Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

rangila wrote:bahut khub mitr

lage raho mast kahani hai
thanks dost
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

इस बीच मोहन ने आगया ले ली थी महाराज से की वो कभी कभी अपने डेरे में जा सके इस से वो घरवालो से भी मिल सके उअर मोहिनी से भी पर सब बातो से अनजान राजकुमारी दिव्या की रातो की नींद उडी पड़ी थी

जबसे मोहन ने उसके प्राण बचाए थे उसे हर जगह मोहन ही दिखे उसके मन में बस मोहन खाना नहीं खाती सजना संवारना भूल गयी बस दिल में एक ही नाम मोहन

मन ही मन वो प्रेम करने लगी,देखो किस्मत का खेल निराला महलो की राजकुमारी एक बंजारे से इश्क करने लगी अब मोहबात है ही ऐसी कहा उंच नीच देखती है महल में ही दो चार बार दिव्या और मोहन का आमना सामना भी हुआ था पर वो बस शर्म के मारे उस से बात ही नहीं कर पायी थी

करीब दस दिन गुजर गए इन दस दिनों में संयुक्ता ने हर उस मौके का फायदा उठाया था जिसमे वो चुद सकती थी और फिर मोहन ने कुछ दिन डेरे में जाने की आज्ञा मानी तो उसने हां कह दिया मोहन निकल पड़ा डेरे के लिए बीच में वो महादेव मंदिर रुका दर्शन किये थोडा पानी पिया पर वो वैसे ही सादा पानी था

वो फिर चला पर डेरे की जगह वो उसी कीकर के पेड़ के निचे पंहुचा और आवाज दी मोहिनी मोहिनी पर कोई नहीं आया कोई नहीं आया कई देर इंतजार किया पर कोई जवाब नहीं हार कर वो वापिस हुआ तभी कुछ आवाज हुई पर कोई नहीं था वो निराश हुआ और डेरे आ गया सब लोग उसे देख कर बहुत खुश थे

खासकर चकोर, सब से बात करके उसके पिता ने उसे एकांत में बुलाया और बोला- छोरे एक बात पूछनी थारे से साची साची बताना
“उस दिन वो साप थारे बुलाने से कैसे आया , मैं देवनाथ राज सपेरा मेरा बुलावा ना स्वीकार किया और तेरे बुलाने से आ गया के बात है यो ”

“ना पता बापू, वो रानी का गुसा था तो मैंने सोचा मैं एक कोशिश कर लू बस इतनी ही बात थी ”

“फेर तू साप से बात के करे था ”

“आपने भी तो सुनी होगी बापू ”

“वो ही तो जानना चाहू के म्हारे छोरे ने सर्पभाषा कित आई मैं ना सीख पाया आज तक और तू

“के कह्य बापू सर्पभाषा ना बापू ना मैं तो अपनी बोली में बात करी ० ”

अब घुमा दिमाग देवनाथ का साप ने मनुष्य की बोली में बात कर पर फिर वो बोला- पर सबने देखा तू हिस्स हिस्स करके बात करे था

अब मोहन को भी झटका लगा बोला- ना बापू मैं तो अपनी बोली में ही बात करू था

अब देवनाथ ने भी झटका खाया छोरा बोले अपनी बोली पर सबने देखा वो संप की तरह करे था तो ये क्या बात हुई कुछ बात उसके मन में आई पर फिर वो चुप हो गया मोहन उठ कर बाहर आ गया पर उसको भी कहा चैन था उसे आस थी मोहिनी से मिलने की पर उसे जल्दी ही चकोर ने पकड लिया

“तुम्हारे बिना मेरा जी नहीं लगता ”

“”मेरा भी याद आती है तुम्हारी

“मुझे भी ”“

चकोर बहुत देर तक महल के बारे में ही पूछती रही पर मोहन का मन उलझा था मोहिनी में ही अब करे तो क्या करे जाए तक कहा जाये उसने बताया तो था की वो पहाड़ो की तरफ रहती है वो दूर था जाये तो कैसे जाए रात इसी उधेड़बुन में ही बीती सुबह हुई जैसे तैसे करके दोपहर हुई और वो आ पंहुचा उसी कीकर के पेड के निचे


