विकास दी ग्रेट complete

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Re: विकास दी ग्रेट

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झपटकर चीनी ने हंटरका दूसरा सिरा भी पकड़ लिया और जोर से खींचने लगा । विजय छटपटाया लेकिन फंस गया था ।



"मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा, कुत्ते !" दांत भीचकर चीनी गुर्राया । साथ ही पैर से उसने समीप ही रखी एक बडी-मशीन का बटन दबा दिया ।


खटाक्-पटाक् की कई आवाजे एक साथ हुई और एक बहुत वड़ा लोहे का आरा नीचे आने लगा ।


मशीन ठीक ऐसी थी जैसे आरा मशीन होती है, जो मोटे-मोटे वृक्ष काटने के काम आती है ।


चीनी ने विजय का सिर झट उस स्थान पर रख दिया जहाँ आरा गिरता ।


यानी जहां रखकर मोटे-मोटे लट्ठे काटे जाते हैं ।


विजय की हालत खस्ता हो गई ।



लाख करना चाहकर भी वह कुछ नहीं कर पा रहा था । उसका सांस रुक गया था । आरा निरंतर उसकी गर्दन की तरफ बढ रहा था ।



चीनी की आंखें शोले की भाति दहक रही थीं ।


विजय को अपने सामने मौत नजर आ गई, लेकिन उसने जिन्दगी के अंतिम पलो तक मौत से लडना सीखा था ।


उसे और कुछ न सूझा तो अपने दाएं हाथ की दो उंगलियां चीनी चीफ़ की दहकती आंखों में दे मारीं ।


चीनी बुरी तरह चीख पड़ा । एक पल के लिए उसकी पकड शिथिल पड्री, उसी पल विजय ने अपनी पूरी शक्ति समेटकर एक झटके के साथ स्वयं को आरे के नीचे से हटाया । आरा बहुत करीब आ चुका था । अगले ही पल विजय ने ऐसी पुती दिखाई जिसका कोई उदाहरण नहीं, जिस तेजी से हटा था उसी तेजी से उसने चीफ को पकडकर अपने स्थान पर मारा।



सारा कमरा एक डरावनी और अंतिम चीख से कांप उठा । खून के छींटे बड़े वीभत्स ढंग से इधर-उधर लहराए ।


विजय भी खून से नहा उठा । आरा लहू से सन गया ।


चीनी चीफ़ की गर्दन और धड़ अलग-अलग पड़े थे । एक क्षण के लिए दोनों अलग-अलग पड़े तड़फते रहे । फिर शांत हो गए ।
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Re: विकास दी ग्रेट

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Re: विकास दी ग्रेट

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विजय ने उसकी तरफ़ से ध्यान हटाया । कमरे के ऊपर हॉल में से अब भी यदाकदा गोलियां चलने की आवाज आ जाती थी ।



उसके सामने समस्या ये थी कि इस कमरे से बाहर कैसे निकला जाए? उसने इधर-उधर दृष्टि मारी ।

इतना तो वह समझ ही गया था कि यहाँ रास्ता खोलने का कोई आँटोमेटिक सिस्टम होगा । वह एक मेज के करीब पहुँचा और उस पर लगे एक टार्च का हरा बटन दबा दिया, परिणामस्वरूप कमरे के एक तरफ़ की दीवार हटती चली गई । वह दीवार के पार एक प्रयोगशाला में पहुच गया । एक झलक में उसने देखा कि तीन वैज्ञानिको को किसी ने मौत के घाट उतार दिया था ।



"आओं जासूस प्यारे, मामला लगभग फतह हो गया है ।" वहां अलफांसे की आवाज़ गूंजी ।



विजय की दृष्टि तुरंत प्रयोगशाला के उस कोने णे गई ।


अलफांसे ने उसी समय एक लकडी का डिब्बा बंद किया और अपनी जेब के हवाले करने ही जा रहा था कि विजय उसकी तरफ बढ़ता हुआ बोला------" ये क्या है, प्यारे लूमड़खान?"



