इंसाफ कुदरत का
रात का अँधेरा चारों और फ़ैल चुका था । रजनी के काले आँचल में चमकते चाँदी के मोतियों से झिलमिलाते सितारे एक लुभावना दृश्य पैदा कर रहे थे । इस पहाङी की सुरम्य गोद में बहती ठण्डी शीतल हवा तन मन को बेहद सुकून सा पहुँचा रही थी । काली गहरी रात का ये रंगीन मौसम हर प्रेमी जोङे को एक दूसरे की बाँहों में समा जाने के लिये प्रेरित कर रहा था । पर प्रसून इस खुशनुमा माहौल में बैचैनी से करवटें बदल रहा था । उसका सारा बदन किसी दहकती भट्टी के समान तप रहा था ।
- माँ ! उसके मुँह से कराह सी निकली - तू कहाँ है । आज मुझे तेरी बहुत याद आ रही है । आज मुझे तेरी बहुत जरूरत महसूस हो रही है । मेरे पास आ ना माँ । मुझे अपने ममता के आँचल में सुला ले ।
वह चारपाई से उठकर बैठ गया । उसकी उदास सूनी सूनी आँखों में से आँसू मोती बनकर गालों पर आ रहे थे । वह पिछले तीन दिनों से तेज बुखार में जल रहा था । और खुद को बेहद अकेला महसूस कर रहा था । आज उसे अपना बचपन याद आ रहा था । माँ की ममतामयी गोद याद आ रही थी । वह सोच रहा था । किसी जादू की तरह माँ उसके करीब होती । और वह उसके आँचल में छुपकर किसी मासूम बच्चे की भांति सो जाता । उसने सोचा । सच है माँ ..माँ ही होती है । उसकी जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता ।
वह जी भर के किसी बच्चे की भांति फ़ूट फ़ूट कर रोना चाहता था । माँ के सीने से लग जाना चाहता था । पर माँ नहीं थी । दूर दूर तक नहीं थी । उसने उँगलियों से खुद ही अपने बहते हुये आँसुओं को पोंछा । और रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया । रात के 9 बजने ही वाले थे ।
इंसाफ कुदरत का
- xyz
- Expert Member
- Posts: 3886
- Joined: 17 Feb 2015 17:18
इंसाफ कुदरत का
Friends Read my all stories
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
- xyz
- Expert Member
- Posts: 3886
- Joined: 17 Feb 2015 17:18
Re: इंसाफ कुदरत का complete
इस समय वह कामाक्षा मन्दिर की सबसे ऊपरी छत पर था । और एकदम अकेला था । कामाक्षा मन्दिर में किसी कामरूपा देवी की स्थापना थी । जो वहाँ के पुजारी चाऊँ बाबा के अनुसार कामहीनता से गृसित स्त्री पुरुषों की उनकी पूजा के आधार पर मनोकामना पूर्ण करती थी । कोई पुरुष पौरुषहीनता का शिकार हो । किसी स्त्री में कामेच्छा उत्पन्न न होती हो । सम्भोग में तृप्ति न होती हो । स्त्रियों के अंग विकसित न होते हो । आदि ऐसी इच्छाओं को कामरूपा से मन्नत माँगने पर वे अक्सर पूरी हो जाती थी ।
कामाक्षा मन्दिर अजीव स्टायल में बना था । एक बेहद ऊँची पहाङी के ठीक पीछे उसकी तलहटी में बना ये मन्दिर हर दृष्टि से अजीव था । मन्दिर की सबसे ऊपरी तिमंजिला छत और पहाङी की चोटी लगभग बराबर थी । वह पहाङी घूमकर मन्दिर से इस तरह सटी हुयी थी कि मन्दिर की इस छत से सीधा पहाङी पर जा सकते थे । पहाङी के बाद लगभग एक किमी तक छोटी बङी अन्य पहाङियों का सिलसिला था । और उनके बीच में कई तरह के जंगली वृक्ष झाङियाँ आदि किसी छोटे जंगल के समान उगे हुये थे । इस छोटे से पहाङी जंगल के बाद बायपास रोड था । जिस पर 24 आवर वाहनों का आना जाना लगा रहता था । मन्दिर के बैक साइड में कुछ ही दूर चलकर यमुना नदी थी । यहाँ यमुना का पाट लगभग 300 मीटर चौङा हो गया था । और गहराई बहुत ज्यादा ही थी । यमुना पार करके कुछ दूर तक खेतों का सिलसिला था । फ़िर एक बङा मैदान और लम्बी चौङी ऊसर जमीन थी । इसी ऊसर जमीन पर बहुत पुराना शमशान था । और इसके बाद शालिमपुर नाम का गाँव था ।
