रहस्यमई आँखें complete

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Jemsbond
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Re: रहस्यमई आँखें

Post by Jemsbond »

इससे पहले की रोहित कुछ बोल पाता, मैंने अपना चश्मा उतारा और उसकी आँखों में देखने लगी.

आधे मिनट बाद वापस मैंने अपना चश्मा पहन लिया. रोहित एकदम सामान्य लग रहा था.

तुम दोनों यहाँ...क्या हुआ, कोई काम हैं क्या? उसने पूछा.

नहीं...वो बस उस दिन के लिए सोरी बोलने आई थी. मैंने कहा और पुजा को लेकर वापस आ गयी.

तूने क्या किया था उसके साथ? मैंने उसे थप्पड़ मारा फिर भी वो कुछ नही बोला. पूजा ने पूछा.

मैंने उसकी पिछली पांच मिनट की यादाश्त मिटा दी थी.

क्या...मगर कैसे?

वो सब छोड़...अब मैं याग्निक के साथ भी यही करने वाली हूँ. वो भूल जाएगा कि कभी तू हॉस्पिटल भी गई थी.

तुझे पता भी हैं ताश्री तू क्या बोल रही हैं? ये एक महीने पहले की बात हैं.

इसीलिए मुझे ढेर सारा वक्त और एकांत चाहिए.

....और वो तुझे कहाँ मिलेगा?

किसी होटल के कमरे में...मैंने उसे आँख मरते हुए कहा.

---------------------------------------

नंदिनी और विजय हॉस्पिटल के लिए निकल गए. नंदिनी विजय की और देख ही नही रही थी. विजय ड्राइव कर रहा था मगर चुपके से नंदिनी की और देख भी रहा था. नंदिनी गुमसुम सी एक ओर देख रही थी. उसने अपनी आँखों पर चश्मा लगा रखा था.

मेम मैं माफ़ी चाहती हूँ, मैं...वो अचानक केबिन में आ गया था.

नही....कोई बात नही...मगर अपने सीनियर के केबिन में पूछ कर ही जाना चाहिए.

आप परेशान लग रही थी...चतुर्वेदी सर ने कुछ कहा था क्या?

नंदिनी समझ गई थी कि विजय उसके आंसुओ के बारे में पूछ रहा था.

नही...ऐसा कुछ नही हैं. वो बस कुछ पुरानी बात याद आ गयी थी.

विजय भी बातों के जरिये नंदिनी का मन बहलाना चाहता था.

मैंने सुना हैं कि आपके भी माता-पिता...?

हाँ...वो इस दुनिया में नही हैं. मैं अनाथ आश्रंम में ही पली बढ़ी हूँ. नंदिनी ने एक सेकंड रुक कर कहा. आपके भी मतलब...तुम्हारे भी माता-पिता नही हैं क्या?

नही..मेम...मैंने कभी उनकी सूरत नही देखी थी.

तुमने देखी होगी...बस तुम्हे यादं नही होगा. नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा.

विजय भी मुस्कुराया.

वैसे मेम आप बहुत मेहनती हैं...अनाथाश्रम में पलने के बावजूद भी आप यहाँ तक पहुँच गयी.

इंस्पेक्टर तो तुम भी बन ही गए.

हाँ...पर मुझे गोद ले लिया गया था.

अब तक वो हॉस्पिटल पहुँच गये थे. नंदिनी एक पल तो ठिठकी मगर फिर अन्दर चली गयी. उसने रिसेप्शन पर देखा, मगर वहां कोई नही था. याग्निक यहीं तो काम करता था इसी रिसेप्शन काउंटर पर.

नंदिनी आगे बढ़ी और आईसीयू में पहुंची. हवलदार से मिलकर उसका हालचाल पूछा. उसके साथ वाले हवलदार को आवश्यक निर्देश दिए और वापस नीचे आ गयी.

उसने रिसेप्शन पर कड़ी लड़की से पूछा. पहले यहाँ एक लड़का काम करता था?

कब? दो साल से तो मैं ही यहाँ काम कर रही हूँ.

हम्म...और उससे पहले.

हाँ उससे पहले एक लड़का था.

उसने कहीं और ज्वाइन कर लिया?
नहीं...कहते हैं उसकी यादाश्त चली गयी.

क्या? नंदिनी ने आश्चर्य से पूछा.

नंदिनी बाहर जाने के लिए मुड़ी. विजय उसके पीछे ही खड़ा था.

आप उस ताश्री वाले केस की वापस तहकीकात कर रही हैं? उसने जीप में बैठते हुए कहा.

क्यों?

आप जिस लड़के के बारे में पूछ रही थी वो तो उसी केस से ही जुड़ा हुआ हैं न?

तुम याग्निक से मिले थे? नंदिनी ने पूछा.

हाँ...चतुर्वेदी सर ने मुझे पूछताछ करने के लिए भेजा था उसके घर...मगर कोई फायदा नही हुआ.
नंदिनी ने विजय की और प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा जैसे पूछ रही हो क्यों? विजय आगे बोलता रहा.

उसे कुछ भी याद नही था. वो दस साल के किसी मासूम बच्चे की तरह था.

मासूम! नंदिनी ने धीरे से कहा.

मेम सुबह से भूख लग रही हैं कुछ नाश्ता कर ले क्या? विजय ने नंदिनी की तन्द्रा तोड़ते हुए पूछा.

आज तुम लंच नही लाये?

आअज टिफ़िन वाले की छुट्टी हैं.

हम्म...ठीक हैं आगे कहीं रोक लो.

विजय ने एक ज्यूस वाले के यहाँ जीप रोक दी. उसने ज्यूस वाले को दो गिलास ज्यूस के लिए कहा. वो दोनों गाडी में ही बैठे थे. कुछ ही देर में ज्यूसवाला ज्यूस ले आया.

यहीं मकान हैं उसका... विजय ने ज्यूस पीते हुए कहा.

क्या...किसका मकान?

वो उस लड़के याग्निक का...ये सामने वाला मकान ही हैं...और इस गली के अन्दर ही ताश्री की उस दोस्त का मकान हैं.

नंदिनी के ज्यूस हलक में ही रह गया.

फिर नंदिनी सामान्य हुई और अपना ज्यूस ख़त्म किया.

चलो चलते हैं.

कहाँ?

पूछताछ करके आते हैं....
हम दोनों तय समय पर होटल के नीचे पहुँच गये. मैंने पूजा को वहीँ रुकने को कहा.

तुम्हे कितना समय लगेगा. पूजा ने पूछा.

यहीं कोई लगभग आधा घंटा.

ताश्री! मुझे तो डर लग रहा हैं. अगर तुम यह नहीं करना चाहती तो रहने दे. मैं नहीं चाहती हूँ की मेरी वजह से तू किसी मुसीबत में पड़ जाए.

मेरी तू एक ही तो दोस्त हैं. अगर मैं तेरे ही काम नही आ सकती तो फिर मेरी इस शक्ति का मतलब ही क्या हैं? ये याग्निक आज के बाद कभी तुझे परेशां नही कर पायेगा ये मेरा तुझसे वादा हैं. तू मुझपर भरोसा रख कोई दिक्कत नही होगी. मैंने चेक किया वो पेन अब भी मेरी जेब में ही था.

अगर तू आधे घंटे के अन्दर नही आई तो मैं ऊपर आ जाउंगी.

ठीक हैं.

मैं होटल में चली गई. याग्निक के कमरे के बाहर जाकर मैंने डोरबेल बजाई. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, धड़कन दुगुनी रफ़्तार से चल रही थी. रोहित का मामला अलग था, वहां अगर मैं यादाश्त न भी मिटा पाती तब भी में उसे नियंत्रित कर ही सकती थी मगर यहाँ मामला दूसरा था.

कुछ देर बाद उसने दरवाजा खोला.

ताश्री...तुम! तुम यहाँ क्या कर रही हो? उसने चौंकते हुए पूछा.

अन्दर नही बुलाओगे मुझे? मैंने एक झूठी मुस्कान बिखेरते हुए कहा.

