इंसाफ कुदरत का

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Re: इंसाफ कुदरत का

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उन सबके देखे महावीर दिलेर था । वह भूत प्रेतों को नहीं मानता था । दूसरे कभी कभी वह एक गिरोह के साथ डकैती डालने में भी बतौर डकैत शामिल रहता था । अतः रात बिरात ऐसे बीहङों पर रहने का उसे खासा तर्जुबा था । उसने भूत छोङो । आज तक भूत का चुहिया जैसा बच्चा भी कहीं नहीं देखा था ।
अतः अपने भाईयों के डरपोक होने की हँसी उङाता हुआ वह टयूबबैल पर खुद लेटने लगा । और आज उसे दस दिन हो गये थे । इन दस दिनों में उसे एक काली सी छाया सिर्फ़ सपने में दिखाई दी । वह एक भयंकर काले रंग की पूर्ण नग्न औरत थी । जो हाथ में एक बङा सा हड्डा पकङे रहती थी । उसको देखते ही वह हङबङाकर जाग गया था । और जब वह उठा । तब वह पसीने से तरबतर था । उसकी साँस धौंकनी के समान चल रही थी । पर जागने पर कहीं कुछ न था । जैसा कि उसके भाई कहते थे । फ़िर ऐसा तीन चार बार हुआ था । बस एक बार ये अन्तर हुआ कि जब वह काली औरत दिखी । तो उसके स्तन और कमर के आसपास काफ़ी बङे बङे बाल थे । मानों वह बालों से बना कोई वस्त्र पहने हो । बस इतना ही दृश्य उसे दिखा था ।

महावीर अपना लायसेंसी रिवाल्वर हमेशा साथ रखता था । अतः यहाँ भी सोते समय वह उसे पूर्ण ऐहतियात के साथ रखने लगा । पर आज तो उसे नींद ही नहीं आ रही थी । वह एक अजीव सी बैचेनी महसूस कर रहा था । अतः वह चारपाई पर उठकर बैठ गया । और बीङी सुलगाकर उसका कश लेते हुये दिमाग को संयत करने की कोशिश करने लगा । फ़िर उसने थोङी दूर स्थिति महुआ बगीची को देखा । बगीची के आसपास एकदम शान्ति छाई हुयी थी । रात के काले अँधेरे में सभी पेङ रहस्यमय प्रेत के समान शान्त खङे थे ।
वह उठकर टहलने लगा । रिवाल्वर उसने कमर में लगा ली । और बीङी का धुँआ छोङते हुये इधर उधर देखने लगा ।
तभी उसकी निगाह यमुना पारी शमशान की तरफ़ गयी । और वह बुरी तरह चौक गया । नीम शीशम के दो पेङो के बीच एक मँझले कद की औरत दो छोटे बच्चों के साथ घूम रही थी । अभी लगभग बारह बजने वाले थे । और यह औरत अकेली यहाँ इन छोटे छोटे बच्चों के साथ क्या कर रही थी । जहाँ इस वक्त कोई आदमी भी अकेले में आता हुआ घबराता है । यह ठीक वैसा ही था । जैसे कोई औरत अपने खेलते हुये बच्चों की निगरानी कर रही हो ।
वह इसका पता लगाने के लिये वहाँ जाना चाहता था । पर उसकी हिम्मत न हुयी । वह कुछ देर तक उन्हें देखता रहा । फ़िर वे लोग अंधेरे में गायब हो गये । दो बच्चों के साथ इस रहस्यमय औरत ने उसे और भी भयानक सस्पेंस में डाल दिया था । क्या माजरा था । क्या रहस्य था । उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था ।
अब उसे भी टयूब बैल पर लेटते हुये भय लगने लगा था । पर वह यह बात भला किससे और कैसे कहता । अतः उसे मजबूरी में लेटना पङता था । पर वह बिलकुल नहीं सो पाता था । वह काली नग्न औरत और वह दो बच्चों वाली रहस्यमय औरत उसे अक्सर दिखायी देते थे । जाने किस अज्ञात भावना से अब तक वह यह बात किसी को बता भी नहीं पाया ।