फ़िर वह उठकर टहलने लगा । उसने एक सिगरेट सुलगाई । और हल्का सा कश लिया । मगर तेज बुखार में वह सिगरेट उसे एकदम बेकार बेमजा सी लगी । उसने सिगरेट को पहाङी की तरफ़ उछाल दिया । और यमुना के पार दृष्टि दौङाई । दूर शालिमपुर गाँव में जगह जगह जलते बल्ब किसी जुगनू की भांति टिमटिमा रहे थे । शमशान में किसी की चिता जल रही थी । चिता..इंसान को सभी चिन्ताओं से मुक्त कर देने वाली चिता । एक दिन उसकी भी चिता जल जाने वाली थी । और तब वह जीता जागता चलता फ़िरता माटी का पुतला फ़िर से माटी में मिल जाने वाला था । क्या इस जीवन की कहानी बस इतनी ही है ?
किसी फ़िल्मी परदे पर चलती फ़िल्म । शो शुरू । फ़िल्म शुरू । शो खत्म । फ़िल्म खत्म ।
वह पिछले आठ दिनों से कामाक्षा में रुका हुआ था । और शायद बेमकसद ही यहाँ आया था । अब तो उसे लगने लगा था । उसकी जिन्दगी ही बेमकसद थी । क्या मकसद है ? इस जिन्दगी का ?
ओमियो तारा की कैद में बिताये जीवन के 6 महीनों ने उसकी सोच ही बदल दी थी । उसे लगा । सब कुछ बेकार है । सब कुछ । सत्य शायद कुछ भी नहीं है । और कहीं भी नहीं है । वह 3 आसमान तक पहुँच रखने वाला योगी था । हजारों लोकों में स्वेच्छा से आता जाता था । पर इससे क्या हासिल हुआ था ? कुछ भी तो नहीं ।
ये ठीक ऐसा ही था । जैसे प्रथ्वी के धन कुबेर अपने निजी जेट विमानों से कुछ ही देर में प्रथ्वी के किसी भी स्थान पर पहुँच जाते थे
कामाक्षा मन्दिर अजीव स्टायल में बना था । एक बेहद ऊँची पहाङी के ठीक पीछे उसकी तलहटी में बना ये मन्दिर हर दृष्टि से अजीव था । मन्दिर की सबसे ऊपरी तिमंजिला छत और पहाङी की चोटी लगभग बराबर थी । वह पहाङी घूमकर मन्दिर से इस तरह सटी हुयी थी कि मन्दिर की इस छत से सीधा पहाङी पर जा सकते थे । पहाङी के बाद लगभग एक किमी तक छोटी बङी अन्य पहाङियों का सिलसिला था । और उनके बीच में कई तरह के जंगली वृक्ष झाङियाँ आदि किसी छोटे जंगल के समान उगे हुये थे । इस छोटे से पहाङी जंगल के बाद बायपास रोड था । जिस पर 24 आवर वाहनों का आना जाना लगा रहता था । मन्दिर के बैक साइड में कुछ ही दूर चलकर यमुना नदी थी । यहाँ यमुना का पाट लगभग 300 मीटर चौङा हो गया था । और गहराई बहुत ज्यादा ही थी । यमुना पार करके कुछ दूर तक खेतों का सिलसिला था । फ़िर एक बङा मैदान और लम्बी चौङी ऊसर जमीन थी । इसी ऊसर जमीन पर बहुत पुराना शमशान था । और इसके बाद शालिमपुर नाम का गाँव था ।
फ़िर वह उठकर टहलने लगा । उसने एक सिगरेट सुलगाई । और हल्का सा कश लिया । मगर तेज बुखार में वह सिगरेट उसे एकदम बेकार बेमजा सी लगी । उसने सिगरेट को पहाङी की तरफ़ उछाल दिया । और यमुना के पार दृष्टि दौङाई । दूर शालिमपुर गाँव में जगह जगह जलते बल्ब किसी जुगनू की भांति टिमटिमा रहे थे । शमशान में किसी की चिता जल रही थी । चिता..इंसान को सभी चिन्ताओं से मुक्त कर देने वाली चिता । एक दिन उसकी भी चिता जल जाने वाली थी । और तब वह जीता जागता चलता फ़िरता माटी का पुतला फ़िर से माटी में मिल जाने वाला था । क्या इस जीवन की कहानी बस इतनी ही है ?
