हीरों का फरेब कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: हीरों का फरेब

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हर होटेल मे एक रिक्रियेशन हॉल भी था. उन हॉल्स के निर्माण मे केवल लकड़ी ही प्रयोग किया गया था. बड़ा अजीब माहौल होता था यहाँ का. मेज़ों पर गाढ़ा काला क़हवा सर्व किया जाता था.......और तीखे तंबाकू वाले सिगार्स का धुआ चारों तरफ चकराता फिरता था. इसमे रंगीन कपड़ों की खुश्बुएं भी शामिल होतीं. ऑर्केस्ट्रा डिफरेंट टाइप के म्यूज़िक बिखेरता और हल्के भारी सुरीले क़हक़हे फ़िज़ा मे गूंजते रहते.

सफदार कॉटेज111 वाले बूढ़े का पिछा करता हुआ मेट्रो के रिक्रियेशन हॉल तक आया था. यहाँ टेबल्स भर चुके थे. ऐसे अवसरों पर लोग अक्सर पहले से बैठे लोगों से अनुमति लेकर उनके साथ बैठ जाया करते थे.

बूढ़ा भी ऐसी ही एक मेज़ की तरफ बढ़ा...जिस पर दो आदमी पहले से बैठे हुए थे. बूढ़े ने धीरे से कुच्छ कहते हुए तीसरी कुर्सी संभाल ली थी. सफदार को निकट की कोई खाली मेज़ नहीं मिली. हर टेबल की चारों कुर्सियाँ भरी हुई थीं. कुच्छ ऐसे भी दिखाई दिए जो इधर उधर भी खड़े थे. हॉल के बीच मे रम्बा चल रहा था.


सफदार भी दीवार से टिक कर खड़ा हो गया. मगर वो बड़ी बोर फील कर रहा था.

बूढ़े ने जेब से सिगेरेट के दो पॅकेट निकाले. एक मेज़ पर ही रख दिया और दूसरे को खोल कर दोनों आदमी की तरफ बढ़ाया. उन्होने मुस्कुरा कर इनकार मे सर हिलाए......और बूढ़ा खुद एक सिगेरेट निकाल कर जलाने लगा.

सफदार ने महसूस किया कि वो एक दूसरे केलिए अजनबी ही हैं. लेकिन कुच्छ देर बाद बूढ़ा किसी झक्की नेता की तरह अपनी भाषण से उन्हें बोर करता दिखाई दिया. वो बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रहे थे. ओर्केस्ट्रा के शोर के कारण सफदार अनुमान नहीं लगा सका कि बात किस टॉपिक की हो रही थी.

कुच्छ देर बाद उन मे से एक आदमी उठ कर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया. लेकिन बूढ़े ने अपनी बातों की धुन मे उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया. वैसे सफदार ने ये भी देखा था कि उठ कर जाने वाला बूढ़े के लिए हुए पॅकेट्स मे से एक बड़ी सफाई से पार कर लिया था. बूढ़े ने दूसरे पॅकेट से सिगेरेट निकाल कर उसे ख़तम होते हुए सिगरेट से लगाया और साँस खिच कर सुलगाने लगा. वो दोनों हाथ हिला हिला कर अपनी बातों मे वज़न भी पैदा कर रहा था.

20 मिनट गुज़र गये और सफदार वहीं खड़ा हॉल के बीच मे थिरकने वाली डॅन्सर्स को देखता रहा. कभी कभी वो बूढ़े की तरफ भी देख लेता था.

अचानक वही लंबी नाक वाला फिर दरवाज़े मे दिखाई दिया जो कुच्छ देर पहले बूढ़े की सिगेरेट का पॅकेट उड़ा ले गया था. सफदार ने उसके चेहरे पर परेशानी के लक्षण देखे. लरखड़ाते हुए कदमों से वो फिर उसी मेज़ की तरफ आ रहा था.

नज़दीक आ कर उसने बूढ़े से कुच्छ कहा और बूढ़ा इस ढंग से उसे देखने लगा जैसे इस तरह टोकना उसे बुरा लगा हो.

इतने मे ओर्केस्ट्रा की म्यूज़िक थम गयी और सफदार ने बूढ़े की आवाज़ सॉफ सुनी जो कह रहा था "मेरी कॉल है......ओह्ह अच्छा थॅंक्स...."

साथ ही वो शेष लोगों से सॉरी कहता हुआ उठ गया. सफदार ने दोनों को दरवाज़े की तरफ बढ़ते देखा. डॅन्सर्स की भीड़ गॅलरी की तरफ सिमट रही थी. सफदार अपने लिए रास्ता बनाता हुआ तेज़ी से आगे बढ़ा. दोनों बाहर निकल चुके थे. सफदार उनसे 20-22 कदम की दूरी पर रहा होगा.

कॉटेजस के निकट पहुच कर वो रुक गये और सफदार एक समीप की कॉटेज की दीवार से लग कर खड़ा हो गया. यहाँ इतना अंधेरा था कि उनकी शकलें सॉफ नहीं दिखाई दे रही थीं.

"क्या बात है...?" बूढ़े का स्वर क्रोध भरा था.

"प्प.....पॅकेट सररर...." लंबी नाक वाला हकलाया.

"क्या बकवास है जल्दी कहो....."

"मैं पॅकेट जेब मे डाल कर इधर ही से जा रहा था कि किसी से टकरा गया. दोनों गिर पड़े. मैने उसे बुरा भला कहा....लेकिन वो माफी माँग कर आगे बढ़ गया. फिर कुच्छ दूर चल कर मैने जेब टटोली तो....प्प....पॅकेट......"

"गायब था...." बूढ़ा गुर्राया. "कहाँ टकराए थे?"

"ठीक इसी जगह......यहीं सर......"

सफदार को किसी टॉर्च की रौशनी आस पास रेंगती हुई दिखाई दी और वो तेज़ी से पिछे खिसक गया. इस हद तक कि संयोग से भी रौशनी की पहुच से दूर ही रहे.

"यू....स्टुपिड...." उसने बूढ़े की आवाज़ सुनी...."अगर वो तुम्हारे जेब से गिरा होता तो यहीं होता...."

"स....समझ मे नहीं आता....."

"दफ़ा हो जाओ...." बूढ़े की आवाज़ क्रोध की अधिकता से काँप रही थी...."अपने कॉटेज से उस समय तक बाहर ना निकलना जब तक की दूसरा निर्देश ना मिले...."

सफदार ने केवल उस आदमी की कदमों की आवाज़ सुनी जो दूर होती चली जा रही थी. इसका मतलब यही था कि बूढ़ा वहीं रुक गया था. सफदार ने भी अपनी जगह से हरकत नहीं की. कुच्छ देर बाद उसे बोखला कर पिछे हट जाना पड़ा क्योंकि शायद बूढ़ा उसी तरफ चल पड़ा था.

फिर पता नहीं क्यों आवाज़ें दूसरी तरफ बढ़ती चली गयीं.
**************

ल्यूटिनंट चौहान साड़ी & सोंस के शोरुम मे एक शो केस पर झुका हुआ हीरों की अंगूठियाँ देख रहा था. आँखें अंगूठियों पर थीं लेकिन ध्यान मॅनेजिंग डाइरेक्टर नज़मी और एक आदमी की तरफ. नज़मी नाटा कद और भारी शरीर का व्यक्ति था. उमर 50 के आस पास थी. चिकनी खोपड़ी ने चेहरे की गोलाई को लगभग पूरा कर दिया था. आँखें साधारण से छ्होटी. खोपड़ी की ही तरह चेहरा भी सॉफ था. पता नहीं उसे देख कर चौहान ने सोचा कि काश भवें भी सॉफ होतीं.

