गाँव मे मस्ती

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007
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गाँव मे मस्ती

Post by 007 »

गाँव मे मस्ती

चेतावनी ........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक पारवारिक सेक्स की कहानी है



दोस्तो आपके लिए एक ऑर मस्त कहानी हिन्दी फ़ॉन्ट मे पेश करने जा रहा हूँ



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जब ये सब मादक घटनाये घटना शुरू हुई तब मैंने अभी अभी जवानी मे कदमा रखा था गाँव के बड़े पुश्तैनी मकान मे मैं कुछ ही दिन पहले माँ के साथ रहने आया था पाँच साल की उम्र से मैं शहर मे मामाजी के यहाँ रहता था और वहीं स्कूल मे पढता था तब गाँव मे सिर्फ़ प्राइमरी स्कूल था इसलिए माँ ने मुझे पढने शहर भेज दिया था अब गाँव मे हाई स्कूल खुल जाने से माँ ने मुझे यहीं बुलावा लिया था कि बारहवीं तक की पूरी पढ़ाई मैं यहीं कर सकूँ

घर मे माँ, मैं, हमारा जवान तेईस चौबीस साल का नौकर रघू और उसकी माँ मंजू रहते थे मंजू हमारे यहाँ घर मे नौकरानी थी चालीस के आसपास उमर होगी घर के पीछे खेत मे एक छोटा मकान रहने को माँ ने उन्हें दे दिया था जब मैं वापस आया तो माँ के साथ साथ मंजू और रघू को भी बहुत खुशी हुई मुझे याद है कि बचपन से मंजू और रघू मुझे बहुत प्यार करते थे मेरी सारी देख भाल बचपन मे रघू ही किया करता था

वापस आने के दो दिन मे ही मैं समझ गया था कि माँ रघू और मंजू को कितना मानती थी वे हमारे यहाँ बहुत सालों से थे, मेरे जन्म के भी बहुत पहले से, असल मे माँ उन्हें शादी के बाद मैके से ले आई थी अब मैंने महसूस किया कि माँ की उनसे घनिष्टता और बढ़ गयी थी वहाँ उनसे नौकर जैसा नहीं बल्कि घर जैसा बर्ताव करती थी रघू तो मांजी मांजी कहता हमेशा उसके आगे पीछे घूमता था

घर का सारा काम माँ ने मंजू के सुपुर्द कर रखा था कभी कभी मंजू माँ से ऐसे पेश आती थी जैसे मंजू नौकरानी नहीं, बल्कि माँ की सास हो कई बार वह माँ पर अधिकार जताते हुए उससे डाँट दपट भी करती थी पर माँ चुपचाप मुस्कराकर सब सहन कर लेती थी इसका कारण मुझे जल्दी ही पता चल गया
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Re: गाँव मे मस्ती

Post by 007 »

जब से मैं आया था तब से मंजू और रघू मेरी ओर ख़ास ध्यान देने लगे थे मंजू बार बार मुझे पकडकर सीने से लगा लेती और चूम लेती "मुन्ना, बड़ा प्यारा हो गया है तू, बड़ा होकर अब और खूबसूरत लगने लगा है बिलकुल छोकरियों जैसा सुंदर है, गोरा चिकना"

माँ यह सुनकर अक्सर कहती "अरे अभी कच्ची उमर का बच्चा है, बड़ा कहाँ हुआ है" तो मंजू कहती "हमारे काम के लिए काफ़ी बड़ा है मालकिन" और आँखें नचाकर हँसने लगती माँ फिर उसे डाँट कर चुप कर देती मंजू की बातों मे छुपा अर्थ बाद मे मुझे समझ मे आया

रघू भी मेरी ओर देखता और अलग तरीके से हँसता कहता "मुन्ना, नहला दूँ? बचपन मे मैं ही नहलाता था तुझे"

मैं नाराज़ होकर उसे डाँट देता वैसे बात सही थी मुझे कुछ कुछ याद था कि बचपन मे रघू मुझे नंगा करके नहलाता मुझे तब वह कई बार चूम भी लेता था मेरे शिश्न और नितंबों को वह खूब साबुन लगाकर रगडता था और मुझे वह बड़ा अच्छा लगता था एक दो बार खेल खेल मे रघू मेरा शिश्न या नितंब भी चूम लेता और फिर कहता कि मैं माँ से ना कहूँ मुझे अटपटा लगता पर मज़ा भी आता वह मुझे इतना प्यार करता था इसलिए मैं चुप रहता