"पांच मुर्गी के अंडे! "



" हाय...!" विजय सीने पर हाथ मारकर बोला-"यानी कि ये मिल गए ।" कहता हुआ विजय अलफांसे के पास पहुंच गया ।


" मिल तो गए हैं ।" अजीब ढंग से मुस्कराता हुआ वह बोला--“लेकिन तुम्हें नही मुझे ।"





" क्या मतलब लूमड़ मियां?" विजय की आंखें संकुचित हो उठी ।



"मतलब के चक्कर में मत पडो प्यारे वरना वूढे हो जाओगे और फिर भी समझ नहीं आएगा ।"



"मुझे तुम्हारे इरादे नेक नहीं लग रहे लूमड़ प्यारे! "



" केबल तुम्हारी नजरों में ।"' अलफांसे डिब्बा अपनी जेब में डालता हुआ बोला-" मेरी नजरों में यही इरादे नेक हैं ।"

“वह डिब्बा शराफत से मेरे हवाले कर दो बेटा लाल! "




विजय समझ गया कि वह रंग बदल गया है ।



"इतना मूर्ख नहीं हू।"



"और कितने मूर्ख हो ?”


" तुमसे कम ।"


"बेटा लूमड़ खान, उतर आए न अपनी दो टके की औकात पर ।" विजय बोला…“लेकिन हम भी विजय दी ग्रेट हैं, अगर गलत करोगे तो तुम्हारी मुंडी मरोड़कर तुम्हारे ही हाथ में रख देगें!"


"सब बेकार की बाते हैं ।"


“तो फिर कार की बातें तुम कर डालो ।"





"मेरे विचार से अब तुम्हारी समझ में आ गया होगा कि मैं तुम्हारी मदद क्यों कर रहा था?” वह बड़े आराम से कह रहा था…"तुम जानते हो कि कोई भी देश इन अंडों की कीमत मुंह मांगी दे सकता है, इसीलिए मैं इनके पीछे था । मैं जानता था कि चीन सरकार से मै अकेला नहीं टकरा सकूंगा, इसलिए तुम्हें चीन लाने के लिए बाध्य किया, तुम चीन अवश्य ही आआगे इसीलिए मैं भारत से विकास को चीन लाया, क्योंकि मैं जानता था कि विकास के लिए तुम यहां अवश्य आओगे?


तुम्हें याद होगा कि मैं रैना वहन के पास ऐसा पत्र लिखकर छोड़ आया था जिससे रघुनाथ, रैना और ठाकुर साहब ये समझे कि तुम्हें पता है विकास कहां है? मैं जानता था कि बे पूछेंगे तो तुम नहीं बताओगे और फिर तुम्हें वे लोग गिरफ्तार करने के लिए प्लान बनाऐगे , तुम्हारा वहां रहना मुश्किल कर देगे । लिहाजा तुम, चीन पहुंचने के लिए बाध्य हो जाओगे और ऐसा ही हुआ भी ।" कहकर चिरस्थाइं मुस्कान के साथ विजय को घूरने लगा ।

"तो मतलब ये हुआ कि तुम प्रारंभ से ही चला रहे थे ।"




"मुझे दुख है कि समझ नहीं सके ।" अलफांसे बोला-“मैँ तुम्हें यहां मी इसलिए साथ लाया मैं जानता था कि अकेला सफल न हो सकूगा, तुम्हारी मदद से यहां कब्जा किया और अब अंडे मेरी जेब में हैं ।"



“तो प्यारे लूमढ़ खान, तुम ये समझते हो कि हम तुम्हें यूं ही जाने देगे ।" विजय समझ गया अलफांसे अपनी असलियत पर उतर आया है और अब बिना दो-दो हाथ किए काम नहीं चलेगा ।



" ऐसी गलती भला मैं कैसे कर सकता हूं !"