“मोहिनी मोहिनी पुकारा उसने ”

पर कोई जवाब नही उसने तो कहा था की वो आएगी पर कब मोहन रोने को आया बार बार पुकारे पर कोई नहीं आये हार कर उसने अपनी बंसी निकाली और अपने दर्द को धुन बनाके रोने लगा आँखों से आंसू बहते रहे वो बंसी बजाता रहा और फिर उसे एक आवाज सुनि किसी ने उसे पुकारा था

उसने नजर घुमा के देखा तो मोहिनी आ रही थी धीमे धीमे चलते हुए
मोहन भागकर उस से लिप्त गया रोने लगा पुछा कहा चली गयी थी वो आखिर क्या रिश्ता था उन दोनों का जो इतनी तदप थी एक दुसरे को देखने की इतनी चाह थी दोनों कीकर के निचे बैठ गए मोहिनी कुछ बीमार सी लग रही थी उसकी त्वचा आज चांदी की तरह नहीं दमक रही थी कुछ बुझी बुझी सी थी

मोहन ने पुछा तो मोहिनी ने कहा बुखार सा है ठीक हो जायेगा

मोहन ने उसकी आँखों में देखा और फिर उसे कुछ आयद आया उसने उस दिन वाली घटना बताई मोहिनी को तो उसने अस्चर्या किया ऐसा सर्प तभी मोहन ने पुछा तुम भी तो मेले में थी फिर तुमने नहीं क्या

मोहिनी- नहीं मोहन मैं इस घटना से पहे ही चली गयी थी

“ओह ”

मोहन कई देर तक उस से बात करते रहा वो उसकी सुनती रही सांझ होने को आई फिर मोहन ने अगले दिन का करार किया और वापिस डेरे आ गया अब रात कैसे कटे कभी इधर करवट ले कभी इधर करवट ले मोहन बस दिल में ललक मोहिनी से मिलने की आँखे बंद करे तो मोहिनी दिखे और खोले तो भी

अगले दिन सुबह से शाम तक उसने व्ही इंतजार किया पर वो ना आई मोहन क्या करे फिर सोचा तबियत ख़राब हो गयी होगी एक रात और कटी फिर आई दोपहर अब आई मोहिनी थोड़ी और मुरझा गयी थी ऐसे लग रहा था की जैसे प्राण सेष ही नहीं अपना सर मोहन की गोद में रख के वो लौट गयी

मोहन बार बार उसे पूछे की उसे क्या हुआ है पर वो कुछ ना बताये हार कर मोहन ने उसे अपनी कसम दी मोहिनी मुस्कुराई और फिर उसने मोहन की कसम का मान रखते हुए बता दिया की उसे एक गंभीर रोग हुआ है जिसका बस एक इलाज है की जिस शेरनी ने तीन सर वाले शेर को जन्म दिया है उसका दूध मिल जाये तो

मोहन को कुछ पल्ले नहीं पड़ा उसने फिर से पुछा तीन सर वाला सर मोहन ने आजतक शेर ही नहीं देखा था यहाँ तीन सर वाले शेर की बात थी और शर्त ये की उसकी माँ अपनी मर्ज़ी से दूध दे तो ही मोहिनी का रोग ठीक हो पाए

मोहन ने उसकी पूरी बात सुनी और ये वादा किया की वो कुछ भी करके मोहिनी के लिए वो दूध लाएगा चाहे उसे सात समुन्द्र पार जाना पड़े पर उसे ये काम शीघ्र ही करना था मोहिनी की हालत पल पल गंभीर होती जा रही थी वो डेरे में आया और अपने पिता से तीन सर वाले शेर के बारे में पुछा तो उन्होंने मना कर दिया की ऐसा कुछ नहीं होता है

अब किस् से पूछे वो कौन मदद करे कोई तो पागल ही समझ ले उसको पर उसके पिता ने बताया की राजपुरोहित बहुत ही ज्ञानी है वो अवश्य ही जानते होंगे अगर ऐसा कुछ हुआ तो मोहन ने रात में ही डेरा छोड़ा और महल आया सीधा राजपुरोहित के पास गया और अपनी समस्या बताई उन्होंने बहुत ही गंभीर दृष्टि से मोहन की तरफ देखा फिर बोले- तुम जानते हो क्या कह रहे हो

