इंसाफ कुदरत का

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Re: इंसाफ कुदरत का

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कुछ देर बाद वह चुप हो गयी । प्रसून को इसी का इंतजार था । उसने रत्ना से - सुनो बहन कहा । रत्ना ने उसकी तरफ़ देखा । प्रसून ने अपनी झील सी गहरी शान्त आँखें उसकी आँखों में डाल दी । रत्ना 0 शून्य होती चली गयी । शून्य । सिर्फ़ शून्य । शून्य ही शून्य ।

अब उसकी जिन्दगी का पूरा ब्यौरा प्रसून के दिमाग में कापी हो चुका था । वह दुखी जीवात्मा कुछ भी बताने में असमर्थ थी । और प्रसून को उस तरह उससे जानने की जिज्ञासा भी नहीं थी । वह कुछ ही देर में सामान्य हो गयी । उसे एकाएक ऐसा लगा था । मानों गहरी नींद में सो गयी थी । शायद इस नयी अदभुत जिन्दगी में । शायद इस जिन्दगी से पहले भी । उसे ऐसी भरपूर नींद कभी नहीं आयी थी । वह अपने आपको तरोताजा महसूस कर रही थी ।
- कहाँ रहती हो आप । वह स्नेह से बोला - और खाना ?
अब वह लगभग सामान्य थी । प्रसून के कहाँ रहती हो । कहते ही उसकी निगाह खोह नुमा एक ढाय पर गयी । और खाना कहते ही उसने स्वतः ही चिता की तरफ़ देखा । प्रसून उसके दोनों ही मतलब समझ गया । और यहाँ रहने का कारण भी समझ गया ।
- लेकिन । वह फ़िर से बोला - बच्चे । बच्चे क्या खाते हैं ?
उसके चेहरे पर अथाह दुख सा लहराया । स्वतः ही उसकी निगाह त्याज्य मानव मल पर गयी । प्रसून बेबसी से उँगलिया चटकाने लगा । उसके चेहरे पर गहरी पीङा सी जागृत हुयी । सीधा सा मतलब था । उन्होंने बहुत दिनों से अच्छा कुछ भी नहीं खाया था ।
उसने आसपास निगाह डाली । और फ़िर चलता हुआ एक आम के पेङ से पहुँच गया । उसे किसी सूख चुकी आम डाली की तलाश थी । वैसे जमीन पर सूखी लकङियाँ काफ़ी थी । पर वह सिर्फ़ आम की लकङी चाहता था । अन्य लकङियाँ भोजन में कङवाहट मिक्स कर सकती थी । उसने सबसे नीची डाली का चयन किया । और उछलकर उस डाली पर झूल गया । इसके बाद किसी जिमनास्ट चैम्पियन सा वह पेङ की इस डाली से उस डाली पर जाता रहा । और मोबायल टार्च से अन्त में वह सूखी लकङी तोङने में कामयाव हो गया ।
लकङी के सहारे से जलता हुआ मन्दिर का चङावा और उसमें मिक्स शुद्ध घी के खुशबूदार मधुर धुँये से उन तीनों को बेहद तृप्ति महसूस हुयी । शायद मुद्दत के बाद । तब प्रसून के दिल में कुछ शान्ति हुयी ।
उन तीनों को वहीं छोङकर वह उस खोह के पास पहुँचा । उसने एक लकङी से एक अभिमन्त्रित बङा घेरा खोह के आसपास खींचकर उस जगह को बाँध दिया । अब उसमें रत्ना और उसके दो बच्चे ही अन्दर जा सकते थे । अन्य रूहें उस स्थान को पार नहीं कर सकती थी । अतः काफ़ी हद तक रत्ना सुरक्षित और निश्चिन्त रह सकती थी ।

