हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

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मैं फिरकनी की तरह आवाज की दिशा में घूमी । साथ ही मैंने सामने जो कुछ भी देखा, वो मेरे लिये जाल पड़ने के लिये काफी था । सामने बरनाड खड़ा था ।

सेना का वहीं कमाण्डर, जिससे मेरी मुलाकात आर्मी एरिया में हुई थी और उसने मेरे उपर यातनाओं का पहाड़ तोड़ा था । वो कहकहा उसी के हलक से निकला था ।

सब कुछ मेरी आशा के विपरीत हुआ था ।

इस वक्त यहां विल्सन को होना चाहिये था । किन्तु वहाँ तो किसी भूत की तरह बरनाड मौजूद था, जो मेरे लिये कम आश्चर्यजनक बात नहीं थी ।

बहरहाल, मात हो गई थी ।

"वैल्कम बेबी !" कहकहा समाप्त करके बरनाड बोला--"तुम अपने अपको बहुत ज्यादा चालाक समझती हो । आखिर तुम हमारे जाल में फंस ही गई । पहली बार तो तुम बचकर भाग निकली थी , लेकिन इस बार बचकर नहीं भाग पाओगी ।"

मैं खामोश रही । . .

दरअसल, खतरे का आभास तो मुझे उसी वक्त हो गया था, जब मैंने वहां अंधेरा देखा था और मुझें किसी इन्सान के दर्शन नहीं हुए थे । परन्तु वो खतरा बरनाड के रूप में मेरे सामने आयेगा, इसकी कल्पना मैंने न की थी ।"

"तुम्हारा खेल खत्म चुका ।" बरनाड मेरे करीब पहुचकर ठिठकता हुआ भयानक अंदाज में गुर्राया--" रिवाॅल्बर मेरे हबाले कर दो !"

मैंने शराफत के साथ रिवाल्वर उसकी तरफ बढा दिया !

"इस वक्त तुम्हारी जिन्दगी मेरी मुट्ठी मे है ।" वह मेरे से रिवाल्वर झपटता हुआ पूर्ववत् लहजे में बोला--"तुम आर्मी एरिया से तो हमारे हाथों से बचकर भाग निकली थी, लेकिन यहां से नही भाग सकोगी । अब तुम्हारी कब्र इसी बंगले में बनेगी ।"

इस वक्त मैं उसी मेकअप में थी, जिसमें कैप्टन हिलकाक से मिली थी । मैं जानबूझ कर चौंकने का जानदार अभिनय करती हुई बोली-" कौन. . .कौन बैरक से भाग निकली थी?"

"तुम और कौन?"

"मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि तुम ये क्या कह रहे हो? मैंने तो आज तक आर्मी एरिया में कदम तक नहीं रखा और तुम कह रहे हो कि मैं बैरक से भाग निकली थी"

"तो तुम वो लडकी नहीं हो?"

" विल्कुल नहीं । तुम्हें जरूर कोई गलतफ़हमी हो गई है ।"

"फिर कौन हो तुम?"

"मेरा नाम डिलेला है और मैं हिलकाक की प्रेमिका हूं।"

पलक झपकते ही बरनाड का हाथ घूम गया ।

"तड़ाक्. . . !"

उसकी चौडी हथेली झन्नाटेदार थप्पड़ की शक्ल में मेरे गाल से टकराई । थप्पड़ इतना ताकतवर था कि मेरे होठों से घुटी-घुटीं चीख निकल गई । समूचा चेहरा झनझना उठा और मैं गिरते-गिकते बची ।

"तुम क्या समझती हो कि तुम्हारा ये झूठ मेरे सामने चल जायेगा । जो पता तुमने आर्थर को बताया था, उस पते पर तो क्या उस पूरी इमारत में भी डिलेला नाम की कोई लडकी नहीं रहती ।"

मैं झटका खाकर रह गई ।

मेरा झूठ पकडा गया था ।

वे लोग तो बड़े ही पहुचे हुए निकले थे । मुझें तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि वे वहां तक भी पहुच सकते हैं ।

"इन्सान कितना भी चालाक क्यों न हो? वह ऐसे मामले में कहीं-न-कहीं गलती अवश्य कर जाता है और एक गलती तुम भी कर बैठी ।" इस बार आर्थर बोला… "तुमने अपना नाम और मेकअप तो बदल लिया, लेकिन अपनी आबाज नहीं बदली थी । तुम्हारी आवाज से ही मैंने तुम्हें कैप्टन के आवास पर पहचान लिया था ।"

मुझसे वाकई चूक हो गई थी ।

और आर्थर ने मेरा सारा खेल बिगाढ़कर रख दिया था ।

अब मुझे अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था ।

बहरहाल मेरी पोल खुल चुकी थी ।

"तुम हैरान हो रही होगी कि हमें तुम्हारे यहीं पहुंचने के बारे, कैसे मालूम हो गया ? मैं तुम्हें बताता हूं। इस बंगले में जब भी कोई कदम रखता है, तो वो हमारे इलेक्ट्रनिक इन्फार्मर से बच नहीं पाता । जब तुम बाउण्डी वॉल पर चढी थी, तभी भीतर अलार्म बज उठा था । बरनाड ने बताया----"उसके बाद मैंने तुम्हें मॉनीटर टी०वी० पर देखा था । उसी वक्त मैने तुम्हें पहचान लिया था ।"

मैं खामोश रही ।

उधर, एक पल ठहरकर बरनाड ने सवाल किया--' "ये बताओ कि वो लोग कौन थे, जिन्होंने न सिर्फ सैनिकों को मार डाला, वल्कि

सेना की जीप को भी बम से उडा दिया ।"

"मुझे क्या मालूम कि वो लोग कौन थे ?"

"तुम उसे नहीं जानती?" उसने मुझे कहरभरी निगाहों से घूरा ।

"नहीं ।"

उसने पुन: मेरे चेहरे पर थप्पड रसीद कर दिया ।

मैं बिलबिला उठी ।

उस पर गुस्सा तो आया, लेकिन मैं बड़ी मुश्किल से गुस्से को जब्त करने मे कामयाब हो सकी थी ।

"बको ।" वरनाड हिंसक भेड्रिये की तरह गुरोंया-"तुम्हारी असलियत क्या है और तुम्हें आर्मी के इस गुप्त ठिकाने के बारे में किसने बताया, जिसकी हमारे इन्टेली जेंस के चन्द लोगों के अलावा किसी को भनक तक नहीं है ।"

मन ही मन मैं बुरी तरह चौकी ।

हिलकाक ने तो मुझे ये विल्सन का बंगला बताया था, जबकि वरनाड उस जगह को आर्मी का गुप्त ठिकाना बता रहा था । इसका मतलब हिलकाक वडी ही कुत्ती चीज निकला था । उस हरामजादे ने र्फसाने के लिये चाल चली थी ।

मैँ एक बार फिर फंस चुकी थी और इस बार बहुत बुरी फ़सी . . ।

बहरहाल, मैं जिस मसकद को लेकर यहीं आई थी, मेरा वो मकसद तो कमाण्डर बरनाड से भी पूरा हो सकता था, लेकिन फिलहाल तो मुझे ये देखना था कि कमाण्डर का अगला कदम क्या होता है ?

"तुम खामोश क्यों हो?" बरनाड के होठों से पुन: गुर्राहट खारिज हुईं-"ज़वाब क्यों नहीं देतीं?"

मैं वैसी ही बनी रही ।

"जवाब दे हरामजादी ।" आर्थर मेरी पसलियों पर रायफल का बट जड़ता हुआ गला फाड़कर चीखा ।

मैं पीड़ा बिलबिला उठी ।

" जल्दी से अपना मुह खोल !" वह पुन: चीख उठा----"वरना मैं मार-मार का तेरी हड्डी-पसली एक कर दूंगा ।"

""त. . .तुम लोग बेवजह मेरे पीछे पड़े हुए हो । मैं तुम्हें अपने बारे में बता तो चुकी हूं कि मेरा नाम डिलेला है और मैं हिलकाक की प्रेमिका हूं अगर तुम मेरी बात पर यकीन नहीं कर रहे हो तो मैं क्या कर सकती हूं?"

आर्थर ने कुछ काने के लिये अपना मुंह खोला, लेकिन बरनाड ने उसे खामोश रहने का संकेत क्रिया ।

आर्थर ने अपने होठ भिच लिये ।

बरनाड मुझे अगारे बरसाती आंखों से घूरता हुआ बोला-"माना कि तुम हिलकाक की प्रेमिका हो, लेकिन तुम यहाँ क्या लेने आई हो?"

"यहां का पता मुझे हिलकाक ने दिया था । उसने मुझे बताया था कि यहां पर मुझे मेजर विल्सन मिलेगा । मुझे विल्सन को भी खुश करना होगा । अपने प्रेमी की बात माननी पडी । मैं विल्सन को खुश करने यहां आई हूं लेकिन वो तो मुझे दिखाई नहीं दे रहा है, कहां है विल्सन?"

