'वह गैलरी को पार करता हुआ तेज कदमो से उस हाॅल के तरफ़ बढ रहा था, जिधर विकास के मंगल-सम्राट बनने की खुशी मे जश्न मनाया जा रहा था । शीघ्र ही वह उस हाल में पहुच गया । हाल मे हुड़दंग-सा मच रहा था । मंगल ग्रह के उल्टे लोग अपने हाथों के बल पर बड़े अजीब-अजीब ढंग से नाच रहे थे ।
विकास मंगल-सम्राट के रूप में सिंहासन पर बैठा था । जो मुकुट कुछ समय पूर्व सिंगही के मस्तक पर था, वह अब विकांस ने धारण कर रखा था । इस मुकुट मैं विकास बेहद सुन्दर लग रहा था ।
तेज कदमों के साथ सिंगही विकास की तरफ बढा ।
समीप जाकर उसने विकास को अपने पीछे आने का सकेंत किया। विकास ने संकेत देखा और सिंहासन से उतरकर सिंगही के पीछे-पीछे हो लिया । सिंगही शोर-शराबे से दुर एक कंमरे मे ले गया ।
कुछ समयोपरांत विकास सिंगही आमने--सामने बैठे थे ।।
" मेरे बिचार से अब तुम्हें अपना कार्य प्रारंभ कर देना चाहिए ।" सिंगही कह रहा था…."क्योंकि समम् कम है !"
"पहले आप मुझे अपनी शक्ति के बिषय में बताइए दादा !" विकास बोला----" उस शक्ति के आधार पर ही मैं कुछ कर सकूग़ा यानी अभी तक आपने विश्व विजय करने हेतु कितनी तैयारी की है?"
" मेरे बिचार से तुम पहले संपूर्ण हेडक्वार्टर घूम लो" ।
सिंगही ने कहा----"'कहां क्या है, कौन से कक्ष में हमारी कितनी शक्ति है । कहां से हम क्या कंट्रोल करते हैं आदि पहले यह भली भाँति जान लो !"
-“मैं भी आपसे यहीं कहना चाहता था ।" विकास मोहक मुस्कान के साथ बोला ।
उसके बाद. . . ।
सिंगही ने बिकास. .को साथ लिया । उसे, हेडक्वार्टर के भिन्न भिन्न स्थान दिखाए ।
और अव….....
अब सिगंही उसे उसी कक्ष की तरफ ले जा रहा था जिस कक्ष के दरवाजे के पीछे तुगलामा अपनी पूरी तैयारियों के साथ खडा था ।
विकासं को आने वाले खतरे के विषय में कोई ज्ञान नहीं था ।
उस कक्ष की तरफ बढ़ता हुआ सिंगही बोला…“अब मैं तुम्हें … अपना टार्चर रूम दिखाता हूँ ।" कहते समय सिंगही की आंखों से भयानक चमक उभरी-"इस कक्ष में मंगल-सम्राट किसी भी अपराधी को टार्चर करता है ।"
बिकास ने कुछ कहने के स्थान पर सिंगही की तरफ देखा और समझने वाले भाव से गर्दन हिला दी । वे दोनो उस कक्ष के द्वार पर पहुच गए।
सिंगही विकासं को यूं ही बातो में उलझाए हुए था.। विकास को यह गुमान भी नहीं हो सका क्रि इस कंक्ष के पीछे उसके खून का प्यासा तुगलामा छिपा हुआ है । वह अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि... ।
सिंगही ने अंपनी पूर्ण शक्ति समेटकर एक ठोकर विकस की पीठ पर जमाई ।
लड़का मात खा गया ।
सिंगही की ठोकर अप्रत्याशित होने के साथ-साथ इतनी अधिक शक्तिशाली थी कि लाख चेष्टाओं के पश्चात भी वह स्वयं को संभाल न सका और धड़ाम से मुंह के बल फर्श पर जा गिरा ।
बडी फुर्ती से उसने उठना चाहा, परन्तु.......
उसका जिस्म झनझनाकर रह गया । संपूर्ण शक्ति समेटने के पश्चात भी वह अपने जिस्म के किसी भी अंग को स्वेच्छा से हिला तक नहीं सका । उसके जिस्म को जैसे लकवा मार गया ।
खतरा .......!
उसके दिमाग मेँ एकदम यह शब्द गूजा ।।
लेकिन विलम्ब हो चुका था ।।
वह सोच सकता था, बोल सकता था देख सकता था लेकिने कोई हरकत नहीं कर सकता था ।
उसका कोई भी शारीरिक अग उसके नियन्त्रण में नहीं रहा था । ऐसा लगता था जेसे उसके पास जिस्म नहीं है ।।।।
तभी एक भयंकर कहकहे ने कक्ष की दीवारो कों कंपकंपा दिया ।
विकास चौका, चौंककर कहकहा लगाने वाले की और देखा------सामने तुगलामा था ।।
तुगलामा का चीफ ।। यह तो पागल हो गया था । यह यहा कैसे ।।
तुंगलामा के, हाथ मे ख़तरनाक काटेंदार हंटर था और चेहरे पर था वहशीपन ।। उघर-सिगहीँ कुटिल मुस्कान के साथ कक्ष पे प्रविष्ट हुआ बोला…"सिंगहीँ को परास्त करके मंगल-सम्राट बनना चाहते थे…विकास बेटे, तुम यह भूल गए कि सिंगही यह जानता है कि तुम-- विगत औय अंलफासे जैसे खतरनाक लडाकों के चेले हो । जानता हू बेटे अपराधी बन गए हो मगर साथ ही यह भी जानता हू कि तुम केवल अमेरिका को समाप्त करने के लिए अपराधी वने हो-भारत पर आते खतरे को देखकर तुम चुप नहीं बैठ सकते ।"
“आपने बच्चे के साथ धोखा किया है सिंगही दादा ।” बिकास बोला-----' "धिक्कार है आप पर लेकिन धिक्कार भी क्या, आप तो अपराधी हैं…विकास को अपना बच्चा कहते हैं तो केवल अपने स्वार्थ के लिए । आपने धोखा किया है । धोखा किया है तो सुनो सिंगही दादा, बच्चा आपसे कुछ कहता है । और, कान खोलकर सुनो---!
बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी complete
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
सुनो-विकास इस धोखें का बदला लेगा । एक-एक, को चीर फाड़कर सुखा दूंगा मैं । मैंने सोचा था सिंगही दादा कि धी सीधी ऊंगली से निकल आया है, लेकिन नहीं…दादा ! मैंने गलत सोचा था । मगर आप चिता न केरे दादा-गुरु लोगों ने उगली टेढी करनी भी सिखाई है !"
"अब तो तुम अपने अंगों को सीधा भी नहीं कर सकते बेटे !" सिंगही कुटिलता के साथ बोला--" तुमने सिंगही को इतना 'मूर्ख समझा था कि तुम्हें इस सरलता से मंगल-सम्राट बना देगा । इधर देखो विकास इसे तुमने पहचान लिया होगा । इसे तुंगलामा कहते हैं । पहचानो ईसे, मैंकाबर का चीफ है । अपने जीवन में इसने एक ही पूजी इकट्ठी की थी और वह थी मैकाबर लेकिन तुमने मैकाबर का अंत कर दिया । यह तुमसे बदला लेगा । वर्षो से यह
प्रतिशोध की ज्वाला में धधक रहा था ।"
" उस बार तो ये बचकर भाग गया था दादा!" बिकास बेखौफ स्वर मेँ बोला लेकिन इसबार.........!'
" तुगलामा !” विकास की बात बीच मे ही काटकर सिगंही गुर्रा उठा----" शिकार सामने है ।"
. . तुंगलामा तो जैसे विकास को देखते ही पागल हो गया था वह तो सिगही के आदेश की ही प्रतीक्षा कर रहा था । इधर सिगंही के आदेश केसाथ ही तुगलामा का हंटर चला,, हवा में लहराया ।
सड़ाक! !
भयंकर कांटेदार हटर सर्पं की भांति बिकास के जिस्म से लिपटा गया । हंटर वेहद खतरनाक. था । एक ही बार ने विकास कै जिस्म में से गोश्त के लोथड़े नोंचकर ले गया ।
बिकास के कंठ से एक चीख ने निकलना चाहा मगर विकास ने अपने पर काबू पा लिया । चीख तो उसके मुख से नहीं निकली किंतु असहनीय पीडा से अंदर-ही-अदर बिलबिलाकर रह गया, गोश्त के लोथडे और खून के छींटे कक्ष में इघर उघर बिखऱ गए ।
परंतु तुगलामा को जैसे इस बात से कोई सरोकार नही था ।।
उसने पुन: हंटर बाला हाथ हवा में लहराया और सड़क की आवाज़ के साथ एक वार फिर गोश्त के लोथड़े इधर-उधर बिखर गए ।
न चाहते हुए भी विकास के कंठ से एक सिसकारी निकले गई ।
उसके पश्चात तुंगलामा पागलपन में विकास के जिस्म पर हंटर बरसाता ही चला गया ।
प्रत्येक बार बिकास के होंठों से सिसकारी निकल जाती । इधर यह हंटर बरसा रहा था,
उधर सिंगही तुंगलामा से बोला ।।।
" इसे सजा देने के बादं तुम्हें बहुंत जल्दी विश्व विनाश के फार्मूले की ईजाद करनी है तंग !"
