बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी complete

Post Reply
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

"घबराओ मत पिताजी!” टुम्बकटू अजीब-से स्वर में बोल----" उसका प्रबंध भी हम करके आए हैं यानी कि हमारे इस सुंदर-सलोने जिस्म पर रबर का लिबास है !"



कांप उठा सिंगही ।।। कितना खतरनाक है ये कार्टून ।।



“वेरी गुड़ अक्सा" बिकास चहका----“तुमने तो वास्तव में कमाल कर दिया । अब जरा जल्दी से दादाजान को मुर्गाजान वना दो । मै जरा इस बेरहम को बता दूं जिंदगी क्या होती है?” उसका संकेत तुगलामा की तरफ़ था ।




"क्यो वे बूढे?” अचानक टुम्बकटू सिगंही के सिर पर चपंत जमाता हुअ बोला-----" बच्चा ठीक कह रहा है क्या?”


सिगंही का भयानक चेहृरा क्रोध से लाल हौ गया । वह्न कभी ऐसी विषम परिस्थिति में नहीं फ़सा था मगर उसकी समझ, में भी नहीं आ रहा था कि आखिर वह इस कार्टून का करे क्या?



कुछ सोचते हुए उसने वेहद फुर्ती के साथ कक्ष के द्धार की ओर जंप लगाई लेकिन तभी टुम्बकटू कह्र उठा--“अबे प्यारे धर्म बाप वूढ़ऊ तो साला दुमं दबाकर भागता है ।”



लेकिन विकास भला अब कहां सुनता? उसे तो वह दृश्य याद आ गया, जब तुगलामा ने उसके जिस्म पर हंटर बरसाए थे ।।


बस -वह भी तुगलामा की तरफ़ बढा ।


सड़ाक .सड़ाक .सड़ाकं ।


दनादन हंटर बरसाए चला गया विकास, जैसे पागल हो गया हो ।


हालाकि इस क्रिया में उसके बदन में पीड़ा की बड़ी तीव्र लहर दौडती थी लेकिन वह बरसता ही चला गया । तुगलामा किसी भैंसे की भांति डकराने लगा ।



इघर बिकास उसके जिस्म से गोश्त नोच रहा था, उधर टुम्बकटू सिगंही से कह रहा था ।

"देखो खूसट मियां, तुम्हारा यार कैसा डकरा रहा है!" सिंगहीँ का सारा शरीर क्रोध से कांप रहा था ।।


"सिगंही से टकराकर पछताओगे टुम्बकटू ।" सिगंही गुर्राया ।।
“तुमसे पहले भी कई बार कह का चुका हूं बड़े मियां कि अब तुम्हारे बस का यह रोग नहीं रह गया ।


टुम्बकटू आराम से अपनी अजीब-सी सिगरेट सुलगाता हुआ बोला…"अब तुम्हें संन्यास ले लेना चाहिए।"



उसी पल सिगंही ने सोचा कि टुम्बकटू असावधान है, विधुत गती से उसने टुम्बकटू पर जंप लगा दी । छलावे जैसी फुर्ती साथ टुम्बकटू ने एक घूंसा सिगंही के जबड़े पर मारा, लेकिन इस बार सिगंही भी पलटकर गिरा नहीं बल्कि उसने झट टुम्बकटू के गन्ने जैसै जिस्म को अपनी बांहों में कस लिया ।

सिगंही.......सिंगही हैं, जोंक कहा जाता है ।



विश्व का कोई भी व्यक्ति सिगंही की इस जोंक वालीं पकड़ से मुक्त नहीं हो सकता । टुम्बकटू का गन्ने जैसा जिस्म सिगंही की उसीं पकढ़ में आ चुका था ।


टुम्बकटू ने मचलनां चाहा मगर सिगंही की पकड़ शिकंजे की भांति सख्त थी । टुम्बकटू को लगा कि उसकी छोटी-छोटी हड्डियां अब कड़कड़ की आवाज के साथ टूट जाएंगी । सिगंही की पकड़ का कसाव बढता ही गया ।


अब टुम्बकटू को महसूस हुआ कि सिगंही की शारीरिक शक्ति गज़ब की हैं । उसने हजारों प्रयास किए किंतु सिगंही की पकड़ अडिग चट्टान वनी हुई थी । टुम्बकटू की श्वास क्रिया रुकने लगी ।


उसे अहसास हुआ कि अगर कुछ पल और ऐसी पकड़ रही तो यह खतरनाक व्यक्ति उसका अत कर देगा ।


ये विचार दिमाग में आते ही टुम्बकटू ने अजीब क्रिया शुरू कर दी । उसका जिस्म फूलता चला गया-किसी शेषनाग की भाँति, जैसे कोई शेषनाग अपना फ़न फूला ले ।। जैसे टुम्बकटू के जिस्म में पंप से हवा भरी जा रही हो । उसका जिस्म फूलता ही चला गया, फूलता
ही चला गया । गन्ने जैसा टुम्बकटू अब अच्छा हैल्पी आदमी नजर आने लगा ।


सिगंही टुम्बकटू की हरकत पर चौका अवश्य था ।ज्यों ज्यों टुम्बकटू का जिस्म फूलता जा रहा था, त्यों-त्यौ उसकी पकड़ सखा होती जा रहीं थी । हाथो का दायरा बढता जा रहा था ।।

तब, जबकि टुम्बकटू का जिस्म फूलकर काफी मोटा हो क्या किंतु सिगंही की पकड से किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं आया । एकदम जैसै किसी फुटबाल की हवा निकाल दी गई हो, ऐक ही झटके से आश्चर्यजनक ढंग से टुम्बकटू का जिस्म पिचककर साधारण अवस्था में आ गया ।


बस-----यहीं सिगंही मात खा गया ।


उसकी पकड़ यानी हाथों का दायरा टुम्बकटू के फैले हुए जिस्म के बराबर हो गया था जबकि टुम्बकटू ने एकदम अपना जिस्म पतला कर लिया । हाथो का दायरा एक पल के लिए टुम्बकटू के फूले हुए शरीर के बराबर रह गया । इसी एक पल में टुम्बकटू सिंगही के दायरे से गायब हो गया ।


" क्यों वे खूसट सारा दम निकालना चाहता… था ?" टुम्बकटू सिगंही पर हावी हो गया ।


उधर विकास ने मारते-मारते तुंगलामा की चमडी उघेड़ दी-पंद्रह मिनट बाद ।



तुंगलामा तो बेहोश फ़र्श पर पड़ा था । उसके जिस्म का सारा गोश्त उधड़ा हुआ था ।


सिंगही को टुम्बकटू ने कसकर रेशर्म की डोरी से बांध दिया था । वैसे भी बहोश पड़ा था ।


विकास ने टुम्बकटू की तरफ देखा और बोला-" जिओ लंबू अकल !! आज तुम ने सिद्ध कर दिया किं तुम इन सव हरामियों के सरदार हो ।"


“बचा लिया धर्म बाप, वरना चटनी वन जाती ।"


"लेकिन आप अचानक आ कैसे गए अंकल?"


