मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास

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Ankit
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Re: मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास

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कशमकश


बाजी राव का मस्तानी को लेकर कई दिनों से अपने परिवार के साथ बहुत विवाद, बहस और झगड़ा हो रहा होता है। मस्तानी की हीरे मोती जड़ी, सोने और चांदी के गोटे वाली पट, जरी की साडि़यों पर आ रहे खर्च और महाराजा छत्रसाल के देहांत के उपरांत बुंदेलखंड से प्राप्त होने वाली आर्थिक सहायता बंद हो जाने के कारण काफ़ी तनाव उत्पन्न हो जाता है।
बाजी राव ने सफाई देते हुए बहुत कहा है कि हुक्के, इत्रों और फुव्वारों पर भी तो खर्च आता है ? शान बढ़ाने के लिए कई बार इस प्रकार धन खर्च करना ही पड़ता है। लेकिन आज तो बात कुछ अधिक ही बढ़ गई और मामला छत्रपति शाहू के दरबार तक पहुँच जाता है। शाहू ने बाजी राव को बुलाया है। बाजी राव इसी कारण दिन भर परेशान रहा है।
रात का पिछला पहर है। बाजी राव सोच-विचार के चक्रव्यूह में उलझा हुआ है। लगभग सारी रात ही उसने बेचैनी में बिताई है। मानसिक परेशानियों में मस्तानी भी उसकी बांह का सिरहाना बनाये उसके संग लेटी हुई आने वाले कल की चिंता में करवटें बदल रही है।
लेटी हुई मस्तानी तिरछी नज़र से बाजी राव की ओर देखती है, “क्या बात है स्वामी, आज नींद नहीं आ रही ?“
“नहीं। तुम भी कहाँ सोई हो।“ बाजी राव आँखें मूंद लेता है।
“ऐसे नाजुक समय में नींद भी कैसे आ सकती है ? मेरा तो उसी समय माथा ठनक गया था जब सतारा से कासिद महाराज शाहू जी के तलब करने का पैगाम लेकर आया था। पता नहीं कल दरबार में क्या होगा ?“
“कुछ नहीं होता। तुम चिंता मत करो। मैं सबको देख लूँगा।“ मस्तानी को ढाढ़स देते बाजी राव का मन खुद डोल रहा होता है।
मस्तानी बाजी राव का हाथ पकड़कर अपनी छाती पर रख लेती है, “यह देखो। मेरा तो कलेजा कांपे जा रहा है। देखना, कहीं वही बात न कर देना ? अगर आपने मुझे छोड़ दिया तो न मैं इधर कही रहूँगी और न उधर की।... मैं तो माऊ जाकर साध्वी बन जाऊँगी।“
“तुम्हारा परिवार माऊ-माऊ बहुत करता है। क्या है माऊ में खासियत ?“
“माऊ हमारा धार्मिक केन्द्र है। तमासा दरिया वाले इस नगर माऊ का पहला नाम माऊ नाथ भजन था। माऊ का मतलब पड़ाव या छावनी होता है। शेर शाह सूरी, बादशाह अकबर और आलमगीर औरंजजेब इस नगर को सफ़र के दौरान ठहराव के तौर पर इस्तेमाल किया करते थे। औरंगजेब की बहन जहांआरा ने यहाँ मुहल्ला केरियां में एक मस्जिद भी बनाई थी, जिसके साथ अनेक सरायें भी बनी हैं। कहते हैं, बहुत पहले एक नट हुआ करता था -माऊ नट भजन। वह बड़ा शरारती और ज़ालिम था। स्थानीय पंडितों को बहुत तंग किया करता था। पंडितों ने हाकिम से उसकी शिकायत करके उसको वहाँ से निकालने के लिए कहा। नट ने हाकिम से विनती करके एक शर्त रख दी कि यदि पंडित कुश्ती करके उसको हरा देंगे तो वह नगर छोड़कर चला जाएगा। नहीं तो पंडितों को नगर छोड़ना पड़ेगा। कुश्तियाँ हुईं। न माऊ जीत सका और न ही उसकी हार हुई। मामला वहीं का वहीं रह गया। आखि़र माऊ ने कहा कि वह नगर छोड़कर चला जाएगा यदि नगर का नाम उसके नाम पर रख दिया जाए। पंडित मान गए और माऊ वहाँ से चला गया। उस दिन से उस नगर का नाम माऊ नट भजन पड़ गया। समय के साथ साथ धीरे धीरे बिगड़ता हुआ यह नाम सिर्फ़ माऊ ही रह गया है। हिमांयू को हराने वाला बादशाह शेर शाह सूरी यहीं माऊ में ही कोल्हूवावण(मधुवन) प्रसिद्ध सूफी फकीर संत सैयद अहमद वडवा को मिलने भी आया करता था। शेर शाह सूरी की बेटी स्थायी तौर पर यहीं रहती रही थी। इलाहाबाद को जाते हुए अकबर यहीं पर ठहरा करता था। मुगलों की सेना के साथ आए तुर्की, अफ़गानी और ईरानी जुलाहे यहीं माऊ में ही बस गए। इस कारण यहाँ के लोग भोजपुरी, फारसी, पश्तो और ईरानी बोलियाँ बोलते हैं। जुलाहों ने अपना पुश्तैनी व्यवसाय अपना कर माऊ को वस्त्र बनाने के लिए प्रसिद्ध कर दिया। आपने जो लुंगी पहन रखी है, मालूम है, कितना जंचती है। आपके परिवार वालों ने मुझे निकाल दिया तो मैं माऊ मंे जाकर संतनी बन जाऊँगी।... अच्छा बताओ यदि मैं सन्यास लेकर माऊ चली गई तो क्या वहाँ मुझे मिलने आओगे ?“
बाजी राव करवट बदलकर मस्तानी की ओर अपने शरीर को मोड़ता है और मस्तानी को कसकर बांहों में भींच कर अपनी छाती से लगा लेता है, “यह क्या अनाप शनाप बोले जा रही है ? तुझे छोड़ने के लिए तो मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता। कौन जन्मा है, मुझे तुझसे छीनने वाला ? खुंडी कुल्हाड़ी से टुकड़े न करके रख दूँगा। मैं तो स्वयं नहीं तेरे बिना रह सकता। मस्तानी जान, मर जाऊँगा तुझसे दूर होकर।“
मस्तानी, बाजी राव के मुँह पर हाथ रख देती है, “हाय हाय! अल्लाह ! राम-राम !! कहो। मरें आपके दुश्मन।“
मस्तानी बाजी राव के ऊपर लेट जाती है, “आपको एक कहानी सुनाती हूँ।... चैहदवीं सदी में क्षत्रिय राजपूत राजकुमार हरदेव सिंह को बोरदी दासी के साथ प्रेम संबंध स्थापित करने के कारण जाति से निकालकर देश निकाला दे दिया गया था। फिर वह जंगलों में जाकर अपनी प्रेमिका के संग बस गया और गुप्त रूप में उसने अपनी सेना तैयार की थी। समय बीतता गया और उसके पिता का स्थान अन्य राजा ने ले लिया। नए राजा का पुत्र हरदेव सिंह की जवान पुत्री पर मोहित हो गया। राजकुमार ने हरदेव सिंह से उसकी पुत्री का हाथ मांगा। हरदेव सिंह ने शर्त रख दी कि वह शादी करने के लिए तैयार है, यदि राजकुमार का राजा पिता अपने मंत्रियों और सिपहसालारों के साथ आकर उसके हाथों का बना भोजन करे। राजा अपने पुत्र की खुशी के लिए यह शर्त मान गया। हरदेव सिंह ने खाने में नशीले पदार्थ डालकर सबको खिलाये और शराब तथा अफीम का सेवन सभी को करवाकर मदहोश कर दिया। उसके पश्चात हरदेव सिंह के सैनिकों ने राजा और उसके साथियों को मार दिया और इस प्रकार लहू की बूंदें लेकर हरदेव सिंह ने अपना हक वापस प्राप्त किया था। हरदेव सिंह ने हकों के लिए बूंद लो का नारा लगाकर अपना नया वंश ‘बुंदेल’ चलाया था। अब यूँ लगता है जैसे फिर एक बुंदेल के हकों पर उसके प्रेम संबंधों के कारण डाके मारे जाने की तैयारियाँ की जा रही हों।“
बाजी राव वेग मंे आकर मस्तानी की गालों और अधरों को चूमने और च्यूंटने लग जाता है, “तुझे भरोसा नहीं मेरे पर ? ... हैं...? ऊँ... बोल... तो... विश्वास नहीं अपने प्यार पर ?... हूँ ?... हैं ?“
“विश्वास है, इसीलिए तो अब आपके पास लेटी हूँ।“
मस्तानी, बाजी राव को प्रत्युŸार में संक्षिप्त से चुंबन देकर उसके अधरों में से अपने अधर नजाकत के साथ छुड़ा लेती है। बाजी राव उसकी बेरुखी का बुरा नहीं मनाता और मस्तानी को निर्वस्त्र करता हुआ गरमाने के लिए यत्न जारी रखता है। बाजी राव के शारीरिक मिलाप के निमंत्रण को उŸार दिए बिना ही मस्तानी उसकी छाती से चिपटकर खामोश हो जाती है।
बाजी राव मस्तानी की रुचि न होने के बावजूद उसको भोगता है और शांत होकर पड़ जाता है। शेष बची रात बाजी राव और मस्तानी करवटंे बदलते हुए बेचैनी और मानसिक कशमकश मंे बिताते हैं।
पौ फटती है तो बाजी राव स्नान करके घोड़े तैयार करने का आदेश देता है। मस्तानी पूजा पाठ करके बाजी राव के सिर पर लाल पेटा बांध कर उसको विदा करती है। अनमने से मन के साथ मस्तानी से अलविदा लेकर बाजी राव छत्रपति शाहू के दरबार में उपस्थित होने के लिए यात्रा आरंभ कर देता है।
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दोपहर के बाद जब बाजी राव महाराजा शाहू जी के दरबार में उपस्थित होता है तो वहाँ छत्रपति के मंत्री और अधिकारियों के अलावा छोटा भाई चिमाजी अप्पा, माता राधा बाई, धर्मगुरू महाराज श्री ब्रह्ममहिंदरा स्वामी और उनके भट्ट खानदान का बुजुर्ग मोरे सेठ आदि ही पहीं, कई अन्य मराठे सरदार महाधजी पंत, महोडबा पूरनधारे, सूबा राव जेबे भी उपस्थित होते हैं।
मुस्लिम शासकों के प्रभाव के कारण भारत में प्रशासनिक पदों के नाम अरबी, फारसी में प्रचलित थे। राज भाषा भी फारसी ही थी। छत्रपति शिवाजी ने अपने शासनकाल के दौरान अपनी राजभाषा मराठी घोषित करके राज कार्यों के लिए ‘राजविहार कोश’ की रचना करवाई थी। जिसका संपादन रघूनाथ पंत हनुमंते की निगरानी अधीन अनेक विद्वानों ने सम्पूर्ण किया था। इस ‘राज विहार’ कोश के अनुसार आठ विशेष पद बनाये गए थे। जिन्हंें अष्ट प्रधान कहा जाता है। इनकी सूची क्रमवार पदानुसार इस प्रकार है -
पेशवा - मुख्यमंत्री (प्रधान मंत्री -च्तपउम डपदपेजमत)
मजूमदार -आमतिया (राज मंत्री - ब्ंइपदमज डपदपेजमत)
सुरनिस - सचिव(विŸा मंत्री - थ्पदंदबम डपदपेजमत)
बाकेनवीस -सचिव(गृह मंत्री - प्दजमतदंस ।ििंपते डपदपेजमत)
सरनौबत -सेनापति ( ब्वउउंदकमत)
दबीर - सामंत (विदेश मंत्री - थ्वतमपहद डपदपेजमत)
न्यायधीश - जज(स्ंू डपदपेजमत वत ैमदपवत श्रनकहम)
पंडित राव( धार्मिक मंत्री - त्मसपहपवने डपदपेजमत)