"तो फिर मुने राजा, वह डिब्बा शराफत से हमेँ दे दो ।"


“बैसे एक बात है, लुमड प्यारे! हैं, विजय अलफांसे से टकराने के लिए पूरी तरह तैयार होता हुआ बोला…“जब तुम इस तरह गिरगिट की भाँति रंग बदलते हो तो अल्ला कसम, मेरी कुतिया कलो परी से भी खूबसूरत लगते हो ।"


“तो फिर लो एक चुंबन! "



“ओ.के. !" एक सैकिंड में विजय ने कहा और विद्युत गति से उछल पड़ा, विजय का जबरदस्त घूंसा सीधा अलफांसे के गाल से टकराया ।


यूं तो अलफांसे सतर्क था लेकिन उसे यह उम्मीद नहीं थी कि विजय विना किसी अल्टीमेटम के ही मोहर लगा देगा, इसलिए वह स्वयं को बचा न सका और घूंसा खाकर धड़ाम से गिरा ।


विजय ने तुरंत उस पर जम्प लगा दी किन्तु इस बार वह मात खा गया । गजब की फुर्ती से अलफांसे अपने स्थान से कई करवटें ले गया ।


अगले ही पल दोनों आमने-सामने खडे नजर आए । मुस्कराता हुआ अलफांसे बोला---------" तुमसे दो-दो हाथ हुए विना बहुत दिन हो गए थे, आज़ मजा आएगा, वास्तव में यार तुम्हारे अलावा किसी से टकराने में मजा नहीं आता था ।” कहता हुआ अलफांसे अपने हाथ कैरेट की शक्ल में ले आया ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

"बेटा लूमडा" विजय बोला---"जब तुमने अमेरिका में रैना भाभी को बहन बनाया, मैं समझा कि हुम सुधर गए, इसी प्रकार जब मैंने सोचा कि बिकास के लिए तुम अपराध प्रवृति छोड़ दोगे किन्तु आज तुम्हारा ये गिरगिट की तरह बदला हुआ रंग देखकर मैं कह सकता हैं कि तुम कुत्ते की वह पूंछ हो जो कभी सीधी नहीं हो सकती ।"



"लगता है तुम्हें बीच में काफी गलतफहमियां हो गई थी ।"



विजय के हाथ भी कैरेट की सूरत में आ चुके थे । दोनों ही एक-दूसरे से पूरी तरह सतर्क थे ।




प्रयोगशाला की छत पर रिक्त स्थान था ।


जिससे कूदकर अलफांसे यहाँ आया था । इस समय उस रिक्त स्थान के समीप खड़ा जोबांचू नीचे का दृश्य देख रहा था ।



अपनी रायफल से समस्त चीनी सैनिकों को मौत का परमिट थमा चुका था । इस समय भी उसके हाथ में रायफल थी, लेकिन नीचे का दृश्य देख, वह बेहद आश्चर्य के सागर में गोते लगा रहा था ।



उसकी समझ में नहीं जा रहा था कि यह दोनो दोस्त है अथवा दुश्मन?


दोस्त हैं तो कैसे?


दुश्मन हैं तो कैसे?



जोबांचू नीचे आ चुका था ।


अलफांसे विजय पर झपट पड़ा ।

उसकी समझ में नहीं जा रहा था कि यह दोनो दोस्त है अथवा दुश्मन?


दोस्त हैं तो कैसे?


दुश्मन हैं तो कैसे?



जोबांचू नीचे आ चुका था ।


अलफांसे विजय पर झपट पड़ा ।


उसके देखते ही देखते वे दोनों फिर गुथ गए ।

मूर्खों की भाति अपलक वह दोनो विचित्र इंसानों को देखता रहा । वे फिर एक-दूसरे के साथ उठना-पटक करने लगे । इसी प्रकार उन्हें लगभग पंद्रह मिनट गुजर गए और इन पंद्रह मिनटों में जोबांचू ने देखा कि उसका मास्टर यानी अलफांसे विजय के सामने कमजोर पड़ गया था ।



अचानक अलफांसे ने उसे विचित्र आदेश दिया------" इस जासूस के बच्चे को बेहोश कर दो !"




