दास्ताँ ऐ बस से लेकर बिस्तर तक !!
मेरी उम्र २५ साल है, पेशे से एक डॉक्टर हूँ। कॉलेज ख़तम किये छः महीने ही हुए हैं। मैंने अपनी डिग्री शिमला से की है। मैं कॉलेज से ही उम्र में बड़ी उम्र की औरतों का बहुत शौकीन हूँ।
एक बार मैं घर से शिमला जा रहा था बस में। रास्ते में एक बहुत खूबसूरत लड़की बस में चढ़ी और मेरे सामने वाली सीट पर बैठ गई। रंग एकदम गोरा और भरी भरी काया ! बस फिर क्या था, मैं सोचने लगा कि कैसे उसके साथ बैठूं !
एक स्टाप पर जाकर जब बस रुकी तो मैं कुछ लेने के बहाने बस से उतरा और उसे कहा कि मेरी सीट का ख्याल रखे। पर जब मैं वापिस चढ़ा तो वहाँ कोई मोटा सा अंकल बैठा हुआ था। बस मैं उसे भला बुरा कहता हुआ उस लड़की के साथ बैठ गया।
अब वो मुझे घूर कर देखने लगी। मैं भी चुपचाप उसे अनदेखा करके बैठ गया। फिर धीरे से उसकी तरफ देखा, उसके स्तन उसके बिन बाजू के ब्लाऊज़ से दिख रहे थे। मैं अपने आप पर काबू न कर पाया और मेरा लण्ड झटके मारने लगा।
पर जैसे उसने मुझे घूर कर देखा, मेरी हिम्मत नहीं हुई दोबारा उसकी आँखों में देखने की।
करीब एक घंटे बाद उसने मुझे खुद बोला- मैंने आपको पहले कहीं देखा है !
मैं सकपका गया। मैंने पूछा- कहाँ?
वो बोली- नहीं जानती, पर देखा ज़रूर है।
मेरे दिल में ख़ुशी के लड्डू फूट रहे थे।
मैंने उसे कहा- शायद आपने मुझे मेडिकल कॉलेज में देखा होगा।
तब वो बोली- हाँ ! मैं अपनी बहन को चेक करवाने आई थी।
बस फिर क्या था, बातों का सिलसिला शुरु हो गया। अब मैं समझा कि वो मुझे घूर कर देख नहीं रही थी बल्कि पहचानने की कोशिश कर रही थी।
जब उसने मुझे बताया कि वो दो बच्चों की अम्मा है तो मैं हक्का-बक्का रह गया।
फिर उसने मुझे अपनी सारी कहानी सुनाई कि कैसे उसकी शादी छोटी उम्र में हो गई और उसका अकेलापन।
जैसे कोई मरीज डॉक्टर से कोई बात नहीं छुपाता वैसे ही वो अपनी हर बात बताती गई!
और मैं भी एक अच्छे डॉक्टर की तरह उसकी हर बात सुनता गया।
जब वो बस से उतरी तो उसने मुझे अपना फ़ोन नम्बर दिया और अपने घर की तरफ चली गई और मैं अपने हॉस्टल की तरफ !
तब तक मेरे दिमाग में कुछ भी उल्टा सीधा नहीं था। अब घर से इतने दिनों बाद आया था तो दोस्तों के साथ मिलकर शाम को थोड़ी सी शराब पी ली और फिर अपने कमरे में सोने चला गया। तभी मेरी आँखों के सामने नीरू का चेहरा घूमने लगा (नीरू जो लड़की मुझे बस में मिली) उसके गोल मटोल स्तन, उसकी दिल को चीर देने वाली हँसी, उसका भोला सा चेहरा और उसकी भारी गाण्ड ! यह सब मेरी आँखों के सामने घूमने लगे।
मैंने मोबाइल निकाला और लगा दिया नंबर !
रात के १२ बज रहे थे, मैंने सोचा कि वो सो गई होगी तो मैंने फ़ोन काट दिया।
थोड़ी देर बाद उसका फ़ोन आया और मुझे पूछने लगी कि फ़ोन क्यूँ किया?
मैंने कहा- बस तुम्हारी याद आ रही थी, इसलिए कर लिया। पर सॉरी मुझे समय का ख्याल नहीं रहा !
वो बोली- नहीं ! मैं जाग रही थी !
मैंने पूछा- वो क्यूँ?
वो बोली- बस मुझे भी तुम्हारी याद आ रही थी !
बस मेरा मन खुश हो गया। थोड़ी देर और बातें चली और उसने बताया कि वो अकेली सोती है अपने पति के साथ नहीं।
इस तरह मैंने उसे अगले दिन मिलने के लिए बुला लिया।
वो दूसरे दिन ठीक मेरे बताये हुए समय पर पहुँच गई जब हॉस्पिटल बंद होने का वक़्त होता है।
मैंने उससे पूछा- कहाँ चलें?
वो बोली- तुमने बुलाया है ! तुम हो ले चलो कहीं भी !
मैं अपनी फुद्दुपंथी पे इतना पछताया कि किसी कमरे का इंतजाम भी नहीं किया था मैंने।
मैंने नहीं सोचा था कि वो आते हो मुझसे ऐसे बोलेगी, पर क्या कर सकते थे, मैं उसे हॉस्पिटल के पीछे एक सुनसान जगह पर ले गया और कहा- तुम बहुत खुबसूरत हो नीरू ! मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ !
तो वो यह बात सुन कर डर गई और बोली कि उसके दो बच्चे हैं और वो उनसे बहुत प्यार करती है। वो इन बन्धनों से बंधी हुई है।
पर मेरे उसे समझाने पर कि मैं किसी को नहीं पता लगने दूंगा हमारे बारे में, उसने मुझे चूमने दिया। धीरे धीरे मैं उसके वक्ष को चूमने लगा। मुझे पता हो नहीं चला कब मेरा हाथ उसके पिछवाड़े पर चला गया और वहां उंगली करने लगा।
वो बहुत उत्तेजित हो गई थी। वो मुझसे छिटकते हुए बोली- बस, बहुत हो गया ! तुम हद पार कर रहे हो !
वैसे बात भी सही थी, वहां कोई भी आ सकता था। मैंने उसे जाने दिया और वो भागते हुए वहाँ से चली गई।
फिर रात को मैंने उसे फोन किया और अपने किये पर सॉरी बोला। उसे मिलने के लिए बुलाया फिर से !
पहले तो उसने ना-नुकुर की पर उसके दिल में जो मेरे लण्ड को चखने की चाह थी, शायद वोही खाज उसे मेरे पास मिलने के लिए ले आई।
इस बार मैं पूरी तरह से तैयार रहना चाहता था। वो बुधवार का दिन था और मैं बुधवार को नॉन-वेज़ खा लेता हूँ। वो आई और चुपचाप मेरे साथ चलने लग पड़ी। हम मेरे दोस्त के कमरे पर पहुंचे, हॉस्टल तो ले जा नहीं सकता था नहीं तो बलात्कार हो जाता उसका।
कमरे पर पहुँचते हो मैंने उसका पर्स एक कोने में फ़ेंक दिया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया। वो थोड़ा शरमाई।
मैंने पूछा तो बोली- डर लगता है !
मैंने उसे कहा- दो बच्चों की माँ होकर डर लगता है तुझे?
तो बोली- यह बात नहीं है ! डर लगता है कहीं तुमसे प्यार न हो जाए !
मैंने उसे समझाया कि डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, देख, मैं ठहरा अकेला लोंडा अभी, और कल को मेरी शादी हो जायेगी, और मैं हूँ डॉक्टर तो सोसाइटी में तो कभी नहीं पता लगने दूंगा। बाकी सब तुम पर है कि तुम सुख चाहती हो या नहीं !
वो यह सब सुनते हो मेरी बाँहों में लिपट गई, मैंने उसे चूमना शुरू कर दिया और न जाने कब उसके स्तन मेरे हाथों मैंने आ चुके थे, और मैं पहुँच गया स्वर्ग वाटिका में।
धीरे-धीरे मेरा हाथ उसके नाड़े की तरफ बढ़ गया। मैंने हलके से उसका नाड़ा खींच दिया। जिस काले सूट की मैं तारीफ कर रहा था वो अब बेडशीट का काम कर रहा था और उसकी लाल कच्छी आवाज़ दे दे कर मुझे बुला रही थी कि आओ और मुझे उधेड़ दो।
मेरे लण्ड का आकार जो कभी ७ इंच से बड़ा नहीं हुआ था, आज १ इंच ज्यादा होने की दौड़ में था।
वो मेरे ऊपर अपने भारी पिछवाड़े को सटा कर बैठी हुई थी। मैंने उसके नंगे स्तन अपने मुँह में लेकर जैसे हो चबाये कि वो सिस्कारियां भरने लगी, उसकी ऐसी आवाजें सुनकर मेरा बुरा हाल हो गया। मेरा लण्ड तो मानो जैसे सुन्न हो गया। बस मुझे तो उसका भरा हुआ शरीर ऐसे लग रहा था कि एक एक हिस्सा खा जाओ।
उसकी मेमने की तरह गदराई हुई फुदी के सुनहरे बाल !
उन्हें अपनी जीभ से सहलाते हुए मैं फुदी के द्वार पर पहुंचा, पर वहीं पर उसने मुझे रोक लिया और वो सी सी सी करती हुई मुझसे लिपट गई, मेरे कान में धीरे से फुसफुसाती हुई बोली- इतनी ख़ुशी इकट्ठी मत दो कि मैं संभाल न पाऊँ !
इससे पहले वो कुछ और बोल पाती उसकी आँखों से आंसू बह निकले, उधर आँखों से आंसू और इधर फुदी से आंसू !
अब मैं समझ नहीं पा रहा था मैं किन आंसुओं पर ध्यान दू.. फिर मैंने चुने फुदी के आंसू और अपनी दो उँगलियों से उसकी फुदी सहलाने लगा और उसे औंधे मुंह लेटा कर अपना लण्ड-बाबा उसकी फुदी पे लगाया। मेरा लण्ड उसके अंदर जाता गया और वो मेरी तरफ धक्के लगाते हुए और अंदर अंदर, बस थोड़ा और, सी सिस इस सी ,, उईईईम उइंमा बस थोड़ा और बस थोड़ा और,,,, आज मुझे मत छोड़ना अधूरी....
मैं बरसों की प्यासी हूँ ! मुझे भर दो अपने गरम लौड़े से...........
इतना कुछ सुनने के बाद भी मेरा लण्ड था कि बस लगा हुआ था बुरी तरह से... तभी नीरू पूरा जोर लगा कर मुझे अपनी और खींचने लगी.... मैं समझ गया कि वो झड़ रही है.... मैंने सोचा फटाफट अपना काम भी निपटा लो वरना फिर उसे पता नहीं कब इतनी पॉवर आये,,,,,, पहले तो मैं उसे खाना चाहता था, पर अब शायद वोही मुझे खा रही थी........उसकी सिस्कारियों के दौरान मेरी चमड़ी पे उसने अपने नाखूनों से कई घाव कर दिए थे, बहुत जंगली थी वो
काम-पिपासा--New Hindi Sex Stories
- rangila
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हिंदी सेक्स कहानियां
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )
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Chudai kahaniya
जीजाजी का लौड़ा
मेरा नाम मनिन्दर है पर मुझे प्यार से सब मिन्की कहते हैं। और मैं पंजाब के पटियाला शहर से हूँ, पटियाला मतलब पटोलों का शहर ! मेरी उम्र 19 साल है और मेरे घर में मेरे अलावा दो बहनें हैं, छोटी का नाम दीपा है, उसकी उम्र 16 साल है, मेरे से बड़ी दीदी सुरलीन की शादी हो चुकी है, वह 23 साल की है, मेरे जीजा कपिल चंडीगढ़ में रहते हैं और उनका मोबाइल फोन का बिजनेस है।
यह सच्ची घटना आठ महीने पहले की है। उस रात को मैं कैसे भूला दूँ जब जीजा कपिल ने मेरे कुंवारेपन की झिल्ली फाड़ी थी और अपना मजबूत लौड़ा मेरी चूत में गाड़ दिया था। कभी कभी मैं नींद से जाग जाती हूँ क्यूंकि मुझे आज भी वो लौड़ा याद आता है; लेकिन मज़बूरी है और वो लौड़ा अब मुझे शायद कभी नहीं मिलेगा।
आइये आप को अब उस रात और उसके पहले और बाद की घटना बताती हूँ। मेरी दीदी सुरलीन का एक दिन फोन आया, उसकी आवाज हल्की सी ढीली और जैसे कि वो बीमार हो, ऐसी लग रही थी।
मैंने उसे पूछा- क्या हुआ?
तो वो बोली- बहुत बीमार हूँ, मलेरिया हुआ है, बदन में कमजोरी के कारण घर का काम नहीं कर सक रही।
मुझसे यह सुन कर रहा नहीं गया।
मैं- अरे दीदी, अगर आप कहो तो मैं आ जाऊँ? वैसे भी मेरे कॉलेज में 10 दिन की छुट्टी हैं।
सुरलीन- अगर तू आ सकती है तो आ जा ! पर तेरे जीजा के पास काम का अभी बहुत रश है, इसलिए वो लेने नहीं आ सकेंगे !
मैं- कोई बात नहीं दी, मैं पापा के साथ आ जाऊँगी।
सुरलीन- ठीक है, कल ही आ जा !
अगले दिन दोपहर बाद मुझे पापा ने बस में बिठा दिया। मेरी उम्र के हिसाब से मेरा कद और काठी काफी बड़ा है, मैं किसी मॉडल से कम सुंदर नहीं हूँ, बस के अंदर हर एक लौड़ा मुझे देख रहा था पर मेरे मन में इस से गुस्सा नहीं बल्कि घमंड आ रहा था, मेरे मन में तो अपने पति को लेकर बहुत बड़े बड़े सपने थे, मुझे ऐसा पति चाहिए थे जो शाहरुख़ जितना सेक्सी और सलमान जितना चौड़ा हो। चंडीगढ़ पहुंचते ही मैं ऑटो लेकर दीदी के घर चली गई। मैंने देखा कि दीदी बहुत कमजोर हो गई है और उसे बहुत तकलीफ हो रही थी। मैंने उसे दवाई वगैरह के लिए पूछा तो उसने बताया कि दवाई चल ही रही है।
मैं- जीजाजी कहाँ हैं?
दीदी- अरे अभी आईफोन का 5 नंबर लॉन्च हुआ है उसमें लगे पड़े हैं। उन्होंने तो मुझे कहा कि शोरूम पर नहीं जाता, पर मैंने उन्हें जबरदस्ती से भेज दिया। एक दिन में अभी 20 हजार कमाने का मौका है, वो थोड़े ही बार बार आता है।
मैं- ठीक है दी, अब तू घबरा मत, मैं यही हूँ कुछ दिन ! तेरा और मेरे जीजा का पूरा ख्याल रखूंगी।
दीदी- अच्छा है तू आ गई, कल तो मुझे होटल से खाना मंगवाना पड़ा।
मैं- चल मैं आज तेरी पसंद के राजमा चावल बनाती हूँ।
मैं फ्रेश होकर रसोई में गई और राजमा बनाने लगी। सुरलीन को राजमा पहले से बहुत पसंद हैं। रात के 8 बजे तक मैं खाना बना चुकी थी। खाना बनाने के बाद मैंने कहा- जीजाजी आ जाएँ रो इकट्ठे खाना खाएँगे !
लेकिन सुरलीन ने कहा- उनका अभी कोई ठिकाना नहीं है।
इसलिए हम दोनों बहनों ने खाना खा लिया। सुरलीन को दवाई देकर मैंने सुला दिया और ड्राइंग रूम में जाकर मैं डिस्कवरी चैनल देखने लगी। टीवी देखते देखते दस कब बजे, पता ही नहीं चला।
इतने में घर का मुख्य दरवाजा खुला और जीजाजी अंदर आये, उसने मुझे देखा नहीं और वो फोन पर किसी से लड़ रहे थे।
जीजा- लौड़ा मेरा, साले तुम लोग पार्सल के रेट मन चाहे तरीके से बढ़ा देते हो ! अगर ऐसा ही चला तो मुझे नहीं मंगवाना कुछ भी अब !