इतना बताकर वह चुप हो गया । और आशा भरी नजरों से प्रसून को देखने लगा । पर उसे उसके चेहरे पर कोई खास भाव नजर नहीं आया । जबकि वह कुछ जानने की आशा कर रहा था । तब उसने अपनी तरफ़ से ही पूछा ।
- कुछ खास नहीं । प्रसून लापरवाही से बोला - कभी कभी ऐसे भृम हो ही जाते हैं । अब जैसे तेज धूप में रेगिस्तान में पानी नजर आता है । पर होता नहीं है । जिन्दगी एक सपना ही तो है । और सपने में कुछ भी दिखाई दे सकता है । कुछ भी ।
महावीर उसके उत्तर से संतुष्ट तो नहीं हुआ । मगर आगे कुछ नहीं बोला । दरअसल उसे ये अहसास भी हो गया था कि प्रसून अपने तेज बुखार के चलते अशान्त था । और बात करने में परेशानी अनुभव कर रहा था । बस शिष्टाचार के चलते उसे मना नहीं कर पा रहा था ।
अतः उसने भी इस समय उसे तंग करना उचित नहीं समझा । और फ़िर किसी समय आने की सोचकर चला गया ।
वास्तव में यही सच था । प्रसून पर एक आंतरिक चिङचिङाहट सी छायी हुयी थी । पर ऊपर से वह एकदम शान्त लग रहा था । महावीर के जाने के बाद उसने चारपायी पर लेटकर आँखें बन्द कर लीं ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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प्रसून चुपचाप लेटा हुआ था । उसकी आँखों में नींद नहीं थी । जबकि वह गहरी नींद सो जाना चाहता था । बल्कि वह तो अब हमेशा के लिये ही सो जाना चाहता था । जाने क्यों जिन्दगी से यकायक ही उसका मोहभंग हो गया था । वह इस जीवन से ऊब चुका था ।
उसने मोबायल निकालकर उसमें टाइम देखा । रात का एक बजने वाला था । रात काफ़ी गहरा चुकी थी । चारों तरफ़ सन्नाटा छाया हुआ था । सब नींद के आगोश में जा चुके थे । उसने एक सिगरेट सुलगायी । और बैचेनी से फ़िर से उठकर बैठ गया । उसका मुँह यमुना पारी शमशान की तरफ़ था । शमशान में भी पूर्ण शान्ति सन्नाटे का माहौल था । तमाम प्रेत इधर उधर अपनी रात्रिचर्या हेतु चले गये थे । बस राख बना सुरेश ही वहाँ अकेला पङा था ।
रात का ये माहौल कभी उसे बेहद पसन्द था । कितनी रहस्यमय होती है । ये रात भी । जो इंसान के लिये रात होती है । वह सिद्धों योगियों सन्तों के लिये दिन होता है । और जो इंसान के लिये दिन होता है । वह योगियों की रात होती है । कोई मामूली चीज नहीं होती है रात । रात में अधिकांश इंसानों की उनके सो जाने से संसार में फ़ैली वासनायें सिमट जाती हैं । और तब दो ही लोग जागते है । भोगी और योगी । काम इच्छा के भोगी रात के शान्त शीतल माहौल में मदन उत्सव मनाते हैं । और योगी अपनी शक्तियों को जगाते हैं । बस इंसानों के स्तर पर रात इन्हीं दो बातों के लिये ही होती है । लेकिन इसके अतिरिक्त रात के रहस्यमय आवरण में क्या क्या छुपा होता है । क्या क्या और होता है । ये बिरला ही जान पाते हैं ।
अतः रात उसके लिये कभी प्रेमिका के समान थी । एक शान्त प्रेमिका । जो प्रेमी का भाव समझकर उसकी इच्छानुसार समर्पण के लिये उसके सामने बिछी रहती है ।

बुखार बिलकुल भी कम नहीं हुआ था । बल्कि शायद और अधिक तेज हो गया था । पर वह एकदम शान्त था । वह चाहता तो बुखार दस मिनट में उतर जाता । इसी पहाङी से कुछ दूर झाङियों में वह औषधीय पौधे उसने देखे थे । जिनका सिर्फ़ एक बार काङा पीने से बुखार दस मिनट में उतर जाता । इसके अलावा भी वह आराम से किसी डाक्टर से दबा ले सकता था । पर ये दोनों ही काम वह नहीं कर सकता था ।