वह वापस उनके पास आया । उसने रत्ना को कुछ अन्य जरूरी बातें बतायीं । और बँध के बाहर डायनों प्रेतों के द्वारा परेशान करने पर उसे कैसे उससे सम्पर्क जोङना है । कौन सा मन्त्र बोलना है । ये सब बताया । उसने रत्ना को भरपूर दिलासा दी । बङे से बङे प्रेत अब उसके या उसके बच्चों के पास फ़टक भी नहीं पायेंगे ।
रत्ना हैरत से यह सब सुनते देखते रही । जाने क्यों उसे लग रहा था । ये इंसान नहीं है । स्वयँ भगवान ही है । पर अपने आपको प्रकट नहीं करना चाहते । जो हो रहा था । उस पर उसे पूरा विश्वास भी हो रहा था । और नहीं भी हो रहा था कि अचानक ये चमत्कार सा कैसे हो गया ।
प्रसून ने उसे बताया नहीं । लेकिन अब वह अपने स्तर पर पूरा निश्चित था । वह प्रेतों के प्रेत भाव से हमेशा के लिये बच्चों सहित बच चुकी थी । अब बस प्रसून के सामने एक ही काम शेष था । वह उन्हें किसी सही जगह पुनर्जन्म दिलवाने में मदद कर सके । लेकिन ये तो सिर्फ़ रत्ना से जुङा काम था ।
वैसे तो उसे बहुत काम था । बहुत काम । जिसकी अभी शुरूआत भी नहीं हुयी थी । यह ख्याल आते ही उसके चेहरे पर अजीव सी सख्ती नजर आने लगी । और वह - चलता हूँ बहन । कहकर उठ खङा हुआ । रत्ना एकदम हङबङा गयी । उसके चेहरे पर प्रसून के जाने का दुख स्पष्ट नजर आने लगा । वह उसके चरण स्पर्श करने को झुकी । प्रसून तेजी से खुद को बचाता हुआ पीछे हट गया ।
- अब । वह रुँआसी होकर बोली - कब आओगे भैया ?
- जल्द ही । वह भावहीन होकर सख्ती से बोला - तुम्हें । उसने खोह की तरफ़ देखा । त्यागे गये मानव मलों की तरफ़ देखा - किसी सही घर में पहुँचाने के लिये ।
फ़िर वह उनकी तरफ़ देखे बिना तेजी से मु्ङकर एक तरफ़ चल दिया । उसकी आँखें भीग सी रही थी ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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जिन्दगी क्या है ? इसका रहस्य क्या है ? इसका तरीका क्या है ? इसका सही गणित क्या है ? ये कुछ ऐसे सवाल थे । जिनका आज भी प्रसून के पास कोई जबाब नहीं था । क्या जिन्दगी एक किताब की तरह है । जिसके हर पन्ने पर एक नयी कहानी लिखी है । एक नया अध्याय लिखा है । वह अध्याय । वह कहानी । जो उस दिन का पन्ना खुद ब खुद खुलने पर ही पढी जा सकती थी । अगर इंसान कुछ जान सकता है । तो वो बस अपनी जिन्दगी के पिछले पन्ने । पिछले पन्ने ।
रत्ना की जिन्दगी के पिछले पन्ने । जो उसकी दिमाग की मेमोरी में दर्ज हो चुके थे । क्या हुआ था इस दुखी औरत और उसके बच्चों के साथ ? उसने दूसरे के दिमाग को अपने दिमाग से चित्त द्वारा देखना शुरू किया ।
वह निरुद्देश्य सा चलता जा रहा था । और उसके आगे आगे सिनेमा के पर्दे की तरह एक अदृश्य परदे पर गुजरा हुआ समय जीवन्त हो रहा था । वह समय जब रत्ना शालिमपुर में रहती थी ।