हाँ...हां...आओ न? वो सकपका गया था.

तुम आखिर पूजा से चाहते क्या हो? मैंने बेड पर बैठते हुए कहा.

वो...वो..उसने तुम्हे क्या बताया?

यहीं की वो आज नही आएगी.

मगर क्यों?

उसे कोई जरुरी काम आ गया था.

ऐसा कैसे हो सकता हैं? वो जानती हैं न आज उसका मुझसे मिलना कितना जरुरी हैं.

हां...बेशक...तभी तो उसने मुझे भेजा हैं. ज़रा मुझे देखकर बताओ...क्या मैं उससे कम खुबसूरत हूँ.

न...नही....तुम भी खुबसूरत हो...

तो ज़रा मेरी आँखों में झांककर बताओ क्या ये किसी झील से कम गहरी हैं. मैंने अपना चश्मा उतार दिया.

हम्म...बिलकुल नही....

मैं जिस दिन से तुमसे मिली हूँ तबसे तुमसे कुछ कहाँ चाहती हूँ याग्निक! मैंने उसके पास आते हुए कहा.

क्या?

भाड़ में जाओ!!

मेरी आँखों के सामने एक रौशनी चमकी और में उसके दिमाग में थी. नीचे हरा-भरा घांस का भरा एक मैदान... ऊपर बिजलियों से चमकता हुआ एक आसमान जिसमें बादल गरज रहे थे. पास ही एक नदी थी जिसमे उसकी यादो के प्रतिबिम्ब दिख रहे थे. यह नदी पास ही एक पहाड़ से आ रही थी.

मैंने एक सीटी बजाई और कुछ ही देर में एक नीला घोडा मेरे सामने हाज़िर था. यह याग्निक का अंतर्मन था. मुझे देखकर एक बार तो वो जोर से हिनहिनाया. जैसे किसी अजनबी की घुसपैठ से परेशान हो. मैं उसके पास गयी और उसकी गर्दन पर हाथ फिराया.

शांत रहो...मैं तुम्हारी दोस्त हूँ. मुझे वहां ऊपर जाना हैं. मैंने पहाड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा.

उसने एक बार मुझे देखा और फिर वो नीचे बैठ गया. अब मैं उसके ऊपर सवार थी और वो आसमान में उड़ रहा था. कुछ ही देर में हम उस पहाड़ पर थे. वहां चारो और टीवी स्क्रीन लगी हुई थी जिसपर उसकी यादे परिलक्षित हो रही थी. मैंने अपनी जेब से वो पेन निकाला और उसे घुर कर देखा, वो एक तलवार जितना बड़ा हो गया. अब मैं उन स्क्रीन्स के पास गयी और उन्हें एक-एक करके तोड़ने लगी.

यह देखकर वो घोडा जोर से हिनहिनाया.

चुपचाप वही खड़े रहो. मैंने उसे डपटते हुए कहा और वापस वो स्क्रीन्स तोड़ने लगी. यह उन यादो को मिटाने का एक तरीका था, इससे भले ही यादें पूरी तरह से न मिटे पर वो किसी काम की भी नही रहती थी. मैं पूरी मग्न होकर यह काम करने लगी तभी मुझे कुछ आवाज आई... मैंने पीछे मुड़ कर देखा, वो घोडा गायब हो चूका था और उसकी जगह एक जंगली कुत्ता खड़ा था.

अरे नही! अब यह एक दिक्कत थी. यह कुता वास्तव में अन्तर्मन का रक्षक था. मैं वहाँ से भागी. कुछ देर भागने के बाद में रुक गयी. मैं वापस उसी जगह आ गई थी. मैं पीछे मुड़ी और मैंने एक पत्थर उठा लिया. वो कुता रुक गया और वापस भाग गया जैसे वो डर गया हो. मैंने चैन की सांस ली और सामने मुड़ी. अब डरने की बारी मेरी थी. सामने वही तांत्रिक था. काला चोगा पहले, गले में रुद्राक्ष की माला और हाथ में एक त्रिशूल लिए हुए.

मेरे लिए यह वास्तव में डरने की बात थी. क्योंकि सपने में उस तांत्रिक का आना दूसरी बात थी और यहाँ अंतर्मन में आना एक दूसरी बात...मुझे अब समझ में आया था कि मैं जैसे-जैसे याग्निक के अंतर्मन की गहराइयों में उतरी थी, खुद के भी अंतर्मन की गहराई में उतरती गई थी और शायद इसी वजह से मेरा इस तांत्रिक से सामना हुआ हैं.

मैं भागने के लिए वापस पीछे मुड़ी मगर पीछे भी वो ही खड़ा था.
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Jemsbond
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Re: रहस्यमई आँखें

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तुम ग्यारहवां सूत्र हो- तुम ग्यारहवां सूत्र हो. वो बार-बार यहीं बोल रहा था. मेरे चारो तरफ वो ही तांत्रिक था जैसे उसने एक घेरा बना लिया हो... और वो मेरे पास आने लगा.

मेरे पास मत आओ. मैंने उसे धमकाते हुए कहा मगर मेरी धमकी बेअसर थी. वो धीरे-धीरे मेरी और बढ़ रहा था.

तुम ग्यारहवां सूत्र हो. वो किसी मंत्र की तरह इस लाइन का जाप कर रहा था.

मैं ताश्री हूँ...ताश्री. मैं जोर से चिल्लाई. मैंने आसमान की तरफ देखा. बिजलियाँ और जोर से कडकने लगी और नीचे जमीं पर गिरने लगी. वहां हर तरफ बिजलियाँ गिर रही थी...वो सारी स्क्रीन्स उन बिजलियों से एक एक कर जलने लगी और तभी एक बिजली मेरे ऊपर आकर गिरी.

------------------------------------------------------------

मेरी आँख खुली तो मैं एक होटल के कमरे में थी. मेरा सर बहुत ही जोर से दर्द कर रहा था जैसे किसी ने इस पर तेजाब डाल दिया हो. मैंने ध्यान से देखा यह कमरा याग्निक का तो नही लग रहा था.

थैंक गॉड! तुम्हे होश आ गया. पूजा ने कहा. वो मेरे पास ही बैठी थी. उसके पास ही अंतस भी खड़ा था. अरे हाँ! यह तो अंतस का कमरा था. मैं थोड़ी सी उठी और अपने सर पर हाथ लगाया. उस पर कुछ लगा हुआ था किसी लेप के जैसा.

मैं यहाँ कैसे आ गयी?

हम दोनों लेकर आये हैं. तुम बेहोश हो गयी थी. अंतस ने कहा.

बेहोश!...मगर में बेहोश कैसे हो गयी?

वो तो तुम ही बता सकती हो. मैं कमरे पहुंची तब तक तो तुम और याग्निक दोनों बेहोश पड़े थे. पूजा ने कहा.

और तुम वहां कैसे पहुंचे? मैंने अंतस से पूछा.

मेरे कमरे में पहुँचने तक तुम दोनों बेहोश थे और तुम्हारे फोन पर अंतस का फोन आ रहा था मैंने फोन उठाया और इसे वहीँ बुला लिया. पूजा ने ही जवाब दिया.

और माँ....!

मैंने उन्हें फोन करके बोल दिया हैं आज तुम मेरे घर पर ही रुकोगी तुम्हे अपना बाकि का होमवोर्क करना हैं.

मगर हम तुम्हारे घर पर तो नही हैं.

इसके घर ले जाने और तुम्हारे घर ले जाने में ज्यादा फर्क नही हैं. दोनों जगह तुम्हे बहुत सारे जवाब देने पड़ते जो शायद् तुम देना नही चाहती.

मैं कुछ देर चुपचाप बैठी रही और स्थिति का आकलन करने लगी. मगर मुझे सरदर्द के आगे कुछ समझ ही नही आ रहा था.

ये मेरे सर पर क्या लगा रखा हैं.

चन्दन हैं....यह तुम्हारी कुण्डलिनी उर्जा को नियंत्रित करने में मदद करेगा. अंतस ने कहा.

