आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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kunal
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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(दूसरा भाग)

“जी मुझे इजाज़त दो।“ इतना कहते हुए वह बाहर निकल गया और फराखान मार्किट पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर वह एक भीड़ वाली जगह पर खड़ा हो गया ताकि अधिक से अधिक लोगों को शिकार बना सके। एक बज गया, पर उसके पेट से बंधा बम न फटा। कोई आधा घंटा वह वहाँ खड़ा रहा, पर उसको बताये गए समय के अनुसार बम नहीं फटा और न कोई धमाका हुआ। आखि़र वह वापस लौट आया तो वहाँ कोई नहीं था। वहाँ से वह घर चला गया। अगले दिन वह उसी मज़हबी हस्ती के पास गया तो उसने कहा, “बधाई हो।“
“जी !“ मजीद खां हैरान हुआ।
“तू खालिद शेख मुहम्मद साहिब के इम्तिहान में पास हो गया। असल में, कल तुझे तो बैल्ट दी गई थी, वह नकली थी। सिर्फ़ तुझे परखने के लिए। पर तू वाकिया ही पक्का जिहादी है। के.एस.एम. तुझे बड़ा काम सौंपने वाले हैं।“
फिर अगले सप्ताह उसको पैसे देकर इंडोनेशिया भेजा गया। उसने वहाँ पहुँचकर किसी हंबाली नाम के व्यक्ति से सम्पर्क किया और पैसे पहुँचाए। इन पैसों की मदद से हंबाली ने अगले हफ़्ते बाली के किसी क्लब में बम धमाका किया जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इसके पश्चात, मजीद खां और छोटे-मोटे काम करके के.एस.एम. के पास वापस लौट आया तो उसको अली के हवाले कर दिया गया। मजीद खां को अमेरिका भेजकर आगे का काम करने की ट्रेनिंग देने का काम अली का था। के.एस.एम. ने अली से मिलकर दूसरे बड़े हमले की जो साजिश तैयार की थी, उसमें वह मजीद खां को इस्तेमाल करना चाहता था। उसके माध्यम से वह अमेरिका के तेल भंडारों को आग लगाने या वहाँ पीने वाले जल में ज़हर मिलाने का काम करना चाहते थे। लेकिन मजीद खां ने बताया कि वह अब अमेरिका में दाखि़ल नहीं हो सकता। अली ने कारण पूछा तो मजीद खां ने बताया कि वह अमेरिका से चलते समय ट्रैवल परमिट लेना भूल गया था। और इस परमिट के बग़ैर वह अमेरिका में प्रवेश नहीं कर सकेगा। कुछ सोचता हुआ अली बोला, “मजीद जो हो गया, सो हो गया। अब उस वक़्त को वापस तो नहीं लाया जा सकता। पर तू यह बता कि इस मुश्किल का कोई हल है ?“
“हल तो इसका है, पर वह काफ़ी कठिन है।“
“हल क्या है तू बता। कठिन को आसान बनाना तेरा नहीं, मेरा काम है।“
“वह यह है कि रिफ्यूजी सिस्टम वाले व्यक्ति को अमेरिका से बाहर जाने के लिए ट्रैवल परमिट लेना पड़ता है। उस परमिट के बिना वह दुबारा अमेरिका में दाखि़ल नहीं हो सकता। ट्रैवल परमिट लेने वाले व्यक्ति को अमेरिका से चलने से पहले ही यह परमिट लेना होता है। या यूँ कह लो कि परमिट लेने वाला व्यक्ति अमेरिका में होना चाहिए। वहाँ पहले वह अर्ज़ी भरकर इमिग्रेशन विभाग को मेल करता है। फिर बाद में उन्हें फोन करना पड़ता है। इसके बाद ही वे ट्रैवल परमिट भेजते हैं।“
“हम अब क्या कर सकते हैं, वह बता ?“
“वहाँ से कोई व्यक्ति मेरी अर्ज़ी इमिग्रेशन वालों को मेल करें फिर मजीद खान बनकर उन्हें फोन करे। पर इसमें एक अड़चन और है।“
“वह क्या है ?“
“कोई व्यक्ति वहाँ से अर्ज़ी भी भेज सकता है। मजीद खान बनकर फोन भी कर सकता है, पर मेरे पास वहाँ का कोई एड्रेस नहीं है जिस पर सारी कार्रवाई पूरी होने के बाद इमिग्रेशन वाले ट्रैवल डाक्युमेंट भेजेंगे। यह एड्रेस कोई ऐसा होना चाहिए जो कि बाद में पकड़ा न जा सके। फ़र्ज़ करो कि मैं वहाँ अपने घर का एड्रेस ही दे देता हूँ तो पता लग जाने पर एफ.बी.आई. तुरंत मेरे परिवार को पकड़ लेगी। साथ ही, तभी मेरा नाम भी सामने आ जाएगा।“
“फिर इसका हल क्या है ?“
“कोई भरोसेमंद आदमी वहाँ के किसी पोस्ट आफिस में मेरे नाम का पोस्ट बॉक्स किराये पर ले ले। वही पता मैं अपनी अर्ज़ी में भेजूँगा। जब एकबार परमिट आ गया तो पोस्ट बॉक्स में से परमिट उठाकर पोस्ट बॉक्स बंद कर दिया जाएगा। इस प्रकार सारे सबूत खत्म हो जाएँगे।“
“हूँ... अब समझा मैं तेरी बात, पर...।“ आगे अली सोचने लगा कि ऐसा भरोसेमंद आदमी कौन हो सकता है जो इतना बड़ा खतरा मोल ले ले। उसकी यह भी सोच थी कि यह काम किसी आम व्यक्ति से नहीं करवाया जा सकता। इस प्रकार सारी पोल खुल जाएगी। इसके लिए कोई सच्चा जिहादी ही हो सकता है। सोचते सोचते एकदम उसके मन में आफिया का ख़याल आ गया। उसने यह बात आफिया से करने का मन बना लिया। उसने अपनी बहन को भेजकर आफिया को घर में बुला लिया और अवसर मिलते ही मजीद खां की सारी कहानी सुना दी। आफिया ने पूछा, “मैं इसमें क्या कर सकती हूँ ?“
“तू अमेरिकन रैजीडेंट है। तू वहाँ बड़ी आसानी से जा सकती है। ग्रीन कार्ड होल्डर होने के कारण तेरे पर कोई शक भी नहीं करेगा।“
“मगर मैंने तुम्हें पहले ही बता रखा है कि मैं और अमजद एफ.बी.आई की इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर भाग आए थे। इस कारण एफ.बी.आई. हमें ज़रूर ढूँढ़ रही होगी। मुझे डर लगता है कि कहीं उनके हत्थे ही न चढ़ जाऊँ।“
“वैसे तो बड़ी शेखियाँ मारती फिरती है कि मैं जिहाद के लिए कुछ भी कर सकती हूँ।“
“बात वो नहीं है। बात यह है कि मुझे अभी बहुत कुछ करना है। अगर शुरुआत में ही पकड़ी गई तो जिहाद के लिए जो कुछ करने के बारे में सोचा हुआ है, वे सारे सपने अधूरे ही रह जाएँगे।“
“आफिया कल किसने देखा है। और फिर, यह न भूल कि हम जिहादी हैं। और जिहादी आने वाले ख़तरों से नहीं डरा करते।“
“ठीक है। बता फिर मुझे क्या हुक्म है।“ अली के शब्दों ने आफिया के मान-सम्मान पर चोट मारी तो वह हर ख़तरा उठाकर अमेरिका जाने के लिए तैयार हो गई। आगे का सारा प्रबंध कर दिया गया। लेकिन आफिया की सलाह पर यह काम दो हिस्सों में करने के बारे में सोचा गया। पहले हिस्से में आफिया ने सिर्फ़ अमेरिका जाना था और वहाँ मजीद खां के नाम पर किसी पोस्ट ऑफिस में पोस्ट बॉक्स किराये पर लेकर वापस लौट आना था।
इसके तीसरे दिन ही आफिया कराची से अमेरिका के लिए रवाना हो गई। पूरे रास्ते उसको एकपल भी चैन न आया। उसको बार बार एफ.बी.आई. का डर सताता रहा कि कहीं ऐसा न हो कि उसे उतरते ही पकड़ लिया जाए। लेकिन ऐसा कुछ भी न हुआ। वह मौज से बाल्टीमोर एअरपोर्ट पर उतरी और सामान उठाकर बाहर निकल आई। सामने ही टैक्सी खड़ी थी। वह अपना बैग उठा टैक्सी में जा बैठी। संयोग से टैक्सी ड्राइवर पाकिस्तानी ही था। होटल तक जाते हुए वह उसके साथ बातें करती रही। आफिया ने बातों बातों में बताया कि वह पाकिस्तान सरकार की अधिकारी है और यहाँ किसी सेमिनार में भाग लेने आई है। इस कारण किसी होटल में ठहर रही है। वह होटल पहुँची और डैस्क पर जाकर कमरा बुक करवा लिया। अगले दिन वह दोपहर के बाद टैक्सी लेकर करीबी शहर गैदर्सबर्ग के पोस्ट आफिस में गई और पोस्ट बॉक्स किराये पर लेने के लिए अर्ज़ी भरी। अर्ज़ी में उसने अपने पति का नाम मजीद खां लिखा। थोड़ी-बहुत काग़ज़ी कार्रवाई के बाद आफिया सद्दीकी और मजीद खां के नाम पर पोस्ट बॉक्स मिल गया। आफिया ने पोस्ट बॉक्स की चाबी लेकर पर्स में डाली और बाहर आकर टैक्सी से फिर होटल चली गई। अगले दिन वह फ्लाइट लेकर वापस पाकिस्तान लौट आई। वहाँ पहुँचकर उसने नए खोले पोस्ट बॉक्स का पता और चाबी, दोनों अली के हवाले कर दिए।
अब अली ने काम के दूसरे भाग को अंजाम देने के लिए योजना बनानी प्रारंभ कर दी। मजीद खां ने नए पते के अनुसार अपनी अर्ज़ी भरकर तैयार कर ली थी। अली किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश करने लगा जो उनके काम के अलग हिस्से को पूरा करने में मदद कर सके। इसके लिए भी भरोसेमंद व्यक्ति की ज़रूरत थी। बहुत सोच विचार के बाद अली ने यह बात अपने मामा के.एस.एम. को बताई। उसने अली से कहा कि वह एक आध दिन में उसके लिए कोई प्रबंध करेगा। दूसरे ही दिन के.एस.एम. ने अली से कहा कि शाम के समय वह सुपर स्पाइसी रेस्टोरेंट में चला जाए। वहाँ उसको उज़ेर पराचा नाम का लड़का मिलेगा जो कुछ दिन बाद ही अमेरिका जा रहा है। उसके साथ बात कैसे करनी है, के.एस.एम. ने यह सबकुछ अली को समझा दिया। उधर उज़ेर को उसके पिता सैफउल्ला पराचा ने कह दिया कि उसके कोई जान-पहचान वाले हैं, वह उनकी मदद कर दे। उज़ेर को पता था कि उसका पिता बड़ा बिजनेसमैन है और उसके कई अल-कायदा मेंबरों से भी संबंध हैं। लेकिन स्वयं वह ऐसे कामों से दूर ही रहता था। उसका पिता भी उसको यही कहता रहता था कि उसके जितने भी संबंध अलकायदा के साथ हैं, वे सिर्फ़ बिजनेस नज़रिये से हैं। वैसे वह कहता था कि उसका उनके साथ कोई लेना-देना नहीं है। खै़र, शाम के समय उज़ेर पराचा रेस्टोरेंट में अली और मजीद खां से जाकर मिला। बातचीत अली ने शुरु की, “उज़ेर भाई, अपना यह दोस्त मजीद, एक काम करने वाला मिडल क्लास आदमी है और यह आते समय अपना ट्रैवल परमिट लेना भूल गया है। बस, इसका इतना काम करना है कि इसकी अर्ज़ी वहाँ लेकर जानी है और अमेरिका पहुँचकर इमिग्रेशन को मेल कर देनी है। फिर हफ़्ते बाद उन्हें मजीद खां बनकर फोन करना है। इसके बाद इमिग्रेशन वाले इसका ट्रैवल परमिट मेल कर देंगे और तू जाकर उस मेल बॉक्स में से वह मेल उठा लेना। परमिट मिल जाने के बाद पोस्ट बॉक्स बंद करने की अर्ज़ी दे देना। और वापस पाकिस्तान आते समय इसका वो परमिट साथ ले आना ताकि इसको दुबारा अमेरिका में प्रवेश करने की अनुमति मिल जाए।“
बाईस-तेईस वर्षीय शर्मीले-से उज़ेर को बात कुछ अटपटी-सी लगी। परंतु वह उनके प्रभाव के कारण कुछ बोल न सका। और उसने मजीद खां के सारे काग़ज़-पत्र, उसका लायसेंस, सोशल सिक्युरिटी कार्ड, मेल बॉक्स की चाबी और अर्ज़ी वगैरह ले लिए। घर आकर उसने अपने पिता से कहा कि उसको यह काम कुछ जंचता नहीं है। पर सैफउल्ला पराचा ने बातचीत में उसका भय दूर कर दिया और आधे मन से उज़ेर पराचा अमेरिका जाते समय मजीद खां के सभी काग़ज़-पत्र अपने संग ले गया। वहाँ जाकर उसने अपना सारा सामान अपने पिता के दफ़्तर में रख दिया और अपने कामों में व्यस्त हो गया।
उज़ेर का पिता सैफउल्ला पराचा बहुत वर्ष पहले अमेरिका में पढ़ता रहा था। कुछ समय उसने वहाँ ट्रैवल एजेंसी भी चलाई। फिर पाकिस्तान वापस आकर उसने कपड़े का बिजनेस आरंभ कर लिया। जब उसका बिजनेस भलीभाँति जम गया तो उसने इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का लायसेंस लेकर पाकिस्तान से अमेरिका को रेडीमेड कपड़े भेजने प्रारंभ कर दिए। उसने एक दफ़्तर न्यूयॉर्क में खोल लिया। पाकिस्तान में उसने घर बनाकर बेचने का काम भी बड़े स्तर पर चला लिया। न्यूयॉर्क में सैफउल्ला का पुराना अमेरिकी दोस्त चाल्र्स उसका बिजनेस पार्टनर बन गया। इस दौरान एकबार वह पाकिस्तान की राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के साथ अफगानिस्तान गया। टीम के एक सदस्य ने उसको ओसामा बिन लादेन के साथ मिलवाने का विचार बताया तो वह खुशी खुशी मान गया। लादेन से मिलते समय उसको अपना कार्ड देते हुए सैफउल्ला ने कहा कि वह एक यूनिवर्सल ब्राडकास्टिंग नाम का टी.वी. कार्यक्रम चलाता है। उसने लादेन को अपने इस प्रोग्राम में इंटरव्यू देने के लिए कहा। लादेन ने मुस्तकराते हुए सैफउल्ला का कार्ड जेब में डाल लिया। तब तक सैफउल्ला सोच रहा था कि उसको अलकायदा से बहुत बिजनेस मिल सकता है। वह उसके नए बन रहे घरों के खरीददार हो सकते हैं। इस बीच काफी समय बीत गया कि उसके दफ़्तर में एक व्यकित आया जिसने अपना नाम मीर बताया। वास्तव में मीर, के.एस.एम. ही था। उसने वो कार्ड निकालकर दिखलाया जो कभी सैफउल्ला ने ओसामा बिन लादेन को दिया था। मीर बने के.एस.एम. ने कहा कि उन्हें कुछ घर किराये पर चाहिएँ और कुछ खरीदने भी हैं। सैफउल्ला यह काम करने के लिए खुशी से तैयार हो गया। अगले एक साल तक उसने अलकायदा को बेचे घरों में से लगभग तीन करोड़ रुपये कमाये। पिछले दिनों ही के.एस.एम. ने एक दिन उसको मुस्तफा नाम के किसी बड़े जमींदार से मिलवाया। पर मुस्तफा असल में के.एस.एम. का भान्जा अली ही था। मीर ने सैफउल्ला पराचा से कहा, “सैफउल्ला साहिब, मुस्तफा बलोचिस्तान का बहुत बड़ा बिजनेसमैन है। यह भी अमेरिका में इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस करना चाहता है। तुम इसकी मदद करो।“
“हाँ जी, मीर साहिब फरमाओ, मैं इसके लिए क्या कर सकता हूँ ?“
