विकास दी ग्रेट complete

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Re: विकास दी ग्रेट

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फूचिंग बिजली की गति से घूमा । देखा तो अवाक् रह गया…अलफांसे अब भी भयानक ढंग से हंस रहा था । उसका समूचा चेहरा लाल हो गया था । संध्या अवाक्-सी उन दोनों को देख रहीं थी । न जाने क्यों अलफांसे के इस सर्द अट्टहास पर फूचिंग कांप उठा ।




हालांकि इस समय स्वयं उसका चेहरा भी किसी भट्ठी की भांति तप रहा था ।


उसके हाथ में रिवॉल्वर था ।


एक पल के लिए फूचिंग जैसे व्यक्ति का हाथ भी कांप उठा परंतु अगले ही पल जैसे वह पागल हो गया ।



उसने तेजी से तीन फायर अलफांसे पर किए ।


लेकिन संगआर्ट का माहिर अलफांसे अब भी उसके सामने खड़ा किसी जिन की भाति कहकहे लगा रहा था ।



फूचिंग अवाक-सा उसे देख रहा था ।



संध्या भी हैरान थी ।



कुछ पलों तक यही स्थिति रही ।


फिर अलफांसे गुर्राया----"अपने जाल में खुद ही फंस गए, फूचिंग बेटे!" यह वाक्य अलफासे ने वहीँ आवाज़ बनाकर कहा था जो वह अज्ञात मददगार के रूप में फूचिंग को फोन करते समय करता था ।



“तुम.. .!" फूचिंग चौंककर दो कदम पीछे हट गया ।


"यस, फूचिंग बेटे, ये मैं हूं ।” अलफांसे गुर्राया ।



"तुम. .?" फूचिंग की समझ में नहीं आ रहा था कि वह साजिश क्या है? उसे कैसे फंसा लिया गया?


वह चकराकर रह गया ।



"मेरा तो बहुत बडा मतलब है, बेटे!" अलफांसे गुर्राया------"जिस विकास के खून के तुम इतने प्यासे हो कि सामने देखकर अपने आपको संभाल नहीं सके और तुरंत गोली से उड़ा दिया, मैं उसी विकास का गुरु हू बेटे, वही विकास मुझे जान से प्यारा है, तब भी पूछते हो कि मेरा क्या मतलब है?”



चाहते हुए भी फूचिंग कुछ नहीं बोल सका । उसकी जुबान जैसे अकड़कर रह गई ।


लेकिन अलफांसे अब भी गुर्रा रहा था-----------"विकास वह रसगुल्ला नहीं चीनी कुत्ते, जिसे तुम यूं ही हजम कर जाओं ।" अलफांसे का स्वर भयानक होता जा रहा था--------------“बिकास यह शेतान है जो तुम जैसे सैकडों जासूसों को पेड़ पर लटका देता है । उस लड़के को हमने ऐसे सोना नहीं सिखाया कि मौत उसके करीब आ जाए और वह सोता ही रहे ।" अलफांसे का लहजा भयानकता की चरम भीमा तक पहुच गया था-----“वैसे तो वह इतना प्रभावशाली है कि तुम जैसे कुते उससे कांपते है लेकिन अगर उस पर कोई हावी भी हुआ तो अलफांसे उसे फाड़कर रख देगा। उसकी बैक में हमेशा अलफांसे रहता है, फूचिंग बेटे! भूलकर भी उस लड़के से ना टकराना वरना या तो वह ही तुम्हें नहीं छोड़ेगा और अगर तुम उसे किसी प्रकार की हानि पहुंचने में सफल हो भी गए तो समझ लेना कि मैं दुनिया के तख्ते से चीनी जाति को समाप्त कर दूंगा ।" अलफांसे किसी सिंह की भांति गरज रहा था ।


अंतर्राष्टीय शातिर का यह अनोखा और भयानक रूप देखकर फूचिंग कांप उठा ।


अलफांसे फिर बोला----" तुम अपने आपको बहुत जालसाज समझते थे, फूचिंग बेटे! लेकिन खुद ही अपनी चालों में फंस गए ।" बोलते हुए अलफांसे का क्रोध जैसे कुछ कम होता जा रहा था---------"तुम्हें अज्ञात बदमाश के रूप में फोन मैंने ही किया था । वास्तविकता यह थी कि यह योजना विजय ने बनाई थी महज इसलिए कि आप विकास का कार्य कुछ हल्का कर सके । जब तक उस पर अलफांसे और विजय जैसे गुरुओं का हाथ है तब तक तुम जैसा कोई भी कुत्ता उसकी तरफ आँख भरके नहीँ देख सकता, विजय ने उसे बचाने के लिए अपने आपको फंसा लिया । अगर वक्तं पडा तो विकास को बचाने के लिए मैं अपना सिर कटा सकता हू ।"