सुबह के दस बज चुके थे । रत्ना घर के काम से फ़ारिग हो चुकी थी । नरसी कुछ ही देर में खेत से आने वाला था । बच्चे बाहर दरवाजे पर खेल रहे थे । अब वह जल्दी से नहाकर बस अपने पति के साथ भोजन करने वाली थी । गुसलखाने में जाने से पहले उसने दरवाजे की कुण्डी लगाने का विचार किया । फ़िर उसने ये विचार त्याग दिया । नरसी किसी भी क्षण लौट सकता है । और तब उसे कुण्डी खोलने में दिक्कत आने वाली थी ।
नहाते समय वह बारबार यही सोच रही थी । कितनी खुशनुमा जिन्दगी उन्हें भगवान ने दी है । उसे प्यार करने वाला हट्टा कट्टा पति मिला था । उसके दो प्यारे बच्चे हैं । उसके पास जीवन यापन हेतु पर्याप्त खेती है । उसकी जिन्दगी की बगिया खुशी के फ़ूलों से हर वक्त महकी हुयी थी ।
बस उसे यही कमी खलती थी कि काश नरसी का परिवार कुछ और भी बङा होता । पर ऐसा नहीं था । नरसी अपने माँ बाप का अकेला था । उसके सिर्फ़ एक ही बहन थी । जिसकी दूर देश शादी हो चुकी थी । माँ बाप उसके बहुत पहले ही गुजर गये थे । पर वे नरसी के लिये बीस बीघा जमीन छोङ गये थे । जिस पर खेती से पर्याप्त कमाता हुआ नरसी उर्फ़ नरेश अपने छोटे से परिवार को सुख से चला रहा था । और उन दोनों पति पत्नी को उससे अधिक चाह भी नही थी । वे अपनी जिन्दगी से हर हाल में खुश थे । खुश रहना चाहते थे । जिन्दगी । जिसका एक एक पन्ना रहस्य की स्याही और रोमांच की कलम से लिखा जाता है ।
ब्लाउज के हुक बन्द करते करते उसकी निगाह अपने स्तनों पर गयी । और वह खुद ही शर्मा गयी । पुरुष के सानिध्य से स्त्री कैसे एक फ़ूल की तरह खिल उठती है । महक उठती है । उसका अंग अंग पुरुष के प्यार को दर्शाता है ।

कुँआरेपन से ही उसने इस बारे में क्या क्या अरमान संजोये थे । और अपने आपको वासना के भूखे भेङियों से हर जतन से बचाये रखा था । उसका कौमार्य और जवानी सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने पति पर निछावर करने के लिये थे । और वह वैसा करने में सफ़ल भी रही थी ।
यही सब सोचते हुये उसने साङी का पल्लू कमर में खोंसा । और बाहर निकलने को हुयी । तभी नरसी ने घर के अन्दर कदम रखा । उसकी हालत देखकर वह घवरा गयी । ऐसा लग रहा था । शायद उसका किसी झगङा हुआ था । उसके चेहरे पर भी बैचेनी सी छायी हुयी थी ।
उसने सारा दिन नरसी से बारबार बात पूछने की कोशिश की । पर वह शून्य में देखता हुआ बात को टालता ही रहा । फ़िर रात को उसका धैर्य जबाब दे गया । वह उसके सीने से लग गयी । और बेहद अपनत्व से बोली - सुनो जी ! क्या तुम मुझे परायी समझते हो ।
- रत्ना ! कहीं शून्य में खोया खोया सा उदास नरेश बोला - बाई चांस मुझे कुछ हो जाय । तो तुम खुद को संभालना । इन बच्चों को ठीक से पालना । क्योंकि मेरा कोई भाई नहीं है । और भी कोई नहीं है । फ़िर इन बच्चों का तुम्ही सहारा होगी । वरना ये मासूम बच्चे दर दर को भटक जायेंगे ।
- क्या । वह भौंचक्का होकर बोली - ऐसा क्यों कह रहे हो जी ?
