बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी complete

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kunal
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

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अचानक जाम्बू के ऊपर उठे हुए पैरों पर एक चपत पडी ।


बिजली की तेजी के साथ जाम्बू पलट गया । सामने देखा ते गन्ना लहरा रहा था ।


टुम्बकटू को देखते ही जाम्बू एकदम न केवल शांत पड़ गया बल्कि मुस्करा उठा बोला-----------"लगता है आज स्वामी को सेबक की याद आ गई है ।"


"याद नहीं अ गई है उल्टे मियां, बल्कि तुमसे काम पड़ गया है !" टुम्बकटू आराम से बोला ।



"स्वामी के हुक्म पर मैं गरदन भी कटा सकता हूं।” जाम्बु ने बेझिझक स्वर में बोला…" आप बोलिए, स्वामी ने क्या आज्ञा दी है ?"


… "धरती पर रहने वाले कुछ लोग तुम्हारे स्वामी के दुश्मन हैं ।" टुम्बकटू ने बताना शुरू किया…"वे घरती से यहाँ तक बराबर तुम्हारे स्वामी का पीछा कर रहे है । अब वे मंगल पर उतरने वाले हैं । तुम्हारे स्वामी का आदेश है कि उसे मंगल की धरती पर पग रखते ही गिरफ्तार कर लिया जाए सुरक्षित कैद-खाने मे डाल दिया जाए।"


" वे लोग कहां उतरेंगे?"


" उनकी स्थिति मैं तुम्हारे स्वामी से इस ट्रांसमीटर पर पूछ लूगा !" टुम्बकटू बोला-" तुम अपने बहादुर साथियों को इस मिशन के लिए तैयार करो।"


"साथियों की क्या जरूरत है ?" जाम्बू तेजी से बोला-" हम दो ही काफी हैं?"



“वेवकूफी की बातों में समय खराब मत करो उल्टे मियाँ' " टुम्बकटू बोला-----" तुम अभी उन लोगों को नहीं जानते । वे तुम्हारे स्वामी से भी खतरनाक है । उनके लिए कम-से-कम अपने पचास साथी तैयार करो ।"



यह सुनकर अवाक-सा जाम्बू टुम्बकटू को देखता रह गया ।


" अब समय खराब मत कसे उल्टे मियां" । इस प्रकार, , ।


जाम्बू अपमे साथियों को तैयार होने का आदेश देने के लिए चला गया ।
टुम्बकटू ने विकास से संबंध स्थापित किया और विकास दूसरी तरफ से उसे सर्जिबेण्टा की स्थिति को समझाने लगा ।



तब जब कि टुम्बकटू और जाम्बू अपने दल को लेकर, ट्रांसमीटर पर दी गई सिचुबेशन पर पहुंच गए ।


बह मंगल ग्रह का पहाड्री इलाका था । सब लोग पहाडियो मे चारों तरफ़ छुपे हुए थे ।।


अब टुम्बकटू को ट्रांसमीटर की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि अब वे सब नंगी आंखों से यान को देख सकते थे ।


सर्जिवेण्टा पहाडियों के ऊपर वायु से तैरता--सा प्रतीत-हो रहा था ।


ये सब लोग पहाडियों में छिपे हुए चुपचाप यान को देख रहे थे ।


जाम्बू टुम्बकटू के पास ही छुपा हुआ था ।


एकाएक टुम्बकटू भी जाम्बू की भांति उल्टा हो गया और उबकाई करऩे लगा ।अगले ही पल उसके गले में अटकी हुई थैली हाथ में आ गई ।

यह करिश्मा , देखकर जाम्बू की एकमात्र आंख चमत्कृत-सी रह गई ।


तभी सर्जीबेण्टा का छोटा सा भाग खुला और टोहक यान नीचे उतारा गया है । किसी ने कुछ नही किया । पंद्रह मिनट पश्चात जब टोहक यान ने सर्जिवेण्टा को यह संदेश पहुंचा दिया कि यह धरती यान के उतरने हेतु पूर्णतया उपयुक्त है तो यान पहाडियों के बीच वने उस छोटे-से , मैदान में उतरने लगा जिससे सजिवेण्टा सरलता के साथ उतर सकता था ।

अगले बीस मिनट पश्चात सर्जीबेण्टा ने मंगल की धरती को चूमा । सबसे पहले यान का द्वार खोलकर बाहर आई प्रिंसेज़ जैक्सन, उसके पीछे क्रमश: सभी मंगल की धरती पर उतर गए ।


पहाडियो मे इघर-उधर छुपे जाम्बू के साथी चुपचाप टुम्बकटू के संकेत के प्रतीक्षक थे ।


विजय, अलफासे, अशरफ, पूजा, जैक्सन, सुभ्रांत, उसके तीनों सहयोगी यान से बाहर आगए ।


बस इसी पल....... ।


सबसे पहला करिश्मा टुम्बकटू ने दिखाया ।


उसने अपनी थैली से एक कंचे जितना छोटा गोला निकल लिया । एक भी क्षण का विलंब किए विना कंचा काफी बेग से फेका । कंचा सीधा प्रिंसेज जैक्सन के मुकुट में जाकर लगा ।

एक आश्चर्यचकित कर देने वाला धमाका हुआ और पलक झपकते ही मुकुट प्रिंसेज निर्वसन जैक्सन के सिर से गायब हो गया ।


