आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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kunal
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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आज की घटना ने आफिया को इतना डरा दिया कि वह चीख चीखकर रोने लगी। अमजद उसकी हालत देखकर काम पर नहीं गया। आफिया निरंतर मित्रों को फोन कर रही थी और नई उपज रही स्थिति के विषय में जानकारी ले रही थी। मगर उसका भय वैसे ही कायम था। दोपहर ढलने से पहले ही समाचार आने लग पड़े कि आधे से अधिक आतंकवादी जिन्होंने आज के इन क्रूर कारनामों को अंजाम दिया है, उनकी पहचान हो चुकी है। पहचाने जाने वालों में सबसे पहला मुहम्मद अट्टा था जो कि बॉस्टन का रहने वाला था। पुलिस ने छापामारी तेज़ कर दी। जिस किसी के बारे में यह पता चलता कि इसके संग आतंकवादी का परिचय रहा है, उसे गिरफ्तार कर लिया जाता। यहाँ तक कि जिन होटलों में वे लोग रातों को रुके थे, उन सभी को छानबीन के लिए बंद कर दिया गया और कर्मचारियों को पकड़ लिया गया। यह सब सुनकर आफिया ज़ोर-ज़ोर से रोती हुई बोलने लगी, “अमजद जितना जल्दी हो सके हमें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। यहाँ अपनी जान को खतरा है।“
“खतरेवाली इसमें क्या बात है। अपनी तरह यहाँ और बहुत से मुसलमान रहते हैं। वे क्या सभी अतिवादी हो गए। जिन्होंने ये अमानवीय कारनामा किया है, खतरा उनको या उनके हमदर्दों को है। तू यूँ ही न घबरा।“
“तुम मेरी बात समझने की कोशिश करो, बाद में पछताओगे। अभी भी मौका है कि यहाँ से शीघ्र चले जाएँ।“
“पर हम क्यों भाग जाएँ ? हमने कौन-सा कोई गलत काम किया है ?“
“मुझे पता चला है कि अमेरिकी, मुसलमानों के बच्चों को किडनेप करेंगे।“
“तुझसे यह बात किसने कही है ?“
“बस, किसी से पता चला है, तभी तो कह रही हूँ कि मुसीबत आने से पहले निकल चलें।“
“आफिया, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि तू इतनी घबरा क्यों रही है। इस तरह हम बना-बनाया घर और अपनी पढ़ाई वगैरह बीच में ही छोड़कर कैसे जा सकते हैं।“
“इसका मतलब तुम मेरी बात नहीं मानोगे ?“ आफिया गुस्से में कांपने लगी।
“तू मुझे अपनी बात अच्छी तरह से समझा। तू तो बग़ैर सिर-पैर की बातें किए जा रही है।“
“अच्छा, करो अपनी मर्जी। जब भुगतोगे तो खुद पता लग जाएगा।“ आफिया पैर पटकती सीढ़ियाँ चढ़ गई। ऊपर जाकर उसने सुहेल, सुलेमान, मार्लेन और अन्य कई मित्रों को फोन किए। पर किसी का भी फोन न लगा। सबके फोन बंद थे। आफिया का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा। फिर उसने किसी ऐसी सहेली को फोन किया जिसका जिहाद से कोई वास्ता नहीं था, पर वैसे वह इस तरह की बातों की काफ़ी जानकारी रखती थी। वह सउदी अरब की रहने वाली थी।
“आफिया, तू इतनी अपसेट क्या हो रही है। फिर क्या हो गया अगर हम मुसलमान हैं तो। लेकिन हम सबके साथ हैं।“ उसने आफिया को ढाढ़स बंधाया।
“तू मेरी असली बात नहीं समझ रही। अगर नुकसान कराकर यहाँ से निकले तो फिर क्या फायदा हुआ।“
उसकी बात सुनकर सहेली सोच में पड़ गई। उसको लगा कि आफिया हद से अधिक डरी हुई है। वह कुछ सोचते हुए बोली, “आफिया, तू यही चाहती है न कि यहाँ से जल्दी निकल जाए।“
“हाँ, बिलकुल।“
“पर, यह भी नहीं हो सकता, क्योंकि अभी तो अमेरिका का सारा एअरस्पेश बंद पड़ा है। न कोई फ्लाइट अंदर आ रही है, न ही कोई यहाँ से बाहर जा रही है।“
“पर मुझे पता चला है कि एक ख़ास फ्लाइट जा रही है।“
“आफिया, वो फ्लाइट तो बहुत गुप्त तौर पर यहाँ से जा रही है। काग़ज़ों में उसका कहीं जिक्र नहीं है। तुझे पता नहीं कैसे उसके बारे में पता चला गया, वरना तो...।“
“तू क्या कोशिश करके मुझे उस फ्लाइट पर सीट नहीं दिलवा सकती ?“ सहेली की बात बीच में ही काटती हुई आफिया बोली।
“नहीं, यह मुमकिन नहीं है। उस फ्लाइट पर सिर्फ़ सउदी अरब के वही बाशिंदे जा रहे हैं जिनके सउदी अरब की अंबेसी से गहरे संबंध हैं। सउदी अंबैसडर नहीं चाहता कि कल को उसका कोई बाशिंदा इस प्लाट में फंस जाए। तुझे पता ही है कि हाईजैकरों में आधे से अधिक तो सउदी अरब के हैं। उस फ्लाइट के बारे में तू भूल ही जा।“
आफिया की अन्तिम उम्मीद भी खत्म हो गई। इसके बाद उसने अमजद से कोई बहस न की। उदास बैठी वह टी.वी. पर चल रही ख़बरें देखती रही। हर पंद्रह-बीस मिनट के बाद किसी न किसी के पकड़े जाने का समाचार आ रहा था। उसकी सहेली मार्लेन का पति अनवर अल मीराबी भी गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी गिरफ्तारी की ख़बर सुनते ही वह कांपने लगी। क्योंकि उसको याद था कि दो सप्ताह पहले ही वह वापस हूस्टन जाते समय उसके घर आए थे। अमजद, आफिया के अंदर चल रही बातों से अनभिज्ञ सिर्फ़ यही समझता हुआ कि वह बेचारी कुछ अधिक ही डर गई है, उसको शांत करने का प्रयत्न कर रहा था। आफिया अमजद के साथ कोई बात नहीं कर रही थी। वैसे वह अपने तौर पर वापस जाने की कोशिश कर रही थी। फिर, यह उसकी कोशिशों का नतीजा ही था कि 17 सितंबर को जिस दिन अमेरिकी एअरस्पेश पहली बार खुला तो आफिया अपने दोनों बच्चों सहित पाकिस्तान को जाने वाली फ्लाइट में बैठी हुई थी। उसको बड़ा अफसोस था कि अमजद उसके साथ जाने के लिए राज़ी नहीं हुआ था। साथ ही, उसका दिल भी तेज़ी से धड़क रहा था। मगर जब जहाज़ उड़ा तो उसका सारा डर जाता रहा और उसका मन दूसरी तरफ चला गया। उसकी सोच के मुताबिक आखि़री लड़ाई शुरू हो चुकी थी। जिहादियों के अनुसार यह वो लड़ाई थी जिसमें सब काफ़िर मारे जाएंगे और पीछे सिर्फ़ इस्लाम का झंडा सारी दुनिया पर फहरेगा। उसको सारे रास्ते इसी खुशी में पलभर भी नींद नहीं आई। वह सोचती जा रही थी कि इस्लामी देशों में ख़ास तौर पर पाकिस्तान में तो इस वक़्त जिहाद बड़े स्तर पर लड़ा जा रहा होगा। लोग सब कुछ भूलकर जिहाद में शामिल हो चुके होंगे। पर जब वह कराची एअरपोर्ट पर उतरी तो वह बड़ी हैरान हुई। वहाँ तो लोग अपने अपने कामकाजों में व्यस्त थे। लगता था कि किसी को परवाह ही नहीं थी कि अमेरिका में क्या हुआ है। उसका दिल टूट गया। उसको अमजद परिवारवाले एअरपोर्ट पर लेने आए थे। घर जाते समय वह और अधिक हैरान हुई जब अमजद के घरवालों ने ट्विन टॉवरों के ढह जाने वाली बात एकआध बार ही छेड़ी और फिर अन्य बातें करने लगे। अमजद के घरवाले उसके आने पर अधिक खुश भी नहीं थे। अमजद ने उन्हें फोन पर बता दिया था कि कैसे आफिया उसकी बात न मानते हुए सिर्फ़ हालातों से डरकर अमेरिका छोड़ रही है। इससे पहले घरवाले काफी देर से कहते आ रहे थे कि अमजद और आफिया एक बार आकर मिल जाएँ और बच्चों को मिलवा जाएँ। परंतु उन्होंने कभी परिवार वालों की बात नहीं सुनी थी। आज आफिया एकदम ही आ पहुँची। मगर फिर भी खुश थे कि चलो, इस बहाने वे अपने पोता-पोती के साथ कुछ दिन बता सकेंगे।
खान परिवार एक शांत और अपने मज़हब को मानने वाला प्रतिष्ठित परिवार था। उन्होंने ज़िन्दगी में मेहनत करके यह मुकाम हासिल किया था कि उनके बच्चे विदेशों में पढ़ते थे और अच्छे ओहदों पर थे। अमजद का पिता आगा नईम खां इस वक़्त रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा था। उसकी पत्नी जाहिरा खां की घर में अच्छी चलती थी। पूरा परिवार संयुक्त परिवार के तौर पर रता था। नईम खां यद्यपि राजनीतिक नहीं था, पर उसकी सूझ-बूझ गहरी थी। घर में अमेरिका में आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों की चर्चा हुई थी, पर एक हद तक। परिवार ने कट्टरवादियों के इस कदम की निंदा की थी कि निर्दोषों को मारने से क्या प्राप्त होगा। मगर जब आफिया घर पहुँची तो उसने नाइन एलेवन की घटना को बहुत ही अचम्भे से बयान करना शुरू कर दिया। वह उसकी निंदा नहीं कर रही थी, बल्कि वह इस काम को करने वालों के हक़ में बोल रही थी। वह लगातार इसी घटना के बारे में बोले जा रही थी। परिवार वालों को उसको इस प्रकार उत्साहित होना अच्छा न लगा। पर फिर जाहिरा खां ने सभी को समझाया कि यह शायद उस घटना के कारण सदमे में है इसलिए इस तरह की बातें कर रही है। जब उसने बोलना बंद किया तो नईम खां थोड़ा ताव खाकर बोला, “आफिया बेटी, तुझे पता है कि अब क्या होगा ?“
“होना क्या है। बस, जिस दिन का एक मुद्दत से इंतज़ार था, वह आ चुका है। इन काफ़िरों का सफाया हो जाएगा और अल्लाह के बंदों की जीत होगी।“
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा। जो कुछ होगा, वह मुझे दिखाई दे रहा है।“
“वो क्या ?“ आफिया ने माथे पर बल डालकर पूछा।
“अब अमेरिका, अफगानिस्तान पर चढ़ाई करेगा। क्योंकि यह नाइन एलेवन का कारा करवाने वाला वहाँ पनाह लिए बैठा है। वहाँ अमेरिका अकेला नहीं होगा। सारी दुनिया उसके साथ होगी। ख़ास तौर पर पाकिस्तान ने तो ऐलान भी कर दिया है कि वह अमेरिका का साथ देगा।“
“यही तो हम चाहते हैं। इसी तरह यह आखि़री लड़ाई में तब्दील होगी। यही अल्लाह की मर्ज़ी है।“
“तुमने कभी यह भी सोचा है कि इस लड़ाई में नुकसान किसका होगा ?“
“किसका ?“
“अफगानिस्तान की गरीब जनता का, जो पिछले तीस सालों से लड़ाई में घुन की तरह पिस रही है। बड़े लोग अपना खेल खेल रहे हैं, पर गरीबों को कौन पूछता है।“
“जिहाद में आहुति तो देनी ही पड़ती है।“
आफिया जब नईम खां की बातों का जवाब देने से न हटी तो जाहिरा खां ने पति को चुप रहने का संकेत किया। कुछ देर के लिए वह चुप भी हो गया। परंतु जब आफिया फिर भी अपनी ही हांकती रही तो वह दुबारा बोला, “आफिया बेटी, मुझे यह बता कि तुम इस वक़्त अपने आपको अमेरिका की अपेक्षा यहाँ कैसे सुरक्षित समझते हो ? अमेरिका तुम्हारा देश है। तुम्हारा सब कुछ वहाँ है। और यहाँ तो अब अपने पड़ोस में लड़ाई शुरू होने वाली है।“
“आप इस बात को छोड़िए। जल्द ही अमजद को संदेशा भेजो कि वह जितनी जल्दी हो सकता है, यहाँ आ जाए। वहाँ उसकी ज़िन्दगी को ख़तरा है।“
“किससे ख़तरा है उसकी ज़िन्दगी को ?“
“अमेरिकी सरकार से।“
“वहाँ तो लाखों मुसलमान रह रहे हैं। क्या वे सारे इस नाइन एलेवन के कारनामे के लिए जिम्मेदारी हैं ? नहीं, वे तो आम शहरी हैं। और मैं बता दूँ कि इन आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता।“
“आप किसी को आतंकवादी नहीं कह सकते।“ आफिया भड़क उठी। सभी हैरान रह गए। आखि़र, सभी ने नतीजा यह निकाला कि इस वक़्त शायद सदमे के कारण इसकी दिमागी हालत सही नहीं है। इसलिए इसको आराम करने दिया जाए।
उधर अमेरिका ने अफगानिस्तान के तालिबान लीडर, एक आँख वाले मुल्ला उमर को वार्निंग दे दी कि वह कोई एक रास्ता चुन ले। या तो वह ओसामा बिन लादेन को अमेरिका के हवाले कर दे, या फिर अमेरिकी हमले के लिए तैयार हो जाए। मुल्ला उमर ने किसी की कोई बात नहीं मानी। लड़ाई शुरू होने की शंकाएँ बढ़ गईं। आखि़र 7 अक्तूबर 2001 को अमेरिका ने पहला बम अफगानिस्तान पर फेंकते हुए युद्ध की घोषणा का बिगुल बजा दिया। इस बीच आफिया बहुत अधिक उत्साहित थी। कभी वह किसी कमरे में जाती थी और कभी किसी में। कभी वह कुछ बोलती थी और कभी कुछ। घरवाले उसकी हरकतों से बड़े अवाज़ार हो गए थे। दोपहर के समय सभी खाने की मेज़ पर बैठे तो अमजद के बड़े भाई ने बात प्रारंभ की, “आफिया ऐसी कौन-सी बात है जो तू यूँ अपसेट है। और किस बात पर तुझे यूँ खड़े पैर अमेरिका छोड़ने की बात सूझी ?“
“क्योंकि वहाँ के अमेरिकन लोग मुसलमानों के बच्चे अगवा करने लग पड़े थे।“
“पर मैं तो यह बात तुझसे ही पहली बार सुन रहा हूँ। मेरे और भी कई दोस्त वहाँ हैं, उनमें से तो किसी ने भी बच्चे अगवा करने वाली बात नहीं बताई।“
“तो फिर क्या मैं झूठ बोल रही हूँ ?“
“पर आफिया तेरे अपने भाई और बहन के बच्चे भी तो वहीं हैं। वे तो अपने बच्चों को लेकर नहीं आए।“
“आप सब मुझे बेवकूफ समझते हो ? आपका मतलब इस सबके लिए मैं ही ज़िम्मेदार हूँ ?“ इतना कहते हुए वह उठी और ऊँची आवाज़ में बोलती हुई सीढ़ियाँ चढ़ गई। घरवाले उसका यह व्यवहार देखकर हैरान रह गए। साथ ही, उन्हें अन्य दूसरी बातें भी परेशान कर रही थीं। बड़ी बात थी कि आफिया घर के अंदर भी सिर से पांव तक बुरके में लिपटी हुई थी। उसकी सिर्फ़ आँखें दिखाई देती थीं। जबकि खान परिवार में बुरके को अधिक अहमियत नहीं दी जाती थी। वैसे भी वे सोचते थे कि इतने वर्ष अमेरिका जैसे मॉडर्न देश में रहकर भी वह वही दकियानूसी अंदाज़ में जी रही है। खै़र, जब वह बड़बड़ाती हुई सीढ़ियाँ चढ़ गई तो उसकी सास उसके पीछे पीछे गई। काफी देर बाद वह उसको किसी तरह मनाकर वापस खाने की मेज़ पर ले आई। वह आ तो गई, पर उसने बुरका एकतरफ नहीं किया। इसपर जाहिरा खां बोली, “आफिया बेटी, अब तो तू परदा हटा सकती है। यहाँ सब घर के ही लोग हैं।“
“यहाँ बैठे सब लोग शैतान है। किसी को इस्लाम की परवाह नहीं है।“ इतना कहते हुए वह फिर भाषण देने लग पड़ी। इस बीच वह अमजद के घरवालों का अपमान किए जा रही थी कि वे लोग धर्म के बारे मे कुछ नहीं जानते। आखि़र, नईम खां खान की मेज़ पर से उठ खड़ा हुआ। वह अपनी बहू के साथ कोई वार्तालाप नहीं कर सकता था और चुप रहकर उसकी बेहूदगी भरी बातों को भी नहीं सुन सकता था। वह उठकर बाहर चला गया। उसी रात उसने अमजद को फोन करके कहा कि वह शीघ्र वापस आकर अपनी बेगम को संभाले, क्योंकि उसने सारे परिवार का जीना दूभर किया हुआ है। उधर आफिया ने भी अमजद को फोन करके कहा, “अमजद, अब तू आकर फै़सला कर ले कि तू शैतानों के साथ रहना चाहता है या फिर मेरे साथ ?“
“आफिया, मेरे इम्तहान में इस वक़्त सिर्फ़ पाँच महीने शेष हैं। यदि मैं अब आ जाता हूँ तो अब तक का किया-कराया सब कुएँ में पड़ जाएगा। तू मुझे अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दे। तब तक तू किसी न किसी तरह एडजस्ट कर।“
अमजद दुविधा में फंस गया। उसके घरवाले उसको आने को कह रहे थे। उधर आफिया भी दिन रात उसको आ जाने के लिए फोन किए जा रही थी। आखि़र ऊबकर उसने यूनिवर्सिटी से अनुमति ली और पाकिस्तान के लिए चल पड़ा। जब अमजद घर पहुँचा तो बाकी परिवार उसके आने पर खुश तो हुआ, साथ ही उनको अफ़सोस भी था कि उसकी पढ़ाई का नुकसान हो गया। पर आफिया इतनी खुश थी कि धरती पर उसके पैर नहीं लग रहे थे। उस रात वह अमजद के करीब बैठते हुए बोली, “अमजद, तू बड़े सही मौके पर आया है।“
“क्या मतलब ?“
“मतलब यह कि इस वक़्त सुलेमान अहमर भी यहीं है।“
“कौन सुलेमान ?“ अमजद उसकी बात सुनकर हैरान हुआ।
“तू शायद उससे मिला तो होगा, पर उसको निजी तौर पर नहीं जानता होगा।“
“पर ऐसी क्या बात है कि मैंने अभी घर में पांव रखा ही है और तू कुछ ज्यादा ही उत्साहित हुई फिरती है ?“
“क्योंकि बात ही ऐसी है। जिस समय का मुझे बहुत दिनों से इंतज़ार था, वह वक़्त आ पहुँचा है।“