“तुम इसके पार्टनर मजीद खां के लिए वहाँ कोई कंपनी खुलवा दो ताकि यह भी अपना सामान वहाँ भिजवा सके। शुरु में तुम इसको अपनी कंपनी के रास्ते ही सामान भेजने की इजाज़त दे दो तो बहुत अच्छा होगा। आगे चलकर यह शायद तुम्हारा पार्टनर ही बन जाए।“
“कोई बात नहीं मीर साहिब, ये अगर चाहें तो एक आध डिलीवरी मेरी कंपनी की मार्फ़त भी भेज सकते हैं। आगे की आगे देखी जाएगी।“ सैफउल्ला अंदर से खुश हो गया कि उसका बिजनेस और आगे बढ़ेगा। पर के.एस.एम. की स्कीम कुछ और थी। उसने सोचा था कि अली का सामान भेजने के बहाने वह सैफउल्ला की कंपनी को इस्तेमाल करेगा। जिन कंटेनरों में सैफउल्ला कपड़े डालकर भेजता था, उनमें वह सी-4 एक्सप्लोसिव और अन्य घातक केमिकल्स डालकर भेजेगा। जिन्हें वहाँ बाद में मजीद खां ने संभालना था। यही हथियार अमेरिका के तेल भंडारों को आग लगाने के लिए प्रयोग में लाए जाने थे। बातचीत समाप्त करके मीर और मुस्तफा मामा-भान्जा सैफउल्ला के दफ़्तर से चले गए।
उधर आफिया यह सोचकर खुश हो रही थी कि वह चुपचाप अमेरिका का फेरा लगा आई ओर किसी को इसकी भनक भी नहीं पड़ी। लेकिन यह उसकी भूल थी। क्योंकि उसका नाम पहले ही एफ.बी.आई. वालों के रिकार्ड में आ चुका था। वह और अमजद जब एफ.बी.आई. की दूसरी इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर चले गए थे तो एफ.बी.आई. ने उनका नाम ट्रैवल लिस्ट में डाल दिया था। जिसका परिणाम यह हुआ कि जैसे ही वह अमेरिका जाने के लिए कराची से जहाज पर बैठी थी तो उसी समय पाकिस्तान की फैडरल ट्रैवल एजेंसी ने अमेरिकी एफ.बी.आई. को सूचित कर दिया था। एफ.बी.आई. वालों ने उसको एअरपोर्ट पर पकड़ने की बजाय उसका पीछा करना उचित समझा। क्योंकि वह उसको पकड़ने की अपेक्षा सारे रिंग को जोड़ना चाहते थे। आफिया ने अमेरिका पहुँचकर जब एअरपोर्ट के बाहर से टैक्सी ली तो जो पाकिस्तान टैक्सी ड्राइवर उसको एअरपोर्ट से लेकर होटल में छोड़कर आया था, वह एफ.बी.आई का ही आदमी था। अगले दो दिन भी उसका पीछा होता रहा। उसके पीछे-पीछे रहते हुए एफ.बी.आई. को पता लगा कि आफिया ने पोस्ट आफिस में पोस्ट बॉक्स किराये पर लेने के वक्त मजीद खां का नाम अपने पति के रूप में लिखा है तो वह समझ गए कि अब इस नाम का व्यकित अमेरिका में आएगा। परंतु मजीद खां या बाकी ग्रुप इस बात से अनभिज्ञ आगे की कार्रवाई करने में व्यस्त हो गए।
मगर इसी बीच 1 मार्च 2003 के अख़बार ने तहलका मचा दिया। मुख्य ख़बर थी कि के.एस.एम. को पाकिस्तानी पुलिस ने पकड़ लिया है। साथ ही, यह भी ख़बर थी कि के.एस.एम. जिसका पूरा नाम खालिद शेख मुहम्मद है, अलकायदा का आपरेशन चीफ़ है। वह ओसामा बिन लादेन के मुकाबले का अलकायदा का लीडर और नाइन एलेवन का मास्टर माइंडिड है। पुलिस के अनुसर के.एस.एम. रावलपिंडी फौज़ी छावनी के करीब किसी के बड़े घर में से गिरफ्तार किया गया था। किसी मुख़बिर ने अमेरिका द्वारा घोषित पच्चीस मिलियन डॉलर के इनाम को लेने की खातिर उसको पकड़वाया था। के.एस.एम. को जिसके घर में से पकड़ा गया था, वह खुद एक साइंसटिस्ट था। उसके घर से जो अन्य सामान मिला, उससे पता चला कि अल कायदा, बॉयलॉजिकल हथियार के करीब पहुँच चका था। वहीं से दूसरे अल कायदा सदस्यों के पते मिले। मजीद खां को भी अगले दिन ही पकड़ लिया गया। इसी प्रकार इस रिंग के कई अन्य सदस्य भी पुलिस की गिरफ्त में आ गए। उधर अमेरिका में एफ.बी.आई आफिया की बहन फौज़िया के घर पहुँची। फौज़िया से सवाल-जवाब करके वह वापस चले गए तो उसने अपने भाई को हूस्टन टैक्सास में फोन किया। वह हैरान रह गई जब उसने बताया कि उसके घर से भी एफ.बी.आई. वाले अभी अभी गए हैं। वह आफिया को बुरी तरह खोज रहे थे। इस बारे में फौज़िया ने आफिया को पाकिस्तान में फोन करते हुए कहा, “आफिया, तुझे एफ.बी.आई. खोजने आई थी।“
“क्या ? पर क्यों ?“ फौजिया की बात सुनते ही आफिया के होश उड़ गए।
“यह तो पता नहीं, पर मुझे पता चला है कि मार्च के शरु से ही जो के.एस.एम. जैसे लोगों की गिरफ्तारियाँ हुई हैं, यह सब उसी कड़ी का एक हिस्सा है।“
“हूँ...।“ आफिया किसी सोच में गुम हो गई।
“आफिया, क्या तू इस के.एस.एम. के बारे में कुछ जानती है ?“ फौज़िया ने सवाल किया।
“नहीं तो। पर तू क्यों पूछ रही है ?“
“आफिया, यह कोई लम्बा चक्कर लगता है, जो धड़ाधड़ गिरफ्तारियाँ हो रही है। इसके घेरे में पता नहीं कौन कौन आएगा। सुना है कि कोई मजीद खां नाम का लड़का भी पकड़ा गया जो अमेरिका आकर अगले हमले करने चाहता था। आफिया सच बताऊँ तो मुझे बड़ा डर लग रहा है। तू संभलकर रहना।“
फौज़िया के फोन ने आफिया के होश उड़ा दिए। उसको लगने लगा कि उसको पकड़ने के लिए कोई आया कि आया। उसने तुरंत अपने तीनों बच्चों को तैयार किया और टैक्सी बुला ली। उसकी माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “आफिया, यह क्या पागलपन है। तेरा इन लोगों से क्या संबंध है। तुझे कोई क्यों पकड़ेगा। जब तूने कुछ गलत किया ही नहीं तो डरने की कौन-सी बात है।“
“अम्मी, तू नहीं समझ सकती यह बात। इस वक्त मेरा यहाँ से चले जाना ही बेहतर है।“
“आफिया, सच बता, कहीं तेरा किसी उलटे-सीधे काम से वास्ता तो नहीं है ?“ इस्मत ने आफिया की बांह पकड़कर सख़्ती से कहा।
“अम्मी, मैंने कहा है न कि यह वक्त बहसबाजी का नहीं है।“ इतना कहते हुए आफिया ने बांह छुड़वा ली और अपनी तैयार में लग गई।
“मेरा मन कहता है कि तू ज़रूर अल कायदा के किसी आदमी के साथ जुड़ी हुई है। तू मुझे सच सच बता दे, मैं तेरा सारा प्रबंध कर लूँगी। तुझे आँच नहीं आने दूँगी।“
लेकिन आफिया ने माँ की बात का कोई जवाब नहीं दिया तो इस्मत रोने लगी। तभी, टैक्सी आ गई और आफिया बच्चों को उठाती बाहर निकलने लगी। इस्मत रोती हुई आगे आ गई और बोली, “पर इतना तो बता दे कि जा किधर रही है ?“
“फिलहाल तो फारूकी अंकल के पास जा रही हूँ। वहाँ पहुँचकर तुम्हें फोन करुँगी।“ इतना कहते हुए आफिया बच्चों सहित टैक्सी में जा बैठी। इस्मत के देखते-देखते टैक्सी आँखों से ओझल हो गई। आफिया स्टेशन पहुँची और वहाँ से टैक्सी बदल ली। अगली टैक्सी लेकर वह सीधे अल बलोची के परिवार के पास पहुँची। परिवारवालों ने उसका खुशी खुशी स्वागत किया। पर साथ ही यह भी कहा कि इस परिवार में एक अनब्याहा मर्द यानी अली रहता है, इसलिए मज़हबी अकीदे के अनुसार आफिया का वहाँ रहना उचित नहीं हागा। परंतु घर के बुजु़र्गों ने इसका हल सोचते हुए आफिया से पूछा, “बेटी क्या तू अली के साथ शादी करने के लिए राज़ी है ?“
“जी, जैसा आप सबको ठीक लगता हो।“ आफिया ने एक किस्म की सहमति दे दी। अगले दिन ही सादे ढंग से उनका निकाह करवा दिया गया और आफिया अपने बच्चों सहित अली के साथ रहने लगी।
उधर इस्मत सारा दिन प्रतीक्षा करती रही, मगर आफिया का फोन न आया। फिर उसने खुद ही फारूकी को फोन किया तो उसने बताया कि आफिया तो उसके पास आई ही नहीं। वह भी चिंतित हो उठा। अगले दिन शाम के समय फिर इस्मत का फोन आया तो सद्दीकी उदास आवाज़ में बोला, “आपा, मुझे लगता है कि आफिया को पुलिस ने कहीं रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया है। नहीं तो वह कहीं से फोन ज़रूर करती।“ इस तनाव में ही सप्ताह गुज़र गया। इस्मत थोड़ी थोड़ी देर के बाद फारूकी के घर फोन करती रही। उधर फौज़िया भी सुबह-शाम अपनी माँ से बात करती, पर आफिया का कहीं कोई ठौर-ठिकाना न मिला तो एक दिन इस्मत रोती हुई फारूकी से बोली, “भाईजान, तुम्हारी बात सही है। वह पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ली गई लगती है। पर मैं अकेली औरत क्या करुँ। कहाँ खोजूँ उसको। फिर यह भी पता नहीं कि उसने किया क्या है। उसने बताया भी कुछ नहीं। जिस तरह डरकर वह भागी है, उससे तो लगता है कि बात कोई ज़रूर है।“
“आपा तू अकेली नहीं है। मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम मिलकर उसको ढूँढ़ेंगे।“
पर उनके लाख टक्करें मारने के बावजूद आफिया का कोई अतापता नहीं मिला। दिन गुज़रते गए। इस्मत, बेटी के दुख से बिस्तर से लग गई। फारूकी भी सारा दिन इसी चिंता में खोया रहता था कि क्या किया जाए। उधर फौज़िया का बुरा हाल था। उसको आफिया की तो चिंता थी ही, साथ ही उसको यह भी लगता था कि जैसे उसकी भी निगरानी की जा रही हो। इस सबसे अनभिज्ञ उधर आफिया अपने नए पति अली के साथ उसके बड़े अल बलोची परिवार में रह रही थी।
फिर एक दिन एफ.बी.आई उज़ेर पराचा के न्यूयॉर्क वाले दफ़्तर में पहुँची। वह कई दिनों से उसकी निगरानी कर रहे थे। उसका दफ़्तर अंदर से बंद था। दरवाज़ा खटखटाया गया तो उज़ेर ने दरवाज़ा खोला। सामने वर्दीधारी एफ.बी.आई. की टीम देखकर उसके होश उड़ गए। उजे़र के सामान की तलाशी ली तो उसमें से मजीद खां के पेपर निकले। उसको भी गिरफ्तार कर लिया गया। उसको न्यूयॉर्क मैट्रोपॉलेटिन डिटैनशन सेंटर ले जाया गया। उसकी इंटैरोगेशन शुरू हुई तो उसने सबकुछ बता दिया कि कैसे उसका पिता ही उसको इस चक्कर में डालने का कारण बना। एफ.बी.आई. के लिए अब यह बहुत आवश्यक हो गया कि उज़ेर के पिता को पकड़ा जाए। मगर अब तक महीने से ऊपर हो गया था इन गिरफ्तारियों को चलते, इस कारण बहुत कुछ बदल गया था। शुरू में पाकिस्तान सरकार ने एफ.बी.आई. की मदद की थी। परंतु फिर वहाँ की एजेंसी आई.एस.आई. अलकायदा के मशहूर आदमियों को बचाने में लग पड़ी थी। जब भी एफ.बी.आई. धावा बोलती तब तक उनका टारगेट भाग चुका होता। वे समझ गए कि आई.एस.आई. अब उनकी पेश नहीं चलने दे रही। इसी कारण उन्होंने सैफउल्ला पराचा वाली बात बाहर न निकाली। पता था कि जैसे ही उसका नाम बाहर आएगा, आई.एस.आई. उसको पहले ही कहीं भगा देगी। लेकिन उसके लिए एफ.बी.आई. ने एक अलग ही तरीका चुना।
एक दिन न्यूयॉर्क में रहते सैफउल्ला पराचा के पुराने मित्र और बिजनेस पार्टनर चार्ल्स का उसको फोन आया। वह बोला, “सैफउल्ला तुझे एक ज़रूरी बात तो यह कहनी है कि तू इधर अमेरिका की ओर मुँह न करना। यहाँ आना तेरे लिए खतरे से खाली नहीं होगा।“
“चार्ल्स यह बात तो मैं भी समझता हूँ। इन्होंने मेरे निर्दोष बेटे को यूँ ही पकड़ लिया। पर बिजनेस भी बंद नहीं किया जा सकता।“
“यह बात भी ठीक है। बिजनेस के लिए अपना मिलना ज़रूरी है। पर मैं भी यार पाकिस्तान आने से डरता हूँ।“
“चार्ल्स तू भी यहाँ अभी बिल्कुल मत आना। अभी तो मैं भी यहाँ छिपा फिरता हूँ। इन एफ.बी.आई वाले कमबख्तों का क्या पता है कि कब किससे चिपट जाएँ।“
“तू फिर ऐसा क्यों नहीं करता कि हम कहीं दूसरी जगह छिपकर मिल लें।“
“तू ही बता कि कहाँ मिल सकते हैं ?“
“तू ऐसा कर, थाईलैंड आ जा। वहाँ किसी को पता भी नहीं चलेगा और हम मिल भी लेंगे। पर ज़रा होशियारी से जहाज में चढ़ना।“
“हाँ, यह तो ठीक है। साथ ही वहीं कुछ देर गुज़ार आऊँगा। जब तक बात ठंडी नहीं पड़ती।“
“ठीक है फिर हम वहीं मिलते हैं।“
इसके पश्चात उन्होंने तारीख़ तय कर ली। निश्चित दिन सैफउल्ला चुपचाप-सा कराची से थाईलैंड के लिए फ्लाइट लेकर जहाज में जा बैठा। जहाज बैंकाक पहुँचा तो दूसरे यात्रियों सहित सीढ़ियों से नीचे उतरा। नीचे एक सिक्युरिटी वाले ने बात करने के लिए एक तरफ बुला लिया। अगले ही पल पास खड़ी वैन में से कुछ लोग उतरे और उन्होंने सैफउल्ला को दबोचकर अपने साथ बिठा लिया। किसी को भनक भी न लगी कि वहाँ क्या हुआ। वे असल में एफ.बी.आई. वाले थे। उन्होंने ही चार्ल्स को डरा-धमकाकर अपनी मदद के लिए मनाया था। यह सारा ड्रामा चार्ल्स द्वारा सैफउल्ला को बैंकाक में लाने के लिए करवाया गया। अगले ही दिन सैफउल्ला पराचा को दूसरों की भाँति अफगानिस्तान की गुप्त जेलों में पहुँचा दिया गया। उधर उसके परिवार और जान-पहचानवाले हैरान रह गए कि सैफउल्ला गया तो किधर गया।
इसी दौरान एफ.बी.आई. के हाथ एक ऐसा व्यक्ति आ गया गया जिसने सारा रिंग ही तोड़ दिया। यह था फारसी नाम का ट्रक ड्राइवर जो कि चिकागो में रहता था। यह मजीद खां का दोस्त था, जिसका भेद मजीद खां की इंटैरोगेशन के समय ही मिला। जितना बड़ा यह अलकायदा का सोर्स था, उतना ही बड़ा यह पहेली निकला। उसने इंटैरोगेशन का एक दौर भी नहीं झेला कि वह एफ.बी.आई की हर किस्म की मदद करने को मान गया। एफ.बी.आई. शायद उसकी बातों को न मानती, पर जब उसने कहा कि वह के.एस.एम. के भान्जे अली को पकड़वा सकता है तो एफ.बी.आई. वालों की बांछें खिल उठीं। उसको किसी गुप्त घर में ले जाकर अली के साथ राब्ता कायम रखने को कहा गया। कुछ ही देर बाद उसने बताया कि अली पाकिस्तान में बैठा वहाँ की अमेरिकन एम्बेसी पर हमला करने की तैयारी कर रहा है तो एफ.बी.आई. एकदम हरकत में आ गई।