विजय, अशरफ अलफांसे इत्यादि इस अप्रत्याशित घटना पर एकदम के लिए बौखला से गए । उन्होंने एकदम ऊपर देखा तो देखते ही रह गए ।


मुकुट वायु में सुरक्षित तैर रहा था । उसे किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंची थी । मुकुट के चारों और स्लेटी धुएं का एक दायरा बना
हुआ था।


उसी पल…


उसी ग्रुप के सभी लोगों ने बडी फुर्ती दिखाई । उनके रिबॉंत्वर हाथों में आगए ।।


लेकिन पहाड्रियों मे छुपे जाम्बू के साथियों को टुम्बकटू का संकेत मिल गया था । टुम्बकटू ने उन्हें खास हिदायत दी थी कि उन लोगों मैं में से किसी को भी केई शारीरिक हानि नहीं पहुंचनी चाहिए । उन्हें केवल गिरफ्तार करना है ।


विजय इत्यादि ने रिवॉल्वर तो निकाल लिए लेकिन चलाते किस पर? जब कोई सामने हो तब ।


अचानक उनके चारों और से अनगिनत तीर सनसनाने लगे । एक ही पल में उनके रिवॉल्वर हाथों से छिटककर दूर जा गिरे । उनमे से कोई भी हिल न सकी क्योंकि तीर बिल्कुल उन्हें स्पर्श करते हुए निकल रहे थे ।


उसी पल सबने देखा पहाडी के पीछे छुपे टुम्बकटू का गन्ने जैसा जिस्म वायु में लहरा उठा ।



इस बीच तीरों की बर्षा बंद हो चुकी ही ।


जैसे कोई जिन्न प्रकट हुआ हो ।


ठीक बैसे ही टुम्बकटू विजय, अशरफ, जैक्सन अलफांसे इत्यदि के सामने लहराता हुआ नजर आया ।


एक पल के लिए बे सब इस जादुई करिश्मे पर अबाक् से रह गए । सबसे पहले चहका विजय ।


" अबे मियां टुम्बकटू यानी कि गुटरगूं !"

"जी हां झकझकिए महोदया मैं ही हूं?" टुम्बकटू सम्मान से विजय के सामने झुका तो ऐसा लगा जैसे केई गन्ना बीच मैं से लचक गया हो, बोला------“कृपा करके आप लोग किसी प्रकार की अनुचित हरकत करने का प्रयास न करे क्योंकि वह न केवल विफल, हो जाएगी बल्कि पहाडियों के चारों तरफ छुपे हुए हमारे यार लोग तुम्हारा टिकट काट देगे ।"
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

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" विकास कहाँ है?" अचानक अलफांसे गुर्रा उठा ।


" गुर्राओ मत मियाँ !" टुम्बकटू ठुमका-सा लगाकर बोला ----" और जरा उनका नाम यहां कमीज ..... ओ साॅरी , तमीज से लो क्योंकि बे यहाँ के सम्राट है और अगर इसी तरह यहीं की जनता के सामने तुमने उनकर नाम लिया तो आपका टिकट फ्री मे ही कट जाएगा । वैसे वे अपने राजमहल में आराम फरमा रहे है!"


" और तुम उसके चमचे बनकर पूरी फौज के साथ ड़में गिरफ्तार करने आए हो?” विजय चहका । "



"बेशक! " टुम्बकटू इस तरह प्रसन्न हुआ जैसे उसकी किसी ने बेहद प्रशंसा कर दी हो---------- "मैं आपके दिमाग को लानत भेजता हे मिस्टर झकझकिए! केबल इसलिए कि आप ठीक समय, ठीक सोचते है !"


“क्या चाहते हो!"' जैक्सन बोली ।।



" मै आपसे क्या चाहता हू स्वप्न सुंदरी ।
टुम्बकटू लचकता हुआ बोला-----"अभी-अभी झकझक्रिए महोदय ने बताया था कि मैं आप लोगों को गिरफ्तार करने आया हू । वैसे बाई दी वे स्वप्न सुंदरी! आपका मुकुट वहां ज्यादा सुन्दर लग रहा है ।" टुम्बकटू ने हवा में लटके मुकुट की और संकेत करते हुए कहा ।


उत्तर में जैक्सन के गुलाबी अधरों पऱ बडी मोहक मुस्कान उभर आई ।


"तो तुम हमें गिरफ्तार करोगे?" अलफ़ासे ठंडे स्वर मे बोला ।



“मै झकझकिए महोदय की आज्ञा का है उल्लघन कैसे कर सकता हूं !"

“अवे जा टुम्बकटू की दुम एक बात मुह से क्या निकल तुमने तो पूंछ ही पकड़ ली !"


" लीजिए हुजूर छोड़ दी पूंछ ।" कहते हुए टुम्बकटू ने ऐसी अदा दिखाई जैसे वाकई हाथ मे पकडी हुई कोई वस्तु छोड़ दी हो !


"हमें विकास से मिलाओ ।" अलफांसे गंभीर स्वऱ मे बोलां ।


" जैसी आज्ञा मालिक !" टुम्बकटू ने उसी अदब के साथ झुककर कहा---" कुछ जोर से चीखा------" अबे उल्टे मियां !"