किसी फ़िल्मी परदे पर चलती फ़िल्म । शो शुरू । फ़िल्म शुरू । शो खत्म । फ़िल्म खत्म ।
वह पिछले आठ दिनों से कामाक्षा में रुका हुआ था । और शायद बेमकसद ही यहाँ आया था । अब तो उसे लगने लगा था । उसकी जिन्दगी ही बेमकसद थी । क्या मकसद है ? इस जिन्दगी का ?
ओमियो तारा की कैद में बिताये जीवन के 6 महीनों ने उसकी सोच ही बदल दी थी । उसे लगा । सब कुछ बेकार है । सब कुछ । सत्य शायद कुछ भी नहीं है । और कहीं भी नहीं है । वह 3 आसमान तक पहुँच रखने वाला योगी था । हजारों लोकों में स्वेच्छा से आता जाता था । पर इससे क्या हासिल हुआ था ? कुछ भी तो नहीं ।
ये ठीक ऐसा ही था । जैसे प्रथ्वी के धन कुबेर अपने निजी जेट विमानों से कुछ ही देर में प्रथ्वी के किसी भी स्थान पर पहुँच जाते थे
Friends Read my all stories
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
- xyz
- Expert Member
- Posts: 3886
- Joined: 17 Feb 2015 17:18
Re: इंसाफ कुदरत का
लेकिन उससे क्या था । प्रथ्वी वही थी । सब कुछ वही था । फ़िर सत्य कहाँ था । सत्य कहाँ है ?
वह तमाम लोकों में गया । सब जगह । सब कुछ यही तो था । वही सूक्ष्म स्त्री पुरुष । वही कामवासना । वैसा ही जीवन । सब कुछ वैसा ही । क्या फ़र्क पङना था । अपनी कुछ योग उपलब्धियों के बाद वह इनमें से किसी लोक का वासी हो जाता । और लम्बे समय के लिये हो जाता । मगर अभी तलाश पूरी कहाँ हुयी । वह तलाश जिसके लिये उसने अपना जीवन ही दाव पर लगाया था । सत्यकीखोज । आखिर सत्य क्या है ?
यह रहस्यमय अजूबी सृष्टि आखिर किसने बनाई । कैसे बनी । किस नियम से चलती है । इसका नियन्त्रण आखिर कहाँ है । यह सब कुछ जानना तो दूर । उसे एक भी प्रश्न का सही उत्तर नहीं मिला था ।
ओमियो तारा जैसा योगी अपनी योग शक्तियों से भगवान बैठता है । स्वयँभू भगवान । और अन्ततः अपने ही जाल में फ़ँस जाता है । न सिर्फ़ खुद फ़ँसता है । बल्कि अपने 4D पिंजरे के जाल में कई निर्दोष आत्माओं को फ़ँसा देता है ।
ओमियो तारा की याद आते ही प्रसून के शरीर में अनजाने भय की झुरझुरी सी दौङ गयी । वह खुद बङी मुश्किल से 4D Matter होते होते बचा था । अगर वह 4D Matter हो जाता । फ़िर उसका क्या होता ? क्या उसके गुरु उसे बचाते । वह कितने समय तक उस स्थिति में रहता । ऐसे तमाम सवालों का कोई जबाब उसके पास नहीं था ।
बेचारा नीलेश उसे जाने क्या क्या समझ बैठा था । और छोटी मोटी तन्त्र मन्त्र उपलब्धियों को पाकर समझता था कि वह जीवन के अन्तिम सत्य को एक दिन उसकी सहायता से समझ ही जायेगा । अब वह उसे कैसे समझाये । वह अन्तिम सत्य के करीव अभी दूर दूर तक भी नहीं फ़टका था । और शायद उसके गुरु भी । क्या.. शायद द्वैत में अन्तिम सत्य है ही नहीं । अब उसका यही विचार पक्का होने लगा था ।
