अनोखा सफर complete

Post Reply
User avatar
Rohit Kapoor
Pro Member
Posts: 2821
Joined: 16 Mar 2015 19:16

अनोखा सफर complete

Post by Rohit Kapoor »

अनोखा सफर


चेहरे पे पड़ते लहरो के थपेड़े ने मेरी आंखे खोली तो मैंने खुद को रेत पे पड़ा हुआ पाया। चारो तरफ नज़रे दौड़ाई तो लगा जैसे मैं किसी छोटे से द्वीप पर हु। मैं जहाँ पे खड़ा था रेत थी जो की थोड़ी दूर पे घने जंगलों में जाके ख़त्म हो रही थी। मैंने खुद पे नज़र दौड़ाई तो मेरे कपडे पानी में भीगे हुए थे मेरे सारा सामान गायब था और प्यास के मारे मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा था। प्यास से तड़पते हुए मैंने सोचा की सामने के जंगलों में पानी की तलाश में जाया जाये ।
सामने कदम बढ़ाते हुए मैं सोचने लगा की मैं यहाँ पर कैसे पंहुचा । दिमाग पर बहुत जोर देने पे आखरी बात जो मुझे याद आया वो ये था कि मैं अपनी रेजिमेंट के कुछ जवानों के साथ अंडमान निकोबार द्वीप के पास एक खुफिया मिशन पे था जब हमारी बोट तूफ़ान में फस गयी। तेज बारिश के कारण हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था कि अचानक हमारी नाव पलट गयी । बहुत देर तक तूफ़ान में खुद को डूबने से बचाने की कोशिश करना ही आखरी चीज़ थी जो मुझे याद थी।
प्यास थी जो ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थी अब तो थकान के कारण ऐसा लग रहा था कि अब आगे बढ़ना मुमकिन नहीं है पर शायद आर्मी की कड़ी ट्रेनिंग का ही नतीजा था कि मैं बढ़ा चला जा रहा था । तभी अचानक मुझे सामने छोटी सी झील दिखाई दी प्यासे को और क्या चाहिए था मैं भी झील की तरफ लपक पड़ा । झील का पानी काफी साफ़ था और आस पास के पेड़ो से पक्षिओं की आवाज आ रही थी । मैंने भी पहले जी भर के पानी पिया फिर बदन और बाल में चिपकी रेत धुलने के लिए कपडे उतार कर झील में नहाने उतर गया। जी भर नाहने के बाद मैं झील से निकल किनारे पर सुस्ताने के लिए लेट गया।
नींद की झपकी लेते हुए मेरी आँख किसी की आवाज से खुली सामने देखा तो आदिवासी मेरे ऊपर भाला ताने खड़े थे। उनकी भाषा अंडमान के सामान्यतः
आदिवासियों से अलग थी जो की संस्कृत का टूटा फूटा स्वरुप लग रही थी चूँकि मैं भारत के उत्तरी भाग के ब्राह्मण परिवार से था तो बचपन से ही संस्कृत पढ़ी थी तो उनकी भाषा थोड़ा समझ में आ रही थी वो जानना चाहते थे की मैं किस समूह से हु। मैंने भी उनका जवाब नहीं दिया बस हाँथ ऊपर उठा के खड़ा हो गया। थोड़ी देर तक वो मुझसे चिल्लाते हुए यही पूछते रहे फिर आपस में कुछ सलाह की और मुझे धकेलते हुए आगे बढ़ने को कहा। मैं भी हो लिया उनके साथ । दोनों काफी हुष्ट पुष्ट थे दोनों ने कानो और नाक में हड्डियों का श्रृंगार किया हुआ था बाल काफी बड़े थे जो की सर के ऊपर बंधे हुए थे शरीर पर टैटू या की गुदना कहु गूदे हुए थे शारीर का सिर्फ पेट के नीचे के हिस्सा ही किसी जानवर के चमड़े से ढंका था । काफी देर तक उनके साथ चलते हुए एक छोटे से कबीले में दाखिल हुए वहां पर उन दोनों की तरह ही दिखने वाले और काबिले वाले दिखाई दिए कबीले की महिलाओं का पहनावा भी पुरुषो जैसा ही था बस उनके शरीर पर कोई टैटू नहीं थे। कुछ देर में ही मेरे चारो ओर काबिले वालो का झुण्ड इकठ्ठा हो गया वो आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगे । कुछ देर बाद उन्होंने मुझे एक लकड़ी के पिजरे में बंदकर दिया।

पिंजरे में पड़े पड़े रात और फिर सुबह हो गयी पर कोई मेरी तरफ नहीं आया भूख के मारे मेरा बुरा हाल हो गया था पर मैंने भी यहीं रहकर आगे के बारे में सोचने की ठानी ।
काफी इंतज़ार के बाद कल के दोनों आदिवासी फिर लौटे और मुझे लेके एक जगह पर पहुचे जहाँ पे पहले से ही कुछ लोग मौजूद थे उसमे से एक देखने में कबीले का सरदार तथा बाकी सब कबीले केअन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति लग रहे थे । मेरे वहां पहुचते ही सब मुझे घूर घूर के देखने लगे मेरे शरीर पर कपडे नहीं थे मेरे शरीर पर कोई टैटू भी नहीं था तथा मेरे बाल भी आर्मी कट छोटे छोटे थे उन्हें ये सब अजीब लगा। उनमे से एक बुजुर्ग व्यक्ति जिसकी लंबी सफ़ेद दाढ़ी थी संस्कृत में बोलना शुरू किया उसने पूछा
सफ़ेद दाढ़ी मेरा नाम चरक है तुम्हारा क्यानाम है वत्स?
मैंने भी टूटी फूटी संस्कृत में जवाब दिया "मेरा नाम अक्षय है "
मेरे मुंह से संस्कृत सुनके वे चौंके पर चरक ने पूछना चालू रखा "तुम किस कबीले से हो ?"
मैंने जवाब दिया "मैं किसी कबीले से नहीं भारतीय सेना से हु ।"
सेना का नाम सुनते ही सरदार आग बबूला हो गया उसने चिल्लाते हुए सैनिको को मुझे मारने का आदेश सुना दिया वो दोनों आदिवासी सैनिक जो मुझे लेके आये थे मेरी तरफ लपके तभी चरक ने आदेश देके उन्हें रोका। चरक ने सरदार से कहा "महाराज ये युद्ध नहीं है आप किसी सैनिक को बिना युद्ध के किसी सैनिक को मारने का हुक्म नहीं दे सकते ये कबीलो के तय नियमो के खिलाफ है"
सरदार ने कहा "ये सैनिक गुप्तचर है इसे मृत्युदंड मिलना ही चाइये मंत्री चरक"
चरक " फिर महाराज आप इससे शस्त्र युद्ध में चुनौती दे सकते है "
सरदार चरक की बात सुनके खुश हो गया और मेरी तरफ कुटिल मुस्कान से देखते हुए बोला " सैनिक मैं तुम्हे शस्त्र युद्ध की चुनौती देता हूं बोलो स्वीकार है "
अब सैनिक होने के नाते मेरे सामने कोई चारा नहीं था मैंने भी कहा " स्वीकार है"
सरदार बोला " तो फिर आज साँझ ये शास्त्र युद्ध होगा सभा खत्म होती है "