अव अपने दल-वल सहित बाहर आ जाओं । ये सज्जन तुम्हारे सम्राट से मिलना चाहते हैं ।


बैसे ध्यान से आना कहीं ऐसा न हो कि ये लोग उनसे मिले बिना ही भागने का प्रोग्राम बना ले ।"



उसकी इस आवाज़ की प्रतिक्रिया देखते ही विजय, अशरफ, अलफांसे, जैक्सन, पूजा, सुभ्रांत तथा उसके तीनों सहयोगियों की आंखों में महान आश्चर्य के भाव उतर आए । उन्होंने देखा, एक पहाडी से हवा में लहराता एक इंसान दनाक से उल्टा उऩके समीप ही आ गिरा ।


विजय इत्यादि का ख्याल था कि स्टाइल के चक्कर में उसके हाथ टूट जाएंगे।


लेकिन उस पल-जब उन्होंने देखा कि वह व्यक्ति पैरों की भाँति हाथों पर खडा हुआ था ।


ऊपर में एक गदा जैसा शस्त्र था । उसके माथे पर एक आंख थी और बह मुस्करा रहा था ।


यह जाम्बू था । उसे देखते सारा ग्रुप चकरा गया गया ।



"अवे!" विजय चहका-“भाई टुम्बकटू इसकी खोपडी कैसे उलट गई?"


" अभी तो और देखो झक्रझकिए महोदय !" टुम्बकटू ने कहा और उसी पल उनके चारो तरफ की पहाडियों में से पचास उल्टे लोगों
की फौज-की- फौज सामने आ गई । किसी के पैरों में तीर और धनुष था तो किसी के पैर मे गदा !

वे हाथो के बल बड्री कुशलता से चलते हुए उनके समीप आ रहे थे ।


सबकी आखों में आश्चर्य था ।।
जाम्बू के अड्डे पर सबको अलग-अलग कैद किया गंया था ।


जिन कोठरियों में उन्हें बंद किया गया वे बरावर-बराबर न होकर एकाएक छोड़कर र्थी । वेसे सबको कैद करने का ढंग एक ही था ।


बात प्रिंसेज़ जैक्सन की है


उसका मुकुट तो टुम्बकटू ले गया था । इस समय वह विशेष इस्पात की वनी हुई मोटी…मोटी जंजीरों से कैदं थी । टुम्बकटू ने उसे अपने निरीक्षण में कैद कंरवाया था ।


यह एकं पथरीली कोठरी थी ।। उस कोठरी में पत्थरों का एक मजबूत. थमला था जिसके साथ उसे सटाकर बांधा गया था।


कोठरी में क्योंकि अधेरा था इसलिए वह यह' भी के र्जान सकी कि उसे यहाँ कितना समय हो गया हैं यह भी उसे विदित था कि इस कोठरी के बाहर गेलरी मे उल्टे लोगों का काफी कडा पहरा था ।

अचानक दरवाजा खुला और उल्टे लोगों ने वहां प्रवेश किया । उनके साथ टुम्बकटू भी जिसने प्रविष्ट होते ही गन्ने ही भाति लचककर जैक्सन से कहा-+--" प्रणाम स्वप्न सुंदरी?"


जैक्सन बड्री मधुरता के साथ मुस्करा दी, बोली-----" बिकास की काफी सहायता कर चुकी हूं। मुझे उससे मिलाओ ।”


"स्वप्न सुंदरी।” टुम्बकटू अदा के साथ लहराकर बडे रोमांटिक स्वर में बोला----" एक बार कह दो के तुम सबके सामने हमारी बीबी, पत्नी, अर्धागिनी, वाइफ़ बन जाओगी तो कसम इस उल्टे पहलवान की हम तुम्हें.......
!"



"मैं तो कब से तैयार हू मिस्टर नमूने!" बेहद मीठी मुस्कान के साथ बोली जैक्सन-"तुम तैयार हो तो......!*


" हाय!" टुम्बकटू जैसे एकदम लड़खड्रा गया-"तो फिर चलों तुम्हें उस लड़के से मिलाएं।"



जैक्सन मीठी मुस्कान के साथ मुस्कराकर रह गई । वह टुम्बकटू की हरकतों से पूर्णतया परिचित थी ।


उसके पश्चात...... ।


उसे हेडक्वार्टर पर विकास के पास ले जाया गया । रास्ते में टुम्बकटू ने विकास की सारी सफताओं के बिषय में जैक्सन को बता दिया ।


उसने यह भी बता दिया कि वह किस प्रकार अमेरिका के ऊपर "बिनाशदूत" बनकर छा गया है ।


सुनकर जैक्सन के तन-वदन, में अदरं-ही अंदर आग लग गई । यह और बात थी कि उसके मुखड़े पर प्रत्येक पल वही मधुर मुस्कान थी ।


उसने रास्ते में किसी प्रकार की केई गडबड नहीं की थी । परंतु यह वह प्रत्येक पल सोच रही थो कि अवसर प्राप्त होते ही वह विकास का तख्ता पलट देगी ।



इस प्रकार उसके दो उद्देश्य एक साथ पूरे होंगे ।


पहला तो यही कि वह अपने देश को विकास के प्रकोप से बचा सकेगी ।
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

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दूसरो यह कि उसके हाथ में फिर एक ऐसी, आश्चर्यजनक शक्ति आ जाएगी जिसके आधार पर वह विश्व-साग्राज्ञी बनने के लिए पग उठा सकती है ।
जी हां ,यह भी वह महसूस कर रही थी कि यह कार्य इतना सरल नहीं है ।

क्योकि एक तो बिकास कम चालाक नहीं है, दूसरे इस समय मंगल सम्राट बना हुआ है और तीसरी परेशानी थी टुम्बकटू ।।