यही सब सोचते हुये वह फ़िर से चारपाई पर बैठ गया । चारपाई पर मच्छरों से बचने के लिये मच्छरदानी लगी हुयी थी । और मच्छरदानी की छत पर एक मोटा कपङा ओस से बचने के लिये तना हुआ था । फ़िर भी मच्छरों के झुँड आसपास मँडरा रहे थे । उसने दो क्वाइल इकठ्ठी जलाकर चारपाई के नीचे लगा दी । तभी उसे सीङियों पर किसी के आने की आहट हुयी ।
कुछ ही क्षणों में चाऊँ बाबा किसी अनजाने आदमी के साथ ऊपर आया । उसके हाथ में चाय से भरे दो गिलास थे । वे दोनों बहीं पङी बेंच पर बैठ गये । चाऊँ ने उसका हाथ थामकर बुखार देखा । और आश्चर्य से चीखते चीखते बचा । प्रसून का बदन किसी तपती भट्टी के समान दहक रहा था । उसने प्रसून के चेहरे की तरफ़ गौर से देखा । पर वह एकदम शान्त था । बस पिछले कुछ दिनों से उदासी स्थायी रूप से उसके चेहरे पर छाई हुयी थी ।
- आप कुछ औषधि क्यों नहीं लेते ? चाऊँ बेहद सहानुभूति से बोला ।
प्रसून ने कोई उत्तर नहीं दिया । उसका चेहरा एकदम भावशून्य था । वह यमुना पार के शमशान में जलती हुयी चिता को देखने लगा । चाऊँ ने साथ आये आदमी का उससे परिचय कराया । और रात के खाने के लिये उससे पूछा । जिसके लिये उसने साफ़ मना कर दिया । तब चाऊँ नीचे चला गया ।
प्रसून धीरे धीरे चाय सिप करने लगा । बाबा लोगों की इस खास तीखी चाय ने उसे राहत सी दी ।
दूसरे आदमी का नाम महावीर था । और वह इस जलती चिता के पार बसे शालिमपुर गाँव का ही रहने वाला था । चाऊँ से यह जानकर प्रसून एक पहुँचा हुआ योगी है । उच्च स्तर का तान्त्रिक मान्त्रिक है । उसे प्रसून से मिलने की जबरदस्त इच्छा हुयी । और वह ऊपर चला आया । पर प्रसून को देखकर उसे बङी हैरत हुयी । वह किसी बङी दाढी लम्बे केश और महात्मा जैसी साधुई वेशभूषा की कल्पना करता हुआ ऊपर आया था । और चाऊँ के मुँह से उसकी बढाई सुनकर श्रद्धा से उसके पैरों में लौट जाने की इच्छा रखता था ।
पर सामने जींस और ढीली ढाली शर्ट पहने इस फ़िल्मी हीरो को देखकर उसकी सारी श्रद्धा कपूर के धुँये की भांति उङ गयी । और जैसे तैसे वह मुश्किल से नमस्कार ही कर सका ।
महावीर धीरे धीरे चाय के घूँट भरता हुआ प्रसून को देख रहा था । और प्रसून रह रहकर उस जलती चिता को देख रहा था । क्या गति हुयी होगी ? इस मरने वाले की । जीवन की परीक्षा में यह पास हुआ होगा । या फ़ेल । यमदूतों से पिट रहा होगा । या बाइज्जत गया होगा । या सीधा 84 में फ़ेंक दिया गया होगा ।
वह तमाम लोकों में गया । सब जगह । सब कुछ यही तो था । वही सूक्ष्म स्त्री पुरुष । वही कामवासना । वैसा ही जीवन । सब कुछ वैसा ही । क्या फ़र्क पङना था । अपनी कुछ योग उपलब्धियों के बाद वह इनमें से किसी लोक का वासी हो जाता । और लम्बे समय के लिये हो जाता । मगर अभी तलाश पूरी कहाँ हुयी । वह तलाश जिसके लिये उसने अपना जीवन ही दाव पर लगाया था । सत्यकीखोज । आखिर सत्य क्या है ?