मतलब?

मतलब यह कि तुम्हे जो हुआ था वो दरअसल कुण्डलिनी उर्जा का आधिक्य प्रवाह था जो तुमने अपने बाकि चक्रों से आग्नेय में खींच ली थी...इससे तुम्हारी उर्जा का संतुलन बिगड़ गया और तुम बेहोश हो गयी.

मगर मैं तो उसके दिमाग में थी?

यही तो समस्या थी...इसीलिए तुम अपनी उर्जा को नियंत्रित नही कर पायी. तुम उसके दिमाग को नियंत्रित जरुर कर रही ही मगर वास्तव में तुम दोनों के दिमाग आपस में जुड़े हुए थे.

मुझे अंतस की जानकारी पर आश्चर्य हो रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उसने इस विषय पर पी.एच.डी. कर रखी हो. पूजा तो बस हम दोनों को आँखे फाड़ कर देख ही रही थी जैसे हम दोनों किसी दूसरी दुनिया की भाषा में बात कर रहे हो.

मुझे तो उस लड़के याग्निक की फिकर हो रही हैं. अगर तुम्हे छह घंटे लगे हैं होश आने में तो उसका क्या हाल हुआ होगा. अंतस ने कहा.

क्या मैं...छह घंटे से बेहोश थी
नंदिनी और विजय याग्निक के घर के बाहर पहुंचे. नंदिनी का दिल जोरो से धड़क रहा था मगर वो निश्चिन्त थी, आखिर इस दिन के लिए ही तो उसने सालों से इंतज़ार किया था. विजय ने दरवाजा खटखटाया. एक औरत ने दरवाजा खोला. नंदिनी पहचान गई, यह याग्निक की पत्नी वैदिक थी पर शायद वो नंदिनी को नही पहचान पाई थी.
इंस्पेक्टर विजय आप! सब ठीक तो हैं न? याग्निक की बीवी ने उन्हें देखकर कहा.
विजय- ये एसीपी साहिबा हैं. ताश्री के केस में कुछ पूछताछ करना चाहती हैं.
वैदिका- उसके खुनी के बारे में कुछ पता चला क्या?
नंदिनी- नहीं लेकिन जल्द ही चल जाएगा. आप ताश्री के बारें में क्या जानती हैं?
वैदिक- ताश्री के मर्डर के पहले मैने कभी ताश्री का नाम भी नही सुना था. मैं पूजा को जरुर जानती थी, वो मेरे पड़ोस में रहती थी.
नंदिनी- पूजा का आपके घर आना-जाना होता था?
वेदिका- नही...एक दो बार मिली जरुर थी लेकिन घर पर कभी नही आई थी.
नंदिनी- आपके पति कहाँ हैं?
वेदिका- वो अन्दर कमरें में ही हैं... आप मिल लीजिये तब तक में चाय बना लाती हूँ.
मैं इससे अकेले में बात करना चाहती हूँ. नंदिनी ने विजय से कहा. विजय ने हां में गर्दन हिला दी.
अन्दर एक कमरें में याग्निक फर्श पर बैठा हुआ था. ढीले-ढाले कपडे, अस्त-व्यस्त बाल, खुद से बाते करते हुए किसी बच्चे की तरह खेल रहा था.
याग्निक! नंदिनी ने याग्निक को धीरे से पुकारा. एक अनजाने खौफ ने अब भी नंदिनी की आवाज को दबा रखा था. याग्निक ने एक बार नंदिनी की और देखा.
वैदिका बाहर हैं, उसने कहा और वापस खेलने लग गया.
याग्निक! मैं नंदिनी हूँ. नंदिनी ने उसके पास बैठते हुए कहा.
वैदिका! नंदिनी आई हैं. याग्निक ने वेदिका को जोर से आवाज लगाई. उसने नंदिनी की तरफ देखा तक नही,
नंदिनी को अब गुस्सा आने लगा था, तुम मुझे ऐसे नही भूल सकते याग्निक. तुमने मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी और अब तुम मुझे पहचान तक नही रहे हो.
याग्निक- चलो हम घर-घर खेलते हैं. ये मेरी वेदिका, ये मैं और ये तूम...लेकिन तुम हमारे घर में नही रहोगी. तुम बाहर खेलोगी. तुम गन्दी हो, वैदिका अच्छी हैं.
नंदिनी- बकवास बंद करो, तुमने न जाने कितनी लडकियों की ज़िन्दगीयां उजाड़ी हैं, मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करुँगी...
याग्निक ने कुछ नंदिनी की ओर देखा वो चुप हो गयी. वो कुछ देर नंदिनी की ओर देखता रहा और फिर बोला ‘धप्प!’ और वो हंसने लगा, उल्लू बनाया...नंदिनी को उल्लू बनाया.
नंदिनी गुस्से में थी. वो और भी कुछ कहना चाहती थी मगर उसने कुछ नही कहा. वो समझ चुकी थी कि अब इसका कोई फायदा नही हैं, याग्निक सच में अपनी सोचने समझने की शक्ति खो चूका था.
नंदिनी बाहर आ गई. उसने लाख कोशिश की लेकिन अपने आंसुओ को पलकों तक पहुँचने से न रोक पाई. विजय ने उसे आँखे पौंछते हुए देख ही लिया. तब तक वैदिका भी चाय लेकर आ गई.
वैदिका- तुम नंदिनी हो. मैं सोच ही रही थी, मैंने तुम्हे कहाँ देखा हैं? उस दिन के बाद हमारी मुलाकात ही नही हुई.
नंदिनी- हां..मैं वो ट्रेनिंग के लिए शहर से बाहर चली गयी थी.
वैदिका- लेकिन तुम तो याग्निक के साथ हॉस्पिटल में काम करती थी न?
नंदिनी- वैदिका, आपके पति की यह हालत कैसे हुई?
वेदिका- पता नही..एक दिन होटल के कमरे में बेहोश मिले थे. डॉक्टर ने बताया कि कोई बड़ा सदमा लगने की वजह से इनकी यादाश्त चली गई.
नंदिनी- ...और आपने कभी सोचा नहीं वो वहां होटल में क्या कर रहे थे?
वैदिका चौंक गयी- वो होटल में...?
नंदिनी- विजय तुमने इन्हें कभी नही बताया की हम ताश्री के मामले में याग्निक से क्यों पूछताछ कर रहे हैं?
विजय- मैडम वो...हमने इन्हें बताया था ताश्री की डायरी में याग्निक का भी था.
नंदिनी- ...और किस तरह का जिक्र हैं यह?
विजय- यही की वो ताश्री का दोस्त था. विजय ने नंदिनी की आँखों में आँखे डालकर कहा, जैसे वो नंदिनी से अब रुक जाने के लिए कह रहा हो.
नंदिनी के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई. मुझे आपके पति के लिए अफ़सोस हैं, मैं दुआ करुंगी की वो जल्द से जल्द ठीक हो जाए.
विजय और नंदिनी दोनों बाहर आ गए.
विजय- आप याग्निक को जानती थी?
नंदिनी- हां, वो मेरा पुराना दोस्त हैं.
विजय- और ताश्री को?
नंदिनी- नही. मैंने पहले कभी उसके बारे में नहीं सुना. तुमने पूजा का घर कौनसा वाला बताया था?
विजय- वो इस गली में आखिरी वाला..मगर अब वो यहाँ नही रहती हैं.
नंदिनी- तो?
विजय- उसकी शादी हो गयी हैं, वो अब अपने ससुराल हैं.