" उस फार्मूले के एकदम बाद मुझे विजय चाहिए सिगंही !" उसी प्रकार हटंर बरसाता हुआ तुगलामा बोला ।।
" विजय भी तुम्हें मिल जाएगा तुंग!"
और एक समय ऐसा आया जब तुंगलामा बिकास को मारता मारता थक गया । तुंग का सारा जिस्म पसीने से भरभरा उठा था ।
अब और अधिक हंटर मारने की शक्ति उसमें नही थी ।
" तुंग?" सिगही अजीब-स्री भयानक मुस्कान के साथ बोला----" थक गए ।"
"अभी देखते जाओ मेरे यार! !" तुंग अपनी सांस पर काबू पाने की असफल चेष्टा करता हुआ बोला……'" इस हिंदुस्तानी कुते को मै तड़पा-तड़पाकर मारूगां !" कहने के साथ ही तुंग डैशबोर्ड तरफ़ बढा ।
उसने दनादन कई बटनं दबा दिए ! तुरंत अपने स्थानों से तीन बर्लेन कूदकर कक्ष के फ़र्श पर आ गए । बिकास का जिस्म गोश्त का लोथड़ा-सा लग रहा था । उधड़े हुए गोश्त का लोथड़ा! देखकर तीनो बर्लेनो की आखो में एक अजीव-सी चमक ’उत्पन्न हो गई । वे तीनों इस प्रकार विकास के जिस्म की तरफ़ लपके जैसे मानव गोश्त उनका सर्वप्रिय भोजन हो ।
अगले ही पल . .
विकास की चीख निक्ल गई ।
तीनो बर्लेन उसके जिस्म के गोश्त को नोच-नोच कर खानें लगे ।।
विकास चीख पड़ा ।
तुझसे बदला लेगा चीनी सुअर-भयानक,बदला, और ...... आ........आ!" कहते-कहते विकास की चीख निकल गई । परंतु फिर संभलकर बोला--" सिगही दादा, तुम भी सुनो, मुझं-सा बेरहम तुमने देखा नहीं होगा । जिस्म की खाल नोच लूगा दादा, आ. . .आ .. !"
" हा-----हा. . .हा. . .. !! "सिंगही और तुगलामा का मिला-जुला भयंकर कहकहा कक्ष में गूंज उठा । दोनों शैतानों को जैसे मनमानी मुराद मिल गई हो । दोनो खुखांर राक्षसो… से लग रहे थे । विकास चीख रहा था । बर्लेन उसका गोश्त नोच-नोचककर खा रहे थे ।।
सिंगही कहकहा लगाने के बाद बोला---" अब तुम्हें वो अवसर नहीं मिलेगा विकास बेटे!"
उधर तुगलामा ने पुन डैशबोर्ड के बटन दबा दिए।
प्रतिक्रिया देखते ही विकास जैसा शैतान कांप उठा ।
सामने धधकती हुई इस्पात की भांट्ठियां थी ।
इधर बर्लेन बराबर उसका मांस नोच रहे थे ।
विकास चीख रहा था । वे दोनों कहकहे लगा रहे वे ।
तंग तो पागल-सा होकर बोला-" आओ सिंगहीँ, इसे भट्ठी में झोंक दें ।"
"हा ...हा.... हां…!" सिंगही भी कहकहा लगा उठा…" सुना था विकास बेटे कि तुम दुनिया के सबसे बेरहम इंसान हो---सचयुच तुम्हारा अंत इसी बेरहमी से… होना चाहिए था ।"
विकास की मौत उन भट्ठियों के रूप में सुलग रही थी ।
वे दोनों भयानक कहकहों के साथ बिकास की तरफ़ बढ़े ।
कांप उठा शेतानं ।।
धनुषटंकार ।
मानब बुद्धि रखने बाला अजीब सा बंदर ।
उसे भला कहाँ चैन था । उसका खुराफाती दिमाग बराबर कुछ सोचता रहता था । इस बार कुछ ऐसा सोचा कि बस अजीब ही सोचा ।
उसके गुरु यानी बिकास कैंटली का भेष बनाकर सिगंही के दरबार ने चले गए थे ।
उसके दिमाग में आया-अगर गुरु को सिगंही ने पहचान लिया तो.......?
तो क्या वह भी गुरुं के साथ चले? लेकिन नहीं, वह जानता था उसके गुरु साथ नहीं ले जाएंगे ।।
तभी तो!
धनुषटंकार जाम्बू के अड्डे से गायब हो गया ।
"अब तो तुम अपने अंगों को सीधा भी नहीं कर सकते बेटे !" सिंगही कुटिलता के साथ बोला--" तुमने सिंगही को इतना 'मूर्ख समझा था कि तुम्हें इस सरलता से मंगल-सम्राट बना देगा । इधर देखो विकास इसे तुमने पहचान लिया होगा । इसे तुंगलामा कहते हैं । पहचानो ईसे, मैंकाबर का चीफ है । अपने जीवन में इसने एक ही पूजी इकट्ठी की थी और वह थी मैकाबर लेकिन तुमने मैकाबर का अंत कर दिया । यह तुमसे बदला लेगा । वर्षो से यह
प्रतिशोध की ज्वाला में धधक रहा था ।"
" उस बार तो ये बचकर भाग गया था दादा!" बिकास बेखौफ स्वर मेँ बोला लेकिन इसबार.........!'
" तुगलामा !” विकास की बात बीच मे ही काटकर सिगंही गुर्रा उठा----" शिकार सामने है ।"
. . तुंगलामा तो जैसे विकास को देखते ही पागल हो गया था वह तो सिगही के आदेश की ही प्रतीक्षा कर रहा था । इधर सिगंही के आदेश केसाथ ही तुगलामा का हंटर चला,, हवा में लहराया ।
सड़ाक! !
भयंकर कांटेदार हटर सर्पं की भांति बिकास के जिस्म से लिपटा गया । हंटर वेहद खतरनाक. था । एक ही बार ने विकास कै जिस्म में से गोश्त के लोथड़े नोंचकर ले गया ।
बिकास के कंठ से एक चीख ने निकलना चाहा मगर विकास ने अपने पर काबू पा लिया । चीख तो उसके मुख से नहीं निकली किंतु असहनीय पीडा से अंदर-ही-अदर बिलबिलाकर रह गया, गोश्त के लोथडे और खून के छींटे कक्ष में इघर उघर बिखऱ गए ।
परंतु तुगलामा को जैसे इस बात से कोई सरोकार नही था ।।
उसने पुन: हंटर बाला हाथ हवा में लहराया और सड़क की आवाज़ के साथ एक वार फिर गोश्त के लोथड़े इधर-उधर बिखर गए ।
न चाहते हुए भी विकास के कंठ से एक सिसकारी निकले गई ।
उसके पश्चात तुंगलामा पागलपन में विकास के जिस्म पर हंटर बरसाता ही चला गया ।
प्रत्येक बार बिकास के होंठों से सिसकारी निकल जाती । इधर यह हंटर बरसा रहा था,
उधर सिंगही तुंगलामा से बोला ।।।
" इसे सजा देने के बादं तुम्हें बहुंत जल्दी विश्व विनाश के फार्मूले की ईजाद करनी है तंग !"
" उस फार्मूले के एकदम बाद मुझे विजय चाहिए सिगंही !" उसी प्रकार हटंर बरसाता हुआ तुगलामा बोला ।।
" विजय भी तुम्हें मिल जाएगा तुंग!"
और एक समय ऐसा आया जब तुंगलामा बिकास को मारता मारता थक गया । तुंग का सारा जिस्म पसीने से भरभरा उठा था ।
अब और अधिक हंटर मारने की शक्ति उसमें नही थी ।
" तुंग?" सिगही अजीब-स्री भयानक मुस्कान के साथ बोला----" थक गए ।"
"अभी देखते जाओ मेरे यार! !" तुंग अपनी सांस पर काबू पाने की असफल चेष्टा करता हुआ बोला……'" इस हिंदुस्तानी कुते को मै तड़पा-तड़पाकर मारूगां !" कहने के साथ ही तुंग डैशबोर्ड तरफ़ बढा ।
उसने दनादन कई बटनं दबा दिए ! तुरंत अपने स्थानों से तीन बर्लेन कूदकर कक्ष के फ़र्श पर आ गए । बिकास का जिस्म गोश्त का लोथड़ा-सा लग रहा था । उधड़े हुए गोश्त का लोथड़ा! देखकर तीनो बर्लेनो की आखो में एक अजीव-सी चमक ’उत्पन्न हो गई । वे तीनों इस प्रकार विकास के जिस्म की तरफ़ लपके जैसे मानव गोश्त उनका सर्वप्रिय भोजन हो ।
अगले ही पल . .
