जब प्रसून को वह मिली थी । तब उसमें सुधार की कोई गुंजाइश न बची थी । वह 34 की होकर मरी थी । और अनजाने में उसने अपनी आयु घटाकर शून्य 0 कर ली थी । तब वह उसको समझाकर दूसरा जन्म या रीबोर्न हेतु भी कोई हेल्प नहीं कर सकता था । उसे भारी हैरत हुयी कि सिल्विया प्रेत बनने के बाद भी खुद को रोमांचित सा महसूस कर रही थी । और इस नये परिवेश में काफ़ी उत्साहित थी ।
प्रसून से उसकी मुलाकात चैन्नई के एक स्थान पर हुयी थी । और यह तो उसके लिये और भी दिलचस्प था कि कुछ खास स्पेशिलिटी रखने वाले इंसान प्रेतों से सीधा कनेक्ट हो सकते हैं । इसको वह और भी बङा रोमांच मानती थी । दूसरे एक योगी के रूप में प्रसून जैसी दिलचस्प इंटरनेशनल हस्ती को पाकर वह बेहद खुश हुयी थी । और घण्टों बात करती थी । शायद एक ऐसा अकेला इंसान । जिससे वह इंसानी जीवन की भांति बात कर सकती थी । कोई हेल्प भी ले सकती थी ।
- तुम ! वह भी लगभग हैरत से बोला - मगर यहाँ ?
- एराउण्ड द वर्ल्ड ! वह उत्साहित सी बोली । फ़िर उसने तारों की तरफ़ इशारा किया - कभी कभी वहाँ भी जाती हूँ । वो भी बिना प्लेन के । बिना ट्रेन के । यार क्या अनोखी लाइफ़ है । प्रेतों की ।
- यहाँ कब से हो ? वह महुआ बगीची की ओर दृष्टि घुमाता हुआ बोला ।
उसने बताया । वह पिछले 6 महीने से यहाँ थी । प्रसून को एकदम आशा सी बँध गयी । अब उसे फ़ालतू के प्रेतों से माथा पच्ची नहीं करनी थी । अतः वह बोला - अभी पिछले 6 महीनों में यहाँ कोई खास घटना भी हुयी है ।
मैं समझी नहीं । वह उलझकर बोली - खास घटना से तुम्हारा क्या मतलब है । यहाँ तो सभी घटनायें खास ही होती हैं । और फ़िर सभी आम भी ।
प्रसून ने उसकी सहमति में सिर हिलाया । उसका जबाब ही बता रहा था कि वह एक परिपक्व प्रेतनी हो चुकी है । प्रेतजगत से उसका अच्छा परिचय हो चुका था । उसके चेहरे पर चमक आ गयी । उसने घूमकर शालिमपुर की तरफ़ उँगली उठायी । और मधुर स्वर में बोला - मेरा मतलब । उस विलेज से जुङी ।
- ओ या ! वह साधारण स्वर में बोली - परसों ही कुलच्छनी ने वहाँ से.. एक को वहाँ । उसने ऊपर उँगली उठाई - वहाँ रवाना किया है । बङा पहुँचा हुआ हरामी था साला । मैं होती ना.. उसको घसीट घसीटकर मारती । इसकी बङी चर्चा हुयी थी ।
- कुलच्छनी ! वह कुछ सोचता हुआ सा बोला - मतलब ? ये वर्ड तो शायद लूज करेक्टर लेडी के लिये इस्तेमाल करते हैं । या फ़िर किसी अन्य बुरी आदतों वाली ।
- वो सब मुझे नहीं पता । लेकिन यहाँ कुलच्छनी एक पिशाच श्रेणी की गण होती है । वह ऐसी गण कैसे बनती है । ये भी मैं नहीं जानती । पर उसका काम ऐसे लोगों को अटैक कर मारना होता है । जो अपनी दुष्ट आदतों के चलते । अत्यन्त क्रूरता पापमय जीवन के चलते आयु से बहुत पहले ही अपनी आयु समाप्त कर लेते हैं । तब उनको मारने कुलच्छणी ही जाती है । जिसको अभी मारा । साला सुअर पैदायशी हरामी था । दूसरों की जमीन कब्जाना । दुर्बल गरीब औरतों से रेप कर देना । निर्दोष लोगों की हत्या करना । मानों उसके लिये खेल था । अभी अभी कुछ टाइम पहले कमीने ने हँसते खेलते परिवार का नाश कर दिया । कोई बेचारा बहुत सीधा किसान था । उसके दो छोटे बच्चे भी थे । उनको भी मार डाला ।
इंसाफ कुदरत का
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Re: इंसाफ कुदरत का
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(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
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Re: इंसाफ कुदरत का
प्रसून लगभग उछल ही पङा - क्या ! उसके मुँह से निकला - वह मर गया ।
- वही तो मैं बोल रही हूँ डियर ! साला बहुत आसान मौत मर गया । लकी अनलकी था साला हरामी ।