वह बारबार कसम खिलाती रही । पर नरेश जाने क्यों उसे कोई बात बताना नहीं चाहता था । रत्ना को सारी रात नींद नहीं आयी । ये अचानक जिन्दगी ने आज कैसा रंग बदलना शुरू किया था ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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चलते चलते प्रसून ने सामने निगाह डाली । महावीर का टयूब बैल नजर आने लगा था । पर वह उसका लक्ष्य नहीं था । उसका लक्ष्य उसके एक दिशा में सामने दूर बनी महुआ आम की बगीची थी । जहाँ प्रेतवासा था । वह तेज कदमों से उसी तरफ़ बढ रहा था ।
तब रत्ना की जिन्दगी का अगला अध्याय शुरू हो गया ।
रात के दस बज चुके थे । नरसी शायद सोया हुआ था । या आँखें बन्द किये हुआ था । पर रत्ना बैचेनी से करवटें बदल रही थी । क्या हो गया था । नरसी को । कुछ दिनों से खोया खोया सा रहता था । उसने चुप चुप उसे रोते हुये भी देखा था । बहुत पूछने पर यही बोला था - रत्ना ! काश हमारे घर भी दो चार भाई या परिवार वाले होते ।
तब वह चुप कर गयी थी । इतना तो वह समझ गयी थी कि नरसी उसे वह बात बताकर और दुखी नहीं करना चाहता । शायद बात ही ऐसी हो । जिसका उसके पास कोई हल ही न हो । चैन इक पल नहीं । और कोई हल नहीं ।
तभी अचानक धप्प से आँगन में कोई कूदा । और वह काँपकर रह गयी । लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती । वह साया ठीक नरसी के पास आ खङा हुआ । उसने रिवाल्वर उसके ऊपर टिका दी ।
और बोला - उठ जा भाई ! मौत ये नहीं देखती कि कोई सो रहा है । या जाग रहा है ।
नरसी चुपचाप उठ खङा हुआ । जैसे ये बात पहले ही से जानता हो । तभी वह साया रत्ना को लक्ष्य करता हुआ बोला - भाभी ! तू भी उठ । अपने साजन को विदा नहीं करेगी क्या ?
वह उन दोनों को बाहर खङी सूमो तक ले आया । और जबरदस्ती अन्दर धकेल दिया । रत्ना ने सहमकर चारों तरफ़ देखा । पर गली में सन्नाटा था । वह फ़रियाद सी करती हुयी बोली - पर मेरे बच्चे ।
- उनको । वह ठण्डे स्वर में बोला - आराम से सोने दे । क्यों डिस्टर्ब करेगी । बस कुछ ही देर में तू वापस आने वाली है ।

सूमो उन्हें लेकर एक फ़ार्म हाउस पहुँची । वहाँ एक गन्दे से कमरे में बल्ब जल रहा था । उस कमरे में सुरेश और महावीर बैठे हुये शराब पी रहे थे । रत्ना उनको देखकर एकदम चौंककर रह गयी । उसको लाने वाले आदमी ने भी नकाब उतार दिया था । वह भी गाँव का ही रहने वाला इतवारी था ।
नरसी को सुरेश के इशारे पर जंगले से बाँध दिया गया था । उसकी आँखों में तीनों के लिये नफ़रत के भाव थे । मौत को तो मानों वह साक्षात खङी ही देख रहा था । रत्ना को हसरत उदासी गम विदाई के मिले जुले भावों से देख रहा था । फ़िर इसके अलावा भी वह भावहीन शून्य सा खङा था । रत्ना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस कदर खामोश क्यों है । उसके कानों में कभी कहे नरसी के शब्द गूँजे - रत्ना ! वैसे मैं एक चींटी को भी कभी नहीं मारता । पर ये भी सच है कि मैं तीन चार को अकेला ही धूल चटा सकता हूँ ।
अभी यह सब देखती हुयी वह कुछ समझने की कोशिश कर ही रही थी । तभी उसे सुरेश की आवाज सुनाई दी । वह उठ खङा हुआ । और बोला - भाभी ! तू बङी सस्पेंस में लगती है । चल तेरा सभी सस्पेंस अब खत्म कर ही देते हैं ।