उन्होंने मुझे देख कर तुरंत फोन काट दिया और बोले- अरे मिन्की, कब आई तू? मुझे बताया भी नहीं, मैं गाड़ी लेकर आ जाता।
मैं- नहीं जीजाजी, आप बीजी हैं ! दी ने बताया मुझे !
जीजा- अरे साली के लिए क्या बीजी क्या फ्री !
मैंने देखा कि जीजा जी को चलने में तकलीफ हो रही थी, उनके पाँव इधर उधर होने लगे थे। वो शायद शराब पी के आया था और इस बात की पुष्टि तब हुई जब वो मेरे पास आकर सोफे पर बैठे, जीजा फुल टुन्न होकर आया था, उसके मुँह से शराब की मुश्क आ रही थी। उनसे सही बैठे भी नहीं जा रहा था।.
मैंने उनसे खाने के लिए पूछा- जीजा जी खाना लगा लूँ?
जीजा- नहीं, मैं बाहर खाकर आया हूँ, तेरी दीदी जाग रही है?
मैं- नहीं दीदी को सोये तो काफी समय हो गया है।
जीजा- ओके !
उन्होंने अपनी टाँगें सोफे पर फ़ैलाई और आँखें बन्द करके लेट गए। उन्होंने अपने जूते, कपड़े ऐसे ही पहने हुए थे और वो सो गए। मैंने कहा भी यह सब उतारने के लिए लेकिन वो कुछ बोले ही नहीं, वो शायद नशे में सो चुके थे।
मैंने सोचा चलो मैं ही जीजा के जूते उतार देती हूँ। मैंने जीजा के पाँव अपनी गोद में लिए और जूते की डोरी खोल कर उतार फेंके। मैंने देखा कि जीजे की पैंट के ऊपर की बेल्ट बहुत टाईट बंधी हुई थी, मैंने सोचा कि इसे भी खोल दूँ। मैं बेल्ट को खोल रही थी, तभी मेरी नजर उसके नीचे पड़ी जहाँ एक बड़ा पर्वत जैसा आकार बना हुआ था।
क्या जीजा का लौड़ा इतना बड़ा था..!?!
पता नहीं क्यूँ, पर मेरे मन में गुदगुदी होने लगी, मेरा मन कूद रहा था अंदर से ही ! मैंने इससे पहले लौड़ा सिर्फ नंगी मूवीज में ही देखा था लेकिन जीजा का लौड़ा तो पैंट के ऊपर इतना बड़ा आकार बना कर बैठा था कि देख कर ही मुझे ख़ुशी मिल रही थी।
मैंने बेल्ट को खोलने के साथ साथ उनके लौड़े के ऊपर हल्के से अपने हाथ का पीछे वाला हिस्सा लगा दिया। जीजाजी का लौड़ा बहुत सख्त लग रहा था। उनके लौड़े को छूने के बावजूद जीजा हिले नहीं और इससे मेरी हिम्मत बढ़ गई, मैंने अब अपना हाथ पूरा रख के लौड़े को अहसास लिया। लौड़ा काफी गरम था और मुझे उसको हाथ लगाते ही चूत के अंदर खुजली होने लगी।
मैं तब तक तो कुंवारी ही थी, मैंने केवल उंगली डाल कर हस्तमैथुन किया था बस !
सच में बड़ा भारी लौड़ा था ! खोल के देख लूँ? जीजा तो नशे में थे !
मेरे मन में लौड़ा देखने के भयानक विचार आने लगे। मैंने सोचा कि जीजा तो वैसे भी नशे में हैं तो पैंट खोली तो उन्हें थोड़े ही पता चलेगा। मैंने धीरे से उनकी ज़िप खोली और देखा कि लौड़ा अंदर अंडरवीयर में छिपा बैठा था। मैंने बटन खोल कर जीजा की पैंट उतार दी।
पता नहीं मुझे क्या हुआ था, मुझे अच्छे बुरे की कोई समझ नहीं रही थी, मैं अपने हाथ को लौड़े के ऊपर रख कर उसे दबाने लगी, फिर मैंने धीरे से अंडरवीयर को खींचा और बालों के गुच्छे के बीच में विराजमान महाराजा को देखा। अच्छा तो यह है लौड़ा !
मैंने पहली बार लाईव लौड़ा देखा था, बिल्कुल मेरी आँखों के सामने जो आधे से भी ज्यादा तना हुआ था। मेरे हाथ रुके नहीं और मेरे दिल में आया कि उसे छू लूँ एक बार !
जैसे ही मैंने लौड़ा हाथ में लिया, जीजा की आँख खुल गई और वो बोले- मिन्की, क्या कर रही है?
मैं- कुछ नहीं जीजा जी, आप के कपड़े खोल रही थी. आप नींद में थे और आपने जूते वगैरह कुछ नहीं उतारे थे।
जीजा- मुझे पता है कि तू क्या कर रही थी। मैं सोया था लेकिन तूने हाथ लगा कर सहलाया तब मेरी नींद उड़ गई थी और फिर मैं सिर्फ आँखें बंद करके लेटा हुआ था।
मैं डर गई कि कहीं जीजा दीदी को ना बता दें।
लेकिन उसके बाद जीजा जो बोले, वो बहुत ही अलग और आश्चर्यजनक था।
जीजा- इतना ही लौड़ा लेने का शौक है तो कपड़े उतार दे देता हूँ।
मैं क्या बोलती, मुझे लौड़ा सिर्फ देखना था लेकिन अब जीजा थोड़े ही मानने वाला था। मुझे कभी ना कभी तो नथ उतरवानी थी, फिर आज क्यों नहीं, मैं कुछ नहीं बोली।
लेकिन जीजा के हाथ अब मेरे चूचों के ऊपर थे और वो उन्हें जोर से दबा रहे थे। मैंने आँखें बंद कर ली।
जीजा सोफे से खड़े हुए और शर्ट उतारने लगे। वो बिल्कुल नंगे हो गए और उसने मुझे कंधे से पकड़ के मेरी नाईटी उतारने के लिए हाथ ऊपर करवा दिए। मैं अगले ही मिनट में उसके सामने नंगी हो गई।
जीजा मेरे चूचों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगे। उनके गरम गरम होंठ का अहसास जान निकाल देने वाला था। मुझे अजीब सी खुमारी छा रही थी। मैंने देखा कि जीजा के हाथ अब कमर के ऊपर होते हुए मेरे चूतड़ों तक पहुँचे और मुझे अपनी तरफ खींचा।
जीजा का लौड़ा मेरी चूत वाले हिस्से के बिल्कुल नजदीक आ गया और मुझे जैसे 1000 वाट का करंट लगा हो। जीजा ने अपने होंठ मेरे होंठों से लगाये और मेरे मुँह में व्हिस्की की गन्ध भर गई। वो मुझे चूसते हुए सोफे के ऊपर बैठ गये। मैं अब जीजा की दोनों टांगों के बीच में थी, उन्होंने मेरे हाथों को दोनों तरफ से पकड़ा और मेरा चेहरा लौड़े की तरफ ले गया !
मैं प्रश्न के अंदाज से उन्हें देखने लगी। जीजा ने मेरा मुँह अपने सुपाड़े पर लाकर मुझे छोड़ दिया। मैंने लौड़ा हाथ में लिया और उसकी गर्मी का अहसास लेने लगी। जीजा ने पीछे से मुँह को धकेला और मेरे मुँह खोलते ही उसका लौड़ा आधा मेरे मुँह के अंदर चला गया। ओह माय गॉड ! यह तो बिल्कुल मुँह फाड़ रहा था मेरा ! उसकी तीन इंच की मोटाई मेरे मुँह के लिए बहुत ज्यादा थी. लेकिन फिर भी मैंने आधे लौड़े को चूसना चालू कर दिया। जीजा ने लंड के झटके मुँह में देने चाहे लेकिन मैंने उनकी जांघें थामे उन्हें नाकाम कर दिया।
जीजा अब सोफे से उठ खड़े हुए और मेरे मुँह को जोर जोर से चोदना चालू कर दिया।
उनका लौड़ा मेरे मुँह से ग्ग्ग्ग.. ग्ग्ग्ग.. गी.. गी.. गी.. गों.. गों.. गोग जैसी आवाजें निकाल रहा था। थोड़़ी देर में मुझे भी लंड चूसने में मजा आने लगा, ऐसे लग रहा था कि चोकलेट वाली आइसक्रीम खा रही थी।
जीजा ने अब मेरे मुँह से लौड़ा बाहर निकाला और मेरी टाँगें फैला कर मुझे सोफे में लिटा दिया, उसके होंठ मेरी चूत के होंठों से लग गए और वो मुझे सीधा स्वर्ग भेजने लगे- आह इह्ह ओह्ह ओह जीजा जी ! आह.. ह्ह्ह.. इह्ह.. ..!
मेरे लिए यह चुसाई का आनन्द मार देने वाला था। जीजा ने चूत के अंदर एक उंगली डाली और वो चूसने के साथ साथ उंगली से मुझे चोदने लगे- आह ह ह ह ह्हीईई आअह्ह्ह्ह के आवाज के साथ मैं झड़ गई।
जीजा ने अब मुँह हटाया और अपना लौड़ा मेरी चूत के ऊपर टिकाया। चूत काफी गीली थी और मुझे पता था कि अब तो फाईट होगी लौड़े और चूत के बीच ! जीजाजी ने हाथ में थूक लिया और लौड़े के आगे लगा दिया, एक झटका देकर उन्होंने आधा लंड मेरी चूत में दे दिया-
"आह्ह.. ह्ह.. आऊ.. ऊऊ.. ऊउइ ..ऊई ..उईईई.. मरर गई रे !"
जीजा ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और एक और जोर का झटका देकर पूरा लौड़ा मेरी चूत में पेल दिया। मुझे ऐसे लग रहा था कि सारी चमड़ी जल रही हो, मानो किसी ने चूत में लोहे की गरम सलाख घुसा दी हो।
जीजा थोड़़ी देर हिले नहीं पर अब धीरे धीरे से लंड को हिलाना चालू किया। ऐसा अहसास हो रहा था जैसे कि चमड़ी लौड़े के साथ साथ निकल रही थी चूत की !
मेरे आँखों से आँसू की धार निकल कर जीजा के हाथों को लगने लगी। उन्होंने मेरे कान के पास आते हुए कहा- घबरा मत ! अभी ठीक हो जाएगा सब !
और सच में मुझे 2 मिनट के बाद लौड़ा सुखदायी लगने लगा। जीजा के झटकों के ऊपर अब मैं भी अपने कूल्हे हिलाने लगी।
जीजाजी ने हाथ मुँह से हटा कर चूचों पर रख दिया और चूत ठोकने के साथ साथ आगे से चूचे मसल रहा था। मैं सुखसागर पर सवार हो गई थी और लौड़ा मुझे ठक ठक ठोक रहा था। जीजा के झटके दो मिनट में तो बहुत ही तीव्र हो गए और वो एकदम स्पीड से मुझे चोदने लगे।
"आह.. आह.. ओह.. ओह.. ओह !" जीजा कुत्ते के जैसे फास्ट हुआ और मुझे थोड़़ी देर बाद जैसे की मेरी चूत के अंदर उन्होंने पेशाब किया हो, ऐसा लगा लेकिन वो मूत नहीं बल्कि उसका पिंघला हुआ लोहा यानि वीर्य था। उन्होंने लंड को जोर से चूत में दबाया और सारा के सारा पानी अंदर छोड़ दिया।
मैं उनसे लिपट कर लेट गई और मेरी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला।
मैं सो गई, लेकिन जब मैंने दीदी की चीखें सुनी तो मेरी आँख खुल गई। मैंने उठ कर देखा कि जीजा कपड़े पहन रहे थे और सुरलीन दीदी उसकी माँ बहन एक कर रही थी।
हम लोग पकड़े गए थे, रात के करीब डेढ़ बजे दीदी पानी पीने के लिए उठी और उसने हमें पकड़ लिया।
काश मैंने दीदी के रूम में पानी की बोतल पहले रख दी होती...!
दीदी जीजा से लड़ रही थी और जैसे उसने मुझे देखा उठते हुए, उसने मेरे पास आके मेरे दोनों गालों पर एक एक तमाचा लगा दिया।
मैं कुछ बोलने की अवस्था में नहीं थी।
दीदी- तू यहाँ बहन बन कर आई थी या सौतन? तेरा जीजा ठरकी बन गया तेरी कुँवारी चूत देख कर लेकिन तू तो उसे रोक सकती थी। लेकिन नहीं ! मैडम पड़ी थी जीजा की बाहों में ! तू मुझे कल इस घर में नहीं दिखनी चाहिए ! तू अभी अपनी बैग उठा और निकल और जिन्दगी में कभी यहाँ मत आना ! अगर तू अभी नहीं निकली तो मैं पापा को फोन करती हूँ।
जीजा ने सुरलीन को समझाने के बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी, वो बोली कि अगर वो कुछ बोले तो वो उससे तलाक ले लेगी। मेरे पास कोई चारा था नहीं ! सुबह होते ही मैंने अपनी सहेली रचना को फोन लगाया जो चण्डीगढ़ में ही रहती थी और उसके घर टेक्सी करके चली गई।
दीदी ने सच में मुझे कभी अपने घर में नहीं आने दिया। कभी कभी हम लोग किसी फंक्शन में मिल जाएँ तो भी वो उखड़ी उखड़ी रहती हैं।
जीजा का लौड़ा मुझे महंगा तो पड़ा लेकिन ऐसा लौड़ा मिलना भी एक बड़ी बात है। अब तो बस एक ख्वाहिश है कि मेरे भावी पति का लौड़ा भी ऐसा तगड़ा ही हो।
मेरा नाम मनिन्दर है पर मुझे प्यार से सब मिन्की कहते हैं। और मैं पंजाब के पटियाला शहर से हूँ, पटियाला मतलब पटोलों का शहर ! मेरी उम्र 19 साल है और मेरे घर में मेरे अलावा दो बहनें हैं, छोटी का नाम दीपा है, उसकी उम्र 16 साल है, मेरे से बड़ी दीदी सुरलीन की शादी हो चुकी है, वह 23 साल की है, मेरे जीजा कपिल चंडीगढ़ में रहते हैं और उनका मोबाइल फोन का बिजनेस है।
यह सच्ची घटना आठ महीने पहले की है। उस रात को मैं कैसे भूला दूँ जब जीजा कपिल ने मेरे कुंवारेपन की झिल्ली फाड़ी थी और अपना मजबूत लौड़ा मेरी चूत में गाड़ दिया था। कभी कभी मैं नींद से जाग जाती हूँ क्यूंकि मुझे आज भी वो लौड़ा याद आता है; लेकिन मज़बूरी है और वो लौड़ा अब मुझे शायद कभी नहीं मिलेगा।
आइये आप को अब उस रात और उसके पहले और बाद की घटना बताती हूँ। मेरी दीदी सुरलीन का एक दिन फोन आया, उसकी आवाज हल्की सी ढीली और जैसे कि वो बीमार हो, ऐसी लग रही थी।
मैंने उसे पूछा- क्या हुआ?
तो वो बोली- बहुत बीमार हूँ, मलेरिया हुआ है, बदन में कमजोरी के कारण घर का काम नहीं कर सक रही।
मुझसे यह सुन कर रहा नहीं गया।
मैं- अरे दीदी, अगर आप कहो तो मैं आ जाऊँ? वैसे भी मेरे कॉलेज में 10 दिन की छुट्टी हैं।
सुरलीन- अगर तू आ सकती है तो आ जा ! पर तेरे जीजा के पास काम का अभी बहुत रश है, इसलिए वो लेने नहीं आ सकेंगे !
मैं- कोई बात नहीं दी, मैं पापा के साथ आ जाऊँगी।
सुरलीन- ठीक है, कल ही आ जा !