विकास की चीख निक्ल गई ।
तीनो बर्लेन उसके जिस्म के गोश्त को नोच-नोच कर खानें लगे ।।
विकास चीख पड़ा ।
तुझसे बदला लेगा चीनी सुअर-भयानक,बदला, और ...... आ........आ!" कहते-कहते विकास की चीख निकल गई । परंतु फिर संभलकर बोला--" सिगही दादा, तुम भी सुनो, मुझं-सा बेरहम तुमने देखा नहीं होगा । जिस्म की खाल नोच लूगा दादा, आ. . .आ .. !"
" हा-----हा. . .हा. . .. !! "सिंगही और तुगलामा का मिला-जुला भयंकर कहकहा कक्ष में गूंज उठा । दोनों शैतानों को जैसे मनमानी मुराद मिल गई हो । दोनो खुखांर राक्षसो… से लग रहे थे । विकास चीख रहा था । बर्लेन उसका गोश्त नोच-नोचककर खा रहे थे ।।
सिंगही कहकहा लगाने के बाद बोला---" अब तुम्हें वो अवसर नहीं मिलेगा विकास बेटे!"
उधर तुगलामा ने पुन डैशबोर्ड के बटन दबा दिए।
प्रतिक्रिया देखते ही विकास जैसा शैतान कांप उठा ।
सामने धधकती हुई इस्पात की भांट्ठियां थी ।
इधर बर्लेन बराबर उसका मांस नोच रहे थे ।
विकास चीख रहा था । वे दोनों कहकहे लगा रहे वे ।
तंग तो पागल-सा होकर बोला-" आओ सिंगहीँ, इसे भट्ठी में झोंक दें ।"
"हा ...हा.... हां…!" सिंगही भी कहकहा लगा उठा…" सुना था विकास बेटे कि तुम दुनिया के सबसे बेरहम इंसान हो---सचयुच तुम्हारा अंत इसी बेरहमी से… होना चाहिए था ।"
विकास की मौत उन भट्ठियों के रूप में सुलग रही थी ।
वे दोनों भयानक कहकहों के साथ बिकास की तरफ़ बढ़े ।
कांप उठा शेतानं ।।
धनुषटंकार ।
मानब बुद्धि रखने बाला अजीब सा बंदर ।
उसे भला कहाँ चैन था । उसका खुराफाती दिमाग बराबर कुछ सोचता रहता था । इस बार कुछ ऐसा सोचा कि बस अजीब ही सोचा ।
उसके गुरु यानी बिकास कैंटली का भेष बनाकर सिगंही के दरबार ने चले गए थे ।
उसके दिमाग में आया-अगर गुरु को सिगंही ने पहचान लिया तो.......?
तो क्या वह भी गुरुं के साथ चले? लेकिन नहीं, वह जानता था उसके गुरु साथ नहीं ले जाएंगे ।।
तभी तो!
धनुषटंकार जाम्बू के अड्डे से गायब हो गया ।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
जाम्बू और उसके क्रांतिकारी साथी परेशान । कहा गया बंदर?
एक टुम्बकटू था । अजीब किस्म का जानवर ।
बह पट्ठा सो गया । जहां वह सोया हुआ था-बहीं लंबे-लंबे खर्राटे गूंज रहे थे । उसे जैसे कुछ चिंता नहीं थी । कुभंकरण का यह नाती आराम से सो रहा था । जाम्बू और उसका दल धनुषटंकार के गायब होने पर बेहद बेचैन था ।
जब उनकी समझ में कुछ नहीं आया तो सव एंकसाथ टुम्बकटू के पास पहुचे ।।
उसे जगाने की हर संभब और साथ ही असंभव चेष्टाएं भी की लेकिन........ कार्टून नहीं जगा ।
मंगल ग्रह निवासी अवाक, हैरान परेशान !
कैसा व्यक्ति है?
उठा-उठाकर पटका लेकिन जगा नहीं । सबके चेहरों पर गहन आश्चर्य के भाव उभर आए ।
टुम्बकटू को जगाने में वे विफल रहे ।
तभी एक क्रांतिकारी ने जाकर सूचना दी कि सिंगहीं ने विकास को मंगल सम्राट वना दिया है ।
जाम्बू खुशी से उछलं पडा लेकिन वे परेशान भी थे-पहले तो बंदर के कारण उधर उस गन्ने जैसे व्यक्ति से । उनकी कुछ समझ मे नहीं रहा था कि ये किस तरह के लोग हैं ।
और धनुषटंकार.......
वह अपने ही हिल्ले में लगा हुआ था ।
इस समय बंदर धनुषटंकार बडे अजीब-से ऊचे वृक्ष की सबसे ऊंची डाल पर बैठा हुआ था ।।
इस वृक्ष पर गुलाबी रंग के गोल-गोले फल लगे हुए थे ।। पहले धनुषटंकार ने एक फल तोड़ा और थोडा सा चखा । फल वेहद मीठा था स्वादिष्ट भी । बस फिर क्या था ।
बंदर ने दनादन फल खाए पेट पर हाउस फूल की तख्ती लटका ली । इस समय वह बडी अजीव-सी निगाहों साथ काली इस्थात की वनी हुई विशाल इमारत को देख रहा था ।
मंगल ग्रह की सभी इमारती में यह इमारत बेहद बिशाल थी । धनुष्टटंकार जानता था कि यह इमारत ही सिगंही का हेडक्वार्टर है ।
विकास गुरु को उसके अंदर गए काफी देर हो चुकी थी ।
यह घोषणा भी धनुषटंकार ने सुन ली थी कि उसके विकास गुरु को मंगल-सम्राट वना दिया गया है । मगर उसका खुराफाती दिमाग था ना-सोचने लगा, क्या पता यह सूचना ही गलत हो ।
अत: वह अपने ढंग से अंदर जाएगा ।
यह सोचते ही वह वृक्ष से उतर आया । दो पैरों पर र्दोड़ता हुआ इमारत के पीछे पहुँचा और फिर वह अभ्यस्त बंदर इमारत के एक पाइप पर चढ़ता ही चला गया ।कुछ देर पश्चात वह विशाल इमारत की एक गेलरी मे था ।
गैलरी में एक मंगल-निवासी यानी उल्टा सैनिक पैरों में हाथों की भांति गन थामे, हाथों पर…चहलकदमी करता हुआ मुस्तेदी के साथ पहरा दे रहा था ।।
जाने धनुषटंकार को क्या सूझा कि उसने अपनी जेब से प्लास्टिक का धनूष निकालकर उस पर पतले, नोकीले र्कितु बेलचक तार का तीर चढा लिया । यह तीर विष मे बुझा हुआ था । धनुषटंकार ने धनुष खीचा और अगले ही पल तीर वायु में सनसनाता हुआ उलटे मानव के माथे पर स्थित इकलौती आंख में धंस गया । उल्टे मानब के कंठ से चीख तक न निकल सकी ।।
उसकी आंख फूट गई और वह वहीं देर हो गया । धनुषटंकार भी तेजी से लपका ।
जब तक वहां पहुचा, उलटे मानव सेनिक का टिकट कट चुका था । वह बिना पेमेंट किए ईश्वरपूरी पहुच गया था ।
थनुषटंकार ने उसे देखा-आंख में धसाँ हुआ तीव्र जहर उसके जिस में फैल गया था ।
सारा जिस्म नीला हो गया था ।
धनुषटंकार ने एक बार उस सैनिक का गाल चुमा फिर धनुष संभलकर दो पैरों परं गोलरी में भाग लिया ।
भागता हुआ किसी छोटे बच्चे की तरह लग रहा था लेकिन किंसी छोटे बच्चे की गति इतनी तेज नही हो सकती ।।
उसके बद वह गोली के कईं मोड़ घूम गया मगर गेलरीं समाप्त होने का नाम नहीं ले रही थी । अभी तक किसी दूसरे सेनिक से उसका मुकाबला नहीं हुआ था ।
अचानक बंदर ठिठक गया ।। गेलरी के बाई तरफ़ स्थित एक कक्ष में से उसे ऐसी आवाज मैं आई, मानो कुछ लोग आपस मे बाते कऱरहे हो । बंदर थनुषटंकार ने धनुष पर तीर चढ़ाया और कान द्वार से लगा दिए । अंदर से आवाज आ रहीं थी ।
“लेकिन यह लडका तो महामहिम का दुश्मन था !"
"वो तो अव भी है ।" दूसरे व्यक्ति की आवाज आई ।
" तो फिर महामहिम ने उसे मंगल सम्राट क्यों बना दिया?” वही पहली आवाज ।।
" अबे तू भी बेवकूफ है साले !" दूसरी आबाज ने प्रश्च कंरने वाले को जैसे लानत भेजी-“वेटा महामहिम बडे महान है, सुना है कि वो मासूम-सा लड़का बडा खतरनाक है । उसे कब्जे में करने के लिए महामहिम ने बडी जबरदस्त चाल चली है । यह बात केवल मुझे पता है क्योंकि जब जश्न मनाया जा रहा था, उस समय मै महामहिम तुंगलामा से मिलने गए । मैंने उनकी बात सुनी थी !"
" क्या वात ?"