जब एफ.बी.आई. की टीम ने पाकिस्तानी पुलिस फोर्स के साथ उस घर को घेरा डाला जहाँ अली अमेरिकन एम्बेसी पर फेंके जाने वाले बम को बनाने में व्यस्त था, तो तभी अली और उसके साथी ने पुलिस पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। इधर पुलिस ने भी गोलाबारी शुरू कर दी। कुछ मिनट ही बीते थे कि तभी वहाँ आई.एस.आई. का हथियारबंद दस्ता आ पहुँचा। वह शायद देर हो जाने के कारण सिर मार रहे थे। इतने में अंदर से अली की आवाज़ आई कि वे कुछ देर के लिए सीज़ फायर कर दें ताकि अंदर घिर बच्चे को बाहर निकाला जा सके। आई.एस.आई. वालों ने गोलाबारी रुकवा दी। कुछेक मिनट प्रतीक्षा करने के बाद आई.एस.आई. वालों ने अपना ट्रक दरवाजे़ के साथ लगा दिया और किसी को चुपचाप-से ट्रक में बिठाकर चलते बने। बाद में पुलिस वाले भौंचक्के खड़े देखते रह गए। वे आई.एस.आई. की इस हरकत के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी अंदर से फिर आवाज़ आई कि यदि उन्हें आई.एस.आई. गिरफ्तार कर रही है तो वे हथियार फेंकने के लिए तैयार हैं। पुलिस वालों ने कहा कि ठीक है, जैसा तुम कहते हो, वैसा ही होगा। अंदर से अली और उसका साथी हाथ खड़े किए बाहर आ गए। जब पुलिस ने उन्हें बांधकर गाड़ियों में बिठा लिया तो उन्हें अहसास हुआ कि आई.एस.आई. वाले तो जा चुके थे। पर अब कुछ नहीं हो सकता था। पाकिस्तानी पुलिस और अमेरिकन एफ.बी.आई. वाले इस गिरफ्तारी से इतना खुश हुए कि वे आई.एस.आई. द्वारा दख़लअंदाज़ी करके किसी को वहाँ से निकालने वाली बात भूल गए। एफ.बी.आई. वालों की खुशी तब और भी बढ़ गई जब उन्हें पता चला कि अली के साथ पकड़ा गया व्यक्ति खालिद अल अशाद है। खालिद अल अशाद वर्ष 2000 में अमेरिकी समुद्री बेड़े यू.एस.एस, कॉल्ज पर हमला करके सत्रह अमेरिकी फौजियों को मार देने वाली आतंकवादी घटना में शामिल था। आखि़र, 1 मार्च को शुरु हुआ गिरफ्तारियों का सिलसिला बंद हो गया। अमेरिका पर दूसरा बड़ा हमला करने वाली साज़िश के प्रमुख दोषी के.एस.एम. से लेकर निचले स्तर के सभी आतंकवादी एफ.बी.आई. के कब्ज़े में आ चुके थे। सिर्फ़ एकमात्र इन्सान बच गया था जो एफ.बी.आई. की पहुँच से दूर था। वह थी आफिया सद्दीकी। एफ.बी.आई. ने दुनिया का कोना कोना छान मारा, पर आफिया का कोई अता पता नहीं मिला। एफ.बी.आई. उसको बहुत अहम मान रही थी। इसके अलावा जिस घर में से के.एस.एम. पकड़ा गया था, वहाँ से एफ.बी.आई. को जो दस्तावेज़ मिले थे, उनसे साबित होता था कि अल कायदा बॉयलॉजिकल और केमिकल हथियार बनाने के करीब पहुँच चुका है। एफ.बी.आई. सोच रही थी कि कहीं यह न हो कि कोई न काई खतरनाक हथियार बन चुका हो और आतंकवादी उसको अमेरिका के खिलाफ़ इस्तेमाल के लिए तैयार हों। अब तक पकड़े गए कई अलकायदा सदस्यों ने अपनी इंटैरोगेशन के दौरान माना था कि आफिया बहुत ज्यादा खतरनाक है। वह अमेरिका पर केमिकल हथियारों से करने वाले अगले हमले के लिए देहतोड़ काम कर रही है। एफ.बी.आई. इस बात से भी चिंतित थी कि कहीं वह किसी परिवर्तित नाम से पासपोर्ट लेकर अमेरिका में न आ घुसे और किसी को पता ही न चले। आखि़र, एफ.बी.आई. ने उसकी फोटो और अन्य जानकारी अपने इश्तहारी मुज़रिमों वाली सूची में डाल दी। इस सूची पर अकेला उसका नाम नहीं था, बल्कि साथ ही उसके पहले पति का नाम भी डाला गया था।
जैसे ही यह ख़बर आई कि एफ.बी.आई ने आफिया को अपने इश्तहारी मुज़रिमों वाली सूची में डाल दिया है तो हर तरफ तहलका मच गया। अख़बारों ने इस ख़बर को उठा लिया। अमेरिकी मीडिया ने ख़बर दी कि आफिया को गिरफ्तार कर लिया गया है और उसको अमेरिकी सरकार के हवाले भी किया जा चुका है। और अमेरिकी उसको अफगानिस्तान की किसी गुप्त जेल में ले गए हैं। इसी दौरान पाकिस्तानी मीडिया ने ख़बर दी कि आफिया पकड़ी अवश्य गई थी, पर उसको थाने में ले जाकर रिहा कर दिया गया। इसके अगले दिन पाकिस्तान के मशहूर अख़बार डॉन ने ख़बर दी कि आफिया को उस वक्त कराची एअरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया जब वह फ्लाइट लेकर कहीं जाने की ताक में थी। एक अन्य अख़बार ने अपने पुलिस सोर्स का नाम गुप्त रखते हुए यह लिखा कि आफिया को तब गिरफ्तार किया गया जब वह बच्चों सहित कराची से इस्लामाबाद जा रही थी और उसको आई.एस.आई. के हवाले कर दिया गया है। अगले ही दिन फिर ख़बर आ गई कि आफिया को पाकिस्तान सरकार ने पकड़ा है और इस वक्त वह उनकी कै़द में है। परंतु अगले दिन पाकिस्तान ने मीडिया कान्फ्रेंस करके इस ख़बर का खंडन कर दिया। जब फिर से डॉन अख़बार ने ज़ोर-शोर से लिखा कि आफिया इस वक्त अमेरिकी सरकार के पास है और उसको अफगानिस्तान में कहीं गुप्त जेल में रखा हुआ है तो अमेरिका सरकार ने इस ख़बर का खंडन करते हुए कहा कि आफिया उनकी जेल में नहीं है। इस बीच यह भी ख़बर आई कि आफिया क्योंकि अल कायदा के बारे में सब कुछ जानती थी और हो सकता है कि उसका हश्र भी आफिस भूजा वाला ही हुआ हो। (आसिल भूजा का नाम पत्रकार डेनियल पर्ल के क़त्ल में आ गया था। अगले दिन जब पुलिस उसके घर उससे बातचीत के लिए पहुँची तो वह वहाँ मरा हुआ मिला। सबको शक था कि उसको अलकायदा ने स्वयं ही मार दिया है ताकि कहीं कोई भेद बाहर न निकल सक।) खै़र, ख़बरों का बाज़ार हर तरफ गरम था। परंतु लोग असमंजस जैसी स्थिति में थे। क्योंकि कोई भी ख़बर ऐसी नहीं थी जिस पर भरोसा किया जा सके। आखि़र बनते बनते आफिया की ख़बर वास्तव में एक रहस्य बनकर रह गई। आफिया एक रहस्य बनकर रह गई। किसी को पक्के तौर पर कुछ भी पता नहीं था, बस सबके अपने अपने कयास थे। फिर धीरे धीरे आफिया के नाम की चर्चा कम होने लगी। 2003 की गर्मियाँ खत्म होने तक आफिया का नाम ख़बरों में से गायब हो चुका था।
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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15
(प्रथम भाग)

आफिया का नाम यद्यपि हर तरफ से गायब हो चुका था, परंतु एक ऐसा इन्सान भी था जो हर वक़्त उसके बारे में सोचता था। वह था उसका पहला पति अमजद। जब भी कहीं ख़बर आती कि आफिया गिरफ्तार हो गई है तो वह रात रातभर सो न पाता। आफिया का चेहरा उसकी आँखों के आगे घूमता रहता। वह यह सोचकर तड़पता रहता कि इस समय पता नहीं उस पर क्या बीत रही होगी। मगर जब ख़बर आ जाती कि नहीं वह अभी तक किसी की हिरासत में नहीं आई है तो उसको कुछ शांति मिलती। आफिया के साथ गहरा जुड़ा होने के अलावा उसको बच्चों की बड़ी चिंता रहती थी। वह सोचता कि वह जहाँ कहीं भी रह रही है, रहे जाए, पर पुलिस के हाथ न आए। यह दर्द उससे झेला नहीं जाएगा और साथ ही, बच्चों का जीवन भी बर्बाद हो जाएगा।
परंतु जब उसको पता चला कि आफिया के साथ उसका नाम भी एफ.बी.आई. ने मुज़रिमों के इश्तहार की लिस्ट में डाल दिया है तो उसके होश उड़ गए। क्योंकि वह तो अपने ही घर में रहता था और उसने सोचा कि उसको पुलिस किसी भी समय गिरफ्तार कर सकती है। उसने अपने पिता से बात की। पिता ने अपने किसी दोस्त की राय ली। यह दोस्त पहले आई.एस.आई. का अफ़सर रह चुका था और इस समय रिटायर हो चुका था। इसी दोस्त के उद्यम से अमजद की आई.एस.आई. के मौजूदा किसी अफ़सर के साथ इंटरव्यू करवाई गई। उसने अमजद से बहुत सारे सवाल पूछे। लेकिन अमजद ने जो सच था, वह बता दिया कि जिस आफिया को वह जानता है, वह ऐसी नहीं है और हो सकता है कि आफिया उससे छिपाकर कोई दोहरी ज़िन्दगी जी रही हो। लम्बी इंटरव्यू के बाद अफ़सर ने उसको फ्री कर दिया। अपने रिकार्ड में उसका नाम लिख दिया कि इस व्यक्ति की पूछताछ हो चुकी है और इसका किसी असामाजिक तत्वों से कोई संबंध नहीं है। अब एफ.बी.आई उसको आसानी से गिरफ्तार नहीं कर सकती थी। ख़ास तौर पर पाकिस्तान में तो कतई नहीं। इस दौरान अमेरिका के बाल्टीमोर दफ़्तर से एफ.बी.आई. का एक एजेंट उसके घर आ पहुँचा। घर वालों की तो जैसे जान ही सूख गई। पर अमजद ने उसको आई.एस.आई. के साथ हुई अपनी इंटरव्यू के बारे में बताया और साथ ही इंटरव्यू करने वाले अधिकारी का नाम-पता आदि दे दिया। उस वक़्त तो एजेंट चला गया, पर अगले रोज फिर आ गया। ख़ैर, अब उसने बताया कि वह सिर्फ़ अमजद की उसके घर में ही पूछताछ करेगा। लम्बी बातचीत के बाद इस एजेंट ने भी यही नतीजा निकाला कि अमजद को आफिया की दूसरी ज़िन्दगी का कोई इल्म नहीं है। वह वापस अमेरिका लौट गया।
आफिया की माँ के पास ग्रीन कार्ड था और वह अमेरिका जा सकती थी। वह अपनी बेटी को खोजने के लिए अमेरिका के लिए रवाना हो गई। न्यूयॉर्क के कनेडी एअरपोर्ट पर ही उसको एफ.बी.आई. वालों ने घेर लिया। पर वह डरी नहीं और ज़ोर-ज़ोर से चीख-चिल्लाकर कहती रही कि तुमने मेरी बेटी को कै़द किया हुआ है। चार घंटों के बाद उसको छोड़ दिया गया तो वह बाहर इंतज़ार कर रही फौज़िया के साथ उसके घर चली गई। करीब दो दिन बाद ही फौज़िया के दरवाज़े पर शैरिफ़ दफ़्तर का एक अधिकारी खड़ा था। उसने इस्मत सद्दीकी के विषय में पूछा, “मैम, मैं इस्मत सद्दीकी से मिलना चाहता हूँ।“
“किसलिए ?“ फौज़िया के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
“उसको कोर्ट को आदेश हुआ है कि वह ग्रैंड ज्यूरी के पास पेश हों।“
तभी इस्मत वहाँ आइ गई। उसने दस्तख़्त करके कोर्ट का सम्मन ले लिया। इसके बाद दोनों माँ-बेटियाँ गहरी फिक्र में डूब गईं। फौज़िया ने अपने भाई को टैक्सास में फोन करके इस बारे में बताया। उसने वकील कर लेने की सलाह दी। डर था कि कहीं उनकी माँ को जेल में ही न बंद कर दें। किसी दोस्त ने बॉस्टन की बहुत ही मशहूर वकील शार्प के विषय में बताया। फौज़िया ने शार्प को फोन किया। पहले तो वह केस लेने से हिचकिचाती रही, पर फिर मान गई। इससे माँ-बेटी दोनों को बड़ी राहत मिली। शार्प ने सबसे पहला काम यह किया कि इस्मत को दिमागी तौर पर परेशान बताकर, फिलहाल ग्रैंड ज्यूरी के पेश होने से छूट दिलवा दी। इधर से पीछा छूटते ही इस्मत अपने बेटे मुहम्मद के पास टैक्सास चली गई। पर उसके वहाँ पहुँचने के अगले दिन ही एफ.बी.आई. वाले उसके दरवाज़े पर भी आ खड़े हुए। वह इस्मत की इंटरव्यू करना चाह रहे थे। मुहम्मद ने तुरंत अपने लोकल वकील को फोन किया तो वकील उसी समय उसके घर आ गया। एफ.बी.आई एजेंट ने इंटरव्यू शुरु करते हुए सवाल किया, “मैम, तुम अमेरिका में क्या करने आई हो ?“
“मेरे पास ग्रीन कार्ड है। मैं जब चाहे यहाँ आऊँ-जाऊँ, तुम कौन हो मुझे पूछने वाले ?“ इस्मत यहाँ भी भयभीत न हुई। अपितु डटकर उत्तर देने लगी।
“तुम कभी ओसामा बिन लादेन से मिली हो ?“
“मुझे उससे मिलने की कोई ज़रूरत नहीं है। नहीं, मैं उससे नहीं मिली।“
“तुम्हारी बेटी आफिया कहाँ है ?“
“मैं तो खुद उसको खोजती घूमती हूँ। उसी को तलाशती मैं अमेरिका आई हूँ। इस बात का जवाब तुम दो कि तुमने आफिया को कहाँ कै़द करके रखा हुआ है।“
“व्हट नानसेंस ! हमने उसको नहीं पकड़ा। वह हमारे कब्जे़ में नहीं है। तुम जानबूझ कर नहीं बता रही। तुम माँ-बेटियों ने मिलकर अमेरिका के खिलाफ़ कोई साज़िश रची है। उसी साज़िश को अमली रूप देने के लिए तुम यहाँ आई हो।“
“यह सब बकवास है। तुमने मेरी बेटी को कहीं खपा दिया है। बताओ, कहाँ है मेरी बेटी ?“ वह ऊँची आवाज़ में बोलने लगी।
“मैम, तुम हमारी इंटरव्यू नहीं कर रहीं, बल्कि हम तुम्हारी इंटरव्यू कर रहे हैं। इसलिए तुम्हें हमारे सवालों के उत्तर तो देने ही पड़ेंगे। तुम बताओ कि के.एस.एम. के बारे में तुम क्या जानती हो ? मजीद खान तुम्हारा क्या लगता है ? उसने क्या योजनाएँ बना रखी थीं। तुम्हारी बेटी आफिया ने उसके लिए पोस्ट ऑफिस बॉक्स किराये पर क्यों लेकर दिया था ?“
“तुम सब झूठे हो। मैं किसी भी बात का उत्तर नहीं दूँगी। जाओ, कर लो जो करना है।“
“उत्तर तो मैम तुम्हें देने ही पड़ेंगे।“
इतना कहकर एफ.बी.आई. के एजेंट उठ खड़े हुए। उनके वकील ने कहा कि तुम देख ही रहे हो कि इस औरत दिमाग सही ढंग से काम नहीं कर रहा। अपनी बेटी के गम में यह बेज़ार हो चुकी है। इसको इलाज की ज़रूरत है। मगर एफ.बी.आई. वाले उसकी बात का नोटिस लिए बग़ैर बाहर निकल गए। अगले दिन यहीं कोर्ट का समन आ पहुँचा कि इस्मत सद्दीकी ग्रैंड ज्यूरी के सामने पेश हो। लेकिन वकील ने एक बार फिर उसकी बीमारी का बहाना बनाकर यह काम टाल दिया।