"अब तुम एक नई कहानी गढ़कर सुना दी हरामजादी ।" उसने गुस्से से दांत पीसे ।

"ये कहानी नहीं, हकीकत है ।"

पलक झपकते ही बरनाड का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुच गया । अगले क्षण उसका हधौड़े जैसा घूसा मेरी कनपटी से टकराया ।

मेरे हलक से चीख उबल पडी ।

आँखों के समक्ष गुंजायमान तारे नाच उठे ।

. "ये इतनी आसानी से मुंह खोलने वाली नहीं है आर्थर । वहां कैम्प के टॉर्चर रूम में भी इसने सच नहीं उगला था । अब हमेँ शायद इसे जो यातनायेँ देनी पडेगी, जिनके चलते मौत भी गा-गा कर सच बोलने पर मजबूर हो जाये ।"

"कोई गलत हरकत मत करना लडकी ।" बरनाड फुफ्कारा-" बरना तुम अपनी मौत की खुद जिम्मेदार होंगी ।"

मैं पूर्ववत् बनी रहीं ।

"अब क्या करना है सर?" आर्थर ने पूछा ।

"इस कुतिया को मौत के कमरे में ले चलो ।" उसने हुक्म दनदनाया ।

" चल ।" आर्थर मेरे नितम्बो पर रायफल का बट जड़ता हुआ बोला ।

अगले क्षण । मेरे जिस्म से कई रायफ़लो की नाले आ चिपकी ।

फिर सैनिक मुझे धकेलते हुए आगे बढ़ गये । वे मुझे जिन रास्तों से ले जा रहे थे । वो रास्ते मैं बराबर अपने दिमाग में बिठाती जा रही थी ।

कई राहदारियों से गुजरकर मुझे एक कमरे में ले जाया गया । मैंने बारीकी के साथ उसका निरीक्षण क्रिया । यह एक लम्बा-चौडा पुराने टाइप का कमरा था । सामने एक और दरवाजा नजर जा रहा था, जो इस वक्त बन्द था । कमरे की एक दीवार के साथ बर्फ की सिल्लिया पड़ी हुई थी । "

"सुनो " बरनाड मेरे चेहरे पर अपनी निगाहें फिक्स करता हुआ बोला- " अगर मैं चाहू तो मेरे एक इशारे पर सैनिकं तुम्हें गोलियों से छलनी कर सकते हैं । मगर मैं बेकार में खून-खराबा नहीं करना चाहता । तुम्हारी जान बच सकती है । बशर्ते तुम सब कुछ सच -सच बता दो । तुम्हें आखिरी मौका देना चाहता हू । उसके बाद तुम्हारे बचाव के सारे रास्ते बन्द हो जायेंगे ।"

मैंने होठ खोलने की कोशिश नहीं की ।

"में तुम्हें सोचने के लिये एक मिनट का वक्त देता हूँ अगर एक मिनट पूरा होने के बाद भी तुमने अपना मुंह नहीं खोला तो दूसरा मिनट मेरा होगा और वो दूसरा मिनट तुम्हारी मौत का पैगाम लेकर आयेगा ।"

कहने के साथ ही उसने अपनी कलाई घडी पर एक निगाह डाली, फिर उसकी निगाहें मेरे चेहरे पर आ चिपकी ।

वडी गहरी खामोशी ने अपने पांव पसार दिये थे ।

मैं जानती थी कि एक मिनट गुजरने के बाद मुझे भयानक यातनाओं के दौर से गुजरना पड़ेगा । अत मैं खुद को यातनाएं सहने के लिये मानसिक रूप से तैयार करने लगी ।

" एक मिनट पूरा हो गया ।" सहसा बरनाड ने ऐलान किया--"अब बोलो । क्या फैसला किया तुमने?"

मैंने कोई जवाब नहीं दिया ।

"देखो, अगर तुम एक बिलबिलाती मौत मरना नहीँ चाहती हो तो अपना मुंह खोल दो ।" वह कहरभरे स्वर में बोला--"वरना मुझे तुम्हारे उपर यातनाओं के पहाड़ तोड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा ।"

मैं मूक बनी सब सुन रहीं थी ।

मेरी खामोशी ने उसके गुस्से पर आग में घी जैसा काम किया था ।

"इस हरामजादी के कपड़े उतारो ।" बरनाड सैनिकों को सम्बोधित करके बोला ।

पलक झपकते ही तीन सैनिकों ने मुझे दबोच लिया । एक ने अपने फौलादी हाथों से मेरी कमर दबोच लि । दूसरे ने मेरी कलाइयों और तीसरा मेरे कपड़े उतारने लगा ।

मैं अपनी समूची ताकत के साथ उनसे जूझ पडी , लेकिन उनकी गिरफ्त से आजाद नहीं हो पा रही थी ।

कुछ पलों बाद मैं एकदम निर्वस्त्र थी ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

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सैनिक आँखे फाड़े मेरे निर्वस्त्र जिस्म को देख रहे थे । उनकी निगाहें मेरे जिस्म पर एक जगह टिक ही नहीं पा रही थीं । उनकी आखों में अजीब-सी चमक थी । उनके चेहरों के भाव साफ इस बात की चुगली खाते प्रतीत हो रहे थे, अगर इस वक्त उनका कमाण्डर-वहां मौजूद न होता तो अब तक उनमें मुझे हासिल करने की होढ़ लग चुकी होती ।

" "क्या देख रहे हो तुम लोग ।" एकाएक वरनाड गुर्राया" "इसके हाथ-पैर बांध दो ।"

सैनिक हढ़बड़ाकर रह गये ।

उनमें से एक ने अपनी जेब से रेशमी डोरी निकाली और मेरे हाथ पीठ पीछे करके मजबूती से जकड दिये, फिर मुझे बेरहमी से फर्श पर धकेलकर मेरे पांव भी बांध दिये ।

"तुम लोग मेरे साथ ठीक नहीं कर रहे हो ।" मैंने कसमसा कहा-"तुम सबको अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ेगा ।"

"खामोश ।" बरनाड हिंसक स्वर में गुर्रा उठा--"मुंह से फालतू आवाज निकाली तो गोली मार दूंगा ।"

"तुम मुझे गोली ही मार दो तो बेहतर होगा । अगर मैं बच गई तो तुम्हारे लिये सिरदर्द वन जाऊंगी ।"

"इस हरामजादीं को उठाकर बर्फ की सिल्लियों पर पटक दो ।" वह मेरी बात अनसुनी करता हुआ बोला--" गर ये सिल्लियों से नीचे आने का प्रयास करे तो इसे इतना मारो कि इसकी आत्मा भी चीखने पर मजबूर हो जाये ।"

आर्थर ने मुझे उठाकर बर्फ की सिल्लियों पर पटक दिया ।

"भड़ाक् . . !"

मेरा जिस्म अबाज करता हुआ बर्फ की सिल्लियों से टकराया था ।

मेरे हलक से मर्मातक चीख उबल पडी थी ।

कुछ क्षणों तक मैं उसी स्थिति में पडी रही, मगर कब तक पड़ी रहती? बर्फ की ठण्डक. असहनीय हो गई थी और मुझे अपना जिस्म ठण्डे बर्फ से सुन्न पड़ता महसूस होने लगा था ।

मैं दांत-पर-दांत जमाये अभी तक बर्दाश्त कर रही थी । मुझे लगा, अगर मैंने अपने बचाव में जल्दी ही कुछ नहीं किया तो मैं वहीं जमकर लाश में तब्दील हो जाऊंगी ।

वे दिलचस्प निगाहों से मुझे देख रहे थे ।

मेरी स्थिति बडी संकटपूर्ण थी ।

" और जब वो जिस्म को जमा देने वाली ठण्डक मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गई तो मेरे हौंसले जवाब देने लगे । मेरे होठों से पीड़ा भरी कराहें फूट निकली और देखते-ही-देखते वे चीखों में तब्दील हो गई । मगर मेरी उन चीखों का कमाण्डर पर जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा । वह तो मानो बहरा हो गया था ।

"ये तो सिर्फ ट्रेलर है ।" मेरी हालत देखकर बरनाड ने जोरदार ठहाका लगाया-----"कुछ देर बाद मैं तुम्हें फिल्म दिखाऊँगा । अभी भी वक्त है । सब कुछ सच-सच बता दो, वरना बेमौत मारी जाओगी ।"

"म. . .मेरी मोत इतनी आसान नहीं है कमाण्डर, जितनी तुम समझ रहे हो ।"

"यानि अभी भी तुम्हें अपने जिन्दा वच जाने की उम्मीद है ।" उसके होठों से व्यंग भरा स्वर निकला ।

"उम्मीद पर तो दुनिया कायम है ।"

बरनाड के हलक विजेताओं जैसा कहकहा उबल पडा । वो कहकहा इतना जबरदस्त था कि मुझे अपने कानों के परदे झनझनाते हुए से महसूस हुए थे ।

मैंने सिल्लियों से लुढ़ककर नीचे गिरने का प्रयास किया । जैसे ही मैं सिल्ली के क्रिनारे पर पहुंची, वैसे ही रायफल के वट का जबरदस्त वार मेरी पीठ पर पडा ।

मेरे जिस्म में पीड़ा की तीव्र लहर दौड गई ।

सेनिक पूरी तरह से सावधान थे ।

वे सैनिक क्या जानते थे कि मेरे जिस्म पर पढ़ रहा रायफल का प्रत्येक बट उन्हें मौत के करीब पहुंचाता जा रहा है । बस मुझे कुछ करने का जरा-सा मोका मिलना चाहिये था, फिर उनकी खैर नहीं थी , लेकिन दिक्कत तो यही थी कि वे मुझे मौका ही नहीं दे रहे । मैं खून जमा देने वाली उस ठण्ड से बचने के लिये इधर-उधर लुढ़क रही थी ।

बरनाड मेरी बेबसी पर कहकहे लगा रहा था । "ये तो बहुत सख्त जान लगती है सर ।" आर्थर बोला--"इतनी यातनाएं सहने के बाद तो पत्थर भी अपना मुह खोलने पर मजबूर हो जाते हैं, लेकिन ये तो अपना मुंह खोलने के

लिये तैयार ही नहीं है ।"

"ये तो क्या इसके फरिश्ते भी मुह खोलेंगे आर्थर । जब तक ये अपना मुंह नहीं खोल देती, तबतक मुझसे इसका पीछा छूटने बाला नहीं है ।" वरनाड खौफनाक लहजे में कह उठा-" इसे उठाकर दूसरे कमरे में ले चलो ।"

आर्थर ने आगे बढकर मुझे बोरे की तरह अपने कंधे पर लाद लिया और दूसरे बन्द दरवाजे की तरफ बढ गया ।

बाकी पीछे चल पड़े ।

उनमें बरनाड भी था ।

मुझे उस ठण्डक से तो निजात मिल गई थी, लेकिन अब देखना … यह था कि वे लोग मेरा मुह खुलवाने के लिये और क्या करने वाले थे ?