उसके लकी अनलकी शब्द से प्रसून ने असमंजस से उसकी तरफ़ देखा । तब वह बोली - मेरे भोले राजा ! लकी इसलिये था कि उसे मरने में कोई तकलीफ़ नहीं हुयी । कुलच्छणी एक ब्लू मिक्स ब्लैक कलर बाडी वाली भयंकर गण होती है । वह फ़ुल न्यूड होती है । उसकी हाइट लगभग 4 फ़ुट होती है । और शरीर किसी गठीले आदमी जैसा । अगर उसके अवाउट 28 साइज ब्रेस्ट न हों । तो वह मैन जैसा ही फ़ील देती है । उसके हाथ में हड्डी का बना एक वैपन टायप होता है । उसको लेकर वह सुरेश के घर के पास लगभग थाउजेंड मीटर अप साइड आसमान में गयी होगी । उसने सुरेश को लक्ष्य कर वैपन चलाया होगा । उसकी एक चोट से ही सुरेश को हार्ट पेन और तेज चक्कर सा आया होगा । वह वही जमीन etc पर गिर गया होगा । और इसके बाद डैड । यानी महज 5 मिनटस का खेल । तो ये लकी डैथ ही हुयी ना ।
और अनलकी इसलिये । क्योंकि इसका सिनी मैटर इतना अधिक बना है कि इसको अवाउट 10 lac year hell में जाना होगा । जिसको महा रौरव नरक बोलते हैं । मीन इसकी मर्सी अपील की कोई गुंजाइश नहीं । इसके बाद भी इसको सजा ए काला पानी टायप नीच और गन्दे अँधेरे लोकों में बारबार फ़ेंका जायेगा । तब लाखों वर्ष में इसके पाप धुलेंगे । तब कहीं ये 84 के बाद इंसान होगा ।
प्रसून को मानों गहरी तसल्ली हुयी । उसे एक असीम शान्ति सुख सकून का अनुभव सा हुआ । उसने एक गहरी सांस भरी । मानों उसके सीने से बहुत बङा बोझ उतर गया हो । फ़िर उसने बेहद प्रसंशा से सिल्विया की ओर देखा ।
ओर बोला - कमाल है डियर ! आपने बहुत अच्छा रिसर्च किया है ।
- ओ नो प्रसून ! वह वहाँ से गुजरते दो प्रेतों को हाइ का हाथ हिलाते हुये बोली - इनफ़ेक्ट ये आदमी अपने को छटुर समझटा हय । बट होटा हय साला छूटिया । छटुर छूटिया ।
पिछले चार दिन से उदास और अभी भी बुखार में तपते प्रसून ने उसके इंगलिश टोन में कही बात को समझ लिया । और उसके मुँह से जबरदस्त ठहाका निकला । सिल्विया भी उसके साथ मुक्त भाव से हँसी । प्रसून उसकी तरफ़ हा हा हा के साथ उँगली करता हुआ बोला - यू मीन चतुर ***िया ना । प्लीज इसको एक्सप्लेन भी कर । चतुर ***िया । हा हा हा । ओ माय गाड । व्हाट अ स्पेशल वर्ड चतुर ***िया ।
उसके कहने के अन्दाज और अपनी जिन्दगी में पहली बार सुने इस अदभुत मिश्रित शब्द से प्रसून बहुत देर तक हँसता रहा । उसकी हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी । सिल्विया बार बार.. ओ प्रसून तुम भी ना डियर .. कहती हुयी उसको हाथ से बारबार चपत सा लगा देती थी । तब बहुत देर में दोनों की हँसी रुकी ।
- चतुर ***िया का मतलब है । वह फ़िर से बोली - ऐसा इंसान जो खुद ही अपने आपको समझता तो बहुत चतुर है । पर होता एकदम ***िया है । इस तरह वह मिलकर चतुर ***िया हो जाता है । जैसे ये साला हरामी सुरेश था । क्या मिला इसे ? जो इसका खुद का लक से मिला था । उससे भी हाथ धो बैठा । और लाखों साल के नरक में गया ।
दूसरे प्रसून इंसान की ये कितनी अजीब सोच है कि प्रेत या देवता etc कुछ अलग चीज होते हैं । जिस प्रकार इन लाइफ़ एक इंसान अपना स्टेंडर्ड बनाकर आफ़्टर बेड टाइम पूअर टू रिच हो जाता है । दैन ये भी आफ़्टर लाइफ़ रिजल्ट कर्मा गति होती है । बट आदमी का स्वभाव नेचर etc वही रहता है । बस जिस प्रकार पूअर से रिच बने आदमी में थोङा ठाठवाठ से रहने एण्ड अदर लाइफ़ स्टायल में चैंज हो जाता है । वही आफ़्टर लाइफ़ भी होता है । एक गरीब आदमी झोंपङे के बजाय महल में रहने लगा । साइकिल के बजाय प्लेन से चलने लगा । ये देवता हुआ । एण्ड प्रेत रिजल्ट में । वह लाइफ़ का गेम हार गया । और दर दर भटकने को मजबूर हो गया । और...