वह इस नमूने से भी कम प्रभावित नहीं थी ।


वह जानती थी कि यह अजीबो-गरीब व्यक्ति अनेक चमत्कृत कर देने वाली प्रतिभाओं का मालिक है ॥ वह अच्छी तरह जानती थी कि टुम्बकटू की उपस्थिति में यह अकेली अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकेगी । क्योंकि इस समय उसका मुकुट भी उसके पास नही थी ।


खैर, तब जबकि उसे विकास के पास पहुचाया गया । ,. जैसे ही वह टुम्बकटू के साथ मंगल-सम्राट के विशेष कक्ष से प्रविष्ट हुई ।


…“चरण स्पर्श आंटी !" कहते हुए विकास ने उसके चरण छू लिए ।


जैक्सन के गुलाबी होंठों पर वेहद प्यारी मुस्कान उभरी, उसने इस प्रकार विकास का दायां कान पकडा जैसे कोई मां अपने बच्चे को किसी प्यारी शरारत पर प्यार से पकडे । कान पकडकर उसने झुके विकास को ऊपर उठाया । यह और बात है कि विकास के खड़े पर जैक्सन का वह हाथ --जिससे उसने कान पकंड्र रखा था, ऊपर उठ गया । निःसंदेह विकास जैक्सन से लंबा था । जैक्सन अपने गोरे, मुलायम हाथ का एक प्यार-भरा चपत विकास के गोरे…लाल फूले हुए गाल पर मारती हुई बोली…“मंगल सम्राट क्या वन गए शेतान । बुजुर्गों को ही कैद करने लगे!"


"क्षमा करना आंटी!” विकास बोला । बैठा हुआ घनुषटंकार धुआंधार सिगरेट के कश लगा रहा था ओर जैक्सन के सोदंर्य को निहार रहा था । कुछ ही देर पश्चात विकास आमने-सामने बैठ गए । टुम्बकटू उचककर बहीं मेज पर बैठ गया था । अचानक जैक्सन की दृष्टि धनुषटंकार पर पडी । घनुषटंकार भला कहां चुकने वाला था ।



जैक्सन से आंख मिलते ही धनुषटंकार ने बाई आंख दबा दी ।

मुस्करा उठी जैक्सन, बोली-----" विकास बेटे , तुम्हारे ये शिष्य महाशय बड़े रंगीन मिजाज है !"


कुछ देर तक यूं ही व्यर्थ की बातें होती रही , फिर विकास काम की बात पर आता हुआ बोला -----" आप जानती है आंटी , आपको मैंने यहाँ किस लिए बुलाया है ?"


" कायदा तो कहता है कि तुम्हें यहां फौरन विजय और अलफांसे इत्यादि को भी बुलाना चाहिए! " जैक्सन ने कहा ।


" कायदे की बात को गोली मारो आंटी!" विकास गंभीर स्वर में बोला---" अगर विकास कायदे से चला तो जी लिया । गुरु लोग मेरा बेडा गर्क करके कहीं का नहीं छोड़ेगे । आप यह बताइए आंटी कि क्या आप भी विजय गुरु'के साथ हैं?”


" इस बात का क्या मतलव?"

"मतलब केवल इतना है आंटी कि गुरु लोग चाहते है कि मैं अपराधी न बनूं जबकि सारा विश्व जान गया है कि विकास अपराधी बन चूका है । अब मैं जंहां था आंटी , वहां से वापस जा ऩही सकता । अब आपकी भांति मै अपराध की दुनिया में आ गया हू ।"


" लेकिन तुमने तो कहा था कि तुम वापस जाकर जासूस बनोगे?"


“कैसी बात करती हो आंटी ।" विकास गंभीरता से बोला------" वो तो केवल गुरु लोगों को सांत्वना देने के लिए कहा था वरना खुद ही सोच तो कि मैं कितना आगे निकल आय् हूं । इतना आगे कि यहां से लौटना संभव नहीं है । सारा विश्व जान गया है कि में अपराधी वन गया हू । मुझे भारत में भला कोई कैसे रहने देगा । अब तो मेरे लिए केवल एक ही रास्ता हैं, यहीँ अपराधी जीवन । लेकिन छोडे-बटे अपराधियों के रूप में मुझे जीना पसंद नहीं आंटी! अगर मैं अपराधी भी बनूंगा तो विश्व सग्राट अपराधी?"


" लेकिन यह सब मुझसे कहने का क्या मतलव?"


" मतलव केवल इतना है आंटी कि आप और सिंगही दादा हमेशा विश्व-सम्राट बनने के लिए पग उठाते रहे । लेकिन आप लोगों की किसी न-किंसी कमी के कारण प्रत्येक बार आपका प्रयास बिफल हो जाता है!

उनमें सबसे बड़ी कमी तो यह है कि आप लोगों को प्रत्येक बार अपनी शक्ति पर आवश्यकता से अधिक घंमड होता रहा है । मै आप लोगों की इन कमियों को दोहराना नही चाहता । मै अपनी अकेले की शक्ति को इतना नही समझता कि विजय और अलफासे जैसे गुरूओं के साथ साथ सिगंही से भी टकरा सकूं । यू तो मेरे साथ टुम्बकटू अंकल और धनुष्टंकार है परंतु मै समझता हूं कि आप सच्चे ह्दय से मेरी मदद करें तो हम न केबल इन दोनों से टकरा सकते है बल्कि अपनी शक्ति से विश्व को मी झुका सकते हैं । अब मै विश्व सम्राट बनना चाहता हूं आंटी । उम्मीद है------ आप बच्चे का दिल नही तोडेंगी !"


