विकास दी ग्रेट complete

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007
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

अवसर मिलते है उसने होलस्टर से रिवॉल्वर खींच ली और. . .ठीक तब जबकि अंधेरे में दो आंखे चमकी. . .धांय. . उसके रिवॉल्वर ने एक शोला उगला...चमकती हुई आंख फूट गई । एक भयानक, डरावनी और अंतिम डकार के साथ वुलडाँग उलट गया ।


तभी दूसरा और तीसरा बुलडाॅग उस पर झपटा, उनके बुड़का मारते ही वह स्वयं पीड़ा से बिलबिला उठा लेकिन तभी उसके रिवॉल्वर ने दो बार और खासा...परिणामस्वरूप दोनों बुलडॉग भयानक डकारों के साथ उलट गए।


विकास उछलकर खडा हो गया ।


सारा जिस्म घायल था । कुत्ते कई स्थानों का मांस नोचकर ले गए । सारे कपडे फट गए थे । स्थान-स्थान खून बह रहा था । हाथ में रिवॉल्वर था।



कोई साधारण-सा इंसान होता तो चीख-चीखकर वहीं लेट जाता ।



वह बिकास था. . .इस अल्पायु में ही दुनिया का सबसे बड़ा शैतान!



तभी कुछ सैनिको ने वहां प्रवेश किया । एक सेनिक गर्जा-----"कौन है. ..?"

"मैं हु, चांगली!" तेजी के साथ विकास बोला-------"टार्च रोशन करो !'



उसी पल टार्च जली ।



प्रकाश का दायरा ठीक बहाँ पड़ा जहाँ बनर्जी रस्सी के माध्यम से छत पर लटके थे ।


उसी पल--विकास की भयानक फुर्ती... ।


रिवॉल्वर से-निकले पहले शोले ने रस्सी तोड दी । बनर्जी झटके के साथ नीचे गिरते कि लड़के ने उन्हें रास्ते में ही लपककर कंधे पर ले लिया ।



इस समय मानो उसके रिवॉल्वर में विधुत भरी हुई थी, उसके रिवॉल्वर ने एक साथ दो बार आग उगली-----"गोली ने टार्च का शीशा तोड़ा और दूसरी ने सैनिक का सिर !

तभी अन्य सैनिकों की गोलियां उनकी तरफ लपकी लेकिन तव तक विकास अपना स्थान छोड़ चुका था । गोलियों के छूटते ही उसने अनुमान लगा लिया कि अन्य सैनिक कहां है । उसने तेजी के साथ दूसरे होलस्टर से रिवॉल्वर खीची और तीन फायरों के साथ तीन सैनिकों को लुढका दिया ।


बनर्जी बेहोश थे।



उनके जिस्म को कंधे पर लादे विकास ने दरवाजे की तरफ़ जम्प लगा दी ।




बाहर सैनिकों की टार्चों के दायरे इधर-उधर घूम रहे थे । जैसे ही एक दायरे ने उसकी तरफ आने का प्रयास किया उसके रिवॉल्वर से निकली गोली ने सेनिक का भेजा उड़ा दिया ।



बह चीखता हुआ गिरा । अनेक सैनिक-टार्चों के दायरे उसकी लाश पर स्थित हो गए ।



तब तक विकास एक सैनिक की टॉमीगन संभालकर एक थमले की बैक में हो चुका था ।



अगले ही क्षण उसकी र्टोंमीगन गर्ज उठी । चीखों के साथ सेनिक ढेर होने लगे । टार्च के प्रकाश के दायरे एकदम समाप्त हो गए । दूसरी तरफ से जितनी भी टांमीगने गर्जी, गोलियां उस थमले से टकराकर छितरा गईं जिसके पीछे विकास छुपा हुआ था ।


विकस जान गया कि जब उसका यहां से निकलना बेहद कठिन है । वह जमीन पर रेंगता हुआ तेजी के साथ पीछे हटने लगा ।



दूसरी तरफ के सैनिक भी शायद छुपकर धात लगाए बैठे थे । इमारत के बाहर से बराबर गर्जती हुई टांमीगनों और चीखों की आवाजें आ रही थीं । विकास उन सीढियों तक पहुच गया जिनके माध्यम से वह इमारत के विल्कुल ऊपर वहां पहुच सकता था जहाँ तोपची बैठा था ।