यह रहस्यमय अजूबी सृष्टि आखिर किसने बनाई । कैसे बनी । किस नियम से चलती है । इसका नियन्त्रण आखिर कहाँ है । यह सब कुछ जानना तो दूर । उसे एक भी प्रश्न का सही उत्तर नहीं मिला था ।
ओमियो तारा जैसा योगी अपनी योग शक्तियों से भगवान बैठता है । स्वयँभू भगवान । और अन्ततः अपने ही जाल में फ़ँस जाता है । न सिर्फ़ खुद फ़ँसता है । बल्कि अपने 4D पिंजरे के जाल में कई निर्दोष आत्माओं को फ़ँसा देता है ।
ओमियो तारा की याद आते ही प्रसून के शरीर में अनजाने भय की झुरझुरी सी दौङ गयी । वह खुद बङी मुश्किल से 4D Matter होते होते बचा था । अगर वह 4D Matter हो जाता । फ़िर उसका क्या होता ? क्या उसके गुरु उसे बचाते । वह कितने समय तक उस स्थिति में रहता । ऐसे तमाम सवालों का कोई जबाब उसके पास नहीं था ।
बेचारा नीलेश उसे जाने क्या क्या समझ बैठा था । और छोटी मोटी तन्त्र मन्त्र उपलब्धियों को पाकर समझता था कि वह जीवन के अन्तिम सत्य को एक दिन उसकी सहायता से समझ ही जायेगा । अब वह उसे कैसे समझाये । वह अन्तिम सत्य के करीव अभी दूर दूर तक भी नहीं फ़टका था । और शायद उसके गुरु भी । क्या.. शायद द्वैत में अन्तिम सत्य है ही नहीं । अब उसका यही विचार पक्का होने लगा था ।
यही सब सोचते हुये वह फ़िर से चारपाई पर बैठ गया । चारपाई पर मच्छरों से बचने के लिये मच्छरदानी लगी हुयी थी । और मच्छरदानी की छत पर एक मोटा कपङा ओस से बचने के लिये तना हुआ था । फ़िर भी मच्छरों के झुँड आसपास मँडरा रहे थे । उसने दो क्वाइल इकठ्ठी जलाकर चारपाई के नीचे लगा दी । तभी उसे सीङियों पर किसी के आने की आहट हुयी ।
कुछ ही क्षणों में चाऊँ बाबा किसी अनजाने आदमी के साथ ऊपर आया । उसके हाथ में चाय से भरे दो गिलास थे । वे दोनों बहीं पङी बेंच पर बैठ गये । चाऊँ ने उसका हाथ थामकर बुखार देखा । और आश्चर्य से चीखते चीखते बचा । प्रसून का बदन किसी तपती भट्टी के समान दहक रहा था । उसने प्रसून के चेहरे की तरफ़ गौर से देखा । पर वह एकदम शान्त था । बस पिछले कुछ दिनों से उदासी स्थायी रूप से उसके चेहरे पर छाई हुयी थी ।
- आप कुछ औषधि क्यों नहीं लेते ? चाऊँ बेहद सहानुभूति से बोला ।
प्रसून ने कोई उत्तर नहीं दिया । उसका चेहरा एकदम भावशून्य था । वह यमुना पार के शमशान में जलती हुयी चिता को देखने लगा । चाऊँ ने साथ आये आदमी का उससे परिचय कराया । और रात के खाने के लिये उससे पूछा । जिसके लिये उसने साफ़ मना कर दिया । तब चाऊँ नीचे चला गया ।
प्रसून धीरे धीरे चाय सिप करने लगा । बाबा लोगों की इस खास तीखी चाय ने उसे राहत सी दी ।
दूसरे आदमी का नाम महावीर था । और वह इस जलती चिता के पार बसे शालिमपुर गाँव का ही रहने वाला था । चाऊँ से यह जानकर प्रसून एक पहुँचा हुआ योगी है । उच्च स्तर का तान्त्रिक मान्त्रिक है । उसे प्रसून से मिलने की जबरदस्त इच्छा हुयी । और वह ऊपर चला आया । पर प्रसून को देखकर उसे बङी हैरत हुयी । वह किसी बङी दाढी लम्बे केश और महात्मा जैसी साधुई वेशभूषा की कल्पना करता हुआ ऊपर आया था । और चाऊँ के मुँह से उसकी बढाई सुनकर श्रद्धा से उसके पैरों में लौट जाने की इच्छा रखता था ।