खैर सरदार के जाने के बाद आदिवासी सैनिको ने मुझे वापस उसी लकड़ी के पिजरे में बंद कर दिया मैं भी शाम का इंतज़ार करने लगा ।
शाम को मुझे फिर ले जाके एक अखाड़े नुमा जगह खड़ा कर दियागया जिसके चारों तरफ ऊँचे मुंडेर बने हुए थे जहाँ पर काबिले के सभी स्त्री पुरुष बच्चे इकठ्ठा हुए थे । कुछ देर बाद केबीले का सरदार भी अखाड़े में पहुच गया उसके आते ही सारे काबिले वाले जोर जोर से वज्राराज वज्राराज का नारा लगाने लगे । कुछ देर बाद चरक भी अखाड़े में अनेको शस्त्र के साथ प्रवेश करते है और कहते है
"आज शाम हम सब यहाँ शस्त्र युद्ध के लिए उपस्थित हुए है जो की सैनिक अक्षय और हमारे महाराज वज्राराज के बीच किसी एक की मृत्यु तक लड़ा जायेगा "
मृत्यु तक की बात सुन कर अब मुझे सरदार की कुटिल मुस्कान की याद आ गयी की वो मुझे इस तरीके सें मुझे ख़त्मकरने का सोच रहा था। खैर अब मेरा ध्यान बस इस शस्त्र युद्ध पर था । चरक ने फिर हमसे कहा "अब आप दोनों युद्ध के लिए एक शस्त्र चुनेंगे बस शर्त ये है कि दोनों अलग अलग शस्त्र चुनेंगे तो पहले महाराज आप चुने "
सरदार ने एक छोटी तलवार चुनी मैंने आर्मी की ट्रेनिंग में चक्कू से लड़ाई सीखी थी तो मैंने एक चक्कू चुना ।
हम दोनों को अखाड़े मे छोड़ कर चरक ने युद्ध शुरू करने का आव्हान किया।
सबसे पहले सरदार ने युद्ध की पहल की वो दौड़ते हुए मेरी तरफ लपका और तेज़ी से मेरी गर्दन पर तलवार का प्रहार किया वो तो आर्मी की ट्रैनिंग का नतीजा था कि मैं तेजी से अपने बचाव के लिए बैठ गया और मेरी गर्दन बच गयी लेकिन मुझे ये समझ में आ गया कि इस युद्ध में मैं सरदार का तब तक कुछ नहीं कर पाउँगा जब तक सरदार मेरे नजदीक न आये इसी लिए मैं भी सरदारको मुझ पर और वार करने का मौका देने लगा। सरदार देखने में तो मोटा था पर काफी फुर्तीला था वो मेरे ऊपर एक और वार करने के लिए कूदा मैंने पहले की तरह अपने बचाव में खुद को तलवार के काट से दूर किया पर इस बार सरदार ने मेरे बचाव भांप लिया उसने तुरंत फुर्ती से घूम कर वार किया और तलवार मेरा पेट में घाव करते हुए निकल गयी । वार के कारण मुझे ऐसा लगा की मेरी साँस ही रुक गयी हो मैं पैरो के बल गिर पड़ा और अपनी साँस बटोरने लगा इसी बीच सरदार ने मौका पाके मेरी पीठ पर एक वार कर दिया इस बार घाव और गहरा था मेरा शरीर तेजी से लहू छोड़ रहा था और मेरा साथ भी ।
मुझे अब अपना अंत नज़र आ रहा था खैर कहते है जब आदमी के जीवन की लौ बुझने को जोति है तो अंतिम बार खूब जोर से फड़फड़ाती है । मेरे जीवन की लौ ने भी लगता है आखरी साहस किया सरदार मेरा काम तमाम करने के लिए आगे बढ़ा मैं भी लपककर आगे बढ़ा औरउसके वार को बचाते हुए झुकते हुए उसकी पैर की एड़ी की नस काट दी जिसके कारण भारी भरकम सरदार अपने पैरों पे गिर पड़ा मौका देख मैंने भी चाकू सरदार की गर्दन में घोंप दिया जो की शायद उसकी जीवन लीला समाप्त करने के लिए काफी था । सरदार का बोझिल शरीर जमीन पर गिर गया।
अचानक सारे अखाड़े में सन्नटा छा गया मैंने देखा की सारे लोग अचानक अपने घुटनों पे हो कर सर झुकाने लगे । मेरा शरीर मेरे घावों से रिस्ते खून के कारण शिथिल पद रहा था अचानक मेरी बोझिल आँखों ने देखा की एक लड़का मेरी तरफ एक हथोड़े जैसा हथियार लेके दौड़ रहा है । पास आके उसने मेरे सर के ऊपर प्रहार किया जिसे बचाने के लिए मैंने अपनी कुहनी में हथौडे का प्रहार ले लिया पर उस चोट की असहनीय पीड़ा ने मेरे होश गायब कर दिए और मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया ।

