इंसाफ कुदरत का

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Re: इंसाफ कुदरत का

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फ़िर भी वह बेबसी से उँगलियाँ चटकाता हुआ ढीटता से बोला - प्रसून जी ! वैसे आप ठीक ही कह रहे हो । पर क्या आप खुद जानते हो । आप क्या कह रहे हो । इसका मतलब कुछ कुछ ऐसा ही है कि टट्टी हिन्दुस्तान में लग रही है । लग क्या रही है । बल्कि निकली पङ रही है । निकलने वाली है । और आप कह रहे हो । पाखाना पाकिस्तान में है । मेरी बात समझने की कोशिश करो भाई ।
- खैर..। प्रसून ने रिस्टवाच में समय देखा । 6 बजने वाले थे । फ़िर वह अचानक मानों कुछ निर्णय सा लेता हुआ बोला - आप ये बताओ । मुझसे क्या चाहते हो ? क्योंकि आप बङी उम्मीद से मेरे पास आये हो । इसलिये मेरा फ़र्ज बनता है कि आप लोगों की..।
लेकिन उसका वाक्य अधूरा ही रह गया । जीने पर भागते हुये कदमों की आहट आयी । और तुरन्त दो युवक लगभग भागते हुये ही आये । और सीधा कमरे में आ गये । उनके चेहरे पर हवाईंया उङ रही थी ।
- दद्दा जल्दी चलो । जल्दी चलो । कहते हुये वह अपनी बात ठीक से कह भी नहीं पा रहे थे । महावीर भी हङबङा गया । और वह और प्रसून दोनों हैरानी से एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे ।
उन्होंने उसी हङबङाहट में जल्दी जल्दी बताया । अभी आधा घण्टा पहले ही उसके घर की फ़ूला सहित गाँव की कुछ औरते पगला सी गयीं हैं । और गाँव में बंदूक रिवाल्वर आदि हथियार लिये घूम रही हैं । वे आपको और इतवारी को गन्दी गन्दी गालियाँ देती हुयी घूम रही हैं । और सुरेश के घर में घुसकर सबको मार रही हैं । और आग लगाने की बात कर रही हैं । उन्होंने अपने कपङे जगह जगह से फ़ाङ लिये हैं । वे किसी दैवीय प्रभाव में मालूम होती हैं । और किसी के वश में नहीं आ रही हैं । अतः बस आप जल्दी से चलिये ।

महावीर के होश उङ गये । उसने घबराकर प्रसून की तरफ़ देखा । वे जल्दी चलने को कह रहे थे । जबकि वह देर में भी नहीं जाना चाहता था । बिलकुल भी नहीं जाना चाहता था । शायद अब जिन्दगी भर नहीं जाना चाहता था । प्रसून का दिल फ़िर से खुलकर राक्षसी अट्टाहास लगाने को हुआ । मगर अब फ़ैसले की घङी आ चुकी थी ।
वास्तव में ये मरुदण्डिका ने उसके लिये ही संदेश भेजा था कि आज की रात कयामत की रात होगी । फ़ैसले की रात होगी । और मरुदण्डिका को उसकी सहायता की आवश्यकता थी । आन द स्पाट आवश्यकता थी । क्योंकि प्रसून का फ़ैलाया निर्मित तन्त्र सिर्फ़ चार दिन ही काम करने वाला था । उसके बाद फ़िर से मरुदण्डिका और उसकी प्रेत सेना गाँव में नहीं जा सकती थी । इसलिये इससे पहले कोई और रुकावट आये । वह अपना काम खत्म करना चाहती थी । क्योंकि उसे मालूम था कि महावीर और इतवारी इस समय उसके पास बैठे हैं । इसलिये उसने अपने ही स्टायल में संदेश भेजा था । यानी मियाँ की जूती । और मियाँ का ही सिर । मरने वाला खुद मौत की तरफ़ भागे । आ बैल मुझे मार ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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थैंक्स..मरु..। बेख्याली में प्रसून के मुँह से निकल ही गया । महावीर ने चौककर उसकी तरफ़ देखा । तो वह तेजी से संभलकर बोला - आय मीन । थैंक गाड..आप यहाँ पर हो । तो सचेत हो सकते हो । वरना शायद वे तो आपको मार भी देती ।
महावीर के शरीर में तेज झुरझुरी सी दौङ गयी । उसने गले तक डूब गये अतैराक इंसान की तरह से भयभीत और बुझी बुझी आँखों से प्रसून की तरफ़ देखा । पर प्रसून के दिल में कोई सहानुभूति न हुयी । लेकिन मामला जल्दी वाला था । और उसे स्टायल से डैथ गेम में शामिल रहना था । अतः उसने तुरन्त निर्णय सा लिया । और बाकी लोगों से बोला - आप लोग तुरन्त वापस गाँव पहुँचिये । लेकिन अभी जब तक मैं न पहुँचू । गाँव में अन्दर मत जाना । बाहर से ही निगाह रखना । तब तक मैं अपनी गाङी से इन दोनों..। उसने महावीर और इतवारी की तरफ़ उँगली दिखाई - को अपने साथ लेकर आता हूँ ।.. मौत के मुँह में..। ये शब्द उसने मन ही मन कहे । फ़िर आगे बोला - हम तीनों गाङी से सावधानी से स्थिति का जायजा लेते हुये जायेंगे । और शालिमपुर जाने के लिये यमुना पर ब्रिज थोङा घूमकर भी है । अतः दूसरे रास्ते से पहुँचेंगे । तब तक आप लोग पहुँच कर स्थिति को संभालो ।
