बदला और पश्चारताप

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Ankit
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बदला और पश्चारताप

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बदला और पश्चारताप

क्रोध वह बिमारी है जो मौका देखकर प्रकट होती है। बॉस के सामने पति की नहीं चलती है तो वह बॉस की डाँट का गुस्साब पत्नीप पर उतारता है। पत्नीे की पति पर नहीं चल पाती है तो वह पति पर आए गुस्सेा को अपने बच्चेम पर उतारती है। बच्चेज बेचारे किस पर अपना गुस्सा उतारें? मगर वह अपने गुस्से को अपने खिलोने तोड़ कर उन पर उतार देते है। मगर यदि गुस्साप उतारने के लिए कोई Object ही ना मिले तो? यकीनन वह बदले का रूप ले लेगा और इसी Human Psychology पर आधारित है ये कहानी।
धीरज घर पर ही था और डॉ. उसे गुस्साि Control करने की Psychology समझा रहा था कि तुम्हेे जब भी क्रोध आए अपनी सांसो पर ध्या न दो और मन ही मन दस तक की गिनती गिनो, क्रोध छू मंतर हो जाएगा।
Doctor धीरज को ऐसे ना जाने कितने नुस्खेर दे चुका था परन्तुम नाम के विपरीत उसमें धीरज नाम की कोई चीज ही नहीं थी। ऐसा भी नही था कि वह सारी दुनिया से लड़ता, झगड़ता रहता था। उसका झगड़ा था तो बस अपनी पत्नीी से और वह भी छोटी-छोटी बात पर।
अब भला कौनसी औरत इस बात पर मार खाएगी कि आज सब्जी में नमक ज्यारदा है, चाय में शक्‍‍कर कम है, टयूब लाईट ज्यारदा देर तक जल गई है। पर नैना मार खाती थी, सहन करती थी अपने पति को क्योंेकि उसके पास गुस्साा उतारने के लिए कोई Object ही नहीं था। शादी के तीन साल हुए पर बच्चे थे नहीं। पडोसियों पर भी एक ही बार गुस्साा उतारा था तब से वह लोग आना ही बंद हो गए थे। अब या तो वह घर की दीवारों से सिर फोड़े या घर के बर्तन तोड़े या कहीं भाग जाए, पर भागना भी तो उसके लिए सरल नही था। आए दिन TV पर दिखने वाले हत्या्, ब्लाात्का र जैसे कांड को देखकर वह सोचती थी कि इससे अच्छाV तो पति का जुल्मा ही सह लेना ठीक है, कम से कम जिन्दाह तो हूँ।
पर वाह री किस्मबत, इसे भाग्यू कहें या दुर्भाग्य , उसे पति के ऑफिस से फोन आया कि धीरज की तबियत अचानक खराब होने से उसे Hospital में Admit किया गया है। वह दौड़ती भागती Hospital पहुँची तो Doctors ने बताया कि धीरज को Paralysis Attack हुआ है और Attack इतना जबरदस्ती था कि उनके शरीर का बायां हिस्साक बिल्कुaल नकारा हो चुका है। इतना ही नहीं, इस लकवे के Attack से धीरज की आवाज भी चली गई है। यानी अब धीरज केवल किसी चमत्का र से ही वह ठीक हो सकते हैं।
नैना बदहवास सी पति के वार्ड की तरफ दौड़ी। उसने पति के चेहरे की ओर देखा। होंठ आँख सब तिरछे हो चुके थे। उसकी आँखो में आँसू आ गए। धीरज की आँखों में भी आँसू थे। नैना कुछ कहती उससे पहले ही उनके Psychology के Doctor आ गए और धीरज को डांटते हुए कहा:
”देखा मिस्ट र धीरज! मैं आपको पहले से ही आगाह कर रहा था कि क्रोध से दूसरे का नुकसान बाद में होता है, पहले अपना खुद का नुकसान होता है। यह सब तुम्हाीरे क्रोध की वजह से हुआ है। अब भुगतो अपने गुस्सेन का फल”
सहसा नैना के मन ने सवाल किया- “फल! फल इन्हेह कहाँ भुगतना है? पहले क्रोध में बायें हाथ का उल्टा हाथ मुझ पर पड़ता था, अब दहिने हाथ का पड़ेगा। धन की कमी तो है नही, Insurance की जो Policies बेची हैं, उनका Commotion तो जिन्दथगी भर मिलने वाला ही है। Office और साथ ही Share Market जितनी उचाई चढ़ रहा था, धीरज भी तो उसी हिसाब से तरक्की। कर रहा था। कुछ विश्वाीस पात्र नौकर थे जो ऑफिस का सारा काम संभाल सकते थे और रही बात मुझ पर अत्यारचार की, तो उसके लिए एक नौकर रखना धीरज के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। मुझे खुद नही मार पाएगें तो उसके लिए भी नौकर रख लेंगे। सोचते-सोचते नैना की आँख भर आई। धीरज से नैना के आँसू छिप ना सके। उसने Doctor की ओर नैना को समझाने का इशारा किया।”