" इस काम के लिए तुमने मुझें ही क्यों चुना?"


" आपसे पहले मैंने सिगंही दादा को चूना था आंटी । उनसे फैसला भी हुआ था लेकिन उनके दिल में तो आरंभ से ही इस बच्चे के लिए मेल था । उन्होंने मेरे साथ धोखा किया । परिणामानुसार इस समय वे मेरी कैद में हैं । उस ग्रुप में मुझे मात्र आप ही ऐसी नजर आई इस अभियान में मेरा साथ के लिए आई । मेने लंबू अंकल, अलफांसे गुरु, सिगंही दादा और आपको पुकारा था । सिंगहीँ दादा को छोडकर आप तीनो मेरी पुकार परं आए, लेकिन मैंने पाया कि अलफांसे गुरु भी चाहते थे कि मै वो न करू जो चाहता हू । लंवू अकल ने निस्वार्थ मेरी सहायता की और दूसरी केवल आप ही बचीं जो मुझे कुछ सहायता दे सकती हैं ।"



" तो तुम विश्व सम्राट बनना चाहते हो?"



"तमन्ना तो यही है आंटी!"


" मुझसे किस प्रकार की सहायता चाहते हो?" जैक्सन कुछ गंभीर स्वर में बोली ।


" आप स्वयं एक वैज्ञानिक हैं ।" विकास गंभीरता से बोला---" और विश्व-सम्राट बनने के लिए वैज्ञानिक अति आवश्यक है ।"




-“ठीक है ।" जैक्सन बोली…" मैं तुम्हारी सहायता करूंगी ।"

" थैक्यू आंटी!” विकास प्रसन्न होता हुआ बोला !


इस प्रकार बिकास के बीच एक संधि हुई । विकास ने प्रिंसेज़ जैक्सन को पूरा हैडक्वाटर दिखाया । प्रयोगशाला भी दिखाई, लेकिन यह भी कहा था---"कहीँ ऐसा न हो आंटी कि आपके दिल में धोखे की बात आ जाए । इसका अंजाम वह भी हो सकता है जो सिगंही दादा के साथ हुआ है ।"


जवाब में जैक्सन कहा…"तुम पहले व्यक्ति हो विकास जिसे जैक्सन का दिल चाहने लगा है ।"

जबकि वह मन-ही-मन अवसर की तलाश में थो । सिगंही कहां कैद है, यह प्रिंसेज जैक्सन ने जानबूझकर नहीं पूछा । कहीं विकास को उसके इरादों का सुत्र न मिल जाए प्रत्येक कार्य वह समझकर करना चाहती थी ।

अलफांसे नहीं जानता था कि इस कैद में उसे कितने दिन गुजर गए ! लेकिन इतना उसे विश्वास हो गया कि विकास उस से खुद मिलने वाला नहीं है, अब: अब उसने सोचा कि उसे इस कैद से फरार होना होगा ।


नियमित रूप से खाना उसके लिए आता रहा था । उसे भी जैक्सन की भाति ही कैद किया गया था ।


कुछ देर के लिए केवल उसे खाना खाने हेतु बंधनों से मुक्त किया जाता था । उसे फरार होने का यहीँ समय उचित लगा था ।।



और आज तब जबकि खाना लेकर तीन उल्टे लोग आए ।


कोठरी का दरवाजा बंद कर दिया गया ।


तीनो में से एक के पैरो में खाना था । शेष दोनों के पैरों में गन थी । जिसका रुख प्रत्येक पल अलफांसे की तरफ था । अलफासे को खोल दिया गया ।


वह आराम से खाना खाने के लिए बैठ गया । अभी उसने एक-दो कौर ही तोड़े वे कि


'टक. .टक. . टक' की आवाज के साथ किसी ने दरवाजा खटखटाया !


एक सैनिक ने मंगल भाषा मे पूछा --"कौन है?"

" जल्दी से दरवाजा खोलो, एक कैदी भाग गया है ।" बाहर से उसी भाषा में आवाज आई ।


एक उल्टे मानव ने लपककर हाथों की भाति पैरो से दरवाजा खोल दिया । दरवाजा खेलते ही जैसे बिजली कोंधी, एक बेहद जोरदार ठोकर दरवाजा खोलने वाले उल्टे मानव के चेहरे पर पड्री ।


कराहकर यह दूसरी पलट गया ।

शेष दोनों बौखलाए और इससे पूर्व कि वे संभल पाते, अलफांसे ने विजली की गति से उछलकर न केवल एक उल्टे मानव पर जंप लगा दी बल्कि एके ही झटके में उसकी गन भी छीन ली ।


चीखकर वह भी दूसरी तरफ़ जा गिरा । तीसरा अभी कुछ कहना ही चाहता था कि एक इंसानी जिस्म ने उसे दबोच लिया । अलफांसे ने देखा कि तीसरे उल्टे माना से गुंथने बाला अशरफ के अतिरिक्त कोई नहीं था ।


पलक झपकते ही इन तीनों उल्टे मानवों को बैहोश कर दिया गया ।


" मियां लूमडखान, बोल लाल लंगोट वाले की जय ।" चौंककर अलफांसे ने दरवाजे पर देखा तो उसने दरवाजे पर विजय को पाया ।

उसके चेहरे पर जैसे संसार भर की मूर्खता विराजमान थी ।


उसे देखकर अलफासे मुस्कराकर बोला-" तो ये तुम्हारी हरकत है?"