नज़मी दूसरे आदमी से कह रहा था...."बेशक वो डावर ही की लाश थी. लेकिन.....माइ गॉड्ड्ड.....मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो इस हाल मे मिलेगा. ओह्ह...ओह्ह......और फिर सुनिए......हैरत पर हैरत.......वो पहली बार वहाँ उस भेष मे नहीं गया था. केयी सालों से मेट्रो का मॅनेजर उसे एक अपाहिज के रूप मे जानता था. अगर ये कहा जाए कि पोलीस की पकड़ से बचने के लिए उसने चोरी के बाद वेश बदला........तो सवाल पैदा होता है कि वो पहले भी उसी भेष मे वहाँ क्यों जाता रहा था?"

"मगर हीरे गायब कैसे हुए थे?" दूसरे आदमी ने पुछा.

"अरे भाई बस क्या बताउ. वो यहाँ इस मेज़ की दराज़ मे रखे हुए थे. वो आया था और यहीं बैठ कर मुझे अपनी ऑर्डर बुक दिखाने लगा था. अंदर फोन की घंटी बजी थी.......और मैं सिर्फ़ दो मिनट केलिए चला गया था. फिर वापसी पर मैने उस से काफ़ी देर तक बातें की थीं......और उसके चले जाने के बाद दराज़ खोल कर देखा तो हीरे गायब थे."

"हो सकता है हीरे उसके आने से पहले गायब हुए हों."

"नामुमकिन......मैने उन्हें निकालने केलिए दराज़ खोली ही थी कि वो आ गया था. मैं इनफॅक्ट उन्हें तिजोरी मे रखना चाह रहा था. उसके आ जाए से मैने दराज़ फिर बंद कर दी थी. मुझे अच्छी तरह याद है कि उस टाइम तक हीरे मौजूद थे. अरे भाई हीरे उसी ने चुराए थे. वरना तीन हीरे उसके हॉलिडे कॅंप वाले कॉटेज से कैसे बरामद होते?"

"क्या यहाँ उसके अलावा और कोई नहीं था?"

"काउंटर पर तीन थे.....तीनों हिरासत मे हैं." नज़मी ठंडी साँस लेकर बोला. "पोलीस का विचार है कि उन तीनों मे से निश्चित कोई इस चोरी के बारे मे जानता होगा. और वही उसकी मौत का कारण भी बना होगा. हीरे हथियाने के चक्कर मे उसकी हत्या हुई......"

"मैं समझता था कि पोलीस ने उन तीनों को इग्नोर किया होगा जो काउंटर पर उस समय थे....." दूसरे आदमी ने कहा.

"मगर समझ मे नहीं आता कि डावर दोहरी ज़िंदगी क्यों गुज़ार रहा था. उसकी सेहत बहुत अच्छी थी. लेकिन वो एक तफरीह की जगह अपाहिज बन जाता था."

"कहीं तुम ने पहचानने की ग़लती ना की हो...."

"इंपॉसिबल......वो डावर ही था."

"अच्छा.....चोरी का पता चलने के बाद तुम ने क्या किया?"

"पहले यहाँ सब से पुछा. फिर डावर के रेजीडेंस पर गया. कुच्छ देर तक कॉल बेल बजाता रहा. पाँच मिनट तक अंदर से कोई रिप्लाइ नहीं मिलने पर दरवाज़े का हॅंडल घुमा कर धक्का दिया. दरवाज़ा लॉक्ड नहीं था. लेकिन वहाँ था क्या? वो समान समेत गायब था."

"बड़ी विचित्र बात है...."

"कुच्छ समझ मे नहीं आता...." नज़मी अपनी पेशानी रगड़ता हुआ बोला.

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Re: हीरों का फरेब

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Har Hotel me ek recreation hall bhi tha. Un halls ke nirmaan me kewal lakdi hi prayog kiya gaya tha. Bada ajeeb mahaul hota tha yahaan ka. Mezon par gaadha kaala qahwaa serve kiyaa jaata tha.......aur teekhe tambaaku waale cigars ka dhuwaan chaaron taraf chakraata phirta tha. Isme rangeen kapdon ki khushbuyen bhi shaamil hotin. Orchestra different type ke music bikherta aur halke bhaari sureele kahkahe fizaa me goonjte rahte.

Safdar cottage111 waale budhe ka pichha karta hua Metro ke recreation hall tak aaya tha. Yahaan tables bhar chuke the. Aise awasaron par log aksar pahle se baithe logon se anumati lekar unke sath baith jaaya karte the.

Budha bhi aisi hi ek mez ki taraf badha...jis par do aadmi pahle se baithe huye the. Budhe ne dhire se kuchh kahte huye teesri kursi sambhaal li thi. Safdar ko nikat ki koi khaali mez nahin mili. Har table ki chaaron kursiyaan bhari huyi thin. Kuchh aise bhi dikhayi diye jo idhar udhar bhi khade the. Hall ke bich me ramba chal raha tha.


Safdar bhi diwaar se tik kar khada ho gaya. Magar wo badi bore feel kar raha tha.

Budhe ne jeb se cigerette ke do packet nikaale. Ek mez par hi rakh diya aur dusre ko khol kar donon aadmi ki taraf badhaaya. Unhone muskuraa kar inkaar me sar hilaaye......aur budha khud ek cigerette nikaal kar jalaane laga.

Safdar ne mahsoos kiya ki wo ek dusre keliye ajnabi hi hain. Lekin kuchh der baad budha kisi jhakki netaa ki tarah apni bhaashan se unhen bore karta dikhayi diyaa. Wo bade dhyaan se uski baaten sun rahe the. Orkestraa ke shor ke kaaran Safdar anumaan nahin laga saka ki baat kis topic ki ho rahi thi.

Kuchh der baad un me se ek aadmi uth kar darwaaze ki taraf badh gaya. Lekin budhe ne apni baaton ke dhun me uski taraf dhyaan bhi nahin diyaa. Waise Safdar ne ye bhi dekha tha ki uth kar jaane waala budhe ke laaye huye packets me se ek badi safaayi se paar kar liya tha. Budhe ne dusre packet se cigerette nikaal kar usay khatam hote huye cig se lagaaya aur saans khich kar sulgaane laga. Wo donon hath hilaa hilaa kar apni baaton me wazan bhi paida kar raha tha.

20 minuts guzar gaye aur Safdar wahin khada hall ke bich me thirakne waali dancers ko dekhta raha. Kabhi kabhi wo budhe ki taraf bhi dekh leta tha.

Achanak wahi lambi naak waala phir darwaaze me dikhayi diya jo kuchh der pahle budhe ki cigeretts ka packet udaa le gaya tha. Safdar ne uske chehre par pareshani ke lakshan dekhe. Larkhadaate huye kadmon se wo phir usi mez ki taraf aa raha tha.

Nazdik aa kar usne budhe se kuchh kaha aur budha is dhang se usay dekhne laga jaise is tarah toknaa usay buraa lagaa ho.

Itne me orkestraa ki music tham gayi aur safdar ne budhe ki aawaz saaf suni jo kah raha tha "Meri call hai......ohh achha thanks...."

Sath hi wo shesh logon se sorry kahta hua uth gaya. Safdar ne donon ko darwaaze ki taraf badhte dekha. Dancers ki bheed gallery ki taraf simatt rahi thi. Safdar apne liye raasta banaata hua tezi se age badha. Donon baahar nikal chuke the. Safdar unse 20-22 kadam ki doori par raha hoga.

Cottages ke nikat pahuch kar wo ruk gaye aur safdar ek sameep ki cottage ki deewar se lag kar khada ho gaya. Yahaan itna andhera tha ki unki shaklen saaf nahin dikhayi de rahi thin.

"Kya baat hai...?" Budhe ka swar krodh bhara tha.

"pp.....packet sirrr...." Lambi naak waala haklaaya.

"Kya bakwaas hai jaldi kaho....."