जोबांचू की खोपडी घूम गई ।


वह करे तो क्या करे?


क्या उसी विजय को मारे जिसकी अब तक सहायता करता आया था । अनायास ही उसके मुख से निकला-“लेकिन . . . ।"



"जोबांचू ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ. . . ।" अचानक अलफांसे इतने खतरनाक स्वर में गुर्राया कि जोबांचू एडी से चोटी तक कांप उठा । वास्तव में अलफांसे बहुत खतरनाक हो गया था-" यह मेरा आदेश है!"



अगले ही पल जोबांचू भी तैयार होकर विजय की तरफ़ बडा, वह निश्चय कर चुका था कि उसे अपने मास्टर का आदेश मानना चाहिए ।


विजय तुरंत इस खतरनाक स्थिति को भांप गया ।


वह एकदम सतर्क होकर बोला…“लूमड़ प्यारे! जब अकेले का बस नहीं चला तो हिमायती लगा दिया ।"




और फिर क्या था? जोबांचू भी विजय पर झपट पडा ।


एक तो अलफांसे किसी प्रकार विजय से कम नहीं था, उस पर जोबांचू जैसा बलशाली व्यक्ति उसकी सहायता करने लगा तो विजय को संभलना भारी हो गया ।



परिणामस्वरूप विजय की हालत बैरंग हो गई और अंत ये हुआ कि वह बेहोश होकर अलफांसे की बांहों में झूल गया ।


अपनी सफलता पर अलफांसे विचित्र ढंग से मुस्कराया।



"अब तुम इसे लेकर फौरन अपने अड्डे पर चले जाओ ।" कहते हुए उसने विजय के बेहोश जिस्म को जोबांचू की तरफ धकेल दिया ।



तभी अलफांसे फिर बोला-----' देखो. . इसे किसी प्रकार के खतरे में मत पडने देना । यह तुम्हारे लिए ठीक वेसा ही है जैसा मैं हूं । हर खतरे में तुम इसकी सहायता करोगे, चाहै तुम्हें जान देनी पड़े ।"




"लेकिन मास्टर... ।" जोबांचू उलझा।



“मैं जानता हैं कि तुम क्या कहना चाहते हो, तुम नहीं जानते मेरा और इसका रिश्ता ही ऐसा लेकिन अपना यार है ।"


जोबांचू अवाक् !



"अब तुरंत यहां से निकल जाओं क्योंकि यहाँ खतरा है ।" कहते हुए अलफांसे ने फुर्ती के साथ एक जम्प लगाई और वहाँ से गायब हो गया ।



जबकि जोबांचू सोच रहा था…"आखिर इन दोनों व्यक्तियों के बीच रिश्ता क्या है? ये कैसी यारी है?"

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विकास यूं तो पूर्णतया स्वस्थ हो चुका था फिर भी अपने गुरु लोगों के अनुरोध से बिस्तर पर ही पड़ा था ।



इन दिनों में उसने इस अड्डे पर उपस्थित जोबांचू के प्रत्येक साथी का दिल जीत लिया था ।



सब इस कम उम्र के अनोखे साहसी लड़के से बहुत अधिक प्रभावित थे । संध्या की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एक पल के लिए भी वह विकास को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहती थी ।



वह स्वयं नहीं जान पा रही थी कि बिकास उससे छोटा है फिर भी हदय में ये कैसा प्रेम जाग्रत हुआ है? क्यों वह विकास को हमेशा अपनी आंखो के सामने देखना चाहती है? वह कुछ भी समझ नहीं पा रही थी ।



इस समय रात के बारह बज रहे थे ।



वह विकास की चारपाई के समीप ही पड़े एक स्टूल पर बैठी थी । अभी कुछ देर पूर्व तो वह अपने कमरे में थी लेकिन नींद न आने के कारण वह चुपचाप वहां आ गई थी ।