आर्थर बन्द दरवाजे के करीब पहुकर ठिठका । अगले क्षण उसने बूट की जबरदस्त ठोकर बन्द दरबाजे पर रसीद कर दीं । दरवाजे के दोनों पल्ले भड़ाक् की आवाज के साथ खुल गये । ~ तदुपरान्त आर्थर ने मुझे कधे से उतारकर भीतर उछाल दिया । मेरा जिस्म हवा में चकराता हुआ धड़ाम् से कमरे के बीचों बीच फर्श पर गिरा । मेरे होठों से हदय-विदारक चीख उबल पडी ।

निसन्देह मैं बेहोश होते-होते बची थी ।

उधर मेरे पीछे पीछे वे लोग भी धढ़धड़ाते हुए भीतर दाखित हो गये थे ।

मेरी निगाहें बरनाड पर थीं ।

उसने आगे बढकर सामने मेज पर रखी कांच की एक बोतल उठा ली, फिर वह फुर्ती से मेरी तरफ पलट गया ।

मैंने देखा, उस बोतल में सुर्ख रंग का कुछ था ।

फिर वरनाड दो ही लम्बे डगो मेँ मेरे करीब पहुचा और बोतल मेरी आंखों के सामने लहराता हुआ बोला-----"इस को देखो, इसमें एक विशेष किस्म की नरभक्षी चिंटिया भरी हुई हैं । लाखों चीटियों । जो चन्द घन्टो में तुम जैसे बेबस किसी भी जीते-जागते इन्सान के समूचे जिस्म का मांस चट करके उसे कंकाल में तब्दील कर सकती हैं और ये खून की गन्ध से इन्सान की तरफ खिंचती है ।"

इस वार मैंने गौर से देखा ।

उस बोतल में वाकई रंगीन ढेर सारी चीटियों भरी हुई थीं, वे आकार में आम चीटियों से कई गुना बडी थी । वे बार वार अपना मुंह शीशी के भीतरी हिस्से पर, मार रही थीं और शीशी से बाहर निकलने के लिये बेताब थीं ।

ऐसी चीटियां मैं पहली बार देख रही थी । मैं मन हीँ मन सिहर-सी उठी ।

अपने किसी दुश्मन को बिलबिलाती मौत देने का वाकई उनके पास बहुत भयानक तरीका था ।

"तुम इस कमरे के फर्श पर पडी चीखोगी चिलाओगीं । अपनी जिन्दगी की भीख मागोगी, लेकिन ये सब सुनने बाला यहाँ कोई नहीं होगा ।" बरनाड के होठों पर जहरीली मुस्कान नाच

उठी…फिर चन्द घण्टों बाद तुम गुमनामी की मौत मर जाओगी ! और कोई जान भी नहीं पायेगा कि तुम अचानक दुनिया के तख्ते से कहां गायब हो गई? "

" तुमने तो मेरे लिये ऐसी मौत सोची है कि मुझ बदनसीब को कफ़न भी नसीब नहीं होगा ।" मैंने मासूमियत से कहा ।

"तुम्हें कफन की क्या जरूरत पडेगी । तुम तो मात्र हड्डियों का ढाचा रह जाओगी ।"

मैंने होठ मीच लिये ।

"चलो " वरनाड सैनिकों को सम्बोधित करता हुआ बोला-"कुछ देर बाद इस लड़की के कंकाल को उठाकर इमारत की छत पर फेक देना ।"

वे मुझे उस कमरे में बन्द करके चले गये । बरनाड बो बोतल भी अपने साथ ले गया था ।

मैं वहां अकेली रह गई ।

मेरी निगाहें दरवाजे पर स्थिर थी ।

वक्त सुस्त रफ्तार से गुजरता जा रहा था ।

अचानक ।

मैं चौंकी ।

दरवाजे के पल्लो के नीचे रिक्त स्थान से एकाएक चीटियों का रेला सरसराता हुआ भीतर दाखिल होने लगा था । उनका रुख मेरी तरफ ही था ।

वे चीटियां पानी के रेले की तरह भीतर घुसी चली आ रही थी ।

अब मुझें अपने बचाव में कुछ करना था । ।
सबसे पहले मुझे बंधनों से मुक्ति पानी थी । पलक झपकते ही मैं उठकर पंजों बल बैठ गई । मैं थोडी सी कोशिश के बाद अपने हाथ नितम्बो के नीचे से निकालकर चेहरे के सामने ले गई । पहले मैंने दांतों से अपने हाथों के बंधन खोले और फिर वडी फूर्ती से पैरों के बन्धन भी खोल डाले ।

अब मैं आजाद थी ।

चीटियों का रेला तीव्रता से मेरे करीब पहुंचता जा रहा था ।

वे तो जैसे मेरा मांस नोचने के लिये बैचेन थीं ।

सैनिकों ने मेरे कपड़े तो उतार दिये थे, लेकिन उन्होंने मेरे सैण्डिल नहीं उतारे थे । अब वो सैण्डिल ही मेरे लिये वरदान साबित होने वाले थे । मैंने बायें पैर के सैण्डिल की एडी को ढक्कन की तरह खोला और भीतर से खोखली एडी से दो कैप्यूल बरामद किये । मैंने एक कैप्सूल चीटियों के रेले की तरफ उछाल दिया ।

कैप्सूल रेले के ठीक सामने गिरकर फटा ।

दूसरे क्षण पीले रंग का जहरीला धुआं कमरे में फैल गया ।

मैंने तुरन्त अपनी सांस रोक ली । कुछ पलों बाद जब धुआं हटा तो चीटियों मर चुकी थीं और धुएं के प्रभाव के कारण बाहर से आने वाली चीटियों का रेला भी रूक चुका था । अब एक भी चींटी भीतर आती दिखाई नहीं दे रहीँ । मैंने बरनाड के खतरनाक इरादों पर पानी फेर दिया था ।

अब मुझे बरनाड के भीतर दाखिल होने का इन्तजार था ।

=========

=========

तकरीबन तीन घंटे बाद दरवाजे के बाहर खटर-पटर की आवाज उत्पन्न हुई । 'म

मैं समझ गई कि बाहर से दरवाजा खोला जा रहा है ।

मैं उसी स्थिति में लेट गई, जिसमें वे लोग मुझे छोड़कर वहां से गये थे ।

निगाहें दरवाजे पर जमा दी थीं । दरवाजा खुला । अगले क्षण बरनाड ने भीतर कदम रखा । उसके पीछे वे चारों सेनिक भी थे ।

भीतर का नजारा देखकर वे जड होकर रह गये ।

"अ. . . अरे ।" एकाएक बरनाड के होठों से हैरत भरा स्वर निकला ------"सारी चीटियां मरी पडी है और यह सहीं-सलामत है । ये वच कैसे गई?"

मैं मन ही मन मुस्कुराई ।

उसी क्षण!

उसका रिवाल्वर वाला हाथ मेरे चेहरे के करीब आया । मुझें लगा कि मेरा खेल खत्म होने वाला है । मगर मैंने मौका ताड़कर अपने दांत उसकी कलाई में गड़ा दिये । वह बिलबिला उठा । बरनाड की उंगलियों की पकड़ रिवाल्वर पर ढीली पड़ गई थी ।

दूसरे क्षण रिवाल्वर मेरे हाथ में थी । मैंने उसकी गर्दन से अपनी एक बांह लपेट दी और दूसरे ही क्षण रिवाल्वर की नाल उसकी कनपटी से चिपक चुकी थी ।

"तुम वहुत ज्यादा उछलकूद कर चुकें कमाण्डर !" मैंने कहा--- " लेकिन तुम्हारी उछलकूद का क्या नतीजा निकला , तुम्हारी हर कोशिश नाकामयाब साबित हुई है ।"

वह अपने होठों पर जुबान फिराकर रह गया ।

" तुम मुझे मार नहीं सके बरनाड ।" मैं पुन बोली--"तुम मुझे मारने की अपनी इच्छा मन में लिये ऊपर पहुंच जाओगे ।"

कहने के साथ ही मैंने रिवाल्वर की नाल उसकी कनपटी से सटा दी ।

""त. ..तुम चाहती क्या हो?" उसने पूछा । ' .बरनाड की कांपती अन्दाज जता रही थी कि उसके हौंसले पस्त हो चुके हैं । किन्तु उसके चेहरे के भाव इस बात की चुगली खाते प्रतीत हो रहे थे कि वह भीतर-ही-भीतर बुरी तरह उबाल खाया हुआ है, अगर उसका वश चलता तो वह मुझें फोरन गोली मार देता ।

"मैँ तुमसे एक छोटी सी जानकारी चाहती हू ।" मैंने उत्तर दिया ।

"क्या जानकारी चाहती हो?"