"Main packet jeb me daal kar idhar hi se jaa raha tha ki kisi se takraa gaya. Donon gir pade. Maine usay buraa bhalaa kaha....lekin wo maafi maang kar age badh gaya. Phir kuchh door chal kar maine jeb tatoli to....pp....packett......"

"Gayab tha...." Budha gurraya. "Kahaan takraaye the?"

"Thik isi jagah......yahin sir......"

Safdar ko kisi torch ki raushni aas paas rengti huyi dikhaayi di aur wo tezi se pichhe khisak gaya. Iss had tak ki sanyog se bhi raushni ki pahuch se door hi rahe.

"You....stupid...." Usne budhe ki aawaz suni...."Agar wo tumhaare jeb se giraa hota to yahin hotaa...."

"ss....samajh me nahin aata....."

"Dafaa ho jaao...." Budhe ki aawaz krodh ki adhiktaa se kaanp rahi thi...."Apne cottage se us samay tak baahar na nikalna jab tak ki dusra nirdesh na mile...."

Safdar ne kewal us aadmi ki kadmon ki aawaz suni jo door hoti chali jaa rahi thi. Iska matlab yahi tha ki budhaa wahin ruk gaya tha. Safdar ne bhi apni jagah se harkat nahin ki. Kuchh der baad usay bokhlaa kar pichhe hat jaana pada kyonki shayad budha usi taraf chal padaa tha.

Phir pata nahin kyon aawazen dusri taraf badhti chali gayin.
**************

Leutinant Chauhan Saadi & Sons ke showroom me ek show cace par jhuka hua heeron ki anguthiyaan dekh raha tha. Aankhen anguthiyon par thin lekin dhyaan managing director Najmi aur ek aadmi ki taraf. Najmi naata kad aur bhari sharir ka vyakti tha. Umar 50 ke aas paas thi. Chikni khopadi ne chehre ki golaayi ko lagbhag poora kar diya tha. Aankhen sadharan se chhoti. Khopadi ki hi tarah chehra bhi saaf tha. Pata nahin usay dekh kar Chauhan ne socha ki kaash bhawen bhi saaf hotin.

Najmi dusre aadami se kah raha tha...."Beshak wo Dawar hi ki laash thi. Lekin.....my Goddd.....main soch bhi nahin sakta tha ki wo iss haal me milega. Ohh...ohh......aur phir suniye......hairat par hairat.......wo pahli baar wahaan us bhesh me nahin gaya tha. Kayi saalon se Metro ka manager usay ek apaahij ke roop me jaanta tha. Agar ye kahaa jaaye ki police ki pakad se bachne ke liye usne chori ke baad wesh badlaa........to sawaal paida hota hai ki wo pahle bhi usi bhesh me wahaan kyon jaata raha tha?"

"Magar heere gayab kaise huye the?" dusre aadmi ne puchha.

"Aray bhai bas kya bataaun. Wo yahaan is mez ki daraaz me rakhe huye the. Wo aaya tha aur yahin baith kar mujhe apni order book dikhaane laga tha. Andar phone ki ghanti baji thi.......aur main sirf do minut keliye chala gaya tha. Phir waapasi par maine us se kaafi der tak baaten ki thin......aur uske chale jaane ke baad daraaz khol kar dekha to heere gayab the."

"Ho sakta hai heere uske aane se pahle gayab huye hon."

"Namumkin......maine unhen nikaalne keliye daraaz kholi hi thi ki wo aa gaya tha. Main infact unhen tijori me rakhna chaah raha tha. Uske aa jaae se maine daraaz phir band kar di thi. Mujhe achhi tarah yaad hai ki us time tak heere maujood the. Aray bhai heere usi ne churaaye the. Warna teen heere uske Holiday Camp waale cottage se kaise baraamad hote?"

"Kya yahaan uske alaawa aur koi nahin tha?"

"Counter par teen the.....teenon hiraasat me hain." Najmi thandi saans lekar bolaa. "Police ka vichaar hai ki un teenon me se nishchit koi is chori ke baare me jaanta hoga. Aur wahi uski maut ka kaaran bhi bana hoga. Heere hathiyaane ke chakkar me uski hatyaa huyi......"

"main samajhta tha ki police ne police ne un teenon ko ignore kiya hoga jo counter par us samay the....." dusre aadmi ne kaha.

"Magar samajh me nahin aata ki Dawar dohari zindagi kyon guzaar raha tha. Uski sehat bahut achhi thi. Lekin wo ek tafreeh ki jagah apaahij ban jaata tha."

"Kahin tum ne pahchaanne ki galti na ki ho...."

"Impossible......wo Dawar hi tha."

"Achha.....chori ka pata chalne ke baad tum ne kya kiyaa?"

"Pahle yahaan sab se puchha. Phir Dawar ke residance par gaya. Kuchh der tak call bell bajaata raha. Paanch minut tak andar se koi reply nahin milne par darwaaze ka handle ghumaa kar dhakkaa diyaa. Darwaaza locked nahin tha. Lekin wahaan tha kyaa? Wo samaan samet gayab tha."

"Badi vichitra baat hai...."

"Kuchh samajh me nahin aata...." Najmi apni peshaani ragadta hua bolaa.

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Re: हीरों का फरेब

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इमरान ने उजाले मे पहुच कर सिगरेट का पॅकेट खोला. लेकिन वो खाली था. हां......उसे अंदर एक बे सर पैर की लिखावट दिखाई दी.

"सुर्ख (रेड) ज़ुल्फोन की छाओ मे सुर्ख गर्दन ही मुनासिब रहेगी......"

तो ये किसी प्रकार का संदेश था. इमरान ने सोचा. और फिर उस लंबी नाक वाले की तरफ आकृष्ट हो गया जो अब बूढ़े के साथ रिक्रियेशन हॉल से निकल रहा था. उन के पिछे सफदार भी दिखाई दिया.

फिर वो ठीक वहीं पहुच कर रुके जहाँ इमरान लंबी नाक वाले से टकराया था.

उसने उन दोनों की बातें भी सुनी......और अनुमान लगा लिया कि बूढ़ा इस घटना को जान जाने के बाद किसी हद तक नर्वस हो गया है.

फिर जब बूढ़े ने लंबी नाक वाले को उसके कॉटेज ही तक सीमित रहने का आदेश दिया तब इमरान ने सोचा कि अब बूढ़े पर खुद ही नज़र रखनी चाहिए.

दूसरी तरफ सफदार कॉटेज की ओट मे छुपा हुआ कदमों की आहट से दिशा तय करने की कोशिश कर रहा था. अचानक उसने इमरान की भर्राई हुई आवाज़ सुनी "अब तुम अपने कॉटेज मे वापस जाओ...."

लेकिन इस से पहले की सफदार कुच्छ कहता.......इमरान तेज़ी से आगे बढ़ गया.

अब वो खुद ही बूढ़े का पिछा कर रहा था.

बूढ़ा अपने कॉटेज की तरफ जाने के बजाए टॅक्सी-स्टॅंड की तरफ आया. उस समय इमरान उसके निकट ही था लेकिन भला पहचाना कैसे जा सकता था.....जबकि उसकी नाक की बनावट बिल्कुल बदल गयी थी.......और घनी मुच्छों ने निचले होन्ट का भी कुच्छ भाग छिपा लिया था.

"सरदारगढ़....." बूढ़े ने एक टॅक्सी मे बैठते हुए ड्राइवर से कहा और टॅक्सी हरकत मे आ गयी.

करीब ही की दूसरी टॅक्सी इमरान के काम आई.

"उस टॅक्सी के पिछे लगे रहो.....डबल किराया....." उसने ड्राइवर को निर्देश दिया.