इनको करने का मतलब था । फ़ेल होना । योग की परीक्षा में फ़ेल हो जाना । अतः वह शान्त था । और शरीर की प्रयोगशाला में शरीर द्वारा ही शरीर को विकार रहित करने का सफ़ल प्रयोग देख रहा था । वह उन घटकों को स्वयँ शीघ्र भी क्रियाशील कर सकता था । जो उसे जल्द स्वस्थ कर सकते थे । पर ये भी गलत था । एक शान्त योगी के साथ प्रकृति कैसे अपना कार्य करती है । वह इस परीक्षण से गुजर रहा था ।
उसकी निगाह फ़िर से शमशान की तरफ़ गयी । और अबकी बार वह चौंक गया ।
उसके सामने एक अजीव दृश्य था । कपालिनी कामारिका और कंकालिनी नाम से पुकारी जाने वाली तीन गणें शमशान वाले रास्ते पर जा रही थीं । पर उसके लिये ये चौंकने जैसी कोई बात नहीं थी । चौंकने वाली बात ये थी कि वे रास्ते से कुछ हटकर खङी एक मँझले कद की औरत को धमका सा रही थी । औरत के पास ही दो छोटे बच्चे खङे थे । वह औरत उनके हाथ जोङ रही थी । कामारिका आगे खङी थी । और उस औरत के गाल और स्तनों में थप्पङ मार रही थी । फ़िर उसने औरत के बाल पकङ लिये । और तेजी से उसे घुमा दिया । फ़िर कपालिनी और कंकालिनी उसको लातों से मारने लगी ।

प्रसून की आँखों में खून उतर आया । उसका दहकता बदन और भी दुगने ताप से तपने लगा । शान्त योगी एकदम खूँखार सा हो उठा । फ़िर उसने अपने आपको संयत किया । और ध्यान वहीं केन्द्रित कर दिया । अब उसे वहाँ की आवाज सुनाई देने लगी ।
- नहीं नहीं ! वह औरत हाथ जोङते हुये चिल्ला रही थी - मुझ पर रहम करो । मेरे बच्चों पर रहम करो ।
पर खतरनाक पिशाचिनी सी कामारिका कोई रहम दिखाने को तैयार ही न थी । उसने दाँत चमकाते हुये जबङे भींचे । और जोरदार थप्पङ उस औरत के गाल पर फ़िर से मारा । इस पैशाचिक थप्पङ के पङते ही वह औरत फ़िरकनी के समान ही अपने स्थान पर घूम गयी । उसकी चीखें निकलने लगी । उसके बच्चे भी माँ माँ करते हुये रो रहे थे । पर डायनों के दिल में कोई रहम नहीं आ रहा था ।
- भगवान..हे भगवान..मुझे बचा ! वह औरत आसमान की तरफ़ हाथ उठाकर रोते हुये बोली - मुझे बचा । कम से कम मेरे बच्चों पर रहम कर मालिक ।
- मूर्ख जीवात्मा ! कामारिका दाँत पीसकर बोली - कहीं कोई भगवान नहीं है । भगवान सिर्फ़ एक कल्पना है । चारों तरफ़ प्रेतों का राज चलता है । तू कब तक यूँ भटकेगी ।
- ये ऐसे नहीं मानेगी ! कपालिनी आपस में अपने हाथ की मुठ्ठियाँ बजाते हुये बोली ।
फ़िर उसने उसके दोनों बच्चे उठा लिये । और गेंद की तरह हवा में उछालने लगी । बच्चे अरब देशों में होने वाली ऊँट दौङ पर बैठे बच्चों के समान चिंघाङते हुये जोर जोर से रोने लगे । उधर कंकालिनी ने वापिस उसे लात घूँसों पर रख लिया ।
प्रसून को अब सिर्फ़ उस औरत के मुँह से भगवान और मेरे बच्चे तथा दोनों माँ बच्चों के चीखने चिल्लाने की ही आवाज सुनाई दे रही थी । तीनों डायनें मुक्त भाव से अट्टाहास कर रही थी ।