Doctor ने नैना को समझाया- “नैना! डरने की कोई बात नहीं है। धीरज कि गारंटी में लेता हूँ कि वह पन्द्रकह दिन में ठीक हो जाएगा। मेरा एक दोस्तप है जिसको Paralysis Patients ठीक करने में 100% का रिकॉर्ड है। मैंने उससे बात भी कर ली है और इसे वहीं ले जाने के लिए आया हूँ।”
नैना हक्कील-बक्कीं रह गई। उसे फिर धीरज के बायें हाथ का उल्टाक थप्प%ड़ याद आ गया।
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धीरज की विभिन्ना प्रकार की XRay Report, MRI Report, आदि आ चुकी थी। Paralysis Doctor ने ध्या न से रीढ की हड्डी के एक्सररे पर नजर दौड़ाई। उसने गौर से MRI की Report भी देखी और नैना से कहा: “नो प्रोब्ल म रीढ की हड्डी का छोटा सा ऑपरेशन और फिर सब ठीक।”
नैना ने पूछा: “खर्च कितना आएगा?”
Doctor ने बताया कि: “खर्च ऑपरेशन का नही मेरे हुनर का है जो कि दस लाख बैठेगा।”
नैना ने फिर सवाल किया: “और अगर ऑपरेशन फेल हो गया तो?”
Doctor ने आत्मय विश्वाऔस के साथ कहा: “तो Free of Charge”
नैना ने तुरन्त कहा “नही! ऑपरेशन फेल हुआ तो बीस लाख और अगर पूरा शरीर काम करना बंद कर दे, तो चालीस लाख। मगर जिंदा रखना है। मर गया तो एक पैसा नही।”
Doctor के माथे पर चालीस लाख सुनकर आश्चीर्य की लकीरें उभर आई।
कहाँ तो वह जब दस लाख कहता था तब चार या पाँच लाख मिलते थे और कहाँ चालिस लाख। पर फिर भी उसने आवाज उठाई: ”मेरी Reputation का क्याँ होगा?”
नैना ने कहा: “Reputation की कीमत कोई दे नही सकता, लेकिन उसके लिए भी चालीस लाख। यानी कुल अस्सीन लाख।”
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अगले दिन की Breaking News यह थी कि Doctor पात्रा के हाथों एक मरीज का ऑपरेशन असफल हो गया और फिर पैराग्राफ में पूरी कहानी छपी थी कि कैसे One Side Paralysis आदमी पूरा ही लाचार हो गया।
डॉ. पात्रा की बडी ही थू-थू हो रही थी, जब कि वह इन सब झमेंलों से दूर Switzerland की सैर के लिये जा चुका था।
नैना ऑफिस स्टा फ की मदद से धीरज को घर ले आई थी। वह धीरज, जिसे देखकर नैना का मन पहले भय और कडवाहट से भर जाता था, आज उसी के सामने बेबस सा पड़ा था।
नैना ने गौर से धीरज की रिपोर्ट पढ़ी उसमें साफ लिखा था कि: “गरदन के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से अपंग हो चुका है“
और यह पढ़ते हुए अचानक धीरज की आँख में देखते हुए कहा: ”आज तक चाहे तुम्हाकरा किसी Employee से झगड़ा हुआ हो, उसका गुस्साे, Traffic Signal पर ज्याादा देर रूकना पड़ा हो, उसकी झल्लागहट, किसी का Payment Late हुआ हो उसकी कड़वाहट, हर बात के गुस्सेप को उतारने के लिए Object मैं थी…. पर आज से मेरे Object तुम हो।”
कहते हुए नैना की आँखों में क्रोध की ज्वा,ला भभक उठी और उसने एक झन्नारटेदार थप्पcड़ धीरज के गाल पर मार दिया। धीरज हक्का -बक्का् उसे देखता रह गया। उसकी आँखों में सारे जहां का आश्च र्य सिमट आया। गाल पर थप्प।ड़ तो काफी तेज लगा था, लेकिन उसे दर्द गाल पर नही कहीं और महसूस हो रहा था। वहीं, जहां पहली बार उसके बायें हाथ का थप्पलड़ खाकर नैना को महसूस हुआ था…. यानी दिल पर।
यह भी एक सच्चा ई ही है कि पराए के मार की चोट का असर शरीर पर होता है लेकिन अपने जब मारते है, तब हर बार चोट दिल पर ही लगती है।
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नैना गुनगुनाते हुए किचन में खाना बना रही थी। आज से पहले उसने डरते-सहमते हुए ही खाना बनाया था, पर आज उसके सामने कोई डर नही था। बड़े ही खुशनुमा अंदाज में खाना परोस कर वह धीरज की Revolving Chair की ओर बढ़ी।
धीरज के गालों पर अभी भी अंगुलियों की छाप दिख रही थी। नैना ने धीरज की ओर देखा। धीरज की आँखों से निकले आंसू उसके गालों पर लुढ़ककर सूख चूके थे, पर चेहरे पर पश्चाखताप की लकीरे स्पेष्टर दिख रही थी।
नैना ने मजाक किया: “शायद आप कांग्रेस समर्थक है, इसीलिए हर दूसरे-तीसरे दिन मेरे गाल पर पंजे का निशान छाप देते थे पर Don’t worry, अब आप मुझे भी कांग्रेस समर्थक समझों और लो खाना खाओ।”
धीरज के मुंह में नैना ने पहला कौर डाला और पूछा: “नमक कम तो नही है?”
