इंसाफ कुदरत का

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Re: इंसाफ कुदरत का

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- ओ के..ओ के. सिल्वी ! प्रसून उसे जल्दी से रोकता हुआ बोला - मैं यहाँ एक खास काम से आया हूँ । ये बहुत अच्छा हुआ । तुम मुझे मिल गयी । क्या तुम्हें पता है । यहाँ की कुछ प्रेत वहाँ । उसने महावीर के टयूब बैल की तरफ़ उँगली उठायी - वहाँ के एक आदमी को मारने या डराने धमकाने जाती हैं । मैं उनके बारे में जानना चाहता हूँ । उनसे मिलना चाहता हूँ । उनकी हेल्प भी चाहता हूँ ।
- ठीक है प्रसून ! वह उठते हुये बोली - आओ मेरे साथ ।
प्रसून उठकर खङा हो गया । उसने एक सिगरेट सुलगाई । और मार्निंग वाक से अन्दाज में उसके साथ चलने लगा । अब वह खुद को बेहद हलका महसूस कर रहा था । वह सिल्विया के साथ चलता हुआ महुआ बगीची पहुँचा । वहाँ काफ़ी संख्या में प्रेत घूम रहे थे । कपालिनी कामारिका और कंकालिनी भी वहाँ एक साथ ही किसी प्रेत से मस्ती कर रही थी । पर सिल्विया उसे महुआ बगीची से होकर निकालती हुयी आगे लेकर चलती गयी । और फ़िर एक लम्बा बंजर इलाका पार करके वे एक घने पेङों के झुरमुट से पहुँचे । जहाँ शक्तिशाली प्रेतों का स्थायी वास था । या कहिये हेड आफ़िस था । यह एकदम निर्जन क्षेत्र था । और आमतौर पर आदमी से अछूता था । इसके प्रेत एरिया होने की खबर भी स्थानीय लोगों को पता थी । अतः वे उधर जाने से बचते थे । प्रसून का वहाँ भव्य स्वागत हुआ ।

**********
अगले दिन । दोपहर के बारह बजे थे । प्रसून कामाक्षा के ऊपरी कमरे में लेटा हुआ था । और गहरी नींद में सोया हुआ था । कल सुबह भी पाँच बजे ही वह प्रेतवासा से लौटा था । सिल्विया ने उसकी मुलाकात मरुदण्डिका नामक बेहद खतरनाक प्रेतनी से कराई थी । मरुदण्डिका उसका कार्य प्रकार या पद था । वैसे उसका नाम रूपिका था । रूपिका सुलझे स्वाभाव की प्रेतनी थी । और अन्य प्रेतनियों की अपेक्षा उसमें काम भोग वासना बहुत ही कम थी । प्रेतों के आम स्वभाव से भी उसका स्वभाव अलग और हटकर था ।
मरुदण्डिका प्रेतनियाँ दरअसल वे स्त्रियाँ बनती हैं । जो अपने जीवन में सख्त मिजाज वाली होती हैं । अपने पति बच्चों और घर को अपने ही कङे अनुशासन में चलाती हैं । ये अनुशासन इतना अधिक सख्त होता है कि वे पति को अपने साथ सेक्स भी लिमिट और तरीके से करने देती हैं । जिसको सिर्फ़ औपचारिक सेक्स कह सकते हैं । ये न सिर्फ़ घर में वरन अपने स्वभाव के चलते सोसायटी में भी अपनी उपस्थिति में अनुशासन का माहौल बना देती हैं ।
इनकी धारणा होती है कि इंसान को सलीके और कायदे से इंसानियत के आधार पर जिन्दगी को जिन्दगी के नियमों से गुजारना चाहिये । फ़िर बहुत से कारणों में से किसी कारणवश ये अपनी कर्म त्रुटि से या अकाल मृत्यु से मृत्यु उपरान्त मरुदण्डिका प्रेत स्थिति में रूपान्तरण हो जाती हैं । और जैसा कि इंसानी जीवन में होता है । व्यक्ति को उसके गुण और योग्यता के आधार पर ही काम और पद सौंपा जाता है । यहाँ भी वही बात घटित होती है ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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रूपिका