सबाना और ताजीन की चुदाई compleet

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rajsharma
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सबाना और ताजीन की चुदाई compleet

Post by rajsharma »

सबाना और ताजीन की चुदाई -1
हेल्लो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो आप तो जानते ही होंगे की एक मर्द से ज़्यादा सेक्स एक औरत मे होता है जब मर्द औरत की गर्मी शांत नही कर पाता है तो औरत पर क्या गुजरती है और यही से एक औरत का पतन होना शुरू हो जाता है ये कहानी एक भी कामातुर हसीना सबाना की है जो अपने पति से संतुष्ट ना हो पाने की वजह से बाहर की दुनिया मे अपने कदम बढ़ा देती हैअब आप कहानी का मज़ा लीजिए और रेप्लाई ज़रूर दे
सुबह के आठ बज रहे थे. परवेज़ ने जल्दी से अपना पिजामा पहना और बाहर निकल गया. शबाना अभी बिस्तर पर लेटी हुई ही थी, बिल्कुल नंगी. उसकी चूत पर अब भी पठान का पानी नज़र आ रहा था, और मायूसी मे उसकी टांगे फैली हुई थी. आज फिर पठान उसे प्यासा छ्चोड़ कर चला गया था.

"हरामजाड़ा छक्का" पठान को गाली देते हुए शबाना ने अपनी चूत में उंगली डाली और ज़ोर ज़ोर से अंदर बाहर करने लगी. फिर एक भारी सिसकारी के साथ वो शिथिल पड़ने लगी, उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया. लेकिन चूत में अब भी आग लगी हुई थी, लंड की प्यासी चूत को उंगली से शांत करना मुश्किल था.

नहाने के बाद अपना शरीर पोंच्छ कर वो बाथरूम से बाहर निकली और नंगी ही आईने के सामने खड़ी हो गई. आईने में अपने जिस्म को देखकर वो मुस्कुराने लगी, उसे खुद अपनी जवानी से जलन हो रही थी. शानदार गुलाबी चुचियाँ, भरे हुए मम्मे पतली कमर, क्लीन शेव चूत जिसके उपरी हिस्से पर बालों की एक पतली सी लकीर जैसे रास्ता बता रही हो - जन्नत का.

उसने एक ठंडी आह भरी, अपनी चूत को थपथपाया और चड्डी पहन ली. फिर अपने गदराए हुए एकदम गोल और कसे हुए मम्मों को ब्रा में लपेटकर उसने हुक बंद कर लिया. अपने उरोजो को ठीक से सेट किया, वो तो जैसे उच्छल कर ब्रा से बाहर आ रहे थे. ब्रा का हुक बंद करने के बाद उसने अलमारी खोली और सलवार कमीज़ निकाली, लेकिन फिर कुच्छ सोचकर उसने कपड़े वापस अलमारी में रख दिए और बुर्क़ा निकाल लिया.

अब वो बिल्कुल तैयार थी, सिर्फ़ एक ही बदलाव था, आज उसने बुर्क़े में सिर्फ़ चड्डी और ब्रा पहनी थी. फिर अपना छ्होटा सा पर्स जो कि मुट्ठी में आ सके और जिसमें 10-50 रुपये के 4-5 नोट रख सके, लेकर निकल गई. अब वो बस स्टॉप पर आकर बस का इंतेज़ार करने लगी, उसे पता था इस वक़्त बस में भीड़ होगी और उसे बैठने की क्या, खड़े होने की भी जगह नहीं मिलेगी. यही चाहती थी वो. शबाना सर से पैर तक बुर्क़े में धकि हुई थी, सिर्फ़ आँखें नज़र आ रही थी. किसी के भी उसे पहचान पाने की कोई गुंजाइश नहीं थी.

