बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी complete

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Kamini
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

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kunal
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

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धनुषटंकार पूजा को एक विशेष कक्ष में ले गया । कक्ष में पहुंचकर उसने दीवार पर लगा बटन दवा दिया । बटन दबाते ही फर्श पर थोड़ा-सा हिस्सा अपने स्थान से हटता चला गया । वहां लोहे की सीढ़ियाँ नजर आने लगी ।


पहले धनुषटंकार और उसके पीछे पूजा उतरते चले गए । सीढियां एक लंबी सी गेलरी मे जाकर समाप्त हुई ।

वे दोनो चुपचाप गैलरी मे बढ़ते रहे । गैलरी के दोनो और कुछ कक्ष वने हुए थे । धनुषटंकार ने अपने सूट की जेब में एक चाबी निकाली और कक्ष नंबर पांच का ताला खोलकर उसमें प्रविष्ट हो गया । वह कक्ष खाली था । धनुष्टंकार ने कोट की ऊपरी जेब से एक अजीब सी आकृति की चाबी और निकाली तथा फर्श पर एक कोने में बने नन्हें-से छिद्र में लगातार तीन बार दाई तरफ घुमाई । उसके घूमाते ही कक्ष के सामने की दीवार अपने स्थान से हट गई । पूजा को लेकर वह उसी में प्रविष्ट हो गया और उस कक्ष में पहुचकर धनुषटंकार ने वही चाबी बाईं ओर एक दीवारं के छेद में फंसाकर पुन: उसी प्रकार तीन बार घुमाई । इस वार उस कक्ष का फर्श हट गया एक बार उन्हें पुन: लोहे की सीढियां तयं करनी पड़ी । इस बार एक अन्य गैलरी में पहुच गए ।


यह गैलरी भी एकदम सूनी पडी थी ।



"बड़े लंबे तहखानों में कैद का रखा है ?" पूजा ने कहा ।



उत्तर में धनुषटंकार ने डायरी पर लिखा----" पूछो मत पूजा डार्लिग, एक-से-एक धुरंधर इंसान यहाँ कैद है । अगर कैद इतनी सुरक्षित न होती तो सिगंही जैसा आदमी भला अभी तक कैसे ठहर जाता?"


इस गैलरी के दोनों और कक्ष बने हुए थे लेकिन ये कक्ष अन्य कक्षों की अपेक्षा अधिक मजबूत थे----क्योंकि फौलाद के बने हुए थे ।


कक्ष के समीप पहुँचकर धनुष्टंकार ने अपनी जुराब से एक विशेष चाबी निकाली और कक्ष के फौलादी द्वार में वने एक छिद्र में डालकर पूरे पांच बार झटका दिया, तब वह भारी दरवाजा खुला ।

पूजा और धनुष्टंकार ने देखा ---- ठीक सामने
विजय बेहद मोटी जंजीरों मे कैद था । उसे फौलादी फर्श पर जंजीरों मे लिटाया गया था ।

प्रत्येक जंजीर का फौलादी सिरा कमरे के फ़र्श में गड़े मजबूत कुंदों तक गया था । बिजय केवल करवट इत्यादि लेने के लिए हिल सकता था ।


पूजा ने देखा…कमरा अंदर से ठीक किसी टंकी की भाति गोल था । दीवारे एकदम चमकदार थी, मानों स्टील की वनी हो । किसी भी दीवार में सरलता से अपना मुंह देखा जा सकता था ।


खोलने से पहले घनुषटंकार ने रिबॉंल्वर निकालकर पूजा की तरफ़ तान दिया था ताकि विजय को पूरी तरह दिखा सके कि उसे कैद करके लाया गया था ।



जंजीरों में जकड़े विजय ने करवट ली । उसकी ओर देखा एकदम बोला । "


" आओ ---- आओं , बंदर मियाँ क्या हाल है?"