"देख, मैं केवल तुझे बता रहा हूं क्योकि तू मेरा यार है” । "
धनुषटंकार जिज्ञासा के साथ सुन रहा था---- "महामहिम उस लड़के को हेडक्वार्टर घुमाने के बहाने कक्ष नंबर पचीस मेँ ले गए थे । तुम जानते हो कि उस कक्ष में तुंगलामा बडा-अजीब-सा करेंट फैला देता है,इंसान के जिस्म को लकवे की तरह कर देता है । वे विशेष ड्रेस पहनकर गए हैं ताकि उनपर किसी प्रकार के करेंट का प्रभाव न हो ।"
धनुषटंकार ने सुना । वह समझ गया कि गुरु के साथ धोखा हो रहा है । उसकी आंखो में खून उतर आया । गुरु को खतरे में जानकर ( थनुषटंकार पर हमेशा खून सवार हो जाया करता है । उसने धनुष अपनी जेब में रख लिया! वह यह भी समझ गया कि अगर जरा भी विलंब हो गया तो गुरु का क्रिया-कर्म हो सकता है । उसके हाथ में एक लंबा पतला तार आ गया-पियानो का लचीला पंरतु मजबूत तार ।
जव धनुषटंकार पर खून सवाऱ होता था तो वह इसी तार से वार करता था । धनुषटंकार इस समय पगाल-सा लग रहा था ।
अभी वह कमरे में प्रविष्ट होना ही चाहता था कि उसके पीछे गैलरी में आहट हुई । उफ--धनुषटंकार ने कमाल कर दिया ।।
जैसे चीता अपने शिकार पर झपट्टे । बिलकुल विधुत गतिं से धनुषटंकार मुड़ा एक ही पल में उसने देखा कि यह दो पैरों पर चलने बाला यानी धरती मानव था । वह सिगंही का सेनिक था ।
धनुषटंकार को देखकर वह अभी अपनी गन सीधी भी नहीं करपाया कि, . . .
बंदर धनुषटंकार लहरा उठा ।
अगले ही पल एक उबकाई ला हेने वाला वीभत्स दृश्य ॥॥
बडी निर्मम हत्या थी ॥
अगर खूनी भेड्रिया भी देखले तो मुंह फेर ले ॥
हुआ यूं कि हवा में लहराता हुआ धनुषटंकार सीधा सेनिक की छाती पर जा टिका । इससे पूर्व कि सैनिक कुछ समझ पाए? बंदर के ह्मथ का पियानो बाला तार सेनिक की गर्दन के चारों और जा लिपटा !
एक झटका सिर धड़ से जुदा ।
एक चीख तक न निकली । पलक झपकते ही खेल खत्म । धनुषटंकार का सूट भी खून से लथपथ हो गया ।
ब्लेड की धार जेसा पैना पतला और मजबूत तार खून ने पुता हुआ था ।
एक टुम्बकटू था । अजीब किस्म का जानवर ।
बह पट्ठा सो गया । जहां वह सोया हुआ था-बहीं लंबे-लंबे खर्राटे गूंज रहे थे । उसे जैसे कुछ चिंता नहीं थी । कुभंकरण का यह नाती आराम से सो रहा था । जाम्बू और उसका दल धनुषटंकार के गायब होने पर बेहद बेचैन था ।
जब उनकी समझ में कुछ नहीं आया तो सव एंकसाथ टुम्बकटू के पास पहुचे ।।
उसे जगाने की हर संभब और साथ ही असंभव चेष्टाएं भी की लेकिन........ कार्टून नहीं जगा ।
मंगल ग्रह निवासी अवाक, हैरान परेशान !
कैसा व्यक्ति है?
उठा-उठाकर पटका लेकिन जगा नहीं । सबके चेहरों पर गहन आश्चर्य के भाव उभर आए ।
टुम्बकटू को जगाने में वे विफल रहे ।
तभी एक क्रांतिकारी ने जाकर सूचना दी कि सिंगहीं ने विकास को मंगल सम्राट वना दिया है ।
जाम्बू खुशी से उछलं पडा लेकिन वे परेशान भी थे-पहले तो बंदर के कारण उधर उस गन्ने जैसे व्यक्ति से । उनकी कुछ समझ मे नहीं रहा था कि ये किस तरह के लोग हैं ।
और धनुषटंकार.......
वह अपने ही हिल्ले में लगा हुआ था ।
इस समय बंदर धनुषटंकार बडे अजीब-से ऊचे वृक्ष की सबसे ऊंची डाल पर बैठा हुआ था ।।
इस वृक्ष पर गुलाबी रंग के गोल-गोले फल लगे हुए थे ।। पहले धनुषटंकार ने एक फल तोड़ा और थोडा सा चखा । फल वेहद मीठा था स्वादिष्ट भी । बस फिर क्या था ।
बंदर ने दनादन फल खाए पेट पर हाउस फूल की तख्ती लटका ली । इस समय वह बडी अजीव-सी निगाहों साथ काली इस्थात की वनी हुई विशाल इमारत को देख रहा था ।
मंगल ग्रह की सभी इमारती में यह इमारत बेहद बिशाल थी । धनुष्टटंकार जानता था कि यह इमारत ही सिगंही का हेडक्वार्टर है ।
विकास गुरु को उसके अंदर गए काफी देर हो चुकी थी ।
यह घोषणा भी धनुषटंकार ने सुन ली थी कि उसके विकास गुरु को मंगल-सम्राट वना दिया गया है । मगर उसका खुराफाती दिमाग था ना-सोचने लगा, क्या पता यह सूचना ही गलत हो ।
अत: वह अपने ढंग से अंदर जाएगा ।
यह सोचते ही वह वृक्ष से उतर आया । दो पैरों पर र्दोड़ता हुआ इमारत के पीछे पहुँचा और फिर वह अभ्यस्त बंदर इमारत के एक पाइप पर चढ़ता ही चला गया ।कुछ देर पश्चात वह विशाल इमारत की एक गेलरी मे था ।
गैलरी में एक मंगल-निवासी यानी उल्टा सैनिक पैरों में हाथों की भांति गन थामे, हाथों पर…चहलकदमी करता हुआ मुस्तेदी के साथ पहरा दे रहा था ।।
जाने धनुषटंकार को क्या सूझा कि उसने अपनी जेब से प्लास्टिक का धनूष निकालकर उस पर पतले, नोकीले र्कितु बेलचक तार का तीर चढा लिया । यह तीर विष मे बुझा हुआ था । धनुषटंकार ने धनुष खीचा और अगले ही पल तीर वायु में सनसनाता हुआ उलटे मानव के माथे पर स्थित इकलौती आंख में धंस गया । उल्टे मानब के कंठ से चीख तक न निकल सकी ।।
उसकी आंख फूट गई और वह वहीं देर हो गया । धनुषटंकार भी तेजी से लपका ।
जब तक वहां पहुचा, उलटे मानव सेनिक का टिकट कट चुका था । वह बिना पेमेंट किए ईश्वरपूरी पहुच गया था ।
थनुषटंकार ने उसे देखा-आंख में धसाँ हुआ तीव्र जहर उसके जिस में फैल गया था ।
सारा जिस्म नीला हो गया था ।
धनुषटंकार ने एक बार उस सैनिक का गाल चुमा फिर धनुष संभलकर दो पैरों परं गोलरी में भाग लिया ।
भागता हुआ किसी छोटे बच्चे की तरह लग रहा था लेकिन किंसी छोटे बच्चे की गति इतनी तेज नही हो सकती ।।
उसके बद वह गोली के कईं मोड़ घूम गया मगर गेलरीं समाप्त होने का नाम नहीं ले रही थी । अभी तक किसी दूसरे सेनिक से उसका मुकाबला नहीं हुआ था ।
अचानक बंदर ठिठक गया ।। गेलरी के बाई तरफ़ स्थित एक कक्ष में से उसे ऐसी आवाज मैं आई, मानो कुछ लोग आपस मे बाते कऱरहे हो । बंदर थनुषटंकार ने धनुष पर तीर चढ़ाया और कान द्वार से लगा दिए । अंदर से आवाज आ रहीं थी ।
“लेकिन यह लडका तो महामहिम का दुश्मन था !"
"वो तो अव भी है ।" दूसरे व्यक्ति की आवाज आई ।
" तो फिर महामहिम ने उसे मंगल सम्राट क्यों बना दिया?” वही पहली आवाज ।।
" अबे तू भी बेवकूफ है साले !" दूसरी आबाज ने प्रश्च कंरने वाले को जैसे लानत भेजी-“वेटा महामहिम बडे महान है, सुना है कि वो मासूम-सा लड़का बडा खतरनाक है । उसे कब्जे में करने के लिए महामहिम ने बडी जबरदस्त चाल चली है । यह बात केवल मुझे पता है क्योंकि जब जश्न मनाया जा रहा था, उस समय मै महामहिम तुंगलामा से मिलने गए । मैंने उनकी बात सुनी थी !"
" क्या वात ?"