से प्रसून की काफ़ी देर बात होती रही । महावीर को डराने वही जाती थी । और उसे जल्द से जल्द अंजाम मौत देना ही उसका मकसद था । लेकिन समस्या ये थी कि महावीर प्रेतभाव में नहीं आ पा रहा था । उसके अन्दर रात की परिस्थितियों में घूमते रहने से भय का लगभग अभाव ही था । और किसी भी प्रेत भाव को आरोपित करने हेतु इंसान का डरपोक या भय भाव में होना आवश्यक ही होता है । रूपिका उसके घर वालों और अन्य बहुतों को भी तिगनी का नाच नचाने वाली थी । पर वहाँ भी वही प्राब्लम थी । किन्हीं नियमों के चलते वह शालिमपुर के उस आवादी क्षेत्र में तब तक ऐसा तांडव नहीं मचा सकती थी । जब तक वह स्थान एक खास भाव से दूषित न हो जाय । और दूसरे पहले के कुछ अन्य कारणों से बहाँ तांत्रिक इंतजाम थे । इसलिये बह विवशता से कसमसा रही थी ।
प्रसून ने उसकी इच्छानुसार ये सभी बाधायें खत्म करने का वादा किया । तब उसके चेहरे पर अनोखी चमक पैदा हुयी । लक्ष्य को प्राप्त करने की चमक ।
शाम के ठीक 5 बजे मोबायल के अलार्म से प्रसून की आँख खुली । वह अपने कमरे से उठकर नीचे कामाक्षा में पहुँचा । उसने चाय पी । और वहीं से कार लेकर बाजार चला गया ।

शाम आठ बजे वह वापस कामाक्षा लौटा । और सीधा अपने कमरे में चला गया । फ़िर वहाँ से निबटकर वह सीधा शालिमपुर के शमशान पहुँचा । और किसी चिता की राख को पैकेट में भरने लगा । उसने एक निगाह खोह की तरफ़ डाली । पर रत्ना उसे दिखाई न दी । और स्वयँ अभी उसकी कोई तवज्जो भी उसकी तरफ़ नहीं थी ।
इस वक्त उसने अपना हुलिया बदल सा रखा था । और आमतौर पर एक पढा लिखा मगर देहाती सा नजर आ रहा था । फ़िर सारी तैयारी के बाद वह अपने आपको बचाता हुआ शालिमपुर गाँव में जाकर ऐसे घूमने लगा । मानों किसी खास आदमी से मिलने जा रहा हो । और उसका घर आदि जानता हो । हलका अँधेरा होने से यह कोई नहीं देख पा रहा था कि उसके हाथ में थमे पैकेट से बहुत थोङी थोङी चिता की राख उसके चलने के साथ साथ जमीन पर गिरती जा रही थी । और दूसरे हाथ के टिन के डब्बे से एक महीन छेद से शराब और सुअर का खून आदि मिश्रित दृव की पतली लकीर भी गिर रही थी । जो उसने बाजार से हासिल किये थे । इस तरह उसने कुछ ही मिनटों में पूरे गाँव का चक्कर लगाया । कुछ स्थानों पर जहाँ जहाँ उसे तांत्रिक इंतजामात नजर आये । उसने जेब से एक मोटी कील निकालकर जमीन में दबा दी । और वापस निकाल ली ।

अब मरुदण्डिका और उसकी प्रेत फ़ौज आराम से निर्विघ्न गाँव पर धावा बोल सकती थी । बस उसे इसके लिये एक बार आहवान बस और करना था । ये उसका सौभाग्य ही था कि इस बीच किसी ने भी उसकी तरफ़ कोई खास ध्यान नहीं दिया था । टोका नहीं था । और उसे गाँव में ही आया कोई व्यक्ति या गाँव का ही कोई व्यक्ति समझा था ।
अब उसे आहवान के लिये किसी उचित स्थान की तलाश थी । पहले उसने सोचा कि इसके लिये गाँव से दूर हटकर किसी पेङ का चुनाव करे । मगर वैसी हालत में वह जो देखना चाहता था । उससे वंचित रह सकता था । अतः सावधानी बरतता हुआ वह महावीर के घर से थोङा हटकर अँधेरे में खङे ऊँचे और विशाल पेङ पर ऊँचा ही चढता चला गया । और बैठने योग्य घनी मजबूत डालियों का चुनाव कर उस पर बैठ गया । बस अब कामलीला शुरू होने में थोङी ही देर थी ।