छत्रपति शिवाजी द्वारा तैयार करवाये राजविहार कोश के अनुसार छत्रपति के दरबार में अष्ट प्रधानों के बैठने के लिए विशेष आसन आरक्षित रखे गए थे। दरबार में बुलाये जाने का उद्देश्य जानते हुए भी बाजी राव अनजान बनने का ढोंग करता है, “छत्रपति की जय हो ! आदेश कीजिए महाराज... खादिम को यूँ अचानक कैसे याद किया गया है ?“
छत्रपति, बाजी राव को बैठने का इशारा करता है। बाजी राव छत्रपति शाह के सबसे निकट दायीं ओर पेशवा आसन पर विराजमान हो जाता है।
महाराज शाहू बाजी राव की ओर देखता हुआ बड़ी नम्रता के साथ कहना प्रारंभ करता है, “देखो बाजी राव, तुम तो जानते ही हो कि हम तुम्हें कितना प्यार और सत्कार करते हैं। तुम एक बढि़या योद्धा ही नहीं, मराठों का मान भी हो। हमने तुम्हें पेशवाई यूँ ही नहीं दी थी। तुम्हारे गुणों और योग्यता को देखा था। साहित्यिक भाषा में जिसको आदर्श पुरुष कहते हैं। हमारे विशाल मराठा साम्राज्य का महानायक और हीरा हो तुम, हीरा। हम नहीं चाहते कि हमारे इस नायाब हीरे की चमक कभी धुंधली पड़े।“
बाजी राव खांसकर गला साफ़ करता है, “क्या बाजी राव ने अपनी पेशवाई कर्तव्य निभाते हुए आज तक आपको कोई शिकायत का अवसर दिया है, महाराज स्वामी ?“
“नहीं, हमें तो नहीं। पर तुम्हारे परिवार और मराठा सरदारों को तुमसे शिकायत है। तुम चूंकि हमारे प्रिय हो इसलिए हम उसको दूर करने के इच्छुक हैं। तुम्हारे ऊपर दोष लगा है कि तुम मस्तानी के साथ अय्यासी में इतने मग्न रहते हो कि तुम्हें जग और ईश्वर की भी कोई सुध नहीं रहती है। मुझे पता चला है कि तुम हर समय मदिरापान ही करते रहते हो। मस्तानी भी रोकने की बजाय तुम्हें नशा करने के लिए उत्साहित करती है। यह आदत हमारे मराठा सल्तनत और तुम्हारी सेहत के लिए बहुत हानिकारक है, शेर-ए-मराठा। हम इस समस्या को लेकर काफी चिंतित हैं।“ महाराज शाहू रौब के साथ बोलते हैं।
बाजी राव गर्दन झुकाये सोचता हुआ उŸार देता है, “महाराज, मैं क्या करूँ ? किधर जाऊँ ? यह सारा शोर-शराबा व्यर्थ का है। बात शराब की नहीं है। शराब तो पहले मैं कौन सा कम पीता था, जब मस्तानी नहीं थी? लोगों की आँखों में तो मस्तानी चुभती है। मस्तानी ने मुझे कभी शराब पीने के लिए नहीं कहा। वह तो बल्कि मुझे रोका करती है। महाराज स्वामी, आपने भी पाँच विवाह करवाये हैं। सभी हुक्मरान एक से अधिक स्त्रियाँ रखते हैं। फिर मस्तानी के साथ रिश्ता जोड़कर मैंने कौन सा गुनाह कर लिया है ? मस्तानी के साथ समय गुज़ारना मुझे अच्छा लगता है। वह मेरी रूह जैसी है। मेरे परिवार को बस यही बात चुभती है। मेरे परिवार वाले हर समय किसी न किसी मुद्दे को लेकर मेरी जान सूली पर टांगे रखते हैं। मैंने अपनी सारी उम्र युद्ध लड़ते हुए अपने परिवार और मराठा राज का गर्व से सिर ऊँचा उठाने में लगा दी है। जब समूचा मराठा राष्ट्र सिरहाने के नीचे बांह रखकर सुख की नींद सो रहा होता था तो मैं युद्धभूमि में नंगी तलवार चलाकर मराठा राज की सीमाओं को बढ़ा रहा होता था। मैं भी इन्सान था। क्या मुझे अपने फुर्सत के समय में मनोरंजन करने का अधिकार नहीं है ?“
धर्मगुरू ब्रह्ममहिंदरा टोकता है, “वह तुम्हारी बात ठीक है। खूब दिल को बहला। पर बच्चा ! हर काम की कोई सीमा होती है। अब भी देख तेरी जबान थुथला रही है और तेरे से उचित ढंग से बैठा भी नहीं जा रहा। तुम अब भी नशे से धुŸा हो। हम तुम्हारे हित चिंतक हैं, शत्रु नहीं। हम समस्याओं का असली कारण बूझ रहे हैं। यदि हमने अब कोई कठोर कदम न उठाया तो तुम अपने आप को शराब पीकर खत्म कर लोगे।“
बाजी राव कुछ नहीं बोलता और खामोशी के साथ सबकी ओर देखता रहता है।
महाराज शाहू चुप के वातावरण को बदलते हैं, “पेशवा बाजी राव... हम आदेश देते हैं कि तुम्हारा परिवार और समूह मराठा राष्ट्र तुम्हारे और मस्तानी के संबंधों को स्वीकार करेगा। कोई भी किसी तरह की आपŸिा नहीं करेगा। पर एक शर्त है कि तुम्हें शराब छोड़नी पड़ेगी। तुम वचन दो और हमें शराब छोड़कर दिखाओ। हम तुम्हें सबसे दूर एकांत में पतास(65 ज्ञउ ंूंल तिवउ उवकमतद च्नदम ) जाने का आदेश देते हैं। पतास जाकर तुम अकेले कुछ समय व्यतीत कर और नशों से मुक्त हो। जब तक तुम मदिरा नहीं छोड़ोगे, तुम मस्तानी से नहीं मिल सकते। यही हम सब का फैसला है।“
बाजी राव रुआंसा हो जाता है और उसके मुँह से उदासीन, थकी सी आवाज़ निकलती है, “ठीक है, यदि यही आपका निर्णय है तो... मैं आपŸिा करने वाला कौन होता हूँ ? मैंने क्या पहले आपका आदेश मानने से इन्कार किया है जो अब हुक्म-उदूली करूँगा। लेकिन मेरी भी एक शर्त है कि मस्तानी के मामले पर उसके बाद कोई बखेड़ा नहीं होना चाहिए। मस्तानी मेरे दिल की धड़कन है।“
गुरू ब्रह्ममहिंदरा अपना अगला दांव खेलता है, “ऐसे नहीं बाजी राव, तुम्हें सौगंध खानी पड़ेगी कि जब तक हम नहीं कहते, तुम मस्तानी को नहीं मिलोगे। गंगा जल प्रस्तुत किया जाए।“
“ठीक है गुरूवर !“ गंगा जल हथेली में लेकर बाजी राव कसम खा लेता है और सबसे आज्ञा लेकर गुस्से में घोड़े पर सवार होकर पूणे से चालीसेक मील की दूरी पर बसे नगर पतास की ओर निकल जाता है।
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तिल तिल मौत