"देख, मैं केवल तुझे बता रहा हूं क्योकि तू मेरा यार है” । "
धनुषटंकार जिज्ञासा के साथ सुन रहा था---- "महामहिम उस लड़के को हेडक्वार्टर घुमाने के बहाने कक्ष नंबर पचीस मेँ ले गए थे । तुम जानते हो कि उस कक्ष में तुंगलामा बडा-अजीब-सा करेंट फैला देता है,इंसान के जिस्म को लकवे की तरह कर देता है । वे विशेष ड्रेस पहनकर गए हैं ताकि उनपर किसी प्रकार के करेंट का प्रभाव न हो ।"
धनुषटंकार ने सुना । वह समझ गया कि गुरु के साथ धोखा हो रहा है । उसकी आंखो में खून उतर आया । गुरु को खतरे में जानकर ( थनुषटंकार पर हमेशा खून सवार हो जाया करता है । उसने धनुष अपनी जेब में रख लिया! वह यह भी समझ गया कि अगर जरा भी विलंब हो गया तो गुरु का क्रिया-कर्म हो सकता है । उसके हाथ में एक लंबा पतला तार आ गया-पियानो का लचीला पंरतु मजबूत तार ।
जव धनुषटंकार पर खून सवाऱ होता था तो वह इसी तार से वार करता था । धनुषटंकार इस समय पगाल-सा लग रहा था ।
अभी वह कमरे में प्रविष्ट होना ही चाहता था कि उसके पीछे गैलरी में आहट हुई । उफ--धनुषटंकार ने कमाल कर दिया ।।
जैसे चीता अपने शिकार पर झपट्टे । बिलकुल विधुत गतिं से धनुषटंकार मुड़ा एक ही पल में उसने देखा कि यह दो पैरों पर चलने बाला यानी धरती मानव था । वह सिगंही का सेनिक था ।
धनुषटंकार को देखकर वह अभी अपनी गन सीधी भी नहीं करपाया कि, . . .
बंदर धनुषटंकार लहरा उठा ।
अगले ही पल एक उबकाई ला हेने वाला वीभत्स दृश्य ॥॥
बडी निर्मम हत्या थी ॥
अगर खूनी भेड्रिया भी देखले तो मुंह फेर ले ॥
हुआ यूं कि हवा में लहराता हुआ धनुषटंकार सीधा सेनिक की छाती पर जा टिका । इससे पूर्व कि सैनिक कुछ समझ पाए? बंदर के ह्मथ का पियानो बाला तार सेनिक की गर्दन के चारों और जा लिपटा !
एक झटका सिर धड़ से जुदा ।
एक चीख तक न निकली । पलक झपकते ही खेल खत्म । धनुषटंकार का सूट भी खून से लथपथ हो गया ।
ब्लेड की धार जेसा पैना पतला और मजबूत तार खून ने पुता हुआ था ।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
बड़ा निर्मम हत्यारा था ॥ जब उस पर पागलपन सवार होता था तो उसका हत्या करने का यही निर्मम ढंग होता था ॥
बंदर की आंखे खून से लिसी पड़ी थी ।
धड सिर और सैनिक के हाथ की गन एकदम फर्श पर गिरे ।
आवाज हुई ।।
इस आवाज ने कक्ष में उपस्थित दोनों सैनिकों को चौंकाया । एक बोला…"कौन है?"
दोनों एकदम दरवाजा खोलकर बाहर आए ।
परंतु बेचारों का दुर्भाग्या नहीं जानते थे कि बाहर निर्मम शेतान मौजूद है!
अभी वे बाहर निकले ही थे कि हवा में तैरता बंदर एक की छाती पर चढ़ बैठा ।
पास ही खड़े दूसरे सेनिक के गले में तार----एक झटका और सिर, धड से अलग ।
खून के छींटे इधर उधर छितरा गए ।।
एक ही पल की मौत थी । पता तक नहीँ लगता-चीखने तक का अवसर नहीं मिलता ।
एक मर गया लेकिन दूसरे को धनुषटंकार ने मारा नहीं, बल्कि एक जबरदस्त घूंसा उसके जबड़े पर जमा दिया ।
एक चीख के साथ सैनिक कक्ष के अंदर जा गिरा । घनुषटंकार के जिस्म में तो इस समय , जैसे बिजली भरी हुई थी । पलक झपकते ही उसने कक्ष का द्वार बंद करके अंदर से बोल्ट कर दिया ।
अभी वह सेनिक हक्का-बक्का ही था । ऐक बंदर से वह इन हरकतों की आशा कदापि नहीं कर सकता था । अभी वहं आश्चर्य के गोते लगा ही रहा था कि बंदर पुन: उसकी छाती पर आ चढा ।। दो-तीन थप्पड उसके दोनों गालो पर जमाए कि आतिशबाजी का कमाल उसने देख लिया लिया बंदर धनुषटकार बडी तेजी के साथ अपना कार्यं कर रहा था । उसने जेब से रेशम की डोरी निकाली । उसके हाथ-पैर बांधे और जेब से डायरी निकलकर पेन से यूं लिखा-" वेटे खटमल लाल, जल्दी से बताओ कि वह कौन-सी ड्रेस है जिसे पहनकर कक्ष नंबर पच्चीस. मे पहुँचा जा सकता है? अगर नहीं बताओगे तो पानी के बताशे की तरहं फोड़ डालूँगा ।।
पढकर सेनिक कांप उठा ।।
आश्चर्य से उसकी आंखें फैल गई । यह तो उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थीं कि एक बंदर लिखना-पड़ना भी जान सकता है ।।
पहली बार उसे अवसर मिला कि वह ध्यान से धनुषटंकार को देख सके । धनुषटंकाऱ की आंखो में देखते ही सेनिक ही अंतरात्मा कांप उठी । लगा, यह बंदर नहीं राक्षस डै…राक्षस ।।
तभी एक झन्नाटेदार घूंसा सेनिक की नाक पर पडा ।। सेनिक बिलबिला उठा । नाक से खून बहने लगा ।
घूंसां मारते ही धनुषटंकार ने वही डायरी में लिखा हुआ वाक्य उसके सामने कऱ दिया है।। वेचारा सैनिक-बुरा फसा! एक अंदर के हाथों मार खानी पडी । उसने तुरंत एक तरफ हाथ उठाकर कहा------" वो ड्रेस है।"
धनुषटंकार ने बिनां एक भी क्षण व्यर्थ किए फटाक से एक कैरेट सेनिक की कनपटी पर मारी ।
सेनिक बेहोश हो गया ।
यह गुर विजय ने बिकास को विकास ने धनुषटंकार को सिखाया था ।।
उसे बेहोश करके बंदर ड्रेस की तरफ लपका ।
यह देखकर उसे आश्चर्य अवश्य हुआ कि बन्दर जैसी जिस्म की भी कई ड्रेसे वहाँ मौजूद थी ।
बह क्या जानता था कि उसी के जिस्म के यानी बंदर जैसे जिस्म वाले करामाती जानवर यानी बर्लेन तुंगलामा के विशेष जानवर हैं, जिनके लिए यह ड्रेसं तेयार की गई थी । उसने इस विष्य पर सोचने में अधिक समय व्यर्थ नहीं किया ।
अत: तेजी, के साथ सूट के ऊपर ही बह लिबास पहनकर कक्ष से बाहर आया ।
उसके हाथ में खून से लिसा हुआ पियानो का तार अब भी था ।
उसने देखा-गैलरी मे सन्नाटा था ।।
उन्हीं दो सेनिको के जिस्म और गर्दन अलग पड़े थे -धनुषटंकार तेजी के साथ भागता हुआ गैलरी मे आगे बढ गया ।।
अब वह गैलरी के दोनों तरफ वने कक्षों के ऊपर पड़े नंबरों को पढता जा रहा था । उसे पचीस नंबर तक पहुचने मेँ कठिनता से पांच मिनट लगे ।
तब जबकि बह कक्ष के समीप पहुँचा ।।
अपने गुरु विकास की चीखें साफ़ सुनी ।
गुरु की चीखे उसके कानों में जैसै पिघले शीशे की भाति उतरती चली गई ।
धनुषटंकार बेहद खौफनाक नजर आने लगा ।
वह झट से लपककर कक्ष के सामने पहुंच गया ।।
द्वार खुला हुआ था ।
अंदर का दृश्य देखते ही धनुषटंकार का पागलपन चरम् सीमा तक पहुंच गया ।।
उसके गुरु के जिस्म का मांस उघडा पड़ा था । तीन उसके जिस्म जैसी आकृति के जानवर
उसके गुरु के जिस्म से गोश्त नोच-नोचकर खा ऱहे थे ।
विकास चीख रहा और भयानक शैतान कहकहा लगाते हुए विकास की तरफ बढ़ रहे थे । धघकती हुई भट्टियों पर भी घनुषटंकार की दृष्टि पड़ गई थी । धनुषटंकार जैसे सब समझ गया उसने तेजी के साथ पियानो का तार जेब में ठूंसा और धनुष और तीर निकाल लिया ।
अगले ही पल उसके धनुष से एक तीर सनसनाया ।। अजीब-सी चीख के साथ एक बर्लेन लुढ़क गया ।
सिगंही और तुंगलामा चौक कर पलट गए लेकिन देर हो चुकी थी ।
धचुषटंकार के जिस्म मे तो जैसे बिजंत्ती भरी हुई थी ।उसने बेखौफ़ कमरे में जंप लगा दी ।
वह सीधा तुंगलामा के चेहरे से टकराया ।।
सिगंही जैसा महारथी भी चकरा गया ।
तुंगलामा तो बौखलाकर धड़ाम से फर्श पर गिरा ।
धनुषटंकार ने पलक झपकते ही एकं बर्लेन को उठाया और धधकती इस्पात की भट्ठी में झोंक दिया ।
उफ-…बर्लेन का जिस्म एकदम धधक उठा ।
उसके कंठ से एक चीख निकल गई ।
तभी सिंगही ने स्वयं को संभालकर घनुषटंकार पर एक जंप लगा दी ।।
लेकिन धनुषटंकार तो आज़ जैसे किसी के कब्जे में आनेवाला ही नहीं था ।।
उसके जिस्म मे तो जैसे बिजली भर गई थी इतनी तेजी के साथ वह अपने स्थान से हटा कि सिंगही जैसा व्यक्ति भी झोंक के साथ फर्श पर जा गिरा।
धनुषटंकार ने फुर्ती के साथ झपटकर फर्श पर पड़ा हंटर उठा लिया । हंटर उसके गुरु विकास के खून से लथपथ था।
बस धनुष्टंकार बंदर न होकर जैसे विश्व का सबसे बडा खूंखार भेडिया बन गया ।।
सबसे पहला हंटर सड़ाक की आबाज के साथ बर्लेन के जिस्म के साथ लिपट गया । बर्लेन के कंठ से बडी अजीब-सी चीख निकली ।
बंदर की आंखे खून से लिसी पड़ी थी ।
धड सिर और सैनिक के हाथ की गन एकदम फर्श पर गिरे ।
आवाज हुई ।।
इस आवाज ने कक्ष में उपस्थित दोनों सैनिकों को चौंकाया । एक बोला…"कौन है?"