“लेकिन इस सबसे लाभ?” फूचिंग स्वयं पर संयम पा चुका था ।



"लाभ भी पता लग जाएगा बेटे, पहले त्याग देखो ।” वह बोला------“बिजय ने खुद ही स्कीम बनाई थी कि वह सनकी बूढे के मेकअप में डीलारा के मेज नंबर तेरह पर बैठेगा और मैं तुम्हे विजय का एक अज्ञात दुश्मन बनकर यह जानकारी दे दूं। जैसा कि स्वाभाविक था तुमने तुरंत जाकर विजय को पकड़ लिया । योजनानुसार मैंने तुम्हें फिर इस प्रकार फोन किया तथा सही पता बताया और यह भी बता दिया कि तुम्हें यहां अकेले जाना चाहिए । हम जानते थे कि तुममें इतनी बुद्धि है कि तुम विजय के मेकअप में यहां पहुचोगे । वैसा ही हुआ । जिस विकास को देखकर तुम इतने भडक गए कि स्वयं को संभाल नहीं पाए, यह विकास नहीं बल्कि तुम्हारा ही तैयार किया गया एजेंट डबलक्रास है ।”


अवाक् फूचिंग अलफांसे को देखता रह गया ।



उसे अपनी बुद्धि पर क्रोध आ रहा था । किस सरलता से वह इन खतरनाक लोगों के जाल में फंस गया था ।



मन-ही-मन वह उनकी इस योजना की प्रशंसा कर उठा । वह किस प्रकार खुशी-खुशी ही उन लोगों के बीच फंस गया था ।




“लेकिन विजय इस समय चीन की कैद में है ।" फूचिंग के लहजे में धमकी का पुट था ।



"इसकी तुम चिंता मत करो, फूचिंग बेटे!'" अलफांसे बोला…“अभी तो कैद ही में जाना पड़ा है, विजय के जिस्म का एकाएक कतरा बिकास का है । विकास के लिए विजय अपनी जान भी दे सकता है, लेकिन वह इतना बेवकूफ भी नहीं है कि बैसे ही तुम्हारी कैद में जा फंसे । निश्चय ही उसने कोई प्रबंध किया होगा और अगर वास्तव में यह फंस गया होगा तो अभी तुम भी हमारी कैद में हो । अगर विजय के लिए चीन सरकार तुम्हारी भी बली देने लगे तो अभी अलफांसे मरा नहीं है । विजय को आजाद कराने के लिए मैं खून की नदियां बहा दूंगा ।"



"लेकिन इस प्रकार आप लोग विकास की क्या सहायता कर सकेंगे?" फूचिंग बोला------------एक मेरे न होने से क्या होना वहां पर अन्य सेनिक-पहरे तो मजबूत होंगे !"



"तुम तो वहां वहुत कुछ कर सकते हो ।"



कै' समझा नहीं ।"



"अब समझ जाओगे ।" कहते हुए अलफांसे ने अपनी जेब से फूचिंग के चेहरे का आटोमेटिक फेशमास्क निकलकर दिखाया तो फूचिंग की खोपडी घूम गई कि अब अलफांसे से फूचिंग बनकर बहा जा मिलेगा सारा मामला गडबड कर देगा। फूचिंग को कुछ नहीं सुझा तो... ।



एकाएक उसके जिस्म में बिजली दौड़ गई ।

भयानक ढंग से उसने अलफांसे पर जम्प लगाई किंतु अलफांसे धीमे से अपने

स्थान से हट गया, लेकिन उसी पल फूचिंग ने भी सिद्द कर दिया कि उसे भी चिनी विजय की उपाधि यूँ ही नहीं मिली है । इधर अलफांसे धीरे से हटा , उधर गिरता-गिरता भी फूर्चिग एक घूसा अलफांसे के ज़बड़े पर जमा गया।