जैसे ही बस आई, वो धक्का मुक्की करके चढ़ गई, किसी तरह टिकेट ली और बीच में पहुँच गई और इंतेज़ार करने लगी. किसी मर्द का जो उसे छुए, उसके प्यासे जिस्म को राहत पहुँचाए. उसे ज़्यादा इंतेज़ार नहीं करना पड़ा. उसकी जाँघ पर कुच्छ गरम गरम लगा. वो समझ गई कि यह लंड है. सोचते ही उसकी धड़कनें तेज़ हो गई, और उसने अपने आपको थोड़ा अड्जस्ट किया. अब वो लंड बिल्कुल उसकी गंद में सेट हो चुका था. उसने धीरे से अपनी गांद को पीछे की तरफ दबाया. उसके पीछे खड़ा था प्रताप सिंग, जो बस में ऐसे ही मौकों की तलाश में रहता था. प्रताप समझ गया कि लाइन क्लियर है. उसने अपना हाथ नीचे किया और अपने लंड को सीधा करके शबाना की गंद पर फिट कर दिया. अब प्रताप ने अपना हाथ शबाना की गंद पर रखा और दबाने लगा. हाथ लगाते ही प्रताप चौंक गया, वो समझ गया कि बुर्क़े के नीचे सिर्फ़ चड्डी है. उसने धीरे धीरे शबाना की मुलायम गोल गोल उठी हुई गंद की मसाज करना शुरू कर दिया. अब शबाना एकदम गरम होने लगी थी. प्रताप ने अपना हाथ अब उपर किया और शबाना की कमर पर से होता हुआ उसका हाथ उसकी बगल में पहुँच गया. वो शबाना की हल्की हल्की मालिश कर रहा था, उसकी पीठ पर से होता हुआ उसका हाथ शबाना की कमर और गंद को बराबर दबा रहा था. और नीचे प्रताप का लंड शबाना की गंद की दरार में धंसा हुआ धक्के लगा रहा था. फिर प्रताप ने हाथ नीचे लिया और उसके बुर्क़े को पीछे से उठाने लगा. शबाना ने कोई विरोध नहीं किया और अब प्रताप का हाथ शबाना की चड्डी पर था. वो उसकी जाँघ और गंद को अपने हाथों से आटे की तरह गूँथ रहा था. फिर प्रताप ने शबाना की दोनों जांघों के बीच हाथ डाला और उंगलियों से दबाया. शबाना समझ गई और उसने अपनी टाँगें फैला दी. अब प्रताप ने बड़े आराम से अपनी उंगलियाँ शबाना की चूत पर रखी और उसे चड्डी के उपर से सहलाने लगा. शबाना मस्त हो चुकी थी और उसकी साँसें तेज़ चलने लगी थी. उसने नज़रें उठाई और इतमीनान किया कि किसी की नज़र तो नहीं, यकीन होने के बाद उसने अपनी आँखें बंद की और मज़े लेने लगी. अब प्रताप की उंगली चड्डी के किनारे से अंदर चली गई थी. शबाना की भीगी हुई चूत पर प्रताप की उंगलियाँ जैसे कहर बरपा रही थी. ऊपर नीचे, अंदर-बाहर - शबाना की चूत जैसे तार-तार हो रही थी और प्रताप की उंगलिया खेत में चल रहे हल की तरह उसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई नाप रही थी. प्रताप का पूरा हाथ शबाना की चूत के पानी से भीग चुका था - फिर उसने अपनी दो उंगलियाँ एक साथ चूत में घुसा और दो तीन ज़ोर के झटके दिए - शबाना ऊपर से नीचे तक हिल गई और उसके पैर उखड़ गये, वो प्रताप पर एकदम से निढाल होकर गिर पड़ी. वो झाड़ चुकी थी. आज तक इतना शानदार स्खलन नहीं हुआ था उसका. उसने अपना हाथ पीछे किया और प्रताप के लंड को पकड़ लिया. इतने में झटके के साथ बस रुकी और बहोत से लोग उतर गये. बस तकरीबन खाली हो गयी. शबाना ने अपना बुर्क़ा झट से नीचे किया और सीधी नीचे उतर गई. आज उसे भरपूर मज़ा मिला था, रोज़ तो सिर्फ़ कोई पीछे से लंड रगड़ कर छ्चोड़ देते थे. आज जो हुआ वो पहले कभी नहीं हुआ था. आप ठीक समझे शबाना यही करके मज़े लूट रही थी. क्योंकि पठान उसे कभी खुश नहीं कर पाया था.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: सबाना और ताजीन की चुदाई

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उसने नीचे उतरकर रोड क्रॉस की और रिक्क्षा पकड़ ली. ऐसा मज़ा ज़िंदगी में पहली बार आया था. वो बार बार अपना हाथ देख रही थी, उसकी मुट्ठी बनाकर प्रताप के लंड के बारे में सोच रही थी. उसने घर से थोड़ी दूर ही रिक्क्षा छ्चोड़ दिया ताकि किसी को पता ना चले कि वो रिक्कशे से आई है. वो पैदल चलकर अपने मकान में पहुँची और ताला खोलकर अंदर चली गई.