-ताश्री! मुझे अब चलना चाहिए. पूजा ने कहा.
-चलना चाहिए का क्या मतलब! तुम यहाँ नही रुकोगी?
-नहीं, मैंने तुम्हारे घर पर झूठ बोला था, अपने घर पर नही. मुझे जाना होगा.
-...और मैं यहाँ इसके साथ अकेली रहूंगी?
-मुझे लगा यह तुम्हारा बॉयफ्रेंड हैं. उसने बेतल्खी से कहा. मैंने गुस्से से पूजा को घुरा.
तभी अन्तस बोला- वैसे तुम्हे मेरे साथ रहने की जरुरत नही हैं. मैंने इसी होटल में दूसरा कमरा ले लिया हैं. तुम यहाँ आराम से रह सकती हो.
पूजा उसके बाद अपने घर चली गई. मुझे अजीब लग रहा था, मैंने जिसके लिए यह आफत मौल ली थी वो ही मुझे इस मुसीबत में अकेला छोड़ कर चली गयी थी.
-लगता हैं तुम्हारी दोस्त हमारे बारे में नही जानती हैं. पूजा के जाने के बाद अंतस ने कहा.
-मैं खुद कौनसा जानती हूँ जो वो जानेगी.
-वो मुस्कुरा दिया. मेरे हर सवाल पर वो मुस्कुरा देता था, जैसे उसकी मुस्कराहट उसके सारे रहस्यों लगी ताला हो, जिसे में चाह कर भी नही खोल सकती थी.
-मुझे भूख लगी हैं. मैंने कहा.
-मैंने खाना आर्डर कर दिया हैं. आता ही होगा.
-..और यह सरदर्द कब तक रहेगा?
-कुछ घंटे, कुछ दिन, कुछ महीने या फिर कुछ साल!
-साल का क्या मतलब? मुझे ज़िन्दगी भर ऐसा सरदर्द रहेगा?
-उड़ने से पहले गिरने के बारें में पता कर लेना चाहिए. अगर पेड़ की जड़ो के साथ खिलवाड़ करोगी तो पूरा पेड़ ही हिल जाएगा. वैसे अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ.
-वो कैसे?
-जिस तरह से पानी ऊपर चढ़ता हैं वह नीचे भी उतर सकता हैं, नियमित ध्यान से यह उर्जा वापस अपने स्त्रोत तक पहुँच जाएगी, मैं तुम्हारी इसमें मदद कर सकता हूँ.
तभी खाना आ गया. खाना खाकर वो अपने कमरे में सोने चला गया.
मैंने सोने की कोशिश की लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी. दिन को छह घंटे सोने के बाद भला नींद आती भी तो कैसे? मैंने कुछ देर टीवी देखी लेकिन टीवी पर भी होमशॉप 18 और हनुमान कवच के अलावा कुछ आ नही रहा था. पुरे दिन बकवास सीरियल दिखाने वाले चैनल रात को धर्म की दुकाने बन जाते हैं. वैसे भी मुझे सिरदर्द की वजह से कुछ देखने की इच्छा ही नही हो रही थी.
अचानक मैंने सोचा की क्यों न अंतस के रूम की तलाशी ली जाए आखिर पता तो चले की ये हैं क्या?
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Re: रहस्यमई आँखें

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मैं कमरे में इधर-उधर ढूंढने लगी. उसके कमरे में बहुत सी अजीब चीजे थी, जैसे अलग अलग तरह की आयुर्वेदिक दवाइयाँ, बहुत सारी किताबे जो आध्यात्म, ध्यान और मनोविज्ञान से जुडी हुई थी. कुछ ऐसी चीजे जिनका कोई तुक ही नही था जैसे कि मोर पंख, सफेद पत्थर कुछ् जानवरो के दांत...पता नही क्या क्या सामान था इसके पास? मैंने पहली बार किसी के पास ऐसा सामान देखा था.

तभी मुझे एक ड्रावर में गले में पहनने की माला मिली, बड़े-बड़े मोतियों की उस माला के में सोने का एक त्रिशूल था, जो की हूबहू वैसा ही था जैसा की मझे स्टोर रूम में मिले उस बक्से के ऊपर था. उस माला के नीचे एक लिफाफा पड़ा था. मैंने उस लिफाफे को उठा कर खोला तो उसके अंदर एक फ़ोटो थी, एक छोटी बच्ची की, यह तो मेरी ही तस्वीर थी.

भला* मेरी बचपन की फोटो इसके पास क्या कर रही हैं और यह त्रिशूल का निशान, यह अंतस के पास कैसे आया? क्या अंतस मेरी माँ को जानता हैं, क्या उसने सच कहा था की वो मुझे तबसे जानता हैं जबसे मैं पैदा हुई हूँ. लेकिन अगर वो मुझे जानता हैं तो मैं उसे क्यों नही जानती?

नींद तो मुझे वैसे भी नही आ रही थी और जो आने वाली थी वो भी उड़ गयी. मैं अब इस आदमी पर और भरोसा नही कर सकती, मुझे इसकी हकीकत जाननी ही होगी. मैं सुबह चार बजे सोई और जब उठी तब तक नो बज चुकी थी. अंतस ने दरवाजा खटखटाया. मैं उठ कर बैठ गई मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था. मैंने अपना चश्मा पहन और दरवाजा खोला.

शुक्र हैं तुम उठ गई, वरना मुझे तो लगा था आज भी तुम्हारा पुरे दिन सोने का इरादा हैं. वो कहते-कहते अंदर आ गया. मैं खामोश खड़ी थी.

तुम्हारा सरदर्द अब कैसा हैं?
ठीक हैं।* मैंने धीरे से कहा.
चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं तुम्हे घर छोड़ आता हूँ. उसने कुछ अस्तव्यस्त पड़े सामान को व्यवस्थित करते हुए कहा.
अंतस! मैंने वही खड़े हुए कहा. उसने मेरी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा.
तुम कौन हो? मैं बेड के पास आ गयी, जहाँ वो खड़ा था.
मतलब?
मैंने बेड के ड्रावर से वो माला और वो तस्वीर निकाल कर उसके सामने रख दी.
जिज्ञासा एक बहुत ही बुरी चीज हैं अगर इसे नियंत्रण में न रखा जाये . उसने वो माला उठा कर हाथ में ले ली.
मगर अज्ञानता से तो बेहतर ही हैं. मैं एक हाथ अपनें चश्में की तरफ ले गयी.* मुझे सब बताओ अंतस! वरना फिर मुझे दूसरा तरीका अपनाना होगा.
वो हंसा. अगर तुम यह करना चाहती तो तुम पहले ही कर चुकी होती.*
वो सच कह रहा था. हर चीज के* कुछ फायदे होते हैं तो कुछ नुकसान भी होते हैं. सबकुछ जानना एक श्राप हैं, क्योंकि किसी के बारें में सबकुछ जानने के बाद हम उससे प्यार नही कर सकते. यहीं वजह थी कि सच* जानने की इतनी तड़प होने के बावजूद* मैं आजतक अंतस की आँखों में नही देख पाई थी.**
मगर अब तुम मुझे मजबूर कर रहे हो. मैंने कहा.
वह चुपचाप खड़ा रहा जैसे कोई निर्णय ले रहा हो.
मैं उसके जवाब के इंतज़ार में थी.
मैं एक तांत्रिक हूँ.* उसने माला लेकर गले में पहनते हुए कहा.

तुम मज़ाक कर रहे हो. मैंने आस्चर्य से उसकी और देखा.
क्यों तुम्हे क्या लगा कि सिर्फ बड़ी दाढ़ी वाले और काला चोगा पहनने वाले ही तांत्रिक हो सकते हैं?
मेरा दिमाग घूमने लगा. कुछ कुछ अब साफ़ होने लगा था. वो सपनो का आना, फिर अंतस का मुझसे मिलना...शायद वो सपने चेतावनी थे कि मुझे अंतस से दूर रहना चाहिए...और मैं पागल उस पर ही विश्वास करने लगी थी.