यह सर्वाधिक रहस्यमय इंसान और विलक्षण योगी उस पुराने पेङ की डालियों पर किसी आसन की भांति बैठा बीज मन्त्रों के साथ शक्तिशाली प्रेत मन्त्रों का बहुत धीमे स्वर में उच्चारण करने लगा । कुछ ही क्षणों में उसे मरुदण्डिका की किलकारियाँ मारती हुयी हर्षित सेना कपालिनी कामारिका जैसे गणों के साथ ध्यान में नजर आने लगी । वे शालिमपुर पर टूट पङने को बेताब हो रहे थे । और उधर ही सरपट भागे आ रहे थे । प्रसून के होठों पर मन्द मुस्कान तैर उठी । और फ़िर कुछ ही क्षणों में शालिमपुर में ऐसे भगदङ मच गयी । जैसे अचानक आतंकवादी हमला हुआ हो । घर की औरते बच्चे आदमी बदहवास से गलियों में भागते नजर आये । भागती हुयी औरतें अपने वस्त्र उतारकर निर्वस्त्र होती जा रही थी । और पुरुषों को गन्दी गन्दी गालियाँ देती हुयी उनके पीछे भाग रही थी । अचानक इन घर की औरतों को क्या हो गया । सोचकर पुरुषों की हालत खराब थी । और वे मानों जान बचाकर भाग रहे थे । औरतें उन्हें ईंट पत्थर लात घूँसों से मार देने पर ही तुल गयी थी ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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प्रसून खुलकर किसी राक्षस की भांति अट्टाहास करना चाहता था । फ़िर बङी मुश्किल से उसने इस इच्छा को नियन्त्रित किया । और अचानक वह बदले भाव में रो पङा । उसके आँसू निकल आये । फ़िर वह भर्राये स्वर में बोला - रत्ना बहन ! मैंने तेरे ऊपर हुये जुल्म के बदले का बिगुल बजा दिया है । बस अपने इस भाई को थोङी मोहलत और दे दे ।

अगले दिन दोपहर के बारह बजे थे । लेकिन दिन का समय किसी भी अच्छे योगी के लिये रात के समान ही होता है । सो वह गहरी नींद में सोया हुआ था । और घोङे बेचकर सोया हुआ था । पिछले कुछ दिनों से जबसे वह रत्ना के जीवन से रूबरू हुआ था । उसकी आत्मा पर एक बोझ सा लदा हुआ था । कभी कभी कितने अजीब क्षण जीवन में आते हैं । क्यों ये हवसी इंसान ऐसा जुल्म करता है । जिसकी कोई इंतिहा नहीं । जिसकी शायद कोई सुनवाई नहीं ।
कितनी सही बात कही थी किसी ने - कुछ न कहने से भी छिन जाता है राजाजी सुखन । जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है । हन्ते को हनिये । इसमें दोष न जनिये । उसका दिल यही कर रहा था । उसके हाथ में सेमी ओटोमैटिक रायफ़ल होती । और वह रत्ना के अक्यूज्ड को सरेआम भून देता । पर इसमें तमाम कानूनी झमेले थे । शरीफ़ इंसान को डराने दहशत में रखने वाले कानूनी झमेले । और गुनहगारों की मदद करने वाले कानूनी झमेले ।
शालिमपुर में कोई एक घण्टा प्रेत सेना उत्पात मचाती रही । फ़िर वापस चली गयी । तब तक वह बराबर पेङ पर ही शान्त बैठा रहा । पर उसकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया । और जाने का सवाल भी नहीं था ।
एक बजे के करीब उसकी मोबायल के अलार्म से आँख खुली । और वह आँखे मलता हुआ उठकर बैठ गया । चाँऊ बाबा उसके लिये गरम चाय ले आया था । तब उसे पीते हुये उसने अपना मेल चेक किया । और एक दिलचस्प मेल पर अटक कर रह गया । मेल भेजने वाली उसके लिये अज्ञात थी ।