अभी उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि घंटी की आवाज़ सुनकर उसने फिर दरवाज़ा खोला. सामने प्रताप खड़ा था. वो समझ गई की प्रताप उसका पीछा कर रहा था, इस डर से की कोई और ना देख ले उसने प्रताप का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खींच लिया. दरवाज़ा बंद करके उसने प्रताप की तरफ देखा, वो हैरान थी प्रताप कि इस हरकत से. "क्यों आए हो यहाँ ?" "यह तो तुम अच्छि तरह जानती हो." "देखो कोई आ जाएगा" "कोई आनेवाला होता तो तुम इस तरह बस में मज़े लेने के लिए नहीं घूम रही होती". "में तुम्हें जानती भी नहीं हूँ" "मेरा नाम प्रताप है, अपना नाम तो बताओ" "मेरा नाम शबाना है, अब तुम जाओ यहाँ से". बातें करते करते प्रताप शबाना के जिस्म पर हाथ फिरा रहा था. प्रताप के हाथ उसकी चुचियो से लेकर उसकी कमर और पेट और जांघों को सहला रहे थे. शबाना बार बार उसका हाथ झटक रही थी और प्रताप बार बार उन्हें फिर शबाना के जिस्म पर रख रहा था. लेकिन प्रताप समझ गया था कि शबाना की ना में हां है

अब प्रताप ने शबाना को अपनी बाहों भर लिया और बुर्क़े से झाँकति आँखों पर चुंबन जड़ दिया. शबाना की आँखें बंद हो गई और उसके हाथ अपने आप प्रताप के कंधों पर पहुँच गये. प्रताप ने उसके बुर्क़े को उठाया, जैसे कोई घूँघट उठा रहा हो. चेहरा देखकर प्रताप को अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं हो रहा था. गजब की खूबसूरत थी शबाना - गुलाबी रंग के पतले होंठ, बड़ी आँखें, गोरा चिटा रंग और होंठों के ठीक नीचे दाईं तरफ एक छ्होटा सा तिल. प्रताप ने अब धीरे धीरे उसके गालों को चूमना और चाटना शुरू कर दिया. शबाना ने आँखें बंद कर ली और प्रताप उसे चूमे जा रहा था. उसके गालों को चाट रहा था, उसके होंठों को चूस रहा था. अब शबाना भी अच्च्छा साथ दे रही थी और उसकी जीभ प्रताप की जीभ से कुश्ती कर रही थी. प्रताप ने हाथ नीचे किया और उसके बुर्क़े को उठा दिया, शबाना ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर दिए और प्रताप ने बुर्क़ा उतार फेंका. प्रताप शबाना को देखता रह गया, इतना शानदार जिस्म जैसे किसीने ने तराश कर बनाया हो.

"दरवाज़े पर ही करना है सबकुच्छ ?" - प्रताप मुस्कुरा दिया और उसने शबाना को अपनी बाहों में उठा लिया और गोद में लेकर बिस्तर की तरफ चल पड़ा. उसने शबाना को बेड के पास ले जाकर गोद से उतार दिया और बाहों में भर लिया. शबाना की ब्रा खोलते ही जैसे दो परिंदे पिंजरे से छ्छूट कर उड़े हों. बड़े बड़े मम्मे और उनपर छ्होटी छ्होटी गुलाबी चुचियाँ और उठे हुए निपल्स. प्रताप तो देखता ही रह गया, जैसे की हर कपड़ा उतरने के बाद कोई ख़ज़ाना सामने आ रहा था. प्रताप ने अपना मुँह नीचे लिया और शबाना की चूचियों को चूसता चला गया और चूस्ते हुए ही उसने शबाना को बिस्तर पर लिटा दिया. शबाना के मुँह से सिसकारिया निकल रही थी और वो प्रताप के बालों में हाथ फिरा रही थी, उसे दबा रही थी और अपनी चूचियों को उसके मुँह में धकेल रही थी. शबाना मस्त हो चुकी थी. अब प्रताप उसके पेट को चूस रहा था और प्रताप का हाथ शबाना की चड्डी पर से उसकी चूत की मसाज कर रहा था. शबाना मस्त हो चुकी थी, उसकी चूत की लंड की प्यास उसे मदहोश कर रही थी. उसकी सिसकारियाँ बंद नहीं हो रही थी और टाँगें अपनेआप फैलकर लंड को चूत में घुसने का निमंत्रण दे रही थी. प्रताप उसके पेट को चूमते हुए उसकी जांघों के बीच पहुँच चुका था. शबाना बिस्तर पर लेटी हुई थी और उसकी टाँगें बेड से नीचे लटक रही थी. प्रताप उसके पैरों के बीच से होता हुआ बेड के नीचे बैठ गया और शबाना के पैर फैला दिए. वो शबाना की गोरी गोरी, गदराई हुई भारी भारी सुडौल जांघों को बेतहाशा चूम रहा था और उसकी उंगलिया चड्डी पर से उसकी चूत सहला रही थी. प्रताप के नथुनो में शबाना की चूत से रिस्ते हुए पानी की खुश्बू आ रही थी और वो मदहोश हो रहा था. शबाना पर तो जैसे नशा चढ़ गया था और वो अपनी गांद उठा उठा कर अपनी चूत को प्रताप की उंगलियों पर रगड़ रही थी.
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Re: सबाना और ताजीन की चुदाई