User avatar
Rohit Kapoor
Pro Member
Posts: 2821
Joined: 16 Mar 2015 19:16

Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

आँखों खोली तो खुद को एक झोपड़ी में पाया जहाँ पे सिरहाने फलो का ढेर लगा हुआ था मेरे शरीर के घावों को जड़ी बूटियों के लेप से भरकर उनपे चमड़े की पट्टी बांध दिया गया था पूरा कमरा चन्दन की खुशबु से महक रहा था । मैं अपने पैरों पे खड़ा होने की कोशिश करने लगा तो जैसे लगा की पैर जवाब दे गए हो । तभी दरवाजे से आवाज आई की " आपको आराम करना चाहिए राजन "
ये चरक महाराज थे मैंने उनसे पूछा की मैं कहाँ हु तो उन्होंने जवाब दिया की " राजन आप इस गरीब वैद्य की कुटिया में है "
मैंने पूछा " आप मुझे राजन क्यों कह रहे है ?"
चरक " राजन हमारे कबीलो का नियम है कि जब कोई काबिले के राजा को युद्ध में हरा देता है तो वो केबीले का राजा हो जाता है इस प्रकार आप केबीले के राजा है"
मैंने पूछा इसका क्या मतलब है
चरक " इसका मतलब है कि अब ये कबीला आप की जिम्मेदारी पर है "
ये सारी बाते मेरा सर घुमा रही थी की तभी कुटिया के दरवाजे पे दरबान ने आवाज दी की रानी विशाखा पधारी हैं ।
चरक " उन्हें अंदर भेजो"
तभी अंदर एक 40 45 साल की महिला प्रवेश करती है चरक " रानी प्रणाम "
विशाखा " अब मैं रानी नहीं रही नए महाराज को दासी का प्रणाम "
मैंने भी प्रणाम किया
विशाखा " महाराज आपसे वज्राराज और हमारे अंतिम संस्कार के लिए क्या आदेश है "
मैंने पूछा " मतलब "
चरक " राजन हमारी परंपरा के अनुसार राजा की मृत्यु के पश्चात उनके आश्रितों को अगर कही आश्रय नहीं मिलता तो उन्हें राजा के साथ ही मृत्यु को वरन करना होता है "
मैंने चौकते हुए पूछा " इसका मतलब रानी विशाखा .."
मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी रानी बोल पड़ी " हां मैं और मेरी बेटी विशाला दोनों मृत्यु का वरन करेंगी "
मैंने फिर चौंकते हुए पूछा " दोनों ??"
विशाखा " जी महाराज"
मैंने पूछा " तो आप किसी से आश्रय क्यों नहीं ले लेती "
विशाखा " ये इतना आसान नहीं है महाराज एक राज परिवार को एक राजा ही आश्रय दे सकता है ।"
मैंने पूछा " क्या मैं आपको आश्रय दे सकता हु ??"
अब चौंकने की बारी विशाखा और चरक की थी । कुछ देर के लिए दोनों चुप हो गए फिर चरक के चेहरे पे एक कुटिल मुस्कान तैर गयी उसने मुझसे पूछा "राजन क्या आप रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला को आश्रय देना चाहते हैं ?"
मैंने कहा हाँ
मेरे ऐसा कहते ही महारानी विशाला ने मेरे चरण स्पर्श किये और शरमाते हुए कुटिया से बाहर चली गयी ।
मैंने अचंभित होते हुए चरक से पुछा" इसका मतलब "
चरक " महाराज हमारे काबिले में आश्रय देने का मतलब है कि आज से रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला आपकी हुई आप उन्हें पत्नी से लेके दासी किसी भी तरह रख सकते है "
ये सोचना मेरे लिए काफी चौकाने वाली थी मैंने चरक से पुछा "तो क्या अब रानी विशाखा मेरी पत्नी है ?"
चरक ने जवाब दिया " नहीं पर आप पत्नी की जरूरतें उनसे पूरी कर सकते है "
अब मेरे दिमाग में रानी विशाखा का शरीर घूम गया सफ़ेद रंग उभरी हुई छाती मोटे चौड़े कूल्हे भरा हुआ बदन बस फिर था दिमाग की चीज़ लंड ने भी भांप ली और लगा हिलौरे मारने ।
चरक जी ने मेरी अवस्था को भांपते हुए कहा " राजन अभी आप स्वस्थ हो जाइये कल आपका अभिषेक है उसके बाद आप रानी को आश्रय दे सकते है ।"
फिर चरक जी ने मुझे एक काढ़ा पीने को दिया जिसको पीने के बाद मुझे नींद आ गयी ।
मेरी आँखें खुलती है तो मैं खुद को फिर उसी कुटिया में पाता हूं मेरे सामने चरक जी बैठे होते है । मेरे आंखे खोलते ही वो मुझसे कहते हैं कि महाराज आज आपका अभिषेक होगा कृपा करके मेरे साथ आये और नित्यक्रिया की तैयारी करे । नित्यक्रिया पूरी करने के बाद चरक जी मुझे स्नान गृह में ले जाते गई जहाँ एक बड़े से गढ्डे ने फूलों वाला पानी था चरक जी ने फिर ताली बजाईं और चार दासियो ने प्रवेश किया चरक जी ने कहा कि ये आपकी व्यक्तिगत परिचारिकाये है आगे का काम ये संपन्न करेंगी ये कहकर चरक चले गए। मैंने चारो की तरफ देखा उनकी उम्र 20 से 21 साल की होगी । मैंने पूछा की तुम्हारा नाम तो उनमें से एक ने जवाब दिया जी परिचारिकाओं के नाम नहीं होते।