- वही तो मैं बोल रही हूँ डियर ! साला बहुत आसान मौत मर गया । लकी अनलकी था साला हरामी ।
उसके लकी अनलकी शब्द से प्रसून ने असमंजस से उसकी तरफ़ देखा । तब वह बोली - मेरे भोले राजा ! लकी इसलिये था कि उसे मरने में कोई तकलीफ़ नहीं हुयी । कुलच्छणी एक ब्लू मिक्स ब्लैक कलर बाडी वाली भयंकर गण होती है । वह फ़ुल न्यूड होती है । उसकी हाइट लगभग 4 फ़ुट होती है । और शरीर किसी गठीले आदमी जैसा । अगर उसके अवाउट 28 साइज ब्रेस्ट न हों । तो वह मैन जैसा ही फ़ील देती है । उसके हाथ में हड्डी का बना एक वैपन टायप होता है । उसको लेकर वह सुरेश के घर के पास लगभग थाउजेंड मीटर अप साइड आसमान में गयी होगी । उसने सुरेश को लक्ष्य कर वैपन चलाया होगा । उसकी एक चोट से ही सुरेश को हार्ट पेन और तेज चक्कर सा आया होगा । वह वही जमीन etc पर गिर गया होगा । और इसके बाद डैड । यानी महज 5 मिनटस का खेल । तो ये लकी डैथ ही हुयी ना ।
और अनलकी इसलिये । क्योंकि इसका सिनी मैटर इतना अधिक बना है कि इसको अवाउट 10 lac year hell में जाना होगा । जिसको महा रौरव नरक बोलते हैं । मीन इसकी मर्सी अपील की कोई गुंजाइश नहीं । इसके बाद भी इसको सजा ए काला पानी टायप नीच और गन्दे अँधेरे लोकों में बारबार फ़ेंका जायेगा । तब लाखों वर्ष में इसके पाप धुलेंगे । तब कहीं ये 84 के बाद इंसान होगा ।
प्रसून को मानों गहरी तसल्ली हुयी । उसे एक असीम शान्ति सुख सकून का अनुभव सा हुआ । उसने एक गहरी सांस भरी । मानों उसके सीने से बहुत बङा बोझ उतर गया हो । फ़िर उसने बेहद प्रसंशा से सिल्विया की ओर देखा ।
ओर बोला - कमाल है डियर ! आपने बहुत अच्छा रिसर्च किया है ।
- ओ नो प्रसून ! वह वहाँ से गुजरते दो प्रेतों को हाइ का हाथ हिलाते हुये बोली - इनफ़ेक्ट ये आदमी अपने को छटुर समझटा हय । बट होटा हय साला छूटिया । छटुर छूटिया ।
पिछले चार दिन से उदास और अभी भी बुखार में तपते प्रसून ने उसके इंगलिश टोन में कही बात को समझ लिया । और उसके मुँह से जबरदस्त ठहाका निकला । सिल्विया भी उसके साथ मुक्त भाव से हँसी । प्रसून उसकी तरफ़ हा हा हा के साथ उँगली करता हुआ बोला - यू मीन चतुर ***िया ना । प्लीज इसको एक्सप्लेन भी कर । चतुर ***िया । हा हा हा । ओ माय गाड । व्हाट अ स्पेशल वर्ड चतुर ***िया ।
उसके कहने के अन्दाज और अपनी जिन्दगी में पहली बार सुने इस अदभुत मिश्रित शब्द से प्रसून बहुत देर तक हँसता रहा । उसकी हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी । सिल्विया बार बार.. ओ प्रसून तुम भी ना डियर .. कहती हुयी उसको हाथ से बारबार चपत सा लगा देती थी । तब बहुत देर में दोनों की हँसी रुकी ।
- चतुर ***िया का मतलब है । वह फ़िर से बोली - ऐसा इंसान जो खुद ही अपने आपको समझता तो बहुत चतुर है । पर होता एकदम ***िया है । इस तरह वह मिलकर चतुर ***िया हो जाता है । जैसे ये साला हरामी सुरेश था । क्या मिला इसे ? जो इसका खुद का लक से मिला था । उससे भी हाथ धो बैठा । और लाखों साल के नरक में गया ।
दूसरे प्रसून इंसान की ये कितनी अजीब सोच है कि प्रेत या देवता etc कुछ अलग चीज होते हैं । जिस प्रकार इन लाइफ़ एक इंसान अपना स्टेंडर्ड बनाकर आफ़्टर बेड टाइम पूअर टू रिच हो जाता है । दैन ये भी आफ़्टर लाइफ़ रिजल्ट कर्मा गति होती है । बट आदमी का स्वभाव नेचर etc वही रहता है । बस जिस प्रकार पूअर से रिच बने आदमी में थोङा ठाठवाठ से रहने एण्ड अदर लाइफ़ स्टायल में चैंज हो जाता है । वही आफ़्टर लाइफ़ भी होता है । एक गरीब आदमी झोंपङे के बजाय महल में रहने लगा । साइकिल के बजाय प्लेन से चलने लगा । ये देवता हुआ । एण्ड प्रेत रिजल्ट में । वह लाइफ़ का गेम हार गया । और दर दर भटकने को मजबूर हो गया । और...
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Re: इंसाफ कुदरत का
- ओ के..ओ के. सिल्वी ! प्रसून उसे जल्दी से रोकता हुआ बोला - मैं यहाँ एक खास काम से आया हूँ । ये बहुत अच्छा हुआ । तुम मुझे मिल गयी । क्या तुम्हें पता है । यहाँ की कुछ प्रेत वहाँ । उसने महावीर के टयूब बैल की तरफ़ उँगली उठायी - वहाँ के एक आदमी को मारने या डराने धमकाने जाती हैं । मैं उनके बारे में जानना चाहता हूँ । उनसे मिलना चाहता हूँ । उनकी हेल्प भी चाहता हूँ ।
- ठीक है प्रसून ! वह उठते हुये बोली - आओ मेरे साथ ।