'बंदर' शब्द सुनते ही धनुषटंकार ने बिजय को इस तरह घूरा जैसे खा जाएगा । लेकिन कदाचित इस बात का लिहाज कर गया कि विजय उसका स्वामी था वरना बंदर कहने वाले की कनपटी वह गर्म कर देता था । एक मिनट तक वह विजय घूरता रहा,


फिर रिवाल्बॅर के संकेत से उसने पूजा को फर्श पर कुछ कडो के बीच लेटने का संकेत किया ।


कडो में जंजीरों के टुकडे फसे हुए थे । पूजा उन कडो के बीच लेट गई ।


एक बटन दबाने से ये जंजीरे कडो के बीच पड़े इंसान को अपने में जकंड़ लेती थी ।


धनुषटंकार वह बटन दबाने के लिए जैसे ही मुड़ा उसी पल एक कमाल हुआ... पूजा ने जंजीर का एक दुकड़ा पूरी शक्ति के साथ विद्युत गति से घुमाकर धनुषटंकार के जिस्म पर मारा ।


पूजां से इस प्रकार की उम्मीद तो स्वप्न में भी नहीं थी, क्दाचित्त इसीलिए वह मात खा गया ।


झन्नाती हुई जंजीर उसके जिस्म पर पडी ।


उसके कंठ सेर एक कराहट सी निक्ली और दूसरी ओर पलट गया ।


रिवॉल्वर उसके हाथ से छूटकर कक्ष के फर्श पर गिर गया । पूजा के जिस्म में जैसे बिजंली भरं गई थी ।


बडी तेजी के साथ उसने जंप मारकर धनुषटंकार को दबोच लिया ।


बेचारा धनुषटंकार । उसे संभलने का अवसर भी नही मिला ।


पूजा तो इस समय जैसे भयानक शातिंर हो उठी थी ।


उसने धनुषटंकार को सिंरसे ऊंचा उठाया और पूरी शक्ति से फर्श पर दे मारा ।


धनुषटंकार के कंठ से एक चीख निकल गई । और इस प्रकार--पूजा ने एक बार भी तो धनुषटंकार को संभलने का अवसर नहीं दिया ।



उसने धनुषटंकार इतनी मार लगाई कि अंत में वह बेहोश होने के लिए बाध्य हो गया ।


जंजीरों में ज़कड़ा हुआ व्रिजय चमत्कृत सा यह सव कुछ देख रहा था।


धनुषटंकार से छुटकारा पाकर पूजा ने उसकी जेबों की तलांशी लेनी शुरू की ।



" वाह! ! पूजा देवी!" विजय वहां पडा-पड़ा प्रशंसनीय स्वर से बोला-“यानी कि क्या पैंतरे दिखाए हैं! जी चाहता है एक गर्मागर्म झकझकी सुना दु !" विजय अपने ही मे था !


पूजा तेजी के साथ उसकी तरफ़ घूमी, उसकी उन्हें लाल हो रही थी ।


चेहरे पर घृणात्मक भाव वे । वह विजय को बड़ी खूंखार निगाहों से घूरती हुई गुर्राई-“अभी तुमने देखा ही क्या है, कमाल तो अब देखना ।"



उसका इतना कहना था कि विजय के मस्तिष्क को एक तीव्र झटका लगा । बरबस ही उसके मुह से निकला--" अरे, .मम्मी!"


“तुमने ठीक पहचाना ।" पूजा बोली, जो वास्तव में जैक्सन ही थी-"पूजा का मेकअप करने अतिरिक्त मेरे पास कोई चारा नहीं था । मेकअप की तारीफ तुम्हें करनी होगी क्योंकि वो खतरनाक लडका भी नहीं पहचान सका ।”


" अजी लड़के साले को गोली मारो!" विजय बोला----" हम यानी उस लड़के के गुरु नहीं पहनाने । जब तुमने कमाल दिखाने शुरू किए हम यही सोचते रहे कि पूजा जैसी मासूम लड़की इतने खतरनाक खेलु कैसे जान गई? कसम खाल लंगोटे चाले की, हम तो तुम्हें उस समय पहचाने जब तुम हम पर भी गुर्राकर आई । उस समय तुम्हारी प्यारी-प्यारी आंखों ने हमें बता दिया कि तुम पूजा नहीं हमारी मम्मी हो !"