विकास बनर्जी को संभाले ऊपर चढने लगा ।



तभी एक टॉमीगन गरर्जी......पता नहीं कैसे किस सेनिक ने उसे देख लिया था । एक गर्म शोला उसकी टांग में आ धंसा उसके कंठ से चीख निकली-बस लड़खड़ा गया किंतु इस बीच उसकी टॉमीगन ने भी खासकर उस सैनिक को 'विदाई परमिट' थमा दिया था ।


उसी पल अनेक गोलियां उसकी तरफ़ लपकी भी थी लेकिन तब तक यह सीढियों के मोड़ पर घूमकर इमारत की छत पर पहुच गया था ।



छत बहुत छोटी और गोल थी ।




विकास ने आभास पाया कि नीचे से भागकर आने वाले सेनिक यहा पहुचने ही वाले है !



शेतान लड़के की टोंनीगन ठीक एक वार गरजी और तोपची टे. ..बोल गया ।



यह गोली उसकी टांमीगन की अंतिम गोली थी ।



क्योंकि उसके बाद उसने ट्रैगर दबाया किंतु गोली नहीं निकली ।


लड़का घबरा गया ।


क्योंकि गंभीर समय पर टांमीगन ने धोखा दिया था ।


भागते हुए सेनिक छत पर आए, वह भी भागकर छत के एक किनारे पर पहुँच गया ।



विकास फंस गया ।



तीस मीटर उपर, उसके पीछे टांमीगनों से आग हुए सेनिक. . . उसके कंधे पर बनर्जी, उसकी टांमीगन खाली... . . . ।

विकस की आँखें मुदी जा रही थीं ।


जिस्म के किसी भी भाग में जैसे जान न रह गई थी । बेहोशी उस पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहती थी लेकिन फिर भी वह स्वयं को संभाले हुए था ।




इमारत से ही उसने कमर में लिपटा पैराशूट खेल दिया था । परिणामस्वरूप इस समय यह वायु में तैर रहा था ।



उसके कंधे पर पड़े बनर्जी अभी तक अचेत थे ।
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Re: विकास दी ग्रेट

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एकाएक उसके कानों से एक हैलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट टकराई, कुछ द्रेर तक वह केवल गड़गड़ाहट सुनता रहा और यह महसूस करता रहा कि हेलीकाप्टर ठीक उसके पैराशूट के ऊपर लहरा रहा था ।



उस समय वह चौंका जब हैलीकॉप्टर की सीढ़ी ठीक उसकी आंखों के सामने लहरा गई ।



हवा में तैरते हुए विकास ने झट सीढ़ी का एक डंडा पकड़ लिया, लेकिन पैराशूट उसे अपने साथ उठाए ले जाने का प्रयास कर रहा था ।




कारणवश उसे बहुत शक्ति लगानी पड़ रही थी ।


केवल दो मिनट के परिश्रम के पश्चात् उसने पैराशूट खोल दिया ।


पैराशूट उससे दूर हो गया ।



रेट.. .रेट. ..रेट... ।



तभी नीचे से किसी ने हैलीकॉप्टर पर गोलियों की वर्षा कर दी किंतु सीट पर विजय जैसा दक्ष व्यक्ति बैठा था ।


एक अजीब-सी झुकाई देकर हेलीकॉप्टर ऊपर उठता चला गया । साथ ही अधंकार का सीना चीरती हुई सीढी ऊपर चली गई ।



विकास ने मजबूती के साथ सीढ़ी के डंडे में अपनी टांग फंसा दी थी और प्रोफेसर बनर्जी को कसकर पकड लिया था । हेलीकॉप्टर क्षण-प्रतिक्षण उस स्थान से दूर गगन की तरफ उठता चला गया ।



सीढ़ी से लिपटा हुआ पंद्रह बर्ष का जवान.. . ।


तब जबकि वे उस स्थान से निकल आए ।



विजय ने हैलीकाप्टर की गति कम कर ली । अब स्थिति ये थी कि की सीढी अब विपरीत दिशा में उड़ती हुई-सी न रहकर सीधी लटक गई । इसी प्रकार गति कम करने का अर्थ विकास भली-भाति समझ गया ।



अभी उसके दिमाग में यह भी नहीं आया था कि उसका मददगार कौन है?