मोहन- जी अच्छी तरह से

पुरोहित- तो फिर तुम्हे ये भी पता होगा की किसको इसकी जरुरत है
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

मोहन- जी मेरे किसी अपने को इसकी जरुरत है

पुरोहित- तुम्हारे अपनी को क्या सच में

मोहन- हां सच में

अब पुरोहित के माथे पर बल पड़े चेहरा निस्तेज हो गया जैसे बरसो से बीमार हुए हो उन्होंने मोहन से कल मिलने को कहा और अपने पुस्तकालय में चले गए किताबे छान मारी और

फिर एक किताब को पढने लगे पूरी रात पढ़ते रहे और जैसे जैसे वो पढ़ते जा रहे थे उनकी आँखों में आश्चर्य बढ़ता जा रहा था किवंदिती सच कैसे हो सकती थी पर किताब को झूठ मान भी ले तो मोहन क्यों झूठ बोलेगा

खैर मोहन का महल में बहुत रुतबा था तो उसने सोचा की मदद करनी चाहिए सुबह हुई उसने मोहन को बताया की मोहन पूरी धरती पर एक ही तीन सर वाला शेर है

मतलब की है या बस बात है तुम्हे ज्वाला जी के जाना होगा हर नवमी को वो शेर माता के दर्शन करता है तो तभी तुम उसे देख पाओगे ज्वाला जी तो बहुत दूर होंगी मोहन ने नाम भी नहीं सुना था पर फिर भी पुरोहित से नक्शा लेकर वो चल पड़ा

पुरोहित ने उसे साफ हिदायत दे दी थी की अगर वो शेरनी अपनी मर्ज़ी से दूध देगी तो ही वो दवा असर करेगी वर्ना सब बेकार मोहन का र्ध निश्च्य था उसे हर हाल में मोहिनी के प्राण बचाने थे तो मोहन चल पड़ा

अपनी मंजिल की और किसी की नहीं सुनी ना किसी को बताया इधर मोहन चल पड़ा था अपने सफ़र पर पीछे से अब ना संयुक्ता का दिल लगे ना दिव्या का भूख लगे ना प्यास


सबके दिल में मोहन और मोहन के दिल में मोहिनी आँखों में उसका ही चेहरा लिए मोहन जैसे तैसे करके पंहुचा ज्वाला जी के दर्शन किये और अपना काम सफल होने की प्राथना की तिथि जोड़ी तो आज सप्तमी थी मतलब दो दिन मोहन के लिए पल पल कीमती था अब दो दिन बीस साल की तरह लगे उसे जैसे तैसे करके उसने दिन काटे


और आई नवमी आधी रात का समय बस अकेला मोहन और कोई नहीं उअर फिर जैसे की भूकंप ही आ गया हो ऐसी आवाज आई और फिर आया वो निराला माता के दर्शन को मोहन ने जिंदगी में शेर देखा था वो भी तीन सर वाला उसने दर्शन किए और वापिस मुड़ा पर फिर रुक गया

ऐसा दिव्य शेर मोहन ने कभी नही देखा था मोहन लेट गया उसके पैरो के पास शेर ने अपना पंजा उसके सर पे रखा और एक हुंकार भरी

मोहन उठा और हाथ जोड़ते हुए अपनी सारी बात बता दी शेर खड़ा था चुप चाप फिर बोला – मनुष्य तुम्हारी राह इतनी आसान नहीं परन्तु आज तुमने माता के दरबार में अरदास लगायी है तो मैं तुम्हे अपनी माँ के पास ले चलता हु


मोहन उस शेर के साथ गुफा में पंहुचा और शेर ने बात शेरनी को बताई और जैसे ही उसको पता चला वो हुंकारी गुस्से में गर्जना ऐसी की जैसे पहाड़ गिर जायेगा उसने मोहन की और देखा और फिर बोली- मनुष्य मैं साल में दो बार अपने पुत्र को दूध पिलाती हु अगर मैंने तुझे दूध दे दिया तो मेरा पुत्र भूखा रहेगा