प्रसून की आँखे लाल अंगारा हो गयी । उसका जलता बदन थरथर कांपने लगा । यहाँ तक कि उसे समझ में नहीं आया । क्या करे । उसके पास कोई यन्त्र न था । कोई तैयारी न थी । वे सब वहुत दूर थे । और जब तक वह यमुना पार करके वहाँ पहुँचता । तब तक तो वो डायनें शायद उसका भुर्ता ही बना देने वाली थीं ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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उसने आँखे बन्द कर ली । और उसके मुँह से लययुक्त महीन ध्वनि निकलने लगी - अलख .. बाबा .. अलख .. बाबा .. अलख ।
एक मिनट बाद ही उसने आँखें खोल दी । उसके चेहरे पर आत्मविश्वास लौट आया था । उसने हाथ की मुठ्ठी बाँधी । और घङी वाले स्थान तक हाथ के रूप में औरत की कल्पना की । फ़िर उसने सामने देखा । कामारिका कमर पर हाथ टिकाये दोनों डायनों द्वारा औरत और बच्चों को ताङित होते हुये देख रही थी । उसने उसी को लक्ष्य किया ।
फ़िर उसने मुठ्ठी से उँगली का पोरुआ निकाला । और नारी स्तन के रूप में कल्पना की । फ़िर उसने वह पोरुआ बेदर्दी से दाँतों से चबा लिया ।
- हा..आईऽऽऽ ! कामारिका जोर से चिल्लाई । उसने अपने स्तन पर हाथ रखा । और चौंककर इधर उधर देखने लगी । वह पीङा का अनुभव करते हुये अपना स्तन सहला रही थी । कपालिनी कंकालिनी भी सहमकर उसे देखने लगी ।
प्रसून ने उसके दूसरे स्तन का भाव किया । और अबकी दुगनी निर्ममता दिखाई । कामारिका अबकी भयंकर पीङा से चीख उठी । उसने दोनों स्तन पर हाथ रख लिया । और लङखङाकर गिरने को हुयी । दोनों डायनें भौंचक्का रह गयी ।
फ़िर कपालिनी संभली । और दाँत पीसकर बोली - हरामजादे ! कौन है तू ? सामने क्यों नहीं आता । जिगरवाला है । तो सामने आ.. नामर्द ।
तभी कपालिनी को अपने गाल पर जोरदार थप्पङ का अहसास हुआ । थप्पङ की तीवृता इतनी भयंकर थी कि वह झूमती हुयी सी उसी औरत के कदमों में जा गिरी । जिसका अभी अभी वह कचूमर निकालने पर तुली थी ।
- बताते क्यों नहीं ! कामारिका फ़िर से संभलकर सहमकर बोली..त त तुम..आप..आप कौन हो ?
- इधर देख ! प्रसून के मुँह से मानसिक आदेश युक्त बहुत ही धीमा स्वर निकला ।
तीनों ने चौंककर उसकी दिशा में ठीक उसकी तरफ़ देखा । फ़िर - योगी है..कहकर वे बेशर्म स्ट्रिप डांसरों के समान उसकी तरफ़ अश्लील भाव से स्तन हिलाती हुयी भाग गयीं ।

लम्बे लम्बे डग भरता हुआ वह तेजी से उसी तरफ़ चला जा रहा था । जहाँ अभी अभी उसने वह रहस्यमय नजारा देखा था । हालांकि अब वह बहुत ज्यादा उसके लिये रहस्यमय भी नहीं था । वह बहुत कुछ समझ भी चुका था । पर रात के गहन अँधेरे में सन्नाटे में एक प्रेतनियों के आगे लाचार गिङगिङाती औरत और उसके छोटे बच्चों ने उसकी खासी दिलचस्पी जगायी थी । आखिर पूरा मामला क्या था ? कौन थी वह ? और वहाँ क्यों थी । जो जिन्दगी का आखिरी पढाव होता है ।
यही सब विचार उसके दिमाग में तेजी से चक्कर काट रहे थे । कैसा रहस्यमय है ये पूरा जीवन भी । हमसे चार कदम दूर ही जिन्दगी क्या क्या खेल खेल रही है । क्या खेल खेलने वाली है ? शायद कोई नहीं जान पाता । खुद उसने ही थोङी ही देर पहले नहीं सोचा था कि वह यहाँ अकारण ही यहाँ आयेगा । उसे जलती लाश के बारे में मालूमात होगा । पर हुआ था । सब कुछ थोङी देर पहले ही हुआ था ।