अचंभित होते हुए मैं पानी में उतर गया परिचारिकाओं ने भी अपने वस्त्र और आभुषण उतारे और मेरे साथ पानी में आ गयी । दो ने मेरा हाथ पकड़ा और धीरे धीरे मालिश करते हुए मुझे नहलाने लगी । शायद उनके नंगे बदन का असर था जी मेरा लंड फड़फड़ाने लगा। एक ने यह देखा तो धीरे से मेरे लंड की भी मालिश शुरू कर दी फिर क्या था मेरा लंड भी अपने रौद्र रूप में आने लगा । तो फिर उसने मेरे लंड को अपने मुंह में लेके चुसाई शुरू कर दी मैं तो जैसे जन्नत की सैर करने लगा । उसकी चुसाई से लग रहा था कि वो पहले भी ऐसा कर चुकी है । खैर कुछ देर की चुसाई के बाद वो अपनी चूत को सेट करके मेरे लंड पे बैठ गयी और सवारी करने लगी और मुझे असीम आनंद की अनुभूति करवाने लगी । कुछ देर की चुदाई के बाद मुझे भी जोश आने लगा मैंने भी उसके कानों के पास गर्दन पे चुम्मिया लेना शुरू कर दिया जिसके कारण उसकी भी सिसकारियां निकलने लगी मैंने दोनों हाथों सो उसके नितंबो को दबाना शुरू किया और एक उंगली उसकी गांड के छेद में दाल दी अब उसकी सिसकारियां हलकी आहों में बदल गयी अब मैं भी चरमोत्कर्ष के निकट आ रहा था तो मैंने उसके नितंबो को छोड़ उसके वक्ष को मसलना शुरू किया फिर उसके एक चूचक को मुह में लेके चूसा तो वो चीखती हुई झड़ गयी और साथ ही मैं भी। हमारी सांसे जब थमी तो हमने देखा की बाक़ी हमे अचंभित होके देखे जा रही थी जैसे की क्या देख लिया हो मेरी गोद में बैठी का तो गाल टमाटर जैसे लाल हो गया था। किसी तरह नहाने का कार्यक्रम ख़त्म हुआ तो पहनने जे लिए मुझे सभी की तरह एक चमड़े का टुकड़ा मिला जिसे मैंने भी अपने कमर पे लपेट लिया ।
स्नान गृह से बाहर निकला तो देखा चरक जी दरवाजे पे खड़े है उन्होंने कहा कि महाराज आपसे मिलने पुजारन देवसेना आयी है। मैंने पूछा की ये कौन है तो चरक ने बताया कि ये द्वीप के कुल देवता की प्रमुख पुजारन है और इस द्वीप के सारे काबिले इनकी बात मानते है और उनको साथ लेने में हि भलाई है । मैं वापस अपनी कुटिया में पंहुचा मैंने देझा की वहां एक अत्यंत खूबसूरत 30 साल की औरत बैठी है जिसके शारीर पे न कोई वस्त्र है न आभूषण बस पूरे शरीर पर भस्म का लेपन किया हुआ था । उसके वक्ष सुडौल और कमर सुराहीदार ऐसा लग रहा था जैसे कोई अप्सरा हो ।
मैंने उन्हें प्रणाम किया जिसका उसने कोई जवाब नहीं दिया तथा चरक से कहा कि अभिषेक की तैयारी की जाये जिससे वो जल्द से जल्द यहाँ से जा सके। फिर वो कुटिया से निकल गयी।
मैंने चरक की तरफ देखा उसने मुझसे कहा " राजन इन्हें मनाना इतना आसान नहीं लेकिन अगर आप ने मना लिया तो पूरे द्वीप पे आपका राज होगा "
मैंने दिमाग से सारी बातें निकालते हुए चरक से तयारी करने को कहा।
शाम को चरक फिर से कुटिया में प्रवेश किया उन्होंने मुझसे कहा " रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला आपसे मिलने की अनुमति चाहती है "
मैंने कहा "उन्हें अंदर लाईये "
कुछ देर बाद रानी विशाला अंदर आती हैं उनके साथ वही युवक था जिसने वज्राराज के साथ युद्ध के बाद मुझपे हुमला किया था । रानी विशाखा ने परिचय कराया " महाराज ये मेरी पुत्री है विशाला "
मेरा सर चकरा गया अभी तक मैं जिसे लड़का समझ रहा था वो तो लड़की थी पर उसके वक्ष न के बराबर कमर बहुत ही पतली तथा बदन वर्जिश के कारण काफी कसा हुआ तथा टैटू से ढका हुआ था जैसा इस कबीले के पुरुष आदिवासियों के होते है इसलिए मेरा धोखा खा जाना लाजमी था ।
रानी विशाखा बोली " महाराज मेरी पुत्री उस दिन आपके ऊपर वार करने को लेके शर्मिंदा है तथा आपसे माफ़ी माँगना चाहती है ।"
मैंने विशाला को देखा तो उसकी आँखे अभी भी मुझे गुस्से से घूर रही थी तथा उसके हाथ कमर में बंधी तलवार के ऊपर थे उसे देख कर नहीं लग रहा था कि वो माफ़ी माँगना चाह रही हो । मैंने अभी बात और न बढ़ाने की सोचते हुए कहा " महारानी विशाखा मैं विशाखा की मनः स्थिति समझ सकता हु अतः मैंने उसे माफ़ किया "
महारानी विशाखा प्रसन्न हो जाती है " महाराज अब हम बाहर जाने की इज़ाज़त चाहते है "
मैंने कहा " ठीक है "
फिर मैं चरक के तरफ मुड़ा मैंने उनसे पूछा " तो आज इस अभिषेक समारोह में क्या क्या होगा और मुझे क्या करना होगा "
चरक " समारोह में आस पास के कबीलो के सरदार भी आये है पहले आपको इन सब से मिलना होगा फिर पुजारिन महादेवी जी आपको कबीले का सरदार घोषित करते हुए आपका अभिषेक करेंगी और उसके बाद नृत्य संगीत तथा मदिरा का सेवन रात तक चलेगा "
मैंने कहा " और कुछ"
चरक " हाँ महाराज आपको अपने सलाहकार सेनापति और संगिनी का चुनाव भी करना होगा "
मैंने पूछा " ये कैसे होगा ?"
चरक " महाराज आप जिसके सर पर हाथ रख देंगे वो आपका सलाहकार होगा जिसके कंधे पे हाथ रख देंगे वो आपका सेनापति तथा जिसको अपनी जांघ पे बिठा लेंगे वो आपकी संगिनी "
मैंने फिर पूछा " इन तीनो का दायित्व "
चरक " सलाहकार आपको क़बीलों के नियमो राजनीति तथा कूटनीति में सहायता प्रदान करेगा सेनापति आपकी सेना तथा कबीले की सुरक्षा में सहायता प्रदान करेगा तथा वो आपका व्यक्तिगत अंगरक्षक भी होगा तथा जब तक महाराज अपना कोई जीवनसाथी नहीं चुन लेते महाराज के घर का जिम्मा संगिनी का दायित्व होगा "
मैंने पूछा " क्या सेनापति पुरुष होना आवश्यक है ?"
चरक " महाराज आवश्यक तो नहीं पर अभी तक किसी कबीले ने महिला सेनापति का चुनाव नहीं किया है "
मैंने चरक ऐ कहा " ठीक है फिर चले "
चरक " चलिये महाराज "
User avatar
Rohit Kapoor
Pro Member
Posts: 2821
Joined: 16 Mar 2015 19:16

Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

चरक मुझे लेके एक खुले मैदान में पहुचते है जहाँ कबीले के सारे महिला पुरूष बच्चे इकठ्ठा थे । चरक ने पहले मुझे आसपास से आये कबीले के सरदारों से मिलवाया फिर वो मुझे लेके एक ऊँचे चबूतरे पे ले गए जहाँ पर एक बड़ा सा पत्थर नुमा सिंहासन था । मेरे वहां पहुचते ही पुजारिन देवसेना भी प्रकट हुई आज उसने भस्म से शरीर का लेप नहीं किया था अर्थात आज उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था मेरी नज़रे उसके शरीर पर रुक सी गई। देवसेना ने मेरी नज़रे भांपते हुए मुझसे कहा कि "सिहासन ग्रहण करे महाराज"
मैं सिहासन पे जाके बैठ गया फिर देवसेना ने कहा " कुलदेवता दधातु को शाक्षी मान कर मैं महाराज अक्षय को कबीले का सरदार घोषित करती हूं "
यह कहते हुए उसने मेरे सर पर भैसे के सींग का मुकुट पहना दिया । वहां उपस्थित सभी लोगो ने मेरे नाम की जयघोष शुरू कर दी ।
थोड़ी देर बाद जब शोर शांत हुआ तो देवसेना ने कहा अब महाराज अक्षय अपने सहयोगियों का चुनाव करेंगे। सारी सभा में सन्नाटा पसर गया ।
मैं खड़ा हुआ और चबूतरे से नीचे उतरा अपने सलाहकार के रूप में मैंने चरक को चुना और उनके सिर पे हाथ रख दिया चरक ने भी स्वीकारोक्ति स्वरुप मेरे चरण स्पर्श किए । पूरी सभा ने चरक के नाम का जयघोष किया । फिर मैं रानी विशाखा और विशाला की तरफ बढ़ चला । वो दोनों विस्मित नज़रो से मेरी तरफ देखने लगी मैंने विशाला के कंधों पे हाथ रख कर उसे अपना सेनापति बना दिया। सारे कबीले वाले शांत पड़ गए और विशाला जो कुछ देर तक जड़ व्रत मुझे देखने लगी । इसी बीच किसी ने विशाला के नाम की जयकार की मैंने घूम के देखा तो ये चरक जी थे कुछ देर में बाकि कबीले वाले भी विशाला के नाम की जयकार करने लगे । अब आखरी में संगिनी स्वरुप मैंने रानी विशाखा को चुना मैंने उनका हाथ पकड़कर अपने साथ चबूतरे पे ले गया और उन्हें अपने जांघ पे बिठा लिया। महारानी विशाखा के ख़ुशी के मारे आंसू निकलने लगे।
कुछ देर चरक जी ने नृत्य और मदिरा शुरू करने आव्हान किया। कुछ ही देर में सामने अर्धनग्न नृत्यांग्नायो का झुण्ड उपस्थित हुआ तथा सभी को मदिरा परोसी जाने लगी। धीरे धीरे रात घिरने लगी मदिरा और सामने होता उत्तेजक नृत्य मेरे लंड में भी हलचल मचाने लगा जिसका आभास मेरी जांघ पे बैठी रानी विशाखा को भी हो गया उन्होंने मुझसे कहा " राजन आपका यहाँ बैठा रहना जरूरी नहीं है आइये आप अपनी कुटिया में चलिये ।"
मैं अपनी जगह से उठ गया तो चरक जी मेरे पास आये और मुझे एक प्याला दिया और मुझे कुटिल मुस्कान से देखते हुए कहा " राजन ये काढ़ा पी लीजिये आपको आज रात आराम मिलेगा " मैंने भी बिना कुछ सोचे पी लिया और आगे बढ़ा रानी विशाखा और विशाला भी मेरे साथ हो ली । वो मुझे लेके एक बड़ी सी कुटिया तक ले गयी जिनके चारो तरफ छोटे छोटे झोपड़े बने हुए थे । मैं अंदर घुस गया मेरे साथ रानी विशाखा भी आ गयी विशाला दरवाजे पर सुरक्षा हेतु खड़ी हो गयी ।

