प्यासी जिंदगी complete

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rangila
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Re: प्यासी जिंदगी

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vnraj wrote:ऊफफफफ•••••••एक-एक शब्द ऐसा महसूस होता है जैसे कि सबकुछ ठीक सामने हो रहा है
thanks mitr

aise hi sath banaye rakhe
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rangila
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Re: प्यासी जिंदगी

Post by rangila »

बाजी की चूत से बहते गाढ़े और चिकने पानी ने मेरे पूरे लण्ड को तर कर दिया था। बाजी के हिलने से उनकी चूत मेरे लण्ड पर ही फिसल-फिसल जाती थी।
जब आगे फिसलने पर उनकी चूत का दाना मेरे लण्ड की नोक से टच होता.. तो उनके बदन में झुरझुरी सी उठती.. और बाजी लरज़ कर मज़ीद वहशी अंदाज़ में अपने दाँत और नाख़ूनों को मेरे जिस्म में गड़ा देतीं।
हम दोनों बहन-भाई इसी तरह जुनूनी अंदाज़ में एक-दूसरे को नोंचते खसोटते दुनिया-ओ-माफिया से बेखबर अपने जिस्मों को सुकून पहुँचाने की कोशिश कर रहे थे।
मैंने बाजी के सीने के खूबसूरत उभारों पर दाँत गड़ाने के बाद उनकी गर्दन के निचले हिस्से को दाँतों में दबाया तो बाजी ने भी उससे अंदाज़ में फ़ौरन अपना चेहरा मेरी दूसरी साइड पर लाकर मेरे कंधों में दाँत गड़ा दिए।
मैं बाजी की कमर को खरोंचता हुआ अपने हाथ नीचे लाया और अपनी बहन के दोनों कूल्हों को अपने दोनों हाथों से पूरी ताक़त से नोंच कर मुख़्तलिफ़ करने में ऐसे ज़ोर लगाने लगा.. जैसे मैं उनके दोनों कूल्हों को बीच से चीर देना चाहता हूँ।
‘अहह वसीम..’
बाजी ने एक चीखनुमा सिसकी भरी और तड़फ कर ऊपर को उठीं.. बाजी ने अपना ऊपरी जिस्म ऊपर उठा लिया.. लेकिन निचला हिस्सा ना उठा सकीं.. क्योंकि मैंने बहुत मज़बूती से उनके कूल्हों को नोंच कर चीरने के अंदाज में पकड़ रखा था.. जिसकी वजह से उनका निचला दर मेरे जिस्म पर दब कर रह गया था।
मेरे यूँ बाजी के कूल्हों को चीरने से उन्हें जो तक़लीफ़ हो रही थी.. वो उनके चेहरे से दिख रही थी।
बाजी ने अपने कूल्हों को छुड़ाने के लिए तड़फते हुए ऊपर उठने की कोशिश करते हुए.. ज़ोर लगा लगाया और मुस्तक़िल कराहते हुए कहा- आईईईई.. वसीम.. बहुत दर्द हो रहा है प्लीज़..
यह इस पूरे टाइम में पहली बार थी कि बाजी के मुँह से कोई अल्फ़ाज़ निकले हों..
इस बात ने मुझ पर यह भी वज़या कर दिया कि ऐसे कूल्हे चीरे जाने से बाजी को वाकयी ही बहुत शदीद तक़लीफ़ हो रही है।
मैंने अपने हाथों की गिरफ्त मामूली सी लूज की.. तो बाजी का निचला दर ऊपर को उठा और उसके साथ ही उनकी चूत के नीचे दबा मेरा लण्ड भी बाजी की चूत से रगड़ ख़ाता हुआ सीधा हो गया।
मेरे लण्ड की नोक बाजी की चूत के ठीक एंट्रेन्स पर एक पल को रुकी और मैंने अपने हाथों से बाजी के कूल्हों को हल्का सा नीचे की तरफ दबाया और अगले ही लम्हें मेरे लण्ड की नोक बाजी की चूत के अन्दर उतर गई।
जैसे ही मेरे लण्ड की नोक बाजी की चूत के अन्दर घुसी.. तो उससे महसूस करते ही बाजी के मुँह से एक तेज लज़्ज़त भरी ‘आअहह..’ निकली और उन्होंने आँखें बंद करते हुए अपनी गर्दन पीछे को ढलका दी। उसके साथ ही जैसे सुकून सा छा गया.. तूफ़ान जैसे थम सा गया हो.. हर चीज़ कुछ लम्हों के लिए ठहर सी गई।
मैंने आहिस्तगी से अपने हाथ से बाजी के कूल्हों की खूबसूरत गोलाइयों को छोड़ा और हाथ उनके जिस्म से चिपकाए हुए ही धीरे से बाजी की कमर पर ले आया। बाजी ने भी एक बेखुदी के आलम में अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रख दिए।
अब पोजीशन ये थी कि मैं सीधा चित्त कमर ज़मीन पर टिकाए लेटा हुआ था.. मैंने बाजी की कमर को दोनों तरफ से अपने हाथों से थाम रखा था.. मेरी कमर की दोनों तरफ में बाजी के घुटने ज़मीन पर टिके हुए थे और वो मेरे हाथों पर अपने हाथ रखे.. गर्दन पीछे को ढुलकाए हुए.. लंबी-लंबी साँसें ले रही थीं।
चंद लम्हें ऐसे ही बीत गए.. फिर बाजी ने अपनी गर्दन को साइड से घुमाते हुए सीधा किया और आँखें बंद रखते हुए ही धीमी आवाज़ में बोलीं- वसीम मुझे लिटा दो नीचे..
यह कहते ही बाजी अपनी लेफ्ट और मेरी राईट साइड पर थोड़ी सी झुकीं और अपनी कोहनी ज़मीन पर टिका कर सीधी होने लगीं।
बाजी के साइड को झुकते ही मैं भी उनके साथ ही थोड़ा ऊपर हुआ और बाजी की चूत में अपने लण्ड का मामूली सा दबाव कायम रखते हुए ही उनके साथ ही घूमने लगा।
मैंने लण्ड के दबाव का इतना ख़याल रखा था कि लण्ड मज़ीद अन्दर भी ना जा सके और चूत से निकलने भी ना पाए।
थोड़ा टाइम लगा.. लेकिन आहिस्तगी से ही मैं अपना लण्ड बाजी की चूत के अन्दर रखने में ही कामयाब हो गया और हम दोनों मुकम्मल घूम गए।
मैंने इतना ख्याल रख कि लण्ड ज्यादा अन्दर भी ना जाए और चूत से निकले भी नहीं।
अब बाजी अपनी आँखें बंद किए ज़मीन पर कमर के बल सीधी लेटी थीं, उनके घुटने मुड़े हुए थे.. लेकिन पाँव ज़मीन पर ही रखे हुए थे।
मैं अब बाजी के ऊपर आ चुका था और उनकी टाँगों के बीच में लेटा हुआ सा था। मेरी टाँगें पीछे की जानिब सीधी थीं और मेरा पूरा वज़न मेरे हाथों पर था और हाथ बाजी की बगल के पास ज़मीन पर टिके हुए थे।
लेकिन मैं इस पोजीशन में बहुत अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था.. मैं अपने घुटने मोड़ कर आगे लाने की कोशिश करता तो मुझे पता था कि मेरा लण्ड बाजी की चूत से बाहर निकल आएगा और मैं ये नहीं चाहता था, मैंने बाजी को पुकारा- बाजीयईई..