“अम्मी, मुझे लगता है कि तुझे वापस चले जाना चाहिए। कहीं यह न हो कि तू यहीं घिरकर रह जाओ।“ उस शाम घर बैठी फौज़िया ने बात शुरु की।
“मेरी एक बेटी तो गायब हो ही चुकी है, मैं नहीं चाहती कि तू भी एफ.बी.आई. के चक्कर में फंस जाए। तू भी यहाँ से चली चल।“ इस्मत ने फौज़िया से कहा।
“फौज़िया, मैं भी तुझे यही सलाह दूँगा, जो अम्मी दे रही है।“ समीप बैठा मुहम्मद बोला।
“वैसे तो भाईजान मेरे पीछे भी एफ.बी.आई. वाले घूमते रहते हैं। मेरी पहले वाली जॉब चली गई। हर रोज़ अस्पताल आ पहुँचते थे। अपनी रेपुटेशन के कारण अस्पताल वालों ने मुझे नौकरी से निकाल दिया। इसी बात की सताई मैं वहाँ से दूर बाल्टीमोर जाकर एक साधारण-सी नौकरी करने लगी तो एफ.बी.आई. ने वहाँ भी मेरा ठिकाना खोज लिया। पर मैं एक बात सोचती हूँ।“
“वह क्या ?“
“जब मेरा किसी बात से कोई लेना-देना ही नहीं तो मुझे कोई क्या कर देगा।“
“फौज़िया, यह बात नहीं है। असल में तू और आफिया शुरु के काफी दिन एकसाथ रहती रही हो। फिर, तू वहाँ उसके पास बॉस्टन में भी रही। इसीलिए एफ.बी.आई. सोचती है कि तू उसके बारे में बहुत कुछ जानती होगी। या वह अवश्य तेरे से सम्पर्क कायम करती होगी।“
“भाईजान, आफिया की वजह से सारा परिवार मुश्किलों में फंसा हुआ है। पता नहीं, उसने यह राह क्यों चुना ?“ इतना कहती हुई फौज़िया रोने लगी। माँ ने उसका ढाढ़स दिया।
“फौज़िया, यह मौका इस तरह हिम्मत हारने का नहीं है। मैं चाहता हूँ कि तू कल ही अपने वकील से सारी बात बता दे और अम्मी को लेकर यहाँ से चलती बन।“
“ठीक है भाईजान।“ फौज़िया वापसी के लिए मन बनाने लगी।
अगले दिन फौज़िया ने वकील शार्प को फोन करके कहा, “मैम, मैं इन एफ.बी.आई. वालों से बड़ी तंग आ चुकी हूँ। जिस अस्पताल में मैं काम करती थी, उन्होंने एफ.बी.आई. के चक्कर में मुझे नौकरी से निकाल दिया। अब मुझे कहीं ढंग की नौकरी नहीं मिल रही। मैं यहाँ से चले जाने के बारे में सोच रही हूँ।“
“मिस फौज़िया, यह तो तेरी मर्ज़ी है। तुझे कोई यहाँ जबरन रोक नहीं सकता। तेरे पर केस भी कोई दर्ज़ नहीं हुआ। इसलिए तू जाने के लिए आज़ाद है। दूसरा इस्मत सद्दीकी को भी अपने मुल्क में ले जाकर तुम्हें उसका अच्छा इलाज करवाना चाहिए।“ इशारे से वकील ने कह दिया कि अच्छा है कि इस्मत यहाँ से चली जाए। अगले ही दिन माँ-बेटी दोनों ही वापस जाने की तैयारियाँ करने लगीं और दो दिन बाद वह पाकिस्तान पहुँच गईं।
इन्हीं दिनों आई.एस.आई. की पूरी टीम आफिया के पहले पति अमजद के घर पहुँची।
“मि. अमजद, तुझे हमारी मदद करनी पड़ेगी। हम आफिया को पकड़ने की योजना बना रहे हैं।“
“कहाँ है आफिया ? क्या मेरे बच्चे भी उसके पास हैं ?“ अमजद ने उत्साह से आई.एस.आई. के अफ़सर से पूछा।
“यह नहीं पता, पर तुम्हें हमारे साथ चलना पड़ेगा।“
“साथ चलना पड़ेगा ? पर कहाँ ?“
“इस बात का पता भी वहीं चलकर लगेगा। अब तू चलने के लिए तैयार हो।“
इसके पश्चात आई.एस.आई. वालों ने अमजद को संग लिया और कराची एअरपोर्ट पर पहुँच गए। वह वहाँ खड़े हो गए जहाँ जहाज की सवारियाँ उतरकर आ रही थीं। करीब आधे घंटे के बाद आई.एस.आई. वालों ने अमजद से कहा कि सामने जो औरत आ रही है, वह उसको पहचाने और बताए कि क्या यही आफिया सद्दीकी है। अमजद ने ध्यान से सामने से आ रही औरत की ओर देखा। उसका सारा शरीर लम्बे बुर्के से ढका हुआ था। अमजद ने उसकी आँखें देकर नब्बे प्रतिशत अंदाजा लगा लिया कि यह आफिया ही है। उसके साथ चले रहे बच्चे को भी अमजद ने पहचान लिया कि वह उसका ही बेटा है। एकबार तो वह बहुत ही भावुक हो गया। पर साथ ही उसने सोचा कि यदि उसने आई.एस.आई. वालों को बता दिया कि उसे लगता है कि यही आफिया है तो वे उसको तुरंत गिरफ्तार कर लेंगे। लेकिन उसके अंदर का अमजद यह नहीं सहन कर सकता था। उसने सिर मारते हुए कह दिया कि यह आफिया नहीं है।
उधर, आफिया के मामा एस.एच. फारूकी को भी आई.एस.आई. तंग करने लग पड़ी तो उसने दौड़-भाग करके बमुश्किल अपना पीछा छुड़वाया। फौज़िया और उसकी माँ पाकिस्तान में आकर अपने घर में रहने लग पड़ी थीं। इसी बीच उन्हें फोन आने शुरू हो गए कि या तो वे आफिया के मामले में चुप हो जाएँ, नहीं तो उनका हाल भी उसके जैसा होगा। इसके बाद माँ-बेटी दोनों ने आफिया को लेकर बातें करनी बंद कर दीं। साथ ही, उन्होंने भी मीडिया से विनती की कि वे आफिया का मामला न उठाएँ। मीडिया ने तो क्या मानना था अपितु उन्हें एक और ख़बर मिल गई कि आई.एस.आई. सद्दीकी परिवार को तंग कर रही है। एकबार फिर से लोगों में आफिया का नाम चर्चा का विषय बन गया।
जो कुछ हो रहा था, अमजद बड़े ग़ौर से सब देख रहा था। वह चाहता था कि बस एकबार वह अपने बच्चों को देख ले। पर यह मुमकिन न हो सका। एक दिन वह अपने पिता को संग लेकर उनके उसी आई.एस.आई. के रिटायर्ड अधिकारी दोस्त से मिलने पहुँचा जिसने उसकी आई.एस.आई. से इंटरव्यू करवाकर उसको क्लियरेंस दिलवाई थी। वह अफ़सर अमजद को सलाह देते हुए बोला, “अच्छा यही रहेगा कि तुम यहाँ से कहीं दूसरी जगह चले जाओ। यहाँ किसी का कोई भरोसा नहीं कि क्या करवा दे। तुम प्रेज़ीडेंट मुशरफ का उदाहरण ले लो। वह अमेरिका को खुश करने के लिए किसी को भी उनके हवाले कर देता है। मेरे कहने का अर्थ है कि कई ऐसे व्यक्ति भी उसने अमेरिका को सौंप दिए जिनका गुनाह इतना बड़ा नहीं था कि उन्हें बेगाने देश के हवाले किया जाता। कई तो सिर्फ़ पूछ-पड़ताल तक ही सीमित थे। पर इसने सभी पर अलकायदा सदस्य होने का लेबल लगाकर गिरफ्तार किया और एफ.बी.आई. के हवाले कर दिया।“
उसकी बातें सुनकर पिता-पुत्र चिंतित हो गए। कुछ देर बातें करके वे वापस लौटने लगे तो वह अजमद के पिता को एक तरफ ले गया। फिर धीमे स्वर में बोला, “नईम खां, तुम्हें एक भेद की बात बताता हूँ।
“जी।“
“तुम्हें याद होता कि कुछ समय पहले के.एस.एम. का भान्जा अली और एक अन्य आतंकवादी पकड़े गए थे। दूसरे आतंकवादी पर चार्ज है कि उसने अमेरिकी समुद्री यू.एस.एस. कोहल नामी बेड़े पर हमला किया था।“
“जी हाँ, याद है मुझे वो घटना।“
“तो फिर तुम्हें यह भी याद होगा कि उस दिन उनकी पुलिस के साथ फायरिंग हो गई थी और उन्होंने वहाँ फंसे हुए किसी बच्चे को बाहर निकालने के लिए कुछ देर के लिए फायरिंग रुकवाई थी। बाद में आई.एस.आई. का हथियारबंद दस्ता भी वहाँ पहुँच गया था।“
“हाँ जी, बिल्कुल। बाद में पता चला था कि आई.एस.आई. ने उस बच्चे को अपने कब्ज़े में कर लिया था।“
“हाँ-हाँ, वहीं घटना। पर क्या तुम्हें पता है कि वह कोई बच्चा नहीं था बल्कि एक औरत थी ?“
“जी नहीं, यह तो नहीं पता। पर फिर वो औरत कौन थी ?“
“वह तुम्हारे बेटे की पहली बीवी आफिया ही थी।“
“हैं ! यह तुम क्या कर रहे हो ?“
“यह बिल्कुल सही है। वह अलकायदा की बहुत ही सक्रिय मेंबर है। साथ ही, वह बहुत ज्यादा ख़तरनाक भी है। इसीलिए कह रहा हूँ कि तुम अपने बेटे को कहीं बाहर भेज दो। कल अगर वह फिर पकड़ी गई और उसने कहीं अमजद का नाम ले दिया तो इसकी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी।“
“पर जनाब एक बात और...।“ नईम खां कोई दूसरी बात शुरु करता करता रुक गया।
“हाँ, बताओ तुम क्या कहना चाहते हो ?“
“तभी पता लगा था कि आफिया एकबार आई.एस.आई. द्वारा पकड़ ली गई थी। पर क्या वह फिर से छोड़ दी गई ? मेरा मतलब यह सब क्या है ?“
“ये दोनों बातें सहीं है। लेकिन यह एजेंसियों के काम करने का ढंग होता है, तुम इस बात के पीछे न जाओ। बस, अमजद का कुछ सोचो।“
“जी, बहुत बेहतर जनाब। मैं सब समझ गया।“
बात समाप्त करके नईम खां बाहर खड़े अमजद के साथ कार में आ बैठा। घर तक वह अपने दोस्त की कही बात के विषय में ही सोचता रहा। घर आकर उसने अमजद को समझाया कि उसको चाहिए कि अब अतीत का पीछा छोड़कर भविष्य के बारे में सोचे। अमजद भी आफिया की तलाश से ऊब चुका था। पिता की बात से सहमत होते हुए उसने अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया। उसका नाम एफ.बी.आई. की वांटिड लिस्ट में से उतर चुका था। इसलिए उसने पाकिस्तान छोड़ने का निर्णय करते हुए सउदी अरब के किसी अस्पताल में नौकरी कर ली। वह अपनी नई दुल्हन और छोटी-सी बच्ची को लेकर सउदी अरब चला गया।
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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(दूसरा भाग)

इस्मत और फौज़िया अपने घर तक सीमित होकर रह गई थीं। वे भयभीत-सी किसी के साथ आफिया को लेकर बात भी नहीं करती थीं। इसके अलावा उनके घर की आई.एस.आई. निगरानी करती रहती थी। कभी उन्हें गुप्त फोन आते थे कि आफिया के बारे में बात नहीं करती, नहीं तो उनका हश्र भी आफिया जैसा ही होगा। ऐसे समय उन्हें लगता कि आफिया इस दुनिया में नहीं है। फिर अगले ही दिन कोई फोन आ जाता कि आफिया जहाँ कहीं भी है, वो ठीक है, तुम उसकी चिंता न करो। ऐसा फोन सुनकर उन्हें लगता कि आफिया जिन्दा है। इसी दुविधा में ही दिन, महीने, सालों में बदल गए, पर उन्हें कभी आफिया का कोई सुराग नहीं मिला। एक दिन इस्मत ने अपने पुत्र मुहम्मद को ह्यूस्टन में फोन करते हुए कहा, “बेटा, बता हम क्या करें। हमारे पास तो कोई घर का सदस्य भी नहीं है। तुझे बता नहीं सकती कि हम डर के साये में कैसे दिन बिता रहे हैं।“
“अम्मी, मैं यह बात समझ सकता हूँ। पर क्या किया जाए।“
“बेटा, मैं चाहती हूँ कि तू भी यहीं पाकिस्तान ही आ जा। कहीं यह न हो कि तुझे भी अमेरिकी सरकार किसी केस में फंसा लें।“
“नहीं अम्मी, ऐसा नहीं होगा। मैं कभी भी किसी गलत लोगों के साथ नहीं जुड़ा। हमेशा अपने काम से काम रखा है। इस कारण मुझे यहाँ कोई खतरा नहीं है।“
“फौज़िया के साथ भी तो यही कुछ हो चुका है। वह जहाँ कहीं भी नौकरी करने लगती थी, एफ.बी.आई. वाले वहीं पहुँच जाते थे। आखि़र, उसको अमेरिका छोड़ना पड़ा।“
“अम्मी, मेरे और फौज़िया में फर्क़ है।“
“वह कैसे ?“
“तुझे पता ही है कि आफिया फौज़िया के पास रहती रही है। आफिया की कई चैरिटियों के पते फौज़िया के घर के थे। फौज़िया हालांकि किसी बात से संबंधित नहीं थी, पर यह आफिया से जुड़ी रही है। यही कारण है कि एफ.बी.आई को हमेशा शक रहता था कि कभी न कभी आफिया उसके साथ अवश्य संबंध कायम करेगी। इसीलिए इसका हर वक्त पीछा किया जाता था, पर मुझे उसके बाद कभी कोई तकलीफ़ पेश नहीं आई।“
“फिर बेटा, तू ही बता कि हम माँ-बेटी किधर जाएँ। अमेरिका में हमको एफ.बी.आई. नहीं टिकने देती थी। यहाँ पाकिस्तानी सरकार चैन से नहीं रहने देती। आई.एस.आई. सारा दिन अपने घर के इर्द-गिर्द घूमती फिरती है। रोज़ गुप्त फोन आते रहते हैं। पता नहीं हमारा क्या बनेगा ?“ इतना कहते हुए इस्मत रोने लगी। उसके बेटे का मन भर आया।
“अम्मी, तू रो न। इस तरह तो मसला हल नहीं हागा।“
“बेटा, तू कौन से मसले की बात करता है। हमारी ज़िन्दगी नरक बनकर रह गई है। तू भी हमको भूल चुका है।“
“अम्मी, ऐसी बात नहीं है। मैं बताओं कर ही क्या सकता हूँ।“
“बेटा, आफिया तेरी भी माँ-जाई बहन है। तू ही उसको कहीं तलाशने की कोशिश कर।“
“अम्मी, पहले कौन सा हमने कम खोज की है। पर वह कहीं मिले भी।“
“मुहम्मद बेटा, तू एकबार फिर से हिम्मत कर। मेरा दिल कहता है कि वह कहीं आसपास ही है।“
“अम्मी, मेरी अपनी नौकरी है। और फिर मेरे भी बाल-बच्चे हैं। मैं ऐसे कैसे कहीं जा सकता हूँ। तुझे पता ही है कि पहले भी मेरे घर में क्या हुआ था।“
असल में, मुहम्मद की बीवी आफिया का जिक्र छिड़ते ही झगड़ा करने बैठ जाती थी। उसका कहना था कि उसकी वजह से ही पूरा परिवार परेशान हो रहा है।
“बेटा, कैसे भी कर। कोई बात नहीं, तू अपनी बीवी का गुस्सा एकबार और झेल ले। अगर मेरी बेटी का कोई पता ठिकाना न लगा तो मैं तो पागल हो जाऊँगी।“
“ठीक है अम्मी, मैं देखता हूँ कि मैं क्या कर सकता हूँ। पर एक बात है कि यहाँ एक उजे़र पराचा नाम के लड़के पर आतंकवाद संबंधी केस शुरू होने वाला है। मुझे लगता है कि उसके केस में ज़रूर आफिया का जिक्र आएगा। शायद इस तरह ही कोई पता चल जाए।“
“ठीक है, तू मुझे इस बारे में जल्दी बताना।“ इस्मत ने फोन काट दिया।