"डगलस को किस जेल में रखा गया है?" मैंने पूछा ।

वो बुरी तरह चौका । इस बुरी तरह, मानो मैंने उसके सिर पर शक्तिशाली बम फोड दिया हो ।

"क.. .कौन हो तुम?" -वह मेरे जबाब को हजम करता हुआ बोला ।

उसका प्रश्न गोल करके मैंने रिवाल्वर की नाल उसके माथे के ठीक बीचों-बीच सटा दी,

,,,,,,,,,,,,,,, निकली--" ‘खैर' मत बताओ । इस बारे में तो मैं सेना के क्रिसी और आफिसर से भी मालूम कर लूंगी लेकिन ऊब तुम्हारी बीबी विधवा जरूर हो जायेगी और तुम्हारे बच्चे विना बाप के कहलाने लगेंगे । अव मैं ट्रेगर दबाने जा रहीँ हूं।"

बरऩाड के चेहरे का रंग साफ साफ उड़ गया । माथे पर पसीने की धाराएं फूट निकलीं । आँखे आतंक से फटती चली गईं ।

मैंने रिवाल्वर का कुत्ता खींचा । सन्नाटे में क्लिक की आवाज जोरों से गूंजी ।

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"ग.. .गोली मत चलाना।" वह थूक निगलकर बोला ।

"क्यों न चलाऊ?"

"म मैँ तुम्हें सारी जानकारी देने के लिये तैयार हूं...लेकिन.....!

"लेकिन वेकिन कुछ नहीं, मुझे समस्त जानकारी चाहिए ।"

और फिर ।

बरनाड सब कुछ बताता चला गया ।

"और कोई सवाल?"

"नहीं ।"

"मैंने तुम्हरी सारे सवालों के जवाब दे दिये है , अब तो रिवाल्वर हटा लो ।" बरनाड बोला ।

मैंने वरनाड से जो पूछना था । पूछ लिया ।

अब वह मेरे किसी मतलब का नहीं रह गया था । अत: मैंने गिरगिट की तरह रंग बदला----"अब ये रिवाल्वर तुम्हारी मौत के बाद ही हटेगा कमाण्डर ।"

"मैं जानता था कि तुम्हारा आखिरी ,ज़वाब यही होने वाला है।"

"तो फिर मरने के लिये तैयार हो न कमाण्डर !"

किन्तु तभी ।

वह पट्ठा गजब कर गया । शायद बो मौत का डर ही था, जिसने उसमें इतना साहस भर दिया था कि पलक झपकते ही उसका हाथ मेरे रिवाल्वर वाले हाथ पर पड़ गया और उसके बूट की जबरदस्त ठोकर मेरे घुटने पर । हमला एकदम अप्रत्याशित था ।

रिवाल्वर मेरे हाथ से निकल गया और मैं उछलकर पीठ के बल फर्श पर गिरी थी ।

वह पलटकर दरवाजे की तरफ भाग छूटा ।

परन्तु भला मैं इतनी आसानी सें अपने शिकार को कहा छोडने वाली हूं ।

कमाण्डर तो मेरे लिये मुसीबतों के पहाड खडे कर सकता था ।

पलक झपकते ही मैं स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह उछलकर खडी हो गई और करीब पड़ा रिवाल्वर उठा लिया । इससे पहले कि वह आगे वाले कमरे का दरवाजा पार कर पाता, मैंने ट्रेगर दबा दिया ।

धाय ।

हवा में सनसनाती गोली वरनाड की खोपडी के पूष्ट्रमाग में धंसी । वह फिरकनी की तरह घूमकर धड़ाम से फर्श पर गिरा । जिस्म को तेज झटका लगा फिर शांत हो गया । . ,

लाश में गोल हो चुका था वह । मैं सैनिकों की लाशों को फलांगती हुई दूसरे कमरे में पहुंची । कमरे में पहुंचकर मैँने सबसे पहला काम कपड़े पहनने का किया । मैं बातों में इस कदर उलझी हुई थी कि मुझे अपनी नग्नता का ध्यान ही 'नहीं रहा था ।

शीघ्र ही मैं कमरे से निकलकर राहदारी में बढ़ रही थी ।

और गड़बड़ हो गई।

जैसे ही मैंने उस इमारत के आयरन गेट से बाहर कदम रखा, वैसे ही मेरी नजर बाहर उपस्थित तीन सैनिकों पर पडी । उनमें से एक सेनिक तो वहीं था, जो कैप्टन हिलकाक के आवास पर अपने साथियों के साथ आ धमका था ।

""अ.. ..अरे !" मेरे ऊपर नजर पड़ते ही वो चीख उठा-"ये तो वहीँ लडकी है, जिसने कैप्टन की हत्या की थी । यह कमाण्डर के चंगुल से कैसे बच निकली?"

मेरे पास सोचने-समझने का जरा भी वक्त नहीं था । अत: मैंने आव देखा न ताव और एक क्षण भी व्यर्थ किये बगैर झुककर नाक की सीध में भाग छूटी ।

"पकड्रो!" कोई चीखा----"वो भाग रही है ।"

"पकडने की जरूरत नहीं है ।" इस बार वातावरण में दूसरे सैनिकों की चीख गूंजी-----"इस हरामजादी को गोलियों से भून दो ।"

और फिर!

पीछे से मुझ पर गोलियों बरसने लगी । गोलियों की आवाज़ के साथ भारी बूटों की आवाज भी वातावरण में गूंजती चली गई । बूटों की टक… टक से स्पष्ट था कि वे सैनिक मेरे पीछे लग चुके थे ।

मैं अपने ऊपर बरसी गोलियों से फिलहाल तो बच गई थी ।

"रुक जाओ ।" तीसरा सेनिक चेतावनी भरे स्वर में चीखा-"वरना बेमौत मारी जाओगी ।"

मेरे रुकने का तो सवाल ही नहीं था, उल्टे मेरे भागने की रफ्तार तेज हो गई थी । इस वक्त मैं जान छोडकर भाग रही थी । मेरे पीछे से लगातार मुझ पर गोलियों बरस रही थीं, लेकिन शायद ये मेरा भाग्य ही था कि क्या मजाल जो एक भी गोली मुझे छु पाई हो? वे तो मेरा पीछा छोड़ने वाले नहीं लग रहे थे ।

मगर ।

… मैं उनके हाथ आने वाली कहीं थी ।

मुझे पीछा छुड़ाना जरूरी था । दौडते-दौडते मैं पीछे भी देख लेती थी । अब पीछे से गोलियों नहीं चल रही थी -क्योंकि मेरे और सैनिकों के बीच काफी फासला पैदा हो गया था । अब सैनिकों ने सोच लिया होगा कि मुझ पर गोलियां बरसाना बेकार है । मगर वे भूतो की तरह मेरे पीछे जरूर लगे हुए थे ।

इधर मेरे सामने एक प्रॉब्लम ये थी कि मुझे डगलस को जेल से छुडाना था ।

मैंने जेल के सुरक्षा प्रबंधों पर गंभीरता से गौर किया था ।

एक-एक चीज पर बारीकी के साथ विचार कर चुकी थी, और काफी सोच विचार करने के बाद मैं एक ही नतीजे पर पहुची कि जेल के सुरक्षा प्रबंधों को तोड़कर डगलस को निकालना मंगल ग्रह पर पहुंचने से कम नहीं है ।

इस बीच मेरे जेहन में एक विचार और भी आया था कि अगर . . मैं किसी तरह मार्शल को अपने कब्जे में कर लूं तो मैं सेना से मार्शल के बदले डगलस की डिमांड कर सकती थी । मैंने डगलस को जेल से मुहाने और मार्शंल को अपने कब्जे में करने, अर्थात् दोनों स्थितियों पर गंभीरता से विचार किया । मुझे मार्शल को अपने कब्जे में करना जेल के सुरक्षा प्रबंधों को बेधने की उपेक्षा ज्यादा आसान लगा था । लेकिन उसे कब्जे में करने के लिये पहले मुझे सोल्जर तक पहुचना था और उस तक पहुंचना मेरे लिये आसान काम नहीं था । सोज्जर तक पहुंचने के लिये मुझें उसे अपने विश्वास में लेना जरूरी था । अब मेरे सामने सवाल ये था कि सोल्जर को अपने विश्वास में जैसे लिया जा सकता है? उलझन-पर-उलझन ।

मेरा सोचना जारी था ।

क्या मजाल इस बीच मेरे भागने की रफ्तार में बाल बराबर भी कमी आई हो ।

भारी बूटों की आवाजे अब पीछे छूटती जा रही थी, लेकिन इससे खतरा कम नहीं हुआ था । मुझे ऐसी जगह की तलाश थी, जहाँ मैं फौरी तोर पर पनाह ले सकती । दूर सामने जुगनुओं की तरह प्रकाश चमकता नजर आ रहा था । जाहिर था कि वहां कोई बस्ती थी।

मैंने उस बस्ती में पनाह लेने का निर्णय कर लिया । क्योकि इस वक्त और हालात में वापस क्लाइव के ठिकाने पर पहुचना बेहद मुश्किल काम था ।