अलफांसे का जबड़ा कांप उठा ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

उसे फूचिंग की शक्ति का सही अनुमान हुआ । उसे लगा कि वास्तव मे फूचिंग एक प्रतिभाशाली जासूस है लेकिन इस समय उसने भिड़ना सही नहीं समझा इस कार्य को पेंडिंग में डालकर उसने रिवॉल्वर फूचिंग की पसलियो से सटाया और सर्प की भाति फुंफ़कारा---------"अगर हरकत की तो पसलियां तोड दूगा।"


फूर्चिग एकदम निश्चल हो गया ।



"इस वक्त समय नहीं, फूचिंग वेटे!” अलफांसे बोता…“वरना तुम्हारी दिमागी शक्ति तो देख ही ली , अब तुम्हारी शारीरिक शक्ति देखते और साथ ही तुम्हें दिखाते कि शक्ति क्या होती है, लेकिन कोई बात नहीं, पहले आज की अपने चेले की करतूत देख ले, फिर तुमसे यह मुकाबला भी होगा ।"



उसके पश्चात् !



फूचिंग को अलफांसे ने अपने ढंग से एक कमरे में कैद कर दिया और उसकी सुरक्षा के लिए संध्या को तैनात करके तेजी से वह अपनी तैयारी करने लगा ।



उसने फूचिंग के चेहरे की झिल्ली उतारकर न जाने क्या सोचते हुए अपनी जेब में रख ली थी ।



स्थान का नाम स्वयं फूचिंग वार्तालाप के मध्य ले ही चुका था । अलफांसे पूर्णतया तैयार होकर मकान से बाहर निकल गया ।
गगन का चुंबन लेने का प्रयास करती हुई इमारत एक विशाल मैदान के ठीक बीचोंबीच स्थित थी ।



उसके चारों तरफ़ एक-एक फर्लाग मैदान पड़ा हुआ था।



इमारत गुंबद की भात्ति एकदम गोल थी । किसी मीनार की भाति वह गोलाकार ढंग से गगन की तरफ़ उठती चली गई थी ।



इमारत की ऊंचाई तीस मीटर से कम नहीं धी । नीचे उसकी चौडाई अधिक थी और जैसे-जैसे वह गगन की तरफ़ उठती जा ऱही थी, उसकी चौडाई कम होती चली गई थी ।



सबसे ऊपर का जो सिरा था वह किसी मंदिर की भाति नुकीला हो गया था । इमारत के शीर्ष तक पहुचने के लिए उसके अंदर गोलाकर स्थिति में सीढियां बनी हुई थी ।



अलफांसे फूचिंग बनकर यहाँ आ चुका था । वह चांगली से भी मिला था और चांगली को उसने यह कहकर टाल दिया था कि उसके वहां पहुचने से पूर्व ही विजयं के साथी वह स्थान छोड़ गए थे ।



चांगली के कथनानुसार विजय अभी तक चीनियों की कैद में था । अलफांसे पूरी तरह फूचिंग का अभिनय कर रहा था । उसका अभिनय ऐसा था कि अभी तक उसे किसी ने नहीं भांपा था !





इस समय रात के साढे दस बजे थे । अलफांसे स्वयं सैनिकों को जगा रहा था । अब तक वह काफी जानकारियां हासिल कर चुका था और उसने जो भी जाना था, वह मन-ही-मन चीनियों के प्रबंध के प्रशंसा भी कर चुका था ।




वह मन-ही-मन सोच रहा था कि उसका शैतान चेला अपने इस चेलेंज को पूरा भी कर पाएगा अथवा नहीं और अगर करेगा भी तो कैसे? वह जानता था कि बनर्जी को इस इमारत के शीर्ष वाले कमरे में रखा गया है । सबसे ऊपर का वह कमरा बहुत ही छोटा था । गुंबदनूमा समूची इमारत चीनी सैनिकों से भरी पडी थी ।




प्रोफेसर के कमरे तक पहुंचने लिए एक हजार सीढियां थी और प्रत्येक सीढी पर एक चीनी सैनिक खड़ा था जिसके हाथो में दबी टाँमीगन आग उगलने के लिए तत्पर थी ।




अलफांसे यह भी जानता था कि इस इमारत के भीतरी वातावरण में करेटयुवत विद्युत तरंगे दौड़ रही है ।