लेकिन फिर भी वह बडी सतर्कता के साथ एक डण्डा पकड़कर चढता जा रहा था । इस कार्य में उसे वेहद शक्ति लगानी पड रही थी । बनर्जी को लेकर चढना एकदम कठिन कार्य था ।



लड़के के जिस्म का कतरा-कतरा दुख रहा था किंतु फिर भी वह निरंतर प्रयास कर रहा था । इस बीच उसका मेकअप भी उतर चुका था परंतु इन बातों की विशेष चिंता न करके वह बढता जा रहा था ।




निरंतर पंद्रह मिनट के परिश्रम के पश्चात् वह सीढी के सबसे ऊपर वाले डंडे पर पहुचा, तभी किन्ही मजबूत हाथो ने बडी सरलता के पश्चात् उसे बनर्जी सहित ऊपर खीच लिया गया । प्रोफेसर बनर्जी को एक तरफ लिटा दिया गया ।



हैलीकाप्टर बिना चालक के खुली हवा में आगे बढ़ रहा था ।



उसे विजय ने पकडकर खीचा था ।


बंद होती आंखों को जबरदस्ती खोलने का प्रयास करते हुए विकास ने अपने मददगार को देखा-बे उसके गुरु थे-उसके प्यारे झकझक्रिए अंकल-विजय!


और विजय!



देखते ही वह भी शेतान लडके को पहचान गया । विकास की हालत देखते ही विजय का हृदय जेसे चीत्कार कर उठा ।


मिचमिचाती हुई आंखें, घायल जिस्म, लहूलुहान शरीर, फटे कपड़े, कई जगहों से गायब मांस, लहु-युक्त चेहरा और......... और उस पर यह दुस्साहस, पहले तो सोचकर विजय कांप गया ।



फिर उसकी बहादुरी पर आंखें भर आई । सीना न जाने क्यों गर्व से फूल गया । मासूम शेतान को वह देखता रह गया ।



"गुरु...!" एकदम दूटे-से स्वर में बोला और बडी श्रद्धा के साथ विजय के कदमों में झुक गया ।



विजय जैसे व्यक्ति का पत्थर-सा हृदय पिघल गया ।



दिल टूट गया ।



आंसुओं ने आंखों की सीमा तोड़ दी ।


झपटकर उसने कदमों में झुके विकास को झट अपनी बांहों में लेकर कलेजे से चिपका लिया और तड़पकर कह उठा-----“मेरे बेटे.....मेरे
बच्चे…मेरे लाला !" कहते हुए भावावेश में बहे विजय ने एक पल में विकास के चेहरे को सैकडों बार चूमा ।



"तुम. . . तुम . . .बहुत शेतान हो दिलजले. . . . . बहुत शेतान........ ।" भावावेश में विजय ने उसे सीने लगाकर चूम लिया ।



जीवन में शायद पहली बार विजय के आंसू निकले थे । मासूम बालक-सा विकास विजय के सीने में समा गया ।



विजय न जान सका कि उसके यह बहने वाले आंसू खुशी के है अथवा दुख के? कैसा है यह लडका?


"विकास...मेरे बच्चे... ।" विजय पुकार उठा ।



“अंकल. . . अप रो रहे है . . . ।" विकास का टूटा स्वर उभरा-----" मेरे गुरु होकर, में आपका चेला हू अंकल........अपने ही तो मुझे ये सब सिखाया है...अंकल अप मेरे गुरु होकर रोते हो...मुझे तो देखिए ।"



"नहीं . . .नहीँ मेरे बच्चे ! भावावेश में विजय कह उठा-----"मेरे पास तेरे जैसा कलेजा नहीं है----"तू कौन सी मिट्टी का बना है रे शेतान.. .कौन सी मिट्टी का...?"



विकास विजय की बाँहों मे बेहोश हो चुका था ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

वह नहीं जानती कि इस समय उसकी तदुरुस्ती कैसी है, कितना समय गुजर चुका था किन्तु इतना उसने अवश्य देखा कि उसके चारों तरफ़ काज़ल सा अंधेर था और जीप इस समय पहाडियों के मध्य से वनी संकरी-सी सडक पर खडी थी !



