उपन्यास :-गुफा वाला ख़ज़ाना complete

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Jemsbond
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उपन्यास :-गुफा वाला ख़ज़ाना complete

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उपन्यास :-गुफा वाला ख़ज़ाना

।।श्री।।
ऊँ वक्रतुण्डं महाकाय,
सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्न कुरु मे देवे
सर्व कार्यषु सर्वदा।।

***गुफा वाला ख़ज़ाना****

लेखक की कलम से………………
प्रस्तुत बाल उपन्यास" गुफा वाला ख़ज़ाना " एक रोचकीय , एवं रोमांचकारी उपन्यास हैं।
यह एक 14 वर्षीय मासूम लड़की "चिली"की कहानी हैं। जो अचानक आयी एक आवाज़ को सुनकर, विस्मित सी हो जाती है। तथा आवाज़ किसकी हैं।यह पता लगाने के लिए, जंगल में पहुँच जाती हैं।

वहाँ उसे एक औरत का ,मृत शरीर दिखाई पड़ता हैं ।सहमी सी चिली नज़दीक जाकर देखती हैं।उसके हाथ में एक नक्शा , तथा पत्र था । जिसमें एक खजाने का रहस्य था।

आगे क्या होता हैं ?, तथा चिली किन -किन मुसीबतों का सामना करते हुए वहाँ पहुँचती हैं? क्या उसे ख़ज़ाना मिलता हैं ?
इन प्रश्नों के उत्तर तो आप उपन्यास पढ़कर ही जान पाएँगे।
पर इतना तो स्पष्ट हैं , कि यह उपन्यास एक आश्चर्यजनक एवं साहसिक यात्रा का अनुपम उदाहरण हैं।

मेरे इस उपन्यास में बस यही उद्देश्य निहित हैं कि बाल मन इस उपन्यास से साहस की प्रेरणा पाकर निश्चय ही उत्तम सोच विकसित कर सकेंगे
मैं अपने इस उद्देश्य में कितना सफल हो पाया , यह तो आप प्रबुद्ध पाठक ही समझ पाएँगे।फिर भी भूलवश और वर्तनीगत हुई त्रुटियों के लिए में सादर क्षमाप्रार्थी हूँ।

""इस उपन्यास की विषयवस्तु पूर्णतया काल्पनिक है । और इसका किसी भी घटना से कोई संबंध नहीं हैं। फिर भी अगर संबंध पाया जाता हैं, तो यह संयोग मात्र ही माना जाएगा""।

आप पाठकों के सुझावों का सहृदय स्वागत हैं।आप श्री इसे ज़रूर पसंद करेंगे , इसी आशा में
आपका अनुज
•• अनमोल तिवारी"कान्हा"••
--------------------------------------------------------------------------- गुफा वाला ख़ज़ाना
(अंक:-1)
साँय का समय, हवा अपने मंद प्रवाह से उस शांत वातावरण में अनुगमन कर रही थी।जहाँ नन्ही सी "चिली " रोज़ की भाँति अपनी सहेलियों के साथ , गाँव में पीपल के वृक्ष तले, अपने स्वर्णिम बचपन के सावन में खेलेने में व्यस्त हैं।

"चिली" को अभी तक यह डर नहीं हैं कि , उसे फिर से विद्यालय में गृहकार्य पुरा ना होने पर डाँट खानी पड़ सकती हैं। जैसी कि कल उसकी प्यारी सखी सुरीली को पड़ी थी।
सुरीली चिली की सबसे प्यारी सखी हैं ।और दोनों एक ही कक्षा में पढ़ती हैं।
चिली अपनी बाल सखियों के साथ, अभी तक खेलने में व्यस्त हैं।अब जबकि अस्ताचलगामी सूर्य का प्रकाश धीरे -धीरे विलुप्त होने की कगार पर हैं।चिली की सब सहेलियाँ एक - एक करके वहाँ से खिसकने लगी ।
चिली और सुरीली ने जब देखा कि उनकी सब सखियाँ जा चुकी हैं ,तो उन्होंने भी घर चलने का निश्चय किया और शैने:-शैने: अपने क़दमों को बढाती हुई दोनों पुराने शिव मंदिर तक आ पहुँची।

अभी वो कुछ कदम और आगे चली ही होंगी कि अचानक उनकी एकाग्रता भंग हुई।जब उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। जो पास के ही जंगल से आ रही थी।जहाँ वो दोनों कभी-कभी अपने पिताजी के साथ जाया करती थीं।और लकड़ियों के गट्ठर लाया करती थीं।

चिली जिसकी उम्र अभी चौदह बरस ही होगी साँवला सलौना रूप , नटखट हँसी से लिप्त मासूम चेहरा, बिल्कुल अपनी माँ से मिलती शक्ल जो वीरता और साहस की कहानियाँ अक्सर चिली को सुनाया करती थी।

"चिली यह आवाज़ किसकी हो सकती ? सुरीली ने क्षण भर के लिए गंभीर हो लम्बी सी साँस छोड़ते हुए पूँछा "

"मुझे लगता है यह बेचार किसी जंगली जानवर की आवाज़ हैं। जो शायद किसी शिकारी के चंगुल में फँस गया हैं"
चिली ने प्रत्युत्तर में कहा और सुरीली की और देखने लग गई।

अब तक दोनों चलते-चलते सुरीली के घर तक पहुँच गई । चिली सुरीली से विदा हो , अपने घर की तरफ़ बढ़ने लगी कि अचानक उसे वो आवाज़ फिर से सुनाई दी। जो उसने पहले सुनी थी।
चिली ने जब दोबारा उस आवाज़ को सुना, तो उसने निश्चय किया कि ,वो इस आवाज़ का पता लगाएगी।और उसने अपने कदम वापस जंगल की तरफ़ जाने रास्ते की और मोड़ लिए।