ये जो जमीन होती है ना । उसने नीचे जमीन की तरफ़ उँगली की - बहुत जमाने से झगङे मौत की तीन खास वजहों में से एक है । वे तीन वजहें ज्ञानियों ने जर जोरू और जमीन ही बतायी हैं । जर यानी जायदाद हमारे पास बहुत है । जोरू भी है । और कम पङती है । तो बाहरवाली मिल जाती है । और वैसे जमीन भी है । पर भाभी जी ये जमीन की भूख ऐसी है । जो कभी कम नहीं होती । अब देखो ना । दुर्योधन के पास कितना बङा राज्य था । पर वह बोला - नहीं ! हरगिज नहीं । मैं पाण्डवों को सुई बराबर जमीन भी नहीं दूँगा । तब सोच भाभी । अगर मैं जो करने जा रहा हूँ । उसमें कुछ गलत हो । तो तेरा जूता मेरा सर । क्यों भाईयो ।
उन दोनों ने सहमति में सिर हिलाया । रत्ना अभी भी कुछ न समझती हुयी असमंजस में उसे ही देखे जा रही थी ।
- मैं फ़िर से बात पर आता हूँ । वह गम्भीरता से बोला - तू जानती ही है । मैं इसके नरसी के सगे चाचा का लङका हूँ । इसका छोटा भाई । यानी तेरा खानदानी देवर । मैंने इसे कई बार समझाया । तू ये बीस बीघा जमीन मुझे दे दे । क्योंकि हो सकता है । फ़िर कहीं ये जमीन ही तेरी जान की दुश्मन बन जाय । और ऐसा भी नहीं हम कोई अन्याय कर रहे हों । ना ना अन्याय तो हम कर ही नहीं सकते । मैंने कहा । तू ये जमीन पाँच हजार रुपया बीघा के हिसाब से दे । और अपने नगद पैसे ले । नगद । उधार का कोई लफ़ङा नहीं । क्यों भाईयों इसमें कोई गलत बात थी । हो तो बोलो । फ़िर भाभी की जूती मेरा सर ।
दोनों ने फ़िर बङी संजीदगी से सिर हिलाया । और बोले - नहीं । कोई गलत बात नहीं । एकदम न्याय वाली बात थी ।
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देखा भाभी ! वह फ़िर से बोला - ये साले कुत्ते की नस्ल वाले भी इसको सही बता रहे हैं । पर तेरे आदमी को ये एकदम गलत ही लगी । टोटली रांग । इसने मुझे जमीन देने से साफ़ इंकार कर दिया । वोला किसी कीमत पर नहीं । चाहे जान क्यों न चली जाय । और दूसरी बात ये है । वह गौर से रत्ना के ब्लाउज पर देखता हुआ बोला - हम इसे बदले में और जमीन भी दिलवा रहे थे । वहाँ जो जंगल क्षेत्र में जमीन पङी है । बस थोङी सी कम उपजाऊ है । और मौके की नही है । बस इतनी ही तो बात थी ।
फ़िर भाभी जी ! कहावत है ना । एवरीथिंग इज फ़ेयर लव एण्ड वार । और संसार में जंगल राज कायम है । और ये आज का नहीं है । बहुत पुराने जमाने का है । रावन को ले लो । कंस को ले लो । दुर्योधन को ले लो । पूरा इतिहास भरा पङा है । अगर आप गौर करो । तो सबसे ज्यादा लङाईयाँ जमीन के लिये हुयी । सबसे ज्यादा जानें जमीन के लिये गयी । बस हमने भी इससे लङाई की । पर गजब रे गजब । इसने हम तीनों को अकेले मारा । बहुत मारा भाभी जी । कसम से याद आ जाता है । तो अभी भी दर्द होने लगता है । तब हमने साम दाम दण्ड भेद । यानी चारों हथकण्डे अपनाओ । पर बस अपना काम बनाओ । वाली बात अपनायी । क्योंकि हम अच्छी तरह जानते थे । हम इससे लङकर नहीं जीत सकते । हम कट्टा तमंचा चला सकते हैं । तो ये भी चलाना जानता है । हम इसको गोली मार सकते हैं । तो ये भी मार सकता है । भाभी तुम्हारा बलमा कोई गीदङ नहीं । पूरा शेर है । बब्बर शेर । पर शेर भी पिंजङे में आ ही जाता है । बस ट्रिक होनी चाहिये । क्यों भाईयों ?