तब जबकि जोबांचू के एक साथी ने उन्हें अड्डे में पहुचा दिया ।



अलफांसे के लंबे लंबे पग इस गति के साथ उठ रहे थे कि संध्या को साथ चलने में लगभग भागना पड़ रहा था ।



वह एक साधारण-सा कमरा था जिसमें प्रविष्ट होता हुआ अलफ्रांसे बोल-----“कहां है हमारा बहादुर शिष्य?" किंतु कहीं से आवाज नहीं आई है अलफांसे बराबर आगे बढता हुआ कह रहा था-----“कहां है वो हरामखोर जरा शक्ल तो दिखाओ उसकी? साले को अगर दो-चार दांव सिखा दिए तो खुद को खुदा का बच्चा समझने लगा है ।" कहता हुआ अलफांसे जैसे ही अंदर वाले कमरे में प्रविष्ट हुआ, एकदम दरवाजे पर ठिठक गया । एक बिस्तर पर कोई पड़ा था । एक चेयर पर विजय बैठा था । थोडा चिंतित-सा । एक पर जोबांचू और बस....... ।



कमरे मे केवल तीन ही शख्स थे ।



अलफांसे की आवाज सुनते ही विजय और जोबांचू खडे हो गए और उसकी तरफ ताकने लगे । अलफांसे अंदर प्रविष्ट होता हुआ बोला…“अबे शुतुरमुर्ग की तरह क्या देख रहे हो, उस चोट्टी वाले को देखने दो, सालों , तुममें एक में भी वह कलेजा नहीं है जो हमारे इस नमकहराम चेले में है ।"





कहता हुआ अलफांसे विकास के समीप पहुच गया । वह झुका, तभी विजय बोला…“अभी तक बेहोश है, लूमड़ प्यारे! "



विजय के इस वाक्य पर अलफांसे ने एक बार नजर उठाकर विजय की तरफ़ देखा तो विजय, जोबांचू और संध्या भी अवाक रह गए ।



अपराधी की आंखों में पानी तैर उठा था ।



चेहरे की नसे उभर आई थी । विजय तो उसे देखता ही रह गया ।


अलफांसे भावुक हो उठा ।


वह एकदम बोला-----उसके होश आने पर कोई कच्ची बात नहीं होगी विजय ।"




“जेसी आज्ञा तूमड़ प्यारे मियां, हम बात को पकाकर करेगे ।"




"मेरा मतलब यह है कि कोई भी ऐसी बात नहीं होगी जिससे विकास का मनोबल टूटे ।"




"तुमने साहस दिला-दिलाकर ही तो इसका दिवाला निकाल दिया है ।" विजय बोला…“जरा इसके जिस्म से चादर हटाकर देखो ।"




अलफांसे ने जैसे ही चादर हटाई आश्चर्य से वह दो कदम पीछे हट गया ।



सारा जिस्म बुरी तरह घायल था । चार गोलियां लगी थी जिन्हें निकालकर मरहम-पट्टी कर दी गई थी । अलफांसे की आंखो से निकली एक बूद विकास के जिस्म पर गिर गई । वह चादर थापता बोला----" अपने चेले पर फक्र है ।” वह कह रहा था-----“मुझे यकीन नहीं होता कि मेरा चेला बहादुरी में मुझसे भी आगे हो सकता है, तुम्हें याद होगा कि एक बार "बदमाशों की बस्ती’ में जिस्म में 6 गोलियां लगी थी फिर भी मैं तुम्हे धोखा देकर माग गया था और आज म मेरे चेले को देख रहे हो--------गोलियां इसको दो कप लगी हैं पर हालत मुझसे खराब है, इसके बावजूद भी यह अपने काम में सफल हुआ है । दावा है कि विकास ग्रेट है !"



"लूमड़ मियां, तुम्हारी आंखों में आंसु. . ।"



"बहादुर खुशी आंसू बहाया करते है विजय ।" वह बोला…"मेरा शुक्रिया अदा करो कि तुम्हारे भारत को मैंने तुमसे भी नायाब हीरा दिया है । जिसके रहते हुए कोई भी गंदी नजर भारत पर नहीं डाल सकता ।"




इधर ये बाते हो रहीं थी और उधर...