--------------------------------------------

क्या मैं अंदर आ सकता हूँ मैडम? राणा ने पूछा. कुछ फाइलो को देखती नंदिनी अचानक चोंक गयी.
नंदिनी- अरे राणा साहब आप? आइये बैठिये. आज इधर का रास्ता कैसे भटक गए.?
राणा- बस इधर से गुज़र रहा था तो सोचा कि बस मिलता चलूँ आपसे.
नंदिनी- चलिए अच्छा किया. वैसे भी मैं आपसे बात करने ही वाली थी.
राणा- किस सिलसिले में?*
नंदिनी- आपको अपने पर्लटॉप होटल पर भी ध्यान देना चहिये.
राणा- क्यों? वहां क्या ख़ास हैं?
नंदिनी- आपके लिकर का लाइसेंस ख़त्म हो चूका हैं...
राणा ने नंदिनी को सवालिया नज़र से देखा.

नंदिनी- पिछली बार भी आपने लेट रिन्यू करवाया था. डिपार्टमेंट ताक में बैठा हैं. आगे फिर आपकी जिम्मेदारी होगी.
राणा- हा हा हा...शुक्रिया. अच्छा हुआ आपने बता दिया वरना ज्यादातर पुलिस वाले तो छापा मारने के बाद ही बताते हैं.
नंदिनी- मेरा मानना हैं कि जब तक जरूरत न हो ताकत का प्रयोग नही करना चाहिए...

नंदिनी बात करते करते अचानक रुक गयी. उसकी नज़र राणा के गले में पड़ी एक माला पर पड़ी जिसमें एक त्रिशूल लटका था.

राणा ने नंदिनी की नज़रो को भांप लिया.
राणा- क्या हुआ?
नंदिनी- यह माला?
राणा- आपको पसंद आई? मैं आपके लिए भी एक भिजवा दूंगा.
नंदिनी- नही..उसकी जरूरत नही हैं. यह अपने कहीं से खरीदी थी?
राणा- नही मेरे पिता ने दी थी मेरे को? क्यों कोई ख़ास बात हैं?
नंदिनी- आप ताश्री को जानते थे?
कौन ताश्री? राणा ने सीधे होते हुए कहा.
वही लड़की जिसका दो साल पहले मर्डर हो गया था.
राणा- अरे हां..याद आया. विजय उस वक्त मेरे पास पूछताछ करने के लिए आया था. कह रहा था उस लड़की की डायरी में मेरा नाम भी हैं. अब भला इतने बड़े आदमी के बारे में अख़बार वाले कुछ का कुछ छाप देते हैं. कोई लड़की अपनी डायरी में कुछ लिख दे तो मैं क्या कर सकता हूँ?
नंदिनी- उस लड़की के कातिल के पास भी ऐसी ही माला थी जैसी की आपके गले मैं हैं.
राणा- मिस नंदिनी! यह बस एक त्रिशूल हैं. दुनिया में लाखो* शिवभक्त हैं* और उनमें से कई ऐसी रुद्राक्ष की माला पहनते हैं. कल को अगर मैं ऐसी ही माला आपको भेंट कर दूँ तो क्या आप भी इस केस में शामिल हो जाएगी?
नंदिनी- मगर ताश्री ने मेरे बारें में अपनी डायरी में नही लिखा हैं.
राणा- पता नही आप भी कौनसे गढ़े मुर्दे उखाड़ने बैठ गई हैं? आपके पास आज के केस कम हैं जो आप यह दो साल पुराना केस लेकर बैठी हैं. वैसे आपके हवलदार की तबियत कैसी हैं?
नंदिनी- आपको इस बारें में कैसे पता?
राणा- अगर आप मेरी मदद कर सकती हैं तो आपकी मदद करना मेरा भी फ़र्ज़ बनता हैं.
नंदिनी- मदद... कैसी मदद?
राणा- आपके हवलदार पर फायरिंग करने वाले ड्राईवर अभी एमजी रोड पर शाह ढाबे पर खाना खा रहे हैं.
क्या? नंदिनी चोंक गयी.
राणा जाने के लिए उठ खड़ा हुआ. अब आज्ञा चाहूँगा मैडम!
राणा के जाते ही नंदिनी ने विजय को आवाज लगाई.*
विजय- जी मैडम.
नंदिनी-* रामनायक पर हमला करने वालो के बारें में पता चल गया हैं. वो अभी एमजी रोड पर एक ढाबे पर हैं.
विजय- आपको राणा ने बताया?
नंदिनी- हाँ...क्यों?
विजय- कुछ नहीं...मैं जीप निकालता हूँ.*

नंदिनी और विजय कुछ देर बाद ढाबे पर थी.
विजय जीप से उतरे हुए एक ट्रक की तरफ देखता हैं. 4091...मैडम यही ट्रक हैं.
नंदिनी- मतलब की खबर पक्की हैं.
दोनों ढाबे के काउंटर पर पहुँचते हैं.
नंदिनी(ट्रक की तरफ इशारा करते हुए)- उस ट्रक का ड्राईवर कहाँ हैं?
उस आदमी ने खाट पर बैठ कर शराब पी रहे दो आदमियों की तरफ इशारा किया. वो दोनों नंदिनी और विजय को देखते ही भागे. नंदिनी और विजय भी उन दोनों के पीछे भागे.
कुछ दूर जाकर एक को तो विजय ने पकड़ लिया, दूसरे के पीछे नंदिनी थी. थोडा सा आगे जाकर उस आदमी ने पिस्तौल निकली और नंदिनी पर गोली चला दी. गोली नंदिनी के कंधे को छुकर निकल गयी. इतने में पीछे से विजय ने भी गोली चला दी, गोली उस आदमी के पैर में लगी थी. वो वहीँ नीचे गिर गया. विजय पास में आ गया.
विजय- आप ठीक तो हैं मैडम?
नंदिनी ने दूसरे हाथ से अपने ज़ख्म को दबा लिया. हां ठीक हूँ. निशाना चूक गया.
विजय उस ड्राईवर के पास गया और खींच कर दो थपड लगाये. हरामखोर पुलिस वाले गोली चलाता हैं. विजय ने तीन-चार लात-घूंसे और लगा दिया.
नंदिनी- बस विजय....इन्हें जीप में बिठाओ.
विजय उन दोनों को हथकड़ी डाली और जीप में पीछे बिठा दिया.

विजय- हिम्मत तो देखो कमीनो की. पुलिस वालो पर हमला करते हैं. बेटा तू तो लंबा अंदर जाएगा. विजय ने जीप में बैठते हुए कहा. मैडम में आगे हॉस्पिटल पर रोक देता हूँ.

नंदिनी- नही उसकी जरुरत नही हैं. ज़ख्म ज्यादा नही हैं. पहले इनको थाने पहँचते हैं फिर मैं हॉस्पिटल दिखा दूंगी.
थाने जाने के बाद वो दोनों हॉस्पिटल पहुंचे. पट्टी करवाकर दोनों बाहर आये.
विजय- मैडम मैं आपको घर छोड़ देता हूँ.
नंदिनी- कोई बात नही...मैं चली जाउंगी.
विजय- ऐसे में ड्राइव करना मुश्किल होगा. मैं छोड़ दूंगा.
ओके. नंदिनी ने कुछ सोचकर कहा. रास्ते में काफी देर दोनों खामोश रहे.
आज आप खाने का क्या करेगी. ऐसे में खाना बनाना तो पॉसिबल नही होगा. विजय ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.
नंदिनी- हां मैं देखती हूँ कुछ...बाहर से मंगवा लुंगी.
विजय- अगर आप चाहे तो शाम को हम दोनों बाहर डिनर पर चल सकते हैं. विजय ने नंदिनी की तरफ देखते हुए कहा.
नंदिनी- नही...नही..कोई बात नही...मैं मैनेज कर लुंगी.
विजय- जी...मैडम...विजय वापस सामने देखने लगा. शायद उसे इतने सख्त जवाब की उम्मीद न थी. कुछ देर के लिए दोनों वापस खामोश हो गए.
एनीवे थैंक्स विजय. कुछ देर बाद नंदिनी बोली.
विजय- किसलिए मैडम?
नंदिनी- मेरी जान बचाने के लिए...तुम अगर ठीक समय पर फायर न करते तो दूसरी गोली मेरे भेजे में होती. शायद बिना टीम के जाना मेरी गलती थी.
विजय- नही मैडम...अगर हम इंतज़ार करते तो हो सकता था की वो हमारे हाथ से निकल जाते.