********

बूढ़े ने सरदारगढ़ की सीमा मे प्रवेश करते ही एक पब्लिक टेली फ़ोन बूथ के निकट टॅक्सी रुकवाई और उतर कर बूथ मे चला गया.

यहाँ किसी के नंबर डाइयल किए और माउत पीस मे बोला...."हेलो....मोना.....देखो मैं 28 बोल रहा हूँ. रेंडल मे तुरंत पहुचो....मैं वहीं मिलूँगा....."

वो फोन काट करके बूथ से बाहर आया और टॅक्सी मे बैठ गया.

अब टॅक्सी सरदारगढ़ की सब से अधिक रौनक वाली सड़क पर दौड़ रही थी. कुच्छ देर बाद एक ऐसी इमारत के कॉंपाउंड मे प्रवेश की जिस के साइन बोर्ड पर रेंडल लिखा हुआ था.

रेंडल सरदारगढ़ के बेहतरीन नाइट क्लब्स मे से था. तीन बजे से पहले यहाँ की रौनक और गहमा गहमी देकने लायक होती थी. लेकिन ये केवल उँचे वर्ग के लोगों केलिए थी.

बूढ़ा टॅक्सी से उतर कर हॉल मे आया. कुच्छ वेटर्स ने उसका वेलकम इस ढंग से किया जैसे वो वहाँ का पर्मनेंट मेंबर हो. उसने एक ऐसी मेज़ का चुनाव किया जिसके आस पास की मेज़ें भी खाली थीं. दस मिनट से अधिक इंतेज़ार नहीं करना पड़ा. सुर्ख बालों वाली लड़की तीर की तरह मेज़ की तरफ आई.

"कोई ख़ास बात?" उसने बैठते हुए पुछा.

"बहुत ही ख़ास...." बूढ़े ने उसकी तरफ देखे बिना उत्तर दिया. लेकिन लड़की उसे घूरती रही. कुच्छ पल खामोशी रही. फिर बूढ़े ने कहा...."किस गधे ने तुम से कहा था कि तुम किसी ऐसे आदमी को उलझाने की कोशिश करो जो खुद ही पोलीस को सब कुच्छ बता बैठे...."

"क्या मतलब?"

"स्कीम ये थी कि हम उस तक पोलीस को राह दिखाते और तब वो बयान देता...."

"मगर ये हुआ कैसे?"

"पहले उसने सब कुच्छ बक दिया था. फिर तुम्हारी तलाश मे निकला था. और तुम से ये ग़लती हुई थी कि तुम ने गेराज मे मेरे कॉटेज का नंबर लिखवा दिया था."

"तुम्हारे कॉटेज का नंबर....! नहीं तो.....मैने 111 लिखवाया था."

"स्टुपिड......110 था तुम्हारे कॉटेज का नंबर....."

"ओह्ह.....तब तो.....रियली....." लड़की ने कुच्छ सोचते हुए कहा. फिर चौंक कर बोली...."क्या पोलीस ने चेक किया था?"

"नहीं वही तलाश करता हुआ पहुचा था...."

"और पोलीस को बयान देने वो खुद ही दौड़ा गया था?"

"नहीं......पोलीस मेट्रो के मॅनेजर से पुच्छ रही थी. ये अपनी टाँग अड़ा बैठा......और ख़ामाखा बोल पड़ा." बूढ़े ने पूरी घटना दुहराया और लड़की हंस पड़ी. फिर कुच्छ देर बाद गंभीरता से बोली...."मैं नहीं जानती थी कि वो इतना अधिक मूर्ख साबित होगा. बस संयोग से एक ऐसा आदमी मिल गया था जिस की तलाश थी. मैने सोचा चलो....चलेगा....मगर...तुम उस पर अपना जाल मज़बूत कर सकते थे अगर वो तुम्हारे पास पहुच गया था."

"हुन्ह.....क्या तुम समझती हो कि मैने ऐसा नहीं किया होगा?"

"फिर अब क्या समस्या है?"

"वो गायब हो गया.......हलाकी एसपी ने उसे निर्देश दिया था कि पोलीस को सूचना दिए बिना कॅंप ना छोड़े."

"ओह्ह.....तो इसमे परेशानी की क्या बात है. अब तो पोलीस हर हाल मे उसके पिछे पड़ेगी...."

"ह्म्‍म्म...." बूढ़ा कुच्छ सोचता हुआ बोला..."देखा जाएगा.....चलो उठो....अब दूसरी स्कीम है."

"अब कहाँ चलना है?"

"आज दूसरी जगह मीटिंग होगी...."

वो दोनों उठ गये. बूढ़े ने इस बार टॅक्सी नहीं ली. हलाकी कॉंपाउंड के बाहर कयि खाली टॅक्सी मौजूद थीं. वो एक तरफ पैदल ही चल पड़े.

सरदारगढ़ की शहरी आबादी का फैलाव बहुत अधिक नहीं था. जल्दी ही वो सुनसान और अंधेरे पहाड़ियों के बीच नज़र आए. बूढ़े ने टॉर्च जला ली थी.

"कहाँ जाना है भाई..." लड़की मिन्मीनाई.

"बस पहुच गये...."

टॉर्च की रौशनी एक छोटी सी इमारत पर पड़ी.

"ओह्षो...." लड़की के स्वर मे हैरत थी...."मैं तो यहाँ पहले कभी नहीं आई."

"ना आई होगी...." बूढ़े ने लापरवाही से कहा. "बहुत सी जगह के बारे मे सब नहीं जानते...."

दरवाज़ा लॉक्ड था. बूढ़े ने जेब से कुंजीयों का गुच्छा निकाला......एक कुंजी चुन कर लॉक खोला और फिर दरवाज़ा हल्की चर्चराहट के साथ खुला. ऐसा लग रहा था जैसे बहुत दिनों से नहीं खुला हो.

"ओह्ह.....तो हम सब से पहले पहुचे हैं...." लड़की बडबडाइ...."दूसरे लोग कब आएँगे?"

"आ ही जाएँगे...."

अचानक लड़की उछल कर पिछे हट गयी.

"क्या बात है?" बूढ़ा उसकी तरफ मुड़ा.

"मैं भीतर नहीं जाउन्गि...."

"क्यों....?" आवाज़ मे हल्की गुर्राहट थी.

"तुम मुझे यहाँ क्यों लाए हो?"

"चलो...." बूढ़े ने उसका हाथ पकड़ कर खिचते हुए कहा.

"नहीं जाउन्गि...." लड़की गला फाड़ कर चीखी.

लेकिन बूढ़ा उसे किसी बकरी के बच्चे की तरह घसीट'ता हुआ अंदर ले जा रहा था. ना उसने टॉर्च जलाई थी और ना दरवाज़ा बंद करने केलिए रुका था.

एक जगह उसने टॉर्च जलाई और रुक गया. ये एक काफ़ी बड़ा सा कमरा था. लड़की अब भी हाथ छुड़ा लेने केलिए ज़ोर लगा रही थी.

अचानक बूढ़ा हंस पड़ा.

"स्टुपिड.....तुम बिल्कुल नन्ही....मुन्नी बच्ची हो. मुझे ऐसे मज़ाक बहुत पसंद हैं.....जो अचानक दूसरों को बोखला दें. तुम सच मुच डर गयीं."

बूढ़ा हंसता रहा और लड़की बडबडाती रही. बूढ़े ने उसका हाथ छोड़ दिया था.

"अच्छा.....अब ज़रा वो करोसेन लॅंप जला दो. मैं दूसरों के लिए सिग्नल लगा आउ....यहाँ से सिग्नल मिले बिना वो यहाँ नहीं आएँगे."

बूढ़े ने सलाई की डिबिया निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी.

"मैं इस तरह का मज़ाक पसंद नहीं करती...." लड़की ने क्रोध भरे ढंग से कहा और केरोसेन लॅंप जलाने केलिए आगे बढ़ी.