अबकी दोनों ने बिना कुछ बोले ही समर्थन में सिर हिलाया । लेकिन तभी महावीर बोला - सुरेश ! तू जल्दी कहानी खत्म कर । हम यहाँ बैठे नहीं रहेंगे ।
सुरेश ने मुङकर रिवाल्वर उस पर तान दी । और दाँत पीसकर बोला - शटअप ! महावीर । क्या तू जानता नहीं । मैं कितना न्याय पसन्द इंसान हूँ । अन्याय करना । और होते देखना । मुझे कतई पसन्द नहीं । अगर ये ऐसे ही मर गया । तो भाभी जीवन भर यही सोचती रहेगी । आखिर बात क्या थी । इसीलिये इसको बुलाया भी है । वरना इसे खामखाह परेशान करने की भला क्या आवश्यकता थी ।

तो भाभी जी ! फ़िर हुआ यूँ कि हमने इसको साम दाम दण्ड भेद से समझाया । देख नरसी । तेरे छोटे छोटे दो बच्चे हैं । क्या तू चाहता है कि किसी दिन बेचारे अल्पायु ही कहीं कटे मरे पङे मिलें । तेरी जवान बीबी है । क्या तू चाहता है । अचानक किसी दिन कुछ हरामजादे उससे बलात्कार कर जायें । और फ़िर वो तुझे या अन्य किसी को मुँह दिखाने के काबिल भी नहीं रहे । और फ़ाँसी लगाकर । जलकर । नहर में कूदकर । जहर खाकर । मरने के बहुत से आयडिये होते हैं । किसी आयडिये से मर जायें । इसलिये वो लोग मरें । इससे अच्छा तू अकेला ही मर जाये । क्यों तीन हत्याओं का पाप अपने सिर लेगा । फ़िर हम उन तीनों को कुछ नहीं बोलेंगे । क्यों भाईयो कुछ गलत बोला मैं ?
- व्हाट अ आयडिया सर जी ! महावीर बोला - आप हमेशा सही बोलते हैं ।
- खामोश ! वह नफ़रत से बोला - किसी की जान पर पङी है । और तुझे आयडिया सूझ रहा है । तो भाभी जी ...।
- न न नही..नहीं.. भैया नहीं । अचानक रत्ना मानों सब कुछ समझ गयी । वह फ़ूट फ़ूटकर रो पङी । उसे पिछले दिनों के नरसी के रहस्यमय अजीब से व्यवहार के सभी कारण एकदम पता चल गये - आप जमीन ले लो । सब ले लो । पर इन्हें कुछ न कहो । इन्हें छोङ दो । हम लोग इस गाँव से दूर चले जायेंगें । भीख माँगकर गुजारा कर लेंगे । पर मेरे बच्चों को अनाथ न करो । मैं आपसे हाथ जोङकर दया की भीख माँगती हूँ । मुझ पर रहम करो । मेरे छोटे छोटे बच्चों पर दया करो सुरेश । मैं तुम्हारे पाँव पङती हूँ ।

अरे रे रे ..यह क्या कर रही हो भाभी ! वह घवराकर बोला - मुझे क्यों पाप में डाल रही हो । आप मेरी भाभी हो । और भाभी माँ समान होती है । पर..। वह फ़िर से नरसी की छाती पर उँगली से ठकठकाता हुआ बोला - पर मैं क्या करूँ भाभी । मैंने इस बात पर भी बहुत सोचा । क्योंकि मैं बहुत भावुक हूँ ना । दया और प्रेम तो मेरे अन्दर कूट कूटकर भरा हुआ है । अन्याय मुझसे कतई सहन नहीं होता । क्यों भाईयो । ठीक कह रहा हूँ ना । गलत बोलूँ । तो भाभी की चप्पल और मेरा सर ।
- आप बहुत ही दयालु हो । इतवारी बेहद संजीदगी से बोला - आप जैसे दयालु कभी कभी ही पैदा हो पाते हैं । आप गजनी धर्मात्मा हो ।