प्रसून उठकर खङा हो गया । उसने एक सिगरेट सुलगाई । और मार्निंग वाक से अन्दाज में उसके साथ चलने लगा । अब वह खुद को बेहद हलका महसूस कर रहा था । वह सिल्विया के साथ चलता हुआ महुआ बगीची पहुँचा । वहाँ काफ़ी संख्या में प्रेत घूम रहे थे । कपालिनी कामारिका और कंकालिनी भी वहाँ एक साथ ही किसी प्रेत से मस्ती कर रही थी । पर सिल्विया उसे महुआ बगीची से होकर निकालती हुयी आगे लेकर चलती गयी । और फ़िर एक लम्बा बंजर इलाका पार करके वे एक घने पेङों के झुरमुट से पहुँचे । जहाँ शक्तिशाली प्रेतों का स्थायी वास था । या कहिये हेड आफ़िस था । यह एकदम निर्जन क्षेत्र था । और आमतौर पर आदमी से अछूता था । इसके प्रेत एरिया होने की खबर भी स्थानीय लोगों को पता थी । अतः वे उधर जाने से बचते थे । प्रसून का वहाँ भव्य स्वागत हुआ ।
**********
अगले दिन । दोपहर के बारह बजे थे । प्रसून कामाक्षा के ऊपरी कमरे में लेटा हुआ था । और गहरी नींद में सोया हुआ था । कल सुबह भी पाँच बजे ही वह प्रेतवासा से लौटा था । सिल्विया ने उसकी मुलाकात मरुदण्डिका नामक बेहद खतरनाक प्रेतनी से कराई थी । मरुदण्डिका उसका कार्य प्रकार या पद था । वैसे उसका नाम रूपिका था । रूपिका सुलझे स्वाभाव की प्रेतनी थी । और अन्य प्रेतनियों की अपेक्षा उसमें काम भोग वासना बहुत ही कम थी । प्रेतों के आम स्वभाव से भी उसका स्वभाव अलग और हटकर था ।
मरुदण्डिका प्रेतनियाँ दरअसल वे स्त्रियाँ बनती हैं । जो अपने जीवन में सख्त मिजाज वाली होती हैं । अपने पति बच्चों और घर को अपने ही कङे अनुशासन में चलाती हैं । ये अनुशासन इतना अधिक सख्त होता है कि वे पति को अपने साथ सेक्स भी लिमिट और तरीके से करने देती हैं । जिसको सिर्फ़ औपचारिक सेक्स कह सकते हैं । ये न सिर्फ़ घर में वरन अपने स्वभाव के चलते सोसायटी में भी अपनी उपस्थिति में अनुशासन का माहौल बना देती हैं ।
इनकी धारणा होती है कि इंसान को सलीके और कायदे से इंसानियत के आधार पर जिन्दगी को जिन्दगी के नियमों से गुजारना चाहिये । फ़िर बहुत से कारणों में से किसी कारणवश ये अपनी कर्म त्रुटि से या अकाल मृत्यु से मृत्यु उपरान्त मरुदण्डिका प्रेत स्थिति में रूपान्तरण हो जाती हैं । और जैसा कि इंसानी जीवन में होता है । व्यक्ति को उसके गुण और योग्यता के आधार पर ही काम और पद सौंपा जाता है । यहाँ भी वही बात घटित होती है ।
- ठीक है प्रसून ! वह उठते हुये बोली - आओ मेरे साथ ।
प्रसून उठकर खङा हो गया । उसने एक सिगरेट सुलगाई । और मार्निंग वाक से अन्दाज में उसके साथ चलने लगा । अब वह खुद को बेहद हलका महसूस कर रहा था । वह सिल्विया के साथ चलता हुआ महुआ बगीची पहुँचा । वहाँ काफ़ी संख्या में प्रेत घूम रहे थे । कपालिनी कामारिका और कंकालिनी भी वहाँ एक साथ ही किसी प्रेत से मस्ती कर रही थी । पर सिल्विया उसे महुआ बगीची से होकर निकालती हुयी आगे लेकर चलती गयी । और फ़िर एक लम्बा बंजर इलाका पार करके वे एक घने पेङों के झुरमुट से पहुँचे । जहाँ शक्तिशाली प्रेतों का स्थायी वास था । या कहिये हेड आफ़िस था । यह एकदम निर्जन क्षेत्र था । और आमतौर पर आदमी से अछूता था । इसके प्रेत एरिया होने की खबर भी स्थानीय लोगों को पता थी । अतः वे उधर जाने से बचते थे । प्रसून का वहाँ भव्य स्वागत हुआ ।
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अगले दिन । दोपहर के बारह बजे थे । प्रसून कामाक्षा के ऊपरी कमरे में लेटा हुआ था । और गहरी नींद में सोया हुआ था । कल सुबह भी पाँच बजे ही वह प्रेतवासा से लौटा था । सिल्विया ने उसकी मुलाकात मरुदण्डिका नामक बेहद खतरनाक प्रेतनी से कराई थी । मरुदण्डिका उसका कार्य प्रकार या पद था । वैसे उसका नाम रूपिका था । रूपिका सुलझे स्वाभाव की प्रेतनी थी । और अन्य प्रेतनियों की अपेक्षा उसमें काम भोग वासना बहुत ही कम थी । प्रेतों के आम स्वभाव से भी उसका स्वभाव अलग और हटकर था ।
मरुदण्डिका प्रेतनियाँ दरअसल वे स्त्रियाँ बनती हैं । जो अपने जीवन में सख्त मिजाज वाली होती हैं । अपने पति बच्चों और घर को अपने ही कङे अनुशासन में चलाती हैं । ये अनुशासन इतना अधिक सख्त होता है कि वे पति को अपने साथ सेक्स भी लिमिट और तरीके से करने देती हैं । जिसको सिर्फ़ औपचारिक सेक्स कह सकते हैं । ये न सिर्फ़ घर में वरन अपने स्वभाव के चलते सोसायटी में भी अपनी उपस्थिति में अनुशासन का माहौल बना देती हैं ।