इतने में नंदिनी का घर आ गया. नंदिनी जीप से उतर कर आगे गयी और वापस मुड़ी. विजय उसे ही देख रहा था. नंदिनी को मुड़ते देख उसने नज़रे झुका ली.
आठ बजे. नंदिनी ने पास आकर कहा.
विजय- जी मैडम?
नंदिनी- डिनर...हम आठ बजे चलेंगे.*
विजय- जी मैडम बिलकुल.
नंदिनी- ...और तुम मुझे नंदिनी बुला सकते हो....यह मैडम बिलकुल अजीब लगता हैं.
विजय- जी मैडम...आई मीन नंदिनी.

नंदिनी मुस्कुरा दी. विजय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी.**

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Re: रहस्यमई आँखें

Post by Jemsbond »


मैं वही बैड पर ही बैठ गयी. मुझे समझ में नही आ रहा था कि यह हो क्या रहा हैं.
-मुझे घर जाना हैं. मैंने कहा.
-हां...मैं तुम्हे छोड़ देता हूँ.
-नहीं मैं चली जाउंगी. मैंने अपना बैग उठाया और घर आ गयी. घर पहुंची तब तक माँ एनजीओ जाने की तैयारी कर रही थी.
-आ गयी तू! इतनी थकी-थकी क्यों लग रही हैं? माँ ने मुझे घूरते हुए कहा.
-वो रात को काफी लेट तक पढ़ाई कर रही थी.
-तो आज कॉलेज नहीं जाएगी?
-आज वैसे भी छुट्टी हैं.
-हम्म...मैंने खाना बना के रख दिया हैं तुम खा लेना.
उसके बाद माँ निकल गयी. मुझे अब भी काफी जोर से सिरदर्द हो रहा था. मैं नहाने चली गयी. नहाकर निकली ही थी की दरवाजे की घंटी बजी. मैंने फटाफट चेंज किया और दरवाजा खोला. यह पूजा थी.
-अब तबियत कैसी हैं तुम्हारी? पूजा ने पूछा.
-अब ठीक हैं मगर यह सरदर्द ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा हैं.
-कब आई थी वहां से? पूजा ने सोफे पर बैठते हुए कहा.
-अभी आधे घंटे पहले. मैं भी सामने ही बैठ गयी.
-कुछ हुआ था क्या? उसने धीरे से पूछा.
-क्या बकवास कर रही हैं. मैं उस लड़के को जानती तक नही हूँ.
-जानना क्या हैं? हैंडसम हैं, स्मार्ट हैं और पैसे वाला भी लगता हैं.
मैं अब गुस्से में आ गई थी.* -तेरे को इतना ही पसन्द हैं तो तू ही करले तेरा तो वैसे भी....मैं कहते कहते रुक गई. पूजा रुआंसी हो गयी थी. -सॉरी....मैंने कहा.
-कोई बात नही...बट थैंक्स यार... तूने मेरे लिए जो किया हैं उसका एहसान मैं ज़िन्दगी भर नही चूका सकती.
-ऐसी कोई बात नही हैं. तु मेरी दोस्त हैं. अगर तू पहले ही बता देती तो अच्छा होता.
-मैं डर गयी थी यार. मुझे लगा जाने तू मेरे बारे में क्या सोचेगी?
-तु मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं और रहेगी. भले ही तु प्रेग्नेंट ही क्यों न हो जाए. मैंने हँसते हुए कहा. वो भी हंसने लगी. वैसे उस लड़के का क्या हुआ? मैंने पूछा.
-कल शाम को ही उसे घर लाए थे. लोग कह रहे थे उसकी यादाश्त चली गयी हैं. शायद पागल ही हो गया हैं.
- क्या? यह मैंने क्या कर दिया?
- कोई बात नही ताश्री. अच्छा ही हुआ. ऐसे लोगो के साथ तो ऐसा ही होना चाहिए. पता नही उसने और कितनी लड़कियो की ज़िन्दगी बर्बाद की होगी.
मैं सोचने लगी. मुझे अफसोस ही हो रहा था.
-चल ठीक हैं..मैं चलती हूँ मुझे मार्किट भी जाना हैं. पूजा ने उठते हुए कहा.
पूजा के जाने के बाद मैंने खाना खाया और सो गयी. कुछ देर बाद मुझे झटका सा लगा. जैसे किसी ने मुझे बिजली का शोक दिया हो. मेरी नींद खुल गयी. यह माँ थी मेरे पास में बैठ कर मेरा सर दबा रही थी.
-तबीयत तो ठीक हैं तेरी? माँ ने पूछा.
-हाँ...बस थोडा सा सरदर्द हैं. मैंने उठते हुए धीरे से कहा.
चल उठ जा. मैं चाय बना रही हूँ पी लेना.

माँ के जाने के बाद मैंने अपना मोबाइल चेक किया तो देखा की 10-12 मिस्ड कॉल थी. सारे के सारे किसी अननोन नंबर से थे. शायद मेरा फोन साइलेंट मोड पर था.* ये अंतस भी जाने कब मेरा पीछा छोड़ेगा.* मैंने मन ही मन सोचा. तभी वापस फोन बजा. मैंने फोन उठाया.

