Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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मोहन ने चूस चूस कर उनको टमाटर की तरह लाल कर दिया अब उसने चकोर के बाकि कपडे भी उतार दिए और उसको पूरी नंगी देख कर वो जैसे पागल ही हो गया था चकोर की भरी भरी टांगे पुष्ट नितम्ब और काले घुंघराले बालो से ढकी छोटी सी हलकी लाल चूत मोहन ने चकोर को लिटाया और उसकी टांगो को फैला दिया



पर तभी चकोर की उसकी माँ की आवाज आई शायद वो इधर ही आ रही थी उसने मोहन को अपने ऊपर से हटाया और जल्दी से अपने कपडे पहने और जैसे ही माँ अन्दर आई उसने दोनों भाई बहनों को गहरी नींद में सोते हुए पाया वो भी उनके पास ही लेट गयी दोनों का दिल उस समय बहुत तेजी से धडक रहा था



दोनों की अपनी अपनी बाते थी काम बनते बनते जो रुक गया था अब सोना ही था अगली सुबह मोहन जरा देर से जागा और जल्दी ही उसकी पेशी अपने पिता के सामने थी



“मैं सुन्यो आजकल तू अजीब सो रहवे कोई परेशानी ”


“ना, बापू सा ”


“”थारी माँ बोल री तीन तीन दिन जंगल में रहबो इसी कुण सी जड़ी खोजबा ज्या सी बता जरा “


“वो बापू सा , वो बापू सा ”


“के हुई, साप सूंघ गो के ”


“कोई बात कोणी, सपेरे को बेटो से, तो जंगल में तो जानो ही पड़े, देख बेटा म्हारे बाद तू ही इ डेरा रो मलिक है अब तू जिम्मेदार बन चार रोज बाद नागपंचमी को मेलो है तो आप भी भोले बाबा रे दर्शन कर्ण वास्ते चलेंगे और मेह चाहवा की इस बार तू भी चले विशेष पूजा होनी है और के पता नागराज भी दर्शन दे दे ”


“जी बापू सा जो थारी आज्ञा ”


मोहन मुड़ा वापिस अब बापू डेरे में था तो वो मोहिनी से मिलने हबी नहीं जा सकता था एक कैद सा लगने लगा था ये डेरा उसको पर बापू के आदेश को वो अनदेखा कर दे अभी इतनी हिम्मत नहीं थी उसकी चकोर भी माँ के साथ मेले जाने की तैयारियों में लगी थी , मोहन का बापू एक माना हुआ सपेरा था ऐसा प्रचलित था की किसी पुरखे को खुद नागराज ने आशीर्वाद दिया था



चार दिन कैसे कटेंगे मोहन के वो सोच रहा था जबकि इधर ऐसा ही हाल संयुक्ता का था वो मोहन से मिलने को छटपटा रही थी पर उसका बेटा राजकुमार पृथ्वी अपनी पढाई पूरी करके नागपंचमी को वापिस आ रहा था तो म्महल को दुल्हन की तरह सजाया गया था


उसी दिन उसका राज्याभिषेक भी था तो पूरी राजधानी में जश्न का माहोल था



हर कोई खुशियों में डूबा था पर संयुक्ता के झांटो में लगी आग उसको परेशान कर रही थी उसे बेटे के आने की खुशी तो थी ही पर साथ ही वो अपनी कामुकता से जूझ रही थी सब लोग अपने अपने विचारो से जूझ रहे थे पर समय से पहले किसी को क्या मिलता है कुक भी नहीं



रात को एक बार फिर चंद्रभान और संयुक्ता संभोगरत थे दोनों का बदन पसीने से नहाया हुआ था रानी घोड़ी बनी हुई थी महाराज उसके नितम्बो को कस के पकडे उसको चोद रहे थे उत्तेजनावश संयुक्ता का चेहरा लाल हुआ पड़ा था अपनी आँखे बंद किये वो अपनी चूत पर पड़ रहे हर धक्के का भरपूर मजा ले रही थी उसकी चूत में महराज का घोडा सरपट सरपट दौड़ रहा था