..तभी ।

क्लाइव ।

यह नाम किसी घन्न की तेरह मेरे जेहन से टकराया था । क्लाइव राष्ट्रपति सर एडाल्फ के समर्थकों का मुखिया! इस नाम के जेहन में आते ही मेरा चेहरा हजार वाट के बल्ब की तरह चमक उठा । मैंने अपनी उलझन का समाधान तलाश कर लिया था । मेरी दौढ़ बदस्तूर जारी थी । मुझे अपने पीछे लगी मौत से पीछा भी तो छूड़ाना था ।।

====

====

मैं उस बस्ती के किनारे स्थित एक मकान कै दरवाजे के सामने पहुचकर ठिठकी । इस वक्त उस पुराने से मकान का दरवाजा बंद था ।

सुबह का उजाला धीरे धीरे फैलने लगा था । किन्तु अभी तक उस बस्ती में जाग नहीं हुई थी । चारों तरफ कब्रिस्तान जैसी खामोशी ने अपने पांव पसार रखे थे ।

मैंने की दरवाजे पर दस्तक दी।

"कौन है ?! मेरे कानों से नारी कंठ से निकला अलसाया-सा स्वर टकराया ।

"दरवाजा खोलिये।"

दूसरे क्षण । मुझे दरवाजे की तरफ़ आती कदमों की आवाज सुनाई दी ।

मैंने गर्दन मोड़कर सतर्क निगाहों से उस तरफ देखा, जिधर से मैं भागती हुई आई थी । मैं तसल्ली कर लेना चाहती थी कि कहीं सैनिक पीछे तो नहीं आ रहे है किन्तु उस तरफ से मुझे कोई आता दिखाई नहीं दिया था ।

मैंने राहर्त की सांस ली ।
तभी दरवाजा खुला । दरवाजे के बीचों बीच एक औरत नजर आई ।

यह बेहद खूबसूरत थी । उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे आसमान से कोई परी उत्तर आई हो । उसकी उम्र पैंतीस साल के आस पास रहीं होगी, लेकिन वह तीस साल से ज्यादा की नहीं लग रही थी।

"क्या बात है?" औरत के पंखुड्रियों जैसे होंठ हिले ।

मेरा सम्मोहन टूटा ।

"अ .अगर कुछ देर के लिये मुझे अपने घर में पनाह दें तो आपकी वहुत मेहरबानी होगी । मैंने अपनी सांसों को संयत करते हुए कहा ।

"चक्कर क्या है ।" बह गौर से मेरा चेहरा देखती हुई बोली ।

"वो मेरी जान लेना चाहते हैं ।"

औरत हौले से चौंकी । फिर. वह फुर्ती से एक तरफ हटती हुई बोली--"जल्दी से अन्दर आ जाओ ।"

मै तीर की तरह भीतर दाखिल हुईं ।

औरत ने दरवाजा बंद करके सिटकनी चढाई फिर मुझे साथ आने का इशारा करती हुई पलटकर आगे बढ गई ।

मैं उसके पीछे चल पडी ।

अभी तक मुझे वहीं उस औरत के अलावा और कोई नजर नहीं आया था ।

वह मुझें लेकर एक कमरे में पहुची।

मैंने चारों तरफ निगाहें घुमाई ।

वह साफ सुथरा, सजा-संवरा एक कमरा था । उसकी सामने बालीगंज दीवार के साथ लकडी का एक तखत पड़ा हुआ था । कमरे के बीचों बीच एक पुरानी गोलाकार मेज के इर्दगिर्द चार कुर्सियां . पडी हुई थीं । सामने आल्टर पर इंसा मसीह की सूली पर सजी तस्वीर लगी थी । उसके दाये वायें दो मोमबत्तियों जल रही थीं । संसार को प्रकाश देने वाले प्रभु यीशू कै सामने उन मोमबत्तियों का प्रकाश फीका नजर जा रहा था ।

"बैठो ।" औरत ने एक कुर्सी की तरफ संकेत करते हुए कहा ।

मैंने आगे बढकर कुर्सी संभाल ली ।

"चिंता करने की जरूरत नहीं है ।" बह एक अन्य कुर्ती पर बैठती हुई बोली-" तुम अपना ही घर समझो । यहां तुम्हें किसी भी किस्म की दिक्कत नहीं होगी । जब तक तुम चाहो यहां ठहर सकती हो !"

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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »


औरत का अपनापन देखकर मैंने राहत की सांस ली

"क्या नाम है तुम्हारा?" उसने पूछा 1

" रीमा !"

" तुम इस मुल्क की तो नहीं लगती !"

" मै इंडियन हू ।"

"मडलैण्ड कैसे आई हो?"

"एक जरूरी काम से आई हूं ।" मैंने गोल-मोल जवाब दिया ।

"सैनिक तुम्हारे पीछे क्यों पड़े हैं?"

" भगवान जाने । मेँ एक जरूरी काम से जा रहीँ थी । अचानक तीन सैनिकों ने मुझे घेर लिया है मुझें उनसे बचने के लिये भागना पडा ।

मैंने उस औरत के सामने खुलना उचित नहीं समझा था । क्योकि मुझे उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी । अत इतनी ज़ल्दी मैं उस पर विश्वास कैसे कर सकती थी ?

"तुम्हारा क्या नाम है?" मैंने पूछा ।

" मारिया ।" औरत ने अपना नाम बताया--" मै यहाँ के अस्पताल में नर्स हू।"

"" तुम्हारे अलावा यहा और कोई दिखाई नहीं दे रहा?"

" अकेली रहती हू ।"

'" तुम्हारे बच्चे ।"

" शादी ही नहीं की, तो बच्चे कहां से आयेंगे?" मारिया ने मुस्कुराकर कहा ।

"पूछ सकती हू शादी क्यों नहीं हुई ?"

"बस यूंही ।" वो हंसी--"मैं एक आजाद पंछी जैसी जिन्दगी जीने में विश्वास रखती हूं। घर-गृहस्थी के बंधनों में बंधकर नहीं । लेकिन अब नहीं लगता कि यहां कोई आजादी से सांस ले पायेगा ।"

"क्यों?" मैंने सवाल किया ।

"जब इस मुल्क की सत्ता की बागडोर राष्ट्रपति सर एडलॉफ के हाथों में थी तो आराम से दो वक्त की रोटियों मिल रही थीं । जिंदगी मजे से गुजर रही थी । हर नागरिक खुश था । मुल्क में अमन-चैन था ।" मारिया एक सर्द सांस छोड़ती हुई बोली ----"लेकिन जव से सेना ने विदेशी ताकत की शह पर राष्ट्रपति का तख्ता पलटकर सत्ता अपने हाथ में ली है तब से हालत बद से बदतर हो गये हैं ! एक वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं हो रही है, उधर विदेशी ताकत ने अपने एक कठपुतले को यहां का नया राष्ट्रपति बना दिया है, जो इंसान की खाल में छिपा एक भेडिया है । जिसे सिर्फ सत्ता की भूख है !

हालांकि इस देश में जब-जब सेना ने सत्ता पर काबिज होने की कोशिश की है, तब-तब सेना का शासक कूते से भी बुरी मौत मारा गया, इतिहास इस बात का गवाह है, वो तानाशाह भी एक दिन जरूर कुत्ते की मौत मारा जायेगा ।"

कहते वक्त मारिया के चेहरे पर नफरत-ही-नफरत फैली नजर आ रही थी ।

"इस मुल्क की जनता के भीतर उस तानाशाह के खिलाफ बगावत की चिंगारी सुलग चुकी है । धीरे धीरे वो चिंगारी एक दिन बारूद का रूप धारण कर लेगी और जब वह बारूद फ़टेगा तो उस तानाशाह के तो चिथड़े उड जायेंगे और इस काम को अंजाम देंगे राष्ट्रपति के समर्थक जिन्होंने उस तानाशाह शासक के खिलाफ जंग का बिगुल बजा दिया है. इस मुल्क की औरते भी पीछे नहीं रहेगी । हम औरतों के भीतर भी अपनी मिट्टी के लिये वफादारी कूट कूटकर भरी है।"

मै मारिया की बातों से प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकी थी--"जिस मुल्क में तुम जैसी नारियों हों मारिया । वो देश गुलाम कैसे रह सकता है? मेरा विश्वास है, एक दिन तुम जैसी औरतें ही इस मुलक को गुलामी की जंजीरों से छुटकारा दिलाकर रहेंगी ।"

" काश ! ऐसा हो जाये तो फिर वहीँ खुशी भरे दिन लौटकर आ जायेंगे ।"

"वो दिन जरूर लोटकर जायेंगे. ।"

तभी!

दरबाजे पर दस्तक पडी । मैं चौंकी । मारिया भी हड़बड़ा-सी गई ।

"कौन हो सकता है?" मेरी संशक निगाहें मारिया के चेहरे पर स्थिर होकर रह गई ।

" क्या मालूम ।"

"जाकर देखो ।"

तभी दरवाजे पर पुन: दस्तक यहीं ।

"कौन है?" मारिया ने पूछा ।

"हम सेना कै लोग हैँ ।" बाहर से कठोर स्वर उभरा-----"दरवाजा खोलो ।"

मुझे जबरदस्त झटका लगा ।

" क्या बात है ?"

मारिया का लहजा तीखा सा उठा था । क्या मजाल जो उसके चेहरे पर घबराहट का एक भी भाव उभरा हो ।

"दरवाजा खोलो ।" बाहर से कहा गया ।
"क्यों?"