बूढ़ा तब तक टॉर्च जलाए रहा जब तक कि वहाँ केरोसेन लॅंप की पीली रौशनी नहीं फैल गयी. फिर वो दरवाज़े से निकल गया.

लड़की वहीं खड़ी रही. उसकी आँखों मे उलझन के भाव थे. फिर शायद वो दरवाज़ा बंद होने की ही आवाज़ थी जिसे सुन कर वो उच्छल पड़ी. एक पल केलिए उसके चेहरे पर भय की परच्छाई सी दिखाई दी.

बूढ़ा शायद वापस आ रहा था. वो कदमों की आवाज़ सुन रही थी. उसकी मुत्ठियाँ ना जाने क्यों कठोरता से बंद होती चली गयीं.

वो कमरे मे प्रवेश किया. लड़की ने झुरजुरी सी ली.

"बालों के बारे मे तुम्हें क्या निर्देश मिले थे?" बूढ़ा गुर्राया.

"मैने ज़रूरी नहीं समझा कि उन्हें बिगाड़ लूँ...."

"हुन्न.....लेकिन ये बहुत आवश्यक था. सुर्ख बाल यहाँ आम नहीं होते. अगर ये कुच्छ समय के लिए रंग कर काले कर लिए जाते तो कठिनाइयाँ पैदा ना होतीं."

"कॉन सी कठिनाइयाँ पैदा हुई हैं?" लड़की का स्वर व्यंग भरा था.

"सुर्ख बाल कामन नहीं हैं.....काला गुलाम कामन नहीं है......और मेरे विचार से वो मूर्ख भी असाधारण ही था."

"मैं नहीं समझी कि तुम क्या कहना चाहते हो?" लड़की झुंजला गयी.

"मैं ये कहना चाहता हूँ कि तुम कॅंप मे बहुत अधिक देखी गयी हो. कुच्छ लोगों ने तुम्हें उस मूर्ख के साथ भी देखा था. मूर्ख के साथ उन्होने दो असाधारण चीज़ें देखी थीं......सुर्ख बाल और हबशी(काला) गुलाम. पोलीस तीनों की खोज मे है. तुम से कहा गया था कि तुम किसी ऐसे आदमी की चुनाव करो जो जल्दी अपनी तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला ना हो. लेकिन तूमम्म्म......"

बूढ़ा खामोश होकर उसे घूर्ने लगा. लड़की भी चुप थी. अचानक लड़की की आँखों से ख़ौफ़ झाँकने लगा. कुच्छ बोलना चाही लेकिन होन्ट थरथरा कर रह गये.

"इसकी ज़रूरत नहीं कि तुम सफाई प्रस्तुत करो." बूढ़ा हाथ उठा कर बोला.

"मुझे यहाँ क्यों लाए हो??" लड़की पागलों की तरह चीखी.

"बताता हूँ...." बूढ़े ने जेब से एक चाकू निकाला.

"क्य्ाआ??" लड़की की आँखें भय से फटी की फटी रह गयीं.

चाकू खुलने की कड़कड़ाहट कमरे मे गूँजी......और लड़की नहीं.....नहीं....कह कर इतनी तेज़ी से पिछे हटी की दीवार से जा टकराई. बूढ़ा धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे वो लड़की की परेशानी का मज़ा ले रहा हो.

"नहिन्न्न.....नहिन्न्न.....पिछे हटो...." लड़की की चीखें दिल हिला देने वाली थीं. लेकिन वो उसी तरह धीरे धीरे आगे बढ़ता रहा.

फिर अचानक पूरी इमारत मे अजीब सा शोर गूंजने लगा. बूढ़ा खुशी से उछल कर बोला..."वो मारा....अब बताओ...."

वो रुक गया था. लड़की दीवार से टिकी हुई हाँफ रही थी. उसकी भयभीत निगाहें अब भी बूढ़े के चेहरे पर थीं.

इमारत मे गूंजने वाला शोर ऐसा ही था जैसे बहुत से लोग एक दूसरे पर पिल पड़े हों.

"अब बताओ.....वो कॉन था......और तुम किसके लिए काम कर रही हो?" बूढ़े ने चाकू की नोक झुकाते हुए कहा.

"सीसी......क्या मतलब...?"

बूढ़े की आँखें पहले से भी अधिक शोले बरसा रही थीं. गरज कर बोला....."तुम झुटि हो.....मैने कॅंप से तुम्हारे लिए किसी को संदेश भेजा था......जो नंबर.18 की जेब से उड़ा लिया गया. मुझे देखना था कि वो कॉन है.......इसलिए मैं खुद ही चल पड़ा. तुम्हें यहाँ लाने का एक मकसद ये भी था कि उसे पकड़ा जा सके. उसने कॅंप से मेरा पिछा शुरू किया था और अब......"

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Jemsbond
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Re: हीरों का फरेब

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Imran ne ujaale me pahuch kar cigret ka packet kholaa. Lekin wo khaali tha. Haan......usay andar ek be sar pair ki likhawat dikhaayi di.

"Surkh (red) zulfon ki chhaaon me surkh gardan hi munaasib rahegi......"

To ye kisi prakar ka sandesh tha. Imran ne socha. Aur phir us lambi naak waale ki taraf aakrisht ho gaya jo ab budhe ke sath recreation hall se nikal raha tha. Un ke pichhe Safdar bhi dikhaayi diya.

Phir wo thik wahin pahuch kar ruke jahaan Imran lambi naak waale se takraaya tha.

Usne un donon ki baaten bhi suni......aur anumaan laga liya ki budha is ghatna ko jaan jaane ke baad kisi had tak nervous ho gaya hai.

Phir jab budhe ne lambi naak waale ko uske cottage hi tak seemit rahne ka aadesh diyaa tab Imran ne socha ki ab budhe par khud hi nazar rakhni chaahiye.

Dusri taraf safdar cottage ki oat me chhupa hua kadmon ki aahat se dishaa tai karne ki koshish kar raha tha. Achanak usne Imran ki bharraayi huyi aawaz suni "Ab tum apne cottage me waapas jaao...."

Lekin is se pahle ki Safdar kuchh kahtaa.......Imran tezi se age badh gaya.

Ab wo khud hi budhe ka pichha kar raha tha.

Budha apne cottage ki taraf jaane ke bajaaye taxi-stand ki taraf aaya. Us samay Imran uske nikat hi tha lekin bhalaa pahchaana kaise jaa sakta tha.....jabki uski naak ki banawat bilkul badal gayi thi.......aur ghani muchhon ne nichle hont ka bhi kuchh bhaag chhipaa liyaa tha.

"Sardargadh....." Budhe ne ek taxi me baithte huye driver se kaha aur taxi harkat me aa gayi.

Kareeb hi ki dusri taxi Imran ke kaam aayi.

"Us taxi ke pichhe lage raho.....double kiraaya....." Usne driver ko nirdesh diyaa.

********

Budhe ne Sardargadh ki seema me prawesh karte hi ek public tel booth ke nikat taxi rukwaayi aur utar kar booth me chala gaya.

Yahaan kisi ke number dial kiye aur mouth piece me bolaa...."Hello....Mona.....dekho main 28 bol raha hun. Rendal me turant pahucho....main wahin milungaa....."

Wo phone dc karke booth se baahar aaya aur taxi me baith gaya.

Ab taxi Sardargadh ki sab se adhik raunak waali sadak par daud rahi thi. Kuchh der baad ek aisi imaarat ke compound me prawesh ki jis ke sign board par Rendal likha hua tha.

Rendal Sardargadh ke behtareen Night clubs me se tha. Teen baje se pahle yahaan ki raunak aur gahmaa gahmi dekne layak hoti thi. Lekin ye kewal unche warg ke logon keliye thi.