मोहन- हे माता, मेहर करे मुझ पर किसी के प्राण संकट में है

वो-जानती हु पर क्या तू जनता है किसके प्राण संकट में है

मोहन-जी मोहिनी के

शेर माता ने फिर से एक हुंकार भरी एक गर्जना की और बोली- अच्छा मोहिनी के क्या लगती है वो तेरी

मोहन- जी मैं प्रेम करता हु उस से

माता को बड़ा आश्चर्य हुआ ये सुनके प्रेम ,,,,,,,,,,,,, प्रेम करता है ये मनुष्य

वो बोली- क्या वो भी तुझसे प्रेम करती है

मोहन- जी

माता- असंभव क्या उसने कहा की कभी वो तुझसे प्रेम करती है

मोहन- जी कभी कहा नहीं

माता को उसके भोलेपन पर हसी आ गयी पर वो कैसे दूध दे दे अगर वो मोहन को दूध दे दे तो उसका पुत्र 6 महीने भूखा रहे एक माँ फसी अधर में

एक तरफ उसका फरियादी जिसे ये भी नहीं पता की वो किसके लिए इतनी दूर आया है और एक तरफ उसका पुत्र जिसे भूखा रहना पड़े

मोहन- हे माँ मैं भी आपका ही पुत्र हु मेहर करे

माता- ठीक है मैं दूध तुम्हे दे दूंगी पर मेरे पुत्र की भूख के लिए तुम क्या करोगे

मोहन- जो आपकी आज्ञा हो

शेरनी- ठीक है तो तुम्हे अपने शारीर का आधा मांस मेरे पुत्र को भोजन स्वरूप देना होगा बोलो है मंजूर

एक बार टी मोःन का कलेजा ही निकल गया पर मोहिनी को वचन दिया उसने और अगर उसके जीवन देने से मोहिनी को प्राण वापिस मिलते है तो ये ही सही

“ मैं तैयार हु हे नरसिघ जी आप मेरा आधा मांस उपयोग करे अभी ”

शेर माता को यकीन नहीं हुआ की एक मनुष्य अपना आधा मांस दे रहा है वो भी बिना ये जाने की वो किसके लिए ये सब कष्ट उठा रहा हा वो तो एक माता थी उसका भी कलेजा था पर परीक्षा अभी बाकी थी

शेर ने मोहन का मांस खाना शुरू किया पर क्या मजाल थी मोहन ने उफ्फ्फ भी की हो उसका मजबूत देख कर शेर माता का कलेजा पसीज गया

“बस मनुष्य बस तुमने साबित कर दिया की तुम्हारा इरादा नेक है तुम्हारी मुराद अवश्य ही पूरी होगी ”

शेर माता ने मोहन को अपना दूध दिया और उनके आशीर्वाद से मोहन का शरीर भी भर गया मोहन ने उनका आभार किया तो शेर माता बोली – मानुष पर मात्र मेरे दूध से ही तुम्हारी मोहिनी का रोंग नहीं कटेगा तुम्हे बाबा बर्फानी के यहाँ से सफ़ेद कबूतर की आँख का आंसू मेरे दूध में मिलाना होगा और

उसके बाद उसमे सुनहरी चन्दन मिलाने पर जो दवाई बनेगी उस से ही ये रोग कटेगा

मोहन ने कहा वो ये भी लाएगा तो शेर माता ने कहा की सुनहरी चंदन बस कैलाश पर्वत पर ही मिलेगी समय कम है तो मेरा पुत्र तुम्हारी सवारी बनेगा और एक रात में तुम्हे बाबा बर्फानी तक पंहुचा देगा

अब माता का आदेश था पालन होना ही था तीन सर वाले शेर की सवारी करते हुए मोहन पंहुचा बाबा बर्फानी तक और अपनी आस लगाई उसे वहा पर एक सफ़ेद कबूतर का जोड़ा मिला मोहन ने अपनी व्यथा बताई और एक आंसू ले लिया