"अवे हम हर जगह अचानक ही आते हैं ।” टुम्बकटू-एक, पैर पर खडा होता हुआ बोला…"तेरे आने के बाद अपन तो प्यारे
निंद्रारानी से मिलने चले गए थे । पता नहीँ, कितने, समय बाद तुम्हारे सेवक जाम्बू ने जगाया ।"


" लेकिन......!"


" लेकिन की पूंछ बीच में मत अड़ा वरना रेल की पटरी की तरह की लम्बी हो जाएगी !"

टुम्बकटू तपाक से बोला…"मैं जानता हूं तू ये पूछेगा कि उन्होंने हमें जगाया कैसे? तो प्यारे बापू जान बात यू है कि जागने पर तुम्हारे जाम्बू ने हमेँ बताया कि वह पहले भी हमे पूरे ग्रुप के साथ जगार्ने की चेष्टा कर चुका था, लेकिन हम जागे नहीं, जगा वह हमें इसलिए रहा था कि तुम्हारा ये बंदर की औलाद गायब हो गया था......


..........जब वहुत देर तक यह वापस-नहीं लौटा तो उन्होंने मुझे दुबारा जगाने की कोशिश की । इस चेष्टा मैं अचानक जाम्बू का हाथ मेरे स्विच पर लग गया । अगले ही पल मेरा चपत उसके कान पर पड़ा यानी कि हमं जग गए । तब उन्होंने बताया कि ये साला बंदर गायब है, हम फौरन समझ गए कि कहा चला गया होगा? उन्होंने हमें यह भी बताया के इस बूढे खूसट ने तुम्हें , मंगल सम्राटं बना दिया है । सो हम यहां के लिए तैयार हो गए । तुम्हारा बो साला जाम्बू भी हमारे साथ आने के लिए बच्चों की तरह जिद कर रहा था । बडी मुश्किल से समझाकर हम यहाँ आए । शेष समाचार कल इसी समय विविध भारती से सुनाए जाएंगे ।" टुम्बकटू के अंतिम शब्दों को सुनकर विकास के होंठो पर मुस्कान दौड गई ।


तभी धनुषटंकांर के जिस्म मेँ हरकत हुइ ।


कदाचित उसकी चेतना वापस लौट रही थी । अगले कुछ ही पलो पश्चात धनुषंटंकार _ उठकर खडा हो गया । ठीक इस प्रकार-जैसे उसे पिछली घटनाएं याद्र आ गई हों और लड़ने के लिए तैयार हो ।।


उसके खड़े होते ही टुम्बकटू बोला----" बस....बस बंदंर वेटे, धमा-चौकडी बंद हो गई ।”



धनुषटंकार ने कक्ष का जायजा लिया । स्थिति देखते ही बह समझ गया कि सफलता मिल गई है । वह फुर्ती के साथ उछला झट अपने पैर से जूता निकालकर, दो-दो जूते खीचकर सिगंही और तुंगलामा के बेहोश जिस्म में मारकर अपना क्रोध जाहिर किया ।


टुम्बकटू और विकास मुस्कराकर रह गए ।


तभी धनुषटंकार ने टुम्बकटू के दो तीन चुंबन लिए ।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

विकास अब'कुछ काम की बात सोच रहा था ।

जिन चार सैनिको का कार्यकम इस कक्ष तक पहुचते समय बंदर धनुषटंकांर ने किया था, उनकी लाशो को धधकती हुई इस्पात की भट्टियों के हवाले कर दिया गया । यह सारा कार्यं इतनी सतर्कता के साथ किया गया था कि तीनो शैतानों के अतिरिक्त किसी को भनक तक न पड्री थी । कुछ देर तक कक्ष मैं मानव गोश्त जलने की दुर्गघ फैली ऱही ।। उसके बाद सब कुछ उन धधकती भट्ठियों में जलकर खाक हो गया ।


सिंगहीं को भली प्रकार से बाँधकर एक ऐसे गुप्त तहखाने में कैद कर लिया गया जिसकी जानकारी केवल मगंल-सम्राट अथवा उसके बिशेष सहयोगियों को थी ।


यह तहखाना सिगंही ने बिकास को पहले ही दिखा दिया था ।


वास्तव में अव विकासं मंगल सम्राट बना ।

तुंगलामा ने एक विशेष मरहम की ईजाद की थी, जिसे स्वयं तुंगलामा ने अपने घायल जिस्म और विकास को लगाया ।


तीन दिन मेँ ही सारे जख्म आश्चर्यजनक रूप से समाप्त हो गए ।



जाम्बू और उसके दल को स्वयं टुम्बकटू जाकर पूरी घटना बता गया था ।। उसने कहा था कि पहले विकास को मंगल-सम्राट बनाना सिगंही की साजिश थी, लेकिन उसकी साजिश को विफल करके उन्होंने वास्तव मे विकास को मगंल--सम्राट बना दिया है ।अत उसका दल अब समझे कि मंगल की सत्ता उन्हीं के हाथ में यानी अब उन्हें मंगल-सम्राट के विरुद किसी प्रकार की कोई कार्रवाही करने की आवश्यकता नहीं है ।



जाम्बू को विश्वास दिला दिया गया कि वक्त आने पर सिंगहीँ उसके हवाले कर दिया जाएगा ताकि वह अपने भाई की हत्या का प्रतिशोध ले सकै । जाम्बू चमत्कृत्त था कि इन शैतानों ने मिलकर कितनी जल्दी सिगंही का तख्ता पलट दिया! था । कक्ष नंबर पच्चीस में होने वाली घटनाओं का किसी को पता नहीं चला ।