लिखा था - हेल्लो प्रसून जी ! मै आपको बेहतर से जानती हूँ । कैसे ? उसको छोडिये । मैं आपसे अपने दिल की ये बात इसलिये कह बैठी । क्यूँ कि पिछ्ले हफ़्ते सपने में मैंने 1 अजनबी से सेक्स किया था । मैंने आपको देखा तो नहीं है । लेकिन मैं आपके बारे में अक्सर सोचती रहती हूँ । सपने में बबलू घर पर नहीं था । मेरा छोटा बच्चा सोया हुआ था । और मैं अपने बेडरूम में किसी अजनबी से सेक्स कर रही थी । सेक्स के दौरान मेरे मुँह से ये निकल रहा था - प्रसून जी ! जरा आराम से प्लीज ! उस दृश्य में कोई बहुत सुन्दर आदमी था । जिसे मैं प्रसून जी कहकर बुला रही थी । सपने में वो व्यक्ति बेड पर बिलकुल निर्वस्त्र लेटा हुआ था । मैं उसकी तरफ़ मुँह करके उसकी गोद में थी । उसका पौरुषत्व मेरे इन था । उसके हाथ मेरे नितम्बों पर थे । मैं अपने हाथों से उसके बाल सहला रही थी । मेरा एक उरोज उसके... । वो मेरे...को... कर.... पी रहा था ।
प्रसून जी ! जो मुझे सपना पिछ्ले हफ़्ते आया । मैंने ज्यूँ का त्यूँ बता दिया । ये सपना क्यूँ आया ? क्या ये सिर्फ़ 1 इत्तफ़ाक था । या सिर्फ़ 1 कल्पना । ये मुझे पता नहीं । मैंने आपको तो कभी देखा नहीं । लेकिन जिसे मैं सपने में प्रसून जी कहकर बुला रही थी । वो आदमी बहुत ही जवान और सुन्दर था । अब आप इस रहस्य से पर्दा उठाईये ।
मेल पढकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आयी । और फ़िर वह..आय लव यू प्रसून..हाय डियर..हाय डार्लिंग..जैसे तमाम मेल्स को बिना ओपन किये ही सिलेक्ट करता गया । और फ़िर डिलीट कर दिया । उसे हैरत थी । वह कई बार अपनी मेल आई डी और फ़ोन नम्बर बदल चुका था । फ़िर भी लोगों को पता चल ही जाता था । इसका कारण भी बह जानता था । आप मुझे बता दीजिये । कसम से किसी से नहीं कहूँगा । जैसा प्रोमिस करने वाले भी एक दूसरे को और दूसरा तीसरे को..इस तरह सैकङों लोग जान जाते थे ।
उसने 7 इंच स्क्रीन की वह पी सी नोटबुक बैग में डाल दी ।
और सिगरेट सुलगाता हुआ खिङकी के पास आकर बाहर शालिमपुर की तरफ़ देखने लगा । कल की ही रात शालिमपुर वालों की नींद हराम नहीं हुयी होगी । बल्कि बहुत समय के लिये हो गयी थी । वह देर तक ऐसे ही विचारों में खोया रहा । और शाम होने का इंतजार कर रहा था ।
उसने रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया । दोपहर के तीन बजने वाले थे । तभी उसे सीङियों पर किसी के आने की आहट हुयी । और अगले कुछ ही मिनटों में बदहवास सा महावीर दो अन्य आदमियों के साथ आया । उसके चेहरे पर हवाईयाँ उङ रही थी । वह बिना किसी भूमिका के - प्रसून जी जल्दी से मेरे साथ चलिये । की टेर लगाने लगा ।
बङी मुश्किल से प्रसून ने उसे शान्त किया । और सब बात बताने को कहा । उसके जल्दी चलिये जल्दी चलिये पर उसने तर्क दिया । बिना बात समझे । बिना तैयारी के नहीं जाया जा सकता । तब वे तीनों वहीं तख्त पर बैठ गये । और महावीर प्रसून को कल की घटना बताने लगा । उसकी आँखों के सामने कल का दृश्य जीवन्त हो उठा ।