उन्होंने आँखें खोले बगैर ही कहा- हूँम्म..
‘बाजी थोड़ी टाँगें और खोलो और पाँव ज़मीन से उठा लो।’
मैंने ये कहा तो बाजी ने अपने पाँव हवा में उठा लिए और घुटनों को मज़ीद मोड़ते हुए जितनी टाँगें खोल सकती थीं.. खोल दीं।
मैं बारी-बारी से अपने दोनों घुटनों को मोड़ते हुआ आगे लाया और बाजी की रानों के नीचे से गुजार कर आगे कर लिए।
अब मेरे हाथों से वज़न खत्म हो गया था.. मैंने अपने दोनों हाथ उठाए और बाजी के सीने के उभारों पर रख दिए और आहिस्तगी से उन्हें दबाते हुए मसलने लगा।
कुछ देर बाद बाजी ने आँखें खोलीं.. उनकी आँखें लज्जत और शहवात के नशे से बोझिल सी हो रही थीं।
मैंने बाजी की आँखों में देखते-देखते ही अपने लण्ड को थोड़ा आगे की तरफ दबाया.. तो बाजी के मुँह से एक सिसकी निकल गई और उनके चेहरे पर हल्की सी तक़लीफ़ के आसार नज़र आने लगे।
बाजी ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को कार्पेट में गड़ा दिया और पूरी ताक़त से कार्पेट को जकड़ लिया।
मेरी बाजी की तकलीफ़
मैंने आँखों ही आँखों में सवाल किया कि बाजी क्या तुम तैयार हो?
और बाजी की आँखों ने ‘हाँ’ में जवाब दिया।
मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड का दबाव बाजी की चूत पर बढ़ाना शुरू किया.. तो उनके चेहरे पर तक़लीफ़ का तवस्सुर बढ़ने लगा और चेहरे का गुलाबीपन तक़लीफ़ के अहसास से लाली में तब्दील होने लगा।
मैंने दबाव बढ़ाते ही अपने ऊपरी जिस्म को झुकाया और बाजी की आँखों में देखते हुए ही अपने होंठ बाजी के होंठों के क़रीब ले गया।
मेरे लण्ड की नोक पर अब बाजी की चूत के पर्दे की सख्ती.. वज़या महसूस हो रही थी।
बाजी की साँसें भी बहुत तेज हो चुकी थीं और दिल की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी।
बाजी के जिस्म में हल्की सी लरज़ कायम थी।
मैंने अपने हाथ बाजी के सीने के उभारों से उठा लिए और उनके चेहरे को मज़बूती से अपने हाथों में थाम कर बाजी के होंठों को अपने होंठों में सख्ती से जकड़ा और उसी वक़्त अपने लण्ड को ज़रा ताक़त से झटका दिया और मेरा लण्ड बाजी की चूत के पर्दे को फाड़ता हुआ अन्दर दाखिल हो गया।
बाजी के जिस्म ने एक शदीद झटका खाया और बेसाख्ता ही उनके हाथ कार्पेट से उठे और मेरी कमर पर आए और बाजी ने अपने नाख़ून मेरी कमर में गड़ा दिए।
बाजी तक़लीफ़ को बर्दाश्त करने और अपनी चीख को रोकने में तो कामयाब हो गई थीं.. लेकिन तकलीफ़ की शिद्दत का अहसास उनके चेहरे से साफ ज़ाहिर था।
उन्होंने अपनी आँखों को सख्ती से भींच रखा था, इसके बावजूद उनके गाल आंसुओं से तर हो गए थे।
मैंने बाजी के होंठों से अपने होंठ उठा लिए और अपने जिस्म को सख्त रखते हुए बाजी के चेहरे पर ही नजरें जमाई रखीं।
मेरा लण्ड तकरीबन 4 इंच से थोड़ा ज्यादा ही बाजी की चूत में उतर चुका था लेकिन अभी क़रीब 2 इंच बाक़ी था।
मैं थोड़ी देर बाजी के चेहरे का जायज़ा लेता रहा और जब उनका चेहरा और आँखों का भींचना थोड़ा रिलैक्स हुआ.. तो मैंने एक झटका और मार कर अपना लण्ड बाजी की चूत में जड़ तक उतार दिया।
मेरे पहले झटके के लिए तो बाजी जहनी तौर पर तैयार थीं.. उन्होंने पर्दे के फटने की शदीद तक़लीफ़ को ज़रा मुश्किल से लेकिन सहन कर ही लिया था.. लेकिन मेरा ये झटका उनके लिए अचानक था..
इस झटके की तक़लीफ़ से बेसाख्ता उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया और मैंने अपना चेहरा उनसे बचाते हुए फ़ौरन ही साइड पर कर लिया।
बाजी के मुँह से घुटी-घुटी आवाज़ निकली ‘आआअ क्ककखह..’