अगले दिन दोपहर बाद मुझे पापा ने बस में बिठा दिया। मेरी उम्र के हिसाब से मेरा कद और काठी काफी बड़ा है, मैं किसी मॉडल से कम सुंदर नहीं हूँ, बस के अंदर हर एक लौड़ा मुझे देख रहा था पर मेरे मन में इस से गुस्सा नहीं बल्कि घमंड आ रहा था, मेरे मन में तो अपने पति को लेकर बहुत बड़े बड़े सपने थे, मुझे ऐसा पति चाहिए थे जो शाहरुख़ जितना सेक्सी और सलमान जितना चौड़ा हो। चंडीगढ़ पहुंचते ही मैं ऑटो लेकर दीदी के घर चली गई। मैंने देखा कि दीदी बहुत कमजोर हो गई है और उसे बहुत तकलीफ हो रही थी। मैंने उसे दवाई वगैरह के लिए पूछा तो उसने बताया कि दवाई चल ही रही है।
मैं- जीजाजी कहाँ हैं?
दीदी- अरे अभी आईफोन का 5 नंबर लॉन्च हुआ है उसमें लगे पड़े हैं। उन्होंने तो मुझे कहा कि शोरूम पर नहीं जाता, पर मैंने उन्हें जबरदस्ती से भेज दिया। एक दिन में अभी 20 हजार कमाने का मौका है, वो थोड़े ही बार बार आता है।
मैं- ठीक है दी, अब तू घबरा मत, मैं यही हूँ कुछ दिन ! तेरा और मेरे जीजा का पूरा ख्याल रखूंगी।
दीदी- अच्छा है तू आ गई, कल तो मुझे होटल से खाना मंगवाना पड़ा।
मैं- चल मैं आज तेरी पसंद के राजमा चावल बनाती हूँ।
मैं फ्रेश होकर रसोई में गई और राजमा बनाने लगी। सुरलीन को राजमा पहले से बहुत पसंद हैं। रात के 8 बजे तक मैं खाना बना चुकी थी। खाना बनाने के बाद मैंने कहा- जीजाजी आ जाएँ रो इकट्ठे खाना खाएँगे !
लेकिन सुरलीन ने कहा- उनका अभी कोई ठिकाना नहीं है।
इसलिए हम दोनों बहनों ने खाना खा लिया। सुरलीन को दवाई देकर मैंने सुला दिया और ड्राइंग रूम में जाकर मैं डिस्कवरी चैनल देखने लगी। टीवी देखते देखते दस कब बजे, पता ही नहीं चला।
इतने में घर का मुख्य दरवाजा खुला और जीजाजी अंदर आये, उसने मुझे देखा नहीं और वो फोन पर किसी से लड़ रहे थे।
जीजा- लौड़ा मेरा, साले तुम लोग पार्सल के रेट मन चाहे तरीके से बढ़ा देते हो ! अगर ऐसा ही चला तो मुझे नहीं मंगवाना कुछ भी अब !
उन्होंने मुझे देख कर तुरंत फोन काट दिया और बोले- अरे मिन्की, कब आई तू? मुझे बताया भी नहीं, मैं गाड़ी लेकर आ जाता।
मैं- नहीं जीजाजी, आप बीजी हैं ! दी ने बताया मुझे !
जीजा- अरे साली के लिए क्या बीजी क्या फ्री !
मैंने देखा कि जीजा जी को चलने में तकलीफ हो रही थी, उनके पाँव इधर उधर होने लगे थे। वो शायद शराब पी के आया था और इस बात की पुष्टि तब हुई जब वो मेरे पास आकर सोफे पर बैठे, जीजा फुल टुन्न होकर आया था, उसके मुँह से शराब की मुश्क आ रही थी। उनसे सही बैठे भी नहीं जा रहा था।.
मैंने उनसे खाने के लिए पूछा- जीजा जी खाना लगा लूँ?
जीजा- नहीं, मैं बाहर खाकर आया हूँ, तेरी दीदी जाग रही है?
मैं- नहीं दीदी को सोये तो काफी समय हो गया है।
जीजा- ओके !
उन्होंने अपनी टाँगें सोफे पर फ़ैलाई और आँखें बन्द करके लेट गए। उन्होंने अपने जूते, कपड़े ऐसे ही पहने हुए थे और वो सो गए। मैंने कहा भी यह सब उतारने के लिए लेकिन वो कुछ बोले ही नहीं, वो शायद नशे में सो चुके थे।
मैंने सोचा चलो मैं ही जीजा के जूते उतार देती हूँ। मैंने जीजा के पाँव अपनी गोद में लिए और जूते की डोरी खोल कर उतार फेंके। मैंने देखा कि जीजे की पैंट के ऊपर की बेल्ट बहुत टाईट बंधी हुई थी, मैंने सोचा कि इसे भी खोल दूँ। मैं बेल्ट को खोल रही थी, तभी मेरी नजर उसके नीचे पड़ी जहाँ एक बड़ा पर्वत जैसा आकार बना हुआ था।
क्या जीजा का लौड़ा इतना बड़ा था..!?!
पता नहीं क्यूँ, पर मेरे मन में गुदगुदी होने लगी, मेरा मन कूद रहा था अंदर से ही ! मैंने इससे पहले लौड़ा सिर्फ नंगी मूवीज में ही देखा था लेकिन जीजा का लौड़ा तो पैंट के ऊपर इतना बड़ा आकार बना कर बैठा था कि देख कर ही मुझे ख़ुशी मिल रही थी।
मैंने बेल्ट को खोलने के साथ साथ उनके लौड़े के ऊपर हल्के से अपने हाथ का पीछे वाला हिस्सा लगा दिया। जीजाजी का लौड़ा बहुत सख्त लग रहा था। उनके लौड़े को छूने के बावजूद जीजा हिले नहीं और इससे मेरी हिम्मत बढ़ गई, मैंने अब अपना हाथ पूरा रख के लौड़े को अहसास लिया। लौड़ा काफी गरम था और मुझे उसको हाथ लगाते ही चूत के अंदर खुजली होने लगी।
मैं तब तक तो कुंवारी ही थी, मैंने केवल उंगली डाल कर हस्तमैथुन किया था बस !
सच में बड़ा भारी लौड़ा था ! खोल के देख लूँ? जीजा तो नशे में थे !
मेरे मन में लौड़ा देखने के भयानक विचार आने लगे। मैंने सोचा कि जीजा तो वैसे भी नशे में हैं तो पैंट खोली तो उन्हें थोड़े ही पता चलेगा। मैंने धीरे से उनकी ज़िप खोली और देखा कि लौड़ा अंदर अंडरवीयर में छिपा बैठा था। मैंने बटन खोल कर जीजा की पैंट उतार दी।
पता नहीं मुझे क्या हुआ था, मुझे अच्छे बुरे की कोई समझ नहीं रही थी, मैं अपने हाथ को लौड़े के ऊपर रख कर उसे दबाने लगी, फिर मैंने धीरे से अंडरवीयर को खींचा और बालों के गुच्छे के बीच में विराजमान महाराजा को देखा। अच्छा तो यह है लौड़ा !
मैंने पहली बार लाईव लौड़ा देखा था, बिल्कुल मेरी आँखों के सामने जो आधे से भी ज्यादा तना हुआ था। मेरे हाथ रुके नहीं और मेरे दिल में आया कि उसे छू लूँ एक बार !
जैसे ही मैंने लौड़ा हाथ में लिया, जीजा की आँख खुल गई और वो बोले- मिन्की, क्या कर रही है?
मैं- कुछ नहीं जीजा जी, आप के कपड़े खोल रही थी. आप नींद में थे और आपने जूते वगैरह कुछ नहीं उतारे थे।
जीजा- मुझे पता है कि तू क्या कर रही थी। मैं सोया था लेकिन तूने हाथ लगा कर सहलाया तब मेरी नींद उड़ गई थी और फिर मैं सिर्फ आँखें बंद करके लेटा हुआ था।
मैं डर गई कि कहीं जीजा दीदी को ना बता दें।
लेकिन उसके बाद जीजा जो बोले, वो बहुत ही अलग और आश्चर्यजनक था।
जीजा- इतना ही लौड़ा लेने का शौक है तो कपड़े उतार दे देता हूँ।
मैं क्या बोलती, मुझे लौड़ा सिर्फ देखना था लेकिन अब जीजा थोड़े ही मानने वाला था। मुझे कभी ना कभी तो नथ उतरवानी थी, फिर आज क्यों नहीं, मैं कुछ नहीं बोली।
लेकिन जीजा के हाथ अब मेरे चूचों के ऊपर थे और वो उन्हें जोर से दबा रहे थे। मैंने आँखें बंद कर ली।
जीजा सोफे से खड़े हुए और शर्ट उतारने लगे। वो बिल्कुल नंगे हो गए और उसने मुझे कंधे से पकड़ के मेरी नाईटी उतारने के लिए हाथ ऊपर करवा दिए। मैं अगले ही मिनट में उसके सामने नंगी हो गई।
जीजा मेरे चूचों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगे। उनके गरम गरम होंठ का अहसास जान निकाल देने वाला था। मुझे अजीब सी खुमारी छा रही थी। मैंने देखा कि जीजा के हाथ अब कमर के ऊपर होते हुए मेरे चूतड़ों तक पहुँचे और मुझे अपनी तरफ खींचा।
जीजा का लौड़ा मेरी चूत वाले हिस्से के बिल्कुल नजदीक आ गया और मुझे जैसे 1000 वाट का करंट लगा हो। जीजा ने अपने होंठ मेरे होंठों से लगाये और मेरे मुँह में व्हिस्की की गन्ध भर गई। वो मुझे चूसते हुए सोफे के ऊपर बैठ गये। मैं अब जीजा की दोनों टांगों के बीच में थी, उन्होंने मेरे हाथों को दोनों तरफ से पकड़ा और मेरा चेहरा लौड़े की तरफ ले गया !
मैं प्रश्न के अंदाज से उन्हें देखने लगी। जीजा ने मेरा मुँह अपने सुपाड़े पर लाकर मुझे छोड़ दिया। मैंने लौड़ा हाथ में लिया और उसकी गर्मी का अहसास लेने लगी। जीजा ने पीछे से मुँह को धकेला और मेरे मुँह खोलते ही उसका लौड़ा आधा मेरे मुँह के अंदर चला गया। ओह माय गॉड ! यह तो बिल्कुल मुँह फाड़ रहा था मेरा ! उसकी तीन इंच की मोटाई मेरे मुँह के लिए बहुत ज्यादा थी. लेकिन फिर भी मैंने आधे लौड़े को चूसना चालू कर दिया। जीजा ने लंड के झटके मुँह में देने चाहे लेकिन मैंने उनकी जांघें थामे उन्हें नाकाम कर दिया।
जीजा अब सोफे से उठ खड़े हुए और मेरे मुँह को जोर जोर से चोदना चालू कर दिया।
उनका लौड़ा मेरे मुँह से ग्ग्ग्ग.. ग्ग्ग्ग.. गी.. गी.. गी.. गों.. गों.. गोग जैसी आवाजें निकाल रहा था। थोड़़ी देर में मुझे भी लंड चूसने में मजा आने लगा, ऐसे लग रहा था कि चोकलेट वाली आइसक्रीम खा रही थी।
जीजा ने अब मेरे मुँह से लौड़ा बाहर निकाला और मेरी टाँगें फैला कर मुझे सोफे में लिटा दिया, उसके होंठ मेरी चूत के होंठों से लग गए और वो मुझे सीधा स्वर्ग भेजने लगे- आह इह्ह ओह्ह ओह जीजा जी ! आह.. ह्ह्ह.. इह्ह.. ..!
मेरे लिए यह चुसाई का आनन्द मार देने वाला था। जीजा ने चूत के अंदर एक उंगली डाली और वो चूसने के साथ साथ उंगली से मुझे चोदने लगे- आह ह ह ह ह्हीईई आअह्ह्ह्ह के आवाज के साथ मैं झड़ गई।
जीजा ने अब मुँह हटाया और अपना लौड़ा मेरी चूत के ऊपर टिकाया। चूत काफी गीली थी और मुझे पता था कि अब तो फाईट होगी लौड़े और चूत के बीच ! जीजाजी ने हाथ में थूक लिया और लौड़े के आगे लगा दिया, एक झटका देकर उन्होंने आधा लंड मेरी चूत में दे दिया-
"आह्ह.. ह्ह.. आऊ.. ऊऊ.. ऊउइ ..ऊई ..उईईई.. मरर गई रे !"
जीजा ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और एक और जोर का झटका देकर पूरा लौड़ा मेरी चूत में पेल दिया। मुझे ऐसे लग रहा था कि सारी चमड़ी जल रही हो, मानो किसी ने चूत में लोहे की गरम सलाख घुसा दी हो।
जीजा थोड़़ी देर हिले नहीं पर अब धीरे धीरे से लंड को हिलाना चालू किया। ऐसा अहसास हो रहा था जैसे कि चमड़ी लौड़े के साथ साथ निकल रही थी चूत की !
मेरे आँखों से आँसू की धार निकल कर जीजा के हाथों को लगने लगी। उन्होंने मेरे कान के पास आते हुए कहा- घबरा मत ! अभी ठीक हो जाएगा सब !
और सच में मुझे 2 मिनट के बाद लौड़ा सुखदायी लगने लगा। जीजा के झटकों के ऊपर अब मैं भी अपने कूल्हे हिलाने लगी।
जीजाजी ने हाथ मुँह से हटा कर चूचों पर रख दिया और चूत ठोकने के साथ साथ आगे से चूचे मसल रहा था। मैं सुखसागर पर सवार हो गई थी और लौड़ा मुझे ठक ठक ठोक रहा था। जीजा के झटके दो मिनट में तो बहुत ही तीव्र हो गए और वो एकदम स्पीड से मुझे चोदने लगे।
"आह.. आह.. ओह.. ओह.. ओह !" जीजा कुत्ते के जैसे फास्ट हुआ और मुझे थोड़़ी देर बाद जैसे की मेरी चूत के अंदर उन्होंने पेशाब किया हो, ऐसा लगा लेकिन वो मूत नहीं बल्कि उसका पिंघला हुआ लोहा यानि वीर्य था। उन्होंने लंड को जोर से चूत में दबाया और सारा के सारा पानी अंदर छोड़ दिया।
मैं उनसे लिपट कर लेट गई और मेरी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला।
मैं सो गई, लेकिन जब मैंने दीदी की चीखें सुनी तो मेरी आँख खुल गई। मैंने उठ कर देखा कि जीजा कपड़े पहन रहे थे और सुरलीन दीदी उसकी माँ बहन एक कर रही थी।
हम लोग पकड़े गए थे, रात के करीब डेढ़ बजे दीदी पानी पीने के लिए उठी और उसने हमें पकड़ लिया।
काश मैंने दीदी के रूम में पानी की बोतल पहले रख दी होती...!
दीदी जीजा से लड़ रही थी और जैसे उसने मुझे देखा उठते हुए, उसने मेरे पास आके मेरे दोनों गालों पर एक एक तमाचा लगा दिया।
मैं कुछ बोलने की अवस्था में नहीं थी।
दीदी- तू यहाँ बहन बन कर आई थी या सौतन? तेरा जीजा ठरकी बन गया तेरी कुँवारी चूत देख कर लेकिन तू तो उसे रोक सकती थी। लेकिन नहीं ! मैडम पड़ी थी जीजा की बाहों में ! तू मुझे कल इस घर में नहीं दिखनी चाहिए ! तू अभी अपनी बैग उठा और निकल और जिन्दगी में कभी यहाँ मत आना ! अगर तू अभी नहीं निकली तो मैं पापा को फोन करती हूँ।
जीजा ने सुरलीन को समझाने के बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी, वो बोली कि अगर वो कुछ बोले तो वो उससे तलाक ले लेगी। मेरे पास कोई चारा था नहीं ! सुबह होते ही मैंने अपनी सहेली रचना को फोन लगाया जो चण्डीगढ़ में ही रहती थी और उसके घर टेक्सी करके चली गई।
दीदी ने सच में मुझे कभी अपने घर में नहीं आने दिया। कभी कभी हम लोग किसी फंक्शन में मिल जाएँ तो भी वो उखड़ी उखड़ी रहती हैं।
जीजा का लौड़ा मुझे महंगा तो पड़ा लेकिन ऐसा लौड़ा मिलना भी एक बड़ी बात है। अब तो बस एक ख्वाहिश है कि मेरे भावी पति का लौड़ा भी ऐसा तगड़ा ही हो।
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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- rangila
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सन्डे है चुदाई डे
मेरा नाम ललित है, दिल्ली का रहने वाला हूँ।बात उन दिनों की है जब मैं अपने ऑफिस से घर जा रहा था रास्ते में एक आदमी पड़ा हुआ था। मैं हिम्मत कर के उसके पास गया। उसको दमा का दौरा पड़ा था! वो अपनी जेब से कुछ निकलने की कोशिश कर रहा था! मैंने उसकी जेब से इन्हेलर निकलने में मदद की। इन्हेलर को मुँह में पम्प करने के कुछ देर बाद वो थोड़ा ठीक हुए और मुझे धन्यवाद कहा।
मैंने पूछा- अगर आपको कहीं जाना है तो मैं छोड़ दूँ, आपकी तबियत ठीक नहीं है, कहीं दोबारा से दौरा पड़ा तो कौन संभालेगा !