पर सामने जींस और ढीली ढाली शर्ट पहने इस फ़िल्मी हीरो को देखकर उसकी सारी श्रद्धा कपूर के धुँये की भांति उङ गयी । और जैसे तैसे वह मुश्किल से नमस्कार ही कर सका ।
महावीर धीरे धीरे चाय के घूँट भरता हुआ प्रसून को देख रहा था । और प्रसून रह रहकर उस जलती चिता को देख रहा था । क्या गति हुयी होगी ? इस मरने वाले की । जीवन की परीक्षा में यह पास हुआ होगा । या फ़ेल । यमदूतों से पिट रहा होगा । या बाइज्जत गया होगा । या सीधा 84 में फ़ेंक दिया गया होगा ।
Friends Read my all stories
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
- xyz
- Expert Member
- Posts: 3886
- Joined: 17 Feb 2015 17:18
Re: इंसाफ कुदरत का
वह सुरेश था । अचानक महावीर की आवाज सुनकर उसकी तन्द्रा भंग हुयी । महावीर ने उसकी निगाह का लक्ष्य समझ लिया था । अतः उसके पीछे पीछे उसने भी जलती चिता को देखा । और बोला - मेरा खास परिचय वाला था । पर किसी विशेष कारणवश मैं इस । उसने चिता की तरफ़ उँगली की - इस अंतिम संस्कार में नहीं गया । कल तक अच्छा खासा था । जवान था । पठ्ठा था । चलता था । तो धरती हिलाता था । बङा अच्छा इंसान था । आज खत्म हो गया । कहते हैं ना । मौत और ग्राहक के आने का कोई समय नहीं होता । अपने पीछे दो बच्चों और जवान बीबी को छोङ गया है ।
- कैसे मरे ? प्रसून भावहीन स्वर में निगाह हटाये बिना ही बोला ।
- अब कहें तो । बङा ताज्जुब सा ही है । बस दोपहर को बैठे बैठे अचानक सीने में दर्द उठा । घबराहट सी महसूस हुयी । एक छोटी सी उल्टी भी हुयी । जिसमें थोङा सा खून भी आया । लोग तेजी से डाक्टर के पास शहर ले जाने को हुये । मगर तब तक पंछी पिजरा खाली करके उङ गया । पता तो तभी लग गया था । अब इसमें कुछ नहीं रहा । मगर फ़िर भी गाङी में डालकर डाक्टर के पास ले गये । डाक्टर ने छूते ही बता दिया । मर गया है । ले जाओ ।
वापस घर ले आये । घर से वहाँ ले आये । कहते कहते महावीर ने चिता की तरफ़ उँगली उठाई - वहाँ । जहाँ से अब कहीं नहीं ले जाना । देखिये ना । कितने आश्चर्य की बात है । आज सुबह तक ऐसा कुछ भी किसी को नहीं मालूम था । सुबह मैं इसको चलते हुये देख रहा था । और अब जलते हुये देख रहा हूँ । इसी को कहते हैं ना । खबर नहीं पल की । तू बात करे कल की ।
प्रसून ने एक गहरी साँस भरी । उसने गिलास नीचे रख दिया । अब उसे कुछ फ़ुर्ती सी महसूस हुयी । सिगरेट पीने की इच्छा भी हुयी । उसने फ़िर से एक सिगरेट सुलगा ली ।
- कैसे मरे ? प्रसून भावहीन स्वर में निगाह हटाये बिना ही बोला ।
- अब कहें तो । बङा ताज्जुब सा ही है । बस दोपहर को बैठे बैठे अचानक सीने में दर्द उठा । घबराहट सी महसूस हुयी । एक छोटी सी उल्टी भी हुयी । जिसमें थोङा सा खून भी आया । लोग तेजी से डाक्टर के पास शहर ले जाने को हुये । मगर तब तक पंछी पिजरा खाली करके उङ गया । पता तो तभी लग गया था । अब इसमें कुछ नहीं रहा । मगर फ़िर भी गाङी में डालकर डाक्टर के पास ले गये । डाक्टर ने छूते ही बता दिया । मर गया है । ले जाओ ।