...................
कहने के एकदम बाद ही बडी अदा के साथ विजय ने बाई आंख दबा दी ।



जैक्सन के होंठों पर एक प्यारी मुस्कान नृत्य कर उठी, फिर बोली---" बोलो विजय, विकास का तख्ता पलटने में मेरा साथ दोगे?” यह प्रश्न करते समय जैक्सन ने बड़े ध्यान से विजय का चेहरा पढा ।


"अरे क्या बात करती हो मम्मी?" विजय चहका…"तख्ता नहीं, हम तो उसे ही पलटने के मूड में है । तुम हमे वहाँ तक ले चलो । वैसे बाई दी वे, तुम्हें लड़के के अपराधी बनने में क्या दिक्कत है? वह तुम्हारी मैंजोरिटी में आ रहा से तुम खुद ही उसे यहा तक लाई थी?" विजय ने प्रश्न किया ।।


" मै कितनी भी बड्री अपराधी सही मिस्टर विजय!" जैक्सन ने सफेद झूठ बोला-----" लेकिन न जाने क्यों इस मासूम से प्या र सा होगया है । वह तो अपना जीवनं बर्बाद करने पर तुला हुआ है , लेकिन मैं कभी ऐसा नहीं चाह सकती ।"



" वेऱी गुड मम्मी !" विजय पुन: चहका'-"यानी कि तुम्हारे विचार हमारे विचारों की केटली में आ मिले हैं ।"


" अब जैसा भी तुम समझे !”


"तो फिर जल्दी हमे आजाद करो ।"


" अलफांसे इत्यादि कहां हैं?" जैक्सन ने प्रश्न किया ।


" सब यहीं कैद किए गए हैं ।" विजय ने कहा…“ज़ल्दी से सामने वाली दीवार पर लगा नीचे से तीसरा बटन दबा दो, इन जजंरों का संबंध उसी से है । बटन दबाते ही हम आजाद हो जाएंगे ।"


जैक्सन ने वेसा ही किया और विजय आजाद होगया ।
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kunal
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धनुषटंकार की तलशी लेकर उसकी जेब से समी चाबियां और उसका करामाती प्लास्टिक का धनुष तीर और माउथआर्गन निकाल लिया था ।


“सभी कक्षों के ताले इस चाबी से खुल जाएंगे ।" विजय ने उस चाबी की ओर संकेत करके कहा जिससे धनुषटकारं ने जेक्सन के सामने इस कक्ष का लॉक खोला था ।

धनुष्टंकार का धनुष विजय ने संभाला। रिवॉल्वर जैक्सन ने और कक्ष से बाहर गैलरी में आ गए । उसके बाद जैसे कोई कठिनाई रह ही नही गई थी ।


अशरफ, अलफांसे,सुभ्रांत और उसके सहयोगिर्यों को आजाद कर लिया गया ।


तब विजय ने कहा । …… "क्या उस चमार चोटी के चचा को भी आजाद करा लेना चाहिए?"



" मेरा बिचार यह है कि उसे यहीँ छोड़ दो !" जैक्सन ने कहा- "अब विकास का तख्ता पलटने के लिए-हम लोग ही काफी है क्योंकि उससे यह खतरा है कि वह विकास के बाद फिर मंगल-सम्राट बनने का प्रयास न करे और इस स्थिति में वह संपूर्ण विश्व के लिए खतरा वन सकता है ।"


" मै तुम्हारे इस विचार से सहमत नहीं हूं मम्मी ।" विजय ने ने जैक्सन की बात इसलिए काटीं क्योकि उसके दिमाग में आ गया था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जैक्सन ही मगंल सम्राट बनना चाहती हो! इस सुरक्षा के लिए सिगंही को आजाद करना उचित ही रहेगा । यही सोचकर यह बोला-----" यह नहीं सोचना चाहिए कि विकास का तख्ता उलटने के लिए हम काफी हैं क्योंकि यहां उसकी शक्तियां बहुत अधिक बढ गईं । सिंयही की शक्ति भी हमारे साथ हो जाए तो क्या बुराई है और जहां तक सिगंही के मंगल सम्राट बनने का भय है, उसका इलाज यह है कि हम यह हैडक्वार्टर उड़ा देगे, फिर न रहेगा बास न बजेगी बांसुरी ।"



"तुम्हारा क्या विचार है?" जैक्सन ने अंलफांसे से प्रश्न था ।


अलफासे भी विजय के प्वाइंट कौ समझ गया था इसलिए बोला…'बिज़य की बात उचित है ।"


उसके बाद सबकी राय विजय से मिल गई । जिस कक्ष में सिगंही कैद था उसे खोला गया ।


सिगंही ने उन सबको कक्ष में प्रविष्ट होते देखा और अभी बोलना चाहता था कि पहले बिजय बोल पडा ।