अमजद बिना कुछ कहे उसकी तरफ देखता रहा तो वह आगे बोली, “सुलेमान अहमर, बोनेवोलैंस इंटरनेशनल संगठन, चिकागो का डायरेक्टर था। अब वह स्थायी तौर पर अमेरिका छोड़ आया है। यहाँ उसने अपनी एक अन्य चैरिटी शुरू कर ली है। जिसके जरिये वह फंड इकट्ठा करके अफगानिस्तान में लड़ रहे तालिबानों की मदद करता है। इसके अलावा, वह नए जिहादियों को भर्ती करके भी अफगानिस्तान भेज रहा है।“
“फिर मैं क्या करूँ ?“ अमजद ने त्यौरी चढ़ाई।
“मैंने उसके साथ तेरे बारे में बात कर ली है।“
“मेरे बारे में ? किस काम के सिलसिले में ?“
“पहले पूरी बात सुन ले, फिर बोलना।“
अमजद कुछ न बोला। वह चुपचाप आफिया के मुँह की ओर देखता रहा तो आफिया फिर से बोलने लगी, “मैंने सारी बातचीत पक्की कर ली है। सुलेमान अहमर तुझे अपने ग्रुप में लेने के लिए राजी हो गया है। तू यहाँ से चलकर बार्डर पर पड़ने वाले बिलोचिस्तान के शहर क्वेटा जाएगा। वहाँ सुलेमान के आदमी तुझे बार्डर पार करवाकर अफगानिस्तान के शहर कलट पहुँचाएँगे। वहाँ के लोकल अस्पताल में सुलेमान ने तेरे लिए काम का इंतज़ाम कर रखा है।“
“आफिया, तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया ?“
“क्यों ?“
“तू मुझे यह बता कि मैं क्यों क्वेटा जाऊँ। क्यों मैं बार्डर पार करके अफगानिस्तान जाऊँ। और रही बात अस्पताल में काम करने की, तुझसे मैंने कब कहा कि मुझे नौकरी की ज़रूरत है ?“
“यह काम तू अपनी नौकरी की ज़रूरत पूरी करने के लिए नहीं कर रहा।“
“तो फिर यह सब क्या है ?“
“वो अस्पताल जिहादियों के लिए खोला गया है। वहाँ जाकर तू जिहाद की खिदमत करेगा। जब तू वहाँ पहुँच जाएगा तो मैं भी तेरे पीछे पीछे ही आ जाऊँगी। उसके बाद हम पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ जिहाद के लिए काम करेंगे।“
“पर मैं इस राह का राही नहीं हूँ। तुझे मैंने पहले भी कई बार बताया है कि मैं एक अच्छा मुसलमान बनने की कोशिश कर रहा हूँ। मैं ये डिगरियाँ लेने और पढ़ाई करने अमेरिका जैसे देश में इस कारण नहीं गया कि तालीम हासिल करने के बाद जिहाद जैसे कामों में शामिल होऊँ।“
“अमजद, यह काम तो तुझे करना पड़ेगा।“
“क्यों ? मेरा मतलब है क्यों करना पड़ेगा यह काम मुझे ?“
“क्योंकि तुझे मैं कह रही हूँ। तुझे अपनी बेगम की बात माननी पड़ेगी। यही मज़हब सिखाता है।“
“आफिया, मेरी बात सुन। हो सकता है कि मैं तेरी बहुत सारी बातों से सहमत होऊँ। पर सहमत या असहमत होना और बात है, किसी के खिलाफ लड़ना और। अब तू ही बता कि अमेरिका जिसने मुझे मेडिकल क्षेत्र में इतना आगे बढ़ने का अवसर दिया, जिसने मुझे इतना बड़ा ज्ञान का भंडार दिया है, तू चाहती है कि मैं उसी देश के खिलाफ सिर्फ़ इसी वजह से बंदूक उठा लूँ कि मेरी पत्नी को यह अच्छा लगता है। मेरा दिल तो यह कहता है कि जिस काबिल मुझे अमेरिका ने बनाया है, वो काबलियत मुझे लोगों में बाँटनी चाहिए। डॉक्टर होने के नाते मुझे ज़रूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।“
“तूने अमेरिका की तारीफ के पुल तो बांध दिए, पर यह भूल गया कि आज अमेरिका दुनिया में मुसलमानों पर कितने अत्याचार कर रहा है। इस्लाम की जितनी बर्बादी आज अमेरिका कर रहा है, उतनी आज तक किसी ने नहीं की होगी।“
“आफिया, यह राजनीतिक बातें हैं। तूझे पता है कि राजनीति में ऊपर-नीचे होता रहता है। जो शक्तिशाली होता है, वह ज़रा ज्यादा कर जाता है और कमज़ोर कम। कसूर तो हरेक का ही होता है।“
“तू बड़ा फिलॉस्फर बनता है तो मुझे यह बात समझा कि फलस्तिनियों का क्या कसूर है जो इन्हें आज जगह-जगह मारा जा रहा है।“
“आफिया, तू मुझे पहले यह बता कि जो ट्विन टॉवरों में हज़ारों लोग मारे गए, उनका क्या कसूर था ?“ गुस्से में आए अमजद ने भी प्रत्युत्तर में सवाल कर दिया।
“उनमें ज्यादा अमेरिकी ही मरे हैं जो कि यहूदियों के चमचे बनते हैं। हर जगह यहूदियों का समर्थन करते हैं। मैं कहती हूँ कि यहूदी वो कौम है जिस पर कभी भी एतबार नहीं करना चाहिए। जो भी इनका भला करता है, ये उसी की पीठ में छुरा मारते हैं। संसार को इनसे मुक्ति दिलाना बहुत ज़रूरी है।“
“आफिया, एक बात ध्यान से सुन ले कि मरने वाले का कोई धर्म नहीं होता। वह सिर्फ़ और सिर्फ़ इन्सान होता है।“
“मैं इस तरह नहीं सोचती। मुझे फलस्तिनी मरते दिखते हैं तो लगता है कि यह मुसलमान मर रहे हैं। और किसी का मुझे पता नहीं।“
“तुझे फलस्तिनियों के मरने से अफसोस होता है। पर जब वे निर्दोषों को मारते हैं तो तू बोलती तक नहीं।“
“क्योंकि वो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। पहल तो यहूदियों ने की थी।“
“टैरेरिज़्म सबसे पहले तेरे इन फलस्तिनियों ने ही शुरू किया था।“
“कब ? क्या कह रहा है तू ?“
“यह कैसे हो सकता है कि तू इस बारे में जानती न हो। पर फिर भी जितना मुझे मालूम है, बता देता हूँ। यह 1972 में आयोजित समर ओलम्पिक खेलों के समय घटित हुआ था। दुनिया भर के खिलाड़ी ओलम्पिक गाँव में ठहरे हुए थे। तब सिक्युरिटी भी इतनी नहीं हुआ करती थी क्योंकि तब आतंकवादी घटनाएँ होती ही नहीं थीं। पर फलस्तिनियों जिहादियों ने इसी बात का लाभ उठाया और अवसर पाकर ओलम्पिक गाँव में दाखि़ल हो गए। सवेरे करीब चार बजे का समय था और सब सोये हुए थे। फलस्तिनियों ने इज़राइल की टीम की निशानदेही पहले ही की हुई थी। वह सबसे पहले उनके कमरों में जा पहुँचे जहाँ इज़राइली टीम ठहरी हुई थी। एकदम हमला करके उन्होंने इज़राइलियों को बंदी बना लिया। इन बंदी बनाये लोगों में एथलीट, कोच और अन्य मेंबर शामिल थे। वहाँ उनको बंदी बनाकर किसी दूसरी बिल्डिंग में ले गए। ख़ैर, उसके बाद मारा मारी हुई। दोनों धड़ों के लोग मारे गए। पर मेरा यह बात बताने का मतलब सिर्फ़ इतना ही है कि फलस्तिनियों ने कैसे आतंकवादी कार्रवाई शुरू की थी।“
“कोई बात तो होगी जो फलस्तिनियों को यह कदम उठाना पड़ा।“
“वे इज़राइल की जे़लों में से अपने सज़ायाफ्ता क़ैदियों को छुड़वाना चाहते थे।“
“अपने हक लेने के लिए सबकुछ करना जायज़ है।“
“इज़राइल भी तो अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए ही लड़ रहा है। इस तरह देखें तो हर एक का अपना नज़रिया है।“
“तू कब से इज़राइल भक्त बन गया ?“ आफिया ने गुस्से में त्यौरियाँ चढ़ाईं।
“मैं इस मारा मारी के हक में नहीं हूँ। कुछ न कुछ ले देकर यह मसला सुलझाया जा सकता है। यहूदियों का भी बहुत नुकसान हुआ है। दूसरी बड़ी जंग के समय हिटलर ने साठ लाख यहूदी मारे थे।“
“यह सब झूठ है। मेरे ख़याल में कोई हालोकास्ट हुआ ही नहीं। यहूदियों ने संसार की हमदर्दी प्राप्त करने के लिए ऐसी बातें अपने मन से घड़ी हैं। यह सब बकवास है।“
“ओह, कम ऑन आफिया। तू एक साइंटिस्ट होकर कैसी बातें कर रही है। मैं तो हैरान हूँ कि तू कुछ भी बोली जा रही है।“
“चल, तू मेरी सारी बातों को बकवास समझ, पर मेरी आखि़री बात का जवाब दे।“ आफिया असली मुद्दे की ओर मुड़ आई।
“कौन-सी असली बात ?“
“तू मुझे यह बता कि क्वेटा के लिए कब कूच कर रहा है ? क्या मैं आज रात तेरी सारी तैयारी कर दूँ। आगे वहाँ से अफगानिस्तान जाने में भी कई दिन लग जाएँगे।“
“तू तो ऐसे बात कर रही है जैसे मैं जाने के लिए तैयार ही बैठा होऊँ। आखि़री बात, मैं कहीं नहीं जाऊँगा।“
“जाना तो तुझे पड़ेगा। तू मेरी बात नहीं टाल सकता। मैं तेरी घरवाली हूँ। तेरी दुख-सुख की साथिन।“
अमजद ने ध्यान से आफिया की ओर देखा। इस वक़्त आफिया की आँखों में मोह झलक रहा था। उसको भी आफिया पर प्यार आया। वह उसके करीब होता हुआ उसको अपनी बाहों की जकड़ में लेता हुआ बोला, “आफिया, अपने दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं। अपनी बढ़िया ज़िन्दगी है। मुझे यह भी पता है कि हम एक दूजे को बेइंतहा मुहब्बत करते हैं। एक-दूजे के बग़ैर एक पल नहीं रह सकते। मैं चाहता हूँ कि हम अल्लाह की दी हुई इस रहमतोंभरी ज़िन्दगी का आनन्द उठाएँ। तू प्लीज़ इस जिहाद वाली बात को भूल जा।“
“अमजद, तेरी सभी बातें सही हैं। तू मुझे दुनिया की हर शै से प्यारा है, पर जिहाद मेरे लिए अल्लाह का एक पाक काम है। उसके लिए मैं कुछ भी कुर्बान कर सकती हूँ।“
अमजद चुप हो गया। वह समझ गया कि यह इसके साथ बात करने का सही समय नहीं है। वह यह भी जानता था कि यह हद से ज्यादा जिद्दी है। जो बात एक बार कह दे, उससे पीछे नहीं हटती। उस वक़्त उसने फिर सोचने का कहकर बात बदल ली। रात गुज़र गई। पर अमजद को सारी रात एक पल भी चैन नहीं पड़ा। उसको कोई राह नहीं सूझ रहा था। वह आफिया को नहीं छोड़ सकता था और आफिया जिहाद को नहीं। आखि़र सुबह के समय उसको ख़याल आया कि इस्लाम यह भी कहता है कि मुश्किल के समय घर के बड़े-बुजुर्गों की मदद लेनी चाहिए। वह अपने बड़े भाई के पास चला गया और उसके साथ हिचकिचाते हुए बात की, “भाई जान, मैं तो मुसीबत में फंस गया हूँ। मेरी रहनुमाई करो।“
“क्यों अमजद, क्या हुआ ?“
इस पर अमजद ने सारी बात बता दी कि कैसे आफिया उसको जिहाद में जाने के लिए मज़बूर कर रही है और उसके पास पत्नी की बात मान लेने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है। उसकी बात सुनकर भाई के तो होश ही उड़ गए। उसने स्वयं कोई बात नहीं की, बल्कि वह अमजद की बांह पकड़कर सीधा अपने अब्बा के पास ले गया और उसको सारी हुई-बीती सुना दी। नईम खां भड़कता हुआ बोला, “अमजद, यह क्या बकवास है ? क्या तुझे अच्छी तालीम यही सिखाती है कि तू ऐसे उल्टे काम करे ?“
“अब्बू आफिया कहती है कि...।“
“कौन क्या कहता है, तू यह बात छोड़। तुझे पहले यह सीखने की ज़रूरत है कि जिहाद क्या होता है। हर लड़ाई जिहाद नहीं होती। राजनीतिक लोग अपने निजी स्वार्थों के लिए इस पाक लफ़्ज का हर जगह इस्तेमाल करके नौजवानों को भड़का देते हैं और फिर वे वही करते हैं जो ये राजनीतिक लोग चाहते हैं। मैं तो जिया उल हक के वक़्त से ही कहता आ रहा हूँ कि यह एक राजनीतिक खेल है। पच्चीस साल से भी ऊपर का समय हो गया बेचारे गरीब अफगानिस्तान को इस गंदी राजनीति की बलि चढ़ते हुए। अफगानिस्तान आज मिट्टी का ढेर बनकर रह गया है। और सुनो, यह कहते हैं कि अफगानिस्तान ही एक ऐसा मुल्क है जहाँ सच्चा इस्लामी राज है। पर वहाँ की जनता से पूछकर देख कि उनके साथ क्या घटता है। वे पशुओं से भी खराब हालत में ज़िन्दगी व्यतीत कर रहे हैं। इन उजड्ड लोगों ने उनका जीना दूभर करके रख दिया। अब की जो हालत है, इसके लिए तालिबान जिम्मेदारी हैं। क्योंकि उन्होंने उस कातिल आदमी ओसामा बिन लादेन को अपने मुल्क में पनाह दी हुई है। इस सारे का जिम्मेदारी वही है और उसकी सज़ा भुगत रहा है, अफगानिस्तान का गरीब आदमी।“
“पर अब्बू, मुझे क्या हुक्म है ?“ अमजद डरता हुआ बोला।
“तू भूल जा इन बातों को और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।“
अमजद ऊपर गया और उसने आफिया को बता दिया कि उसके अब्बू ने जिहाद में जाने से मना कर दिया है।
“पर तू उसकी सलाह लेने गया ही क्यों ?“ आफिया ऊँचे स्वर में बोली तो नीचे खड़े नईम खां को उसकी आवाज़ सुनाई दे गई। उसके पूरे बदन में आग लग गई। पर वह फिर भी ज़ब्त में रहा। अमजद सीढ़ियाँ उतरने लगा तो नईम खां ने ऊँची आवाज़ में कहा, “अमजद, अगर तू वहाँ गया तो फिर कभी इस घर में पैर न रखना।“
अपने ससुर की यह बात सुनकर आफिया हवा की तरह नीचे उतरी और आते ही अमजद के गिरेबान में हाथ डालकर तेज़ आवाज़ में बोली, “अभी फैसला कर। या अपने माँ-बाप के साथ रह या मेरे साथ।“
अमजद कुछ न बोला तो आफिया और अधिक गुस्से में आ गई। वह फिर चिल्लाई, “ठीक है अगर तूने मेरी बात नहीं माननी तो मुझे अभी तलाक दे। समझा तू ? तलाक दे मुझे। अभी इसी वक़्त।“
फिर वह चीखती-चिल्लाती ऊपर कमरे में चली गई। घर में मुकम्मल चुप पसर गई। आखि़र नईम खां ने अपनी बेगम को कहा कि अगर ये मियाँ-बीबी और कुछ दिन अपने साथ रहे तो ज़रूर इनका तलाक हो जाएगा। हम ऐसा करें कि इन्हें अपने से दूर रहने दें। तब तक इनका आपसी फर्क भी मिट जाएगा और शायद हालात कुछ और ही करवट ले लें। इसके बाद उनके जाने का इंतज़ाम कर दिया गया। अमजद बच्चों और आफिया को लेकर इस्लामाबाद की ओर चल पड़ा। आफिया का कहना था कि अगर जाना ही है तो वह अपने मामा एच.एस. फारूकी के पास इस्लामाबाद जाना पसंद करेगी। शाम तक वे फारूकी के पास पहुँच गए। कुछ दिन आराम से गुज़रे कि एक दिन आफिया फिर नई स्कीम लेकर अमजद के सामने आ खड़ी हुई।
“अमजद, कश्मीर और अफगानिस्तान की पहाड़ियों के बीच पड़ने वाले बालकट शहर में आजकल जैशे मुहम्मद का कैम्प चल रहा है।“
“क्या !“ अमजद को बात समझ में नहीं आई। वह हैरान होता हुआ बोला, “यह जैशे मुहम्मद किस शै का नाम है ?“
“तुझे पता ही होगा कि दिसंबर 1999 में कुछ जिहादी, इंडियन एअरलाइन्ज़ जहाज अगवा करके काबुल ले गए थे। उन्होंने यह सब अपने लीडर मौलाना मसूद अजहर को छुड़वाने के लिए किया था जो कि उस वक़्त इंडिया की जे़ल में बंद था। वो आपरेशन सफल रहा और मौलाना मसूद अजहर को छुड़वा लिया गया। बाद में मसूद ने यहाँ आकर एक नया संगठन बना लिया। उसी का नाम जैशे मुहम्मद है। जैशे मुहम्मद वालों के कैम्प इन पहाड़ियों में हैं। इनके परिवार भी इनके संग ही रहते हैं।“
“पर ये क्या करते हैं ?“
“ये जिहाद लड़ते हैं।“ आफिया ने यह बात कही तो अमजद का मुँह कसैला हो गया। उसने सोचा कि जिस बात से डरता वह यहाँ आया है, वही बात फिर सामने आ खड़ी हुई है। वह कुछ देर सोचता रहा तो आफिया बोली, “हम वहाँ चलते हैं। तू वहाँ अस्पताल में काम करना और मैं जिहादियों के बच्चों के लिए स्कूल चला लूँगी।“
अमजद फिर भी कुछ न बोला। आखि़र उसको एकाएक एक विचार कौंधा और वह आफिया से बोला, “हम यूँ करते हैं कि पहले एबटाबाद चलते हैं। वहाँ से बालकट कुल मिलाकर पाचेसेक मील होगा। वहाँ जाकर देखेंगे कि आगे क्या करना है।“
आफिया खुशी-खुशी तैयार हो गई। उसको लगा कि अमजद सही राह पर आता जा रहा है। अगले दिन वह एबटाबाद चले गए। रात के समय वे किसी होटल में ठहरे। रात भर आफिया भविष्य की योजनाएँ बनाती रही। अगली सवेर अमजद ने अपनी योजना बताई, “आफिया, मैं यहाँ किसी अस्पताल में नौकरी कर लेता हूँ। बच्चों को हम यहाँ के मशहूर मिशनरी स्कूल में पढ़ने के लिए दाखि़ला दिला देते हैं। हर इतवार हम बालकट जाकर जैशे मुहम्मद का कैम्प अटैंड कर आया करेंगे। एक तो हम उनके बारे में कुछ सीख लेंगे, और साथ ही यहाँ तब तक हम सैट हो जाएँगे। फिर अगर तू चाहेगी तो हम पक्के तौर पर वहाँ चले जाएँगे।“
“जैसे तेरी मर्ज़ी।“ आफिया चुप-सी हो गई। मगर उसको लगा कि शायद इस तरह वह अमजद को मना ही ले।
अगली सुबह आफिया उठते ही बोली, “अमजद, सारी रात बम धमाके होते रहे हैं, तूने सुने ही होंगे ?“
“आफिया, यह शहर फौज का बहुत बड़ा केन्द्र है। ऐसा होना यहाँ कुदरती है। कोई ट्रेनिंग वगैरह चल रही होगी।“
“नहीं, यह वो धमाके नहीं। ये तो उन बमों के धमाके हैं जो अमेरिकी हवाई हवाज़ अफगानिस्तान में फेंक रहे हैं।“
“हो सकता है, तेरी बात सच हो।“