बाजी राव को पतास आए एक महीना बीत चुका होता है। इस एक महीने के दौरान बाजी राव शराब को मुँह तक नहीं लगाता। बेशक उसका शरीर और रूह, दोनों बुरी तरह शराब की मांग करते हैं। परंतु बाजी राव अपनी प्रतिज्ञा पर डटा रहता है। उसने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया होता है कि मस्तानी का साथ पाने के लिए वह मरता मर जाएगा, पर शराब की ओर देखेगा तक नहीं। पीने की बात तो दूर की रही।
बाजी राव, परिवार, मस्तानी और छत्रपति सब से एक किस्म से अपने संबंध तोड़ कर एकांत में समय व्यतीत कर रहा होता है। बाजी राव जब से पतास आया है, तब से वह बीमार ही रहा है। उसे न तो नहाने धोने की होश है, न ही उसने कभी समय से ठीकप्रकार भोजन किया है। बस, दिन रात बिस्तर पर पड़ा रहता है। उसके हट्टे-कट्टे शरीर में दुर्बलता भी बहुत आ गई है।
उधर बाजी राव की अनुपस्थिति में अप्पा की सिपहसालारी के अधीन मराठों की कुछेक दुश्मनों से झड़पें होती हैं जिनमें मराठों को सफलता तो क्या मिलनी थी, अपितु हार का मुँह देखना पड़ा और काफ़ी हानि भी हुई।
इस प्रकार बाजी राव को पतास में आए हुए दो माह बीत जाते हैं। चिमाजी अप्पा अपने बड़े भाई पेशवा बाजी राव से आकर मिलता है। स्वास्थ्य खराब रहने के कारण बाजी राव अब तक बहुत बुरी हालत में होता है और चिमाजी अप्पा को गले लगाते समय उसके हाथ कांप रहे होते हैं। बाजी राव स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होने में भी असमर्थ होता है। बाजी राव को चक्कर आने लगते हैं। वह चक्कर खाकर बिस्तर पर ही गिर पड़ता है। चिमाजी अप्पा अपने हाथों का सहारा देकर बाजी राव को बिठाता है, “यह क्या भाऊ ? क्या हालत बना ली है अपनी ?“
“तेरे सामने ही है...।“ बाजी राव के मुख से हकलाती हुई बड़ी कठिनाई से आवाज़ निकलती है।
“वही तो देख रहा हूँ। न आवाज़ में शेरों वाली गर्जन, न घोड़े जैसी चाल और न ही हाथयों को पीछे छोड़ने वाली देह। आप अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखते ?“
“खुद अपना ख़याल भी कभी कोई रख सका है, अप्पा मेरे भाई ? मस्तानी मेरा ख़याल रखती थी। उसको तुम सबने मुझसे दूर कर दिया है।... भगवान जाने, तुम किस जन्म का वैर ले रहे हो मेरे से ? तुम्हें तो पता है, मैं मस्तानी के बिना नहीं रह सकता। मर जाऊँगा। मुझे मारकर ही सब सांस लोगे।“ इतना कहते ही बाजी राव को खदसा लग जाता है और फिर उसके शरीर में एकदम कंपन होने लगता है। सभी अंग पैर तेज़ तेज़ कांपने लग जाते हैं और थरथराता हुआ बाजी राव मूर्छित हो जाता है।
“भाऊ!...भाऊ!!...भाऊ !!!“ चिमाजी अप्पा घबराकर बाजी राव को लिटा देता है और वैद को बुलाता है, “वैद जी ?... पहरेदार ... शीघ्र, वैद जी को बुलाओ...।“
वैद आकर मूर्छित पड़े बाजी राव की नाड़ी टटोलकर उसके मुँह में काढ़ा डालता है। उसके बाद बाजी राव के हाथों पैरों की कुछ नाडि़यों को विशेष ढंग से दबाता है। सेवक को बाजी राव की हथेलियों और पांव के तलुओं पर तेल की मालिश करने को कहता है।
“शीघ्र ही, होश आ जाएगा।“ कहकर वैद चिमाजी अप्पा को आरामगाह में से बाहर आने का संकेत करता है।
एकांत में जाकर वैद इधर उधर देखता है और अप्पा को सम्बोधित होकर बताता है, “अप्पा स्वामी, श्रीमंत सरकार बहुत लम्बे समय से अधिक शराब का सेवन करते रहे हैं। पेशवा जी के रक्त में शराब बुरी तरह मिलकर घर कर चुकी है। उनकी देह इस नशे की आदी हो चुकी है। नशा किसी भी प्रकार का हो, उसको धीरे धीरे त्यागा जाता है। पहले उसकी मात्रा को कम किया जाता है, फिर धीरे धीरे तिलांजलि दी जाती है। एकदम मदिरा को छोड़ने से हानि होती है, जो आप देख ही रहे हैं। इस प्रकार अचानक शराब छोड़ने के कारण मौत भी हो सकती है। लेकिन मैं काढ़ों में पेशवा जी को मदिरा मिलाकर पिलाता रहूँगा ताकि इनके शरीर को अधिक नुकसान न हो।“
“अच्छा तो यह सब शराब छोड़ने का परिणाम है।“
“शराब छोड़ने का नहीं, अचानक एकदम छोड़ने का नतीजा है। लम्बा अरसा शराब पीते रहने के कारण उनकी स्मरणशक्ति कमज़ोर हो गई है और वह अक्सर बात करते करते भूल जाते हैं। उनके बाल भी झड़ने लग पड़े हैं। कई बार तो उनकी आँखों के आगे अँधेरा भी आ जाता है। ये कोई बहुत अच्छे लक्षण नहीं हैं। यदि उनका सही इलाज और पूरा खयाल नहीं रखा गया तो वह अधिक समय जिंदा नहीं रह सकेंगे। वैसे ये हद से ज्यादा शराब पीने के कारण अधरंग होने के आसार हैं। पूरे धड़ के एक हिस्से में लकवा भी मार सकता है। बहुत गंभीर अवस्था मंे पहुँच गए हैं श्रीमंत सरकार। शराब की लत और जवानी की हवस एकदम से छोड़ दी जाए तो व्यक्ति मरने के किनारे पहुँच जाता है। आपने तो दोनों लतें इकट्ठी ही छुड़वा दी हैं। बहुत बुरी बात है। इसके परिणाम भयानक निकल सकते हैं। अब तो चैबीस घंटे इनकी निगरानी रखने की आवश्यकता है, अप्पा स्वामी।“
वैद की ताकीद सुनकर अप्पा संजीदा हो जाता है, “शुक्रिया वैद जी, मैं भाऊ की देखरेख का प्रबंध करता हूँ।“
अप्पा अंदर जाकर बाजी राव के सिरहाने बैठ जाता है। कुछ समय बाद बाजी राव की चेतना लौटती है और वह थोड़ी-सी आँखें खोलकर अप्पा की ओर देखता है, “अभी तक यहीं हो अप्पा ?“
अप्पा अपने आसन से उठकर बाजी राव के बिस्तर पर जा बैठता है और बाजी राव का हाथ पकड़ लेता है, “भाऊ, मुझसे आपकी यह हालत देखी नहीं जाती।“
“मैंने तुमसे कहा था न कि मैं मस्तानी के बिना नहीं रह सकता। अब तो देख लो मैंने शराब भी छोड़ दी है। अब तो उसको मेरे पास भेज दो ? पत्नी से बढि़या पति की दूसरा कोई देखरेख नहीं कर सकता। अप्पा, कृपा करक मेरी पत्नी को मेरे पास भेज दो। मुझे मेरी अद्र्धांगिनी की सख्त ज़रूरत है।“ बाजी राव गिड़गिड़ाने लग जाता है।