-क्यों बार-बार फोन कर रहे हो? मुझे तुमसे बात नही करनी हैं...मैंने गुस्से से कहा.
-ताश्री! मैं रोहित बोल रहा हूँ.* वो पूजा....
- क्या हुआ पूजा को? मैंने घबराते हुए कहा.
-वो पूजा का एक्सीडेंट हो गया हैं. जल्दी से सिटी हॉस्पिटल पहुँचो.*
आसमान में काले घने बादल छाए हुए थे. कहीं बरस चुकी बरसात की ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी जिससे मौसम सुहाना हो चूका था. एक ओपन रेस्तरां में खुले गार्डन में एक टेबल पर नंदिनी और विजय बैठे थे.
नंदिनी- तुम अपनी फेमिली को यहाँ क्यों नहीं ले आते?
विजय- मेरा कोई नही हैं.
नंदिनी- मगर तुमने तो कहा था कि तुम्हे गोद लिया गया हैं?
विजय- हाँ, मगर कुछ समय पहले ही मेरे पिता गुजर गये थे.
नंदिनी- ओह, आई एम् सोरी! तुम्हे यहाँ अकेलापन महसूस नही होता.
विजय- अकेली तो आप भी हैं.
नंदिनी- मेरी बात अलग हैं...मुझे आदत हैं.
विजय- आपने अब तक शादी नही की?
नंदिनी एक सेकंड के लिए चुप हो गयी.
नन्दिनी- मुझे शादी नही करनी हैं.
विजय- मतलब?
नंदिनी- मुझे रिश्तो से नफरत हैं?
विजय- और इस नफरत का कारण क्या हैं...डर या अनुभव?
नंदिनी- तुम्हे मुझे देख कर लगता हैं कि मुझे डरने की जरूरत हैं?
विजय- लोग अक्सर वो नही होते हैं जो वो दीखते हैं या दिखना चाहते हैं?
नंदिनी- मेरी छोड़ो. तुम अपनी सुनाओ, तुम्हे कोई नही मिला.
विजय- मैंने ऐसा कब कहा?
नंदिनी- मतलब की तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई हैं?
विजय- हैं नही थी.
नंदिनी- छोड़ कर चली गयी?
विजय- हां...हमेशा के लिए.
नंदिनी- ओह...आई एम् सोरी.
अब तक दोनों खाना खा चुके थे. वेटर बिल लेकर आ चूका था. विजय ने बिल पे किया.
नंदिनी- एक सेकंड...मैं वाशरूम जाकर आती हूँ.
नंदिनी उठकर वाशरूम के लिए निकल गयी. अंदर कांउटर पर एक लड़की बैठी थी. नंदिनी ने उससे पूछा, एस्क्युज़ मी, यह वाशरूम किधर हैं?
जी आप आगे से लेफ्ट ले लीजियेगा. ठीक सामने ही हैं. लड़की ने ऊपर देखकर मुस्कुराते हुए कहा. जब उस लड़की ने ऊपर देखा तो नंदिनी को वो कुछ जानी पहचानी सी लगी.
तुम...तुम पूजा हो न? नंदीनी ने पूछा.
पूजा- जी...मगर आप कौन?
नंदिनी- मैं एसीपी नंदिनी हूँ. तुम यहाँ काम करती हो?
पूजा- नहीं यह मेरे हस्बैंड का रेस्टोरेंट हैं.
नंदिनी- तुम्हारे हस्बैंड?
पूजा- जी...रोहित सिंघानियाँ...
पूजा ने एक बैसाखी पकड़कर उठते हुए कहा.
--------------------------------------------------------------------------------------------------
रेस्टोरेंट के एक कमरे में नंदिनी, विजय और पूजा तीनो बैठे थे.
पूजा- ...तो आप ताश्री के केस की फिर से जांच कर रही हैं?
नंदिनी- ऑफिशियली नही...बस अपने लेवल पर.
पूजा- किसलिए?
नंदिनी- मैं ताश्री के कातिल को सालाखो के पीछे पहुँचाना चाहती हूँ.
पूजा- ...और आप भी अंतस को ही कातिल मान रही हैं.
नंदिनी- क्यों, तुम्हे ऐसा नही लगता?
पूजा- अंतस ताश्री से बहुत प्यार करता था, ताश्री को छोटी सी खरोंच भी आये तब भी वो बर्दाश्त नही कर पाता था, मैंने देखा था उस दिन जब ताश्री बेहोश हो गयी थी, अंतस ने ताश्री को किसी बच्ची की तरह संभाला था...और आपको लगता हैं कि ताश्री को अंतस ने मारा हैं.
विजय- किसी के दिल में क्या हैं यह कौन जान सकता हैं, तुम अंतस को जानती ही कितना हो?
पूजा- इंस्पेक्टर विजय! मैं अंतस को तो ज्यादा नही जानती थी मगर ताश्री को अच्छी तरह से जानती थी और अंतस के साथ ताश्री खुद को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करती थी.
नंदिनी- तब भी ताश्री के असली हत्यारे को सजा मिलना जरुरी हैं. इसलिये जो कुछ भी तुम जानती हो बता दो.
पूजा- मुझे जो कुछ भी मालुम था वो तो मैं पहले ही इंस्पेक्टर विजय को बता चुकी हूँ.
नंदिनी- हां, मगर कुछ ऐसा जो तुम उस वक्त न बता पायी हो, या फिर तुम्हे बाद में पता चला हो, आखिर तुम ताश्री की सबसे अच्छी दोस्त थी.
पूजा कुछ देर शुन्य में देखने लगी. हां बिलकुल. ताश्री मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी. लेकिन मैं सबकुछ पहले ही बता चुकी हूँ. मेरे पास अब नया कुछ नही हैं. अब अगर आप इज़ाज़त दे तो मैं जाना चाहूंगी, अभी वीकेंड हैं तो बहुत रश चल रही हैं रेस्टोरेंट में...
नंदिनी- हां क्यों नही..
पूजा का यह बर्ताव नंदिनी की उम्मीदों के बिलकुल विपरीत था. उसे लगा था की ताश्री के केस की वापस जांच के बारे में सुनकर वो खुश होगी.
नंदिनी- यह इतना रुखा बर्ताव क्यों कर रही थी?
विजय- इतना सब सहने के बाद किसी से उम्मीद भी क्या की जा सकती है?
नंदिनी- मतलब?
विजय- जब ताश्री का मर्डर हुआ था, इसकी शादी होने वाली थी, एक तो सबसे अच्छी दोस्त को खोने का गम, एक्सीडेंट का सदमा और उपर से पुलिस की रोज रोज की पूछताछ से ये परेशान हो गयी थी. तब इसके परिवार वालो ने एसीपी सर से स्पेशल रिक्वेस्ट की थी, उससे इस केस में और पूछताछ न की जाए.
नंदिनी- हम्म...मतलब याग्निक की तरह यह भी एक डेड एंड ही हैं.
विजय- ऐसा ही समझ लीजिये.
तभी नंदिनी को किसी का फोन आया. बात करने के बाद विजय ने पूछा. कल कहीं जाना हैं?
नंदिनी- हां, वो आश्रम में रेनोवेशन करवाया हैं और संसथापक की एक मूर्ति भी लगवाई हैं, वो चाहते हैं की मैं उसका आनावरण करूँ.
विजय- यह तो काफी अच्छी बात हैं.
नंदिनी- हां मगर दिन का प्रोग्राम हैं.
विजय- तो तुम कल थाने से छुट्टी ले लो...आई मीन आप..
तुम चलेगा. नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा.

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Jemsbond
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Re: रहस्यमई आँखें

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मैं जल्दी से सीटी हॉस्पिटल पहुंची. पूजा के मम्मी पापा भी वहीँ थी. उन दोनों का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था. उनके कोई रिश्तेदार थे साथ में जो उन्हें ढाढस बंधा रहे थे. मैं उनके पास गयी लेकिन ज्यादा बात नही कर पायी. कुछ देर में मुझे सामने से रोहित दवाइयां लेकर आता दिखा. वो दवाइयां देकर मेरे पास आया.
-ये कैसे हुआ?
-रोड क्रोस करते हुए, कोई कार वाला टक्कर मारकर चला गया.
-मगर तुम्हे कैसे पता चला?
-पूजा मुझसे ही मिलने आई थी.
-अब कैसी हैं वो?
-डॉक्टर ऑपरेट कर रहे हैं, अभी कुछ बताया नही हैं.
मुझे रोना आ गया. मैं वही पास ही बेंच पर ही बैठ गयी. रोहित भी काफी दुखी लग रहा था. कुछ देर बाद में सामान्य हुई.
-पूजा तुमसे क्यों मिलने आई थी.
-मैंने उसे फोन करके बुलाया था.
-किसलिए?
-वो...दरअसल... वो आगे कुछ बोल नही पाया.
-तुम पूजा से प्यार करते हो न? मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा.
-हां..मगर तुम्हे कैसे पता?
-उस दिन वो चिट्टी तुमने पूजा के लिए लिखी थी, लेकिन पूजा कुछ समझ नही पाई और उसने वो मुझे लाकर दे दी.
-तुम्हे पता था तो उस दिन क्लास में...
-मुझे बाद में पता चला था.
वास्तव में परसों जब पूजा ने रोहित को थप्पड़ मारा था और उसको नियंत्रित करने के लिए मैं उसके दिमाग में घुसी थी. मुझे तभी इस सब के बारें में पता चला था.

- मैंने पूजा को अपने दिल की बात कहने के लिए ही बुलाया था. रोहित ने कहा.
- और उनसे क्या कहा?
- सोच कर बताउंगी. वो जाने के लिए मुड़ी ही थी कि पता नही कहाँ से वो कार आ गयी.
तभी डॉक्टर ओटी से बाहर निकले. सब उनके पास घेरा बनाकर खड़े हो गए.
-सीरियस स्पाइनल इंजरी हैं, हमें स्पेशलिस्ट को बुलाकर ऑपरेशन करवाना होगा. 15 से 20 लाख का खर्चा होगा. वरना लड़की पूरी ज़िन्दगी खड़ी नही हो पाएगी. डॉक्टर ने बताया.
हम सब सुनकर स्तब्ध रह गए. मैं पूजा के परिवार की हालत जानती हूँ इतनी बड़ी रकम लाना उनके लिए बहुत मुश्किल था. रोहित और मैं वापस आकर अपनी जगह बैठ गये. तभी सामने से मुझे अंतस आता दिखा.

तभी सामने से मुझे अंतस आता दिखा. मैं उठ कर उसके पास गयी.