“मैं तो रात में एक पल भी नहीं सो सकी। सारी रात यही सोचती रही कि अमेरिकी हमारे मुसलमान भाइयों को किस तरह मार रहे हैं।“
“युद्ध में तो ऐसा होता ही है। दोनों ओर की फौजें एक दूजे को मारती ही हैं।“
“मुझे तो यह सोच सोच कर ही अफसोस हुआ जा रहा है कि यह कुछ ही मील दूर बार्डर के पार जिहाद चल रहा है और हम उसमें शामिल नहीं हो सकते।“
अमजद ने उसकी बात का कोई उत्तर न दिया तो वह पुनः बोलने लगी, “अमजद, मैं बच्चों को किसी मिशनरी स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं भेजूँगी। और न ही तुझे यहाँ कोई नौकरी करने की ज़रूरत है।“
“फिर मैं यहाँ निठल्ला घूमता क्या करूँगा ?“
“हम आज ही जैशे मुहम्मद के कैम्प चलते हैं। वहाँ जो काम मिलेगा, कर लेंगे।“
“आफिया, मेरी बात ध्यान से सुन ले कि मैं यह काम नहीं करूँगा।“ अमजद ने दो टूक जवाब दे दिया।
“क्यों नहीं करना ? अब तो हम जिहादियों के बिल्कुल करीब बैठे हैं। बस, दो घंटों का रस्ता है। चल उठ, चलें। मैं बच्चों को तैयार करती हूँ।“ आफिया शांत होकर बोली।
“आफिया, तुझे एक बार कही बात समझ में नहीं आती ? मैं तुझे आखि़री बार बता रहा हूँ कि मैं किसी जिहाद में हिस्सा नहीं लूँगा।“ अमजद भड़क उठा।
इसके पश्चात दोनों के बीच बहस शुरू हो गई। मगर आज आफिया अमजद को मारने के लिए नहीं बढ़ी। वह पता नहीं किस दुनिया में गुम थी। वह अंदर जाकर बैड पर लेट गई। अमजद बैठा सोचता रहा कि वह क्या करे। आखि़र उसके मन ने कहा कि वह कहीं भी चला जाए और कुछ भी कर ले, पर आफिया तब तक खुश नहीं होगी जब तक वह जिहाद में शामिल नहीं हो जाता। उसने एकदम वापस लौटने का फैसला कर लिया। उसने आफिया को उठाया। वह जली-भुनी उसके साथ कार में बैठ गई और वे वापस चल पड़े। घर आकर जब अमजद ने सभी को आफिया की जैशे मुहम्मद वाली बात बताई तो उसका पिता बहुत ही चिंतित होते हुए बोला, “कहीं यह न हो कि हम देखते ही रह जाएँ और पता तब चले जब यह आतंकवादियों के किसी गिरोह से जा मिलें।“
“अमजद के अब्बू, फिर इसका क्या इलाज है ?“ जाहिरा खां उदास लहजे में बोली।
“तुम अमजद को मेरे सामने बुलाओ।“
अमजद को बुलाया गया। वह यहाँ अकेला ही आया था। एबटाबाद से लौटते हुए आफिया बच्चों को लेकर मायके चली गई थी। अमजद आया तो नईम खां कठोर लहजे में बोला, “अमजद, तू तुरंत फ्लाइट लेकर अमेरिका रवाना हो जा।“
“और अब्बू, आफिया ?“
“फिलहाल तू सब कुछ भूल जा और वहाँ जाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर। बाद में देखते हैं कि क्या होता है।“
अमजद ने अगले दिन की ही टिकट ले ली। इसके बाद उसने आफिया को फोन करके इतना ही बताया कि यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के कारण वह वापस जा रहा है और कल शाम की उसकी फ्लाइट है। अगले दिन आफिया बच्चों सहित उसको एअरपोर्ट पर विदा करने आई। दोनों की बीच कोई ख़ास बात नहीं हुई। आफिया हद से ज्यादा उदास थी।

(जारी…)
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kunal
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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अमजद अमेरिका आ तो गया, पर उसका आफिया और बच्चों के बग़ैर ज़रा भी दिल नहीं लगता था। दिन के समय तो काम पर होने के कारण जैसे तैसे समय बीत जाता था, परंतु रात के समय उसको घर काटने को दौड़ता था। कभी उसको बच्चों की किलकारियाँ सुनाई देने लगतीं और कभी आफिया इधर-उधर चलती-फिरती दिखाई देती। एक दिन रात के समय फोन आया। फोन उसकी अम्मी का था। अमजद के फोन उठाते ही जाहिरा खां बोली, “बेटे, मैं जानती हूँ कि तू इस वक़्त किन हालातों में से गुज़र रहा होगा। पर इस सब की मैं ही जिम्मेदारी हूँ।“
“अम्मी, ऐसी बात नहीं है। और फिर तुम क्यों अपने आप को दोष दे रही हो ?“
“क्योंकि आफिया मेरी ही पसंद है। मैंने ही इसे तेरे लिए चुना था। पता नहीं क्या बात हो गई। यह तो बहुत ही जहीन लड़की थी। मेरी तो समझ में नहीं आता कि इसको हो क्या गया है।“
“अम्मी, तू यूँ ही फिक्र न कर।“
इतना कहकर अमजद सोचने लगा कि उसकी माँ ने तो आफिया को कुछ देर या कुछ दिन के लिए देखा होगा, मगर वह तो कितने ही सालों से उसके साथ रहता आ रहा है। और क्या वह खुद उसको अच्छी तरह जानता है। उधर अमजद को फोन पर चुप-सा हुआ देखकर जाहिरा खां बोली, “अमजद बेटे, तू मेरी बात सुन रहा है न ?“
“हाँ-हाँ, अम्मी तू बात कर। मेरा ध्यान तेरी बातों में ही है।“
जाहिरा खां दुबारा बोलने लगी, पर अमजद का ध्यान फिर आफिया की ओर चला गया। उसके मन में ख़याल आया, ‘आफिया नाइन एलेवन के बाद एकदम इतना डर क्यों गई थी। वह क्यों खड़े पांव भाग जाने के लिए उतावली पड़ गई थी। फिर वहाँ जाकर वह कुछ दूसरी ही तरह की स्कीमें बनाने लगी। सीधे ही जिहादियों के संग जा मिलने की बातें करने लग पड़ी। और वह बता रही थी कि हमारे विवाह से पहले भी एफ.बी.आई. वाले उसको तलाश रहे थे। यह तो खै़र हो सकता है कि उसके चैरिटी के काम के संबंध में वे उसके साथ कोई बातचीत करने आए होंगे।’ उसकी मन में चलती बात बीच में ही रह गई जब उधर से माँ की ऊँची आवाज़ उसके कानों में पड़ी, “बेटे तू ऐसा कर कि एक बार आफिया को फोन करके कह दे कि वह तेरे पास आ जाए। औरत को कई बार मानसिक कारणों से बहुत सारे हालातों से गुज़रना पड़ता है। अब वह ठीक हो चुकी होगी। तू मेरे बेटे, उसको अपने पास बुला ले। अल्लाह सब ठीक कर देगा।“ माँ ने नसीहतें देकर फोन काट दिया। पर अमजद का मन फिर से पहले चल रही सोचों की ओर चला गया। उसको एक नया ही ख़याल आया और वह सोचने लगा, ‘कहीं आफिया यह सब ड्रामा तो नहीं कर रही। हो सकता है कि वह मुझसे अलग होना चाहती हो और सिर्फ़ बहाने घड़ रही हो ताकि मैं उसकी बात से इन्कार कर दूँ और उसको अलग हो जाने का बहाना मिल जाए। हाँ, यही बात है। लगता है कि वह मेरे साथ खुश नहीं है। वैसे उसके बर्ताव से तो लगता है कि वह मुझे बहुत प्यार करती है, मगर हो सकता है कि यह सब दिखावा ही हो।’
खै़र, कुछ भी था उसने अपनी माँ की बात मानते हुए आफिया को फोन करने का मन बना लिया। उधर आफिया का पिता देख रहा था कि अमजद के जाने के बाद से आफिया का चेहरा मुरझाये फूल जैसा हो गया था। उसने ढंग से खाना-पीना छोड़ दिया था। सारा दिन उदास-सी बैड पर पड़ी रहती थी। सुलेह सद्दीकी सब समझता था। उसने आफिया को पास बुलाया और उसके सिर पर हाथ फेरता हुआ बोला, “बेटी, मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा, बस इतना ही कि औरत का पहला फ़र्ज़ अपना परिवार बचाना होता है। तुम्हारे बीच सिर्फ़ तनाव है, और कुछ नहीं। मैं तुझे सलाह दूँगा कि तू अमजद के पास चली जा।“
“पर अब्बू, उसने तो जाकर एक बार भी फोन नहीं किया ?“
“बेटी, कई बार इन्सान काम में उलझ जाता है और...।“ वह बात कर ही रहा था कि फोन की घंटी बजी। उसने फोन उठाते हुए हैलो कही तो उसके चेहरे पर रौनक आ गई। वह फोन को आफिया की ओर बढ़ाते हुए बोला, “ले बात कर, अमजद का फोन है।“
आफिया चहक उठी और दूसरे कमरे में जाकर बात करने लगी। आधे घंटे बाद फोन बंद करके वह बाहर निकली तो उसका चेहरा गुलाब के फूल की तरह खिला हुआ था। उसने उसी समय टिकटें बुक करने के लिए कह दिया और तीसरे दिन बच्चों को लेकर अमेरिका के बॉस्टन लोगन इंटरनेशनल एअरपोर्ट पर जा उतरी। अमजद उसको लेने आया खड़ा था। वह घर पहुँच गए। घर आकर आफिया का चेहरा एकदम बदल गया और वह गुस्से में काँपने लगी।
“तूने मुझे इतने दिन फोन भी नहीं किया। तू अपने आपे को समझता क्या है ?“ वह ऊँचे स्वर में बोलती हुए अमजद के गिरेबान को चिपट गई। इधर-उधर खींचती वह उसकी छाती में मुक्के मारने लगी। अमजद ने बिल्कुल विरोध न किया। आखि़र, आफिया थक गई और वह मुक्के मारना छोड़ अमजद की छाती से लिपट गई। अमजद ने उसको अपनी बांहों में जकड़ लिया। आफिया इतना रोई कि अमजद की कमीज़ भीग गई। उसकी आँखों में भी आँसू आ गए। इसके साथ ही उसके मन के अंदर का वह ख़याल कि शायद आफिया बहाने से उससे तलाक लेना चाहती है, कपूर की भाँति उड़ गया।
उधर, अफगानिस्तान में अमेरिका का आतंकवाद के विरुद्ध लड़ा जा रहा युद्ध लम्बा खिंचता जा रहा था। तालिबान सरकार तो पाँच-छह हफ़्तों में ही ढह-ढेरी हो गई थी। पर ओसामा बिन लादेन और उसका समस्त अलकायदा संगठन तोरा बोरा पहाड़ियों के पीछे से होकर पाकिस्तान की ओर निकल चुका था। वहाँ जाकर उन्होंने कराची में अड्डे जमाने प्रारंभ कर दिए। अमेरिका समझ गया था कि अफगानिस्तान में कच्चे घरों अथवा सूखे पहाड़ों पर बम फेंकने बेकार हैं। जिन्हें पकड़ने के लिए यह सबकुछ किया गया था, वे तो सब बचकर निकल गए। इस कारण अमेरिका युद्ध का मुहाज़ अफगानिस्तान से इराक की ओर मोड़ने के लिए तैयार होने लग पड़ा। तोरा बोरा पहाड़ियों में से भागे अलकायदा के सदस्यों को संभालने वाले पाकिस्तान में बहुत बैठे थे। इनमें से सबसे अधिक सक्रिय बलोची परिवार था। रम्जी यूसफ जो कि 1993 के नॉर्थ टॉवर वाले बम धमाके का आरोपी था, इसी परिवार से था। इस परिवार के अग्रज का नाम था - खालिद शेख मुहम्मद। जिसे सभी उसको निक नेम अर्थात के.एस.एम. से बुलाते थे। जो लोग अलकायदा सदस्यों को संभालने में लगे हुए थे, उनमें स्त्रियों का एक ग्रुप भी था। आफिया की माँ इस्मत भी इसी ग्रुप में काम कर रही थी। इतना ही नहीं, अल बलोची परिवार के कई मेंबर उसके घर मेहमान बनकर ठहर भी चुके थे। जब अफगानिस्तान में से भाग निकले अलकायदा सदस्यों को भलीभाँति संभाल लिया गया तो के.एस.एम. अपनी अगली योजना पर काम करने लगा। वह चाहता था कि जब तक अमेरिका नाइन एलेवन वाली चोट से उभरे, तब तक इससे भी बड़ा झटका अमेरिका को एक और दिया जाए। इस दूसरे हमले के लिए के.एस.एम. ने ऐसे लोगों की खोज शुरू कर दी जो कि पहले ही अमेरिका में रह रहे थे। इसके लिए उसने अमेरिका में अपने सम्पर्कों के माध्यम से ऐसे व्यक्तियों की भर्ती प्रारंभ कर दी। इनमें नए रंगरूटों में होज़े पदीला नाम का एक व्यक्ति पहले अमेरिकन था। वह फ्लोरिडा का रहने वाला था और किसी बड़े गैंग का सदस्य रहा था। उसको समझा-बुझाकर मुसलमान बनाया गया और फिर अलकायदा में लाया गया। प्रशिक्षण के लिए उसको पाकिस्तान ले जाया गया। इस प्रकार आगे से आगे के.एस.एम. को और लोग मिलते चले गए जो कि उसके काम में सहायक हो सकते थे। होज़े पदीला को इस तरफ लाने वाला एडम हुसैन था जो कि बोनेवोलैंस इंटरनेशनल में काम करता था। एडम हुसैन आगे सुलेमान अहमर को जानता था। सुलेमान की आफिया से जान-पहचान थी। यही कारण था कि आफिया बोनेवोलैंस के एक अन्य सक्रिय सदस्य अदनान शुक्रीजुमा के सम्पर्क में आई थी। आफिया के अमेरिका से लौट आने से सभी में फिर से तालमेल होने लगा। जाली ई मेल के ज़रिये अथवा कोई अन्य गुप्त तरीके से ये लोग आपस में सम्पर्क बनाये रखते थे।
जब आफिया वापस आई तो वह कई दिन बहुत बढ़िया मिज़ाज में रही। वह अमजद के साथ बड़ी मुहब्बत से पेश आती थी। अमजद को लगा कि उसके अंदर परिवर्तन हो रहा है। वह खुश था। इसी खुशी के कारण वह अगले इतवार बच्चों को लेकर एक मंहगे होटल में रात ठहरने के लिए चला गया। वहाँ पहुँचते ही आफिया भड़क उठी, “अमजद, तुम्हें शर्म आनी चाहिए। अफगानिस्तान जैसे मुल्कों में हमारे मुसलमान भाई गरीबी से मर रहे हैं और तुम्हें अय्याशी की पड़ी है।“
“आफिया, अय्याशी वाली इसमें क्या बात है। मेरी कमाई के पैसे हैं। मैं किसी गलत जगह पर नहीं खर्च कर रहा। मैं अपने परिवार की खुशी के लिए खर्च कर रहा हूँ। यह मेरा हक भी है कि हलाल की कमाई से अपने बच्चों को ज़रा बाहर घुमा फिरा दूँ।“
“तुझे कभी समझ नहीं आ सकती। मैं यहाँ नहीं रहूँगी। चल, घर वापस चलें।“
आफिया वहाँ न रुकी और अमजद को साथ लेकर घर लौटकर ही उसने साँस लिया। अमजद परेशान हो गया। उसने सोचा था कि पुरानी कड़वाहटें भूलकर नई ज़िन्दगी शुरू करेगा, पर आफिया तो वहीं अटकी हुई थी। फिर कुछ दिनों बाद अमजद ने उससे कहा कि बच्चों को अब स्कूल भेजने का समय है। अब तो इन्हें प्री-स्कूल जैसी क्लासों में डाल दें तभी कहीं ये दूसरे स्कूलों में जाने योग्य हो सकेंगे। परन्तु आफिया ने जवाब दिया कि अभी वह उन्हें स्कूल नहीं भेजेगी। वह घर में ही उन्हें मज़हबी शिक्षा देगी। अमजद मनमसोस कर रह गया। कुछ दिनों के बाद अमजद एक दिन जल्दी घर आया तो वह बड़ा हैरान हुआ। आफिया टी.वी. पर वो कुछ देख रही थी जो कि जंग के मैदान में हो रहा था। आसपास मारा मारी हो रही थी। समीप ही लाशों के ढेर लगे हुए थे। अमजद से यह सब देखा न गया। पर जब उसने देखा कि आफिया ने बच्चों को भी अपने करीब बैठा रखा है तो उसके सब्र का प्याला छलक गया। वह गुस्से में आकर बोला, “आफिया, यह क्या है ?“
“क्यों, क्या हुआ ? जो सच है, वह सच है। फिर उसको देखने में क्या हर्ज़ है।“
“बात यह नहीं है। बात यह है कि तू इन बच्चों को इतनी ख़तरनाक घटनाएँ दिखा रही है। इनके मन पर क्या असर पड़ेगा।“
“मैं तो चाहती हूँ कि इनके मन पर असर पड़े। ताकि ये बड़े होकर तेरी तरह अमेरिकी भक्त न बनें।“
“यह सही नहीं है। और फिर मैंने अमेरिकी भक्त बनने वाली क्या बात कर दी ?“
“तुझे अपनी नौकरी करने और पैसा बनाने तक ही मतलब है। तुझे इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आसपास मुसलमानों के साथ क्या हो रहा है।“
“अब मुसलमानों के साथ क्या अलग होने लग पड़ा जो तू आज इतनी संजीदा हुई बैठी है?“
“अमेरिका, इराक पर हमला करने की तैयारी कर रहा है।“
“यह तो एक दिन होना ही था।“
“क्यों ? क्यों होना था यह एक दिन ? सिर्फ़ इसलिए कि अमेरिका दुनिया में सबसे अधिक शक्तिशाली है ?“ आफिया के माथे पर बल पड़ गए।
“नहीं, यह बात नहीं है। तू याद कर, जब 1991 में पहली इराक जंग डज़र्ट स्ट्रोम खत्म हुई थी तो जंगबंदी अहदनामे में यह मद शामिल थी कि इराक अपने बायलोजिकल और केमिकल हथियार खत्म करेगा। पर वो उसने खत्म ही नहीं किए और न ही करना चाहता है।“
“जब इराक ने कह दिया है कि उसके पास इस किस्म के हथियार है ही नहीं तो बात खत्म हो जानी चाहिए।“
“वो झूठ बोल रहा है। उसके पास ये सारे हथियार हैं।“
“तेरे पास क्या सबूत है ?“
“यह तो तुझे भी पता ही है कि इरान-इराक युद्ध आठ दस साल चलता रहा। पर जब खत्म होने पर आया तो एक दिन में ही खत्म हो गया। ऐसा पता है, क्यों हुआ था ?“
“क्यों ?“
“क्योंकि इराक ने युद्ध के मैदान में केमिकल हथियारों का प्रयोग किया था। हज़ारों इरानी फौजी मोर्चों में बैठे बैठे ही सदा की नींद सो गए। इस कारण विवश होकर इराक को लड़ाई बंद करनी पड़ी थी। सबको पता है कि इराक के पास अभी भी वो हथियार हैं। उनका इस्तेमाल करके वह लाखों लोगों को मौत के घाट उतार सकता है। साथ ही, यह फै़सला यू.एन.ओ. का है न कि अमेरिका का कि इराक को उन घातक हथियारों से मुक्त किया जाए।“