- ओये खङूस ! सुरेश उसकी तरफ़ रिवाल्वर तानता हुआ बोला - तुझसे किसी ने कहा था । बीच में बोलने को । मैं अपनी प्यारी भाभी जी से बात कर रहा हूँ । हाँ तो भाभी जी । मैंने इस बात पर भी बहुत सोचा कि तुम सबको जीता जी छोङ दूँ । मुझे बस जमीन ही तो चाहिये । जमीन ले लूँ । और तुम सबको कहीं भी जाने दूँ । पर भाभी जी पर..इतिहास..इतिहास गवाह है । जिसने भी ऐसा किया । कुत्ते की मौत मारा गया । दुर्योधन को ले लो । पाँडवों को छोङने का परिणाम क्या हुआ । रावण को ले लो । विभीषण को छोङने का परिणाम क्या हुआ । इसलिये हर समझदार इंसान को इतिहास से सबक लेना चाहिये । क्योंकि इतिहास अपने आपको दुहराता है । इसलिये भाभी जी मैं मरना नहीं चाहता । मैं मरना नहीं चाहता । मुझे मरने से बङा डर लगता है । मारने से बिलकुल नहीं लगता । पर मरने से बहुत लगता है । अगर मैंने इसको छोङ दिया । तो वक्त कोई भी करवट बदल सकता है । आज मैं इसे मारने वाला हूँ । कल ये भी मुझे मार सकता है । समय का क्या भरोसा । ये बहुत जल्द पलटा खाता है । राजा रंक हो जाता है । और रंक राजा । इसलिये समझदार इंसान को समस्या को जङ से ही खत्म कर देना चाहिये ।
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Re: इंसाफ कुदरत का

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कहते कहते उसका चेहरा सर्द हो उठा । उसने रिवाल्वर वापस फ़ेंटे में खोंस लिया । और लम्बे फ़ल वाला चमचमाता हुआ चाकू निकाल लिया । चाकू की नोक से उसने अपना अँगूठा चीरा । और वहाँ से बहते हुये रक्त से नरसी के माथे पर तिलक किया । फ़िर वह नरसी के गले मिलकर रोने लगा । और भर्राये स्वर में बोला - मुझे माफ़ कर देना भाई । बङे भैया । मुझे माफ़ कर देना । मैं तुझे बचाना तो चाहता था । पर बचा न सका । बलिदान की परम्परा से ही वीरों का इतिहास लिखा है । ठीक है भाभी..। वह मुङकर उसकी तरफ़ देखता हुआ बोला ।
रत्ना अचानक आगे का दृश्य तुरन्त समझ गयी । वह दौङकर सुरेश के पैरों से लिपट गयी । वह बारबार नरसी के पैरों से भी - स्वामी आप कुछ करते क्यों नहीं ..कहते क्यों नहीं..कहती हुयी लिपटने लगी । सुरेश भी उसके साथ फ़ूट फ़ूटकर रो रहा था । फ़िर अचानक वह दाँत भींचकर बोला - ऐ हरामजादो ! संभालते क्यों नहीं इसको । मौत का मुहूर्त निकला जा रहा है ।
दोनों तुरन्त रत्ना की तरफ़ लपके । उसी पल सुरेश ने चाकू नरसी के पेट में घोंप दिया । वह कुछ पल नरसी की आँखों में झाँकता रहा । फ़िर उसने चाकू को क्लाक वाइज घुमाया । उसे बङी हैरानी थी । नरसी मामूली सा भी नहीं चीखा । बस उसके चेहरे पर घनी पीङा के भाव जागृत हो गये थे । असहनीय दर्द से उसका चेहरा विकृत हो रहा था । वह बारबार अपने को संभालने की कोशिश कर रहा था । पर असफ़ल हो रहा था । आखिर वह बङी कठिनाई से बोल पाया - र र रत रत्ना इधर आ ।
वह तुरन्त उठकर उसके सामने खङी हो गयी ।
- मेरे बच्चों को । वह अटकती आवाज में बोला - संभालना..उन..क ।