" कहो प्यारे वनस्पति चचा! डालडा के डिब्बे बने हुए हो ।"


"वेटे,…बड़े मजे में हूं ।" मुस्कराकर सिंयही बोला…“बड़े चहक रहे हो ।"


" चहकने की तो बात है चचा !" विजय बोला------" जरा से लड़के ने बड़े बड़े धुरंधरों की मिट्टी पलीत कर दी है ।"



"उस अकेले की कुछ बिसात नहीं है बेटे ।" सिगंही ने कहा---"लेकिन समझना पडेगा कि उनके साथ जो कार्टून ट्राइप जानवरं और बंदर है बड़े करामाती हैं । वह जो कुछ भी कर . रहा है, उन्हीं के बूते पर! "



" चचा ! इतना असहाय तो तुम्हें मेने कभी नहीँ देखा ।" विजय ने उसे चिढाने वाले स्वर में बोला-------"इतने दिन से यहां पड़े हो तुम कुछ भी नहीं कर सके?"


“ये कैद मैने ही बनवाई थी बेटे! बैसे मैंने सुना है, आप लोग भी काफी दिनों से यहां आराम फरमा रहे है !" सिंगही के होठों पर चिंर-परिचित मुस्कान थी ।


" चचा ! छोडो इन बातो को । अब. ये बताओं कि तुम्हारे साथ क्या किया जाए?"


“छोड्रो भी विजय! " काफी देर से शांत ख़ड़ा अलफांसे बोला------" समय बहुत कीमती है । अर्गर विकास को मालूम है गया तो सारा प्लान चौपट हो जाएगा ।"


विजय को अलफांसे की बात् उचित ही लगी । अतः सिगंही को भी जाजाद कर दिया गया । .

उसे भी सारा प्लान समझा दिया गया । अंत में विजय सभी से संबोधित होकर बोला ।



"'एक बात सब कान खोलकर सुन लो, वह यह कि अगर किसी ने लड़के की जान लेने की कोशिश की तो मैं सबसे पहले उस जान लेने वाले का बंटाधार कर दुंगा ।"


उसके इस वाक्य पर सबने एक-दूसरे को देखा, फिर जैक्सन बोली--" कया मतलब? तुम तो यह तक कह चुके हो कि तुम अपने हाथ से विकास की हत्या करोगे ?"

" विकास की नहीं मम्मी, बल्कि अपराधी बिकास की ।" विजय ने कहा'--"लेकिन अगर अपराधी विकास की हत्या नहीं कर सकूंगा, तब विकस की हत्या करनी आवश्यक हो जाएंगी ।



“मैं तुम्हारी इस गोलमोल बात का मतलब नहीं समझ. पाया?" अलफांसे ने कहा ।



" मुंग की दाल में भीमसेनी काजल मिलाकर खाया करो लूमड़ भाई, तब मेरी बात आसानी से तुम्हारी समझदानी-में दाखिल हो जाया कृरेगी ।" विजय बोला-"मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि तुम, जानते हो कि लड़का बार बार ये कह-रहा है कि अपराधी बनने के बाद भी वह भारत लौटेगा तो भी दुनिया उसका कुछ नहीं बिगाड सकेगी अब जरा बुद्धि के पट खेलकर ये सोचो कि वो हमारा चेला है । कोई भी बात तथ्यों के साथ कहता है । संभव है वास्तव में उसके पास कोई ऐसा प्वाइंट हो. .और हम सबका उद्देश्य केवल यही है कि विकास वही बन जाए जो यह पहले था । अगर यह वहीँ बनता है तो ठीक है और अगर वह अपनी जिद पर अड्रा रहता है तो उसका अंत मेरे हाथ से निश्चित है !"