उज़ेर पराचा के केस का उन दिनों अख़बारों में खूब हो-हल्ला हो रहा था। के.एस.एम. से लेकर अब तक पकड़े गए बंदियों में सबसे पहले मुकदमा उज़ेर पराचा पर चला। न्यूयाॅर्क की कोर्ट में उसने वही बयान दिया जो उसने पहले एफ.बी.आई. के सामने दिया था। उसने कहा कि न ही उसको अलकायदा के बारे में कोई पता था और न ही उनके किसी प्लाट के बारे में। उसने कोर्ट को बताया कि उसने सिर्फ़ मजीद खां की एप्लीकेशन इमीग्रेशन को भेजी थी और दूसरा उसने मजीद खां बनकर इमीग्रेशन को फोन किया था। वह सोचता था कि उसका इतना ही जुर्म है कि उसने इमीग्रेशन को झूठ बोला। पर उसका वकील सब समझता था। वकील ने गवाहों आदि को अदालत में पेश करने की मांग की। लेकिन सरकारी वकील यह सब नहीं होने देना चाहता था। क्योंकि गवाह तो अफगानिस्तान के उजाड़ इलाकों की किन्हीं जेलों के अंदर बंद थे। गवाहों से उसका मतलब था - के.एस.एम., उसका भान्जा अली या मजीद खां। सरकार डरती थी कि यदि इन गवाहों को अदालत में पेश करना पड़ा तो बहुत सारे गुप्त भेद बाहर आ जाएँगे। उजे़र का वकील सरकार के डर को समझ गया। उसने सरकार से कहा कि या तो गवाहों को अदालत में पेश किया जाए, या फिर प्ली बारगेनिंग की इजाज़त दी जाए। सरकार ने भी प्ली बारगेनिंग के बारे में सोच लिया। वकील ने उज़ेर को गिल्टी प्ली कर देने के लिए समझाया और बताया कि इस तरह सरकार के साथ डील हो जाएगी और वह सज़ा कम कर देगी। परन्तु उज़ेर उसकी बात नहीं माना। उसका सोचना था कि सिर्फ़ किसी अन्य के नाम पर इमीग्रेशन को फोन कर देने की कितनी सज़ा हो सकती है। दूसरी बात यह भी थी कि उसको जो वकील मिला था, वह सरकार द्वारा दिया गया था। इस कारण उज़ेर उस पर पूरा भरोसा नहीं कर रहा था। वह छोटी आयु का भोला-सा लड़का था और न ही वह इस किस्म के कानूनी पचड़ों में कभी पड़ा था। यही कारण था कि वह उस वक्त मौके की नज़ाकत नहीं समझ सका और यह न जान सका कि वह कितने बड़े चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। उसने गिल्टी प्ली करने से इन्कार कर दिया। केस चला तो ज्यूरी ने उसको दोषी साबित करते हुए उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी।
यह केस बंद डिब्बे की तरह बंद ही रह गया तो मुहम्मत मायूस हो गया। उसकी आफिया के बारे में कुछ पता लगाने की उम्मीद अधूरी रह गई। उसको भी आफिया की बहुत चिंता थी। साथ ही, माँ और फौज़िया की भी। पर उसके घर के हालात इजाज़त नहीं देते थे कि वह नौकरी छोड़कर इधर-उधर भटकता फिरे। वह कई दिन उदास रहा। फिर उसने अपनी पत्नी के साथ बात की। आहिस्ता आहिस्ता उसने पत्नी को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह बस एकबार आफिया की तलाश के लिए जाएगा। लौटकर कभी वह इस मामले में नहीं पड़ेगा। नौकरी पर से छुट्टी लेकर वह पाकिस्तान जा पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने माँ और फौज़िया के साथ आगे की योजना बनाई। फै़सला हुआ कि वह अपने मामा फारूकी की मदद ले। अगले दिन वह इस्लामाबाद चला गया। फारूकी भी इस मामले में पड़कर अब तक बहुत मुसीबतें झेल चुका था। पर वह सोचता था कि आफिया उसकी सगी भान्जी है। अगर वह मदद नहीं करेगा तो और कौन करेगा। आखि़र विचार-विमर्श के बाद उसने मुहम्मद से कहा, “यहाँ एक जहीर खां नाम का आदमी है, वह शायद अपनी कोई मदद कर सके। पर...।“ फारूकी बात करता करता चुप हो गया।
“पर क्या अंकल ?“ मुहम्मद ने उसकी चुप तोड़ी।
“बात यह है कि यहाँ एक संगठन बना है जिसका मुख्य मकसद गुम हो चुके व्यक्तियों को तलाश करना है। जहीर खां उस संगठन का मुखिया है। पर साथ ही यह भी सुना है कि यह व्यक्ति पहले आई.एस.आई का अधिकारी रह चुका है।“
“फिर क्या है अंकल। हमें तो पता ही लगवाना है कि शायद इन्हें आफिया के बारे में कुछ मालूमात हो।“
“बेटा, बात यह है कि आई.एस.आई. के लफड़ों से हर कोई डरता है। क्या पता कि यह जहीर खां नाम का आदमी दिखावे के तौर पर ही गुमशुदा लोगों की तलाश में लगा हो और असल खेल इसका कुछ और ही हो।“
“अंकल, दूसरी कोई राह भी तो नहीं है। पता नहीं, अपने मुल्क को क्या हो गया है कि किसी पर भरोसा ही नहीं किया जा सकता। कौन किसके लिए काम कर रहा है, कुछ पता नहीं। सरकार के आदमी सरकार के बीच रहते हुए आतंकवादियों की मदद कर रहे हैं। उधर आतंकवादी गवर्नमेंट की मदद करने में लगे हुए हैं। मैं तो ऐसी बातें सुन सुनकर ऊब चुका हूँ। अगर मेरी अपनी बहन का मसला न हो तो मैं इस मुल्क में एक पल भी न रुकूँ।“
“ठीक है, फिर तू जहीर खां से मिलकर देख ले। शायद बात किसी राह लग जाए। वैसे उससे सावधान रहना। मेरा अर्थ है कि अपने बारे में अधिक बात न करना। बस, बात आफिया तक ही सीमित रखना।“
“ठीक है अंकल, आप मुझे उसका पता ठिकाना ला दो। फिर मैं देखता हूँ कि आगे क्या करना है।“
अगले दिन फारूकी ने मुहम्मद को जहीर खां का अता-पता ला दिया। उसने फोन करके उससे यह कहते हुए मुलाकात के लिए वक्त मांगा कि वह अपने किसी सरकार द्वारा गुम कर दिए गए रिश्तेदार के बारे में मालूम करना चाहता है। उसको शाम का वक्त मिल गया। शाम के समय वह जहीर खां के दो मंज़िला घर में दाखि़ल हुआ। यह रोज़ों के दिन थे। उसके घर में बहुत सारे लोग रोज़ा खोलने के लिए इकट्ठे हुए बैठे थे। रोज़ा खोलने के बाद जहीर खां ने मुहम्मद को अपने कमरे में बुला लिया। उसने मुहम्मद की ओर ग़ौर से देखा और फिर धीमे से बोला, “बरखुरदार, तुम किस बात के सिलसिले में मुझसे मिलने आए हो ?“
“जी, मैंने फोन पर भी बताया था कि मेरी बहन गुम है। उसको गुम हुए काफी समय बीत गया है। उसके बारे में जगह-जगह पता करता घूम रहा हूँ।“
“क्या नाम है तेरी बहन का ?“
“जी उसका नाम आफिया सद्दीकी है।“
“हैं ! आफिया सद्दीकी ?“ जहीर खां ऐसे बोला जैसे बिच्छू ने डंक मारा हो। फिर वह धीरे धीरे संभल गया। मुहम्मद भी हैरान हुआ कि आफिया का नाम सुनकर यह ऐसे क्यों चैंक उठा। दीवार की ओर देखता जहीर खां बोला, “मैंने तो यह नाम ही पहली बार सुना है। मुझे इस लड़की के बारे में कोई पता नहीं है। किसी दूसरे के बारे में बात करनी है तो बता ?“
“मुझे मेरी बहन के अलावा दूसरे किसी से कोई सरोकार नहीं है।“
“ये सारी औरतों को देख रहा है ?“ जहीर खां ने सामने इशारा करते हुए बात दूसरी ओर मोड़ ली।
“जी।“ मुहम्मद उतावला-सा होता बोला।
“इन सभी ने कोई न कोई खोया है। किसी का घरवाला जिहाद में शहीद हो गया। किसी का पुत्र अफगानिस्तान की जंग की बलि चढ़ गया। पता नहीं, कितनें घरों के सदस्य आई.एस.आई. खा गई। यहाँ हर कोई अपने खोये हुओं को तलाशता फिरता है।“
“जी, वह सब तो ठीक है, पर इस बात से मेरा क्या ताल्लुक है। मुझे तो पता चला था कि आपका संगठन आई.एस.आई. या अमेरिकी एफ.बी.आई. द्वारा उठाकर गुम कर दिए गए लोगों की तलाश करने में मदद करता है। बस, इसी कारण मैं आपके पास आया हूँ।“
“तू ऐसा कर, अपना पता-ठिकाना दे और कल को यहीं पर मुझसे मिलना। मैं तुझे अपने आगे के किसी लीडर से मिलवाऊँगा। वह शायद तेरी बहन को खोजने में कोई मदद कर सके।“
“जी, ठीक है। पर एक सवाल है जो इजाज़त हो तो...?“
“हाँ बोलो।“
“ये गुमशुदा लोगों की तलाश आप कानूनी ढंग से करते हैं ? मेरा मतलब अदालत में पेटीशन वगै़रह डालकर करते हैं कि वैसे ही अपने तौर पर ?“
“हमारा कोई भी ढंग हो। तुम्हें अपने काम तक मतलब रखना चाहिए। तू कल आ जाना।“ इतना कहते हुए जहीर खां उठकर चला गया और मुहम्मद घर लौट आया। फारूकी भी उसके साथ कराची ही आ गया था, इसलिए जब मुहम्मद घर लौटा तो वह भी घर में ही था। उसने घर आकर जहीर खां से हुई बातचीत बताई तो फारूकी बोला, “मैं तो तुझे पहले ही वहाँ भेजकर राज़ी नहीं था। मुझे आज ही एक और बात का पता चला है।“
“वह क्या ?“
“अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल गुम हो जाने से पहले इसी जहीर खां के घर गया था। उसके बाद उसकी लाश ही मिली थी।“
“ओह माय गॉड ! यह सब क्या हो रहा है। ये लोगों को खोजने में मदद कर रहे हैं कि लोगों को गुम करने में लगे हुए हैं। आप बता रहे थे कि ये आदमी आई.एस.आई. में पहले कोई अफ़सर रहा है, पर मुझे शक होता है कि यह अलकायदा के साथ भी जुड़ा हुआ है।“
“बस, चुप ही भली।“
“अंकल, आफिया को पाकिस्तान का बच्चा बच्चा जानता है और वह कहता है कि उसने तो यह नाम कभी सुना ही नहीं।“
“पता नहीं सरकार क्या खेल खेल रही है। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा। पिछले दिनों गुम हुए लोगों के कई परिवारों ने इकट्ठा होकर सुप्रीम कोर्ट में पेटीशन डाली थी। चीफ़ जस्टिस इफ्तिखार चैधरी ने यह पेटीशन मंजूर करते हुए कार्रवाई शुरु भी कर दी थी। उसके कई अच्छे नतीजे भी आए थे। क्योंकि जस्टिस चैधरी ने सफाई देने के लिए हुक्मरानों को अदालत में बुलाना शुरु कर दिया था। अधिक दबाव पड़ने पर आई.एस.आई. ने बहुत सारे लोग छोड़ भी दिए थे। पर सबको डरा-धमकाकर छोड़ा गया था कि यदि बाहर जाकर किसी से कोई बात की तो दुबारा पकड़ लिए जाओगे। आखि़र लोगों की यह उम्मीद भी खत्म हो गई।“
“वह क्यों ?“
“क्योंकि पहले तो प्रैज़ीडेंट मुशर्रफ़ ने चीफ़ जस्टिस चैधरी पर दबाव डाला कि वह यह पेटीशन वाला काम बंद कर दे, पर जब वह नहीं माना तो मुशर्रफ़ ने उसको मुअŸाल कर दिया।“
“भाईजान, तब कुछ उम्मीद बंधी थी कि शायद चीफ़ जस्टिस चैधरी के हुक्म से हो रही इंकुआरियाँ के कारण ही कहीं आफिया का भेद खुल जाए। पर तभी दुष्ट मुशर्रफ़ ने यह कर डाला।“ चुप बैठी इस्मत भी बातचीत में हिस्सा लेने लगी।
“आपा बात यह है कि अपने हुक्मरान अमेरिका के इशारों पर नाचते हैं। जैसा वह कहता है, वैसा ही करते हैं। अमेरिका नहीं चाहता कि उसकी गुप्त जेलों में बंद किए लोगों के बारे में बाहर के लोगों का पता चल। इसी कारण उसने मुशर्रफ़ से कहकर चीफ़ जस्टिस चैधरी को ही एक तरफ करवा दिया।“
“अमेरिका तो अपने दूसरे भरोसेमंद चमचों को भी आगे लगाने लगा था, पर उसको अल्लाह ने खुद ही सज़ा दे दी।“
“तुम किसकी बात करते हो ?“
“बेनज़ीर की, और किसकी। भुट्टो की लाडली आई थी, यहाँ शांति स्थाति करने। सारा मुल्क चुनकर खा गई और फिर कहने लगी कि मैं मुशर्रफ़ के साथ मिलकर सरकार बनाऊँगी। पर यह नहीं पता कि इन्साफ तो तेरा इंतज़ार कर रहा है। दो महीने भी नहीं निकले कि उन्होंने जहन्नुम का टिकट काट दिया।“
“पता नहीं इस मुल्क का कया होगा। पहले ही चीफ़ जस्टिस चैधरी के मुअत्तल होने वाले मसले के कारण हर तरफ धरने-प्रदर्शन हो रहे हैं। फिर फौज लाल मस्जिद में जा घुसी। वहाँ सैकड़ों लोग मारे गए। उसके बाद बेनज़ीर भुट्टो वाला हादसा हो गया।“
“तुम राजनीति की बातें छोड़ो। हम आफिया के बारे में कुछ सोचें।“
“आपा, हम उस दिन के एक पल के लिए भी चैन से नहीं बैठे जब से आफिया गुम है। पर शायद अल्लाह को मंज़ूर ही नहीं कि उसका कोई पता लगे।“ फारूकी ने बहन के दिल को ढाढ़स दिया।
“सुना है कि अमेरिकियों ने अफगानिस्तान में बहुत ही बुरी जेलें बनाई हुई हैं। जहाँ हर रोज़ बेकसूरों को अमानवीय यातनाएँ दी जाती हैं। पता नहीं मेरी बेटी किन कोठरियों में मौत की घड़ियाँ गिन रही होगी।“ इस्मत रोने लगी।
“आपा तू यह रोना-धोना बंद कर। इससे कोई मसला हल नहीं होने वाला।“
“भाईजान, फिर कुछ न कुछ करो। इस तरह बातें करते तो सालों के साल बीत गए हैं।“
“आपा तू ही बता कि क्या करें ? क्या है अपने हाथ में ?“ फारूकी का भी दिल भर आया और उसने जेब में से रूमाल निकालते हुए आँसू पोंछे।
“भाईजान, तुम वॉन रिडली का शो देखा करते हो ?“ इस्मत ने बात बदली।
“यह कौन है ?“
“यह कोई इंग्लैंड की औरत है। क्रिश्चियन से मुसलमान बनी है। यह एक टी.वी. शो चलाती है। इसका मुख्य मुद्दा मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार होता है। खास तौर पर टैरेरिज़्म की आड़ में आम मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार।“
“अच्छा !“
“हाँ। पिछले हफ़्ते के प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य था - अफगानिस्तान की भयंकर गुप्त जेलों में छिपा कर रखे गए निर्दोष लोग। जिनके खिलाफ़ कोई केस नहीं बनता। उन गरीबों की कहीं सुनवाई नहीं हाती और वे इसी तरह जुल्म न सह पाने की वजह से मौत की गोद में जा पड़ते हैं। क्योंकि उनकी कहीं गिरफ्तारी भी नहीं दिखाई गई होती, इसलिए वे दुनिया के लिए रहस्य बने रह जाते हैं।“
“तुम्हारा मतलब...।“ फारूकी ने ग़ौर से इस्मत की ओर देखा।
“हाँ-हाँ, मैं वही बात करने जा रही हूँ। पिछले हफ़्ते उसने आफिया का मुद्दा उठाया था। उसके प्रोग्राम में कोई मुअज़म बेग नाम का आदमी आया था। वह बता रहा था कि उसको भी शक के आधार पर पकड़ा गया था। उसको अफगानिस्तान की किसी गुप्त जेल में रखा गया था। उस पर अमानवीय अत्याचार हुआ। पर जो खास बात उसने बताई, वह यह थी कि उसको हर रोज़ किसी औरत की चीखें सुनाई देती थीं। मानो किसी पर जु़ल्म ढाया जा रहा हो और वह उसको सहन न कर पाने के कारण चीखती चिल्लाती हो। यह हर रोज़ का काम था। वह जितने समय वहाँ रहा, ये चीखें सुनता रहा।“