दोनों एकदम दरवाजा खोलकर बाहर आए ।
परंतु बेचारों का दुर्भाग्या नहीं जानते थे कि बाहर निर्मम शेतान मौजूद है!
अभी वे बाहर निकले ही थे कि हवा में तैरता बंदर एक की छाती पर चढ़ बैठा ।
पास ही खड़े दूसरे सेनिक के गले में तार----एक झटका और सिर, धड से अलग ।
खून के छींटे इधर उधर छितरा गए ।।
एक ही पल की मौत थी । पता तक नहीँ लगता-चीखने तक का अवसर नहीं मिलता ।
एक मर गया लेकिन दूसरे को धनुषटंकार ने मारा नहीं, बल्कि एक जबरदस्त घूंसा उसके जबड़े पर जमा दिया ।
एक चीख के साथ सैनिक कक्ष के अंदर जा गिरा । घनुषटंकार के जिस्म में तो इस समय , जैसे बिजली भरी हुई थी । पलक झपकते ही उसने कक्ष का द्वार बंद करके अंदर से बोल्ट कर दिया ।
अभी वह सेनिक हक्का-बक्का ही था । ऐक बंदर से वह इन हरकतों की आशा कदापि नहीं कर सकता था । अभी वहं आश्चर्य के गोते लगा ही रहा था कि बंदर पुन: उसकी छाती पर आ चढा ।। दो-तीन थप्पड उसके दोनों गालो पर जमाए कि आतिशबाजी का कमाल उसने देख लिया लिया बंदर धनुषटकार बडी तेजी के साथ अपना कार्यं कर रहा था । उसने जेब से रेशम की डोरी निकाली । उसके हाथ-पैर बांधे और जेब से डायरी निकलकर पेन से यूं लिखा-" वेटे खटमल लाल, जल्दी से बताओ कि वह कौन-सी ड्रेस है जिसे पहनकर कक्ष नंबर पच्चीस. मे पहुँचा जा सकता है? अगर नहीं बताओगे तो पानी के बताशे की तरहं फोड़ डालूँगा ।।
पढकर सेनिक कांप उठा ।।
आश्चर्य से उसकी आंखें फैल गई । यह तो उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थीं कि एक बंदर लिखना-पड़ना भी जान सकता है ।।
पहली बार उसे अवसर मिला कि वह ध्यान से धनुषटंकार को देख सके । धनुषटंकाऱ की आंखो में देखते ही सेनिक ही अंतरात्मा कांप उठी । लगा, यह बंदर नहीं राक्षस डै…राक्षस ।।
तभी एक झन्नाटेदार घूंसा सेनिक की नाक पर पडा ।। सेनिक बिलबिला उठा । नाक से खून बहने लगा ।
घूंसां मारते ही धनुषटंकार ने वही डायरी में लिखा हुआ वाक्य उसके सामने कऱ दिया है।। वेचारा सैनिक-बुरा फसा! एक अंदर के हाथों मार खानी पडी । उसने तुरंत एक तरफ हाथ उठाकर कहा------" वो ड्रेस है।"
धनुषटंकार ने बिनां एक भी क्षण व्यर्थ किए फटाक से एक कैरेट सेनिक की कनपटी पर मारी ।
सेनिक बेहोश हो गया ।
यह गुर विजय ने बिकास को विकास ने धनुषटंकार को सिखाया था ।।
उसे बेहोश करके बंदर ड्रेस की तरफ लपका ।
यह देखकर उसे आश्चर्य अवश्य हुआ कि बन्दर जैसी जिस्म की भी कई ड्रेसे वहाँ मौजूद थी ।
बह क्या जानता था कि उसी के जिस्म के यानी बंदर जैसे जिस्म वाले करामाती जानवर यानी बर्लेन तुंगलामा के विशेष जानवर हैं, जिनके लिए यह ड्रेसं तेयार की गई थी । उसने इस विष्य पर सोचने में अधिक समय व्यर्थ नहीं किया ।
अत: तेजी, के साथ सूट के ऊपर ही बह लिबास पहनकर कक्ष से बाहर आया ।
उसके हाथ में खून से लिसा हुआ पियानो का तार अब भी था ।
उसने देखा-गैलरी मे सन्नाटा था ।।
उन्हीं दो सेनिको के जिस्म और गर्दन अलग पड़े थे -धनुषटंकार तेजी के साथ भागता हुआ गैलरी मे आगे बढ गया ।।
अब वह गैलरी के दोनों तरफ वने कक्षों के ऊपर पड़े नंबरों को पढता जा रहा था । उसे पचीस नंबर तक पहुचने मेँ कठिनता से पांच मिनट लगे ।
तब जबकि बह कक्ष के समीप पहुँचा ।।
अपने गुरु विकास की चीखें साफ़ सुनी ।
गुरु की चीखे उसके कानों में जैसै पिघले शीशे की भाति उतरती चली गई ।
धनुषटंकार बेहद खौफनाक नजर आने लगा ।
वह झट से लपककर कक्ष के सामने पहुंच गया ।।
द्वार खुला हुआ था ।
अंदर का दृश्य देखते ही धनुषटंकार का पागलपन चरम् सीमा तक पहुंच गया ।।
उसके गुरु के जिस्म का मांस उघडा पड़ा था । तीन उसके जिस्म जैसी आकृति के जानवर
उसके गुरु के जिस्म से गोश्त नोच-नोचकर खा ऱहे थे ।
विकास चीख रहा और भयानक शैतान कहकहा लगाते हुए विकास की तरफ बढ़ रहे थे । धघकती हुई भट्टियों पर भी घनुषटंकार की दृष्टि पड़ गई थी । धनुषटंकार जैसे सब समझ गया उसने तेजी के साथ पियानो का तार जेब में ठूंसा और धनुष और तीर निकाल लिया ।
अगले ही पल उसके धनुष से एक तीर सनसनाया ।। अजीब-सी चीख के साथ एक बर्लेन लुढ़क गया ।
सिगंही और तुंगलामा चौक कर पलट गए लेकिन देर हो चुकी थी ।
धचुषटंकार के जिस्म मे तो जैसे बिजंत्ती भरी हुई थी ।उसने बेखौफ़ कमरे में जंप लगा दी ।
वह सीधा तुंगलामा के चेहरे से टकराया ।।
सिगंही जैसा महारथी भी चकरा गया ।
तुंगलामा तो बौखलाकर धड़ाम से फर्श पर गिरा ।
धनुषटंकार ने पलक झपकते ही एकं बर्लेन को उठाया और धधकती इस्पात की भट्ठी में झोंक दिया ।
उफ-…बर्लेन का जिस्म एकदम धधक उठा ।
उसके कंठ से एक चीख निकल गई ।
तभी सिंगही ने स्वयं को संभालकर घनुषटंकार पर एक जंप लगा दी ।।
लेकिन धनुषटंकार तो आज़ जैसे किसी के कब्जे में आनेवाला ही नहीं था ।।
उसके जिस्म मे तो जैसे बिजली भर गई थी इतनी तेजी के साथ वह अपने स्थान से हटा कि सिंगही जैसा व्यक्ति भी झोंक के साथ फर्श पर जा गिरा।
धनुषटंकार ने फुर्ती के साथ झपटकर फर्श पर पड़ा हंटर उठा लिया । हंटर उसके गुरु विकास के खून से लथपथ था।
बस धनुष्टंकार बंदर न होकर जैसे विश्व का सबसे बडा खूंखार भेडिया बन गया ।।
सबसे पहला हंटर सड़ाक की आबाज के साथ बर्लेन के जिस्म के साथ लिपट गया । बर्लेन के कंठ से बडी अजीब-सी चीख निकली ।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
धनुषटंकार ने एंक झटका दिया । बर्लेन हवा में हटर के साथ उठा और हंटर की लपेट से निकलते ही वह भट्ठी मे जा गिरा ।।
तब तक सिगंही तुगलामा फुर्ती से खर्डे हो चुके थें ।
अभी वे संभल न पाए थे कि धनुषटंकार का हाथ सनसनाया और सडाक से तुगलामा के जिस्म मे हंटर के काटे धंस गये ।
तुगलामा चीख पडा । धनुषटंकार ने हंटर वापस खीचा तो तुगलामा के जिस्म से गोश्त के लोथड़े बाहर जा गिरे ।
विकास ने धनुषटंकार को देखा-आखें चमक उठी । बह चीख पडा ।
" इन्हें चीर फाड कर सुखा दे धनुषटंकार....... मार इन्हें, मार मेरे यार, खाल उधेड़ ले इनकी इन्होंने तेरे गुरु के साथ धोखा किया है । मार मेरे यार आज अपना हक अदा कर दे । अगर मां का दुध पीया है तो इनकी खाल नोच ले ।"
धनुषटंकार को जैसे जोश आ यया ।
इस बार उसका हंटर सिगंही के जिस्म से टकराया लेकिन सिगंही के हंटर लगते ही धनुषटंकार चकरा यया । उसको एक तीव्र बिजली यह झटका लगा । हंटर सहित उछलकर वह दूर जा गिरा ।
सिगंही ने एक जोरदार कहकहा लगाया, मानो धनुषटंकार वे बडी बेवकूंफी की हो । बह गुर्राया-" सिंगही को अगर तुम जैसे बंदर हंटर मारने लगे तो जी लिया सिगंही! बढ़ मेरी तरफ़ और चला हंटर! क्यों! घूर क्यो रहा है? अपने गुरु के साथ हुए धोखे का बदला नहीं लेगा !"