अगर कोई साधारण कपड़े पहनकर उस इमारत में प्रविष्ट हो जाए तो अदृश्य विद्युत करेटयुक्त तरंगे उसे अपने मे जकड ले और वे खून की प्यासी तरंगे इंसानी रक्त पीकर जिस्म के टूकड़े-टुकड़े कर देती है ।



जो सेनिक उसके अंदर है उनके जिस्म पर उन तरंगों के निरोधक थे । इस इमारत के चारों तरफ फैल हुआ गोल मैदान था । मैदान के चारों तरफ आठ सर्चलाइट स्टेशन इस प्रकार स्थित थे कि उनके प्रकाश से मैदान का कोना-कोना जगमगा रहा था । इस मैदान में भी कम-से-कम पचास सेनिक तो होगे ही । मैदान के चारों तरफ कटीले और करेंटयुक्त तारों की ऊंची दीवार थी ।




तीस मीटर ऊंची इमारत के ठीक शीर्ष पर जिस कमरे में बनर्जी को रखा गया था उस कमरे की नोकीली छत पर एक तोपची बैठा था ।



संभवतः इस बात का भी ख्याल रखा गया था कि कहीं विकास हवाई रास्ते से न आकर उत्पात मचा दे ।



जिस कमरे में बनर्जी थे उसके द्वार पर एक ऐसा आटोमेटिक सिस्टम था कि किसी के कमरे में प्रविष्ट होते ही समूचे इलाके में स्वयं ही खतरे का सायरन बज उठता था ।



उस कमरे की छत से बनर्जी को बांधा गया था और नीचे तीन खूंखार किस्म के वुलडॉग घूम रहे थे ।



उनके अतिरिक्त कमरे में अन्य कोई इंसान नहीं था । यह तो वह प्रबंध था जो अलफांसे की जानकारी में था, इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ हो सकता था ।




अलफांसे यह भी जानता था कि इस मैदान के बाहर मीलों तक सैनिक छावनी फैली हुई है ।



सभी एकदम सतर्क थे ।



अलफांसे फूचिंग के रूप में व्यस्त नजर आ रहा था ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

उधर. . . ।



चांगली. . . !




चांगली को फूचिंग के रूप में अलफांसे ने कहा था कि वह पूरी सैनिक छावनी संभाले । मैदान से बाहर सैनिक छावनी भी आज पूरी तरह सजग थी ।



चांगली अपने विशेष कमरे में बैठा था । उस कमरे के चारों और सैनिक फैले हुए थे ।


फूचिंग और अन्य सैनिकों ने भली-भाति विजय की तलाशी ले ली थी किन्तु इसका क्या किया जाए कि विजय इस प्रकार तैयारियां करके आया था कि चीनियों के बाप भी उसे नहीं पकड़ सके थे ।




उसे एक अंधेरी-सी दुर्गध और सीलन युक्त कोठरी में बंद कर दिया गया था ।


इस कोठरी का मात्र एक ही दरवाजा था अभी एक बार भी नहीं खुला था ।


वह जानता था कि इस जगह एक पहाडी कोठरी के बाहर गैलरी है और गेलरी में सेनिक है ।



उसके कपड़े और जूते इसके जिस्म पर से ले लिए गए थे और पहनने के लिए उसे दूसरे कपड़े दिए गए थे ।



यूं अधिकांश सैनिक आज प्रोफेसर बनर्जी की सुरक्षा कर रहे थे लेकिन विजय की सुरक्षा हेतु भी कम पहरा नहीं था परंतु विजय को जैसे इन सब वातो से कोई मतलव नहीं था ।




यह आराम से अंधेरे में पड़ा झकझकी गुनगुना रहा था ।




तब जबकि उसने रेडियम डायल हैंडवाच पर नजर मारी तो उसे साढे नौ बजाते हुए पाया ।




विजय के जिस्म में जैसे एकदम बिजली दौड गई ।



वह तेजी से उछलकर खडा हो गया और अपनी कलाई की कोहनी वाले स्थान पर उपडी हुई खाल को नाखूनों से पकडकर एक झटका दिया तो आश्चर्यजनक रूप से उसकी कलाई की खाल उतरती चली गई । वास्तव में यह खाल एकदम नकली थी ।



खाल का रंग विजय की त्वचा के रंग से एकदम समान था । तनिक भी अभास नहीं होता था कि उसने अपनी कलाई पर नकली खाल चढ़ा रखी थी । खाल के नीचे वाले भाग में विजय ने बड़े ध्यान से हाथ फिराया ।