देखो भाई ! वह भावहीन स्वर में बोला - साफ़ साफ़ सुन लो । मुझसे ज्यादा उम्मीद मत रखना । पर मेरे से जितना बन पङेगा । मैं आपकी हेल्प करूँगा । अगर आप बोलो । तो चलूँ । ना बोलो । तो ना चलूँ । भले आदमियों के साथ..। उसने महावीर और इतवारी की तरफ़ फ़िर से देखा - भगवान भी कुछ न्याय करता है । आखिर उसका भी कोई इंसाफ़ है । इंसान की सोच से परे इंसाफ़ । वह किसी दीन दुखी की पुकार पर..। उसे फ़िर से रत्ना की याद आयी - पर ध्यान न दे । ऐसा हो नहीं सकता । जब उसने मुझे निमित्त बनाकर आपको मेरे पास भेजा है । तो कुछ सोचकर ही भेजा होगा । इसलिये मैं भी अपनी समझ से पूरा इंसाफ़ ही करूँगा । ये मेरा इंसाफ़ होगा । प्रसून का इंसाफ़ ।
महावीर और इतवारी को ऐसा लगा । मानों वे मरने के बाद जिन्दा हो गये हैं । प्रसून के हिम्मती स्वर ने उनके मुर्दा जिस्म में फ़िर से प्राण से फ़ूँक दिये थे । बोलते वक्त कैसा खुदाई मसीहा सा नजर आ रहा था वो । आसमान से उतरा दिव्य फ़रिश्ता । दुखियों का दुख समझने वाला ।
उसके चुप होने पर सबने एक दूसरे की तरफ़ देखा । और मुक्त भाव से उसका समर्थन भी किया । जाने क्यों उसकी एक एक बात । एक एक शब्द । उन्हें सच्चाई से ओतप्रोत दिव्य वाणी सा महसूस हो रहा था । जैसे ये आवाज किसी इंसान के मुँह से नहीं । बल्कि किसी पाक रूह से आ रही थी । जिसका एक एक लफ़्ज । उनकी आत्मा को झंकृत कर रहा था ।
तुरन्त ही सबकी सहमति बन गयी । और महावीर और इतवारी को वहीं छोङकर वे दोनों युवक और वह आदमी वापस रवाना हो गये ।
प्रसून तेजी से दोनों के साथ कामाक्षा के अहाते में खङी वैगन आर से पहुँचा । और कुछ ही देर में उसकी कार शालिमपुर के लिये फ़र्राटा भरने लगी । इतवारी उसकी ड्राइविंग देखकर हैरान था । कार मानों दौङने के बजाय उङ रही हो । टेङी मेङी सङक पर भी फ़ुल स्पीड से दौङती गाङी को वह ऐसे काटता था कि दोनों का कलेजा बाहर निकलने को हो जाता । गाङी किलर झपाटा स्टायल में सिर्फ़ सूंयऽऽऽऽ सूंय़ऽऽऽऽऽ कर रही थी । दूर से आते वाहन भी घबराकर धीमे हो गये । और उसे पर्याप्त जगह देते हुये काफ़ी फ़ासला देकर साइड से हो गये ।
तब महावीर को उसमें कुछ दम नजर आयी । स्टेयरिंग सीट पर बैठे आत्मविश्वास से भरे प्रसून को देखकर उसे समझ आया कि चाँऊ बाबा क्यों इस लङके की मुक्त कण्ठ से तारीफ़ करता था ।
पर इस सबसे बेपरवाह प्रसून के दिमाग में रत्ना घूम रही थी । कुछ ही देर में उसकी गाङी यमुना ब्रिज पार करती हुयी शालिमपुर के शमशान में खङी थी । उसने गाङी रत्ना की खोह से काफ़ी पहले ही रोक दी थी । और उनको समझा दिया था कि वह कुछ खास इंतजाम कर रहा है । इसलिये वह गाङी से बाहर न आयें । और यहीं उसका इंतजार करें । वे उसके इस नये कदम पर हैरान तो हुये । पर उनकी समझ में कुछ नहीं आया । और वैसे भी प्रसून जानता था । उन पर हावी हुआ मौत का डर । न तो उन्हें कुछ सोचने देगा । और न ही गाङी से निकलने देगा । जबकि वह इस वक्त शमशान में और खङा था ।
उसने रत्ना को बुलाकर कुछ समझाया । और 15 मिनट तक समझाता रहा । हालाँकि उसने रत्ना को खुलकर कुछ नहीं बताया कि क्या होने वाला है । पर जब से वह उससे मिला था । किसी भी प्रेत ने उसे तंग नहीं किया था । उसकी एक एक बात सच हुयी थी । इसलिये रत्ना पूरे आदर से उस पर विश्वास करती थी । दरअसल प्रसून उसे सरप्राइज करना चाहता था । और लाइव दिखाना चाहता था । इसलिये वह खास बात गोल ही कर गया ।
फ़िर वह लौटा । और गाङी में सवार हो गया । उसकी गाङी शालिमपुर की ओर रवाना हो गयी । जिसके ऊपर छत पर बैठी हुयी रत्ना अपने पिया के गाँव एक बार फ़िर वापस जा रही थी । उसके बच्चे आराम से खोह में सोये हुये थे । प्रसून के होते जाने क्यों वह उनकी तरफ़ से एकदम निश्चिन्त थी । और उसकी हर बात खुशी से मान लेती थी ।
गाङी शालिमपुर की गलियों में दाखिल होकर रुक गयी । महावीर ने अन्दर बैठे बैठे ही बाहर देखा । उसके छक्के छूट गये । भय से हवाईंया उसके चेहरे पर उङने लगी । वह आँखें फ़ाङ फ़ाङकर बाहर भौंचक्का सा देखने लगा ।
डाण्ट वरी ! कहता हुआ प्रसून उसको थपथपा कर गाङी से बाहर आ गया ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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महावीर की औरत फ़ूला और इतवारी की औरत सुषमा को उसी पेङ से रस्सियों से जकङकर बाँध दिया गया था । जिस पर बैठकर योगी ने उल्टा मारक आहवान किया था । उनके चारों और गाँव वालों का हुजूम सा इकठ्ठा हो गया था । दरअसल एक स्पेशल नाटक के तहत थोङा उत्पात मचाकर प्रेतनियाँ शान्त हो गयीं थी । और तब लोगों की समझ में यही आया कि तांत्रिक के आने तक अगली किसी घटना को बचाने के लिये उन्हें मजबूती से बाँध दिया जाय ।