धंनुषटंकार संभलकर ठिठका । वह समझ गया कि सिंगही में जिस्म कंरेटयुक्त है । सिगंही कहकहे लगाता हुआ उसकी तरफ बढ रहा था ।।
तुंग फर्श पर एक तरफ़ पडा हुआ कराह रहा था ।
घनुषटंकार का दिमाग बडी तेजी से कार्य कर रहा था ।
अचानक उसने हंटर अपने पीछे फेक दिया और पलक झपकते ही धनुष निकालकर सिगंही की तरफ़ तान दिया ।
सिगंही ने पुन: एक जोरदार कहकहा लगाया ।
धनुषटकार ने तीर छोड़ दिया-लक्ष्य था सिगंही का मस्तिष्क । लेकिन…संगआर्ट का जन्मदाता सिगंही ।
जो इंसान गोली तक को धोखा देने का आर्ट निकाल सकता हो , वह भला इस तीर से मात खा जाता? बडी सफाई और तीव्रता के
साथ वह तीर से स्वयं को बचा गया ।
सनसनाता हुआ तीर इस्पात की दीवार से टकराकर शहीद हो गया । सिगंही अपने कहकहे के साथ उसकी तरफ़ बढ रहा था ।
… , बिकास यह सब देख रहा था परंतु., कुछ कर नहीं पा रहा था ।
कैसा विवश था वह? एकाएक वह चीखा ।
"डैशबोर्ड मे रेड बटन को दबाओ धनुषटंकार !"
सुनते ही धनुषटकार वायु में लहराया लेकिन अब सिंगही से पार पाना बड़ा मुश्किल था ।
उसने फुर्ती के साथ झपटकर हवा में लहराते धनुषटंकार के जिस्म पर एक घूंसा जमा दिया ।
धनुष्टंकार को पहले से अधिक तीव्र झटका लगा । घूंसे की शक्ति से बह एक कोने में जा गिरा और करेंट की शक्ति से वह तत्काल बेहोश हो गया । सिगंही ने एक बार उसे देखा और गुर्राका बोला----"कक्ष का दरवाजा बंद कर दो ।"
एक-दो हंटर में ही तुंग ठंडा पड़ गया था लेकिन सिंगही खडा हुआ गुर्रा रहा था ।
"लाल बटन दबाना चाहते थे बेटे, अब कक्ष का दरवाजा -तभी खुलेगा जब तुम दोनों लाश में बदल चुके होंगे । उस समय तक इस कक्ष में कोई प्रविष्ट नहीं हो सकेगा ।”
" गलत.....!" कक्ष में इस प्रकार की आवाज गूंजी जैसे फुल स्पीड पर चलता हुआ रेडियों अचानक खराब हो गया हो----" मै तो इस रास्ते से भी आ सकता हूं खूसट मियां?"
सिंगही और तुंगलामा इलेक्ट्रिक मानवों की तरह आवाज़ की तरफ धूम गए ।
यह देखकर सिंगही और तुंगलामा अवाक रह गए कि ये शब्द, कहता हुआ टुम्बकटू नाली के रास्ते कमरे में आ गया था । बिकास की आँखों मे टुम्बकटू को देखकर एक चमक आं गई । अगले ही पल टुम्बकटू सिंगही तुगलामा के सामने आ खडा हुआ । वह किसी गन्ने की भाति लहरा रहा था।
सिंगही उसे अजीब निगाहो से घूर रहा था ।
" ऐसे क्या घूर रहे हो प्यारे खूसट मियां? मेरे पास अलांदीन् का चिराग नहीं है ।"
"अब तुम भी यहां से जिंदा नहीं जा सकते !" टुम्बकटू को घूरता हुआ सिंगही खतरनाक स्वर में गुर्रा उठा ।
" प्यारे धर्म बाप ! सिंगही की गुर्राहट से लापरवाह टुम्बकटू विकस से बोला------" पूरे हेडक्वार्टर की बिजली को तीन आने किलों के हिसाब से बेचकर आया हू तभी यहां खडा हूं यानी जब बिजली नहीं तो इस कक्ष में करेंट कहां से होगा अब जरा तुम अपने जिस्म को कष्ट दो, यानी कि… !"
उसी पल सिंगही ने टुम्बकटू पर जंप लगा दी ।
"अमां ये क्या है बूढे मियां?" आवाज सिंगही के पीछे से आ रही थी----" भला इस तरह भी कही टुम्बकटू दी ग्रेट पर जंप लगार्नी चाहिए?"
सिंगही रिक्त फर्श से टकराया था । जंप तो उसने बडी फुर्ती से लगाई थी लेकिन इस छलावे जैसी फुर्ती वाले टुम्बकटू से भला कौन पार पाए!
सिंगही ने देखा-टुम्बकटू उसके पीछे लहराया था । उसी पल विकास भी उछलकर खडा हो गया । पीडा से वह कराह उठा लेकिन गज़ब का साहसी था विकास । संभलकर खडा हो गया ।
न केवल खडा हुआ बल्कि झपटकर फ़र्श से हंटर भी उठा लिया । इधर सिंगंही भी फुर्ती के साथ उछलकर खडा हो गया ।
"प्यारे धर्म बाप !" लहराता हुआ टुम्बकटू विकास से कह रहा था--“मैंने पहले ही था कि ये बूढा खूसट तेरी चटनी बनाकर हजम कर जाएगा और बंदर भी एक नंबर का हरामी है । पीछे--पीछे चला आया । कसम इस बूढे की, अगर मैं न आता तो यह गुरु-चेलों का मुरब्बा वना देता ।”
" मिस्टर कार्टून । " तुगलामा का बोल फूंटा ।
"तमीज से बोल-बे लुटिया चोर ।।" दुम्बकटू उसकी बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा-" हमारा नाम टुम्बकटू है । यार लोग कहते है कि हमारा नाम ऐसा लगता है जैसे हमारी प्यारी मम्मी का संगीत बज रहा हो ।"
तुगलामा न कुछ समझने की स्थिति में था, न समझा ।
"मिस्टर टुम्बकटू ।"सिगहीँ ने संयत स्वर में कहने की चेष्टा की ।
"बिल्कुल ठीक बुढे मियां ।" टुम्बकटू झूमता हुआ बोला----"हमारा नाम इसी तरह लिया जाता है ।"
“मैं आप लोगों का फैसला करना चाहता हूं ।" सिंगही क्रोध पर काबू पाने की चेष्टा करता हुआ बोला ।
"अब तुम नही खूसट मियां, फैसला हम करेगे ।" टुम्बकटू लापरवाही के साथ बोला--- "तुमने पहले ही फैसला करके हमारे धर्म बाप की बधिया उधेड़ दी है फैसला इसी कक्ष मे हो जाएगा । मेरे बूढे पूत । हमारे धर्म बाप को तुम मंगल-सम्राट घोषित कर चुके हो । तुम्हारी साजिश के बारे में तुम्हारे चमचे और मंगल ग्रह की जनता भी कुछ नहीं जानती । इसृसे हमारा रास्ता यूं आसान हो गया कि अब तुम पर काबू पाना है । तुम्हारे चमचों पर नहीं क्योंकि उनकी नजरो मे तो स्वयं तुमने ही हमारे घर्मं बाप को मंगल-सम्राट बनाया है । मगर असलियत यह थी कि तुमने इसे नकली सम्राट बनाया था-असली हम वना देगे ।"
सिंगही का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा ।
तब तक सिगंही तुगलामा फुर्ती से खर्डे हो चुके थें ।
अभी वे संभल न पाए थे कि धनुषटंकार का हाथ सनसनाया और सडाक से तुगलामा के जिस्म मे हंटर के काटे धंस गये ।
तुगलामा चीख पडा । धनुषटंकार ने हंटर वापस खीचा तो तुगलामा के जिस्म से गोश्त के लोथड़े बाहर जा गिरे ।
विकास ने धनुषटंकार को देखा-आखें चमक उठी । बह चीख पडा ।
" इन्हें चीर फाड कर सुखा दे धनुषटंकार....... मार इन्हें, मार मेरे यार, खाल उधेड़ ले इनकी इन्होंने तेरे गुरु के साथ धोखा किया है । मार मेरे यार आज अपना हक अदा कर दे । अगर मां का दुध पीया है तो इनकी खाल नोच ले ।"
धनुषटंकार को जैसे जोश आ यया ।
इस बार उसका हंटर सिगंही के जिस्म से टकराया लेकिन सिगंही के हंटर लगते ही धनुषटंकार चकरा यया । उसको एक तीव्र बिजली यह झटका लगा । हंटर सहित उछलकर वह दूर जा गिरा ।
सिगंही ने एक जोरदार कहकहा लगाया, मानो धनुषटंकार वे बडी बेवकूंफी की हो । बह गुर्राया-" सिंगही को अगर तुम जैसे बंदर हंटर मारने लगे तो जी लिया सिगंही! बढ़ मेरी तरफ़ और चला हंटर! क्यों! घूर क्यो रहा है? अपने गुरु के साथ हुए धोखे का बदला नहीं लेगा !"