“यह तो सब बहाने हैं। असली मसला तो कुछ और है।“ आफिया उसकी किसी बात से सहमत नहीं हो रही थी।
“असली बात क्या है तू बता फिर ?“
“अमेरिका, इज़राइल को महा इज़राइल बनाने के लिए उसके करीबी मुल्कों को खत्म करके सबको इज़राइल में शामिल कर देगा। सारे अरब मुल्क खत्म हो जाएँगे। अकेला इज़राइल रह जाएगा और अरब के सारे तेल भंडारों पर अमेरिका का कब्ज़ा हो जाएगा।“
“यह मुमकिन नहीं है। यह सब कोरी अटकलें हैं।“
“क्यों मुमकिन नहीं है। पहले भी यही कुछ तो हुआ था।“
“पहले कब ?“
“जब यह सो-कॉल्ड इज़राइल बना था। तब भी ऐसी ही जबरदस्ती की गई थी।“
“मैं जानता हूँ कि तू क्या कहना चाहती है, पर मैं उस बात को भी अलग नज़रिये से देखता हूँ। तब इज़राइल नाम का कोई देश नहीं था। सिर्फ़ फलस्तीन नाम का देश था जो कि उस वक़्त अंग्रेजों का गुलाम था। फलस्तीन के यहूदी अधिक अधिकारों वाला सूबा मांगते थे। क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि अपने घर के बग़ैर उनका अस्तित्व कायम नहीं रह सकता। दूसरी बड़ी जंग के समय ही हिटलर ने आधे से ज्यादा यहूदी आबादी खत्म कर दी थी। उन्होंने जद्दोजहद करके अधिक अधिकारों वाला सूबा इज़राइल, फलस्तीन के अंदर ही ले लिया। जब अंग्रेज चले गए तो सारे अरब देशों ने मिलकर उस पृथक सूबे इज़राइल में से यहूदियों को भगाने की मुहिम शुरू कर दी। पर यहूदियों को इस बात का पहले ही अहसास था कि ऐसा होगा। उन्होंने भी अपनी तैयारी की हुई थी। जब हालात अधिक खराब हो गए तो अरब मुल्कों ने एकत्र होकर यहूदियों के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया। तू तो जानती ही है कि यह 1948 की इज़राइल-अरब देशों की पहली लड़ाई की बात है। उस लड़ाई में अरब मुल्क हार गए। फिर इज़राइल ने अपने आप को तगड़ा करना शुरू कर दिया। क्योंकि उसको पता था कि जो कुछ अब हुआ है, यह आगे भी होगा। और इस तरह हुआ भी। आगे चलकर 1973 में फिर इज़राइल और अरब देशों के बीच युद्ध हुआ। इस बार भी इज़राइल विजयी रहा। असली बात यह है कि यदि इज़राइल कमज़ोर हो तो अरब देश उसको एक दिन में ही खत्म कर दें। सो, अपने आप को बचाने का तो हरेक का पहला हक है।“
“अमजद, यह तू नहीं बोल रहा, तेरे अंदर का अमेरिकी व्यक्ति अमजद बोल रहा है।“ आफिया ने व्यंग्य कसा।
“जब तुझे कोई उत्तर नहीं सूझता तो तू मुझे यह ताना मार देती है।“
बातें करती आफिया ने इस तरह महसूस किया मानो उसके पेट में दर्द उठा हो और वह नीचे फर्श पर बैठ गई। अमजद ने शीघ्र ही एंबूलेंस को कॉल किया और उसको अस्पताल ले गया। परन्तु अस्पताल वालों ने किसी बीमारी की बजाय उनको खुशी की ख़बर दी। आफिया तीसरे बच्चे की माँ बनने वाली थी। वे खुश-खुश घर लौट आए। घर आकर आफिया सोफे पर टेढ़ी होकर लेट गई। अमजद कुर्सी खींचकर उसके पास बैठ गया। आफिया उसके मुँह की ओर एकटक देखती रही। फिर आँखें भरकर बोली, “अमजद, मेरा यहाँ दिल नहीं लगता।“
“क्यों ऐसी क्या बात है ?“
“बस, पता नहीं क्या बात है। मैं चाहती हूँ कि हम पाकिस्तान वापस लौट चलें।“
अमजद कुछ न बोला। वह चुपचाप उसके मुँह की ओर देखता रहा तो आफिया फिर बोली, “तू कोई जवाब क्यों नहीं देता ?“
“आफिया, वहाँ जाकर तू पहले की तरह फिर मेरे पर ज़ोर डालेगी कि जिहाद में शामिल हो।“
“अमजद, मैं तो बीच में फंस गई हूँ।“ काफ़ी देर चुप रहने के बाद दीवार की ओर देखते हुए आफिया बोली।
“वो कैसे ?“
“एक तरफ तू है और दूसरी तरफ पाक पवित्र जिहाद।“
“आफिया, एक बात पूछूँ ? सच सच बताना।“
“हाँ पूछ।“ आफिया ने मुँह उसकी तरफ कर लिया।
“अगर कभी तुझे चुनाव करना पड़े तो तू किसका चुनेगी ? मुझे या जिहाद को ?“
“अमजद, अगर ऐसे चुनाव का वक़्त कभी आता है तो यह मेरे लिए बड़ा दुखदायी होगा। पर सच्ची बात पहले ही बता देती हूँ कि आखि़र मैं चुनूँगी तो जिहाद को ही।“ इतना कहते हुए आफिया ने आँखें मूंद लीं और सीधी होकर सोफे पर लेट गई। अमजद उदास-सा उठकर बाहर चला गया।
अगले दिन सवेरे किसी फोन की घंटी ने आफिया को नींद से जगाया। फोन सुहेल का था। वह बताने लगा कि एफ.बी.आई. द्वारा केयर ब्रदर्ज़ और बोनेवोलैंस इंटरनेशनल के कई अन्य सदस्यों को पूछताछ के लिए पकड़ा था। पर लम्बी इंटरव्यू के बाद सब को छोड़ दिया गया। सुहेल ने आफिया को सावधान किया कि वह अपनी असली ई मेल पर कुछ भी संदेहास्पद न लिखे। साथ ही फोन का प्रयोग करते समय एतिहात बरते। कोशिश करे कि अधिक बात वह उसको दिए गए गुप्त फोन पर करे। सुहेल को लगा कि आफिया नींद में होने के कारण शायद बात नहीं करना चाहती। उसको सोने के लिए कहकर उसने फोन काट दिया। आफिया को दुबारा नींद आने ही लगी थी कि फोन फिर बजा। उसने स्क्रीन पर देखा। सुहेल ही दुबारा फोन कर रहा था। उसने फोन ऑन किया तो सुहेले बड़े उत्साह में बोला, “मैं जो कुछ बताने जा रहा था, वो तेरी नींद और तेरी सुस्ती सब मिटा देगा।“
“अच्छा !“
“मुझे अभी अभी अदनान शुक्रीजुमा का मैसज मिला है।“
“मेरे साथ भी उसकी रात ही बात हुई थी। पर अब वह क्या कह रहा है ?“
“आफिया, तुझे याद है न कि पिछले दिनों एक यहूदी पत्रकार ने पाकिस्तान जाकर जैशे मुहम्मद के लीडर की इंटरव्यू की थी और बाद में उसने जैशे मुहम्मद के बारे में काफ़ी कुछ ऐसा भी लिखा था जो कि हमारे उस लीडर को पसंद नहीं आया था।“
“मुझे पता है। तू डेनियल पर्ल की बात कर रहा है।“
“हाँ, उसी की। उसको उसकी आखि़री मंज़िल पर पहुँचा दिया गया है।“
“क्या मतलब ?“ आफिया उछलकर खड़ी हो गई।
“तू यह एड्रेस इंटरनेट पर डालकर इस वेबसाइट को खुद देख।“ एड्रेस लिखवा कर सुहेल ने फोन कोट दिया। आफिया ने कंप्यूटर ऑन करके सुहेल द्वारा बताई गई वेबसाइट खोली और वीडियो चला दी। वीडियो शुरू हुई तो वह बड़े ध्यान से देखने लगी। दो ढके चेहरों वाले व्यक्ति डेनियल पर्ल को एक खुले आँगन में लेकर आते हैं। फिर उसकी बाहें पीछे से बाँध दी जाती हैं। ढके चेहरे वाला एक व्यक्ति आगे बढ़ता है और डेनियल पर्ल की जीभ काट देता है। फिर बायें हाथ से उसके बाल पकड़कर सिर को पीछे की ओर खींचता है और दायें हाथ से धीरे धीरे उसकी गर्दन इस तरह काटता है जैसे बकरे को हलाल किया जाता है। सब कुछ करीब दो मिनट की वीडियो में ही घटित हो जाता है। आफिया इन दो मिनटों में आँखें नहीं झपकती। पहले उसका चित्त खराब होने लगता है। फिर उसको अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा मारे जा रहे जिहादी याद आते हैं तो उसका मन बदलने लगता है। आखि़र में वह उन जिहादियों पर गर्व महसूस करती है जो डेनियल पर्ल की हत्या करते हैं।
अगले दिन यह घटना अख़बारों की मुख्य सुर्खी बन गई। असल में डेनियल पर्ल कई दिनों से पकड़ा हुआ था। उसकी गर्भवर्ती पत्नी ने टी.वी. पर जाकर जिहादियों से विनती भी की थी कि उसके पति की जान बख़्श दी जाए। उसने कहा था कि और किसी के लिए नहीं तो इस नन्हीं जान के लिए ही सही, जो कुछ ही महीनों बाद जन्म लेने वाली है। कम से कम इसको पिता से वंचित न किया जाए। पर उसकी मिन्नतों का कोई असर न हुआ। आतंकवादियों ने पर्ल की सिर्फ़ हत्या ही नहीं की, बल्कि उसको मारते समय की वीडियो इसलिए बनाई ताकि अन्य पत्रकारों डराया जा सके।
अमेरिका युद्ध का मुँह हालांकि इराक की तरफ मोड़ रहा था, पर उसने अलकायदा सदस्यों का पीछा करना और तेज़ कर दिया था। आखि़र, मार्च 2002 में अमेरिका को उस वक़्त सफलता मिली जब उन्होंने बहुत ही उच्च कोटि का अलकायदा सदस्य अबू जु़बेद पकड़ लिया। पहली बार अबू जु़बेद ने ऐसी जानकारी दी कि अमेरिकी सरकार के होश उड़ गए। उसके अनुसार नाइन एलेवन की सारी कार्रवाई को अंजाम देने की जिम्मेदारी खालिद शेख मुहम्मद की थी जिसको कि आमतौर पर के.एस.एम. कहा जाता था। और 1993 में नॉर्थ टॉवर के पॉर्किंग लॉट में बम धमाका करके छह जनों की मौत और सैकड़ों को ज़ख़्मी करने वाला रम्जी यूसफ इसी के.एस.एम. का भतीजा है। अमेरिकी एंजेसियाँ जो अब तक नाइन एलेवन को लेकर अँधेरे में ही तीर मार रही थीं, अब सारी कहानी समझ गईं। वे जान गईं कि कैसे के.एस.एम. ने ओसामा बिन लोदन के साथ मिलकर नाइन एलेवन वाली घटना का खाका बनाया। फिर इसको अंजाम देने की सारी जिम्मेदारी भी के.एस.एम. ने ही पूरी की। उसने सारे आतंकवादियों को अमेरिका में पहुँचाने में मदद की और उन्हें ट्रेनिंग दी। अबू जु़बेद बहुत थोड़े टार्चर के बाद ही बहुत कुछ उगल गया। उसने के.एस.एम. की भविष्य की स्कीमों के बारे में भी बता दिया। अबू ने बताया, “के.एस.एम. अपनी इस नाइन एलेवन की प्राप्ति से बहुत उत्साहित है। वह इस लड़ाई को ज़ोर-शोर से आगे बढ़ाते हुए दूसरे बड़े हमले की तैयारी कर रहा है। उसकी आगे की योजना यह है कि अमेरिका में रेडियो एक्टिव बमों के साथ हमला किया जाए। अमेरिका की प्राकृतिक गैस लाइनों को आग लगा दी जाए जिससे एक ही बार में लाखों लोग मर जाएँगे। या फिर वह चाहता है कि अमेरिका के पानी के सिस्टम में ज़हर मिला दिया जाए। इससे भी बहुत लोग मरेंगे। अमेरिकी एटमी ऊर्जा प्लांट भी उसके निशाने पर हैं।“
अबू जु़बेद ने यह भी बताया कि इस दूसरे हमले के लिए के.एस.एम. ने भिन्न तरीका अपनाया है। इसके लिए वह पहले से ही अमेरिका में रह रहे लोगों में से जिहादियों की भर्ती कर रहा है। इस काम के लिए उसने होज़े पदीला जैसे कई लोग चुन भी लिए हैं। इसके अलावा अबू जु़बेद ने आगे बताया कि अगली सारी योजनायों को अंजाम देने के लिए के.एस.एम. ने अदनान शुक्रीजुमा को जिम्मेदारी सौंपी है। वही अमेरिका में रहते हुए आगे के आपरेशनों को अंजाम देगा। अबू जु़बेद से जिनके बारे में जानकारी मिली, एफ.बी.आई. उन सबके पीछे लग गई।
(जारी…)
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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अमजद ने अपनी आखि़री परीक्षा पास कर ली और उसने डॉक्टरी की सारी पढ़ाई मुकम्मल कर ली जो कि उसका लक्ष्य था। उसके लिए बड़े गर्व की बात थी कि वह अपनी कक्षा में अव्वल आया था। उसकी पार्ट टाइम टीचर की जॉब भी उसके लिए अच्छी साबित हुई। यह परीक्षा पास करते ही उसको असिसटेंट प्रोफेसर बना दिया गया। वह अब खुश था। उसकी पढ़ाई की जिम्मेदारियाँ पूरी हो चुकी थीं। उसने आफिया को खुश रखने का एक और ढंग निकाला। वह आफिया से कहने लग पड़ा कि अभी तो हम जिहाद के बारे में सीख ही रहे हैं, जब हम इस बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लेंगे तो इसमें शामिल होने की सोचेंगे। उसने फिर से दाढ़ी बढ़ा ली ताकि आफिया को लगे कि वह मज़हब की ओर लौट रहा है। पर आफिया इस वक़्त उसकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही थी। शायद वह उसका नाटक समझ रही थी। ख़ैर, अमजद ने आफिया को खुश रखने के लिए काफ़ी सारा वक़्त घर में ही बिताना प्रारंभ कर दिया। वह हर इतवार को उसको और बच्चों को कहीं बाहर घुमाने ले जाता। एक दिन उसने घर में बात की, “आफिया, मेरे परिवार में शिकार का बहुत शोक रहा है।“
“अच्छा।“ आफिया ने साधारण-सा हुंकारा भरा।
“मैं चाहता हूँ कि मैं अपने बच्चों को खानदानी शोक से परिचित करवाऊँ।“
“इसके लिए क्या करेगा ?“
“हम इस वीक एंड पर कहीं बाहर चलते हैं। शिकार खेलने का सारा सामान वगैरह मेरा मतलब बंदूक आदि और अन्य सामान हम किसी स्टोर से खरीद लेंगे।“ उसकी बंदूक वाली बात आफिया को जच गई। उसने सोचा कि इसी बहाने वह बंदूक चलाने का अभ्यास कर लेगी। साथ ही फील्ड में पेश आने वाली मुश्किलों से परिचित हो जाएगी। उसने खुशी खुशी इस काम के लिए हामी भर दी। अगले ही दिन वे किसी असले की दुकान पर गए। दुकान वालों ने उनकी आई.डी. आदि चैक कीं। फिर उन्होंने आवश्यक सामान खरीद लिया। इस में पिस्तौल, बंदूक, सरवाइवल गाईड, बुलेट प्रूफ और नाइट विज़न गोगल्ज़ आदि थे। वे वीक एंड पर किसी शूटिंग रेंज पर चले गए। वहाँ उन्होंने दो दिन बिताये। खूब मस्ती की। शिकार खेला। ख़ास तौर पर आफिया ने बंदूक के निशाने लगाने का अभ्यास किया। इतवार की शाम वे घर लौट आए। अमजद ने देखा कि इस घटना के बाद आफिया में बहुत परिवर्तन आने लगा। वह अमजद से कहने लगी कि फिर से शूटिंग रेंज पर चला जाए। और इस बार बड़े हथियार मतलब ए.के. फोर्टी सेवन जैसी राईफलें चलाने का लुत्फ़ उठाया जाए। अमजद इसके लिए मान गया। अगले सोमवार वे यह कहकर काम पर गया कि वह कुछ घंटों के बाद लौट आएगा और फिर वे शिकार पर जाने का कार्यक्रम बनाएँगे। आफिया खुशी खुशी तैयारी करने लगी। करीब ग्यारह बजे उसके घर की डोर बेल बजी। वह दौड़ती हुई दरवाज़े की ओर गई कि शायद अमजद आ गया है। दरवाज़ा खोलने से पहले उसने की-होल में से देख लेना ज़रूरी समझा। जब उसने बाहर झांका तो वह भौंचक्क रह गई। बाहर दो व्यक्ति सूटिड-बूटिड और काली ऐनक लगाए दरवाज़ा खुलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। आफिया का दिल ज़ोर से धड़का, पर उसने अपने आप पर नियंत्रण रखते हुए पूछा, “कौन हो तुम ?“
“हम एफ.बी.आई. से हैं। आपसे मिलना है। दरवाज़ा खोलो।“
“मैं घर में अकेली औरत हूँ। मैं इस तरह दरवाज़ा नहीं खोल सकती। तुम तब आना जब मेरा पति घर में हो।“ उसने धैर्य से उत्तर दिया।
“वह कब आएगा ?“ एफ.बी.आई. वालों ने पूछा। पर आफिया कुछ न बोली। वह कुछ देर दरवाज़ा खुलवाने अथवा अन्य कोई बात करने का यत्न करते रहे, मगर आफिया ने अंदर जाते ही बैडरूम का दरवाज़ा भी बंद कर लिया। अंदर से ही वह अमजद को फोन मिलाते हुए बोली, “अमजद, गज़ब हो गया।“
“क्यों, क्या हो गया ? ख़ैर तो है ?“
“नहीं, ख़ैर नहीं है। अपने दरवाज़े पर एफ.बी.आई. वाले खड़े हैं और वे मुझे दरवाज़ा खोलने के लिए ज़ोर दे रहे हैं।“
“तू दरवाज़ा खोलकर पूछ तो सही कि आखि़र बात क्या है। वे यहाँ क्या करने आए हैं ?“
“नहीं अमजद, मैं दरवाज़ा नहीं खोलूँगी।“
“आफिया हो सकता है कि वे कोई ज़रूरी बातचीत करने आए हों। या किस दूसरे का अता-पता पूछ रहे हों। मेरा तो ख़याल है कि तू एक बार उनसे बात कर ले।“
“अमजद, मैंने तुझे कह दिया कि मैं किसी हालत में भी दरवाज़ा नहीं खोलूँगी। मुझे तो बहुत डर लग रहा है।“
“डरने की इसमें क्या ज़रूरत है। तू तो...।“ बात करते करते अमजद एकदम चुप हो गया। उसने देखा कि उसके सामने कोई आ खड़ा हुआ था। जो देखने से ही किसी एंजेंसी का व्यक्ति लगता था।
“आफिया, मैं तुझे ठहरकर फोन करता हूँ।“ इतना कहते हुए अमजद ने फोन काट दिया। उसने फोन एक तरफ रखा तो सामने खड़े व्यक्ति ने अपना कार्ड निकालकर उसके सामने कर दिया और बोला, “आए एम फ्रॉम एफ.बी.आई.।“
“जी, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?“ अमजद की आवाज़ में कंपन था।
“हम आपके साथ बातचीत करने आए हैं। मेरा साथी बाहर खड़ा है। क्या हम कुछ देर पॉर्क में जाकर बैठ सकते हैं ?“