और इस समय विकास मंगल-सम्राट के रूप में हीरे जडित सिंहासन पर विराजमान था ।

धनुषटंकार उसकी गोद में बैठा ~ दनादन शराब पी रहा था और टुम्बकटू सिंहासन के दवाई और लहरा रहा था । वह अपनी विचित्र सिगरेट का आनंद ले रहा था ।


विकास के सुंदर जिस्म पर हीरे…जबाहृरार्तों से र्जड़ा हुआ चमचमाता लिबास था गोरे मस्तक पर एक मुकुट था ।


उसका दरबार सजा हुआ था । सेवक लोग श्रद्घा के साथ शीश नवाए खड़े थे । उल्टे लोग यानी मंगल निवासियों की टाग हाथों की भाति जुड़कर श्रद्घा से झुक गई थी । सेवक लोग विकास के सौंदर्य से प्रभवित थे ।


"मिस्टर जावेद !" विकास ने प्रभावशाली स्वर में पुकारा ।


"सेवक हाजिर है महामहिम! ” एक उल्टा मानव आगे बढा और श्रद्धा के साथ पैरों को झुकाकर बोला ।


"हमारे दरबार और प्रजा में यह घोषणा कर दी जाए कि उनके भूतपूर्व सम्राट और हमारे दादा यानी सम्राट सिगंही बिज्ञान के एक विशेष अबिष्कार में उलझे हुए है और कुछ दिनो तक
तो वे अपनी प्रयोगशाला में रहकर एकाग्र मन से कार्य करना चाहते है । अत कुछ दिनो के लिए हम लोगों के सामने नहीं आ सकेंगे । उनका कहना हैं कि अगर उनका आविष्कार पूरा हो गया तो मंगल जनता को बेहर्द लाभ होगा !!"



" जैसी आज्ञा महामहिम!" जावेद ने आदर के साथ कहा ।


इस प्रकार के अनेक आदेश जारी करने के बाद विकास सिंहासन से उठा ।


तभी हाॅल में धीमा-धीमा संगीत गूंजने लगा । वहं संगीत सम्राट के दरबार विसर्जन का प्रतीक था । सिंहासन की सीढियां उतरता हुआ विकास नीचे आया । समस्त सेवक आदर साथ खडे थे । विकास ने अपने बॉडीगार्ड के रूप मे टुम्बकटू और धनुष्टंकार को ही चुना था ।।


बिकास किसी सग्राट की भांति ही चाल चल रहा था ।


इस समय वह बारादरी में से गुजर रहा था । संगीत के हल्के-हल्के झनाके हो रहे थे ।

जिधर से सम्राट विकास निकलकर जाता, उधर से सेनिको की एक एड्रियां फैलती, जुड़ती और बज उठती । धनुषटंकार विकास के कधें पर बैठा था । टुम्बकटू उसकै साथ साथ चल रहा था ।


कुछ क्षणोंपरांत विकास अपने कक्ष में प्रविष्ट हो गया । पलक झपकते ही टुम्बकटू ने कक्ष अंदर से बोल्ट किया और दनाक से विकास के सिर पर चपत मारंकर बोला-“क्यों साले धर्म बाप । सम्राट बनकर तो हमारी तरफ देखता भी नहीं ।"


"तमीज से बात करों ।” विकास क्रोध से गुर्राया-" तुम हमारे बॉंडीगार्ड हो।"


" अबे.........!" टुम्बकटू बोला----"साले हम पर गुर्राता है । अभी जाता हू दरबार मे, सबको बताता हूं कि के बूढा कैसा आविष्कार कर रहा है?” कहता हुआ टुम्बकटू द्वार की तरफ़ बढा ।।


लेकिन तभी चौकां ।


उसी पल धनुषटंकार उछलकर उसके सामने आ गया । बह उसे घूड़की दे रहा था । उसे देखकर टुम्बकटू अचानक अपनी अजीब हंसी के साथ हंस पड़ा ।


विकास ने भी कहकहा लगाया ।


धनुषटंकार भी खुशी से उछल उछलकर तालियां बजाने लगा ।।


"इस मौज…मस्ती के बाद अचानक बिकास गंभीर होता चला गया ।


“लंबू अंकल, समय कम है । मेरे विचार से अब काम की बात की जाए।"


"जरूर बच्चे !" टुम्बकटू लहराया ।


“मेरे विचार से अब तो गुरु लोग भी मंगल पर पहुचने वाले होंगे ।"



" बड़ा नेक बिचार है बच्चे !"


"हमैं दो कार्य करने है लंवू अंकल !" विकास धीरे से बोला-" पहला तो स्कीन वाले कमरे से गुरु लोगों की स्थिति देखना दूसरा अमेरिका को मजा चखाने के लिए जल्दी से जल्दी कोई प्रबंध करना ।"


" ठीक बापूजान !” टुम्बकटू बोला ।

धनुषटंकार को जैसे इन बातो से कोई मतलब ही नही था । वह एक तरफ़ बैठा हुआ गटागट शराब पी रहा था ।।


"तो आप दोनों स्कीनों वाले कमरे में पहुच जाएं, मै दूसरा कार्य करता हूं ।” इस प्रकार विकास उन दोनों को काम सौंपकर गुप्त तहखाने मे पहुच गया । तुगलामा और सिगंही क्रो अलग-अलग कमरे र्मे कैंद कर लिया गया था ।


अंदर विकास ने कैदखाने का दरवाजा बंद कर लिया तुगलामा की तरफ घूमा । ,, तुंगलामा कैदखाने की छत पर उल्टा लटका हुआ था ।


उसके समीप पहुँचते पहुँचते विकास के मासूम चेहरे पर -कठोरता उभर आई आंखों मे खून उतर आया । इस समय उसकी आखों के सामने वही दृश्य उभर आया, जंब तुगलामा ने भयानक कहकहे लगाते हुए उस पर हंटर बरसाए थे । इस समय तुंगलामा बेहोश था ।


तहखाने में एक तरफ पानी रखा था-उसके छींटे तुंगलामा के चेहरे पर मारकर विकास ने उसें चेतना दी । उसके होश में आते ही विकास गुर्राया----"तुंग वेटे ! या तो चुपचाप कह दो जो मैं चाहता हू-----वरना आज तुम्हें पता लगेगा कि बेरहमी क्या होती है !”