वो मेरी बात मान गए और मेरे साथ बाइक पर बैठ गए ! कुछ देर में मैं उनको लेकर उनके घर पर पहुंच गया। उन्होंने मुझे घर के अन्दर आने के लिए कहा, अपने परिवार वालों को सारी बात बताई। उनके परिवार वालों ने भी मुझे धन्यवाद कहा। फिर उन्होंने मुझे चाय पिलाई!
चाय उनकी बेटी ले कर आई थी। क्या बला की खूबसूरत थी, जो भी देख ले, बस देखता ही रह जाये ! फिगर 36 28 36 ! कसम से खुदा ने बहुत फुर्सत में बनाया होगा ! जैसे ही वो मेरी तरफ चाय बढ़ाने के लिए झुकी, मुझे उसके दो बड़े बड़े खरबूजों के दर्शन हुए! मन कर रहा था कि अभी पकड़ कर दबा दूँ ! पर मजबूर था !
अचानक उसके पापा के किसी दोस्त का फ़ोन आ गया, वो फ़ोन पर बात करने के लिए साथ वाले कमरे में चले गए। मुझे भी मौका मिल गया उनकी बेटी से बात करने का !
मैंने उससे पहले उसका नाम पूछा, उसने अपना नाम पूनम बताया, जैसा रूप-रंग वैसा नाम ! एकदम पूनम का चाँद !
बातों का सिलसिला चल निकला, मैंने उससे उसका मोबाइल नंबर माँगा तो उसने फ़ौरन अपना नंबर मुझे दे दिया और मैंने भी अपना नंबर उसको दे दिया। इतने में उसकी मम्मी ने अन्दर से उसको आवाज दी।
मैंने उसको कहा- मैं तुम्हें कल फ़ोन करूंगा !
फिर मैंने अंकल को कहा- अब मुझे चलना चाहिए, बहुत देर हो गई है। फिर मैं वहाँ से चला आया। सारे रास्ते मैं पूनम के बारे में सोचता रहा कि काश एक बार पूनम की चूत मिल जाये तो मैं निहाल हो जाऊंगा।
घर पर पहुंच कर खाना खाया और सोने चला गया। लेकिन मेरी आँखों में नींद कहाँ ! मुझे तो हर तरफ सिर्फ वो ही नज़र आ रही थी। ख़ैर किसी तरह रात कटी, मैं सुबह जल्दी ऑफिस के लिए निकल गया। ऑफिस से मैंने उसको फ़ोन किया। जैसे ही मैंने हेल्लो कहा, उसने मेरी आवाज़ पहचान ली और कहा- मैं तुम्हारे फ़ोन का ही इंतजार कर रही थी, मुझे पता था कि तुम मुझे आज फ़ोन जरुर करोगे।
उसने कल जो मैंने उसके पापा की मदद की थी उसके लिए मेरा धन्यवाद किया और कहा कि वो अपने पापा से बहुत प्यार करती है।
फिर मैंने भी पूनम से कहा- पूनम, मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ अगर तुम मुझे गलत ना समझो तो कहूँ !
तो वो बोली- ललित जी, आप जो कहना चाहते हो, कह दो !
जैसे कि उसको पता था कि मैं क्या कहना चाहता हूँ ! मैंने कहा- मुझे तुमसे पहली नज़र में प्यार हो गया है, कल सारी रात मुझे नींद नहीं आई, सारी रात तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा !
उसने मेरी सचाई की कदर करते हुए कहा- ललित, जो हाल तुम्हारा था रात को, वही मेरा था, मैं भी सारी रात सो नहीं सकी, बस तुम्हारे बारे में ही सोच रही थी! मुझे भी तुमसे प्यार हो गया है।
मेरे प्यार को जब उसने कबूल किया तो थोड़ी हिम्मत आई मुझमें, वरना उसको अपने प्यार का इज़हार करते वक़्त मेरी गांड फट रही थी। लेकिन अब कोई डर नही था, दोनों तरफ आग बराबर लगी हुई थी ! अब तो रोज़ हम दोनों फ़ोन पर बातें करते और जब भी ऑफिस की छुट्टी होती तो मैं उससे मिलने उसको कॉलेज चला जाता ! कभी पिक्चर देखने तो कभी किसी रेस्टोरेंट जाने लगे ! रविवार के दिन हम दोनों ने कहीं बाहर घूमने का कार्यक्रम बनाया।
तय वक्त पर मैं उसको अपनी बाइक पर ले कर लवर्स पार्क में (यानि बुद्धा गार्डन) पहुंचा और एक सुनसान से जगह पर, जहाँ कोई हमें तंग करने वाला नहीं था, बैठ कर बातें करने लगे ! बातों-बातों में मैंने उसकी जांघों पर हाथ रख दिया। उसने कोई विरोध नहीं किया, जिससे मेरी हिम्मत बढ़ गई! धीरे धीरे मैंने उसकी जांघों पर अपना हाथ फेरना शुरू किया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की जिससे मेरी हिम्मत और बढ़ गई !
मैंने उससे पूछा- पूनम, क्या मैं तुम्हें चूम सकता हूँ ?
तो उसने मुझे कहा- मुझ पर तुम्हारा पूरा हक है ललित ! जिसको प्यार करते हैं उससे इजाजत की कोई जरुरत नहीं ! मैं तुम्हें और तुम मुझे प्यार करते हो और अगर तुम्हारा मुझे चूमने का दिल कर रहा है तो कर लो !
फिर क्या था ! हरी झंडी पा कर मैं खुश हो गया और पूनम को चूमने लगा। थोड़ी देर तक उसके होंटों को चूमता रहा और धीरे धीरे उसके स्तन दबाने लगा। फ़िर उसके कुरते में हाथ डालकर, फिर धीरे से उसकी ब्रा में हाथ डाल कर उसके चुचूक मसलने लगा। उसका कुरता ऊपर करके उसके पेट पर चूमने लगा। उसने मुझे रोकते हुए कहा- ललित यहाँ नहीं ! यह जगह सुनसान जरुर है पर सुरक्षित नहीं ! किसी ऐसी जगह चलो जहाँ पर तुम्हारे और मेरे अलावा कोई और न हो !
तो मैं उसको अपने ऑफिस ले कर चला आया। रविवार होने की वजह से ऑफिस की छुट्टी थी। मेरे केबिन की चाबी मेरे ही पास थी। ऑफिस जाकर मैंने गार्ड को कहा कि मुझे कुछ जरुरी काम है इसलिए ऑफिस आया हूँ और अन्दर चला गया पीछे के दवाजे से पूनम को भी अन्दर बुला लिया। अपने केबिन को अन्दर से लॉक कर लिया। फिर पूनम को अपनी बाँहों में लेकर चूमने लगा, उसके बड़े बड़े दूध दबाने लगा। वो भी पूरी मस्ती में मेरा साथ देने लगी। कभी मेरे होंटों को चूसती तो कभी मेरी जीभ को ! लगता था कि जैसे मुझसे ज्यादा वो प्यासी हो ! मैंने उसको कुरते को उसके शरीर से अलग कर दिया और उसकी सलवार का नाड़ा खोल कर उसे भी उसके जिस्म से जुदा कर दिया। अब वो केवल ब्रा और पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी। मैं उसको चूमता रहा, गर्दन से होते हुए उसकी पीठ पर चूमते हुए मैंने उसकी ब्रा खोलकर उसके जिस्म से अलग कर दी और उसके दोनों कबूतर आजाद हो कर बाहर निकल आये !
क्या मस्त स्तन थे उसके ! मैं बता नहीं सकता ! गोरे गोरे स्तनों उस पर गुलाबी चुचूक मुझे पागल बना रहे थे।
उसने मुझे कहा- ललित, तुमने मेरे तो सब कपड़े उतार दिए ! क्या अपने कपड़े नहीं उतारोगे ? या मुझसे उतरवाने का इरादा है?
मैंने कहा- अगर तुम उतारना चाहो तो उतार दो ! फिर उसने भी मेरे सब कपड़े उतार कर बगल में अपने कपड़ों के साथ रख दिए। फिर मैंने देर न करते हुए उसकी पैंटी भी उतार दी। उसका एक चूचा मेरे मुँह में था और दूसरे को हाथ में ले कर दबा रहा था। उसकी चूची चूसते हुए मैंने उसको फर्श पर लिटा दिया और उसके पेट पर अपनी जीभ फिरने लगा। फिर मैंने उसकी बालों वाली चूत पर अपना हाथ रख दिया, उसकी चूत से पानी निकल रहा था !
मैंने अपने एक ऊँगली उसकी चूत में डाल दी, वो सिसक उठी और पागलों की तरह मेरे बालों को नोचने लगी। मैं अपनी ऊँगली उसकी चूत में अन्दर-बाहर करने लगा। थोड़ी देर बाद मैंने अपनी ऊँगली उसकी चूत से निकाल कर अपनी जीभ से उसकी चूत चाटने लगा। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। उसने मेरे सर को उसने अपनी चूत पर कस कर दबा लिया और अपने पैरों को मेरी गर्दन के चारों तरफ लपेट लिया और कुछ देर में वो झड़ गई !
मैंने उसको अपना लंड चूसने के लिए कहा तो उसके ऐसे मुँह में लिया जैसे कोई आइसक्रीम खा रहा हो। बड़ी मस्ती में वो मेरे लंड को चूस रही थी।
कुछ देर बाद उसने कहा- ललित, अब बर्दाश्त नहीं होता ! फाड़ दो मेरी चूत को !
मैंने उसकी टांगों को थोड़ा सा ऊपर मोड़ कर लंड को निशाने पर लगाकर एक धक्का दिया। लंड करीब एक चौथाई तक उसकी चूत में घुस गया था। वो दर्द से तड़प रही थी। मैं लंड उसकी चूत में डाले उस पर पड़ा रहा। जब उसका दर्द कम हुआ तो एक और धक्का मारा। मेरा आधा लंड उसकी चूत में समा चुका था। उसकी चूत से खून निकलने लगा। 15 मिनट तक मैंने धक्के नहीं लगाये, सिर्फ उसके वक्ष को ही मसलता रहा। जब दर्द ख़त्म होने लगा तो लंड महाराज को एक जोरदार धक्के के साथ चूत की जड़ तक पहुंचा दिया। वो दर्द से तड़पने लगी, मुझे लंड बाहर निकलने के लिए बोलने लगी, कहने लगी- बाहर निकालो ! दर्द बहुत हो रहा है ! मैं मर जाउंगी !
करीब दस मिनट बाद उसका दर्द कम हो गया ओर वो नीचे से अपने चूतड़ हिला-हिला कर मेरा साथ देने लगी। अब मैं और वो पूरे जोश में थे।
वो बोल रही थी- जोर से चोदो मेरे राजा ! निकाल दो कचूमर मेरी चूत का ! बहुत तंग किया है इसने मुझे ! पी जाओ मेरी जवानी का रस ! खूब जोर लगा कर चोदो! जूऊऊऊऊऊ सीईई मीईरीईईए राआअजाआआअ औररररररर जोर सीई मीएरीईई माआआआआआ मैं तो डिसचार्ज होने वाली हूँ !
ये कहते हुए वो झड़ गई लेकिन मैं अभी इतनी जल्दी डिस्चार्ज नहीं होने वाला था। लंड निकाल कर उसकी चूत से मैंने उसके मुँह में दे दिया! वो लंड को चाट-चाट कर मजे ले रही थी। थोड़ी देर बाद मैंने उसके मुँह से लंड निकाल कर उसको घोड़ी बना कर उसकी चूत में डाल दिया और धक्के लगाने लगा। उसको तो पता नहीं पर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था! वो भी मजे से अपने चूतड़ आगे पीछे कर के मेरा लंड अपनी चूत में डलवाने लगी।
क्या मस्त चुदाई चल रही थी ! पूरा केबिन फच फच की आवाज से गूंज रहा था। अब मैं भी अपनी चरमसीमा पर आने वाला था तो मैंने उसको सीधा लिटाया और लंड उसकी चूत में डाल कर धक्के लगाने लगा।
उससे मैंने कहा- पूनम, मेरा निकलने वाला है !
तो उसने कहा- आज तो अपनी चूत में तुम्हारा अमृत रस डलवाना है ! अन्दर ही डिस्चार्ज होना ! भर दो अपने अमृत से मेरी चूत को !
और 5-7 धक्कों के बाद मैंने अपने सारा वीर्य उसकी चूत में डाल दिया और कुछ देर उसके ऊपर ही पड़ा रहा ! थोड़ी देर बाद मैं उस पर से हटा तो देखा कि उसकी चूत की सील टूटने से उसकी चूत से खून और वीर्य बह रहा था। हम दोनों सीधे बाथरूम में गए और खुद को साफ़ किया। इसके बाद बाहर आकर मैं उसको और वो मुझे चूमने लगी। किस करते करते हम दोनों में फिर से जोश आ गया और फिर से उसकी चुदाई शुरू कर दी मैंने !
वो मेरा लंड चूस रही थी, मैं उसकी चूत चाटने लगा। 69 की पोजीशन में थे हम दोनों !
अपनी जीभ मैंने उसकी चूत में अन्दर तक डाल दी। वो लंड को बड़े आनंद लेकर चूसती रही, कभी अंडों को चूसती, कभी लंड ! मैंने उसको खड़ा किया और नीचे झुका। उसकी चूत में पीछे से लंड डाल कर चोदने लगा। उस दिन मैंने उसको चर बार चोदा। फिर करीब दो साल तक उसकी चुदाई की उसी के घर पर।
अब उसकी शादी हो चुकी है, शादी के बाद भी मैंने उसको कई बार चोदा
मेरा नाम ललित है, दिल्ली का रहने वाला हूँ।बात उन दिनों की है जब मैं अपने ऑफिस से घर जा रहा था रास्ते में एक आदमी पड़ा हुआ था। मैं हिम्मत कर के उसके पास गया। उसको दमा का दौरा पड़ा था! वो अपनी जेब से कुछ निकलने की कोशिश कर रहा था! मैंने उसकी जेब से इन्हेलर निकलने में मदद की। इन्हेलर को मुँह में पम्प करने के कुछ देर बाद वो थोड़ा ठीक हुए और मुझे धन्यवाद कहा।
मैंने पूछा- अगर आपको कहीं जाना है तो मैं छोड़ दूँ, आपकी तबियत ठीक नहीं है, कहीं दोबारा से दौरा पड़ा तो कौन संभालेगा !
वो मेरी बात मान गए और मेरे साथ बाइक पर बैठ गए ! कुछ देर में मैं उनको लेकर उनके घर पर पहुंच गया। उन्होंने मुझे घर के अन्दर आने के लिए कहा, अपने परिवार वालों को सारी बात बताई। उनके परिवार वालों ने भी मुझे धन्यवाद कहा। फिर उन्होंने मुझे चाय पिलाई!
चाय उनकी बेटी ले कर आई थी। क्या बला की खूबसूरत थी, जो भी देख ले, बस देखता ही रह जाये ! फिगर 36 28 36 ! कसम से खुदा ने बहुत फुर्सत में बनाया होगा ! जैसे ही वो मेरी तरफ चाय बढ़ाने के लिए झुकी, मुझे उसके दो बड़े बड़े खरबूजों के दर्शन हुए! मन कर रहा था कि अभी पकड़ कर दबा दूँ ! पर मजबूर था !