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इससे एक दिन पहले की बात थी । रात के 9 बजने ही वाले थे । शालिमपुर के ज्यादातर घरों में रात्रि भोजन हो रहा था । शहर के नजदीक होने से इस गाँव में लाइट की अच्छी व्यवस्था थी । केबल टीवी इंटरनेट की भी घर घर में पहुँच थी । सो ज्यादातर स्त्री पुरुष बच्चे आन टीवी के सामने ही भोजन आदि से निबट रहे थे । महावीर भी भोजन कर चुका था । और कमरे में तकिये से टेक लगाये टीवी पर नेतागीरी की खबरें देख रहा था । उसकी औरत भी खाना आदि से फ़ारिग होकर उसके पास ही बैठी थी । उसका नाम फ़ूलमती थी । जिसे ग्रामीण संस्कृति के अनुसार फ़ूला फ़ूला कहने लगे ।
ग्रामीण आवोहवा और शुद्ध भोजन की उपलब्धता में पली बढी फ़ूला किसी तन्दुरस्त पंजाबन के से लूक वाली थी । पर उसमें हिन्दू संस्कार के चलते काम भावना सीमित ही थी । या जो थी भी । उसको वह व्यक्त नहीं कर पाती थी । कुछ भी हो वह महावीर का घर कुशलता से चला रही थी ।
तब टीवी देखते हुये अधलेटे से महावीर की निगाह अचानक फ़ूला पर गयी । वह मादक अन्दाज में अंगङाईंया ले रही थी । उसने अपने बालों का जूङा खोल दिया था । और उन्हें बार बार झटक रही थी । उसका मुँह थोङा सा तिरछा था । अतः महावीर उसके चेहरे के हाव भाव नहीं देख सकता था । अचानक महावीर को उसका बदन ऐंठता सा लगा । और उसकी साँसे यूँ तेज तेज चलने लगी । मानों नागिन फ़ुफ़कार रही हो । वह एकदम चौंक गया । ये नार्मल साँस लेने की आवाज नहीं थी । ऐसा लगता था । जैसे उसके पेट में कोई प्राब्लम हुयी हो । और वह फ़ूऽऽऽ फ़ूऽऽऽऽ करती हुयी पेट की वायु को निकालने की कोशिश कर रही हो । बङी अजीव सी स्थिति में महावीर ने उसका हाथ पकङकर अपनी तरफ़ घुमाया । और उसके छक्के छूट गये । उसका चेहरा बुरी तरह अकङ गया था । और उसकी एकदम गोल गोल हो चुकी आँखों से मानों चिंगारियाँ निकल रही थी । उसका चेहरा बदलकर वीभत्स हो चुका था । और किसी चिता की राख से पुता सा मालूम होता था । उसकी नाक के नथुने एकदम फ़ूलकर रह गये थे । और मुँह से जहरीली नागिन की तरह फ़ुसकार निकल रही थी ।
उसने फ़ूला फ़ूला क्या हुआ फ़ूला करते हुये उसे हिलाने की कोशिश की । तो उसने पलटकर इतना झन्नाटेदार थप्पङ उसके गाल पर मारा कि वह चारों खाने चित्त जमीन पर जा गिरा । एक ही थप्पङ में महावीर की आँखों के सामने सितारे घूमने लगे । एक औरत का थप्पङ किसी पहलवान की लात जैसा शक्तिशाली हो सकता है । ये उसने कभी सोचा भी न था । और सोच भी नहीं सकता था ।

महावीर का इससे पहले ऐसी स्थिति से कोई वास्ता न पङा था । उसकी समझ में न आया कि वह क्या करे । एकदम उसके दिमाग में भूत प्रेत जैसी बात जैसे शब्द आये अवश्य । पर वह तो उनको मानता ही नहीं था । उनके बारे में कुछ जानता ही न था । पर कभी कहीं देखे दृश्य के अनुसार उसके दिमाग में आया कि प्रेत गृस्त औरत के बाल पकङ कर उसका परिचय प्रश्न आदि पूछने से वह वश में हो जाती है । और साथ में हनुमान चालीसा पढते जाओ । या बजरंग वली का नाम लेते जाओ ।
सो उसने तात्कालिक बनी बुद्धि के अनुसार ऐसा ही किया । और भूत पिशाच निकट नहीं आवे । महावीर जब नाम सुनावे । बारबार कहते हुये उसने फ़ूला के लम्बे लहराते बाल पकङ लिये । और हिम्मत करके बोला - ऐ कौन है तू ?