विजय की बात भली प्रकार सब समझ गए ।



उसके बाद बिकास के विरुद्ध इन लोगों का यह ग्रुप चल पड़ा ।


सारा कार्य एक योजना के अंतर्गत होना था ।
...............................
मंगल के सम्राट के रूप में विकास सिंहासन पर, विराजमान था ।


टुम्बकटू उसके दाईं ओर खड़ा अपनी अजीबो-गरीब सिगरेट में कश लगा रहा था ।


दरबार पूरी तरह भरा हुआ था ।


बीचो बीच कुछ कुर्सियों पर बंदी के रूप मे विश्वभर के जासूस बैठे थे । उनके चारों तरफ सशस्त्र लोग उल्टे खड़े हुए थे । जब से मंगल की धरती पर कदम रखा था, तब से उन्हें कुछ भी करने का लेशमात्र भी अवसर नही मिला था ।


मंगल की धरती पर कदम रखते ही उन्हें टुम्बकटू और जाम्बू के साथियों ने न केवल कैद कर लिया था बल्कि उनके सभी शस्त्र भी अपने कब्जे में कर लिए थे ।


दरबार मे उपस्थित अन्य लोगों के साथ साथ विश्व के जासूसों की दृष्टि मी विकास पर जमी हुई थी ।



माइक सोच रहा था यह 'ज़रा-सा लड़का कहां-से-कहाँ पहुंच गया?

ग्रीफित के दिमाग में था कि लडका जो कुछ कर रहा है वह ठीक नहीं कर रहा है ।

चंगेज खा तो विकासं को सामने देखकर भी यह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि यहीँ वह मासूम लडका है जिसने पूरे अमेरिका की नाक मे दम कर दिया है ।

अख्तर, हैबलकर और फांगसांग के दिलों में विकास के प्रति ईष्यों हो रही थी ।


रहमान न जाने क्यों विकास से सहानुभूति रखता था ।।


इंजलिग और क्लार्क रॉबर्ट तो विकास के सौंदर्य पर मुग्ध थे ।


ब्लेक ब्वाॅय सोच रहा था कि आखिर इस लड़के को विश्वभर के भेड्रिए-रूपी जासूसों से कैसे बचाया जा सकता है, साथ ही उसका दिमाग ठिकाने कैसे लाया जा सकत्ता है?



और बागरोफ ।।


वो बागारोफ ही क्या जो एक पल भी चुप रह जाए. जब से वह इस दरबार में विकास के सामने आया था, एक लाख उनहत्तर हजार गालियां सुना चुका था और बराबर चालू था ।



" बेटा फूकनी के! एक बात कान खोलकर सुन ले या तो ये मार-काट करनी बंद कर दे अन्यथा हम तेरा मुरब्बा वना देंगे ।"



--"पहले भी कह चुका हू ग्रांड अब्बा कि मेरे देश से सी.आई.ए का जाल हटवा दो, मान जाऊंगा ।"


“वह बाद में सोचने की बात है, ऊंटनी की औलाद ।" बागारोफ जैसे एकदम गर्म हो गया------“अगर नहीं माना तो ये समझ ले कि हम तुझे मंगल से उठाकर धरती पर फेंक देगे ।"


कुछ देर तक उनके बीच ऊटपटांग बाते होती रही, फिर अचानक विकास ने उनसे ध्यान हटाकर टुम्बकटू से कहा ।



"लंबू अंकल! धनुषटंकार अभी तक नहीं आया ?"


"आता ही होगा बापूजान !" टुम्बकटू ने धीरे से लहराकर कहा ।

" आप जरा देखो लंबू अंकल !" विकास ने कहा---" कहीँ कोई गडबडी तो नहीं है?”



"अजी गडबडी करने वाले की टांगे न तोड़ दूगां ।" टुम्बकटू ने अपने पतले-दुबले जिस्म को फुलाने की चेष्टा कंरत्ते हुए कहा--- “अभी देखकर आता हू कि क्या राग है । बैसे बापूजान स्वन सुन्दरी नजर नहीं आ रही?"



“अपने कक्ष में होगी ।"


"कहीँ वो किसी तरह की गड़बड्री न कर दे" । टुम्बकटू ने कहा……"सबसे पहले उसी को देखता हूं।" कहकर टुम्बकटू वहां से चला गया ।



तभी बिकास ने एक नजर सारे दरबार पर डाली प्रभावशाली स्वर में बोला----दरबार की कार्यवतम्ही भी शुरू की जाए !"


तभी जम्बूरा अपने हाथों पर चलता हुआ थोड़ा आगे आकर आदर के साथ बोला-----“सबसे पहले आज दरबार में मैँ अपने और अपने कुछ साथियों की एक प्रार्थना महामहिम के सामने रखना चाहता हू ।"


"बोलो !" विकास ने कहा…“ उचित होने पर मानी जाएगी !"