“आह और जोर से महराज और जोर से ऐसे ही आः आः ”


पुरे कमरे में संयुक्ता की मद भरी आवजे गूँज रही थी महाराज दांत भीचे अपना पूरा जोर लगाते हुए रानी को मंजिल पर पहुचने की पूरी कोशिश कर रहे थे अपने होंठो को दांतों से काट रही थी वो उसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे उसके बदन ने संकेत देने शुरू कर दिए थे की वो अपने चरम की और अग्रसर है



पर तभी महराज का दम फूल गया और वो झड गए संयुक्ता के सारे अरमान एक बार फिर से मिटटी में मिल गए जिस चेहरे पर दो पल पहले असीम आनंद था अब उस पर क्रोध था वो गुस्से में फुफ्कने लगी थी



“महाराज ”


“अब हम क्या करे संयुक्ता, हम तो अपनी तरफ से पूरा करते ही है पर तुम ना, दो रनिया और है वो तो पनाह मांगती है है पर तुम ”


“तुम क्या , अब मैं क्या करू अगर आप मेरी अगन बुझा नहीं पाते है ”


“कभी कभी तुम वेश्याओ की तरह हरकते करती हो अपनी आदतों को सुधारो संयुक्ता ”


महाराजने अपने कपडे पहने और चले गए ,जबकि रानी रह गयी सुलगते हुए वेश्या से तुलना की उसकी , उसकी ये बात उसके मन को चुभ गयी महाराज शब्दों का सहरा लेकर अपनी कमजोरी छुपा रहे थे उसी पल संयुक्ता ने निर्णय किया की अगर उसकी तुलना बेश्या से की गयी है तो वो अब कुछ भी करे अपनी प्यास बुझाने का इंतजाम खुद ही करेगी



आज से महाराज अपनी माँ चुदाय , जाये अपनी उन दोनों रानियों के पास जो उनसे पनाह मांगती है पर संयुक्ता एक शेरनी थी जिसे बस शिकार ही पसंद था उसके मन में आया की अभी के अभी मोहन को बुलवा ले पर उसका बेटा पृथ्वी आने वाला था तो वो कुछ सोच कर चुप रह गयी पर उसकी चुप्पी एक आने वाले तूफ़ान का संकेत थी जो सब कुछ बदल कर रख देने वाला था

तो दिन गुजरे आइ नागपंचमी , राजधानी का महादेव मंदिर आज से पहले कभी इतना नहीं सजा था भव्यता झलक रही थी आज पता नहीं कितनेआभूषण से बाबा का श्रंगार किया गया था ढेरो, बल्कि यु कहू की हजारो नाग आज मंदिर में थे जहा तह पर मजाल क्या जो किसी इन्सान को डर लग रहा हो सब भोले बाबा की कृपा



खुशी दुगनी इसलिए थी की आज राजकुमार पृथ्वी आ रहे थे उनका राज्याभिषेक होना था पर पहले उनको दर्शन करना था बाबा का अपने लाव-लश्कर के साथ महाराज चंद्रभान पधारे तीनो रनिया उनके साथ पर अगर बात की जाये तो संयुक्ता की आभा में बाकि दोनों रानिया जैसे कही खो सी गयी थी



अपने लोगो के साथ मोहन भी आया उसका बाप राज सपेरा था तो महाराज के बाद उसको ही नागराज को दूध पिलाना था सबने महाराज और बाकि लोगो को परणाम किया मोहन और संयुक्ता की नजरे आपस में मिली और दोनों ही तड़प से उठे महाराज ने भोग लगाया फिर मोहन के बापू ने महाराज ने मंदिर के प्रांगन से ही पृथ्वी क राज्याभिषेक की घोषणा की जो की शाम को होना था