ये कहना ही मानों गजब हो गया । फ़ूला का फ़ौलादी मुक्का सनसनाता हुआ उसके पेट में लगा । महावीर को लगा । मानों उसकी अंतङिया बाहर ही आ गयी हों । पेट पकङकर वह दोहरा हो गया । फ़ूला उसके गिरते ही उसकी छाती पर सवार हो गयी । और उसकी नाक में जोरदार दुहत्थङ मारा । और तब महावीर को उसकी शक्ल स्पष्ट दिखाई दी । टयूबबैल पर सपने में आने वाली आज उसके घर में उसकी छाती पर साक्षात बैठी थी । फ़ूला दूर दूर तक कहीं न थी । उसका साफ़ साफ़ चेहरा उसे दिख रहा था ।

बस आगे की बात समझते उसे देर नहीं लगी । और वह उठकर किसी तरह उससे जान बचाकर बाहर भागा । फ़ूला उसके पीछे पीछे साले हरामी कहते हुये भागी । उसके मुँह से भयंकर फ़ूऽऽऽ फ़ूऽऽ की सीटी सी बज रही थी । मगर बाहर निकलकर तो उसकी हालत और भी खराब हो गयी । गाँव की ज्यादातर औरतें बच्चे मानों पागल हो गये थे । और एक दूसरे पर विभिन्न तरीकों से आकृमण कर रहे थे । तब वह किससे क्या कहता । किससे मदद की गुहार करता । बस उसने एक बात जरूर नोट की थी कि ये पागलपन सिर्फ़ औरतों पर ही सवार हुआ था । मर्द सिर्फ़ पिट रहे थे । और भाग रहे थे । छोटे बच्चे भी उनको ईंटों से मार रहे थे । सारे गाँव में आतंकवादी हमले जैसी भगदङ थी । जिसे जहाँ जगह मिल रही थी । जान बचाकर भाग रहा था । और बस भाग ही रहा था । अभी वह क्या करे । और कैसे करे । ये न कोई बताने वाला था । और न ही कोई पूछने की स्थिति में था ।
इस तरह ये तांडव लगभग एक घण्टे चला । और अपने आप ही शान्त हो गया । फ़िर भी सभी मर्द सशंकित से रात के बारह बजे डरते डरते ही घर लौटे । इतना बताकर वह चुप हो गया । और आशा भरी नजरों से प्रसून को देखने लगा ।
महावीर तो अपनी बात बताते समय अपनी धुन में मग्न था । अतः वह कोई खास प्रसून के हाव भाव नहीं जान सका । पर वे दोनों आदमी बङी गौर से प्रसून को ही देख रहे थे । घटना को गौर से सुनते हुये वह मानों थरथर काँप उठता था । उसके चेहरे पर हवाईंयाँ सी उङ रही थी । और ऐसा लग रहा था । किसी भी क्षण डर के मारे उसका पेशाब ही निकल जायेगा । और निकल भी गया हो । तो कोई आश्चर्य नहीं । ऐसा वे दोनों आदमी सोच रहे थे ।
वे यह भी सोच रहे थे । महावीर क्या सोचकर इस लौंडे के पास अपनी करुण कथा सुनाकर समय को बरबाद कर रहा है । पर अब आ ही गये हैं । तो आगे आगे देखें होता है क्या । सोचकर वह चुप बैठे थे ।
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हालांकि कल की घटना में वह खास पीङितों में से नहीं थे । पर क्या पता अगली कल में वह भी हो जायें । यही सोचकर आगे के लिये सतर्क सावधान हो जाना उनकी उत्तम सोच थी । मौत से किसकी रिश्तेदारी है । आज मेरी तो कल तेरी बारी है । यह उनका पक्का जीवन दर्शन था ।
- हाँ तो बताईये प्रसून जी ! महावीर के बोलने से अचानक उन दोनों की सोच भंग हुयी । गौर से सुनता हुआ प्रसून भी जैसे एकदम चौंका - ये सब क्या था । क्या है ?