चलते चलते वह ठीक उसी जगह आ गया । जहाँ टीले पर वह औरत शान्त बैठी हुयी थी । उसके बच्चे वहीं पास में खेल रहे थे । प्रसून उनकी नजर बचाता हुआ उन्हें छुपकर देखने लगा । कुछ देर शान्ति से उसने पूरी स्थिति का जायजा लिया ।
टीला मुर्दा जलाने के स्थान से महज सौ मीटर ही दूर था । औरत और बच्चों को देखकर जाने किस भावना से उसके आँसू बहने लगे । फ़िर उसने अपने आपको नियन्त्रित किया । और अचानक ही किसी प्रेत के समान उस औरत के सामने जा प्रकट हुआ । वह तुरन्त सहमकर खङी हो गयी । और बच्चों का हाथ थामकर चलने को हुयी ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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कौन थीं ये ? उसने खुद ही जानबूझ कर मूर्खतापूर्ण प्रश्न किया - अभी अभी जो..।
वह एकदम से चौंकी । उसने गौर से प्रसून को देखा । पर वह कुछ न बोली । उसने बात को अनसुना कर दिया । और तेजी से वहाँ से जाने को हुयी ।
प्रसून ने असहाय भाव से हथेलियाँ आपस में रगङी । उसकी बेहद दुखी अवस्था देखकर वह यकायक कुछ सोच नहीं पा रहा था । फ़िर वह सावधानी से मधुर आवाज में बोला - ठहरो बहन । कृपया । मैं उनके जैसा नहीं हूँ ।
वह ठिठककर खङी हो गयी । उसके चेहरे पर गहन आश्चर्य था । वह बङे गौर से प्रसून को देख रही थी । और बारबार देख रही थी । और फ़िर अपने को भी देख रही थी । फ़िर वह कंपकंपाती आवाज में बोली - अ अ आप भगवान जी हो क्या ? मनुष्य रूप में ।
प्रसून के चेहरे पर घोर उदासी छा गयी । वह उसी टीले पर बैठ गया । उसने एक निगाह उन मासूम बच्चों पर डाली । फ़िर भावहीन स्वर में बोला - नहीं ।

औरत ने बच्चों को फ़िर से छोङ दिया था । वह असमंजस की अवस्था में इधर उधर देख रही थी । प्रसून उसके दिल की हालत बखूबी समझ रहा था । और इसीलिये वह बात को कैसे कहाँ से शुरू करे । तय नहीं कर पा रहा था । यकायक उस औरत के चेहरे पर विश्वास सा जगा ।
और वह कुछ चकित सा होकर बोली - आप मुझे देख सकते हो । और इन । उसने बच्चों की तरफ़ उँगली उठाई - दो बच्चों को भी ।
प्रसून ने स्नेह भाव से सहमति में सिर हिलाया । पर उस औरत के चेहरे पर अभी भी हैरत थी ।
फ़िर वह बोली - तब और सब क्यों नहीं देख पाते ?
- शायद इसलिये । वह जल चुकी चिता पर निगाह फ़ेंकता हुआ बुझे स्वर में बोला - क्योंकि इंसान सत्य नहीं । सपना देखना अधिक पसन्द करता है । वह जीवन भर सपने में जीता है । सपने में ही मर जाता है ।
- मेरा नाम रत्ना है । उसके मुर्दानी चेहरे पर बुझी राख में इक्का दुक्का चमकते कणों के समान चमक पैदा हुयी । फ़िर वह वहीं उसके सामने जमीन पर ही बैठ गयी ।
प्रसून ने एक सिगरेट सुलगाई । और गहरा कश लिया । जाने क्यों दोनों के बीच एक अजीब सा संकोच हावी हो रहा था । बहुत दिनों बाद रत्ना को कोई उसके हाल पूछने वाला हमदर्द मिला था । वह सब कुछ बताना चाहती थी । पर बता नहीं पा रही थी । कई महीनों बाद उसे कोई इंसान मिला था । कई महीनों क्या ? शायद इस जीवन में ही पहली बार । हैवानों से तो उसका रोज का ही वास्ता था ।
- आपने ही । वह अचानक भय से झुरझुरी लेती हुयी बोली - शायद मुझे उनसे अभी अभी बचाया था ?