Post by rajsharma »


अब प्रताप चड्डी के ऊपर से ही शबाना की चूत को चूमने लगा, हल्के हल्के दाँत गढ़ा रहा था शबाना की चूत पर. और शबाना प्रताप के सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा रही थी, गांद उठा उठा कर चूत को प्रताप के मुँह में घुसा रही थी. फिर प्रताप ने शबाना की चड्डी उतार दी. अब उसके सामने सबसे हसीन चूत थी एकदम गुलाबी एकदम प्यारी. एकदम सफाई से रखी हुई कोई सीप जैसी. प्रताप उसकी खुश्बू से मदहोश हो रहा था और उसने अपनी जीभ शबाना की चूत पर रख दी. शबाना उच्छल पड़ी और उसके शरीर में जैसे करेंट दौड़ गया, उसने प्रताप के सिर को पकड़ा और अपनी गंद उचका कर चूत को प्रताप के मुँह पर रगड़ दी. प्रताप की जीभ शबाना की चूत में धँस गई और प्रताप ने अपने होंठों से शबाना की चूत को ढँक लिया और एक उंगली भी शबाना की चूत में घुसा दी - अब शबाना की चूत में प्रताप की जीभ और उंगली घमासान मचा रही थी. शबाना रह रह कर अपनी गांद उठा उठा कर प्रताप के मुँह में चूत दबा रही थी. उसकी चूत से निकल रहा पानी उसकी गांद तक पहुँच गया था. प्रताप ने अब उंगली चूत से निकाली और शबाना की गंद पर उंगली फिराने लगा. चूत के पानी की वजह से गंद में उंगली फिसल कर जा रही थी. शबाना को कुच्छ होश नहीं था - वो तो चुदाई के नशे से मदहोश हो चुकी थी, आज तक उसे इतना मज़ा नहीं आया था. उसकी सिसकारिया बंद नहीं हो रही थी. उसकी गंद में उंगली और चूत में जीभ घुसी हुई थी और वो नशे में धुत्त शराबी की तरह बिस्तर पर इधर उधर हो रही थी. उसकी आँखें बंद थी और वो जन्नत की सैर कर रही थी. किसी तेज़ खुश्बू की वजह से उसने आँखें खोली, तो सामने प्रताप का लंड था. उसे पता ही नहीं चला कब प्रताप ने अपने कपड़े उतार दिए और 69 की पोज़िशन में आ गया. शबाना ने प्रताप के लंड को पकड़ा और ऊपर नीचे करने लगी, प्रताप के लंड से पानी गिर रहा था और वो चिपचिप हो रहा था - शबाना ने लंड को अच्छि तरह सूँघा, उसे अपने चेहरे पर लगाया और उसका अच्छि तरह जायज़ा लेने के बाद उसे चूम लिया. फिर अपना मुँह खोला और लंड को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया. वो एक लॉलिपोप की तरह लंड चूस रही थी, लंड के सुपरे को अपने मुँह में लेकर अंदर ही उसे जीभ से लपेटकर अच्छि तरह चूस रही थी. और प्रताप उसकी चूत अब भी चूस रहा था.