अचानक उसके पापा के किसी दोस्त का फ़ोन आ गया, वो फ़ोन पर बात करने के लिए साथ वाले कमरे में चले गए। मुझे भी मौका मिल गया उनकी बेटी से बात करने का !
मैंने उससे पहले उसका नाम पूछा, उसने अपना नाम पूनम बताया, जैसा रूप-रंग वैसा नाम ! एकदम पूनम का चाँद !
बातों का सिलसिला चल निकला, मैंने उससे उसका मोबाइल नंबर माँगा तो उसने फ़ौरन अपना नंबर मुझे दे दिया और मैंने भी अपना नंबर उसको दे दिया। इतने में उसकी मम्मी ने अन्दर से उसको आवाज दी।
मैंने उसको कहा- मैं तुम्हें कल फ़ोन करूंगा !
फिर मैंने अंकल को कहा- अब मुझे चलना चाहिए, बहुत देर हो गई है। फिर मैं वहाँ से चला आया। सारे रास्ते मैं पूनम के बारे में सोचता रहा कि काश एक बार पूनम की चूत मिल जाये तो मैं निहाल हो जाऊंगा।
घर पर पहुंच कर खाना खाया और सोने चला गया। लेकिन मेरी आँखों में नींद कहाँ ! मुझे तो हर तरफ सिर्फ वो ही नज़र आ रही थी। ख़ैर किसी तरह रात कटी, मैं सुबह जल्दी ऑफिस के लिए निकल गया। ऑफिस से मैंने उसको फ़ोन किया। जैसे ही मैंने हेल्लो कहा, उसने मेरी आवाज़ पहचान ली और कहा- मैं तुम्हारे फ़ोन का ही इंतजार कर रही थी, मुझे पता था कि तुम मुझे आज फ़ोन जरुर करोगे।
उसने कल जो मैंने उसके पापा की मदद की थी उसके लिए मेरा धन्यवाद किया और कहा कि वो अपने पापा से बहुत प्यार करती है।
फिर मैंने भी पूनम से कहा- पूनम, मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ अगर तुम मुझे गलत ना समझो तो कहूँ !
तो वो बोली- ललित जी, आप जो कहना चाहते हो, कह दो !
जैसे कि उसको पता था कि मैं क्या कहना चाहता हूँ ! मैंने कहा- मुझे तुमसे पहली नज़र में प्यार हो गया है, कल सारी रात मुझे नींद नहीं आई, सारी रात तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा !
उसने मेरी सचाई की कदर करते हुए कहा- ललित, जो हाल तुम्हारा था रात को, वही मेरा था, मैं भी सारी रात सो नहीं सकी, बस तुम्हारे बारे में ही सोच रही थी! मुझे भी तुमसे प्यार हो गया है।
मेरे प्यार को जब उसने कबूल किया तो थोड़ी हिम्मत आई मुझमें, वरना उसको अपने प्यार का इज़हार करते वक़्त मेरी गांड फट रही थी। लेकिन अब कोई डर नही था, दोनों तरफ आग बराबर लगी हुई थी ! अब तो रोज़ हम दोनों फ़ोन पर बातें करते और जब भी ऑफिस की छुट्टी होती तो मैं उससे मिलने उसको कॉलेज चला जाता ! कभी पिक्चर देखने तो कभी किसी रेस्टोरेंट जाने लगे ! रविवार के दिन हम दोनों ने कहीं बाहर घूमने का कार्यक्रम बनाया।
तय वक्त पर मैं उसको अपनी बाइक पर ले कर लवर्स पार्क में (यानि बुद्धा गार्डन) पहुंचा और एक सुनसान से जगह पर, जहाँ कोई हमें तंग करने वाला नहीं था, बैठ कर बातें करने लगे ! बातों-बातों में मैंने उसकी जांघों पर हाथ रख दिया। उसने कोई विरोध नहीं किया, जिससे मेरी हिम्मत बढ़ गई! धीरे धीरे मैंने उसकी जांघों पर अपना हाथ फेरना शुरू किया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की जिससे मेरी हिम्मत और बढ़ गई !
मैंने उससे पूछा- पूनम, क्या मैं तुम्हें चूम सकता हूँ ?
तो उसने मुझे कहा- मुझ पर तुम्हारा पूरा हक है ललित ! जिसको प्यार करते हैं उससे इजाजत की कोई जरुरत नहीं ! मैं तुम्हें और तुम मुझे प्यार करते हो और अगर तुम्हारा मुझे चूमने का दिल कर रहा है तो कर लो !
फिर क्या था ! हरी झंडी पा कर मैं खुश हो गया और पूनम को चूमने लगा। थोड़ी देर तक उसके होंटों को चूमता रहा और धीरे धीरे उसके स्तन दबाने लगा। फ़िर उसके कुरते में हाथ डालकर, फिर धीरे से उसकी ब्रा में हाथ डाल कर उसके चुचूक मसलने लगा। उसका कुरता ऊपर करके उसके पेट पर चूमने लगा। उसने मुझे रोकते हुए कहा- ललित यहाँ नहीं ! यह जगह सुनसान जरुर है पर सुरक्षित नहीं ! किसी ऐसी जगह चलो जहाँ पर तुम्हारे और मेरे अलावा कोई और न हो !
तो मैं उसको अपने ऑफिस ले कर चला आया। रविवार होने की वजह से ऑफिस की छुट्टी थी। मेरे केबिन की चाबी मेरे ही पास थी। ऑफिस जाकर मैंने गार्ड को कहा कि मुझे कुछ जरुरी काम है इसलिए ऑफिस आया हूँ और अन्दर चला गया पीछे के दवाजे से पूनम को भी अन्दर बुला लिया। अपने केबिन को अन्दर से लॉक कर लिया। फिर पूनम को अपनी बाँहों में लेकर चूमने लगा, उसके बड़े बड़े दूध दबाने लगा। वो भी पूरी मस्ती में मेरा साथ देने लगी। कभी मेरे होंटों को चूसती तो कभी मेरी जीभ को ! लगता था कि जैसे मुझसे ज्यादा वो प्यासी हो ! मैंने उसको कुरते को उसके शरीर से अलग कर दिया और उसकी सलवार का नाड़ा खोल कर उसे भी उसके जिस्म से जुदा कर दिया। अब वो केवल ब्रा और पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी। मैं उसको चूमता रहा, गर्दन से होते हुए उसकी पीठ पर चूमते हुए मैंने उसकी ब्रा खोलकर उसके जिस्म से अलग कर दी और उसके दोनों कबूतर आजाद हो कर बाहर निकल आये !
क्या मस्त स्तन थे उसके ! मैं बता नहीं सकता ! गोरे गोरे स्तनों उस पर गुलाबी चुचूक मुझे पागल बना रहे थे।
उसने मुझे कहा- ललित, तुमने मेरे तो सब कपड़े उतार दिए ! क्या अपने कपड़े नहीं उतारोगे ? या मुझसे उतरवाने का इरादा है?
मैंने कहा- अगर तुम उतारना चाहो तो उतार दो ! फिर उसने भी मेरे सब कपड़े उतार कर बगल में अपने कपड़ों के साथ रख दिए। फिर मैंने देर न करते हुए उसकी पैंटी भी उतार दी। उसका एक चूचा मेरे मुँह में था और दूसरे को हाथ में ले कर दबा रहा था। उसकी चूची चूसते हुए मैंने उसको फर्श पर लिटा दिया और उसके पेट पर अपनी जीभ फिरने लगा। फिर मैंने उसकी बालों वाली चूत पर अपना हाथ रख दिया, उसकी चूत से पानी निकल रहा था !
मैंने अपने एक ऊँगली उसकी चूत में डाल दी, वो सिसक उठी और पागलों की तरह मेरे बालों को नोचने लगी। मैं अपनी ऊँगली उसकी चूत में अन्दर-बाहर करने लगा। थोड़ी देर बाद मैंने अपनी ऊँगली उसकी चूत से निकाल कर अपनी जीभ से उसकी चूत चाटने लगा। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। उसने मेरे सर को उसने अपनी चूत पर कस कर दबा लिया और अपने पैरों को मेरी गर्दन के चारों तरफ लपेट लिया और कुछ देर में वो झड़ गई !
मैंने उसको अपना लंड चूसने के लिए कहा तो उसके ऐसे मुँह में लिया जैसे कोई आइसक्रीम खा रहा हो। बड़ी मस्ती में वो मेरे लंड को चूस रही थी।
कुछ देर बाद उसने कहा- ललित, अब बर्दाश्त नहीं होता ! फाड़ दो मेरी चूत को !
मैंने उसकी टांगों को थोड़ा सा ऊपर मोड़ कर लंड को निशाने पर लगाकर एक धक्का दिया। लंड करीब एक चौथाई तक उसकी चूत में घुस गया था। वो दर्द से तड़प रही थी। मैं लंड उसकी चूत में डाले उस पर पड़ा रहा। जब उसका दर्द कम हुआ तो एक और धक्का मारा। मेरा आधा लंड उसकी चूत में समा चुका था। उसकी चूत से खून निकलने लगा। 15 मिनट तक मैंने धक्के नहीं लगाये, सिर्फ उसके वक्ष को ही मसलता रहा। जब दर्द ख़त्म होने लगा तो लंड महाराज को एक जोरदार धक्के के साथ चूत की जड़ तक पहुंचा दिया। वो दर्द से तड़पने लगी, मुझे लंड बाहर निकलने के लिए बोलने लगी, कहने लगी- बाहर निकालो ! दर्द बहुत हो रहा है ! मैं मर जाउंगी !
करीब दस मिनट बाद उसका दर्द कम हो गया ओर वो नीचे से अपने चूतड़ हिला-हिला कर मेरा साथ देने लगी। अब मैं और वो पूरे जोश में थे।
वो बोल रही थी- जोर से चोदो मेरे राजा ! निकाल दो कचूमर मेरी चूत का ! बहुत तंग किया है इसने मुझे ! पी जाओ मेरी जवानी का रस ! खूब जोर लगा कर चोदो! जूऊऊऊऊऊ सीईई मीईरीईईए राआअजाआआअ औररररररर जोर सीई मीएरीईई माआआआआआ मैं तो डिसचार्ज होने वाली हूँ !
ये कहते हुए वो झड़ गई लेकिन मैं अभी इतनी जल्दी डिस्चार्ज नहीं होने वाला था। लंड निकाल कर उसकी चूत से मैंने उसके मुँह में दे दिया! वो लंड को चाट-चाट कर मजे ले रही थी। थोड़ी देर बाद मैंने उसके मुँह से लंड निकाल कर उसको घोड़ी बना कर उसकी चूत में डाल दिया और धक्के लगाने लगा। उसको तो पता नहीं पर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था! वो भी मजे से अपने चूतड़ आगे पीछे कर के मेरा लंड अपनी चूत में डलवाने लगी।
क्या मस्त चुदाई चल रही थी ! पूरा केबिन फच फच की आवाज से गूंज रहा था। अब मैं भी अपनी चरमसीमा पर आने वाला था तो मैंने उसको सीधा लिटाया और लंड उसकी चूत में डाल कर धक्के लगाने लगा।
उससे मैंने कहा- पूनम, मेरा निकलने वाला है !
तो उसने कहा- आज तो अपनी चूत में तुम्हारा अमृत रस डलवाना है ! अन्दर ही डिस्चार्ज होना ! भर दो अपने अमृत से मेरी चूत को !
और 5-7 धक्कों के बाद मैंने अपने सारा वीर्य उसकी चूत में डाल दिया और कुछ देर उसके ऊपर ही पड़ा रहा ! थोड़ी देर बाद मैं उस पर से हटा तो देखा कि उसकी चूत की सील टूटने से उसकी चूत से खून और वीर्य बह रहा था। हम दोनों सीधे बाथरूम में गए और खुद को साफ़ किया। इसके बाद बाहर आकर मैं उसको और वो मुझे चूमने लगी। किस करते करते हम दोनों में फिर से जोश आ गया और फिर से उसकी चुदाई शुरू कर दी मैंने !
वो मेरा लंड चूस रही थी, मैं उसकी चूत चाटने लगा। 69 की पोजीशन में थे हम दोनों !
अपनी जीभ मैंने उसकी चूत में अन्दर तक डाल दी। वो लंड को बड़े आनंद लेकर चूसती रही, कभी अंडों को चूसती, कभी लंड ! मैंने उसको खड़ा किया और नीचे झुका। उसकी चूत में पीछे से लंड डाल कर चोदने लगा। उस दिन मैंने उसको चर बार चोदा। फिर करीब दो साल तक उसकी चुदाई की उसी के घर पर।
अब उसकी शादी हो चुकी है, शादी के बाद भी मैंने उसको कई बार चोदा
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )
- rangila
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रिश्तों में चुदाई
सास के साथ मस्ती
मेरा नाम राज है और मैं 28 साल का हूँ, दिल्ली का रहने वाला हूँ, मेरी शादी को हुए दो साल हो गए है, मेरी सास 36 साल की एकदम जवान औरत है, बहुत सेक्सी है, मेरा तो उसे देखते ही खड़ा हो जाता है। मैं हमेशा उसकी फोटो देख के मुठ मारता हूँ, मैं हमेशा उसको देखता रहता था, हमेशा उसको चोदना चाहता था, उसके मुँह पर मुठ मारने का मन करता था।
बात उन दिनों की है जब मेरे सास हमारे यहाँ रहने आई क्योंकि मेरे बीवी की तबीयत ख़राब रहती थी, मैं बहुत खुश हो गया। जब वो नहाने जाती तो नहाने के बाद मैं तुरन्त नहाने चला जाता था ताकि वो आपने कपडे नहीं धो पाए। उसके गीले कपड़ों में मैं ब्रा और पैंटी खोजता और मैं उसकी गीली पैंटी को सूंघता और उसको मुँह में डाल कर चूस लेता। मैं दोनों पर खूब मुठ मरता था, जब वो सोती थी तो अकसर उसकी साड़ी उठ जाती थी और मैं उसकी फोटो ले लेता था। इस तरह मुझे बहुत मजा आने लगा, फिर क्या, मैं उसको चोदना चाहता था।
और आखिर वो दिन आ गया, एक दिन मेरे बीवी अपने छोटे भाई जो सात साल का है उसे लेकर पार्क में घूमने चली गई, मैं और मेरी सास घर पर अकेले थे। मैं बिस्तर पर बैठ कर लैपटॉप पर काम कर रहा था।
इतने में मेरी सास मेरे पास आकर बिस्तर के ऊपर खड़ी हो गई और अपनी साड़ी उठा कर मेरे मुँह पर ढक कर बोली- ले चाट ले अपनी सास की बुर ! यही चाहते थे न तुम ?
मेरी कुछ समझ में नहीं आया।
साड़ी के अंदर बिल्कुल अँधेरा था।
वह बोली- क्या मुझे नहीं पता कि तुझे क्या चाहिये !
मैं उठा और अलग हो गया।
वो बोली- क्यों ? अपनी सास की बुर नहीं चाटनी?
मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया, साड़ी खोल दी और पेटीकोट के अंदर घुस गया। उसकी जाघें बहुत मोटी और मस्त थी।
फिर मैंने उसकी पैंटी सूंघी, क्या खुशबू थी ! फिर मैं उसकी पैंटी को चाटने लगा।
मैंने पूछा- आपको कैसे पता चला कि मुझे क्या चाहिए?
बोली- साले ! हमेशा मुझे घूरते रहते हो ! मेरे नहाने के बाद तुरंत नहाने चले जाते हो ! मेरी पैंटी और ब्रा पर मुठ मारते हो और पूछते हो कैसे पता चला? पैंटी धोते समय मुझे पता चल गया।
बोली- क्या मैं तुम्हें इतनी अच्छी लगती हूँ?
मैंने कहा- बहुत अच्छी !
चोदना चाहते हो मुझ को?
मैंने कहा- हां ! बहुत दिनों से !
बोली- आजा राजा चोद दे अपनी सास को !