“हाँ जी, बिल्कुल। मैं अपने बॉस को बता दूँ।“ इतना कहते हुए अमजद ने अपने बॉस से बात की और एफ.बी.आई. अफसर के साथ चल दिया। चलते हुए वह सोच रहा था कि यह तो काई खास बात लगती है कि ये एक समय में उसके घर और दफ़्तर में आए हैं। फिर उसको याद आया कि कुछ हफ़्ते पहले ही उसने असले की दुकान से जो सामान खरीदा था, ये उसी के कारण आए होंगे। यह बात याद आते ही उसका मानसिक तनाव काफ़ी घट गया, पर असल में यह बात नहीं थी। पहली बात तो अबू जु़बेद ने ही यहाँ के अलकायदा सैलों के बारे में बहुत कुछ जानकारी दी थी। शेष कसर तब पूरी हो गई जब उसकी गिरफ्तारी के अगले हफ़्ते ही पाकिस्तान से चलकर चिकागो एअरपोर्ट पर जैसे ही होजे़ पदीला उतरा, उसे पकड़ लिया गया। उसके पास से जो कंप्यूटर बम ड्राइव मिली, उसमें से बहुत सारी जानकारी प्राप्त हुई थी। उसमें से अदनान शुक्रीजुमा का नाम का पता चला। एफ.बी.आई. पहले ही उन लोगों की गतिविधियों पर नज़र रखे हुए थी जिनके नाम अबू जु़बेद से मिले थे। अबू जु़बेद की गिरफ्तारी छिपाकर रखी गई थी। इसी कारण होजे पदीला, एफ.बी.आई. के हाथ चढ़ गया। पर उसके पकड़े जाने के पश्चात शेष सभी सदस्य गुप्तवास में चले गए। ख़ैर, अमजद को साथ लेकर एफ.बी.आई. के दोनों अफ़सर पॉर्क में जा बैठे।
“मि. अमजद, हम एफ.बी.आई. से हैं। लो, तुम अपनी तसल्ली के लिए मेरा आई कार्ड देख लो।“ इतना कहते हुए एक अफ़सर ने सरकारी बैज दिखलाते हुए अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर अमजद के हवाले कर दिया। अमजद ने सरसरी नज़र डालते हुए विजिटिंग कार्ड जेब में डाल लिया।
“मि. अमजद, आप कोई घबराहट तो महसूस नहीं कर रहे ? मेरा मतलब हम बात कर सकते हैं ?“
“नहीं सर, ऐसा कुछ नहीं है। आप बात शुरू करो।“
“मि. अमजद, नाइन एलेवन का हादसा करने वाले हाईजैकर्स घटना से पहले आपके अपार्टमेंट की बिल्डिंग में आते जाते रहे हैं। क्या आप उनके बारे में कुछ जानते हैं ?“
“नहीं सर। मुझे बात की कोई जानकारी नहीं है।“ पहली बात ने ही उसके पैर उखाड़ दिए। जितनी छोटी बात वह समझ रहा था, उतनी छोटी उसको लगी नहीं।
“क्या आपकी पत्नी को इस बारे में कुछ पता होगा ?“
“जहाँ तक मेरा ख़याल है, इस बात के बारे में उसको भी कुछ पता नहीं होगा। हम तो आम-सी ज़िन्दगी जीने वाले सादे-से लोग हैं।“
“आपको या आपकी पत्नी को और कुछ अता-पता है। हमारा मतलब हाईजैकर्स या उनकी कार्रवाइयों के बारे में ?“
“नहीं सर, हमें इस तरह की कोई जानकारी नहीं है।“
इसके बाद दोनों अफ़सरों की आपस में नज़रें मिलीं। फिर उनमें से एक बोला, “मि. अमजद, हम आप दोनों यानी पति-पत्नी की एकसाथ इंटरव्यू करना चाहेंगे। इसके लिए आपको हमारे दफ़्तर से सरकार का लैटर आएगा। पर तब तक आप शहर छोड़कर कहीं नहीं जा सकते। यह एक सरकारी आदेश है। मेरा कार्ड आपके पास है, जब चाहे कॉल करके बता सकते हो। वैसे घबराने वाली कोई बात नहीं है। यह एक रूटीन काम है।“
“जी सर।“
वे चले गए तो अमजद के मन पर से बहुत सारा बोझ कम हो गया। शुरू में तो उसको पहला प्रश्न सुनकर ही लगा था कि यह तो बात ही उल्टी दिशा की ओर चल पड़ी। पर अब उसको लगा कि यह तो वास्तव में ही आम-सी इंकुआरी है जो कि किसी के साथ भी हो सकती हे। लेकिन जब अमजद घर पहुँचा तो आफिया डर से काँपे जा रही थी। उसके घर में प्रवेश करते ही वह अमजद से लिपटकर रोने लग पड़ी। अमजद ने उसको ढाढ़स देकर शांत करवाया। आफिया थोड़ा संभलते हुए बोली, “अमजद, तू मेरी बात सुन ले। हमें आज ही पाकिस्तान चले जाना चाहिए।“
“क्यों ? हमने क्या कोई गलत काम किया है कि यहाँ से भागें ?“
“बस, मैंने कह दिया कि हमें यहाँ नहीं रहना।“
“पर कोई बात तो हो जिसकी वजह से हमें भागना पड़े।“
“इसका मतलब, तू मेरी बात नहीं मानेगा ?“
“मैं तेरी बात मान लूँगा यदि तू मुझे साफ़ साफ़ बता दे कि तुझे डर किस बात का है। पहले भी तूने ऐसा ही किया था। घटना न्यूयॉर्क में हुई थी और तूने यहाँ धरती आसमान पर उठा ली। आखि़र मेरी बात न मान पाकिस्तान जाकर ही साँस लिया था। फिर क्या निकला उस बात में से ? सिर्फ़ परेशानी के। मेरी पढ़ाई का नुकसान हुआ, साथ ही सारे रिश्तेदारों को तंग किया।“
“अमजद, तू तब की बात छोड़। मैं तेरी मिन्नत करती हूँ, प्लीज़ अब मेरी बात मान ले।“ आफिया आँखों में आँसू भरती हुई बोली। उसके आँसू देखकर अमजद ढीला पड़ गया। वह कुछ सोचता हुआ बोला, “चल, मैं कुछ दोस्तों के साथ सलाह-मशवरा करता हूँ। फिर देखते हैं कि क्या होता है।“
“अगर तब तक वो दुबारा आ गए तो ?“
“नहीं, इतनी जल्दी नहीं आते। और फिर उन्हें और भी कोई काम होगा। अकेले हम ही तो यहाँ नहीं बैठे। यहाँ लाखों मुसलमान रहते हैं। क्या पता, उन्हें किस-किस की इंटरव्यू करनी होगी।“
“तू मेरे साथ एक बात का फैसला कर, अभी।“ आफिया गुस्से में काँपने लगी।
अमजद ने हैरान होकर आफिया की ओर देखा कि यह कभी नरम पड़ जाती है और कभी फिर से भड़क उठती है।
“अमजद, तुझे मेरी परवाह है कि नहीं ?“
“तेरी परवाह मुझे न होगी तो फिर और किसको होगी।“
“फिर मेरी बात मान और कल ही पाकिस्तान चल।“
अमजद ने उसकी बात का कोई उत्तर न दिया। उसने कई मित्रों को फोन मिलाकर बातें कीं। हरेक ने उसको यही बताया कि आजकल यह बात आम हो गई है कि एफ.बी.आई. वाले किसी भी मुसलमान के घर जा पहुँचते हैं। पर जब कुछ मिलता नहीं तो वापस लौट पड़ते हैं। फिर अमजद ने आफिया के भाई मुहम्मद अली को हूस्टन में फोन किया। सारी बात सुनकर अली ने आफिया के साथ बात करनी चाही। आफिया ने फोन पकड़ लिया तो वह हँसता हुआ बोला, “तू हमारी बहादुर लिटिल सिस्टर कब से डरपोक बन गई। यह तुझे क्या हो गया। इस तरह तो सारे मुसलमान अमेरिका छोड़कर चले जाएँगे। तुझे डरने की ज़रूरत ही नहीं। शांत रह।“
“पल्ले शांति ही रह जाएगी। वे उठाकर जेल में फेंक देंगे।“
“कुछ नहीं होता। यूँ ही न घबरा।“
उसका भाई भी बार बार पूछता रहा कि वह किस बात से इतना डर रही है, पर आफिया ने कोई जवाब नहीं दिया। आखि़र वह चुप हो गई और काँपती-सी सोफे पर बैठ गई। मगर उस रात वह पल भर भी न सोई। वह सारी रात कमरे में चक्कर लगाती रही। अमजद को उसकी हरकतें बहुत परेशान कर रही थीं। उसे चिंता भी थी कि कहीं इसके दिमाग पर ही बोझ न पड़ जाए। सुबह होते ही उसने बॉस्टन के मशहूर वकील को फोन करके सारी बात बताई। साथ ही यह भी बताया कि उसकी पत्नी इस घटना से बहुत ही डरी हुई है। वकील ने सलाह दी कि इसके लिए तुम खुद ही एफ.बी.आई. वालों से मुलाकात का समय लेकर इंटरव्यू वाला काम पूरा कर सकते हो। बल्कि इस तरह तुम्हें लम्बे समय तक एफ.बी.आई. के डर तले दिन नहीं गुज़ारने पड़ेंगे। अमजद के हाँ कहते ही वकील ने एफ.बी.आई. को फोन करके उनके साथ इंटरव्यू की तारीख़ तय का ली। अमजद ने आफिया को बताया तो वह और अधिक डर गई और भड़क गई। वह कहने लगी कि वह किसी भी हालत में एफ.बी.आई. के सामने नहीं जाएगी।
“पर तुझे तकलीफ़ क्या है। तू किसी भी बात पर कान नहीं धर रही। अब वकील ने इंटरव्यू का प्रबंध कर दिया है तो तू कह रही है कि तू एफ.बी.आई. वालों से नहीं मिलेगी। तुझे पता होना चाहिए कि यह सरकारी हुक्म है कि हम इंटरव्यू के बिना यहाँ से नहीं जा सकते।“
“अमजद, क्या तुझे इस बात का ज़रा-सा अहसास भी है कि यदि कोई पंगा पड़ गया तो क्या होगा ?“
“आफिया, यह तो तुझे तब सोचना था जब मेरे रोकने के बावजूद चैरिटी के कामों में हिस्सा लेने से नहीं हटा करती थी। अब यूँ डरी जा रही है। जितने भी केयर ब्रदर्ज़ या बोनेवोलैंस इंटरनेशनल के सदस्य हैं, सबके साथ एफ.बी.आई. ने बातचीत की है। किसी को कुछ नहीं कहा।“
“उनकी और मेरी बात में अंतर है।“
“क्या ! क्या कहा ? तेरे में और उनमें क्या फर्क है ?“ अमजद का दिल ज़ोर से धड़का।
“ये बातें तू नहीं समझ सकता। ये चैरिटी के अपने काम करने के ढंग होते हैं।“ आफिया के मुँह से कोई दूसरी बात निकलने ही वाली थी, पर उसने चुस्ती के साथ बात को गोल कर दिया। फिर अमजद धैर्य से बोला, “देख आफिया, हमने बहुत बहस कर ली। अब मैं एक पति के अधिकार से तुझसे कह रहा हूँ कि कल सवेरे दस बजे हम वकील के दफ़्तर जा रहे हैं। वहीं एफ.बी.आई. वाले आएँगे और वहीं अपनी इंटरव्यू होगी। अब इस मसले पर कोई बात नहीं होगी।“ इतना कहकर अमजद घर से बाहर चला गया। शाम के वक़्त वह लौटा तो आफिया मुँह-सिर लपेटकर बैड पर पड़ी हुई थी। अमजद ने सोचा कि यह शायद इस कारण गुस्सा दिखा रही है कि मैं इसकी बात नहीं मान रहा। परंतु आफिया के अंदर बहुत बड़ी उठा-पटक मची हुई थी। उसको पूरा विश्वास था कि कल उसको गिरफ़्तार कर लिया जाएगा।
अगले दिन वह निश्चित समय पर वकील के दफ़्तर पहुँच गए। तभी एफ.बी.आई. के वही दो अफ़सर जो कि अमजद को मिलकर गए थे, वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने कुछ काग़ज़ों पर दोनों के दस्तख़्त करवाकर वकील की सहमति से इंटरव्यू शुरू कर दिया। प्रारंभ में वह कोई अधिक कठिन प्रश्न नहीं कर रहे थे। बल्कि वे बीच बीच में अमजद को ऐसे मजाक भी कर रहे थे जो कि आम लोग डॉक्टरों के बारे में करते रहते हैं। इस बात ने अमजद को निश्चिंत कर दिया कि कोई ख़तरे वाली बात नहीं है। फिर एक अफ़सर बोला, “मिस्टर और मिसेज अमजद, अब हम आफिशियल मीटिंग शुरू कर रहे हैं।“
“जी, ठीक है।“
फिर एक अफ़सर ने आफिया की ओर देखा। आफिया ने काला बुर्का पहन रखा था और मुँह-सिर दुपट्टे में लपेटा हुआ था। उसकी आँखें भी सिर्फ़ बुर्के की जालियों में से ही आधी-अधूरी-सी दिख रही थीं।
“मिसेज आफिया, आपको अपना मुँह नंगा करना पड़ेगा। क्योंकि यह ज़रूरी है।“
“नहीं, यह मैं नहीं कर सकती। यह मेरा धार्मिक अधिकार है कि मैं जैसे मर्ज़ी कपड़े पहनूँ।“
उसकी यह बात सुनकर दोनों अफ़सरों ने आपस में नज़रें मिलाईं। फिर वे उठकर एक तरफ हो गए और आपस में बातचीत करने लगे। वापस बैठते हुए उनमें से एक बोला, “मिसेज आफिया, हम आपके धार्मिक अकीदे की इज्ज़त करते हैं, पर कानून अपनी जगह है। हम आपको इतनी छूट दे सकते हैं कि आप अपने बुर्के को इस ढंग से पहने कि हमें आपका चेहरा दिखता रहे। आमने सामने की बातचीत में यह बहुत ज़रूरी है। अगर आपको यह भी मंजूर नहीं तो हम अपनी किसी औरत एजेंट को बुला लेते हैं। फिर आपको बुर्का उतारकर एक तरफ रखना पड़ेगा।“
आफिया ने स्वयं ही बुर्का ठीक कर लिया। अब उसका सारा चेहरा नंगा था। अफ़सरों ने एक इतने पर ही संतुष्टि प्रकट की। बातचीत शुरू हुई तो अफ़सर बोला, “मि. अमजद, आपके अपार्टमेंट में एक बार कोई सउदी अरब का बाशिंदा रहा करता था, वह कौन था ?“
“वह मेरे अस्पताल में ही काम करता था। उसको किराये के कमरे की ज़रूरत थी और मुझे अपने घर का एक कमरा किराये पर देना था। वह कमरा मैंने उसको दे दिया। बस, उसके बारे में इतना ही जानता हूँ।“
“उसके पास कौन आता था ?“
“हमने कभी देखा नहीं कि कभी कोई उसको मिलने आया हो।“
“आपने पिछले दिनों असले की दुकान से काफ़ी सामान खरीदा है। वो क्यों ?“
“मेरे परिवार में शिकार का शौक रहा है। मैं अपने बच्चों को उस पारिवारिक परंपरा से परिचित करवाने के लिए उन्हें शिकार के ट्रिप पर ले गया था।“
“पर वो सामान सिर्फ़ शिकार तक ही सीमित नहीं था। आपने नाइट विज़न गॉगल्ज़, बुलट प्रूफ़ जैकेट और सरवाइवल गाइड जैसी वस्तुएँ भी खरीदी थीं। यह सब किस लिए ?“
“इन सबका ताल्लुक सिर्फ़ शिकार से ही था, और कुछ नहीं।“
“मिसेज आफिया, क्या आपको बंदूक चलानी आती है ?“
“नहीं, मैंने कभी बंदूक नहीं चलाई।“
“इस शिकार के ट्रिप के समय भी चलाकर नहीं देखी ?“
“नहीं, मुझे ऐसे काम अच्छे नहीं लगते।“
“अजीब बात है कि सभी ने बंदूक चलाई, शिकार खेला, पर आपने हथियार चलाकर नहीं देखा ?“
“ये तो अपने अपने शौक पर निर्भर करता है।“ आफिया जब यह बात कह रही थी तो एक अफ़सर ने गौर से उसकी तरफ देखा। आफिया ने उसके साथ आँखें मिलाने की बजाय नीचे झुका लीं। अफ़सर समझ गया कि यह झूठ बोल रही है। इसने शिकार के समय बंदूक अवश्य चलाकर देखी होगी।
“मि. अमजद, आजकल काम का काफ़ी सारा बोझ रहता होगा ?“ एक अफ़सर ने अमजद से उसके काम की बात प्रारंभ की तो अमजद को लगा कि शायद इंटरव्यू इतनी संजीदा नहीं है। परंतु तभी अफ़सर के अगले प्रश्न ने उसकी घबराहट बढ़ा दी। वह बोला, “मि. अमजद, क्या आप कभी ओसामा बिन लादेन से मिले हो ?“
“ओसामा से ! जी बिल्कुल नहीं। मैं उन्हें कभी नहीं मिला।“
“उसकी फोटो तो देखी होगी ?“
“हाँ जी, वह तो दिनभर टी.वी. पर देखते ही रहते हैं।“
“निजी तौर पर मिलते समय फोटो से कितना भिन्न दिखाई देता है लादेन ?“
“जी, कभी मिले ही नहीं तो क्या कह सकते हैं ?“ अमजद ने ज़रा मुस्कराते हुए उत्तर दिया। एक अफ़सर इसी दौरान आफिया के चेहरे को बड़े गौर से देख रहा था। वह मन ही मन सोच रहा था कि अब यह अपने आप को इसी सवाल के लिए तैयार कर रही है जो अमजद से पूछा गया है कि क्या वह कभी ओसामा बिन लादेन से मिली है। मगर उसने दूसरे किस्म का सवाल करके आफिया को हैरान कर दिया।
“मिसेज आफिया, क्या आप कभी रम्जी यूसफ से मिली हैं ?“
“क्या ! क्या कहा ?“ आफिया वाकई हैरान रह गई।
“आपने यह नाम सुना होगा ?“
“हाँ जी, यह वही आदमी है जो कि 1993 के नॉर्थ टॉवर पॉर्किंग में बम धमाके का दोषी है। पर मैं इससे कभी नहीं मिली।“
“अच्छी तरह याद करो। कई बार आदमी वैसे ही मिल जाता है। कहीं शॉपिंग सेंटर में, किसी मस्जिद में या कहीं एअरपोर्ट की लाइन में लगे हुए।“
उसकी बात सुनकर आफिया को पसीना आ गया कि यह तो उसके बारे में बहुत कुछ जानते हैं। उसको याद आया कि बहुत पहले उसने रम्जी यूसफ को एअरपोर्ट पर साथ वाली लाइन में खड़ा देखा था। दोनों की नज़रें भी आपस में मिली थीं। यह बात याद करते ही वह अंदर तक काँप गई। वह समझ गई कि इन्हें उसके बारे में बहुत सारी जानकारी है, पर फिर भी उसने कह दिया कि वह रम्जी यूसफ को कभी नहीं मिली। उसके इस जवाब के तुरंत बाद अफ़सर बोला, “रम्जी को न सही, पर आप उसके चाचा के.एस.एम. से तो कभी मिली होंगी ?“
“नहीं, मैं उससे भी कभी नहीं मिली।“
“आपने आखि़री बार मुहम्मद अट्टे को कहाँ देखा था ?“
“मुहम्मद अट्टा ?“
“हाँ हाँ, वही जो नाइन एलेवन की घटना को अंजाम देने वाली टीम का नेता था।“
“मैं उसको कभी नहीं मिली।“
“आपकी अपार्टमेंट की इमारत में कम से कम छह हाईजैकर्स आते रहे हैं। आपकी उनके साथ कभी न कभी तो मुलाकात हुई ही होगी ?“
“नहीं, कभी नहीं हुई।“
“वैसे आते-जाते देखे होंगे। अक्सर आता-जाता आदमी मिल ही जाता है।“
“जी नहीं। मैंने किसी को नहीं देखा।“ अफ़सर गौर कर रहे थे कि एक के बाद एक किए जा रहे सवाल आफिया को परेशान कर रहे थे। पर अभी तो वे भूमिका ही बाँध रहे थे।
“मि. अमजद क्या आपने केयर ब्रदर्ज़ और बोनेवोलैंस के बारे में सुना है ?“
“जी, जहाँ तक मुझे पता है, ये चैरिटी का काम करने वाले संगठन हैं।“
“आपको यह कैसे पता है ? क्या आप इनके मेंबर रहे हैं ?“
“नहीं जी, मेरी पत्नी इनकी मेंबर है। इसी की बातों से मुझे पता लगता रहता था कि ये संगठन चैरिटी का काम करते हैं।“