उसे रात के समय यहाँ आते हुए किसी ने नहीं देखा था ।



विकास को भी जैसे उसकी उपस्थिति का ज्ञान नहीं था । संध्या अपलक उस मासूम, गोरे और बेहद सुंदर मुखड़े को निहारे जा रही थी ।


कैसा सुन्दर मुखडा था ।


मानो स्वयं सौंदर्य कुंडली मारकर उसके मुखड़े पर बैठ गया हो । बडी-बडी सुंदर आंखे इस समय बंद थी । गुलाबी अधर आपस में आलिंगन किए हुए थे ।

मानो स्वयं सौंदर्य कुंडली मारकर उसके मुखड़े पर बैठ गया हो । बडी-बडी सुंदर आंखे इस समय बंद थी । गुलाबी अधर आपस में आलिंगन किए हुए थे ।



बह निहारती रही, उसके ह्रदय में अजीब-अजीब सी भावनाओं का उत्थान-पतन हो रहा था । भावनाओं के भावावेश में संध्या इतनी बह गई कि उसे अपनी सुध ही न रही ।



अनजाने में ही उसके अधर बड़े और फिर बडते ही चले गए । उसके गुलाबी अधर धीरे-धीरे कांप रहे थे मानो समीर के मंद झोंकों के साथ गुलाब की पंखुरियां ।
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Re: विकास दी ग्रेट

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सहसा उसके अधर विकास के गुलाबी अधरों से स्पर्श कर गए ।



इससे पूर्व कि किसी चुंबन की ध्वनि वहां गूंजे ।



“अरे...अरे...!" विकास उसी प्रकार शांत पड़ा हुआ बोला----" मै सब देख रहा हूं यह क्या बात है?” कहने के साथ बिकास उछलकर खडा हो गया ।



और संध्या, बह तो एकदम चकरा गई ।


अजीब हालत हो गई उसकी ।


शर्म से जैसे धरती में गडी चली जा रही थी । दृष्टि झुक गई । उसकी चोरी पकड़ी गई ।



विकस बहुत शेतान था, वास्तव में यह आरंभ से ही जाग्रत अवस्था में था ।




“कर दिया न मुंह जूठा. . .क्या तुम नहीं जानती कि मेरी आयु अभी इश्कबाजी की नहीं!" चहकता हुआ विकास उछलकर खड़ा हो गया और शरारत के साथ बोला------------------“जो अभी-अभी तुमने किया था उसे क्या बोलते हैं?''



संध्या जैसे शर्म से धरती में धंसी जा रही थी ।

"दिल तो मेरा भी चाहता है कि ऐसा ही मैं भी करू' ।" लडका शेतान था और शैतानी में वह कह भी गया था'-----"लेकिन क्या करूं कि मेरे गुरु लोगों को पता लग गया तो मेरे कान किसी खरगोश की तरह लंबे कर देगे ।"




"बहुत शैतान हो तुम, सब कुछ देख रहे वे ।" स्वयं पर संयम पाकर संध्या बोली ।




"हम तो इससे भी बड़े शेतान हैं ।” बिकास गर्व से सीना फुला कर बोला…"लेकिन शैतानी दिखाते नहीं, हमें तो यह भी पता है कि हमारे गुरु लोग यहां नहीं है ।”




“गलतफहमी है तुम्हें, वे सव बराबर वाले कमरे में सो रहे है ।"



"गुरु नहीं बल्कि तकिए सो रहे हैं ।"



"क्या मतलब?"



"मतलब ये कि गुरु लोग चेले को झांसा देकर एक खतरनाक मुहिम पर गए है, समझते हैं कि शिष्य नादान है, कुछ नहीं जानता लेकिन बे नहीं जानते कि एक साथ चार-जार हस्तियों का शिष्य हूं ।"


"मुझे तो लगता है तुम गुरु हो ।"




"ऐसा कभी मत सोचना । गुरू तो गुरु ही रहेगे ।"



"जब तुम्हें यह पता था कि लोग तुम्हें झांसा देकर जा रहे हैं तो तुम झांसे मे क्यों आए?"