मैं पागल सा हो गया। मैंने पेटीकोट खोल दिया, अब वो सिर्फ पैंटी और ब्लाउज मैं थी, मैंने पैंटी के अन्दर हाथ डाल दिया और पैंटी निकाल दी और मुँह में लेकर चूसने लगा।
वह बोली- पैंटी से बहुत खेल चुके ! अब बुर से खेलो !
क्या लाल बुर थी साली की ! और थोड़े थोड़े बाल थे ! मस्त सेक्सी लग रही थी।
मैंने अपना मुँह उसकी बुर पर रख दिया और चाटना शुरु कर दिया। वो सिसकारिययाँ लेने लगी- और चाट साले, पीले अपनी सास की बुर !
मैं लगातार बुर चाटता रहा।
इतने में बोली- मुझे पेशाब करना है !
मैंने कहा- रुको ! मेरे मुँह में करो !
वो बोली- क्यों ?
मैंने कहा- मैं पी लूँगा !
वो बोली- साले, मेरा पेशाब पीयोगे?
मैंने कहा- हाँ, मैं बुर के पास मुँह रखता हूँ, तुम करो !
उसने पेशाब करना शुरु किया, मैं पूरा पेशाब पी गया और कहा- मज़ा आ गया !
वो बोली- कैसा था ?
मैंने कहा- बहुत स्वादिष्ट !
मैंने उसकी बुर चाट कर साफ कर दी और उसमें उंगली डाल कर हिलाने लगा। फिर मैंने उसकी गांड को चाटना शुरु किया। क्या गांड थी साली की ! पर छेद बहुत छोटा था, शायद कोरी गांड थी ! मैंने उसकी गांड पूरी चाट ली।
वो बोली- नीचे ही लगा रहेगा या ऊपर भी आएगा ?
उसके काले ब्लाउज से सफेद ब्रा साफ़ दिख रही थी। मुझे ब्लाउज के ऊपर से ब्रा देखने में बहुत अच्छा लगता है, मैं ब्लाउज के ऊपर से ब्रा छूने लगा और फिर ब्लाउज खोल दिया और ब्रा के ऊपर से चूचियों को दबाने लगा।
क्या बड़ी-बड़ी चूचियाँ थी साली की !
फिर मैंने ब्रा खोल दी और चूचियों को मुँह में ले लिया और खूब चूसा। वो बहुत मज़े ले रही थी मस्त-मस्त गालियाँ दी रही थी।
मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और जीभ उसके मुँह में डाल दी।
वो बोली- चलो, अब जल्दी से चोद दो !
मैंने कहा- पहले लण्ड तो चूस लो !
बोली- ला दे !
और मेरा लण्ड चूसने लगी। मै अपना लण्ड उसके मुँह में आगे-पीछे करने लगा।
अब मुझे नहीं रहा गया, मेरा लंड साप की तरह फ़ुन्कारें मार रहा था, मैंने लंड उसकी बुर पर रखा और धीरे-धीरे पूरा लण्ड अपनी सास की बुर में पेल दिया।
वो जोर से चीखी और बोली- हरामी, धीरे से !
मैंने अपना लण्ड उसकी बुर में आगे-पीछे करना शुरु किया। वो भी मस्त होकर गाण्ड उठा-उठा कर चुदवा रही थी और गालियाँ दे रही थी- चोद दे हरामी अपनी सास को ! फ़ाड़ दे मेरी बुर !
मैंने स्पीड बढ़ा दी और कहा- कुछ देर में मेरा गिरने वाला है ! जल्दी मुँह खोलो !
और सारा माल मैंने उसके मुँह में डाल दिया और कुछ उसके चेहरे पर फ़ैला दिया और सारा माल पिलाया।
मैंने पूछा- मज़ा आया?
वो बोली- बहुत मज़ा आया !
उसने कहा- मेरे गांड मारेगा ?
मैंने कहा- हाँ !
पर काफी देर हो गई थी, हमें डर था कि कहीं मेरे बीवी न आ जाये !
वो बोली- ठीक है ! अगली बार !
गाण्ड की कहानी अगले भाग में !
अब क्या, जब भी मौका मिलता मैं अपनी सास को खूब चोदता हूँ और वो भी बड़े मज़े से चुदवाती है।
मेरा नाम राज है और मैं 28 साल का हूँ, दिल्ली का रहने वाला हूँ, मेरी शादी को हुए दो साल हो गए है, मेरी सास 36 साल की एकदम जवान औरत है, बहुत सेक्सी है, मेरा तो उसे देखते ही खड़ा हो जाता है। मैं हमेशा उसकी फोटो देख के मुठ मारता हूँ, मैं हमेशा उसको देखता रहता था, हमेशा उसको चोदना चाहता था, उसके मुँह पर मुठ मारने का मन करता था।
बात उन दिनों की है जब मेरे सास हमारे यहाँ रहने आई क्योंकि मेरे बीवी की तबीयत ख़राब रहती थी, मैं बहुत खुश हो गया। जब वो नहाने जाती तो नहाने के बाद मैं तुरन्त नहाने चला जाता था ताकि वो आपने कपडे नहीं धो पाए। उसके गीले कपड़ों में मैं ब्रा और पैंटी खोजता और मैं उसकी गीली पैंटी को सूंघता और उसको मुँह में डाल कर चूस लेता। मैं दोनों पर खूब मुठ मरता था, जब वो सोती थी तो अकसर उसकी साड़ी उठ जाती थी और मैं उसकी फोटो ले लेता था। इस तरह मुझे बहुत मजा आने लगा, फिर क्या, मैं उसको चोदना चाहता था।
और आखिर वो दिन आ गया, एक दिन मेरे बीवी अपने छोटे भाई जो सात साल का है उसे लेकर पार्क में घूमने चली गई, मैं और मेरी सास घर पर अकेले थे। मैं बिस्तर पर बैठ कर लैपटॉप पर काम कर रहा था।
इतने में मेरी सास मेरे पास आकर बिस्तर के ऊपर खड़ी हो गई और अपनी साड़ी उठा कर मेरे मुँह पर ढक कर बोली- ले चाट ले अपनी सास की बुर ! यही चाहते थे न तुम ?
मेरी कुछ समझ में नहीं आया।
साड़ी के अंदर बिल्कुल अँधेरा था।
वह बोली- क्या मुझे नहीं पता कि तुझे क्या चाहिये !
मैं उठा और अलग हो गया।
वो बोली- क्यों ? अपनी सास की बुर नहीं चाटनी?
मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया, साड़ी खोल दी और पेटीकोट के अंदर घुस गया। उसकी जाघें बहुत मोटी और मस्त थी।
फिर मैंने उसकी पैंटी सूंघी, क्या खुशबू थी ! फिर मैं उसकी पैंटी को चाटने लगा।
मैंने पूछा- आपको कैसे पता चला कि मुझे क्या चाहिए?
बोली- साले ! हमेशा मुझे घूरते रहते हो ! मेरे नहाने के बाद तुरंत नहाने चले जाते हो ! मेरी पैंटी और ब्रा पर मुठ मारते हो और पूछते हो कैसे पता चला? पैंटी धोते समय मुझे पता चल गया।
बोली- क्या मैं तुम्हें इतनी अच्छी लगती हूँ?
मैंने कहा- बहुत अच्छी !
चोदना चाहते हो मुझ को?
मैंने कहा- हां ! बहुत दिनों से !
बोली- आजा राजा चोद दे अपनी सास को !
मैं पागल सा हो गया। मैंने पेटीकोट खोल दिया, अब वो सिर्फ पैंटी और ब्लाउज मैं थी, मैंने पैंटी के अन्दर हाथ डाल दिया और पैंटी निकाल दी और मुँह में लेकर चूसने लगा।
वह बोली- पैंटी से बहुत खेल चुके ! अब बुर से खेलो !
क्या लाल बुर थी साली की ! और थोड़े थोड़े बाल थे ! मस्त सेक्सी लग रही थी।
मैंने अपना मुँह उसकी बुर पर रख दिया और चाटना शुरु कर दिया। वो सिसकारिययाँ लेने लगी- और चाट साले, पीले अपनी सास की बुर !
मैं लगातार बुर चाटता रहा।
इतने में बोली- मुझे पेशाब करना है !
मैंने कहा- रुको ! मेरे मुँह में करो !
वो बोली- क्यों ?
मैंने कहा- मैं पी लूँगा !
वो बोली- साले, मेरा पेशाब पीयोगे?
मैंने कहा- हाँ, मैं बुर के पास मुँह रखता हूँ, तुम करो !
उसने पेशाब करना शुरु किया, मैं पूरा पेशाब पी गया और कहा- मज़ा आ गया !
वो बोली- कैसा था ?
मैंने कहा- बहुत स्वादिष्ट !
मैंने उसकी बुर चाट कर साफ कर दी और उसमें उंगली डाल कर हिलाने लगा। फिर मैंने उसकी गांड को चाटना शुरु किया। क्या गांड थी साली की ! पर छेद बहुत छोटा था, शायद कोरी गांड थी ! मैंने उसकी गांड पूरी चाट ली।
वो बोली- नीचे ही लगा रहेगा या ऊपर भी आएगा ?
उसके काले ब्लाउज से सफेद ब्रा साफ़ दिख रही थी। मुझे ब्लाउज के ऊपर से ब्रा देखने में बहुत अच्छा लगता है, मैं ब्लाउज के ऊपर से ब्रा छूने लगा और फिर ब्लाउज खोल दिया और ब्रा के ऊपर से चूचियों को दबाने लगा।
क्या बड़ी-बड़ी चूचियाँ थी साली की !
फिर मैंने ब्रा खोल दी और चूचियों को मुँह में ले लिया और खूब चूसा। वो बहुत मज़े ले रही थी मस्त-मस्त गालियाँ दी रही थी।
मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और जीभ उसके मुँह में डाल दी।
वो बोली- चलो, अब जल्दी से चोद दो !
मैंने कहा- पहले लण्ड तो चूस लो !
बोली- ला दे !
और मेरा लण्ड चूसने लगी। मै अपना लण्ड उसके मुँह में आगे-पीछे करने लगा।
अब मुझे नहीं रहा गया, मेरा लंड साप की तरह फ़ुन्कारें मार रहा था, मैंने लंड उसकी बुर पर रखा और धीरे-धीरे पूरा लण्ड अपनी सास की बुर में पेल दिया।
वो जोर से चीखी और बोली- हरामी, धीरे से !
मैंने अपना लण्ड उसकी बुर में आगे-पीछे करना शुरु किया। वो भी मस्त होकर गाण्ड उठा-उठा कर चुदवा रही थी और गालियाँ दे रही थी- चोद दे हरामी अपनी सास को ! फ़ाड़ दे मेरी बुर !
मैंने स्पीड बढ़ा दी और कहा- कुछ देर में मेरा गिरने वाला है ! जल्दी मुँह खोलो !
और सारा माल मैंने उसके मुँह में डाल दिया और कुछ उसके चेहरे पर फ़ैला दिया और सारा माल पिलाया।
मैंने पूछा- मज़ा आया?
वो बोली- बहुत मज़ा आया !
उसने कहा- मेरे गांड मारेगा ?
मैंने कहा- हाँ !
पर काफी देर हो गई थी, हमें डर था कि कहीं मेरे बीवी न आ जाये !
वो बोली- ठीक है ! अगली बार !
गाण्ड की कहानी अगले भाग में !
अब क्या, जब भी मौका मिलता मैं अपनी सास को खूब चोदता हूँ और वो भी बड़े मज़े से चुदवाती है।
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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Desi Sex Stories
बीबी और बहु को चोदा
रात के बारह बज़ चुके थे। छोटे से गाँव राजापुर में बहुत ही सन्नाटा छ गया था। राजापुर गरीब की बस्ती है। इसी बस्ती के एक कोने में हरिया का घर है। हरिया की उमर 45 साल की है। और उसकी बीबी की उमर 40 साल की है। हरिया एक गरीब किसान है।
हरिया अपने घर के एक अँधेरी कोठरी में रोज़ की तरह अपनी बीवी की चुदाई में मशगूल था। हरिया अपनी बीबी की चूत में लंड डाल कर काफ़ी देर तक उसकी चुदाई कर रहा था। उसकी बीबी मुन्नी बिना किसी उत्तेजना के अपने दोनों पैर फैला कर यूँ ही पड़ी थी जैसे कि उसे हरिया के बड़े लंड की कोई परवाह ही न हो या फिर कोई तकलीफ़ ही न हो रही है। केवल हर धक्के पर आह आह की आवाज निकल रही थी।
मुन्नी की बुर कब का पानी छोड़ चुकी थी। थोड़ी ही देर में हरिया के लंड से माल निकलने लगा तो उसने भी आह आह कर के मुन्नी की चूची पर अपना मुँह रख दिया। मुन्नी की बेजान चूची को वो मुँह में ले कर चूसने लगा। उसने अपना लंड मुन्नी के बुर से निकाला और मुन्नी के बगल में लेट गया।
उसने अपनी बीडी जलाई और पीने लगा। मुन्नी ने उसके लटक रहे लंड को अपने हाथों में ले लिया और उसको खींच-तान करने लगी। लेकिन अब हरिया के लंड में कोई उत्साह नही था। वो एक बेजान लता की तरह मुन्नी के हाथों का खिलौना बना हुआ था।
मुन्नी ने कहा- जानते हो जी ! आज क्या हुआ?
हरिया ने कहा- क्या?
मुन्नी ने कहा- रोज़ की तरह आज मैं और मालती ( मुन्नी की बहू) सुबह शौच करने खेत गए । वहाँ हम दोनों एक दूसरे के सामने बैठ कर पाखाना कर थे....
तभी मैंने देखा कि मालती अपनी बुर में ऊँगली घुसा कर मुठ मारने लगी।
मैंने पूछा- यह क्या कर रही है तू?
तो उसने मेरी पीछे की तरफ़ इशारा किया और कहा- जरा उधर तो देखो अम्मा।
मैंने पीछे देखा तो एक कुत्ता एक कुतिया पर चढ़ा हुआ है।
मैंने कहा- अच्छा, तो यह बात है।
मालती ने कहा- देख कर बर्दाश्त नहीं हुआ इसलिए मुठ मार रही हूँ।
मैंने कहा- जल्दी कर, घर भी चलना है।
मालती ने कहा- हाँ अम्मा, बस अब निकलने ही वाला है।
और एक मिनट हुआ भी ना होगा कि उसकी बुर से इतना माल निकलने लगा कि एक मिनट तक निकलता ही रहा।
मैंने पूछा- क्यों री, कितने दिन का माल जमा कर रखा था?
उसने कहा- कल दोपहर को ही तो निकाला था।
मैंने भी सोचा- कितना जल्दी इतना माल जमा हो जाता है।
हरिया ने कहा- वो अभी जवान है ना। और फिर उसकी गर्मी शांत करने के लिए अपना बेटा भी तो यहाँ नहीं है ना। कमाने के लिए परदेस चला गया। अरे मैं तो मना कर रहा था। तीन महीने भी नहीं हुए उसकी शादी को और अपनी जवान पत्नी को छोड़ कमाने बम्बई चला गया। बोला, अच्छी नौकरी है। अभी बताओ चार महीने से आने का नाम ही नहीं है। बस फोन कर के हालचाल ले लेता है। अरे फोन से बीबी की गर्मी थोड़े ही शांत होने वाली है? अब उसे कौन कहे ये सब बातें खुल के?
थोड़ी देर शांत रहने के बाद मुन्नी फिर से हरिया के लंड को हाथ में ले कर खेलने लगी।
हरिया ने मुन्नी से पूछा- क्या तुम रोज़ ही उसके सामने बैठ के पाखाना करती हो?
मुन्नी ने कहा- हाँ।
हरिया- तब तो तुम दोनों एक दूसरे की बुर रोज़ देखती होगी।
मुन्नी- हाँ, बुर क्या पूरा गांड भी देखी है हम दोनों ने एक दूसरे की। बिल्कुल ही पास बैठ कर पाखाना करते हैं।
हरिया- अच्छा, एक बात तो बता। उसकी बुर तेरी तरह काली है या गोरी?