प्रसून हाथों की उँगलियों को आपस में उलझाकर ऐसे चटकाने लगा । मानों उसे कोई उपाय सूझ न रहा हो । उसके चेहरे पर गहन निराशा और अफ़सोस के भाव थे । उनके लिये दुख और बेबसी उसके चेहरे से मानों मूसलाधार बरसात की तरह बरस रही थी । और वह डर के मारे पीला पङा हुआ था । महावीर को कुछ कुछ हैरत सी हो रही थी । पर फ़िलहाल वही डूबते को तिनके का सहारा था ।
फ़िर उसने सिगरेट सुलगायी । और मानों गहरे सोच में डूब गया । उसकी आँखें शून्य 0 में स्थिर थी ।
कुछ देर बाद वह बोला - सारी ! मुझे बङा अफ़सोस है । पर मुझे नहीं लगता कि ये मेरे बस की बात है । अपनी जिन्दगी में मैंने आज तक ऐसा प्रेतक हमला न देखा । न सुना । जिसमें पूरा गाँव ही प्रभावित हुआ हो । बताईये । जब प्रेत किसी टेरिरिस्ट की तरह अटैक कर रहे हों । तब कहाँ गद्दी लगेगी । मन्त्र कहाँ पढा जायेगा । कौन हेल्परी करेगा । और सवाल ये है । आवेशित गद्दी पर कैसे बैठेगा । अब कोई तांत्रिक भूतों के पीछे भागता हुआ तो तांत्रिकी करने से रहा । अब मैं क्या बताऊँ । महावीर जी मेरी समझ में खुद नहीं आ रहा । आपने किन्ही और तांत्रिकों से बात नहीं की ।

महावीर के चेहरे पर गहन निराशा के बादल मंडराने लगे । वह गहरी सोच में डूब गया ।
प्रसून का दिल कर रहा था । वह खुलकर राक्षसों की भांति अट्टाहास करे । और हँसता ही चला जाये । हँसता ही चला जाये । इस स्टोरी को सुनते हुये वह दिल ही दिल में मरुदण्डिका को हजारों बार थेंक्स बोल चुका था । उसे बहुत अफ़सोस इस बात का था कि वह हरामी सुरेश पहले ही मर गया था । बङी आसान मौत मर गया था । उसे कुछ दिन और जिन्दा रहना चाहिये था । और वह शायद रहता भी । जो उसकी मरुदण्डिका से पहले मुलाकात हो जाती । पर अब क्या हो सकता था । तीर कमान से निकल चुका था ।
- और तांत्रिको से.. । महावीर कुछ सोचता हुआ सा बोला - कई तांत्रिकों के पास सुबह से गाङी लेकर घूम रहा हूँ । पर सबने यही कहा । यह प्रेतक नहीं । दैवीय प्रकोप है । और अगर प्रेतक प्रकोप है भी । तो कम से कम उनके बस की बात नहीं । तब मुझे आपका ध्यान आया । चाँऊ महाराज ने आपकी बहुत तारीफ़ की थी । मैंने सोचा । आपके पास इसका कोई हल शायद हो । शायद । शायद ।
- शायद ! प्रसून उसका ही शब्द दोहराता हुआ बोला - शायद इसका हल है तो । मगर बह मेरे पास नहीं है । वैसे..। अचानक उसे कुछ याद आया । और वह बोला - हाँ ये बताओ । इस हमले से गाँव के सभी बच्चे औरतें पीङित हुये । या सिर्फ़ कुछ ही घरों के लोग ? मेरा मतलब बाद में मामला शान्त होने पर जानकारी तो हुयी होगी ।

हाँ ! महावीर कुछ याद करता हुआ भय से काँपकर बोला - खास तीन घर ही अधिक प्रभावित हुये थे । मेरा । इतवारी का । और जो कुछ दिन पहले बेचारा जवान लङका मरा सुरेश । ये ज्यादा प्रभावित हुये थे । पर थोङा थोङा प्रभाव सभी घरों पर हुआ था । बस कुछ गिनती के घर ही बचे थे । जो बहुत सीधे साधे घरों के लोग थे । और उन्हें तो ठीक से उस समय जानकारी भी नहीं हो पायी कि गाँव में हंगामा बरपा हुआ है । उनमें से बहुत से जल्दी सो गये थे । वे आराम से सोते रहे । उन्हें दूसरे दिन ही पता चला । बहुत छोटे बच्चे और बुजुर्ग भी प्रभावित नहीं हुये । सुरेश के घर की जवान लङकियाँ तो खुद नंगा होकर गलियों में नाची ।