संध्या तो जैसे अवाकूं थी । अपलक वह बिस्तर पर पड़े सुन्दर और भोले लड़के को देख रही थी । उसे यकीन नहीं हो पा रहा था कि यही विकास है । जिसने पीकिग पर लाशों की वर्षा कर दी, जिसने चीन सरकार को हिला दिया । उसकी आंखी के सामने सभी दृश्य घूम गए । अखबारों में छपे हुए लाशो के चित्र, खबरें इत्यादि! उन सबको देखते हुए उसकी कल्पना में एक ऐसा विकास उभरा था जो भयानक और डरावना हो लेकिन उसके सामने जो लड़का पडा था वह एकदम ऐसा था जिस पर हर दिल मोहित हो जाए । कुछ ऐसा ही संध्या के साथ हुआ…बिकास उसके दिल बस गया ।




" तो प्यारे लूमड़ भाई?" इधर विजय कह रहा था…“हुआ यूंकि हमने इस साले को हैलीकॉप्टर से बचाया, इसके बेहोश हो जाने पर इसके जिस्म से गोलियां निकाली, हैलीकाप्टर में ही एक बार होश में आया और तुम्हारे यार का पता बताकर फिर बेहोश हो गया और अभी तक. . . ।"




"और तुम. .. ।" अलफांसे ने जोबांचू से 'पूछा-“तुम वहाँ से कैसे भागे?"




"मैं तो किसी तरह भाग जाया मास्टर, लेकिन . . . ।"




"लेकिन . . . ?"



“मेरे कई साथी मारे गए और संभव है कोई पकडा भी गया हो ।" कहते-कहते उसका स्वर भर्रा गया ।



एक पल के लिए वहां सन्नाटा छा गया, कोई कुछ नहीं बोला । अलफांसे ने कंधे पर हाथ मारकर जोबांचू को सांत्वना दी ।



फिर वह विजय की तरफ घूमकर बोला----;------“विजया देखो, इस समय तो विकास कुछ सुनने की स्थिति में नहीं है लेकिन . . . ।"



“मैं सब सुन रहा हू गुरुदेव ।"




सव उछल पड़े, जैसे विस्फोट हुआ हो ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

सव उछल पड़े, जैसे विस्फोट हुआ हो ।



वास्तव में विस्फोट ही तो था । उपरोक्त वाक्य स्वयं विकास ने बोला ।



अलफांसे, विजय, जोबांचू और संध्या, सभी अवाक् और चकित से उसे देखते रह गए ।




दिलजली समाप्त होते ही सबने जोरदार ठहाका लगाया ।



संध्या भी मुखड़ा छुपाकर हंस रही थी ।



केवल विजय गर्दन अक्रड़ाए ऐसे मुंह बना रहा था मानो कुनैन की गोली चूस रहा हो ।



अलफांसे बोला…"देखों प्यारे, जासूस लडके की दिलजली तुम्हारी झकझकी से बेहतर है ।"


“अबे हुलड मियां का माल चोरी करके इस हरामी ने तुम्हें ठग लिया है।"



विजय की इस बात पर फिर ठहाका लगा ।


इस बार ठहाके मे विजय भी शामिल था ।


उसके पश्चात् वहां इसी प्रकार कहकहे लगते रहे ।



प्रत्येक ह्रदय बिकास से प्रभावित था ।



अचानक विकस ने एक नई बात छेडी-------------- "अंकल प्रोफेसर बनर्जी कहां है?"




“अरे. . .!" विजय जैसे एकदम चौका-"इस साले साले दिलजले के चक्कर में काम की बात तो भूल ही गया ।" वह जौबांचू की तरफ़ देखता हुआ बोला--------"प्यारे खान मियां, जरा उस खूसट को यहाँ लाना । अभी तो ये भी पूछना है कि उन साले अंडों पर लिखी उस गुप्तलिपि का क्या अर्थ है?"




तब जबकि प्रोफेसर बनर्जी को लाया गया वे पूर्णतया सुरक्षित थे ।



विजय को वे पहचानते थे कि वह एक देशभक्त भारतीय लड़का है ।



तब विजय ने पुरुवा-"हां तो प्रोफेसर, क्या आप अंडों पर लिखी गुप्तलिपि का रहस्य बताएंगे?"