“चिंता न करो भाऊ। मैं करता हूँ कुछ। आप थोड़े स्वस्थ हो कर खरागौन (ज्ञंसूं ज्ञींतमहंवदए ज्ींदमए डंींतंेीजतंए प्दकपंण् 145 ज्ञउ दृक्पेजंदबम तिवउ ज्ञंसूं जव च्नदम) आ जाओ। आपकी पत्नी को मैं वहीं लेकर आता हूँ। मैं वचन देता हूँ।“
अप्पा की बात सुनकर बाजी राव की आँखों में चमक आ जाती है और वह उठकर बैठने का यत्न करता है। अप्पा उसको कंधों से पकड़कर वापस लिटा देता है, “नहीं, अब आप सो जाओ। आपको आराम की सख्त ज़रूरत है। मैं भी चलता हूँ। चैथ एकत्र करने जाना है।“
चिमाजी अप्पा पूणे अपने घर मंे जाकर सबको बाजी राव की बिगड़ती हालत से परिचित करवाता है और बाजी राव के बड़े पुत्र नाना साहिब के संग परामर्श करता है, “नाना, समझ में नहीं आता कि क्या करूँ ? मैं तो वचन भी दे आया हूँ और मस्तानी को भी भाऊ के पास नहीं भेज सकता। भाऊ की हालत बहुत खराब है। निगरानी और सेवा-टहल के लिए कोई घर का व्यक्ति ही चाहिए।“
“अप्पा चाचा, मुझे खुलकर विस्तार से बताओ कि क्या वार्तालाप हुआ था आपका बाबा के साथ ?“
“भाऊ ने एक ही रट पकड़ रखी थी। मस्तानी... मस्तानी... मस्तानी। बार बार कह रहा था कि मुझे पत्नी की ज़रूरत है। मेरी पत्नी को मेरे पास भेज दो।“
ओट मंे खड़ी होकर उनकी बातें सुन रही राधा बाई भी बाहर निकलकर आ जाती है, “पत्नी कहता है तो काशी को भेज देते हैं। वह भी तो पत्नी ही है। बल्कि पहली और असली पत्नी। हो सकता है अप्पा तुझे सुनने में भ्रम हुआ हो।“
“नहीं आई। मैं कोई मूर्ख हूँ ? भाऊ, मस्तानी को ही याद कर रह था। उस पगले को मस्तानी का भुस पड़ा हुआ है। काशी वाहिनी साहिबा के विषय में तो उसने पूछा तक नहीं।“ अप्पा अपनी बात स्पष्ट करता है।
राधा बाई अपने चेहरे पर शैतानी मुस्कान लाती है, “यह तो हम ही जानते हैं। तू ऐसा कर काशी को बाजी राव के पास भेज दे और साथ में छोटे लल्ले(पुत्र) जनार्धन को भी। बाजी राव का चिŸा बहला रहेगा। उसने पत्नी कहा है। यही क्या कम है, मस्तानी या काशी बाई ? तू कह देना, भ्रम हो गया था। इस प्रकार कुछ दिन मामला टला रहेगा। और हाँ, मस्तानी पर पहरा और कड़ा कर दो। जब काशी के बाजी राव के पास जाने का पता चलेगा तो हो सकता है, वह कलमुँही भी उसके पास जाने की कोशिश करे।“
“लो, ऐसे कैसे भाग जाएगी ? टखने न तोड़ दूँगा। एकबार भाग गई थी मेरी कैद में से। अब नहीं इस जंगली कबूतरी को उड़ने दूँगा मैं। पहरा तो मस्तानी के महल का मैंने पहले ही सख्त किया हुआ है। भनवारा महल मंे परिंदा भी पर नहीं मार सकता। वैसे इस तरकीब के बारे में तो माता श्री मैंने सोचा ही नहीं था। हम काशी वाहिनी साहिबा को ही भेजते हैं।“ चिमाजी अप्पा और नाना साहिब राधा बाई की योजना से सहमत हो जाते हैं।
राधा बाई, बहू काशी बाई और पोत्र जनार्धन को तैयार करके खारगौन बाजी राव के पास भेज देती है। बाजी राव पालकी देखकर एकबार तो प्रसन्न हो जाता है और बिस्तर पर से उठकर बैठ जाता है। जब पालकी में से वह काशी बाई को गोदी मंे जनार्धन को उठाये उतरते देखता है तो फिर से बिस्तर पर धड़ाम से गिर पड़ता है काशी बाई करीब जाकर बाजी राव को उठाती है लेकिन वह मूर्छित हुआ पड़ा होता है। वैद तुरंत आकर बाजी राव को उपचार करना आरंभ कर देता हैं। बाजी राव बेहोशी की हालत में बड़बड़ा रहा होता है, “मस्तानी...मस्तानी...मस्तानी।“
मस्तानी का नाम सुनते ही काशी बाई के तन बदन में आग लग जाती है। वह ब्राह्मणों को बुलाती है, “पंडित जी, मुझे लगता है, मेरी सौतन मस्तानी ने मेरे पति पर काला जादू किया हुआ है। बुरे समय को टालने के लिए मैं हवन करवाना चाहती हूँ।“
पंडित अग्नि जलाकर महामृत्युंजै का जाप प्रारंभ कर देते हैं। काशी बाई दो दिन बाजी राव के सिरहाने अपने पुत्र को लेकर दिन रात बैठी रहती है। कभी कभार बीच बीच में बाजी राव को होश आता है और कभी वह पुनः मूर्छित हो जाता है।
अचानक बाजी राव की तबीयत इतनी अधिक बिगड़ जाती है कि वह कराहते हुए ऐडि़याँ रगड़ने लग पड़ता है। वैद, बाजी राव को काढ़ा पिलाने का यत्न करता है। परंतु बाजी राव पिचकारी मार कर बाहर निकाल देता है। अंत में उसकी आँखें खुली रह जाती है और पलकें भी झपकना बंद हो जाती हैं। वैद नब्ज़ टटोलकर देखता है। बाजी राव के दिल की धड़कन रुक चुकी होती है। वैद आँखों पर हाथ रखकर बाजी राव की पलकें बंद कर देता है और उसकी मृत्यु की घोषणा कर देता है।
काशी बाई, बाजी राव को अडोल और गहरी निद्रा में सोया देखती है। चिर निद्रा ! वह नींद जिसमें से पेशवा कभी नहीं जागेगा। काशी बाई अपनी चूडि़याँ तोड़कर विलाप प्रारंभ कर देती है।
संभाजी द्वारा आक्रमण करने के कारण मानाजी ने बाजी राव से समर्थन मांगा था। बाजी राव ने अपना स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण अपने बेटे नाना साहिब को मानाजी की सहायता के लिए भेज दिया था। नाना साहिब और मानाजी की फौजों ने संभाजी को रणभूमि मंें से भगा दिया था। उसके पश्चात नाना साहिब और चिमाजी अप्पा रेवपाड़ा पर अपना आधिपत्य स्थापित करने की योजनाएँ बना ही रहे होते हैं कि उन्हंे सरदा के किनारे 28 अपै्रल 1740 ई. को बाजी राव की मृत्यु की सूचना मिलती है। सूचना मिलते ही सारा परिवार खारगौन पहुँच जाता है और शाही सम्मान के साथ बाजी राव की लाश को रावरखेड़ी ले जाया जाता है।
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Ankit
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Re: मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास

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अशुभ समाचार


गोपिका बाई आकर मस्तानी को बाजी राव की मौत के बारे में भनवारा महल में बताती है। इस अशुभ समाचार को सुनते ही मस्तान की धाहें निकल जाती है, वह बुक्का फाड़कर रोते हुए बाहर की ओर जाने लगती है और दरवाज़े में से कुछ सोचकर वापस लौट आती है।
“गोपिका, मैंने तुझे नृत्य और संगीत सिखाया है। तू मुझे गुरू मानती है न ?“
“हाँ, मस्तानी ताई साहिबा। इसमें कोई शक है आपको ?“
“नहीं शक तो नहीं है। तुझे मेरे पर एक अहसान करना होगा। चाहे इसको तुम मेरी गुरू दक्षिणा समझ...।“
“आपके लिए तो जान भी हाजि़र है। आदेश करो।“
“मुझे अपने वस्त्र उतार कर दे और मेरे कपड़े तुम पहनकर महल की छत पर टहलती रहना ताकि देखने वाले को मेरा भ्रम होता रहे। मैं अपने स्वामी के अन्तिम दर्शन करना चाहती हूँ। जीते जी तो इन्होंने मिलने नहीं दिया। अब मुझे मरे का मुँह भी नहीं देखने देंगे। मैं हाथ जोड़कर तुझसे प्रार्थना करती हूँ। देख, मैं तेरे पैर पड़ती हूँ मुझे इन्कार न करना।“ मस्तानी गोपिका के पैर पकड़ लेती है।
गेपिका एकदम पैर को पीछे सरका कर मस्तानी की बाहें पकड़ लेती है, “नहीं ताई साहिबा। यह आप क्या कहते हैं ? लो, शीघ्रता से उतारो अपने कपड़े, आपको विलम्ब न हो जाए।“
दोनों आपस में वस्त्र बदल लेती हैं। मस्तानी, गोपिका के वस्त्र पहने पूजा वाली थाली लेकर भनवारा महल में से बाहर निकल जाती है। तबेले में से घोड़ा चोरी करके मस्तानी खारगौन की ओर सीधी दौड़ लगा देती है।
मस्तानी के खरगौन पहुँचने से पहले ही बाजी राव की मृतक देह को नरबदा नदी के किनारे अग्नि दिखाई जा चुकी होती है। मस्तानी घोड़े पर से उतरते ही बाजी राव की चिता में कूदने लगती है। चिमाजी अप्पा और नाना साहिब मस्तानी का आगे बढ़कर रोक लेते हैं। अंतिम संस्कार की रस्में समाप्त होने के बाद मस्तानी को पाबल के महल में ले जाकर छोड़ दिया जाता है।

18 जून 1740 ई. को बुंदेलखंड, छत्तरपुर के किले में राजा हृदय शाह और महाराजा जगतराज को अपनी सौतेली बहन मस्तानी कुंवर द्वारा हरकारे कबूतर के हाथों भेजा गया रुक्का मिलता है। जगतराज तुरंत खोलकर पढ़ने लग जाता है।
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“प्रिय भाईसा, बुंदेलखंड नरेश, महाराजा जगतराज जी

सदर प्रणाम।

देवी विद्यावासिनी की कृपा से मैं कुशल मंगल हूँ। स्वामी बाजी राव जी के परलोक सिधारने का शोकमयी समाचार तो आपको प्राप्त हो ही गया होगा। उनकी मौत के बाद मैं बहुत अकेली हो गई हूँ। मेरा भविष्य क्या होगा, यह मैं स्वयं नहीं जानती। मुझे अपना आने वाला जीवन अंधकारमय नज़र आता है। मैं तो सन्यास लेकर कहीं जंगलों में चली जाती और शेष जीवन प्रभु भक्ति में लीन रहती। पर क्या करूँ ? पुत्रमोह मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं देता। मैं अपने पुत्र शमसेर बहादुर की परवरिश पर अपना अगला जीवन खर्च करने के लिए तत्पर हूँ। इस पेशवा परिवार में मेरे साथ जो ज्यादतियाँ हुई हैं, जो पक्षपात हुआ है और मेरे हकों पर जो डाके डालकर मुझे तंग-परेशान किया गया है और मानसिक पीड़ायें दी गई हैं, उन्हें मैं ही जानती हूँ। दो बार मुझे विष देकर मारने के यत्न भी हो चुके हैं। मैं नहीं चाहती कि मेरी तरह मेरे पुत्र को भी उनका सामना करना पड़े और वह मानसिक तनाव में से मेरी तरह गुज़रे। अब पुत्र के अधिकारों के लिए संघर्ष करना मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह गया है। जब तक मेरे शरीर में रक्त की अंतिम बूँद रहेगी, मैं मराठों के साथ इस मामले में भिड़ती और टकराती रहूँगी।

मैं जवान थी। खूबसूरत थी। किसी राजा, निजाम या नवाब की रखैल या रानी बन सकती थी। लेकिन मेरा सौभाग्य था कि पेशवा बाजी राव जैसे योद्धा की मुहब्बत मुझे नसीब हुई। मैंने भी उनकी सेवा उन्हें पति परमेश्वर मानकर तन, मन और धन से की है। दुख-सुख, गरीबी-अमीरी, बीमारी-तंदरुस्ती में हर समय उनका साथ दिया है। उन्होंने भी मुझ अँधे होकर प्रेम किया है। मुझे कभी शिकायत का अवसर नहीं दिया और मेरी खातिर परिवार और कौम के साथ सदा हठ करते रहे, लड़ते और भिड़ते रहे। अब वह इस दुनिया में नहीं रहे हैं। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।

खैर, अब तक तो मैंने मराठों का ध्यान बुंदेलखंड की ओर नहीं होने दिया। स्वामी मेरे साथ थे। मैं प्यार-मनुहार के साथ उनसे हर बात मनवा लेती थी। पर भविष्य में आपके लिए कुछ अधिक कर पाने में असमर्थ होऊँगी। काकाजू की वसीयत के अनुसार पन्ना की हीरों वाली खानों, नरबदा की जागीर, झांसी, सागर और कलपी आदि जो मेरे स्वामी पेशवा बाजी राव को मिली हैं, अब उन पर श्रीमंत पेशवा के बड़े साहिबजादे नाना साहिब का अधिकार होगा। नाना साहिब ने बाजी राव का उत्तराधिकारी बनकर पद संभाल लिया है। नाना साहिब, चिमाजी अप्पा की सरपरस्ती के अधीन पला-बढ़ा है और उसके इशारों पर ही नाचता है। चिमाजी अप्पा मुझे पसंद नहीं करता था और मेरे पर शुरू से ही मैली आँख रखता था। दीर (देवर) चिमाजी अप्पा के हृदय के अंदर क्रोध, घृणा और बदले की भावना ज़हरीले साँप की भाँति कुंडली मारे बैठी है। हो सकता है, मुझे नीचा दिखाने के लिए वह नये पेशवा को उकसा कर बुंदेलखंड पर कब्ज़ा करने की कोशिश करे। इससे पहले कि स्थिति आपके नियंत्रण में न रहे, आप निज़ामों के साथ मिल जाओ और मराठों को चैथ तथा सरदेशमुखी देना बंद कर दो। फिर जो होगा, देखा जाएगा।

वैसे भी मराठों की शक्ति स्वामी बाजी राव के कारण ही थी। उन्होंने अपने समूचे जीवनकाल में इकतालीस छोटी-बड़ी जंगें लड़ी थीं और वह एकबार भी नहीं हारे थे। उनके जैसा मजबूत स्तंभ गिरने के बाद मराठा साम्राज्य की छतें खोखली हो गई हैं। जो कभी भी गिर सकती हैं। मुझे मराठों के राज का सूर्य शीघ्र अस्त होता दिखाई दे रहा है। गुप्तचरों के कबूतरों के माध्यम से भेजे इस थोड़े से संदेश को ही बहुत समझना और तुरंत इस पर अमल करना।

जय !