और बात पूरी होने से पहली ही उसकी गरदन एक तरफ़ लुङक गयी ।

मौत सिर्फ़ एक है । एक बार ही आती है । अंजाम भी एक ही होता है । वो शरीर जो अब तक चल फ़िर रहा था । उसका निष्क्रिय हो जाना । मिट्टी के पुतले मानुष का वापस मिट्टी में ही मिल जाना । सारे रिश्ते नातों को एक झटके से बेदर्दी से तोङ देती है मौत ।
पर ये एक बार की मौत भी कई अजीव रंग लेकर आती है । कभी खामोशी से । कभी गा बजा के । कभी हाहाकार फ़ैलाती हुयी । कभी सिसकियों के साथ । दुश्मनी भाव में कभी खुशी के भी साथ । अनेक रंग है इसके । अनेक रूप है इसके । इसके रहस्य जानना बङा ही कठिन है ।
ऐसा ही मौत का अजीव रंग नरसी की मौत पर भी छाया था । वो इंसान पता नहीं । कब से जीवित ही मौत को देख रहा था । और एक स्वस्थ हाल आदमी किसी बीमार जर्जर आदमी की मौत मरने पर विवश हुआ था ।
बीस मिनट हो चुके थे । नरसी की लाश जमीन पर पङी थी । अब वह हमेशा के लिये न उठने को गिर चुका था । रत्ना को जोर से रोने भी न दिया था । वह अपनी जगह पर ही तङफ़ङा कर रह गयी थी । और फ़टी फ़टी आँखों से बस नरसी की लाश को देखे जा रही थी ।
अचानक उसका चेहरा सख्त हो गया । भावहीन सी उसकी आँखे शून्य हो गयी । तीनों अभी भी बैठे शराब पी रहे थे । उसने नरसी की लाश पर निगाह डाली । और दौङकर उससे लिपट गयी । अब तक जबरन रोकी गयी उसकी रुलाई फ़ूट पङी ।

हेऽऽ ईश्वरऽऽऽऽ । वह गला फ़ाङकर चिल्लाई - अबऽऽऽ विश्वास नहीं होता कि तू हैऽऽऽऽ । नहीं विश्वास होता । इस दुनियाँ में कोई ईश्वर । कोई भगवान है । इस देवता आदमी ने क्या गुनाह किया था । अपने जान में इसने कभी चींटी नहीं मरने दी । हर परायी औरत को माँ बहन समझा । दूसरे की भलाई के लिये कभी इसने रात दिन नहीं देखा । तेरे हर छोटे बङे द्वार पर इसने सर झुकाया ।
- और परिणामऽऽऽ । उसने छाती पर हाथ मारा । और दहाङती हुयी बोली - मुझे जबाब देऽऽऽ भगवान । मुझे जबाब चाहिये । मुझे जबाब चाहियेऽऽ । वह अपना सर जमीन पर पटकने लगी - मुझे जबाब देऽऽ भगवन । आज एक दुखियारी औरत । एक बेबा औरत । एक अवला नारी । दो मासूम बच्चों की माँ । सिर्फ़ तुझसे जबाब चाहती है । क्या यही है तेरा न्याय ? क्या ऐसाऽऽ ही भगवान है तूऽऽ । तूने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया ? तूने क्यूँ मेरी हरी भरी बगिया उजाङ दी । मुझे जबाब देऽऽ भगवान । वह फ़िर से भयंकर होकर दहाङी - मैं सिर्फ़ऽऽ जबाब चाहती हूँऽऽऽ । मैं तुझसे दया की भीख नहींऽऽ माँग रही । सिर्फ़ जबाब देऽऽ । तुझे जबाब देनाऽऽ ही होगा । मुझे एक बार जबाब दे भगवान ।
मगर कहीं से कोई जबाब नहीं मिला । फ़िर वह उठकर खङी हो गयी । उसके चेहरे पर भयंकर कठोरता छायी हुयी थी । उसने बेहद घृणा और नफ़रत से तीनों की तरफ़ देखा ।
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