उनका मुँह मेरे कंधे से टकराया और उन्होंने अपने दाँत मेरे कंधे में गड़ा दिए।
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Re: प्यासी जिंदगी

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बाजी को तो जो तक़लीफ़ हो रही थी.. वो तो थी ही.. लेकिन उनके दाँत मेरे कंधे में गड़े थे और नाख़ून कमर में घुस से गए थे.. जिससे मुझे भी अज़ीयत तो बहुत हो रही थी.. लेकिन उस तक़लीफ़ पर लज़्ज़त का अहसास बहुत भारी था।
वो लज़्ज़त एक अजीब ही लज़्ज़त थी जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है.. ब्यान नहीं किया जा सकता।
बाजी की चूत अन्दर से इतनी गर्म हो रही थी कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने किसी तंदूर में अपना लण्ड डाला हुआ हो।
उनकी चूत ने मेरे लण्ड को हर तरफ से बहुत मज़बूती से जकड़ रखा था।
चंद लम्हें मज़ीद इसी तरह गुज़र गए.. अब बाजी के दाँतों की गिरफ्त और नाख़ुनों की जकड़न.. दोनों ही ढीली पड़ गई थीं।
मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड को क़रीब दो इंच पीछे की तरफ खींचा और इतनी ही आहिस्तगी से फिर अन्दर को ढकेल दिया।

मेरी बाजी के मुँह से हल्की सी ‘आह..’ खारिज हुई.. लेकिन इस ‘आह..’ में तक़लीफ़ का तवस्सुर नहीं.. बल्कि मजे का अहसास था।
उन्होंने आहिस्तगी से अपना सिर वापस ज़मीन पर टिका दिया.. उनकी आँखें अभी भी बंद थीं।
मैंने अबकी बार फिर उसी तरह आहिस्तगी और नर्मी से लण्ड को क़रीब 3 इंच तक बाहर खींचा और फिर दोबारा अन्दर धकेल दिया.. और लगातार यही अमल करना जारी रखा.. लेकिन अपनी स्पीड को बढ़ने ना दिया।
मेरा लण्ड जब बाहर निकालता तो बाजी अपने जिस्म को ज़रा ढील देतीं और जब मैं वापस लण्ड अन्दर पेलता तो उनके जिस्म में मामूली सा तनाव पैदा होता, बाजी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती.. उनका मुँह थोड़ा सा खुलता और एक लज्जत भरी नरम सी ‘आह..’ खारिज करते हुए वो मेरी कमर को सहला देतीं।
मैं हर बार इसी तरह नर्मी से लण्ड बाजी की चूत में अन्दर-बाहर करता और हर बार बाजी लज़्ज़त भरी ‘आह..’ खारिज करतीं।
मैंने 12-13 बार लण्ड अन्दर-बाहर किया और फिर पूरा लण्ड अन्दर जड़ तक उतार कर रुक गया और अपने चेहरे पर शरारती सी मुस्कान सजाए.. नजरें बाजी के चेहरे पर जमा दीं।
बाजी कुछ देर तक इसी रिदम में लण्ड अन्दर-बाहर होने का इन्तजार करती रहीं और कोई हरकत ना होने पर उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं।
बाजी की पहली नज़र ही मेरे शरारती चेहरे पर पड़ी और सिचुयेशन की नज़ाकत का अंदाज़ा होते ही बेसाख्ता उनके चेहरा हया की लाली से सुर्ख पड़ गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी नज़रें मेरी नजरों से हटा लीं और चेहरा दूसरी तरफ करके दोबारा आँखें बंद कर लीं।
बाजी की इस अदा को देख कर मैं शरारत से बा-आवाज़ हंस दिया.. तो बाजी ने आँखें खोले बिना ही मासनोई गुस्से और शर्म से पूर लहजे में कहा- क्या है कमीने.. अपना काम करो ना.. मेरी तरफ क्या देख रहे हो।
मैं बाजी की बात सुन कर एक बार फिर हँसा और कहा- अच्छा मेरी तरफ देखो तो सही ना.. अब क्यों शर्मा रही हो.. अब तो..
मैंने अपना जुमला अधूरा ही छोड़ दिया..
बाजी की हालत में कोई तब्दीली नहीं हुई।
मैंने कुछ देर इन्तजार किया और फिर शरारत और संजीदगी के बीच के लहजे में कहा- क्या हुआ बाजी.. अगर अच्छा नहीं लग रहा.. तो निकाल लूँ बाहर?
बाजी ने अपनी टाँगों को मज़ीद ऊपर उठाया और मेरे कूल्हों से थोड़ा ऊपर कमर पर अपने पाँव क्रॉस करके मेरी कमर को जकड़ लिया और अपने दोनों बाजुओं को मेरी गर्दन में डाल कर मुझे नीचे अपने चेहरे की तरफ खींचा और अपना चेहरा मेरी तरफ घुमाते हुए बोलीं- अब निकाल कर तो देखो ज़रा.. मैं तुम्हारी बोटी-बोटी नहीं नोंच लूँगी।
अपनी बात कहते ही बाजी ने मेरे होंठों को अपने होंठों में ले लिया और मेरा निचला होंठ चूसने लगीं।
मेरी बर्दाश्त भी अब जवाब देती जा रही थी। बाजी ने होंठ चूसना शुरू किए.. तो मैंने अपने हाथों से उनके चेहरे को नर्मी से थामा और आहिस्ता आहिस्ता अपना लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।
यह मेरी ज़िंदगी में पहला मौका था कि मैं किसी चूत की नर्मी व गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस कर रहा था.. अजीब सी लज़्ज़त थी.. अजीब सा सुरूर था..
पता नहीं हर चूत में ही ये सुरूर… ये लज़्ज़त छुपी होती है या इसका सुरूर इसलिए बहुत ज्यादा था कि ये कोई आम चूत नहीं.. बल्कि मेरी सग़ी बहन की चूत थी.. और बहन भी ऐसी कि जो इंतहाई हसीन थी, जिसे देख कर लड़कियाँ भी रश्क से ‘वाह..’ कह उठें।
अब बाजी की तक़लीफ़ तकरीबन ना होने के बराबर रह गई थी और वो मुकम्मल तौर पर इस लज़्ज़त में डूबी चुकी थीं। हर झटके पर बाजी के मुँह से खारिज होती लज़्ज़त भरी सिसकी.. इसका सबूत था।
मैंने अपनी स्पीड को थोड़ा सा बढ़ाया.. जिससे मेरा मज़ा तो डबल हुआ ही.. लेकिन बाजी भी माशूर हो उठीं, उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं और खामोशी और नशे से भरी नजरों से मेरी आँखों में देखते हुए अपने हाथ से मेरा सीधा हाथ पकड़ा.. जो कि उनके गाल पर रखा हुआ था।
अपने उस हाथ को उठा कर अपने सीने के उभार पर रखते हुए बोलीं- आह.. वसीम.. इन्हें भी दबाओ न.. लेकिन नर्मी से..
मैंने लण्ड को उनकी चूत में अन्दर-बाहर करना जारी रखा और बाजी की आँखों में देखते हुए ही मुस्कुरा कर अपने हाथ से बाजी के निप्पल को चुटकी में पकड़ते हुए कहा- बाजी मज़ा आ रहा है.. अब तक़लीफ़ तो नहीं हो रही ना..