“मिसेज आफिया, क्या आपका इनसे वास्ता रहा है ?“
“जी, थोड़ा-बहुत।“
“क्या आपको पता है कि ये चैरिटी द्वारा एकत्र किए गए पैसे का क्या करते हैं ?“
“मेरा ख़याल है कि गरीबों में बाँटते होंगे।“
“क्या आपने कभी इनके कारकुनों से पूछा नहीं कि इतने एकत्र हुए पैसे का क्या किया जाता है ?“
“मुझे ऐसी बातों से क्या लेना। जो चाहे करें।“ आफिया उनकी बातों को सुनकर ऊब गई थी, पर साथ ही उसको थोड़ी-सी तसल्ली भी थी कि यह तो साधारण-से प्रश्न ही पूछ रहे हैं।
“आपको पूछने का पूरा अधिकार है। आप इसको फंड इकट्ठा करके जो देती हैं।“
“नहीं, मैंने कभी किसी के लिए फंड इकट्ठा नहीं किया।“
“क्या आपने बोनेवोलैंस को फंड इकट्ठा करके नहीं दिया ?“
“नहीं, मैंने कभी कोई फंड इकट्ठा नहीं किया और न ही किसी को दिया है।“
“पक्की बात है ?“
“और क्या झूठ है ?“ आफिया ने आँखें तरेरीं।
“तो फिर आपके खाते में जो हज़ारों डॉलर इकट्ठे हुए हैं और आपने इन्हें आगे बोनेवोलैंस के खाते में भेजे हैं, यह सब फिर क्यों किया ?“
“यह सब झूठ है। मैंने ऐसे कोई पैसे इकट्ठे नहीं किए।“
“ये पेपर्स फिर झूठ बोलते हैं।“ इतना कहते ही अफ़सर ने आफिया के बैंक की पिछले दो सालों की स्टेटमेंट निकालकर वकील के सामने रख दीं। आफिया की आँखें फटी की फटी रह गईं। पर वह बात को संभालती हुई बोली, “हमारे मज़हब में यह भी है कि यदि हमारी इच्छा हो तो चैरिटी के बारे में किसी को न बताएँ।“
“चलो, ठीक है।“ अफ़सर खुश था कि उसने आफिया को झूठी साबित कर दिया था।
“मिसेज आफिया, क्या आप बता सकती हैं कि के.एस.एम. की अमेरिका को तबाह करने की भविष्य में क्या योजना है ?“
“मैं न उसको जानती हूँ, न ही कभी उससे मिली हूँ। फिर मुझे क्या मालूम कि वह क्या करता है, क्या नहीं।“
“क्यों ? आपको अदनान शुक्रीजुमा ने उसकी योजना के बारे में नहीं बताया ?“
“कौन अदनान शुक्रीजुमा ?“ यह नाम सुनकर आफिया अंदर तक काँप गई, पर बाहर से अपने को सहज ही दर्शाने की कोशिश की।
“आपके कहने का अर्थ है कि आप अदनान शुक्रीजुमा को नहीं जानती ?“
“जी, बिल्कुल नहीं।“
“सच बात है ?“ अफ़सर ने सीधा उसकी ओर देखकर पूछा।
“कह तो दिया न कि मैं उसको नहीं जानती। और कैसे बताऊँ ?“ आफिया की आवाज़ में खीझ थी।
उसने बात समाप्त की तो अफ़सर उसकी आँखों में देखता रहा। फिर वह गंभीर आवाज़ में बोला, “यदि आप उसको जानती ही नहीं तो हर रोज़ उससे ई मेल पर बातें क्यों करती हैं ?“
“क्या ?“ आफिया को लगा जैसे कंरट लगा हो। मगर उसने अपने आप को संयत रखते हुए कहा, “मैंने उसको कोई ई मेल नहीं भेजी।“
“तो फिर यह क्या है ?“ अफ़सर ने बैग में से काग़ज़ों का पुलिंदा निकालकर वकील के सामने रख दिया। ये वे ई मेल थीं जो कि अदनान शुक्रीजुमा और आफिया में आदान-प्रदान होती रही थीं। वकील ने बड़े गौर से ई मेलों को देखा। उधर आफिया परेशान हुई कुर्सी पर बैठी करवटें बदलने लगी।
“मैम, आपने हमारी बात का जवाब नहीं दिया ?“
“यह ... यह तो मैं... मेरा मतलब ...।“ उससे कोई जवाब न दिया गया। उसने गर्दन झुका ली।
दोनों अफ़सर उठे और एक तरफ जाकर आपस में बातें करने लगे। आफिया को पूरा यकीन हो गया कि अब वह उसको गिरफ्तार करने की सलाह कर रहे हैं। पर जब उन्होंने वापस आकर अपनी बात कही तो आफिया को कुछ तसल्ली-सी हो गई।
वे वकील से मुखातिब हुए, “सर, ये इंटरव्यू हम यहीं बंद करते हैं। पर इनकी इंटरव्यू अभी और होगी। उसके लिए हम अगले महीने की उन्नीस तारीख तय कर रहे हैं।“
“ठीक है। आप उसके बारे में मुझे पूरी सूचना भेज दो।“
“हाँ, ऐसा ही होगा। साथ ही मिस्टर और मिसेज अमजद खाँ से कुछ कहना चाहते हैं।“
“जी...।“ अमजद डरता हुआ बोला।
“आपका अगले इंटरव्यू में शामिल होना बहुत ज़रूरी है। आप उस इंटरव्यू से पहले यह देश छोड़कर नहीं जा सकते। यह एक सरकारी आदेश है। लीजिए, इस सरकारी आदेश पर दस्तख़्त कर दो।“ अफ़सर ने अगली इंटरव्यू पर उपस्थित रहने वाला काग़ज़ उनके सामने रख दिया। दोनों ने बारी बारी उस पर साइन कर दिए। फिर अफ़सरों ने अपने बैग संभाले और दफ़्तर से बाहर निकल गए। उनके जाते ही अमजद ने वकील से पूछा, “आपको कैसा लगा। यह इंटरव्यू कितना संजीदा था ?“
“यह तो आम-सी बात है। मेरे ख़याल में आपके लिए इसमें डरने वाली कोई बात नहीं है। साथ ही, अगली इंटरव्यू से पहले हम बैठकर आपस में बातचीत करेंगे। ऐसा करने से कई सवाल-जवाब करते समय आसानी रहती है।“
“जी ठीक है।“
इसके बाद अमजद और आफिया घर की ओर लौट पड़े। अमजद ने कई मित्रों को फोन करके आज की इंटरव्यू की कारगुज़ारी के बारे में बताया। सभी ने कहा कि ऐसे सवाल पूछे जाना आम-सी बात है। इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है। अमजद को लगा कि इंटरव्यू ठीक ही रही और उसने सोचा कि अगली इंटरव्यू के बाद उनका एफ.बी.आई के लफड़ों से पीछा छूट जाएगा। परंतु जब वे घर पहुँचे तो आफिया ने बावेला खड़ा कर दिया।
“अमजद, मेरी बात सुन, हमें कल ही बच्चों को लेकर वापस अपने देश चले जाना चाहिए।“
“पर क्यों ? मेरा मतलब अपनी इंटरव्यू तो ठीक ही रही है।“
“तुझे लगता है कि ठीक रही है। पर तू नहीं जानता कि.... बस, मैं तुझे कह रही हूँ कि हम यहाँ से निकलने की सोचें।“
“तू पूरी बात बता कि मैं क्या नहीं जानता। मुझे भी तो पता चले कि तुझे कौन-सी बात का भय सता रहा है ?“
“क्यों, सारी बात क्या बताना ज़रूरी है ?“ आफिया गुस्से में भड़क उठी।
“हाँ ज़रूरी है। तू ही बता कि वो अदनान शुक्रीजुमा कौन है ?“
“तुझे उससे क्या लेना ?“
“मैं उसके बारे में सबकुछ जानना चाहता हूँ। सिर्फ़ वही नहीं, और बहुत से लोग हैं जिनके एफ.बी.आई वालों ने नाम लिए थे। मैंने ऐसे लोगों का पहले कभी जिक्र भी नहीं सुना और तू उनके साथ मिलकर पता नहीं क्या काम करती रही है। कौन हैं ये सब लोग ? तू उन्हें कैसे जानती है ? मुझे सब कुछ बता।“ अमजद गुस्से में आ गया।
“मुझे इन बातों पर कोई चर्चा नहीं करनी। पर तू मेरी बात पर ध्यान दे और हम यहाँ से वापस चलें। यहाँ मेरी जान को ख़तरा है।“
“आफिया, मेरी बात सुन ले अच्छी तरह। मुझे लगता है कि तू दोहरी ज़िन्दगी जी रही है। जो मेरे सामने दिख रही है, उसके अलावा एक दूसरी आफिया और है जिसकी निजी ज़िन्दगी पता नहीं क्या है। तुझे आज सबकुछ बताना होगा।“
अमजद ने बात खत्म की तो आफिया चुप बैठी सोच में गुम थी। अचानक वह चेहरे पर बनावटी मुस्कान ले लाई और अमजद के करीब आ गई। अमजद उसके बनावटीपन को न समझ सका। वह उसको अपनी बांहों में लेती हुई बोली, “अमजद इतना चिंतित न हो। ऐसी कोई बात नहीं है। ये सब चैरिटी का काम करते हैं और मुझे वहीं मिलते रहे हैं। वे जो अदनान शुक्रीजुमा का ज़िक्र कर रहे हैं, उससे भी मेरी चैरिटी की बाबत ही ई मेल का आदान-प्रदान हुआ है। इससे अधिक इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता।“
“फिर तू इतना घबरा क्यों रही है ?“
“मैं तो यह सोचती हूँ कि अगर यहाँ एफ.बी.आई वालों ने एक बार किसी चक्कर में फंसा लिया तो फिर पीछा नहीं छूटेगा। अपना मुल्क अपना ही होता है। मैं तो सिर्फ़ इसी कारण कह रही हूँ। अगर नहीं जाना तो कोई बात नहीं, तू गुस्सा न हो।“ आफिया ने उस समय अमजद को ठंडा कर लिया। अमजद को भी उसकी बात पर यकीन आ गया।
अगले दिन अमजद सो कर उठा तो उसने देखा कि आफिया अपना सामान बाँध रही थी। उसे इस तरह तैयारी करते देख वह हैरान-सा होकर बोला, “आफिया यह क्या ? रात अपनी बात खत्म हो गई थी कि हम कहीं नहीं जा रहे।“
“अमजद, मैंने घर फोन किया था। अब्बू की सेहत खराब है। मैं चाहती हूँ कि जल्दी से जाकर उनका पता लूँ।“
“पर चार दिन पहले ही तो अपनी बात हुई थी। तब तो वे ठीक थे।“
“तुझे पता है कि वह दिल के मरीज़ हैं। अगर में अब न जा सकी तो फिर कई महीने नहीं जा सकूँगी। तू जानता ही है, इस वक़्त मैं सात महीनों की गर्भवती हूँ।“ आफिया ने बैग तैयार करना जारी रखा और अमजद के अंदर ही अंदर गुस्सा होते मन ने सोचा कि अब्बू की बीमारी का यह सिर्फ़ बहाना बना रही है। कुछ सोचता हुआ वह बोला, “पर तुझे पता ही है कि हमें एफ.बी.आई. ने हिदायत दे रखी है कि हम उनकी इंटरव्यू पूरी किए बग़ैर कहीं नहीं जा सकते।“
“कुएं में जाए तेरी एफ.बी.आई.। मैं यहाँ अब एक पल भी नहीं रुकूँगी।“ आफिया गुस्से में पैर पटकती बोली।
उसकी बात सुनकर अमजद को गुस्सा तो बहुत आया, पर इस समय वह मज़बूर था। आफिया के गर्भवती होने के कारण वह उसके साथ कोई झगड़ा नहीं करना चाहता था। लेकिन आफिया उसकी कोई बात नहीं मान रही थी। उसने अपने वकील को फोन करके बताया कि आफिया के डैड बीमार हैं, इसलिए इस वक्त उनका पाकिस्तान जाना बहुत ज़रूरी है। उसने पूछा कि क्या यह इंटरव्यू आगे बढ़ सकती है। वकील ने मशविरा देते हुए कहा, “मि. अमजद, इस तरह इंटरव्यू बीच में छोड़कर जाना ठीक नहीं है। तुम्हारा केस खुला ही रह जाएगा जो कि तुम्हारे लौटने पर तुम्हारे लिए मुश्किल खड़ी कर देगा। अच्छा यही है कि तुम अपनी एपाइंटमेंट पूरी करके जाओ।“
“सर, इस वक़्त मेरे पास कोई दूसरा चारा नहीं है। वापस लौटकर दुबारा इंटरव्यू की तारीख ले लेंगे।“
“मि. अमजद इंटरव्यू तो मैं कैंसिल करवा देता हूँ। पर इस तरह तुम शक के घेरे में आ जाओगे। एफ.बी.आई. एक बार जिसके पीछे पड़ जाए तो फिर पीछा छुड़ाना कठिन हो जाता है।“
“ठीक है सर, मैं आपको अपनी वाइफ़ से सलाह करके बताता हूँ।“ वकील से फोन पर बात खत्म करके अमजद ने आफिया से वकील के साथ हुई बात बताई। उसकी बात सुनते ही आफिया भड़कती हुई बोली, “अगर तू चाहता है कि मैं मारी जाऊँ तो जाने की बात छोड़ देते हैं।“
“यह तू क्या कह रही है, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा।“ अमजद आफिया की ओर देखता हुआ सोचने लगा कि कोई न कोई बात अवश्य है जो यह यहाँ से भागने के लिए उतावली हुई पड़ी है। आफिया की हरकतों ने उसका यह शक पुख्ता कर दिया कि वह सच में ही नाइन एलेवन की साजिश के बारे में कुछ न कुछ जानती है। पर उसने एकबार और उसको समझाना चाहा तो वह वैसे ही गुस्से में चीखती हुई बोली, “ओ.के. ठीक है। तू अपनी मर्ज़ी कर। पर मैं अपने बच्चों को लेकर आज ही जा रही हूँ।“
फिर अमजद ने वकील को दुबारा फोन करके कहा कि उसको जाना ही पड़ेगा। वकील ने एफ.बी.आई. के ऑफिस में फोन करके बता दिया कि उसके क्लाइंट तय की गई तारीख पर नहीं पहुँच सकेंगे। अमजद ने अपने काम पर से भी एक साल की छुट्टी ले ली।
(जारी…)
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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26 जून 2002 को अमजद और आफिया बच्चों सहित कराची एअरपोर्ट पर आ उतरे। वे घर पहुँचे तो घरवाले उनके आने पर काफ़ी ख़फा थे। रात के समय नईम खां ने अमजद के साथ बात शुरू की, “तू नहीं टला फिर ? अपने मन की करके ही हटा न। तुझे मैंने कितना कहा कि इस वक़्त करियर बीच में छोड़कर आना तेरे लिए ठीक नहीं है। पर तेरे दिमाग में कोई बात आए, तभी न।“
अमजद ने अपने अब्बा की ओर देखा और फिर लम्बा सांस लेता मायूस-सा बोला, “अब्बू मेरी वजह से नहीं है। अल्लाह खै़र करे, कहीं आगे चलकर मुझे इससे भी बड़े इम्तहान में से गुज़रना पड़ जाए।“
अमजद की इस एक ही बात से परिवार सारी बात समझ गया। नईम खां से रहा न गया तो वह बोला, “इस लड़की ने मेरे बेटे का भविष्य तबाह करके रख दिया...।“ नईम खां गुस्से में बोल रहा था तो उसकी पत्नी ने उसको चुप रहने का इशारा किया क्योंकि बाहर खड़ी आफिया चोरी-सी उनकी बातें सुन रही थी। नईम खां तो चुप हो गया, पर आफिया अंदर ही अंदर बल खा गई। वह उसी शाम बच्चों सहित अमजद को लेकर मायके चली गई। वहाँ जाकर उसने सबसे पहले तो अमजद को करीब बिठाकर कहा, “अमजद, अब मौका आ गया है कि तुझे कोई फै़सला करना पड़ेगा।“

“फै़सला ? फ़ैसला किसके बारे में ?“
“अब यह फै़सला कर ले कि तूने मेरे साथ रहना है या अपने घरवालों के साथ ?“
“आफिया यह तू क्या कह रही है। घरों में आपसी गुस्से-गिले तो होते ही रहते हैं। इसका मतलब यह तो नहीं कि मियाँ-बीवी अलग हो जाएँ।“
“नहीं, अमजद तुझे फ़ैसला करना ही होगा। तुझे पता ही है कि मैं आम औरत नहीं हूँ। मैं इस बीच के रास्ते को और ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकती।“ वह क्रोध में काँपे जो रही थी। उसकी माँ ने आकर उसको शांत करने की कोशिश की, पर आफिया ने उसकी कोई बात न सुनी। आफिया चीखने-चिल्लाने लगी तो अमजद उठकर बाहर चला गया। अँधेरा होने पर घर लौटा तो बात ठंडी पड़ गई थी। लेकिन अगले ही दिन आफिया ने फिर से बवाल खड़ा कर दिया। उसकी वही मांग थी कि या तो वह उसको छोड़ दे या अपने घरवालों को। अमजद को आफिया और बच्चों से बहुत लगाव था, पर वह उसके व्यवहार से तंग आ चुका था। अब उसके शक पुख़्ता होते जा रहे थे कि यह ऐसा कुछ कर रही है जो कि सही नहीं है। और उसने यह सब किया भी उससे छिपकर है। आफिया का उस पर दबाव बढ़ता ही जा रहा था, साथ ही वह यह भी ज़ोर डालने लग पड़ी कि अब अवसर आ गया कि उन्हें जिहाद में शामिल हो जाना चाहिए। ख़ासतौर पर वह जैशे-मुहम्मद के कैम्प में जाने की जल्दी मचा रही थी। अमजद इतना ऊब गया कि उसने किसी मज़हबी रहनुमा की सलाह लेनी चाहिए। वह आफिया को लेकर पाकिस्तान के देवबंदी सम्प्रदाय के सबसे बड़े इमाम के पास चला गया। यह इमाम दोनों के परिवारों को भलीभाँति जानता था। इमाम ने उनकी बातें सुनीं। उसने आफिया का जिहाद में शामिल होने का नुक्ता बड़े ध्यान से विचाराते हुए पूछा, “आफिया बेटी, तू घरवाले सहित जैशे मुहम्मद के कैम्प में जाकर क्यों रहना चाह रही है ?“
“कैम्प में रहते हुए मैं यतीम बच्चों को पढ़ाऊँगी और अमजद वहाँ गरीबों के लिए अस्पताल चलाएगा।“
“देख बेटी, आजकल ज़माना बदल गया है। गरीबों की सेवा के लिए तुम्हें उजाड़-बियाबान जगहों पर जाने की ज़रूरत नहीं है। तुम यहाँ कराची में रहते हुए समाज सेवा के ये सारे काम कर सकते हो। बल्कि मैं तो कहूँगा कि तुमने जो अमेरिका में रहकर ऊँची तालीम हासिल की है, उसको लोगों में बाँटो। यही सबसे बड़ा दीन का काम है।“
“तो फिर जिहाद कौन लड़ेगा ?“ भड़कती हुई आफिया ऊँची आवाज़ में बोली तो इमाम हैरान रह गया। आज तक किसी ने उसके साथ इस तरह बात नहीं की थी। पर वह फिर भी शांत रहते हुए आफिया से मुखातिब हुआ, “आफिया बेटी, मैं एकबार फिर कहूँगा कि तुम्हारा पहला फ़र्ज़ अपना परिवार संभालना है। इसके बाद यदि तुम्हारे पास वक़्त बचता है तो उसे तुम समाज सेवा के लिए इस्तेमाल कर सकते हो। अगर तुम्हारे पास ज्यादा पैसा है तो वह तुम गरीबों में दान कर सकते हो।“