अपने गाँव से बाहर निकलकर चिली उस रहस्यमयी आवाज़ का पता लगाने जंगल की और निकल पड़ी।
पड़ो की झुरमुट से निकलकर अब वो एक खुले स्थान पर आ गई।

इधर अब चंद्रमा धीरे-धीरे आसमान से अपनी चाँदनी छितराने लगा ।चिली को एक बार फिर वही आवाज़ सुनाई दी ।
उसने अपने कदम तेजी से उस आवाज़ की तरफ़ बढ़ा दिये।

पर तभी, अचानक उसे महसूस हुआ कि शायद कोई उसका पीछा कर रहा हैं।अब चुकि: चिली उस जंगल में अकेली थी। उसे इस नई मुसीबत से जबरदस्त घबराहट होने लगी।
पर कुछ दूर चलने के बाद जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे वहाँ कोई नहीं दिखाई दिया।इससे उसका डर थोड़ा कम हो गया।

वह लगातार कई देर से चल रही थी। और अब उसे कुछ-कुछ थकावट सी महसूस होने लगी।

"क्यों ना मैं यहाँ थोड़ा विश्राम कर लूँ ?
चिली ने उबासी लेते हुए कहा। और वहीं पास पड़े ,एक बड़े से पत्थर पर बैठ गई । और एक कविता गाते -गाते उसे नींद की झपकी आ गई ।

पर चिली की इस निंद्रा में , कुछ ही समय बाद विघ्न पड़ गया ।दरअसल उसे जंगल के मच्छरों ने बुरी तरह से
परेशान कर दिया।

"बाप रे ! इतने सारे मच्छर " मुझे लगता हैं कि यह मच्छर आज मुझे बीमार करके ही छोड़ेंगे।

चिली ने आज ही स्कूल में मलेरिया रोग का अध्याय पढ़ा था। और उसे यह सब भली प्रकार विदित है कि मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से ही मलेरिया होता हैं।
अब चुकि: चिली की नींद उड़ चुकी थी अत:उसने एक बार फिर आगे बढ़ने का निश्चय किया । और उस सुनसान जंगल से , अपने आप को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए चल पड़ी।

अभी वो पाँच मिनट भी ठीक से नहीं चल पायी होगी, कि उसे दूर चट्टान की तरफ़ से कुछ चमकदार वस्तु दिखाई दी।जो कुछ हल्की-हल्की सी, हिलती हुई प्रतीत हो रही थी।

"अरे ! इस अंधेरे में यह क्या चीज़ है, जो इस प्रकार चमक रही हैं ?
चिली इस प्रश्न से चितिंत हो उठी।
पर उसकी यह चिंता, तब और डर में बदल गई। जब उसे वो चमकदार वस्तु, अपनी और आती प्रतीत हुई।
चिली डर के मारे एक पेड़ की ओट में छिप गई।

पर चंद लम्हों में ही वो चमकदार वस्तु उसकी नज़रों के सामने आ गई।जिसे देखकर एक बारगी तो वो सचमुच ही डर गई।पर अगले ही क्षण उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
दरअसल यह एक नन्हा सा हिरन का बच्चा था, जो पास ही बह रही नदी में पानी पीने जा रहा था।

"ओह ! अब मेरी समझ में आया कि वो चमकदार वस्तु कोई और नहीं इसी नन्हे हिरन की आँखें थी।जो चंद्रमा की इस शीतल चाँदनी में किसी जगमगाते हीरे सी प्रतीत हो रही थी" चिली नें दीर्घ श्वास छोड़ते हुए स्वयं से कहा ।
चलो इस जंगल में कोई तो ढंग का साथी मिला। चिली चुकि:अब तक अकेली ऊब सी गई थी । अतः उसने हिरन के बच्चे के साथ अपना मन बहला चाहा ।
उसने जैसे ही नन्हे हिरन को पकड़ने के लिए ,अपना हाथ आगे बढ़ाया ,वो बच्चा कुलांचे मारता हुआ उस निर्जन वन में अंतर्ध्यान हो गया।और चिली की यह मनोकामना अधूरी सी रह गयी। ठीक वैसे ही जैसे खिलौने के टूट जाने पर किसी बच्चे की रह जाती हैं।
बहरहाल अब चिली का डर ग़ायब हो चुका था और उसकी जगह अब उत्साह ने ले ली थी।

अब वो पुन: उस रहस्यमयी आवाज़ का पता लगाने आगे चल पड़ी।।
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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उपन्यास:-गुफा वाला ख़ज़ाना -अंक 2

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उपन्यास:-गुफा वाला ख़ज़ाना -अंक 2


अब तक काफ़ी रात बीत चुकी थी।
और चंद्रमा भी, अब अपने पूर्ण वेग से उस निर्जन वन को अपनी शीतलता प्रदान कर रहा था।

"इस समय कितनी बजी होगी ?
चिली ने स्वयं से प्रश्न किया।

"शायद रात के बारह बज चुके होंगे" जैसा कि माँ बताती हैं। कि आधी रात में चंद्रमा अपनी पूरी चाँदनी के साथ चमकता हैं।
अचानक आई इस माँ की बात ने चिली को अपने घर की याद दिला दी। उसे अपने माँ-पिताजी के परेशान होने के अनेक ख्याल दिमाग़ में आने लगे।दिन भर की वो सारी घटनाएँ अब चिली के मानस पटल पर घूमने लगी ,जो चिली के साथ घटी थी।