बाजी ने भी मुस्कुरा कर कहा- बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा है वसीम.. मेरा दिल चाह रहा है.. वक़्त बस यहाँ ही थम जाए और तुम हमेशा इसी तरह अपना लण्ड मेरी चूत में ऐसे ही अन्दर-बाहर करते रहो!
मैंने कहा- फ़िक्र ना करो बाजी.. मैं हूँ ना अपनी बहना के लिए.. जब भी कहोगी.. मैं हमेशा तुम्हारे लिए हाज़िर रहूँगा।
‘वसीम मैंने कभी सोचा भी नहीं था.. कि मेरा कुंवारापन खत्म करने वाला लण्ड.. मेरी चूत की सैर करने वाला पहला हथियार मेरे भाई.. मेरे अपने सगे भाई का होगा..’
बाजी ने यह बात कही लेकिन उनके लहजे में कोई पछतावा या शर्मिंदगी बिल्कुल नहीं थी।
मैंने बाजी की बात सुन कर कहा- बाजी, मेरी तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश ही यह थी.. कि मेरा लण्ड जिस चूत में पहली दफ़ा जाए वो मेरी अपनी सग़ी बहन की चूत हो.. मेरी प्यारी सी बाजी की चूत हो..
मेरे अपने मुँह से ये अल्फ़ाज़ अदा हुए तो मुझ पर इसका असर भी बड़ा शदीद ही हुआ और मैंने जैसे अपना होश खोकर बहुत तेज-तेज झटके मारना शुरू कर दिए।
मेरे इन तेज झटकों की वजह से बाजी के मुँह से ज़रा तेज सिसकारियाँ निकलीं और वो अपने जिस्म को ज़रा अकड़ा कर घुटी-घुटी आवाज़ में बोलीं- आह नहीं वसीम.. प्लीज़ आहहीस.. आहिस्ता.. अफ दर्द होता है.. आह.. आहिस्ता करो प्लीज़..
मैंने तेज-तेज 6-7 झटके ही मारे थे कि बाजी की आवाज़ जैसे मुझे हवस में वापस ले आईं और मैं एकदम ठहर सा गया.. मेरा सांस बहुत तेज चलने लगी थी।
मैं रुका तो बाजी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ा और मेरे सिर के पीछे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपने सीने के उभारों पर दबा कर कहा- वसीम इन्हें चूसो.. इससे तक़लीफ़ का अहसास कम होता है।
मैंने बाजी के एक उभार का निप्पल अपने मुँह में लिया और बेसाख्ता ही फिर से मेरे झटके शुरू हो गए और उस वक़्त मुझे ये पता चला कि जब आपका लण्ड किसी गरम चूत में हो तो कंट्रोल अपने हाथ में रखना तकरीबन नामुमकिन हो जाता है।
मुझे महसूस होने लगा कि मैं अब ज्यादा देर तक जमा नहीं रह पाऊँगा.. मेरे झटकों की रफ़्तार खुद बा खुद ही मज़ीद तेज होने लगी। अब बाजी भी मेरे झटकों को फुल एंजाय कर रही थीं.. शायद उनकी मामूली तक़लीफ़ पर चूत का मज़ा और निप्पल चूसे जाने का मज़ा ग़ालिब आ गया था।
या शायद वो मेरे मज़े के लिए अपनी तक़लीफ़ को बर्दाश्त कर रही थीं.. इसलिए वो अब मुझे तेज झटकों से मना भी नहीं कर रही थीं।
लेकिन अब बाजी ने मेरे झटकों के साथ-साथ अपने कूल्हों को भी हरकत देना शुरू कर दिया था। जब मेरा लण्ड जड़ तक बाजी की चूत में दाखिल होता.. तो सामने से बाजी भी अपनी चूत को मेरी तरफ दबातीं और मेरी कमर पर अपने पाँव की गिरफ्त को भी एक झटके से मज़बूत करके फिर लूज कर देतीं और उनके मुँह से ‘आह..’ निकल जाती।
डिस्चार्ज होने का वक्त
मैं अब अपनी मंज़िल के बहुत क़रीब पहुँच चुका था, लम्हा बा लम्हा मेरे झटकों में बहुत तेजी आती जा रही थी लेकिन मैं अपनी बहन से पहले डिसचार्ज होना नहीं चाहता था.. मैंने बहुत ज्यादा मुश्किल से अपने जेहन को कंट्रोल करने की कोशिश की और बस एक सेकेंड के लिए मेरा जेहन मेरे कंट्रोल में आया और मैंने यकायक अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।
बाजी ने फ़ौरन झुंझला कर ज़रा तेज आवाज़ में कहा- रुक क्यों गए हो.. प्लीज़ वसीम अन्दर डालो ना वापस.. मैं झड़ने वाली हूँ.. डालोऊऊ नाआअ..
बाजी की बात सुनते ही मैंने दोबारा लण्ड अन्दर डाला और मेरे तीसरे झटके पर ही बाजी का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ और मुझे साफ महसूस हुआ कि बाजी की चूत ने अन्दर से मेरे लण्ड पर अपनी गिरफ्त मज़ीद मज़बूत कर ली है.. जैसे चूत को डर हो कि कहीं लण्ड दोबारा भाग ना जाए।
अभी मेरे मज़ीद 6-7 झटके ही हुए थे कि बाजी का जिस्म पूरा अकड़ गया और उन्होंने मेरे सिर को अपनी पूरी ताक़त से अपने उभार पर दबा दिया और अब मुझे बहुत वज़या महसूस होने लगा कि बाजी की चूत मेरे लण्ड को भींच रही है और फिर छोड़ रही है..
और उस वक़्त ही मुझे पहली बार ये बात मालूम हुई कि जब लड़की डिस्चार्ज होती है.. तो उसकी चूत लण्ड को इस तरह भींचती है.. कि कभी सिकुड़ती है.. तो कभी लूज होती है।
बाजी ‘आहें..’ भरते हुए डिस्चार्ज हो गईं लेकिन मैंने अपने झटकों पर कोई फ़र्क़ नहीं आने दिया और अगले चंद ही झटकों में मेरा जिस्म भी शदीद तनाव में आया.. मेरा लण्ड इतना सख्त हो गया था कि जैसे लोहा हो।
फिर जैसे मेरे पूरे बदन से लहरें सी उठ कर लण्ड में जमा होना शुरू हुईं और मेरे मुँह से एक तेज ‘आहह..’ के साथ सिर्फ़ एक जुमला निकला- अहह.. ऊऊऊऊ.. मैं गया.. बाजी.. में मैं गया.. आआअ..