"सवाल मत करो ।" इस बार दूसरे सैनिक का कठोर स्वर मेरे कानों से टकराया----"तुम से जो कहा गया है वैसा ही करो, वर्ना दरवाजा तोड़ दिया जायेगा."

"ठहरो ।" जवाब में मारिया ने कहा…"मैं दरवाजा खोलती हूं।" साथ ही उसने कुर्सी छोड दी ।

" ऐसा लगता है कि वे लोग मेरे ही चक्कर में आये हैं ।" मैं फुसफुसाई ।

"घबराओ मत रीमां ।" वह दिलेरी का परिचय देती हुई बोली-"मेरे होते हुए ये सैनिक तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । मैंने तुम्हें अपने यहां पनाह दी है । तुम्हारी रक्षा करना मेरा कर्त्तव्य बनता है? मैं अपनी जान पर खेल जाऊंगी, लेकिन तुम पर आँच नही जाने दूंगी ।"

मैं मारिया को देखती रह गई । मुझ पर कुछ कहते नहीं बना ।

सच तो ये था कि उसका अपनापन देखकर मैं उससे प्रभावित हुए बगैर न रह सकी थी ।

"तुम बराबर वाले कमरे में चलीं जाओ । जब तक मैं न कहू तब तक तुम कमरे से बाहर नहीं निकलना ।" वह बोली--"जल्दी से उठो और उस कमरे में जाकर छिप जाओ । मैं इन सैनिकों को संभालती हू।"

पलक झपकते ही मैंने कुर्सी छोड़ दी और दरवाजे की तरफ झपटी ।

मैं बराबर बाले कमरे में दाखिल हुई । कमरा खाली पड़ा हुआ था । सामान के नाम पर उंसमेँ कुछ भी नहीं था । मैंने दरवाजा बंद करके सिटकनी चढाई और दरवाजे से पीठ सटाकर खडी हो गई । मैं हर परिस्थिति से निबटने के लिये एकदम तैयार थी । मेरे कान राडार वने हुए थे ।

"बोलो ।" एक पल बाद मारिया का स्वर कानों से कि टकराया-"क्या बात है?"

"हमें एक लडकी की तलाश है ।" बाहर से कहा गया--"तुम्हारे मंकान में तो नहीं आइ ।"

साफ था कि वे आवाज किसी सैनिक की ही थी ।

"तुम किस लड़की की बात कर रहे हो?" मारिया का स्वर ।

प्रत्युत्तर मे दूसरे सेनिक ने मेरा हुलिया बता दिया ।

"मेरे मकान में वो लडकी क्यों आयेगी ।" मुझे मारिया का स्वर सुनाई दिया-, "मैं तो सोई पडी थी । दरवाजे पर दस्तक पडी तो मेरी नीद टूटी और मैंने दरवाजा खोल दिया ।"

-"वो आई तो इसी तरफ़ है ।"

"जब तुम लोग कह रहे हो तो ज़रूर लई होगी । लेकिन मेरे यहां नहीं आई, अगर तुम लोगों को मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो मेरे मकान की तलाशी ले सकते हो, लेकिन वो लडकी है कौन? क्या जुर्म क्रिया है उसने?"

"वो एक खतरनाक किस्म की लडकी है । उसने सेना के दो ऑफिसरों की हत्या कर दी है ।" इस बार मुझे तीसरे सैनिक का स्वर सुनाई दिया---"बो किसी दुश्मन देश की जासूस है ।"

"फिर तो उसका पकड़ा जाना वहुत जरुरी है ।"

मैं उनके वार्तालाप का एकएक शब्द सुन रही थी ।

"इस मकान की तलाशी लो ।"

"तुम लोग शौक से मेरे मकान की तलाशी ले सकते हो । मैं तो पहले ही तलाशी लेने के लिये कह चुकी हू। भीतर आओ ।"

"अगर वो लड़की इस मकान में छिपी होती तो ये डंके की चोट पर तलाशी लेने के लिये न कहती, इसके मकान की तलाशी लेना वक्त बरबाद करना है ।"

"सुनो । हमने तुम्हें उस लड़की का हुलिया बता दिया है, अगर वो लड़की तुम्हे कहीं दिखाई दे अथवा तुम्हारे मकान पर पनाह मांगने आये तो हमें फौरन खबर करना ।"

"ठीक है ।" उसके बाद कोई आवाज सुनाई नहीं दी । "

जाहिर था कि सैनिक चले गये थे । इसका अंदाजा मैंने इस बात से लगाया था कि पल भर बाद ही दरवाजा बंद होने की आवाज सुनाई दी थी ।

मारिया ने बडी सफाई से सैनिकों को टाल दिया था । मै पुन: मुसीबत में फंसने से बाल-बाल बची थी । अब मारिया पर मेरा विश्वास जाग गया था । इधर मैंने कमरे से बाहर निकलने का प्रयास नहीं क्रिया था । मुझे मारिया के इशारे का इंतजार था ।

"बाहर जा जाओ रीमा." तभी मारिया का स्वर सुनाई दिया-" सैनिक चले गये हैं ।"

मैंने सिटकनी गिराकर दरवाजा खोला और कमरे से बाहर निकल आई ।

=====

=====

मारिया मुझे लेकर पहले वाले कमरे में पहुची । "बैठौ रीमा ।" वह बोली ।

मैंने पहले वाली कुर्सी संभाले ली ।

मारिया भी कुर्ती पर बैठ चुकी थी।

मैंने अपनी निगाहें मारिया के चेहरे पर टिका दीं जिस पर गंभीरता और सोच के मिले-जुले भाव कुण्डली मारे नजर आ रहे । हमारे मध्य खामोशी थी ।

जब दो खामोशी मुझे खलने लगी तो मैंने उसे शहीद किया-"क्या सोच रही हो मारिया?"

मारिया जैसे मीलों से वापस लोटकर आई हो । "मैं सोच रही थी कि क्या सैनिकों के अत्याचारों का कोई अंत भी है । उनके जुल्मों की कोई सीमा भी है ।" मारिया ने पहलू बदला----" निर्दोष लोगों को बेरहमी के साथ मौत के घाट उतारा जा रहा है । औरतों को गोलियों से उडाया जा रहा है और सर एडलॉंफ के समर्थकों को जेल की सलाखों के पीछे ठूंसा जा रहा है । उन पर मनमाने जुल्म हो रहे हैं । आज मुल्क की जनता त्राहि…त्राहि कर रहीँ

है।हर आदमी मौत के साये मे सासे ले रहा है ।

।वे इसान नहीं, खूनी भेड्रिये हैं, जो सत्ता की खातिर इंसानी खूनं से अपने हाथ रंग रहे हैं ।"

"हमारे भारत में कहते हैँ, जब-जब भी धरती पर जुल्म होता है ह निर्दोषों का खून बहाया जाता है, तब-तब ईश्वर इस धरती पर जन्म अवश्य लेता है । कभी ईसा । कभी मुहम्मद । तो कभी कृष्ण अथवा राम बनकर उस चीखती-कराहती मानवता के जख्मो पर मरहम रखता है । उन्हें अपना संरक्षण प्रदान करता है । घबराओ मत, . इन लोगों के जुल्मों का अन्त भी अब ज्यादा दूर नहीं है । कोई मसीहा आयेगा. . .जरूर जायेगा ।"

"एक बात बताओं रीमा ।"

"क्या ?"

"जो सैनिक यहीं आये ये, वे कह रहे थे कि तुम एक ख़तरनाकं जासूस हो ।"

मै मुस्कराई

" क्या सच हे रीमा?"
" एकदम सच है । मेरा नाम रीमा भारती है और मैं भारत की महत्वपूर्ण जासूसी संस्था साई०एस०सी० की जासूस हूं।"

"लेकिन तुमने मुझे ये बात पहले क्यों नहीं बताई?"

"क्योंकि एक जासूस इतनी आसानी से अपना भेद नहीं खोलता और एक अपरिचित के सामने तो बिल्कुल भी नहीं । एक जासूस अपनी परछाईं पर भी विश्वास नहीं करता ।" मैंने कहा---" हम जासूसों के सैकडों दुश्मन होते हैं । न जाने कब, कौन क्या चाल चल . . जाये?"

"अब तुमने मुझे क्यों बता दिया?"

"क्योकि अब मुझे तुम पर विश्वास हो गया है । जिस तरह से तुमने मुझे सैनिकों से बचाया है । इससे ये साबित हो जाता है कि तुम मेरी हमदर्द हो ! तुम्हारे सीने में भी इस सैनिक शासन के खिलाफ बगावत की आग सुलग रही है ।"

"मेरी समझ में एक बात नहीं अर रही है ऱीमा ।"

"वो क्या?"

" तुम एक हिन्दुस्तांनी जासूस हो । तुम्हें यहां की सेना के दो-आफिसरों की हत्या करने की क्या जरूरत आ पडी थी?"

"मैंने अपने मिशन के तहत ऐसा क्रिया है ।"

"म. . .मतलब?" वह चौकी ।

मैंने उसे मतलब समझाया।

सुनकर मारिया उछल पडी ।

"तो तुम उन दरिब्दों का संहार करने के लिये चण्डी बनकर हिन्दुस्तान से मडलैण्ड आई हो?"

" जैसा तुम समझो ।" मेरे होठों पर विशिष्टि मुस्कान थिरक उठी ।

"लेकिन क्या तुम अकेली ये पहाड़ जैसा काम कर पाओगी ?"