इनकी धारणा होती है कि इंसान को सलीके और कायदे से इंसानियत के आधार पर जिन्दगी को जिन्दगी के नियमों से गुजारना चाहिये । फ़िर बहुत से कारणों में से किसी कारणवश ये अपनी कर्म त्रुटि से या अकाल मृत्यु से मृत्यु उपरान्त मरुदण्डिका प्रेत स्थिति में रूपान्तरण हो जाती हैं । और जैसा कि इंसानी जीवन में होता है । व्यक्ति को उसके गुण और योग्यता के आधार पर ही काम और पद सौंपा जाता है । यहाँ भी वही बात घटित होती है ।
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Re: इंसाफ कुदरत का
रूपिका से प्रसून की काफ़ी देर बात होती रही । महावीर को डराने वही जाती थी । और उसे जल्द से जल्द अंजाम मौत देना ही उसका मकसद था । लेकिन समस्या ये थी कि महावीर प्रेतभाव में नहीं आ पा रहा था । उसके अन्दर रात की परिस्थितियों में घूमते रहने से भय का लगभग अभाव ही था । और किसी भी प्रेत भाव को आरोपित करने हेतु इंसान का डरपोक या भय भाव में होना आवश्यक ही होता है । रूपिका उसके घर वालों और अन्य बहुतों को भी तिगनी का नाच नचाने वाली थी । पर वहाँ भी वही प्राब्लम थी । किन्हीं नियमों के चलते वह शालिमपुर के उस आवादी क्षेत्र में तब तक ऐसा तांडव नहीं मचा सकती थी । जब तक वह स्थान एक खास भाव से दूषित न हो जाय । और दूसरे पहले के कुछ अन्य कारणों से बहाँ तांत्रिक इंतजाम थे । इसलिये बह विवशता से कसमसा रही थी ।
प्रसून ने उसकी इच्छानुसार ये सभी बाधायें खत्म करने का वादा किया । तब उसके चेहरे पर अनोखी चमक पैदा हुयी । लक्ष्य को प्राप्त करने की चमक ।
शाम के ठीक 5 बजे मोबायल के अलार्म से प्रसून की आँख खुली । वह अपने कमरे से उठकर नीचे कामाक्षा में पहुँचा । उसने चाय पी । और वहीं से कार लेकर बाजार चला गया ।
शाम आठ बजे वह वापस कामाक्षा लौटा । और सीधा अपने कमरे में चला गया । फ़िर वहाँ से निबटकर वह सीधा शालिमपुर के शमशान पहुँचा । और किसी चिता की राख को पैकेट में भरने लगा । उसने एक निगाह खोह की तरफ़ डाली । पर रत्ना उसे दिखाई न दी । और स्वयँ अभी उसकी कोई तवज्जो भी उसकी तरफ़ नहीं थी ।
इस वक्त उसने अपना हुलिया बदल सा रखा था । और आमतौर पर एक पढा लिखा मगर देहाती सा नजर आ रहा था । फ़िर सारी तैयारी के बाद वह अपने आपको बचाता हुआ शालिमपुर गाँव में जाकर ऐसे घूमने लगा । मानों किसी खास आदमी से मिलने जा रहा हो । और उसका घर आदि जानता हो । हलका अँधेरा होने से यह कोई नहीं देख पा रहा था कि उसके हाथ में थमे पैकेट से बहुत थोङी थोङी चिता की राख उसके चलने के साथ साथ जमीन पर गिरती जा रही थी । और दूसरे हाथ के टिन के डब्बे से एक महीन छेद से शराब और सुअर का खून आदि मिश्रित दृव की पतली लकीर भी गिर रही थी । जो उसने बाजार से हासिल किये थे । इस तरह उसने कुछ ही मिनटों में पूरे गाँव का चक्कर लगाया । कुछ स्थानों पर जहाँ जहाँ उसे तांत्रिक इंतजामात नजर आये । उसने जेब से एक मोटी कील निकालकर जमीन में दबा दी । और वापस निकाल ली ।
अब मरुदण्डिका और उसकी प्रेत फ़ौज आराम से निर्विघ्न गाँव पर धावा बोल सकती थी । बस उसे इसके लिये एक बार आहवान बस और करना था । ये उसका सौभाग्य ही था कि इस बीच किसी ने भी उसकी तरफ़ कोई खास ध्यान नहीं दिया था । टोका नहीं था । और उसे गाँव में ही आया कोई व्यक्ति या गाँव का ही कोई व्यक्ति समझा था ।
अब उसे आहवान के लिये किसी उचित स्थान की तलाश थी । पहले उसने सोचा कि इसके लिये गाँव से दूर हटकर किसी पेङ का चुनाव करे । मगर वैसी हालत में वह जो देखना चाहता था । उससे वंचित रह सकता था । अतः सावधानी बरतता हुआ वह महावीर के घर से थोङा हटकर अँधेरे में खङे ऊँचे और विशाल पेङ पर ऊँचा ही चढता चला गया । और बैठने योग्य घनी मजबूत डालियों का चुनाव कर उस पर बैठ गया । बस अब कामलीला शुरू होने में थोङी ही देर थी ।
यह सर्वाधिक रहस्यमय इंसान और विलक्षण योगी उस पुराने पेङ की डालियों पर किसी आसन की भांति बैठा बीज मन्त्रों के साथ शक्तिशाली प्रेत मन्त्रों का बहुत धीमे स्वर में उच्चारण करने लगा । कुछ ही क्षणों में उसे मरुदण्डिका की किलकारियाँ मारती हुयी हर्षित सेना कपालिनी कामारिका जैसे गणों के साथ ध्यान में नजर आने लगी । वे शालिमपुर पर टूट पङने को बेताब हो रहे थे । और उधर ही सरपट भागे आ रहे थे । प्रसून के होठों पर मन्द मुस्कान तैर उठी । और फ़िर कुछ ही क्षणों में शालिमपुर में ऐसे भगदङ मच गयी । जैसे अचानक आतंकवादी हमला हुआ हो । घर की औरते बच्चे आदमी बदहवास से गलियों में भागते नजर आये । भागती हुयी औरतें अपने वस्त्र उतारकर निर्वस्त्र होती जा रही थी । और पुरुषों को गन्दी गन्दी गालियाँ देती हुयी उनके पीछे भाग रही थी । अचानक इन घर की औरतों को क्या हो गया । सोचकर पुरुषों की हालत खराब थी । और वे मानों जान बचाकर भाग रहे थे । औरतें उन्हें ईंट पत्थर लात घूँसों से मार देने पर ही तुल गयी थी ।