इसके साथ ही मेरा लण्ड फट पड़ा और झटकों-झटकों के साथ पानी की फुहार बाजी की चूत के अन्दर ही बरसाने लगा।
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Re: प्यासी जिंदगी

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मेरा जिस्म ढीला पड़ गया और मैं बाजी के सीने के दोनों उभारों के बीच अपना चेहरा रखे.. आँखें बंद किए तेज-तेज साँसें लेकर अपने हवास को बहाल करने लगा।
मुझे ऐसा ही महसूस हो रहा था.. कि जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं रही है और मैं कभी उठ नहीं पाऊँगा।
मुझे अपने अन्दर इतनी ताक़त भी नहीं महसूस हो रही थी कि अपनी आँखें खोल सकूँ। मेरे जेहन में भी बस एक काला अंधेरा सा परदा छा गया था।
जब मेरे होशो-हवास बहाल हुए और मैं कुछ महसूस करने के क़ाबिल हुआ.. तो मुझे अपनी हालत का अंदाज़ा हुआ। मेरा लण्ड अभी भी बाजी की चूत के अन्दर ही था और पूरा बैठा तो नहीं लेकिन अब ढीला सा पड़ गया था।
मेरे हाथ ढीले-ढाले से अंदाज़ में बाजी के जिस्म के दोनों तरफ कार्पेट पर मुड़ी-तुड़ी हालत में पड़े थे.. मेरा बायाँ गाल बाजी के सीने के दोनों उभारों के बीच में था।
बाजी ने अपनी टाँगों को अभी भी उसी तरह मेरी कमर पर क्रॉस कर रखा था.. लेकिन उनकी गिरफ्त अब ढीली थी। बाजी ने एक हाथ से मेरे गाल को अपनी हथेली में भर रखा था और दूसरा हाथ मेरे बालों में फेरते सिर सहला रही थीं।
मैंने अपनी आँखें खोलीं और काफ़ी ताक़त इकट्ठा करके अपना सिर उठाया।
मैंने बाजी के चेहरे को देखा.. उनके चेहरे पर मेरे लिए गहरे सुकून और शदीद मुहब्बत के आसार थे।
बाजी ने फ़िक्र मंदी से कहा- वसीम क्या हालत हो जाती है तुम्हारी.. बिल्कुल ही बेजान हो जाते हो।
‘कुछ नहीं बाजी बस पहली बार है.. तो ऐसा तो होता ही है..’
‘नहीं वसीम.. तुम्हारी हालत हमेशा ही ऐसी हो जाती है..’
‘बाजी आपके साथ जब से तब ऐसी हालत हो रही है ना.. क्योंकि जो-जो कुछ आपके साथ किया है मैंने.. वो सब पहली-पहली बार ही किया है ना।’
‘अच्छा बहस को छोड़ो.. अब उठो काफ़ी देर हो गई है.. कुछ ही देर में सब उठ जाएंगे।’
बाजी ने ये कहा और मेरे कंधों पर हाथ रख कर उठने लगीं।
मैं सीधा हुआ तो मेरा लण्ड हल्की सी ‘पुचह..’ की आवाज़ से बाजी की चूत से बाहर निकल आया.. मेरा लण्ड बाजी के खून और अपनी औरत की जवानी के रस से सफ़ेद हो रहा था।
मैंने एक नज़र बाजी की चूत पर डाली तो वहाँ भी मुझे कुछ ऐसा ही मंज़र नज़र आया।
अनजानी सी लज़्ज़त और जीत की खुशी मैंने अपने चेहरे पर लिए हुए बाजी से कहा- बाजी उठ कर ज़रा अपना हाल देखो!
बाजी उठ कर बैठीं.. एक नज़र मेरे लण्ड पर डाली और फिर अपनी टाँगों को मज़ीद खोल कर अपनी चूत को देखने लगीं।
फिर वे बोलीं- कितने ज़ालिम भाई हो तुम.. कितना सारा खून निकाल दिया अपनी बहन का!
मैंने हँस कर जवाब दिया- फ़िक्र ना करो मेरी प्यारी बहना जी.. अगली बार खून नहीं निकलेगा.. बस वो ही निकलेगा जिससे तुम्हें मज़ा आता है.. वैसे बाजी मुझसे ज्यादा मज़ा तो तुमको आया है.. मैंने एक मिनट के लिए बाहर किया निकाला था.. कैसी आग लग गई थी ना?
फिर मैंने बाजी की नक़ल उतारते हुए चेहरा बिगड़ा-बिगड़ा कर कहा- हायईईई.. वसीम.. निकाल क्यों लिया.. अन्दर डालो नाआअ वापस..
बाजी एकदम से शर्म से लाल होती हुई चिड़ कर बोलीं- बकवास मत करो.. उस वक़्त मुझसे बिल्कुल कंट्रोल नहीं हो रहा था अच्छा..
बाजी ने बात खत्म की तो मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि बाजी ने एकदम शदीद परेशानी से मेरे कंधे की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा- ये क्या हुआ है वसीम?
मैंने अपने कंधे को देखा तो वहाँ से गोश्त जैसे उखड़ सा गया था जिसमें से खून रिस रहा था।
मैंने बाजी की तरफ देखे बगैर अपनी कमर को घुमा कर बाजी के सामने किया और कहा- जी ये आपके दाँतों से हुआ था और ज़रा कमर भी देखो.. यहाँ आपके नाखूनों ने कोई गुल खिलाया हुआ है।
‘या मेरे खुदा.. आह.. वसीम..’
बाजी ने बहुत ज्यादा फ़िक्रमंदी से ये अल्फ़ाज़ कहे.. तो मैं उनकी तरफ से परेशान हो गया और पलट कर उनकी तरफ देखा.. तो बाजी अपने मुँह पर हाथ रखे एकटक मेरे जख्मों को देख रही थीं।
उनके चेहरे पर शदीद परेशानी के आसार थे और फटी-फटी आँखों में आँसू आ गए थे।
मैंने बाजी की हालत देखी तो फ़ौरन उनको अपने गले लगाने के लिए आगे बढ़ते हुए कहा- अरे कुछ नहीं है बाजी.. छोटे-मोटे ज़ख़्म हैं.. परेशानी की क्या बात इसमें?
मैंने अपनी बात खत्म करके बाजी को अपनी बाँहों में लेना चाहा.. तो उन्होंने मेरे सीने पर हाथ रख कर पीछे ढकेल दिया और रोते हुए कहा- ये.. ये मैंने क्या है.. वसीम.. कितना दर्द हो रहा होगा ना तुम्हें?