“पर जिहाद...।“ आफिया फिर से जिहाद के बारे में कुछ कहने लगी तो इमाम ने उसको हाथ का इशारा करके रोक दिया। फिर बड़े धैर्य से बोलने लगा, “सिर्फ़ लोगों को मारना ही जिहाद नहीं है। जो डॉक्टर कैंसर की बीमारी का इलाज करके मरीज़ की जान बचाते हैं, यह उनका जिहाद है कैंसर के खिलाफ़। तुम डॉक्टर लोगों की आँखों का आपरेशन करके उनकी आँखों की रौशनी उन्हें वापस देते हो, वह तुम्हारा जिहाद है - अंधेपन के खिलाफ़। इस तरह जितने चाहो उदाहरण ले लो। तू यह दृढ़-संकल्प ले ले कि तुझे अनपढ़ता के खिलाफ़ जिहाद लड़ना है और गरीब बस्तियों में जाकर बच्चों को मुफ़्त तालीम देना शुरू कर, यह तेरा असली जिहाद होगा।“
इसके बाद इमाम ने बातचीत बर्खास्त कर दी। अमजद और आफिया घर आ गए। अगले दिन वह अमजद के घर चले गए। पर इसके बाद उनके बीच सुलह न हुई। इस बात के दो दिन बाद अमजद ने देखा कि उसके बैंक में आठ हज़ार डॉलर कम हैं। उसने आफिया से बात की तो थोड़ी न-नुकर के बाद वह मान गई कि पैसे उसने ही निकलवाए हैं। अमजद ने जब पूछा कि उसने ये पैसे कहाँ खर्च किए तो आफिया ने कंधे उचकाते हुए कहा, “मुझे ज़रूरत थी, इसलिए मैंने वे कहीं इस्तेमाल कर लिए।“
“पर तूने मुझे तो बताया नहीं कि तुझे ऐसी क्या ज़रूरत आन पड़ी कि एकसाथ आठ हज़ार डॉलर निकलवा लिया।“
“क्यों तुझे हर बात बतानी ज़रूरी है ?“ आफिया भड़क उठी।
“मेरी भी बात सुन ले फिर...।“ अमजद का चेहरा भी लाल होने लगा। वह ज़रा रुकते हुए फिर बोलने लगा, “तेरा मेरा एकसाथ रहने का क्या फायदा जब तू हर बात मुझसे छिपाती है। जो तू सामने दिखती है, इसके अलावा तेरी एक दूसरी ज़िन्दगी भी है और उसमें पता नहीं तू क्या करती है। मैं ऊब चुका हूँ, तेरी ज्यादतियों को सहते सहते। अब हम एक छत के नीचे नहीं रह सकते।“
आफिया ने बिना किसी बात का उत्तर दिए बच्चों को उठाया और टैक्सी लेकर मायके चली गई। कई दिन इस तरह ही गुज़र गए। फिर दोनों परिवारों के बुजुर्गों ने साझे बंदों की मदद से एक मुलाकात का प्रबंध किया और उनके बीच सुलह करवाने का यत्न किया। यह बात सफल भी हुई। इस बीच फै़सला किया गया कि दोनों जन अपना अलग अपार्टमेंट लेकर कहीं और रहें। उनके लिए अपार्टमेंट का इंतज़ाम भी कर दिया गया और वे बच्चों सहित वहाँ जाकर रहने लगे। वहाँ एक सप्ताह ही बीता था कि एक दिन फिर झगड़ा शुरू हो गया। काफ़ी देर तक बहसबाज़ी होने के बाद अमजद ने ठंडी साँस भरते हुए कहा, “आफिया बस, अब हम और इकट्ठे नहीं रह सकते।“
“तू फिर क्या करना चाहता है ?“
“मैं तुझसे तलाक चाहता हूँ।“
उसकी यह बात सुनकर आफिया के मुँह का रंग उतर गया। उसने बच्चों को उठाया और अपने माँ-बाप के घर चली गई। अमजद चुपचाप अपने घर आ गया। दो सप्ताह बाद खान परिवार ने फिर से बड़े-बुजु़र्गों की बैठक बुलानी चाही, पर आफिया के परिवार वालों ने उनसे बात करने से इन्कार कर दिया। उन्होंने खान परिवार का फोन ही उठाना बंद कर दिया। वैसे तो अमजद तीन बार तलाक कहकर तलाक ले सकता था, पर अब सद्दीकी परिवार उसका फोन ही नहीं उठाता था और आफिया के साथ बात होनी तो दूर की बात थी। फिर उसने चिट्ठी लिखकर तलाक मांगने के बारे में सोचा। पर इसी बीच आफिया के पिता सुलेह सद्दीकी का निधन हो गया। हालाँकि सद्दीकी परिवारवाले अमजद को आफिया के पिता की मौत का ज़िम्मेदार ठहरा रहे थे और कह रहे थे कि वह बेटी का ग़म न सह सका और इसीलिए उसको दिल का दौरा पड़ गया। पर सब जानते थे कि यह बात सही नहीं थी। बल्कि अधिकांश लोगों का सोचना था कि वह एक नेक बंदा था जो कि आफिया और अमजद के बीच शायद एक और समझौता करवा सकता था। पर जब वह न रहा तो सब उम्मीदें ख़त्म हो गईं। इसी दौरान आफिया ने अस्पताल में बेटे को जन्म दिया। मगर उसने या उसके परिवारवालों ने अमजद को इस बच्चे की आमद की भनक न पड़ने दी। न ही उन्होंने पुनः अमजद को दूसरे बच्चों से मिलने दिया। इसी बीच सरकारी कारिंदे तलाक वाला काग़ज़ लेकर आफिया के पास गए तो उसने उस पर दस्तख़्त करने से इन्कार कर दिया। एक दिन शाम के वक़्त अमजद की माँ ने बात शुरू की, “अमजद बेटे, हमने हर जतन करने देख लिया, पर बात किसी किनारे नहीं लगती।“
“अम्मी, शायद आफिया को अक्ल आ जाए और वह तलाकनामे पर दस्तख़्त कर दे।“ वैसे वह दिल से यह चाहता था कि काश आफिया सुधर जाए और तलाक वाला मसला टल जाए। यह सोच उसकी आफिया के प्रति मुहब्बत में से उपजती थी।
“नहीं बेटे, हर मसले का एक वक़्त होता है। जब बात किसी ख़ास मुकाम से आगे निकल जाए तो फिर दुबारा से इकट्ठे रहने की कोई तुक ही नहीं रह जाती।“ उसकी माँ उसके मन के भाव समझती थी।
“ठीक है अम्मी, जैसे आपकी मर्ज़ी हो, वैसा कर लो।“ अमजद ने निराशा भरा जवाब दिया।
“अमजद बेटे, पिछली बार मुझसे गलती हुई थी जिसकी तुझे इतनी बड़ी सज़ा भुगतनी पड़ी। इस बार मैं रिश्ता अपने ही परिवार में से खोजूँगी।“
अमजद ने इस बात का कोई उत्तर न दिया और वह उठकर दूसरे कमरे में चला गया। इन्हीं दिनों वह कराची के एक अस्पताल में काम करता था। असल में, ज़ाहिरा खां ने अपने मायके वालो से जुड़े घरों में से किसी भाई की लड़की उसके लिए पसंद कर रखी थी। बस, वह अमजद की सहमति चाहती थी। यह मसला भी हल हो गया तो बात आगे चला दी गई। ज़ाहिरा खां और नई बहू का पिता चाहते थे कि यह निकाह वाला मसला जल्द हल हो जाए। उन्हें डर था कि कहीं आफिया फिर से अमजद के साथ प्यार जताकर वापस न आ जाए। जल्दबाजी में सादी-सी रस्म करके मंगनी कर दी गई। अमजद के घरवाले चाहते थे कि इसके साथ ही यदि आफिया के तलाक वाला काम भी निपट जाए तो फिर वे बिल्कुल निश्चिंत हो जाएँगे। मगर यही एक मसला उन्हें सबसे अधिक कठिन लग रहा था।
मंगनी वाली शाम को अमजद ने अपनी होने वाली नई बीवी को शाम के खाने के लिए कहीं बाहर लेकर जाना था। इसीलिए उसने शाम का काम शीघ्र समाप्त किया। तभी एक नर्स ने आकर उसको संदेश दिया कि कोई लड़की उससे मिलने आई है। उसने सोचा कि उसकी नई दुल्हन होगी। उसने डॉक्टरों वाला गाउन उतार दिया और अपने कपड़े वगै़रह ठीक किए। वह ज्यूँ ही बाहर आया तो देखता ही रह गया। सामने आफिया खड़ी थी। इस वक़्त वह उसको इतनी सुंदर लगी जितनी पहली मुलाकात के समय भी नहीं लगी थी। वहाँ आसपास के स्टाफ ने यही सोचा था कि यह अमजद की होने वाली बीवी है। आफिया की ओर देखते हुए अमजद ने अंदाज़ा लगा लिया कि यह तकरीबन महीनाभर पहले बच्चे को जन्म दे चुकी होगी। मगर फिर भी इस वक़्त उसकी खूबसूरती लाजवाब थी।
“जनाब किन सोचों में गुम हैं ?“ आफिया ने आगे बढ़कर बड़े मोह से अमजद की बांह पकड़ ली। अमजद की रूह को शांति मिल गई।
“मैं तो तुझे ही देख रहा था। कितनी खूबसूरत लग रही है। पर...।“
“पर... पर क्या, मेरे भोलेभाले डॉक्टर साहब ?“ आफिया ने उसकी ‘पर’ का मतलब समझते हुए गहरा मज़ाक किया।
“अब समझ गई हो तो खुद ही बता दे।“
“तेरा छोटा साहिबजादा एक महीने का हो चुका है।“ आफिया ने उसकी बांह पर हल्की-सी चिकौटी भरी।
“और मुझे पता भी नहीं ?“ अमजद ने नाराज़गी प्रकट की।
“मैं मानती हूँ यह बात। पर कईबार इन्सान के हाथ में कुछ नहीं होता। अब तू ही बता कि उस वक़्त मैं तो तुझे यह ख़बर देने की हालत में ही नहीं थी। घर के किसी दूसरे मेंबर ने तुम्हारे घर ख़बर भेजनी थी, पर मेरा ख़याल है कि हम दोनों के घरवाले हमें जोड़ने से ज्यादा तोड़ने की तरफ ध्यान दे रहे हैं।“ आफिया ने बहाने से नवजन्मे बच्चे के बारे में अमजद के घर ख़बर न देने के लिए अपने घर वालों को कसूरवार ठहराया। साथ ही, उसने उनकी आपसी अनबन के लिए पहली बार अपने मायके वालों को भी दोष दिया। अमजद कुछ न बोला तो आफिया ने उसकी ठोड़ी घुमाकर अपनी ओर करते हुए कहा, “चल, अब तो इस बात पर मुआफ़ कर दे। अब तो मैं खुद चलकर तुझे बताने आई हूँ।“ आफिया ने खूबसूरत अदा से कानों को हाथ लगाया। अमजद को आफिया का भोलापन अंदर तक भा गया। उसने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। वे वैसे ही चलते हुए बाहर आ गए।
“मेरा ख़याल है कि मेरा प्यारा प्यारा खाविंद इतना तो समझता ही होगा कि शाम का वक़्त है और मुझे भूख भी बहुत लगी होगी ?“
“ओह हाँ-हाँ। हम किसी नज़दीकी रेस्टोरेंट में चलते हैं।“ इतना कहते हुए अमजद आफिया को लेकर कार की ओर चल दिया।
“वैसे मैं जानती हूँ कि मेरे डॉक्टर साहब हद दरज़े के कंजूस हैं। पर जनाब, आज यह कंजूसी नहीं चलेगी। आज आपके साहिबजादे के जन्म की खुशी में यह डिनर मेरी पसंद का होगा।“
“बता फिर कहाँ चलें ?“
“होटल शैरेटन।“
“ठीक है, बैठ गाड़ी में।“ अमजद ने गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर आफिया को संग बिठा लिया और चल पड़ा। शैरेटन होटल के रेस्टोरेंट पहुँचकर उन्होंने बड़ा शानदार डिनर किया। आफिया की उपस्थिति ने पिछले कितने ही दिनों से परेशान चले आते अमजद के कलेजे को ठंडक प्रदान की।
“कैसा रहा डिनर ?“ अमजद बिल चुकाकर चलते हुए बोला।
“अमजद, तेरे हाथ का तो ज़हर भी आब-ए-हयात है। यह तो फिर भी डिनर है।“ आफिया ने अँधेरे-से में पीछे होकर अमजद को अपनी बांहों में भर लिया। अमजद ने उसकी बांह पकड़कर अपने साथ लगा लिया।
“अब क्या प्रोग्राम है ?“
“आ जा, सामने वाले पॉर्क में चलते हैं।“ आफिया उसको पॉर्क की ओर ले चली। वह होटल के लॉन की कोने वाली एक नए-से पत्थर की बैंच पर बैठ गए। आफिया ने अमजद की बांह से सिर टिकाकर आँखें मूंद लीं और मन में सोचा कि काश वक़्त यही रुक जाए। अमजद, आफिया के बालों में हाथ फेरने लगा।
“अमजद, कितने अच्छे थे वे दिन जब हम बॉस्टन में हुआ करते थे।“
“उन सुहावने दिनों की याद बड़ा तड़पाती है आफिया, क्या बताऊँ।“ अमजद ने भी ठंडी आह भरी।
“हम लड़ते-झगड़ते भी थे, पर पलों में फिर से वैसे हो जाते थे।“
“मुझे तेरी लड़ने और मान जाने की अदा बड़ी प्यारी लगती थी।“
“और मुझे तेरी मुँह फुलाने की।“ आफिया ने अमजद की ओर मुँह फुलाकर नकल-सी उतारी तो दोनों हँस पड़े।
“काश कि वे दिन वापस आ जाएँ।“
“पुलों से गुज़रे पानी भी कभी लौटे हैं पगली। पर हम मौजूदा वक़्त को ज़रूर वैसा ही बना सकते हैं। बस, इन्सान के हाथ में इतना ही होता है।“
“अमजद, पिछले दिनों हमने लड़ने-झगड़ने की सब हदें पार कर दीं। कई बार मैं तेरे पर हद से ज्यादा गुस्सा हुई होंगी। पर क्या तुझे अभी भी मेरे से मुहब्बत है ?“
“आफिया, ऐसी बातों का मुहब्बत पर कोई असर नहीं पड़ता। एकसाथ रहते हुए गुस्से-गिले होना तो एक आम बात है।“
आफिया ने अमजद के गिर्द लपेटी अपनी बांहें और कस लीं। अमजद को भी इस वक़्त आफिया पर बेइंतहा प्यार उमड़ रहा था।
“मैंने तेरे पर कई ज्यादतियाँ की हैं अमजद...।“ इतना कहते हुए आफिया रोने लग पड़ी। अमजद से उसका रोना सहन न हुआ। उसने उसके कंधे पर हाथ फेरते हुए ढाढ़स देते हुए उसे फिर से बातों में लगा लिया। आफिया अमजद की गोद में सिर रखकर लेट गई।
“अहमद का क्या हाल है ?“ उसने उसका मन बहलाने के लिए बात बच्चों की ओर मोड़ ली।
“बिल्कुल ठीक। पर जब गुस्सा होता है तो माथे पर डाले बल बाप की तरह गहरे हो जाते हैं।“
“और माँ की तरह पीटने नहीं लगता ?“ अमजद ने आफिया का नाक पकड़कर हिलाया। आफिया ने हँसते हुए उसकी छाती में प्रेमभरी हल्की-हल्की मुक्कियाँ मारीं।
“मरियम कैसी है ?“
“वह भी ठीक है। पढ़ने में बहुत होशियार है।“
“बाप पर गई है न।“
“बाप पर नहीं, माँ पर गई है जनाब। याद है, यूनिवर्सिटी में टॉप करके मैंने सबको हैरान कर दिया था।“
“मुझे गर्व है तुझे पर आफिया पर...।“
आफिया ने अमजद के मुँह पर उँगली रखते हुए उसको आगे बोलने से रोक दिया और बोली, “ये प्यार के क्षण मुश्किल से मिले हैं। इन्हें हम कड़वाहट में बिल्कुल नहीं बदलेंगे।“
“चल ठीक है।“
“बल्कि मैं तो वे कड़वाहटें हमेशा के लिए ख़त्म करने आई हूँ।“
“अच्छा !“
“अमजद, बच्चों का तेरे बग़ैर दिल नहीं लगता।“ आफिया ने बात दूसरी ओर मोड़ ली।
“और बच्चों की माँ का ?“ अमजद हँसा।
“मछली पानी से बाहर रहकर कितना तड़पती है, ये पीड़ा तो सिर्फ़ वो बेचारी ही जानती है।“ आफिया ने आँखें पोंछी।
“आफिया, तुझे दुख पहुँचाने के लिए मैं तेरा गुनाहगार हूँ।“
“नहीं प्लीज़, ऐसी बातें न कर। पुराना सबकुछ भूल जा।“
“ठीक है पुराने सबकुछ पर मिट्टी डाली। अब फिर आगे बता क्या हुक्म है सरकार का ?“
“अमजद, तुझे बच्चे बहुत याद करते हैं। मुझसे उनकी तड़प देखी नहीं जाती।“ आफिया बच्चों की बात कर रही थी, पर अमजद आफिया की तड़प महसूस कर रहा था। गहरी आह भरते हुए वह बोला, “मैं कौन-सा सुखी हूँ तुम्हारे बग़ैर।“
“चल फिर अपने बच्चों के पास चल। क्यों हम एक-दूजे के बिना भटकते फिरते हैं।“
“चल तो पड़ता, पर कहाँ ?“
“मेरे घर, और कहाँ।“
“नहीं आफिया, वहाँ नहीं मैं जा सकता। तुझे पता ही है कि पीछे क्या कुछ होकर हटा है।“
“अमजद, उसके लिए हम दोनों ही कसूरवार थे। अब पुरानी बातों को भुलाने का फै़सला भी हम दोनों का ही है।“
“मगर फिर भी आफिया मैं मुआफ़ी चाहता हूँ उस घर में...।“ आगे उसने बात बीच में ही छोड़ दी।
“चल फिर यूँ करते हैं। न तेरे घर और न ही मेरे। हम अपार्टमेंट ले लेते हैं और अपनी ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू करेंगे।“
“तेरी इस बात पर गौर किया जा सकता है।“
“गौर क्या करना है। हमें कौन-सा किसी से इजाज़त लेनी है। चल उठ, आज किसी होटल में रुक जाएँगे। कल मैं टैक्सी करके बच्चों को ले आऊँगी और तू तब तक कहीं अपार्टमेंट का इंतज़ाम कर लेना।“
“हाँ, यह बात तेरी बिल्कुल ठीक है।“
अमजद के हामी भरते ही आफिया ने उसके इर्द-गिर्द बांहें कस लीं। उसको लगा जैसे मन पर से एक भारी बोझ उतर गया हो। तभी अमजद के फोन की घंटी बजी। उसने आफिया को वैसे ही छाती से लगाए रखा और फोन ऑन करके ‘हैलो’ कही। उधर फोन पर उसकी माँ की आवाज़ उभरी, “बेटा अमजद, तू किधर रह गया ?“
“अम्मी मैं तो...।“ उसने आफिया को मुँह पर उँगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और फिर आगे बोला, “अम्मी मुझे तो इधर किसी काम से आना पड़ गया था।“
आफिया जिसका मन अमजद की माँ का फोन आने पर ही खराब हो गया था, फोन में से उस तक धीमी आवाज़ में पहुँचती बात ध्यान से सुनने लगी। अमजद की माँ आगे बोली, “तुझे याद होना चाहिए था कि तुझे आज किसी को डिनर के लिए ले जाना था।“
“जी अम्मी। मैं आपको बाद में फोन करता हूँ।“
अमजद की माँ ने उसकी दुबारा फोन करने वाली बात सुनी ही नहीं और बोलती चली गई, “तेरी होने वाली दुल्हन तेरा इंतज़ार करती रही। तू न आया तो आखि़र वह घर लौट गई।“
‘होने वाली दुल्हन!’ ये लफ्ज़ सुनते ही आफिया के सीने पर आरी चल गई। पर फिर भी वह ज़ब्त में रही। उसको अमजद की माँ की बात फिर सुनाई देने लगी, “अभी यह हाल है तो बाद में क्या करेगा। दो दिन बाद तुम्हारी शादी है। तूझे कुछ तो सोचना था।“
अब आफिया से अपने आप पर नियंत्रण रखना कठिन था। वह उछलकर उठ बैठी।