सो कभी गाँव के मर्दों बूङों के आगे सिर भी न खोलने वाली वे औरतें पूरी बेहयाई से अधफ़टे वस्त्रों में खङी थी । और रस्सियाँ तोङने को मचल रही थी । वे खुलकर उन पर गन्दी नंगी अश्लील गालियों की बौछार सी कर रही थी । लेकिन मजबूर से वे सब शान्ति से सिर झुकाये खङे थे । किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । उन्हें महावीर का इंतजार था । जो किसी पहुँचे हुये तांत्रिक को बुलाने गया था ।
इसलिये गाङी रुकते ही सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हुआ । और कई लोग गाङी में झांक झांक कर किसी लम्बी दाङी वाले साधु महात्मा की तलाश करने लगे । उन्होंने इशारे से महावीर से पूछा भी । पर उसने चुप रहने का इशारा कर दिया । तब उन सबका ध्यान प्रसून की तरफ़ गया ।
पर उन सबकी मनोदशा से एकदम बेपरवाह सा चलता हुआ वह पेङ से बँधी औरतों के पास पहुँचा । उसकी पीठ भीङ की तरफ़ थी । फ़ूला ने सबकी निगाह बचाकर उसे आँख मारी । और अश्लील भाव से स्तन हिलाये । प्रसून ने ऐसे माहौल में कहीं हँसी न निकल जाये । इसलिये फ़ौरन उसकी तरफ़ से मुँह फ़ेर लिया । उसकी निगाह कार की छत पर बैठी रत्ना पर गयी । जो बङी हैरत से यह सब देख रही थी । गाँव के सभी लोगों को वह स्वाभाविक ही पहचानती ही थी ।
उसने यूँ ही हाथ को फ़ालतू सा घुमाते हुये निगाह बचाकर समय देख लिया । साढे दस से ऊपर ही होने वाले थे । रामलीला की जगह कामलीला शुरू होने ही वाली थी । दर्शक जमा हो चुके थे । आज पूरा गाँव ही चर्चा फ़ैल जाने से यहाँ इकठ्ठा हो गया था । गली के पोल पर जलते दो बल्बों से लाइट का पर्याप्त इंतजाम था । बस कलाकारों की एंट्री होना शेष थी । वे खास कलाकार । जो उसके निमन्त्रण पर आने वाले थे ।
वह ऐसे सीरियस माहौल में सिगरेट पीना नहीं चाहता था । पर अपनी तेज तलब को वह रोक नहीं पाया । और पब्लिक की तरफ़ बहाने से एक मिनट कहता हुआ सिगरेट बीच में ही सुलगाता हुआ गाङी की तरफ़ आया । अपने पीछे लपकती भीङ को इशारे से उसने वहीं रोक दिया ।
और कार की खिङकी से अन्दर झांककर फ़ुसफ़ुसाता हुआ बोला - महावीर जी ! बङी गङबङ है यहाँ । साक्षात मौत का खेल जान पङता है । प्रेतों की संख्या बीस से भी ऊपर महसूस हो रही है । मेरे लिये संभालना बहुत ही मुश्किल जान पङ रहा है । पर मैं सिर्फ़ भागते भूत की लंगोट ही सही । जितना काम तो शायद कर ही लूँगा । देखो मैं इनको वश अश में तो नहीं कर पाऊँगा । क्योंकि बहुत बङे प्रेत हैं । लेकिन उनकी मिन्नतें करके समझौता कराने की कोशिश करूँगा ।
इसलिये आपको मेरी सलाह है कि कार से कतई बाहर न निकलें । चाहे कुछ भी हो जाय । समझो अभी प्रलय भी आ जाय । फ़िर भी नहीं निकलना । मौत से किसी की रिश्तेदारी नहीं होती । अन्दर से लाक भी लगा लो । क्योंकि इतना तो मैं जानता हूँ । भूत प्रेत लाक खोलकर अन्दर आपको मारने । उसने मारने शब्द पर जोर दिया - मारने नहीं आ सकते । वैसे आप निश्चिन्त रहो । मुझे उम्मीद है । समझौता हो ही जायेगा । भगवान आपके साथ पूरा इंसाफ़ करेगा । सच्चा इंसाफ़ ही करेगा । एकदम सच्चा इंसाफ़ ।

महावीर ने बङे श्रद्धा भाव से सिर हिलाया । और उसको वापस जाते देखता हुआ भयभीत इतवारी से बोला - कितना अच्छा और सच्चा इंसान है । एकदम भगवान के जैसा । मुझे तो इसमें ही साक्षात भगवान नजर आता है । भगवान ।
वह फ़िर से वापस पेङ के पास पहुँच गया । उसने एक निगाह बँधी औरतों और जमा पब्लिक पर डाली । फ़िर उसने नीचे गन्दी जमीन की तरफ़ देखा । उसका इशारा समझते ही तुरन्त आनन फ़ानन ही वहाँ गद्दी जैसे साजो सामान की सब व्यवस्था हो गयी ।
वह गद्दी पर बैठ गया । उसके पलकों पर आँसू तैरने लगे । उसने आज तक कभी इस ज्ञान का उपयोग किसी के बुरे के लिये नहीं किया था । सदा भले के ही लिये किया था । पर आज उसकी खुद समझ में नहीं आ रहा था कि जो वह करने जा रहा था । वह भला था । या बुरा । एक पल के लिये वह कमजोर सा पङने लगा । उसका आत्मविश्वास डगमगाया । नहीं । शायद ये गलत होगा । तभी उसकी निगाह रत्ना पर गयी । और उसके दिमाग में जमा उसकी जिन्दगी की रील उसके आगे घूमने लगी । वहशी दरिन्दे सुरेश के आगे गिङगिङाती एक असहाय अवला की चीखें - मेरे ब ब बच्चों पर र र रहम करो भईयाऽऽऽ ।
दूसरे ही पल उसके शिथिल होते शरीर में फ़िर से तनाव जागृत होने लगा । उसकी निर्बलता एकदम गायब हो गयी । और वह भावहीन कर्तव्यनिष्ठ योगी सा नजर आने लगा । उसकी आँखें एकदम गोल शून्य 0 होकर चमकने लगी ।