प्रसून ने उसकी इच्छानुसार ये सभी बाधायें खत्म करने का वादा किया । तब उसके चेहरे पर अनोखी चमक पैदा हुयी । लक्ष्य को प्राप्त करने की चमक ।
शाम के ठीक 5 बजे मोबायल के अलार्म से प्रसून की आँख खुली । वह अपने कमरे से उठकर नीचे कामाक्षा में पहुँचा । उसने चाय पी । और वहीं से कार लेकर बाजार चला गया ।
शाम आठ बजे वह वापस कामाक्षा लौटा । और सीधा अपने कमरे में चला गया । फ़िर वहाँ से निबटकर वह सीधा शालिमपुर के शमशान पहुँचा । और किसी चिता की राख को पैकेट में भरने लगा । उसने एक निगाह खोह की तरफ़ डाली । पर रत्ना उसे दिखाई न दी । और स्वयँ अभी उसकी कोई तवज्जो भी उसकी तरफ़ नहीं थी ।
इस वक्त उसने अपना हुलिया बदल सा रखा था । और आमतौर पर एक पढा लिखा मगर देहाती सा नजर आ रहा था । फ़िर सारी तैयारी के बाद वह अपने आपको बचाता हुआ शालिमपुर गाँव में जाकर ऐसे घूमने लगा । मानों किसी खास आदमी से मिलने जा रहा हो । और उसका घर आदि जानता हो । हलका अँधेरा होने से यह कोई नहीं देख पा रहा था कि उसके हाथ में थमे पैकेट से बहुत थोङी थोङी चिता की राख उसके चलने के साथ साथ जमीन पर गिरती जा रही थी । और दूसरे हाथ के टिन के डब्बे से एक महीन छेद से शराब और सुअर का खून आदि मिश्रित दृव की पतली लकीर भी गिर रही थी । जो उसने बाजार से हासिल किये थे । इस तरह उसने कुछ ही मिनटों में पूरे गाँव का चक्कर लगाया । कुछ स्थानों पर जहाँ जहाँ उसे तांत्रिक इंतजामात नजर आये । उसने जेब से एक मोटी कील निकालकर जमीन में दबा दी । और वापस निकाल ली ।
अब मरुदण्डिका और उसकी प्रेत फ़ौज आराम से निर्विघ्न गाँव पर धावा बोल सकती थी । बस उसे इसके लिये एक बार आहवान बस और करना था । ये उसका सौभाग्य ही था कि इस बीच किसी ने भी उसकी तरफ़ कोई खास ध्यान नहीं दिया था । टोका नहीं था । और उसे गाँव में ही आया कोई व्यक्ति या गाँव का ही कोई व्यक्ति समझा था ।
अब उसे आहवान के लिये किसी उचित स्थान की तलाश थी । पहले उसने सोचा कि इसके लिये गाँव से दूर हटकर किसी पेङ का चुनाव करे । मगर वैसी हालत में वह जो देखना चाहता था । उससे वंचित रह सकता था । अतः सावधानी बरतता हुआ वह महावीर के घर से थोङा हटकर अँधेरे में खङे ऊँचे और विशाल पेङ पर ऊँचा ही चढता चला गया । और बैठने योग्य घनी मजबूत डालियों का चुनाव कर उस पर बैठ गया । बस अब कामलीला शुरू होने में थोङी ही देर थी ।
यह सर्वाधिक रहस्यमय इंसान और विलक्षण योगी उस पुराने पेङ की डालियों पर किसी आसन की भांति बैठा बीज मन्त्रों के साथ शक्तिशाली प्रेत मन्त्रों का बहुत धीमे स्वर में उच्चारण करने लगा । कुछ ही क्षणों में उसे मरुदण्डिका की किलकारियाँ मारती हुयी हर्षित सेना कपालिनी कामारिका जैसे गणों के साथ ध्यान में नजर आने लगी । वे शालिमपुर पर टूट पङने को बेताब हो रहे थे । और उधर ही सरपट भागे आ रहे थे । प्रसून के होठों पर मन्द मुस्कान तैर उठी । और फ़िर कुछ ही क्षणों में शालिमपुर में ऐसे भगदङ मच गयी । जैसे अचानक आतंकवादी हमला हुआ हो । घर की औरते बच्चे आदमी बदहवास से गलियों में भागते नजर आये । भागती हुयी औरतें अपने वस्त्र उतारकर निर्वस्त्र होती जा रही थी । और पुरुषों को गन्दी गन्दी गालियाँ देती हुयी उनके पीछे भाग रही थी । अचानक इन घर की औरतों को क्या हो गया । सोचकर पुरुषों की हालत खराब थी । और वे मानों जान बचाकर भाग रहे थे । औरतें उन्हें ईंट पत्थर लात घूँसों से मार देने पर ही तुल गयी थी ।
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(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
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Re: इंसाफ कुदरत का
प्रसून खुलकर किसी राक्षस की भांति अट्टाहास करना चाहता था । फ़िर बङी मुश्किल से उसने इस इच्छा को नियन्त्रित किया । और अचानक वह बदले भाव में रो पङा । उसके आँसू निकल आये । फ़िर वह भर्राये स्वर में बोला - रत्ना बहन ! मैंने तेरे ऊपर हुये जुल्म के बदले का बिगुल बजा दिया है । बस अपने इस भाई को थोङी मोहलत और दे दे ।