धीरज ने हां में सर हिलाया। बस फिर क्याप था। जिस तरह से धीरज नमक कम होने पर थाली फेंक दिया करता था, ठीक वैसे ही नैना ने भी थाली उठाई और जोर से फेंक दी जो कि झनझनाती हुई दूर जा गिरी। सारा खाना फर्श पर वैसे ही बिखरा था, जैसे धीरज के फेंकने पर बिखरता था।
अब नैना ने नमक का डिब्बा , जो कि वह सा‍थ ही लाई थी, उसमें से एक चम्म च नमक निकाल कर जबरदस्ती धीरज के मुंह में ठूस दिया। इतना नमक एक साथ मुंह में जाने से धीरज का चेहरा बिगड़ गया, जबकि नैना के चेहरे पर बदले के भाव थे। उसने एक-एक शब्दा चबाते हुए कहा:
”नमक कम हो तो डाला जा सकता है, उसके लिए पत्नीच को मारने की जरूरत नही होती और अगर आज तुम मन ही मन ये सोंच रहे हो कि तुम अपाहिज हो इसलिए कुछ नही कर सकते, तो जरा यह भी सोंचो कि मैं इस घर में अपाहिज से ज्यातदा क्याि थी? कोई भी औरत अपने ससुराल में अपाहिज से ज्यासदा आखिर होती भी क्याे है?”
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Electrician की समझ में नही आ रहा था कि एक छोटे से बेड़रूम में आठ ट्यूब लाईट फिट करवाने की जरूरत क्याt है। पर उसे तो अपने पैसों से काम था, सो पैसे लेकर चलता बना। पर धीरज की आँखों में प्रश्न वाचक भाव थे जिनका उत्तजर था नैना के दिमाग में…. उसने आठों ट्यूब लाईट चालू कर दी और खुद बेड़ पर जा बैठी। धीरज इस कदर लाचार था कि उसे सहारे के बिना बेड़ तक नही लाया जा सकता था। पर नैना का मूड़ वही था कि वह उसे बेड़ पर सुलाए क्योंैकि धीरज के कपड़ों से गंदी स्मैाल आ रही थी।
धीरज ने टायलेट कर दिया था और नैना का मूड़ नही था कि वह उसे नहलाए-धुलाए। मूड़ होता थी कैसे? एक बार वह बीमार पड़ी थी तो धीरज ने उसके पास यह कहकर बैठने से मना कर दिया था कि उसके शरीर से दवाइयों की बदबू आती है। नैना उसी का बदला ले रही थी। धीरज को जरा ट्यूब लाईट की रोशनी में सोना पसंद नही था पर नैना को अंधरे से डर लगता था। मार के आगे डर हार गया और वह भी अंधेरे में सोने लगी थी पर आज वह बेड़ पर बैठे बड़े आराम से एक पुराने गाने की लाईन को तोड़-मरोड़ कर गा रही थी:
“सैंया जी भैये अपंग अब डर काहे का, नही करेंगे मुझे तंग अब डर काहे का”
और गाते-गाते सो गई। लेकिन अब धीरज को अहसास हो रहा था कि नैना कुछ भी ज्या दा नही कर रही है। जो-जो उसने नैना के साथ किया था, जितना अपमान, जितनी जिल्ल त उसने नैना को दी थी, बेचारी उतना कर भी नही पा रही है।
सोंचते-सोंचते धीरज को याद आया कि एक बार नैना ने उसे चाय दी थी जो थोडी ठंडी हो गई थी। तब धीरज ने खुद चाय गरम करके उसे नैना के शरीर पर फेंक कर कहा था कि: “चाय इतनी गरम होनी चाहिए।“
धीरज को लगा कि नैना शायद इस घटना को भूल गई है। उसने मन ही मन निश्च य किया कि वह कल चाहे जैसे भी हो, नैना को ये घटना याद दिलाएगा और उसकी सजा भी भुगतेगा।
धीरज के लिए पासा अब पलट चुका था। अब वह नैना के दिल में बसे सारे दर्द को धो डालना चाहता था, भले उसके लिए उसकी जान ही ना चली जाए। धीरज की कई राते व्हीालचेयर पर कट चूकी थी पर जो कि काटे नही कटी थी पर आज की रात वह नही चाहता था कि सुबह हो। आज की रात तो वह अपनी नैना को निहारते रहना चाहता था, जो कि बेड पर निश्चिंत सो रही थी।