--------॥॥------

"जब तुम्हें यह पता था कि लोग तुम्हें झांसा देकर जा रहे हैं तो तुम झांसे मे क्यों आए?"


“कलयुगी चेला जरूर हू लेकिन गुरुओं का ख्याल सबसे पहले है ।" विकास बोला----------"उन्हें यह जानकर खुश होने दो कि उन्होंने शिष्य को झांसा दे दिया है ।"



“लेकिन तुम उनके साथ क्यों नहीं गए?"


"गुरुओं सामने भला चेला क्या करता?" विकास बोला----" फिर तुमसे इस तरह मिलने का अवसर कैसे मिलता?"



संध्या एकदम लज्जा लगी गई । ह्रदय में उगे प्रेम-पुष्य ने नेत्र खोले । साहस करके वह बोली-----"तुम मुझसे कहां मिले, मैं ही तुम्हारे पास... ।"



और बस. . . . यहीं संध्या का लहजा कांप गया । इधर ड्रिकास ठीक उसके सामने आ गया और यकायक बहुत ही गंभीर स्वर में बोला “संध्या!"



संध्या ने एकदम पलकें उठा दी । दोनों के नेत्र टकराए ! एक पल के लिए जैसे दोनों खो गये ।

फिर अचानक विकास बोला----- ! मैं तुम्हारी भावनाओं की क्रद्र करता हू।" संध्या का ह्रदय जैसे गदगद हो गया ।


"लेकिन मैं ऐसे गुरुओं का चेला हू जो भावनाओं को महत्व नहीं देते ।" संध्या के दिल पर जैसे विस्फोट हुआ ।


जबकि विकास उसी गंभीरता के साथ कहता गया ।


"इसीलिए मैं तुम्हारे प्यार के बदले प्यार नहीं दे सकता ।"

"म . .म. . .मैंने कब मांगा?” कांपती-सी संध्या कह गई…“मैं प्यार. . प्यार नहीं . मांगती !"




" संध्या ! मेरा मतलब है तुम भी यह भावना निकाल दो ।" इस समय विकास का एक अन्य अनोखा रूप सामने आ गया था ।



" कैसी भावना?" कहते-कहते संध्या की आंखों में आंसू आ गए…"मेरे मन में कोई भावना नहीं है. . .म. .म. . .मैँने कब कहा कि मैं तुमसे प्यार. . . . . ?"आगे बह एक भी शब्द न कह सकी । दिल की पीड़ा को दबाकर वह कमरे से भागी । अभी पहला ही पग उठाया था कि भयानक विस्फोट से सारा वातावरण कांप उठा ।



इतनी बुरी तरह कि संध्या लड़खड़ाकर धड़ाम से गिर पडी । बिकास तेजी के साथ लपका और संध्या को सहारा देकर उठाया ।


अगले ही पल वह स्वयं ही संभल गई ।


भावुक वातावरण जैसे एकदम समाप्त हो गया ।


वह जोरदार धमाका निश्चित रूप से किसी बम का था । सारे अड्डे में एकदम कोलाहल मच गया ।



उस समय संध्या विकास को देखती ही रह गई जब उसने किसी बाज़ की भाति झपटकर अपने तकिए के नीचे से रिवॉल्वर निकाला और संध्या की तरफ देखकर चीखा…“संध्या... लगता है चीनी सूअरों ने हमला कर दिया है ।"


संध्या के प्यारे मुखड़े पर भी जैसे एकदम तनाव आ गया ।


वह भावुक नारी जो अभी एक ही पल पूर्व स्वयं को विकास के सामने समर्पित कर रही थी, न जाने कहाँ जाकर खो गई?



---॥॥॥॥॥-----


न जाने वे आसू कहां चले गए जो दो पल पूर्व संध्या की आंखों में थे ।
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