रानी का दिल मोहन से मिलने को मचल रहा था पर महाराज के साथ वो नगर के लोगो को तोहफे बाँट रही थी अब कर तो क्या करे मोहन का बापू कुछ लोगो से मिलने चला गया तो मोहन ने सोचा की वो भी नागो को दूध पिला दे भीड़ ज्यादा थी तो अपनी बारी का इंतजार करने लगा तभी उसे अपनी आँखों पर जैसे विश्वास ही नहीं हुआ



उसने सहेलियों के साथ मोहिनी को आते देखा क्या खूब लग रही थी वो मोहन को एक बार तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ की मोहिनी से यु मुलाकात होगी उसकी वो इठलाते हुए उसकी तरफ आ रही थी और फिर उसने अपनी सहेलियों से कुछ कहा वो आगे बढ़ गयी मोहिनी मोहन के पास रुक गयी



“तुम यहाँ ”


“हां, मेले में आया था पर शायद किस्मत में तुमसे मिलना था ”


“अच्छा, किया ये हाथ में क्या है तुम्हारे ”


“दूध है ”


“दिखाओ जरा,”


जैसे ही मोहन ने अपना बर्तन ऊपर किया मोहिनी ने बर्तन को अपना मुह लगाया और गतागत सारा दूध पि गयी मोहन भोचक्का रह गया



“”अरे ये क्या किया “


“इच्छा हुई तो पी लिया वैसे भी किसी की भूख मिटाना से ज्यादा पुन्य मिलता है ना ”


मोहन मुस्कुरा दिया




मोहिनी- मेरे साथ सखिया है और परिवार वाले भी तो मैं ज्यादा बात नहीं कर पाऊँगी पर कल मैं तुम्हे पक्का वही मिलूंगी

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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मोहिनी- मेरे साथ सखिया है और परिवार वाले भी तो मैं ज्यादा बात नहीं कर पाऊँगी पर कल मैं तुम्हे पक्का वही मिलूंगी



दोनों ने आँखों में करार किया और मोहिनी आगे बढ़ गयी मोहन वही बैठ गया पर दिल में चाह बस मोहिनी को देखने की इधर संयुक्ता की झांटे जैसे सुलग रही थी पल पल वो बस मोहन को अपने करीब ही पाना चाहे उसका जी करे की मोहन अभी उसकी चूत को रगड दे पर सबकी अपनी अपनी मजबुरिया



पर मोहन का मन तो बस था मोहिनी पर कभी यहाँ देखे कभी वहा देखे पर मोहिनी कब आये कब जाये आज तक ही वो ना समझा था तो अब क्या समझता तो हार कर मोहन बैठ गया एक तरफ और होंठो से लगा ली अपनी वही बांसुरी जी तो चाहा की छेड़ दे पर फिर उसने खुद को रोक लिया



उसे भी तो अपने पिता का डर था जो उसके बंसी बजाने को सख्त खिलाफ था पर दिल पर कहा किसी का जोर चलता है तो मोहन के होंठो से बस एक आह सी निकली उसने पुकारा “”मोहिनी ”


और थोड़ी ही देर बाद मोहन को वो अपनी तरफ आते देखा , वो मुस्कुराया मोहिनी के रूप का जादू सर चढ़ के बोल रहा था उस तपती धुप में उसका यु आना जैसे बारिश की एक बूँद का होना था और फिर ये बाते कहा कोई शब्दों में समझा सकता है बस दिल होता है धड़कने होती है और होती है एक चाहत



मोहिनी आकर मोहन के पास ही बैठ गयी बोली- कैसे उदास से बैठे हो



वो- तुम्हारी ही याद आ रही थी



मोहिनी-वो क्यों भला



मोहन- अब यादो पर कहा मेरा बस चलता है





वो- तो किसका चलता है



मोहन-मैं क्या जानू



वो- तो फिर कौन जाने



मोहन- तुम जानो मोहिनी



मोहिनी हंस पड़ी उसकी मुस्कान में न जाने कैसा जादू था



“कुछ खाओगे मोहन ”