अचानक जैसे ज्वालामुखी फटा और लावा बहने लगा. शबाना का जिस्म बुरी तरह अकड़ गया और उसकी टाँगें सिकुड गई, प्रताप का मुँह जैसे शबाना की जांघों में पिस रहा था, शबाना बुरी तरह झाड़ गई और उसकी चूत ने एकदम से पानी छ्चोड़ दिया, और वो एकदम निढाल गई. आज एक घंटे में वो दो बार झाड़ चुकी थी जबकि अब तक उसकी चूत में लंड गया भी नहीं था.
क्रमशः................
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Re: सबाना और ताजीन की चुदाई

Post by rajsharma »

सबाना और ताजीन की चुदाई -2
गतान्क से आगे............
अब प्रताप ने अपना लंड शबाना के मुँह से निकाला और शबाना की चूत छ्चोड़कर उसके होंठों को चूसने लगा. शबाना झाड़ चुकी थी लेकिन लंड की प्यास उसे बराबर पागल किए हुए थी. अब वो बिल्कुल नंगी प्रताप के नीचे लेटी हुई थी, और प्रताप भी एकदम नंगा उसके ऊपर लेटा हुआ था, प्रताप का लंड उसकी चूत पर ठोकर मार रहा था और शबाना अपनी गांद उठा उठा कर प्रताप के लंड को खाने की फिराक में थी. प्रताप अब उसके टाँगों के बीच बैठ गया और उसकी टाँगों को उठा कर अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा. शबाना आहें भर रही थी, अपने सर के नीचे रखे तकिये को अपने हाथों में पकड़ कर मसल रही थी. उसकी गंद रह रह कर उठ जाती थी, प्रताप के लंड को खा जाने के लिए, मगर प्रताप तो जैसे उसे तडपा तडपा कर चोदना चाहता था, वो उसकी चूत पर अपने लंड को रगडे जा रहा था ऊपर से नीचे. अब शबाना से रहा नहीं जा रहा था - असीम आनंद की वजह से उसकी आँखें बंद हो चुकी थी और मुँह से सिसकारियाँ छ्छूट रही थी. प्रताप का लंड धीरे धीरे फिसल रहा था, फिसलता हुआ वो शबाना की चूत में घुस जाता और बाहर निकल जाता - अब प्रताप उसे चोदना शुरू कर चुका था. हल्के हल्के धक्के लग रहे थे और शबाना भी अपनी गांद उठा उठा कर लंड खा रही थी. धीरे धीरे धक्कों की रफ़्तार बढ़ रही थी और शबाना की सिसकारियों से सारा कमरा गूँज रहा था...प्रताप का लंड कोयले के एंजिन के टाइयर पर लगी पट्टी की तरह शबाना की चूत की गहराई नाप रहा था. प्रताप की चुदाई में एक लय थी और अब धक्कों ने रफ़्तार पकड़ ली थी. प्रताप का लंड तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था और शबाना भी पागल हो चुकी थी, वो अपनी गंद उठा उठा कर प्रताप के लंड को अपनी चूत में दबाकर पीस रही थी - अचानक शबाना ने प्रताप को कसकर पकड़ लिया और अपने दोनों पैर प्रताप की कमर पर बाँध कर झूल गई, प्रताप समझ गया कि यह फिर झड़ने वाली है - प्रताप ने अपने धक्के और तेज़ कर दिए - उसका लंड शबाना की चूत में एकदम धंसता चला जाता, और, बाहर आकर और तेज़ी से घुस जाता. शबाना की चूत से फव्वारा छ्छूट गया और प्रताप के लंड ने भी शबाना की चूत में पूरा पानी उडेल दिया...

प्रताप और शबाना अब जब भी मौका मिलता एक दूसरे के जिस्म की भूख मिटा देते थे.

शबाना बहोत दिनों से प्रताप का लंड नहीं ले पाई थी. परवेज़ की बेहन ताज़ीन घर आई हुई थी. वो पूरे दिन घर पर ही रहती थी, जिस वजह से ना तो शबाना कहीं जा पाती थी और ना ही प्रताप को बुला सकती थी.

"शबाना में दो दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ, कुच्छ ज़रूरी काम है, ताज़ीन घर पर नहीं होती तो तुम्हें भी ले चलता". "कोई बात नहीं, आप अपना काम निपटा कर आइए". शबाना को परवेज़ के जाने की कोई परवाह नहीं थी, और उसके साथ जाने की इच्च्छा भी नहीं थी. वो तो ताज़ीन को भी भगा देना चाहती थी, जिसकी वजह से उसे प्रताप का साथ नहीं मिल पा रहा था, पूरे पंद्रह दिन से. और ताज़ीन अभी और 15 दिन रुकने वाली थी.