अब पंहुचा कैलाश पर मोसम अलग बर्फ ही बर्फ अब कहा ढूंढें पर साथ नरसिंह तो काम बन गया इस तरह मोहन एक रात में हुआ वापिस
शेर माता ने कहा मानुष तेरा भला हो तेरा काम अवश्य सिद्ध होगा अब मोहन हुआ वापिस और सीधा पंहुचा उसी कीकर के पेड़ के निचे व्ही दोपहर का समय

मोहन ने पुकारा मोहिनी मोहिनी पर कोई जवाब नहीं उसने फिर से पुकार की और थोड़ी देर बाद मोहिनी आई उसकी तरफ चांदी जैसा रंग काला पड़ चूका था

मांस जैसे हड्डियों से उतर चूका था धीमे धीमे चलते हुए वो उसके पास आई बड़ी मुस्किल से उसने मोहन का नाम पुकारा मोहन का कलेजा ही फट गया उसको ऐसे देख कर

आँखों से आंसू बह चले मोहिनी भी रोये और मोहन भी

“बस मोहिनी बस तेरा दुःख ख़तम हुआ देख मैं सब ले आया हु शेरनी का दूध , सफ़ेद कबूतर की आँख का आंसू और सुनहरी केसर”
अब मोहिनी चौंकी,

मोहन को कैसे पता चला की आँख का आंसू और सुनहरी केसर उसकी आँखों से आंसू और तेजी से बह चले उसने तो मोहन को बताया ही नहीं था की दो और चीजों की आवश्यकता पड़ेगी

उसने तो ऐसे ही मोहन की कसम का मान रखने के इए उसे तीन सर के शेर की माँ का दूध कहा था क्योंकि वो जानती थी की असंभव ही था ये दूध मिलना

“मोहिनी बस अब मैं तुझे मुस्कुराते हुए देखना चाहता हु ले ये दवाई ले और जल्दी से ठीक होजा ”
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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मोहन ने उसको दवाई पिलाई और कुछ देर बाद ही असर होना शुरू हुआ वो काला पड गया रंग छंटने लगा मांस फिर से भरने लगा और जल्दी ही मोहन के सामने वो ही दमकती मोहिनी थी

उसकी चांदी जैसी चमक वापिस लौट आई थी एक साधारण मनुष्य ने उसके प्राणों को वापिस मांग लिया था यम के दरबार से
पहले से भी ज्यादा सुंदर मोहिनी उसकी आँखों के सामने खड़ी थी

जैसे उस समय नूर बरस पड़ा था वहा पर मोहन ने अपनी बाहे फैलाई और दौडती हुई मोहिनी उसके सीने से आ लगी जैसे हारती और आसमान का मिलन हो गया हो जैसे बहार ही आगई हो मोहन को करार आ गया बहुत देर तक वो उसके सीने से लगी रही ना वो कुछ बोली ना वो कुछ बोला


मोहन- देखा मैंने कहा था न तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा कुछ नहीं

मोहिनी उसके सीने से लगी रही

मोहन- एक बात पूछु

“हाँ ”

“क्या तुम मुझसे प्रेम करती हो ”

मोहिनी की धड़कने बढ़ गयी अब क्या कहे वो उस मोहन से जो यम को जीत लाया था उसके लिए क्या वो मना कर दे नहीं क्या गुजरेगी मोहन पर

वो टूट जायेगा तो क्या सत्य बता दे उसको नहीं नहीं तो क्या करे वो क्या उसका निवेदन स्वीकार कर ले की वो भी उसे प्रेम करती है
क्या कहा वो भी उसे प्रेम करती है ,

नहीं या नहीं हाँ नहीं हाँ हाँ वो भी प्रेम ही तो करती है मोहन से पर ये संभव नहीं , असंभव भी तो नहीं तो क्या करे क्या स्वीकार कर ले इस प्रेम के मार्ग को , मार्ग प्रेम का पर कितनी दूर तक क्या सीमा थी उसके इस प्रेम की दरअसल वो खुद नहीं जानती थी की कब वो मोहन से प्रेम करने लगी थी