प्रसून ने इंकार में सिर हिलाया । उसने दूर विचरते प्रेतों को देखा । और आसमान की ओर उँगली उठा दी - उसने । बहन उसने बचाया है तुझे । सबको बचाने वाला वही है ।
यकायक रत्ना का चेहरा दुख से बिगङ गया । उसके आँसू नहीं आ सकते थे । फ़िर भी प्रसून को लगा । मानों उसका चेहरा आँसुओं में डूबा हो । फ़िर वह भर्राये हुये मासूम स्वर में बोली - और मारने वाला ?
प्रसून को एक झटका सा लगा । कितना बङा सत्य कह रही थी वो । वो सत्य जो उसे जिन्दगी ने दिखाया था । यकायक उसे कोई जबाब न सूझा । शायद जबाब था भी नहीं उसके पास ।
- कितना समय हो गया ? फ़िर वह भावहीन स्वर में बोला ।
- पाँच महीने..से कुछ ज्यादा ।
- और तुम्हारे पति ? वो फ़िर से चिता को देखता हुआ बोला - वो कहाँ हैं ?
अबकी वह फ़फ़क फ़फ़क कर आँसू रहित रोने लगी । प्रसून ने उसे रोने दिया । उसका खाली हो जाना जरूरी था । वह बहुत देर तक रोती रही । बच्चे उसे रोता हुआ देखकर उसके ही पास आ गये थे । और प्रसून को ही सहमे सहमे से देख रहे थे । प्रसून की समझ में नहीं आ रहा था । वह क्या करे ।
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कुछ देर बाद वह चुप हो गयी । प्रसून को इसी का इंतजार था । उसने रत्ना से - सुनो बहन कहा । रत्ना ने उसकी तरफ़ देखा । प्रसून ने अपनी झील सी गहरी शान्त आँखें उसकी आँखों में डाल दी । रत्ना 0 शून्य होती चली गयी । शून्य । सिर्फ़ शून्य । शून्य ही शून्य ।

अब उसकी जिन्दगी का पूरा ब्यौरा प्रसून के दिमाग में कापी हो चुका था । वह दुखी जीवात्मा कुछ भी बताने में असमर्थ थी । और प्रसून को उस तरह उससे जानने की जिज्ञासा भी नहीं थी । वह कुछ ही देर में सामान्य हो गयी । उसे एकाएक ऐसा लगा था । मानों गहरी नींद में सो गयी थी । शायद इस नयी अदभुत जिन्दगी में । शायद इस जिन्दगी से पहले भी । उसे ऐसी भरपूर नींद कभी नहीं आयी थी । वह अपने आपको तरोताजा महसूस कर रही थी ।
- कहाँ रहती हो आप । वह स्नेह से बोला - और खाना ?
अब वह लगभग सामान्य थी । प्रसून के कहाँ रहती हो । कहते ही उसकी निगाह खोह नुमा एक ढाय पर गयी । और खाना कहते ही उसने स्वतः ही चिता की तरफ़ देखा । प्रसून उसके दोनों ही मतलब समझ गया । और यहाँ रहने का कारण भी समझ गया ।
- लेकिन । वह फ़िर से बोला - बच्चे । बच्चे क्या खाते हैं ?