उसने शक्तिशाली सम्मोहिनी तन्त्र से पूरे गाँव क्षेत्र को ही बाँध दिया । ये उसी तरह से था । जैसे जादू वाले निगाह बाँध देते है । कुछ अच्छे जानकार सिद्ध बुद्धि को भी बाँध देते हैं । फ़िर उसने एक तगङा सामूहिक गण आहवान प्रयोग किया । और आँखे बन्द कर मन्त्र जगाने लगा । तुरन्त उसे मरे जानवर पर मंडराते चील कौवों की भांति छोटे बङे प्रेतों के हिल्लारते दल नजर आने लगे । कुछ ही मिनटों में उसने कार्यवाही पूरी कर दी ।
अब स्थिति ये थी कि अदृश्य प्रेतों की पूरी सेना किसी आतंकवादियों की भांति गाँव के एक एक आदमी को कवर किये खङी थी । पूरा गाँव प्रेतों की घेरेबन्दी में आ चुका था । सभी सम्मोहित से गाँव वालों को कुछ अजीव सा महसूस हो रहा था । पर क्या । वे नहीं जानते थे । पर क्यों । वे नहीं जानते थे । वे आधे होश में । और आधे बेहोश से थे ।
- मुझे खोल साले भङुये ! फ़ूला अचानक मचलते हुये बोली । और मुझे भी..सुषमा कसमसाकर बोली ।
प्रसून तेजी से खुद उनके पास गया । और फ़ुसफ़ुसाकर बोला - शर्म नहीं आती कामारिका तुझे । इतने लोगों के सामने नंगी हो गयी । फ़िर वह प्रत्यक्ष में ऊँचे स्वर में बोला - ठीक है । खोल देता हूँ । पर एक शर्त है । तुम लोग कोई बदतमीजी वाला काम नहीं करोगी । ये सब गाँव वाले । उसने चारों तरफ़ उँगली घुमाकर इशारा किया - बेचारे शरीफ़ आदमी हैं । अतः तुम भी पूरी शराफ़त से पेश आओगी । ऐसा मैंने इनसे वादा किया है ।
उन दोनों ने बङी सीधाई से समर्थन में सिर हिलाया । तब प्रसून ने उन्हें खोल दिया । और गाँव वालों को अर्ध बेहोशी से मुक्त कर दिया । ताकि वे आगे की स्थिति भली भांति जान सके । सभी गाँव वाले मानों एकदम नींद से जागे । और चैतन्य होकर देखने लगे ।
- जल्दी करना सालिया । फ़ूला होठ काटकर दबे स्वर में बोली - मुझे तेज खुजली होती है । फ़िर मुझसे बर्दाश्त नहीं होता ।
उसकी बात पर कोई ध्यान न देकर प्रसून अपना काम करने लगा । उसने मानसिक रूप से मरुदण्डिका से सम्पर्क किया । और होठों में ही बोला - ध्यान रहे रूपिका । प्रेत किसी निर्दोष को प्रभावित न करें ।
जबाब उसके इच्छानुसार ही मिला । फ़िर वह मन्त्र पढता हुआ फ़ूलों की पंखरिया उछालने लगा । भीङ में खङी औरतें लहरा लहरा कर एक एक करके झूमती हुयी गद्दी के पास गिरने लगीं । जबकि फ़ूला और सुषमा शान्त बैठी थी । माफ़ी माफ़ी कहती हुयी वे औरतें गद्दी के आगे सिर झुकाती थी । और फ़िर कुछ ठीक सी हालत में चली जाती थी । मुश्किल से पन्द्रह औरतें आयीं । इसका मतलब था । यही लोग रत्ना की घटना में किसी न किसी प्रकार से साझीदार थे । या फ़िर राजदार तो थे ही । मगर सब कुछ जानते हुये भी चुप थे । जैसे ही औरतों के साथ यह क्रिया हुयी । उनसे संबन्धित सामान्य स्वभाव के पुरुष भी किसी अपराध बोध से स्वतः प्रेरित खुद भी माफ़ी माफ़ी करते हुये सिर झुका गये । इस तरह इंसाफ़ के इस मुकद्दमें में मामूली और दया के पात्र मुजरिम उसी वक्त रिहा हो गये ।
और अब मुख्य अभियुक्तों की वारी थी । मुख्य अभियुक्त । जो बङी हैरानी की बात थी कि वहाँ नहीं थे ।
उसने फ़िर से पंखुरियाँ उछाली । और जमीन पर प्रतीकात्मक अभिमन्त्रित हथेली मारी ।
कुछ ही क्षणों में उसे भीङ के पीछे शोर सा नजर आया । फ़िर सुरेश के घर की औरतें लङकियाँ भागती हुयी उधर आयी । और भीङ को चीरती हुयी गद्दी के पास खङी हो गयी । तभी अब तक शान्त बैठी तन्दुरस्त फ़ूला और सुषमा हय्याऽऽ हय्याऽऽ चिल्लाती हुयी खङी हो गयी । और उन औरतों और लङकियों को गिरा गिराकर मारने लगी । उन्होंने बेदर्दी से उनके कपङे फ़ाङ डाले । कुछ हौसला मन्द उनका हस्तक्षेप करने आगे बङे । पर फ़िर किसी अज्ञात प्रेरणा से बँधे हुये से कसमसा कर खङे रह गये ।
शायद ही उस गाँव में ऐसा नंगा नाच कभी हुआ हो । बिलकुल द्रौपदी चीरहरण जैसा दृश्य था । और सभी महाबली नपुंसक की भांति असहाय से खङे थे । और अपने ही घर की औरतों की बेइज्जती का खुद तमाशा देखने को विवश थे । प्रसून की निगाह रत्ना पर गयी । वह मानों बारबार अपने आँसू पोंछ रही थी । आँसू जो प्रेतों को कभी नहीं आते ।
आखिरकार कोई बारह बजे समझौते की बात शुरू हो ही गयी । माध्यम अभी भी वे ही दोनों थी ।