वापस घर ले आये । घर से वहाँ ले आये । कहते कहते महावीर ने चिता की तरफ़ उँगली उठाई - वहाँ । जहाँ से अब कहीं नहीं ले जाना । देखिये ना । कितने आश्चर्य की बात है । आज सुबह तक ऐसा कुछ भी किसी को नहीं मालूम था । सुबह मैं इसको चलते हुये देख रहा था । और अब जलते हुये देख रहा हूँ । इसी को कहते हैं ना । खबर नहीं पल की । तू बात करे कल की ।
प्रसून ने एक गहरी साँस भरी । उसने गिलास नीचे रख दिया । अब उसे कुछ फ़ुर्ती सी महसूस हुयी । सिगरेट पीने की इच्छा भी हुयी । उसने फ़िर से एक सिगरेट सुलगा ली ।
Friends Read my all stories
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
- xyz
- Expert Member
- Posts: 3886
- Joined: 17 Feb 2015 17:18
Re: इंसाफ कुदरत का
प्रसून जी ! कुछ देर बाद महावीर बोला - पिछले कुछ महीनों से मैं एक बङी अजीव सी स्थिति का सामना कर रहा हूँ । सोच रहा हूँ । आपको कहूँ । या न कहूँ । चाऊँ महाराज आपकी बङी तारीफ़ कर रहे थे । वैसे मैं इसी सामने के गाँव में रहता हूँ । ग्रामीण भी हूँ । पर मेरे विचार एकदम आधुनिक ही हैं । साफ़ साफ़ शब्दों में कहूँ । तो मेरा ख्याल है कि भूत प्रेत जैसा कुछ नहीं होता । यह सब आदमी के दिमाग की उपज है । निरा भृम है । और किवदन्तियों से बन गयी महज एक कल्पना ही है । आपका क्या ख्याल है ? इस बारे में ।
बरबस ही प्रसून की निगाह शमशान क्षेत्र के आसपास घूमते हुये रात्रिचर प्रेतों पर चली गयी । जहाँ कुछ छोटे गणों का झुँड घूम रहा था । चिता का जलना अब समाप्ति पर आ पहुँचा था ।
उसने कलाई घङी पर निगाह डाली । दस बजने वाले थे ।
- सही हैं । फ़िर वह बोला - आपके विचार एकदम सही हैं । भूत प्रेत जैसा कुछ नहीं होता । यह आदमी की आदमी द्वारा रोमांच पैदा करने को की गयी कल्पना भर ही है । अगर भूत होते ।.. वह फ़िर से प्रेतों को देखता हुआ बोला - तो कभी न कभी । किसी न किसी को । दिखाई तो देते । उनका कोई सबूत होता । कोई फ़ोटो होता । अन्य कैसा भी कुछ तो होता । जाहिर है । यह समाज में फ़ैला निरा अँधविश्वास ही है ।
महावीर किसी विजेता की तरह मुस्कराया । उसने प्रसून से बिना पूछे ही उसके सिगरेट केस से सिगरेट निकाली । और सुलगाता हुआ बोला - ये हुयी ना । पढे लिखों वाली बात । वरना भारत के लोगों का बस चले । तो हर आदमी को भूत बता दें । और हर औरत को चुङैल । आपकी बात ने तो मानों मेरे सीने से बोझ ही उतार दिया । मेरा सारा डर ही खत्म कर दिया । सारा डर ही । मैं खामखाह कुछ अजीव से ख्यालों से डर रहा था ।
कैसे ख्याल । प्रसून उत्सुकता से बोला - मैं कुछ समझा नहीं ।
- अ अरे व वो कुछ नहीं । महावीर लापरवाही से बोला - जैसे आपने किसी को मरते मारते देख लिया हो । और आपको ख्याल आने लगे कि कहीं ये बन्दा भूत सूत बनकर तो नहीं सतायेगा । ऐसे ही फ़ालतू के ख्यालात । एकदम फ़ालतू बातें । दिमाग में अक्सर आ ही जाती हैं ।
प्रसून चुप ही रहा । उसने बची हुयी सिगरेट फ़ेंक दी । और उँगलियों को चटकाने लगा ।
- लेकिन ! महावीर फ़िर से बोला - लेकिन ! आपकी बात से यह तो सिद्ध हुआ कि भूत प्रेत नहीं होते । लेकिन फ़िर आजकल पिछले कुछ समय से जो मेरे साथ हो रहा है । वह क्या है ? वह कौन है ? प्रसून जी ! आप जानना चाहोगे ?