इस्मत बात करते करते चुप हो गई और उसने अपनी आँखें पोंछ लीं। पर किसी ने बोलकर उसकी बात में विघ्न डालना उचित नहीं समझा। वह फिर से बोलने लगी, “बेग ने बताया कि वह कई बार उसको कै़द में रखने वालों से पूछता कि यह औरत कौन है जो विलाप कर रही है। पर वह हमेशा कह यह कहकर टाल देते कि यह तो टेपों में भरी हुई आवाज़ है जो कि उसको सिर्फ़ डराने के लिए इस्तेमाल की जाती है। पर असलियत कुछ और थी...।“ वह ज़रा रुकी और फिर बोलने लगी।
“उसको किसी ने एक दिन लोकल अफगानी पुलिस वाले ने बताया कि यह कोई टेप वगै़रह नहीं है। यह असली औरत है जो कि साथ वाली कोठरी में बंद है। इस औरत के पहनने वाले कपड़ों पर कै़दी नंगर 650 लिखा हुआ है। उसकी हर रोज़ इंटैरोगेशन होती है और तभी वह रोती-चिल्लाती है। फिर मुअज़म बेग ने एक दिन उस औरत का चेहरा भी देख लिया।“
“अच्छा ! क्या वह उसको पहचान सका ?“ फारूकी ने उत्साह से पूछा।
“तब तो उसने क्या पहचानना था। पर उसी प्रोग्राम पर रिडली ने उसके सामने आफिया की फोटो कर दी और पूछा कि क्या वह इस लड़की जैसी लगती थी। इस पर वह झट बोला, हाँ यह फोटो उसी लड़की की है।“
इसके वहाँ कोई न बोला। सभी सुन्न हो गए। इस्मत ने लम्बी आह भरी और अपनी बात आगे शुरु की।
“इतना ही नहीं, फिर रिडली ने उन पाँचों तालिबानों के साथ हुई इंटरव्यू दिखाई जो कि बैगराम शहर की उसी जेल में से भागने में कामयाब हो गए थे। उन्होंने अपनी इंटरव्यू में माना था कि उन्होंने ने भी उस औरत की चीखें सुनी थीं। बाद में उसको देखा भी था। उनके मुताबिक वह 650 नंबर की कै़दी आफिया सद्दीकी ही थी।
इस्मत ने बात ख़त्म की तो काफ़ी देर सभी चुप बैठे रहे। फिर फारूकी बोला, “आपा तू ही बता, फिर आफिया को अब कहाँ खोजें ?“
“बात तो भाईजान मैं भी समझती हूँ, पर किसी पर एतबार ही नहीं आता। क्या पता, कौन सही है। लगता है कि हो सकता है, वॉन रिडली झूठी हो और अपना शो बेचने के लिए यह सब कर रही हो।“
“आपा यह बहुत बड़ी परेशानी है। पता नहीं, आगे क्या होने वाला है।“
वे बातें कर ही रहे थे कि फोन बजने लगा। इस्मत ने आगे बढ़कर फोन उठा लिया। उधर से बग़ैर अपना नाम बताये कोई बोलने लगा, “तुम फिर आफिया को खोजना शुरु कर दिया। क्या तुमको चैन की ज़िन्दगी जीना अच्छा नहीं लगता ?“
“नहीं जी, ऐसी तो कोई बात नहीं है। पर आप कौन हैं ?“
“तेरा बेटा अमेरिका से चलकर यहाँ आफिया को खोजने आया है। अच्छा यही है कि वह वापस चला जाए। नहीं तो इसकी ख़ैर नहीं।“
“कहाँ है मेरी बच्ची ? क्या तुम उसके बारे में कुछ बता सकते हो ?“ इस्मत तड़पकर बोली।
“वो ठीकठाक है। उसको कोई खतरा नहीं है। पर यदि तुम उसको तलाशने वाला सिलसिला बंद नहीं करोगे तो ज़रूर उसकी ज़िन्दगी को खतरे में डाल दोगे। साथ ही, अपनी ज़िन्दगियों को भी बर्बाद करवाओगे।“ इतना कहकर उधर से फोन काट दिया गया।
“कौन था ?“ फारूकी उठकर इस्मत के पास आ गया।
“वहीं धमकियों वाला सिलसिला शुरु हो गया है। कहते हैं कि अगर आफिया की भली चाहते हों तो अपने बेटे को कह दो कि वापस अमेरिका चला जाए।“
इस बात के उŸार में फारूकी ने कहा तो कुछ नहीं, पर उसको जहीर खां याद आ गया। वह कुछ देर चुप रहकर बोला, “आपा मैं एक बात कहना चाहता हूँ।“
“जी भाईजान, बताओ क्या बात है ?“
“मेरा ख़याल है कि मुहम्मद को वापस अमेरिका लौट जाना चाहिए। कहीं एक काम ठीक करते करते किसी नए लफड़े में न फंस जाएँ।“
“भाईजान, तुम्हारी बात मुझे बिल्कुल ठीक लगती है। मैंने यूँ ही भावुक होकर इसको यहाँ बुला लिया। अब मैं सोचती हूँ कि जितनी जल्दी हो सके, इसको वापस लौट जाना चाहिए।“
“अगर यह बात है तो मैं कल ही इसकी टिकट का प्रबंध करवा देता हूँ।“
फिर उनकी इस बात पर सहमति हो गई। अगले दिन फारूकी ने टिकट का पता करवाया। दो दिन बाद की उनको सीट मिल गई। अगले दो दिन वे अन्य कई बड़े व्यक्तियों से मिले और आफिया के बारे में पता किया। पर उसका कोई पता न चला। तीसरे दिन फारूकी, मुहम्मद को कराची के एअरपोर्ट पर अमेरिका की फ्लाइट पर चढ़ा आया। इसके बाद वह वापस इस्लामाबाद चला गया। अगले कई दिन वह बड़ा अपसैट रहा। फिर नित्य की भाँति ज़िन्दगी ने अपनी रफ्तार पकड़ ली।
उधर लोगों में आफिया का मामला ठंडा पड़ता जा रहा था, क्योंकि अब वहाँ चीफ़ जस्टिस चैधरी को बहाल करवाने की मुहिम तेज़ हो गई थी। यह ऐसे ही होता था। जब कभी आफिया की बात मीडिया में आने लगती तो लोगों का रोष जाग उठता और वे सड़कों पर निकल आते, पर तभी कोई अन्य मुद्दा सामने आ जाता तो लोग उधर से हट जाते। वैसे भी बहुत कम पाकिस्तानी लोगों को पता था कि आई.एस.आई. अथवा एफ.बी.आई. आफिया के पीछे इस तरह क्यों हाथ धोकर पड़ी हुई है। या फिर यदि वह उनकी हिरासत में है तो भी यह मामला क्या है। आम लोगों को इस बात का भी पता नहीं था कि वह के.एस.एम. के भान्जे अली की दूसरी बीवी है। इस बलोची परिवार का पूरा किस्सा भी लोगों को मालूम नहीं था। आफिया अमेरिका रहकर क्या करती रही या यहाँ आकर किस किस्म की कार्रवाइयों में हिस्सा लेती रही या उसका जिहाद की ओर झुकना, ऐसी किसी भी बातों का लोगों को पता नहीं था। लोग समझ रहे थे कि एक दुखियारी औरत को दुनिया की सुपर पावर अमेरिका तंग कर रहा है। इसी कारण लोगों को आफिया सद्दीकी से हमदर्दी थी।
(जारी…)
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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16

वर्ष 2008 में जनवरी महीने के एक दिन एस.एच. फारूकी पाकिस्तान में अपने घर बैठा टी.वी. देख रहा था। दोपहर के समय उसके घर की डोर बेल बजी तो उसकी बेगम ने दरवाज़े से बाहर झांका। किसी अज़नबी को बाहर खड़ा देख उसने इस बारे में पति को बताया। फारूकी टी.वी. की आवाज़ कम करते हुए बाहर आया। उसने दरवाज़ा खोला तो सामने टैक्सी ड्राइवर खड़ा था। टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि उसकी टैक्सी में एक औरत बैठी है जो आपसे मिलना चाहती है। फारूकी हैरान होता हुआ टैक्सी के पास आया और अंदर देखने लगा।
“अंकल मैं हूँ।“ इस आवाज़ ने फारूकी के रौंगटे खड़े कर दिए। बेशक औरत ने अपने आप को बुर्के में लपेट रखा था, पर यह कैसे हो सकता था कि मामा अपनी भान्जी को न पहचानता। वैसे तो उसको आवाज़ से ही अंदाज़ा लग गया था, पर उसकी आँखों की ओर देखकर उसे पक्का यकीन हो गया कि यह आफिया ही है।
“आफिया बेटी, अंदर घर चल।“ पहचानने के बाद उसने मोह भरे शब्दों में कहा।
“अंकल, इस वक्त मैं घर में नहीं जा सकती। यदि हो सकता है तो आप मेरे साथ चलो। हम बाहर कहीं एकांत में बैठकर बातें करेंगे।“ एस.एच. फारूकी ने पलभर सोचा और फिर आफिया के साथ टैक्सी में बैठ गया। वे किसी रेस्टोरेंट में जा पहुँचे।
“आफिया बेटी, तू पिछले पाँच सालों से कहाँ थी ?“ मौका मिलते ही फारूकी ने बात छेड़ी।
“अंकल, कुछ न पूछो तो बेहतर है।“
“नहीं बेटी, हम सब तेरे लिए बहुत परेशान हैं। तू कुछ तो बता।“
“अंकल...।“ आफिया बात शुरु करते हुए अपने मामा की ओर देख पलभर रुकी और फिर आगे बताने लगी, “अंकल, मैं किसी चैरिटी की मीटिंग में हिस्सा लेने कराची में ही किसी के घर गई थी कि वहाँ पुलिस ने रेड कर दी। उसके साथ अमेरिकी एफ.बी.आई. भी थी। दूसरों के साथ उन्होंने मुझे भी पकड़ लिया। बाद में मुझे आई.एस.आई. के हवाले कर दिया गया।“
“यह वाकया किस दिन घटित हुआ ?“ फारूकी ने ग़ौर से आफिया की तरफ देखा।
“जी यह 29 अपै्रल 2002 की बात है।“
“पर तू तो 3 मार्च वाले दिन अपनी माँ को यह कहकर घर से निकली थी कि तू मेरी तरफ आ रही है।“
“अंकल, वो बात भी सही है।“
“फिर यह महीना भर तू कहाँ रही ? मेरा मतलब तू न मेरे पास आई और न ही तेरा कहीं और पता चला।“
“अंकल वो...।“ आफिया बात करते करते चुप हो गई।
“हाँ बेटे, बता न कि इस बीच क्या हुआ ?“
“अंकल, आप उन दिनों की बात न छेड़ो। मुझे अपनी बात अपने ढंग से कहने दो, प्लीज़। मैं बहुत परेशान हूँ।“
फारूकी कुछ न बोला, पर वह समझ गया कि यह जो तीस मार्च से लेकर 29 अप्रैल तक का वक्फ़ा है, इस बीच ज़रूर कुछ अन्य घटित हुआ है जिसके बारे में आफिया शायद बात नहीं करना चाहती। उसने इशारे से उसको अपनी बात चालू रखने को कहा तो आफिया फिर बोलने लगी, “अब मुझे लगता है कि वे पहले से ही मेरी तलाश कर रहे थे। आई.एस.आई वाले मुझे अपने किसी गुप्त ठिकाने पर ले गए। वहाँ मुझे मेरे बच्चों से अलग कर दिया गया। अगले दिन वे मुझे अफगानिस्तान के बैगराम एअरबेस में ले गए जहाँ अमेरिका का बड़ा अड्डा है।“
“फिर...?“ आफिया बोलते बोलते चुप हुई तो फारूकी बीच में बोला।
“वहाँ मुझे चार साल रखा गया। उन्होंने मुझे बेतहाशा यातनाएँ दीं।“
“कौन थे वे लोग ? मेरा मतलब आई.एस.आई. या अमेरिकी एजेंसियाँ ?“
“दोनों ही।“
“क्या उन्होंने तुझे मारा पीटा भी ?“
“अंकल, मारपीट तो शायद मैं बर्दाश्त कर जाती, पर उनका टार्चर ज्यादा मानसिक था। मुझे कईबार बहुत ही छोटे आकार के डिब्बे में लगातार दो दो दिन खड़े रखा जाता था। वह इतना भीड़ा होता था कि मैं दो दिन बैठ नहीं सकती थी और टांगे अकड़ जाती थीं। कईबार लोहे का ऐसा एक और कमरा होता जो गर्मियों के दिनों में आग की भाँति तपा होता था, मुझे वहाँ बंद कर दिया जाता। जो गर्मी मेरा बुरा हाल करती थी, वह तो करती ही थी, पर इसके अलावा वहाँ बेइंतहा तेज़ रोशनियाँ होती थीं जो आँखों को फोड़ने वाली थीं। इसके अलावा, वहाँ सारा दिन बहुत ही ऊँचा, भद्दा और कान फोड़ू म्युजिक बजता रहता था। कई कई दिन मैं सो ही नहीं सकती थी। मुझे वो वहाँ से निकालते तो करीब के एक तालाब में ले जाते, जहाँ दो दो मिनट पानी में डुबाये रखते। या फिर लकड़ी के फट्टे के साथ बाँधकर मुँह-सिर लपेट देते और ऊपर से पानी डालना शुरु कर देते। साँस बंद हो जाता और साथ ही मुँह पर लगातार पानी पड़ते रहने के कारण डूबने का अहसास होने लगता जो कि जान निकाल देता था। यह कोई एक दिन का काम नहीं था। यह हर रोज़ होता था। और यह लगातार चार साल चलता रहा...।“ आफिया बात बीच में छोड़ते हुए थोड़ा रुकी और आसपास देखते हुए फिर बोली, “अंकल, मेरे ऊपर और बड़े भयानक अत्याचार हुए जो कि बयान से बाहर हैं।“
“आफिया बेटी तेरे पर इतना जु़ल्म हुआ...।“ फारूकी का दिल भर आया।
“अंकल, यह अफसोस वाली बात नहीं है। क्योंकि जिहाद की राह पर चलते हुए ऐसा तो होता ही है। पर मुझे गर्व है कि मैंने यह सब कुछ बर्दाश्त किया, पर अपने इरादे से नहीं डोली।“
“पर वे तुझसे चाहते क्या थे ?“
“वे मुझे डबल एजेंट बनाकर अपने ही जिहादी बहन भाइयों के खिलाफ़ इस्तेमाल करना चाहते थे।“
“फिर आगे क्या हुआ ?“
“अंकल, जो भी जुल्मो-सितम मेरे पर हुआ, वह मैंने अल्लाह का हुक्म समझकर झेला। पर आखि़र उन्होंने ऐसा ढंग तलाशा कि मैं एक दिन बीच में ही टूट गई।“
“वह क्या ?“
“जो जु़ल्म वो मेरे पर करते थे, वही उन्होंने मेरे बच्चों पर शुरु करने की धमकी दी। बस, यही बात मुझे बर्दाश्त न हुई और मैं उनकी बात मानने के लिए मज़बूर हो गई। क्योंकि मैं जानती थी कि मेरे बच्चे उनके कब्ज़े में आ चुके हैं। फिर, मैंने डबल एजेंट बनने के लिए हामी भर दी। वैसे तो मैं उनके अनुसार डबल एजेंट बन गई, पर मुझे लगा कि इस तरीके से भी मैं जिहाद का काम ही कर रही होऊँगी।“
“वह कैसे ?“
“क्योंकि मैंने कुछ और सोचा था। मुझे उन्होंने आई.एस.आई की एजेंट बना लिया और कहा कि इस बात को गुप्त रखते हुए मैं उनके लोगों को अलकायदा में दाखि़ल करवाऊँ। उन्होंने मुझे नई पहचान देकर इस्लामाबाद भेज दिया। मैं उनका काम भी करती रही और साथ ही अपनी सोची हुई स्कीम के अनुसार अलकायदा को आई.एस.आई. के भेद भी देती रही। यह काम बड़ा ज़ोखि़म भरा था क्योंकि चौबीस घंटे आई.एस.आई. के लोग मेरे इर्दगिर्द रहते थे। इसी दौरान कुछ देर बाद मुझे पाकिस्तान की फैडरल इनवैस्टीगेशन एजेंसी ने गिरफ्तार कर लिया।“
“ओह ! फिर क्या हुआ ?“
“फिर उन्होंने भी मुझे वही काम करने के लिए कहा जो आई.एस.आई. करवा रही थी, अर्थात डबल एजेंट। मुझे नई पहचान देकर यह एजेंसी मेरे से अपने लिए काम करवाने लगी। अब भी मैं वहीं हूँ। पर मुझे पता है कि यह काम ज्यादा देर नहीं चल सकेगा। इसलिए मैं ताक में थी कि कब मौका मिले और यहाँ से भागूँ। आज उनके पहरेदारों की आँखों में धूल झोंककर मैं भाग आई हूँ।“