- क्या समझौता करायेगा तू । फ़ूला भङक कर बोली - ये साले इंसान कहाँ है । जो कोई समझौता करेंगे । ये साले हिजङे हैं हिजङे । एक अवला पर मर्दानगी दिखाने वाले हिजङे । किसी गरीब सीधे साधे इंसान का घरबार उजाङ देने वाले नपुंसक । नामर्द साले । और बाबे । तू भी फ़ूट ले । यहाँ से । साले । कोई समझौता नहीं होगा । सबको वहाँ...। उसने शालिमपुर के शमशान की तरफ़ उँगली उठाई । और दाँत पीसकर बोली - वहाँ पहुँचाकर ही छोङूँगी । कुत्तो तुम्हारे आँगन में अब बच्चे नहीं । मौत खेलेगी । सिर्फ़ मौत ।
तमाम भीङ में भय की सिहरन दौङ गयी । उनके रोम का एक एक बाल खङा हो गया । औरतें और लङकियाँ तो फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी । यह फ़रमान सुनकर भीङ में चिल्ली सी मच गयी ।
- समझने की कोशिश करो । वह मिन्नतें सी करता हुआ बोला - इंसान गलतियों का पुतला होता है । अगर उसमें गलती ना हो । तो वह देवता ना हो जाये । फ़िर वह फ़ुसफ़ुसाकर बहुत धीमे से बोला - अभी लात पङी ना । तो सब फ़िल्मी डायलाग भूल जायेगी । मुझसे भी मजा ले रही है । कम से कम मुझसे तो तमीज से बोल ।
- ये कोई ऐसी गलती नहीं । वह फ़िर से चिल्लाई - जो माफ़ की जाये महात्मा । बुला उन साले कुत्तों को । जो कार में छुपे बैठे है । भैण के..।
प्रसून ने जोर से आवाज लगाई । तो वे आ गये । फ़ूला और सुषमा को उन्हें देखकर एकदम बिजली सी चमकी । और वे उस पर झपट पङी । उस अदम्य अदभुत शक्ति के आगे प्रसून के बचाते बचाते भी दोनों ने उनको धुन ही दिया । और फ़िर कामारिका और कपालिनी पूरी मस्ती में आ गयी । प्रसून के रोकते रोकते उन्होंने चर्रऽऽ से ब्लाउज फ़ाङ दिया । और मानों घुटन से आजाद होकर मुक्ति महसूस की । महावीर और इतवारी की शर्म से गरदन झुक गयी ।
- क्यों । वह व्यंग्य से बोली - जब दूसरों की औरत को नंगा करते हो । तब शर्म नहीं आती । जब उसको बेआबरू करते हो । तब तुम्हारी शर्म कहाँ जाती है । देखो आज तुम्हारे घर की इज्जत भरे बाजार बेइज्जत हो रही है । अब दो मूँछो पर ताव । सालों हिजङों । थू । थू है तुम पर ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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ये सब छोङ । उसने मानों फ़रियाद की - समझौते की बात बोल ।
- मैंने कहा ना । वह जिद भरे स्वर में बोली - कोई समझौता नहीं हो सकता । इन कुत्तों को मरना ही होगा । जैसे को तैसा । ये प्रभु का बनाया नियम है ।
- उसी प्रभु ने । प्रसून झूठी हताशा का प्रदर्शन करता हुआ बोला - दया का भी नियम बनाया है । माफ़ी का भी नियम बनाया है । इंसान को सुधारने हेतु बहुत गुंजाइश है । उसके कानून में ।
- तो सुन बाबा । वह आदतानुसार छिपाकर फ़िर भी प्रसून को आँख मारने से नहीं चूकी । और फ़िर साधारण उच्च स्वर में बोली - इस गाँव में इस दैवीय तवाही का कारण है । नरसी और उसके परिवार पर हुआ बेइंतिहा जुल्म । जिसको इसमें बैठे से बहुत से नामर्द जानते भी हैं । बहुत सी औरतें भी जानती हैं । पर वे चुप हैं । बोलो बोलो । अब क्यों चुप हैं । अतः उसकी कब्जायी जमीन पर गाँव वालों के पैसे से एक शानदार मन्दिर बनबाया जाय । उसमें एक तरफ़ नरसी उसकी बीबी और बच्चों की यादगार मूर्तियाँ लगवायीं जाय । ताकि किसी निर्दोष पर हुये हैवानी जुल्म । और उसके बाद ईश्वर के बेआवाज लाठी की मार से फ़ैला ये दैवीय प्रकोप इस गाँव के इतिहास में सदा के लिये लिख जाय । और कोई जालिम किसी पर जुल्म करने से पहले सौ बार सोचे । हजार बार सोचे ।
और ये दोनों परिवार । उसने इतवारी और महावीर की तरफ़ इशारा किया - इस दैवीय प्रकोप और वायु प्रकोप से मुक्ति हेतु किसी वैष्णों देवी जैसे मन्दिर के लिये आज के आज यहीं से निकल जाय । तब कुछ शान्ति संभव है । वरना..। वह बेहद खतरनाक स्वर में बोली - वरना इस गाँव के घरों में चूल्हे नहीं । चितायें जलेगी । चितायें ।
- प्रसून जी ! तभी उसे रूपिका का संदेश सुनाई दिया - कृपया जल्दी खत्म करें इसे । समय ऊपर हो रहा है । चुङैलों का तो ऐसी मस्ती करने का स्वभाव होता है । पर आपको क्यों मजा आ रहा है । मैं समझ नहीं पा रही । कृपया समय पर ध्यान दें । समय अपनी कार्यवाही हेतु तैयार है ।
वास्तव में वह सही कह रही थी । जाने क्यों उसे लग रहा था । ये रात आठ घण्टे के बजाय आठ सौ घण्टे की होती । और वह इन दुष्टों को भरपूर त्रासित करता । जाने क्यों उसके अन्दर एक वक्ती तौर पर राक्षस सा पैदा हो गया था । जो खुलकर अट्टाहास करना चाहता था । खुलकर उन सबको बताना चाहता था । उसके न्याय में तिनका भर रियायत नहीं है । बेबकूफ़ इंसान । उसका कानून है - आँख का बदला आँख । हाथ का बदला हाथ । बेइज्जती का बदला बेइज्जती । और जान का बदला जान । जान ।