“हां, पर तुम्हारे साथ ”


दोनों साथ साथ मेला घुमने लगे मोहिनी के साथ मोहन खुद को किसी राजा से कम नहीं समझ रहा था फिर एक दुकान पर रुके मोहन ने जलेबिया ली उसको देने लगा



“अपने हाथो से नहीं खिलाओगे मोहन ”


उफ्फ्फ कितनी सादगी से बहुत कुछ कह दिया था मोहिनी ने ये कहने को तो बस एक छोटी सी बात भर थी पर दिलवालों का हाल पता काना हो थो उनकी नजरो को पकडिये जनाब आँखों की गुस्ताखिया सब बयां कर देती है कुछ ऐसा ही हाल दोनों का था



मोहन ने अपने हाथो से जलेबी खिलाई मोहिनी को फिर तो ना जाने क्या क्या ले आया वो उसके लिए बहुत देर तक दोनों घूमते रहे मेले में अपने आप में मगन और फिर आई वो बेला



“देर हो गयी बहुत, मुझे जाना होगा मोहन ”


“ना जाओ ”


“जाना तो होगा नहीं जाउंगी तो फिर दुबारा कैसे आउंगी तुमसे मिलने ”


“जरुरी है क्या ”


“हां, ”


बस फिर मोहन ने कुछ नहीं कहा वो भी जानता था एक लड़की की दुश्वारियो को मोहिनी को बस जाते हुए देखता रहा वो ऐसा लगा की जैसे पल पल उसका कुछ साथ ले गयी हो वो इधर संयुक्ता की गांड जल रही थी उसकी चूत की आग उसका जीना हराम किये हुए थी उसे अपना रानी होने पे आज कोफ़्त सी हो रही थी हाय ये मजबुरिया



राजकुमार पृथ्वी पूजा कर चुके थे और अपनी प्रजा के साथ थोडा व्यस्त थे वैसे भी कहा रोज रोज ऐसे मौके मिला करते थे और कुछ देर बाद राजकुमारी दिव्या अपनी सखियों के साथ आये, रूप में दिव्या अपनी माँ की ही छाया थी रंग ऐसा की जैसे किसी ने दूध में चुटकी भर केसर मिला दिया हो



स्वभाव से थोड़ी चंचल , वो अब आई मंदिर में आज दिव्या का व्रत था जो उसे पूजा पश्चात ही खोलना था दिव्या जैसे ही अन्दर गयी रत्नों की चका चौंध ने किया उसको आकर्षित ऐसे रत्न उसने कभी नहीं देखे थे चंचल मन डोल आज्ञा शिवलिंग के ऊपर जो एक रत्न रखा था उठा लिया दिव्या ने पूजा करने आई थी मन में लालच भर गया
छुपा लिया उस रत्न को उसने पूजा की और जैसे ही वो वापिस हुई.

वो हुआ जो शायद नहीं होना चाहिए था दिव्या जोरो से चीखी और बेहोश हो गयी अब अब घबराये राजकुमारी को डस लिया था सांप ने आजतक इस मंदिर के संपो ने कभी किसी को काटा

तह फिर ये अनहोनी कैसे हुई भगदड़ सी मच गयी राजा रानी सब भागते हुए आये दिव्या का बदन हुआ नीला ऐसी क्या खता हुई जो इसका ये हाल हुआ

तुरंत वैद्यराज को बुलाया गया उन्होंने कहा की मामूली नाग का असर नहीं उनके बस की बात नही ये पर डर भी लगे महराज पल में सर कटवा दे ,

संयुक्ता को हर हाल में अपनी बेटी सही सलामत चाहिए तो तय हुआ की अब राज सपेरा ही नाग को मनाये जहर वापिस लेने को तो बुलाया गया