"बिल्कुल हमारी है लूमड़ प्यरे ।” विजय बोला…“किसी भाषा की नकल मे तो हम पैदाइशी ट्रेंड है । पहले अपने झानझरोखे को छुड़ाया और उसके वाद तुम्हें यानी कि…


"अब जल्दी से यहीं निकलो ।" अशरफ विजय की बात बीच मे काटकर बोला---"अभी हम खतरे से बाहर नहीँ है ।"


“अमां प्यारे झानझरोखे! घबराने की बात नहीं है यानी कि विजये दी ग्रेट तुम्हारे साथ है ।"


उसके बाद........


हाथ में गन लिए तीनों बाहर आ गए ।
तभी अलफांसे बोला…"क्यो न अपने साथियों को आजाद करा लिया जाए ?"


"ये बेवकूफी का विचार संभलकर अपनी जेब में रखो प्यारे लूमड़ खान ।" विजय तेजी के साथ गेलरी में आगे बढता हुआ बोला------"उन्हें आजाद करके क्या हमें अचार डालना हैं !"


“क्या मतलब?” चौंका अलफांसे ।
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

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" तभी तो कहता हूं प्यारे कि मूग की दाल में भीमसेनी काजल मिलाकर खाया करो ।” बिजय कहता गया----" अमां यार, जरूरी नहीं होता तो हम तुम्हें भी छूडाने का कष्ट नंहीं करते । बताओ कि हम यहां से भाग क्यों रहैं हैं?”


"विकास से मिलने ।"



"मिलने नहीं लूमड़ बेटे, बल्कि उसका बेड़ा गर्क करने । सुना है कि अमेरिका में वह भयानक आतंक फैला रहा है । उसे इस कार्य से रोकना है वरना वो सारे विश्व के साथ…साथ हमारा भी बेड़ा गर्क कर देगा ।"


“तो फिर क्यों न उन्हे साथ ले ले?”


" अबे लगता है लूमड़ खान कि तुम्हारी बुद्धि को लकवा मार गया है ।" विजय सावधानी के साथ आगे बढता हुआ बोला-----"वे सब चमरचोट्टी के हैं । वे हमारी सहायता तो क्या करेगे उल्टा हम पर मुसीबत बन जाएंगे । एक उनमें उस हरामजादे की प्रेमिका है । बाकी के लोग ही मार-थाड़ के काबिल नहीं है !"



अलफासे को विजय की बात उचित लगी । अत: वह चुप हो गया ।



वे तीनों सतर्कता के साथ हाथों में गन थामे आगे बढ रहे थे। अभी तक उनसे अन्य कोई उल्टा मानव नही टकराया था ।

इसी प्रकार वे गैलरी में कई मोड़ घूम गए ।



अचानक एक मोड़ पर वे ठिठक गए ।


मोड़ के दुसरी आहटें भली-भांति सुन सकते थे ।



बडी तेजी के साथ तीनों ने अलग-अलग दीवारों की साइड से चिपककर पोजीशन ले ली ।

तीनों की, गने किसी भी क्षण मौत के टिकट उगलने के लिए तत्पर थी ।


गैलरी के मोड़ से कुछ उल्टे इंसान पैरों से गन थामे हार्थों के बल भागते हुए सामने आए। -



उसी पल-रेट....रेट....रेट.....!


विजय, अलफासे और अशरफ़ की गर्ने गरज उठी ।


वे छ इंसान बेचारे समझ ही न पाए थे कि ईश्वरपुरी के लिए कूच कर गए । पलक झपकते ही सबके पैरों की गनें छूट गईं और फर्श पर ढेर हो गए ।


"वो मारा पापड वाले को!" विजय ने नारा लगाया और प्रत्युत्तर में अशरफ अलफासे केवल मुस्करा कर रह गए।



इसके साथ ही वे तेजी के साथ गने संभालकर मौड़ पर मुड गए । तत्पश्चात वे तीनो जाबाज़ जाबू के इस अड्डे से हंगामा मचाते फरार हो गए ।



वैसे इस प्रयास में उन्हें उल्टे लोगों की गई दुकडियो से टकराना पड़ा था । ये तीनों हरामी पूत थे । मारा…मारी करते हुए वे बहां से भागने में सफल हो गए ।


जाम्बू के सैनिकों ने उनका पीछा भी किया । लेकिन पहाडियों में पहुंचकर उनके धुमाव-फिराव में तीनों ने गच्चा दे दिया ।



इस समय वे तीनो एक पहाड्री गुफा में थे, जहाँ बड़ा धीमा प्रकाश था…केवल इतना कि वे एक-दूसरे को भली-भाति देख सकते थे ।


सबसे पहले बोलने वाला था विजय----"कहो प्यारे तूमड़ भाई! अब किसके बनोगे जंवाई ।"


"क्यों ऐसी क्या बात है?" अलफासे मुस्करांता हुआ बोला-" पहले अपने उस पूत को तो भुगत लो, जिसने गुरु का बंटाधार कर दिया है ।”


उसका संकेत विकास की तरफ़ था ।।


"कह तो ठीक रहे हो बेटे लूमड़ भाई ।" विजय, बोला----- "पहले उस साले दिलजले का बंटाधार करना होगा वरना वो अमेरिका का बंटाधार कर देगा ।"