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सुबह हो चुकी थी नैना ने अंगड़ाई लेकर आंखे खोली तो धीरज को अपनी ओर देखते पाया। आज धीरज की आंखो में उसे कुछ और दिखाई दिया, जिसे वह समझ नहीं पाई। पर उन आंखो का असर था कि वह सबसे पहले धीरज को बाथरूम में ले जाकर शावर के नीचे धीरज की व्ही लचेयर को खड़ा कर दिया। दस मिनट बाद जब वह आश्वास्त हुई कि अब साफ हो गया होगा तो व्हीकलचेयर से पंखे के नीचे लाकर रख दिया। ठंडी का महिना था सो धीरज के इस हवा से ठिठुर मरना तय था। पर अब वह नैना पर किए गए अत्यााचारों के पश्चारताप की आग में जल रहा था, इसलिए अब उसे बाहर की ठंडी असर ही नही कर रही थी। अभी वह पूरी तरह सुखा भी नही था कि नैना चाय ले आई और उसके मुंह पर लगा दिया। धीरज ने मुंह मोड़ लिया। नैना ने सवाल किया: ”क्यान हुआ चाय ठंडी है”
धीरज ने हाँ में सर हिलाया। चाय तो गर्म ही थी पर धीरज को तो अपने अत्यावचारों का प्रायश्चित करना था सो उसने हाँ में सर हिला दिया और नैना के हाथ का लहराता हुआ कप सीधा धीरज की आंख पर लगा। गरम चाय से उसका आधा चेहरा झुलस गया था। नैना को दिखाने के लिए उसने दर्द भरी आह भरी लेकिन मन ही मन ही वह खुश हो रहा था कि इसबार नैना ने कुछ हटकर किया। सीधा कप फेंका जबकि उसने तो सिर्फ चाय फेंकी थी। नैना के इस विकास से वह काफी खुश था।
धीरज को अब प्रायश्चित करने का जुनून सा सवार था इसी कारण उसने अपनी सबसे प्याोरी ड्रेस नैना से जलवा दी क्यों कि उसने भी कभी नैना की मनपसंद साड़ी जला दी थी।
धीरज Numerology के अनुसार अपने लिए अंक 2 को लकी और अंक 1 को अनलकी मानता था। इसलिए वह जो भी चीज खरीदता था, दो खरीदता था। घड़ी, मोबाईल, बाईक, कार, सब चीजे उसने दो-दो खरीदी थीं। लेकिन नैना ने उससे बदला लेने के लिए सब एक-एक कर दिए।
धीरज हर रोज नैना से अपने ऊपर कोई न कोई जुल्मक करवा ही लेता था। यही तो उसका प्रायश्चित था पर नैना का फेंका गया चाय का कप उसकी आंखो के अन्ददर कहीं गहरा जख्म बना चुका था जो दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा था। नैना को तो कोई परवाह थी नहीं, पर अब धीरज को भी कोई परवाह नही थी। उसने नैना से कभी इशारे से भी नही कहा कि मेरी आंख में तकलीफ है। हो सकता था कि वह आंख कि तकलीफ कहे और नैना आंख ही फोड़ दे पर धीरज को अगर यह ख्याील आया होता कि नैना को आंख की तकलीफ बताने से वह आंख फोड़ देगी तो धीरज जरूर बताता, आखिर यही तो उसका प्रायश्चित था।
सच मानों तो अब तो प्रायश्चित भी नही था बल्कि बात उससे भी आगे निकल चुकी थी। अब वह नैना को पसन्दभ करने लगा था। शायद ये भी Human Psychology ही है कि जो हमें सबसे ज्याीदा तकलीफ पहुंचाता है, हम पसन्दल भी सबसे ज्याेदा उसी को करने लगते हैं।
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कौन कब किसके दिल का हाल जान पाया है। नैना को भी कहां पता था कि धीरज खुद अपने गुस्से की वजह से परेशान था इसीलिए तो वह Psychology के Doctor का ट्रीटमेंट ले रहा था पर नैना को भी इस बात का पता कहां था पर धीरज की बिगड़ रही आंख उसके सामने थी और सामने था उसका राजदार Doctor पात्रा।