उसने इतवारी और महावीर को देखा । और मानों इशारे से पूछा । समझौते की शर्त मंजूर है । या नहीं । पर उनकी हालत तो पैना छुरा लिये कसाई के सामने खङे उस बकरे की तरह थी । जो पूछ रहा था - भाई ! तुझे झटके से हलाल कर दूँ । या धीरे धीरे रेतकर । और बकरा कह रहा था - जैसे मर्जी कर । अब हलाल तो होना ही है ।
सभी गाँव वाले खुश थे । गाँव पर पिछले दो दिन से छाई तबाही उस लङके जैसे महात्मा की कृपा से टल चुकी थी । सभा समाप्त हो गयी थी । इंसाफ़ की अदालत उठ चुकी थी । फ़ैसला सुनाया जा चुका था ।
महावीर और इतवारी सोच रहे थे कि दो चार दिन बाद वैष्णों देवी आदि जायें । उन्होंने प्रसून से इस बात का मशविरा किया । तो उसने बेहद लापरवाही से कहा । जो आपकी मर्जी । जो आपको ठीक लगे । पर तभी और लोगों ने याद दिलाया कि देवियों ने सीधा यही के बाद जाने को कहा था । अतः फ़ालतू में उनको नाराज करना ठीक नहीं । जो फ़िर से कोई नई तवाही आये । इसलिये सूमो से आज का आज ही अभी निकल जाओ । मौत के भय से भयभीत उन दोनों को भी यही उचित लगा ।
और उसी सूमो में महावीर और इतवारी का परिवार उसी समय मामूली तैयारी के साथ अपनी नयी यात्रा हेतु चल पङा । वे सब कोई दस लोग हुये थे ।
तब प्रसून ने मानों फ़ुरसत में रत्ना की तरफ़ देखा । वह चलता हुआ अपनी कार के पास आया । तो रत्ना ने इशारे से अपने घर जाने हेतु पूछा । जिसे इशारे से ही प्रसून ने मना कर दिया । और वहीं का वहीं बैठे रहने को कहा । जब तक वह न कहे । वह शान्त हो गयी ।
सूमो थोङी दूर निकल चुकी थी । तब प्रसून ने गाङी स्टार्ट की । और एक निश्चित फ़ासले के साथ सूमो के पीछे लगा दी । उसने एक सिगरेट सुलगाई । और बङे सकून के साथ स्टेयरिंग पर हाथ घुमाने लगा । कुछ ही देर में दोनों गाङियाँ बाईपास रोड पर आ गयी । इस सङक पर वाहनों का आना जाना 24 घण्टे ही रहता था । वह बङी बेसबरी से किसी खास बात का इंतजार कर रहा था ।
और तब उसे महावीर की गाङी के ठीक आगे ऊँचाई पर रूपिका नजर आयी । वह अपने आरीजनल रूप में थी । उसके हाथ में हड्डी का बना एक मुगदर सा हथियार था । वह पूर्णतः नग्न थी । और स्याह काली थी । उसकी आँखे बहुत छोटे लाल बल्ब के समान चमक रही थी ।

और तब अचानक ही महावीर की आँखों के सामने एक रील सी चलने लगी । जिन्दगी के बाद चलने वाली । मौत की रील । और मौत से ठीक पहले चलने वाली रील । उसे सफ़ेद साङी पहने लम्बे खुले लहराते बालों वाली रत्ना दिखाई दी । जो बाहें फ़ैलाकर उसको बुला रही थी । उसे उसके दो नन्हें बच्चे दिखाई दिये । जो उसको उँगली के इशारे से बुला रहे थे । उसे नरसी भी दिखाई दिया । वह भी उसे बुला रहा था । उसके जीवन में जो जो हत्यायें उसके सामने या उसके द्वारा हुयी थी । वे सभी जीवित हो उठे । और अपने पास बुलाने लगे ।
फ़िर उसे अपना मृत शरीर दिखाई दिया । जिस पर तमाम चील कौवे मँडरा रहे थे । और तमाम उसको नोच नोच कर खा रहे थे । तब आगे उसने अपने आपको एक चिलचिलाती धूप में एक विशाल बंजर मैदान में खङे अकेले को देखा । फ़िर उसे वे सब जीव जन्तु नजर आये । जिसका उसने कभी आहार किया था । तमाम अण्डे उसके सर पर बारबार गिर गिर कर फ़ूट रहे थे । उसके द्वारा खाये चूजे मुर्गे तीतर उसके घायल शरीर में बारबार चोंच मार रहे थे । वह बुरी तरह पीङा से तङप रहा था । केकङे झींगे मछलियाँ आदि जो कभी उसका आहार बने थे । वे उसका माँस नोच रहे थे । उसके द्वारा खाये बकरे अपने पैने सींगों से उसको बारबार घायल करके फ़िर से सींग घुसा देते थे । इन सबके बीच वह अकेला असहाय पीङा से चीख रहा था । और बारबार भगवान से दुहाई कर रहा था । फ़िर कभी ऐसा पाप न करने की कसम खा रहा था । गिङगिङा रहा था । माफ़ी देने की गुहार लगा रहा था । पर उसकी सुनने वाला कोई नहीं था ।
फ़िर उसे काले भयंकर यमदूत दिखाई दिये । जिनके हाथ में पैने काटेदार हथियार थे । वे उसको निर्दयता से मारते हुये नरक की तरफ़ ले जा रहे थे । और एक लम्बी यातना के बाद उसको विशाल भयानक अग्निकुण्ड के नरक में झोंक दिया गया । जहाँ तमाम अन्य जीवात्मायें हा हाय हा करते हुये तङप रही थी । बिलबिला रहे थे । रहम रहम की पुकार कर रहे थे । पर उस पुकार को सुनने वाला कोई नहीं था ।