“हम लोग महामहिम सिगंही के दर्शन करना चाहते है ।"


“जाम्बूरा !" विकास खतरनाक स्वर में गुर्रा उठा-----" ये वेवकूफी की प्रार्थना करने का क्या मतलब? महान सिगही की ओर से पहले ही घोषणा की जा चुकी है कि वे किसी नइं ईजाद में व्यस्त है ।



"हम जानते हैं महामहिम! " जम्बूरा ने उसी आदर के साथ कहा----" लेकिन हम क्षणमात्र के लिए उनके दर्शन करना चाहते है !"


" आखिर ये जिद क्यों?” गुर्राया बिकास-------" तुम जानते हो कि दरबार में जिद की सजा क्या?"


अभी जम्बूरा कुछ कहना ही चाहता था कि अचानक दरबार में टुम्बकटू की आवाज गूंजी ।

"ठहरो विकास । आज़ दरबार विसर्जित कर दो ।"


"क्यो ?” कहते हुए विकास की निगाह दरबार के द्वार की ओर उठ गई ।



दरवाजे पर दृष्टि पढ़ते ही विकास बुरी तरह सिंहासन से उछल पड़ा । उसकी आखें वहीं नीची होकर रह गई ।


वहाँ टुम्बकटू खड़ा था, उसके साथ पूजा भी थी । पूजा को यहा देखकर ही वह बुरी तरह उछल पड़ा था ।।
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

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पूजा की हालत भी पूरी तरह अस्वस्थ थी । वह बुरी तरह रो रही थी । अचानक ही मुह से निकला------" क्या हुआ पूजा, धनुषटंकार कहा गया तुम्हारे कपडे ? कपडे क्यों बदले ?"

"ये समय बातों मे खोने का नहीं हैं विकास! " टुम्बकटू तेजी के साथ बोला----"घपला हो चुका है । समय बहुत कम हैं । जैक्सन पूजा के मेकअप में तुम्हारा पास आई थी ।"


…"क्या......!” विकास चिहुक उठा---------"क्या बक रहे हो तुम ?"



" ये क्या घपला है महामहिम !" जान्बूरा के स्वर मे आदरात्मक भाव एकदम गायब हों गया… “महामहिम सिगंही कहां है ? "


" बको मत ।" पागल-सा होकर विकास दहाड़ उठा ।


“अब यहां तुम्हारे आदेश नहीं चलेगे बेटे!" अचानक वहां सिगंही की अन्दाज गुजीं----"अब तुम जान्बूरा को चुप नहीं र्करा सकते । एक बार फिर पासा पलट चुका है ।"


सबसे बूरी तरह चौका विकास ।


सबने इधर-उधर देखा ।


सिंगही कहीं भी नजर नहीं आया ।


विकास के दिमाग में यह बात तेजी से र्कोंध गई कि बड़े बड़े शातिर जो उसकी कैद में थे आजाद हो गए स्थिति उसके हाथों से निकल गई है ।


" जाम्बूरा! जैक्सन ने जो तुमसे कहा था, बह एकदम ठीक है ।" सिगंही की आवाज गुजीं--------" यह तुम्हारा दुश्मन है !"


सारे दरबार में जैसे सनसनी-सी फैल गई ।



एक बार को तो बिकास का दिमाग कुंठित होकर रह गया ।

उसकी समझ में नहीं आया कि इस बिगडी हुई परिस्थिति में वह क्या करे? लेकिन शीघ्र ही संभलकर चीखा ।



“जाम्बू वक्त जा गया है…सिंगही के आदमियों को खाक में मिला दो ।”


-"टकराव से कोई फायदा नहीं विकास !" दरबार के एक अन्य द्वार से अंदर प्रविष्ट होता हुआ सिगंही गर्जा---- “अब तुम कुछ नहीँ कर सकोगे। तुम्हारे विजय और अंलफासे जैसे गुरु तुम्हारे साथ बगावत कर चुके ।"


सिगंही के हाथ में एक टामीगन दबी हुईं थी ।


पहले द्वार पर टुम्बकटू और पुजा खड़े हुए थे ।


पूजा बेचारी तो मासूम-स्री खडी सिसक रही थी जबकि टुम्बकटू का दिमाग तेजी से काम कर रहा था । अभी वह कुछ करना ही चाहता था कि तभी एक साथ दो टामीगनों की नाले उसके जिस्म से चिपक गई और एक रस्सी'का फंदा उसकी सिगरेट जैसी पतली गर्दन मे जा फसां और पीछे से गुर्राहट उभरी ।।