चिली को वो सब बातें याद आने लगी कि , कैसे चिली अपनी सहेलियों झुमरी, सुमेना और सुरीली के साथ खेल रही थी। उसे वो वाकया अब भी याद हैं , जब उसे आज कक्षा में एक कविता सुनानी पड़ी थी।
और आज तो उसने अपनी गुड़िया के लिए नये कपड़े भी सिले थे।प्रमिला का घोड़ा , कैसे आज ठुमक-ठुमक कर नाच रहा था। और हाँ वो बाँके मोहन की भैंस भी तो आज गुम गई थी।

"कहीं मैं भी गुम तो नहीं हो जाऊँगी"
नहीं ! मैं तो बहादुर लड़की हूँ।

चिली अभी यह सब सोच ही रही थी , कि उसे अचानक फिर से वो आवाज़ सुनाई दी। जो अब इस शांत वातावरण में और तेज सुनाई पड़ रही थी।
चिली एक बार पुन: उस आवाज़ का पता लगाने , आगे चल पड़ी।

उसे एक बार फिर से महसूस हुआ कि कोई है ,जो अभी भी उसका पीछा किए जा रहा हैं।चिली ने डर के मारे , अपने कदम तेजी से बढ़ा दिए। इस घबराहट के मारे उसके होंठ सूखने लग गए।

अब वो पेड़ों की झुरमुट से निकलकर एक खुले क्षेत्र में आ पहुँची
जहाँ सुजला नदी अपने शांत प्रवाह से बह रही थी, तथा चंद्रमा की धवल चाँदनी उसकी शोभा में चार चाँद लगा रही थी।
चिली ने नदी में हाथ-पैर धोए , पानी पीया , तथा कुछ देर विश्राम करके पुन: आगे चल पड़ी।

चिली को फिर से महसूस हुआ कि , कोई है जो अब भी उसका पीछा किये जा रहा हैं।
पर यह हैं कौन ? चिली इसका पता नहीं लगा पा रही थी।
उसने अब दौड़ना शुरू कर दिया । पर यह क्या ?
अब तक तो उसे सिर्फ़ ये ही महसूस हो रहा था कि, जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हैं।पर अब तो उसे कुछ अजीबो ग़रीब आवाज़े भी सुनाई पड़ने लग गई।

"यह आवाज़ तो किसी छन- छन से बजते घुँघरू की आ रही हैं "।चिली ने क्षणिक ख़ामोश होकर सोचा ।

जंगल में अकेली चिली का कलेजा, मारे डर के धक-धक कर रहा था।
आगे रास्ता बंद हो जाने के कारण, चिली को एक बार फिर से घने जंगल में ही दाख़िल होना पड़ा।

इस समय रात के लगभग दो बजने को थे ।चिली रात की इस तन्हाई में चुपचाप भयावह जंगल में आगे बढ़े जा रही थी।

चिली का गाँव "पंचपुर "चारों और पहाड़ियों से गिरा हुआ , लगभग 40 -50 घरों वाला गाँव हैं।
यहाँ के अधिकांश लोगों का मुख्य पेशा , जंगल से लकड़ी काटना हैं। चिली के पिता भी गाँव के एक प्रमुख लकड़हारे हैं।गाँव में पशुपालन भी किया जाता हैं।जिसकी देखभाल का मुख्य जिम्मा घर की औरतों पर था।

बच्चे इन पशुओं को चराने के लिए, जंगलों के आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में जाया करते हैं।किसी को भी घने जंगल में प्रवेश की अनुमति नहीं थी।हाँ कभी कभार दिन में , अपने खोए हुए पशुओं को ढूँढ़ने वो नदी तक ज़रूर आ जाते थे।

चिली को नदी तक का रास्ता तो कुछ-कुछ याद था ,पर अब आगे का रास्ता उसके लिए पूर्णतया अनजान ही था।

"अब मैं क्या करूँ ? आगे का रास्ता तो मुझे मालूम भी नहीं हैं। और इतनी रात गये इस प्रकार जंगल में अकेले भटकना क्या यह उचित होगा ?

नहीं ! मैं अब इस तरह बिना पता लगाए खाली हाथ नहीं लौट सकती " मैं अवश्य पता लगाकर ही दम लूँगी"

इस प्रकार दृढ़ निश्चय कर चिली एक बार फिर से उस आवाज़ का पता लगाने चल पड़ी।

उसे चलते हुए अब तक क़रीब आधा घंटा हो चुका था । ज्यों - ज्यों चिली इस जंगल में आगे बढ़ रही थी , त्यों -त्यों उसके लिए ख़तरा बढ़ता ही जा रहा था।
सहसा चिली को सामने से किसी के आने की आहट सुनाई दी। यह एक जंगली हाथी था। जो एक सुअर का पीछा करते हुए इधर ही आ रहा था ।
चिली का गला डर के मारे सूखने लग गया। उसके पूरे बदन में ,इस दृश्य ने कम्पकम्पी उत्पन्न कर दी। जब यह मामला शांत हुआ, तब कहीं जाकर उसकी जान में जान आई।

"आख़िर वो रहस्यमयी आवाज़ किसकी हो सकती हैं ? मैने ऐसी भयानक आवाज़ पहले तो इन जंगलों में कभी नहीं सुनी।

मुझे लगता हैं यह किसी के चीखने की आवाज़ हैं।
शायद इंसानो जैसी ।
"पर इस खौफनाक जंगल में भला इतनी रात गये कौन हो सकता हैं।
कहीं मेरे साथ कोई छल तो नहीं हो रहा हैं ?