अगले दिन दोपहर के बारह बजे थे । लेकिन दिन का समय किसी भी अच्छे योगी के लिये रात के समान ही होता है । सो वह गहरी नींद में सोया हुआ था । और घोङे बेचकर सोया हुआ था । पिछले कुछ दिनों से जबसे वह रत्ना के जीवन से रूबरू हुआ था । उसकी आत्मा पर एक बोझ सा लदा हुआ था । कभी कभी कितने अजीब क्षण जीवन में आते हैं । क्यों ये हवसी इंसान ऐसा जुल्म करता है । जिसकी कोई इंतिहा नहीं । जिसकी शायद कोई सुनवाई नहीं ।
कितनी सही बात कही थी किसी ने - कुछ न कहने से भी छिन जाता है राजाजी सुखन । जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है । हन्ते को हनिये । इसमें दोष न जनिये । उसका दिल यही कर रहा था । उसके हाथ में सेमी ओटोमैटिक रायफ़ल होती । और वह रत्ना के अक्यूज्ड को सरेआम भून देता । पर इसमें तमाम कानूनी झमेले थे । शरीफ़ इंसान को डराने दहशत में रखने वाले कानूनी झमेले । और गुनहगारों की मदद करने वाले कानूनी झमेले ।
शालिमपुर में कोई एक घण्टा प्रेत सेना उत्पात मचाती रही । फ़िर वापस चली गयी । तब तक वह बराबर पेङ पर ही शान्त बैठा रहा । पर उसकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया । और जाने का सवाल भी नहीं था ।
एक बजे के करीब उसकी मोबायल के अलार्म से आँख खुली । और वह आँखे मलता हुआ उठकर बैठ गया । चाँऊ बाबा उसके लिये गरम चाय ले आया था । तब उसे पीते हुये उसने अपना मेल चेक किया । और एक दिलचस्प मेल पर अटक कर रह गया । मेल भेजने वाली उसके लिये अज्ञात थी ।
लिखा था - हेल्लो प्रसून जी ! मै आपको बेहतर से जानती हूँ । कैसे ? उसको छोडिये । मैं आपसे अपने दिल की ये बात इसलिये कह बैठी । क्यूँ कि पिछ्ले हफ़्ते सपने में मैंने 1 अजनबी से सेक्स किया था । मैंने आपको देखा तो नहीं है । लेकिन मैं आपके बारे में अक्सर सोचती रहती हूँ । सपने में बबलू घर पर नहीं था । मेरा छोटा बच्चा सोया हुआ था । और मैं अपने बेडरूम में किसी अजनबी से सेक्स कर रही थी । सेक्स के दौरान मेरे मुँह से ये निकल रहा था - प्रसून जी ! जरा आराम से प्लीज ! उस दृश्य में कोई बहुत सुन्दर आदमी था । जिसे मैं प्रसून जी कहकर बुला रही थी । सपने में वो व्यक्ति बेड पर बिलकुल निर्वस्त्र लेटा हुआ था । मैं उसकी तरफ़ मुँह करके उसकी गोद में थी । उसका पौरुषत्व मेरे इन था । उसके हाथ मेरे नितम्बों पर थे । मैं अपने हाथों से उसके बाल सहला रही थी । मेरा एक उरोज उसके... । वो मेरे...को... कर.... पी रहा था ।
प्रसून जी ! जो मुझे सपना पिछ्ले हफ़्ते आया । मैंने ज्यूँ का त्यूँ बता दिया । ये सपना क्यूँ आया ? क्या ये सिर्फ़ 1 इत्तफ़ाक था । या सिर्फ़ 1 कल्पना । ये मुझे पता नहीं । मैंने आपको तो कभी देखा नहीं । लेकिन जिसे मैं सपने में प्रसून जी कहकर बुला रही थी । वो आदमी बहुत ही जवान और सुन्दर था । अब आप इस रहस्य से पर्दा उठाईये ।
मेल पढकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आयी । और फ़िर वह..आय लव यू प्रसून..हाय डियर..हाय डार्लिंग..जैसे तमाम मेल्स को बिना ओपन किये ही सिलेक्ट करता गया । और फ़िर डिलीट कर दिया । उसे हैरत थी । वह कई बार अपनी मेल आई डी और फ़ोन नम्बर बदल चुका था । फ़िर भी लोगों को पता चल ही जाता था । इसका कारण भी बह जानता था । आप मुझे बता दीजिये । कसम से किसी से नहीं कहूँगा । जैसा प्रोमिस करने वाले भी एक दूसरे को और दूसरा तीसरे को..इस तरह सैकङों लोग जान जाते थे ।
उसने 7 इंच स्क्रीन की वह पी सी नोटबुक बैग में डाल दी ।
और सिगरेट सुलगाता हुआ खिङकी के पास आकर बाहर शालिमपुर की तरफ़ देखने लगा । कल की ही रात शालिमपुर वालों की नींद हराम नहीं हुयी होगी । बल्कि बहुत समय के लिये हो गयी थी । वह देर तक ऐसे ही विचारों में खोया रहा । और शाम होने का इंतजार कर रहा था ।
उसने रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया । दोपहर के तीन बजने वाले थे । तभी उसे सीङियों पर किसी के आने की आहट हुयी । और अगले कुछ ही मिनटों में बदहवास सा महावीर दो अन्य आदमियों के साथ आया । उसके चेहरे पर हवाईयाँ उङ रही थी । वह बिना किसी भूमिका के - प्रसून जी जल्दी से मेरे साथ चलिये । की टेर लगाने लगा ।
बङी मुश्किल से प्रसून ने उसे शान्त किया । और सब बात बताने को कहा । उसके जल्दी चलिये जल्दी चलिये पर उसने तर्क दिया । बिना बात समझे । बिना तैयारी के नहीं जाया जा सकता । तब वे तीनों वहीं तख्त पर बैठ गये । और महावीर प्रसून को कल की घटना बताने लगा । उसकी आँखों के सामने कल का दृश्य जीवन्त हो उठा ।