Budha taxi se utar kar hall me aaya. Kuchh waiters ne uska welcome is dhang se kiya jaise wo wahaan ka permanent member ho. Usne ek aisi mez ka chunaav kiya jiske aas paas ki mezen bhi khaali thin. Das minut se adhik intezaar nahin karna pada. Surkh baalon waali ladki teer ki tarah mez ki taraf aayi.

"Koi khaas baat?" usne baithte huye puchha.

"Bahut hi khaas...." Budhe ne uski taraf dekhe binaa uttar diya. Lekin ladki usay ghoorti rahi. Kuchh pal khamoshi rahi. Phir budhe ne kaha...."Kis gadhe ne tum se kaha tha ki tum kisi aise aadmi ko uljhaane ki koshish karo jo khud hi police ko sab kuchh bataa baithe...."

"Kyaa matlab?"

"Scheme ye thi ki ham us tak police ko raah dikhaate aur tab wo bayaan detaa...."

"Magar ye hua kaise?"

"Pahle usne sab kuchh bak diyaa tha. Phir tumhaari talash me niklaa tha. Aur tum se ye galti huyi thi ki tum ne garrage me mere cottage ka nuber likhwaa diya tha."

"Tumhaare cottage ka number....! Nahin to.....maine 111 likhwaaya tha."

"Stupidddd......110 tha tumhare cottage ka number....."

"Ohh.....tab to.....really....." Ladki ne kuchh sochte huye kaha. Phir chaunk kar boli...."Kya police ne check kiya tha?"

"Nahin wahi talash karta hua pahucha tha...."

"Aur police ko bayaan dene wo khud hi daudaa gaya tha?"

"Nahin......police Metro ke manager se puchh rahi thi. Ye apni taang adaa baitha......aur khaamakhaa bol pada." budhe ne puri ghatnaa duhraaya aur ladki hans padi. Phir kuchh der baad gambhirta se boli...."Main nahin jaanti thi ki wo itna adhik murkh saabit hogaa. Bas sanyog se ek aisa aadmi mil gaya tha jis ki talash thi. Maine socha chalo....chalegaa....magar...tum us par apna jaal mazboot kar sakte the agar wo tumhaare paas pahuch gaya tha."

"Hunhh.....kya tum samajhti ho ki maine aisa nahin kiyaa hogaa?"

"Phir ab kya samassya hai?"

"Wo gayab ho gaya.......halaaki SP ne usay nirdesh diya tha ki police ko suchna diye binaa camp na chhode."

"Ohh.....to isme pareshani ki kyaa baat hai. Ab to police har haal me uske pichhe padegi...."

"Hmmm...." budha kuchh sochta hua bolaa..."Dekhaa jaayega.....chalo utho....ab dusri scheme hai."

"Ab kahaan chalna hai?"

"Aaj dusri jagah meeting hogi...."

Wo donon uth gaye. Budhe ne is baar taxi nahin li. Halaaki compound ke baahar kayi khali taxiyaan maujood thin. Wo ek taraf paidal hi chal pade.

Sardargadh ki shahri aabadi ka phailaao bahut adhik nahin tha. Jaldi hi wo sunsaan aur andhere pahaadiyon ke bich nazar aaye. Budhe ne torch jalaa li thi.

"Kahaan jaana hai bhai..." Ladki minminaayi.

"Bas pahuch gaye...."

Torch ki raushni ek chhoti si imaarat par padi.

"Ohho...." Ladki ke swar me hairat thi...."Main to yahaan pahle kabhi nahin aayi."

"Na aayi hogi...." Budhe ne laparwaahi se kaha. "Bahut si jagah ke baare me sab nahin jaante...."

Darwaaza locked tha. Budhe ne jeb se kunjiyon ka guchha nikaala......ek kunji chun kar lock khola aur phir darwaaza halki charcharaahat ke sath khulaa. Aisa lag raha tha jaise bahut dinon se nahin khulaa ho.

"Ohh.....to ham sab se pahle pahuche hain...." ladki barbadaayi...."Dusre log kab aayenge?"

"Aa hi jaayenge...."

Achanak ladki uchhal kar pichhe hat gayi.

"Kya baat hai?" budha uski taraf mudaa.

"Main bhitar nahin jaaungi...."

"Kyon....?" Awaaz me halki gurrahat thi.

"Tum mujhe yahaan kyon laaye ho?"

"Chalo...." budhe ne uska hath pakad kar khichte huye kaha.

"Nahin jaaungi...." Ladki galaa phaad kar cheekhi.

Lekin budha usay kisi bakri ke bachche ki tarah ghaseet'ta hua andar le jaa raha tha. Na usne torch jalaayi thi aur na darwaaza band karne keliye rukaa tha.

Ek jagah usne torch jalaayi aur ruk gaya. Ye ek kaafi bada sa kamra tha. Ladki ab bhi hath chhudaa lene keliye zor laga rahi thi.

Achanak budha hans pada.

"Stupid.....tum bilkul nanhi....munni bachchi ho. Mujhe aise mazaak bahut pasand hain.....jo achanak dusron ko bokhlaa den. Tum sach much dar gayin."

Budha hanstaa raha aur ladki barbadaati rahi. Budhe ne usla hath chhod diya tha.

"Achha.....ab zara wo karocene lamp jalaa do. Main dusron ke liye signal laga aaun....yahaan se signal mile binaa wo yahaan nahin aayenge."

Budhe ne salaai ki dibiyaa nikaal kar uski taraf badhaa di.

"Main is tarah ka mazaak pasand nahin karti...." Ladki ne krodh bhare dhang se kaha aur kerocene lamp jalaane keliye age badhi.

Budha tab tak torch jalaaye raha jab tak ki wahaan kerocene lamp ki peeli raushni nahin phail gayi. Phir wo darwaaze se nikal gaya.

Ladki wahin khadi rahi. Uski aankhon me uljhan ke bhaav the. Phir shyad wo darwaaza band hone ki hi aawaz thi jise sun kar wo uchhal padi. Ek pal keliye uske chehre par bhay ki parchhaayi si dikhaayi di.

Budha shayad waapas aa raha tha. Wo kadmon ki aawaz sun rahi thi. Uski mutthiyaan na jaane kyon kathortaa se band hoti chali gayin.

Wo kamre me prawesh kiya. Ladki ne jhurjhuri si li.

"Baalon ke baare me tumhen kya nirdesh mile the?" budha gurraaya.

"Maine zaroori nahin samjha ki unhen bigaad lun...."

"Hunn.....lekin ye bahut aawashyak tha. Surkh baal yahaan aam nahin hote. Agar ye kuchh samay ke liye rang kar kaale kar liye jaate to kathinaaiyaan paida na hotin."

"Kon si kathinaaiyaan paida huyi hain?" Ladki ka swar vyang bhara tha.

"Surkh baal common nahin hain.....kaala gulaam common nahin hai......aur mere vichar se wo murkh bhi asadharan hi tha."

"Main nahin samjhi ki tum kya kahna chaahte ho?" Ladki jhunjlaa gayi.

"Main ye kahna chaahta hun ki tum camp me bahut adhik dekhi gayi ho. Kuchh ligon ne tumhen us murkh ke sath bhi dekha tha. Murkh ke sath unhone do asadharan chizen dekhi thin......Surkh baal aur habshi(Kaala) gulaam. Police teenon ki khoj me hai. Tum se kaha gaya tha ki tum kisi aise aadmi ki chunaav karo jo jaldi apni taraf logon ka dhyaan aakarshit karne waala na ho. Lekin tummmm......"

Budha khamosh hokar usay ghoorne laga. Ladki bhi chup thi. Achanak ladki ki aankhon se khauf jhaankne laga. Kuchh bolna chaahi lekin hont thartharaa kar rah gaye.