"केवल तुम्हें. . अधिक लोगों को मैं यह बातें नहीं बता सकता ।" प्रोफेसर बनर्जी दृढ शब्दों में बोले…“तुम्हें भी केवल इस शर्त पर बता सकता हूँ कि तुम किसी को भी बताओगे नहीं ।"



विजय को बनर्जी की बात ठीक ही लगी । वह भी यह रहस्य सबके सामने नहीं खोलना चाहता था और विशेषरूप से अलफांसे के सामने तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि उसका कुछ पता नहीं कि वह कब कौन-सा रुख करे । अत: विजय बोला----"जैसी आपकी इच्छा ।"


"खाओ हिन्दुस्तान की कसम कि यह रहस्य तुम अन्य किसी को नहीं बताओगे ।"



प्रोफेसर की इस बात पर तो विजय उनका मुह ताकता रह गया । उसे मानना पड़ा कि प्रोफेसर वास्तव में देशभक्त हैं ।


वह दोनों एक अन्य कमरे में चले गए । दरवाजा बंद कर लिया गया । प्रोफेसर के अनुरोध पर विजय को कसम लेनी ही पडी । प्रोफेसर विजय को इतने धीरे-धीरे समझाने लगे कि आवाज कमरे से बाहर न जा सके । वह बता रहे थे-"तुम्हें मालूम है कि पहले अंडे पर…रा.पे. 39 ला. 13 श 1 अ 3 लिखा हुआ है ।"



"जानता हूं ।"




"अब जरा ध्यान से सुनो ।" बनर्जी उसे समझते हुए बोले…“अंडों पर लिखी हुई यह प्रविष्टि हमने भारत की तीन महान धार्मिक पुस्तकों रामायण, गीता और महाभारत से ती है । इन्हीं तीनों पुस्तकों को आधार मानकर हमने वह गुप्तलिपि बनाई है । उसमे रा . का मतलब है रामायण, पे. का मतलब है पेज, ला. का मतलब है लाइन, श . का मतलब है शब्द और अ. का मतलब है अक्षर ।"


"यानी?"


"इसका मतलब हुआ कि रामायण के पेज नंबर 39 की लाइन नंबर 13 के शब्द 1 में अक्षर नंबर तीसरा लिया । इस समय मेरे पास इन तीन महान ग्रंथों में से कोई भी नहीं है । अत: तुम्हें दिखा नहीं सकता जबकि बता रहा हू कि उपरोक्त लिखे संकेत पर 'गु' अक्षर लिखा हुआ है । अब इस प्रकार समझे कि पहले अंडे पर 'गु' लिखा हुआ है ।"



“ओ...!" विजय समझता हुआ बोला ।



“इस प्रकार दूसरे अंडे पर गीता के पेज नंबर 49 की लाइन नंबर 15 के शब्द 8 का दूसरा अक्षर 'प्त' लिखा हुआ है जो कि गुप्तलिपि के माध्यम से दूसरे अंडे पर लिखा हुआ है । इसी प्रकार तीसरे अंडे पर लिखा अक्षर महाभारत से लिया गया है अत: महाभारत में पेज नंबर 62 की लाइन नंबर 18 के शब्द नंबर 21 में तीसरा अक्षर 'यो' है । जोकि गुप्तलिपि के माध्यम से तीसरे अंडे पर लिखा है !”



"वेरी गुड! "



बरबस ही विजय गुप्तलिपि के प्रशंसा कर उठा ।
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Re: विकास दी ग्रेट

Post by 007 »

"इसी प्रकार शेष दोनों अंडों पर क्रमश: गीता और महाभारत से अक्षर लिए गए है जो क्रमश: इस प्रकार हे…चौथे पर लिखा अक्षर 'ज' और पांचवे पर 'ना' -----इस प्रकार पांचों अंडों को इसी क्रम में रखने पर 'गुप्त योजना' शब्द बनता है । अब ध्यान देने की बात यह है कि उन अंडों के अंदर भी इसी प्रकार की गुप्तलिपि का प्रयोग किया गया है और प्रत्येक धारा का कोई-न-कोई अक्षर पांचो अंडों पर है यानी कोई भी धारा केवल एक अथवा एक से चार अडों तक पूरी नहीं हो सकती । कोई भी धारा तभी पढी जा सकती है जबकि पांचों अंडे सुरक्षित हों । यही कारण है कि अगर कोई एक अंडा समाप्त हो जाए तो शेष सब बेकार है क्योंकि एक के टूटने पर कोई भी धारा पूरी तरह नहीं पढी जा सकती । इसमे भी शर्त यह है कि अंडे केवल उसी सूरत में रखे जाने चाहिए जिससे "गुप्त योजना' शब्द की उत्पत्ति हो, अगर उसे उल्टे सीधे रखकर खोला गया तो कुछ नहीं पढा जा सकेगा क्योंकि सारा क्रम टूट जाएगा, यानी अगर इस प्रकार रख दे कि "प्त' अक्षर 'ग' से पहले आ जाए तो सब कुछ व्यर्थ होगा ! अथवा 'यो' से पहले 'ज' अथवा 'ना' आ जाए तो व्यर्थ होगा, मतलब यह कि अंडों को "गुप्त योजना' के क्रम में खोला जाए!"