- ओह ओह..। प्रत्यक्ष में गहरी सहानुभूति दिखाता हुआ प्रसून मन ही मन घृणा से बोला - उल्लू के पठ्ठे । साले । हरामी । फ़िर भी तुझे समझ में नहीं आया । अपने पाप याद नहीं आये । और पाप का प्रायश्चित करने के बजाय । खुद के इलाज को भागा भागा फ़िर रहा है । अगर तुझे जरा भी अक्ल होती । तो तुझे तो तुरन्त भगवान के आगे कनफ़ेस करना चाहिये था । सर फ़ोङ देना चाहिये था अपना । उसके न्याय में देर है । अँधेर नहीं । उसकी लाठी बे आवाज होती है साले कुत्ते ।
सोचते सोचते उसके आँसू फ़िर से निकलने को हुये । जिसे उसने जबरन ही रोका । और अपनी आवाज को भर्राये जाने से बचाता हुआ बोला - देखिये । अगर इंसान खुद को सुधारना चाहे । तो...। अपनी बात का रियेक्शन उसने गौर से महावीर के चेहरे पर देखा । और बोला - मेरा मतलब कोई स्थिति बिगङ गयी है । तो इलाज तो हो ही जाता है । पर जिन्दगी की हर बात में शायद अवश्य जुङी होती है । और शायद का मतलब है । अनिश्चितिता । शायद ऐसा हो जाय । और शायद ऐसा न भी हो । शायद । है ना ।

महावीर ने तुरन्त उम्मीद की एक नयी रोशनी के साथ उसकी तरफ़ देखा । वे दोनों आदमी भी यकायक चौंककर देखने लगे ।
लेकिन उनकी तरफ़ कोई ध्यान न देकर वह बोला - हिमालय के ऊपरी दुर्गम पहाङ उतरकर तिब्बत की तरफ़ आप... एक मिनट..। कहकर उसने पी सी नोट बुक निकाली । और नेट पर मैप के द्वारा उन्हें समझाने लगा - यहाँ से जब आप घाटी में उतरेंगे । तो चेन जिंगप्पा नाम का एक बूढा साधु टायप आपको यहाँ मिलेगा । यह हमेशा यहीं रहता है । और ऐसे ही बङे केसेज की डील में जाता है । एण्ड योर केस इज वेरी इंट्रेस्टिंग । मीन उनकी स्पेशलिटी के मुताबिक । सो वे दौङे चले आयेंगे ।
यह सुनते ही तीनों के दिमाग में तत्काल एक ही ख्याल आया । ये आदमी है । या पूरा गधा । गधा नम्बर 1 । एक बार को तो प्रसून के इस सुझाव पर उन्हें इस कदर झुँझलाहट हुयी कि इस बेहूदा आदमी के पास से तुरन्त चले जायें । लेकिन फ़िर उन्होंने सोचा कि अपनी तत्काल हाऊ हाऊ परिस्थिति उन्हें ऐसा सोचने पर विवश कर रही है । जबकि प्रसून सामान्यतया सही ही कह रहा है । वह जितना जानता है । और जैसा जानता है । बता रहा था । इंसान को आसान और नजदीक उपाय की स्वभाव अनुसार अपेक्षा होती ही है । पर कभी कभी उसके लाइलाज जैसे रोग का इलाज बहुत दूर भी होता है । सात समन्दर पार भी होता है । और वहाँ जाना ही होता है । जैसे किसी सात समन्दर पार प्रेमिका के पास भी अभिसार हेतु जाने की व्याकुलता सी होती ही है । अगर वह वहाँ ही रहती हो ।
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