चिली के लिए यह प्रश्न निरंतर उलझन पैदा कर रहा था , कि वो रहस्यमयी आवाज़ आख़िर हैं किसकी ?
और इधर छन -छन की आवाज़ भी उसके डर को और बढ़ा रही थी।

"कहीं ये किसी भूत या प्रेतात्मा का कोई छल तो नहीं हैं ? क्योंकि यदि ये आवाज़ किसी इंसान की होती तो वो अब तक उसे मिला क्यों नहीं ?

"पर मास्टर जी तो कहते हैं कि भूत-प्रेत कुछ भी नहीं होता हैं"

"पर क्या सचमुच में भूत -प्रेत नहीं होते हैं ? फिर उस दिन हरिया की बहन ये क्यों कह रही थी कि , कैसे अचानक रात में उसका बछड़ा ग़ायब हो गया था,
और सुबह जब लोगों नें एक तांत्रिक से पूँछा तो उसने बरगद वाले भूत द्वारा पकड़े जाने की बात कही।
इस ऊहापोह की स्थिति से चिली परेशान हो उठी। उसका बाल मन कल्पना की ऊँची-ऊँची उड़ान भरने लग गया।
चिली इस रहस्यमयी आवाज़ के बारें में विचित्र कल्पनाएँ करती हुई आगे बढ़ रही थी।उसकी यह स्थिति तब तक ऐसी ही बनी रही, जब तक की अगले संकट से उसका सामना नहीं हुआ ।
चिली का यह अगला संकट था ही बड़ा डरावना, क्योंकि उसें आगे जो कुछ भी दिखाई दिया ,वो हर किसी को भी इस स्थिति से गुजरने में विवश कर सकता हैं। दरअसल चिली को ज़मीन पर एक लेटी हुई एक मानवाकृति दिखाई दी। चिली धीरे -धीरे उस मानवाकृति के क़रीब गई । जब वो उसके क़रीब पहुँची तो वहाँ का मंजर देखकर उसका चेहरा डर के मारे सफ़ेद पड़ गया।उसकी आवाज़ मानो गले में ही अटक गई ।
यह एक औरत थी ।जो औंधे मुँह ज़मीन पर लेटी हुई थी।

"कहीं यह चुड़ैल या प्रेत आत्मा तो नहीं ?
हो सकता है कि यह मेरे साथ इतनी देर से छल कर रही हो। और मुझे मारना चाहती हो ?
क्योंकि कभी-कभी प्रेत आत्माएँ किसी को मारने के लिए , इस प्रकार के छल करती हैं। ऐसा मेरी सहेलियाँ भी बताती हैं"

चिली ने पास के ही एक पेड़ के पीछे छिपकर यह सब शांति से समझने का प्रयास किया।
वो कुछ देर तक उस औरत के उठने के इंतज़ार में पेड़ के पीछे ही छिपी रही। पर जब बहुत देर तक उसे वो औरत हिलती डुलती सी प्रतीत नहीं हुई , तो उसने साहस बटोरकर उस औरत के पास जाने का निश्चय किया।
"मुझे इसके पास चलकर देखना चाहिए " कही यह बेहोश तो नहीं हो गयी ?
इस प्रकार का विचार कर चिली उस औरत के पास आ गई, और उसने उसे उठाने का प्रयास किया ।मगर वो औरत टस से मस नहीं हुई।
थक हार कर चिली ने उसके शरीर को , जो अब तक उल्टा पड़ा था। सही करने का प्रयास किया ।मगर जब उसने उसे सही किया तो डर के मारे उसकी घिग्गी बँध गई।उसके चेहरे की हवाईयाँ उड़ गई । चिली का पूरा बदन पसीने से तर - बतर हो गया।
वो औरत मर चुकी थी। चिली ने किसी इंसान की ऐसी मौत पहले कभी नहीं देखी थी। उस औरत का पुरा जिस्म लहूलुहान था।उसका चेहरा तथा गला , जंगली जानवरों के नाखूनों से नोचा हुआ था। उस औरत के सिर से खून निकला हुआ था।

ओह ! जंगल के खूंखार जानवरों ने इसकी क्या दशा बना दी ? कहीं मेरी भी………… आगे बोलते बोलते चिली कि ज़बान अटक गई।उसने कतई ये नहीं सोचा था की, इस बियाबान में उसकी ऐसी दशा होने वाली हैं।

"अच्छा तो अब समझ में आया। कि वो आवाज़, जो मैंने कई बार सुनी । वो इसी औरत की थी"
"पर यह इतनी रात गये आख़िर यहाँ कर क्या रही हैं ? और ये है कौन ?
यहाँ इस भयानक जंगल में क्या करने आयी थी ?
"कहीं ये रास्ता तो नहीं भटक गई थी ? चिली ने अपने स्वप्न सागर में गोते लगाकर ऐसे कई प्रश्न उत्पन्न कर लिए।
मगर उसे वहाँ अपने इन अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं दिखा । थी तो केवल चंद्रमा की धवल चाँदनी , और आस - पास की पेड़ लताएँ, जो किसी भी सूरत में उसके इन प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ थी।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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उपन्यास :--गुफा वाला ख़ज़ाना (अंक:-3)

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उपन्यास :--गुफा वाला ख़ज़ाना (अंक:-3)


उस औरत के पास खड़ी चिली को, अब इतना तो पूर्ण विश्वास हो चुका था कि , वो चीख जैसी आवाज़े इसी औरत कि थी। क्योंकि उसे वापस बहुत देर
से ऐसी चीख भरी आवाज़ नहीं सुनाई दी। जैसी उसने पूर्व में दो तीन बार सुनी थी।

कुछ देर तक चिली, उस मृत औरत के पास अनमनी सी मुद्रा में बैठी रही।सहसा उसकी नज़र उस औरत के हाथ की तरफ़ गई।