बनर्जी सब समझाते चले गये ।

अलफांसे, जोबांचू और विजय एक जीप में बैठे हुए थे और जीप फर्राटे के साथ पीकिंग की साफ, चिकनी, सपाट और खाली सड़क का सीना रोदती भागती जा रही थी ।



ड्राइविंग सीट पर इस समय अलफासे बैठा हुआ था ।



विजय जोबांधू पीछे थे ।


इस समय रात के लगभग दो बजे थे ।

उन तीनों के जिस्सों पर चीनी लिबास और चेहरों पर चीनी मेकअप था ।


“वेसे जोबांबू यह रिपोर्ट पक्की है न कि वे पांचों अंडे वहीं हैं?" यकायक अलफांसे ने पूछा ।



"एकदम पक्की मास्टर, मेरी कोई रिपोर्ट झूठी नहीं होती ।"



इस समय वे तीनों वहां जा रहे थे जहाँ चीनियों वे पांच अंडे रखे हुए थे । इस बात का पता जोबांचू के आदमियों ने पांच दिन के कठिन परिश्रम के पश्चात लगायां था ।



यूं तो विकास स्वस्थ हो गया था लेकिन इस विषय में उसे कुछ नहीं बतायां गया था क्योंकि सब जानते थे कि अगर उसे यह पता लग गया तो लडका मानेगा नहीं और उनसे पहले ही कोई भयानक हरकत कर बैठेगा ।



रात के इस समय में इस अभियान पर भी गुप्त रूप से निकले थे । इस अभियान के विषय में जोबांचू के भी कुछ विशेष आदमी ही जानते थे ।


यकायक एक निर्जन स्थान पर जीप रुक गई ।

कुछ देर पश्चात् उन्होंने जीप को एक गड्डे में धक्का देकर समाप्त कर दिया और फिर खामोशी से आगे बढ़ गए । लगभग तीस मिनट पश्चात् वे एक इमारत के सामने बाली झाडियों में खडे थे ।




कुछ देर तक तीनों कोई योजना बनाते रहे और फिर शांति के साथ तीनों इमारत की तरफ़ रेग गए ।



अलफांसे ने इमारत के पीछे पहुंचकर, एक कुंदा-सा निकालकर इमारत की छत की ओर उछाल दिया । कुंदा ऊपर किसी जगह फंस गया और कुंदे में बंधी रस्सी पर वह किसी सरकस के खिलाडी की भांति चढता चला गया । कुछ समय पश्चात् वह छत से नीचे जाने वाली इमारत के अंदर प्रविष्ट हो गया ।




जोबांचू आश्चर्यजनक ढंग से उछला और एक रोशनदान थाम लिया । उसके दुसरी तरफ भी अंधकार था ।


अगले ही पल जोबांचूजो कुछ कर रहा था उससे पता लगता था कि वह गजब का बलशाली है । रोशनदान पर लगी तीन इस्पात की मोटी राडों को उसने किसी मोमबत्ती की भाति तोड़ दिया और अंदर प्रविष्ट हो गया ।



विजय सीधा इमारत के द्वार पर पहुंचा और बेखौफ कालबेल पर अंगूठा रख दिया ।



तुरंत आहट हुई और दरवाजा खुला । एक मजबूत दरबान बाहर झाकता हुआ बोला-""कौन?"