"तुम क्या चाहते हो?" तुंग ने संयमित स्वर में कहा ।


"विश्व बिनाश का वह फार्मूला, जो तुम सिगंही के लिए ईंज़ाद कर रहे थे।”


"कभी नहीं !" तुंग चीखा । '


लेकिन तभी विकास के भारो वूट की ठोकर उसके चेहरे पर पड्री वह गुर्राया ।।


" जानता हूं चीनी सूझामर कि तू बातो का भूत नहीँ है ।" कहते हुए बिकास ने झट एक ताजा ब्लेड निकल लिया अगले ही पल तुंग के जिस्म पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था । वह एकदम नंगा था-पैदा होने वाले बच्चे की तरह नंगा उल्टा लटका हुआ ।
विकास की आखों से लहू बरस रहा था । …

उसने एक बार पुन: खूनी स्वर में चेतावनी दी कि अगर वह अपनी भलाई चाहता है तो उसे फार्मूले की ईजाद जल्दी से जल्दी करे लेकिन तुग नहीं माना और परिणाम......


वही पुराना मगर भयानक !!


लडका अपनी दरिंदगी पर उतर आया ।।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

ब्लेड का एक कोना नाभि के पास रखा और सीने तक खींचता ही चला गया । तुंग चीखा-चिल्लाया मगर विकास तो कसाई था । वह कसाई जिस पर बकरे के मिमियाने का कोई असर नहीं पडता ।।


तुगलामा की खाल किसी कपड़े की भांति फटती चली गई । खून एकदम बह निकला परंतु विकास ने तुरंत ब्लेड का कोना जिस्म के अन्य भाग पर रखा और खीचता चला गर्या । तुंगलंमा पुन चीखा, परंतु निरर्थक !


इस प्रकार बिकास ने तुंग के जिस्म की खाल जगह-जगह से कपडे की भातिं फ़ाड डालीं । सारा हाथ और ब्लेड खून से लथपथ हो गया नीचे की सारी धरती खून से लथपथ हो गई ।। असहनीय पीड़ा से तुंग तड़प रहा था। ।



बिकास का चेहृरा खूंनी भेडिए की भाँति धधक रहा था । अगले ही पल उस का हाथ चला और तुग का बाय कान अपने स्थान से गायब, फिर दायां कान फिर एक-एक करके पैरों की द्गसों उंगलियां काट डाली ।


तुंगलामा सह न सका और चीखता-चीखता बेहोश हो गया - लेकिन वो विकास था..........


कसाई-दुर्दांत, बेरहम, जल्लाद ।



नहीं माना, जिद थी । सो अड़ गया ।


पानी के छींटे मारकर उसने तुगलामा को चेतना प्रदान की ।। होश में आते ही वह चीख पड़ा लेकिन बिकास उसके बाल पकडकर दो-तीन झटके देता हुआ गुर्राया ।।

"क्यों चीनी सूअर, इतनी-सी बेरहमी मे ही होश गवा दिए! अभी तूने देखा क्या है कुत्ते अब देख कहते हुए विकास ने एक… अंगूठे और ऊंगली का नाखून ब्लेड द्वारा कटी हुई दरार मे लगाया और खाल को खींचता ही चला गया शैतान । जैसे प्याज का छिलका उतारा जाए ।


तुगलामा भयंकर पीड़ा से चिंघाड़ उठा लेकिन विकास ने उसकी खाल यूं ही नोच-नोचकर फेक दी । अब तुंग जैसे केवल गोश्त का एक लोथड़ा रहं गया ।


वह पुन: बेहोश हो गया मगर इस वार लड़के ने अजीब हरकत की । छत के कुदों में वंधी हुई दो और रस्सी लटक रही थी । ।


"तुरंतं विकास ने उन तीनों रस्सिर्यो की मदद से तुंगं को किसी झूले के पटरे की तरह धरती के लेबिल में बांध दिया । बह ररिसयों पर इस प्रकार लटका हुआ था जैसे धरती पर कोई इंसान पट होकर लेट जाए । उसकी कमर वाला भाग छत की तरफ़ था और चेहरे वाला नीचे ।

एक पहिए बाली मेज को खिसकाकर विकास उसके नीचे ले आया ।


मेज इतनी ऊँची थी कि तुंग का झूले के पटरे जैसा लटका हुआ जिस्म मेज से कुछ ही ऊपर था । होश आते ही तुंगतामा फिर चीखने लगा ।"

" अब भी मान जाओ तुंग; वरना...... ।” विकास ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया । लेकिन तुंग ने कोई जवाब नहीं दिया । वह चीखता ही रहा ।


वस-लड़के को फिर ताव आ गया । वह पुन: शैतानियत पर उतर आया । मेज के नीचे भिन्न-भिन्न स्थानो पर सात विना चिमनी के लैंप रखे हुए थे । विकास ने तेजी के साथ जेब से लाइटर निकालकर सातो जला दिए ।

सातो के ऊपरी भाग से आग की लौ लपलपाने लगी । मगर अभी ये लौ तुंग के जिस्म को स्पर्श नहीं कर रही थी ।


" जिंदा इंसानो को एकदम भट्ठी में झोंक देना बेरहमी नहीं होती चीनी सुअर विकास खूंखार स्वर में गुर्रा उठा--“भट्ठी में झोंक देने से इंसान की जान एकदम निकल जाती है--बेरहमी इसे कहते है ।" कहते-कहते विकास ने सारे, लैंपों की बत्तियां ऊपर कर दी और रो पड़ा तुग विलख पड़ा ।

सातों लैंपों की लौ उसके जिस्म के भिन्न-भिन्न अगों को छूने लगीं ।


उसका बिना खाल का जिस्म-मात्र गोश्त का लोथड्रा, उस पर गोश्त को जलाते हुए ये लैप । एक लैंप की लो । तुंग की ठोढी का गोश्त पका रही थी. दूसरी गरदन, तीसरी छाती, चौथी पेट, पाचबी जाधो के बीच, छडी दाया पैर, सातवी बया पैर । बिलख उठा तुंग रो पड़ा । गोश्त जलने की दुर्गध सारे तहखाने में फैल गई ।


कोन होगा इतना बेरहम जो जिंदा इंसानो का गोश्त आभ मे सेक दे ।


कोई कहां तक सहे? तुंग पुन बेहोश हो गया । उसकी आखें चीखते-चीखते बंद होने लगी लेकिन पास ही पानी का जग लिए खडा था बेरहम कसाई ।


उसने पानी के छीटे उसके चेहरे पर मारे और बोला…… 'बेहोश नहीं होने दूंगा तुंग बेटे । मेरा नाम विकास है । मुझें दरिदा कहते हे । तुम मुझे बेरहमी सिखाने चले थे। अगर तुम से झुकने लगा तो जी लिया विकास । चंद्रशेखर और भगतसिंह के देश का रहने वाला हूं-ईट का जवाब पत्थर मेरा सिद्धांत है ।" कहते हुए उसने पुनः पानी के छींटे उसके चेहरे पर मारते हुए बोला--" मेरी बात मानोगे या नहीँ?"


