Fantasy मोहिनी

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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

Post by Dolly sharma »

लेकिन वापसी के समय वह उस पहाड़ के निकट से गुजरे जहाँ मोहिनी देवी का पहाड़ था। उसी समय बिजली की सी एक लकीर आसमान की तरफ लपकी। यह लकीर मन्दिर की मीनार की ओर से लपकी थी। यह चमकीली रेखा एक विमान से टकराई और एक धमाके के साथ विमान के परखच्चे उड़ गये।

दूसरा विमान भाग निकलने में सफल हो गया।

जिस समय मैं मोहिनी के मन्दिर में पहुँचा तो रात हो चुकी थी और तराई में बहुत दूर धमाकों का शोर गूँज रहा था।

मोहिनी अपने पूजा-गृह में मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। पूजा-गृह में मोहिनी अपने चेहरे पर नकाब नहीं डालती थी। वह अपने तख्त पर आसन जमाए बैठी थी। उसका ललाट रोशनी में चमक रहा था।

“राज!” उसने मुझे सम्बोधित किया। “मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में बेकरार थी। आओ, मेरे पास बैठ जाओ।”

मोहिनी के स्वर में वह उत्साह और खुशी नहीं थी। वह थकी-थकी सी मालूम पड़ती थी।

“मोहिनी, तुम इतने दिनों तक मुझसे दूर क्यों रही ?”

“मैं अपने विश्व की राजधानी में भ्रमण करने गयी थी, लेकिन जाने क्या हुआ कि मैं अपने उद्देश्य में नाकाम रही। मुझे तभी कुछ खतरे की गंध महसूस हुई और मैं वापस लौट आयी। कोई बहुत बड़ा साधू माओ के दरबार में मौजूद है और उसने मेरे सामने रुकावट की दीवार खड़ी कर रखी है। न जाने कैसे उन लोगों को पीकिंग में मेरे आगमन का पता चल गया था। उन्होंने मुझे पकड़ने की नाकाम कोशिश की। फिर मैंने देखा कि महारानी की आत्मा उसका साथ दे रही है। उसने मेरे बहुत से रहस्यों से उन्हें अवगत करा दिया और अब देखो, जिन चीनियों पर मैं भरोसा कर रही थी उन्होंने ही मेरे साथ विश्वासघात किया। उनकी फौजें निरन्तर आगे बढ़ रही हैं। मैं विनाश नहीं चाहती थी, पर अब वह सब होकर रहेगा।”

“मैंने पहले ही कहा था मोहिनी कि विश्व जीतना इतनी आसान बात नहीं। बीसवीं सदी के इँसान का जादू उसका विज्ञान है। अब भी समय है मोहिनी, अगर हम यहाँ से निकल चलें तो।”

“नहीं राज! बुजदिली की बातें मत करो। मैं यहाँ से कहीं नहीं जा सकती। मैंने कितने परिश्रम से यह दुनिया बसायी है। मैं इन सबकी माँ हूँ और माँ अपने बच्चों को मौत के मुँह में छोड़कर कभी नहीं जा सकती। मेरी बनायी दुनियाँ पर आक्रमण करने वाला यहाँ से जीवित नहीं लौट सकता।”

“मोहिनी अगर उनकी फौजें समाप्त हो गयीं तो वे सारी शक्ति झोंक देंगे।”

“उनकी सारी शक्ति इसी धरती पर नष्ट हो जायेगी।” मोहिनी का स्वर भयानक हो गया। “मैं इस कौम को ही तबाह कर दूँगी। लेकिन राज, तुम डरते क्यों हो ? मैंने तुम्हें वचन दिया था कि तुम्हें विश्व-सम्राट बनाऊँगी। हालाँकि मैं हिंसा के बल पर विश्व नहीं जीतना चाहती थी। इसीलिए कुछ समय शांति से बिताना चाहती थी; पर ऐसा मालूम होता है कि विश्वयुद्ध इसी धरती से शुरू होने जा रहा है।

“मैं देख रही हूँ कि करीब पंद्रह बमवर्षक विमान इस ओर बढ़े आ रहे हैं।”

मोहिनी अचानक उठ खड़ी हुई। वह आकाश की तरफ देख रही थी।

“सुनो राज! शायद मैं कुछ समय बाद ही युद्ध में व्यस्त हो जाऊँगी। मैं भयँकर खतरा मँडराते देख रही हूँ। इससे पहले मैं एक काम करना चाहती हूँ। तुम एक इँसान हो इसलिए सदा से ही मुझे तुम्हारी चिंता बनी रहती है। किसी भी क्षण अगर मेरी निगाहें चूक गयीं तो वह गंदी आत्मा तुम पर हमलावर हो सकती है। युद्ध एक ऐसी चीज है जिसमें इँसान की जिंदगी-मौत का कोई भरोसा नहीं रहता। मैं एक प्रतिशत भी इसकी गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती कि तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाओ। बड़ी मुश्किल से तो हमारा मिलन इस जन्म में हुआ है। हाँ राज, मैं तुम्हें वह शक्ति देना चाहती हूँ कि तुम मेरी तरह सदा के लिए अमर हो जाओ। फिर सारी दुनियाँ की शक्ति मिल कर भी हमें मार नहीं सकेगी। हम एक-दूसरे से कभी जुदा न हो सकेंगे।”

“अमर!” मैं चकित सा उसे देखने लगा।

“हाँ राज! देखो डरना नहीं। एक बार अगर तुमने वही किया जो मैं कहूँगी तो फिर तुम इस योग्य हो जाओगे कि मुझे स्पर्श कर सको। तिब्बत में यही एक स्थान ऐसा है जहाँ इँसान अमरत्व प्राप्त कर सकता है। अब देखो न मैंने भी बार-बार इँसानी जून में जन्म लेने का झंझट ही समाप्त कर दिया है। क्योंकि इँसानी जून पाने का फासला सदियों का होता है और इतनी सदियों तक मुझे भटकना पड़ता है एक छिपकली की जून में।”

“लेकिन मैं अमर किस तरह हो सकता हूँ ?”

“आओ मेरे साथ। मैं तुम्हें उस स्थान पर ले चलती हूँ। पवित्र लामाओं ने अपनी आहुतियाँ देकर एक हवन किया था। हवन के लिए एक पहाड़ की गार चुनी गयी थी। उन्होंने यह हवन ज्योति मेरे लिए रोशन की थी; ताकि मोहिनी देवी हमेशा इँसानी जून में रहकर उनकी रक्षा करती रहे। सदियों से वह आग इन पहाड़ों में धधक रही है। उसकी लपटें दूसरे पहाड़ों की खाईयों से भी कभी-कभी प्रकट हो जाया करती है। उसी आग को रोशन करने के लिए आज भी मेरे बच्चे कुर्बानियाँ देते हैं, खून चढ़ाते हैं ताकि हवन की अग्नि जलती रहे और उनकी देवी रक्षा करती रहे।”

अचानक मुझे ध्यान आया कि ऐसी आग का एक कुँड मैं पहले भी देख चुका हूँ, जो मोहिनी के मन्दिर में ही है; जहाँ मोहिनी पहाड़ों की रानी के कँकाली शरीर में अवतरित हुई थी।

कितनी भयानक जगह थी वह और कितना भयानक था वह दृश्य जब मैंने एक छिपकली की मुर्दा देह पर अपनी उँगली का लहू टपकाया था। और फिर मारे भय के या किसी और कारण से मैं बेहोश हो गया था।
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