"Iski zaroorat nahin ki tum safaayi prastut karo." Budha hath utha kar bolaa.

"Mujhe yahaan kyon laaye ho??" ladki paagalon ki tarah cheekhi.

"Bataata hun...." budhe ne jeb se ek chaaku nikaala.

"Kyaaaa??" Ladki ki aankhen bhay se phati ki phati rah gayin.

Chaku khulne ki kadkadaahat kamre me goonji......aur ladki nahin.....nahin....kah kar itni tezi se pichhe hati ki diwaar se jaa takraayi. Budha dhire dhire age badh raha tha. Aisa lag raha tha jaise wo ladki ki pareshani ka maza le raha ho.

"Nahinnn.....nahinnn.....pichhe hato...." Ladki ki cheekhen dil hilaa dene waali thin. Lekin wo usi tarah dhire dhire age badhta raha.

Phir achanak poori imaarat me ajeeb sa shor goonjne laga. Budha khushi se uchhal kar bolaa..."Wo maara....ab bataao...."

Wo ruk gaya tha. Ladki diwaar se tiki huyi haanf rahi thi. Uski bhaybheet nigaahen ab bhi budhe ke chehre par thin.

Imaarat me goonjne waala shor aisa hi tha jaise bahut se log ek dusre par pill pade hon.

"Ab bataao.....wo kon tha......aur tum kiske liye kaam kar rahi ho?" budhe ne chaaku ki nok jhukaate huye kaha.

"kk......kya matlab...?"

Budhe ki aankhen pahle se bhi adhik sholay barsaa rahi thin. Garaj kar bolaa....."Tum jhuti ho.....maine camp se tumhaare liye kisi ko sandesh bhejaa tha......jo No.18 ki jeb se udaa liyaa gaya. Mujhe dekhna tha ki wo kon hai.......isliye main khud hi chal pada. Tumhen yahaan laane ka ek maksad ye bhi tha ki usay pakdaa jaa sake. Usne camp se mera pichha shuru kiya tha aur ab......"

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Re: हीरों का फरेब

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बूढ़ा खामोश होकर मुस्कुराया फिर बोला...."क्या तुम शोर नहीं सुन रहीं. मेरे आदमियों ने उसे घेर लिया है...."

"पता नहीं तुम क्या कह रहे हो.....मैं कुच्छ नहीं जानती...."

"मरने से पहले तुम्हें संतुष्ट कर दिया जाएगा....कि तुम ग़लत नहीं मर रहीं...."

"क्या बक रहे हो तुम....?" लड़की फिर चीखी.

ठीक तभी चार आदमी कमरे मे घुसे उन्होने एक आदमी को पकड़ रखा था.

"म्म....मैं तुम्हारे लिए काम करती हूँ......तुम शायद पागल हो गये हो......."

"ओह्ह.....वेल्डन...." बूढ़े ने हंस कर कहा.

लड़की ने भी क़ैदी की तरफ देखा और आँखें फाड़ने लगी.

"हुन्न...." बूढ़े ने कहा...."पहचान रही हो ना?"

"मैं नहीं जानती ये कॉन है......कभी नहीं देखा...."

"फिर झूट...." बूढ़े ने कहा.....और क़ैदी की तरफ मुड़ा...."कॉन हो तुम?"

"बहुत कीमती गधा हूँ...." क़ैदी हांफता हुआ बोला.

"हुन्न.....बातों मे उड़ाने की कोशिश करोगे....अच्छा...." बूढ़ा चुप होकर उसे घूर्ने लगा. फिर अपने आदमियों से बोला...."गिरा कर गर्दन रेत दो...."

"ज़बाह करने से पहले पानी भी पिला दो......मैने कहा हां....याद दिला दूं तुम्हें..." क़ैदी बोला.

लड़की फिर उस फूली हुई नाक वाले को घूर्ने लगी......जिसकी मूच्छें भी उसे बहुत बुरी लग रही थीं. लेकिन याददाश्त पर लाख ज़ोर देने पर भी उसे नहीं याद आ सका कि पहले कभी उस से मिली हो.

बूढ़े के साथी उसे गिरा देने केलिए झाकोले देते रहे लेकिन सफल नहीं हुए.

फिर अचानक पता नहीं किस तरह....खुद उसने ही उन्हें चकरा कर रख दिया. और वो एक दूसरे से टकरा कर धपा धप्प फर्श पर गिरे. अचानक बूढ़े ने भी उस पर छलान्ग लगाई. चाकू का एक भरपूर वार. लेकिन दूसरे ही पल बूढ़ा भी चाकू समेत फर्श पर गिरा. फिर इस से पहले की क़ैदी पर दुबारा हमला होता.......उसने चाकू पर क़ब्ज़ा कर लिया. लेकिन उसे इतना मौका नहीं मिल सका कि उसे इस्तेमाल भी करता. चारों किसी दरिंदे की तरह उस पर झपटे थे.......और उसे हाथ उठाने का भी मौका नहीं मिल सका. उन्होने उसे फिर जाकड़ लिया. चाकू वाला हाथ मज़बूती से पकड़ा गया था. बूढ़े का चहरा अत्यंत भयानक लग रहा था. वो तेज़ी से क़ैदी की तरफ झपटा और चाकू वाले हाथ पर ज़ोर लगाने लगा. इस से पहले वो चारों भी बारी बारी से चाकू छीनने की कोशिश कर चुके थे.

"इंपॉसिबल...." क़ैदी ने ठहाका लगाया. "कोई मर्द आज तक मेरी मुट्ठी नहीं खोल सका. लड़की से कहो.....वही छीन सकेगी चाकू...."

"बूढ़े ने झल्ला कर उल्टा हाथ उसके चेहरे पर मारा. चोट आई हो या नहीं.....लेकिन क़ैदी घाटे मे रहा. उसकी फूली हुई नाक मुच्छों समेत उखड कर फर्श पर गिर पड़ी...और काई चकित आवाज़ें कमरे मे गूँजी.

"ओह्ह.....ये तो वही है....." बूढ़ा गला फाड़ कर दहाड़ा.

"अहमाक़.......!!!" लड़की चीखी.(अहमाक़=मूर्ख)

"खुदा तुम्हारा सत्यानाश करे.......तुम खुद अहमाक़.....अहमाक़ कहने वालों को मैने आज तक माफ़ नहीं किया...." अहमाक़ ने हांक लगाई. और फिर ऐसा लगा जैसे सभी रब्बर के बने हों. उच्छल उच्छल कर गिरते और चीखते. चाकू कहीं दूर जा पड़ा था और वो सब उस पर इस बुरी तरह उलझ गये थे कि किसी को होश नहीं था.

लड़की एक कोने मे सहमी हुई खड़ी इस हैरत भरे हंगामे को देख रही थी. फिर आख़िर उसे होश आ ही गया.......और वो धीरे धीरे दरवाज़े की तरफ खिसकने लगी.

बूढ़ा भी अपने आदमियों के हाथ बटा रहा था और अहमाक़ के हाथ खा रहा था.

लड़की बाहर तो निकल गयी थी लेकिन अब उस ने सोचा कि जिस के कारण बच निकलने मे सफल हुई है उसे खूनियों के घेरे मे छोड़ कर इस तरह भाग निकलना अच्छी बात तो नहीं.

फिर वो क्या करे. अगर दूसरी बार उनके चंगुल मे जा फाँसी तो बचने की कोई संभावना नहीं होगी.

लेकिन ये मूर्ख.................ये अहमाक़......!! इस समय एक अनहोनी उसकी निगाहों के सामने हुई थी. वो अहमाक़ अपनी जान बचाने की बजाने उन लोगों के पिछे लग गया था......जिन्होने उसके खिलाफ साज़िश की थी. अब उसके पिछे एक तरफ पोलीस थी और दूसरी तरफ ये लोग.