“अब फिर आगे तू क्या करना चाहती है ?“
“अंकल, अगर मैं यहाँ रही तो मुझे फिर से किसी न किसी एजेंसी ने गिरफ्तार कर लेना है और फिर से वही जासूसी का काम करवाना है। आपको पता ही है कि इस काम में कितना ज़ोखिम है। मैं यह भी जानती हूँ कि जब भी पाकिस्तानी एजेंसियों का काम निकल गया तो वे मुझे अमेरिकियों के हवाले कर देंगे। और वे मेरे पर कोई न कोई चार्ज लगाकर हमेशा के लिए जेल में बंद कर देंगे। इसलिए मैं चाहती हूँ कि इस सबसे दूर किसी ऐसी जगह चली जाऊँ जहाँ कि मुझे इनका डर न हो। जहाँ मुझे यह न रहे कि कोई अपना ही मेरे साथ दगा कमाकर मुझे पकड़वा देगा।“
“ऐसी जगह फिर कौन सी हो सकती है ?“
“अंकल, इस समय अगर मुझे कोई उचित जगह दिखाई देती है तो वह है अफगानिस्तान के तालिबान। पर मेरा अकेली का वहाँ पहुँचना आसान नहीं है।“
“आफिया बेटी, मैं तो कहता हूँ कि अपने घर में आ जा। हम सब कुछ ठीक कर लेंगे।“
“नहीं अंकल, यह मेरा निशाना नहीं है। मैंने अपनी ज़िन्दगी जिहाद के लेखे लगानी है। मेरी तीव्र इच्छा है कि मैं फ्रंट पर जाकर लड़ाई में हिस्सा लूँ और काफिरों का खात्मा करुँ।“
“ठीक है बेटी जैसे तेरी मर्ज़ी...।“ फारूकी ने बात बीच में छोड़कर आँखों के कोये पोंछे और फिर कहा, “अच्छा बता फिर मैं तेरी उस काम में क्या मदद कर सकता हूँ ?“
“आप मेरी अफगानिस्तान के तालिबानों तक पहुँचने में मदद करो। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि अकेली औरत का वहाँ जाना आसान नहीं है। वह भी मेरा जिसको जगह जगह पर एजेंसियाँ खोजती घूमती हैं।“
उसकी बात सुनकर फारूकी सोच में पड़ गया। फिर उसको ख़याल आया कि इसकी मदद करनी ही पड़ेगी। वह आफिया की ओर देखता हुआ बोला, “ठीक है बेटी, मेरी तालिबान गवर्नमेंट के समय की कई अफ़सरों से जान-पहचान है। मैं तुझे उन तक पहुँचा दूँगा। पर यह प्रबंध करने में कुछ दिन लग जाएँगे। चल तब तब तू मेरे घर में ठहर जा।“
“नहीं अंकल, मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती। खूफिया एजेंसियाँ मुझे जगह जगह खोजती फिरती होंगी। मेरे साथ तुम भी मुसीबत में फंस जाओगे।“
फारूकी अकेला ही उठकर चल दिया। उस रात आफिया किसी होटल में रुकी। अगले दिन फारूकी ने जैसे तैसे उसको घर आने के लिए मना लिया। आफिया डरती थी कि कहीं कोई एजेंसी उसका पीछा न कर रही हो। पर फिर भी वह उसके संग घर आ गई क्योंकि उसको फारूकी ने बताया था कि उसकी माँ और बहन आ रही हैं जिन्हें उसने रात में ही फोन करके उसके बारे में ख़बर दे दी थी। जब दोनों घर पहुँचे, तब तक इस्मत और फौज़िया आ चुकी थीं। अंदर जाते ही आफिया ने सूख कर तीला बन चुकी माँ की ओर देखा। आफिया के आँसू छलक आए। इस्मत धाह मारकर उठी और आफिया से लिपट गई।
“हाय री बेटी, तू किन भटकती राहों पर चल पड़ी ?“ रोते हुए इस्मत ने आफिया को बाहों में लपेट लिया।
आफिया ने कुछ कहना चाहा, पर मुँह से बोल न फूटे और वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। दो चार मिनट माँ-बेटी वैराग्य के आँसू बहाती रहीं। माँ की छाती से सिर हटाते हुए आफिया ने बड़ी बहन फौज़िया की ओर देखा तो वह माँ से हटकर उससे लिपट गई। एकबार फिर से आँसुओं की धारा बहने लगी। दोनों बहनें जी भरकर रोयीं। फारूकी और उसकी घरवाली ने आँखें पोंछते हुए तीनों को चुप करवाया। बड़ी भावुक मिलनी थी। अलग अलग होकर भी काफी देर तक सभी अपने आँसू पोंछते रहे। आहिस्ता आहिस्ता फारूकी छोटी छोटी बातें करने लगा। उसके साथ ही दूसरे भी चुप हो गए और उसकी बातचीत में हिस्सा लेने लगे।
“अम्मी, मेरे बच्चों का क्या हाल है ?“ आफिया ने उदास स्वर में पूछा।
“तेरा बेटा और बेटी दोनों ठीक हैं। तू बता बड़ा अहमद कैसा है ?“
“ठीक है, वह भी अम्मी।“ इतना कहते हुए आफिया चुप हो गई और दीवार की ओर देखने लगी।
“सब ठीक हैं, एक मेरी बेटी के सिवा।“ इतना कहते हुए इस्मत ने एक आह भरी। उसकी बात ने आफिया की चेतना भंग की और उसने खाली खाली नज़रों से माँ की ओर देखा।
“अहमद कहाँ है अब ?“ माँ ने पूछा।
“अम्मी वहाँ कहीं भी है, ठीक है।“
“उस बच्चे पर भी मुसीबत पड़ गई।“
“नहीं अम्मी, मुसीबत नहीं बल्कि उस पर तो अल्लाह की मेहर हुई है जो वह जिहाद में शामिल हुआ है।“
“बच्चे के खेलने-कूदने के दिन थे, पता नहीं...।“ बात अधूरी छोड़ती हुई इस्मत चुप हो गई।
“जिहादी माँ का बेटा है। उसको कुछ नहीं हुआ। वह मौज में है।“ इतनी बात कहते हुए आफिया के चेहरे पर आत्म-विश्वास लौट आया। कुछ देर पहले उदासी में डूबी आफिया फिर से हौंसले में आ गई। भावुक बातों को छोड़कर वह जिहाद की बातें करने लगी। सभी उसके मुँह की ओर देखते उसकी बातें सुनते रहे। इस प्रकार बातचीत करते शाम हो गई। कमरे में तीनों, माँ-बेटियाँ रह गई तो फौज़िया ने बात शुरु की, “आफिया, अब तेरा आगे क्या करने का इरादा है ?“
“क्या मतलब ?“ आफिया ने चौंककर फौज़िया की तरफ देखा।
“मतलब यही कि अब आगे का क्या सोचा है ?“
“आगे-पीछे कुछ नहीं आपा। मेरा सबकुछ जिहाद हो समर्पित है।“
“आफिया, वापस लौट आ। पीछे जो हो गया, सो हो गया। हम मिलजुल कर सब कुछ ठीक कर लेंगे।“
पर आफिया उसकी बात नहीं सुन रही थी। वह तो दीवार की ओर देखती फिर कहीं गुम हो गई थी।
“आफिया, तेरा कमरा तेरा इंतज़ार कर रहा है। तेरे पालतू जानवर, कुत्ते-बिल्ली हर जगह तुझे खोजते फिरते हैं। तेरे लगाए हुए बूटे तेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। उनमें लगे फूल तेरी राह देख रहे हैं।“
“हैं ! क्या कहा ?“ सोच के समंदर से बाहर निकलती आफिया ने फौज़िया की ओर देखा।
“आफिया, मेरी बेटी, तू हमारे साथ अपने घर चल।“ इस्मत उठी और उसने मोह में आफिया को अपनी बांहों में कस लिया। आफिया ने भी माँ के इर्दगिर्द बांहें लपेटते हुए आँखें मूंद लीं। उसको चूप देखकर इस्मत फिर खुद बोल उठी, “यह सारा कसूर उस नईम खां के बेटे का है।“ उसका इशारा आफिया के तलाक ले चुके पति अमजद की ओर था।
“उसका क्यों अम्मी ?“ माँ की छाती से लगी आफिया बोली।
“उसने तुझे तेरे हक की मुहब्बत नहीं दी। अल्ला करे उसके कीड़े...।“
“अम्मी... इससे आगे कुछ न बोलना।“ माँ की बात बीच में काटते हुए आफिया उससे अलग हो गई।
“तू अभी भी उसकी तरफदारी करती है। उसने तो तुझे तलाक देते समय कुछ सोचा नहीं।“
“अम्मी वो दूसरी बात है। वह हमारा आपसी मामला था। पर मैं अमजद के बारे में कुछ नहीं सुन सकती।“
“मैं तेरे साथ सहमत नहीं आफिया। अगर वह चाहता तो तू अपने घर में सुख-शांति से रह सकती थी और...।“
“और क्या ?“
“तू इन गलत राहों पर जाने से बच जाती।“
“अम्मी...।“ आफिया भड़कते हुए उठ खड़ी हुई। वह गुस्से में कांपती हुई फिर बोली, “ये गलत राह नहीं है। यह तो बल्कि अल्लाह की खिदमत करने का एकमात्र राह है। तुम लोग क्या जानो कि जिहाद कितना पवित्र काम है।“
“पहले तेरे दुख में तेरा अब्बू चल बसा और अब...।“ इस्मत रोने लगी।
“मरना तो सबने ही है। पर कुर्बानी कोई कोई ही करना जानता है।“ आफिया वैसे ही गुस्से से कांपे जा रही थी।
“तुझे पता है कि तेरे अब्बू ने मरते वक्त क्या कहा था ?“
“हाँ-हाँ, मुझे याद है।“ आफिया को वह बात याद आई जब आखि़री दिनों में उसके अब्बू ने उसके बारे में कहा था कि इससे तो अच्छा था, आफिया पैदा होते ही मर जाती। उस वक्त आफिया चुप रही थी क्योंकि वह जानती थी कि यह उसके पिता का अन्तिम समय है। पर आज वह चुप न रही। माँ की ओर घूरते हुए वह फिर बोली, “तुम लोग इस धरती पर बोझ हो। खा लिया, पी लिया और ज़िन्दगी गुज़ार ली। तुम्हें जिहाद जैसे पवित्र कामों की समझ नहीं आ सकती।“
फौज़िया ने इशारे से माँ को चुप करवाया और फिर वह आफिया को शांत करने लगी। धीरे धीरे माहौल शांत हो गया। देर रात तक इस्मत और फौज़िया उसको अनेक प्रकार से समझाती रहीं। पर आफिया ने दुबारा उनके साथ ढंग से बात नहीं की। खा-पीकर सब पड़ गए, पर आफिया पलभर भी न सोई। वह रातभर नमाज़ें अदा करती रही और अपने आप से बातें करती रही। अगले दिन सुबह-सवेरे ही सद्दीकी ने उसको बुलाया, “आफिया बेटी, तू तो सारी रात सोई ही नहीं। क्यों, तबीयत तो ठीक है न ?“
“अंकल, भावुक माहौल ने मेरे अंदर कमज़ोरी पैदा कर दी थी। मैं उसके लिए अल्लाह से भूल बख़्शवाती रही। अब मैं पूरी तरह से उस माहौल से बाहर आ चुकी हूँ।“
उसकी बात का कोई जवाब दिए बग़ैर सद्दीकी रसोई में चला गया और उसके लिए चाय का कप ले आया। पर आफिया ने कुछ भी खाने-पीने से इन्कार कर दिया। जब इस्मत और फौज़िया वहाँ आईं तो आफिया अपना सामान बाँध रही थी। उन्होंने हैरान होकर उसकी तरफ देखा और इस्मत बोली, “आफिया, तू इतनी सुबह कहाँ के लिए तैयार हो रही है ?“
“मैं अपनी असली मंज़िल की ओर जा रही हूँ।“ वह उनकी ओर देखे बग़ैर बोली। सभी चुपचाप उसकी तरफ देखते रहे और वह तैयार होती रही। आखि़र, सद्दीकी ने प्यार से उसको बुलाया, “आफिया बेटी, इतनी जल्दी क्यों कर रही है ? मैंने तेरे साथ वायदा किया है कि मैं तुझे तेरी मंज़िल पर पहुँचाकर आऊँगा।“
“नहीं अंकल, अब मेरे लिए यहाँ और ठहरना मुमकिन नहीं है। मैं नहीं चाहती कि यह माहौल मेरे इरादे को कमज़ोर बनाए।“
“पर मैं कह रहा हूँ कि मैं तुझे....।“
“अंकल, मेरी मंज़िल मुझे पता है और वहाँ पहुँचने की राह भी मैं खुद ही खोजूँगी।“ इतना कहते हुए आफिया ने अपना भारी काला बैग उठाकर कंधे से लटका लिया। सद्दीकी ने उसका बैग उठाने में मदद करनी चाही तो आफिया ने बैग को हाथ न लगाने दिया। जब वह चलने लगी तो सद्दीकी ने टैक्सी की प्रतीक्षा करने को कहा। आफिया ने बैग नीचे रखते हुए उसकी बात मान ली तो सद्दीकी ने टैक्सी को फोन कर दिया। टैक्सी आने तक इस्मत और फौज़िया उसके साथ बात करने की कोशिश करती रहीं, पर उसने ढंग से बात नहीं की। इस्मत रोने लगी। उसने आफिया को कुछ पैसे देने चाहे तो उसने पैसों की तरफ देखा भी नहीं। तभी टैक्सी आ गई। आफिया ने नीचे रखा बैग उठाया और बाहर निकल पड़ी। सारा परिवार रोता रह गया और आफिया बिना उनकी ओर ध्यान दिए टैक्सी मे बैठकर चली गई।
अगले छह महीने तक आफिया के घर वालों को उसके बारे में कुछ पता न चला। फिर, उस दिन उनके होश उड़ गए जब ख़बर आई कि आफिया अफगानिस्तान के गज़नी शहर में पकड़ी गई है।
(जारी…)
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Re: आफिया सद्दीकी का जिहाद/हरमहिंदर चहल

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यद्यपि अमेरिका ने आफिया की गिरफ्तारी के विषय में कुछ नहीं बताया था, पर फिर भी यह बात पाकिस्तान में पहुँच गई। इतना ही नहीं, यह भी कि अमेरिकियों ने उसको गोली मारी है जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई है। लोगों का सोचना था कि उसको जान से मारने के लिए ही गोली मारी गई होगी, पर वह संयोग से बच गई। परंतु इस बात के बारे में अमेरिकी फौज के अफ़सरों का कुछ और ही कहना था। उनके अनुसार जब उन्हें पता चला कि कोई आतंकवादी स्त्री पकड़ी गई है तो वे उसके साथ इंटरव्यू करने के लिए उस कमरे में पहुँचे जहाँ उसको रखा गया था। अंदर सामने कुछ अफगानी पुलिस वाले बैठे थे। सभी के पीछे आफिया पर्दे की ओट में बैठी थी। वे बैठकर अफगान पुलिस वालों से बातचीत करने ही लगे थे कि आफिया ने पर्दे के पीछे से आकर एकाएक अमेरिकी अफसर की एम 4 गन उठा ली और वह उन पर गोलियाँ चलाने लगी। अपने बचाव के लिए अमेरिकी अफसर ने गोली चलाई जो आफिया के पेट में लगी। फिर वह उसको घायल अवस्था में स्ट्रैचर पर डालकर अपने बेस में ले गए। इस घटना के बारे में आफिया ने आगे चलकर कोर्ट में कुछ और बताया। खै़र, आफिया के गोली लगने की बात सुनकर पाकिस्तान के लोग भड़क उठे। ह्यूमन राइट्स वाले और अन्य कई ग्रुप आगे आ गए थे। पाकिस्तान में माहौल बहुत गरमा गया। आफिया सद्दीकी का नाम बच्चे बच्चे की जुबान पर चढ़ गया। जलसे-जुलूसों की हर तरफ बाढ़ आ गई। मुज़ाहरे होते तो लोगों के हाथों में बैनर होते। किसी पर लिखा होता - ’डाक्टर सद्दीकी को रिहा करो। किसी पर लिखा होता - ‘इस्लाम की बेटी आफिया सद्दीकी। कुछ ही दिनों में आफिया का नाम कौम के लिए गर्व बन गया। इधर जलसे-जुलूस ज़ोरों पर थे और उधर अमेरिका वाले आफिया को न्यूयॉर्क ले जा चुके थे। अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट द्वारा प्रैस कॉन्फ्रेंस बुलाकर यह बता दिया गया कि एफ.बी.आई द्वारा घोषित सबसे अधिक खतरनाम आतंकवादी औरत आफिया सद्दीकी पकड़ी जा चुकी है।