उसके हाथ में एक नन्हा-सा कैपसूल आ गया ।



कुछ देर तक कैप्सूल को वह अपनी चुटकी में गोल करने का प्रयत्न करने लगा और फिर उसने कैप्सूल कोठरी के दरवाजे पर रख दिया और उसके करीब मुह ले जाकर मुंह की भाप निरंतर तेजी के साथ तीन वार फेंकी और तेजी के साथ अंधेरे में पीछे हट गया । पीछे हटते-हटते उसने खाल से चिपका एक अन्य कैपसूल निकाल लिया था ।




धड़ामा अचानक एक विस्फोट हुआ ।




कोठरी का दरवाजा उड़ गया था ।



विजय तेजी से एक कोने में छुप गया । धुल, आग और धुंए से वातावरण भर गया । उसके पार क्या था, यह विजय नहीं देख सका !






तभी भागते कदमों की आहट ने विजय को बता दिया कि सैनिक भागकर उसी तरफ़ आ गए हैं । उसने एक और कैप्सूल में तीन बार मुह की भाप मारी और दरवाजे की तरफ उछाल दिया ।



फिर एक भयानक विस्फोट हुआ ।


मानवीय चीखो से वातावरण कांप उठा ।




कोठरी की थोड्री-सी दीवार भी उड़ गई ।



विजय के हाथ एक अन्य कैपसूल आ गया था । उसने तेजी से गर्द और धुंध में जम्प लगा दो ।



कुछ देर बाद बो गैलरी में मागा जा रहा था । सारे अड्डे में हंगामा-सा हो रहा था ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

यकायक उसे गेलरी के एक मोड़ पर से भागते कदमों की आहट सुनाई दी । उसने तुरंत कैपसूल पर तीन बार भाप मारी और मोड़ पर उछाल दिया ।



भयानक विस्फोट के साथ पुन: चीखे उभरी ।



विजय झपटा और एक सेनिक की टोंमीगन उठा ली । सब से पहला फायर उसने उस बल्ब पर किया जो गैलरी में प्रकाश कर रहा था ।


बल्ब फूट गया । अंधकार छा गया ।



टॉमीगन संभाले विजय भागता जा रहा था ।


दो फायरों की आवाज ने समूची छावनी में कोलाहल मचा दिया ।



एकदम जैसे वहां हंगामा हो गया ।



वे फायर चागंली के कमरे में हुए थे । कुछ सेनिक जानते थे कि कमरे के अंदर केवल दो ही अधिकारी थे…चागंली और फूचिंग ।



पलक झपकते ही समूची छावनी के सैनिकों ने उस कमरे को घेर लिया । कमरा अंदर से बंद था ।



सैनिकों ने पहले तो दरवाजा थपथपाया लेकिन जब नहीं खुला तो रायफ्लो के कुंदों से उसे तोड़ने लगे ।


सैनिक वहुत अधिक उत्सुक और थे । कदाचित् वे जानना चाहते थे कि अंदर से बम फटने की आवाजें आने का क्या तात्पर्य है?



दरवाजा चरमराने लगा ।


अभी टूटने ही वाला था कि एक झटके के साथ दरवाजा खुला ।



सामने फूचिंग खड़ा था ।


लहूलुहान फूचिंग. . . ।


वर्दी कई स्थान से फट गई थी । वाल अस्त व्यस्त । ऐसी हालत थी मानो किसी से उसका जबरदस्त र्द्धद्धयुद्ध हुआ हो । उसके हाथ में रिवॉल्वर था और वह बडा भयानक नजर आ रहा था ।




"क्या हुआ सर? "



सहसा एक सेनिक अधिकारी ने हड़बडाई सी स्थिति में पुछा ।



"सब लोग सतर्क रहे । हिन्दुस्तानी कुत्ते यहां पहुंच चुके है !" फूचिंग ऊंची आबाज मे गर्जा !

फूचिंग के इस वाक्य पर चांगली बना विकास बुरी तरह चिहुंक उठा।


उसकी समझ में नहीं आया कि फूचिंग उसे इतनी मुख्य जगह क्यों लगा रहा है?