महाराज- देवनाथ, कुछ भी करो, म्हाने म्हारी लाडो जीवित चाह सु

देवनाथ- हुकुम, थारो आदेश महारा माथा पे पर मालिक जे नाग जहर वापिस लियो तो नाग मर ज्यवेगो

महाराज- नाग की परवाह नहीं दिव्या की सलामती चाही

अब देवनाथ क्या करे वो तो फंस गया बेचारा राज सपेरा वो राजकुमारी की जान बचानी बहुत जरुरी पर अब किस सांप ने काटा था उसको कोई देवता हो तो

खड़ी हुई परेशानी अब क्या करे राजा को ना कह नहीं सकता और जहर वापिस हुआ तो सांप मरे और हत्या का पाप उसे लगे अब करे तो क्या करे

तो आखिर देवनाथ ने अपनी बीन उठाई और लगा मनाने सांप को उसके साथ डेरे के हर सपेरे ने लगाई बीन की तान पर कोई ना याए थोडा समय और बीता जिस देवनाथ को वरदान , जिसकी बीन का सम्मान स्वयम नागराज करे उसकी मनुहार को ठुकरा दिया नाग ने अब परेशान हुआ देवनाथ

उसने बताई सारी बात राजा को पर उसे बेटी के प्राणों का मोह वो हुआ क्रोधित दिव्या हुई नीली धीरे धीरे जहर फैला जाये अब क्या किया जाये चारो तरफ गहरा सन्नाटा इतना की सासों की आवाज सर फोडती सी

लगे देवनाथ खुद चकित अब वो करे तो क्या करे क्या बीन ने धोखा दे दिया थोडा और समय बीता दिव्या गदर्न तक हुई नीली

संयुक्ता दहाड़ी ऐलान कर दिया की अगर उसकी पुत्री ना बची तो हर एक नाग को मरवा देगी वो अब ये हुआ और अपमान इधर देवनाथ की पूरी कोशिश जारी थी

जहर दिव्या की थोडी तक आ गया था और तभी देवनाथ की बीन टूट गयी घोर अपशकुन अब राजा भी घबराया ये प्रभु ये क्या अनर्थ हुआ अब हारा देव नाथ भी

इधर महारानी बोली- कुछ भी अक्र्के मेरी बेटी को बचाओ वर्ना हर सपेरे को मृतुदंड

अब सबकी जान गले में अटकी , इधर दिव्या पल पल मर रही थी इधर देवनाथ और डेरे के प्राण रानी के क्रोध में आये चारो तरफ

बस सवाल ही सवाल अब पिता को इस विवशता में देख कर मोहन से रहा ना गया उसने कहा – मैं बुलाऊंगा सांप को

सबकी नजरे मोहन की औरजब राज सपेरा हार गया तो ये लड़का क्या करेगा वो जिसने कभी बीन हाथ में ना पकड़ी वो कैसे

राजकुमारी के प्राण बचाए पर के कोशिश के क्या हर्ज़ भला पर वो कैसे करेगा देवनाथ ने एक नयी बीन मंगवाई मोहन के लिए उसने करी अब पुकार मोहन की तान से जैसे सबको नशा सा होने लगा खुद देवनाथ हैरान छोटे बड़े हजारो सर्प आ गए सब मोहन को देखे


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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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थोडा समय बीता और करीब दस मिनट बाद एक भयानक सुरसुराहट हुई धुप जैसे थम से गयी असमान में काले बादल छा गए हलकी हलकी बरसात होने

लगी मोहन ने और जान लगाई और फिर एक ऐसा सांप आया जैसा किसी ने नहीं देखा जैसे की चांदी की चमकार उसकी हरी आँखे करीब सात आठ फीट लम्बा

सांप ने कुंडली मारी और मोहन के सामने बैठ गया उसकी आँखे मोहन की आँखों से मिली एक पल को मोहन को लगा ऐसी हरी आँखे उसने कही न कही तो देखि है सभी उपस्तिथ लोग उस सांप को देख कर हैरान ऐसा जलवा उन्होंने कभी नहीं देखा अपनी जवानी में