मुन्नी- पूरी गोरी तो नहीं है लेकिन मेरे से साफ़ है। मुझे उसकी बुर पर के बाल बड़े ही प्यारे लगते हैं। बड़े बड़े और लहरदार रोएँ की तरह बाल। एक बार तो मैंने उसके बाल भी छुए हैं।
हरिया- बुर कैसी है उसकी?
मुन्नी- बुर क्या है लगता है मानो कटे हुए टमाटर हैं। एक दम फुले फुले लाल लाल।
अचानक मुन्नी ने महसूस किया कि हरिया का लंड खड़ा हो रहा है। वो समझ गई कि हरिया को मज़ा आ रहा है। वो बोली- अच्छा, एक बात तो बताओ।
हरिया बोला- क्या?
मुन्नी- क्या तुम उसे चोदोगे?
हरिया- यह कैसे हो सकता है?
मुन्नी- क्यों नहीं हो सकता है? वो जवान है । अगर गर्मी के मारे किसी और के साथ भाग गई तो क्या मुँह दिखायेंगे हम लोग गाँव वालों को? अगर तुम उसकी गर्मी घर में ही शांत कर दो तो वो भला किसी दूसरे का मुँह क्यों देखेगी। जब वो किसी कुत्ते-कुतिया को देख कर मुठ मार सकती है तो वो किसी के साथ भी भाग सकती है। कितना नजर रख सकते हैं हम लोग? थोड़े दिन की तो बात है । फिर हमारा बेटा मोहन उसे अपने साथ बम्बई ले जाएगा तब तो हमें कोई चिंता करने की जरूरत तो नहीं है।
हरिया- क्या मालती मान जायेगी?
मुन्नी ने कहा- कल रात को मैं उसे तुम्हारे पास भेजूंगी। उसी समय अपना काम कर लेना।
हरिया का लंड पूरा जोश में आ गया। उसने मुन्नी की बुर में अपना लंड डालते हुए कहा- तूने तो मुझे गरम कर दिया रे।
मुन्नी ने मुस्कुरा कर अपनी दोनों टांगें फैला दी और आह आह की आवाज़ निकालने लगी। इस बार वो जोर जोर से आवाज निकाल रही थी। हालंकि उसे कोई ख़ास दर्द नहीं हो रहा था लेकिन वो जोर जोर से बोलने लगी- आह आह, धीरे धीरे करो ना। दर्द हो रहा है।
यह आवाज़ बगल के कमरे में सो रही उसकी बहू मालती को जगाने के लिए काफ़ी थी। चुदाई की मीठी दर्द भरी आवाज़ सुन कर मालती की बुर चिपचिपी हो गई। उसने अपने पिया मोहन के लंड को याद करके अपनी बुर में ऊँगली डाली और दस मिनट तक ऊँगली से ही बुर की गत बना डाली।
सुबह हुई । दोनों सास-बहू खेत गई। दोनों एक दूसरे के सामने बठी कर पाखाना कर रही थी।
मालती अपनी सास मुन्नी की बुर देख कर बोली- अम्मा, तुम्हारा बुर कुछ सूजी हुई लग रही है।
मुन्नी ने हंसते हुए कहा- यह जो तेरे ससुर जी हैं न, बुढापे में भी नहीं मानते। देख न कल रात को इतना चोदा कि अभी तक दुःख रहा है।
मालती ने कहा- एक बात पूछूं अम्मा?
मुन्नी- हाँ, पूछ न।
मालती- बाबूजी का लंड खड़ा होता है अभी भी?
मुन्नी- हाँ री। खड़ा क्या? लगता है बांस है। जब वो मुझे चोदते हैं तो लगता है कि अब मेरी बुर तो फट ही जायेगी। एक हाथ बराबर हो जाता है उनका लंड खड़ा हो के।
मुन्नी ने देखा कि मालती ने अपनी ऊँगली अपने बुर में घुसा दी है।
मुन्नी ने पूछा- क्या हुआ तुझे? क्या फिर कोई कुत्ता है यहाँ ?
मालती बोली- नहीं अम्मा, मुझे तुम्हारी बातें सुन के गर्मी चढ़ गई है। इसे निकालना जरूरी है।
मुन्नी बोली- सुन, तू एक काम क्यों नहीं करती? आज रात तू अपने ससुर के साथ अपनी गर्मी क्यों नहीं निकाल देती?
मालती चौंक कर बोली- यह कैसे हो सकता है? वो मेरे ससुर हैं।
मुन्नी बोली- अरे तेरी जरूरत को समझते हुए मैंने ऐसा कहा। तुझे इस समय किसी मर्द की जरूरत है। अब जब घर में ही मर्द मौजूद हो तो क्यों नहीं उसका लाभ उठाया जाए।
मालती का मन अब डोल चुका था, वो बोली- कहीं बाबूजी नाराज हों गए तो?
मुन्नी बोली- अरे तू रात को उनके पास चले जाना। मैं बहाना बना के भेज दूँगी। धीरे धीरे रात के अंधेरे में जब तू उनको छुएगी ना तो तू भूल जायेगी कि तू उनकी बहू है और वो भूल जायेंगे कि वो तुम्हारे ससुर हैं।
यह सुन कर मालती की बुर में मानो तूफ़ान आ गया। उसकी बुर से इतना पानी निकलने लगा कि मुन्नी को लगा कि यह पेशाब कर रही है। अब मुन्नी खुश थी। दोनों तरफ़ मामला सेट था।
रात हुई, खाना-वाना ख़त्म कर मुन्नी हरिया के कमरे में गई और बता दिया कि मैं मालती को भेज रही हूँ। उसको भी समझा दिया है। तुम सिर्फ़ थोड़ी पहल करना। वो तो कुत्ते से भी चुदवाने के लिए तैयार बैठी है। तुम तो इंसान ही हों।
कह कर वो बाहर चली आई और जोर से बोली- बहू, ओ बहू, सुन आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। तू जरा अपने ससुर जी को तेल तो लगा दे।
फिर दरवाजे के बाहर से हरिया को बोली- सुनते हो जी, मैं जरा छत पर सोने जा रही हूँ। मालती बहू से तेल लगवा लेना।
मालती जैसे ही दरवाजे के पास आई, मुन्नी ने उससे धीरे से कहा- देख मैं बहाना बना कर तुम्हें उनके पास भेज रही हूँ। मालिश करते करते उनके लंड तक अपना हाथ ले जाना। शरमाना नहीं। अगर उनको बुरा लगे तो कह देना कि अंधेरे में दिखा नहीं। अगर कुछ नहीं बोले तो फिर हाथ लगाना। जब देखो कि कुछ नहीं बोल रहे हैं तो समझना कि उन्हें भी अच्छा लग रहा है। ठीक है ना? अब मैं चलती हूँ।
कह कर मुन्नी छत पर चली गई। इधर मालती हाथ में तेल की शीशी लिए हरिया के कमरे में आई।
हरिया ने कहा- आजा, वैसे तो तेल मालिश की जरूरत नहीं थी, लेकिन आज मेरा पैर थोड़ा सा दर्द कर रहा है इसलिए मालिश जरूरी है।
मालती हरिया के बिस्तर पर बैठ गई। कमरे में एक छोटी सी डिबिया जल रही थी। जो की पर्याप्त रोशनी के लिए अनुकूल नहीं थी।
मालती ने कहा- कोई बात नहीं, मैं आपकी अच्छे से मालिश कर देती हूँ। आप ये लूंगी उतार ले।
हरिया ने कहा- बहू, जरा ये डिबिया बुझा दे क्योंकि मैंने लूंगी के अन्दर छोटी सी लंगोट ही पहन रखी है।
मालती ने डिबिया बुझा दी। अब वहां घुप अँधेरा छा गया। सिर्फ़ बाहर की चांदनी रात की हल्की रोशनी ही अन्दर आ रही थी। हरिया ने लूंगी उतार दी। मालती की सांसें तेज़ हों गई। वो तेल को हरिया के पैरों में लगाने लगी। धीरे धीरे वो हरिया की जांघों में तेल लगाने लगी। धीरे से वो जानबूझ कर हरिया के लंड तक अपना हाथ ले गई। हरिया ने कुछ नहीं कहा। मालती ने दुबारा हरिया के लंड पर हाथ लगाया।
हरिया ने कहा- बहू, तुम्हें गर्मी लग रही होगी। तुम अपनी साड़ी खोल दो ना। वैसे भी तेल लगने से साड़ी ख़राब हों सकती है।
मालती ने कहा- बाबूजी, साड़ी के नीचे मैंने पेटीकोट नही पहना है। सिर्फ़ पैंटी पहन रखा है। इसलिए मैं साड़ी नहीं खोल सकती।
हरिया ने कहा- तो क्या हुआ? वैसे भी अंधेरे में मैं तुम्हें देख थोड़े ही पा रहा हूँ जो तुम यूँ शरमा रही हों?
मालती तो यही चाहती थी, उसने अपनी साड़ी खोल कर एक किनारे रख दी और तेल को वो जांघों और लंड के बीच लगाने लगी। जिससे वो बार बार हरिया के अंडकोष पर हाथ लगा सकती थी। हरिया ने जब देखा कि बात लगभग बन चुकी है, उसने अपनी लंगोट की डोरी को कब खोल दिया, मालती को पता भी ना चला। धीरे धीरे जब वो हरिया के अंडकोष पर हाथ फेर रही थी तो उसी के हाथ से उसकी लंगोट हट गई।
लंगोट हटने पर मालती पूरी गरम हो गई। अब वो हरिया के लंड को छूने की कोशिश कर रही थी। धीरे धीरे उसने लंड पर हाथ लगाया और हटा लिया। हरिया का लंड सोया हुआ था। लेकिन ज्यों ही मालती ने हरिया का लंड छुआ, मालती के जिस्म में एक सिरहन सी दौड़ गई। अब वो दुबारा अपना हाथ हरिया के दूसरे जांघ पर इस तरह ले गई जिससे उसकी कलाई हरिया के लण्ड को छूती रहे। हरिया भी पका हुआ खिलाड़ी था। उसका लंड जल्दी खड़ा होने वाला नहीं था, वो बोला- बहू, तू थक गई होगी। आ जरा लेट जा।
उसने लगभग जबरदस्ती बहू को पकड़ कर अपने बगल में लिटा दिया और उसके चूची पर हाथ रख के बोला- इसे खोल दे ! बहुत गर्मी है।
मालती ने अपने ब्लाउज का हुक खोल दिया। हरिया ने ब्लाउज को मालती के चूची पर से अलग कर दिया और चूची को छूने लगा, बोला- अरे तुमने अन्दर ब्रा नही पहन रखा है? खैर कोई बात नहीं, अब गर्मी तो नहीं लग रही है न?
वो मालती के चूची को मसलने लगा, बोला- तेरी चूची तो एक दम सख्त है। मैं तेरी चूची छू रहा हूँ, तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है न?
मालती बोली- नहीं, आप मेरे साथ कुछ भी करेंगे तो मैं बुरा नहीं मानूंगी।
हरिया ने कहा- शाबाश बहू, यही अच्छी बहू की निशानी है। बोल तुझे क्या चाहिए?
मालती- बाबूजी, मुझे कुछ नही चाहिए, सिर्फ़ आपका लंड छूना चाहती हूँ।
हरिया- एक शर्त पर। तू भी मुझे अपनी बुर छूने देगी।
मालती ने आव देखा ना ताव, एक झटके में अपना पैन्टी उतार फेंकी। हरिया ने नीचे जा कर मालती की बुर को पहले तो छुआ फिर मुँह में लेकर चूसने लगा।
मालती बोली- ऐसे मत चूसिये, मैं मर जाऊंगी।
हरिया उठ खड़ा हुआ और मालती के हाथ में अपना लंड थमा दिया। मालती के हाथ मानो कोई खजाना लग गया हो। वो हरिया के लंड को कभी चूमती कभी खेलती। काफी देर यह करने के बाद बोली- बाबूजी, इसको मेरी बुर में एक बार डाल दीजिये न।
हरिया ने अपने लटके हुए लंड को हाथ से पकड़ कर मालती के बुर में घुसा दिया। मालती की बुर में हरिया का लंड जाते ही फुफकार मारने लगा और मालती की बुर में ही वो खड़ा होने लगा। मालती- बाबूजी ये क्या हो रहा है? जल्दी से निकाल दीजिये।
हरिया- कुछ नहीं होगा बहू।
अब हरिया का लंड पूरी तरह से टाइट हो गया। मालती दर्द से छटपटाने लगी। उसे यह अंदाजा ही नहीं था कि जिसे वो कमजोर और बूढ़ा लंड समझ रही थी, वो बुर में जाने के बाद इतना विशालकाय हो जाएगा।
हरिया ने मालती को चोदना चालू किया। पहले दस मिनट तक तो मालती बाबूजी बाबूजी छोड़ दीजिये कहती रही। लेकिन हरिया ने नहीं सुना, वो धीरे धीरे उसे चोदता रहा। दस मिनट के बाद मालती की बुर थोड़ी ढीली हुई। अब उसे भी अच्छा लग रहा था। दस मिनट और हरिया ने मालती की जम के चुदाई की। तब जाकर हरिया के अन्दर का पानी बाहर आने को हुआ तो उसने अपना लंड मालती की बुर से निकाल के मालती के मुँह में लगा दिया, बोला - पी जा।
मालती ने हरिया के लंड को मुंह में ले कर ज्योंही दो-तीन बार चूसा कि हरिया के लंड से तेज़ धार निकली जिससे मालती का पूरा मुँह भर गया। मालती ने सारा का सारा माल गटक लिया।
आज जाकर मालती की गर्मी शांत हुई। उसके बाद वो रोज़ ही अपने ससुर के साथ ही सोने लगी। हाँ दो-तीन दिन में उसकी सास मुन्नी भी साथ सोने लगी। अब हरिया एक तरफ करवट ले कर बीबी को चोदता तो दूसरी तरफ़ करवट ले कर अपनी बहू मालती को
रात के बारह बज़ चुके थे। छोटे से गाँव राजापुर में बहुत ही सन्नाटा छ गया था। राजापुर गरीब की बस्ती है। इसी बस्ती के एक कोने में हरिया का घर है। हरिया की उमर 45 साल की है। और उसकी बीबी की उमर 40 साल की है। हरिया एक गरीब किसान है।
हरिया अपने घर के एक अँधेरी कोठरी में रोज़ की तरह अपनी बीवी की चुदाई में मशगूल था। हरिया अपनी बीबी की चूत में लंड डाल कर काफ़ी देर तक उसकी चुदाई कर रहा था। उसकी बीबी मुन्नी बिना किसी उत्तेजना के अपने दोनों पैर फैला कर यूँ ही पड़ी थी जैसे कि उसे हरिया के बड़े लंड की कोई परवाह ही न हो या फिर कोई तकलीफ़ ही न हो रही है। केवल हर धक्के पर आह आह की आवाज निकल रही थी।
मुन्नी की बुर कब का पानी छोड़ चुकी थी। थोड़ी ही देर में हरिया के लंड से माल निकलने लगा तो उसने भी आह आह कर के मुन्नी की चूची पर अपना मुँह रख दिया। मुन्नी की बेजान चूची को वो मुँह में ले कर चूसने लगा। उसने अपना लंड मुन्नी के बुर से निकाला और मुन्नी के बगल में लेट गया।
उसने अपनी बीडी जलाई और पीने लगा। मुन्नी ने उसके लटक रहे लंड को अपने हाथों में ले लिया और उसको खींच-तान करने लगी। लेकिन अब हरिया के लंड में कोई उत्साह नही था। वो एक बेजान लता की तरह मुन्नी के हाथों का खिलौना बना हुआ था।
मुन्नी ने कहा- जानते हो जी ! आज क्या हुआ?
हरिया ने कहा- क्या?
मुन्नी ने कहा- रोज़ की तरह आज मैं और मालती ( मुन्नी की बहू) सुबह शौच करने खेत गए । वहाँ हम दोनों एक दूसरे के सामने बैठ कर पाखाना कर थे....
तभी मैंने देखा कि मालती अपनी बुर में ऊँगली घुसा कर मुठ मारने लगी।
मैंने पूछा- यह क्या कर रही है तू?