प्रेम सहित

मस्तानी कुंवर
मस्तानी महल, पाबल, पूणा।

पत्र पढ़ते ही महाराजा जगतराज और हृदय शाह निज़ामों के साथ मिल जाते हैं और मराठों को भविष्य में आर्थिक सहायता देने से इन्कार कर देते हैं।
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Re: मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास

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“मस्तानी !” नाना साहिब की एकदम से सारी पी हुई उतर गई। वह गौर से बल खाकर मटक मटक कर चली जा रही मस्तानी की मरोड़ा खाती कमर को देखने लग पड़ा, “हे राम ! कमबख्त यह औरत तो पहले तोड़ की दारू जैसी लगती है। शरबत को हाथ लगाओ तो शराब बन जाता है। कंजरी जब पान खाती है तो बिलांद भर की गर्दन में से नीचे जाता हुआ देख लो बेशक। औरत क्या है, निरा फूलों का गुलदस्ता ही है... हवा में महक बिखेरती जाती है। यहाँ तक खूबसूरत बदन की सुगंध आती है।... हूँ ! देवा रे देवा !! कब खाएँगे ये मेवा?”
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भीमा नदी के तट पर ऊँचे टीले पर बैठ दारू पी रहे नाना साहिब को भीमा घाट से स्नान करके निकल रहा एक बुत दिखाई देता है। नाना साहिब अपने सिर को झटकता है और आँखें खोलकर ध्यान से उस बुत को देखता है। ज्यूँ ज्यूँ वह चलता हुआ बुत समीप पहुँचता जाता है, त्यूँ त्यूँ उसको पहचानना नाना साहिब के लिए आसान होता जाता है। नदी से निकला सफ़ेदपोश बुत पहले एक दिलकश स्त्री और फिर मस्तानी के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

गीले बदन से चिपकर भीगे सूती वस्त्र मस्तानी के जिस्म को पारदर्शी बना रहे होते हैं। मस्तानी ने सफ़ेद मलमल के छोटे से कपड़े की कंचुकी से सुडौल उरोजों को पीठ पीछे गांठ लगाकर बांध रखा है। कंधे पर सफ़ेद उतारसंग, कमर में चाँदी की तगड़ी और नाभि के नीचे तक के झांकते तन पर बांधी महीन वासिका(लुंगी), मुश्किल से पिंडलियों तक पहुँचती हुई मस्तानी को आलौकिक बनाकर प्रस्तुत कर रही होती है। नाना साहिब, मस्तानी के सुंदर और सलोने अंगों को टकटकी लगाकर देखने लग पड़ता है जो कि वस्त्र धारण होने के बावजूद प्रत्यक्ष दिखाई दे रहे थे। झक गोरे नितम्ब देखकर नाना साहिब का चित करने लग पड़ता है कि वह मस्तानी को धरती पर निर्वस्त्र करके लिटा ले और उसकी सारी पीठ को चूमने लग पड़े।... अथवा मस्तानी के पीछे जाकर उसको बांहों में भर ले और मस्तानी के कानों की लवों को चूमता हुआ मस्तानी की काम उकसाऊ और दिलकश नाभि वाले नरम कोमल पेट को हाथ फेरकर सहलाये।... आहिस्ता-आहिस्ता पेट को सहलाते हुए उसके हाथ ऊपर की ओर बढ़ते बढ़ते उरोजों तक चले जाएँ... वह मस्तानी के सुडौल और नुकीले स्तनों को बार बार हाथों में लेकर कसते हुए मुट्ठियों में भर ले।... मस्तानी के उतेजित स्तनों को कसता हुआ वह अपने होंठों को सरकते हुए गिरगिट की तरह पीठ...बाहों...नितम्बों...गर्दन से सरकाता हुआ मस्तानी के कपोलों तक ले जाए और उतेजित हुई मस्तानी सुरूर में आँखें बंद करके कामुक हुंकारे भरने लग पड़े, “ऊ...आह...ऊ...हाय अम्मा !”

मस्तानी अपने वेग पर नियंत्रण न रख सके और वह गर्दन के साथ थोड़ा धड़ को घुमाकर उसकी ओर घूमे और आत्मसमर्पण करती हुई अपने होंठ नाना साहिब के होंठों के हवाले कर दे।... मस्तानी के अधरों को चूसता और काटता हुआ जीह्वाओं को वह परस्पर मिलवायें और मस्तानी में वहीं खड़े खड़े ही एक हो जाए।

ऐसे कामुक विचारों को कल्पित करते हुए नाना साहिब को अपने अंगों में एक उथल-पुथल होती अनुभव होने लगी। उसने दोनों टांगों को दबा कर अपने लिंग को दबोच लिया। ऐसा करने से नाना साहिब की कामचेष्टा दबने की अपेक्षा और अधिक भड़क उठती है।

जब से नाना साहिब की पत्नी गोपिका ने गर्भ धारण किया है, तब से नाना साहिब की काम इच्छा में वृद्धि हो गई है। सच पूछो तो जबसे गोपिका के गर्भवती होने की ख़बर मिली है, नाना साहिब उसके साथ एक रात भी नहीं सोया। नाट्यशाला की कलाकार स्त्रियाँ, गणिकायें और रखैलें नाना साहिब का चित बहलाने के लिए हर संभव यत्न करती हैं। परंतु नाना साहिब का उनसे दिल नहीं भरता। यह भी सच्चाई है कि नाना साहिब, मस्तानी के प्रति पहले दिन से ही आकर्षित था।

जब उसका पिता बाजी राव मस्तानी को लेकर आया था तो प्रथम दृष्टि में ही नाना साहिब मस्तानी पर मोहित हो गया था। उस प्रथम मिलन के समय नाना साहिब की नज़रें मस्तानी पर ही गड़ी रह गई थीं और मुँह खुला का खुला रह गया था। इतनी सुंदर मूरत जैसी सूरत कम से कम उसने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी थी। बहाने-बेबहाने मस्तानी को निहारता हुआ वह मन ही मन सोचता रहा था, “यह बाबा ने क्या कर दिया। इसको अपनी पत्नी बना लिया ? यह तो मुझे भेंट करनी चाहिए थी। मेरे साथ आयु, विचार और सुंदरता सभी गुण मेल खाते हैं। केवल तीन साल ही तो बड़ी है। पर बाबा यूँ ही फालतू में इस कंचनी पर आशिक हुए फिरते हैं। काश ! एक रात के लिए ही मस्तानी मेरी पनाहों... मेरी बांहों में आ जाए तो मेरे उम्रभर के दुख टूट जाएँगे और इसकी इच्छाएँ पूरी हो जाएँगी। हाय मस्तानी !”

पिता बाजी राव की उपस्त्री (रखैल) होने के कारण नाना साहिब, मस्तानी को अंग लगाने की कामना पूरी करने में असमर्थ तो हो गया था। मस्तानी उसके लिए कठिनाई से प्राप्त होने वाली वस्तु बनकर रह गई थी। लेकिन वह मस्तानी के प्रति अपने मन में पैदा हुए आकर्षण को मार नहीं सका था। वह जब भी एकांत में होता, मस्तानी को लेकर सोचता रहता। मस्तानी का दीदार करते ही नाना साहिब के शरीर में काम तरंगे उठने लग पड़तीं और उसका काम अंग जोश में आकर अंगड़ाइयाँ लेने लग जाता था। मस्तानी को प्राप्त करने की हवस नाना साहिब के अंदर जलते अलाव के गीले उपले की आग की भाँति सुलगती रहती। नाना साहिब नित्य नए बहाने घड़कर मस्तानी के दर्शन करने का यत्न करता रहता था। पर कर कुछ न सका।

सुनहरी हिरण सभी को अच्छा लगता है। हर कोई उसको पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ता है। लेकिन हिरण किसी के हाथ नहीं आता और अपने पीछे दौड़ा दौड़ाकर व्यक्ति को थका देता है। इस हिरण को पकड़ना ‘चकरी चाह’ कहलाता है। मस्तानी भी नाना के लिए ‘चकरी चाह’ ही बन गई थी।

