नेहा ने जल्दी से अपने बेग मे से फर्स्ट एड का बॉक्स निकाला और नीरा का घाव सॉफ करके उसका बहता खून रोक दिया....
कुछ पानी की छींटे माकर नीरा को नेहा होश मे ले आई.....
नीरा--दर्द से कराहते हुए.....क्या हुआ सब लोग कहाँ गये.....आप लोग कब आए....
नेहा--नीरा यहाँ क्या हुआ.....तुम्हे चोट कैसे लगी....सब लोग तुझे इस हाल मे छोड़ कर कहाँ चले गये.....
नीरा--पता नही भाभी मैं तो यहाँ बैठी थी तभी किसी ने पीछे से मेरे सिर पर किसी चीज़ से मार कर मुझे बेहोश कर दिया.....हां याद आया बेहोश होने से पहले मैने दो नक़ाबपोशो को देखा था.....
तभी मेरी नज़र नीरा के पास ही खून से सने उस पत्थर पर पड़ी जिसके नीचे रखा कागज हवा से फड्फाडा रहा था.....
मैं तुरंत उस कागज को अपने हाथो मे उठा कर पढ़ने लगा.....उस मे बस ये लिखा था....
अगर अपने परिवार को सलामत देखना चाहते हो तो जल्दी हम तक पहुँचो ।
उस कागज पर लिखे शब्द मेरे दिल पर किसी हथौड़े की तरह वार कर रहे थे....मैने नेहा को भी वो कागज दिखा दिया.....
उसे पढ़कर हम तीनो की आँखे आँसुओ से भर आई थी....जाने किस की नज़र लग गयी मेरे परिवार को अब क्या होगा मैं ये सोच सोच कर पागल होने लग गया था....
नेहा--इस तरह या बैठे रहने से कुछ नही होगा जय हमे कुछ ना कुछ करना ही होगा.....
में--कुछ समझ मे नही आ रहा क्या करूँ मैं कहाँ ढूंधू उन सब को...,
नेहा--नीरा तू यही आराम कर थोड़ी देर तुझे पेन किलर मैने दे दी है जब दर्द कुछ कम हो जाए तो कॅंप की तरफ चली जाना....वहाँ वाइयरलेस से सुहानी को यहाँ जो कुछ भी हुआ वो बता देना....शायद इस समय वही हमारी मदद कर सकती है....हम दोनो जंगल मे सब लोगो को ढूँढने जा रहे है....
नीरा--भाभी इतने बड़े जंगल मे आप कहाँ ढुंढोगे उन सब को....
नेहा--मुझे लगता है हो ना हो जंगल के बीच बनी उस शिकारगाह मे ही हमे हमारा परिवार मिल जाएगा....बस भगवान से प्रार्थना है कि वो सब लोग ठीक हो वहाँ....
जय--नेहा सही कह रही है नीरा....तू थोड़ी देर बाद कॅंप चली जाना और कोई मदद लेकर आ जाना....
नीरा--आप मुझ से वादा करो सब को सही सलामत लेकर आओगे.....किसी को भी नुकसान नही पहुँचने दोगे....वादा करो मुझ से....कसम खाओ मेरी आप....
में--तेरी कसम....में जल्दी ही सब लोगो को ढूँढ लूँगा....भरोसा रख मुझ पर....
उसके बाद मैं नीरा के माथे को चूम कर खड़ा हो जाता हूँ और नेहा को साथ लेकर उस शिकार गाह की तरफ बढ़ जाता हूँ.....
नेहा ने वो मॅप बॅग मे से निकाल कर मेरे हाथो मे दे दिया था और हम उस मॅप के अनुसार चलते हुए उस जगह तक पहुँचने लगे....कुछ 2 घंटे चलने के बाद हमे एक जगह दिखी जो थोड़ी उँची जगह पर बनी हुई थी....लोहे के तीन शेड से बना एक छोटा सा मकान हमे नज़र आ गया....हम लोग बड़ी सावधानी से उस की तरफ बढ़ने लगे....
नेहा ने वो दरवाजा खोला एक अंजाने डर से काँपते अपने हाथो से....अंदर से आती गंदी बदबू हमारे नथुनो मे समा रही थी.....नेहा ने जैसे ही वो दरवाजा खोला अंदर का मंज़र देख कर मेरी रूह तक काँप गयी.....
उन सब को इस हालत मे देखते ही मेरी आँखो मे खून उतर आया....मैने अपना कदम अंदर बढ़ाया ही था कि एक ज़ोर दार वार मेरे सिर पर पीछे से हुआ....मैं वहीं किसी परकटे पक्षी की तरह लुढ़क गया.....