टार्चंर की भी कोई सीमा होती है, दरिंदगी का भी एक दायरा होता है ।


लेकिन इस शेतान की बेरहमी का तो कोई दायरा ही नहीं । कोई कितना सहे? कोई नही सह सकता । तुंगलामा टूट गया ।


रोते-विलते- उसने हा कर दी और तुरंत बेहोश हो गया । इस बार विकास ने उसके चेहरे पर पानी के छींटे नहीं मारे ।


शेतान के प्यारे-प्यारे गुलाबी होठों पऱ बेहद मीठी मुस्कान दोड़, गई । आंखें चमक उठी ।



तभी तहखाने का द्धार खटखटाया गया ।

बिकास तेजी के साथ उधर घूमकर बोला ।



" कौन है ?"


"हमारे सिवा कौन हो सकत है धर्म बाप?" बाहर से टुम्बकटू की आवाज आई----"दरबाजा खोलो ।"



आगे बढकर विकास ने दरवाजा खोल दिया ।

सामने था टुम्बकटू उर उसके कंधे पर बैठा धनुषटंकार ।


दरवाजां खुलते ही दोनो की नाक में मानव शरीर जलने की दुर्गघ का भभका आया, एकाएक टुम्बकटू बोला ।


“क्या हो गया है बापूजान ?"



"जरा तुंग से प्यार-मौहब्बत की बाते हो रही थ्री ।" कहता हुआ मुस्कराकर विकास सामने से हट गया । टुम्बकटू घनुषटंकार ने तहखाने का दृश्य देखा । देखते ही दोनों के अंतर्मन कांप उठे । दोनों का कलेजा हिलकरं रह गया । एक पल के लिए तो वे उस वीभत्स दृष्ट को देखते ही रह गए ।।

टुम्बकटू जैसे इंसान का ब्रदन भी पत्ते की भांति काप उठा ।


तुगलामा की अजीब हालत थी-बिना खाल का यानी गोश्त के लोथड़े की मानव आकृति। दोनों कान गायब ।। नाक नदारद, पैरों की उंगलियां फ़र्श पर । उसका भुनता हुआ जिस्म । खून से लथपथ फर्श इत्यादि ।


एक ही पल. में दोनों सब कुछ समझ गए। , झपटकर टुम्बकटू ने सारे लेप बुझा दिए । धनुषटंकार कूदकर मेज़ पर खडा हो गया । विकासं ने पलटकर उन की तरफ देखा तो देखता ही रह गया । दोनों की आँखों में खून था । वे विकास को घूर रहे थे, टुम्बकटू गुर्रा उठा।।


" विकास! ! यह तुम्हारा कसाईपन पसंद नहीं ।"


धनुषटंकार ने भी तुरंत अपनी डायरी पर यूं लिखा । "गुरु मुझे आपके इस रूप से घृणा है।"


" सवाल पसंद का ऩही है लंवू अंकल तुम भी सुनो धनुषटंकार…किसी की घृणा से मुझ पर कोई अंतर नहीं पडता ।"

बिकास उन दोनों की आखो में आखें डाले कहता जा रहा था-------" सवाल सिद्धातों का । विकास का सिद्धांत है कि ईट का जवाबं पत्थर से दो । ये सूअर मुझे वेरहमी सिखाना चाहता था । अब से पहले मै जासूस बनना चाहता था लंबु अंकल और आपको पता होना चाहिए कि जासूस वही होता है जो बेरहम हो । जासूस के गुणों मे बेरहमी भी एक गुण होता है !"

" लेकिन अब तुम अपराधी हो !"


“जौ अपराधी बेरहम नहीं होगा, वह कभी सफल नहीं हो सकता हैं !' विकास कहता ही चला गया -" इससे मुझे काम लेना था, लातों का भूत बातों से माना नहीं ।।”




" लेकिन टार्चर की भी एक सीमा होती है !'


"ये भीमा बहाँ समाप्त होती है जहां इंसान टूट जाए।" विकास का उत्तरं एकदम सपाट था ।


चुप रह गया टुम्वकटू उसे कोई जवाब नहीं सूझा जबकि विकास बोलता ही चला गया ।


" इधर देखो लंबू अंक्ल तुम भी सुनो धनुषटंकारा इसी सूअर ने बिकास को भट्ठी मैं झोंक देगा चाहा था, मैने तो इसे भट्ठी मे भी नहीं झोंका फिर आप क्यों नाराज हैं?"


"लेकिन टुम्बकटू बोला---"तुम ये सब करौ तो
अच्छा नहीं लगता, कितने प्यारे लगते हो तुम और.......!"


" सूरत पर मत जाओ लंबू अंकल, सुरत धोखा देती हैं ।!"

न जाने क्यो टुम्बकटू ने अधिक विरोध करना उचित नहीं समझा । कदाचित यह सोचकर कि यह लडका जिद्दी अपनी जिद के आगे किसी की नहीं चलने देता । अत बहस व्यर्थ होगी । धनुषटंकार भी चुप था ।



“तैयार हुआ ?" टुम्बकटू ने प्रश्न किया ।

" बिल्कुल हुआ !" विकास ने कहा , फिर विषय परिवर्तन करता हुआ बोला…"गुरु लोगों से संबंध मिला?"



"अभी तो नही ।"


" आओ फिर कोशिश करते है।" विकास टुम्बकटू से कहने के वाद धनुषटंकार की और मुड़कर बोला--" तुम साबधानी से तुगलामा के जिस्म पर इसका मरहम लगा दो ।"


इसके बाद बिकास और टुम्बकटू तहखाने से बाहर निकल गए ।।


,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

संपूर्ण अमेरिका चोंक पडा !