मैंने अब ज़बरदस्ती बाजी को अपनी बाँहों में भरा.. उनकी कमर को सहलाते और उनके चेहरे को अपने सीने में दबाते हुए कहा- नहीं ना बाजी.. कुछ भी नहीं हो रहा.. क्यों परेशान होती हो.. छोटे से ज़ख़्म हैं.. और सच्ची बात कहूँ.. तो इस छोटी सी तक़लीफ़ में भी बहुत ज्यादा लज्जत है.. और ये ज़ख़्म मुझे इसलिए आए हैं कि मेरी बहन अपनी तक़लीफ़ बर्दाश्त कर रही थी.. जो मैंने दी थी.. तो मुझे तो ये जख्म बहुत अज़ीज़ हैं.. प्लीज़ आप परेशान ना हों।
मैं इसी तरह कुछ देर बाजी की कमर को सहलाता और तस्सली देता रहा.. तो उनका मूड भी बदल गया और वो रिलैक्स फील करने लगीं।
मैंने हँस कर कहा- चलो बाजी अब अम्मी वगैरह भी उठने वाले होंगे.. जाओ आप अपने ज़ख़्म और खून साफ करो और मैं अपना कर लेता हूँ।
बाजी ने भी हँस कर मुझे देखा और मेरे होंठों पर एक किस करके खड़ी हो गईं।
मैं भी उनके साथ खड़ा हुआ.. तो बाजी दरवाज़े की तरफ बढ़ते हो बोलीं- वसीम, इन जख्मों पर एंटीसेप्टिक ज़रूर लगा लेना.. अम्मी उठने वाली होंगी.. वरना मैं ये लगा कर जाती।
मैंने कहा- अरे जाओ ना बाबा.. परेशान क्यों होती हो.. कुछ भी नहीं हुआ है मुझे.. बेफ़िक्र रहो और अपने कपड़े बाहर से उठा लो और पहन कर ही नीचे जाना।
बाजी ने कहा- हाँ अब तो पहन कर ही जाऊँगी.. कोई ऐसे नंगी ही तो नहीं जाऊँगी ना?
बाजी ये कह कर बाहर निकल गईं..
मैंने एक नज़र कार्पेट को देखा, गहरे रंग का होने की वजह से बहुत गौर से देखने पर मुझे वहाँ खून के चंद धब्बे नज़र आए। मैंने किसी कपड़े की तलाश में आस-पास नज़र दौड़ाई तो कोई कपड़ा ऐसा ना नज़र आया कि जिससे मैं ये साफ कर सकूँ।
मैं बाहर निकला.. तो बाजी अपनी सलवार पहन चुकी थीं और अब क़मीज़ पहन रही थीं।
मैंने बाजी को देख कर कहा- बाजी वो कार्पेट पर खून के धब्बे हैं यार वो..
मैंने अभी इतना ही कहा था तो बाजी मेरी बात काट कर बोलीं- हाँ वो मैं पहले ही देख चुकी हूँ.. तुम जाओ अपने कमरे में.. वो मैं साफ कर दूँगी।
मैंने बाजी की बात सुन कर सोचा यार बहन हो तो ऐसी कि हर बात का ख़याल रहता है बाजी को..
मैंने कहा- चलो ठीक है बाजी.. मैं जाता हूँ.. ज़रा फ्रेश हो लूँ।
ये कह कर मैं अपने दरवाज़े पर पहुँचा तो बाजी ने आवाज़ दी- वसीम बात सुनो।
मैं रुक कर बाजी की तरफ घूमा.. तो वो अपने कपड़े पहन चुकी थीं।
बाजी मेरे पास आईं और मेरे कंधे के ज़ख़्म पर फिर से हाथ फेरा और फिर मेरे होंठों को चूम कर शरारत से कहा- वसीम याद है.. जब तुमने मेरी टाँगों के बीच में थप्पड़ मार कर बदला लिया था.. जब मुझे मेनसिस चल रहे थे और पैड होने की वजह से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा था तुम्हारे थप्पड़ का याद है वो दिन?
मैंने कुछ ना समझ आने वाले लहजे में जवाब दिया- हाँ याद है मुझे.. क्यों वो बात क्यों याद करवा रही हो?
बाजी ने अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा कर काटा और बोलीं- उस दिन मैंने तुमसे कहा था कि मैंने भी तुमसे एक बात का बदला लेना है.. मैं सही टाइम पर ही बदला लूँगी.. अभी नहीं.. देखो शायद वो टाइम आ जाए और हो सकता है कि ऐसा टाइम कभी ना आए.. याद है मेरा ये जुमला..??
मैंने कहा- हाँ याद है मुझे.. कि आपने ऐसा कहा था।
बाजी ने शरारत से भरी एक गहरी नज़र मेरे चेहरे पर डाली और कहा- जब मैंने तुम्हारी टाँगों के बीच में मारा था ना.. तो उस वक़्त तुमने गुस्से में मुझे गाली दी थी.. तुमने थप्पड़ खाते ही चिल्ला कर कहा था ‘बहन चोद बाजीयईईई..’ बस मुझे उस गाली का बदला लेना रहता था। और वो बदला में अब लूँगी क्यों कि अब टाइम आ गया।
फिर बाजी हँसते हुए बोलीं- मैं नहीं तुम खुद हो बहन चोद.. समझे?
यह बोल कर बाजी सीढ़ियों की तरफ चल दीं और मैं वहीं दरवाज़े पर खड़ा बेचारा सा मुँह लेकर अपना कान खुजाने लगा।
बाजी सीढ़ियों से नीचे उतर गईं और मैं बाजी की बात को सोचता हुआ अपने कमरे की तरफ चल पड़ा।
कमरे में जाते ही मैंने अपना लण्ड साफ किया और बहुत थका हुआ होने की वजह से लेटते ही सो गया।
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rangila
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Re: प्यासी जिंदगी

Post by rangila »

सुबह आँख काफ़ी लेट खुली तो देखा तो टाइम साढ़े ग्यारह का हो रहा था, मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी इसलिए थोड़ी देर रुक कर मैं उठा और नहा कर फ्रेश हुआ।
ज़ुबैर मेरे उठने से पहले ही स्कूल जा चुका था.. मैं कपड़े पहन कर नीचे गया तो अम्मी ने नाश्ता दिया.. मैंने नाश्ता करते हुए अम्मी से पूछा- बाजी कहाँ हैं?