वह अलफांसे को पहचान न सका था । एक पल के लिए वह अतफासे को देखता रह गया उसी पल विकास और भी बुरी तरह चौक पड़ा ।


वास्तव में चौंकने की बात भी थी ।



सबकी नजरों से छुपकर सामने खडे फूचिंग ने उसे आख मारदी थी।



लड़के की खोपडी जैसे हवा में चकराने लगी ।


तभी फूचिंग ने एक विशेष अंदाज मे अपने बाल खुजाए, उस पल तो विकास की आंखों में हैरत मिश्रित प्रसन्नता उभर आई ।


वह पहचान गया कि सामने खडा हुआ फूचिंग फूचिंग नहीं बल्कि उसका गुरू अलफांसे है ।


सिर खुजाने का यह विशेष संकेत उसके गुरू का ही था । मन मे आया कि झपटकर वह अपने गुरू के चरण-स्पर्श करे लेकिन परिस्थिति ऐसी है कि उसे अपनी यह प्रबल इच्छा दबानी पडी मगर मन…ही-मन प्रसन्नता से झूमता हुआ बोला-------" ओह कॉमरेड, जैसी आपकी आज्ञा?"



"हर कार्य सतर्क रहकर करना !" अलफांसे ने समझाया।



"आप चिंता न करें, कॉंमरेड !" विकास ने चांगली के स्वर में कहा ।



तभी अलफांसे बोला…“ड्रेस कक्ष में पहुंचकर विशेष लिबास पहन तो ताकि इमारत के अंदर फैली वायु में विघुत तरंगों का तुम पर कोई तनाव न रहे जो इमारत के सबसे उपर वाले कमरे में बनती है, ध्यान रखना वहां तीन बुलडाग भी हैं, कमरे में मत घुसना, कहीं वह तुम्हें ही फाड़ दे ।”


“ओ.के. सर !" कहकर चांगली के मेकअप में छुपा विकास फूचिंग के रूप में छुपे अलफांसे का संकेत पाते ही उस कमरे की तरफ़ बढ गया जिसकी तरफ़ उसने ड्रेस कक्ष कहते हुए संकेत किया था ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

विकास उस तरफ़ बढ़ गया र्कितु इस समय उसका दिमाग भी बूरी तरह उलझा हुआ था ।


वह तो जोबांचू के साथ एक साधारण से चीनी-सैनिक के भेष में आया था । चांगली के कमरे में जिस समय फायर हुए थे । जब कमरा खुला और फूचिंग ने बाहर निकलकर बताया कि चांगली के मेकअप में यहां विजय आया हुआ था जिसकी उसने हत्या कर दी है ।



यह सुनते ही विकास के जिस्म की समस्त नसों मे तनाव आ गया था । क्रोध से उसका शरीर कांपने लगा था । उसका दिल चाहा कि फूचिंग को फाड़कर सुखा दे लेकिन इस छावनी में यह संभव नहीं था । उसने विवेक से काम लिया । वह वास्तव में यह समझा था कि उसके विजय अंकल मारे गए है ।



यही सोचकर लड़के का दिल रो उठा था । मन-ही-मन उसने भयानक होकर उस समूचे पीकिंग को दुनिया के नक्शे पर से खत्म करने की कसम ली थी ।



उसने विवेक से सोचा कि जव विजय अंकल यहाँ चांगली के मेकअप में आए है तो निश्चित है कि चांगली कहीं-न-कहीं कैद में होगा । बस, इसी बात का लाभ उठाते हुए उसने चांगली बनने की स्कीम जोबांचू को बताई ।



जिसे सुनकर वह विकास को खुदा मानने लगा था ।

वे दोनों छावनी से बाहर निकले । एक झोपडी को अपना स्थल बनाकर बिकास ने चांगली का सफल मेकअप किया और इस प्रकार का अभिनय करता हुआ छावनी में प्रविष्ट हुआ मानो बह विजय की कैद से फरार होकर भाग आया है । जोबांचू पहला सेनिक बना था जिसने चांगली को सबसे पहले देखा था । उस समय विकास के दिल में फूचिंग के लिए गहन घृणा थी ।



उसके लिए उसने एक दिल को हिला देने वाली मौत सोच ली थी लेकिन..अब यह जानकर तो वह बुरी तरह चौंका था कि फूचिंग के रूप में यहाँ उसके गुरू अलफांसे हैं ।



अब उसका दिमाग इस गुत्थी में उलझा हुआ था कि अगर फूचिंग के रूप में अलफांसे है तो उन्होंने चांगली के मेकअप में छुपे विजय की हत्या क्यों की?