“अमजद जनाब, प्यार के वायदे मेरे साथ किए जा रहे हो और उधर नया निकाह करवाने की तैयारी भी चल रही है। मैंने तुझे इतना कमीना नहीं समझा था।“ इतना कहते हुए आफिया ने झपटकर अमजद के गिरेबान पर हाथ डाल दिया। वह उसको इधर-उधर खींचती रही। फिर उसकी छाती पर मुक्के मारने लगी। मुक्के मार मार कर वह हाँफ गई तो अमजद की छाती से लगने के लिए बढ़ी जैसा कि वह हर झगड़े के बाद किया करती थी। पर फिर वह एकदम रुकी और पीछे हटती हाथों में मुँह छिपाती रोने लगी। अमजद की भी रूठी हुई आफिया को सीने से लगाने की चाहत मन में ही रह गई।
कुछ देर सिसकियाँ भरती आफिया संभली और उसने जाने के लिए अपना बैग उठा लिया।
“आफिया मेरी बात सुन...।“ अमजद ने उसको रोकना चाहा। पर आफिया ने उसकी ओर ध्यान न दिया।
“अभी कुछ नहीं हुआ। मैं सब संभाल लूँगा। तू मुझसे मुँह न मोड़।“
“अमजद, रस्सी टूट चुकी है। अब जितना चाहे ज़ोर लगा ले, यह दुबारा नहीं जुड़ेगी। मगर दुख इस बात का है कि मैं यूँ ही भ्रम पालती रही।“
“आफिया, पूरी बात सुन ले, यूँ ही बखेड़ा न कर।“
आफिया ने उसकी बात बीच में ही काट दी और बोली, “तेरी हाँ के बग़ैर तो यह निकाह नहीं हो रहा होगा ? मैं यह भी जानती हूँ कि मुझे मन से उतारने के लिए ही तूने अपनी रज़ामंदी दी होगी। फिर क्या फायदा, यूँ ही सफ़ाई देने का। अच्छा, तुझे नई दुल्हन मुबारक।“ आफिया उठकर चल पड़ी।
“आफिया, एक बार मेरी बात सुन ले। फिर चाहे...।“ अमजद कुछ कहने लगा तो आफिया ने रुकते हुए उसकी बात अनसुनी करके कहा, “क्या तुझे पता है कि मैं तेरे बार बार कोशिश करने पर भी तलाकनामे पर दस्तख़्त क्यों नहीं करती थी ?“
अमजद ने कोई जवाब नहीं दिया तो आफिया फिर बोली, “क्योंकि मुझे पता था कि तू मुझे बेहद चाहता है। और यह तलाक वाला यूँ ही एक डरावा है। मैं सोचती थी कि हम दोनों एक-दूसरे को इतनी मुहब्बत करते हैं कि एक-दूजे के बिना रह ही नहीं सकते। पर मुझे क्या पता था कि तेरे दिल में खोट है।“
आफिया खड़ी होकर अमजद के बोलने का इंतज़ार करती रही, पर जब वह कुछ न बोला तो वह मुड़कर अमजद की ओर आई और धैर्य के साथ बोली, “जिस वजह से मैंने यह तलाक वाला काम रोका रखा था, वह वजह अब रही ही नहीं तो मेरे यूँ ही अड़े रहने का क्या फायदा। आ मेरे साथ, अभी वकील के यहाँ चलकर तलाकनामे पर दस्तख़्त करवा ले।“
अमजद फिर भी कुछ नहीं बोला तो आफिया उसका हाथ पकड़कर खींचती हुई उसे बाहर ले आई। वहाँ से टैक्सी लेकर नज़दीक ही वकील के दफ़्तर पहुँचे। जहाँ जहाँ वकील ने कहा, आफिया ने दस्तख़्त कर दिए। काम खत्म हो गया तो आफिया जाने के लिए उठ खड़ी हुई। वकील फाइल समेटता बोला, “अमजद साहब, इस तलाकनामे के अनुसार तुम बच्चों का खर्चा हर महीने तब तक देते रहोगे जब तक वे बालिग नहीं हो जाते। और तुम मोहतरमा आफिया, अमजद साहिब को बच्चों से मिलने से नहीं रोकेंगी। ये कानूनी नुक्ते हैं, इसी कारण तुम्हें पढ़कर सुनाए हैं।“ वकील एक तरफ हो गया तो चलने से पहले आफिया, अमजद से हाथ मिलाते हुए बोली, “नई ज़िन्दगी मुबारक मिस्टर अमजद, यह शायद अपनी आखि़री मुलाकात है।“ आफिया ने बाहर से टैक्सी ली और चली गई। इसके कुछ दिनों बाद अमजद का निकाह हो गया।
(जारी…)
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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14
(प्रथम भाग)

बचपन से लेकर आज तक आफिया ने बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी थीं। क्या पढ़ाई का क्षेत्र, क्या मज़हब या फिर समाज सेवा का क्षेत्र। आफिया ने हर तरफ अपना लोहा मनवाया था। सबको पता था कि आफिया एक बहुत ही बुद्धिमान शख़्सियत है। मगर इस सबके बावजूद आज वह इकतीस वर्ष की उम्र में अकेली रह गई थी। गुमनामी की ज़िन्दगी उसके सामने खड़ी थी। उस पर तलाकशुदा का धब्बा लग चुका था जिसको पाकिस्तान समाज में कोई पूछता नहीं। तलाक के बाद कई सप्ताह तक वह बड़े ही मानसिक तनाव में गुज़री। फिर धीरे-धीरे वह संभलने लगी। एक सुबह वह पंछियों को दाना डाल रही थी कि उसकी माँ ने दूर से आवाज़ लगाई, “आफिया, तेरा फोन है।”
“कौन है फोन पर अम्मी जान ?“
“वकील है।“
“क्या कहता है ?“
“तू खुद ही बात करके पूछ ले।”
“जी अम्मी।“ आफिया ने दानों वाला छिक्कू एक तरफ रख दिया और फोन उठा लिया। दूसरी तरफ से आवाज़ आई, “जी मुझे मोहतरमा आफिया जी से बात करनी है।”
“मैं आफिया ही बोल रही हूँ। आप कौन साहब ?“
“जी मैं जनाब अमजद का वकील बोल रहा हूँ।”
“बताओ, कैसे याद फरमाया ?“ आफिया ज़रा व्यंग्य में बोली।
“जी अमजद साहब पूछ रहे थे कि जो चैक उन्होंने बच्चों के लिए भेजा था, क्या वह कैश हो चुका है।”
“हाँ हो चुका है कैश। और कुछ ?“
“जी वे बच्चों से मिलने की इजाज़त मांग रहे थे।” वकील झिझकता हुआ-सा बोला। वह आफिया के तीखे स्वभाव से परिचित था।
“हूँ...।” आफिया उसकी बात का हुंकारा भरते हुए मन ही मन बोलने लगी, क्या इस तड़प को सहने का ठेका अकेली आफिया ने ही उठा रखा है। अमजद साहिब को भी इसमें शरीक होना चाहिए। ज़रा उसको भी पता लगे कि तड़प क्या होती है और यह कलेजे को कैसे चीरती है।’
तभी उधर से वकील की आवाज़ ने आफिया को ख़यालों में से बाहर निकाला। उसने डरते हुए पूछा था, “जी, मैं फिर अमजद साहिब को क्या संदेश दूँ ?“
“तुम अपने अमजद साहब को कह दो कि आफिया और उसके बच्चे इस पते पर नहीं रहते।” आफिया ने तंज़ कसा।
“मोहतरमा, बच्चों को मिलने का अधिकार मेरे साइल को कोर्ट देती है। आप प्लीज़ ऐसा न करो। मेरी बात…”
“जो कुछ मेरे साथ हो चुका है, तुम्हारी कोर्ट मेरा इससे बुरा क्या कर देगी। जाओ, मैं नहीं किसी को अपने बच्चों के करीब लगने देती।” खरा और तीख़ा जवाब देकर आफिया ने फोन सोफे पर पटक दिया। उसकी माँ करीब खड़ी सब सुन रही थी। वह गुस्से में आकर बोली, “कुछ न रहे इस नईम खां के बेटे का। मेरी बेटी का बेड़ा डुबा दिया उसने। अल्लाह करे उसके कीड़े...।“ इस्मत की बात बीच में ही थी कि आफिया ज़ोर से चिल्लाई, “अम्मी ! तुम्हें कितनी बार कहा है कि तू उसको लेकर जलेभुने शब्द न बोला कर।”
“तुझे उसने किसी तरफ नहीं छोड़ा और तू अभी भी उसका पक्ष लेती है ?“
“वह हमारा आपस का मामला है। पर किसी को कोई अधिकार नहीं कि अमजद के बारे में बुरे लफ्ज़ बोले।”
आफिया पैर पटकती अंदर चली गई तो इस्मत मन ही मन बोली, ‘अजीब है ये लड़की भी।’
इसके घंटाभर बाद फिर फोन बजा तो आुफिया ने गुस्से में ‘हैलो’ कहा। पर शीघ्र ही ठंडी पड़ गई। पहले वह समझी थी कि फोन अमजद के वकील का होगा, मगर यह कोई उसको जानने वाला था। फोन बंद करते हुए वह अपना मिज़ाज ठीक करने लगी। कुछ देर बाद उसने तल्ख़ी दूर करते हुए माँ को बाज़ार जाने के लिए मना लिया। माँ बेटी तैयार होकर बाज़ार की ओर चल पड़ीं। बाज़ार में खरीद-फरोख़्त करते आफिया माँ से अलग हो गई। पंद्रह-बीस मिनट के बाद वह फिर माँ के पास आ गई। इस बीच वह एक रेस्टोरेंट में बैठे सुलेमान अहमर के पास गई थी। बस दो-चार बातें करने के बाद ही वह लौट आई। घर आकर उसने इस्मत को इस बात के लिए सहमत कर लिया कि घर का आधा हिस्सा किराये पर दे दिया जाए। इस्मत ने भी सोचा कि इससे आमदनी में मदद मिलेगी। अगले दिन ही आफिया ने इश्तहार दे दिया। फिर घर किराये पर लेने वालों के फोन आने लगे। मगर आफिया ने सबको टाल दिया। उसने उसी परिवार को घर किराये पर देने के लिए ‘हाँ’ कही जिसके लिए सुलेमान अहमर ने बताया था। यह था - अल बलोची परिवार।
घर किराये पर लेने के उपरांत पहले बलोची परिवार की स्त्रियों ने यहाँ आकर रहना आरंभ किया। इस्मत से उन्होंने बड़े अच्छे संबंध रखे। आफिया के साथ भी उनकी निकटता हो गई। यह निकटता शीघ्र ही दोस्ती में बदल गई। उस परिवार में दो जवान लड़कियाँ थीं जिनके साथ आफिया के गहरे संबंध बन गए। वह उनके साथ बाहर-अंदर भी जाने-आने लगी। इस बीच वह उनके असली घर भी गई। वहीं उन लड़कियों ने आफिया को अपने भाई अली अब्दुल अजीज अली से मिलवाया। उसको सभी सिर्फ़ अली कहकर ही बुलाते थे जो कि करीब पच्चीस साल की आयु का युवक था। फिर इस परिवार की औरतों का आफिया के घर आना-जाना कम होता गया। परंतु वहाँ हर रोज़ ही नए लोग आने लगे। कोई आता और कोई जाता। इस्मत हर रोज़ नए चेहरे देखती। पर उसको इससे मतलब नहीं था। वैसे वह सोचती थी कि बड़ा परिवार है, इसलिए पारिवारिक सदस्य भी अधिक हैं। उसको बताया भी गया था कि यह एक व्यापारी परिवार है जिसके लोग आते-जाते रहते हैं। पर असल में सुलेमान अहमर ने अल-कायदा के रूपोश मेंबरों को छिपाने के लिए घर किराये पर देने वाला यह प्रबंध करवाया था। यहीं पहली बार आफिया, अल बलोची परिवार के सम्पर्क में आई। उसके इस परिवार में घुलमिल जाने का इंतज़ाम अल बलोची परिवार के अग्रज के.एस.एम. की रज़ामंदी के बाद ही किया गया था। उसको अच्छी प्रकार देखने-परखने के बाद ही एक दिन सुलेमान अहमर ने के.एस.एम. के साथ बात की, “कैसी लगी तुम्हें यह लड़की ?“
“यह पता तो तभी चलेगा जब यह किसी काम को अंजाम देगी।”
“यह बात तुम्हारी ठीक है। पर इसके अंदर जिहाद के लिए बड़ी आग भरी हुई है। वैसे भी बहुत बुद्धिमान है। साइंसटिस्ट है, दिमाग की बहुत तेज़ है।”
“तेरा क्या ख़याल है कि यह केमिकल हथियार वगै़रह बनाने में मदद कर सकती है ?“
“बिल्कुल! ऐसे कामों की तो यह माहिर है। ज़रा काम लेकर देखो।”
“यह भी देख लेते हैं। पर इसमें एक और बहुत बड़ा गुण है।”
“वह क्या ?“
“यह अमेरिकन रेज़ीडेंट है। वहाँ जाने-आने में इसको मुश्किल नहीं आएगी।”
“यह बात भी तुम्हारी ठीक है।”
“चल, एक बार इसको मुफ्ती साहिब से मिला दे। वही इसको इसका आगे का काम बताएँगे।”
मुफ्ती अबू लुबाबा शाह मन्सूर, मुकामी मस्जिद का इमाम था, जो अल रशीद ट्रस्ट का डिप्टी डायरेक्टर भी था। इस ट्रस्ट का डायरेक्टर, खुद रशीद मुहम्मद था। कराची के दहशतगर्दों में सबको पता था कि इन दोनों के ओसामा बिन लादेन से सीधे संबंध हैं और ये तालिबानों के लिए पैसे का प्रबंध बड़े स्तर पर करते हैं। मुफ्ती ने सुलेमान की सारी बात सुनते ही आफिया को फतवा जारी करके जर्म वारफेयर और अन्य बॉयोलोजिकल हथियारों पर काम करने का आदेश दे दिया। जिसको आफिया ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। इस बीच उसका अल बलोची परिवार में आना-जाना और अधिक बढ़ गया।
अली अपने मामा के.एस.एम. का ख़ास भरोसेमंद आदमी था जो पूरी तौर पर उसके सभी मिशनों के विषय में जानता था। इतना ही नहीं, वह हर मिशन में अपना योगदान भी देता था। यद्यपि नाइन एलेवन का मास्टर माइंडिड के.एस.एम. था, पर उस मिशन को सफल बनाने के लिए अली ने भी ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया था। वह अंग्रेजी स्कूलों से पढ़ा हुआ था और पश्चिमी ढंग से रहता था। उसने ही न्यूयॉर्क के ट्विन टॉवर्ज़ तबाह करने वाले हाई जैकरों को पश्चिमी ढंग के रहन-सहन और पहनने-ओढ़ने के तरीके सिखाये थे। इसके अलावा उसने इनमें से कम से कम हाई जैकरों को उनके मिशन के बारे में प्रशिक्षण दिया था जिनमें मारवां अल शेही भी एक था जिसने कि युनाइटिड फ्लाइट नंबर 175 वल्र्ड ट्रेड सेंटर के साउथ टॉवर से हिट की थी। अली ने तकरीबन सवा लाख डॉलर मालवा अल शेही और मुहम्मद अत्ता को अमेरिका में भेजा था। वह खुद भी हाई जैकरों के साथ अमेरिका जाकर मिशन में हिस्सा लेने वाला था। इसके लिए उसने दुबई की अमेरिकन एम्बेसी में वीज़ा के लिए एप्लाई भी किया था, पर वीज़ा न मिलने के कारण वह वापस पाकिस्तान लौट आया था। नाइन एलेवन के बाद उसने के.एस.एम. के साथ पूरे ज़ोर-शोर से दूसरे बड़े हमले के लिए काम करना प्रारंभ कर दिया। उसका मुख्य काम अगले लक्ष्य के लिए जिहादियों को प्रशिक्षण देना था। इस मिशन में वह उन जिहादियों को इस्तेमाल करना चाहते थे जिन्हें अमेरिका जाने-आने में कठिनाई न आए। तात्पर्य यह है कि जो पहले ही वहाँ के बाशिंदे हों। पहले तैयार किए गए ग्रुप के होजे़ पदीला और रिचर्ड रीड जैसे व्यक्ति पकड़े जा चुके थे, इसलिए यह अगले मिशन के लोगों को बहुत ही सोच विचार के साथ अमेरिका में दाखि़ल करवाना चाहते थे। इनके नए जिहादियों में एक लड़का आया था - मजीद खान। यह कंप्यूटर प्रोगैमर था। इसका परिवार अमेरिका की स्टेट मैरीलैंड के शहर बाल्टीमोर में रहता था। मजीद खान का परिवार जब अमेरिका आया तो उस समय वह पंद्रह वर्ष का था। यहाँ आकर उसके परिवार ने राजनीतिक शरण ली थी। इसके छह वर्ष बाद मजीद खान पहली बार पाकिस्तान गया था। मगर अभी उसको ग्रीन कार्ड नहीं मिला था। इसी वजह से उसको अमेरिका से बाहर जाने के लिए इमीग्रेशन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती थी, जो कि वह गलती से लेनी भूल गया था। इस बात का पता उसको बाद में जाकर लगा कि बिना इजाज़त के आने के कारण वह वापस अमेरिका में प्रवेश नहीं कर सकेगा।
ख़ैर, अब तक वह काफ़ी धार्मिक बन चुका था और किसी अच्छी लड़की से शादी करना चाहता था। उसकी शादी किसी मज़हबी हस्ती ने रबिया जाकूब की बेटी से करवा दी। इसी मज़हबी हस्ती ने उसके अंदर जिहाद के लिए आकर्षण को पहचाना और उसको के.एस.एम. के साथ मिलवाने का फ़ैसला किया। निश्चित किए गए समय पर वह उसको लेकर के.एस.एम. के पास गया और कहा कि इस लड़के को खालिद साहिब से मिलवाया जाए। के.एस.एम. ग़ौर से मजीद खान की ओर देखते हुए बोला, “बात सुन काके। यह जिहाद बातों से नहीं लड़ा जाता। इसके लिए अंदर जिहाद की आग होने ज़रूरी है।”
“जी, मैं हर तरफ से इसके लिए तैयार हूँ।”
“यह कोई भांडों का खेल नहीं है। हर वक़्त मौत साथ-साथ चलती है।”
“जी, मैं सब समझता हूँ।”
वे अभी बातें कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति अंदर आया और के.एस.एम. से बोला, “उस लड़के ने आत्मघाती मिशन को बड़े अच्छे तरीके से अंजाम दे दिया है। वहाँ दस लोग मारे जा चुके हैं।”
“अल्लाह उसे बहिश्त बख़्शे। आगे का क्या प्रोग्राम है ?“
“पेट से बांधी जाने वाली बैल्ट तैयार है। धमाकाखेज सामग्री भी उसके अंदर फिट कर दी गई है। बस, अब तो किसी ऐसे लड़के की ज़रूरत है जो कि आत्मघाती मिशन के लिए तैयार हो।”
उसकी बात सुनकर के.एस.एम. ने पल भर सामने बैठे मजीद खां की ओर देखा और फिर बोला, “लड़का अपने पास पहुँच चुका है। तू बैल्ट लेकर आ।”
वह अंदर से बैल्ट ले आया तो के.एस.एम. ने उसको मजीद खां के पेट से बांध दिया। अच्छी तरह देख-परख कर वह बोला, “ले भई जवान, तू जिहाद के लिए मर मिटने के लिए तैयार है तो जिहाद भी तेरा ही इंतज़ार कर रहा था। तू किस्मत वाला है जो तुझे आते ही आत्मघाती मिशन का काम मिल गया। अब तू यहाँ से जा और डाउन टाउन की फराहखान मार्किट में जाकर इस काम को अंजाम दे। यह बम पूरे एक बजे चलेगा। बस, काम ध्यान से करना।”
“जी, बहुत बेहतर जनाब।” मजीद खां उठने लगा तो के.एस.एम. उसे रोकता हुआ बोला, “तुझे मालूम है कि यह क्या चीज़ है ?“
“जी, बिल्कुल पता है।”
“यह बम चलेगा तो वहाँ तेरे आसपास के सभी लोग मारे जाएँगे, पर तू भी उनके साथ ही मरेगा। तू नया है इसलिए मैं तुझे यह बात स्पष्ट बता रहा हूँ।”
(जारी…)
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