तो उसने मेरी पीछे की तरफ़ इशारा किया और कहा- जरा उधर तो देखो अम्मा।
मैंने पीछे देखा तो एक कुत्ता एक कुतिया पर चढ़ा हुआ है।
मैंने कहा- अच्छा, तो यह बात है।
मालती ने कहा- देख कर बर्दाश्त नहीं हुआ इसलिए मुठ मार रही हूँ।
मैंने कहा- जल्दी कर, घर भी चलना है।
मालती ने कहा- हाँ अम्मा, बस अब निकलने ही वाला है।
और एक मिनट हुआ भी ना होगा कि उसकी बुर से इतना माल निकलने लगा कि एक मिनट तक निकलता ही रहा।
मैंने पूछा- क्यों री, कितने दिन का माल जमा कर रखा था?
उसने कहा- कल दोपहर को ही तो निकाला था।
मैंने भी सोचा- कितना जल्दी इतना माल जमा हो जाता है।
हरिया ने कहा- वो अभी जवान है ना। और फिर उसकी गर्मी शांत करने के लिए अपना बेटा भी तो यहाँ नहीं है ना। कमाने के लिए परदेस चला गया। अरे मैं तो मना कर रहा था। तीन महीने भी नहीं हुए उसकी शादी को और अपनी जवान पत्नी को छोड़ कमाने बम्बई चला गया। बोला, अच्छी नौकरी है। अभी बताओ चार महीने से आने का नाम ही नहीं है। बस फोन कर के हालचाल ले लेता है। अरे फोन से बीबी की गर्मी थोड़े ही शांत होने वाली है? अब उसे कौन कहे ये सब बातें खुल के?
थोड़ी देर शांत रहने के बाद मुन्नी फिर से हरिया के लंड को हाथ में ले कर खेलने लगी।
हरिया ने मुन्नी से पूछा- क्या तुम रोज़ ही उसके सामने बैठ के पाखाना करती हो?
मुन्नी ने कहा- हाँ।
हरिया- तब तो तुम दोनों एक दूसरे की बुर रोज़ देखती होगी।
मुन्नी- हाँ, बुर क्या पूरा गांड भी देखी है हम दोनों ने एक दूसरे की। बिल्कुल ही पास बैठ कर पाखाना करते हैं।
हरिया- अच्छा, एक बात तो बता। उसकी बुर तेरी तरह काली है या गोरी?
मुन्नी- पूरी गोरी तो नहीं है लेकिन मेरे से साफ़ है। मुझे उसकी बुर पर के बाल बड़े ही प्यारे लगते हैं। बड़े बड़े और लहरदार रोएँ की तरह बाल। एक बार तो मैंने उसके बाल भी छुए हैं।
हरिया- बुर कैसी है उसकी?
मुन्नी- बुर क्या है लगता है मानो कटे हुए टमाटर हैं। एक दम फुले फुले लाल लाल।
अचानक मुन्नी ने महसूस किया कि हरिया का लंड खड़ा हो रहा है। वो समझ गई कि हरिया को मज़ा आ रहा है। वो बोली- अच्छा, एक बात तो बताओ।
हरिया बोला- क्या?
मुन्नी- क्या तुम उसे चोदोगे?
हरिया- यह कैसे हो सकता है?
मुन्नी- क्यों नहीं हो सकता है? वो जवान है । अगर गर्मी के मारे किसी और के साथ भाग गई तो क्या मुँह दिखायेंगे हम लोग गाँव वालों को? अगर तुम उसकी गर्मी घर में ही शांत कर दो तो वो भला किसी दूसरे का मुँह क्यों देखेगी। जब वो किसी कुत्ते-कुतिया को देख कर मुठ मार सकती है तो वो किसी के साथ भी भाग सकती है। कितना नजर रख सकते हैं हम लोग? थोड़े दिन की तो बात है । फिर हमारा बेटा मोहन उसे अपने साथ बम्बई ले जाएगा तब तो हमें कोई चिंता करने की जरूरत तो नहीं है।
हरिया- क्या मालती मान जायेगी?
मुन्नी ने कहा- कल रात को मैं उसे तुम्हारे पास भेजूंगी। उसी समय अपना काम कर लेना।
हरिया का लंड पूरा जोश में आ गया। उसने मुन्नी की बुर में अपना लंड डालते हुए कहा- तूने तो मुझे गरम कर दिया रे।
मुन्नी ने मुस्कुरा कर अपनी दोनों टांगें फैला दी और आह आह की आवाज़ निकालने लगी। इस बार वो जोर जोर से आवाज निकाल रही थी। हालंकि उसे कोई ख़ास दर्द नहीं हो रहा था लेकिन वो जोर जोर से बोलने लगी- आह आह, धीरे धीरे करो ना। दर्द हो रहा है।
यह आवाज़ बगल के कमरे में सो रही उसकी बहू मालती को जगाने के लिए काफ़ी थी। चुदाई की मीठी दर्द भरी आवाज़ सुन कर मालती की बुर चिपचिपी हो गई। उसने अपने पिया मोहन के लंड को याद करके अपनी बुर में ऊँगली डाली और दस मिनट तक ऊँगली से ही बुर की गत बना डाली।
सुबह हुई । दोनों सास-बहू खेत गई। दोनों एक दूसरे के सामने बठी कर पाखाना कर रही थी।
मालती अपनी सास मुन्नी की बुर देख कर बोली- अम्मा, तुम्हारा बुर कुछ सूजी हुई लग रही है।
मुन्नी ने हंसते हुए कहा- यह जो तेरे ससुर जी हैं न, बुढापे में भी नहीं मानते। देख न कल रात को इतना चोदा कि अभी तक दुःख रहा है।
मालती ने कहा- एक बात पूछूं अम्मा?
मुन्नी- हाँ, पूछ न।
मालती- बाबूजी का लंड खड़ा होता है अभी भी?
मुन्नी- हाँ री। खड़ा क्या? लगता है बांस है। जब वो मुझे चोदते हैं तो लगता है कि अब मेरी बुर तो फट ही जायेगी। एक हाथ बराबर हो जाता है उनका लंड खड़ा हो के।
मुन्नी ने देखा कि मालती ने अपनी ऊँगली अपने बुर में घुसा दी है।
मुन्नी ने पूछा- क्या हुआ तुझे? क्या फिर कोई कुत्ता है यहाँ ?
मालती बोली- नहीं अम्मा, मुझे तुम्हारी बातें सुन के गर्मी चढ़ गई है। इसे निकालना जरूरी है।
मुन्नी बोली- सुन, तू एक काम क्यों नहीं करती? आज रात तू अपने ससुर के साथ अपनी गर्मी क्यों नहीं निकाल देती?
मालती चौंक कर बोली- यह कैसे हो सकता है? वो मेरे ससुर हैं।
मुन्नी बोली- अरे तेरी जरूरत को समझते हुए मैंने ऐसा कहा। तुझे इस समय किसी मर्द की जरूरत है। अब जब घर में ही मर्द मौजूद हो तो क्यों नहीं उसका लाभ उठाया जाए।
मालती का मन अब डोल चुका था, वो बोली- कहीं बाबूजी नाराज हों गए तो?
मुन्नी बोली- अरे तू रात को उनके पास चले जाना। मैं बहाना बना के भेज दूँगी। धीरे धीरे रात के अंधेरे में जब तू उनको छुएगी ना तो तू भूल जायेगी कि तू उनकी बहू है और वो भूल जायेंगे कि वो तुम्हारे ससुर हैं।
यह सुन कर मालती की बुर में मानो तूफ़ान आ गया। उसकी बुर से इतना पानी निकलने लगा कि मुन्नी को लगा कि यह पेशाब कर रही है। अब मुन्नी खुश थी। दोनों तरफ़ मामला सेट था।
रात हुई, खाना-वाना ख़त्म कर मुन्नी हरिया के कमरे में गई और बता दिया कि मैं मालती को भेज रही हूँ। उसको भी समझा दिया है। तुम सिर्फ़ थोड़ी पहल करना। वो तो कुत्ते से भी चुदवाने के लिए तैयार बैठी है। तुम तो इंसान ही हों।
कह कर वो बाहर चली आई और जोर से बोली- बहू, ओ बहू, सुन आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। तू जरा अपने ससुर जी को तेल तो लगा दे।
फिर दरवाजे के बाहर से हरिया को बोली- सुनते हो जी, मैं जरा छत पर सोने जा रही हूँ। मालती बहू से तेल लगवा लेना।
मालती जैसे ही दरवाजे के पास आई, मुन्नी ने उससे धीरे से कहा- देख मैं बहाना बना कर तुम्हें उनके पास भेज रही हूँ। मालिश करते करते उनके लंड तक अपना हाथ ले जाना। शरमाना नहीं। अगर उनको बुरा लगे तो कह देना कि अंधेरे में दिखा नहीं। अगर कुछ नहीं बोले तो फिर हाथ लगाना। जब देखो कि कुछ नहीं बोल रहे हैं तो समझना कि उन्हें भी अच्छा लग रहा है। ठीक है ना? अब मैं चलती हूँ।
कह कर मुन्नी छत पर चली गई। इधर मालती हाथ में तेल की शीशी लिए हरिया के कमरे में आई।
हरिया ने कहा- आजा, वैसे तो तेल मालिश की जरूरत नहीं थी, लेकिन आज मेरा पैर थोड़ा सा दर्द कर रहा है इसलिए मालिश जरूरी है।
मालती हरिया के बिस्तर पर बैठ गई। कमरे में एक छोटी सी डिबिया जल रही थी। जो की पर्याप्त रोशनी के लिए अनुकूल नहीं थी।
मालती ने कहा- कोई बात नहीं, मैं आपकी अच्छे से मालिश कर देती हूँ। आप ये लूंगी उतार ले।
हरिया ने कहा- बहू, जरा ये डिबिया बुझा दे क्योंकि मैंने लूंगी के अन्दर छोटी सी लंगोट ही पहन रखी है।
मालती ने डिबिया बुझा दी। अब वहां घुप अँधेरा छा गया। सिर्फ़ बाहर की चांदनी रात की हल्की रोशनी ही अन्दर आ रही थी। हरिया ने लूंगी उतार दी। मालती की सांसें तेज़ हों गई। वो तेल को हरिया के पैरों में लगाने लगी। धीरे धीरे वो हरिया की जांघों में तेल लगाने लगी। धीरे से वो जानबूझ कर हरिया के लंड तक अपना हाथ ले गई। हरिया ने कुछ नहीं कहा। मालती ने दुबारा हरिया के लंड पर हाथ लगाया।
हरिया ने कहा- बहू, तुम्हें गर्मी लग रही होगी। तुम अपनी साड़ी खोल दो ना। वैसे भी तेल लगने से साड़ी ख़राब हों सकती है।
मालती ने कहा- बाबूजी, साड़ी के नीचे मैंने पेटीकोट नही पहना है। सिर्फ़ पैंटी पहन रखा है। इसलिए मैं साड़ी नहीं खोल सकती।
हरिया ने कहा- तो क्या हुआ? वैसे भी अंधेरे में मैं तुम्हें देख थोड़े ही पा रहा हूँ जो तुम यूँ शरमा रही हों?
मालती तो यही चाहती थी, उसने अपनी साड़ी खोल कर एक किनारे रख दी और तेल को वो जांघों और लंड के बीच लगाने लगी। जिससे वो बार बार हरिया के अंडकोष पर हाथ लगा सकती थी। हरिया ने जब देखा कि बात लगभग बन चुकी है, उसने अपनी लंगोट की डोरी को कब खोल दिया, मालती को पता भी ना चला। धीरे धीरे जब वो हरिया के अंडकोष पर हाथ फेर रही थी तो उसी के हाथ से उसकी लंगोट हट गई।
लंगोट हटने पर मालती पूरी गरम हो गई। अब वो हरिया के लंड को छूने की कोशिश कर रही थी। धीरे धीरे उसने लंड पर हाथ लगाया और हटा लिया। हरिया का लंड सोया हुआ था। लेकिन ज्यों ही मालती ने हरिया का लंड छुआ, मालती के जिस्म में एक सिरहन सी दौड़ गई। अब वो दुबारा अपना हाथ हरिया के दूसरे जांघ पर इस तरह ले गई जिससे उसकी कलाई हरिया के लण्ड को छूती रहे। हरिया भी पका हुआ खिलाड़ी था। उसका लंड जल्दी खड़ा होने वाला नहीं था, वो बोला- बहू, तू थक गई होगी। आ जरा लेट जा।
उसने लगभग जबरदस्ती बहू को पकड़ कर अपने बगल में लिटा दिया और उसके चूची पर हाथ रख के बोला- इसे खोल दे ! बहुत गर्मी है।
मालती ने अपने ब्लाउज का हुक खोल दिया। हरिया ने ब्लाउज को मालती के चूची पर से अलग कर दिया और चूची को छूने लगा, बोला- अरे तुमने अन्दर ब्रा नही पहन रखा है? खैर कोई बात नहीं, अब गर्मी तो नहीं लग रही है न?
वो मालती के चूची को मसलने लगा, बोला- तेरी चूची तो एक दम सख्त है। मैं तेरी चूची छू रहा हूँ, तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है न?
मालती बोली- नहीं, आप मेरे साथ कुछ भी करेंगे तो मैं बुरा नहीं मानूंगी।
हरिया ने कहा- शाबाश बहू, यही अच्छी बहू की निशानी है। बोल तुझे क्या चाहिए?
मालती- बाबूजी, मुझे कुछ नही चाहिए, सिर्फ़ आपका लंड छूना चाहती हूँ।
हरिया- एक शर्त पर। तू भी मुझे अपनी बुर छूने देगी।
मालती ने आव देखा ना ताव, एक झटके में अपना पैन्टी उतार फेंकी। हरिया ने नीचे जा कर मालती की बुर को पहले तो छुआ फिर मुँह में लेकर चूसने लगा।
मालती बोली- ऐसे मत चूसिये, मैं मर जाऊंगी।
हरिया उठ खड़ा हुआ और मालती के हाथ में अपना लंड थमा दिया। मालती के हाथ मानो कोई खजाना लग गया हो। वो हरिया के लंड को कभी चूमती कभी खेलती। काफी देर यह करने के बाद बोली- बाबूजी, इसको मेरी बुर में एक बार डाल दीजिये न।
हरिया ने अपने लटके हुए लंड को हाथ से पकड़ कर मालती के बुर में घुसा दिया। मालती की बुर में हरिया का लंड जाते ही फुफकार मारने लगा और मालती की बुर में ही वो खड़ा होने लगा। मालती- बाबूजी ये क्या हो रहा है? जल्दी से निकाल दीजिये।
हरिया- कुछ नहीं होगा बहू।
अब हरिया का लंड पूरी तरह से टाइट हो गया। मालती दर्द से छटपटाने लगी। उसे यह अंदाजा ही नहीं था कि जिसे वो कमजोर और बूढ़ा लंड समझ रही थी, वो बुर में जाने के बाद इतना विशालकाय हो जाएगा।
हरिया ने मालती को चोदना चालू किया। पहले दस मिनट तक तो मालती बाबूजी बाबूजी छोड़ दीजिये कहती रही। लेकिन हरिया ने नहीं सुना, वो धीरे धीरे उसे चोदता रहा। दस मिनट के बाद मालती की बुर थोड़ी ढीली हुई। अब उसे भी अच्छा लग रहा था। दस मिनट और हरिया ने मालती की जम के चुदाई की। तब जाकर हरिया के अन्दर का पानी बाहर आने को हुआ तो उसने अपना लंड मालती की बुर से निकाल के मालती के मुँह में लगा दिया, बोला - पी जा।
मालती ने हरिया के लंड को मुंह में ले कर ज्योंही दो-तीन बार चूसा कि हरिया के लंड से तेज़ धार निकली जिससे मालती का पूरा मुँह भर गया। मालती ने सारा का सारा माल गटक लिया।
आज जाकर मालती की गर्मी शांत हुई। उसके बाद वो रोज़ ही अपने ससुर के साथ ही सोने लगी। हाँ दो-तीन दिन में उसकी सास मुन्नी भी साथ सोने लगी। अब हरिया एक तरफ करवट ले कर बीबी को चोदता तो दूसरी तरफ़ करवट ले कर अपनी बहू मालती को
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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