यह बात किसी प्रकार ठीक नहीं हो सकती थी । इतना तो विकास समझ गया कि मरने वाला चाहे कोई भी हो लेकिन उसके विजय अंकल तो किसी भी कीमत पर नहीं है ।



यह भी समझ गया कि उसके गुरु लोग कोई चाल चल रहे है । निश्चित रूप से विजय अक्ल भी यहीं कहीं होंगे । लेकिन लड़का यह नहीं समझ सका कि चाल क्या है?



गुरु लोग क्या चक्कर चला रहे हैं किंतु इस समय यह सब सोचने का वक्त नहीं था । उसके गुरु ने बड़ी सफाई से उसको मंजिल की तरफ़ बढा दिया था ।

वह ड्रेस कक्ष में पहुंचा, विशेष ड्रेस पहनकर वह सीधा इमारत में प्रविष्ट हो गया था । वहां फैली तरंगों का प्रभाव उस पर होने का कोई प्रश्न ही नहीं था । बह तेजी से सीढियां तय करता हुआ ऊपर चढता जा रहा था । इमारत में जगह-जगह बल्ब रोशन थे, अतः पर्याप्त रोशनी थी ।



हर सीढी पर खड़ा सैनिक मुस्तेद था । किसी ने उसे रोकने की चेष्टा नहीं की क्योंकि इमारत के अंदर लगे लाउडस्पीकरों पर फूचिंग के आवाज में सैनिको के लिए यह सूचना गंज रही थी कि कामरेड चांगली की डूयूटी बनर्जी के कमरे के खास बाहर लगा दी गई ।


वे जा रहे हैं, अत: उनको रोका न जाए । इस सूचना के प्रसारण के पश्चात् भला किसमें साहस था जो उसे रोकने की चेष्टा करता । उसके पैर थम गए वे लेकिन विकास इन छोटी-छोटी बातों की चिंता कब करता था ।



वह चिमनी के आकार की उस इमारत के ऊपर चढता ही चला गया ।


वह गुप्त रखे हथियारों से पूर्णतया लैस था । दोनों तरफ़ डोलस्टर लटके हुए थे । चांगली का मेकअप करने के लिए उसे नीचे नकली पैरों की अनावश्यकता नहीं थी क्योंकि चांगली चीनी होने के कारण गुट्टा था और उसका कद विकास के बराबर ही था ।



वह जानता था कि वहाँ उपस्थित सैनिकों में जोबांचू के कुछ अपने आदमी भी है लेकिन विकास नहीं जानता था कि वे अभी कौन से है ।



अभी बनर्जी को लेकर भागने का जो प्लान उसके दिमाग में था वह वेहद साहसपूर्ण और खतरनाक था ।



उसके प्लान को सुनकर जोबांचू ने भविष्यवाणी कर दी थी कि अगर तुम ऐसा करोगे तो चीनी सैनिको की गोलियां तुम्हें भूनकर रख देगी ।


लेकिन विकास तो शुरू से ही खतरों का खिलाड़ी था ।

विकास ने एक बार दोनों तरफ निगाह दौडाई और अंधेरे कमरे मे जम्प लगा दी ।


विकास उछलकर खडा हो गया ।



तभी दो आंखे तेजी के साथ चमकी । अंधेरे में एक गुर्राहट गूंजी और तभी उस पर एक अन्य बुलडॉग झपट पड़ा ।


वह फिर गुथ गया ।


अभी वह स्वयं क्रो संभाल नहीं पाया था कि एक-एक करके दो अन्य बुलडॉग उसी पर झपट पड़े ।



लड़का फंस गया... ।



तीन बुलडॉग. . .एक लडका. . .अंधेरा घुप्प ।



विकास का बस नहीं चल रहा था ।



बुलडॉर्गों ने उसके सारे कपड़े फाड़ दिए । बूरी तरह घायल कर दिया । आदमी होते तो वह कुछ पार भी पा लेता लेकिन कुतों सामने उसकी एक नहीं चल सकी ।



सारी इमारत में हाहाकार मच रहा था ।



किंतु था बह भी पूरा शैतान ।


हार मानने वाला नहीं था वह ।
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