“क्या चाहते हो ”सांप ने मोहन को कहा

अब मोहन हैरान सांप इंसानी भाषा कैसे बोले

उसने अपने हाथ जोड़े और बोला- हे देवता राजकुमारी के प्राण वापिस कर दीजिये आपकी कृपा होगी

“उसने चोरी की दंड तो मिलेगा महादेव के आशीर्वाद को च्रुराया उसने ””

चोरी और एक राजकुमारी मोहन को हुई हैरत जिसके पास किसी चीज्क्स की कोई कमी नहीं उसको भला चोरी की क्या जरुरत आन पड़ी मोहन ने सबको ये बात बताई

इधर देव नाथ खुद हैरान उसका बेटा सर्प से बात कर रहा था दरअसल मोहन तो उस से अपनी भाषा में बात कर रहा था पर सबको बस उसकी और सांप की हिस्स हिस्स ही सुनाई दे रही थी

एक राजकुमारी और चोरी अविश्वश्निया बात रानी ने खुद तलाशी ली तो उसे नाग मणि मिली नाग मणि जो बरसो से इस मंदिर में रखी थी

बिना किसी हिफाज़त के सबको अब आया क्रोध खुद राजा को भी उनकी बेटी ने ऐसी नीच हरकत की उन्होंने सर्प के आगे जोड़े हाथ बेटी का मोह भी था प्राण दान माँगा

पर सर्प अड़ गया तो मोहन से की गुजारिश अब मोहन क्या करे उसने अपना सर रखा सर्प के आगे और करने लगा इंतजार आदेश का

सर्प- इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं परन्तु राजा चंद्रभान न सैदव ही उनकी प्रजाति को संरक्षण दिया है तो वो जहर खेच लेंगे परन्तु चूँकि ये श्राप का जहर है तो राजकुमारी इ बदले किसी ना किसी को जहर को झेलना होगा

अब ये काम करे कौन इधर दिव्या पल पल मरे माहराज ने मुनादी करवाई की जो दिव्य का जहर झेले उसे वो आधा राज्य तक देंगे पर कोई आगे ना आया तो मोहन बोला मैं लूँगा इस जहर को

ये क्या कहा मोहन ने देवनाथ की आँखे फटी उसका बेटा इतना बड़ा बलिदान वो भी उसके लिए जिसका उससे कोई वास्ता नहीं सर्प सरकते हुए मोहन के पास आया दोनों की आँखे मिली

“किसी पराये के लिए इतना बलिदान ”

“इंसानियत के ”

सर्प ने अपना फन ऊँचा किया और मोहन इ सर पर रखा मोहन को पल भर में लगा की उसने इस स्पर्श को फेले भी महसूस किया है सर्प की आँखों से दो आंसू टपक पड़े

“तैयार हो ”

“जी ”

दिव्या को वहा लाया गया सर्प ने दिव्या का जहर चुसना शुरू किया नीला रंग उतरने लगा और इधर मोहन के बदन में जैसे किसी ने आग लगा दी हो वो अपनी खाल नोचने लगा

पल पल उसके बदन का ताप बढे शरीर नीला होने लगा मोहन रोये चिलाया प्रजा भी रोये उसका हाल देख कर धीरे धीरे दिव्या का पूरा जहर उतर गया


जैसे ही उसकी आँखे खुली मोहन गिर पड़ा सर्प ने अपना फन जोर से फुफकारा आसमान में अँधेरा छा गया बरसात और तेज हो गयी सब जैसे जड हो गए थे मोहन बेजान सा पड़ा था वो सर्प बहुत देर तक मोहन के पास ही बैठा रहा बहुत देर तक उस बरसात में भी लोगो ने उसके आंसू देख लिए कैसा विलक्षण द्रश्य रहा होगा एक सर्प इंसान के लिए आंसू बहाए