न केवल चौंक पडा , बल्कि कांप उठा । घटना ही ऐसी थी ।


न्यूयार्क । अमेरिका की भूतपूर्व राजधानी । घटना वहां की है ।


अमेरिका की सर्वोत्तम जासूसी संस्था ।


सी आई ए ।


इसी संस्था के चीफ़ का नाम था -
फ्रिदतोफ नार्वें । सर्वविदित, सर्वविख्यात । सभी जानते वे कि फ्रिदतोफ नार्वे सी आईं ए का चीफ़ था लेकिन इस व्यक्ति के साथ बडी अजीब-सी घटना पेश आई । ऐसी अजीब कि सरकारी मशीनरी हिलकर रह गई ।

फ्रिदतोफ नार्वें को देखते ही प्रत्येक व्यक्ति पहले कहकहा लगाता, फिर भयभीत…होता और फिर आतंकित हो उठता ।


सी आई ए के चीफ के साथ यह घटना हुई उर सी आई ए कुछ कर भी न सकी ।।



सीक्रेट सर्विस के एजेंट तक कुछ न कर सके ।


असफ़लता.. बिफलता ।




बस…यही सब कुछ रह गया !! पुरा अमेरिका आतकित था ।


क्रीमिया!

यह नाम था फ्रिदतोफ की बीबी का । जाहिर है, क्रीमिया ही फ्रिदतोफ के सबसे निकटतम साथी थी । बीबी होने के साथ-साथ क्रीमिया सी-आई-ए से संबंधित फ्रिदतोफ के कार्यो में सहयोगी भी थी यानी वह स्वयं भी सीआईए के उच्च पद पर आसीन थी । रात-रात भर वे दोनों पति-पत्नी सी.आईं.ए के नए हथकंडों पर विचार करते रहते थे । कौन-सा एजेंट कहां नियुक्त करना है,।। कौन-से देश का तख्ता किस ढंग से उल्टा जा सकता है, कौन-से ग्रुप को किस कार्य के लिए कितना धन देना आवश्यक है, इत्यादि । विचार-विमर्श के विषय होते थे ।


सहयोगी के स्थान पर क्रीमिया की अगर फ्रिदतोफ की साथी कहा जाए तो उचित होगा ।।


कहने की आवश्यकता नहीं कि अमेरिकी सरकार फ्रिदतोफ की सुरक्षा का कड़ा प्रबंध रखती दी , लेकिन इसका क्या किया जाए कि इतना सब कुछ होने पर भी यह बिचित्र घटना घट गई । इतनी बिचित्र कि सारा अमेरिका चकरा गया ।


क्रीमिया यानी फ्रिदतोफ की बीबी स्वयं इस अजीब घटना पर पूरे विश्वास के साथ ऐसा प्रकाश न डाल सकी जिससे कुछ संतुष्टि हो सकती ।


अन्युकोई तो भला जान ही क्या सकता था? जो भी जासूस इस अनहोनी घटना की तह तक पहुचना चाहता था, उसका सबसे पहला शिकार होता क्रीमिया । परंतु जब वह क्रीमिया के बयान से कोई ऐसा रास्ता नहीं निकाल पाता जहां से वह आगे बढ़ सके तो हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाता, यदि इससे अधिक करता तो वह केवल इतना ही कि इस पर आश्चर्य प्रकट कर डालता ।


क्रीमिया स्वयं परेशान चमत्कृत थी ।


उसकी तो स्वयं-ही कुछ में नहीं आ रहा था और ऊपर से वे और मुसीबत पैदा कर देते थे । पूछताछ करने बाले जासूस और रिपोर्टर जो अलग-अलग ग्रुपो में आते संपूर्ण घटना विस्तार से सुनना चाहते ।


विवश होकर क्रीमिया वही घिसे…पिटे चंद शब्द दोहराने पड़ते थे जिन्हें वह इतनी बार कह चुकी थी कि नीद में भी बड़बड़ाने लगती थी ।


लोग उसे परेशान न करे ,इसलिए उसने अपना बयान अखबारों में छपवाने के साथ-साथ रेडियो पर मैं भी प्रसारित करवा दिया ।


बयान कुछ इस प्रकार था-आप भी ध्यान से पढे, कदाचित कुछ समझ पाएं ।


तब..... ।


जबकि घटना धटी------उस दिन से पहली रात को मैं (क्रीमिया) मेरे पति यानी फ्रिदतोफ लाइब्रेरी में बैठे सी आई ए से संबंधित किसी अनावश्यक गुत्थी पर विचार-विमर्श कर रहे थे मगर हम उस गुत्थी को सुलझा नहीं पा रहे थे । हमारा यह प्रयास रात के एक बजे तक जारी रहा था ।


अंत में वे (फ्रिदतोफ) शेष कार्य को
को कल पर टालकर उठ गए । यहाँ मैं यह भी बता दू कि मेरे पति किसी भी जानवर से सख्त घृणा करते थे । हां तो हम उठे और वे ही बाते करते हुए अपने कमरों के पास आए । यहाँ यह भी बताना अवश्यक है कि हम अपने बनाए नियमानुसार महीने में पन्द्रह दिन एक ही कमरे में सोते और पंद्रह दिन अलग-अलग कमरों मे । लेकिन ये कमरे बराबर-बराबर ही हुआ करते थे । वे अपने प्रत्येक. सिद्धांत के बड़े पक्के थे । ये दिन अलग-अलग कमरों में सोने के चल रहे थे । अपने कमरे के समीप पहुंचकर न जाने उन्हें क्या सूझा कि नोकर को जगाकर चाय बनाने का आदेश दिया । उनकी इस हरक्त पर मै अवाक रह गई क्योंकि उनके नियमो में रात को चाय पीना शामिल नहीं था । यह बात नौकर भी जानता था । वह भी उनके मुख से चाय की बात सुनकर अवाक-सा रह गया । वह अपनी आश्चर्यचकित मुद्रा लिए चाय बनाने चला गया । न जाने क्यों मै भी कुछ बोल ना सकी । तभी वे मुझसे बोले।

" आओ क्रीमिया, चाय पीएं ।" अत: वे मुझे अपने कमरे में ले गाए, हम पुन: उसी गुत्थी पर विचार करने लगे । चाय इत्यादि पीने के पश्चात हम दोनो उठे । चाय के बर्तन वहीं रह गए क्योकि नौकर पुन: सो चुका था । हमने उसे जगाना उपयुक्त नहीं समझा । वे मुझे अपने कमरे के दरवाजे तक विदा करने आए गुडनाइट कहकर लगभग डेढ बजे विदा ली ।।