" …अगर चालाकी दिखाई नमूने जिस्म छलनी कर दूंगा ।" यह गुर्राहट निश्चित रूप से अलफासे की थी । उसके साथ दूसरी टामीगन लिए अशरफ खड़ा था ।


" अगर जरा भी कोई हरकत की बेटे तो समझ तो कि टामीगन की गोलियां रहम नाम की किसी वस्तु को नहीं जानती ।"



"बिकासा जाम्बू और उसके अन्य साथियों से कह दो कि आत्मसमर्पण कर दें ।" सिगंही भयानक ढंग से गुर्राया-" कोईं शक्ति अब तुम्हें नहीं बचा सकती... !"




अभी सिंगही अपनी बात पूरी तरह कह भी नहीँ पायां था कि न जाने कहां से जंप मारकर घनुषटंकार सीधा सिंगही के टानीगन वाले हाथ पर गिरा । सिगही को स्वप्न में भी यह उम्मीद नहीं थी फि क्दाचित इसीलिए वह मात खा गया । टामीगन उसके हाथ से निकल गई ।



"बिकास !" टुम्बकटू चौख पड़ा- “अमेरिका को उडा दो ।"

बस उस एक पल मे हाॅल मे अनेक कोनो पर भिन्न भिन्न घटनाएँ हुई ।


इधर टुम्बकटू का जिस्म इस लपका कि अशरफ और अलफासे समझ भी ना सके कि छलावे जैसी फुर्ती वाला टुम्बकटू कहां गायब हो गया । उसी पल विकास ने सिहांसन से नीचे जंप लगा दी । उसका रूख उस कक्ष की ओर था जहां पर विनाशकारी मशीन रखी थी । उस समय विकास पर जैसे खून सवार था ।।



इधर बागरोफ एक गाली का उचारण करता हुआ जाम्बूरा के उपर जा गिरा ।


माइक किसी अन्य मंगल मानब से भिड़ गया । रहमान ने भी अपना शिकार थाम लिया । चंगेज खां अभी मूखों की भांति खडा ही था कि उल्टे मानव की एक जोरदार लात उसके जबड़े पर पडी चीख के बीच एक भद्दी-सी गाली निकालता हुआ, वह किसी अन्य उल्टे मानव के हाथ लग गया।


क्लार्क रोंबर्ट और क्विजलिंग भी भिड़ चुके थे ।



धनुषटंकार के हाथ लगा फांगसांग । बंदर पर तो खून स्वर था । फांगसांग के बाल पकडे और उसे पूरे हालॅ मे खिचेडते हुए अःक जोरदार घक्का दिया ।


मजे की बात यह कि फांगसांग सीधा चंगेज खां के ऊपर आ गिरा । चंगेज खां ने उसे लगे हाथों लपक लिया ।

धनुषटंकार ने अपना दूसरा शिकार संभाल लिया ।


....... इधर टुम्बकटू तो पागल हो गंया था ।

… जो भी उसके समीप आता, बह एक चाटें में उसका भेजा फाड देता ।


वह बराबर सिगंही की तरफ़ बढ रहा था जो खुद अनेक जासूसों से जूझ रहा था ।


अलफांसे और अशरफ़ भी एक साथ कई उल्ले मानवो से भिड़े हुए थे.



हाँल में एक हुड़दंग था---भयानक हुडदंग।।


मार-काट, चीख-पुकार, उठा-पटक का बाजार गर्म था । किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन?

..........................

उल्टे मानवों में भी दो दल थे-----एक जाम्बू का और दूसरा जाम्बूरा का ।


हर पल जाम्बू का यही प्रयास थे कि किसी तरह वह रास्ता साफ करके सिगंही तक पहुंच जाए ताकि सिगंही से अपने भाई की हत्या का बदला ले सके ।



उल्टे लोगों के बिचित्र हथियार भी चल रहे थे ।


पूरे हालॅ मे युद्ध स्थल का दृष्य उपस्थित था ।


लेकिन .... लेकिन असल मुजरिम हाॅल से गायब था ।


विकास ।।


विकास के साथ पूजा भी नजर नही आ रही थी ।

......................
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