तो अम्मी ने बताया कि वो यूनिवर्सिटी गई हुई हैं।
कॉलेज तो मैं जा नहीं सका.. तो नाश्ता करने के बाद मैंने सोचा कि दुकान पर ही चला जाता हूँ.. शाम तक दुकान का काम देख लूँगा.. यह सोचते हुए मैंने अम्मी को बताया कि मैं दुकान पर जा रहा हूँ.. और घर से निकल गया।
दुकान पर पहुँच कर दुकान के काम में लग गया.. पर बाजी के साथ जो रात को सेक्स किया और जिस तरह बाजी को प्यार किया.. वो मेरे जेहन में सारा दिन एक वीडियो की तरह चलता रहा।
दुकान का काम निपटाते हुए मुझे काफी टाइम हो गया.. करीब साढ़े सात हो रहे थे, मैंने मुलाज़िमात को कहा- दुकान टाइम से बंद करके जाएं.. मैं घर जा रहा हूँ।
मैं खुद वहाँ से निकल आया।
रास्ते में मुझे याद आया कि मैंने तो अपने लण्ड का पानी बाजी की चूत में ही निकाल दिया था.. तो कहीं बाजी उससे प्रेगनेंट ना हो जाएं.. इसलिए बेहतर है कि मैं आई-पिल ले चलूँ।
मैंने मेडिकल स्टोर पर रुक कर उससे टेब्लेट्स लीं.. और साथ अपनी टाइमिंग बढ़ाने वाली कुछ टेब्लेट्स भी ले लीं।
दोनो किस्म की टेब्लेट्स ले कर मैं वहाँ से घर की तरफ निकला और वहाँ से सीधा घर आ गया।
बाजी को बच्चा ना होने की दवाई दी
घर आकर मैं बाजी को ढूँढने लगा, बाजी बावर्चीखाने में काम कर रही थीं।
मैं बाजी के पास गया.. पर मेरे कुछ बोलने से पहले ही बाजी ने धीमी सी आवाज़ में मुझसे कहा- तुम ऊपर चलो.. मैं ऊपर ही आती हूँ.. यहाँ कोई बात नहीं..
मैं बाजी की बात सुन कर उनको ‘ओके’ बोल कर वहाँ से चला गया।
मैंने अपने कमरे में जाकर में फौरन कपड़े उतारे और वॉशरूम में घुस गया। कुछ लम्हे बाद मैं फ्रेश होकर बिस्तर पर लेट गया और बाजी का इन्तजार करने लगा।
करीब दस मिनट बाद बाजी कमरे में आईं तो मैं खुशी से बाजी की तरफ बढ़ा और उनको गले से लगा लिया। मैंने उनके होंठों पर एक किस की.. तो बाजी ने भी किस शुरु कर दी।
कुछ चुम्मियों के बाद उन्होंने रुक कर कहा- वसीम, मैं आज नहीं आ पाऊँगी।
मैंने बाजी की गिरफ्त ढीली करते हुए कहा- क्यों बाजी.. क्या हुआ है.. आप नाराज़ हो क्या?
बाजी ने मेरे बालों में हाथ फेरते हुए कहा- भला अब मैं अपने भाई से कैसे नाराज़ हो सकती हूँ।
मैंने पूछा- फिर आप क्यों नहीं आओगी?
तो बाजी ने बताया कि गाँव वाली खाला बस अभी हमारे घर पहुँचती ही होंगी.. और वो रात को भी यहाँ ही रहेंगी।
यह सुन कर मैं पीछे होने लगा..
तो बाजी ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और कहा- वसीम मेरे राजा.. क्यों नाराज़ होते हो.. आज नहीं तो कल सही.. कल वो लोग चले जाएंगे और एक मज़े की खबर ये है कि अम्मी.. ज़ुबैर और हनी भी उनके साथ जाएंगे.. वो लोग मुझे साथ चलने का कह रहे थे.. पर मैंने मना कर दिया है.. मैं तो अपने भाई को छोड़ कर कैसे जाऊँ.. उसे प्यार कौन करेगा। और वो लोग वहाँ 4 से 5 दिन तक रहेंगे.. शायद खाला का कोई जानने वाला बीमार है.. इस वजह ज़ुबैर और हनी को खाला के बच्चों के पास छोड़ कर उनकी तबीयत का पता करने उनके घर जाएंगे।
मैंने बाजी की बात सुन कर बाजी से कहा- फिर कल सारी रात आपको मेरे साथ रहना पड़ेगा.. क्योंकि पापा तो जल्द ही सो जाते हैं.. और वो सुबह ही उठेंगे।
बाजी ने कहा- मेरा सोहना भाई.. क्या मेरे भाई का बहुत दिल करता है मुझे चोदने को.. जो सारी रात रहने का प्रोग्राम बना रहा है।
मैंने बाजी से कहा- मेरा बस चले तो मैं आपको अपनी बीवी बना कर रखूँ.. हर रात को आपके साथ सेक्स किया करूँ और आपको सारी रात प्यार करता रहूँ।
बाजी ने मुझे बांहों में भर कर कहा- अच्छा मेरे राजा.. कल सारी रात तुम्हारे साथ रहूँगी.. अपने सोहने भाई के साथ.. तुम जितना मर्ज़ी चाहो.. सेक्स कर लेना और मेरे साथ जितना मर्ज़ी प्यार करना.. पर अभी मुझे जाने दो.. खाने का इंतज़ाम करना है.. खाला भी आती होंगी।
मुझे होंठों पर बाजी ने किस की और ज़ोर से अपनी चूत को मेरे लण्ड के साथ लगा दी। मैं भी पूरे जोश से उनको चुम्मी करने लगा।
बाजी मेरे होंठ ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगीं और मेरी कमर पर ज़ोर-ज़ोर से हाथ चलाने लगीं।
क्योंकि मैंने पूरे ज़ोर से अपना लण्ड बाजी की चूत से लगाया हुआ था और हल्का-हल्का रगड़ रहा था.. तो बाजी भी पूरे जोश से मुझे रिस्पॉन्स दे रही थीं।
कुछ मिनट इसी तरह किस करने के बाद बाजी ने कहा- वसीम अब मैं चलती हूँ.. बहुत टाइम हो गया है।
मेरी गिरफ्त से निकल कर बाजी जाने लगीं.. तो मैंने भी गिरफ्त ढीली कर दी और बाजी को छोड़ दिया।
बाजी दरवाज़े की तरफ जाने लगीं तो अचानक मुझे याद आया कि बाजी को वो दवा दे दूँ।
मैंने बाजी को आवाज़ दी- बाजी एक मिनट रूको..!
दरवाज़े पर ही बाजी रुक गईं और उन्होंने मुड़ कर मेरी तरफ देखा.. तो मैंने कहा- एक मिनट रूको..