" जरूर कर पाऊँगी ।" मेरे लहजे में दृढ़ता थी… "जव इंसान .में कुछ कर गुजरने का जज्बा और हौंसला हो तो पहाड जैसा काम

भी राई के दाने के बराबर लगने लगता है । मैं हिन्दुस्तान से जिस मिशन को लेकर आई हूं उसमें कामयाब होकर ही वापस लौटूगी ।"

किन्तु मारिया चेहरे पर विश्वास का भाव न आया ।

" 'शायद' तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा है मारिया ।"

"यकीन करने बाली बात ही नहीं है ।" वह बोली--"तुम हजारों सैनिकों से अकेली कैसे लोहा ले सकोगी सर एडलॉफ के हजारों समर्थक तो अभी तक सैनिक्रो का बाल भी बाका नहीं कर पाये । उनमें से कुछ तो मारे गये, बचे हुओं को जेल में ठूंस दिया गया है !"

मेरे होठों पर फैली मुस्कानं गहरी हो उठी---" किसी विशाल पेड़ को गिराना हो तो उसकी शाखाएं काटने से काम नहीं चलता मारिया । शाखाएं तो दोबारा उग आती हैं । अगर पेड़ की जडे काट दी जाये तो यह भरभराकर गिर पड़ता है ।"

"मैं कुछ समझी नहीं रीमा । मुझे खुलकर बताओ कि तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?"

"तुम मतलब समझ कर क्या करोगी? ये जरा लंबी… और पेचदार बातें हैं । तुम इतना समझ लो कि जल्दी ही इस मुल्क में सबकुछ ठीक हो जायेगा और जनता फिर खुली हवा में सांस ले

सकेगी ।"

"और ये करिश्मा तुम करोगी !"

"मैंने इसी उम्मीद पर इस मिशन में हाथ डाला है ।"

"भगवान करे कि इस काम में तुम्हें सफलता हासिल हो, अगर मेरी किसी तरह की मदद की ज़रूरत हो तो बेझिझक बता दो ।"

"मुझे तुम्हारी मदद की नहीं, दुआओं की ज़रूरत है ।"

"दुआएं तो तुम्हारे साथ हमेशा ऱहेगी रीमा ।"

" मुझे अपने यहां पनाह दी । मुझे सैनिकों से बचाया । इसके तुम्हारी शुक्रगुजार हु मारिया । अब मैं चलती हूं मुझे इजाजत दो ।"

"कहां जाओगी तुम?" वह सवालिया निगाहों से मेरी तरफ देखती हुई बोली ।

"अपने मिशन पर आगे काम करूंगी?"

"बस्ती में सैनिक घूम रहे हैं । वे तो पहले ही तुम्हारी जान के दुश्मन बने हुए हैं । तुम्हारा यहाँ से बाहर कदम रखना खतरनाक हो सकता है । जब तक बस्ती का मांहौल सामान्य नहीं हो जाता तब तक तुम यहां रुको तो बेहतर होगा ।"
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

"मैं चुहिया की तरह विल में छिपकर बैठने वाली नहीं हूँ अगर मैं यहां छिपी बैठी रही तो मेरा मिशन केसे पूरा होगा? जब मैं अपने मिशन पर निकलती हूं तो सिर पर कफ़न बांधकर निकलती हूं । मैंने खतरों से डरना नहीं सीखा । खतरों से खेलना मेरा, शौक है !"

" हिम्मत वाली हो?" " 'प्रत्यूत्तर में मैं मुस्कूरा कर रह गई।

मारीया ने मेरी हिम्मत देखी ही कहां थी, अगर वह मेरी हिम्मत देख लेती तो दांतों तले ऊंगली दबाकर रह जाती । मेरी हिम्मत के सामने तो बड़े बड़े सूरमा धाराशायी हो चुके हैं ।"

" अगर तुम जाना ही चाहती हो तो भी कुछ देर यहां आराम कर लो । मै बस्ती का मुआयना करके आती हूँ । वापस लौटकर तुम्हें बाहर के हालातों के बारे में बता दूंगीं । उसके बाद तुम खुद फैसला कर लेना कि तुम्हें क्या करना है तो कम-से-कम तुम्हें आगे के हालात तो मालूम होने चाहियें ।"

मारिया की बात में वजन था ।"

"ठीक है ।" मैं बोली---" बाहर के हालात-मालूम करके आओं । तब तक मैं आराम करती हूँ लेकिन जल्दी लोटकर आना । मुझे ज्यादा इंतजार न करना पड़े ।"

"तुम फिक्र मत करों । मैं यूं गई और यूं आई । मैं बाहर के दरबाजे पर ताला लगाकर जाऊंगी । ताकि तुम सुरक्षित रह सको ।"

"ठीक हे।तुम जाओ।"

मारिया उठकर चली गई । उसकी तरफ से किसी भी तरह का खतरा नहीं था । अतः मैं कुर्सी त्याग कर उठी और तख्त पर लेट गई ।

मैं थकी हुई थी । मुझे लेटने से काफी आराम मिला था ।

जाने कब मेरी आंखें झपक गई थीं । मुझे पता ही नहीं चला था ।

=====

=====

सुबह को मारिया से बाहर के हालात का पता चलने के पश्चात् ।

मैं आश्वस्त होकर बाहर निकली ।

बस्ती से निकलने के कुछ देर बाद मैं ठिठकी । मकानों का सिलसिला खत्म हो चुका था । इस वक्त में जिस मकान की छत पर खडी थी उससे दूर तक खुली जगह नजर आ रही थी ।

मैंने सतर्क निगाहों से आसपास का मुआयना क्रिया ।

सन्नाटा पूर्ववत् था ।

आसपास मुझे किसी इंसान के दर्शन नहीं हुए थे । मैंने राहत की सांस ली । हालात मेरे अनुकूल थे ।

मैंने दूसरी तरफ झाका ।

एक रेन वाटर पाइप छत से नीचे तक चला गया था । पलक झपकते ही मैं मुंडेर पर बैठ, गई, फिर मैंने दोनों हाथों से पाइप थामा और पाइप के सहारे बन्दरों की फुर्ती से नीचे उतरती चली गई ।

एक पल बाद मैंने पाइप छोड़ दिया' । धप्प ।

ये हल्की सी आवाज मेरे कदमों के कच्ची जमीन पर टकराने से हुई थी । क्षण भर के लिये सन्नाटा भंग हुआ था, फिर पूर्ववत् अपने पांव पसार दिये थे ।

तकरीबन दस मिनट बाद मैं सडक-पर पहुंचकर ठिठकी ।

बस्ती पीछे छूट चुकी थी ।

मेरी निगाहें सढ़क के किनारे लगे पत्थर पर स्थिर होकर रह गई, जिस पर स्याह रंग से लिखा था-विंगस्टन चार किलोमीटर ।

मेरे होठों से सर्द सांस निकल गई ।

मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि कमाण्डर की हत्या करने के बाद मैं इतनी आगे निकल गई थी । रात का वक्त था । सेनिक प्रेत की तरह मेरे पीछे लगे हुए थे ।

मुझे तो उस वक्त सैनिकों से पीछा छुड़ाना था और मैं प्राण छोड़कर भाग रही थी । मुझे इस बात से काया लेना था कि मैं कितनी दूर तक भागी थी?

बहरहाल मुझे विंगस्टन पहुंचना ही था । पैदल चलना मेरे लिये खतरे का सौदा था ।

रास्ते में मेरा सामना सैनिकों से हो सकता था।

वो स्थिति मेरे लिये खतरनाक हो जाती । अत: मैंने लिफ्ट की तलाश में सड़क पर नजर डाली, किन्तु फिलहाल मुझे कोई वाहन आता नजर नहीं आया था ।

सड़क विधवा की मांग की तरह सूनी पडी थी ।

मैं किसी वाहन के आने का इंतजार करने लगी । .

सड़क पर पहुंचकर मेंने सबसे पहले अपने मेकअप से निजात पाई थी । अब मैं अपने असली रूप सें थी । जरुर मुझे कोई सैनिक देख लेता, वो सेनिक, जिससे मेरे सामना हो चुका था, तो उसके लिये मुझे पहचान लेना कठिन ही नहीं असम्भव होता ।

मुझे लिफ्ट के लिये ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा था । मुझे बस्ती की तरफ से एक कार आती दिखाई दी ।

मैं तुरंत सड़क के बीब पहुच गई और हाथ उठाकर कार को रुकने का संकेत करने लगी ।

कुछ पलों बाद कार मेरे करीब आकर रुकी । उसकी ड्राइविंग सीट पर एक नौजवान बैठा था । उसने खिड़की से सिर बाहर निकाल कर प्रश्न भरी निगांहों से मेरी तरफ देखा ।

"आप कहां तक जा रहे हैं?" मैंने पूछा ।

"मैं बुडैल जा रहा हूं ।" उसने उत्तर दिया-"बात क्या है?"

" मुझे विंगस्टन जाना है ।" मैं मुस्कुराई-"अगर आप मुझे लिपट दे दे तो वहीं मेहरबानी होगी ।"

" जरूर ।"-वह हाथ बढाकर दूसरी तरफ़ वाला गेट खोलता हुआ बोला---" विंगस्टन होकर ही निकलूंगा । बैठो ।"

ये मेरी दिलकश मुस्कान का ही जादू था कि नौजवान ने तुरंत लिफ्ट के लिये हा कह दी थी ।

मैं घूमकर करके दूसरी तरफ पहुंची और युवक के बगल वाली सीट पर बैठकर दरवाजा बंद कर लिया ।

युवक ने तुरंत कार आगे वढा दी । फिर मेरी तरफ देखते हुए पूछा…"आप इस मुल्क की तो नहीं लगतीं ।"

"आपने कैसे पहचाना ?"