वो तो बस गुजर रही थी उधर से बंसी की धुन सुनी तो रुक गयी थी और रुकी भी तो ऐसे की अब सब उलझ गया था और उलझा भी तो ऐसे की कोई डोर

नहीं जो सुलझा सके प्रेम ही तो था जो इन दोनों को इस हद तक एक दुसरे से जोड़ गया था प्रेम ही तो था जो मोहन उसके लिए इतना कुछ कर गया था पर इस प्रेम का क्या भविष्य क्या शुरआत और क्या अंत


मोहोनी के मन में द्वंद चालू हुआ इधर मोहन की आवाज से वो वापिस धरातल पे लौटी

“मोहिनी क्या तुम्हे मेरा प्रेम स्वीकार नहीं ”

वो चुप रही थोड़ी देर और बीती

“कोई बात नहीं मोहिनी अगर तुम्हे स्वीकार नहीं तो तुम्हारी इच्छा का मान रखना मेरे लिए सर्वोपरी है वैसे भी तुम कहा और मैं कहा कोई तुलना ही नहीं ये तो मन बावरा है जो बहक गया

जिसने ऐसा समझ लिया तुम्हे नाराज होने की आवशयकता नहीं मोहिनी मैं अपने मन को समझा लूँगा पर हां एस ही कभी कभी मिलने आ जाना वो क्या है ना जब तुमसे नहीं मिलता तो मन नहीं लगता मेरा कही भी ”

उफ़ ये सादगी मोहन ने उसके मन के वन्द को समझ लिया था इसी सादगी पर ही तो मर मिति थी मोहिनी पर वो भी करे तो क्या करे बस उसकी आँखों से आंसू बह चले

आंसू विवशता के आंसू बेबसी के आंसू की वो चाह कर भी मोहन को नहीं बता सकती की वो किस हद तक उसके प्रेम में डूब चुकी है

“रोती क्यों है पगली, क्या हुआ जो प्रेम नहीं मित्रता तो है ही और हां वैसे भी मैं तुम्हे ऐसे दुखी नहीं देख सकता देखो अब अगर तुम रोई तो मैं बात नहीं करूँगा फिर तुमसे ”

वाह रे मानुस तू भी खूब है

“अच्छा तो अब चलता हु , थोड़ी देर होगी फिर आने में पर आऊंगा जरुर तुमसे मिलने ” मोहन वापिस मुड़ा बड़ी मुश्किल से संभाला था उसने खुद को रोने से कुछ कदम चला फिर बोला- जाने से पहले थोडा पानी तो पिलादे मोहिनी

मोहिनी का जैसे कलेजा ही फट गया अब वो अपने दुःख को किसके आगे रोये दर्द भी अपना और आंसू भी अपने कांपते हाथो से उसने मोहन को पानी पिलाया

“आज मेरा जी नहीं धापा मोहिनी ” ये कहकर मोहन वापिस चल पड़ा एक पल भी ना रुका ना ही पीछे मुद के देखा हमेशा वो मोहिनी को जाते हुए देखा करता था

आज वो देख रही थी अपनी मोहब्बत को अपने से दूर जाते हुए दिल रोये बार बार दुहाई दे रोक ले मोहन को वर्ना मोहबत रुसवा हो जाएगी पर वो भी अपनी जगह मजबूर कैसे रोक ले उसको

दो दिन रहा मोहन डेरे में बस गम सुम सा ना कुछ खाया पिया ना किसी से बात की बी घरवालो की परेशानी वो अलग महल आया पर कुछ अच्छा ना लगे बस पूरा दिन गुमसुम रहता

हर रात संयुक्ता का खिलौना बनता वो पर ना कोई शिकवा ना कोई शिकायत दिन गुजरते गए अब कहे भी तो क्या कहे दिल तो बहुत करता उसका की दौड़ कर मोहिनी के पास पहुच जाये