" अब हमे विकास के अड्डे की तरफ चलना चाहिए ।" अशरफ ने कहा ।

"वहां क्या करोगे प्यारे झानझरोखे?" विजय ने अजीब-सी अदा के साथ अशरफ को घूरते हुए पूछा ।



"हमें जल्दी से-जल्दी उसका अड्डा समाप्त करके उसकी उन शक्तियों का विनाश कर देना चाहिए जिनके बूते पर वह अमेरिका में विनाश फैला रहा है । अगर हमने देर ही तो अंजाम
बड़ा भयानक हो सकता है । विकास पर इस समय जुनून सवार है । वह कुछ सोच समझ नहीं रहा है । इस बात की उसे बिल्कुल भी चिंता नहीं है कि जो कुछ वह कर रहा है, उसका अंजाम क्या हो सकता है? भारत खतरे में धिर सकता है…विकास का विनाश हो सकता है ।"


" बस बस, प्यारे झानझरोखे, वो तो हम सब जानते है ।" . विजय बीच में कूद पड़ा…"ये भी जानते हैं कि अगर हम लेट हो गए तो वह सारे अमेरिका को बिल्ली बनाकर छोड़ेगा । यह भी तुम्हारा सत्य बचन है कि हमें जो करना है, तेजी के साथ करना है । ये भी अच्छी तरह से समझ लो कि सामना इस बार अपने दिलजले से है । वो साला बीसवीं सदी की पैदावार है…डालडा का चमत्कार है । फिर साला हमारा चेला भी है । कहने का मालव ये कि हमे उसकी तरफ़ किसी ठोस योजना के साथ कदम बढाना है । उस सोले दिलजले ने सिंगही चचा को कैद कर लिया…छोड़ेगा वो हमें भी नहीं । अगर हम विना किसी ठोस योजना के उधर बढे तो लड़का हमारा बंटाधार कर देगा ।" विजय कहता ही चला गया ।



"अजीब बात है यार जासूस प्यारे1" अलफासे बोला…"हमने मिलकर ही एक चेला तैयार किया, तुमने उसे जासूस वनाने की सोची लेकिन कलियुगी पूत ने अपना रंग दिखा दिया । हम उसके बारे में इस प्रकार सोच रहे जैसे कभी सिंगही को समाप्त करने के लिए सोचा करते थे ।"



" विकास तो सिगंही से भी खतरनाक निक्ला ।" अशरफ बुदबुदाया ।


"इन बातो को छोडो प्यारे, अब मेरी योजना सुनो । विजय ने कहा ।


अशरफ और अलफांसे ने प्रश्नवाचक दृष्टि से विजय के तरफ देखा ।

उसके बाद विजय उन दोनो को अपनी योजना सुनाने लगा । सुनते-सुनते दोनों की आखों में चमक आ गई । दिल-ही-दिल में विजय की बुद्धि की एक बार पुन: प्रशंसा करने के लिए दोनो बाध्य हो गए । उन्हें मानना पडा कि अगर इसी योजना से सारा कार्य किया जाए तो कोई सूरत नहीं कि वे अपने उद्देश्य से सफल न हो सके । योजना सुनने के बाद आखिर अंफ़लासे कह ही उठा ।



"मानना पडेगा विजय कि तुम अभी बूढे नहीं हुए हो ।"


…… "अबे !" बिजय एकदम अकड गया…......"क्या कहा यानी है कि हम बूढे… .....!"



उसी क्षण .....



गुफा के वातावरण में उन तीनों के अतिरिक्त एक चौथी आवाज गूंजी । तीनो इस प्रकार उछले मानों एक साथ तीनो को किसी बिछू ने डंक मार दिया हो । विजय की बात अधूरी रह गई ।



“आपकी योजना मैंने भी सुन ली है गुरू ।" बीच में गूंजने मैं बाली चौथी आवाज यही थी----"एक बार फिर मानना पड़ा कि. आप वास्तव में गुरू हैं । लगता है जब तक आप मंगल पर हैं, तब तक अपने बच्चे को कुछ करने नहीं देंगे ।"



विकास-विकासं !



तीनों के दिमागों में जेसे एकदम अलग-अलग विस्फोट हुए ।


इस आवाज़ को वे लाखों में पहचान सकते थे । यह उसी लड़के की आवाज थी । सुनते ही तीनों अपने-अपने स्थानों से उछलकर खडे होगए ।



एक क्षण के लिए उन्होंने एकदूसरे को देखा, फिर तीनो गुफा के उस भाग की तरफ़ घूरने लगे जिधर गहन अंधकार था ।


विजय ने तो नारा भी लगा दिया ।


" अबे प्यारे दिलजले कहां हो तुम?” …


"आपके पास ही हूं गुरु!" गुफा के अंधकार को चीरती हुई विकास की आवाज उन तक पहुची।

उसी क्षण सबसे अधिक फुर्ती दिखाई अशरफ ने । उसने विद्युत गति के साथ एक भयानक जंप अंधेरे में लगा दी लेकिन अगले ही क्षण.. ।
एक चीख की आवाज से गुफा गूंज उठी ।


जिस तरह हवा में तैरता हुआ अशरफ का जिस्म अधेरे मे गायब हुआ था उसी प्रकार हवा में तैरता हुआ अधकार से बाहर आया धा और सीधा विजय से टकराया ।