नैना ने निश्चबय किया कि धीरज की आंखो का इलाज भी वह Doctor पात्रा से ही करवाएगी या फिर उसके द्वारा बताए गए किसी Doctor से जो उसका राजदार बन सके। उसने धीरज की आंखो में आंखे डालकर कहा: ”यह है एक बार ऐसे ही तुमने मेरा सर किचन की दिवार पर मारा था।”
धीरज को याद आया वह मन ही मन चौंका और उसने मन में खुद को ही गाली दी: “ओ तेरी कि, वो तो याद ही नही आया, चलो कोई बात नही आज सर फुड़वा लेता हूँ।”
उसने मन के भावों को जाहि‍र नही होने दिया और नैना को डर की Acting करते हुए देखने लगा। नैना ने कहा: “डरो मत मेरा वह बदला पूरा हो चुका है। मुझे तुम पर खाली चाय उंडेलनी थी पर मैंने चीनी मिट्टी का कप भी तुम्हा रे सर पर फेंका था जिससे कि सर पर चोट लगे, पर तुम थोड़ा उछल गए थे और आंखो में चोट लगी।”
अचानक ही नैना चौं‍क पड़ी उसे याद आया: “हाँ! तुम उछले थे, लेकिन तुम्हाखरे गरदन के नीचे का पूरा हिस्साथ तो बेकार है (और जैसे उसके सामने फिल्मय सी चलने लगी…) तुम्हामरा हाथ भी बेकार है, पर तुमने हाथों से अपने चेहरे का बचाव किया था।“
जोर-जोर से चिल्लासते हुए उसने रोशनदान में रखे चीनी मिट्टी के गमले को उठा लिया और तेजी से धीरज की तरफ फेंका। धीरज बिजली की तेजी से Wheelchair से दूर जा खड़ा हुआ। गमला भी Wheelchair से दूर ही गिरा। नैना हक्कीा-बक्कीउ सी धीरज को देख रही थी। धीरज चेहरे पर उदासी लिए फिर रोशन दान की ओर गया, उसने एक गमला उठा कर नैना के हाथ में दिया और खुद Wheelchair पर बैठ गया और नैना से कहा: ”नैना, I Promise, इस बार नही भागूंगा”
धीरज की आंखो में आंसू थे… “और हाँ! मेरी जेब में सुसाइड नोट भी है जिस पर लिखा है कि मैं आत्मनहत्या कर रहा हूँ। तुम्हें कुछ नही होगा। Throw it.”
धीरज का यह रूप देखकर नैना पिछड गई। धीरज ने आगे कहा:
“डॉ. पात्रा ने मुझे उसी दिन ठीक कर दिया था और वो सब कुछ बता भी दिया था जो तुमने उनसे कहा था। सुनकर मैं थोडा हैरान तो हुआ था मगर फिर मैं भी ये जानना चाहता था कि आखिर तुम मुझे अपाहिज बना कर क्योंॉ रखना चाहती थीं। इसलिए तुम्हा री मंशा जानने के लिए ही मैं ठीक होकर भी अपाहिज बना रहा।
चुप रहकर पहली बार तुम्हातरे अन्द्र अपने आप को बोलते हुए देखा और ये जान पाया कि किन-किन बैकार की बातों के लिए मैंने तुम्हें Torture किया। मुझे अपने आप से घृणा होने लगी और इसीलिए तुम्हाबरा मुझ पर किया जाने वाला हर अत्याेचार मुझे मेरे किए गए किसी कृत्यु के प्रायश्चित के समान लगने लगा। “
नैना रहा-सहा बदला और धीरज का बचा-खुचा पश्चाीताप, दोनों आंसू के रूप में बह रहे थे।
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s_bajaj4u
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Re: बदला और पश्चारताप

Post by s_bajaj4u »

bahut hi savedan shil lakin happy ending
Sanjay Bajaj
amitraj39621

Re: बदला और पश्चारताप

Post by amitraj39621 »

☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺
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