मैं जो टेबलेट ले कर आया था.. वो दराज से निकाल कर बाजी को दे दी।
बाजी ने पूछा- यह क्या है वसीम?
तो मैंने कहा- कल रात को मैंने अपना पानी आपकी चूत में ही निकाल दिया था। ये प्रेगनेंसी रिमूवल टेब्लेट्स हैं.. आप आज याद से एक टेबलेट ले लेना ताकि आप प्रेगनेंट ना हों।
बाजी ने कहा- थैंक्स वसीम.. मैं तो भूल ही गई थी। तुमने इतनी खुशी दी है मुझे मेरे राजा कि बता नहीं सकती।
तभी मैंने आगे बढ़ कर बाजी के माथे पर चुम्मी की और कहा- बाजी आई लव यू.. आप तो मेरी जान हो.. फिर अपनी जान का ध्यान तो रखना है ना।
बाजी ने कहा- आई लव यू टू वसीम..
और वो मुझे आँख मार कर नीचे जाने लगीं।
मैंने उन्हें फिर पुकारा- बाजी..
‘अब क्या है?’
‘बाजी कल रात हम दोनों के लिए ख़ास होने वाली हो सकती है क्या?’
‘कैसी ख़ास?’
‘क्या आप कल मेरे लिए दुल्हन का लिबास पहन सकती हो?’
बाजी ने मेरी सोच को समझते हुए कहा- मेरे राजा मैं तो तुम्हारी हूँ इसलिए जो कहोगे वैसा करूँगी.. तैयार भी हो जाऊँगी और तुम्हारी मर्जी के कपड़े भी अच्छे से पहन लूँगी.. और कुछ?
तो मैंने बाजी से कहा- बस मेरी जान आप इतना कर दो.. बाकी काम मैं करने जा रहा हूँ।
मैंने बाजी को सीधा करके उनके होंठों पर किस की और कहा- मैं आधे घन्टे में आ जाऊँगा.. आप भी तब तक तैयार हो जाना।
बाजी ने कहा- ठीक है.. हो जाऊँगी।
अगले दिन शाम को दूकान से निकल कर सीधा फूलों वाली दुकान पर पहुँच गया और वहाँ से फूलों की पत्तियां लीं और बाजी के लिए मैंने ‘रेड रोज़’ लिया और वहाँ से सीधा में ज्वेलरी की शॉप पर गया और वहाँ से बाजी के लिए मैंने इयर-रिंग्स लिए और साथ गारमेंट्स की शॉप से दो ब्रा के सैट खरीद लिए और सीधा घर आ गया।
घर आया तो बाजी अपने रूम में थीं.. और रूम अन्दर से लॉक था। मैंने नॉक किया.. तो बाजी ने थोड़ा सा दरवाज़ा खोला।
मैंने बाजी से कहा- आप तैयार हो गईं कि नहीं..
तो बाजी ने कहा- अभी नहीं बाबा.. बस 20 मिनट में हो जाऊँगी।
मैं बाजी को वो जो चीज़ें लेकर आया था वो दे दीं और कहा- आप इनको पहन लो.. ये मैं आपके लिए ही लाया हूँ।
बाजी ने वो चीजें ले लीं और मुझे ‘थैंक्स’ कह कर दरवाज़ा बंद कर लिया।
मैं भी अपने रूम में चला गया और बेडशीट ठीक करके पूरे बिस्तर पर फूलों की पत्तियां बिखेर दीं.. बल्ब की रोशनी भी बंद कर दी। मैंने धीमी वाली लाईट ऑन कर दी और बाजी का इन्तजार करने लगा।
तभी बाजी की आवाज़ आई- वसीम..
तो मैं भाग कर नीचे गया तो बाजी दरवाज़े से मुँह निकाले खड़ी थीं। मैंने पूछा- क्या हुआ बाजी?
तो बाजी ने कहा- मुझे वॉशरूम से हेयर ब्रश पकड़ा दो.. मेरा वाला तो मिल ही नहीं रहा है।
मैंने कहा- ओके..
मैं वॉशरूम की तरफ चला गया.. वहाँ से ब्रश ले कर मैं वापिस आया तो देखा कि बाजी के कमरे का दरवाज़ा खुला है। मैं अन्दर गया तो हैरान हुआ कि बाजी रूम में नहीं थीं। मैंने टीवी लाउन्ज में भी देखा.. बाजी वहाँ भी नहीं थीं।
तब अचानक मेरे जेहन में आया कि कहीं ये सोच कर मेरे रूम में ना चली गईं हों कि मैं वहाँ ही आ जाऊँगा।
मैं सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर गया तो कमरे में वो ही मद्धिम लाईट ऑन थी।
मैं अन्दर चला गया..
अन्दर जाते ही मैंने देखा तो मेरी खुशी की इंतिहा ही नहीं थी.. बाजी घूँघट में बिस्तर पर बैठी हुई थीं.. एकदम दुल्हन की तरह का ब्लैक कलर का लहंगा पहने हुए वो बेहद खूबसूरत लग रही थीं।
मैं समझ गया कि बाजी ने मुझसे छिप कर रूम में आने के लिए मुझे नीचे बुलाया था।
मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और बिस्तर की तरफ बढ़ने लगा। बिस्तर के पास पहुँच कर मैं बाजी के पास बिस्तर पर बैठ गया और बाजी का घूँघट उठाने लगा। मैंने आहिस्ता-आहिस्ता बाजी का घूँघट उठाया और मेरे मुँह से खुद बा खुद ही निकल गया।
‘बाजी.. आपको मेरी नज़र ना लग जाए.. आप इंतिहा खूबसूरत लग रही हो.. आप मेरी जान निकाल लोगी बाजी.. कसम से..’
मेरे पास एक गोल्ड का छल्ला था.. जो कि मैं कभी-कभार पहना करता था.. मैं उठा.. वो छल्ला अपनी दराज से निकाला और बाजी के पास जा कर मैं बैठ गया।
मैंने कहा- इस वक्त मेरे पास मेरी बीवी को देने के लिए इस छल्ले से कीमती और कोई चीज़ नहीं है..
और यह कहते ही मैंने छल्ला बाजी का हाथ को पकड़ कर बाजी की उंगली में पहना दिया।
उस छल्ले को बाजी ने किस किया और कहा- ये मेरी ज़िंदगी का सब से अनमोल तोहफा है और आज का दिन मेरी ज़िंदगी का सबसे बेहतर दिन है। मैं ये सब कभी नहीं भूल पाऊँगी.. और मैं अब शादी नहीं करूँगी.. मेरी शादी आज तुमसे हो गई है बस..
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