अंदर आते ही रानी विशाखा ने मुझसे पूछा "महाराज क्या लेना पसंद करेंगे "
मैंने चौकते हुए पूछा " क्या मतलब "
रानी विशाखा ने मेरे खड़े लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा " पहले इसका इलाज किया जाए या आप भोजन करेंगे ? "
रानी के इस प्रश्न ने मुझे असहज कर दिया मैंने रानी से कहा रानी " विशाखा आप सच में ऐसा करना चाहती है ?"
रानी विशाखा ने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया " महाराज आपकी संगिनी के कारण मेरा ये दायित्व है कि आप की भौतिक और शारीरिक जरूरतों का मैं ख्याल रखु "
इसी के साथ रानी घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी मेरे चमड़े का वस्त्र उतार दिया और मेरे लंड को सहलाते हुए बड़े प्यार से अपने मुह में ले लिया और चूसने लगी । रानी धीरे धीरे अपने चूसने की रफ़्तार बढ़ा रही थी और मैं अत्यंत मजे की तरंगें अपने शरीर में उठती महसूस कर रहा था। चूसते चूसते रानी ने मेरा लंड पूरा अपनेमुह में ले लिया था और पूरे अपने गले तक निगलते हुए अंदर बाहर कर रही थी । कुछ देर बाद मुझे महसूस होने लगा की अब मेरा वीर्य शीघ्र ही निकलने वाला है तो मैबे अपना लंड बाहर खींचने को कोशिश की पर रानी ने दिनों हाथो से मेरा नितम्ब पकड़ लिया और जोर से लंड अपने मुह में अंदर बाहर करने लगी । कुछ ही देर में मैंने सारा वीर्य रानी के मुह में ही छोड़ दिया ।
मैंने साँसे सँभालते हुए रानी विशाखा की तरफ देखा तो वो बड़े अचंभे से मेरे लंड की तरफ देख रही थी जो झड़ने के बाद भी पूरी तरह से ढीला नहीं पड़ा था तभी मुझे याद आया की चरक जी ने कुटिया में आने से पहले मुझे कुछ पिलाया था हो न हो ये उसी का असर है जो अभी भी मेरा लंड ढीला नहीं पड़ा है । मैंने सोचा की रानी को अब थोड़ा आराम देते है तो मैंने उन्हें खाना लाने की बोल दिया । वो खाने का इंतज़ाम करने कुटिया से बाहर चली गयी । उनके जाते ही विशाला अंदर आ गयी और मेरे नग्न शरीर और खड़े लंड को देख कर चौंक गयी और इधर उधर देखने लगी ।
मैं भी अपनी नग्नता छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया और पास ही पड़े बिस्तर पर लेट गया ।
कुछ देर में रानी विशाखा भोजन लेके वापस आ गयीं और विशाला फिरसे बाहर चली गयी ।
रानी के साथ भोजन ख़त्म करते करते मुझे आभास हुआ की समारोह भी ख़त्म हो गया है तथा हमारे अगल बगल के झोपड़े में चहल पहल बढ़ गयी है मैंने या बारे में महारानी विशाखा से पूछा उन्होंने बताया कि मेरी कुटिया के बगल की एक कुटिया मेरे सलाहकार की तथा बाकि कुटिया मेरे मेहमान जैसे पुजारिन और अन्य सरदारों के लिए है वो सब समारोह से वापस अपनी झोपड़ियो में लौट आये हैं।
मैंने पूछा " और मेरी सेनापति जी कहाँ रहेंगी?"
रानी ने हँसते हुए कहा कि " वो सेनापति के साथ साथ आपकी अंगरक्षक भी है इसलिए वो आपके साथ ही रहेगी "
मैंने पूछा " और रानी विशाखा आप ?"
रानी विशाखा ने जवाब दिया " जैसा आप चाहे "
मैंने रानी विशाखा को अपने पास आने का इशारा किया उनके पास आते ही मैंने उनके कमर पे बांध चमड़े का वस्त्र खोल दिया और उन्हें बिस्तर पर धकेल दिया फिर उनके ऊपर आते हुए अपने लंड को उनकी चूत पे सेट करते हुए कमर को झटका दिया तो पूरा का पूरा लंड रानी की चूत में घुसता चला गया रानी विशाखा के मुह से सिसकिया निकलने लगी और मैंने भी लंड बहार निकल कर उनकी चूत ने धक्के मारने शुरू कर दिए रानी ने भी अपनी टाँगे चौड़ी करते हुए मेरी कमर के उपर चढ़ा ली जिससे मेरा लंड चूत की और गहराइयों में भी गोते लगाने लगा । धीरे धीरे मेरे धक्कों की गति बढ़ती रही और रानी की सिसकिया भी अब आहों में बदल गयी थी । मैंने धक्कों को और तेज कर दिया और रानी के चुचको को मुह में लेके चूसने लगा । मेरा ऐसे करते हु रानी जैसे पागल हो गयी और चीखते हुए झड़ गयी। चीख तेज़ थी शायद बगल के झोपडी के मेहमानों ने भी सुनी होगी । फिलहाल मेरा लंड शायद चरक के काढ़े के कारण झड़ने का नाम नहीं ले रहा था तो मैंने रानी को घोड़ी बना दिया और उसकी गांड के छेद पे अपना लंड लगाया और एक जोर का धक्का दिया रानी ने शायद अपनी तैयारी की थी क्योंकि गांड में चिकना कुछ लगा था कि मेरा लंड फिसलता हुआ अंदर पूरा घुस गया मैंने भी रानी के दोनों चौड़े कूल्हों पे अपने हाथ टिकाये और जोर जोर से चुदाई करने लगा रानी भी हर धक्के के साथ सुधबुध भूलकर चीखने लगी उसकी चीखो ने मुझे और उत्तेजित कर दिया और मैं और जोर से उसकी गांड चोदने लगा इस ताबड़तोड़ चुदाई से हम दोनों ही जल्दी चीखते हुए झड़ गए। उसके बाद मुझे तुरंत नींद आ गयी ।