मैं अपने कमरे में आई, कपडे इत्यादि बदलकर बत्ती बुझा कर बिस्तर पर लेट गई । कुछ देर तक तो वही गुत्थी मेरे दिमाग में चकराती रहीं लेकिन शीघ्र ही नीद आ गई । इतना मुझे याद है कि जब मैं सोई तो उनके कमरे की लाइट भी बुझ चुकी थी ।

कमरा भी उन्होंने मेरे सामने ही अंदर से बंद कर लिया था ।।

और फिर सुबह । जब आंखें खुली तो आश्चर्य से फैल गई क्योंकि मैंने अपने पति की स्थिति में न केवल एक बहुत बड़ा परिवर्तन पाया बल्कि उन्हें, वडी ही हास्यास्पद स्थिति मैं देखा ।
सबसे पहले यानी जब मेरी आंखें खुलीं तो मैंने उनके कमरे में एक बिल्ली की आवाज सुनी । ने चौकी, चकराकर रह गई । वास्तव में इस कोठी में किसी जानवर का होना उसी प्रकार आश्चर्यजनक था जैसे पश्चिम से सुर्य का उदय होना क्योंकि मैं पहले भी कह चुकी हू कि उन्हें जानवरों से सख्त नफ़रत थी । इतनी सख्त नफ़रत कि वह जानवर का नाम तक सुनना पसंद नहीं करते थे । किंतु आज सुबह-ही-सुवह मुझें इस घटना ने आश्चर्य में डाल द्विया । रहस्य जानने के लिए मैं जल्दी से उठी । जिस्म पर नाइट गाउन डाला, डोरी बांधती हुई मैं अपने कमरे से बाहर निकल आई । उनके कमरे से निरंतर म्याऊ-म्याऊ की आवाजे आ रही थी।


मेरी जिज्ञासा भडकी ।


मैं तेजी के साथ दस्वाजा खटखटाने के विचार से आगे बढी लेकिन उस समय मेरा आश्चर्य और अधिक बढ क्या जब देखा कि दरवाजा अंदर से बद नहीं है यूं हीँ उढ़का हुआ है । मुझें अच्छी तरह याद था कि रात उन्होंने दरवाजा अदर से बंद कर लिया था लेकिन आखिर यह खुल कैसे गया? क्या वह सोकर उठ चुके हैं?

लेकिन यह बात मेरे को स्वीकर न हुई क्योंकि वह हमेशा देर से जागते थे । साल में शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो, जब यह स्वयं
जागते हो, हमेशा मैं ही उन्हें जगाया करती थी ।

मतलब यह कि मेरे लिए प्रत्येक पल चौंका देने वाला था ( जब मेने रहस्य जानने के लिए दरवाजे को धकेला तो…
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

उफ, काप उठी मैं । कितना विचित्र दृश्य था! हास्यास्पद, आश्चर्यजनक भयानक दृश्य । उस दृश्य को मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती । दिमाग हवा में चकराने लगा । दरबाजा खोलते ही मैने देखा कि समस्त कमरा अस्त-व्यस्त पड़ा हुआ है । फर्नीचर उल्टा हो गया था । पलंग का बिस्तर फर्श पर पडा था । प्याले और प्लेटों के कांच फर्श पर बिखरे पड़े थे । केवल केतली बची हुई थी शायद इसलिए बच गई थी कि वह कुछ ऊचाई पर रखी थी ।


उनकी स्थिति--उफ एकदम आश्चर्यजनक!

उनके कपड़े वेहद अस्त…व्यस्त थे । नाइट गाउन बिल्कुल उलूटा पहने हुए थे यानी गाउन का कालर घुटनों की तरफ था निचला भाग गले में । पायजामे का एक यायचा ऊपर कर लिया था ।

सब कुछ चमत्कृत कर देने वाला था ।


बह किसी विल्ली की भाँति घुटनों के बल फर्श पर बैठे हुए थे , किसी बिल्ली की भाति ही वार--बार जीभ निकालकर फर्श पर पडी हुई उस चाय को चाट रहे थे_ जो कप इत्यादि के फूट जाने के कारण पत्ती के साथ बिखर गईं थी । मेरे लिए यह कम आश्चर्य की बात नहीं थी । मेरी समझ में नहीं आया कि यह सब क्या है? दरवाजा खुलने की ध्वनि ने शायद उन्हें आकर्षित किया । उन्होंने अपना चेहरा ऊपंर उठाया, चेहरा देखकर मैं दंग रह गई । सच जानिए, मुझें रोना आ गया । मेरी आंखो में आसूं आ गए । उनका चेहरा किसी तवे की भाँति काला था । उनकी नाक और कान कटे हुए थे । कटी हुई नाक के नीचे किसी बिल्ली की भाँति ही मुछो के नाम पर दस-बारह बाल थे, आंख के ऊपर उनकी भौ नहीं थी ।



"म्याऊ-म्याऊ! की ध्वनि दो वार उनके मुख से निकली । मुझे कुछ समझ नहीं आरहा था । एक तरफ़ दुख था तो दूसरी तरफ गहन आश्चर्य भी । मैंने देखा वह मुझे अपनी चमकीली आखो से एकटक घूर रहे थे ।


न जाने क्यों मुझे डर लगने लगा । मैंने साहस करके उन्हें पुकारा---" आप.....यह क्या हुआ आपको?"



"म्याऊ.. म्याऊ?" उनके मुख से पुन: दो बार यही आबाज निकली और वह र्दोड़कर पलंग के नीचे घुस गए । पलंग के नीचे वह बिल्कुल इस प्रकार घुसे थे जैसे कोई बिल्ली इंसान क्रो देख भयभीत हो जाए ।



मैंने एक वार पुन: उन्हें पुकारा । मैं आगे बढी लेकिन बह फिर उसी प्रकार मयाऊ मयाऊ कर सहमते हुए पीछे हट गए ।। जितनी बार भी मेने उन्हें पुकारा वह सहमकर और पीछे हट गए जैसे वह वास्तव में ही बिल्ली हो ।


में आश्चर्य के साथ भय की अनुभूति महसूस कर रही थी ।

मेरा दिल चाह रहा था कि मैं रोंऊं, खूब रोऊं उनसे लिपटकर लेकिन बह तो जैसे मेरे पास ही नहीं आना चाहते थे । एकाएक मै और बुरी तरह चौकी । इस बार चौकने का कारण भी बडा अजीब था

बह पूरी तरह बिल्ली तों बन ही चुके थे।


मगर इस वार चोंकने का कारण उनके गेले में लटकी हुई बह टीन की प्लेट थी जिस पऱ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था. .,


यह वो शख्श है जो भ्रारत सरकार का तख्ता सी आई ए के बूते पर उखाडना चाहते है !"