वैसे मंजू की यह बात सच थी कि अब मैं बड़ा हो गया था माँ को भले ना मालूम हो पर मंजू ने शायद मेरे तने शिश्न का उभार पैंट मे से देख लिया होगा इस कमसिन अम्र मे भी मेरा लंड खड़ा होने लगा था और पिछले ही साल से मेरा हस्तमैथुन भी शुरू हो गया था शहर मे मैं गंदी किताबें चोरी से पढता और उनमे की नंगी औरतों की तस्वीरें देखकर मुठ्ठ मारता बहुत मज़ा आता था औरतों के प्रति मेरी रूचि बहुत बढ़ गयी थी ख़ास कर बड़ी खाए पिए बदन की औरतें मुझे बहुत अच्छी लगती थीं
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mini

Re: गाँव मे मस्ती

Post by mini »

are bahut purani h .per mast hai
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jay
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Re: गाँव मे मस्ती

Post by jay »

is kahaani ne to badi dhoom machai thi . par pdf me thi aaj pahli bar text me dekh raha hun very good boss
Read my other stories

(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: गाँव मे मस्ती

Post by 007 »

गाँव आने के बाद गंदी किताबें मिलना बंद हो गया था इसलिए अब मैं मन के लड्डू खाते हुए तरह तरह की औरतों के नंगे बदन की कल्पना करते हुए मुठ्ठ मारा करता था

आने के बाद माँ के प्रति मेरा आकर्षण बहुत बढ़ गया था सहसा मैंने महसूस किया था कि मेरी माँ एक बड़ी मतवाली नारी थी उसके इस रूप का मुझ पर जादू सा हो गया था शुरू मे एक दिन मुझे अपराधी जैसा लगा थी पर फिर लंड मे होती मीठी टीस ने मेरे मन के सारे बंधन तोड दिए थे

मेरी माँ दिखने मे साधारण सुंदर थी भले ही बहुत रूपवती ना हो पर बड़ी सेक्सी लगती थी बत्तीस साल की अम्र होने से उसमे एक पके फल सी मिठास आ गयी थी थोड़ा मोटा खाया पिया मांसल शरीर, गाँव के स्टाइल मे जल्दी जल्दी पहनी ढीली ढाली साड़ी चोली और चोली मे से दिखती सफेद ब्रा मे कसी मोटी मोटी चुचियाँ, इनसे वह बड़ी चुदैल सी लगती थी बिलकुल मेरी ख़ास किताबों मे दिखाई चुदैल रंडियों जैसी!

मैंने तो अब उसके नाम से मुठ्ठ मारना शुरू कर दिया था अक्सर धोने को डाली हुई उसकी ब्रा या पैंटी मैं चुपचाप कमरे मे ले आता और उसमे मुठ्ठ मारता उन कपड़ों मे से आती उसके शरीर की सुगंध मुझे मतवाला कर देती थी एक दो बार मैं पकड़े जाते हुए बचा माँ को अपनी पैंटी और ब्रा नहीं मिले तो वह मंजू को डाँटने लगी मंजू बोली कि माँ ने धोने डाली ही नहीं किसी तराहा से मैं दूसरे दिन उन्हें फिर धोने के कपड़ों मे छुपा आया मंजू को शायद पता चल गया था क्योंकि माँ की डाँट खाते हुए वह मेरी ओर देखकर मंद मंद हँस रही थी पर कुछ बोली नहीं मेरी जान मे जान आई!

मुझे ज़्यादा दिन प्यासा नहीं रहना पड़ा माँ वास्तव मे कितनी चुदैल और छिनाल थी और घर मे क्या क्या गुल खिलते थे, यह मुझे जल्द ही मालूम हो गया मैं एक दिन देर रात को अपने कमरे से पानी पीने को निकला उस दिन मुझे नींद नहीं आ रही थी माँ के कमरे से कराहने की आवाज़ें आ रही थीं मैं दरवाजे से सट कर खड़ा हो गया और कान लगाकर सुनने लगा सोचा माँ बीमार तो नहीं है!


"आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हा, मर गयी रे, मंजू तू मुझे मार डालेगी आज उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ईह्ह्ह्ह्ह मायाम " माँ की हल्की चीख सुनकर मुझे लगा कि ना जाने मंजू बाई माँ को क्या यातना दे रही है इसलिए मैं अंदर घुसने के लिए दरवाजा ख़टखटाने ही वाला था कि मंजू की आवाज़ आई "मालकिन, नखरे मत करो अभी तो सिर्फ़ उंगली ही डाली है आपकी चूत मे! रोज की तराहा जीभ डालूंगी तो क्या करोगी?"

"अरे पर आज कितना मीठा मसल रही है मेरे दाने को तू छिनाल जालिम, कहाँ से सीखा ऐसा दाना रगडना?" माँ कराहती हुई बोली

"रघू सीख कर आया है शहर से, शायद वह ब्लू फिल्म मे देख कर आया है कल रात को मुझे चोदने के पहले बहुत देर मेरा दाना मसलता रहा हरामी इतना झड़ाया मुझे कि मै लस्त हो गयी!" मंजू की आवाज़ आई
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