घाट से चलता हुआ मस्तानी का बुत आहिस्ता आहिस्ता छोटा होते होते अंत में महल के दरवाजे़ में लुप्त हो जाता है।
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नाना साहिब हाथ में पकड़े खाली प्याले को शराब से पुनः भरता है और मुँह से लगाकर एक सांस में ही खाली कर देता है। नाना साहिब टीले के इर्द गिर्द पड़ी सुनसान धरती को देखता है। उसके मन में कोई द्वंदयुद्ध चल रहा होता है। वह दुबारा प्याले में शराब उडेलने लगता है और फिर कुछ सोचकर रुक जाता है। नाना साहिब के दिमाग में कोई विचार नहीं आता। वह सुराही की नलिका से मुँह लगाकर गटागट दारू पी जाता है। मुँह में ताज़े घुसे कसैलेपन से निजात पाने के लिए खंखारता है और उठकर खड़ा हो जाता है और स्वयं से संवाद रचाने लगता है, “सुंदर स्त्री अभिमानी होती है और अभिमानी नार का मन चंचल होता है।... चलूँ, चलकर भाग्य आजमाता हूँ... शायद...।”
पहला कदम उठाते ही नाना साहिब नशे के कारण लड़खड़ाता हुआ अनियंत्रित होकर गिरने को होता है और बड़ी कठिनाई से समीप पड़ी बड़ी चट्टान पर हाथ रखकर संभलता है। डगमगाते कदमों के साथ गिरता ढहता वह मस्तानी के महल तक जैसे तैसे पहुँच जाता है।

पिछली रात एक रकासा के साथ बिताई होने के कारण अभी तक नाना साहिब की कलाई पर मोंगरे के फूलों का गजरा बंधा हुआ है और उसके वस्त्रों में से कामोउतेजक इत्र की महक आ रही होती है।

मस्तानी महल के मुख्य द्वार को धक्का मारकर खोलते हुए जैसे ही नाना साहिब अंदर प्रवेश करता है तो अनियंत्रित होकर सीधा धरती पर जा गिरता है।

एक दासी आकर नाना साहिब को उठाती है, “ज़रा संभालकर पेशवा सरकार, चोट तो नहीं लगी ?”

“चोट की बात छोड़, मैं तो घायल हुआ पड़ा हूँ।...बु...र्र...र...ंअंा ! कहाँ है मस्तानी ?”

दासी चिल्लाती हुई नाना साहिब को छोड़कर दूर हो जाती है, “बाई साहिबा तो सो गई हैं।”

“हट जा पीछे... ” एक गंदी गाली देते हुए कहता है, “मुझे मूर्ख बनाती है ? अभी अभी तो वह घाट पर से छातियाँ छनकाती आई है। इतना शीघ्र कैसे सो सकती है ?“ नाना साहिब नशे के कारण फिर गिर पड़ता है।

“नाना साहिब ? यह क्या तमाशा लगा रखा है ?” चैबारे में से गरज़ती हुई मस्तानी की आवाज़ आती है।

“ओ ताई साहिबा !” नाना साहिब हथेलियाँ ज़मीन पर टिकाकर बाहों के सहारे उठकर बैठते हुए छज्जे पर जंगले में खड़ी मस्तानी को देखकर शैतानी मुस्कराहट चेहरे पर ले आता है।

मस्तानी आँख के इशारे से दासी से कहती है कि वह नाना साहिब को अतिथिगृह में ले जाए। नाना साहिब दासी के साथ अतिथिगृह में चला जाता है और वहाँ एकत्र सभी दासियों को वहाँ से चले जाने का आदेश देता है।

कुछ देर बाद नाना साहिब को अपनी ओर बढ़ती आ रही पायल की छनछन की आवाज़ सुनाई देती है। मस्तानी कमरे में प्रवेश करती है, “इस समय ऐसे आकर हंगामा करने का अर्थ ?”

नाना साहिब मस्तानी को सिर से पैरों तक देखता है। गर्भवती होने के कारण मस्तानी के बढ़े हुए पेट को देखते ही नाना साहिब सोचने लग जाता है, “नरबदा की सारी जागीर तो यह पहले ही अपने पुत्र कृष्ण सिनहा को बाबा से दिला चुकी है। अब यदि दूसरा बच्चा आ गया तो उसके लिए भी हिस्सा मांगेगी।... यूँ खैरात में हिस्से ही बांटते चले गए तो मुझे पीछे क्या मिलेगा ? मैं राख के ढेर पर पेशवाई करूँगा ?”

नाना साहिब को खामोश देखकर मस्तानी पुनः प्रश्न करती है, “आपने उत्तर नहीं दिया ? मैंने कुछ पूछा था?”

नाना साहिब डिब्बी में से थोड़ी-सी अफ़ीम की चुटकी भरकर जीभ से लगाता है और समीप पड़े शरबत को पीता हुआ बोलता है, “आपको घाट पर से आते देखा था। मेरे से रहा नहीं गया। बस, थोड़ा चाँद जैसे मुखड़े का दीदार करने आ गया। धर्म से, कलेजे को ठंड सी पड़ जाती है, आपको देखकर।”

“आपको पता है, नशे की हालत में आप क्या अनाप-शनाप बके जा रहे हैं।...उफ्फ ! मदिरा की कितनी दुर्गन्ध आ रही है आपमें से ।” मस्तानी उंगलियों से अपना नाक दबा लेती है।

नाना साहिब उठकर मस्तानी के करीब चला जाता है, “नशा कहाँ किया है ? मदहोश होने तो यहाँ आया हूँ। जो नशा आपकी बिल्लौरी आँखों में है न, गऊ की सौगंध, शराब तो उसके आगे कुछ भी नहीं है।”

मस्तानी अपने क्रोध का दबाने के लिए लम्बा सांस खींचती है, “आपको इस वक्त और ऐसी अवस्था में यहाँ नहीं आना चाहिए था। कलाई में गज़रा, आँखों में सुरमा, वस्त्रों पर इत्र और शराब में धुत्त हुआ शरीर...जैसे आप कोठे पर जाने के लिए तैयार होकर आए हो। भट््ट खानदान के चश्म चिरागों को ये चलन शोभा नहीं देते। माताश्री और ताई साहिबा को ख़बर है कि आप इस समय यहाँ आए हो ?”

“क्यों, मैं कोई नादान बच्चा हूँ जो हर काम उनको बता कर करूँ ? मैं तो मस्तानी जान ऐश करने आया हूँ तुम्हारे साथ। आ मिलकर दारू पीते हैं और तेरे नाजुक नरम शरीर को अपनी हड्डियों का सेक दूँ।...चल नहीं, मुजरा दिखा मुझे अपना सुंदरी !”

“बदतमीज़ ! अपनी जुबान को लगाम दे। सौतेली ही सही, पर मैं तेरी माँ लगती हूँ।”

“हूँ ! कहती है, माँ लगती हूँ। पर माँ तो नहीं है न। अगर लगना ही है तो ज़रा मेरे साथ लगकर देख। तेरी मचलती और सुलगती जवानी की आग को ठंडा न करके रख दूँ तो मुझे नाना साहिब न कहना। रंडी ! तू सिर्फ़ बाबा की रखैल थी, रखैल। एक उप-स्त्री। वह तो अब इस दुनिया में नहीं रहे। अब अपने बडील(पिता) की लौंडी पर मेरा हक़ वैसे ही है जैसे उनकी पेशवाई और सम्पति पर है। पुरुष की गरमी आम और जनानी की गरमी काम से ही मरती है। तुझे मर्द की ज़रूरत है। मुझे अपनी शारीरिक भूख पूरी करने के लिए तेरे जैसी हसीन कंचनी की आवश्यकता है। तू एक कंजरी है, कंजरी बनकर रह, री गश्ती !”

मस्तानी से यह सुनकर अपने आप पर नियंत्रण नहीं रह पाता और वह नाना साहिब के मुँह पर थप्पड़ दे मारती है, “हरगिज़ नहीं। मैं रखैल नहीं थी। मेरे साथ राव स्वामी ने बाकायदा विवाह करवाया था। वह भी एकबार नहीं, तीन बार। पहला मेरे माता-पिता के पास बुंदेलखंड में और फिर पाबल आकर मंदिर में मेरी मांग में सिंदूर भरा था। तीसरी बार तुम्हारी समूची बिरादरी के सामने। कुते !...तू क्या समझता है, यदि राव स्वामी नहीं रहे तो अब मैं तेरी सेजें सजाऊँगी ? हरामज़ादे ! तेरी इतनी हिम्मत कैसे पड़ी ?”