चिली को उस औरत के हाथ में दबा हुआ एक कागज़ का टुकड़ा दिखाई दिया। उसने वो कागज़ की टुकड़ा , उसके हाथ से निकाला , तथा उसे गौर से देखा।
यह समेटा हुआ कागज़ , एक पत्र था। तथा उसमें किसी मंदिर का नक्शा भी लिपटा हुआ था।

चिली ने अपनी सरसरी नज़र उस पत्र पर डाली , और चंद्रमा की श्वेत चाँदनी में उसे पढ़ना प्रारंभ किया। पत्र कुछ इस प्रकार था।

"दूर मानसी पर्वत के पीछे, एक गाँव हैं, जिसका नाम हैं, "शीतलापुर"
उस गाँव से थोड़ा आगे चलने पर "विशाल शिवाली का जंगल" आता हैं।
इसी जंगल में एक प्राचीन काल का बना "भगवान विश्वेश्वर महादेव" का मंदिर हैं। जहाँ बरसों पुराना एक खजाना गुफा के अंदर एक कमरें में रखा हुआ हैं।
इस खजाने को कोई भी तब तक नहीं पा सकता जब तक की वो इस रहस्यमयी गुफा के अंदर बने उस खजाने के कमरे का नक्शा ना ढूँढ़ लें।
यह नक्शा मंदिर में ही कहीं छिपा हैं।
यदि कोई इस खजाने को पाना चाहता हैं तो उसे हर हालत में इसे ढूँढ़ना पड़ेगा।गुफा से उस ख़ज़ाने को पाने के लिए केवल वहीं चंद्रग्रहण की रात होनी चाहिए, जब पूर्ण चंद्रग्रहण हो, और यदि रात के बारह बजे से पूर्व उस गुफा से बाहर निकलना नहीं हुआ, तो उस रहस्यमयी गुफा में ही बंद हो जाओगे"

चिली पत्र को पढ़कर आश्चर्यचकित रह गयी। हालाँकि पत्र में सबसे नीचे दो बड़े स्वास्तिक भी चित्रित थे।जिसका आशय चिली नहीं समझ पायी।

अब चिली ने अपनी आँखें नक्शे की तरफ़ डाली।उसने नक्शा ज़मीन पर रखा , तथा बड़े ही इत्मीनान से उसे देखा।

"ओह ! तो अब मेरी समझ में आया की वो औरत इस भयानक जंगल में क्या करने आयी थी"

चिली को अब अपने उन सभी प्रश्नों के उत्तर स्वत: ही मिल गये , जो उसने पूर्व में सोचे थे।
वो औरत रास्ता नहीं भटकी थी, बल्कि इसी खजाने को पाने के लिए जा रही थी। मगर दुर्भाग्य से इन जंगली जानवरों ने , उसे अपना ख़ज़ाना बना लिया।

अभी चिली नक्शे को देखते हुए , यह सब सोच ही रही थी कि उसे ख्याल आया।

अरे ! आज द्वादशी की रात हैं । और कल त्रयोदशी की रात ।यानी पूर्ण ग्रहण वाली पूर्णिमा की रात में अभी भी तीन दिन का समय हैं। क्या ही यह अच्छा हो कि मैं इस खजाने को ढूँढ़ने जाऊँ "

चिली को ग्रहण के बारे में यह सब इसलिए पता हैं।क्योंकि उसकी माँ ने उसे कल ही उसे यह सब बताया था । जब उसने अपनी भूगोल की पुस्तक के ग्रहण वाले पाठ के बारें में अपनी माँ से पूछा था।

अनायास ही आये इस खजाने को पाने के विचार ने चिली को आपादमस्तक झकझोर कर रख दिया। उसका पिछला सारा डर अब उत्साह में बदल गया।
चिली अब तक भी उस खजाने के बारें में ही सोच रही थी।
उसने एक बार फिर नक्शे को देखा।

नक्शे के हिसाब से उसने पाया की मानसी पर्वत कुछ ही दूर बस नदी पार करने पर उसके सामने होगा।

"शायद इस वक्त चार बज चुके होंगे। अब यदि मैं लगातार चलती रही तो, अवश्य ही सूर्योदय तक मानसी पर्वत की चढ़ाई पूरी कर सकती हूँ"

तो साथियों इस प्रकार यहाँ से शुरुआत होती हैं, चिली की एक ऐसी अद्भुत यात्रा कि , जहाँ कदम - कदम पर मुश्किलें उसके सामने सीना ताने खड़ी होंगी।

उत्साह से लबरेज चिली निकल पड़ी अपने स्वर्णिम अभियान पर।

कई देर यूँ ही चलते -चलते वो अब नदी के पास आ पहुँची।पर आगे नदी की पेटा उसे कुछ ज्यादा ही गहरा लगा।अभी तक चुकि: हल्का -हल्का अंधेरा भी था, तो ऐसे में चिली ने अपनी जान को जोखिम में डालकर इस गहराई में नदी पार करना सर्वथा अनुचित समझा।

"अब मैं क्या करूँ ? मुझे कैसे भी करके जल्दी से जल्दी इस नदी को पार करना होगा"

"हाँ शायद यहाँ आसपास कोई नाव हो सकती हैं।क्योंकि मुसाफिरों को नदी पार करवाने के लिए नावों का प्रयोग तो होता ही होगा।आख़िर कैसे न कैसे तो लोग यहाँ से नदी पार करते ही होंगे"
चिली इसी उम्मीद में कि शायद आगे कोई नाव मिल जाएगी आगे बढ़ने लगी। उसका अनुमान बिल्कुल सही निकला।संयोगवश थोड़ा ही आगे जाने पर उसे एक टूटी हुई पुरानी नाव दिख पड़ी।