"आपका चेहरा बता रहा है ।"

"'आपने ठीक पहचाना । मैं इण्डियन हू।"

"म. . .मगर इस उजाड जगह पर आप क्या का रही थीं?"

मैं ज़वाब के लिये तैयार थी बोली-""द्ररअसल मैं एडवेंचर की शौकीन हूं।"

" एडवेंचर की शौक्रीन! "

" हां! मैं नई-नई चीजों की जानकारी हासिल करने के लिये एक देशं से दूसरे देश की यात्रा करती रहती हूं। मैं एडवेंचर पर एक पुस्तक लिखना चाहती हूं।" मैंने सरासर झूठ बोला ।

" इसका मतलब है कि आप लेखिका भी है ।"

"ऐसा ही समझ लो ।"

"क्या नाम है आपका ?"

यह पट्ठा तो मेरे गले ही पढ़ गया था । मैं मन-ही-मन झुंझला उठी । फिर बोली- मेरा नाम प्रेरणा है । प्रेरणा शर्मा ।"

"आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई । मैं जिदगी में पहली बार किसी लेखिका को देख रहा हूं।"

मैं खामोश हो गई।

वह भी खामोशी से कार ड्राइव करने लगा ।

विंगस्टन करीब आता जा रहा था ।

" अपने दाईं तरफ देखो प्रेरणा।" वह बोला ।

मैंने दाई तरफ नजरें घुमाई, उस तरफ विशाल खण्डहर था, जो तकरीबन दो किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ था ।

"ये जो खण्डहर आप देख रही हैं । अपने मे एक इतिहास समेटे हुए है । इस इतिहास से वहुत कम लोग परिचित होंगे, अगर आप इन खण्डहरों के बारे में जानकारी हासिल करें तो आपको अपनी किताब के लिये काफी मसाला मिल जायेगा !"

" गुड फिर तो मैं इन खण्डहरों को अवश्य देखना चाहूगी ।"

मैंने युवक का मन रखने के लिये ऐसा कह दिया था । भला मेरी उस खण्डहर का इतिहास जानने में क्या दिलचस्पी हो सकती थी ?

"अगर आप कहें तो आपको उन खण्डहरों का इतिहास बता सकता हूं । मै आपके लिये गाइड बन सकता हूं।"

"आप बडे दिलचस्प हैं मिस्टर. . . ।"
"मेरे नाम किंग्ले है ।"

"मिस्टर , किंग्ले अगर आप मुझे खण्डहरों का इतिहास बता , देगे तो सारा सस्पेंस खत्म हो जायेगा ।" मैंने कहा----"मैं आज़ शाम खुद जाकर इन खण्डहरों को देखूंगी ।"

"आपकी जैसी मर्जी ।" फिर वह कुछ नहीं बोला । मैंने भी बोलना उचित नहीं समझा । मैं जानती थी, अगर मेंने कुछ कहा तो बातों का सिलसिला आगे बढेगा । वह मुझसे तरह-तरह सवाल करेगा । मेरी खूबसूरती के कसीदे गड़ेगो ।

मैंने कनखियों से उसकी तरफ देखा, उसकी निगाह रह-रह कर मेरे चेहरे पर फिसल जाती थी ।

"सामने देखो मिस्टर किंग्ले ।" मैं बोल उठी-"एँक्सीडेट हो किं जाऐगा ।"

किंग्ले यूं हड़बड़ाया जैसे किसी चोर को रंगे हाथों चोरी करते हुए पकड़ लिया जाता है । फिर उसने अपनी निगाहें सामने सड़क पर स्थिर कर दीं । एकाएक मेरा दम खुश्क हो गया । सामने बैरियर था ।

इस वत्त बैरियर पर एक आर्मी आफिसर के अलावा पाच छः सैनिक खड़े नजर आ रहे थे।

सभी सैनिक हथियारों से लेस थे ।

सैनिक शहर में दाखिल होने वाले हर वाहन की तलाशी ले रहे थे । मैंने तुरंत अंदाजा लगा लिया कि सेनिक मेरी ही फिराक में हैं । जाहिर था कि कमाण्डर बरनाड की हत्या की खबर सेना के आफिसरों को मिल चुकी थी ।

कार बैरियर के करीब पहुंचती जा रही थी ।

अब मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था ।

किन्तु मैंने अपने, चेहरे पर घबराहट का कोई भाव उभरने नहीं दिया था । मैंने ये सोचकर सब कर लिया था कि जो होगा देखा जायेगा ।

"बैरियर गिरा हुआ है । यहां सेनिक मौजूद और वे शहर में दाखिल होने वाले हर बाहन की तलाशी ले रहे है ।" चकराया-सा बोला किंग्ले-----जरूर कोई गड़बड़ है ।"

"क्या गड़बड़ हो सकतीं हैं?"

"‘आजकल तो सेना का एक ही टार्गेट है, सर एडलॉफ के समर्थक ।" किंग्ले ने बताया---"जिन्हें दबोचने के लिये ये लोग कोई भी नैतिक अनैतिक तरीका अपनाने से गुरेज नहीं करते । शायद यहा भी ये लोग इसी फिराक मे मौजूद है ।
र्किग्ले ने कार बेरियर के करीब ले जाकर रोक दी । मगर उसका इंजन चालु रखा।

दो सैनिक-कार की तरफ बढे।

क्या मजाल जो मेरे चेहरे पर किसी तरह का भाव उभरा हो ।

. दोनों सेनिक कार के करीब पहुचे । उनमें से एक ड्राइविंग डोर की तरफ खड़ा था और दूसरा मेरी बगल वाली खिड़की के करीब । उसने अपनी निगाहें मेरे चेहरे पर गड़ा-सी दी थीं ।

"कौन हो तुम?" सैनिक ने सीधा मुझसे सवाल क्रिया ।

"ये एक लेखिका है । " जंबाब किंग्ले ने दिया…"एडवेंचर की है शौकीन है । देश-देश घूमकर उन जगहों पर शोध कर रही हैं जिनका .… इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है ।"

" तुम इस लडकी के बारे में इतना कुछ कैसे जानते हो?" सैनिक ने अपनी निगाहें मेरे चेहरे पर से हटाकर र्किग्ले को घूरा ।

"ये मेरी जान-पहचान वाली है । लेकिन तुम इसकै बारे में क्यों पूछ रहे हो?"

" दरअसल सेना को एक ऐसी ही जवान ओर खूबसूरत युवती की तलाश है । वो एक खतरनाक जासूस है और दो सेनिक आफिसरों के अलावा कई सैनिकों की हत्या करके भागी है ।"

"वया मैं तुम्हें वो लड़की लगती हूं?" मैंने होंठ खोले ।

सैनिक मेरे सवाल का जबाब देने के बजाये र्किग्ले से मुखातिब हुआ-" तो ये लडकी तुम्हारी जान-पहचान वाली है मिस्टर-।"

"यस ।"

"तुम्हारा नाम?"

" 'र्किग्ले ।"

"अपना पता बताओं ।"

किंग्ले ने सेनिक को अपना पता बता दिया ।

"इस कार को जाने दो ।" सेनिक बैरियर के करीब खड़े अपने साथियों को सम्बोधित करके बोला ।

बैरियर पर मौजूद सैनिकों ने तुरंत बैरियर उठा दिया ।

किंग्ले ने कार आगे बढा दी ।

र्किग्ले मेरे लिये काफी मददगार साबित हुआ था । न जाने सैनिक मुझसे क्या-क्या सवाल करते? अगर र्किग्ले ने सैनिक को बता दिया होता कि मैंने बस्ती के पास से उसकी कार में लिफ्ट ली है तो उन्हें मुझ पर शक हो जाना लाजिमी था । हो सकता था कि मुझे कार से नीचे उतार लिया जाता ।

कार वेरियर पार करके सडक पर दौडती चली गई । मगर सैनिकों के फरिश्तों तक को भी पता नहीं चल पाया था कि मैं वही युवती हू जिस की उन्हें तलाश है । मैं उनकी नाक के नीचे से सुरक्षित निकल गई थी ।

मैंने कनखियों से किंग्ले का चेहरा देखा । उसके चेहरे पर सोच के गहरे भाव थे । कदाचित् वह मेरे बारे में ही सोच रहा था ।

"मिस प्रेरणा?" एकाएक किंग्ले बोल उठा ।

"यस ।"

"कहीँ ऐसा तो नहीं कि आप मुझसे कुछ छिपा रहीँ हों?"

में धक् से रह गई ।

मुझे उससे ऐसी बात की उम्मीद ही नहीं थी ।

फिर भी बोली--, "मैँ भला आपसे क्या छिपाऊंगी ?"

"कहीं आप ही तो वो लडकी नहीं हैं, जिसकी सैनिकों को तलाश है ।"

मेरा दिल जोरो से धड़क उठा । मगर मैं अपने आपको संभाले कह उठी-----"अगर मैं वही लडकी होती तो सैनिक मुझे पहचान नहीं लेते और इस वत्त मेरे साथ-साथ आप भी सैनिकों के चंगुल में होते !!"

"ये बात तो है ।"

"और सबसे बडी बात तो ये है कि मैं आपको इतनी दिलेर लगती हूँ कि सेना के दो आफिसरों और कई सैनिकों की हत्या कर सकूं । "
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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