सुबह मेरी नींद खुली तो मैंने देखा रानी विशाला बगल में अभी भी नींद में है तो मैंने नित्यक्रिया निपटाने का सोचा और चमड़े का वस्त्र अपने कमर पे लपेट कुटिया से बाहर निकला। बाहर विशाखा जाग चुकी थी और मुस्तैद खड़ी थी वो भी मेरे साथ हो ली । मैंने उससे कहा कि " मैं नित्यक्रिया के लिए जा रहा हु "
विशाला ने जवाब दिया की " ठीक है मैं यहीं हु "
मैं आगे बढ़ा कबीले के पुरुष मुझे अजीब नज़रो से देख रहे थे तथा स्त्रियां मुझे देखते ही शरमाते हुए आपस में खुसुर पुसुर करने लगी । मैंने भी ज्यादा ध्यान इस ओर नहीं दिया और आगे बढ़ा ।
नित्यक्रिया निपटा कर मैं वापस लौटा तो मेरी कुटिया के बाहर विशाला और चरक महाराज मौजूद थे। मुझे देख कर चरक जी ने नमन किया मैंने भी जवाब दिया और स्नान के लिए अंदर चला गया।
अंदर रानी विशाखा मेरा इंतज़ार कर रही थी मुझे देख कर वो शर्मा गयी मैंने उनसे पूछा " क्या हुआ रानी विशाखा ?"
विशाखा ने जवाब दिया " मेरे इतने साल के वैवाहिक जीवन में मैंने इतना सुख कभी नहीं प्राप्त किया जितना मुझे कल मिला "
मैंने कहा " ही सकता है क्योंकि शायद आपने अपने पति के अलावा किसी और से सम्भोग न किया हो इस लिए आपको ऐसा लग रहा हो ।"
विशाखा " ऐसा नहीं है कि मैंने अपने वैवाहिक जीवन में सिर्फ अपने पति से ही सम्बन्ध बनाये हो "
मैंने चौकते हुए पूछा " मतलब ??"
विशाखा " महाराज सम्भोग के मामले में हमारे काबिले की स्त्री और पुरुष काफी स्वछंद है ।"
मैंने पूछा " मैं समझा नहीं ?"
विशाखा " महाराज आप धीरे धीरे समझ जाएंगे अभी आप स्नान कर ले "
फिर वो अपनी कुटिया से सटे एक स्नानगृह में लेके मुझे आयी वहां भी एक कुंड में सुगन्धित फूलो की खुशबू वाला पानी एकत्रित था मैं भी अपना चमड़े का वस्त्र उतार कर पानी में उतर गया मेरे पीछे रानी विशाखा भी अपने वस्त्र और आभूषण उतार पानी में उतर गयी और मुझे स्नान कराने लगी ।
मैंने रानी से पुछा " इस द्वीप पे और भी कबीले हैं क्या ?"
रानी ने जवाब दिया " हाँ इस द्वीप पे अनेको कबीले है "
मैंने फिर पूछा " तो फिर ये कबीले आपस में लड़ते नहीं ?"
रानी " पहले कबीलो में बहुत आपसी लड़ाईया होती थी पर पिछली बारिश के बाद पुजारिन देवसेना की पहल के बाद लगभग सभी कबीलो ने एक आपसी सन्धि की और फैसला किया कि सब कबीले का एक सरदार चुना जाएगा जो की कबीलों के आपसी विवादों को सुलझाएगा ।"
मैंने पूछा " तो अब कबीलों का सरदार कौन है ? "
रानी " ये चुनाव करना पुजारन देवसेना को करना है अभी तक उनकी पसंद महाराज वज्राराज थे पर उनकी मृत्यु के पश्चात अब मुझे लगता है कि वो दुष्ट कपाला का चुनाव करेंगी ।"
मैंने रानी से पुछा " ये कपाला कौन है "
रानी " कपाला आदमखोर कबीले का सरदार है वो बहुत ही खतरनाक जालिम और धूर्त किस्म का इंसान है "
मैंने पूछा " तो फिर पुजारन उसे क्यों क़बीलों का सरदार बनाना चाहती हैं ?"
रानी " महाराज मुझे भी इस बारे में ठीक से नहीं पता पर मुझे ऐसा लगता है "
तभी दरवाजे से विशाला की आवाज आई " महाराज पुजारन देवसेना की दासी देवमाला आपसे मिलने चाहती है ।"
मैंने कहा " ठीक है मैं तैयार होके आता हूं "
मैं स्नानगृह से बाहर आया तो देखा की देवमाला मेरा इंतज़ार कर रही थी । देवमाला भी कोई 24 25 साल की महिला थी उसने भी शारीर पर भस्म का लेपन किया था देखने में वो भी देवसेना से कम न थी । मेरे प्रवेश करते ही उसने झुक कर मुझे प्रणाम किया और मुझसे कहा " महाराज पुजारन देवसेना आपसे अपनी कुटिया मे मिलना चाहती हैं "।
मैंने कहा "चलिये "
पुजारन देवसेना की कुटिया में पहुचने पर मैंने देखा की पुजारन देवसेना कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं । मैंने देवमाला की तरफ देखा तो उसने मुझे एक चमड़े के परदे की तरफ इशारा किया । परदे के पास पहुचते ही देवमाला ने कहा कि " पुजारन देवसेना महाराज पधार चुके हैं "
परदे के पीछे से देवसेना की आवाज आई " महाराज मैं आपके सामने नहीं आ सकती क्योंकि मैं रजोधर्म का पालन कर रही हु "
मैंने कहा " कोई बात नहीं मैं समझ सकता हु बताइये मेरे लिए क्या आदेश है ?"
देवसेना " आदेश नहीं महाराज चुकी मेरा मासिक आपके काबिले में आया है अतः हमारी परंपरा के अनुसार आपको आज से एक सप्ताह बाद मेरे मंदिर पर कालरात्रि की पूजा हेतु आना होगा इसलिए मैं आपको अपने मंदिर पे आने का निमंत्रण देना चाहती हु ।"
मैंने कहा " ठीक है पुजारन देवसेना जैसी आपकी इच्छा एक सप्ताह बाद आपसे मुलाक़ात होगी अब मैं चलता हूं "
फिर मैं देवसेना की कुटिया से निकल गया।
User avatar
Rohit Kapoor
Pro Member
Posts: 2821
Joined: 16 Mar 2015 19:16

Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

-----------------------------------------------------
देव सेना की कुटिया का दृश्य मेरे जाने के बाद
–----–---------------------------------------
देवसेना परदे की आड़ से बाहर आती है आज उसने कोई भस्म श्रृंगार नहीं किया हुआ है और उसके बाल भी नहीं धुले हुए है।
देवमाला " देवी क्या आपने ये सही किया "
देवसेना " शायद प्रभु की भी यही इच्छा है जो मेरा मासिक समय से पहले आ गया नहीं तो मेरी गड़ना के अनुसार कपाला के कबीले तक पहुचने से पहले ये नहीं आना था "
देवमाला " हो सकता है इस बार आप सफल हो जाये"
देवसेना " तुझे ऐसा क्यु लगता है "
देवमाला " रानी विशाखा की चीखें आपने नहीं सुनी क्या "
देवसेना " सुनी तो पर मुझे विश्वास नहीं होता की कोई स्त्री इतनी भी उत्तेजित हो सकती है "
देवमाला " मेरी एक परिचारिका से भी बात हुई जिसने प्रथम दिन महाराज को स्नान कराया था वो भी बता रही थी की महाराज कोई जादू कर देते है कि कोई स्त्री अपने वश में नहीं रहती "
देवसेना " देखते हैं अब तुम प्रस्थान की तैयारी करो "
पुजारन देवसेना से मिलके मैं अपनी कुटिया की तरफ बढ़ा तो रास्ते में चरक जी मिल गये। मैने उनसे मुझे कबीला घुमाने की लिए कहा वो मुझे लेके निकल पड़े। रास्ते में मैंने फिर गौर किया कि कबीले की महिलाये मुझे देख के शर्मा रही हैं । मैंने चरक जी से इस बारे में पूछा उन्होंने कहा " कल रात रानी देवसेना की चीखें पूरे काबिले ने सुनी इसी लिए वो आपको देख के शर्मा रही हैं।"
मैंने चरक जी से कहा " उसमे आपका भी हाथ है आपने कल मुझे क्या पिला दिया था ?"
चरक जी ने हँसते हुए कहा " महाराज बस शिलाजीत का काढ़ा था "
इसी तरह बात करते हुए हमने पूरे कबीले को देखा की कबीले के बाकी लोग कहाँ रहते है, खेती कहाँ होती है , जानवर कहाँ रखे जाते हैं , पीने का पानी कहाँ से आता है , अनाज कहाँ रखा जाता है वगैरह वगैरह ।
शाम को चरक जी के साथ मैं अपनी कुटिया पे पंहुचा । कुटिया में रानी विशाखा और विशाला पहले से मौजूद थी ।
रानी विशाखा ने पुछा " कहाँ थे अब तक महाराज ?"
मैंने कहा " कबीले के भ्रमण पर था "
रानी विशाखा ने पुछा " कैसा लगा हमारा कबीला ?"
मैंने कहा " कबीला तो ठीक है पर सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर है ?"
चरक जी ने पुछा " मतलब "
मैंने समझाना शुरू किया " देखिये कबीले में कोई भी बाहरी आसानी से आ जा सकता है दूसरा कबीले का पानी का स्त्रोत और अनाज के भण्डार बिना किसी सुरक्षा के है तीसरा कबीले में अचानक आक्रमण से निपटने के कोई इंतज़ाम नहीं है "
चरक जी ने पुछा " महाराज आप क्या चाहते हैं "
मैंने कहा कि "कबीले के चारो ओर लकड़ी की दिवार बनायीं जाए और काबिले में घुसने के बस दो या तीन द्वार हो जिसपे हमेशा पहरा रहे दूसरा पानी के स्त्रोत और अनाज के भण्डार की हर प्रहर निगरानी हो और तीसरा हमे काबिले की सीमा से कुछ दूर पेड़ो पर छुपी मचाने बनानी होंगी जिसपर हर प्रहर कोई प्रहरी रहे जो की किसी अचानक आक्रमण की सूचना हम तक पंहुचा सके । "
चरक जी ने कहा " उच्च विचार है महाराज मैं और सेनापति विशाला अभी से इसी काम पे लग जाते हैं अब हमें आज्ञा दे "
उन दोनों के जाने के बाद मैं रानी विशाखा से भोजन का प्रबंध करने को कहता हूं।
भोजन करने के पश्चात मैं अपने बिस्तर पे आके लेट जाता हूँ और रानी विशाखा भी आके मेरे समीप लेट जाती हैं। मैं रानी विशाखा से पूछता हूं " रानी आप कह रही थीं के कबीले के महिला और पुरुष सम्भोग के मामले में स्वछंद हैं इसका क्या मतलब है "
रानी विशाखा " महाराज हमारे कबीले की पुरानी मान्यता है कि सम्भोग परमात्मा तक पहुचने का जरिया है या ये कहे सम्भोग की क्रिया एक समाधी की तरह है जो हमे परमात्मा तक पहुचाती है और हम कभी भी किसी के साथ कहीं भी सम्भोग करने को स्वछंद है "
मैंने पूछा की " इसका कोई पुरुष किसी भी महिला के साथ सम्भोग कर सकता है ? "
रानी विशाखा " हाँ अगर उस महिला की भी सहमति है तो "
मैंने फिर पूछा " मैं भी कबीले की किसी भी महिला के साथ सम्भोग कर सकता हु अगर वो सहमत हो तो ?"
रानी विशाखा " कबीले के सरदार होने के नाते आपको सहमति की आवश्यकता नहीं है आप अगर किसी महिला से सम्भोग करना चाहते हैं तो उसे आपकी बात माननी पड़ेगी इसी तरह अगर कबीले की कोई महिला आपके साथ सम्भोग करना चाहती है तो उसे आपकी सहमति की आवश्यकता नहीं एक सरदार होने के कारण आपको उसे संतुष्ट करना पड़ेगा ।"
मैंने रानी विशाखा से पुछा " अच्छा आपने कहा कि आपने और भी पुरुषों के साथ सम्भोग कियाहै उसका क्या मतलब "
रानी विशाखा " महाराज वज्राराज हर रात किसी न किसी कबीले की औरत के साथ सोते थे तो मुझे भी अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए और पुरुषों का सहारा लेना पड़ा "
मैंने कहा " तो फिर महारानी आओ मेरा सहारा कब लेंगी ?"
रानी विशाखा हँसते हुए मेरे ऊपर आ गयी और मेरे लंड पर अपनी चूत को रगड़ने लगी कुछ ही देर में मेरा लंड रौद्र रूप लेने लगा उन्होंने मेरे लंड को अपनी चूत पे लगाया और उसपर बैठना चालू किया । मेरा लंड भी फिसलता हुआ उनकी चूत में जड़ तक घुस गया अब रानी मेरे लंड पर ऊपर नीचे होने लगी और मुझे स्वर्ग की सैर कराने लगी । धीरे धीरे रानी ने अपनी गति बढ़ाना शुरू किया तो मुझे और आनंद आने लगा रानी को भी अब इस चुदाई में मजा आने लगा । मैंने रानी के चूतड़ को धीरे धीरे दबाना शुरू किया रानी की सिसकारियां बढ़ गयी और रानी और तेजी से धक्के लगाने लगी । मैंने अपनी एक उंगली रानी की गांड में घुसा दी और उसी के साथ रानी झड़ती हुई मेरे ऊपर गिर पड़ी।
मैंने रानी की पीठ के बल किया और उनके ऊपर आ के चूत में धक्के लगाने लगा। कुछ देर बाद मैंने रानी की दोनों टाँगे उठाके अपने कंधे पे रख ली और उनकी चूत में लंबे लंबे धक्के लगाने लगा रानी की सिसकियाँ फिर चालू हो गयी थी और मुझे भी लग रहा था कि मेरा भी जल्दी ई निकल जाएगा तो मैंने रानी के चुचको को अपनी उंगलियों से मसलना शुरू किया तो रानी चीखने लगी। मैंने भी और जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए । कुछ देर बाद मैंने अपना पूरा का पूरा वीर्य रानी की चूत में भर दिया मेरे साथ ही रानी भी खूब जोर से चीखते हुए झड़ गयी।
सुबह नित्यक्रिया और स्नान निपटाने के बाद मैंने विशाला को अपने साथ चलने को कहा। कबीले की सीमा पर पर मेरे कहे अनुसार चरक ने दीवार बनाने का काम शुरू करवा दिया था । मैंने घूम कर काम की प्रगति देखी। फिर मैं विशाला को कबीले की सीमा से और आगे ले गया और उससे पूछा " क्या मैं तुमपे विश्वास कर सकता हु विशाला "
विशाला ने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया " जी महाराज "
Post Reply