-पूजा कैसी हैं? उसने पूछा.
-तुम यहाँ क्या कर रहे हो?
-मैं अपनी दोस्त से मिलने आया हूँ.
-पूजा तुम्हारी दोस्त कबसे हो गई?
-उस दिन जब तुम छह घंटे के लिए बेहोश थी.
इससे बहस करना बेकार था.
-वो काफी सीरियस हैं, डॉक्टर ने ऑपरेट करने के लिए बोल रहे हैं. काफी ज्यादा खर्चा आएगा.
-ओह..वो ठीक तो हो जाएगी न?
-कुछ कह नही सकते हैं.
हम दोनों रोहित के पास जाकर बैठ गये. पूजा के पापा और रिश्तेदार फोन पर फोन कर रहे थे. मैं उठकर पूजा के मम्मी के पास गई. वो भी काफी परेशान लग रही थी.
-क्या हुआ आंटी?
-डॉक्टर आज रात को ही ओपरेशन करने के कह रहे हैं...अब इतनी जल्दी इतने पैसो का इंतजाम कहाँ से करेंगे? कुछ भी करें तब भी ज्यादा से ज्यादा 5-7 लाख ही हो पाएंगे.
-आप धीरज रखिये, कोई न कोई रास्ता जरुर निकल आएगा.
मैं वापस रोहित के पास आ गई. मैं पूजा के लिए बहुत परेशान थी. मैं उसे एक मुसीबत से निकल चुकी थी पर अब इस मुसीबत से कैसी निकालू कुछ समझ में नही आ रहा था. तभी मेरी नज़र रोहित पर पड़ी.
-रोहित मुझे तुमसे कुछ बात करनी हैं. मैंने कुछ सोचकर कहा. रोहित और मैं कुछ दूर चले गये.
रोहित तुम्हे पता ही हैं, पूजा के ऑपरेशन के लिए 20 लाख रुपयों की जरुरत हैं, उसके पापा ज्यादा से ज्यादा 5-7 लाख ही कर पायेंगे और ऑपरेशन आज रात को ही करना हैं. अगर तुम अपने पापा से ले सकते तो पूजा के पापा 5-10 दिन में वापस कर देंगे.
-हां...मगर...रोहित ने कुछ सोचते हुए कहा .
-मैं जानती हूँ रोहित यह तुम्हारे लिए भी आसान नही हैं. लेकिन अभी इसके अलावा और कोई रास्ता भी नही हैं. तुमने उस दिन कहा था न कि कोई मुझसे प्यार नही कर सकता हैं...मैं इसके लायक ही नहीं हूँ. मेरी नज़रे अंतस की और चली गई. शायद तुम सही थे. मगर क्या तुम किसी से प्यार कर सकते हैं और अगर करते हो तो क्या तुम उसे साबित कर सकते हो?
रोहित कुछ देर खामोश खड़ा रहा और फिर बाहर की और जाने लगा.
-कहाँ जा रहे हो? मैंने पूछा.
-अपने प्यार को साबित करने. मैं उसे जाते हुए देखती रही फिर कुछ देर बाद अंतस के पास आ गई. वो कुछ देर खामोश बैठा रहा और फिर बोला.
-मुझे पूजा के लिए अफ़सोस हैं. चिंता मत करो वो जल्दी ही ठीक हो जाएगी.
-तुम्हे किसी बात का अफ़सोस हैं. मैंने उसे हिकारत भरी नजरो से देखकर कहा. पांच घंटे के दोस्त के लिए भला कौन अफसोस करता हैं.
-रिश्ते वक्त से नही ज़ज्बातो से बनते हैं. किसी से रिश्ता बनाने के लिए पांच घंटे ही बहुत होते हैं तो किसी के लिए सारी उम्र भी कम पड़ जाती हैं.
- तुम रिश्तो के बारे में क्या समझोगे, तुम तो रिश्तो की नीव ही साजिशों की रखते हो.
-सच कई बार उलझा हुआ होता हैं, उसकी गांठे वक्त के साथ खोलना ही बेहतर होता हैं. सच न कहना हमेशा झूठ ही नहीं होता, यह कई बार रिश्तो को बचाने के लिए ज़रूरी भी होता हैं.
मैं चाहे यह मानु या न मानु मगर अंतस की बाते मुझे मंत्रमुग्ध सी कर देती थी. किसी नशे की तरह जिसके बहाव में मैं बहती चली जाती थी.
-तुम यहाँ पूजा के लिए नही मेरे लिए आये हो न?
- तुम्हारे पास यह मानने की वजह हैं मगर यह सच नही हैं. मैं अपना सामान पहले ही पैक कर चूका हूँ.
-तुम शहर छोड़ कर जा रहे हो. तुम्हारा काम ख़तम हो गया?
-काम...मेरा कोई काम नहीं हैं...मैं यहाँ सिर्फ तुम्हारे लिए आया था.
---------------------------------------------------
अगले दिन अनाथाश्रम से लौटते वक्त नंदिनी पूजा के रेस्टोरेंट पर ही रुक गयी. अंदर काउंटर पर एक आदमी बैठा था. नंदिनी ने अंदाजा लगा लिया यह रोहित ही था.
-पूजा कहाँ मिलेगी? नंदिनी ने पूछा.
-जी आप कौन?
-मैं उसकी दोस्त हूँ.
-आप दो मिनट बैठिये मैं बुला कर लाता हूँ.
कुछ ही देर में पूजा सामने थी.
-जी आप? मगर रोहित ने तो मुझसे कहा था कि मेरी कोई दोस्त आई हैं.
- हां, मैंने उससे यही कहा था. मैं उसे बेवजह परेशान नही करना चाहती थी.
- हम्म थैंक्स. मगर मैने पहले ही कहा था कि मैं सबकुछ बता चुकी हूँ.
-मुझे मालुम हैं. देखो पूजा...मैं जानती हूँ कि इस केस में पहले ही तुम्हे काफी परेशान किया जा चूका हैं. मगर मैं यह जांच अलग तरीके से कर रही हूँ. अगर कुछ भी ऐसा हैं जो किसी कारण से तुमने पहले नही बताया हो, तुम मुझे बता सकती हो.
-मगर आप दुसरो से अलग कैसे हैं?
-याग्निक... नंदिनी कुछ देर के लिए रुक गयी.
-हां...एसीपी चतुर्वेदी ने मुझे बताया था कि ताश्री ने हमारे बारें में अपनी डायरी में लिखा था तो?
-मैं उसे पहले से जानती थी.
पूजा आश्चर्य से नंदिनी को देखने लगी.
मैं कभी उससे प्यार करती थी. आज से लगभग पांच साल पहले की बात हैं..
-मगर याग्निक की तो शादी हो चुकी थी.
-हां मुझे बाद में पता चला था. तुम्हारी तरह में भी उसके जाल में फंस गयी थी. तुम खुशकिस्मत थी कि तुम बच गई. तुम्हारे साथ ताश्री थी.
-कमीना कहीं का...पूजा की आँखे गुस्से से लाल हो गयी.
-पूजा ताश्री ने सिर्फ तुम्हारे नही मेरे भी गुनाहगार को सजा दिलाई थी. ताश्री के हम दोनों पर अहसान हैं. यहीं वो कारण हैं जिसके लिए मैं ताश्री के कातिल को सजा दिलवाना चाहती हूँ. अगर तुम कुछ भी जानती हो जो की इस केस में मेरी मदद कर सकता हैं तो प्लीज मुझे बता दो.
पूजा कुछ देर के लिए खामोश हो गई.
-उस दिन जब ताश्री अंतस के कमरे में बेहोश थी, अंतस को किसी का फोन आया था, कोई ऋषि नाम का आदमी था. अंतस उसे बड़े भाई कह कर बुला रहा था. वो बार बार किसी संगठन का नाम ले रहा था. वो कहा रहा था की यहाँ का काम बहुत जल्द ही ख़त्म होने वाला हैं, फिर वो वापस लौट जायेगा.
-यहाँ का काम... मगर अंतस तो यहाँ सिर्फ एक ही काम से आया था. नंदिनी ने मन ही मन में कहा.

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