"शुक्र हैं भगवान का की यहाँ नाव पड़ी हैं।मगर यह तो टूटी हैं। कहीं ऐसा ना हो मैं बीच नदी में ही डूब जाऊँ"
चलो अब जो भी हो , पर में इतनी आसानी से हार नहीं मान सकती । मुझे शीघ्रातीशीघ्र नदी पार कर उस तरफ़ निकलना होगा"

चिली ने उस जर्जर नाव को थोड़ा दुरस्त किया, तथा उसमें सवार होकर नदी के इस पार आ पहुँची।
इस बाधा को पार कर लेने पर उसकी ख़ुशी दोगुनी हो गई।वह आनंदित हो ज़ोर -ज़ोर से उछलने लगी।

चिली पूरे जोश के साथ अब मानसी पर्वत की तरफ़ बढ़े जा रही थी।

लगभग एक घंटा हो गया चिली को नदी पार किए हुए, उसने अब तक कहीं भी विश्राम नहीं लिया।
इधर प्रात:काल की वेला में पक्षीयों की मधुर कोलाहल ध्वनि उसे अतिप्रिय लग रही थी। हालाँकि चिली को अभी तक सूर्योदय के दर्शन नहीं हुए थे।

"शुक्र हैं जैसे तैसे ये डरावनी रात बीत गई" चिली ने एक संतोषप्रद साँस ली।

पर वो कौन था जिसने रात को मेरा पीछा किया ?
चिली के लिए यह प्रश्न अब भी एक पहेली ही बना हुआ था । जिसे वो चाह कर भी नहीं सुलझा पा रही थी।

अब मानसी पर्वत ठीक उसके सामने था।चिली नें अपना पुरा दमखम लगाते हुए , उसकी चढ़ाई शुरू की।
मानसी पर्वत की चढ़ाई घुमावदार ना होकर सीधी चढ़ाई थी, लिहाजा चिली को चढ़ने में बड़ी परेशानी हो रही थी।

"बाप रे ! लगता हैं कि यहाँ से फिसलने पर निस्संदेह हड्डियों का कचूमर निकल जाएगा"

चिली अब तक आधी चढ़ाई कर चुकी थी। अब हल्की -हल्की अरूणोदय की ताम्र लालिमा पूर्व में चमकने लगी।

सहसा उसे सामने से एक साँप उसकी ही तरफ़ आता हुआ दिखाई दिया। चिली ने जल्दबाज़ी में भागने की सोची पर यकायक उसका सिर इस जल्दबाजी में एक बलूत के पेड़ से जा टकराया।
"आह ! बचाओ ! चिली मदद के लिए जोर - ज़ोर से चिल्लाने लगी।

पर वहाँ कोई हो तो बचाने आये।
चिली फिसलते फिसलते सिरदर्द के कारण बेहोश हो गई।

जब बहुत देर बाद चिली को होश आया , तो उसने , अपने आप को एक चट्टान की आड़ में लेटा पाया।

उसने देखा कि उसके कपड़े कई जगहों से फट चुके थे। कोहनी तथा दोनों घुटनों से खून बह रहा था।
एक घुटना कुछ ज्यादा ही जख्मी हो गया था।

"शुक्र हे भगवान का कि मैं अभी तक ज़िंदा हूँ। अगर यह चट्टान ना होती तो शायद अब तक चील , कौए मेरे शरीर से अपनी पेट पूजा कर रहे होते"
अब मुझे वापस इतनी चढ़ाई करनी पड़ेगी। चिली इसी सोच में व्यथित थी।
चिली का पूरा बदन पसीने से तर-बतर हो चुका था। उसे ऐसा लग रहा था मानों उसकी सारी शक्ति क्षीण हो चुकी हो ।

"नहीं मुझे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए" चिली ने भगवान भोलेनाथ का जयकारा लगाया और अपनी पूरी ताक़त लगाते हुए खड़ी होने का प्रयास किया , इसमें वो कामयाब रहीं।

जब उसने उठकर देखा, तो उसने पाया कि वो इतनी भी ज्यादा दूर नहीं लुढकी हैं।
अब एक बार चिली पुन: मानसी पर्वत की चढ़ाई करने लगी।
उसके घुटनों में सूजन आ गई थी। अत: उसे चढ़ने में तकलीफ़ हो रही थी। पर उसने अपने अदम्य साहस से अंतत: मानसी पर्वत की चढ़ाई पूरी की।

मानसी पर्वत पर अब सूर्य का प्रकाश पूर्ण रूप से चमक रहा था।मानो पर्वत शिखर की लताएँ , कन्दराएँ, भगवान सूर्य देव की सुनहली रश्मियों का हृदय से स्वागत कर रही हो।तथा प्रभु दिनकर रात की सारी तंद्रालस पल्लवों से मिटाकर मानों उनमें नूतन प्राण संचार कर रहे हो।

चिली ने नक्शे के मुताबिक़ अपनी पहली बाधा पार कर ली थी। और इस विजय में वो अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानते हुए ख़ुश हो उठी।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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Jemsbond
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उपन्यास :--गुफा वाला ख़ज़ाना (अंक:-4)

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उपन्यास :--गुफा वाला ख़ज़ाना (अंक:-4)

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मानसी पर्वत की, चढ़ाई पुरी कर लेने पर ,उत्साहित चिली , अब जल्दी से जल्दी नक्शे के मुताबिक़ अपने अगले लक्ष्य की तरफ़ आगे बढ़ चली।
उसका अगला लक्ष्य था "शीतलापुर" गाँव।

"मुझे पूर्ण विश्वास हैं कि मैं दोपहर तक शीतलापुर पहुँच जाऊँगी " चिली ने अपने आपको संतुष्ट करते हुए कहा।