#145
नीरा अभी भी बेसूध झरने के यहाँ पड़ी थी....नेहा की दी हुई दवा ने उसे फिर से सुला दिया था....जाने वो कब तक वही सोती रही....
डे....1
में कब से बेहोश था इसका तो मुझे अंदाज़ा नही था लेकिन खिड़की से आती सूरज की मध्यम किरणें बता रही थी या तो अभी शाम है या फिर सुबह....
मैने धीरे धीरे अपनी आँखे खोली अब भी वहाँ वैसा ही हाल था सभी वहाँ बुरी तरह से बँधे हुए थे....मेरी नज़रें भाभी को ढूँढने लगी वो भी मुझे एक कौने मे नेहा बँधी हुई नज़र आ गयी....
मैने उठने की कोशिश करी लेकिन उठ नही पाया....में इस समय एक कुर्सी पर रस्सी से बँधा हुआ बैठा था....और अपनी पूरी ताक़त लगाकर भी उस से निकल नही पा रहा था....
तभी किसी के हँसने की आवाज़ मेरे रोंगटे खड़े करती चली गयी.....मेरे सामने ही एक साया अंधेरे मे खड़ा था.....
तभी वो साया हँसते हुए अंधेरे से बाहर निकल कर आ गया.....
उसे देखते ही मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी.....अगर कोई मुझ से कहता कि इस शक्श ने मेरे परिवार का ऐसा हाल किया है तो मैं मान ही नही सकता था.....
में--रीएंन्न्ना तूमम्म्म....
रीना--हाँ में स्वीटहार्ट....क्यो झटका लगा मुझे यहाँ देख कर....अब फिर से बेहोश मत हो जाना क्योकि एक झटका और लगने वाला है तुझे....
में--क्यो कर रही हो तुम ऐसा क्या बिगाड़ा है मैने तुम्हारा.....इन लोगो को जाने दो....तुम्हे जितना पैसा चाहिए मैं ला कर दूँगा....
पैसा नही चाहिए....बदला चाहिए हमे....
मेरे पीछे से आई उस सर्द आवाज़ को मैं लाखो की भीड़ मे भी पहचान सकता था....ये आवाज़ तो सुहानी की थी....
सुहानी--क्यो क्या हुआ....सिर घूम गया मुझे देख कर....मेरा रुद्लु बच्चा जो हर समय बस रोता ही रहता था....आज अपनी ख़ास दोस्त के सामने बेबस बैठा है.....कोई सलाह चाहिए.....कुछ काम आ सकती हूँ मैं सर आपके.....ऊऊऊ सर नही सर नही....जय...
में--ये क्या तमाशा है सुहानी....तुम्हे दिल से मैने अपना एक सच्चा दोस्त माना था....लेकिन तुम एक डायन निकलोगी ऐसा मैने कभी सोचा नही था....
सुहानी--हा हा हा....दोस्त तो मैं भी तुन्हे मानने लगी थी और तब तक मनती थी जब तक तेरे बाप के मरने के बाद तेरे घर नही आई थी.....तेरे बाप की वजह से ही तेरा पूरा परिवार तेरे सामने नंगा लटका हुआ है....
सुहानी के मुँह से कहा गया हर एक शब्द मेरे कानो मे बॉम्ब के धमाको से कम नही था...
में--क्या बिगाड़ा है मेरे पापा ने तुम्हारा किस बात का बदला ले रही हो तुम....क्यो ख़तम करना चाहती हो मेरे परिवार को....
सुहानी--तुझे कैसा लगेगा जब तेरी माँ को तेरी ही आँखो के सामने कोई चोदे.....कैसा लगेगा बता मुझे....
में--जान ले लूँगा मैं ऐसा करने वाले की....
सुहानी--बस यही.....बस यही सुनना चाहती थी में तेरे मुँह से....तेरा बाप मेरी आँखो के सामने मेरी माँ को चोदता था....हम दोनो बहने अपनी आँखो से वो नज़ारा हर रोज देखा करती थी....मेरा पापा तेरे बाप की वजह से शराब मे इतना डूब गया कि मेरे छोटे भाई के साथ आक्सिडेंट मे मर गया....भाई मर गया बाप मर गया....माँ किसी रंडी की तरह आज भी पैसो के लिए चुदवा रही है....लेकिन मैं तुझे मारूँगी नही....तुम सब का एक अनोखा इलाज हमने सोच रखा है....
Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
- mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
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