !" बिकास जोर से चिलाया-----"वरना तुम्हारे इस चीफ को मौत के घाट उतार दूगा ।" वह अभी तक ड्रम के अंदर ही था । वह निकलने का प्रयास कर रहा था कि विकास रिवॉल्वर का दवाब उसकी कनपटी पर बढ़ाकर बोला----"हिल मत कुत्ते, वरना भेजा उड़ा दूगा ।"


मोंगपा एकदम ढीला...मानो शव !


फायरिंग रुक चुकी थी ।


“अब अपने-अपने हथियार गिरा दो ।" विकास ने खतरनाक स्वर में आदेश दिया परंतु उसने अपने आदेश को कार्यान्वित रूप में न देखा तो रिवॉल्वर का दबाव और अधिक बढाकर मोंगपा के कान में फुंफकारा---"आदेश दे सूअर, वरना खोपडी तोड दूगा ।”


बेचारा मोंगपा !


आदेश देना ही पड़ा ।


सबके हथियार फर्श पर आ गए । दोनों हाथ सिर से ऊपर, थोबड़े दीवार की तरफ और तब विकास मोंगपा को लेकर ड्रम से बाहर आया । विकास उसे लेकर हाल में लगे एक खम्बे के पीछे ही चला था कि अचानक. . . । धांय . . . !


एक गोली चली ।


विकास के हाथ में दबा रिवॉल्वर छिटककर दूर जा गिरा ।


लड़के के दिमाग में धमाका-सा हुआ, एक ही पल में वह समझ गया कि कोई चीनी सेनिक चालाकी दिखा गया है । उसने फौरन ही सब कुछ छोडकर खम्बे की बैक में जम्प लगा दी । अचानक फिर गोलियों से हॉल गुंज उठा ।

तभी विकास ने देखा कि बही रहस्यमय चीनी अधिकारी एक विशेष ढंग से हवा में लहराया और एक रायफल को उसके खम्बे की ओर उछालकर चिल्लाया-“विकास, ये लो !"


विकास ने रायफल लपक ली ।


वह रहस्यमय चीनी अधिकारी भी उसके सामने वाले एक खम्बे की बैक में हो गया था । अब बह भी अपनी रायफल से चीनी सैनिकों को ठंडा कर रहा था ।


विकास के हाथ में दबी रायफल ने भी गरजना प्रारंभ कर दिया । मोंगपा भी जम्प मारकर एक ड्राम की बैक में हो गया था । अब दोनों तरफ़ से गोलियां चल रही थी ।

अभी विकास अधिक चीनियों का सफाया नहीं कर पाया था कि अचानक उसके नीचे से फर्श हट गया और वह लाख संभलने का प्रयास करने के बाद भी न सम्भल सका ।।।।।

और धड़ाम से नीचे जा गिरा, एक ही पल में उसने देखा कि यह टॉर्चर रूम था । वहां लाल प्रकाश फैला हुआ था । तरह-तरह की मशीनें थी ।

यह कमरा उस हाँल के एकदम नीचे था अभी तक गोलियां चलने की आबाज आ रही थी ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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