पर नहीं जाता रोक लेता अपने कदमो को

इधर मोहिनी हर दोपहर उसी कीकर के पेड़ के निचे इंतजार करती वो बार बार अपनी पानी की मश्क को देखती ऐसा लगता की अभी मोहन आएगा और पानी मांगेगा दोनों तदप रहे थे झुलस रहे थे अपनी आग में पर किसलिए किसलिए अगर यही प्रेम था तो फिर ये जुदाई क्यों
जिस रात महारनी बख्स देती उसको पूरी पूरी रात बस बंसी बजाता वो ये बंसी ही तो साथी थी उसकी उसके सुख की उसके दुख की आज भी ऐसी ही रात थी पूनम का चाँद अपने शबाब पे था

चांदनी किसी प्रेमीका की तरह उस से लिपटी हुई थी चाँद और चांदनी आखेट कर रहे थे पर मोहन तड़प रहा था और साथ ही तड़प रही थी राजकुमारी दिव्या भी वो अपनी खिड़की से मोहन को देख रही थी

ना जाने कब दिव्या मन ही मन मोहन को चाहने लगी थी इतनी तड़प थी मोहन की धुन में आखिर क्या गम है इसको वो आज पूछ कर ही रहेगी

वो सीढिया उतरते हुए सीधा मोहन के पास आई मोहन चुप हो गया

“राजकुमारी जी आप सोये नहीं अभी तक ”

“हम कैसे सोये तुम्हारी इस बंसी से हमे नींद नहीं आती ”

“माफ़ी चाहूँगा मेरी वजह से आपको परेशानी हुई आज से रात को कभी बंसी नहीं बजाऊंगा ”

“वो बात नहीं है मोहन , पर क्या हम यहाँ बैठ जाये ”

“एक पल रुकिए मैं अभी आपके लिए व्यवस्था करवाता हु ”

“उसकी आवश्यकता नहीं ”

दिव्या उसके पास ही बैठ गयी फिर बोली- मोहन क्या कोई परेशानी है तुमको

“नहीं तो राजकुमारी जी , आप सब ने इतना सम्मान दिया तो मुझे भला क्या परेशानी होगी ”

“तो फिर ये कैसा दर्द है जो हर पल तुम्हारे दिल को छलनी कर रहा है ”

“ऐसी तो कोई बात नहीं ”

“घर की कोई परेशानी है ”

“जी नहीं ”

“तो फिर बताते नहीं की क्या बात है एक राजकुमारी को नहीं बता सकते तो एक मित्र को तो बता सकते हो ना ” दिव्या ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा

“मैंने कहा ना कोई परेशानी नहीं है वैसे भी आपके राज में भला मुझे क्या दिक्कत होगी ”

“तो फिर बताते क्यों नहीं अपना दर्द क्यों नहीं बांटते मुझसे ”

अब मोहन उसे क्या बताता की उसका मर्ज़ क्या है इश्क क्या है बस इतना समझ लीजे एक आग का दरिया है और डूब के जाना है दिव्या काफी देर तक उस से बाते करती रही उसने मन ही मन ठान लिया था

की वो जानकार रहेगी की आखिर मोहन की क्या परेशानी है क्योकि वो जानती थी की अगर मोहन दुःख में है तो वो भी उसके साथ ही है क्योंकि कारन व्ही थी प्रेम पर जहा प्रेम हो वहा ये दुःख क्यों ये बिछडन क्यों

चाँद एक ही था आसमान में पर दो लोग अपने अपने नजरिये से उसको देख रहे थे दोनों के मन में एक ही बात थी एक ही पीड़ा थी जुदाई की मोहिनी की आँखों में आंसू थे उसके बाल हवा में लहरा रहे थे

हलके हलके से पर उसकी निगाहे उसी चाँद पर थी जिसे मोहन देख रहा था दोनों के दिल दर्द से भरे थे पर कहे भी तो किस से की क्या बीत रही है दिल पर

रात थी तो कट ही जानी थी किसी तरह से अब तो दीवानो के लिए क्या दिन और क्या रात खैर दिन हुआ, आज दिव्या को मंदिर जाना था तो उसने माँ से मोहन को साथ ले जाने का कहा

अब बेटी को संयुक्ता कैसे मना करती तो वो दोनों चले मंदिर के लिए जैसे ही अंदर गए मोहन के कदम थम से गए
अंदर मोहिनी थी जो शायद पूजा करने ही आई थी ,