ऐसा विरला द्रश्य जिसने देखा सबकी आँखे पसीज गयी फिर वो सर्प धीरे धीरे पीछे हुआ और फ्न्गता हुआ चला गया जहा से वो आया था व्ही से चला गया

दूर बहुत दूर देवनाथ दौड़ कर आया अपने पुत्र के पास मोहन अचेत पड़ा था राजा रानी, प्रजा जो भी था वहा सब हुए परेशान थोड़ी देर हुई और फिर मंदिर की घंटिया बज उठी

अपने आप ऐसा शोर जैसे की सबके कान के परदे फट गए पल भर के लिए मंदिर के आँगन में जैसे बिजली सी गिरपड़ी थी

सबकी आँखे चुन्द्धिया गयी और जब वो रौशनी थमी तो वहा पर एक पानी का मटका रखा था राजकुमारी दिव्या ने वो मटका उठाया और थोडा पानी मोहन के होंठो स लगाया और जैसे पानी की धार मोहन के गले से निचे उतरी साथ ही


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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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उसका वो नीला रंग भी उतरने लगा सबमे जैसे एक ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी दिव्या ने मुस्कुराते हुए मोहन को अपनी गोद में लिटाया और उसको पानी पिलाने लगी कुछ ही देर में मोहन की आँखे खुल गयी

उसने थोडा और पानी माँगा पर ये क्या वैसा ही पानी उतना ही ठंडा शर्बत सा मीठा पानी मोहने ने उस मटके को अपने मुह से लगाया उअर गतागत सारा पानी पी गया

देवनाथ ने उसे अपने सीने से लगा दिया पिता जी आँखों से करुना की धार छूट पड़ी महादेव ने जीवनदान दे दिया था उस इन्सान को जिसने दुसरे के लिए निस्वार्थ अपने प्राण देने का निश्चय किया था

माहराज चंद्रभान ने उसी पल मोहन को अपना आधा राज्य देने की घोषणा कर दी पर उसको इस मोह माया से क्या लेना था उसने मना कर दिया पर संयुक्ता ने मोहन को महल में नोकरी देने का कहा उसने अपने पिता की तरफ देखा
उन्होंने हां कहा तो वो मान गया

चलो सब राजी ख़ुशी निपट गया था राजकुमार पृथ्वी के राज्याभिषेक का समय हो चला था तो रजा ने सबको महल आमंत्रित किया जश्न था और भोज भी पर मोहन के मन में वो बात खटक रही थी की आखिर मटके में वैस ही पानी कहा से आया जैसा की मोहिनी की मश्क में होता था फिर उसने सोचा की जब वो मोहिनी से मिलेगा तो पूछ लेगा


महाराज चंद्रभान मोहन के बहुत आभारी थे जश्न में उन्होंने उसे अपने पास स्थान दिया जो की एक बंजारे के लिए बहुत बड़ी थी मोहन इधर महल की चका चौंध से बहुत खुश था ऐसा नजारा उसने पहले कभी नहीं देखा था महाराज ने नाजाने कितना ही धन राजकुमारी और मोहन पर वार के दान किया

रात बहुत बीत गयी थी जब जश्न ख़तम हुआ मेहमान कुछ चले गए कुछ मेहमानखाने में रुक गए महाराज भी सोने चले गए थे मौका देख कर संयुक्ता ने मोहन को अपने कमरे में बुला लिया कुछ खास बांदियो को ही पता था और सख्त हिदायत थी की अंदर किसी को ना आने दिया जाये चाहे कोई भी हो

किवाड़ बंद होते ही संयुक्ता ने मोहन को अपनी बाहों में ले लिया और चूमने लगी बेतहाशा फिर बोली- मोहन तुम तो हमारी जिन्दगी में किसी फ़रिश्ते की तरह आये हो पहले तुम ने हम पर एहसान किया हमारी अनबुझी प्यास को बुझा कर और अब तुमने हमारी बेटी को बचाया हम अपना सब कुछ भी तुम पर वार दे तो भी कम है