- देख लिया । तब अचानक उसे गाङी के शीशे में से आसमान में खङी रूपिका साफ़ साफ़ खुली आँखों से दिखाई दी । और सुनाई भी दी - यही तेरे साथ होना है पापी । ये प्रभु की अदालत है । यह उन सर्वशक्तिमान प्रभु की एक सटीक और स्वचालित न्याय व्यवस्था है । देख गौर से । वह फ़िर चिल्लाई - क्या यहाँ कोई न्यायाधीश है । तुझे नजर आया क्या ? सिर्फ़ तू है । और तेरे कर्मफ़ल हैं । यहाँ तू ही वादी है । तू ही प्रतिवादी है । तू ही खुद गवाह है । तू ही खुद सबूत है । तू ही मुकद्दमा भी है । तू ही खुद अदालत भी है । तू ही फ़ैसला है । और न्यायाधीश भी तू ही है ।
अतः हे आत्मा ! मैं तुझसे फ़रियाद करती हूँ । तू अब अपना न्याय खुद कर । क्योंकि सृष्टि रचना करते समय ये कानून तेरा खुद का बनाया हुआ था । जिसे तू खुद की बनायी माया में फ़ँसकर भूल गया । भूल गया तू । इसलिये न्याय कर । और सही इंसाफ़ कर । सच्चा इंसाफ़ । वही इंसाफ़ । जिसके सख्त कानून से ये पूरी सत्ता एक तिनका भी हिले बिना स्वचालित चल रही है । इसलिये सच्चा इंसाफ़ कर । क्योंकि अब तेरे फ़ैसले का वक्त आ गया है ।
किसी भी जीवन का ये अंतिम अटल सत्य साक्षात देखकर महावीर की आँखों से आँसुओं की मोटी मोटी धारायें बह रही थी । उसका पूरा चेहरा अपने ही आँसुओं से तरबतर था । पर वह मानों अपने होश में नहीं था । स्टेयरिंग पर उसके हाथ आटोमैटिक ही चल रहे थे । वास्तविकता यही थी । वह गाङी बहुत देर से नहीं चला रहा था । बल्कि वह यन्त्र की भांति आटोमैटिक ही चल रही थी । गाङी में बैठे अन्य लोग दीन दुनियाँ से बेपरवाह नींद की झपकियाँ सी ले रहे थे ।
और तब अचानक उसके हाथ स्टेयरिंग पर कस गये । उसने एक निगाह गाङी के लोगों पर डाली । और दृण स्वर में बोला - हाँ.. । हाँ.. मैं अपने सभी अपराध कबूल करता हूँ । और चाहता हूँ कि मुझ पर कोई दया न की जाय । कोई रहम न हो । हे मालिक । तू सर्वशक्तिमान है । और न्यायप्रिय है ।
सहसा प्रसून ने गाङी रोक दी । वे काफ़ी दूर आ चुके थे । अब दोनों गाङियाँ बिना फ़ाटक की क्रासिंग लाइन को काटती सङक पर चल रही थीं । उसने गेट खो्ला । और बाहर निकल आया । कुछ ही दूरी पर रेलवे लाइन पर एक्सप्रेस गाङी धङधङाती हुयी तेज रफ़्तार से आ रही थी । एक्सप्रेस और सूमो में मानों उस क्रासिंग प्वाइंट को - पहले मैं..स्टायल में पार करने की शर्त लगी थी ।
फ़िर एक भीषण विस्फ़ोट हुआ । और सूमो के परखच्चे उङ गये । प्रसून ने पहली बार खुलकर राक्षसी अट्टाहास किया । और करता ही चला गया । रूपिका ने उसे डन का अँगूठा दिखाया । और आसमान में ही लुप्त हो गयी । प्रसून ने मुढकर रत्ना की तरफ़ देखा । तो उसने बेहद नफ़रत से मुँह फ़ेर लिया । उसके चेहरे पर प्रसून के लिये अपार नफ़रत थी । उसने महा राक्षस को देवता समझने की भूल की थी ।
प्रसून ने उसकी हालत को समझते हुये भी । उसकी नफ़रत को जानते हुये भी मन ही मन इस देवी को प्रणाम किया । और गाङी वापस कामाक्षा की ओर मोङ दी ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

Post by xyz »

फ़िर उसी दिन । लगभग उसी समय । रात के दस बजे ।
जब महावीर प्रसून से पहली बार मिला था । और सुरेश की चिता जल रही थी । शालिमपुर के शमशान में आज दस चितायें एक साथ जल रही थी ।
आज की सुबह शालिमपुर में हाहाकार मचाती हुयी आयी थी । शहर से 40 किमी दूर हुयी नालन्दा एक्सप्रेस और सूमो की भीषण टक्कर की खबर आग की तरह पूरे शहर में फ़ैल गयी थी । हर न्यूज चैनल पर ये खबर प्रमुखता से प्रसारित हो रही थी । पर प्रसून लापरवाह सा घोङे बेचकर सो रहा था ।
वह रत्ना को छोङने जब शालिमपुर के शमशान तक गया था । तव पौ फ़टने ही वाली थी । रत्ना उसकी तरफ़ देख भी नहीं रही थी । उसके दिल में प्रसून के लिये सिर्फ़ घोर नफ़रत ही थी । घोर नफ़रत । वह चुपचाप बिना उसकी तरफ़ देखे खोह में चली गयी । उसने भी उससे बातचीत करने की कोई कोशिश नहीं की । और वापस कामाक्षा लौट आया । रत्ना की तरह उसके मन में भी कुछ सवाल थे ।
दोपहर के बारह बजे वह उठा । और गाङी लेकर महुआ बगीची पार करके रूपिका के पास पहुँचा । वह खुशी और दुख दोनों एक साथ महसूस कर रहा था ।
- मुझे । वह परेशान सा बोला - यह फ़ैसला कुछ समझ नहीं आया । ये कैसा अजीव इंसाफ़ था । सूमो में बैठे मारे गये अन्य आठ लोगों की किस बात की सजा मिली ? जो उन्हें अकाल मौत मार दिया गया ।
- प्रसून जी ! रूपिका गम्भीरता से बोली - ये अकाल मौत नहीं थी । बल्कि सबकी काल मौत थी । काल उन ग्रामवासियों पर ही नहीं पूरे गाँव पर मंडरा रहा था । यूँ समझो । बाकी सब बहुत सस्ते में छूट गये । माफ़ी पा गये । और आप अफ़सोस मना रहे हो ।
- स्पष्ट बोलो । वह झुँझलाकर बोला - महावीर और इतवारी के परिवार को किस बात का दण्ड मिला । क्या सिर्फ़ इस बात का कि वे उसके परिवार के थे ?