“राजकुमारी जी आप पूजा कीजिये मैं बाहर रुकता हु ”

मोहन बाहर आया उसके पीछे ही मोहिनी भी आ गयी मोहन ने अपने कदम बढ़ा दिए बिना उसकी तरफ देखे मोहिनी का दिल रो पीडीए अब कैसे बताये वो मोहन को की क्या बीत रही है उस पर

इर्कुच सोच कर वो बोली- मुसाफिर पानी पियोगे

मोहन के कदम एक दम से रुक गए दिल कहे चल वो बुला रही है पर मोहन ना जाए उफ्फ्फ ये कैसी नारजगी ये कैसी विवशता

“पनी मित्र को ईतना अधिकार भी नहीं दोगे अब ”

अब क्या कहता वो , मित्रता तो थी ही वो आया उसके पास मोहिनी ने मटका उठाया और पिलाने लगी उसे वो पानी पर आज वो बिलकुल सादा था मोहन ने सोचा की पानी भी बेवफाई कर गया

पर उसने अपनी ओख नहीं हटाई बस पीता रहा इधर दिव्या ने जब देखा की एक लड़की मोहन को यु पानी पिला रही है पता नहीं क्यों उसे बहुत जलन हुई क्रोध आया

वो सीधा आई और छीन लिया मटका मोहिनी के हाथ से और चिल्लाई- गुस्ताख लड़की तेरी हिम्मत कैसे हुई तू मोहन को पानी पिलाएगी

पलभर के लिए मोहिनी की हरी आँखे क्रोध से चमक उठी पर उसने संभाल लिया खुद को बोली- पानी ही तो पिलाया है कोई चोरी तो नहीं की है

मोहिनी ने दिव्या की दुखती रग पर हाथ रख दिया था दिव्या गुस्से से तमतमाई पर मोहन बीच में बोला- आपने एक प्यासे को पानी पिलाया कभी मौका लगा तो आपका अहसान जरुर उतारूंगा

मोहन ने दिव्या का हाथ पकड़ा और उसे ले आया , मोहिनी ठगी से रह गयी अहसान ये क्या बोल गया मोहन अहसान कैसा था उनके बीच वो दोनों तो दो जिस्म एक जान थे क्या रे इंसान बस

तेरी ऐसी ही फितरत तू कभी समझा नहीं नहीं की मोल क्या होता है मोहिनी एक फीकी हंसी हसी और वापिस मंदिर की तरफ बढ़ गयी

“क्यों मेरी इतनी परीक्षा ले रहे हो महादेव , अब नहीं सहा जाता मुझे ये कष्ट बहुत पीड़ा होती है मुझे भी और उसे भी पर मुझ को आप पे भरोसा है अगर आपने ये लिखा है तो ये ही सही ”

“मोहन, तुमने क्यों रोका मैं उस लड़की का मुह नोच लेती ”

“आपको कोई जरुरत नहीं किसी के मुह लगने की वैसे भी छोटी सी बात तो थी किसी को पानी पिलाना कोई अपराध नहीं ”
बात तो सही थी मोहन की अब दिव्या को क्या दिक्कत हुई थी

ये तो बस दिव्या ही जानती थी उसने मोहन की नीली आँखों में देखा और बोली- तुम्हारी आँखे बहुत प्यारी है

मोहन मुस्कुरा दिया इस बात से अनजान की उसकी मुस्कराहट का तीर किसी के दिल पे जा लगा है , इधर मोहन से चुद के संयुक्ता किसी ताज़े गुलाब की तरह खिल गयी थी

पुरे बदन में निखर आ गया था और और कामुक और सुंदर हो गयी थी जिस से राजा की और दोनों रानिया संगीता और रत्ना जल भुन गयी थी वैसे ही उसकी वजह से महाराज उन दोनों पर इतना ध्यान् नहीं देते थे ऊपर से आजकल वो और जवान हुई जा रही थी
आखिर कार दोनों रानियों ने तोड़ निकाला की किसी तरह से पता लगाया जाए की माजरा क्या है
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