. इस इबारत को देखकर मैं बुरी तरह चौकीं लेकिन कुछ कुछ इस सबका उद्देश्य भी समझ गई । विकास नाम के इस शैतान से मैं. ही . . नहीं, सारी अमेरिका भली भांति परिचित है । .


एक वार बह हमारे देश में प्रलयंकारी विकास के नाम से हंगाम कर चुका है । इस शैतान का नाम उस पट्टी पर पडते ही मैं कांप उठी । मेरे होश फाख्ता हो गए । मुझे लगा कि वह खूबसूरत लेकिन खतरनाक लड़का मेरे आस-पास ही कहीं मंडरा रहा है बल्कि मुझे लगने लगा कि अव पूरा अमेरिका किसी खतरे से घिरने वाला है । इस नाम को पढकर मैं पागल-सी हो गई । मैं चीखी-चिल्लाई जिसको सुनकर सभी नौकर इकट्ठे हो गए । उसके बाद अनेक लोगों ने उसे बिल्ली के रूप में मयाऊं-मयाऊं करते देखा ।।


मैं भविष्यवाणी कर सकती हू कि आने वाले समय में यह शेतान अमेरिका के लिए काल है । . .यह था क्रीमिया का अखबार मे र्प्रकाशित बयान ।


घटना आश्चर्य से परिपूर्ण थी ।


जासूसों को केवल एक ही रास्ता नजर आया-बह था चाय के जरिए यानी चाय में तो किसी ने कुछ नहीं मिला दिया था ? लेकिन जब यह सोचा गया कि अगर चाय में कुछ होता तो क्रीमिया पर भी तो उसका प्रभाव पड़त्ता-बस यहीं आकर यह रास्ता भी बंद हो जाता ।।

इधर वैज्ञानिक रिपोर्टरों ने चाय को टेस्ट करकै बताया कि उसमे किसी प्रकार की अशुद्धि नहीं मिली हुई है । सारा अमेरिका हतप्रभ था ।


फ्रिदतोफ को पकडकर एक पिंजरे में बंद कर दिया गया था । वहीं पडा-पडा वह बिल्ली की भांति मयाऊ-मयाऊ कर रहा था । यह सब कुछ वह था जो अमारिका की साधारण जनता पर खुला हुआ था । इसके अतिरिक्त और भी कुछ गुप्त बात ऐसी थी जो अघिक भयानक थी, जिसे अगर जनता के सामने प्रकाशित कर दिया जाता तो अमेरिका की जनता भड़क उठती ।


सरकारी मशीनरी खतरे मे धिर जाती । क्या थी वे गुप्त बाते?

"कुछ गुप्त बाते हैं मिस्टर माइक, जिन्हें साधारण जनता के सामने प्रकट नही किया जा सकता ।" स्रीकेट सर्विस का चीफ़ अपने सामने बैठे माइक से कह रहा था ।


माइक दो दिन पूर्व ही भारत से वापस लोटा था । बह विकास की हत्या करने के उदेश्य से भारत गया था लेकिन घटनाचक्र कुछ इस प्रकार बना कि वह सफ़ल न हो सका ।


फ्रिदतोफ़ की घटना का पता लगते ही उस सिलसिले मे सीक्रेट सर्विस के चीफ ने माइक को तुरंत याद किया था ।।



"'क्या वे गुप्त बाते बताई जा सकती है सर?" माइक ने प्रश्न किया ।


" तुम्हें सीक्रेट सर्विस की तरफ़ से इस केस पर नियुक्त किया जा रहा है । चीफ़ बोले-"इसलिए तुमसे कोई भी रहस्य छुपाना उचित नहीं होगा ।" चीफ़ कहते ही चले गए----"तुम्हें फ्रिदतोफ वाली घटना के विषय में तो विदित होगा ही?”


" केवल इतना ही जितना अखबार में प्रकाशित हुआ ।"


“सबसे पहले तुम यह पढो ।" चीफ ने एक कागज माइक की तरफ़ बढाते हुए कहा---" “यह कागज फ्रिदतोफ की एक जेब से मिला है । इसके विषय मे स्वयं फ्रिदतोफ की बीबी क्रीमिया को भी कुछ ज्ञान नही है !*

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

"हरामजादो अमेरिकन हुक्मरानों !'


कैसा मजा आया ? फ्रिदतोफ को आदमी से बिल्ली बना दिया लाख कोशिशों के बाद भी अब उसे आदमी नही बना सकोगे ।। सुना हैं कि यह व्यक्ति सी आई ए. का चीफ है । उसी सी आई ए का जिसका जाल मेरे प्यारे भारत में फैला हुआ है । जो विश्व के नक्शे से मेरे देश का नामो-निशान मिटां देना चाहती हैं, जो भारत मे गृह युद्ध छिडबाना चाहती है ।।


मैने अमेरिका को सबक सिखाने की सौगंध ली है । अभी तो तुमने मेरा पहला कमाल देखा है । केवल एक ही व्यक्ति को बिल्ली बनाया गया है लेकिन तुम्हें पता है कि विकास हर कार्य चुनौती देकर करता है । कल सुबह तुम्हारे देश में अनेक अधिकारी 'बिल्ली बन चुके होंगे । फिर तुम्हें उन बिल्लीयों से इश्क लडाना है ।


यह केवल श्रीगणेश है । एक बार फिर कहता हूं-मेरे देश से सी आई ए का जाल हटा लो वरना..... वरना भारत से पहले अमेरिका तबाह हो जाएगा । विकास विनाशदूत बनकर सारे अमेरिका में विनाश फैला देगा ।

यह तुम्हारे लिए खुली चुनौती है आमेरिकन कुत्तों । अगर भलाई चाहते हो तो विकास को विनाश दूत बनने से रोक लो ।

विनाशदूत-----विकास
Post Reply