प्रसून ने आसमान में चमकते तारों को देखा । उसने अपने बालों में उँगलिया घुमाई । और फ़िर महावीर की तरफ़ देखने लगा ।
बरबस ही प्रसून की निगाह शमशान क्षेत्र के आसपास घूमते हुये रात्रिचर प्रेतों पर चली गयी । जहाँ कुछ छोटे गणों का झुँड घूम रहा था । चिता का जलना अब समाप्ति पर आ पहुँचा था ।
उसने कलाई घङी पर निगाह डाली । दस बजने वाले थे ।
- सही हैं । फ़िर वह बोला - आपके विचार एकदम सही हैं । भूत प्रेत जैसा कुछ नहीं होता । यह आदमी की आदमी द्वारा रोमांच पैदा करने को की गयी कल्पना भर ही है । अगर भूत होते ।.. वह फ़िर से प्रेतों को देखता हुआ बोला - तो कभी न कभी । किसी न किसी को । दिखाई तो देते । उनका कोई सबूत होता । कोई फ़ोटो होता । अन्य कैसा भी कुछ तो होता । जाहिर है । यह समाज में फ़ैला निरा अँधविश्वास ही है ।
महावीर किसी विजेता की तरह मुस्कराया । उसने प्रसून से बिना पूछे ही उसके सिगरेट केस से सिगरेट निकाली । और सुलगाता हुआ बोला - ये हुयी ना । पढे लिखों वाली बात । वरना भारत के लोगों का बस चले । तो हर आदमी को भूत बता दें । और हर औरत को चुङैल । आपकी बात ने तो मानों मेरे सीने से बोझ ही उतार दिया । मेरा सारा डर ही खत्म कर दिया । सारा डर ही । मैं खामखाह कुछ अजीव से ख्यालों से डर रहा था ।
कैसे ख्याल । प्रसून उत्सुकता से बोला - मैं कुछ समझा नहीं ।
- अ अरे व वो कुछ नहीं । महावीर लापरवाही से बोला - जैसे आपने किसी को मरते मारते देख लिया हो । और आपको ख्याल आने लगे कि कहीं ये बन्दा भूत सूत बनकर तो नहीं सतायेगा । ऐसे ही फ़ालतू के ख्यालात । एकदम फ़ालतू बातें । दिमाग में अक्सर आ ही जाती हैं ।
प्रसून चुप ही रहा । उसने बची हुयी सिगरेट फ़ेंक दी । और उँगलियों को चटकाने लगा ।
- लेकिन ! महावीर फ़िर से बोला - लेकिन ! आपकी बात से यह तो सिद्ध हुआ कि भूत प्रेत नहीं होते । लेकिन फ़िर आजकल पिछले कुछ समय से जो मेरे साथ हो रहा है । वह क्या है ? वह कौन है ? प्रसून जी ! आप जानना चाहोगे ?
प्रसून ने आसमान में चमकते तारों को देखा । उसने अपने बालों में उँगलिया घुमाई । और फ़िर महावीर की तरफ़ देखने लगा ।
Friends Read my all stories
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).