उसके चेहरे पर अथाह दुख सा लहराया । स्वतः ही उसकी निगाह त्याज्य मानव मल पर गयी । प्रसून बेबसी से उँगलिया चटकाने लगा । उसके चेहरे पर गहरी पीङा सी जागृत हुयी । सीधा सा मतलब था । उन्होंने बहुत दिनों से अच्छा कुछ भी नहीं खाया था ।
उसने आसपास निगाह डाली । और फ़िर चलता हुआ एक आम के पेङ से पहुँच गया । उसे किसी सूख चुकी आम डाली की तलाश थी । वैसे जमीन पर सूखी लकङियाँ काफ़ी थी । पर वह सिर्फ़ आम की लकङी चाहता था । अन्य लकङियाँ भोजन में कङवाहट मिक्स कर सकती थी । उसने सबसे नीची डाली का चयन किया । और उछलकर उस डाली पर झूल गया । इसके बाद किसी जिमनास्ट चैम्पियन सा वह पेङ की इस डाली से उस डाली पर जाता रहा । और मोबायल टार्च से अन्त में वह सूखी लकङी तोङने में कामयाव हो गया ।
लकङी के सहारे से जलता हुआ मन्दिर का चङावा और उसमें मिक्स शुद्ध घी के खुशबूदार मधुर धुँये से उन तीनों को बेहद तृप्ति महसूस हुयी । शायद मुद्दत के बाद । तब प्रसून के दिल में कुछ शान्ति हुयी ।
उन तीनों को वहीं छोङकर वह उस खोह के पास पहुँचा । उसने एक लकङी से एक अभिमन्त्रित बङा घेरा खोह के आसपास खींचकर उस जगह को बाँध दिया । अब उसमें रत्ना और उसके दो बच्चे ही अन्दर जा सकते थे । अन्य रूहें उस स्थान को पार नहीं कर सकती थी । अतः काफ़ी हद तक रत्ना सुरक्षित और निश्चिन्त रह सकती थी ।

वह वापस उनके पास आया । उसने रत्ना को कुछ अन्य जरूरी बातें बतायीं । और बँध के बाहर डायनों प्रेतों के द्वारा परेशान करने पर उसे कैसे उससे सम्पर्क जोङना है । कौन सा मन्त्र बोलना है । ये सब बताया । उसने रत्ना को भरपूर दिलासा दी । बङे से बङे प्रेत अब उसके या उसके बच्चों के पास फ़टक भी नहीं पायेंगे ।
रत्ना हैरत से यह सब सुनते देखते रही । जाने क्यों उसे लग रहा था । ये इंसान नहीं है । स्वयँ भगवान ही है । पर अपने आपको प्रकट नहीं करना चाहते । जो हो रहा था । उस पर उसे पूरा विश्वास भी हो रहा था । और नहीं भी हो रहा था कि अचानक ये चमत्कार सा कैसे हो गया ।
प्रसून ने उसे बताया नहीं । लेकिन अब वह अपने स्तर पर पूरा निश्चित था । वह प्रेतों के प्रेत भाव से हमेशा के लिये बच्चों सहित बच चुकी थी । अब बस प्रसून के सामने एक ही काम शेष था । वह उन्हें किसी सही जगह पुनर्जन्म दिलवाने में मदद कर सके । लेकिन ये तो सिर्फ़ रत्ना से जुङा काम था ।
वैसे तो उसे बहुत काम था । बहुत काम । जिसकी अभी शुरूआत भी नहीं हुयी थी । यह ख्याल आते ही उसके चेहरे पर अजीव सी सख्ती नजर आने लगी । और वह - चलता हूँ बहन । कहकर उठ खङा हुआ । रत्ना एकदम हङबङा गयी । उसके चेहरे पर प्रसून के जाने का दुख स्पष्ट नजर आने लगा । वह उसके चरण स्पर्श करने को झुकी । प्रसून तेजी से खुद को बचाता हुआ पीछे हट गया ।
- अब । वह रुँआसी होकर बोली - कब आओगे भैया ?
- जल्द ही । वह भावहीन होकर सख्ती से बोला - तुम्हें । उसने खोह की तरफ़ देखा । त्यागे गये मानव मलों की तरफ़ देखा - किसी सही घर में पहुँचाने के लिये ।
फ़िर वह उनकी तरफ़ देखे बिना तेजी से मु्ङकर एक तरफ़ चल दिया । उसकी आँखें भीग सी रही थी ।
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