पर हम जानते है की तुम्हे लालच नहीं जो इन्सान आधे राज्य को ठुकरा दे वो कोई विरला ही होगा

मोहन- मालकिन मैंने अपना फर्ज़ निभाया था एक राजकुमारी के लिए मेरे जैसे मामूली प्रजा की जान क्या अहमियत रखती है भला मैं खुश हु इस राज्य को राजकुमारी वापिस मिल गयी

“ओह मोहन सच में तुमने हमे मोह लिया ”

संयुक्ता ने फिर कुछ नहीं कहा बस अपने रसीले होंठो को मोहन के होंठो पर रख दिया जिस आग को उसने बहुत दिनों से दबा रखा था वो अब भड़क गयी थी बिस्तर पर आने से पहले ही दोनों नंगे हो चुके थे

मोहन के लैंड को अपनी जांघो में दबाये वो अपनी छातियो को कस कस के दबवा रही थी उसकी चूत का पानी मोहन के लंड को भिगो रहा था दो दो किलो की चूचियो को मोहन कस कस के दबा रहा था पल पल रानी कामुकता में और बहती जा रही थी मोहन उसके गोरे गालो को किसी सेब की तरह खा रहा था

संयुक्ता तो जैसे बावली होगई थी मोहन की बाँहों में आते ही पर इतना समय भी नहीं था की वो खुल के सम्भोग का मजा उठा सके थोड़ी देर में ही भोर हो जानी थी तो उसने मोहन से जल्दी करने को कहा मोहन ने उसे बिस्तर पर पटका और उसके ऊपर चढ़ गया रानी ने अपनी तांगे उठा कर मोहन के कंधो पर रख दी

उसने लंड को चूत पे लगाया और एक करारा प्रहार किया और संयुक्ता अपनी आह को मुह में नहीं रख पायी एक बार फिर से मोहन का लंड उसकी चूत को फैलाते हुए आगे सरकने लगा और जल्दी ही बच्चेदानी के मुहाने पर दस्तक देने लगा रानी अपनी छातियो को मसलते हुए चुदाई का मजा लेने लगी

हर धक्के पर वो उछल रही थी मांसल टांगो को मजबूती से थामे मोहन रानी को दबा के चोद रहा था अगर महल ना होता तो संयुक्ता अपनी आहो से कमरे को सर पे उठा लेती थोड़ी देर बाद उसने मोहन को पटका और उसकी गोद में बैठ कर चुदने लगी अब लंड बहुत अंदर तक चोट मार रहा था संयुक्ता की चूत ने लंड को बुरी तरह कस रखा था

“शाबाश मोहन तुमने तो हमारा दिल खुश कर दिया है अपनी बना लिया है तुमने हमे शबह्श बस थोड़ी रफ़्तार और्र्र आः

हाआआअह्ह्ह्ह ओह मोहन बस मैं गयी गयी गयीईईईईईईईईईईई ”

संयुक्ता मस्ती में चीखते हुए झड़ने लगी उसका बदन किसी लाश की तरह अकड़ गया मोहन ने उसे अपनी बाहों में जोर से कस लिया रानी की हड्डिया तक कांप गयी और कुछ देर बाद मोहन ने भी अपना पानी चूत में ही छोड़ दिया
पर संयुक्ता कहा कम थी भोर होने तक दो बार वो मोहन से चुद चुकी थी

फिर मौका देख कर उसने मोहन को अपने कमरे से बाहर कर दिया मोहन इस बात से बड़ा खुश था की महारनी की चूत मिल रही है जबकि महारानी इसलिए खुश थी की मोहन महल में ही रहेगा तो जब चाहे चुदवा लेगी उसने महाराज को अपनी बातो में लेकर मोहन को अपना निजी अंगरक्षक बना लिया
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