गूंजने वाली चीख अशरफ की ही थी ।। विजय और अलफासे ने देखा अशरफ का होंठ फटा हुआ था और बहा से खून वह रहा था ।


कदाचित यह विकासं की लंबी टांग द्वारा लगने बाली एक ठोकर का परिणाम ।


विजय और अंलफांसे जैसे इंसान कांप उठे।

उन्होंने अंधेरे को घूरा, ,एक लम्बा तड़गा साया अंधेरे से बाहर आता हुआ दिखाई दिया ।
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

विजय अलफांसे अवाक से खड़े थे ।


अशरफ धरती पर पड़ा कराह रहा था ।


तब. जबकि अंधेरे से निकलकर वह साया क्षीण-से प्रकाश में आया-बिजय अंलफासे देखते ही रह गए ।


उनके सामने उनका- शिष्य था । उनसे भी लंबा ।।


विकास!


बह वेहद खूबसूरत लग रहा था ।


गोरे-गोरे मासूम-से मुखड़े. . वाला वह शैतान । उसके सिर पर चमचमाती जा वह ताज । काली भबें ! उसके गुलाबी होंठों पर मुस्कान थी । बेहद मीठी मुस्कान ।।


'विजय और अंलफासे की जुबान पर जैसे ताले लग गए । विजय तो तब चौका-जब विकास ने शरारत के साथ वाई आख दबा दी ।

जूलिया ने 'वेड-टी' जैकी की और बढाते कहा-" लिजिए मैं हैरी को देकर अभी आती हूं !"


जैकी विना कुछ बोले बिस्तर से खड़ा हो गया…और कप-प्लेट उसके हाथ से ले लिए । जैकी बेहद गंभीर था ।


जुलिया भी अपने पति की गंभीरता का कारण समझती थी , इसीलिए वह भी बिना अधिक बोले प्लेट-कप संभालकर कमरे से बाहर निकल गई ।


जैकी ने एक हल्की सी चुस्की ली । आजकल वह बेहद परेशान सा नजर आ रहा था । दिन प्रति दिन अमेरिका मे विकास का आतंक बढता ही जा रहा था । हर सुबह अमेरिका मे 50 लोग बिल्ली बने हुए-पाए जा रहे थे ।


उसका दिमाग अभी विकास मे ही उलझा हुआ था कि बह बूरी तरह चौक पड़ा ।


एक झटके के साथ कप-लेट उसके हाथ से छूटकर फ़र्श पर गिरकर चूर चूर हो गए ।


इस चीख वह लाखों मे पहचान सकता था।


पत्नी जूलिया के अतिरिक्त किसी की नहीं थी ।


वह कमरे से बाहर की तरफ़ लपका । उसने…देखा-बदहबास--सी जूलिया हैरी के कमरे की तरफ से भागती हुई आ रही थी ।


जैकी की समझ में नहीं आया कि ये सब क्या है ।। वह कुछ भी समझ नहीं पाया था कि दौडती हुई जूलिया झट उससे आकर लिपटी ।
उसने कसकर जैकी को पकड़ लिया ] वह जैकी से लिपट विलख---विलखकर रो पडी ।


"जूलिया...... जूलिया.. !"” पागल--- होकर जैकी चीख पड़ा----" क्या हुआ .....क्या बात है?"

" हैरी. !” जूलिया सिसक पडी…" मेरा बेटा.. मेरा मेरा लाल !"


" क्या हुआ क्या हुआ हैरी को?” जैकी चीख पडा ।


साथ ही वह जूलिया को वहीं छोडकर हैरी के कमरे की तरफ़ भागा ।



कमरे का दरवाजा खुला हुआ था । दरवाजे पर ही कप प्लेट फूटे पड़े थे जो कदाचित जूलिया कै हाथ से छूट जाने के, कारण इस हालत तक पहुंचे थे ।।


कमरे के द्वार पर पहुचते ही… जैकी के दिलों दिमाग को एक तीव्र झटका लगा ।


वह ठिठक गया । आँखें सिकुड गई ।


जिस्म कांप उठा । उसकी नजरे अपने बेटे हैरी पर टिकी हुई थीं । एकटक वह हैरी को देख रहा था…चह बिल्ली की भाति ही दरवाजे पंर बिखरी हुई चाय बार-बार जीभ से चाट रहा था ।



हैरी की हालत ठीक ऐसी थी जैसे अभी तक बिल्ली बने हुए अनेक अमेरिकनों की हो चुकी थी । जैकी इस स्थिति में हैऱी को लेकर किसी प्रतिमा की भांति खडा रह गया ।



उसका दिमाग जैसे शून्य हो गया ।।


तभी जूलिया वहां आकर उसने लिपट गई ।

वह बुरी तरह विलख-बिलखकर रो रही थी ।

जैकी नै कसकर जूलिया को अपने सीने से लिपटा लिया । आहटें सुनकर बिल्ली वने हुए हैरी ने भी आंख उठाकर उनकी तरफ़ देखा ।



उफ-जैकी का दिल जैसे फट गया । उनका मन कराह उठा । उसने देखा-हैरी का प्यारा मुखड़ा काला हो गया था । उसने कपड़े . . अस्त-व्यस्त से पहन रखे थे । कमरे का सारा सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था ।


हेरी की नाक के नीचे बिल्ली की मूछो की भांति दो-तीन बाल थे ।


बड़ी मासूम-सी निगाहों के साथ हैरी उन्हें ही तरफ़ देख रहा था ।
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