नाना साहिब से अपना इस प्रकार का निरादर सहन नहीं होता। वह मस्तानी को जाकर लिपट जाता है, “हिम्मत तो बिल्लो अभी तूने मेरी देखी नहीं।”
मस्तानी नाना साहिब की बाहों की जकड़ में से आज़ाद होने के लिए संघर्ष करती हुई शोर मचा देती है, “बचाओ... कोई है ?... बचाओ।”

नाना साहिब मस्तानी को ज़मीन पर लिटाकर उसके मुँह को अपना हाथ रखकर बंद कर देता है, “शोर मचाने का कोई लाभ नहीं। इस महल में तैनात पहरेदार सब मेरे वफ़ादार हैं। तेरी चीख-चिल्लाहट से कुछ नहीं होने वाला। यहाँ वही होगा जो मैं चाहूँगा।”

युद्ध विद्या में सीखे दांवपेचों का प्रयोग कर मस्तानी नाना साहिब की गिरफ्त से छूटकर भागने लगती है, पर नाना साहिब फुर्ती दिखाकर मस्तानी को कलाई से पकड़ लेता है। भागने के लिए ज़ोर लगा रही मस्तानी पेट के बल फर्श पर गिर पड़ती है। नाना साहिब मस्तानी के ऊपर जाकर लेट जाता है और उसके दोनों हाथ ज़मीन पर लगाकर वस्त्र फाड़ता हुआ मस्तानी को चूमना शुरू कर देता है। मस्तानी कभी दायें, कभी बायें अपना मुँह घुमाकर रोष प्रदर्शन करती हुई नाना साहिब के नीचे से निकलकर उठने का यत्न करती है, पर गर्भवती होने के कारण उठ नहीं पाती। मस्तानी जितना अपने हाथों को उठाने का प्रयत्न करती है, नाना साहिब उससे अधिक शक्ति से उसे दबोच लेता है।

नाना साहिब मस्तानी के घाघरे का नाड़ा तोड़कर घाघरे को जगह जगह से फाड़ डालता है। मस्तानी की बायीं बांह ढीली छोड़कर नाना साहिब अपने दायें हाथ से अपनी लांगड़ वाली धोती उतार कर जब हवा में उछाल कर दूर फेंकता है तो मस्तानी समझ जाती है कि अब उसकी इज्ज़त लूटने से कोई नहीं बचा सकता। मस्तानी को अपने पिता के द्वारा दी हुई अंगूठी और कहे हुए वचन स्मरण हो आते हैं, “मेरी पुत्री, तुम अब एक लड़की से एक सुंदर स्त्री बन गई हो। हो सकता है, तुम्हारी सुंदरता ही कभी तुम्हारी शत्रु बन जाए। बुंदेलों ने गर्व से सिर उठाकर ही जीना सीखा है। यह गर्व और शान सदैव बनी रहनी चाहिए। जान चली जाए, पर आन न जाए। ईश्वर न करे कि कभी ऐसा समय आ जाए कि आबरू को खतरा पैदा हो जाए तो मेरी पुत्री इस अंगूठी को चाटकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेना या शत्रु के होंठों को इसमें पड़ा हुआ बुरादा चटवा देना। व्यक्ति के प्राण निकलते अधिक देर नहीं लगेगी।”

नाना साहिब मस्तानी के होंठों को अपने होंठो में जकड़कर जैसे ही चूमने लगता है तो मस्तानी की ऊँची आवाज़ में एक चीख निकलती है। नाना साहिब अपनी टांग अड़ाकर मस्तानी की टांगों के मध्य फासला पैदा करता हुआ मस्तानी की कमर की ओर देखता है तो उसको मस्तानी के गुप्त अंग में से बहते लहू से लथपथ पेट दिखाई देता है। वह एकदम घबरा उठता है। मस्तानी के हाथ छोड़कर वह बराबर बैठ जाता है। मस्तानी फुर्ती से तर्जनी में पहनी हुई अंगूठी मुँह से लगाती है और उसका ढक्कन दांतों से खोलकर सारा बुरादा अपनी जीभ से चाट लेती है। आँख झपकते ही मस्तानी के मुँह से खून रिसना प्रारंभ हो जाता है।

“नाना साहिब, तू हार गया और मैं जीत गई। मैंने तेरे नापाक इरादों को सफल नहीं होने दिया। देख, मैं भी अपने स्वामी के पास ही जा रही हूँ। तुम हमें कभी अलग नहीं कर सकते।” मस्तानी, नाना साहिब की ओर देखकर मुस्कराती है।
नाना साहिब घबराहट में कभी मस्तानी की टांगों के बीच बहते रक्त को देखता है और कभी उसके मुँह से निकलती लहू की धार को। और फिर, मस्तानी का शरीर ठंडा पड़ जाता है। दम तोड़ चुकी मस्तानी को देखकर नाना साहिब के हाथ-पांव फूल जाते हैं। नाना साहिब, मस्तानी की नब्ज़ और साह रग टटोलकर देखता है। नब्ज़ और दिल की धड़कन रुक चुकी होती है। मस्तानी की खूबसूरत दिखने वाली बिल्लौरी आँखें खुली रह जाती है जो बेहद डरावनी लगती हैं। नाना साहिब भयभीत होकर अपनी हथेली से मस्तानी की पलकों को बंद कर देता है।

नाना साहिब उठकर बाहर जाने लगता है तो उसको कमरे के पर्दे के पीछ खड़ी मस्तानी की दासी के पैर दिखाई दे जाते हैं। नाना साहिब अपने कमरकसे में से कटार निकालता है और पर्दे के पीछे खड़ी दासी पर लगातार कई वार करता है। दासी की लाश फर्श पर गिर पड़ती है।

नाना साहिब बाहर जाकर पहरेदारों को आदेश देता है, “फौरन अप्पा स्वामी को बुलाकर लाओ।”

ज्यों ही चिमाजी अप्पा का मस्तानी महल में प्रवेश होता है तो नाना साहिब उसके गले लगकर रोने लग जाता है, “अप्पा स्वामी, सब अनर्थ हो गया। ”

चिमाजी अप्पा डर से कांपते हुए नाना साहिब को हौसला देता है, “सब्र कर। अपने आप को काबू में रख, नाना। अब तू बच्चा नहीं, पेशवा है पेशवा !”

चिमाजी अप्पा और नाना साहिब तेज़ कदमों से मस्तानी की लाश के समीप जाते हैं। चिमाजी अप्पा मस्तानी को देखते ही समझ जाता है कि मस्तानी की मौत ज़हर खाने से हुई है, “हूँ ! तो इसका मतलब लोग सही कहते थे कि मस्तानी ज़हरीले हीरे वाली अंगूठी पहनती थी।”

“मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा, अप्पा। अब क्या होगा ? क्या कहेंगे लोगों को ? मुझे कोई माफ़ नहीं करेगा। कैसे छुपाएँगें इस गुनाह को ? और तो और, माताश्री और गोपिका को क्या बताएँगे ?”

“नाना, हर बुरी घटना आदमी को कुछ न कुछ सिखाती है। एक सबक पल्ले बांध ले कि जीवन में अहम काम सोच-विचार कर करें ताकि करने के बाद सोचना न पड़े कि क्या करना है। जिगरा रख, मैं सब संभाल लेता हूँ।”

चिमाजी अप्पा सारी दासियों को बुलाकर मोहरों से भरी थैलियाँ देता है और कोकण के किले कजरात की ओर उनको रवाना कर देता है। दासियाँ चुपचाप चली जाती हैं। एक दासी स्वर्णमुद्रा लेने से इन्कार कर देती है। चिमाजी अपनी म्यान में से तलवार बाहर निकालता है और उस दासी को मौत के घाट उतार देता है। सेवक मस्तानी की लाश को उठाकर बग्घी में डाल लेते हैं। चिमाजी अप्पा सेवकों की ओर मोहरों से भरी थैलियाँ फेंकता है, “मस्तानी के पहने सारे जेवर तुम्हारे। जल्दी करो।... ले जाओ इसको जंगल में और...। तुम्हें पता ही है कि क्या करना है ! मस्तानी की गंध तक नहीं आनी चाहिए किसी को। नामोनिशान मिटा दो।”

दास बग्घी में मस्तानी की मृतक देह लेकर बाहर निकल जाते हैं। चिमाजी अप्पा मस्तानी की लाश के साथ ही मस्तानी महल से यह ख़बर भी बाहर निकलवा देता है कि बाजी राव का बिछोह न सहते हुए मस्तानी ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली थी। इस प्रकार, मस्तानी की मौत के रहस्य को सदैव के लिए मस्तानी महल में ही दफ़न कर दिया जाता है।
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