रात को ताज़ीन और शबाना बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रहे थे. शबाना को नींद आने लगी थी, और वो गाउन पहन कर सो गई. सोने से पहले शबाना ने लाइट बंद करके डिम लाइट चालू कर दी थी. ताज़ीन किसी चॅनेल पर इंग्लीश फिल्म देख रही थी. फिल्म में काफ़ी खुलापन और सेक्स के सीन्स थे.
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Re: सबाना और ताजीन की चुदाई

Post by rajsharma »


नींद में शबाना ने एक घुटना उपर उठाया तो अनायास ही उसका गाउन फिसल कर घुटने के उपर तक सरक गया. टीवी और डिम लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग की जाँघ चमक रही थी. अब ताज़ीन का ध्यान फिल्म में ना होकर शबाना के जिस्म पर था, और रह रह कर उसकी नज़र शबाना के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी. शबाना की खूबसूरत जांघें उसे मादक लग रही थी. कुच्छ तो फिल्म के सेक्स सीन्स का असर था और कुच्छ शबाना की खूबसूरती का. ताज़ीन ने टीवी बंद किया और वहीं शबाना के पास सो गई. थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किए सोई रही, फिर उसने अपना हाथ शबाना के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया. हाथ रख कर वो ऐसे ही लेटी रही, एकदम स्थिर. जब शबाना ने कोई हरकत नही की, तो ताज़ीन ने अपने हाथ को शबाना की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया. हाथ भी इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही शबाना को च्छू रही थी, हथेली बिल्कुल भी नहीं. फिर उसने हल्के हाथों से शबाना के गाउन को पूरा नीचे कर दिया, अब शबाना की पॅंटी भी सॉफ नज़र आ रही थी. ताज़ीन की उंगलियाँ अब शबाना के घुटनों से होती हुई उसकी पॅंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ जाती. यही सब तकरीबन 2-3 मिनिट तक चलता रहा. जब शबाना ने कोई हरकत नहीं की, तो ताज़ीन ने शबाना की पॅंटी को छुना शुरू कर दिया, लेकिन तरीका वोही था. घुटनों से पॅंटी तक उंगलियाँ परदे कर रही थी. अब ताज़ीन धीरे से उठी और उसने अपना गाउन और ब्रा उतार दिया, और सिर्फ़ पॅंटी में शबाना के पास बैठ गई. शबाना के गाउन में आगे की तरफ बटन लगे हुए थे, ताज़ीन ने बिल्कुल हल्के हाथों से बटन खोल दिए. फिर गाउन को हटाया तो शबाना के गोरे चिट मम्मे नज़र आने लगे. अब ताज़ीन के दोनों हाथ व्यस्त हो गये थे, उसके एक हाथ की उंगलियाँ शबाना की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ शबाना के मम्मों को सहला रही थी. उसकी उंगलियाँ अब शबाना को किसी मोर-पंख की तरह लग रही थी. जी हाँ दोस्तो, शबाना उठ चुकी थी, लेकिन उसे अच्च्छा लग रहा था इसलिए बिना हरकत लेटी रही. वो इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी.


अब ताज़ीन की हिम्मत बढ़ गई थी, उसने झुककर शबाना की चुचि को किस किया. फिर उठी, और शबाना के पैरों के बीच जाकर बैठ गई. शबाना को अपनी जाँघ पर गर्म हवा महसूस हो रही थी, वो समझ गई ताज़ीन की साँसें हैं. वो शबाना की जाँघ को अपने होंठों से च्छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी. अब वोही साँसें शबाना को अपनी चड्डी पर महसूस हो रही थी, लेकिन उसे नीचे दिखाई नहीं दे रहा था. वैसे भी उसने अभी तक आँखें नहीं खोली थी. अब ताज़ीन ने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसे शबाना की पॅंटी में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी. कुच्छ देर ऐसे ही उसने अपनी जीभ को पॅंटी पर ऊपर नीचे फिराया. शबाना की चड्डी ताज़ीन के थूक से और, चूत से निकल रहे पानी से भीगने लगी थी. अचानक ताज़ीन ने शबाना की पॅंटी को साइड में किया और शबाना की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिए. शबाना से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गंद उठा दी, और दोनों हाथों से ताज़ीन के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया. ताज़ीन की तो मन की मुराद पूरी हो गई थी !! अब कोई डर नहीं था, वो जानती थी कि अब शबाना सबकुच्छ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी.
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