आफिया को न्यूयॉर्क के उस मैट्रोपोलिटन डिटैशन सेंटर में बंद किया गया जहाँ कभी 1993 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर की पार्किंग में धमाका करने वाले रम्जी यूसफ या उजे़र पराचा को रखा गया था। उसके अन्य बहुत सारे साथी जो इस वक्त जेलों में अपनी सज़ा भुगत रहे थे, इसी सेंटर में से निकलकर गए थे। पाँच अगस्त 2008 को सुबह दस बजे आफिया को पहली बार कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट कंपलैक्स खचाखच भरा हुआ था। प्रैस सहित बहुत से लोग यह देखने के लिए उतावले थे कि आतंकवाद की दुनिया की सबसे खतरनाक औरत देखने में कैसी लगती है। कुछ देर बाद पुलिस वालों ने करीब पैंतीस वर्षीय छोटी-सी और भोलीभाली औरत को लोकर कोर्ट में खड़ा किया तो सब हैरान रह गए। उसने हल्के रंग के कपड़े पहने हुए थे। सिर पर कत्थई रंग का स्कॉर्फ लपेट रखा था। देखने में वह बहुत ही कमज़ोर लगती थी। शायद वह अभी तक गोली लगे ज़ख़्म के कारण पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी। जज ने उससे पूछा कि तू अपना केस स्वीकार करती है तो उसने ‘ना’ में सिर हिला दिया। प्रैस के लोगों से खचाखच भरी कोर्ट में चुप्पी पसर हुई थी। सबको लग रहा था कि यह केस आतंकवाद के खिलाफ़ चल रही गुप्त लड़ाई का सबसे कठिन केस होगा। आम लोग तो इस बात को भी मानने के लिए तैयार नहीं थे कि आफिया को सचमुच गज़नी शहर में पकड़ा गया होगा। वे सोच रहे थे कि पिछले पाँच वर्षों से गुप्त जे़लों में रखी आफिया को सिर्फ़ नाटक रचने के लिए गज़नी के बाज़ार में लाकर छोड़ दिया गया होगा और साथ ही साथ पकड़ लिया गया होगा। कइयों को तो यह भी लगा कि यह लड़की आतंकवादी हो ही नहीं सकती। ख़ैर, यू.एस.ए. की सिविल राइट्स यूनियन को लगा कि ऐसा केस आ चुका है जिसकी वे बहुत अरसे से प्रतीक्षा कर रहे थे। क्योंकि वे कई सालों से सरकार पर दोष लगाते आ रहे थे कि वह आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई का बहाना बनाकर बहुत सारे लोगों को लम्बे समय से गुप्त जे़लों में बंद किए बैठी है और उन पर अमानवीय अत्याचार किया जा रहा है। अब उनका सोचना था कि इस केस के माध्यम से वे इस सच्चाई को सामने ले आएँगे। आफिया को सिविल राइट्स यूनियन की ओर से फिंक नाम की एक उच्चकोटि की वकील दी गई। उस दिन थोड़ी-बहुत कार्रवाई करते हुए जज ने कोर्ट बरखास्त कर दी। मार्शल आफिया को वापस जे़ल में ले गए। अगले दिन आफिया के परिवार की वकील शार्प भी वहाँ पहुँच गई। फिंक और शार्प ने लगभग तीन घंटे जे़ल में आफिया से लम्बी इंटरव्यू की। बाहर आकर शार्प ने ऐलान किया कि आफिया के अनुसार उसको पिछले कई वर्षों से अफगानिस्तान की बैगराम एअरफोर्स बेस के किसी गुप्त सेल में कै़द करके रखा गया था। इसके उलट अमेरिकी सरकार यह मानने से इन्कार कर रही थी कि वह पहले से एफ.बी.आई. अथवा सी.आई.ए. की हिरासत में थी। पर वह यह कह रही थी कि यह बहुत ही खतरनाक आतंकवादी है। सरकार के अनुसार सबसे बड़ा सुबूत उसके पास से बरामद हुए वे काग़ज़-पत्र थे जो उसकी गिरफ्तारी के समय थानेदार गनी खां ने पकड़े थे। आफिया की वकील का कहना था कि ये सारे पेपर झूठे और सरकार की ओर से प्लांट किए गए हैं। पर इनमें से बहुत सारे पेपर आफिया की अपनी हस्तलिपि में थे जो उसको शक के घेरे में ला रहे थे। बाद में पाकिस्तान में यही बात उसके मामा फारूकी ने सुनी तो उसको कोई शक न रहा। उसको याद आया कि छह महीने पहले जब आफिया उसके घर आई थी तो यही काला बैग उसके पास था जिसको वह हाथ नहीं लगाने दे रही थी और बहुत संभाल संभालकर रख रही थी। अमजद और उसके घरवालों ने उसकी गिरफ्तारी होने की बात सुनी तो उन्हें सबसे पहले यह जानने की उतावली हुई कि उसके पास बच्चे थे कि नहीं। ख़ैर, बच्चे उसके पास नहीं थे। पर जब अमजद ने वो वीडियो देखी जो आफिया की गिरफ्तारी से अगले दिन पुलिस की ओर से बनाई गई थी तो उसने आफिया के साथ पकड़े गए लड़के को पहचान लिया। यह उसका अपना पुत्र अहमद था। परंतु आफिया अपने पुत्र की शनाख़्त छिपाकर रखना चाहती थी। उसने अपनी इंटैरोगेशन करने वालों को यही कहा कि यह लड़का कोई यतीम था, इसलिए उसने उसको अपने पास रखा हुआ था क्योंकि उसका अपना कोई नहीं था। दूसरा, साथ रखने का एक कारण उसने यह भी बताया कि औरत होने के कारण वह अकेली सफ़र नहीं कर सकती, इसलिए उस लड़के को साथ रखती थी। पर जब एफ.बी.आई ने उस लड़के का डी.एन.ए. टैस्ट करवाया तो यह बात स्पष्ट हो गई कि वह आफिया का अपना पुत्र था। इस बात का खुलासा होने के बाद आफिया बहुत उदास हो गई और उसने बोलना बंद कर दिया। उसको अपने बेटे की ज़िन्दगी को लेकर चिंता हुई। वह सोचने लगी कि एफ.बी.आई. उसके बेटे को मार सकती है या लम्बे समय तक अपनी हिरासत में रख सकती है, सिर्फ़ उसको उसके खिलाफ़ इस्तेमाल करने के लिए। क्योंकि अमेरिकी कानून के अनुसार बारह साल का बच्चा अपने माँ-बाप के हक में अथवा उलट गवाही देने के योग्य समझा जाता है। आफिया बिल्कुल ही चुप हो गई। उसने अपने वकीलों के साथ भी बोलना छोड़ दिया। ई मेल वगैरह भेजनी बंद कर दीं। पुत्र के दुख में वह सारा दिन अकेली बैठी रोती रहती थी। सही ढंग से खाना तक छोड़ दिया था। उधर पाकिस्तान में जनता बड़ी सहानुभूति के साथ आफिया की कहानी सुनती जा रही थी। सभी को इसके साथ हद से ज्यादा हमदर्दी थी। पाकिस्तान के टी.वी. चैनल जिओ टी.वी. ने ख़ास प्रोग्राम शुरु किया हुआ था जिसका नाम था - ‘ए ह्यूमन राइट्स ट्रैजेडी - आफिया सद्दीकी। पाकिस्तान की सरकार में उस समय हालात ठीक नहीं थे। मुशर्रफ़ ने इस्तीफ़ा दे दिया था और नए चुनाव होने जा रहे थे। लोगों की नब्ज़ पहचानते हुए वहाँ की नेशनल एसेम्बली ने आफिया सद्दीकी के हक में प्रस्ताव पास करते हुए आफिया की मदद के लिए एक डेलीगेशन अमेरिका भेजने का फै़सला कर लिया। उधर अमेरिका ने इस समय ड्रोन हमले बढ़ा दिए थे और इनमें चोटी के अलकायदा मेंबर मारे जा रहे थे। समझने वाले समझते थे कि यह सब इस कारण हो रहा है क्योंकि आफिया के पास से पकड़ी गई थंब ड्राइव में से बहुत सारे अलकायदा मेंबरों के ठिकानों का पता लगा होगा। और कुछ तो पाकिस्तानी सरकार न कर सकी, पर आफिया का बेटा उसकी बहन के हवाले करवाने का काम अवश्य करवा दिया।
उधर आफिया का बर्ताव अभी भी ख़ामोश और जिद्दी था। उसने अपनी तारीख़ पर कोर्ट में जाने से इन्कार कर दिया। उसने किसी को भी मुलाकात करने से मना कर दिया। जब उसने वकीलों से मिलने से इन्कार कर दिया तो फिंक जैसी प्रसिद्ध वकील ने भी स्वयं को बेबस-सा महसूस किया। इस प्रकार आफिया अपनी कई कोर्ट सुनवाइयों पर भी नहीं गई। यह देखते हुए उसकी वकील ने कोर्ट से विनती की कि आफिया दिमागी तौर पर सही प्रतीत नहीं होती, इसलिए उसका मुआयना करवा कर इलाज़ करवाया जाए। जज ने इस विनती को मानते हुए आफिया को फैडरल मेडिकल सेंटर कार्सवैल, टैक्सास भेजने का आदेश कर दिया। यहाँ पहुँचकर आफिया ने मानसिक तौर पर काफ़ी राहत अनुभव की। दिसंबर महीने में जब पाकिस्तान की सरकार का ख़ास डेलीगेशन उससे मिलने आया तो आफिया उस समय मेडिकल सेंटर में थी। उसने बड़े अच्छे ढंग से डेलीगेशन के साथ मुलाकात की। डेलीगेशन ने पाकिस्तान सरकार की ओर से उसको कानूनी मदद का भरोसा दिलाया। इसके शीघ्र बाद पाकिस्तान सरकार ने आफिया के कानूनी खर्चों के लिए लगभग दो मिलियन डॉलर की मदद का प्रबंध कर दिया। तभी अमेरिकी सरकार ने फै़सला किया कि वह आफिया पर आतंकवाद का मुकदमा नहीं चलाएगी, बल्कि उस पर उस जु़र्म के खिलाफ़ मुकदमा चलाया जाएगा जो उसने अमेरिकी फौजियों पर गोली चलाने का किया। इसी समय आफिया के डॉक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में लिख दिया कि वह मानसिक तौर पर बीमार है। उसकी वकील फिंक ने इसका लाभ उठाते हुए सरकार पर इल्ज़ाम लगाया कि एफ.बी.आई. की यातनाओं के कारण ही आफिया की यह हालत हुई है। पर आफिया ने उसके साथ बोलना बंद कर दिया। सिर्फ़ उसके साथ ही नहीं अपितु आफिया हर उस शख़्स से दूर रहने लगी जिसके बारे में उसका लगता था कि यह यहूदी है या यहूदियों के संपर्क में है। उसकी ऐसी हरकतें उसके वकीलों और उसके अपनों को भी परेशान कर रही थीं। वैसे इस समय आफिया बड़ी अच्छी रौ में थी। एक तो पाकिस्तानी सरकार उसकी मदद कर रही थी, पर इससे भी बड़ी बात वह थी जो डॉक्टर ने लिख दी थी कि आफिया सद्दीकी मानसिक बीमारी के कारण मुकदमें का सामना नहीं कर सकती। उसको लगता था कि शायद मानसिक बीमारी की वजह से उसको यूँ ही रिहा कर दिया जाएगा। परंतु आफिया की यह खुशी उस वक्त उड़ गई जब उसको पता चला कि डॉक्टरों की एक अन्य टीम उसका मुआयना करने आ रही है। इसी बीच उसने अमेरिकी सरकार के नाम एक लम्बा पत्र लिखा। इस पत्र में उसने अपने ढंग से यह नुक्ता रखने की कोशिश की कि उसके पास बहुत सारे गुप्त भेद हैं जो कि अमेरिकी सरकार के काम आ सकते हैं। वह सोच रही थी कि शायद ये भेद जानने के बदले ही सरकार उसको रिहा करने के लिए मान जाए। जेल वार्डन को यह पत्र देते हुए उसने आगाह किया कि इस पत्र को प्रेज़ीडेंट ओबामा तक पहुँचा दिया जाए। पर आफिया को फिर निराशा हाथ लगी। उसके इस पत्र की ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। बल्कि उसको बड़ा धक्का तब लगा जब डॉक्टरों की नई टीम ने अपनी रिपोर्ट में लिख दिया कि वह बिल्कुल ठीक है और अपने केस का सामना सही ढंग से कर सकती है। मेडिकल की इस नई रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार उसको वापस न्यूयॉर्क में ले आई और केस फिर से प्रारंभ कर दिया। जज ने उसका वकील बदलते हुए केस की तारीख तय कर दी। उसकी नई वकील डॉन कार्डी थी और केस की तारीख़ थी- 7 जून 2009 ।
उस दिन जज बर्मन ने कार्रवाई शुरु करते हुए आफिया को पेश करने का आदेश दिया। मार्शलों ने आफिया को लाकर कोर्ट में खड़ा कर दिया। आवश्यक कार्रवाई निपटाते हुए जज ने उसको वकील के पास बैठने की अनुमति दे दी। वकील अपना काम करने लगी, पर लगता था कि आफिया को अपनी वकील से कोई सरोकार नहीं था। वह चलती कार्रवाई में उठ खड़ी हुई और ऊँचे स्वर में बोली -
“मैं कुछ कहना चाहती हूँ...।“
“मिस आफिया, तुम्हें बोलने का वक्त मिलेगा, पर अभी तुम बैठ जाओ।“ जज ने हुक्म सुनाया। पर आफिया उसकी बात मानने की बजाय फिर से बोली, “मैंने जो कुछ किया है, वो दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए किया...।“
उसके बोलने के साथ कोर्ट के काम में रुकावट पड़ गई। जज ने गुस्से होकर आफिया की ओर देखा, पर आफिया ने अपनी बात जारी रखी -
“मैं तो तालिबानों और अमेरिका के बीच समझौता करवाना चाहती हूँ। आप मेरी बात क्यों नहीं सुनते ?“
“मिस आफिया, तुम प्लीज़ बैठ जाओ।“ जज ने सख़्त लहजे में यह शब्द कहे तो आफिया बैठ गई। उसने मेज़ पर सिर रख लिया और आँखें मूंद लीं। उसकी यह हालत देखकर उसकी वकील जज से अनुमति लेती हुई बोली, “आप मिस आफिया की हालत देखकर खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि इसके ऊपर कितना टार्चर हुआ है। इसकी हालत सही नहीं है। एफ.बी.आई. के टार्चर ने इसको इस हालत में पहुँचा दिया है।“
“युअर ऑनर, मैं कुछ कहना चाहती हूँ।” सरकारी वकील उठ खड़ी हुई। जज ने उसको बोलने की इजाज़त दी तो वह अपनी बात रखने लगी -
“मिस आफिया अभी तक यह नहीं बता सकी कि उस पर यह टार्चर कब और कहाँ हुआ है। इसने अब तक जो भी बयान दिए हैं, वे आपस में मेल नहीं खाते। यह बार बार अपने बयान बदल रही है। इस वजह से हम यह समझने में असमर्थ हैं कि इसका कौन सा बयान सही माना जाए। मैं यह भी कहना चाहूँगी कि मिस आफिया दिमागी बीमारी का सिर्फ़ बहाना बना रही है। वैसे यह बिल्कुल ठीक है। यह अपने केस का सामना कर सकती है।”
“वही तो मैं कह रही हूँ कि मिस आफिया किसी भी बात का उत्तर ठीक नहीं दे रही। वह भूल जाती है कि पहले उसने क्या कहा था और अब क्या कह रही है। वह पुरानी कई बातें भी भूल चुकी है। और यह सबकुछ एफ.बी.आई. के अत्याचारों की वजह से हुआ है। मिस आफिया मासूम है, निर्दोष है।“ इजाज़त लेते हुए आफिया की वकील बोली।
जज ने दोनों पक्षों की बातचीत सुनने के बाद फैसला कर दिया कि आफिया बिल्कुल सही है और वह अपने केस का सामना कर सकती है। इसलिए उसने अगली तारीख़ नवंबर की रख दी।
(जारी…)
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