- नहीं । वह दृणता से बोली - कभी किसी को । किसी बात का । दण्ड इसलिये नहीं मिलता कि वह किसी से जुङा है । या उसका परिचित है । या उसके साथ है । सबको अपने अपने कर्मा गति से ही विधान अनुसार दण्ड मिलता है । और विधि के संयोग से ऐसा समय आने पर सब इकठ्ठे हो जाते हैं । और स्वतः ही मृत्यु पथ पर चल देते हैं । और कभी ये भृम भी मत पालो कि ये सब आपने किया है । या मैंने किया है । हम सब बस निमित्त हैं । कठपुतलियाँ हैं । जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ है । वह जैसा चाहता है । नचाता है ।
और प्रसून जी ! मुझे भी कभी कभी हैरत होती है । ये सब कुछ एक बङे ही स्वचालित ढंग से स्वयं ही क्रियान्वित हो रहा है । न कोई मर रहा है । न कोई किसी को मार रहा है । ये सब कुछ स्वयँ ही हो रहा है । तुम ज्ञानी पुरुष हो । फ़िर अज्ञान युक्त वाक्य क्यों बोलते हो । जब वही परमात्मा सब में एक ही है । तो ये सब उसका खेल ही है ।
देखो । वह फ़िर से बोली - इंसान का जीवन एक कच्चे घङे के समान है । जिसमें आयु रूपी जल भरा हुआ है । विभिन्न पाप कर्मों से इस घङे में छेद हो जाता है । तब आयु रूपी जल बूँद बूँद करता हुआ तेजी से कम होने लगता है । और घङा खाली हो जाने पर जीव मृत्यु को प्राप्त होता है । अब ये सब किसने किया । खुद उसी इंसान ने ना ।
देखो । उसने सामने जमीन पर उगे पेङों की ओर इशारा किया - यहाँ अच्छे फ़ूलदार फ़लदार पौधे भी हैं । और तन

को छेद देने वाले । पीङा देने वाले । कांटेदार वृक्ष भी हैं । एक सुख देता है । दूसरा दुख देता है । ये सब अपने कर्मों अनुसार । कोई किसी के पास । कोई किसी के पास । उगने रहने को विवश हैं । फ़िर यहाँ एक तवाही होती हैं । और तव कुछ अच्छे । कुछ बुरे । पेङ पौधे नष्ट हो जाते हैं । और भयंकर तवाही के बाद भी । कुछ आश्चर्यजनक रूप से बच जाते हैं । अब बोलो । तवाही समान रूप से इस क्षेत्र में हुयी । फ़िर अंजाम अलग अलग क्यों हुआ ? सोचो । गहराई से सोचो ।
प्रसून ने पूर्ण सहमति में सिर हिलाया । उसे कुछ समय पूर्व हुयी सुनामी की तवाही याद आयी । जिसमें शहर के शहर । देश के देश । बिलकुल मिट ही गये थे । जबकि दूध पीते अनेकों मासूम बच्चे किसी चमत्कार की तरह सकुशल बचे थे । न सिर्फ़ बचे थे । उन्हें मामूली खरोंच भी नहीं आयी थी ।
उसे यकायक तमाम वे घटनायें याद आयीं । जिनमें 70 मंजिला तक से निर्दयता से फ़ेंके गये दूध पीते बच्चे किसी पेङ आदि की शाखा में उलझकर सकुशल बचे थे । बिना कोई मामूली रगङा खाये भी ।
- इसलिये । रूपिका फ़िर से बोली - ये कभी मत समझो । जो आज घट रहा है । वो आज की वजह से है । या पिछले कुछ दिनों के कर्मों का परिणाम है । या सिर्फ़ इस जीवन के कर्मों की ही वजह से है । वास्तव में ये सिलसिला लाखों जन्मों में कभी पूर्व में किये कर्मों का परिणाम है । जो आज वृक्ष बनकर फ़ल फ़ूल रहा है । ये सभी कर्मफ़ल संयोग जब एक जगह इकठ्ठा हो जाते हैं । तब शालिमपुर जैसी घटना घटती है । मैं बस इतना ही जानती हूँ । और जो मुझे पता था । वो मैंने तुम्हें बताया ।
- दाता ! उसके मुँह से कराह निकली - तेरा अन्त न जाणा कोय ।
- खैर ! वह फ़िर से जान बूझ कर बोला - अब रत्ना और उसके बच्चों के बारे में बोलो । उनका क्या होगा ।
नरसी का क्या होगा ? सुरेश की क्या गति हुयी होगी ? और इन दसों की क्या गति होगी ।
- हाँ । वह भावहीन शून्यता से बोली - सुरेश तो पहले ही नरक में गया । महावीर और इतवारी भी मेरी जानकारी के अनुसार भयानक नरक में जायेंगें । अन्य आठ लोग भी कुछ समय के लिये अपने कर्म अनुसार थोङे समय हेतु साधारण अन्य नरकों में जायेंगे । फ़िर भगवान जाने । उनका क्या होगा । मुझे यही तक की गति मालूम रहती है । क्योंकि ये मेरे कार्यक्षेत्र में आता है ।
और रत्ना और उसके परिवार की आप चिन्ता मत करो । नरसी पहले ही सुरेश की पत्नी के गर्भ में जा चुका है । रत्ना भी उसी के खानदान में जन्म लेगी । और उसके बच्चे भी । इन सभी की आयु अभी शेष है । रत्ना दोबारा से संस्कार शेष होने से नये जन्म में फ़िर से नरसी की पत्नी होगी । उसके बच्चे भी किसी न किसी रूप में उनके सम्बन्धी होंगे । बस खास बात ये होगी कि जिस बीस बीघा जमीन के लिये सुरेश ने उसे मार दिया था । वह तो उसकी होगी ही । और भी उसकी तमाम जमीन का वह मालिक होगा । सुरेश की पत्नी अपने पुत्र और पुत्रवधू को बहुत प्यार करने वाली होगी । और इस सबकी व्यवस्था । मतलब उन तीनों के पुनर्जन्म की व्यवस्था अगले तीन महीनों तक हो जायेगी । और क्योंकि वे जीवात्मायें पुनर्जन्म के लिये विशेष श्रेणी में आ गयीं । इसलिये प्रेत प्रेतनियाँ उनको तब तक मेरे आदेश से कभी तंग नहीं करेंगे ।
कहकर वह चुप हो गयी । प्रसून ने सतुष्टि की एक गहरी सांस भरी ।
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