धंनुषटंकार संभलकर ठिठका । वह समझ गया कि सिंगही में जिस्म कंरेटयुक्त है । सिगंही कहकहे लगाता हुआ उसकी तरफ बढ रहा था ।।
तुंग फर्श पर एक तरफ़ पडा हुआ कराह रहा था ।
घनुषटंकार का दिमाग बडी तेजी से कार्य कर रहा था ।
अचानक उसने हंटर अपने पीछे फेक दिया और पलक झपकते ही धनुष निकालकर सिगंही की तरफ़ तान दिया ।
सिगंही ने पुन: एक जोरदार कहकहा लगाया ।
धनुषटकार ने तीर छोड़ दिया-लक्ष्य था सिगंही का मस्तिष्क । लेकिन…संगआर्ट का जन्मदाता सिगंही ।
जो इंसान गोली तक को धोखा देने का आर्ट निकाल सकता हो , वह भला इस तीर से मात खा जाता? बडी सफाई और तीव्रता के
साथ वह तीर से स्वयं को बचा गया ।
सनसनाता हुआ तीर इस्पात की दीवार से टकराकर शहीद हो गया । सिगंही अपने कहकहे के साथ उसकी तरफ़ बढ रहा था ।
… , बिकास यह सब देख रहा था परंतु., कुछ कर नहीं पा रहा था ।
कैसा विवश था वह? एकाएक वह चीखा ।
"डैशबोर्ड मे रेड बटन को दबाओ धनुषटंकार !"
सुनते ही धनुषटकार वायु में लहराया लेकिन अब सिंगही से पार पाना बड़ा मुश्किल था ।
उसने फुर्ती के साथ झपटकर हवा में लहराते धनुषटंकार के जिस्म पर एक घूंसा जमा दिया ।
धनुष्टंकार को पहले से अधिक तीव्र झटका लगा । घूंसे की शक्ति से बह एक कोने में जा गिरा और करेंट की शक्ति से वह तत्काल बेहोश हो गया । सिगंही ने एक बार उसे देखा और गुर्राका बोला----"कक्ष का दरवाजा बंद कर दो ।"
एक-दो हंटर में ही तुंग ठंडा पड़ गया था लेकिन सिंगही खडा हुआ गुर्रा रहा था ।
"लाल बटन दबाना चाहते थे बेटे, अब कक्ष का दरवाजा -तभी खुलेगा जब तुम दोनों लाश में बदल चुके होंगे । उस समय तक इस कक्ष में कोई प्रविष्ट नहीं हो सकेगा ।”
" गलत.....!" कक्ष में इस प्रकार की आवाज गूंजी जैसे फुल स्पीड पर चलता हुआ रेडियों अचानक खराब हो गया हो----" मै तो इस रास्ते से भी आ सकता हूं खूसट मियां?"
सिंगही और तुंगलामा इलेक्ट्रिक मानवों की तरह आवाज़ की तरफ धूम गए ।
यह देखकर सिंगही और तुंगलामा अवाक रह गए कि ये शब्द, कहता हुआ टुम्बकटू नाली के रास्ते कमरे में आ गया था । बिकास की आँखों मे टुम्बकटू को देखकर एक चमक आं गई । अगले ही पल टुम्बकटू सिंगही तुगलामा के सामने आ खडा हुआ । वह किसी गन्ने की भाति लहरा रहा था।
सिंगही उसे अजीब निगाहो से घूर रहा था ।
" ऐसे क्या घूर रहे हो प्यारे खूसट मियां? मेरे पास अलांदीन् का चिराग नहीं है ।"
"अब तुम भी यहां से जिंदा नहीं जा सकते !" टुम्बकटू को घूरता हुआ सिंगही खतरनाक स्वर में गुर्रा उठा ।
" प्यारे धर्म बाप ! सिंगही की गुर्राहट से लापरवाह टुम्बकटू विकस से बोला------" पूरे हेडक्वार्टर की बिजली को तीन आने किलों के हिसाब से बेचकर आया हू तभी यहां खडा हूं यानी जब बिजली नहीं तो इस कक्ष में करेंट कहां से होगा अब जरा तुम अपने जिस्म को कष्ट दो, यानी कि… !"
उसी पल सिंगही ने टुम्बकटू पर जंप लगा दी ।
"अमां ये क्या है बूढे मियां?" आवाज सिंगही के पीछे से आ रही थी----" भला इस तरह भी कही टुम्बकटू दी ग्रेट पर जंप लगार्नी चाहिए?"
सिंगही रिक्त फर्श से टकराया था । जंप तो उसने बडी फुर्ती से लगाई थी लेकिन इस छलावे जैसी फुर्ती वाले टुम्बकटू से भला कौन पार पाए!
सिंगही ने देखा-टुम्बकटू उसके पीछे लहराया था । उसी पल विकास भी उछलकर खडा हो गया । पीडा से वह कराह उठा लेकिन गज़ब का साहसी था विकास । संभलकर खडा हो गया ।
न केवल खडा हुआ बल्कि झपटकर फ़र्श से हंटर भी उठा लिया । इधर सिंगंही भी फुर्ती के साथ उछलकर खडा हो गया ।
"प्यारे धर्म बाप !" लहराता हुआ टुम्बकटू विकास से कह रहा था--“मैंने पहले ही था कि ये बूढा खूसट तेरी चटनी बनाकर हजम कर जाएगा और बंदर भी एक नंबर का हरामी है । पीछे--पीछे चला आया । कसम इस बूढे की, अगर मैं न आता तो यह गुरु-चेलों का मुरब्बा वना देता ।”
" मिस्टर कार्टून । " तुगलामा का बोल फूंटा ।
"तमीज से बोल-बे लुटिया चोर ।।" दुम्बकटू उसकी बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा-" हमारा नाम टुम्बकटू है । यार लोग कहते है कि हमारा नाम ऐसा लगता है जैसे हमारी प्यारी मम्मी का संगीत बज रहा हो ।"
तुगलामा न कुछ समझने की स्थिति में था, न समझा ।
"मिस्टर टुम्बकटू ।"सिगहीँ ने संयत स्वर में कहने की चेष्टा की ।
"बिल्कुल ठीक बुढे मियां ।" टुम्बकटू झूमता हुआ बोला----"हमारा नाम इसी तरह लिया जाता है ।"
“मैं आप लोगों का फैसला करना चाहता हूं ।" सिंगही क्रोध पर काबू पाने की चेष्टा करता हुआ बोला ।
"अब तुम नही खूसट मियां, फैसला हम करेगे ।" टुम्बकटू लापरवाही के साथ बोला--- "तुमने पहले ही फैसला करके हमारे धर्म बाप की बधिया उधेड़ दी है फैसला इसी कक्ष मे हो जाएगा । मेरे बूढे पूत । हमारे धर्म बाप को तुम मंगल-सम्राट घोषित कर चुके हो । तुम्हारी साजिश के बारे में तुम्हारे चमचे और मंगल ग्रह की जनता भी कुछ नहीं जानती । इसृसे हमारा रास्ता यूं आसान हो गया कि अब तुम पर काबू पाना है । तुम्हारे चमचों पर नहीं क्योंकि उनकी नजरो मे तो स्वयं तुमने ही हमारे घर्मं बाप को मंगल-सम्राट बनाया है । मगर असलियत यह थी कि तुमने इसे नकली सम्राट बनाया था-असली हम वना देगे ।"
सिंगही का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा ।
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