अगले दिन दोपहर के बारह बजे थे । लेकिन दिन का समय किसी भी अच्छे योगी के लिये रात के समान ही होता है । सो वह गहरी नींद में सोया हुआ था । और घोङे बेचकर सोया हुआ था । पिछले कुछ दिनों से जबसे वह रत्ना के जीवन से रूबरू हुआ था । उसकी आत्मा पर एक बोझ सा लदा हुआ था । कभी कभी कितने अजीब क्षण जीवन में आते हैं । क्यों ये हवसी इंसान ऐसा जुल्म करता है । जिसकी कोई इंतिहा नहीं । जिसकी शायद कोई सुनवाई नहीं ।
कितनी सही बात कही थी किसी ने - कुछ न कहने से भी छिन जाता है राजाजी सुखन । जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है । हन्ते को हनिये । इसमें दोष न जनिये । उसका दिल यही कर रहा था । उसके हाथ में सेमी ओटोमैटिक रायफ़ल होती । और वह रत्ना के अक्यूज्ड को सरेआम भून देता । पर इसमें तमाम कानूनी झमेले थे । शरीफ़ इंसान को डराने दहशत में रखने वाले कानूनी झमेले । और गुनहगारों की मदद करने वाले कानूनी झमेले ।
शालिमपुर में कोई एक घण्टा प्रेत सेना उत्पात मचाती रही । फ़िर वापस चली गयी । तब तक वह बराबर पेङ पर ही शान्त बैठा रहा । पर उसकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया । और जाने का सवाल भी नहीं था ।
एक बजे के करीब उसकी मोबायल के अलार्म से आँख खुली । और वह आँखे मलता हुआ उठकर बैठ गया । चाँऊ बाबा उसके लिये गरम चाय ले आया था । तब उसे पीते हुये उसने अपना मेल चेक किया । और एक दिलचस्प मेल पर अटक कर रह गया । मेल भेजने वाली उसके लिये अज्ञात थी ।
लिखा था - हेल्लो प्रसून जी ! मै आपको बेहतर से जानती हूँ । कैसे ? उसको छोडिये । मैं आपसे अपने दिल की ये बात इसलिये कह बैठी । क्यूँ कि पिछ्ले हफ़्ते सपने में मैंने 1 अजनबी से सेक्स किया था । मैंने आपको देखा तो नहीं है । लेकिन मैं आपके बारे में अक्सर सोचती रहती हूँ । सपने में बबलू घर पर नहीं था । मेरा छोटा बच्चा सोया हुआ था । और मैं अपने बेडरूम में किसी अजनबी से सेक्स कर रही थी । सेक्स के दौरान मेरे मुँह से ये निकल रहा था - प्रसून जी ! जरा आराम से प्लीज ! उस दृश्य में कोई बहुत सुन्दर आदमी था । जिसे मैं प्रसून जी कहकर बुला रही थी । सपने में वो व्यक्ति बेड पर बिलकुल निर्वस्त्र लेटा हुआ था । मैं उसकी तरफ़ मुँह करके उसकी गोद में थी । उसका पौरुषत्व मेरे इन था । उसके हाथ मेरे नितम्बों पर थे । मैं अपने हाथों से उसके बाल सहला रही थी । मेरा एक उरोज उसके... । वो मेरे...को... कर.... पी रहा था ।
प्रसून जी ! जो मुझे सपना पिछ्ले हफ़्ते आया । मैंने ज्यूँ का त्यूँ बता दिया । ये सपना क्यूँ आया ? क्या ये सिर्फ़ 1 इत्तफ़ाक था । या सिर्फ़ 1 कल्पना । ये मुझे पता नहीं । मैंने आपको तो कभी देखा नहीं । लेकिन जिसे मैं सपने में प्रसून जी कहकर बुला रही थी । वो आदमी बहुत ही जवान और सुन्दर था । अब आप इस रहस्य से पर्दा उठाईये ।
मेल पढकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आयी । और फ़िर वह..आय लव यू प्रसून..हाय डियर..हाय डार्लिंग..जैसे तमाम मेल्स को बिना ओपन किये ही सिलेक्ट करता गया । और फ़िर डिलीट कर दिया । उसे हैरत थी । वह कई बार अपनी मेल आई डी और फ़ोन नम्बर बदल चुका था । फ़िर भी लोगों को पता चल ही जाता था । इसका कारण भी बह जानता था । आप मुझे बता दीजिये । कसम से किसी से नहीं कहूँगा । जैसा प्रोमिस करने वाले भी एक दूसरे को और दूसरा तीसरे को..इस तरह सैकङों लोग जान जाते थे ।
उसने 7 इंच स्क्रीन की वह पी सी नोटबुक बैग में डाल दी ।
और सिगरेट सुलगाता हुआ खिङकी के पास आकर बाहर शालिमपुर की तरफ़ देखने लगा । कल की ही रात शालिमपुर वालों की नींद हराम नहीं हुयी होगी । बल्कि बहुत समय के लिये हो गयी थी । वह देर तक ऐसे ही विचारों में खोया रहा । और शाम होने का इंतजार कर रहा था ।
उसने रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया । दोपहर के तीन बजने वाले थे । तभी उसे सीङियों पर किसी के आने की आहट हुयी । और अगले कुछ ही मिनटों में बदहवास सा महावीर दो अन्य आदमियों के साथ आया । उसके चेहरे पर हवाईयाँ उङ रही थी । वह बिना किसी भूमिका के - प्रसून जी जल्दी से मेरे साथ चलिये । की टेर लगाने लगा ।
बङी मुश्किल से प्रसून ने उसे शान्त किया । और सब बात बताने को कहा । उसके जल्दी चलिये जल्दी चलिये पर उसने तर्क दिया । बिना बात समझे । बिना तैयारी के नहीं जाया जा सकता । तब वे तीनों वहीं तख्त पर बैठ गये । और महावीर प्रसून को कल की घटना बताने लगा । उसकी आँखों के सामने कल का दृश्य जीवन्त हो उठा ।
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