हालाँकि अब उसकी गति पहले जितनी तेज नहीं रही। कारण, कि वो पुरी रात से चल रही थी ।और उसके दोनों घुटनों में अब तक सूजन भी आ चुकी थी।
इधर अब भूख ने भी मानो उस पर आक्रमण कर दिया हो।चिली ने कल रात से ही अब तक कुछ नहीं खाया था। लिहाजा यह स्वाभाविक ही था, कि अब उसको बहुत तेज से भूख लगी हैं।

"यहाँ तो दूर -दूर तक कोई गाँव भी नज़र नहींआ रहा हैं।और ये भूख है कि जान लेकर ही छोड़ेगी" चिली ने थक हार कर एक दीर्घ श्वास छोड़ते हुए कहा।

"लगता है कि अब घुटनों की सूजन और भी बढ़ गई है।यदि यथाशीघ्र मैंने इनका उपचार नहीं किया तो आगे बढ़ना कठिन हो जायेगा"

चुकि: चिली एक ग्रामीण पहाड़ी परिवेश में पली बढ़ी लड़की थी, अत: उसे हल्का - फुल्का देशी औषधियों का ज्ञान था।
अत: वो एक बार पुन: हिम्मत करके उठी और उन मानसी पर्वत की कन्दराओं में अपनी चोट की उपचारात्मक औषधियाँ ढूँढ़ने के काम में लग गई। और संयोग से उस कुछ ही देर में ही वो मिल भी गई।

चिली ने , एक पेड़ के नीचे ,आराम से बैठकर अपने जख्मी घुटनों का प्राथमिक उपचार करना शुरू किया।

सबसे पहले उसने , अपने घुटनों से स्त्रावित रक्त को साफ़ किया। फिर उसने उन घावों पर जड़ी - बूटियों से निकलने वाला रस लगाया,
तदुपरांत उसने , अपने पहने हुए कपड़ों में से , थोड़ा पट्टीनुमा कपड़ा फाड़कर ,अपने घावों पर मरहमपट्टी की।तथा थोड़ी देर आराम करने के लिए सो गई।

कुछ समय पश्चात् जब उसकी नींद उड़ी, तो उसने महसूस किया की अब उसकें घुटनों में दर्द कुछ कम हो गया था।
"चलो अब कम से कम मैं थोड़ा चल तो सकती ही हूँ" चिली ने आश्वस्त भाव से सोचा, और निकल पड़ी पुन:अपने अभियान पर।

इधर भूख अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी। और चिली का अब बिना पेट में कुछ डाले आगे बढ़ना कठिन हो रहा था। उसे इस वक्त अपनी माँ के हाथों से बनी उन लजीज सेवईयों को याद हो आई , जो उसकी माँ विशेष रूप से उसके लिए बनाया करती थी।

"नहीं मुझे इस तरह हिम्मत नहीं हारनी चाहिए , मैं एक बहादुर लड़की हूँ, और माँ कहती हैं कि बहादुर लोग कभी हार नहीं मानते हैं "

चिली ने एक बार फिर से नक्शे को सरसरी निगाहों से देखा।

भूख से बेहाल चिली उठी , तथा अपने लिए भोजन की तलाश करते हुए पुन: आगे चल पड़ी।

सहसा उसे कुछ दूर चलने पर एक विशाल छायादार वृक्ष दिखाई दिया।भूख से व्याकुल चिली के कदम तेजी से उस वृक्ष की तरफ़ बढ़ने लगे ।

यह एक इमली का पेड़ था। जिस पर अनगिनत अधपकी इमलियाँ लगी थी।

"अरे वाह ! इमली का पेड़ " इमली का नाम आते ही , चिली के प्यास से व्याकुल सूखे होंठों पर अनायास ही पानी आ गया। या यूँ कहे की मानो उसकी जान में जान आ गई।

चिली को इमलियाँ बहुत पसंद थी।और वैसे भी बात जब भूख से मरने की नौबत पर आ जाए तो पसंद नापसंद का कोई महत्व नहीं रहता हैं।

क्योंकि इस समय उसका असली दुश्मन उसका पेट ही था।

चिली को इस इमली के पेड़ ने एक नई शक्ति प्रदान कर दी।वह जल्दी से पेड़ पर चढ़ी , तथा अपने लिए कुछ इमलियाँ तोड़ लाई।

चिली बड़े मज़े से इमलियाँ खाते हुए आगे चल पड़ी।पर भला इमलियों से कहीं पेट की आग शांत होती हैं ।

लिहाजा चिली को अब और भी ज्यादा भूख सताने लगी थी।

ओफ्हो ! तंग आ चुकी मैं इस भूख से, अब मुझे खाने के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ अवश्य ही करना पड़ेगा।

चलते-चलते उसे एक पेड़ पर कुछ छत्तेनुमा सी आकृति लटकती दिखाई दी।
यह एक कुकरमुत्ते का छत्ता था।
बड़ी मुश्किल से चिली उस छत्ते को तोड़ पाने में सफल हुई।

उसने एक पेड़ के नीचे आराम से बैठकर बड़े मज़े से उस कुकरमुत्ते के छत्ते को खाया।

"आह ! मज़ा आ गया " चलो अब कम से कम भूख की समस्या से तो निजात मिला " अब तो बस कही थोड़ा पानी मिल जाए"

अब वो एक बार फिर अपने अभियान पर निकल पड़ी।
अब तक सुबह के ग्यारह बज चुके थे। दोपहर तक चिली को शीतलापुर पहुँचना हैं।मगर उसे अभी तक दूर - दूर कही पर भी किसी भी गाँव का नामोनिशान नज़र नहीं आ रहा था।