"लेकिन ये है कॉन? अंजाने मे वो उस से जा टकराई थी. कोई भी हो......उसे अपना रक्षक ही समझना चाहिए.....वारना इस समय वो बूढ़ा उसे कब ज़िंदा छोड़ता.

वो उस इमारत के समीप ही एक चट्टान की आड़ मे छुप गयी. चारों तरफ गहरा अंधेरा था. लेकिन यहाँ लड़ने वालों का शोर नहीं सुनाई दे रहा था. इमारत के बाहर कदम रखते ही वो लगातार बहुत मद्धिम होता गया था. हो सकता है इमारत की बनावट ही साउंड प्रूफ ढंग की रही हो. वैसे ये इमारत लड़की केलिए नयी ही थी. इस से पहले यहाँ आने का संयोग नहीं हुआ था.

वो उलझन मे पड़ी हुई थी. उसे क्या करना चाहिए ये आशंका भी थी भागने पर रास्ते मे किसी से मुठभेड़ ना हो जाए. बूढ़े ने मूर्ख नौजवान को फाँसने ही केलिए जाल बिच्छाया था. ये और बात है कि इस से पहले सोचा भी नहीं होगा कि इस बेढंगे मेक-अप मे वही मूर्ख होगा. तो फिर ज़रूरी नहीं की उसने केवल चार ही आदमियों से काम लिया होगा. हो सकता है कि कुच्छ लोग बाहर भी इधर उधर छिपे बैठे हों.

पहाड़ियाँ ऐसी थीं कि यहाँ पूरी फौज बहुत आसानी से छुप सकती थी.

अचानक उसने दौड़ते हुए कदमों की आवाज़ें सुनी.......और एक कोने मे दुबक गयी. फिर समीप ही उसे एक चिंघाड़ सुनाई दी....."ठहरो......ठहरो.....ये अपना चाकू तो लेते जाओ....नहीं तो आलू कैसे छीलोगे...."

ओह...माइ गॉड......"लड़की काँप उठी. ये आवाज़ उस मूर्ख के अलावा किसी की नहीं हो सकती थी.

फिर वो शायद उसी के करीब ही आकर रुक गया. भागते हुए कदमों की आवाज़ें धीरे धीरे सन्नाटे मे विलीन हो गयीं.

उसे विश्वास था कि अपने करीब जो धुन्दलि सी परछाई देख रही थी वो अहमाक़ ही की हो सकती थी. लेकिन फिर भी वो उसे आवाज़ देने की हिम्मत नहीं कर सकी.

लेकिन जैसे ही वो आगे बढ़ा अनायास उसके मूह से निकल पड़ा...."रूको...." साया ठिठका और फिर उसकी आवाज़ आई...."अब किस मुसीबत मे फन्साओगि?"

"ये राई दूँगी कि सर पर पैर रख कर भागो......वरना जल्दी ही कोई दूसरी आफ़त भी प्रकट हो सकती है."

साया भद्द से चट्टान पर बैठ गया.......और लड़की उसे अजीब अजीब किस्म की हरकतें करते देखती रही.

"क्या कर रहे हो?" उसने अंत-तह पुछा.

"नहीं बनता...." साए ने निराशा से कहा.

"क्या नहीं बनता?"

"सर पर पैर रख कर भागने की कोशिश कर रहा हूँ." साए ने कराहते हुए कहा.

"उठो......मूर्ख कहीं के.......!" लड़की ने झपट कर उसका हाथ पकड़ लिया. "उठो......पता नहीं यूँ क्या बला हो...."

वो उठ गया और फिर वो तेज़ी से ढलान मे उतरने लगे.

"कहाँ चलोगे.....?" लड़की ने पुछा.

"तुम्हें घर पहुचा कर रूई का मार्केट देखूँगा....सुना है दाम फिर चढ़ रहे हैं."

"क्या तुम ने सुना नहीं कि वो मुझे मार डालना चाहते थे."

"घर पर मरने से फ़ायदा है...........लाश आसानी से पोलीस के हाथ आ जाएगी."

"मुझे परेशान मत करो.....तुम्हारे लिए भी ख़तरा है. वो ज़रूर वापस आएँगे. मगर वो तुम्हें छोड़ कर भाग क्यों गये?"

"बस क्या बताउ....खफा हो गये. पुकारता ही रह गया. कह रहे थे कॉफी हाउस चलो.....मैने इनकार कर दिया....! तफरीह का मूड नहीं था."

"तुम कॉन हो?"

"तुम कॉन हो?"

"बताता हूँ......" परछाई ने कहा और अचानक झुक कर उसे कंधे पर उठा लिया.

"अर्रे.....अर्रे....." लड़की धीरे से मिन्मीनाई. लेकिन परच्छाई ने तेज़ी से दौड़ना शुरू कर दिया. अंधेरे मे इस तरह दौड़ना ख़तरे से खाली नहीं था लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे रास्ता उसका अच्छी तरह देखा भाला हो.......फिर लड़की ने महसूस किया कि वो उसके कदमों की आवाज़ भी नहीं सुन रही.

वो बिल्कुल निश्चिंत सी उसके कंधों पर चुप चाप पड़ी रही. उसे इसकी चिंता भी नहीं थी कि वो उसे कहाँ ले जा रहा है.

वो चुप चाप दौड़ता रहा. कभी कभी रफ़्तार कम हो जाती थी और इस तरह बच बच कर चलने लगता था जैसे अंधेरे मे भी उबड़ खाबड़ रास्ते उसे भली भाँति दिखाई दे रहे हों.

कुच्छ देर बाद उसने टॉर्च जला ली.......और लड़की धीरे से बोली......"ये क्या कर रहे हो.....अगर उन्होने देख लिया तो?"

"चिंता मत करो...." मूर्ख एक गुफा मे प्रवेश कर रहा था.

थोड़ी दूर चलने के बाद मूर्ख ने उसे नीचे उतार दिया. टॉर्च की रौशनी मे काफ़ी विस्तृत जगह दिखाई दी. ज़मीन बराबर थी और एक तरफ थोड़ा सा सामान भी पड़ा हुआ दिखाई दिया.

"ओह्ह......तो तुम ने पोलीस की डर से यहीं पनाह ली है...."

मूर्ख ने कोई उत्तर नहीं दिया. दियासलाई खीच कर एक छोटा सा कारबाइड लॅंप जलाने लगा था.

"अब मैं थोड़ा अपनी टूट फूट को चेक कर लूँ....." मूर्ख ज़मीन पर बैठ कर अपना शरीर टटोलने लगा फिर कराह कर बोला....."कोई कोई निर्दयी इतने ज़ोर से मारते हैं कि......माइ गॉड...."

"मुझे इसी पर हैरत है कि तुम ज़िंदा कैसे बचे? वो सब बड़े ख़ूँख़ार लोग थे.....और वो शैतान.....मैने पहले कभी उसे उस रूप मे नहीं देखा."

"वो बूढ़ा?" मूर्ख ने पुछा.

"हां वही बूढ़ा.....ये सोचा भी नहीं जा सकता था की वो किसी पर जान लेवा हमला भी कर सकता है."

"हलाकी उस बेचारे अपाहिज को तुम सबों ने मिल कर मार डाला......"

"मैं कुच्छ भी नहीं जानती. ये तो मुझे आज के अख़बार से पता चला है कि वो मार डाला गया और वो अपाहिज नहीं था. मेक-अप मे था और उसने अपने मालिक के हीरे चुराए थे....."

"हो सकता है कि तुम उसके बारे मे कुच्छ नहीं जानती रही हो........लेकिन इतना तो जानती ही थीं कि वो मार डाला जाएगा और हत्या का आरोपी बनाने केलिए तुम्हें मुझ जैसे आदमी को फाँसना है....."


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