"चोट्ठी कहां है?" विजय ने अजीब प्रश्न किया ।


"जी. .. ।" दरबान चकराया ।


"जी...जी. . .क्या करता है मच्छर की दुम?".कहते हुए विजय ने विना किसी अल्टीमेटम के एक कैरिट उसकी गर्दन पर मारी और वह फौरन जीवन से रुठ गया ।


विजय फुर्ती के साथ अंदर प्रविष्ट हो गया, साथ ही उसने दरबान का शव भी अंदर खीच लिया । यह एक गेलरी थी जिसमें एक नाइट बल्ब हंस रहा था । विजय ने तेजी से दरवाजा बंद किया और लाश को एक कोने में खडी करके नाइट बल्ब होल्डर से निकाल लिया ।


वहां अंधकार का साम्राज्य हो गया । विजय अंधेरे में आगे बढ़ गया ।


अभी वह अंधकार में ही था कि सहसा उसकी दोनों पसलियों में रायफ़लों की नाल आ चिपकी ।



एक पल के लिए विजय चौका, किंतु तभी एक गुर्राती-सी आवाज उसके कानों में टकराई---हिलो मत, वरना भून दिए जाओगे ।"




"नहीं...नहीं...मैं कोई चना नहीं हूं।" विजय भयभीत व्यक्ति का अभिनय करता हुआ बोला ।



और फिर. .. ।




वह सात रायफ़लधारियों से धिर गया है, यह रहस्य उसे उस वक्त मालूम हुआ जब उसे एक हाॅल मे लाया गया !



इस हाँल में पर्याप्त प्रकाश था ।


अभी उनका चीफ जो ठीक विजय के सामने खडा था , विजय से कोई प्रश्न करना ही चाहता था कि यकायक एक तरफ से तीन चीनी जोबाचू को रायफ़लो की नोक पर लाते दीख पड़े । विजय और उसको पास-पास खडा कर दिया गया । दसों सेनिक उनके चारों ओर तथा चीफ उनके सामने खड़ा होकर गुरोंया--"कौन हो तुम?"



"हमेँ मालूम था कि आपका पहला प्रश्न यही होगा ।" विजय ने कहा ।


"बको मत ।"



"कैसी बाते करते हो मियां कबाडी दास?" विजय का बोलना था कि-चटाक-एक झापढ़ उनके गाल से टकराया ।


धाय . . . ।



तभी एक फायर. . .धांय. . पलक झपकते ही तीन अन्य फायर, निशाना थे वहां पर प्रकाश करने वाले बल्ब ।



पलक झपकते ही सब टूट गए । अंधकार हो गया । विजय ने झपटकर चीफ को दबोच लिया । जोबाचू ने एक तरफ जम्प लगाकर रिवॉल्वर निकाल लिया था ।

अंधेरे में गोलियां चलने लगी ।



विजय और चीनियों का चीफ आपस में गुथे हुए थे । यूं बिजय उससे लड़ता हुआ चटपटे डायलॉग बोल रहा था, किंतु इस बीच वह यह भी समझ गया था कि चीफ भी कमजोर नहीं है ।


अचानक चीफ ने उसे पेरों पर रखकर उछाल दिया । विजय स्वयं को संभाल न सका और लहरा गया, लेकिन उस वक्त वह चौंका जब वह फर्श पर गिरने के स्थान पर फर्श से नीचे धंसता चला गया और वह एकदम प्रकाश में आ गया ।



वह धड़ाम से फर्श पर गिरा, उसको चोट भी आई किंतु फुर्ती के साथ वह खडा हो गया और ऊपर देखा जहाँ से आया था ।




वह इस कमरे की छत थी यानी यह कमरा हाल के नीचे था । छत का वह भाग थोडा-सा हटा हुआ था । अभी वह कुछ करने ही जा रहा था कि एक इंसानी जिस्म जम्प मारकर कमरे में आ गया । वह इंसानी जिस्म किसी रबढ़ के बबुए की तरह उछलकर खडा हो गया । कमरे की छत का वह रिक्त भाग भर चुका था । वह इंसान अन्य कोई नहीं बल्कि स्वयं चीनी चीफ ही था ।



झपटकर एक हंटर उठा लिया और विजय के गले में खींचकर मारा । विजय के कंठ से हल्की-सी चीख निकल गई, इधर हंटर उसके गले से बुरी तरह उलझ गया था ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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