चिली को चलते हुए , लगभग घंटा भर होने को आया , मगर उसे अभी तक पानी नसीब नही हुआ।

"हे भगवान ! अब तू ही रक्षा कर " अब मैं बिना पानी के आगे नहीं बढ़ सकती "
चिली का प्यास के मारे बुरा हाल हो रहा था। आसमान से सूरज मानों अंगारे बरसा रहा हो , ऐसा चिली को प्रतीत हो रहा था।
सहसा चलते- चलते वो ठिठक गई।

"अरे ! यह कैसी आवाज़ आ रही हैं ? मुझे चलकर देखना चाहिए"।
चिली ने अपने कदम उस आवाज़ की दिशा में बढ़ा लिए।
ज्यों - ज्यों वो आवाज़ के नज़दीक जा रही थी, उसे वो आवाज़ और साफ़ सुनाई देने लगी।

"यह तो कुछ , कल- कल से बहते हुए पानी की आवाज़ लग रही हैं"
पानी की कल्पना मात्र से ही उसका उत्साह दुगना हो गया।
चिली अब तक उस आवाज़ के पास आ चुकी थी। यह आवाज़ एक ताज़ा बहत हुए पानी की ही थी जो एक झरने से गिर रहा था।

" वाह ! कितना सुंदर नजारा हैं ,इस झरने का । आह ! मज़ा आ गया अब में खूब मज़े से पानी भी पी सकती हूँ और नहा भी सकती हूँ"
चिली की प्यासी गर्दन पानी पीने के लिए आतुर हो उठी।चिली ने अविलंब, बड़े ही सुकून से पानी पिया। कुछ देर स्वयं को तरोताजा करने के लिए वो नहाने में ही मग्न रही।
जब चिली नहा कर बाहर निकली तो उसे कुछ ताजगी सी महसूस हो रही थी। तेज धूप होने से उसने पास ही एक छायादार पेड़ के नीचे अपने आप को नींद के हवाले कर दिया।

नींद में चिली तरह -तरह की कल्पनाएँ करने लगी।उसे लगा जैसे पुरा ख़ज़ाना उसके सामने हैं।एक खूबसूरत कमरा जो पूरा हीरे-जवाहरात से भरा हुआ हैं।ढेर सारे वस्त्राभूषण , साने चांदी के बर्तन और ढेर सारी प्राचीन काल की स्वर्ण मुद्राएँ उसके सामने हैं। चिली नींद में पूरे खजाने का आनंद ले रही हैं।

उसने खजाने को , अपने झोलों में भरा तथा उसे लेकर वापस आने लगी मगर वो ख़ज़ाना इतना भारी हैं , कि उससे उठाए नहीं उठ रहा हैं। चिली जितना वो उठा सकती थी। उतना ख़ज़ाना उठाकर अपनी वापसी की यात्रा पर निकल पड़ी ।रास्ते में उसने एक भयानक आवाज़ सुनी , यह भयानक आवाज़ चिली को ऐसी सुनाई दे रही थी।मानों कोई भयानक दर्द से करहा रहा हो।

सहसा चिली की नींद उड़ गई।उसने अपने आप को पसीने से तरबतर पाया।डर के मारे उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।उसके होंठ सूख गये।उसे ऐसा महसूस हो रहा था , मानो उसका पूरा बदन ठंड लगकर आने वाली बुखार की तरह कंपकंपा रहा था।

" बाप रे ! इतना भयानक सपना। कहीं ये यथार्थ में तो नहीं बदल जाएगा"
चिली ने उठकर एक बार पुन: झरने का पानी पिया , हाथ-मुँह धोए, तथा तरोताजा होकर फिर से नक्शे के मुताबिक़ शीतलापुर की यात्रा पर निकल पड़ी।

"इस वक्त कितने बज गए होंगे ? चिली ने स्वयं से प्रश्न किया ,और सोचा
शायद दोपहर के दो से ऊपर बज चुके होंगे।
चिली लगातार चले जा रही थी। उसे दूर-दूर तक किसी भी गाँव का नामोनिशान अभी तक नहीं मिला था।

इधर थकान और पथरीले मार्ग में उसको चलने में काफ़ी तकलीफ़ भी महसूस हो रही थी, ऊपर से इतनी गर्मी।

"कहीं ऐसा तो नहीं कि, मैं किसी गलत
रास्ते पर निकल गई हूँ " ऐसा सोचकर चिली ने पुन: नक्शे को गौर से देखा।

"नहीं मुझे लगता हैं कि मैं सही दिशा में ही जा रही हूँ "
चिली ने नक्शे को पुन: समेटा और आगे चल पड़ी।
कुछ देर चलने के बाद अब चिली ऐसी जगह आ पहुँची , जहा से आगे की तरह सिर्फ़ ढ़लान ही हैं।मतलब की वहाँ से उस पठारी मार्ग का उतार शुरू हो जाता हैं।
अचानक उसे इन पहाड़ियों की तलहटी में आबाद एक गाँव दिखाई दिया।

"आ गया शीतलापुर , आ गया शीतलापुर " अपने सफ़र में चिली के लिए यह अब तक पहला गाँव था।और उसे पहली बार कोई मनुष्य इस सफ़र में मिलने वाला था , जिससे चिली बात करेगी।
गाँव देखकर चिली आनंद से झूम उठी।

"ओह ! आज कितने समय बाद मैं फिर से किसी इंसान से बात कर सकूँगी" चिली ख़ुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी। हालाँकि उसे बीती रात एक औरत ज़रूर मिली थी, पर वो मर चूकी थी।
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Re: उपन्यास :-गुफा वाला ख़ज़ाना

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